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राष श्रमरसिंहजी ख्यातों में लिखा है कि इन्होंने क्रोध के आवेश में, आगे बढ़, बादशाह पर भी तलवार का वार किया था, परन्तु तलवार के तहत से टकरा जाने से वह वार खाली गया और इतने में बादशाह भागकर जनाने में घुस गया।
यह देख वहां पर उपस्थित अमीरों में से खलीलउल्लाखा और अर्जुन गौड़ ने रावजी पर आक्रमण किया । परन्तु जब वे दोनों इस क्रुद्ध राठोड़ वीर के सामने सफल न हो सके, तब अन्य ६-७ शाही मनसबदारों और गुर्जबरदारों ने, रावजी को घेर कर, इनपर तलवार चलाना शुरू किया । यद्यपि रावजी ने भी निर्भीक होकर इन सब से लोहा लिया, तथापि अभिमन्यु की तरह शाही महारथियों से घिर जाने के और हमकौमवालों के साथ जान देकर शौहरत हासिल करेगा।"
(देखो-भा, २ पृ० ३८१) कर्नल टॉडने लिखा है-अमरसिंह अपनी वीरता के लिये विख्यात था। यह अपने पिता के किए हुए दक्षिण के युद्धों में हमेशा सब से आगे रहा करता था।"
( देखो-राजस्थान का इतिहास, भा॰ २ पृ. ६४५) १. कर्नल टॉडने अपने राजस्थान के इतिहास में लिखा है
"एक बार राव अमरसिंहजी (बिना शाही आज्ञा प्राप्त किए ही) शिकार को चले गए और इसी से यह पन्द्रह दिनों तक शाही दरबार में अनुपस्थित रहे । इसके बाद जब यह लौटे, तब बादशाह ने इन्हें, इनके इस प्रकार गैरहाज़िर रहने के कारण, जुर्माने की धमकी दी । परन्तु इसके उत्तर में इन्होंने निर्भीकता से अपने शिकार में चले जाने का उल्लेख कर, जुर्माना देने से साफ इनकार कर दिया और साथ ही अपनी तलवार पर हाथ रखकर उसे ही अपना सर्वस्व बतलाया। इससे बादशाह क्रुद्ध हो गया और उसने शाही बख्शी को इनके स्थान पर जाकर जुर्माना वसूल करने की आज्ञा दी। इसी के अनुसार जब उसने वहां पहुँच कर इनसे शाही आज्ञा का पालन करने को कहा, तब इन्होंने वैसा करने से साफ इनकार कर दिया । इससे शाही बख्शी सलाबतखाँ और अमरसिंहजी के बीच मगड़ा हो गया। इसके बाद बख्शी के शिकायत करने पर बादशाह ने इन्हें तत्काल ही दरबार में उपस्थित होने की आज्ञा दी । परन्तु जिस समय यह दरबार में पहुँचे, उस समय इन्होंने बादशाह को गुस्से में बैठे और बख्शी को अपनी शिकायत करते पाया । यह देख इनका क्रोध भड़क उठा और इन्होंने आगे बढ़ सलाबतखाँ पर कटार का वार कर दिया। इसके बाद इन्होंने तलवार का एक वार बादशाह पर भी किया था, परन्तु जल्दी में इनकी तलवार खम्भे से टकरा कर टूट गई और बादशाह तहत छोड़ कर ज़नाने में भाग गया ।"
(देखो-राजस्थान का इतिहास ( क्रुक संपादित ), भा॰ २, पृ० १७६-६७७) २. कर्नल टॉडने इसको रावजी का साला लिखा है।
( देखो-राजस्थान का इतिहास, भा॰ २, पृ० ६७७)
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