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मारवाड़ का इतिहास
(द्वितीय यात्रा)
वि० सं० १९९१ की पौष वदि २ ( ई० स० १९३४ की २२ दिसम्बर ) को महाराजा साहब फिर केनिया जाने के लिये जोधपुर से रवाना हुए। इस वार की यात्रा में आपके छोटे भ्राता महाराज अजितसिंहजी, ओसियां का कुँवर मोहन सिंह, शामपुरा का ठाकुर करनसिंह और मिस्टर हेवर्ड ( प्रिंसिपल मेडिकल ऑफ़ीसर ) साथ थे ।
यह यात्रा केनिया के बदले करंजा नामक जहाज़ द्वारा की गई थी। और पहली यात्रा के समान ही इस यात्रा में भी कोई विशेष घटना नहीं घटी ।
मोबासा पहुँचकर महाराजा साहब ने फिर वहां के गवर्नर और निकोल (Necol) का आतिथ्य ग्रहण किया। इसके बाद सब लोग वहां से तीसरे पहर रेल द्वारा रवाना होकर दूसरे दिन पौष सुदि १ ( ई० स० ११३५ की ६ जनवरी ) की सुबह मकिण्डु (Mikindu) पहुँचे । इस वार की पार्टी पहले की पार्टी से बहुत छोटी थी और सर जॉफ़री आर्चर भी इसमें शरीक नहीं किया गया था। इसी से उसका काम कसान मरे स्मिथ और मिस्टर हेबर्ड ने बांट लिया । परन्तु मकिण्डु का यह निवास असफल ही रहा, क्योंकि एक सप्ताह तक शिकार की टोह में घूमने पर भी न तो महाराजा साहब ही और न महाराज अजितसिंह जी ही हाथी का शिकार कर सके । इसपर सब लोग कितुई (Kitui) प्रान्त की तरफ़ चले आए। यहां पर मुख्य शिविर विंगी (Nwingi) में रक्खा गया । और वहां से एक छोटी टोली हाथियों वाले प्रदेश के निकटतम समझे जानेवाले स्थान को रवाना हुई।
___अन्त में दूसरे सप्ताह में महाराजा साहब ने प्रथम हाथी का शिकार किया। यह एक बढ़िया और बुढा नर था, जिसका एक दांत तोल में १०० पाउण्ड और दूसरा १८ पाउण्ड था। यहां के शिविर में रात को हाथियों के पास वाले छोटे तालाव पर आकर पानी पीने और नहाने की आवाजें सुनाई देने से अच्छी चहल-पहल रहती थी । वे अपनी सूंड में पानी भरकर अपने शरीर पर छिड़कते और इस प्रकार फुयार
१. इनके अलावा पहले की तरह ही एक शल्य-चिकित्सा में मदद देनेवाला और तीन अनुचर
भी साथ लिए गए थे।
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