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मारवाड़ का इतिहास
गए । राजकीय-म्युनिसिपैलिटी की तरफ़ से नगर में पत्थर की सड़कें बंधवा कर उन पर रौशनी का प्रबन्ध किया गया । इस प्रकार प्रजा की सुविधा और राज्य की आय बढ़ाने के बहुत से उपयोगी काम हुए । इससे राज्य की वार्षिक आय ८०,७६,०१५ रुपये तक पहुँच गई और राज्य पर का सारा कैर्ज़ देदेने के बाद २,८१,६१,१३५ रुपया खजाने में जमा होगया ।
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इन महाराजा ने अपने पिता बड़े महाराजा जसवंतसिंहजी (द्वितीय) के स्मारक में जो संगमरमर का विशाल भवन बनवाना प्रारम्भ किया था, उसमें २,८४,६७८ रुपये लगे थे । आपने कलकत्ते के विक्टोरिया मेमोरियल के लिये एक लाख रुपये दिए थे और इसके अलावा उसके लिये जानेवाले मकराने के पत्थर ( संगमरमर ) पर की चुंगी भी माफ़ करदी थी। इसी प्रकार अजमेर के मेयो कॉलेज को एक लाख रुपये और 'ऐडवर्ड मैमोरियल' को दस हजार रुपये दिए थे ।
महाराजा सरदारसिंहजी सरल-स्वभाव, मधुरभाषी, दयालु और आडम्बर-शून्य थे । इसी से प्रत्येक व्यक्ति आपके सामने पहुँच कर अपना कष्ट सुना सकता था । परन्तु कभी-कभी आपके मुंहलगे लोग आपकी सरल - प्रकृति और दयालुता का अनुचित फायदा उठाने से भी नहीं चूकते थे ।
आपने वि० सं० १९५८ ( ई० स० १९०१ ) में स्वास्थ्य-सुधार के लिये यूरोप की यात्रा की थी और वि० सं० १९६३ और १९६४ ( ई० स० १९०६ और
१. सड़कों पर की साधारण रौशनी के अलावा नगर के ख़ास ख़ास स्थानों पर 'क्रिट्सन लैप' लगाए गए थे ।
'टैलीफोन' का प्रचार भी जोधपुर में पहले पहल आपके समय ही हुआ था ।
२. आपके समय रेल्वे के लिये साढे पच्चीस लाख रुपये माइसोर दरबार से और अकाल पीड़ितों की सहायता के लिये छत्तीस लाख रुपये गवर्नमेंट से कर्ज लिए गए थे ।
३. आपके समय जब भारत - गवर्नमैंट के पुरातत्व विभाग ने मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मंडोर के किले में खुदवाई शुरू की, तब उसका सारा खर्च जोधपुर दरबार की तरफ से दिया गया था । परंतु वहां पर किसी उपयोगी वस्तु के प्राप्त न होने से, अन्त खुदवाई बंद करदी गई |
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