Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवंगसुत्ताणि [ खण्ड १] ओवाइयं * रायपसेणियं * जीवाजीवाभिगमे वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक युवाचार्य महाप्रज्ञ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य तुलसी अमृत महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में निम्गथं पावयणं उवंगसुत्ताणि (खण्ड १) ओवाइयं • रायपसेणियं • जीवाजीवाभिगमे याचना प्रमुख : आचार्य तुलसी संपादक: युवाचार्य महाप्रज्ञ प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक : जैन विश्व भारती, लाडनूं प्रबंध सम्पादक : श्रीचन्द रामपुरिया, आर्थिक सहयोग : श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि: विक्रम सम्बत् २०४४ (दीपावली) ई० १९८७ पृष्ठांक :८०० मूल्य ४००/ मुद्रक : मित्र परिषद् कलकत्ता के आर्थिक सौजन्य से स्थापित जैन विश्व भारती प्रेस, लाडनूं (राजस्थान) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ On the occasion of Acārya Tulsi Amrit Mahotsava Year Niggantbam Parayanan UVANGA SUTTANI IV (PART 1) OVĀIYAM, RĀYAPASEŅIYAM . JĪVĀJIVÄBHIGAME (Original Text Critically Edited) Vācana-pramukha : ĀCĀRYA TULSI Editor YUVĀCĀRYA MAHĀPRAJNA Publisher : JAIN VISHVA BHARATI LADNUN (RAJASTHAN) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Publisher: JAIN VISHVA BHARATI Ladnun-341 306 Managing Editor: Shrichand Rampuria, By Munificence: Shri Ramlal Hansraj Golchha Viratnagar (Nepal) Year of Publication: Vikram Samvat 2044 (Dipavali 1987 A.D. Pages: 800 Price i 400/ Printers : JAIN VISHVA BHARATI PRESS, [Established through the financial co-operation of Mitra Parishad, Calcutta) Ladoun (Rajasthan) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुम निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है । चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोधपूर्णसम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगे। संकल्प फलवान बना और वैसा ही हुआ । मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया। अत: मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं। संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है: संपादक : युवाचार्य महाप्रज्ञ पाठ-संशोधन सहयोगी : मुनि सुदर्शन " मुनि मधुकर " मुनि हीरालाल शब्दकोश : संविभाग हमारा धर्म है। जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूं कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने । प्राचार्य तुलसी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण पुट्ठो वि पणा पुरिसो सुदवखो, प्राणा-पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पप्रोगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणपुष्वं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम-प्रधान था। सत्य-योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से । विलोडियं प्रागमयुद्धमेव, लवं सुलद्ध णवणीयमच्छं। सज्झाय-सज्माण रयास निच्छ, जयस्स तस्स पणिहाणपुष्वं ॥ जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रत-सध्यान लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से। पवाहिया जेण सुयस धारा, गणे समस्ये मम माणसे वि। जो हेउभूम्रो स्स पकायणस्स, कालुस्स तस्स पणिहाणपुरुवं । जिसने श्रत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत शुत सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय आगम संपादन एवं प्रकाशन की योजना इस प्रकार है १. आगम-मुक्त ग्रंथमाला मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुती करण । २. आगम अनुसंधान ग्रन्थमाला --- मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकर करण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला - आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला आगमों से संबंधित कथाओं का संकलन और अनुवाद | ५. वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला - आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । ६. आगमों के केवल हिंदी अनुवाद के संस्करण | प्रथम आगम-सुत्त ग्रन्थमाला में निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं (१) दसवेलियं तह उत्तरज्झयणाणि (२) आयरो तह आधारचूला (३) निसीहज्झयणं (४) उक्वाइयं (५) समवाओ (६) अंगसुतानि ( खं० १ ) -- इसमें आचारांग सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग --ये चार अंग समाहित हैं । (७) अंगसुताणि ( खं० २ ) -- इसमें पंचम अंग भगवती प्रकाशित है । (८) अंगसुत्ताणि ( खं० ३ ) -- इसमें ज्ञाताधर्मकथा, उपायकदशा, अंतकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाकये ६ अंग हैं । (2) नवसुत्ताणि ( खं० ५ ) - इसमें आवस्सयं, दसवेआलियं' उत्तरज्झयणाणि, नंदी, गदराई, दसओ, कप्पो, ववहारो, निसीहझयणं-ये नो आगम ग्रन्थ हैं । उक्त में से प्रथम पांच ग्रन्थ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हुए हैं एवं अंतिम चार ग्रन्थ जैन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रकाशित हुए हैं । द्वितीय आगम अनुसंधान ग्रन्थमाला में निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं - 1) दसवेआलियं Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और २) (३) ठाणं (४) समवाओ (५) सूयगडो (भाग १ और भाग २) उक्त में से प्रथम दो ग्रन्थ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हुए हैं और अंतिम तीन ग्रन्थ जैन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रकाशित हुए हैं। दसवेआलियं का द्वितीय संस्करण भी जन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रकाशित हुया है। तीसरी आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला में निम्न दो ग्रन्थ निकल चुके हैं(१) दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन । (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन । चौथी आगम-कथा ग्रन्यमाला में अभी तक कोई ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हो पाया है। पांचवीं वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला में दो ग्रन्थ निकल चुके हैं(१) दशवकालिक वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं० १) (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं० २) छठी ग्रन्थमाला में केवल आगम हिंदी अनुवाद ग्रन्थमाला के संस्करण के रूप में एक 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' अन्य का प्रकाशन हुआ है। उक्त प्रकाशनों के अतिरिक्त दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन (मूल पाठ मात्र) गुटकों के रूप में प्रकाशित किए जा चुके हैं। प्रस्तुत प्रकाशन उवंगसुत्ताणि, खंड १ मे (१) ओवाइयं (२) रायपसेणियं और (३) जीवाजीवाभिगमे--..इन तीन उपांग आगमों का पाठान्तर सहित मूलपाठ मुद्रित है। साथ ही साथ इन तीनों उपांगों की संयुक्त शब्दसूची भी अन्त में संलग्न कर दी गई है। भूमिका में इन ग्रन्थों का संक्षेप में परिचय प्राप्त है, अत: यहां इस विषय पर प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं है। आगम प्रकाशन कार्य की योजना में निम्न महानुभावों का सहयोग रहा(१) सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविदालालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगो)। (२) रामलालजी हंसराजजी गोलछा, विराटनगर । (३) स्व. जयचंदलालजी गोठी, सरदारशहर । (४) रामपुरिया चेरिटेबल ट्रस्ट, कलकत्ता। (५) बेगराज भंवरलाल चोरडिया चेरिटेबल ट्रस्ट । इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ है । इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है। यह ग्रन्थ जैन विश्व भारती के निजी मुद्रमालय में मुद्रित होकर प्रकाशित हो रहा है । मुद्रणालय के स्थापन में मित्र-परिषद्, कलकता के आर्थिक सहयोग का सौजन्य रहा, जिसके लिए उक्त Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संस्था को अनेक धन्यवाद। यह ग्रन्थ आचार्य तुलसी अमृत-महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में प्रकाशित हो रहा है । आगम-संपादन के विविध आयामों के वाचना-प्रमुख हैं आचार्यश्री तुलसी और प्रधान संपादक तथा विधेचक हैं युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी । इस कार्य में अनेक साधु-साध्वी सहयोगी रहे हैं। __ इस तरह अथक परिश्रम के द्वारा प्रस्तुत इस ग्रन्थ के प्रकाशन का सुयोग पाकर जैन विश्व भारती अत्यंत कृतज्ञ है। जैन विश्व भारती १६-११-८७ लाडनूं (राज.) श्रीचंद रामपुरिया कुलपति Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय प्रस्तुत पुस्तक में तीन ग्रन्थ हैं--ओवाइयं, रायपमेणियं और जीवाजीवाभिगमे । प्रोवाइयं औपपातिकका पाठ आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर स्वीकार किया गया है। प्रस्तुत सूत्र में वाचनान्तरों की बहुलता है। यह सूत्र वर्णनकोश है। इसलिए अन्य आगमों में स्थान-स्थान पर 'जहा ओववाइए' इस प्रकार का समर्पण-वचन मिलता है। उन आगमों के व्याख्याकारों द्वारा अपने व्याख्या-ग्रन्थों में अवतरित पाठ तथा कहीं-कही समर्पण-सूत्रों के पाठ औपपातिक के स्वीकृत पाठ में नहीं मिलते हैं। वे पाठ वाचनान्तर में प्राप्त हैं। समर्पण-वचन पढ़ने वालों के लिए यह एक समस्या बन जाती है। प्रस्तुत आगम का पाठ आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर ही नहीं, किन्तु अन्य आगमों व व्याख्या-ग्रन्थों में प्राप्त अवतरणों व समर्पणों के आधार पर भी निर्धारित होना चाहिए था। किन्त समग्र अवतरणों व समर्पणों का संकलन हए बिना वैसा करना संभव नहीं। इस विषय में कुछ संकलन हमने किया हैभगवई ७१७५ एवं जहा ओववाइए जाव ७.१७६ एवं जहा उववाइए (दो बार) ७१६६ जहा कूणिओ जाव पायच्छिते ६।१५७ "जहा ओववाइए जाव एगाभिमुहे !" "एवं जहा ओववाइए जाव ति विहाए"। १५८ "जहा ओववाइए जाव सत्यवाह" । "जहा ओदवाइए जाव पत्तियकुंडग्गामे" । ६१६२ ओववाइए परिसा यण्णओ तहा भाणियब्वं । ६।२०४ "जहा ओववाइए जाव गगणतलमणुलिहती"। "एवं जहा ओबवाइए तहेव भाणियन्वं"। २०४ जहा मोववाइए जाव महापुरिस" २०८ जहा ओववाइए जाव अभिनंदता २०६ एवं जहा ओववाइए कपिओ जाव निग्गच्छइ १११५६ जहा ओववाइए १९६१ जहा ओववाइए कूणियस्स ११३८५ जहा ओववाइए जाव गहणयाए Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११८८,१६८ ११११३८ ११११५४ ११११५६ ११।१५६ ११११६६ १२१३२ १३३१०७ १४११०७ १४.११० १५६१८६ १५११८६ २५१५६६ २५२५७० २५॥५७१ एवं जहेव ओववाइए तहेव जहा ओक्वाइए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणधरे एवं जहा दढप इण्णस्स एवं जहा दढपइण्णे जहा ओववाइए जहा अम्मडो जाव बंभलोए एवं जहा कणिओ तहेव सव्व जहा कुणिओ ओववाइए जाव पज्जुवासइ एवं जहा ओववाइए जाव आराहगा एवं जहा ओववाइए अम्मडस्स वत्तव्वया एवं जहा ओववाइए दढप्पइण्णवत्तब्धया एवं जहा ओववाइए जाव सव्वदुक्खाणमंतं जहा ओक्वाइए जाव सुद्धेसणिए जहा ओववाइए जाव लहाहारे जहा ओक्वाइए जाव सव्वगाय भगवई वृत्ति पत्र ७ पत्र ११ पत्र ३१७ पत्र ३१८ पत्र ३१६ पत्र ४६२ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४७६ पत्र ४७६ पत्र ४८१ पत्र ४८२ पत्र ५१६ पत्र ५२० पत्र ५२१ औपपातिकात् सव्याख्यानोऽत्र दृश्यः औषपातिकवद्वाच्या "एवं जहा उववाइए" त्ति तत्र चेदं सूत्रमेवम् "एवं जहा उववाइए जाव" इत्यनेनेदं सूचितम् "जहा चेव उवबाइए" ति तत्र चैवमिदं सूत्रम् "जहा उववाइए" ति तत्र चेदं सूत्रमेवं लेशतः "जहा उबवाइए" ति तदेव ले शतो दय॑ते "एवं जहा उक्वाइए" तत्र चैतदेवं सूत्रम् जहा उबवाइए" ति चेदमेवं सूत्रम् "जहा उववाइए परिसावन्नओ" ति यथा कौणिकस्यौपपातिके "जहा उववाइए" ति एवं चैतत्तत्र "जहा उववाइए" ति अनेन यत्सुचितं तदिदम् "जहा उववाइए" ति करणादिदं दश्यम "एवं जहा उववाइए"त्ति अनेन यत्सूचितं तदिदम "जहा उववाइए" इत्येतस्मादतिदेशादिदं दश्यम् "एवं जहा उववाइए" इत्येतत्करणादिदं दृश्यम् "एवं जहेवे" त्यादि एवम्' अनतरशतेनाभिलापेन यथोपपातिके सिद्धानधिकृत्य संहननायुक्तं तथैवेहापि वाक्यपद्धतिरोपपातिकप्रसिद्धाऽध्येता पत्र ५२१ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र ५४२ पत्र ५४५ पत्र ५४५ पत्र ५४८ पत्र ५४६ पत्र ५६३ विवागसूर्य 818100 २११३६ शनि रायपसे नियं सू० ३, ४ सु० ६८८ रायपसेणिय वृत्ति पृ० ३ पृ० 15 पत्र ५६३ पत्र ६६६ पत्र ६२४ पत्र ६२४ पत्र ६२४ ज्ञातावृत्ति पत्र २ वर्णकग्रन्थोत्रावसरे वाच्यः--- पृ० १० पृ० २७ पृ० ३० पृ० ३६ १५ "जहा उववाइए तब भट्टणसाला तहेव मज्जणघरे" ति यथोपपातिकेऽट्टणसाला व्यतिकरो ........ "जहा दढपइन्ने” त्ति यथोपपातिके दृढप्रतिज्ञोऽधीतस्तथाऽयं वक्तव्यः तच्चैवम् "एवं जहा दढपइन्नो" इत्यनेन यत्सूचितं तदेवं दृश्यम् "जहा उववाइए" इत्यनेनयत्सूचितम् "जहा अम्मडो" ति यथोपपातिके अम्मडोऽधीतस्तथाऽयमिह वाच्यः "एवं जहा उववाइए जाव आराहग" त्ति इह यावत्करणादिदमर्थतो लेशेन दृश्यम् — "एवं जहे" त्यादिना यत्सूचितम् "एवं जहा उववाइए" इत्यादि भावितमेवाभ्मडपरिव्राजक कथानक इति । "जहा उववाइए" ति अनेनेदं सूचितम् "जहा उववाइए" त्ति अनेनेदं सूचितम् "जहा उववाइए" ति अनेनेदं सूचितम् जहा दढपणे जहा दपणे जहा दढपणे असोयवरपायवे पुढविसिलापट्टए वत्तव्वया ओववाइयगमेणं नेया एगदिसाए जहा उववाइए जाव अप्पंगतिया सम्प्रत्यस्था नगर्या वर्णकमाह- ( यहां औपपातिक का उल्लेख नहीं ) यावच्छन्दकरणात् "सद्दिए कित्तिए नाए सच्छत्ते" इत्याद्योपपातिकग्रन्थप्रसिद्धवर्णकपरिग्रहः अशोकवर पादपस्य पृथिवीशिलापट्टकस्य च वक्तव्यता औपपातिकग्रन्थानुसारेण ज्ञेया । यावच्छब्दकरणाद्राजवर्णको देवोवर्णकः समवसरणं चोपपातिकानुसारेण तावद्वक्तव्यं यावत्समवसरणं समाप्तम् यावच्छब्दकरणात् “आइकरे तित्थगरे" इत्यादिकः समस्तोपि औपपातिकग्रन्थप्रसिद्ध भगवतद्वर्णको वाच्यः, स चातिगरीयानिति न लिख्यते, केवलमोपपातिकग्रन्थादवसेयः बहवे उग्गा भोगा इत्याद्योपपातिक ग्रन्थोक्तं सर्वमवसातव्यं यावत् समग्रापि राजप्रभृतिका परिषत्पर्युपासीना अवतिष्ठते Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ पृ० ११६ "एवं जहा उपवाइए तहा भाणियवं" इति एवं यथा औपपातिके अन्थे तथा वक्तव्यम् । तच्च एवं पृ० २८८ इत्यादिरूपा धर्मकथाऔपपातिकग्रन्थादवसेया जंबुद्दीवपण्णत्ती २१६५ एवं जाव णिग्गच्छद जहा ओवधाइए जाव आउल बोलबहुलं २२८३ एवं जहा ओधवाइए सच्चेव अणगारवष्णओ जाव उडढं जाण ३३१७८ एवं ओववाइयगमेणं जाव तस्स जंबुद्दीवपण्णत्ती वृत्ति शा० ०० पत्र १४ "वष्णओ" त्ति ऋद्धस्तिमितसमृद्धा इत्यादि औपपातिकोपाङ्गप्रसिद्ध: समस्तोपि वर्ण को द्रष्टव्यः चिरातीतमित्यादिर्वग कस्तत्परिक्षेपि बनवण्डवर्णकसहितऔपपातिकतोऽवसेयः "वणओ" त्ति अन राजा "मयामिवन्तमहन्ते" स्थादिको राज्ञाश्च "सुकु. मालपाणिपाये' त्यादिको वर्णक: प्रथमोपाङ्गप्रसिद्धोऽभिधातव्यः यथा च समवसरणवर्णकं तथीपपातिकथादवसे यं "तए णं मिहिलाए णयरीए सिंघाडगे" त्यादिक "जाव" पंजलिउडा पज्जवासंती" ति पर्यन्तमोपपातिकगतमवगन्तव्यम् ......... एवोपाङ्गादवगन्तव्यमिति शा. वृ० पत्र १४३ "यथोपपातिके" एवं यथा प्रथमोपाङ्गे ............ निपात:, औपपातिक गमश्चार्य शा. वृ० पत्र १५४ यथोपपातिके सर्वोऽणगारवर्णकस्तथाऽत्रापि वाच्यः शा. वृ० पत्र १५५ कियद्यावदित्याह-ऊर्ध्वजानुनी येषां ते ऊर्वजानव: ..........."अत्र यावत्पद संग्राह्यः "अप्पेगइया दोमासपरिआया" इत्यादिक: औपपातिकग्रन्थो विस्तर भयान्न लिखित इत्यवसेयम् शा० ३० पत्र २६४ एवमुक्तक्रमेण औषपातिकगमेन-प्रथमोपाङ्गगतपाठेन तावद् वक्तव्यं यावत्तस्य राज्ञः पुरतो महाश्वाः शा. वृ० पत्र ३२५ वृक्षवर्णन प्रथमोपाङ्गतो ऽवसेयम् सूरपण्णत्ती वृत्ति यावच्छब्देनीपपातिकग्रन्थ प्रतिपादितः समस्तोपि वर्णक: आइन्मजणसमूहा" इत्या दिको द्रष्टव्य: पत्र २ तस्यापि चैत्यस्य वर्णको वक्तव्यः स चौपपातिकग्रन्थादवसेयः पत्र २ तस्य राज्ञः तस्याश्च देव्या औपपातिकमन्थोक्तो वर्णकोऽभिधातव्य: पत्र २ समवसरणवर्णनं च भगवत औपपातिक ग्रन्थादवसेयम् पत्र ३ "बहवे उगा भोगा" इत्याद्यापपातिकभन्यो वक्तम पत्र अत्र यावच्छन्दादिदमौषपातिकग्रन्थोक्तं द्रष्टव्यम् Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्रपण्णत्ती हस्तलिखित वृत्ति पत्र थू पत्र ५ पत्र ५ पत्र ५ पत्र ६ उबंगा १११४१ २४१३ दसाओ १०१२ १०।१४-१६ दसा. हस्त. वृत्ति वृत्ति पत्र ११ औपपातिकग्रन्थप्रसिद्धः समस्तोपि वर्णको द्रष्टव्यः स च ग्रन्थगौरवभयान्न लिख्यते केवलं तत एवोपपातिका दवसेयः औपपातिकग्रन्थोक्तो वेदितव्यः तस्य राज्ञस्तस्याश्च देव्या औपपातिक ग्रन्थोक्तो वर्णकोऽभिधातव्यः समवसरणवर्णनं च भगवत औपपातिकग्रन्थादव सेयम् "बहवे उग्गा भोगा" इत्याद्योपपातिकग्रन्थोक्तं सर्वमवसेयम् जहा दढपण्णी जहा दढपणो सू० ३२ सू० ३३ सू० ३६ सू० ४० 2 रावण्णओ एवं जहा ओववातिए जाव चेल्लणाए सको रेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उक्वाइयगमेणं नेयब्वं जाव पज्जु वासइ द० ५५ ह०वृ० पत्र ११ द० ५२६ वृ० पत्र ११ द० १०।