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महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) वि० सं० १८३३ की आषाढ सुदि १२ ( ई० स० १८७६ की ३ जुलाई ) को जोधपुर का राजकीय स्कूल, जोकि अंगरेज़ी भाषा की शिक्षा के लिये खोला गया था, 'हाई स्कूल' बनादिया गया।
वि० सं० १९३३ के भादों ( इ० स० १८७६ के अगस्त ) में 'महकमा खास' का काम महाराज ने अपने छोटे भ्राता महाराज किशोरसिंहजी को सौंपा।
इसी वर्ष की आश्विन सुदि ४ ( ई० स० १८७६ की २१ सितम्बर ) को 'स्टाम्प' का कानून बना, और कार्तिक वदि ४ (७ अक्टोबर) को 'स्टाम्प' का महकमा खोला गया ।। ये 'स्टाम्प' सर्कारी छापेखाने में तैयार किए जाते थे ।
वि० सं० १९३३ की माघ बदि २ ( ई० स० १८७७ की १ जनवरी ) को महारानी विक्टोरिया के भारतेश्वरी ( Empress of India ) की उपाधि ग्रहण करने के उपलक्ष में दिल्ली में एक दरबार होने वाला था। इसलिये महाराज भी गवर्नमैन्ट द्वारा निमंत्रित होकर, अपने दल-बल सहित, वहां पहुंचे और वि० सं० १६३३ की पौष सुदि १२ (ई० स० १८७६ की २८ दिसम्बर) को लॉर्ड लिटन से इनकी मुलाकात हुई। उस समय गवर्नमैन्ट की तरफ़ से इनकी सलामी में १७ तोपें दागी गईं और सेना ने सामने आकर फौजी कायदे से इनका अभिनन्दन किया। इसके साथ ही 'वैदेशिक-सचिव'
१. इनकी और इनके छोटे भ्राताओं की प्रारंभिक-अंगरेज़ी-शिक्षा के लिये वि० सं० १६१६
( ई० स० १८६२) में पंडित अयोध्यानाथ हुक्कू नियुक्त किया गया था। २. वैसे तो वि० सं० १६३० की सावन सुदि ३ ( ई० स० १८७३ की २७ जुलाई ) को
ही इस विषय के कुछ नियम प्रकाशित किए गए थे, मकानों और खानों के पट्टों और अर्जियों के लिये 'स्टाम्प' के कागज़ छपवाकर कोतवाली आदि में रखवा दिए गए थे और इसकी देख-रेख का काम पंडित शिवनारायण काक को सौंपा गया था। परंतु उस | समय पट्टों के उपयोग में आने वाले काग़ज़ों के अलावा अन्य 'स्टाम्पों' पर कीमत नहीं छपी होती थी। अदालतों के हाकिम, बेचते समय, उन पर कीमत लिख दिया करते थे। पहले १०० रुपये तक के दावे पर चार पाने का ' स्टाम्प ' लिया जाता था। परंतु वि. सं. १६३१ की प्रथम आषाढ सुदि ३ (ई० स० १८७४ की १७ जून) को पचास रुपये तक
के दावे पर दो आने का 'स्टाम्प' लेने का नियम कर दिया गया। वि० सं० १६३२ ( ई० स० १८७५ ) में 'स्टाम्प' का प्रबन्ध मेहता विजयमल को दिया गया । परन्तु वि० सं० १६३३ (ई० स० १८७६ ) में इसके कायदे-कानून बनाकर इस काम के लिये एक जुदा महकमा कायम किया गया और डड्ढा हरखमल और मुंशी मुबारिकहुसैन उसके अफसर बनाए गए।
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