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मारवाड़ का इतिहास
वि० सं० १९७३ की माघ वदि ७ ( ई० स० १९१७ की १५ जनवरी ) को नगर में बिजली के कारखाने का उद्घाटन किया गया।
वि० सं० १९७४ की पौष वदि ४ (ई० स० १९१८ की १ जनवरी ) को गवर्नमेंट ने महाराजा साहब की युद्ध में दी हुई सहायताओं के उपलक्ष में आपको के० बी० ई० की उपाधि से भूषित किया ।
___ फाल्गुन ( मार्च ) में दीवान बहादुर तिवाड़ी छज्जूराम 'मुसाहिब-आला' बनाया गया। इस वर्ष वर्षा की अधिकता के कारण नगर और गांवों में प्लेग फैल गया। परंतु नये दीवान ने महाराजा की आज्ञा से शहर के बाहर के सरकारी मकानात खुलवा कर नगर-वासियों के लिये रहने का सुभीता कर दिया। इसी प्रकार नियत-भाव से नाज बेचने के लिये दूकानें खुलवा कर नगर में होने वाली मँहगाई दूर की गई और सरकारी रिसाले को नगर में गश्त लगाने की आज्ञा देकर निर्जनघरों की रक्षा का प्रबन्ध किया गया । प्लेग के शान्त होते ही नगर में युद्ध-ज्वर १. पौष सुदि १० ( ई. स. १६१७ की ३ जनवरी) को 'सरदार-इन्फैटी' के 'कमांडिंग
ऑफीसर महाराज रत्नसिंहजी का स्वर्गवास होगया। वि० सं० १९७४ की वैशाख वदि ७ ( १४ अप्रेल) को मेजर पैटर्सन (फाइनैस मैंबर ) और ज्येष्ठ वदि ६ ( १५ मई ) को पं० श्यामविहारी मिश्र ( रेवेन्यू मैंबर ) लौट कर गवनमैंट की सेवा में चले गए। २. महाराजा सुमेरसिंहजी ने वि० सं० १६७४ की मँगसिर वदि ३० ( ई० स० १०१७ की
१४ दिसम्बर ) और माघ सुदि ८ ( ई० स० १६१८ की १८ फरवरी ) को कलकत्ते की, माघ बदि ७ (ई. स. १६१८ की ३ फरवरी) को दिल्ली की, माघ वदि ३० (११ फरवरी) को उमरकोट की, फागुन सुदि ३ (१५ मार्च) को उटकमंड की
और वि• सं० १९७५ की भादों बदि ११ (१ सितम्बर ) को पूना की यात्रा की । वि० सं० १६७४ की आश्विन वदि ३० (ई० स० १९१७ की १६ अक्टोबर ) को टोंक-नवाब के पुत्र साहबजादा फर्रुखमोहम्मद अलीखाँ जोधपुर पाए और करीब २७ दिन यहां रहे।
वि० सं० १९७५ की ज्येष्ठ वदि है ( ई० स० १६१८ की ३ जून ) को सम्राट्र की सालगिरह पर बाबू देवीदयाल (सुपरिन्टेंडेंट-आबकारी), बाबू शंकरलाल ( सैक्रेटरी-जोधपुर इंपीरियललांसर्स ) और के. मंजुनाथ भटजी ( सुपरिंटेंडेंट-कस्टम्स ) को 'राय साहब' की उपाधियां मिलीं।। ३. वि. सं. १६७४ की फागुन वदि ५ ( ई. स० १९१८ की ३ मार्च) को महरवानजी
पेस्टनजी लौट कर जामनगर चला गया। इस अवसर पर उसको हाथी सरोपाव और पांच हज़ार रुपये इनाम के तौर पर दिए गए।
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