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महाराजा उमेदसिंहजी शाम को आतिशबाज़ी छोड़ी गई और रात को किले और रातानाडा वाले महल पर रौशनी की गई । इसके बाद रात को जो बृहद्-भोज हुआ, उसमें भी शाहजादे ने राठोड़-नरेशों और राठोड़-वीरों की बड़ी प्रशंसा की और महाराजा साहब को उन के अंगरेजी-सेना के अवैतनिक-कप्तान (Honorary Captain ) नियुक्त होने की बधाई दी।
मँगसिर सुदि २ ( १ दिसंबर ) को सुबह शिकार और शाम को पोलो का खेल हुआ । इन दोनों कार्यों में शाहजादे ने भी भाग लिया। इसके बाद वह रातको अपनी खास गाडी ( Special train ) से लौट गया ।
इन दिनों पण्डित सुखदेवप्रसाद काक के बीमार होजाने से कुछ दिनों तक तो उसका काम लेफ्टिनेंट कर्नल लॉयल ही करता रहा । परन्तु वि० सं० १९७८ की पौष बदि १२ ( ई० स० १९२१ की २६ दिसंबर ) को दीवान बहादुर मुंशी दामोदर लाल ( I. S. O. ) अस्थायी 'जुडीशल-मैंबर' बनाया गया।
इसी वर्ष के माघ ( ई० स० १९२२ की जनवरी ) से महाराजा साहब ने 'रीजैंसी-काउंसिल' की 'मीटिंगों' ( सभाओं) में भाग लेना प्रारम्भ किया ।
इसी अवसर पर जोधपुर रिसाले के इन सैनिकों को भी Indian meritorious service (भारतीय-प्रशंसित-सेवा ) के पदकों से भूषित किया गयाः
(क) दफ़ेदार बनेसिंह । (ख) दफ़ेदार सूरजबख्शसिंह । (ग) कोत-दफ़ेदार कानसिंह । (घ) सवार बाघसिंह ।
(ङ) सवार बख्शूखाँ। १. इसी महीने में जोधपुर की 'पोलोटीम' ने कलकत्ते में 'इण्डियन पोलो एसोसियेशन'
का 'चैंपियन कप' ( Champion Cup ) जीता । इसी प्रकार यह 'टीम' तीन वर्ष (ई० स ० १६१६, १९२० और १६.१) से अजमेर के मेग्रो कालिज के 'टूर्नामैंट' में भी बराबर जीतती रही। इसी महीने में जामनगर-नरेश रणजीतसिंहजी अपनी बहन माजी
जाडेजीजी साहबा को लेने जोधपुर आए । २. ( वि० सं० १६७६ की ज्येष्ठ सुदि ५ (ई० स० १६२२ की ३१ मई ) को 'रिवैन्यू
मैंबर' मिस्टर ड्रेक ब्रोकमैन के ६ मास की छुट्टी जाने पर उसका काम भी मुन्शी
दामोदरलाल को सौंपा गया।) ३. पौष सुदि ३ ( ई० स० १९२२ की १ जनवरी) को चंडावल के ठाकुर गिरधारीसिंह
को राम्रो बहादुर की उपाधि मिली ।
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