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महाराजा सरदारसिंहजी कई दिनों से उपपुर-महागण। तसिंहजी महाराजा साब मे उगपुर आने का आग्रह कर रहे थे। इसी से मंगसिर बदि । (२ दिसंबर ) को आप को सप्ताह के लिये उदयपुर गए । वहां पर हराना साहब ने बड़े म रो का स्वागत किया । वहां से लौटने पर, मॅगसिर सुदि ७ ( १६ दिसम्बर ) को, आप कलकत्ते गए । वहीं पर पौष बदि ६ ( ई० स० १९१० की १ जनवरी ) को आप जी. सी. एस. आइ. की उपाधि से भूषित किए गए और आप की सलामी की तोपें १७ से १२ कर दी गई । इस खुशी के अवसर पर दरबार की तरफ़ मे बहुतसी वस्तुओं पर से चुंगी उठादी गई और बहुतसी वस्तुओं पर की चुंगी घटादी गई । इससे व्यापार में अच्छी सुविधा हो गई । इसी समय मुंशी हरनामदास के अपनी गवर्नमेंट की नौकरी पर लौट जाने से, पण्डित सुखदेवप्रसाद काक मिनिस्टर और राओ साहब लक्ष्मणदास सपट महकमे खास का ऐसिस्टैंट और जुडीशल-सैक्रेटरी बनाया गया । ___ पौष वदि ३० ( ११ जनवरी ) को महाराजा साहब कलकत्ते से लौटे और फागुन वदि ३० (११ मार्च ) को गिरदीकोट नामक पुरानी नाज की मंडी में "सरदार-मारकेट" और घंटाकर की इमारत का पहला पत्थर रक्खा गया। ____ वि० सं० १९६७ की वैशाख वदि १२ (६ मई ) को बादशाह ऐडवर्ड सप्तम का स्वर्गवास हो गया। इस पर दरबार की तरफ़ से समयानुसार शोक प्रकट किया गया । साथ ही महाराजा साहब ने बुड्ढे और असमर्थ नगर-वासियों की सहायता के लिये २०,००० रुपया सालाना मंजूर कर उन लोगों की 'पेन्शन्' का प्रबन्ध किया और इस मद का नाम 'ऐडवर्ड-रिलीफ़-फन्ड' रक्खा । इसके अलावा आपने अजमेर में बनाई जाने वाली बादशाह की यादगार ( ऐडवर्ड-मैमोरियल ) के लिये १०,००० रुपया और समग्र भारतीय-यादगार के लिये एक अच्छी रकम दी।
१. जोधपुर दरबार की सेवा के उपलक्ष में इसी समय यह 'राप्रो बहादुर' बनाया गया था। २. उस अवसर पर फतैसागर तालाव पर आशौच स्नान (पानीवाड़ा) किया गया, शोक
सूचक ६८ तोपें (मिनटगन) दागी गई, नगर में नाच और गान बंद किया गया और कचहरी में १२ दिन की छुट्टी की गई । साथ ही तीन दिन तक बाज़ार, सुबह शाम दागी जाने वाली तोपें और किले पर की नौबत बंद रही । वि० सं० १९६७ की वैशाख सुदि १२ ( २० मई ) को बादशाह ऐडवर्ड सप्तम की अन्त्येष्टि ( Funeral ) का दिन होने से उस दिन फिर कचहरी की छुट्टी की गई और शोक सूचक ६८ तोपें ( मिनटगन) चलाई गई।
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