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महाराजा सरदार सिंहजी इस वर्ष स्वास्थ्य ठीक न रहने से महाराजा सरदारसिंहजी जलवायु परिवर्तन के लिये नसीराबाद गए और वहां से लौटने पर, वि० सं० १९५८ की वैशाख बदि १२ ( १६ अप्रेल ) को, सीलोन होते हुए यूरोप जाने के लिये, बंबई की तरफ चले । उस समय महाराज प्रतापसिंहजी के चीन में होने से राज्य का भार मेजर किन् ( K. D. Arskine ), रैजीडेंट, 'वैस्टर्न राजपूताना' को सौंपा गया और कार्य संचालन के लिये वही पहले वाली दो मैंबरों की कमेटी बना दी गई ।
इस यात्रा में महाराज ने सीलोन ( लंका), स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रिया, फ्रांस और इंगलैंड का भ्रमण किया । आपके वीएना पहुँचने पर ऑस्ट्रिया के बादशाह ने आपका स्वागत किया और लंदन पहुँचने पर आप सम्राट् सप्तम ऐड्वर्ड से मिलें । अन्त में आश्विन सुदि ६ ( १८ अक्टोबर ) को आप लौट कर बंबई पहुँचे और वहां से आबू की तरफ़ होते हुए, कार्तिक बदि ३ ( ३० अक्टोबर ) को, जोधपुर चले आए। इसके बाद आपने फिर राज्यकार्य की देखभाल प्रारम्भ की ।
इसी समय कर्नल बीट्सन् ( C. B. Beatson ), 'इन्सपेक्टर जनरल, इम्पीरियल टूप्स', ने यहां आकर रिसाले का निरीक्षण किया ।
सर्विस
इस वर्ष जब भारत-गवर्नमैंट ने कलकत्ते में सम्राज्ञी विक्टोरिया को संगमरमर की यादगार बनाने का निश्चय किया, तब जोधपुर दरबार ने उस विशाल भवन के लिये एक लाख रुपये देने की आज्ञा दी । इसी प्रकार सम्राज्ञी के नाम पर स्थापित संस्था को, जिसका उद्देश्य भारत की स्त्रियों को स्त्री - डाक्टरों की सहायता पहुँचाना था, जोधपुर की महारानी साहिबा ने पांच हजार रुपयों की सहायता दी ।
में कविराजा मुरारिदान की निगरानी में हुई थी और उस समय मनुष्यों की संख्या १७,५७,६१८ पाई गई थी। दूसरी मरदुमशुमारी वि० सं० १६४७ ( ई० स० १८६१ ) में मुंशी हरदयालसिंह की निगरानी में हुई और उस समय मनुष्यों की संख्या २५, २८, १७८ गिनी गई ।
इसी वर्ष कर्नल ऐडम्स ( A. Adams ) की मृत्यु हुई । इस पर महाराज ने उसके स्मारक के लिये पांच हज़ार रुपये दिए ।
१. उस समय तक राजपूताने के नरेशों में से पहले पहल महाराजा सरदारसिंहजी ने ही लंदन जाकर भारत - सम्राट् से मिलने का सम्मान प्राप्त किया था ।
इसी प्रकार वीना जाकर ऑस्ट्रिया के सम्राट् से मिलने वाले प्रथम भारतीय नरेश भी आप ही थे । २. यह यादगार जोधपुर के मकराने के पत्थर ( संगमरमर ) से बनाई गई थी ।
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