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________________ मारवाड़ का इतिहास आग उगल रहीं थी । परन्तु इस रिसाले के सवारों ने नदी और शत्रु की इन सब विघ्नबाधाओं को पार कर नगर पर अधिकार कर लिया और साथ ही ७०० तुर्कयोद्धाओं को भी पकड़ लिया । इसी युद्ध में वीर दलपतसिंह मारा गया । इसी प्रकार इस रिसाले ने तुर्कों का पीछा करते हुए आश्विन वदि ११ (३० सितम्बर ) को दमिश्क (Damascus) में, आश्विन सुदि १ (६ अक्टोबर ) को मोआलका (Moalaka) में, आश्विन सुदि ६ (११ अक्टोबर) को जहेर (Zaher) में और आश्विन सुदि १० (१५ अक्टोबर ) को होम्स (Homs) में घुसकर अनेक तुर्को को पकड़ा। आश्विन सुदि १५ (१६ अक्टोबर ) को अलप्पो (Alappo) पर अंतिम धावा किया गया । यद्यपि कार्तिक वदि ७ (२६ अक्टोबर ) के पहले मार्ग में कोई उल्लेखनीय मुठभेड़ नहीं हुई, तथापि उस रोज पंद्रहवीं घुड़ सवार सेना (15th Cavalry brigade) को, जो पहले 'इम्पीरियल-सर्विस-कैवेलरी-ब्रिगेड' कहलाती थी, नगर-रक्षक तुकों की सेना की गांते रोकने की आज्ञा दी गई। इस युद्ध में लेफ्टिनेंट कर्नल हेला होल्डन (Hyla Holden) मारा गया और कैप्टिन हौसंबी (Hornsby) ज़ख़्मी हुआ । इस प्रकार ई० स० १९१८ के १९ सितम्बर से २६ अक्टोबर तक जोधपुर रिसाले ने, पंद्रहवीं 'कैवेलरी-ब्रिगेड' के साथ रहकर ५०० मील का धावा किया और मार्ग में होनेवाले प्रत्येक युद्ध में भाग लिया। ई० स० १९१८ की ३१ अक्टोबर को अस्थायी संघि (Armistice) हो जाने से ई० स० १९११ के नवम्बर तक, यह रिसाला कब्जा रखने वाली सेना (Army of Occupation) की तरह मिश्र में रहा। इसके बाद वहां से चलकर बीरुट (Berut) होता हुआ जहाज-द्वारा स्वेज़ की राह भारत में पहुँचा और ई० स० १९२० की २ फरवरी को, पांच वर्ष की लगातार युद्ध-सेवा के बाद, जोधपुर लौट आया । इस युद्ध में इस रिसाले के २ ब्रिटिश अफ़सर, ३ देसी अफसर और २५ जवान सम्मुख युद्ध में मारे गए । १ देसी अफ़सर और ६ जवान जख्मी होकर मरे । १ देसी अफसर और ६३ जवान बीमार होकर मरे और २ ब्रिटिश अफसर, १२ देसी अफसर और ८२ जवान जख़्मी हुए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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