२ ह०वृ० पत्र २५ " तस्य वर्णको यथा औपपातिकनाम्नि ग्रन्थेऽभिहितस्तथा" द० १०१२ ह०वृ० पत्र २५ विस्तरव्याख्या तूपपातिकानुसारेण वाच्या द० १०१३ ह०वृ० पत्र २५ आदिकरः यावत्करणात् " मोपपातिक ग्रंथादवसे यः -- पातिकग्रन्थप्रतिपादितः समस्तोपि वर्णको वाच्यः स चेह ग्रंथगौरवभयान्न लिख्यते केवलं तत एवोपपातिकादवसेयः । दसा. ५३४ चैत्यवर्णको भणितव्यः सोप्यौपपातिकग्रन्थादवसेयः औपपातिकोक्तं पाठसिद्धं सर्वमवसेयं......... द० १०।६ ह्०वृ० पत्र २६ जावत्ति यावत्करणात जणवूहेइ वा उग्गा भोगा - इत्याद्योपपातिकग्रन्थोक्तम् — द० १०।१४.१६ ह०वृ०पत्र २८ उववातियगमेणीति औपपातिकग्रंथोक्तकौणिक वंदन गमनप्रकारेणायमपि निर्गतः ५० १० २१ ह०वृ० पत्र २६ इहावसरे धर्म्मकथा औपपातिकोक्ता भणितव्या अन्य आगमों में ओवाइयं के सूत्र : ओवाइयं भगवई 'समस्तो औपपातिक ग्रन्थप्रसिद्धो केवल २५।५५६-५६३ २५/५६४-५६८ २५।५७६-५७६ २५५८२-५६८ राय० जंबु ० Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं सू० ४३ सू० ४४ सू० ६४ सू० ६५ सू० ६६ समर्पण सूत्र सूत्र १ १ १ 27 " 71 23 " 73 व्याकरण और आर्ष-प्रयोग सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा-शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है । 11 73 17 १ १ ५ ५ 39 सूत्र ६ >> ६ ε 21 १ १ २ २ ४ भगवई २५/६००-६१२ २५१६१३-६१८ ६।२०४ कुक्कुड मुसुंदि "वंक राय० संक्षिप्त पद्धति के अनुसार औपपातिक में समर्पण के अनेक रूप मिलते हैं : जाव - उदए जान भीणे (११७) एवं जाव - अपडिविरया एवं जाव ( १६१ ) सेसं तं चेव---परलोगस्स आराहगा सेसं तं चेव ( १५७ ) भत्त 'कोला° तुरंग दरिस णिज्जा कालागरु कहग निकुरंबभूए दरिस णिज्जा १५ गुलइय अभितर सु० ४६-५५ एवं एवं उवज्झायाणं थेराणं (१६) अभिलावेणं - एवं एएणं अभिलावेणं (७३) एवं तं चेव – सगडं वा एवं तं चैव भाणियव्वं जाव णण्णत्य गंगामट्टियाए (१२३ ) भाणियध्वं — एवं चेव पसत्यं भाणियव्वं (४०) कंदमंतो एएसि वण्णो भाणियथ्यो जाव सिविय (१०) णेयव्वं --- तं चैव पसत्थं यव्वं । एवं चैव वइविणओ वि एएहिं पएहि चैव यव्वो (४०) शब्दान्तर और रूपान्तर बाहिर णीवेहि ० ३।१७८ ३१८० ३।१७६ कुंकड " मुसंढि are 'हत्त O • खीला " तुरंग दरिसणीया कालागुरु कहक बिए दरस णिज्जा गुलुइय अभंतर बहिर णितेहि (ख) (क, ख) (ग) (क) (क, ख ) (क) (क, ख ) (क) (क, ख, ग ) (ख) (क, ख ) 333TZ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ 'हलधर' "हलहर' भुयगीसर अकरंड्य' *च्छर गुप्फे 'वीणं जया 44 आयावाया परवाया ओमोयरिया बारसभत्ते चउद्दस' (ग) सोलस चउमासिए 'भोइत्ति दव्वाभि एतस्स 'पउत्ते उसण्ण' भूयईसर (क, ख, ग) अकरंदु (क, ख) 'थर 'गोफे 'पीडेणं (क, ख) जदा (क) आदावाया परवादा अवमोयरिया बारसमभत्ते बारसमेभत्ते चोहसम (क, ख) घोद्दसमे सोलसम सोलसमे' घउम्मासिए 'भोईत्ति दवमि इंतस्स 'पजुत्ते घोसण्ण (क, ग) (ग) दसणावरणीय "बीती "तोयवट्ठ (क) 'पण्णिय वहस्सती (ग) 'किरीडधारी (ख) महाफलं (क, ख, ग) गतगता (क) पच्चोरुभंति (ग) पाडिएक्कपाडिएक्काई(ख) पतोद-लट्टि पयोत्त-सद्धि ETEEEEEEEEEEEEEEEEEntrates दरिसणावरणिज्ज "वीची तोयपट्ठ 'वण्णिय विहस्सती "तिरीडधारी महप्फलं गयगया पच्चोरुहति पाडियक्कपाडियक्काई पोय-लदि Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुइंग अभिगेहि अभंगेहि 'मिसिमिसंत 'मिसमिसंत' (ग) 'सुसिलिट्ठ 'सुसलिट्ठ (क, ग) 'वीइयंगे 'वीजियंगे कूवग्गाहा कूतुयग्याहा 'तुरगाणं 'तुरंगाणं सखिखिणी सकिंकिणी "मुदंग भट्टित्तं भट्टत्तं 'कोंच (ग, वृ) वइर वज्ज (ख) "णिघस 'निकस' वेयणिज्ज वेदणिज्ज (क, म) से जे सेज्जे (क, ख) से जाओ सेज्जाओ (क, ख) 'उरियामो पुरियामओ कुक्कुइया कोकुइया (ख, ग) 'अहव्वण 'अथव्वण' (क, ख, ग) अलाउ लाउ चरिमेहि चरमेहि 'वेंटिया वंटिया भूइ (क, ख, ग) अणगारा अणकारा (क, ग) १७० तेल्ला तिल्ल (क); तेल (ख) वय वइ (क, ख, ग) गा.१ पइट्रिया पत्तिट्टिया (क, ख) प्रति-परिचय (क) यह प्रति 'श्रीचन्द गणेशदास गधंया पुस्तकालय', सरदारशहर से श्री मदन चन्द जी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ४० तथा पृष्ठ ८० है। प्रत्येक पत्र ११॥1 इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में ४ से १३ तक पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४६ तक अक्षर हैं। पत्र के चारों ओर सूक्ष्माक्षरों में टीका लिखी हुई है। प्रति सुन्दर, कलात्मक तथा पठित मालूम होती है। प्रति के अंत में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है :--- इति श्री उवबाईसूत्रं समाप्तं ॥ ग्रन्थ ११६७ ।।छ।। संवत् १६२३ वर्षे फाल्गुन सुदि ३ दिने । आगरा नगरे। पातिसाह श्री अकबर जलालदीन राज्य प्रवर्त्तमाने ॥ श्री बृहत् खरतर गच्छालंकार श्री पूज्यराज श्री ६ जिनरि.घसूरिविजयराज्ये पंडित श्रीलव्धिवर्द्धन 90550 0 0 0 0 0 V XNur99 l vvvv ale lasaitallissésztasalas 149x ,, १६५ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिभिरुपपातिका नाम उपांगं लिखापितं ॥छ॥ वाच्यमानं चिरं नद्यात् ॥ शुभं भवतु लेखकवाचकयो: ! श्री (ख) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' सरदारशहर से श्री मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ५६ तथा पृष्ठ ११८ है। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा ४॥ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में पाठ की ७ से 8 तक पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। पाठ के ऊपर-नीचे दोनों ओर राजस्थानी भाषा का अर्थ है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति श्री उवाई उपांग पढ़म समत्तं ।। ग्रंथाग्रं १२२५॥॥छ। ॥श्री।। ।। संवत् १६६५ वर्षे पोष मासे शुक्लपक्षे सप्तमी तिथौ श्री सोमवारे । श्री श्री विक्रम नगरे। महाराजाधिराज महाराजा श्री रायसिंहजी विजयराजे पं० कर्मसिंह लिपीकृता॥छ।। (ग) यह प्रति 'श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' सरदारशहर से श्री मदन चन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र २६ तथा पृष्ठ ५२ हैं। प्रत्येक पत्र १०॥ इंच लम्बा तथा ४१, इंच चौड़ा है। प्रत्येक पंक्ति में १५ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में ४६ से ४५ तक अक्षर हैं। प्रति के अन्त में है...उवाईयं समत्तं ।। ग्रन्थान १२०० शुभमस्तु ।।छ। श्री। लिखा है किन्तु संवत नहीं दिया है। पर पत्र, अक्षर तथा चित्रों के आधार से यह प्रति १७ वीं शताब्दी की होनी चाहिए। (व) हस्तलिखित वृत्ति की प्रतिः यह 'श्रीचन्द गणेशदास गर्धया पुस्तकालय', सरदारशहर से श्री मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसकी पत्र संख्या ७५ तथा पृष्ठ १५० हैं। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५५ से ६० तक अक्षर हैं । प्रति १०। इंच लम्बी तथा ४। इंच चौड़ी है। प्रति शुद्ध तथा स्पष्ट है। अंतिम प्रशस्ति में लिखा है शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ।। लेखकपाठकयोश्च भद्र भवतु ॥छ।। संवत् १९६६ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि भोमे लिखितं ।।छ।। श्रीः ।। यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा ।। तादृशं लिखितं मया ।। यदि शुद्धमशुद्धं वा । मम दोषो न दीयते।। छ ।छ। (वृ०पा०) वृत्ति-सम्मत पाठान्तर कुछ विशेष-हस्तलिखित वृत्ति तथा मुद्रित वृत्ति में वाचनान्तर पाठ सदृश नहीं है। हमने मुल आधार हस्तलिखित वृत्ति को माना है। रायपसेणियं प्रस्तुत सूत्र का पाठ-निर्णय हस्तलिखित आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर किया गया है। सूर्याभ के प्रकरण में जीवा जीवाभिगम और दृढप्रतिज्ञ के प्रकरण में औपातिक सूत्र का भी उपयोग किया है। वृत्तिकार ने स्थान-स्थान पर वाचनाभेद की प्रचुरता का उल्लेख किया है। वृत्तिकाल में पाठभेद की समस्या उग्र थी, उत्तरकाल में वह उनतर हो गई। फिर भी हमने उपलब्ध साधन सामग्री का सूक्ष्मेक्षिकया प्रयोग कर पाठ निर्धारण किया है। अधिकार की भाषा मे कोई नहीं कह सकता कि यह पाठ-निर्धारण सर्वात्मना त्रुटि रहित है, किन्तु इतना कहा जा सकता है कि इस कार्य में तटस्थता और धुति का सर्वात्मना उपयोग किया गया है। प्रस्तुत सूत्र की पाठपूर्ति अत्यन्त श्रम साध्य हुई है। पाठपूति से सूत्र का शरीर बृहत हुआ है। साथ-ही-साथ पाठ-बोध की सुगमता और कथावस्तु की सरसता बढ़ी है। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मतुड गाइ मउ. शब्दान्तर और रूपांतर ध्याकरण और आर्ष-प्रयोग-सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा शास्त्रीय अध्ययन की दष्टि से महत्वपूर्ण हैं; इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है। सूत्र संख्या ८ मउड धेयं °धेज्ज णादि (क,ख,ग,च) उकिट्ठाए ओकिट्ठाए (छ) पढ़े वळे (ख,ग); मट्ठ (च) णाइय जातिय (क,ख,ग,घ,च,छ) हंत (च) अभिवंदए अभिवंदते आयंस' आतंस (घ,च) मिउ (क,ख,ग) पासाईए पासातीए (क,ख,ग,घ) अतीव अतीत तिसोवाण तिसोमाण° (क,ख,ग,च) महालतेणं महालएणं (ख,ग,घ) वेमाणिएहि वेमाणितेहिं (क,ख,ग,घ) विरचिय विरतिय (क,ख,ग,च) वायाणं वाइयाण (क,ख,ग,छ) वाययाणं (घ) ओणमति तोनमंति (क,घ) मर मिर (क्वचित्) 'टाणं 'ताणं (क,च,छ) ११८ मत्थए मत्थते (क,ख,ग,घ) जएणं विजएणं जतेणं विजतेणं (क,ख,ग,घ) बहुईओ बहुगीओ (क,ख,ग,घ) बहुगीतो (च,छ) " १२६ दार' वार (क,ख,ग,च,छ;) बार (घ) 'कवेल्लुयाओ 'कवेलुयातो (क,ख,ग,घ) १३५ संकलाबो संखलाओ (क्वचित्) पगंठगा पकंठगा (घ,च) साए पहाए पएसे साते पहाते पतेसे (क,ख,ग,घ, ७५ ७६ ७७ १३७ च,छ) Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ १७३ १७३ २१ 'बिटा २४५ चरियासु चलियासु ६६५ १५६ सम्वोउय सव्वोउत° (क,ख,ग,ध) पिणद्ध विनद्ध (घ) तिठाण तित्थाण. (क,ख,ग,घ,च,छ) आईणग आदीणग (क,ख,ग,घ) उड्ढे उद्घ (क) 'वेइया वेतिया (क,ख,ग,घ,च,छ) १९७ फलएसु °फलतेसु (क,ख,ग,घ,च,छ) तमओ तगो (क); ततो (छ) २२८ बेंटा क,ख,ग,छ; बेठा (च) सुविरइ-रयत्ताणे सुइरइ-रइत्ताणे (क,ख,ग,घ,छ) २६२ कडुच्छुयं कडुच्छ्यं (क,ख,ग,ध) (क,ख,ग) पीय पील (क,ख,ग) ६८३ विद वंद (घ) ६८७ 'पूहे (क,ख,ग) 'परिभाइत्ता परिभागेत्ता (क,ख,ग,घ,च,छ) कोट्ठयाओ कोट्ठाओ (क,घ) ७२० अगिलाए अइलाए (क,च) अओ अयो (क,ख,ग); अय° (घ) भिच्चा ७६० किसिए कसिए (क,ख,ग,घ,छ) वाउकायस्स बाउयागस्स (क,ख,ग,घ,च,छ) ७८७ भिक्खुयाण भिछुयाणं (घ, च) , ७६१ प्पभोगेण प्पयोगेण प्रति-परिचय (क) यह प्रति सरदारशहर 'श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' से प्राप्त है। इसके ४६ पत्र तथा ९८ पृष्ठ है। प्रत्येक पत्र की लम्बाई १० इंच तथा चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५० से ५५ तक अक्षर है यह प्रति वि० सं०१६७१ की लिखी हई है। इसकी पुष्पिका निम्नोक्त है...-- नमो जिणाणं जियभवाणं णमोसुय देवयाए भगवईए णमो पण्णत्तीए भगवईए णमो भगवओ अरहओ पासस्स पस्से सुपस्से पस्स शोभए । छ : रायपसेण इयं समत्तं । छ । ग्रंथा २०७६ समथितमिदं सूत्र छ संवत् १६७१ वर्षे भाद्रवा सुदि ११ । आगे भी पष्पिका है पर उस पर हड़ताल फेरी हुई है। (ख), (ग) पत्र क्रमशः ५५, ६१ । ये दोनों प्रति 'क' प्रति के सदश ही हैं। (घ) यह प्रति यति कनकचन्दजी पाली (मारवाड़) की है। इसके पत्र ५४ व पृष्ठ १०८ हैं। ७५४ भेच्चा ७७१ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ प्रत्येक पत्र की लम्बाई १०॥ इंच व चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४६-४८ अक्षर हैं । यह प्रति वि०म० १५६६ की लिखी हुई है। प्रति के अन्त में निम्न पुष्पिका है छ।। शुभं भवतु लेखकपाठकयोः श्री संघस्य च ।। सं. १५६६ वर्षे चैत्र सुदि २ तिथौ अद्येह श्रीमदणहिल्लपत्तने श्री बृहतुखरतरगच्छे श्रीवर्धमानसूनिसंताने श्री जिनभद्रसुरिपट्टानुक्रमेण श्री जिनहंससुरिराज्ये वाचनाचार्यजयाकारगणिशिष्य वा० धर्मविलासणिवाचनार्थ भ० वस्तुपालभार्यया लीली श्रावकया। पुत्ररत्न भ० सालिगपुमुखपरिवार स श्रीकया सू श्रेयार्थ च लेखितं श्री राजप्रश्नीयोपांग। ब) यह प्रति पूनमचन्द बुद्धमल दुधोडिया, छापर (राजस्थान) के संग्रह से प्राप्त है। इस प्रति के ४२ पत्र तथा ८४ पृष्ठ हैं। प्रत्येक पत्र की लम्बाई १२ इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ५४ तक अक्षर हैं। प्रथम दो पत्रों में २ चित्र हैं। लिपि सुन्दर पर अशुद्धि बहुल है। यह प्रति अनुमानित सोलहवीं शताब्दि की है। यह प्रति भी उपरोक्त दुधोड़िया, छापर (राजस्थान) के संग्रह से प्राप्त है इस प्रति के पत्र ४१ व पृष्ठ ८२ हैं। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५७ से ६० अक्षर हैं। लिपि साधारण पर शुद्ध है। अन्त में लिखा है-लिपि सं० १६६५ वर्षे कार्तिक मासे शुक्ल पक्षे सप्तमी शुक्र बब्बेरकपुरे पं० लब्धि कल्लोलगणिनालेखि । (a) यह प्रति 'श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' सरदारशहर से प्राप्त है । इसके ५२ पत्र तथा १०४ पृष्ठ हैं ! प्रत्येक पत्र की लम्बाई १०॥ इंच तथा चौड़ाई ४।। इंच है। प्रत्येक पत्र में १७ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६५ से ७० तक अक्षर हैं । यह प्रति वि० सं० १६०५ में लिखी हुई है। इसकी पुष्पिका निम्नोक्त हैं इति मलयगिरिविरचिता राजप्रश्नीयोपांगवृत्तिका समथिता ॥ समाप्तमिति । प्रत्यक्षरगणनया ग्रन्थाग्रं ॥छ।। ।।छ। प्रत्यक्षर गणनातो ग्रन्थमानं विनिश्चितं । सप्तत्रिशत्शतान्यत्र । श्लोकानां सर्व संख्यया: ।। ग्रन्थाग्रं श्लोक ३७०० ॥छ।। श्री ॥ संवत् १६०५ वर्षे श्रावण सुदि १३ भौमे पतन वास्तव्यं ।। पं० रद्रासुजिगनाथ लिखितं ।। शुभं भवतु ।। जीवाजीवाभिगमे प्रस्तुत सूत्र का पाठ निर्णय हस्तलिखित आदर्शों तथा वत्ति के आधार पर किया गया है। मलयगिरि की वृत्ति प्राचीन आदर्श के आधार पर निर्मित है इसीलिए ताडपत्रीय आदर्श और वत्ति का पाठ समान चलता है। इस विषय में ३१२१८, ४५७, ५७८, ८२६ सूत्र तथा इनके पाद टिप्पण द्रष्ट व्यं है । अर्वाचीन आदों में पाठ का इतना बड़ा अन्तर मिलता है यह बहुत ही विमर्शनीय और अन्वेषणीय है। जीवाजीवाभिगम के आदर्शों में पाठ की एक समानता नहीं रही है इसकी सूचना जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के वत्तिकार शान्तिचन्द्र ने भी दी है। १. जम्बुद्वीपप्राप्ति वृत्ति पत्र १०८ अत्र चाधिकारे जीवाभिगमसूत्रादर्श क्वचिदधिकपदम् अपि दृश्यते तत्तु वृत्तावत्याख्यातं स्वयं पर्यालोच्यमानमपि न नार्थप्रदमिति न लिखितं, तेन तत् सम्प्रदायादवगन्तव्यं, तमन्तरेण सम्यक पाठशुद्धैरपि कर्तुमशक्यत्वादिति । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ उपाध्याय शान्तिचन्द्र ने कल्पवृक्ष के विवरण का पाठ जीवाजीवाभिगम से उद्धत किया है। चतुथं कल्पवृक्ष के स्वरूप वर्णन में उन्होंने कणग निगरण' पाठ उदधत किया है। उसका अर्थ किया है सुवर्ण राशि।' जीवाजीवाभिगम की बत्ति में 'कणग निगरण' पाठ व्याख्यात है--"कनकस्य निगरण कनकनिगरणं गालितं कनकमिति भावः । लिपि-परिवर्तन के कारण पाठ परिवर्तन हआ है। आदर्शों में 'कूडागारटु' पाठ मिलता है । मुद्रित तथा हस्तलिखित वृत्ति में भी 'कूटागाराद्यानि' पाठ उपलब्ध होता है। __ जीवाजीवाभिगम की वृत्ति में यह ब्याख्यात नहीं है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति में इसकी व्याख्या मिलती है-'कुटाकारेण --शिखराकृत्याढ्यानि" आचार्य मलयगिरि ने आदर्शगत पाठभेद का स्वयं उल्लेख किया है। वृत्तिकार ने जिन गाथाओं को अन्यत्र कहकर उद्धृत किया है । अर्वाचीन आदशों में दे गाथाएं मूल पाठ में समाविष्ट हो गई १५ वत्ति में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका का उल्लेख मिलता है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के व्याख्याकार मलयगिरि के उत्तरवर्ती ही हैं। इसलिए यह उल्लेख प्रक्षिप्त है अथवा मलयगिरि के सामने उसकी कोई प्राचीन व्याख्या रही है यह अन्वेषण का विषय है। कहीं-कहीं वृत्ति में भी कुछ विमर्शनीय लगता है ! 'सिरिवच्छ' पाठ की व्याख्या वृतिकार ने 'श्रीवक्ष' की है। प्रकरण की दृष्टि से 'श्रीवत्स होना चाहिए। मूल टीकाकार और मलयगिरि के सामने पाठभेद तथा अर्थ भद की जटिलता रही है और मायाकारों के समय में इस विषय में कुछ चर्चाएं भी होती रही हैं। इस विषय में वत्ति का एक उल्लेख बहुत ही ऐतिहासिक महत्त्व का है। वृत्तिकार ने लिखा है कि यह सूत्र विचित्र अभिप्राय वाला होने के कारण दुर्लक्ष्य है। इसकी व्याख्या सम्यक् सम्प्रदाय के आधार पर ही ज्ञातव्य है। सूत्र १. जम्बूद्वीप वृ० ५० १०२—"कनकनिकरः सुवर्ण राशिः।" २. जीवाजीवाभिपम वृ० प० २६७ ! ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति वृ० ५० १०७ देखें जीवाजीयाभिगम ३१५६४ का पादटिप्पण । ४. (क) जीवाजीवाभिगम व० प ३२१ "इह बहुषा सूत्रेषु पाठभेदाः परमेतावानेव सर्वत्राप्यर्थो नार्थभेदान्तरमित्येतद्व्याल्यानुसारेण सर्वेप्यनुगन्तव्या न मोग्षव्यमिति ।" (ख) जीवा० वृ० ५० ३७६ इह भूयान् पुस्तकेषु वाचनाभेदो गलितानि च सुआणि बहुषु पुस्तकेषु ततो यथाऽवस्थितवाचनामेदप्रतिपत्यर्थगलितसूत्रोधरणार्थ चैवं सुगमान्यपि विवियन्ते। ५. जीवा वृ०१० ३३१, ३३३, ३३४ तथा ३८२०, ८३०, ८३४, ८३७ के पादटिप्पण द्रष्टव्य हैं । ६. जोवाभिगम वृ०प० ३८२ क्वचित्सिहादीनां वर्णनं दृश्यते तद् बहुषु पुस्तकेषु न दृष्टमित्युपेक्षित अवश्यं चेत्तद्वयाख्यानेन प्रयोजनं तहि जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति टोका परिभावनीया, तत्र सविस्तरं तद व्याख्यानस्य कृतत्वात्। ७. जीवा जीवाभिगम वृ०५० २७१--- 'श्रीवृक्षणांकितं -लामिछितम् वृक्षो येषां ते श्री वृक्षलाञ्छित वक्षसः" । