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महाराजा सरदारसिंहजी उन दिनों बंगाल के षड्यंत्रकारियों का जोर होने से मार्ग के दोनों तरफ़ पुलिस और सेना के जवान नियुक्त किए गए । इसके अलावा जागीरदारों की जमीअत के ८,००० सवार भी सड़क के इधर-उधर खड़े थे । साथ ही अवसर की रोचकता को बढ़ाने के लिये इस जमीअत के कुछ सिपाही जिरह बस्तरों और कुछ विभिन्न प्रकार के पुराने शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित किए गए थे । इन्हीं के बीच जगह-जगह यहां के खास-खास खेल-तमाशों का प्रबन्ध भी था।
महाराजा के सेनापतित्व में की गई यहां के रिसाले की 'परेड' को देख वायसराय ने प्रसन्नता प्रकट की और उसी समय, भारत-गवर्नमेंट की तरफ़ से, नौ-नौ पाउण्ड का गोला फेंकने वाली ६ तोपें इस रिसाले को भेट करने की घोषणा की। इसी अवसर पर वायसराय ने महाराजा साहब को के. सी. एस. आइ. के पदक से भूषित किया और उस दिन (२ नवम्बर कार्तिक सुदि १ को ) महारानी विक्टोरिया के भारतीय-शासन-ग्रहण करने की पचासवीं बरसगांठ होने से, बादशाह का भारतीयनरेशों और भारतीय-प्रजा के नाम भेजा हुआ सन्देश पहले-पहल यहीं पढ़कर सुनाया। रात को नगर में रौशनी की गई और दरबार की तरफ़ से आतिशबाज़ी छुड़वाई जाकर उत्सव मनाया गया।
पौष (दिसम्बर ) में महाराजा सरदारसिंहजी लॉर्ड मिंटो की पुत्री के विवाह में सम्मिलित होने को कलकत्ते गए।
महाराजा साहब के उदयपुर वाले विवाह के समय गरमी का मौसम होने से अन्य नरेशों को निमंत्रण नहीं दिया गया था । इसीसे सरदी का मौसम आने पर, माघ बदि ३० से फागुन बदि ७ ( ई० स० १९०९ की २१ जनवरी से १२ फरवरी) तक उत्सव का समय नियत कर, तीस नरेशों को निमंत्रण भेजा गया । इनमें से जयसलमेर, धौलपुर, ईडर, सीतामउ, किशनगढ़, अलवर, जयपुर और बीकानेर के नरेश; उदयपुर के महाराज-कुमार और पटियाला, बड़ौदा, कश्मीर, झिंद और नरसिंघगढ़ के नरेशों के प्रतिनिधि यहां आकर उत्सव में सम्मिलित हुए। दरबार की तरफ़ से उनके मनोरंजन के लिये पोलो, शिकार, नाटक और बायसकोप आदि का प्रबन्ध किया गया।
१. इनमें के कुछ नरेश उत्सव के समय न पा सकने के कारण बाद में आए थे।
माघ सुदि १ (ई० स० १६०६ की २२ जनवरी ) को अपने जन्मोत्सव पर महाराजा साहब ने पण्डित सुखदेवप्रसाद काक को तीन गांवों की जागीर, दोहरी ताज़ीम, हाथ का कुरव और पैर में सोना पहनने का अधिकार दिया ।
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