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मारवाड़ का इतिहास
पचपदरा, फलोदी और लूनी के तट पर की ( भवातड़े की ) नमक की खानों का ठेका भी गवर्नमैंट ने लेलिया, पिचियाक और मालकोसनी की खारी नमक की खानों को छोड़ कर राज्य में के अन्य सारे नमक के दरीबे बंद करवा दिए और पिचियाक और मालकोसनी में सालाना बीस हजार मन से अधिक नमक न बनाने का राज्य से वादा लेलिया । परन्तु कलमीशोरा बनाने का हक़ राज्य के अधिकार में ही रहा । इसकी एवज्र में गवर्नमैंट की तरफ़ से जोधपुर - राज्य को वार्षिक ३,६१,८०० रुपये नकद, १०,००० मन उमदा नमक विना मूल्य ( पचपदरे के मुक़ाम पर ) और २,२५,००० मन अच्छा नमक आठ आने मन तक के हिसाब से दो किश्तों में पचपदरे की और अन्य स्थानों की खानों से देना निश्चित हुआ । इसके अलावा अधिक लाभ होने पर मुनाफे का आधा भाग भी राज्य को देने का तय हुआ । इसी प्रकार मारवाड़ के जागीरदारों को हुए नुकसान की एवज में १६,५६५ रुपये ५ आने ३ पाई वार्षिक और अन्य भू-स्वामियों को ३,००,००० रुपये एकवार देना निश्चित हुआ । इस संधि के अनुसार गवर्नमैंट की चुंगी दिए विना बाहर से मारवाड़ में नमक का आना या राज्य को मिलने वाले नमक का बाहर जाना बंद करदिया गया और बाहर जानेवाले नमक पर की राज्य की चुंगी भी उठा दी गई । साथ ही गवर्नमैंट ने, इन शर्तों के ठीक तौर से निर्वाह करने के कारण होने वाले अन्य कई तरह के नुकसानों की एवज में, महाराज को १,२५,००० रुपये सालाना और भी देना अङ्गीकार किया ।
वि० सं० १९३६ की माघ सुदि १ ( ई० स० १८८० की ११ फ़रवरी ) को महाराज-कुमार सरदारसिंहजी का जन्म हुआ ।
वि० सं० १९३७ की फागुन वदि ३ ( ई० स० १८८१ की १७ फरवरी ) को पहले-पहल मारवाड़ में मर्दुमशुमारी की गई और इसके अनुसार उस समय मारवाड़ की कुल आबादी करीब साढे सत्रह लाख हुई |
वि० सं० १९३८ के श्रावण ( ई० स० १८८१ के अगस्त ) में महाराज प्रतापसिंहजी ने अपने कार्य से इस्तीफ़ा दे दिया । परंतु अगले वर्ष के आश्विन
१. मारवाड़ में पैदा होने वाले नमक का ठेका गवर्नमेन्ट को देने के पहले नमक बनाने और बेचने का काम राज्य के कर्मचारियों की निगरानी में होता था । परन्तु उस समय पांच लाख से अधिक वार्षिक प्राय कभी नहीं हुई थी ।
२. इस अवसर पर भी जयपुर - नरेश महाराजा रामसिंहजी जोधपुर ए थे
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