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मारवाड़ का इतिहास
का, भय दिखला कर उसकी तरफ़ से महाराज से प्रार्थना करवाई । इस पर महाराज ने लाचार हो अपनी आज्ञा वापस लेली और हत्याकारियों को किले से कु निकल जाने दिया । इसके बाद अमीरख़ाँ ने महाराज से मिलने की इच्छा प्रकट की । परन्तु इन्होंने उसकी सूरत देखने से ही इनकार कर दिया । यस देवनाथ और सिंघी इन्द्रराज की मृत्यु से महाराज को इतना रंज हुआ कि यह उसी दिन से राजकार्य से उदासीन होकर गुम रहने लगे ।
इसके बाद षड्यंत्रकारियों ने साढे नौ लाख रुपये देने का प्रबन्ध कर आउवा, आसोप, नींबाज़, चंडावल और कंटालिया के सरदारों की सलाह से दीवानी का काम मुहता खैचंद को और बख्शी का काम भंडारी चतुर्भुज को सौंपा । इसी प्रकार अन्य राजकीय पदों पर भी अपने पक्षवालों को नियत किया । जब इस घटना की सूचना सिंघी इन्द्रराज के छोटे भाई गुलराजे को मिली, तब वह महाराज से गुप्त तौर पर आज्ञा लेकर दो हजार सवारों के साथ जोधपुर की तरफ़ चला । उसके वि० सं० १८७३ की माघ सुदि ३ ( ई० स० १८१७ की २० जनवरी) को राईकेबाग पहुँचने पर उपर्युक्त पाँचों सरदार और भंडारी चतुर्भुज चांदपौल दरवाज़े की तरफ़ होकर चौपासनी चले गए । इसी प्रकार मुहता अखचंद ने महात्मा आत्माराम की समाधि की शरण ली । इसके बाद जब गुलराज अपने दल-बल सहित किले पर महाराज के सामने हाज़िर हुआ, तब इन्होंने सान्त्वना देकर राज्य का सारा प्रबन्ध उसे सौंप दिया । इसके बाद महाराज की आज्ञा से गुलराज और फ़तैराज मिल कर राज्य का प्रबन्ध करने लगे । यह देख उपर्युक्त सरदार चौपासनी छोड़ अपनी-अपनी जागीरों में चले गएँ ।
१. उपर्युक्त सरदारों के नाम:
१. बखतावरसिंह, ५ शम्भूसिंह ।
२. यह उस समय सोजत की सेना का सेनापति था ।
३. ये दोनों चचा भतीजे थे ।
४. चौपासनी से रवाना होकर ये सरदार चंडावल पहुँचे। वहां पर चंडावल - ठाकुर ने इन्हें दावत दी । परन्तु उसी समय सिंघी चैनकरण के हमला कर देने से उन्हें भोजन करने के पहले ही वहां से भाग जाना पड़ा ।
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२. केसरीसिंह, ३. सुलतानसिंह,
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४. विशनसिंह और
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