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ के अभिप्राय को जाने बिना मनमाने ढंग से व्याख्या करना उनकी अवहेलना करना है। सूत्र की आशातना या अवहेलना न हो इस दृष्टिकोण ने पाठ और अर्थ की परम्परा को सुरक्षित रखने में काफी योग दिया है फिर भी वृद्धि की तरतमता और लिधिप्रमाद के कारण पाठ और अर्थ में परिवर्तन हुआ है। पाठ को विविधता के कारण हमें भी पाठ के निर्धारण में काफी श्रम करना पड़ा है। पाठान्तर और उनके टिप्पणों से उसका अंकन किया जा सकता है। ता संकेतित प्रति संक्षिप्त पाठप्रधान है, जैसे १:४१ सूत्र से .-"ताई भंते कि पुडाइं आहारैति अपु मोयमा पुट्ठा णो अपु । आगा णा अणोगा अणंतर। णवरं अणूई नि आ बायराई पिआ उड्ढं वि इ आदि पि इ सविसए णो अविस आणुपुटिव णो अणामपुटिव आच्छदि वाघातं प सिय तिदिसि क । नो वष्णतो काला नी गंधती सु २ सतो नो फासहो ते पाराणं विपरिणामेत्ता अपुव वण्ण गुण ष्क उप्पाएत्ता आतसरीर खेतीगाढ़े पागले सध्यप्पणत्ताए आहारमाहारंति"। लिपि-दोप के कारण "कि तिदिसि के स्थान में "कतिदिसि" (क)। 'ता' का अनेक जगह पाठान्तर नहीं लिया है, वहां पाठ बहुत संक्षिप्त है। शब्दान्तर और रूपान्तर ११ जिणक्खायं जिणखायं (ख) जिणखातं (ता) अणुवीइ अणुवीतियं (क,ख) रोएमाणा रोतमाणा (ता) संधयण संघतण सण्णाओ सग्णातो जोगुवओगे जोगुवतोगे कोहकसाए कोहकसाते ११२१ कण्हलेस्सा किण्हलेस्सा (ग,ट) श२६ आणपाणु आणपाण' (ट) १।७२ छीरविरालिया छिरविरालिया (क) छिरिविरालिया (ख) १।१४ १. जीवाजीवाभिगम वृ०५० ४५० -- "सूत्राणि हामूनि विचित्राभिप्रायतया दुर्लक्ष्याणीति सम्यक्संप्रदायादवसातव्यानि, सम्प्रदायश्च यथोक्तस्वरूप इति न काचिदनुपपत्तिः, न च सूत्राभिप्रायमज्ञात्वा अनुपपत्ति सद्भावनीया, महाशातनायोगतो महाऽनर्थप्रसक्तेः सूत्रकृतो हि भगवन्तो महीयांसः प्रमाणीकृताश्च महीयस्तरस्तकालवत्तिभिरन्यविद्भिस्ततो न तत्सूत्रेषु जनागप्यनुपपत्तिः, केवलं सम्प्रदायावसाये यत्नो विधेयः ये तु सूत्राभिप्रायभज्ञात्वा यथा कविइनुपपत्तिमुद्भावयन्ते ते महतो महीयस प्राशा. तयन्तीति दीर्घतरसंसारभाजः, आह च टीकाकारः - "एवं विचित्राणि सूत्राणि सम्यक्संप्रदायादवसेयानीत्यविज्ञाय तदभिवाय नानुपपत्तिचोदना कार्या, महाशातनायोगतो महाऽनर्थप्रसंगादिति" एवं च ये सम्प्रति दुषमानुभावतः प्रवचनस्थोपप्लवाय धूमकेतव इवोस्थिताः सकलकाल सुकराब्यच्छिन्नसुविधिमार्गानुष्ठातृसुविहिलसाधुषु मत्सरिमस्तेऽपि वृद्धपरम्परायातसम्प्रदायादवसेयं सूत्राभिप्रायमपास्योत्सूत्रं प्ररूपवतो नहाशासनाभाज. प्रतिपत्तव्या अपकर्णयितव्याश्च दूरतस्तत्ववेदिभिरिति कृतं प्रसङ्गेन", Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ थीह ११७३ १११०० १।१०१ १।११६ २०५६ २१६० २०७४ २०६२ २।२४१ २११४६ तहप्पगारा दुआगइया आहारो पलिओदमाई अब्भहियाई फुफुअग्गि वासपुहत्तं एतासि वणस्सति जोयण आवबहुले अबाधाए जे णं इम असीउत्तरं अडहत्तरे किण्हपुड बाहल्लेणं केरिसगा ३१५ ३१६ ३१४८ ३१७३ (ता) ३१७७ ३१७७ ३०० ३२६४ ३३६६ ३१११८ ३३११८ ३३११६ छिरियविरालिया (ग,ट); छीरवीराली (ता) थिभु तहप्पकारा (क,ख,ग,ट) दुयागतिया आधारो (ता) पलितोवमाई (क,ख,ग,ट) अब्भधियाई फुफअग्गि (क); पुफअग्गि वासपुधत्तं (क); वासपुहुत्तं एतेसि (क,ख,ग,ट); एगासि (ता) वणप्फई (क,ख,ग) जोतण अवबहुले (क); आवबहुले आबाधाए (क,ख,ट) जेणिमं आसीउत्तरे अडसत्तरी (ग); अठ्ठत्तरे (ता) किण्णपुड (क,ग.) पाहलेणं (ता) केरिसता (क,ख,ग) फुडिग* (ता) (मवृ) उसुणवेदणिज्जेसु विरइय (क,ग,ट) एकाहं (ख,ग,ट) तत्थ (क,ख,ग,ट); यत्थ जंबूणतमया (क); जणतामया (ग,ट,ता) ओवारियलयण (क,ख,ग,ट,त्रि;) उवकारिवलयणे थंभुगमय (क,ग) धूमवडियाओ उधितिय (क,ख); उविश्य बादालोस बातालीसं केतिलासे (ख); कइलासे (ग,ट,त्रि) इऊयाल (क); ऊयाल (ख,ता;) इगुयालं (ग) फुडित स्फुटित' उसिणवेदणिज्जेसु विरचिय एमा एत्थ जंबूणदमया ज्वगारियालयणे ३१२३४ ३१३२३ ३।३७१ ३३३७२ ३२४१२ ३१५६३ ३३७३३ ३१७५० ३१७४८ ३१७६४ खं भुम्गय धूवडियाओ ओविय बापालीसं (ता) केलासे एगुणयालं Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ता) ३१७६८ इगयालीसं एयालीसं (क,ख,ट); एगयालीसं (ग) इतालीसं ३१८२६ तेणठ्ठणं एएणठेणं (ग,त्रि) ३।८३८.१३ मणुस्साणं मणूसाणं (ता) ३२८४० कयाइ कदायी ३०८४१ बलाहका बलाहता (ता) बादरे विज्जुकारे वातरे विज्जुतारे (ता) बादरे थणियसहे वातरे थणितसद्दे (ता) ३३९४१ नदीओई वा णिहोति वा गंदीति वा णिधयोति वा (ता) ३८६० सूपक्कखोयरसेइ सुपिक्कखोतरसेति ३१८७७ खोदवरणं खोयवरणं (क,ख,ग,ट,त्रि) २९४६ खोदसरिसं खोतोदसरिसं ३१९६८ हेदिपि हट्ठिपि (ग,ट,ता); हिंडपि ३११००७ सव्व हेटिल्लं सव्वहेट्ठिमयं (ता) ३।१००७ सव्वोवरिल्लं सम्वुप्परिल्लं ३११००७ सम्वभितरिल्लं. सन्वन्भंतरं ५१३७ णिओदा णिोता (ता) "णिओदजीवा णिगोदजीवा (क,ख,ग,ट,त्रि) °णिओदजीवा 'णिओयजीवावि (क,ख,ग,ट,त्रि) ६।११ अणाइए अणादीए (ता) ६।२८ सकासाई सकसादी ६।१३१ ओहिदसणी अवधिदसणी (ग,त्रि) ओधिदंसणि (ता) प्रति परिचय (क) (मलपाठ) पत्र ६४ संवत् १५७५ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र ६४ व पृष्ठ १८८ हैं। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ५३-५६ तक अक्षर हैं। इसकी लम्बाई १३॥ इंच व चौडाई ५ इंच है। यह अति सुन्दर लिखी हुई है। अन्तिम पुष्पिका निम्न प्रकार है-- संवत १५७५ वर्षे आश्विनमासे कृष्णपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ भगुवासरे पत्तननगरमध्ये मोढजातीय जोशी वीलसुत लटकणलिखितम् ।छ। यादर्श पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया यदि शुद्धमशुद्ध वा मम दोषो न दीयते ॥शा शुभं भवतु, लेखक-पाठकयोः कल्याणमस्तु छ । छ । श्री। श्री। छ । ग्रं० ५२०० (ख) (मलपाठ) पत्र ८० पूर्वलिखित सरदारशहर की है। इसके पत्र ८० व पृष्ठ १६० हैं । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ६१ करीव अक्षर है। इसकी लम्बाई १२ इंच व चौड़ाई ४ इंच है। ५१५४ ५:५८ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ 'प्रति' प्राचीन है व बहुत जीर्ण है, अन्त में लिपि संवत् नहीं है परन्तु अनुमानत: १६ वीं शताब्दी की होनी चाहिए। (ग) ( मूलपाठ) पत्र ६० सचित्र यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया पुस्तकालय की है। इसके पत्र ६० व पृष्ठ १८० हैं । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां है और प्रत्येक पंक्ति में ६३ करीब अक्षर लिखे हुए हैं । इसकी लम्बाई ११ ॥ t इंच व चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रति के आदि पत्र में तीर्थंकर देव की प्रतिमा का सुनहरी स्याही में सुन्दर चित्र है । प्रति बहुत सुंदर लिखी हुई है। 'प्रति' के मध्य 'बावडी' व उसके मध्य लाल बिन्दु हैं । इस प्रति के अन्त में पुष्पिका व लिपि संवत् नहीं है परन्तु अनुमानत: १६ वीं शताब्दी की होनी चाहिए | यह प्रति ताडपत्रीय प्रति' व टीका से प्रायः मेल खाती है। 'ता' ताडपत्रीय फोटो प्रिन्ट (जैसलमेर भण्डार) यह प्रति टीका से प्रायः मिलती है। इसमें तीसरी 'प्रतिपत्ति' के १०५ सूत्र से ११५ सूत्र तक के पत्र नहीं हैं । (ट) (टब्बा) लिपि संवत् १८०० यह प्रति संघीय ग्रन्थालय लाडनूं की है । यह प्रति कालूगणी द्वारा पठित (पारायणकृत ) हैं व उनके द्वारा स्थान-स्थान पर पाठ संशोधन भी किया हुआ है । जीवाजीवाभिगम टीका (हस्तलिखित) यह प्रति 'श्रीचन्दजी गणेशदासजी गधेया' पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र २५० व पृष्ठ ५०० हैं । प्रत्येक पत्र में पंक्ति १५ अक्षर ६५ करीब है । लम्बाई १०x४ लिपि सं० १७१७, प्रति की लिपि सुन्दर है । सहयोगानुभूति जैन परंपरा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है। आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्विगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गये थे, वे इस लंबी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गये हैं । उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी । आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, गवेषणापूर्ण तटस्थदृष्टिसमन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारंभ हुआ । हमारी इस बाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन हैं। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन कार्य के अनेक अंग हैं. ई-पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन, तुलनात्मक अध्ययन आदि आदि । इन सभी प्रवृत्तियों में आचार्यश्री का हमें सक्रिय योग मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है । यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति बीज है । मैं आचार्यजी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर भार-मुक्त होऊं, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनूं । प्रस्तुत ग्रन्थ के ओवाइयं तथा रायपसेणियं के पाठ सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी तथा जीवाजीवाभिगमे के पाठ सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी और मुनि हीरा Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लालजी ने श्रम और निष्ठापूर्वक योग दिया है । जीवाजीवामिगमे के पाठ सम्पादन में मुनि छत्रमल जी, मुनि बालचंदजी, मुनि हंसराजजी और मुनि मणिलाल जी का भी सहयोग रहा है । ओवाइयं की शब्द सूची मुनि श्रीचन्दजी तथा रायपसेणियं और जीवाजीवाभिगमे की भुनि हीरालालजी ने तैयार की है। प्रूफ संशोधन के कार्य में मुनि सुदर्शनजी, मुनि हीरालालजी और साध्वी सिद्धप्रज्ञाजी व समणी कुसुम प्रज्ञा का सहयोग रहा है । ३० ओवाइयं तथा रायपसेणियं का ग्रन्थ-परिमाण मुनि मोहनलालजी "आमेट" ने तैयार किया है । इस ग्रन्थ के प्रथम दो परिशिष्ट मुनि हीरालालजी ने तैयार किए है । पाठ के पुनर्निरीक्षण के समय भी मुनि हीरालालजी विशेषतः संलग्न रहे हैं। कार्य-निष्पत्ति में इनके योग का मूल्यांकन करते हुए में इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूं। आगमविद् और आगम संपादन के कार्य में सहयोगी स्व० श्री मदनचंदजी गोठी को इस अवसर पर विस्मृत नहीं किया जा सकता। यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता । आगम के प्रबन्ध सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया / कुलपत्ति-जैन विश्व भारती / प्रारंभ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं । आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृत-संकल्प और प्रयत्नशील है । अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर वे अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं । जैन विश्व भरती के अध्यक्ष खेमचन्दजी सेठिया और मंत्री श्रीचन्द गाणी का भी योग रहा है। संपादकीय और भूमिका का अंग्रेजी अनुवाद जैन विश्व भारती के अन्तर्गत 'अनेकान्त शोधपीठ के डायरेक्टर नथमल टांटिया ने तैयार किया है। एक लक्ष्य के लिये समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहार पूर्ति मात्र है । वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। अध्यात्म साधना केन्द्र, महरोली अक्षय तृतीया १ मई, १६८७ नई दिल्ली - युवाचार्य महाप्रज्ञ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका प्रस्तुत पुस्तक का नाम उबंगसुत्ताणि है। इसम बारह उपांगों का पाठान्तर तथा संक्षिप्तपाठ सहित मूलपाठ है। इसके दो खण्ड हैं। थम खण्ड मे तोल उपांग हैं:--- १. ओवाइयं २. रायपसेणियं ३. जीवाजीवाभिगमे । द्वितीय खंड में नौ उपांग हैं१. पण्णवणा २. जंबुद्दीवपण्णती ३. चंदपण्णत्ती ४. सूरपण्णत्ती ५. निरयावलियाओं कप्पियाओj ६. कप्पवडिसियाओ ७. पुफियाओ ८. पुप्फचुलियाओ ___६. वहिदसाओ प्राचीन व्यवस्था के अनुसार आगम के दो वर्गीकरण मिलते हैं। १. अंगप्रविष्ट २. अंगबाह्य उपांग नाम का वर्गीकरण प्राचीनकाल में नहीं था। नन्दीसूत्र में उपांग का उल्लेख नहीं है। उससे पहले के किसी आगम में उपांग की कोई चर्चा नहीं है । तत्वार्थभाष्य में उपांग का प्रयोग मिलता है। उपलब्ध प्रयोगों में सम्भवतः यह सर्वाधिक प्राचीन है। अंग और उपांग को संबन्ध योजना तत्वार्यभाष्य में उपांग शब्द का उल्लेख है, किन्तु उसमें अंगों और उपांगों का सम्बन्ध चर्चित नहीं है । इसकी चर्चा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति तथा निरयावलिका के वृत्तिकार श्रीचन्द्रसूरि द्वारा रचित सुखबोधा सामाचारी नामक ग्रन्थ में मिलती है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति के अनुसार अंगों और उपांगों की सम्बन्ध-योजना इस प्रकार है:अंग उपांग आचारांग औपपातिक सुत्रकृतांग राजप्रश्वीय स्थानांग जीवाजीवाभिगम समवायांग प्रशापवा भगवती जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति १. तत्त्वार्थभाष्य १/२०: तस्य च महाविषवत्वात्तस्ताननधिकृत्य प्रकरणसामप्त्यपेक्षमंगोपांगनानास्वम् । २. सुखबोधा सामाधारी, पृष्ठ ३४ । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथा उपासकदशा अन्तकृतदशा अनुत्तरोपपातिकदशा प्रश्नव्याकरण विपाकश्रुत दृष्टिवाद चन्द्रप्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्ति निरयावलिका [कल्पिका ] कल्पावतसिका पुष्पिका पुष्पचूलिका वृष्णिदशा' १. ओवाइयं नाम बोध प्रस्तुत आगम का नाम ओवाइयं [औपपातिक] है। इस का मुख्य प्रतिपाद्य उपपात है। समवसरण इसका प्रासंगिक विषय है। मुख्य प्रतिपाद्य के आधार पर प्रस्तुत सूत्र का नाम 'ओवाइयं किया गया है। इसका संस्कृत रूप औषपातिक होता है। प्राकृत नियम के अनुसार दकार का लोप करने पर 'ओववाइय' का 'ओवाइय' रूप बन गया। नंदी सुत्र में यही नाम उपलब्ध होता है। विषय-वस्तु औपपातिक का मुख्य विषय पुनर्जन्म है । उपपात के प्रकरण में अमुक प्रकार के आचरण से अमुक प्रकार का आगामी उपपात होता है, यही विषय चचित है। उपोद्घात प्रकरण में अनेक वर्णक हैं—नगरी वर्णक, चैत्य वर्णक, उद्यान वर्णक, राज वर्णक आदि-आदि । इन वर्णकों से प्रस्तुत सूत्र वर्णक सूत्र बन गया । इन्हीं वर्णकों के कारण अनेक समर्पणों में इसका उपयोग हुआ है। व्याख्या ग्रंथ औपपातिक का प्रथम व्याख्या ग्रन्थ नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरिकृत वत्ति है। उसके प्रारम्भिक प्रलोक से यह ज्ञात होता है कि अभयदेवसूरि को इस वृत्ति से पूर्व कोई अन्य वृत्ति प्राप्त नहीं थी। उन्होंने अन्य ग्रन्थों का अवलोकन कर इसका निर्माण किया था। स्वयं उन्होंने लिखा है श्रीबद्ध मानमानम्य, प्रायोऽन्यग्रन्थवीक्षिता । औपपातिकशास्त्रस्य, व्याख्या काचिद्विधीयते ।। वृत्तिकार ने कुछ स्थलों पर पूर्वज आचार्यों के अभिमतों का उल्लेख भी किया है१. स्नानाद्वा पाण्डुरीभून गात्रा इति वृद्धा: [वृत्ति, पृ० १७१] । २. चर्णिकारस्त्वाह | वृत्ति १०२२४॥ ३. अस्य च वृद्धोक्तस्त्राधिकृतगाथाविवरणस्यार्थं भावार्थः । वृत्ति, पृ० २२५] १. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, शान्तिचन्द्रीया वृत्ति, पत्र १,२ । २. नन्दी, सूत्र ७६ । Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह वृत्ति न बहुत विस्तृत है और न अति संक्षिप्त । इसके मध्यम आकार में विवेचनीय स्थल अधिकांशतया व्याख्यात हैं।' प्रस्तुत सूत्र में वाचनान्तरों की बहुलता है। वतिकार ने प्रथम सूत्र की व्याख्या में लिखा है.इस सूत्र में बहुत वाचनाभेद है। जो वृद्धिगम्य होगा उसकी मैं व्याख्या करुंगा।' सम्भवतः इतने वाचनान्तर किसी अन्य सूत्र में प्राप्त नहीं हैं। यदि वृत्तिकार ने इनका संकलन नही किया होता तो ये लुप्त हो जाते। __वृत्ति के अन्त में त्रिश्लोकी प्रशस्ति है : उसमें वृत्तिकार ने अपने गुरु श्री जिनेश्वरसूरि, चन्द्रकुल तथा रचनास्थल--अहिलपाटकनगर और वृत्ति के संशोधक द्रोणाचार्य का उल्लेख किया है चन्द्रकुल-विपुल-भूतल-गुगप्रवर-वर्धमानकल्पतरोः । कुसुमोपमस्य सूरेः, गुणसौरभ-भरित-भवनस्य ॥११॥ निस्सम्बन्धविहारस्य सर्वदा श्रीजिनेश्वराह्वस्य । शिष्येणाभयदेवाख्यसूरिणेयं कृता वृत्तिः।।२।। अणहिलपाटकनगरे श्रीमद्रोणाख्यसूरिमुख्येन । पण्डितगुणेन गुणवत्प्रियेण संशोधिता चेयम् ।।३।। इसका दूसरा व्याख्या-ग्रन्थ स्तबक है । यह विक्रम की अठारहवीं शती का है। इसके कर्ता संभवतः धर्मसी मुनि हैं। २. रायपसेणियं नाम बोध प्रस्तुत सूत्र का नाम रायपसेणियं' है। पं० बेचरदास दोशी ने प्रस्तुत सूत्र का नाम 'रायपसेणइयं' रखा है। उन्होंने सिद्धसेनगणी द्वारा उल्लिखित 'राजप्रसेनकीय' और मुनि चन्द्रसूरि द्वारा उल्लिखित 'राजप्रसेनजित' को इसका आधार माना है। प्रस्तुत सुत्र का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख नंदी सूत्र में मिलता है। वहां इसका नाम 'रायपसेणिय' है। नंदी की चणि और उसकी हरिभद्रसूरि तथा आचार्य मलयगिरि कृत वृत्तियों में इसकी व्याख्या नहीं है । आचार्य मलयगिरि ने प्रस्तुत सूत्र के विवरण में 'राजप्रश्नीय' नाम का उल्लेख किया है। राजा प्रदेशी ने केशीस्वामी से प्रश्न पूछे थे। प्रस्तुत सूत्र में उनका वर्णन है । अतः इसका नाम 'राजप्रश्नीय' है। १. औपपातिक, वृत्ति, पृ० २ : इह च बहवो वाचनाभेदा दृश्यन्ते, तेषु च यमेवावभोरस्यामहे तमेव व्याख्यास्यामः। २. रायपसेण इयं, प्रवेशक, पृ० ६,७ । ३. नंदी, सू० ७७। ४. (क) रायपसेणिय वृत्ति, पृ० १: अथ कस्माद् इदमुपाङ्गं राजप्रश्नीयाभिधानमिति ? उच्यते, इह प्रदेशिनामा राजा भगवतः केशिकुमारश्रमणस्य समीपे यान् जीवविषयान् प्रश्नानकार्षीत, यानि च तस्मै केशिकुमारश्रमणो गणभृत् व्याकरणानि ध्याकृतवान् । (ख) रायपसेणिय वृत्ति, पृ० २ राजप्रश्नेषु भवं राजप्रश्नीयम् । