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मारवाड़ का इतिहास जोधपुर आकर उत्सव में सम्मिलित हुए। इनमें के कुछ नरेश बरात में भी सम्मिलित हुए थे । इसप्रकार महाराज-कुमार मरदारसिंहजी का विवाह, बूंदी-नरेश की बहन के साथ, बड़ी धूम-धाम से संपन्न हुआ ।
महाराजा जसवन्तसिंहजी का बरताव अन्य नरेशों के साथ पूर्ण मित्रता का रहता था। इसी से दूर-दूर के नरेश जोधपुर आकर आपका आतिथ्य ग्रहण करते रहते थे, और इसी प्रकार महाराज स्वयं भी कभी-कभी उनसे मिलने जाकर मित्रता का परिचय दिया करते थे ।
इसी वर्ष पंडित दीनानाथ काक और कल्ला चतुर्भुज 'काउंसिल' के 'मैंबर' बनाए गए।
वि० सं० १९४६ (ई० स० १८१२) में मेहता सरदारमल 'काउंसिल' का मैंबर और दीवान नियत हुआ।
इसी वर्ष की भादों सुदि १० (१ सितम्बर ) को उदयपुर-महाराना फतैसिंहजी जोधपुर आए । इस पर महाराज ने बड़े प्रेम से उनका स्वागत किया ।
वि० सं० १९४६ के माघ (ई० स० १८९३ की जनवरी ) में ऐसिस्टैन्ट रैजीडैन्ट लॉक ने मारवाड़ की किशनगढ़ की तरफ़ की सीमा का फैसला करदिया ।
इसी प्रकार मारवाड़ के कुछ गांवों को छोड़ कर बाकी के सब गांवों का मामला भी तय होगया ।
१. वि० सं० १९४६ के आश्विन (ई. स. १८६२ के सितम्बर ) में बीकानेर-नरेश यहां
आए । ( यह महीने भर बाद मेोकॉलेज जाने को फिर इधर से निकले थे)। इसी वर्ष के आश्विन ( अक्टोबर ) में कोटे के महाराव उमेदसिंहजी और मँगसिर ( नवम्बर ) में कोल्हापुर-नरेश, भावनगर के महाराज-कुमार और बूंदी-नरेश जोधपुर आए । ये लोग
महाराज-कुमार के विवाह समय उपस्थित नहीं हो सके थे, इसीसे बाद में आए थे । २. वि० सं० १९४६ के कार्तिक ( ई० स० १८९२ के अक्टोबर ) में महाराज बीकानेर
गए और पौष ( दिसम्बर के अन्त में ) मातमपुर्सी करने को अलवर गए; तथा वहां
से लौटते हुए आप एक रोज जयपुर भी ठहरे थे । ३. यह पण्डित शिवनारायण काक का बड़ा पुत्र था और उसके देहान्त के बाद उसके स्थान पर
काउंसिल का 'मैंबर', महाराज का 'प्राइवेट सेक्रेटरी' और 'इज़लाय गैर' का हाकिम
बनाया गया । ४. इसके पिता मेहता विजयमल का देहान्त होने से यह पद इसे दिया गया था। इसी वर्ष
कल्ला चतुर्भुज और खाँ बहादुर फैजुलाखाँ का भी देहान्त हो गया। इस पर कल्ला शिवदत्त 'हवाले' का और मुंशी हमीदुल्लावाँ 'तामील' का सुपरिन्टेंडेंट बनाया गया ।
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