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________________ चा मारवाड़ का इतिहास अमीरखाँ ने और चांपावत सवाईसिंह ने एक बड़ी सेना लेकर महाराज पर चढ़ाई की। इसकी सूचना पातेही महाराजा मानसिंहजी स्वयं दल-बल सहित आगे बढ गींगोली (परबतसर ) के पास उनका मार्ग रोकने को जा पहुंचे। इसी समय हरसोलाव, धांधियां, चवाँ, सथलाणा, सरवाड़, मारोठ, गौडावाटी आदि के बहुत से ठाकुर अपनी-अपनी सेनाओं को लेकर शत्रु-पक्ष में जामिले और आउवा, आसोप, नींबाज, रास, आहोर, लांबियां, कुचामन, बूडसू, खेजड़ला और रायपुर के ठाकुरों ने महाराज को विना लड़े ही युद्धस्थल से लौट चलने के लिये दबाया। यद्यपि महाराज की इच्छा जमकर युद्ध करने की थी, इसी से यह एकवार तो उत्तेजित होकर मना करनेवालों का वध करने तक को तैयार होगए, तथापि अन्तमें सरदारों के हठ के कारण इन्हें उनका कहना मानना पड़ा । महाराज के युद्ध-स्थल से लौटते ही उनमें से भी बहुत से सरदार इधर-उधर चले गए और बहुतसे सवाईसिंह से जा मिले । इस अवसर पर भारती-संप्रदाय के युद्ध-जीवी साधुओं ( महापुरुषों) ने पूरी तौर से स्वामि-धर्म का पालन किया । इन में से कुछ तो महाराज का पीछा करने वाले शत्रुओं को रोकने के लिये हिन्दालखाँ के बेड़े के साथ वहीं ठहर गए और कुछ महाराज के साथ मेड़ते होते हुए, फागुन सुदी १० (ई० स० १८०७ की १९ मार्च) को, जोधपुर चले आए । इसके बाद महाराज ने अधिकांश सरदारों को शत्रु से मिला देख एक वार तो जालोर की तरफ जाने का इरादा करलिया, परन्तु फिर शीघ्र ही कुचामन-ठाकुर और हिंदालखाँ के समझाने से यह विचार त्यागदिया । १. सवाईसिंह ने जयपुर-महाराज को समझाया था कि मारवाड़ के करीब-करीब सारेही सरदार धौंकलसिंह के पक्ष में हैं । इसलिये जैसेही आप जोधपुर-नरेश के मुकाबले में पहुँचेंगे, वैसे ही उनमें से कुछ तो मानसिंहजी का साथ छोड़ आपकी सेना में चले आयेंगे और कुछ, जो पीछे रेहेंगे, वे महाराज को, मारवाड़ के सरदारों के शत्रु से मिले होने का भय दिखला कर, विना लड़े ही, जालोर की तरफ ले जाने का प्रयत्न करेंगे । इस से धौंकलसिंह को अनायास जोधपुर के किले पर अधिकार करने का मौका मिल जायगा । परन्तु इतने पर भी महाराजा जगतसिंहजी के मनसे भय और सन्देह दूर न हुआ। इसीसे उन्होंने स्वयं मारोठ में ठहर सवाईसिंह आदि को आगे बढ़ने की आज्ञा दी । २. ख्यातों से ज्ञात होता है कि जिस समय महाराज युद्ध से लौटते हुए मेड़ते के बाहर ठहरे, उस समय वहाँ के बनियों ने रसद वगैरा देने से इनकार करदिया । परन्तु वहाँ के कोतवाल को सूचना मिलते ही उसने उन्हें दबाकर सारा प्रबन्ध करवा दिया ! ४०८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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