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मारवाड़ का इतिहास इससे नाराज़ होकर वह अजमेर लौट गया । यह देख पौकरन, आउवा, रास और नींबाज आदि के सरदार भी उसी के साथ पुष्कर चले गए।
इसी वर्ष राज्य के ५०० विदेशी सैनिक तनख्वा न मिलने के कारण दो तो लेकर बागी हो गए, और साथीण के भाटी शक्तिदान और नींबाज के ऊदावत शिवनाथसिंह के साथ मिलकर बीलाड़ा और उसके आसपास के गांवों से रुपये वसूल करने लगे । इस प्रकार इधर देश में यह उपद्रव हो रहा था, और उधर नाथों के प्रभाव के कारण गवर्नमेंट को कर का रुपया भी नहीं दिया जा सका। इस पर सावन वदि २ ( २८ जुलाई ) को ए. जी. जी. ने अजमेर में दरबार कर मारवाड़ के सरदारों से पूछा कि हमारी सेना के जोधपुर पर चढ़ाई करने पर यदि युद्ध हो तो तुम किसका साथ दोगे । यह सुन भाटी शक्तिदान ने कहा कि ऐसी हालत में पहले तो महाराज आपसे युद्ध ही नहीं करेंगे । परंतु यदि युद्ध ठन गया तो स्वामिधर्म को निबाहने के लिये, संकट के समय, हमैं महाराज का ही साथ देना पड़ेगा ।
अन्त में श्रावण सुदि १५ ( २४ अगस्त ) को कर्नल सदरलैंड ने अजमेर से ( गवर्नमेंट की तरफ़ से १७ अगस्त का नसीराबाद में लिखा हुआ ) एक फ़रमान जारी किया । उसमें लिखा था कि:१. संधि के माफिक जो रुपया सालाना गवर्नमैंट को दिया जाना चाहिए था, वह
करीब ५ वर्ष से चढ़ रहा है। २. राज्य के कुप्रबन्ध के कारण अन्य राज्यों में रहनेवालों का जो लाखों रुपयों
का नुकसान हुआ है, उसकी वसूली का भी कुछ प्रबन्ध नहीं है । ३. राज्य में सर्व-साधारण की तकलीफों को दूर करने के लिये भी यथोचित
प्रबंध नहीं हो सका है।
१. ख्यातों में लिखा है कि राज्य की तरफ़ से इन रुपयों की एवज़ में जेवर भेजा गया था ।
पर सरदारों के कहने से सदरलैंड ने उसे लेने से इनकार कर दिया । २. ख्यातों में लिखा है कि साथीण के भाटी शक्तिदान ने एजेंट से साफ़-साफ़ कह दिया था कि
जब तक आप महाराज को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाने का इरादा न कर राज्य प्रबंध ठीक करने का उद्योग करेंगे, तब तक हम आपके शामिल रहेंगे । परंतु जिस समय आप का इरादा बदल जायगा, उस समय हम महाराज के शामिल हो जायँगे । परंतु सावन वदि १० को अजमेर में ही शक्तिदान की मृत्यु हो गई ।
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