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मह राजा उम्मेदसिंहजी लोग इस वृक्ष के तने में अपना गोली-बारूद रवखा करते थे । इस वृक्ष के तने में घुसने का द्वार इतना बड़ा था कि, उ.में एक लंबा अादमी वगर र झुकाए ही घुस सकता था। इसी से पाठक उस वृक्ष के ने की विशालता का पता लगा सकते हैं।
इसके बाद आपने मैन्यारा (Pi.. ) झील पर पड़ाव किया और वहां पर दो शानदार सिंह मारे । इनका नाप क्रमशः ६ फुट ६ इंच और ६ फुट ६ इंच था। वहीं पर आपने अनेक तरह के शिकारोपयोगी पशुओं के कई सुन्दर छाया-चित्र भी लिए । इस पड़ाव पर भहाराज अजितसिंहजी और मिस्टर हेवर्ड भी शिकार करने में लगे थे । इससे डेरे पर पूर्वी एफ्रिका के इ. भाग में मिलने वाले सब तरह के शिकार किए जाने वाले पशुओं का अच्छा संग्रह हो गया । महाराजा साहब ने अपने सहायक शिकारियों ( Chief hunters) को प ले ही कह रक्खा था कि शिकार करने में आपका विचार पशुओं की विशेषता ( 1 ) से है, संख्या से नहीं। इसीसे यहां पर मारे हुए पशुओं का नम्बर अधिक न हो पर भी स्मारक के तौर पर जितने भी पशु मारे गए थे, वे सब अपनी खास विशेषता रखते थे। इसके अलावा साथवालों के भोजन के लिये, जिनकी संख्या करीब ६५ ३ थी, मांस का प्रबन्ध करने में भी कम से कम पशु-वध किया जाता था । इसी तरह कभी-कभी उन घुमक्कड़ जाति के लोगों को भी जो इंडोरोबो ( Ncorobo , के नाम से पुकारे जात हैं, खिलाना आवश्यक होता था। वे लोग शिकार की खबर लेकर आते और भोजन के लिय मांस का एक कवल मिलने पर ही उसे प्रकट करने को तैयार होते थे । परन्तु वे इस मांस-कवल का अर्थ प्रत्येक के लिये आधी भेड़ प्राप्त करना जानते थे । इसी से एकवार इनमें के एक आदमी ने भोजन के लिये दी हुई भेड़ की टांग को अप परिश्रम की एवज में अत्यल्प बतला कर लेने से इनकार कर दिया था।
यहां झील पर गुलाबी रंग के सारस-जाति के पक्षियों (Flamingoes ) के हजारों की संख्या में इकट्ठे होने का दृश्य भी बड़ा सुन्दर था । जिस समय ये उड़ते थे, उस समय आकाश का दिखना बिलकुल बंद हो जाता था; और इनका रंग और इनके परों की चमक लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती थी । इससे वहां पर इनके भी कुछ सुन्दर छाया-चित्र खींचे गए । ____ अगला कैंप इंगोरो-गोरो (igoro-yurc ) नामक ज्वालामुखी के मुहाने पर किया गया । यह प्रदेश कई वर्ग-मील में फैला हुआ है और इसमें करीब ३०,०००
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