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महाराजा सुमेरसिंहजी ( इन्फ्लुएंजा ) का प्रकोप हो गया । परन्तु शीघ्र ही दरबार की तरफ़ से एक 'रिलीफ कमेटी' बनादी जाने से गरीब लोगों को हर तरह का सुभीता हो गया । यह कमेटी गरीब बीमारों के लिये दवा के साथ ही खाने-पीने का प्रबन्ध भी कर देती थी ।
वि० सं० १९७५ की वैशाख सुदि १३ ( ई० स० १९१८ की २३ मई ) को महाराजा सुमेरसिंहजी का दूसरा विवाह, सोहिन्तरा ( पचपदरा परगने ) के चौहानठाकुर के छोटे भाई, सूरजमल की कन्या से हुआ । इसके उपलक्ष्य में राज्य कर्मचारियों और प्रतिष्ठित नगरवासियों को निमंत्रित कर बड़ा भोज और जलसा किया गया ।
इन दिनों जोधपुर का सरदार - रिसाला, मिस्र ( Egypt) के रणस्थल में, तुर्कों से लड़ रहा था । वहीं पर वि० सं १९७५ के आश्विन ( सितंबर) में, हैफा के युद्ध में उक्त रिसाले का मेजर देवली - ठाकुर दलपतसिंह सम्मुख रण में मारा गय 1
१. वि० सं० १६७४ की फागुन सुदि ३ ( ई० स० १६१८ की १५ मार्च ) को जिस समय जोधपुर का रिसाला पश्चिमी युद्ध क्षेत्र से मिस्र (Egypt) भेजा गया, उस समय स्वयं सम्राट् ने उसके पश्चिमी युद्ध क्षेत्र में किए कार्यों की प्रशंसा की थी ।
वि० सं० १६७४ की चैत्र वदि २ ( २६ मार्च) को यह रिसाला मिस्र पहुँचा और वि० सं० १६७५ की आषाढ सुदि ६ ( ई० स० १६१८ की १४ जुलाई) को इसने जॉर्डन की घाटी ( Jordan Valley ) के हमले में भाग लेकर शत्रु को खूब क्षतिग्रस्त किया ।
इसके बाद वि० सं० १६७५ की आश्विन वदि ३ ( ई० स० १६१८ की २३ सितम्बर ) को इस रिसाले ने किलेबंदी से सुरक्षित हैफा नगर पर धावा कर उस पर अधिकार कर लिया । यद्यपि उक्त स्थान पर नगर और रिसाले के बीच नदी की बाधा थी और शत्रु अपने सुदृढ़ मोरचों में बैठ भीषण गोलावृष्टि कर रहा था, तथापि रिसाले के वीरों ने इन विघ्न-बाधाओं को नष्ट कर अपने भाल से बहुत 'से तुर्कों को मार डाला और ७०० तुर्क सिपाहियों को क़ैद कर लिया । इसी धावे में उपर्युक्त मेजर ठाकुर दलपतसिंह M. C. वीरता से लड़ कर मारा गया था ।
कार्तिक वदि ७ ( ई० स० १६१८ की २६ अक्टोबर ) को इस रिसाले ने अलप्पौ ( Aleppo ) के उत्तर-पश्चिम वाले धावे में भी भाग लिया ।
युद्ध में प्रदर्शित वीरता के कारण इस रिसाले के वीरों को ६३ पदक आदि मिले थे । इनके अलावा इस रिसाले के अनेक अफसरों के नाम सैनिक- खरीत ( despatches) में भी उद्धृत किए गए थे ।
महाराजा प्रतापसिंहजी की वीरता से प्रसन्न होकर फ्रांस के प्रेसीडेंट ने आपको 'लीजियन डी' ऑॉनर ग्रांड ऑफीसर, ( Legion d'honneur grand officer ) का और मिस्र ( Egypt ) के सुलतान ने प्रथम श्रेणी का 'ग्रांड कॉर्डन ऑफ दि ऑर्डर ऑफ़ दि नाइल' ( (irand Co rdon of the order of the vile) का खिताब दिया था ।
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