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मारवाड़-राज्य के कुछ मुख्य मुख्य महकमों का हाल
रिवेन्यू कोर्ट्स ई० स० १९२४ में लगान और लागों आदि के मामलों के फैसलों के लिये रिवेन्यू-कोर्ट स्थापन किए गए । यद्यपि वैसे तो उनका कार्य भी हाकिम और जुडीशल सुपरिण्टैण्डेण्ट ही करते हैं, तथापि उन मुकद्दमों की अपील बजाय चीफ़ कोर्ट के महकमा खास में रिवेन्यू-मिनिस्टर के पास ही होती है ।
ऑनररी कोर्ट ई० स० १९२४ में जोधपुर नगर में ऑनररी कोर्टी की स्थापना की गई और उन्हें फौजदारी मामलों में तीसरे दर्जे के मैजिस्ट्रेट के और दीवानी मामलों में १०० रुपये तक के मुकद्दमों के फैसले के अधिकार दिए गए । इसके बाद ई० स० ११३८ में ऑनररी मैजिस्ट्रेटों की बैंचें मुकर्रर की गई । इससे अब एक मैजिस्ट्रेट के स्थान पर तीन मैजिस्ट्रेटों का समुदाय अभियोगों का निर्णय करता है ।
स्मॉल कॉज़ कोर्ट ई० स० १९३६ में छोटे-छोटे नकद रुपयों के मामलों का शीघ्र फैसला करने के लिये नगर में एक 'स्मॉल कॉज़ कोर्ट' की स्थापना की गई और उसे ५०० रुपये तक के मुकद्दमों का फैसला करने का अधिकार दिया गया। परन्तु इससे ऑनररी को? के दीवानी के अधिकार रद्द होगए ।
जुडीशल सुपरिण्टैण्डैण्ट और हाकिम ई० स० १९२४ में जो ४ जुडीशल सुपरिण्टैण्डैएट थे, उन्हें दीवानी मामलों में २,००० रुपये तक, हाकिमों को ५०० रुपये तक और नायब-हाकिमों को २०० रुपये तक के दावे सुनने का अधिकार था और ये लोग फौजदारी मामलों के लिये क्रमशः फर्स्ट क्लास, सैकिण्ड क्लास और थर्ड क्लास मैजिस्ट्रेट समझे जाते थे ।
ई० स० १९३२ में जुडीशल सुपरिण्टैण्टेण्टों को ४,००० और हाकिमों को १,००० रुपयों तक के दावे सुनने के इख्तियार दिए गए । इसी प्रकार फौजदारी मामलों में ये लोग क्रमशः डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट और फर्स्ट क्लास मैजिस्ट्रेट कर दिए गए।
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