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मारवाड़ का इतिहास
इसी वर्ष माघ वदि ( ई० स० १८०४ की जनवरी ) में स्वर्गवासी महाराजा भीमसिंहजी की रानी के गर्भ से पुत्र होने की सूचना प्रकट की गई और साथ ही पौकरनठाकुर सवाईसिंह ने उसे भाटी छत्रसिंह के साथ खेतड़ी (जयपुर राज्य में) मेज दिया । इस बनावटी बालक का नाम धौंकलसिंह रक्खा गया था ।
इस प्रकार की गुप्त कार्रवाइयों से महाराजा मानसिंहजी और भी अधिक अप्रसन्न हो गए, और माघ सुदि ५ (१७ जनवरी) को इन्होंने अपना राज्याभिषेक कर डाला । इसके बाद सवाईसिंह काम का बहाना कर पौकरन चला गया । ___ इस समय सिंधिया और कम्पनी के बीच युद्ध जारी था । इसीसे मौका देख महाराज ने अजमेरे पर अधिकार करलिया । इसके बाद शीघ्र ही जब जसवन्तराव होल्कर कम्पनी से हारकर अजमेर की तरफ़ आया, तब महाराज ने मित्रता दिखला कर उसके कुटुम्ब को अपनी रक्षा में लेलिया । इससे निश्चिन्त हो वह मालवे की तरफ़ चला गया । परन्तु इस घटना से, वि० सं० १८६१ के वैशाख (ई० स० १८०४ की मई ) में, ऊपर लिखी संधि बिलकुल रद हो गई।
इन झंझटों से निपटते ही महाराज ने आयस देवनार्थं को बुलवा कर अपना गुरु बनाया, और जिन लोगों ने स्वर्गवासी महाराजा भीमसिंहजी को अपने भाइयों और चचाओं के विरुद्ध भड़काया था, उनको मरवा डाला; और जिन्होंने विपत्ति के समय इनकी सेवा की थी, उन्हें जागीरें आदि देकर सम्मानित किया ।
१. इसी से गद्दी पर बैठते समय इन्होंने अपने को स्वर्गवासी महाराजा भीमसिंहजी का दत्तक
पुत्र प्रकट न कर अपने पिता गुमानसिंहजी का पुत्र ही घोषित किया । २. वि० सं० १८६३ (ई० स० १८०६) में इस पर फिर से मरहटों का अधिकार हो गया । ३. इसी ने महाराज से और कुछ दिन के लिये जालोर का किला न छोड़ने का आग्रह कर
जोधपुर राज्य के मिलने की भविष्यवाणी की थी। ४. महाराजा मानसिंहजी के राज्य में नाथों का प्रभाव बढ़ जाने से वल्लभकुल (संप्रदाय) के
वैष्णवों का प्रभाव घट गया था । महाराज की आज्ञा से नाथजी के रहने के लिये जोधपुर नगर के बाहर महामन्दिर नामक गाँव बसाया गया और वैष्णव मन्दिरों को दिए हुए
अनेक गाँव जन्त करलिए गए। ५. इन्हीं लोगों ने महाराजा भीमसिंहजी को अपने कुटुम्ब वालों से नाराज़ कर उनके चचा
शेरसिंह और सांवतसिंह तथा चचेरे भाई शूरसिंह को मरवा डाला था।
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