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महाराजा सरदारसिंहजी पहले जागीरदारों को, अपनी जागीर की आमदनी की एवज़ में, राज्य की सेवा के लिये, सवार और पैदल सिपाहियों की एक नियत-संख्या रखनी पड़ती थी । परन्तु इसी वर्ष से उन सिपाहियों के खर्च का अंदाज लगा कर प्रत्येक जागीरदार से सिपाहियों की एवज़ में मासिक रुपया लेना नियत किया गया ।
वि० सं० १९६३ की फागुन सुदि ३ ( ई० स० १९०७ की १५ फरवरी) को मुंशी हरनामदास ( गवर्नमैंट से मांग कर ) 'जूनियर-मैंबर' बनाया गया और मुंशी रोड़ामल वापस 'कोर्ट-सरदारान' में भेज दिया गया ।
वि० सं० १९६४ के द्वितीय चैत्र ( अप्रेल ) में मेजर हेग छुट्टी गया और उसके स्थान पर मेजर ग्रांट ( J. W. Grant ) नियुक्त हुआ ।
वि० सं० १९६४ की वैशाख बदि ४ ( ई० स० १६०७ की १ मई ) को महाराजा सरदारसिंहजी के तीसरे महाराज-कुमार अजितसिंहजी का जन्म हुआ।
इस वर्ष की गरमियों में महाराजा ने, आबू से लौटते हुए, जसवन्तपुरे का दौरा किया । भादों ( अगस्त ) में आप पोलो खेलने के लिये पूर्ती गए और मँगसिर (दिसम्बर ) में आपने कलकत्ते की यात्रा की ।
फाल्गुन ( ई० स० १६०८ की फरवरी ) में नाथद्वारे के गुसांई गोवर्धनलालजी जोधपुर आए । महाराजा ने स्टेशन पर जाकर उनका स्वागत किया ।
१. यह लाग चाकरी (सेवा) के नाम से प्रसिद्ध है । पुराने नियमानुसार कुल जागीरदारों
को ३,६७६ घोड़े, और ४६० पैदल रखने पड़ते थे । इस वर्ष इनमें से १,३६३
सवारों और १५२ पैदलों की एवज़ नकद रुपया लिया गया। २. इस वर्ष (ई० स० १६०७ की फरवरी में) महाराजा मेरो कॉलेज की 'कॉनफ्रेंस' में
सम्मिलित होने को अजमेर गए, और वि० सं० १६६४ की द्वितीय चैत्र सुदि १०
( २३ अप्रेल ) को किशनगढ़-नरेश ने जोधपुर आकर आपका आतिथ्य ग्रहण किया । ३. इस शुभ अवसर पर भी किले पर से १२५ तोपें दागी गई। ४. यहां पर आपने पोलो का 'कप' जीता। कार्तिक (१६०७ के नवम्बर) में आप अजमेर जाकर मेयो कॉलेज के उत्सव में सम्मिलित हुए। ५. वहां से लौटते हुए आप मार्ग में चार दिन जयपुर ठहरे । इसके बाद वि० सं० १६६४
के फागुन (ई० स० १६०८ की फरवरी) में और वि० सं० १९६५ के आश्विन ( सितम्बर ) में अाप बंबई गए । १६६४ के फागुन (१६०८ के मार्च) में जयसलमेरनरेश ने जोधपुर पाकर महाराजा का प्रातिथ्य स्वीकार किया।
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