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ विषय- वर्णन की दृष्टि से मलयगिरि की व्याख्या उचित है और उसके आधार पर उनके द्वारा स्वीकृत नाम भी अनुचित प्रतीत नहीं होता, किन्तु शब्दशास्त्रीय दृष्टि से उनके द्वारा स्वीकृत नाम समालोच्य है | पं० बेचरदासजी ने उसकी समालोचना की है। उनका तर्क है- 'प्रश्न शब्द का प्राकृत रूप पण्ह' और 'पसिण' होता है, किन्तु 'पसेण' नहीं होता । उच्चारण शास्त्र की वैज्ञानिक रीति से 'परिण' तक का परिवर्तन ही उचित नहीं लगता है । प्राकृत व्याकरण की दृष्टि से भी 'पण' रूप घटित नहीं होता । इसे आर्ष रूप मान तो फिर शुद्धाशुद्ध प्रयोग की मर्यादा ही टूट जाएगी ।" पण्डितजी का तर्क बलवान् है फिर भी अमीमांस्य नहीं है। हमारी दृष्टि के अनुसार-[१] 'पसेणिय' का मूल रूप 'पसिणिय' [सं० प्रश्नित ] है । इकार का एकार होना उच्चारण शास्त्र की दृष्टि से असंगत नहीं है । यह परिवर्तन अनेक स्थानों में मिलता है । उदाहरण के लिए कुछ शब्द यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं: पिणीणं णिव्वाणं जिन्बुती तिगिच्छियं बिटा f तिकालं पेहुणेणं व्वाणं णेती तेगिच्छियं बेंटा बे [दे० ] [सं० निर्वाणम् ] [सं० निर्वृत्तिः ] [सं० चिकित्सितम् ] [सं०] वृत्तम् ] तेकाल [२] आगम-सूत्रों तथा प्राचीन ग्रन्थों में 'रायपसे जिय' पाठ उपलब्ध है । 'रायपसेणइय' पाठ कहीं भी उपलब्ध नहीं है। नंदी सूत्र में 'रायपसेणिय' नाम मिलता है । इसका उल्लेख पहले किया जा चुका है। पाक्षिक सूत्र में भी 'रायप्पसेणिय' पाठ मिलता है ।' पाक्षिक सूत्र के अवचूरिकार ने भी इसका संस्कृत रूप 'राजप्रतियं' किया है ।' [सं० द्वि] [सं० त्रिकालम् ] [३] प्रसेनजित् का प्राकृत रूप 'पसेणइय' बनता है। स्थानांग में पांचवें कुलकर का नाम 'पसेणइय' है । * अन्यत्र भी अनेक स्थलों में यह मिलता है । प्रस्तुत सूत्र का विषयवस्तु यदि राजा प्रसेनजित् से संबद्ध होता तो इसका नाम 'रायपसेणइयं' होता, किन्तु इसकी विषयवस्तु राजा पएसी से संबद्ध है । इस दृष्टि से भी 'रायपसेणइय' नाम संगत नहीं है। दीघनिकाय में पायासी राजा प्रसेनजित् के सामंत रूप में उल्लिखित है । किन्तु प्रस्तुत सूत्र में राजा प्रसेनजित् का कोई उल्लेख नहीं है । अतः रायपसेणइयं' नाम का कोई आधार प्राप्त नहीं होता । १. रायपसेणइयं, प्रवेशक, पू० ६ २. पाक्षिकसूत्रम् पु० ७६ ३. पाक्षिकसूत्रम्, अथचूरि, पृ० ७७ राशः प्रदेशि नाम्नः प्रश्नानि तान्यधिकृत्य कृतमध्ययनम् - राजप्रश्नियम् । ४. ठाणं, ७७६२ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयवस्तु के आधारपर रायपएसियं' नाम की कल्पना की जा सकती है। किन्तु इसका कोई प्राचीन आधार प्राप्त नहीं है। राजा प्रदेशो के प्रश्न प्रस्तुत सूत्र की रचना के आधार रहे हैं, इसलिए इसका नाम 'रायपसेणिय' ही होना चाहिए। व्याख्या ग्रन्थ प्रस्तुत सूत्र के व्याख्या-ग्रंथ दी हैं.---[१] वृत्ति और [२] स्तबक [टब्बा, बालावबोध ] । बत्ति संस्कृत में लिखित है और स्तबक गुजराती मिश्रित राजस्थानी में । वृत्ति के लेखक सुप्रसिद्ध टीकाकार आचार्य मलयगिरि हैं और स्तबककार हैं पार्श्वचन्द्रगणी [ १६ वी शती और मुनि धर्मसिंह (१८ वीं शती] । स्तबक संक्षिप्त अनुवाद ग्रन्थ है । प्रस्तुत सुत्र के रहस्यों को स्पष्ट करने वाला व्याख्या ग्रन्थ वास्तव में वृत्ति ही है । वृत्तिकार ने सूत्र के सब विषयों को स्पष्ट नहीं किया है, फिर भी उन्होंने अनेक स्थलों में अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएं दी हैं। वत्तिकार को वृत्ति-निर्माण में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके सामने सबसे बड़ी कठिनाई पाठ-भेद की थी। इसका उन्होंने स्थान-स्थान पर उल्लेख किया है। वर्तमान कठिनाइयों के आधार पर वृत्ति दो भागों में विभक्त हो गई । पूर्वभाग में वृतिकार ने सुगमपदों की पोशाख्या की है। उत्तरभाग में केवल विषमपदों की व्याख्या की है। अतएव पूर्वभाग की व्याख्या विस्तृत और उत्तरभाग की संक्षिप्त है । पूर्वभाग को विस्तृत व्याख्या के उन्होंने दो हेतु बतलाए हैं--- १. विषय की नवीनता २. पाठ-भेद की प्रचुरता उत्तरभाग की संक्षिप्त व्याख्या के भी तीन हेतु बतलाए हैं१. पाठ की सुगमता २. पूर्व व्याख्यातपदों की पुनरावृत्ति ३. पाठ-भेद की अल्पता। वत्तिकार ने लौकिक विषयों को लौकिक कला के निष्णात व्यक्तियों से जानने का अनुरोध किया है। राजप्रश्नीय और जीवाभिगम में अनेक स्थलों पर प्रकरण की समानता है। दोनों के व्याख्याकार आचार्य मलयगिरि हैं । इसलिए उनके समप्रकरणों की वृत्ति में भी प्रचुर समानता है। बत्तिकार को जीवाभिगम की मूल टीका प्राप्त थी । उसका वृत्तिकार ने प्रस्तुत वृत्ति में स्थान-स्थान १. रायपसेणिय वृत्ति, पृ० २०४, २४१, २५६ २. रायपसेणिय वृत्ति, पृ० २३६ : इह प्राक्तनो ग्रन्थः प्रायोऽपूर्वः भूयानपि च पुस्तकेषु वाचनाभेदस्ततो माऽभूत् शिष्याणां सम्मोह इति क्वापि सुगमोऽपि यथावस्थितवाचनामप्रदर्शनार्थ लिखित, इत ऊध्वं । प्रायः सुगमः प्राग्व्याख्यातस्वरूपश्च न च वाचना-भेदोऽप्यतिबादर इति स्वयं परिभावनोयः, विषमपदण्याख्या तु विधास्यते इति । ३. वही, पृ० १४५ : एते नर्तनविषयः अभिनयविधयश्च नाट्यकुशलेम्यो वेदितव्यः। Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ पर उल्लेख किया है ।' एक स्थान पर जीवाभिगम चूर्णि का भी उल्लेख किया है । वृत्ति का ग्रन्थ परिमाण तीन हजार सात सौ श्लोक है:-- प्रत्यक्षरगणनातो ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । सप्तत्रिंशच्छतान्यत्र श्लोकानां सर्वसंख्यया ।। १. (क) रायपसेणियवृत्ति पृ० १०० आह च जीवाभिगममूलीका कृत्-विजयदृष्यं वस्त्रविशेषः इति । (ख) वही, पृ० १५८ आह च जीवाभिगममूलटीकाकार : अगंलाप्रासादा यत्रार्गला नियम्यन्ते इति । जीवाभिगम मूलटीकाकारेण आवर्तनपीठिका यत्रेन्द्रकोलको भवति इति । (ग) वही, पृ० १५६ आह च जीवाभिगममूलटीका कृत् कूटो माडभागः उच्छयः शिखरम् इति । आह च--- जीवाभिगममूलटीकाकृत् - श्रंकमयाः पक्षास्तदेकदेशभूता एवं पक्ष बाहवोऽपि ब्रष्टव्या इति । (घ) वही, पृ० १६० उक्तं च जीवाभिगममूलटीकाकारेण ओहाडणी हारग्रहणं ? महत् क्षुल्लकं च पुंछनी इति । (च) वही, पृ० १६१ आह च जीवाभिगममूलटीकाकृत् - नैषेषिकी निषीदनस्थानम् इति । (छ) वही, पृ० १६८ आह च जीवाभिगममूलटीकारः प्रकण्ठौ पोठविशेषी इति । (ज) वही, पृ० १६६ उक्तं च जीवाभिगममूलटीकायाम् -- प्रासादावतंसको प्रासादविशेषौ इति । (झ) वही, पृ० १७६ उक्तं च जीवाभिगममूलटीकायाम् – मनोगुलिका नाम पीठिका" इति । (ट) वही, पृ० १७७ उक्तं च जीवाभिगमसूलटीकाकारेण हयकण्ठी- हयकण्ठप्रमाणो रत्नविशेषों एवं सर्वेऽपि कण्ठा वाच्या इति । (ठ) वही, पृ० १८० उक्तं च जीवाभिगममूलटीकायाम् तैलसमुद्गको सुगन्धितैलाघारी ! (ख) वही, पृ० १८९ जीवाभिगममूलटीकायामपि ४६ – “उष्पित्यं वासयुक्तम्" इति । (ख) वही, पृ० १९५ दगमण्डपाः स्फाटिका मण्डप इति । (त) वही, पृ० २२६ जीवाभिगममूलटीकाकारः -- "विब्बोय णा - उपधानकान्युच्यन्ते" इति । उक्तं च जीवाभिगममूलटीकायाम् Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति के प्रारंभ में वृत्तिकार ने भगवान् महावीर को नमस्कार किया है और गुरु के आदेश से राजप्रश्नीय सूत्र के विवरण की सूचना दी है:... प्रणमत-बीरजिनेश्वरचरणयुगं परमपाटलच्छायम् । अधरीकृतमतवासवमुकुटस्थितरलरुचिचक्रम् ॥ राजप्रश्नीयमहं, विवृणोमि यथाऽगमं गुरुनियोगात् । तत्र च शक्तिमशक्ति, गुरवो जानन्ति का चिन्ता !|१|| वृत्ति की परिसमाप्ति में वृत्तिकार ने गुरु को विजयकामना और पाठक की ज्ञानकामना की है-- अधरीकृतचिन्तामणि-कल्पलता-कामधेनुमाहात्म्याः । विजयन्तां गुरुपादाः विमलीकृतशिष्यमतिविभवाः । राजप्रश्नीयमिदं गम्भीरार्थ विवृण्वता कुशलं । यदवापि मलयगिरिणा साधुजनस्तेन भवतु कृती। ३. जोवाजीवाभिगमे नामबोध प्रस्तुत आगम का नाम जीवाजीवाभिगमे है। इसमें जीव और अजीव इन दो मुलभुत तत्त्वों का प्रतिपादन है। इसलिए इसका नाम जीवाजीवाभिममे रखा गया है। इसमें नो प्रतिपत्तियां [प्रकरण] हैं। इनमें जीवों के संख्यापरक वर्गीकरण किए गए हैं। 'संसारीजीव के दो प्रकार...स और स्थावर। संसारीजीव के तीन प्रकार ---स्त्री, पुरुष और नपुंसक। संसारीजीव के चार प्रकार ने रयिक, तिर्यञ्च, मनूष्य और देव । संसारीजीव के पांच प्रकार ---एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय. त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय । संसारीजीव के छह प्रकार---पृथ्वीकायिक, अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक वनस्पति कायिक और सकायिक। संसारीजीव के सात प्रकार--नैरयिक, तिर्यञ्च, तिर्यञ्चणी, मनुष्य, मनुष्यणी, देव और देवी। संसारीजीव के आठ प्रकार-प्रथम समय नैरयिक, अप्रथम समय नै रयिक, प्रथम समय तिर्यञ्च, अप्रथम समय तिर्यञ्च । प्रथम समय मनुष्य, अप्रथम समय मनुष्य प्रथम समय देव, अप्रथम समय देव । संसारीजीव के नौ प्रकार -पृथ्वी काधिक, अपकाधिक, तेजस्कायिक वाधकायिक, वनस्पति कायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय । ९. संसारीजोव के दस प्रकार---प्रथम समय एकेन्द्रिय, अप्रथम समय एकेन्द्रिय प्रथम समय द्वीन्द्रिय, अप्रथम समय द्रीन्द्रिय । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देव प्रथम समय त्रीन्द्रिय अप्रथम समय त्रीन्द्रिय प्रथम समय चतुरिन्द्रिय, अप्रथम समय चतुरिन्द्रिय प्रथम समय पञ्चेन्द्रिय, अप्रथम समय पञ्चेन्द्रिय । नौवीं प्रतिपत्ति के आठवें सूत्र से अन्त तक सर्व जीवाभिगम का निरुपण किया गया है। वह वर्गीकरण भिन्न दृष्टि से किया गया है, उदाहरणस्वरूप – जीव के दो प्रकार सिद्ध और असिद्ध । जीव के तीन प्रकार सम्यकदृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सभ्यमिध्यादृष्टि । प्रस्तुत आगम में अवान्तर विषय विपुल मात्रा में उपलब्ध है। इसमें भारतीय समाज और जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है । स्थापत्य कला की दृष्टि से पद्मव रवेदिका और विजयद्वार का वर्णन बहुत महत्त्वपूर्ण है ! प्रस्तुत आगम मे आदेशों का संकलन मिलता है। एक विषय में स्थविरों के अनेक मत थे । मत के लिए आदेश शब्द का प्रयोग किया गया है । प्रस्तुत आगम उत्तरवर्ती ग्रन्थ है । इसलिए इसमें स्थविरों के अनेक मतों का संकलन मिलता है । वृत्तिकार ने आदेश का अर्थ प्रकार किया है । " तात्पर्यार्थ में अनेक मतों का संकलन भी सिद्ध होता है । जीवा० २ /२० में चार आदेशों का संकलन है । २/४८ में पांच आदेश उपलब्ध हैं । वृत्तिकार ने लिखा है कि पांच आदेशों में कौन सा आदेश समीचीन है, इसका निर्णय अतिशय ज्ञानी ही कर सकते हैं । सूत्रकार स्थविरों के समय में दे अतिशयज्ञानी उपलब्ध नहीं थे इसलिए सूत्रकार ने इस विषय में कोई निर्णय नहीं किया, केवल उपलब्ध आदेशों का संकलन कर दिया । ' रचनाकार प्रस्तुत आगम की रचना स्थविरों ने की है। इसका आगम के प्रारंभ में स्पष्ट निर्देश है । व्याख्या ग्रन्थ प्रस्तुत आगम की दो व्याख्याएं उपलब्ध हैं एक आचार्य हरिभद्रकृत और दूसरी आचार्य मलयगिरिकृत | आचार्य हरिभद्रकृत टीका संक्षिप्त है, मलयगिरिकृत टीका बहुत विस्तृत है । मलयगिरि ने अपनी वृत्ति में 'इतिवृद्धाः' तथा मूलटीका, मूलटीकाकार और चूर्णि का अनेक स्थानों पर उल्लेख किया है । १. जीवजीवाभिगम वृ० प० ५३ "आदेश शब्द इह प्रकारवाची" आबेसोत्ति पगारो "इतिवचनात्, एकेन प्रकारेण, एक प्रकारमधिकृत्येतिभावार्थ: " २. वही वृ० प० ५६ "अमीषां च पञ्चानामादेशानामन्यतमादेशसमीचीनतानिर्णयोऽतिशय ज्ञानिभिः सर्वोत्कृष्ट श्रुतलब्धि-संपन्नैर्वा कर्तुं शक्यते, ते च सूत्रकृतप्रतिपत्तिकाले नासीरन्निति सूत्रकृम्न निर्णयं कृतवानिति" । ३. जीवाजीवाभिगमे १/१ - - ' इह खलु जिणमयं जिणाणु मयं जिणाणुलोमं जिणप्पणीतं जिनपरूवियं जिणक्खायं जिणाणु चिष्णं जिणपण्णत्तं जिनदेसियं जिणपसत्यं अणुवीर तं सद्दहमाणा तं परियमाणा तं रोएमाणा थेरा भगवन्तो जीवाजीवाभिगमे णामज्झयणं पण्णवसु" । Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'इतिवृद्धाः इयं च व्याख्या मूलटीकानुसारेण कृता।' "उक्तञ्च मूलटीकायाम्"।' "आह च मूलटीकाकृत्" "ताइच मुलटीकाकृता वैविक्त्येन न व्याख्याता इति संप्रदायादवसेयाः"५ "मूलटीकाकारणाव्याख्यानात्" "माह च मूलटीकाकारः".-"उक्तं चुणी" "आह च मूलटीकाकारः"----"उक्तञ्च मूलटीकाकारेण" ।' उक्तं मूलटीकायाम् "आह च मूलटीकाकार: "उक्तं च मूलटीकायाम्"" "आह च मूलटीकाकारः “आह च मुलटीकाकारः"" "उक्तं च मूलटीकायां" "उक्तं च मूलटीकाकारेण"१५ "आह च मूलटीकाकार:"-"णिकास्त्वेवमाह"१६ "आह च मूलटीकाकारः"-"आह च चूर्णिकृत्"" "सक्तं च मूलटीकायां"--"जीवाभिगम मूलटोकायां"१८ "आह च मूलटीकाकारोपि"-"आह च चूणिकृत्"१९ "तथा चाह मूलटीकाकारः३० "आह च मूलचूर्णिकृत्"२१ "मूलटीकाकारोप्याह"चूर्णिकारोप्याह"२२ "आह चूर्णिकृत्"२१ "तथा चाह मूलटीकाकारः"१९ "आह च चूणिकृत्"२५ “उक्तं चूणौ "आह च मूलटीकाकार:"१७ “आह चूणिकृत् आह च टीकाकार:२८ "भूलटीकाकारेणापि"२९ 'आह च मूलटीकाकार" १. वृ० प० २७ ६. वृ० ५० १४१ १७. ३०प० २१०।। २. वृ० प० ६४ १०, ११. वृ० ५० १४२ १८. वृ०प० २१४ ३. वृ० १० १०६ १२.३० ५० २७७ १६.३०प० ३२१ ४. वृ० ५० १२२ १३. वृ०प०१४ २०. ० ० ३५४ ५, ६. वृ० ५० १३६ १४. वृ०प० २०४ २१. ३०५० ३६६ ७. वृ० प०१३७ १५. वृ०५० २०५ २२. व० ५० ३७० ८. वृ० ५० १८० १६. वृ० ५० २०९ २३. ५० ५० ३८४ २४. वृ०५०४३८ २५. ३० प० ४४१ २६. वृ० प० ४४२ २७.० ५० ४४४ २८.३०प० ४५० २६. ५० ५० ४५२ ३०.३०प० ४५७ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्य-संपूर्ति इसके संपादन का बहुत कुछ श्रेय युवाचार्य महाप्रज्ञ को है, क्योंकि इस कार्य में अनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य संपन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता । इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है । सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तरहस्य पकडने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है । विनयशीलता, श्रमपरायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण-भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्षमानता ही पाई है। इनकी कार्यः क्षमता और कर्तव्यपरता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। प्रस्तुत आगमों के पाठ संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा। उन सबको मैं आशीर्वाद देता है कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो। अपने शिष्य-साधु-साध्वियों के सहयोग से पाठ संशोधन का बृहत् कार्य सम्यग् रूप से सम्पन्न हो सका है, इसका मुझे परम हर्ष है । आचार्य तुलसी अक्षय तृतीय, १ मई १९८७ अध्यात्म साधना केन्द्र, महरोली नई दिल्ली Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The present volume consists of three agamas-Oväiyam, Rāyapaseṇiyam and Jīvājīvābhigame. EDITORIAL OVAIYAM The text of Aupapātika sutra has been constituted on the basis of the manuscripts and the vrati. The references to different ancient versions in this sūtra are in abundance. It is a repository of descriptions. That is why we find at various places the instruction-jaha ovaväte (as in Ovaváia), referring to similar describers of the other agamas Neither the commentaries of those agamas nor their authentic texts of the latter contain the describers accepted in the Aupopatika. Those describers, however, are available in other versions. It poses a problem for those who study the describers. The text of this Agama must be determined not only on the basis of adarsas and vriti but also on the basis of the describers available in the agamic commentaries and the texts of the other agamas. But it is difficult to do so without the compilation of the totality of describers. Some of the describers are as follows: Bhagavai : 7/175 evam jaha ovaväe jäva 7/176 evam jahä uvavâie, evath jaha uvavāie 7/196 jaha kupio java payacchitte 9/157: "jaha ovaväie java egabhimuhe" "evam jaha ovaväje jäva tivihäe" 9/158 "jaha ovaväie java satthavaha" "jaha ovavšie java khattiyakupḍaggǎme" 9/162 ovavâie parisă vappao taha bhāniyavvath 9/204: "jaha ovaväie java gaganatalamanulihant!" "evam jahā ovavšie taheva bhāniyavvam" 9/204 jaha ovaväie java mahāpurisa 9/208 jahi ovaväje java abhinandată 9/209 evath jaha ovaväie kupio java piggacchai 11/59 jaha ovavāie 11/61 jaha ovaväie küpiyassa 11/85 jaha ovaväie java gahanaya Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11/88 : 198 : evam jaheva ovavāie taheva 11/138 : jabā ovavě je taheva allapasālā taheva majjapaghare 11/154 : evam jaha dadhapainpassa 11/156: evam jahā dachapainge 11/159 : jahā ovavāie 11/169 : jahi ammado jāva bambhaloe 12/32 : evam jahā kūnio taheva savvam 13/107 : jahā kupio ovavāie jāva pajjuvāsai 14/107 : evan jahă ovavăje jāva årāhagā 14/110 : evam jahā ovavāje ammadassa vattavvayā 15/186 : evam jahä ovavă ie dadhappaippavattavvaya 15/189 : evam jahă ovavāie jāva savvadukkhāpamantam 25/569 : jahā ovavãie jāva suddhesanie 25/570 : jaha ovavāie jāva lühāhāre 25571 : jahň ovavaie jāva savvagaya Bhagavai Viti: patra 7 : aupapātikāt savyakhyāno'tra drsyah , 11:aupapātikavadvācyā ,,317 : “eva jahā uvayāie" tti tatra cedam sūtramevam... 