________________
मारवाड़ का इतिहास
ई० स० १९३६ में जुडीशल सुपरिण्टैण्डैण्टों को 'क्रिमिनल प्रोसीजर कोड' की ३० वीं धारा के अधिकार भी दे दिए गए।
आजकल दो वर्ष काम कर लेने पर-नायब हाकिमों को सैकिण्ड-कास मैजिस्ट्रेट का दर्जा मिल जाता है ।
इस समय परगनों के ४ जुडीशल सुपरिण्टैण्डैण्टों के अलावा स्मॉल कॉज़ कोर्ट के जज, नगर-कोतवाल, रजिस्ट्रार-चीफ़ कोर्ट और सैक्रेटरी-म्यूनिसिपल कमेटी का दर्जा भी जुडीशल सुपरिण्टैण्डैण्टों के समान ही कर दिया गया है । इनके अलावा हाकिमों की संख्या २४ और नायब-हाकिमों की २२ है ।
अदालतों के अधिकार इंतिजाम के सुभीते के लिये ई० स० १९३२ से जागीरों के और जागीरदारों के गोद के मुकद्दमों का निर्णय इंतिजामी सीगे से होता है ।
इसी प्रकार ई० स० १९३३ से राजकीय कार्य के संपादन के कारण होने वाले राज-कर्मचारियों पर के दीवानी और फौजदारी दावों को स्वीकृत करने के पूर्व राज्य की आज्ञा ले लेना आवश्यक करदिया गया है ।
कानून
ई. स. १९२७ में पहले-पहल कानून तैयार करने के लिये एक कमेटी बनाई गई थी। इसके बाद ई० स० १९३६ में 'लीगल रिमैंबरैन्सर' का दफ्तर कायम किया गया और १९३८ में कानून तैयार करनेवाली कमेटी में राजकर्मचारियों के अलावा बार एसोसियेशन के और जागीरदारों और व्यापारियों के प्रतिनिधि भी सम्मिलित किए गए । ।
बार
ई० स० १९३३ से कानून-पेशा लोगों ( वकीलों के लिये बने कानून में सुधार किया गया । इस समय यहां के 'बार' के नियम ब्रिटिश-भारत से मिलते हुए ही हैं और उसके मैम्बर केवल 'लॉ-प्रैजुएट' ही हो सकते हैं ।
६२२
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com