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मारवाड़ का इतिहास
सिवानी (Siwani) में ( जिसका नाम मारवाड़ के सिवाना से मिलता हुआ है और जहां पर महाराजा साहब अबतक अनेक तेंदुओं (Panthers) का शिकार कर चुके हैं ) महाराजा साहब ने दो गैंडों का, जिनकी अनुमति आपके शिकार के परवाने में थी', शिकार किया ।
इसी बीच महाराजा साहब और महाराज अजित सिंहजी ने दो-दो भैंसों के अलावा कुछ अन्य पशुओं का शिकार भी किया । इससे डेरे पर मारे हुए कई प्रकार के सुन्दर पशुओं का संग्रह हो गया। इन्ही में एक अजगर भी था, जिसे महाराजा साहब ने जिपे (Jipe ) झील के पास मारा था ।
इसके बाद क़रीब एक दर्जन मोटरों और मोटर लॉरियों में अपना सामान लाद कर महाराजा साहब की सारी पार्टी माउंगू से दक्षिण टैंगानीका ( Tanganyika ) की तरफ़ चल पड़ी। मार्ग में इसने मकटाउ ( Maktau) में विश्राम किया । यह पूर्वी एफ्रिका की एक लड़ाई का स्थान है । इसी से महाराजा साहब ने बड़े शौक़ से यहां की पुरानी खाइयों ( Trenches ) का निरीक्षण किया । उस समय इस स्थान पर ज़ोरों की ठंडी हवा चल रही थी । इसलिये दूसरे दिन प्रातःकाल यहां से रवाना होने में सबको प्रसन्नता हुई । अन्त में सब लोग मोशि ( Moshi ) से होते हुए, जहां पर एफ्रिका के सबसे ऊंचे पहाड़ की सुन्दरता का नजारा है, हमेशा बरफ से ढकी रहने वाली चोटी वाले किलिमंजरू ( Kilimanjaru ) पर पहुँच गए ।
इसके बाद एक सड़क को, जो सड़क के समान न होने पर भी अपने सुरक्षित शिकार के लिये स्मरणीय है, पार कर यह मोटरों का काफला अरुशा ( Arusha )
ही
१. पूर्वी एफ्रिका के नियमानुसार प्रत्येक शिकारी को एक परवाना लेना पड़ता है, जिस पर प्रत्येक जाति के पशुओं की संख्या लिखी रहती है । अतः शिकारी उनसे अधिक का शिकार नहीं कर सकता । यद्यपि आम तौर पर शिकारी ( hunter ) का अर्थ बड़े-बड़े पशुओं के शिकार करने वाले का होता है, तथापि पूर्वी एफ्रिका में यह शब्द कसान मरे स्मिथ के समान पेशेवर शिकारी के लिये प्रयुक्त होता है। ऐसे शिकारियों को ख़ास तौर के परवाने (licenses ) लेने पड़ते हैं परन्तु उन पर भी शिकार की तादाद लिखी रहती है । इसके अलावा अपने आसामियों को वहां के शिकार के नियमों से अवगत करने की ज़िम्मेदारी भी इन शिकारियों पर ही रहती है । परन्तु इन नियमों का ठीक तौर से पालन करवाना शिकार की निगरानी करने वालों (wardens) या गिरदावरों (rangers) का काम है ।
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