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मारवाड़ का इतिहास
३३. महाराजा तखतसिंहजी यह जोधपुर-महाराजा अजितसिंहजी के वंशज करणसिंहजी के पुत्र और ईडर-राज्य में के अहमदनगर के स्वामी थे । इनका जन्म वि० सं० १८७६ की जेठ सुदि १३ ( ई० स० १८१६ की ६ जून ) को हुआ था। . महाराजा मानसिंहजी के पीछे पुत्र न होने से ब्रिटिश-गवर्नमेंट (ईस्ट इन्डिया कंपनी) ने, स्वयं उन ( महाराजा) की इच्छानुसार और राज-परिवार और सरदारों आदि की सलाह से, इन्हें बुलवा कर महाराजा मानसिंह जी के गोद विटायो । वि० सं० १९००
१. ख्यातों से प्रकट होता है कि वि० सं० १६०० की कार्तिक वदि ६ (ई० स० १८४३
की १४ अक्टोबर ) को गवर्नमैन्ट और सरदारों की तरफ़ से तखतसिंहजी के नाम इस विषय के पत्र लिखे गए, और राज्य के बड़े-बड़े सरदार उनको ले आने के लिये रवाना हुए । वि० सं० १६०० की कार्तिक सुदि ७ ( ई० स० १८४३ की २६ अक्टोबर )
को यह जोधपुर के किले में पहुंचे। इसी बीच पोलिटिकल एजेंट ने उन बहुत से गज-कर्मचारियों को, जिनको महाराजा मानसिंहजी के समय आपत्तिजनक समझ जोधपुर से हटा दिया था, जोधपुर आने की आज्ञा दे दी।
ऐचिसन की ‘ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐगेजमैंट्स ऐण्ड सनदूस (भा० ३, पृ० १४२) में लिखा है कि महाराजा तखतसिंहजी ने, अपने जोधपुर गोद आ जाने पर, राजकुमार जसवन्त सिंहजी का अपने भाई पृथ्वीसिंहजी के गोद जाना और अपना उनके छोटे होने के कारण केवल अभिभावक रूप से अहमदनगर का शासन करना प्रकट कर उन्हें अहमदनगर में ही छोड़ दिया, और इस प्रकार वहां पर उनका अधिकार रखना चाहा । परन्तु वि० सं० १६.४ (ई० स० १८४८) में गवर्नमैन्ट ने, यह दावा खारिज कर, अहमदनगर को ईडर-राज्य में मिला दिया । यह प्रदेश वि० सं० १८४१ (ई. स. १७०४ ) में ईडर से जुदा हुआ था।
परन्तु उस समय के पत्रों से प्रकट होता है कि वास्तव में महाराजा मानसिंहजी की रानियों ने, गवर्नमैन्ट से कहकर, महाराजा तखतसिंहजी को मय महाराज-कुमार जसवन्तसिंहजी के ही जोधपुर बुलवाया था। इसलिये यह सब झगड़ा जोधपुर वालों की इच्छा के विरुद्ध उठा था
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