318 : "evam jahā uvaväje jāva" ityanenedam sücitam......... 319 : "ja há ceva uvayāie" tti tatra caivamidam sūtram....... 462 : jahā uva vāie" tti tatra cedam sūtramevan leśatab......... 463 : "jahä uvavaie" tti tadeva leśato darsyate......... 463 : "evam jahā uvaväje" tatra caitadevam sūtram......... 463 : "jahā uvavāie" tti cedamevami sūtram......... 463 : "jabā uvavāie parisävannao" tti yathā kaunikasyaupapātike 476 : "jahā uvaväie" tti evam caitattatra...... 479 : "jahā uvavaje" iti anena yatsūcitar tadidam...... 481 : jahā uvavāie" ttı karanādidam děsyam...... „ 482: "evan jahā uvavāie" rti anena yatsūcitar tadidam...... 519: "jahā uvavaie" ityetasmädatideśadidam drśyam...... ,, 520 : "evam jaha uvavāie" iiyetatkaraņādidam drśyam...... 521 : "evam jaheve" tyādi "evam", anantara daršitenābhilāpena yathau pa pājike siddhänadhikftya sarihananādyuktam tathaivehāpi...... „521 : vākyapaddhatiraupapātikaprasiddha dhyetā...... „ 542 : "jahā uvavāie taheva altapasālā taheva majjanaghare" iti yathau. papātike ţţaņasālă vyatikaro...... ,,545 : "jabā dadhapainne" tri yathaupapātike drohapratijño'dhītastathā' yar vaktavyah taccaivam...... ,,545 • "evam jahā dad hapainno" ityanena yatsūcitam tadevam drśyam...... ,,548 : "jahā uvavāie" ityanena yatsücitam „ 549 : jaha ammado" iti yathaupapătike ammado'dhitastatha'yamiha yacyah Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ q patra 563 : "evam jahā uvayāle jāva årāhaga" tti iha yavatkaraņādidamarthato tra 563 : "exana arsyam.. diná yatsūc ,, 563: "evam jabe" tyādinā yatsūcitam...... „696 : "evam jahä uvavõie” ityādi bhāvitamevāmmadaparivrăjakakatha naka iti ,,924 : "ja hā uvaväie" tti anenedarí súcitam...... ,,924 : "jahă uvavaje" tti anenedam sūcitam ..... , 924 : "jaha uvavaje" tti anenedam sūcitam...... Jñátävytti „ 2: "varņakagrantho’trāvasare vācyab...... Vivāgasuyam 1/1/70 : jahā dadhapainne 2/1/36 : jaha dadhapainne 2/10/1 : jaha dadhapainde Rayapaseniyam sätra 3,4 : asoyavarapäyave pudbavisilapattae vattavvayā ovaväiyagamepam neya 688 : egadisāe jahå uvavõie jāva appegatiyā Rāyapaseniya vrut page 3 : sampratyasyā nagaryā varpakamāha-(Here Aupapătika has not been mentioned) ,, 8: yāvacchabdakararāt "saddje kittie nde sacchatte" ityädyaupapätika granthaprasiddhavarộnakaparigrahan ,, 10 : aśokayarapâdapasya pệthivišitāpatakasya ca vaktavyatā aupapātika granthānusāreņa jõeya , 27 : yāvacchabdakaraņādrājavarnako devīvarpakah samavasaranam caupapātikānusāreņa tāvadvaktavyaṁ yāvatsamaya sarapan samāp tam „30 : yāvacchabaakaraņāt "ājkare titthagare" ityādikaḥ samastopi aupapātikagranthaprasiddho bhagavadvarnako vācyaḥ, sa cātiga riyāniti na likhyate, kevalamaupapātikagranthādavaseyaḥ » 39 : babave uggă bhogā ityādyaupapātikagranthoktam sarvamavasatay yam yavat samagrāpi rājaprabhștikā parişatparyupāsinä avatişthate „116 : "evam jahā uvayāie tahā bhāņiyavvan" iti evaṁ yathā aupapâtike granthe tathā vaktavyam. tacca evam ,,288 : ityadirüpå dharmakıthāaupapätikagranthāda vaseyä Jambuddivapannatti 2165: evam jāva niggacchai jahi ovavâie jāva āulabolabahulam 2/83 : evam jahâ ovavāje sacceva añagāravannao jāva uddhañjāņu 3/178 : evam ovayāiyagamepan jāva tassa Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jambudditapannatti Viti : Sā. Vr. patra 14 : "vannao" tti rddhastimit asamțddhā ityādi aupapātikopāngaprasiddhaḥ samasto’pi varrako drastavyaḥ cirātītamityādirvarņakastatpariksepi vanakhandavarna kasahitaaupapātikato'vaseyah "vannao" tti atra räjño "mahayāhimavantamahante" tyādikorājñāśca “sukumā)apāņīpāye" tyādikovarnakaḥ prathamopangaprasiddho'bhidhātavyah yathā ca sa mavasaraṇavarna kan tathaupapātikagranthādavaseyam "tae nam mihilāe naya. ie singhādage” tyadikan “jāva' pañjaliudā pajjuvāsanti' ti paryant amaupapātikagatamavagantavyam... evo pārgādavagantavyamiti „,143 : "yathaupapātike" evaṁ yathā prathamopāüge... nipātah, aupa pātikagamaścāyam ,,154 : yathaupapätike sarvo nagäravarnakastathä'träpi vacyah 155 : kiyadyāvadityāha-ürdhvan jānuni yeşām te urdhvajānavaḥ..... atra yāvatpadasaṁgrāhyah "appegaiyā domāsapariāyā” ityādikaḥ aupa pātikagrantho vistarabhayānna likhita ityavaseyam ..264 : evamuktakramera aupapātikagamena prathamopāngagatapāthena tävad vaktavyam yāyattasya räjñaḥ purato mahāśvāḥ „, 325 : výkşavarnanam prathamopāngato'vaseyam Surapannatti Vri patra 2 : "yāvacchabdenaupapātikagranthaprasipāditah samasto'pí varnakah äinnajanasamühā” ityadiko drasta vyah ., 2: tasyāpi caityasya varnako vaktavyah sa caupapätikagranthädava seyah 2: tasya rājñaḥ tasyāśca devyā aupapātikagranthokto var ako'bhidh.. tavyah „ 2: samavasaraṇavarnanam ca bhagavata aupapātikagranthādavaseyam ,, 3: "bahave uggā bhogā” ityādya upapātikagranthovaktam „ 3:atra yāvacchabdadidamaupapātikagranthoktam drastavyam Candrapannatri (Ms. Vrtti) patra 5 : aupapātikagranthaprasiddhaḥ samasto'pi varnako drastavyah sa ca granthagauravabhayānna likhyate kevalamitata evaupapātikādava seyaḥ „ 5: aupapātikagranthokto veditavyaḥ „ 5: tasya rājñastasyāśca devyā aupapātikagranthokto var ako'bhidhä tavyah . 5: samavasara navarnanam ca bhagavata aupapātikagranthädavaseyam ,, 6: "bahave uggá bhoga" iyādyaupapātikagranthoktam sarvamava seyam Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Uvanga 1/141 : jaha dadhapaigno 2/13 : jahā dadhapainio Dasão 10/2 : rāyavannao evam jahā ovavātie jāva cellane10/14-19 : sakorentamalladāmeṇam chatteņam dharijjamāņepan uvaväiyaga meņam neyavvaṁ jāva pajjuvāsai...... Dasā. (Ms. Vrtti) Vịtti patra Ii : aupapātikagranthapratipăditah samasto pi varrako vācyah sa ceha granthagauravabhayānna likhyate kevalan tata evaupapa ti kādavaseyah. Dasã, 54 D. 515, Ms. Vștti patra 11 : caityavarpako bhasitavyah sopyaupapātikagranthādavaseyab D. 5/6, Ms. Vsttipatra 11 : aupapätikoktam pathasiddham sarvamavaseyam...... D. 10/2, Ms. Vsttipatra 25 : "tasya vardako yathå aupapātikanămnigranthe'bhihitastathā” D. 10/2, Ms. Vsttipatra 25 : vistaravyākhyā tüpapatikānusāreņa vācyä...... D. 10/3, Ms. Vsttipatra 25 : ādikaraḥ yävatkaranät...... samasto aupapātikagranthaprasiddho .. *kevala maupapātikagranthādavaseyah... D. 10/6, Ms. Vğitipatra 26 : jāvatti yāvatkaraņāt janavūhei vã......ugg bhogā......ityādyaupa pātikagranthoktam .... D: 10/14-19, Ms. Vịttipatra 28 : uvavătiyagameniti aupapatikagranthoktakauņikavandanagamana prakāreņāyamapi nirgatah D. 10/21, Ms. Yrttipatra 29 : ihāvasare dharmmakathā aupapātikoktā bhanitavyā Sutras of Ovāiyam in other agamas : Oväiyam Bhagavat Rāya. Jambu. Stra 32 25/559-563 25/564-568 25/576-579 25/582-598 25/600-612 25/613-618 9/204 Sū. 49-55 3/178 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Y ► 65 - 3/180 » 66 3/179 The Describer süfras The Describer sútras take several concise forms in the Aupapatika. These are : jāva : udae jāva jhime (117) evaṁ jāva : apačivirayā evam jāva (161) sesam tam ceva : paralogassa ärāhagā sesam tam ceva (157) evam : evam uvajshāyānaño therāņam (16) abhilâvetan : evam eenam abbilăveņam (73) evam tam ceva : sagadam vă evan tam ceva bhāniyavvam jāva Dappattha gangāmattiyae (123) bhāniyayvam : evam ceva pasatthar bhäņiyavvam (40) kandamanto eesis vannao bhâriyavvo jāva siviya (10). ņeyavvam : tam ceva pasattham peyavvan. evam ceva vaivipao vi eehim paehim ceva peyavvo. (40) Variant words and forms The variant words and forms as approved by Grammar and holy usage in Agamas are important from the linguistic standpoint. Hence they have been distinguished from the variant readings and are given below : Sutra 1 kukkuda kuńkada (kha) musundhi musandhi (ka, kha) varka ovakka (ga) bhattao hatta (ka) kila khila (ka, kha) Oturagao oturanga (ka) darisanijjā darisanlyā (ka, kha) kālágaru kālāguru (ka) kahaga kahaka (ka, kha, ga) onikurambabhue niurambabhūe (kha) darisanijjā darasanijja (ka, kha) gulaiya guluiya (ka) abbhintara abbhantara (ka) bāhira bahira nivehim nitehim haladhara "halahara (vr) 'haņue "haņue (ka) bhuyagisara bhuyaisarao (ka, kha, ga: akaranduyao akaranduyao (ka, kha) Occharuo otharu (ga) (ka) (ve) Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sutra (ka, kha) jaya (ga) (ga) (vs) (ka) (ga) (ka, kha) (ga) (ka, kha) (ga) (kha) (ga) (ka) (ga) (ga) (ka, ga) (ga) gupphe gophe ovidhenam pidhe pam jada āyāyāyā ād&vāya paravayā paravādā omoyarıyā avamoyariyā barasabhatte (bārasamabhatte bärasamebbatte cauddasa s coddasama coddasame soiasao isolasama solasame caunāsie caummāsie bhoitti bhoitti davyābhio davvabhio entassa intassa pautte opajutte usappao osanpa Průt °ruyf darisanāvarapijja daṁsaņāvaraniya vicio vitio toyapatthan 'toyavattham ovanniya pa niya vihassati vahassati tiridadhārt kiridadhāri mahapphalam mahāphalam gayagaya gatagatā paccoruhanti paccorubhanti pådiyakkapādiyakkājí pādiekkapädiekkäim paoya-latthim patoda-latihim payotta-laţthim abbhimgehim abbaṁgehjm misimisanta Omismisanta osusiliţthao susalitha "vsiyange ovijiyange kūvaggana kütuyaggānä oturagānam Oturanganam sakhiňkhinio sakinkinio muinga mudaöga bhattittam bhartattam koñcao kuicao (kha) (ga) (ka) (ga) (kha) (ka, kha, ga) (ka) (ga) (kha) (ka) (ga) (ka) (ga) (ka, ga) (ka) (ga) (ka) (ka) (ga) (ka) (ga, vr) Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 82 82 >> 86 » 90 ,, 92 23 37 2, 92 ., 95 ,, 97 ,, 105 » 117 23 158 159 33 "; 164 " 170 vaira pighasa veyapijjam se je se jão "uriyão kukkuiyā "ahavvapa alău carimehimh "veniţiya bhūj anagārā tellä ,, 175 ,, 195 Description of the Manuscripts vaya ga. 1, pailthiya vajja nikasa vedanjjjath sejje sejjão *puriyão kokuiya athavvana läu caramehim *vantiy bhüre anakārā tela vai° pattiṭṭhiya (kha) (kha) (ka, ga) (ka, kha) () This was obtained from Gadhaiya Library, Sardarshahar, through Shri Madanchandji Gauthi. It contains 40 leaves and 80 pages. Each leaf is 11-3/4" long and 4-1/2" wide. There are 4 to 13 lines in each leaf, each line containing 40 to 46 letters. Commentary is inscribed in very small letters in the margin on all sides. The manuscript is beautiful, artistic and appears to have been used and read. The following eulogy is given at the end of the copy (ka, kha) (ka, ga) (kha, ga) (ka, kha, ga) (ga) (ka) (kha) (ka, kha ga) (ka, ga) (ka) (kha) (ka, kha, ga) (ka, kha) "iti i uvavālsūtram samaptam. grantha 1167. cha. Samvat 1623 varse phalguna sudi 3 dine. Agra nagare. pâtisäha tri Akbara Jalaludina rajya pravartamane. śri vihat kharataragacchalankara śrī pūjyarāja śrī 6 Jinasinghasûrivijayarajye pandita śrī Labdhivardhanamunibhirupapätikä näma upangaṁ likhāpitam. cha. vācyamanam ciraṁ nandyāt. Subham bhavatu lekhakavacakayoḥ, śr." () This manuscript was also obtained through Shri Madanchandji Gauthi from Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 59 leaves and 118 pages. Each page is 10-1/4" long and 4-1/2" wide. There are 7 to 9 lines in each leaf and each line contains 40 to 45 letters. The upper and lower margins of the page contain the translation of the text in Rajasthani language. The following eulogy by the scribe appears at the end of the manuscript "śrī uvai upangam padhamam samattam. granthägram 1225. cha. śrī. Samvat 1665 varse pausa mase śuklapakse saptam tithau śrī somaväsare. śrl ári vikrama nagare maharajadhiraja mahārāja śri rayasinghj vijayaraje pandita karmasinghena lipīkstā. cha." Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Yε (T) This manuscript was also obtained through Sri Madanchandji Gauthi from Gadhaiya Library, Sardarshahar. Each page contains 26 leaves and 52 pages. Each page is 10-1/2" long and 4-1/2" wide. Each page contains 15 lines with 46 to 48 letters in each line. The manuscript concludes with"uvaiyam samattam, granthagra 1200, Subhamastu cha. fri," but the year is not mentioned therein. Looking at its leaves, letters and illustrations, the copy must be belonging to the 17th century. (T) This manuscript of the vṛtti was obtained through Shri Madanchandji Gauthi from Gadhaiya Library, Sardarshahar. It has 75 leaves and 150 pages. Each leaf contains 13 lines with 55 to 60 letters in cach line. The size of the leaf is 10-1/4"x4-1/4". The manuscript is revised and clear. In the eulogy the following is inscribed-"Subham bhavatu, kalyāṇamastu. lekhakapāthakayośca bhadram bhavatu, cha. samvat 1996 varse Märgashrga sudi 1, bhaume likhitam, cha sri yadrom pustake drstvä, tädṛśum likhitam mayayadi buddhamaluddham vá, mama dogo na diyatell cha, cha. (..) Variant readings based on the Vitti There are no identical readings of different versions in the special manuscript of the vrti and the printed vṛtti. We have taken the manuscript vrti as authoritative. Rayapaseniyam The text of this sütra has been determined on the basis of manuscripts and the Vrtl. Jiväjiväbhigama and Aupapätika-sutras have also been used for determining the texts of the Süryabha and the Drdhapratifña chapters respectively. The commentator has mentioned the abundance of variant readings in different versions at every step. At the time of composing the commentary it posed a serious problem, but in later times it assumed still more serious dimensions. Even then we have revised the text by analysing the available material very minutely. None can claim that the revision of this text is totally flawless but this much can be asserted that we have maintained utmost neutrality and patience in our attempt to perform the task. The construction of the text of this sutra has exacted vast labour, and resulted in the enlargement of the body of the sutra, as also in the intelligibility of the text and the tastefulness of the subject-matter. Variant words and forms The variant words and forms as approved by grammatical rules and holy usage in Agamas are important from the linguistic standpoint, so they have been