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महाराजा सरदारसिंहजी किए गए, उत्सव में सम्मिलित हुए और वहां से लौटते हुए दोनों ने प्रजा की हालत जानने के लिये नागोर प्रांत में दौरा किया ।
इस वर्ष की चैत्र सुदि ( ई० स० १८६९ के अप्रेल ) में 'जसवन्त जसो भूषण' नामक ग्रंथ बनाने के उपलक्ष्य में कविराजा मुरारिदान को पांच हजार रुपये की रेख के चार गाँव दिए गएँ ।
वि० सं० १९५६ के वैशाख ( ई० स० १८६६ की मई ) में यहां पर 'रजिस्ट्री' के महकमे की स्थापना की गई ।
भादों (सितम्बर) में महाराज भोपालसिंहजी का, जो 'सरदार- इन फैंट्री' के सेनापति थे, स्वर्गवास हो जाने से उनके पुत्र महाराज रतनसिंहजी उनके उत्तराधिकारी हुए । इस वर्ष सिंघी बछराज 'काउंसिल' की मैंबरी और जागीर बख़्शी के अध्यक्ष-पद से हटाया गया, और बेड़े का ठाकुर शिवनाथसिंह जागीर - बख़्शी का सुपरिन्टेंडेंट नियत हुआ ।
पण्डित जीवानन्द के, जो यहां की के वज़ीर बनाए जाने पर, जोधपुर दरबार पैन्शन और पैर में सोना पहनने की इज़्ज़त दी गई ।
'काउंसिल' का 'मैंबर' था, मण्डी रियासत की तरफ़ से, उसे दो सौ रुपये माहवार की
इस वर्ष इधर मारवाड़ में घास की कमी होने और उधर दक्षिणीऐफ्रिका के युद्ध के छिड़ जाने से जोधपुर का रिसाला, मेजर जससिंह की अधिनायकता में, गवर्नमैंट के ( नवें लांसर्स ) रिसाले, के रिक्तस्थान की पूर्ति के लिये मथुरा भेजा गया
१. इस वर्ष मारवाड़ के कई प्रान्तों में वर्षा न होने से अकाल पड़ा । परन्तु दरबार ने शीघ्र ही अकाल पीड़ितों की सहायता का प्रबन्ध कर प्रजा की रक्षा की ।
इस वर्ष की माघ सुदि १३ ( ई० स० १८६६ की २३ फ़रवरी) को महाराजा साहब ने, माजी जाडेजीजी की बनवाई, स्टेशन के पास की, सराय की प्रतिष्ठा कर उसे सर्व साधारण के लिये खोल दिया ।
२. इन गांवों के बारे में, वि० सं० १६५० में ही, स्वर्गवासी महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) की आज्ञा हो चुकी थी ।
३. इस वर्ष सिरोही के महाराव ने जोधपुर आकर महाराजा से साक्षात्कार किया ।
४. इसी वर्ष ( ई० स० १६०० की जनवरी में ) जोधपुर दरबार की तरफ से ट्रांसवाल के युद्ध में काम देने के लिये कुछ घोड़े भेजे गए । ये वहां से वि० सं० १६५६ ( ई० स० १६०२ के जून) में लौट कर वापस आए थे ।
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