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महाराजा उम्मेदसिंहजी माघ बदि १२ ( ३१ जनवरी) को महाराज अजितसिंहजी ने भी एक शानदार हाथी का शिकार किया । इसके दांत तोल में १०५ और १०० पाउण्ड थे । इसके बाद महाराजा साहब ने जंगली भैंसों और शेरों की खोज में नैरोबी में होकर दक्षिणी मासाइ (Masai) प्रदेश में जाने का निश्चय किया ।
जिस समय हाथी का शिकार किया जा रहा हो, उस समय अन्य पशुओं पर गोली नहीं दागी जा सकती, क्योंकि ऐसा करने से अन्य पशुओं के प्राप्त होने पर भी हाथी हाथ से निकल जाता है । यही कारण है कि कोई भी शिकारी, जो हाथी के शिकार के समय की उत्तेजना और उस समय आवश्यक होनेवाले धैर्य और चातुर्य से प्रभावित हो चुका है, इसे पसन्द नहीं करेगा |
महाराजा साहब के मारा ( Mara) नदी पर जाते समय मार्ग का पहला पड़ाव नरौक (Narok) पर हुआ और वहां से आगे बढ़ने पर सब लोग सिमाना (Ciana) प्रदेश से जो मासाइ के रक्षित-वन का प्रायः एक निर्जन प्रदेश है, गुज़रे ।
वहां पर महाराज अजितसिंहजी ने शीघ्र ही दो जंगली भैंसों का शिकार किया । परन्तु माघ सुदि ११ ( १४ फ़रवरी) को महाराजा साहब ने जिस जंगली भैंसे का शिकार किया, उसके सींगों का घिराव ५१ इंच का था । यूरोपीय महायुद्ध के बाद मारे गए बड़े भैंसों की सूची में भी इसका स्थान खासा ऊँचा रहा । वे लोग जो वहां उपस्थित थे महाराजा साहब के खासा घेरा और बारिश शुरू हो जाने के बाद लौटने पर उत्पन्न हुई उस उत्तेजना को बहुत समय तक याद रक्खेंगे । उस दिन का सा, तीसरे पहर के भोजन में लगे आध घंटे के अलावा, बारह घंटे तक बराबर शिकार का पीछा करते रहने वा कठिन कार्य शायद ही कोई कर सकेगा या करना चाहेगा । कप्तान मरे स्मिथ ने भी, जिसे एफिका का अच्छा अनुभव था, उस दिन महाराजा साहब के जंगल में मदद देनेवाले हथकंडों और चातुर्य की मुक्तकंठ से प्रशंसा की । यद्यपि यह शिकार एक बड़ा पुरस्कार था, तथापि वहां पर उपस्थित लोगों ने इसे उस दिन के परिश्रम से अधिक नहीं समझा । इसी अवसर पर महाराजा साहब ने एक आश्चर्य जनक चल-चित्र भी खींचा। इसमें अपने एक साथी भैंसे के मारे जाने पर जंगली भैंसों के झुण्ड का श्रेणिबद्ध होकर महाराजा साहब पर आक्र मण करने का दृश्य था । जिस समय आप यह चित्र खींच रहे थे, उस समय की
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