distinguished from the variant readings and are given below Sutra No. 8 mauda matuḍa (ka) Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ dheyam (ka) na; ukitthae patthe naiya hanta abhivandae ayarisao miuo pāsāie ativa tisovāņa mahalatenam venāņiehim viraciya ovāyānam 75 oņamanti mau °țānam matthae jaenam vijaeņam dheijam ņādio (ka, kha, ga, ca) okitthāe (cha) vatthe (kha, ga) Imaţthe (ca) ņātiya (ka, kha, ga, gha, ca cha) handa (ca) abhivandate (cha) ätansa (gha, ca) mauo (ka, kha, ga) pāsātie (ka, kha ga, gha) atīta (ca) tisomånao (ka, kha, ga, ca) mahalaenam (kha, ga, gha) vemānitehim (ka, kha, ga, gha) viratiya (ka, kha, ga, ca) vãiyāņam (ka, kha, ga, cha) yāyayānam (gha) ton amanti (ka, gha) miu (kvacit) tåņam (ka, ca, cha) matthate (ka, kha, ga, gha) jatenaṁ vijatenam (ka, kha, ga, gha) bahugio (ka, kha, ga, gha) bahugito (ca, cha) (vāra (ka, kha, ga, ca, cha) bāra (gha) okaveluyāto (ka, kha, ga, gha) sankhalão (kvacit) pakanthagā (gha, ca) sāle pahāte patese (ka, kha, ga, gha, ca, cha) savvoutao (ka, kha, ga, gha) vinaddha (gha) titthāna (ka, kha,ga,gha, ca, cha) ādinaga (ka, kha, ga, gha) uddham (ka) 'vetiyā (ka, kha, ga, gha, ca, cha) ophalatesu (ka, kha, ga, gha, ca, cha) 118 124 bahuio 129 dārao 130 135 137 "kavelluyao sarkalão paganthagā sãe pahāe paese 154 159 173 173 185 189 197 197 savyouyao pinaddha tithāņa āīnaga udoham Oveiya phalaesu Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 219 tato pilao 6 687 706 720 aoo 760 tao tago (ka) (cha) 228 binţă benţă (ka kha, ga, cha) bethā (ca) 245 suvirai-rayattäge suirai-raittape (ka, kha, ga, gha, cha) 292 kaducchuyam kaducchayam (ka, kba, ga, gha) 654 cariyāsu caliyāsu (ka, kha, ga) 664 piya (ka, kha, ga) ovinda vandao (gha) yühe pühe (ka, kha, ga) oparjbhäittă paribhägettă (ka, kha, ga, gha, ca, cha) kotthayão kotthão (ka, gha) agilāe aile (ka, ca) 754 ayoo (ka, kha, ga) aya (gha) 755 bhiccă bheccā (gha) kisie kasie (ka,kha, ga,gha, cha) > 771 vāukāyassa vāuyāgassa (ka, kha, ga, gha, ca, cha) » 787 bhikkhuyāṇam bhichuyānam (gha, ca) , 791 oppaogena oppayogena (gha) Description of the Manuscript () This manuscript was obtained from Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 49 leaves and 98 pages. Each leaf is 10-1/2 x 4-1/2”, with 13 lines in each leaf and 50-55 letters in each line. It was scribed in V.S 1671 and the following is its colophon : "namo jiņapam jiyabhayāņam namosuya devayae bhagavale namo pannattie bhagavale namo bhagavao arahao pasassa passe supasse passavanīņabhoe. cha. Räyapasenaiyam samattañ. cha. granthāgram 2079 samarthitamidan sutram. cha. samyat 1671 varse bhādravă sudi 11" This colophon runs still further, but this faint portion is coloured with yellow. (a) They contajn 55 and 61 leaves respectively. (T) Both of them are similar to the manuscript (#). (9) This manuscript belongs to Yati Kana kachandji of Pali (Marwar). Its size is 10' x 41'. It contains 54 leaves and 108 pages, with 13 lines in each page and 46 to 48 letters in each line. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ It was scribed in V.S 1566. The followirg colophon is appended at the end of the manuscript : “cha. subham bhavatu lekhaka-pathakayoḥ śi sanghasya ca. sarvat 1566 varse caitra sudi 2 tithau adyeha srimadanahillapattane Śrī vrhat-kharataragacche śri Vardhamānasūrisantāne śrī jinabhadra sūripattānukramena śri jinahamsasürirajye väcana charyajayākäjaganišişya vä. dharma-vilāsaganivāc anārtham bha. Vastupalabhāryayā liliśravikayā. Putraratna bha, sāliga pumukhaparivära saśríkayä suśreyārtham ca lekhitam śri Räjapraśniyopāngam. (9) This manuscript was obtained from the collection of Punamchand Buddhamal Dudheria of Chhapar (Rajasthan). Each leaf is 12" x 5". There are 42 leaves and 84 pages in this copy, with 15 lines in each page and 48 to 54 letters in each line. Two illustrations are given in the first two pages. The script is beautiful but abounds in mistakes. Approximately it belongs to the sixteenth century. (3) This manuscript also was obtained from the collection of Punamchand Buddhamai Dudheria of Chhapar (Raj.) It contains 41 leaves and 82 pages, with 15 lines in cach page and 57 to 60 letters in each line. The script is ordinarily fair but flawless, It ends with the following colophon--"lipi saṁvat 1665 varse kārtika māse śukla pakşe saptami śukre Babberakapure pandita Labdhikallolaganinā lekhi.” (T) It was obtained from Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. Its size is 101 X4}". It contains 52 leaves and 104 pages, with 17 lines in each page and 65 to 70 letters in each line. This manuscript was scribed in V.S. 1605 and ends with the following colophon : "iti malayagiriviracitā tåjapraśniyopāngavsttikä samarthitā. samāptam iti. pratyakşaragananayā {ranthägrań. cha, cha. pratyakşaragananāto granthamānari viniścitam. saptatrimśatšatányaira. ślokánām sarvasam khyayāḥ, cha, granthāgram sloka 3700, cha. Gri. sarvat 1605 varṣe śrāvana sudi 13, bhaume pattana västavyam, pandita Rudrasuta Jiganātha likhitam. śubham bhavatu. JIVĀJIVĀBHIGAME The text of this sütra has been revised on the basis of manuscripts and its vtti. The vrtti by Malayagiri is based on old adarsa, hence the texts of paim leaf and the vsiti are identical. The sūiras 3218, 457, 578, 826 together with their footnotes may be consulted in this connection. A great variety of readings in the relatively later editions provides ample room for deliberation and research Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The fact regarding the dissimilarity of readings in the manuscripts of Jivājīvābhigama has also been pointed out by Santicandra, the commentator of Jambúdvīpaprajñapti. Upādhyāya Sānticandra has quoted the text about the description of the Kalpavrk$a from Jivājīyābhigama. In describing the fourth Kalpavrkşa he has quoted the reading “Kanaga-nigaruņa' which he explains as 'the heap of gold.'1 In the Vriti of Jivajivabhigama the term 'Kanaganigaranam' has been explained as Kanakasya nigaranam, kanaka-nigaranan, gâlitar, kanakamiti bhavah2. The change in script has led to change in reading. We find the reading "Kūdāgāratha' in some manuscripts. In the printed editions as well as the hand-written copy we find the reading Kúțăgărădyani'. It has not been explained in the Vrtti of Jīvājivābhigama. Of course, it has been explained in the Vruti of "Jumbūdvipaprajñapti"--"Kūjākårena--sikharākstyádhyāni.'' Acarya Malayagiri has bimself mentioned the variant readings of the manuscripts. The verses, which the commentator quotes from other sources, have been inciuded in the original text in comparatively recent manuscripts.5 In the Vriti we find the mention of the commentary on Jambüdvīpa-prajñapti. The commentators Oj Jambūdvipa-prajnapti definitely belong to a period later than that of Malayagiri. Hence it is a matter worthy of investigation whether this mention is an interpolation or whether Malayagiri had really got with him some old cominentary of Jambūdvipa-prajñapti. At some places the vrtti contains a lot of matter worth deliberation. The commentator has explained the term "Siri vacchu as śrivrksa. Looking to the context it should be frivatsa.? 01. 1. Jambūdvipaprajñapti Vrtti. p. 108 : atra cădhikare jiväbhigamasutradarse kvacidadhikapadam api drśyate tattu vsttavatyäkbyátam svayam paryalocyamanamapi na narthapradamiti na likhitam, ten tat sampradayada Vagantayyam, tamantarena samyak päthaśudáherapi kartumaśakyatvaditi. 1. Jambüdvipa Vr. patra 102: kagakanikarah suvarnaraših. 2. Jāvājivābhigama, V. p. 267. 3. Jambüdvipaprajñapti Vr. p. 107: See the footnote of Jiväjivābhigama, 3/594. 4. (a) Ibid. Vr. p. 321 : iba bahudhá sútresu păthabhedah parametāvāneva sarvaträpyartho nárthabhedāntaramitye tadvyakhyanusårena sarvepyanugantavyā na mogghavyamiti. (b) Ibid, Vr. p. 376 : "iha büyän pustakosu văcacäbhedo galitādi ca säträni bahusu pustakesu tato yatha. vasthitaväcanabhedapratipattyartham galitasütroddharaṇārtham caivam sugamanyapi vivriyante. 5. Ibid, Vštti p. 331, 333, 334, 334; 3/820, 830, 834, 837: The footnotes are worth seeing. 6. jīvābhigama, Vitti p. 382 : kvacit simhādīnām varnanam drśyate tad bahuşu pustakesu na drstamityupekşitam, avaš. yam cattadvyākhyāaena prayojadam tarhi Jam ūdvipaprajñapli tikā paribhāvaniyả tatra savistaram tadvyākhyānasya kftatvät. 7. Ibid., vftti p. 271 : "Srivękşeņāåkitan-lāåcaita víkş) yeşim te s-ivfkşalā ichita vakşasah." Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The original commentator and Malayagiri had before them the intricacies of variant readings and different expositions ard in the times of later commentators also such discussions were often held. In this connection, a topic mentioned in the viti is of historical importance. The commentator writes that this sūtra is obscure on account of the peculiarity of aim and purpose. It can he explained only on the basis of the right tradition and solid ground. It is cheer repudiation of the sútra if it is explained carelessly and wbimsically, Due care had been taken that the sütra may not be repudiated or wrongly interpreted. Consequently, attempt was made to preserve the text and its meaning. Even then due to variation in intelligence and scribe's carelessness discrepancies in readings and expositions have taken place. On account of the variant readings we had to take great pajus in arriving at the correct text. The reader can estimate the labour involved by the variant readings and notes thereon appended in the edition. The manuscript marked "ta" is an abridged version of the text, e.g. the awing sūtra 1/41-1&im bhante kim pudam āhārenti apu goyamā putihä no apu. ogā no anogā anantaro pavaram aņuim pi ā bāyarāim pia uddham vi i ādin pi i savisae no avisae äņupuvvim no aņānupuvvim äcchaddi vāghātam pa siva tidisi ska. no vanpato kālā ni gandhato su 2 rasato no phāsaho tesim porä. na vipariņāmettä apuyva vapņa guna ska uppãetta ätasarira khettogadhe poggale savvappanattāe āhāramāhārenti,” Due to the flaw in script the reading like koridisim (ka) has found place in place of kistidisim. We have not accepted the readings of the al manuscript in many places, because they are too much abridged. Variant words and forms Jinakkayam Jinakhāyam Jinakhātam asuvii asuvītiyam (ka, kba) roemāņā rotamāņā (tā) 1/14 sanghayağa sanghatana 1. Ibid., Výtti p. 450 : sūtrāni hyamūoi vicitrābhiprāyataya durtakşyāṇiti samyaksampradayādavasātavyāni, sampradayaśca yathoktasvarūpa iti na kāçidanupapattis, na ca sūtrabhiprāyamajñātvā anupapattirudbhavaniya, mahastanäyogato maha'narthaprasak teh, sütrakto hi bhagavanto mahiyansah pratānikstāśca mahiyastaraistatkalavarttibhiranyaicvid adbhistato na tatsutresu manāgapyaDupapattib, kevalam sampradāyāvasāye yatno vidheyah. ye tu sūträbhiprāyamajñātvā yathakathañcidanupapattimudbhāvayante te mahato mahiyasa aśätayantiti dirghatārasamsārabhājah, āha ca ţikākāraḥ--"evam vicittàņi sūtraņi samyaksampradayādavaseyānītyavijñāya tadabhipråyam nānupapatticodanā kāryā, mahāśāta nāyogato maba'narthaprasangaditi" evam ca yo samprati duşşamānubhavatah pravacanasyopaplavāya dhūmaketavs ivotthitah sakalakalasukarăvyavacchinnasuvidhimärgánuşthätssuvihitasadhusu matsariņaste'pi víddhaparamparayātasampradāyādavaseyam sutrābhiprāyamapāsyotsūtram prarūpayanto mahāśátanabhäjah pratipattavyapakarnayitavyāśca dūratastattvavedibhiriti kytam prasangena". 1/1 (kha) (ta) Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1/19 1/21 1/26 1/72 1/73 1/100 1/101 1/119 2/59 2/60 2/74 2/92 2/241 2/149 3/5 3/6 3/33 3/48 3/73 3/77 3177 3/80 3/94 3/96 3/118 3/118 3/119 3/234 3/323 sannão joguvaoge kohakasãe kanhalessä ǎpapāņu" chiraviraliya thihu tahappagara duagaiya ahāro paliovam im abbbahiyāim phumphuaggi väsapuhattam etäsi vaṇassati joyana" āvabahule abädhäe je pam imam asfuttaram adahattare kinhapuda bahallenam kerisaga phudita" usiņavedanijjesu viraciya egäham ettha jambūpadamaya 12 sannato joguvatoge kohakasate kiphalessä āṇapāna chiravirajiya chiriviraliya chirivavirālis chiravira i thibhu tahappakārā duyigatiya ädhäro palitovamäim abbhadhiyaim phumphaaggi pumphaaggi väsapudhattam vāsapuhuttam etesi egăsi vaṇapphai jotana avabahule āvabahule ābādhäe jenimam asiuttare adasattari atthuttare kinnapuda pāhalenam kerisata phudiga sphuţita usuņavedaprjjesu viraiya ekāham tattha yattha jambanatamaya iambūṇatāmayā (ka) (ka) (ka) (ga, ta) (t) (k) (kha) (ga, ta) (1) (ka) (ka, kha, ga, fa) (ga) (tā) (ka, kha, ga, ta) (ga) (ka) (ga) (ka) (ga, ṭa) (ka, kha, ga, (a) (tā) (ka, kha, ga) (ka) (ka) (tā) (ka, kha, fa) (tā) (ta) (ga) (tā) (ka, ga) (ta) (ka, kha, ga) (ta) (ma, vr) (tā) (ka, ga, ta) (kha, ga, ta) (ka, kha, ga, ta) (tā) (ka) (ga, la, ta) Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3/371 3/372 3/412 3/593 3/733 3/750 3/748 31794 31798 (tā) 3/829 3/838/13 3/840 3/841 31841 (ta) uvagāriyālayane ovāriyalayane (ka, kha, ga, ta, tri) uvakāriyalayaņe (ta) khambhuggaya thambhuggaya (ka, ga) dhūvadhaçiyão dhūmadhadiyao (ka, kha) oviya uvvitiya (ka, kha) uvviiya (ga) bāyālisam bādālisam (tā) bāyālīsam bātálisam (tā) kelāse ketilāse (kha) kailāse (ga, ţa, tri) egunayālam iūyalam (ka) āyālam (kha, tā) iguyālam egayālisam eyālisam (ka, kha, ta) egayālīsam (ga) itālisam teņaţthenam eenattheņam (ga, tri) manussāpam manūsānam kayā; kadāyi balāhakā balāhatā bādare vijjukāre vătare vijjutāre (ta) badare thaniyasadde vātare thañitasadde (tā) nadi oi vă nihiti vā pandīti ya nidhayoti vā supakkakhoyarasei supikkakhot araseti (tā) khodavarannam khoyavarannam (ka, kha, ga, ta, tri) khodasarisam khotodasarisam (tā) hctthimpi hatthimpi (ga, ļa, tā) hitthampi (tri) savvahetthillam savvahethimayam savvovarillam savvupparillam (ka, kha, ta) savvabbhimtarillam savvabbhantaram (ta) ņiodā niotā °ņiodajīyā nigodajīvā (ka, kha, ga, ța, tri) oņiodajīvā onioyajīyāvi (ka, kha, ga, ţa, tri) aņāie anădie (tā) sakāsāi sakasādt ohidamsani avadhidamsaņi (ga, tri) odhidamsani 3/841 3/860 3/877 3/949 31998 3/1007 3/1007 3/1007 5/37 5/54 5/58 9/11 9/28 9/131 (tā) Description of the Manuscript Original text : leaves 94; samvat 1575; Hand-written. