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महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) इसी वर्ष की फागुन सुदि १३ ( ई० स० १८६३ की २८ फ़रवरी) को ऑस्ट्रिया का शाहजादा ( His Imperial and Royal Highness the Archduke Franz Ferdinand of Austria ) जोधपुर आया । इस पर राज्य की तरफ से भी उसका उचित -सत्कार किया गया ।
वि० सं० १९५० के वैशाख ( ई० स० १८९३ के अप्रेल ) में लॉर्ड रॉबर्ट्स जोधपुर आया । उस समय उसके सामने सरदार रिसाले की जो परेड हुई थी, उसका संचालन ( कमांड ) स्वयं महाराज - कुमार सरदारसिंहजी ने किया था । यद्यपि आपकी अवस्था उसै समय केवल १३ वर्ष की ही थी, तथापि आपने यह कार्य इस योग्यता से किया कि स्वयं लॉर्ड राबर्ट्स को आपके कार्य की प्रशंसा करनी पड़ी ।
इसी वर्ष के श्रावण ( अगस्त) में उच्च शिक्षा के लिये नगर में 'जसवन्त कॉलेज' की स्थापना की गई । इससे यहां पर ' इलाहाबाद यूनीवर्सिटी' को 'एफ. ए. ' तक की परीक्षाओं का प्रबन्ध हो गया ।
इस वर्ष रुपये की मांग बढ़ जाने से, भादों सुदि १ (११ सितम्बर ) को, बिजेशाही रुपया बनाने के लिये नागोर की टकसाल फिर जारी की गई और कुचामन - ठाकुर को इकतीसंदा रुपया बनाने की आज्ञा दी गई।
इसी वर्ष के भादों और कार ( सितम्बर और अक्टोबर) में यहां की पोलो टीम ने पूना में विजय प्राप्त की ।
इसी कार (अक्टोबर ) में जसवन्तपुरे परगने के देवलों ने उपद्रव उठाया । इस पर महाराज प्रताप सिंहजी ने राजकीय सेना के साथ वहां जाकर उन्हें दबा दिया । इससे उन्होंने अधीनता स्वीकार करली |
इसी वर्ष के मँगसिर (नवम्बर) में बंबई के गवर्नर जॉर्ज राबर्ट्स कैनिंग बैरन हैरिस, और पौष ( ई० स० १८६४ की जनवरी) में इन्दोर के महाराज जोधपुर आए । इसके बाद वि० सं० १९५१ के वैशाख (अप्रेल) में स्त्रयं महाराज शिकार अजमेर तक की तार की
१. इसी वर्ष की चैत्र वदि ( मार्च) में नांवा ( कुचामनरोड)
लाइन बनवाने का निश्चय हुआ ।
२. इसी अवसर पर जनरल जॉर्ज व्हाइट और कर्नल ट्रेवर ( ए. जी. जी. राजपूताना ) भी जोधपुर पहुँचे ।
३. इसी वर्ष पण्डित गंगाप्रसाद मिश्र सुपरिन्टेंडेंट 'दरबार हाई स्कूल' के मर जाने पर पण्डित सूरजप्रकाश वातल सुपरिन्टेंडेंट 'दरबार हाई स्कूल' और प्रिंसिपल 'जसवन्त कॉलेज' बनाया गया ।
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