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ This Ms. belongs to Shrichand Ganeshdas Gadhaia Library, Sardarshahar. It contains 94 leaves and 188 pages with 15 lines in each page and 53-56 letters in each line. Its size is 13' 5'. It is beautifully scribed. The following is the eulogy at the end : "Samvat 1575 var se āśvinamāse kssrapakşe trayodaśyām tithau bhguvāsare pattananagaramadhye mochajātiya Joši vitthalasuta latakanalikhitam. cha. yādssam pustake drstam, tädssam likhitam mayă/yadi suddhamasuddham va mama doso na diyate 1/1/[ śubham bhavatu lekhaka-pāthakayoh kalyānamastu. cba. cha. Śrī. śīī. cha. granthāgra 5200. (C) Original text : leaves 80. This Ms. belongs to Sardarshahar mentioned above. It contains 80 leaves and 160 pages, with 15 lines in each page and nearly 61 letters in each line. Its size 12" x 41". The Ms. is very old and tattered. The scribing year is not mentioned at the end, but most probably it must belong to the 16th century, (T) Original text : leaves 90. Illustrated. It belongs to Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 90 leaves and 180 pages with 15 lines in each page and about 63 words per line. Its size is 11t'x4'. On the first page there is beautiful illustration in golden ink of the image of the Tirthankaradeva. It is very beautifully scribed. In the centre there is bavadi and in the middle of that there is a red circular spot. There is no puspika and scribing year at the end of the ms., but most probably it belongs to the 16th century. It almost tallies with the palmleaf manuscript and the commentary. (AT) Palmleaf photo-print of Jaisalmer Bhandāra. This copy mostly tellies with the commentary. It does not contain the pages containing the sūtras 105-115 of the third pratipatti. (2) car : Scribing year 1800. It belongs to the Order's Library, Ladnun. It had been thoroughly studied by Acārya Kájūgani (the eighth pontiff) and the text had been corrected by him at various places. Jīvājivābhigama ţikā (Hand-written) It belongs to Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 250 leaves, and 500 pages with 15 lines per page and about 65 letters per line. Its size is 10" x 4-1/4'. The scribing year is sativat 1717. The scaipt is very beautiful. Acknowledgements Jainisam has a long tradition of councils held for compiling the texts of the Āgamas. Ere 1500 years from today there had been four councils on Agama. After Devarddhigaņi no well-planei Agini council was held. The Agamas Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ya compiled at that time fell into disorder during this long internal. So a wellorganised council was the need of the hour to revise the Agamas again. Acarya Tulsi tried his best for a general consensus on Agama-editing but it could not materialise. Lastly it was decided that if our editing of Agamas is research-oriented, unbiased and punctilious, it will be universally accepted. On this consideration we started our work of holding the council for critically editing the Agamas. Acāryaśrī Tulsi is the chief of this vacanā. Vacand means "teaching", that comprises so many activities like search of the correct text, translation, critical and comparative study, and so on. In all these activities the active cooperation, guidance and encouragement from the Acaryari is always available to us. was our forte for undertaking such onerous task. Instead of expressing my gratitude to the Acaryasri and thereby feeling relieved from the burden of his gratefulness, I feel it better to require more energy through his blessings and become heavier for taking up the next assignment. In editing the texts of Ovaiyam and Rayapaseniyam of this book Muni Sudarshan, Muni Madhukara, Muni Hiralal and in editing the text of jiväjivabhigame Muni Sudarshan & Muni Hiralal have worked with diligence and perseverance. Muni Chatrama!, Muni Balchand, Muni Hansraj and Muni Mapilal have also lent remarkable cooperation is editing the text of Jiväjivabhigame. Word index of Ovdiyam has been prepared by Muni Shrichand and that of Rayapaseniyam and Jīvājivābhigame by Muni Hiralal. Muni Sudarshan, Muni Hiralal and Sadhvi Siddhaprajñā, and Samani Kusumaprajñá actively cooperated in correcting the proofs of the book. The general get-up of Ovaiyam and Rayapaseniyam has been prepared by Muni Mohanlal "Amet". The first two indexes have been prepared by Muni Hiralal. In the revision of the text also he was remarkably helpful. While evaluating their cooperation in the accomplishment of this assignment I express my gratefulness to all of them. The services of Late Madanchand Gauthi, who had a deep insight into the Agamas and who helped me in editing the text of the Agamas, cannot be forgotten at this stage. If he had been alive, he would have been very happy at this achievemnt, Shri Shrichand Rampuria, Kulapati, Jain Vishva Bharati and the Managing Editor of Agama Literature, has been actively involved in the Agama work from the very beginning. He is fully-determined and working hard to reach the Agama literature to the laymen. Having relieved himself of his well-set Advocate's job he has been devoting most of his time to the Agama programme. Shri Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Khemchand Sethia, President and Shri Shrichand Bengani, Secretary of Jain Vishva Bharti have also actively cooperated in this task. The English rendering of the Editorial and the Introduction were done under the supervision of Dr. N. Tatia and Dr. V. P. Jain by Shri R.S. Soni & Samaņis Chinmayaprājñā and Ujjvalaprajñā have also been actively associated with it. It is simple formality to mention the names of those proceeding in the same direction with the same speed for a common goal. Really it is a sacred duty for us and we have all fulfilled it. -Yuvācārya Mahāprajña Adhyātma Sadhana Kendra, Mebrauði, Delhi. Akşaya Tstiya, Ist May, 1987. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION The present book is Uvangasuttani. It contains the original text of twelve Upāngas with variant readings and abbreviated texts. It has two parts. The first part contains three Agamas (1) Oviyam, (2) Rāyapaseniyam and (3) Jivājīvâbhigame. The second part contains nine agamas : (1) Pannavana, (2) Jambuddivapannatli, (3) Candapannatti, (4) Surapannati, (5) Nirayāvaliyao (Kappiyao), (6) Kappavadisiydo (7) Pupphiyão, (8) Pupphacüliyão, (9) Vanhidasão. In the ancient tradition we find the following two classifications of the āgamas : (1) Arigapravişğa and (2) Angabahya. There was no such categorisation as Upanga in the old tradition. Nandisätra bears no mention of any Upanga. In any older agama too, Upānga has not been mentioned. The Tattvärthabháşya uses this word for the first time, which is the earliest in the available texts." Relation between Anga and Upanga Tattvārthasūtra mentions the word Upanga, but it does not indicate any relationship between them. We find it mentioned in the vrti of Jambūdvīpaprajñapti and the Sukhabodha Sāmācāri at page 34, composed by Shrichandra Sūri, the commentator of Nirayāvalika. According to Jambūdvipaprajñapti, the interrelationship between angas and upängas is shown as under :Anga Upanga Acárāöga -Aupapātika Sūtraktärga -Rájapraśniya Sthânẵnga -Jivajtvábhigama Samavāyanga -Prajiapana Bhagavati --Jambūdvipaprajtapti Jñatādharmakatha -Candraprajāapti Upåsakadaśă -Suryaprajšapti AntakȚddaśa -Nirayāvalika( Kalpika) Anuttaropapātikadasă --Kalpāvatansika 1. Tattvārthabhāsya, 1/20 : tasya ca mahāvisayatvättăastanarthanadhikstya prakaranasamăptya peksamangopădgan&nātvam. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Praśnavyākarapa -Puspika Vipāka śruta - Puşpacủlika Dşstivāda -Vrşpidašā! 1. Ovaiyam Nomenclature The present agama is called Ovõiyam (Aupapātikā). Its main theme is udapāta. Samavasarana is its incidental treatment. On the basis of the main theme treated herein, it is known as Ovãiyam (Skt. Aupapāt ika). On deleting Jetters "va” as per the Prakrit Grammar Rule, we get ovāiyam form in place of ovavăiyam. We come across the same name in the Nandisutra. Subject-Matter The main theme enunciated in the Aupapātika is 'rebirth, that so and so upapăta (instantaneous rebirth) takes place because of such and such conduct. The exordium consists of many types of descriptions of town, monastery, garden, king etc. The present sūtra has come to be known as a Varņaka (describer) sūtra because of these descriptions and has been used in various epilogues for this reason. Commentaries The first commentary of the Aupapātika is the vitti by Abhayadeva Sūri, the commentator of the nine agamas. The introductory verse shows that Abhayadeva Súri had got no other earlier vpiti in front of him. He composed this vrtti with the help of other texts. He himself mention : Śrīvarddhamānamānamya prāyo'nyagranthaviksitā / aupapātikaśāstrasya vyakhyā kācidvidhīyate 11 The commentator has mentioned the views of the foregoing åcāryas at - several places. 1. Snānādvă pāņdurībhūtagătrā iti vrddhāb/(Vștti p. 171) 2. cūrņikārastvāha/(Vịtti p. 224) 3. asya ca vfddhoktasyādhik tagāthavivaranasyärtham bhāvarthah/ (Vrtti p. 225) This commentary is neither too elaborate not too abridged. Its medium size contains most of the points worth discussing. The Oväiyam contains numerous variant readings. Abhayadeva has des. cribed the first sūtra thus-"This sūtra is abundant in variant readings. I shall deal with only what is intelligible."3 Most probably such variant readings do 1. Jambüdvipaprajñapti, Sänticandriya Yrtti, patra 1, 2. 2. Nandīsūtra, 76. 3. Aupapātika, yrtti, page 2: jha ca bahavo vācapabhedā drśyadio, teşu ca yamevāvabhotsyåmahe tameva vyākhyāsyāmah. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ not appear in any other sūtra. If the commentator had not compiled them, they would have passed into oblivion. The commentary ends with an eulogy in three verses, in which the commentator mentions the names of his guru-Shri Jineśvara Süri, of the Candra lineage, and the place of composition- Anahilapā takanagar and Droņācārya who revised the Vštti: candrakula-vipula-bhūtala-yugapravara-vardhamānakalpataron / kusumopamasya süreh gusasaurabha-bharita-bhavanasya !! nissambandhavihārasya sarvada śrljineśvarahvasya / šişyeņābhayadevākhyasūripeyam kştā vsttih | anahilapāțakanagare śrímaddroņākhyasūrimukhyena / panditagupena guravatpriyeņa samsodhitā ceyam Il The second commentary on the Ovaiya is 'Stabaka', which was probably composed by Muri Dhamasi and belongs to the eighteenth century of the Vikram era 2. Rayapaseniyam Nomenclature This sutra is called Rāyapaseniyam. Pt. Bechardas Doshi has named it as Rayapasenaiyam, stating that it is based on the 'Rajaprasenakiya' referred to by Siddhasenagani and Rajaprasenajita referred to by Muni Candrasuri.1 The earliest mention of this sūtra is found in Nandisútra, under the name Rāyapaseniya. The name has not been explained in the Nandi cūrni and its commentaries by Haribhadrasūri and Acātya Malayagiri who has named it as Rājapraśniya' while dealing with it. King Pradeśī had asked some questions to Kesisvámi. The present sūtra contains replies to the questions and hence the name 'Rajapraśniya'.3 From the point of view of treatment of the subject-matter, Malayagiri's commentary is quite in order and the name does not sound awkward or improper on that account. But lexicographically the name is open to criticism, specially by Pt. Bechardas who contends that --"the word 'praśna' takes the forms 'punha' and 'pasina' in Prakrit, and not the form 'pasena'. There is no form as 'pasena' according to Prakrit grammar. If we recognise it 1. Răyapasenaiyam, praveśaka, Page 6 & 7. 2. Nandi, sūtra 77. 3. (a) Rāyapasenya vftti, page 1 : atba kasmäd idam upangam rajaprašolyābhidhanamiti? ucyate, iha pradesinamā rājä bhagavataḥ keśikumāraśramanasya samipe yan jivavisayan praśnánakārşit, yāni ca tasmai kesikumāraśramanoganabhri vyākaranäni vyäkfiavān. (b) Rāyapaseniya Vğiti, page 2: rājaprašnesu bhavam rājapraśniyam, Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ as an authoritative form (årsa), all rules about the correct or wrong usage of words in Prakrit would have been set to naught." Pt. Bechardas's contention may be valid, but it is not irrefutable. In our view (1) The original form of 'paseniya' is ‘pasiniya' (Skt. praśnita). In pronunciation , assumption of the form 'i' by fe is quite consistent. We find such departure elsewhere too. For example :-- pihuniņam pehunenam (Desi) nivvānam nevyāpam (Skt. nirvānam) nivvuti nevvuti (Skt. nirvęttih) tigicchiyam tegicchiyam (Skt. cikitsitam) binţā bentā (Skt. vịttam) bi be (Skt. dyi) tikālam tekālam (Skt. trikalam) (2) In the Agama-sútras and old scriptures we find the text as rāyapaseniya'. The usage 'rāyapasepaiya' is not available anywhere. In the Nandisutra we come across 'rāyapaseņiya' as mentioned earlier. In 'Pākṣika sūtra' too, fráyappaseniya' occurs. The composer of the avacũri of Päksika sūtra gives its Sanskrit form as 'rājapraśniyam'. (3) Prasenajit takes the form 'pasepaiya' in Prakrit In the Sthânănga sätra the fifth kulakara is named as 'pasepaiya'.' This form is avajlable at various other places too. If the subject matter of the present sūtra had been related to King Prasenajit, the name could have been "Rāyapasenajyam". But in fact the subject matter relates to King Paesi; hence the form "rāyapasepaiya" is not compatible. In the Dighani kāya King Pāyāsí is mentioned as a feudal lord to Prasenajit. But here we find no mention of King Prasenajit. Therefore the usage 'Rāyapaseņaiyam' has no basis. From the point of view of the subject matter we may conjecture about the name "Rāyapaesiyam', but there is no basis for such a conjecture. King Pradesi's quei ses form the basis of the composition of the sutra in question. Therefore its name must be 'Rāyapaseniya' and none else. Commentaries Its two commentaries are named as (i) vsiti, and (ii) stabaka tabbā or 1. Råyapasenaiyam, pravesaka, page 6. 2. Päksikasütram, page 76. 3. Pāksikasūtram Avacüri, page 77: Rājñab pradesi nämnab praśnāni, tänyadhiktya kytam adhyayanam--rājapraśniyam. 4. Thāpam, 7/62 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ bālāvabodha). The former is in Sanskrit while the latter is in the admixture of Rajasthani and Gujarati. Výtti was composed by the renowned annotator Ācārya Malayagiri while the stabaka was written jointly by Pārsvacandragapi (16th Century) and Muni Dharmasingh (18th Century). Stabaka is a short piece of translation but viti is the real commentary which ciarifies the underlying meaning of the sutra. Although the writi has not been able to explain the whole theme, yet the commentator has provided valuable information at various places. The author had to face many obstacles in writing the vriti, the most difficult of them being the variations in text. He has mentioned this difficulty at several places. To surmount these obstacies the yoti has been bifurcated in two parts: (i) The first part : for commentary of intelligible words, and (ii) the later part : for commentary of technical terms. Thus the first part is quite extensive, while the later part is brief. The causes of detailed treatment in the first part are twofold: (a) Novelty of the subject matter. (b) Abundance of variant readings. Likewise the later part has been treated in brief due to the following reasons: (a) Intelligibility of the text. (b) Repetition of the terms already explained. (c) Small number of variant readings.? The commentator desires us to learn the mundane topics from the experts of that art.Both Rājapraśniya and Jivābhigama bear identical topics at various places. Acārya Malayagiri is the commentator of both of them. That is why the topics of the commentaries are largely identical. The commentator had obviously got the original commentary of Jivābhigama, which fact has been mentioned time and again in this commentary. 1. Rayapaseniya Vetti, p. 204,241,259. 2. Rayapaseniya Vrtti, page 239 : iba prāktano granthaḥ prāyo'pūrvah bhūyidapi ca pustakesu vācapabhedastato mā'bhūt sisyānām sammoha iti kväpi sugamo'pi yathavasthitavācanākramapradarśanartham likhita. ita ürdhvam tu prāyaḥ sugamah prāgvyakhyātasvarūpasca na ca vācanabhedo pyatibādara iti svayam paribhāvanīyaḥ, vişamapadavyakhya tu vidhäsyate ita. 3. Ibid., page 145: ete nartanavidhayah abhinayavidhayaśca națyakusalebhyo veditavyäh. 4. (a) Ibid, page 100 āba ca jīvābhigamamülaţikäkrt vijayadāsyam vastraviśesah iti. (b) Ibid, page 158: äha ca jivăbhigamamülaţikākārah argalāprāsāda yaträrgala niyamyante iti, Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ At one stage Jiyābhigama cūrni has also been mentioned. Vrtti contains 3700 ślokas :pratyakşaragañanāto granthamānam viniścitam / saptatrimsacchatānyatra flokānām sarvasankhyaya // At the very outset, the commentator remembers Lord Mahavira reverentially and with guru's permission proceeds with the commentary on the Rājapraśnīya sutra -- prañamata virajineśvaracaranayugam paramapātalacchāyam / adharikštanatavāsavamukuțasthitaratnarucicakram II tājapraśniyamaham vivśnomi yathā'gamam guruniyogāt / tatra ca Śaktimaśaktim guravo jánanti kā cintā // At the end, the commentator prays for the victory of his preceptor as also attainment of knowledge for the reader :-- adharikstacintāmaņi-kalpalatā-kämadhenu-māhātmyåḥ / vijayantämn gurupādāḥ vimalikytaśışyamativibhaväh || räjapraśniyamidan gambhīpārtham vivȚnvatā kuśalam/ yadavāpi malayagiriņā sādhujanastena bhavatu krti //!! jivābhigamamălaţikākārena-măvarttanapithika yat rendrakilako bhavati iti. (c) Ibid, page 159 : āha ca jīvābhigamamulaţikakrt-kūto mādabhagah ucсhayah śikharang iti. aha ca --jivābhigamamulaţikakrt-ankamayah paksāstadekadeśabhūtā evam paksa bähavo'pi drstavyā iti. (d) Ibid, p. 160: uktanca jīvābhigamamulaţikäkarepa ohädapi haragrahapam? mabat kşullakam ca punchani' iti. (e) Ibid, p. 161: äha ca jīvābhigamamülaţikäkrt--naisedhiki nişidanastbånam iti. (1) Ibid. p. 168 : āha ca jivābhigamamūlatīkākārah---prakapthau pichavićeşi iti. (g) Isid, p. 169: uktañ ca jivabhigamamülatikāyām-prāsădāvatamasakau präsādavićeşau iti. (h) Ibid, p. 176: uktañ ca jīvābhigamamūłatikāyām--manogulikā nāma pithikā iti. (1) Ibid, p. 177: uktañ ca jivābhigamamulaţikākārena--haya kanthau--hayakanthapramānau ratnaviš sau evam sarve'pi kanthă văcyā iti. () 1bik, p. 180: oktañ ca jīvābhigamamülatikāyām--tailasamudgakau sugandhitailadharau. (k) Ibid, p. 189: jīvābhigamamulaţikāyāmapi (46)-uppittham śyāsayuktam iti. (1) Ibid, p. 195: oktañ ca jivābhigamamūlaţikāyām-dagamandapāb-sphățikā mangapā iti, (m) Ibid, p. 226: jīvābhigamamūlajikākārah-bibboyanā upadhānakāpyucyanfe it... Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JIVĀJIVĀBHIGAME Nomenclature The āgama under review is Jīvājīvābhigame. Jiva and ajiva-the two basic tattvas have been dealt with herein, hence it has been named as Jīvājīvā. bhigama. It contains nine chapters in which the sentient beings have been numerically classified :--- 1. Two kinds of mundane beings--mobile and immobile. 2. Three kinds of mundane beings--woman, man and eunuch. 3. Four kinds of mundane beings--heilish-beings, animals, men and gods. 4. Five kind of mundāne beings--one-sensed, two-sensed, three-sensed, four sensed and five-sensed. 5. Six kinds of mundane beings-earth-bodied, water-bodied, fire-bodied, air bodied, vegetation-bodied and mobile-bodied beings. 6. Seven kinds of mundane beings-hellish, male animals, female animals, men, women, gods and goddesses, 7. Eight kinds of pundane beings---first time hellish, second time hellish, first time animal, second time animal, first time man, second time man, first time god, second time god. 8. Nine kinds of mundane beings-earth-bodied, water-bodied, fire-bodied, air bodied, vegetation-bodied, two-sensed, three sensed, four-sensed and five-sensed. 9. Ten kinds of mundane beings-One time one-sensed, second time one-sensed, one time two-sensed, second time two-sensed, one time three-sensed, second time threesensed, one time four-sensed, second time Tour-sensed, first time five-sensed, second time five-sensed. The whole of Jivābhigama has been dealt with upto the end of the eighth sütra of the ninth pratipatti. This classification is based on various other criteria, e.g., two kinds of sentient beings-emancipated (siddha) and nonemancipated (asiddha). A sentient being has three other categories too--one possessing right Vision, perverted vision and right-cum-perverted vision. In this agama secondary subjects are available in abundance, which provide detailed information about Indian society and life. From the architectural point of view the description of 'padmavara' (lotus) altar and 'vijuyadvára' (gate of victory) is very important. The agama is a compilation of various adešas (view-points). The sthaviras Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ held divergent views on single topics. The word adeśa was used for a viewpoint. This agama is supplementary in nature. Hence it embodies various view-points of the sthaviras. The commentator uses adeśa in the sense of "kinds". In essence the compilation of various viewpoints is clearly proved. In Jiväjivabhigame, 2/20, we find four adeśas whereas in 2/48 there are five. The commentator is of the view that only the extraordinarily gifted persons can pass a judgment as to which of five alesas is proper. There were no such gifted persons during the period of the sthaviras, hence the commentator has obviously abstained from expressing his own views on the subject. He has simply compiled the available adelas. The sthaviras are the authors of this agama. This is clearly indicated at the beginning of the agama." Commentaries Two commentaries are available on this sūtra-one by Acarya Haribhadra, and the other by Acarya Malayagiri. The former is concise whereas the latter is quite cloborate. Malayagiri's vṛtti contains the ascription "iti vṛddhāḥ" as well as the mention of the original text, the commentator and the curni at several places: £ " "iti vṛddhab 'iyam ca vyakhya mülaṭīkānusärena kṛtā "uktafica mülaṭīkāyām" "aha ca mülaṭikäkit *tai ca mulaṭīkākṛtä vaiviktyena na vyakhyātā iti sampradayādavaseyāḥ** 'mülatkäkäreṇāvyākhyānāt aha ca malaṭkākāraḥuktam cürpau 'àha ca mulat!kükärab-uktam mülaṭīkākārena' 1. Jiväjivabhigama, Vrtti p. 53: "adeśa sabda iha prakāravāci"-adesotti pagaro'iti vacanãt, ekenaprakāreņa, ekaprakāramadhikrtyetibhāvārthab". 2. Ibid., p. 59: amişăm ca pañcānāmādeśānāmanyatamādeśasamīcīnatānirṇayo'tiśayajñānibhiḥ sarvotkṛṣṭaśruta labdhisampannairvā kartum sakyate te ca sūtrakṛtpratipattikāle nāsīranniti sūtrakṛona nirnayam kṛtavāniti”. 3. Jiväjivabhigame, 1/1: "iha khalu jinamayam jinanumayam jipanulomam jigappagitam jinaparūviyam jipakkhāyam Jānucinoam jipapagpatam jinadesiyam jinapasatthen apuvli tam saddahamāņā tam pattiyamāṇā tam pattiyamanā tam roemana thera bhagavanti jīvājivābhigamne pāmajjbayanam panavaimsu". 4. Vrtti, p. 27 5. D. 64 6. p. 109 7. p. 122 "1 " 8. 9. 10. 11. " " 33 p. 136 p. 136 p. 137 p. 180 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ fuktar mūlaţikāyam' ‘äha ca mulațīkākäraḥ2 fuktam ca mülatīkāyām" 'âha ca mūlaţikäkāraḥ'i *aha ca mulaţikākärah ‘uktañca múlatikāyām" ‘uktañca mülaţikēkārena" 'äha ca mülaţikäkārah', 'cūrņikăstvevamāha's *äha ca mulațīkākārah' "aha ca cúrnikȚt": ‘uktanca mülaţikāyām', 'Jīvābhigama mülaţikāyām 10 'äha ca mulaţikākāro'pi'. 'āna ca cürņiksto!1 ‘tathā cāna mūlatīkākārah:12 'äha ca mülacūrni krt 13 'mülatīkåkāro'pyāha......cũrņikäro'pyāhald 'ha cūrņikst'5 'tathä сāha mülatīkākāraḥ 18 ‘äha ca cürņikrt'17 ‘uktañ cūļņau’18 ‘äha ca mülatīkākaraḥ’is ‘āha cūrņikft áha ca tīkākāraḥ 20 ‘mūlațīkākāreņāpi 21 'ha ca mülatīkākāraḥ:22 Fulfilling the assignment The credit of editing this text goes to a great extent to Yuvācārya Maháprajña, because the work has been accomplished through his perseverance day and night, otherwise this onerous task was difficult to be finalised He is basically inclined towards yoga. Therefore it is easy for him to maintain his equipoise (concentration). Not only that, being engrossed in the study of the Agamas in a routine manner he has developed a keen intellect in grasping the inner mysteries of things. The credit of his intellectual development goes to his humbleness, diligence and total surrender to his preceptor. He has been displaying such inclination since childhood. Since he came over to me, this 1. VȚtti, p. 141 12. Vrtti, p. 354 2. p. 142 13. P. 369 3. p. 142 14. , p. 370 4. , p. 277 15: „ p. 384 5. , p. 186 16. . 438 6., p. 204 17. , p. 441 7. , P 205 18. p. 442 8. , p. 209 19., p. 444 9., p. 210 20., p. 450 10., p. 214 21. , p. 452 11. p. 321 22. . p. 457 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ learning has been gradually increasing. I am quite satisfied with his capacity to work and his dutifulness. Seve.al other saints have cooperated in revising the text of this agama. I heartily bless them and wish that their work-born capacity should develop all the more. My joy knows no bounds to see that the gigantic task of text revision has been successfully brought to completion through the cooperation of my disciples -the monks and nuns of the order. - Ācārya Tulsi Adhyātma Sadhana Kendra, Mehrauli-New Delhi, Akşaya Tștiya, 1st May, 1987 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणियं सूरियाभो सूत्र १ से ६६८ पृ०१ से १६१ उक्खेव-पदं १, सूरियाभस्स ओहिपओग-पदं ७, सूरियाभण भगवओ वंदण-पदं ८, आभिओगिय-देव-पेसण-पदं ६, भाभिओगिय-देवेहिं भगवओ वंदण-पदं १०, वंदणाणुमोदण-पदं ११, Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ अभिओगएहि जोयणमंडल निश्चत्तण-पदं १२, सूरियाभस्स गमण घोसणा - पदं १३, सूरियाभविमाणवासिदेवाणं समवसरण पदं १६, जाणविमाण- विउयण-पदं १७, ०तिसोवाणपडिख्वगविउव्वण-पदं १६, ०तोरण- पदं २०, ० अट्टमंगल- पदं २१, ०झय पदं २२, ०छत्तातिछत्तआदिपदं २३, ०भूमिभाग - विउव्वण-पदं २४, ०मणि-वण्णावास पदं २५, ०पेच्छाघर मंडव - विउव्वणपदं ३२, ०पेच्छाघरमंडवे भूमिभाग- विउब्वण-पदं ३३, ०पेच्छाघरमंडवे उल्लोय-विव्वण-पदं ३४, ०पेच्छाघरमंडवे अक्खाडग विउव्वण-पदं ३५, ०अक्वाडए मणिपेढिया विउव्वण-पदं ३६, ● मणिपेडियाए सीहासण - विउब्वण-पदं ३७, ०सीहासणे विजयदूर - विउन्त्रण-पदं ३८, ० विजयदु से अंकुस - विउब्वण-पदं ३६, ० अंकुसे मुसादाम-विजध्वण-पदं ४०, ०भद्धासण- विउठवण-पदं ४१, जाणविमाण- विउव्वणस्स निगमण-पदं ४५, जाण विमाणारोहण-पदं ४७, पयाण- सज्जापदं ४६, जाणविमाण-पच्चोरहण-पदं ५६, सूरियाभस्स वंदण-पदं ५८, वंदणाणुमोदण-पदं ५६, पज्जुवासणा - पदं ६०, धम्मदेसणा-पदं ६९, पण्ह वागरण-पदं ६२, नट्टविहि उवदंसण- पदं ६३, कूडागारसाला दिट्ठत-पदं १२१, सूरियाभ- विमाण-पदं १२४, ०पागार पदं १२७, ० कविसीसपदं १२८, ०दार पदं १२६, ०वंदणकलस पदं १३१, ०णागदंत- पदं १३२ ० मालभंजिया-पदं १३३, जालक डग- पदं १३४, ०घंटा- पद १३५, ०वणमाला-पदं १३६, ०पगंठग-पदं १३७, • तोरण-पदं १३८, ०दार पदं १६२, ०वणसंड-पदं १७०, ०वणसंड-भूमिभाग पदं १७१, ०वणसंड जलासय-पदं १७४, ०वणसंड-घरग पदं १८२, ०वणसंड- मंडवग-पदं १८४, ०वणसंड-पास यवडेंसग पदं १८६, ० भूमिभाग पदं ०उवगारिया लयण-पदं १५८, ०पमवरवेइया - पदं १८६, ०उवगारिया-लयण-पदं २०२, ०भूमिभाग- पदं २०३, मूलपासायवडेंसग पदं २०४, ० पासायवडेंसग पदं २०५, ०सुहम्म-सभा-पदं २०६, ०सुहम्म सभा-दारपदं २१०, ० मुहमंडव -पदं २११, ०दार पदं २१२, ०भूमिभाग उल्लोय-पदं २१३, ०मंगलगपदं २१४, ०पेच्छाघर - मुहमंडव पदं २१५, ०भूमिभाग उल्लोय पदं २१६, ०अवखाडग पदं २१७, ०मणिपेढिया पदं २१८, ०सीहासण-पदं २१६, ० मंगलग पदं २२०, ०मणिपेढिया पदं २२१, ० चेइयथुम-पदं २२२, मंगलग - पदं २२३, ०मणिपेडिया-पदं २२४, जिणपडिमा पदं २२५, मणिपेढिया - पदं २२६, ०चेइयरुवख पदं २२७, मंगलग पदं २२६, ०मणिपेढिया पदं २३०, • महिदय-पदं २३१, ०मंगलग पदं २३२. ०नंदापुक्खरिणी पदं २३३, ०तिसोवाणपडिरूवगपदं २३४ ० मणोगुलिया-पदं २३५, ० गोनाणसिया- पदं २३६, ०भूमिभाग- पदं २३७, ०मणिपेढिया पदं २३८, ०चेइय-खंभ पदं २३६, जिण पकहा- पदं २४०, ०मंगलग पदं २४१, ०मणिपेढिया पदं २४२, ०सीहासण-पदं २४३, ०मणिपेडिया-पदं २४४ ० देवसय णिज्ज-पदं २४५, ० मणिपेढिया-पदं २४६, ०महिंदझय-पदं २४७, ० मंगलग पदं २४८, ०पहरणकोस-पदं २४६, ० मंगलग पदं २५०, सिद्धाय तण-पदं २५१, ०मणिपेढिया पदं २५२, ०जिणपडिमा पदं २५३, ० उबवायसभा पदं २६०, ० अभिसेगसभा-पदं २६५, ० अलंकारियसभा-पदं २६७, ०ववसायसमा पदं २६६, सूरियामदेव पदं २७४, सूरियाभास अभिसेग पदं २७७, अभिगकाले देव किच्च पदं २८१, वद्धावण-पदं २=२, अलंकरण-पदं २८३, सिद्धायतणपवेस पदं २८८ १८७, थुइ-पदं २६२, ०दाहिणिल्लं पर गमण-पदं २६४, उत्तरिल्लं पइ गमण-पदं ३१३, ०पुरस्थि - मिल्लं पइ गमण-पदं ३३२, ०सुहम्मसभापवेस-पदं ३५१, ० उबवाय सभापवेस-पदं ४१४, अभिसे सभापवेस-पदं ४७४, ०अलंकारसभापवेस-पदं ५३४, ०ववसाय सभापवेस -पदं ५६४, ० सूरियामविमाणे अच्चणिया-पदं ६५४, ०नंदापुक्खरिणी -गमण-पदं ६५६, ० सुहम्मसभा - निसीदणपद ६५६, ०सुरियाभ-वष्णग- पदं ६६५ । Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि कहाणगं सूत्र ६६८ से ८१७ १६२ से २१२ केयइ-अद्ध-पदं ६६८, सेयविया-पदं ६६६, मिगवण-पदं ६७०, पएसि-पदं ६७१, सूरियकतापदं ६७२, सूरियकंत-पदं ६७३, चित्त-सारहि-पदं ६७५, कुणाला-पदं ६७६, सावत्थी-पदं ६७७, कोट्ठय-पदं ६७८, जियसत्तु-पदं ६७६, पाहुड-उवणयण-पदं ६८०, चित्तस्स आवासपदं ६८५, के सि-आगमण-पदं ६८६, चित्तस्स जिण्णासा-पदं ६८७, कंचुइपुरिसस्स निवेदणपदं ६८६, चित्तस्स केसि-समीवे गमण-पदं ६६०, धम्मदेसणा-पदं ६६३, चित्तस्स गिहिधम्म-पडिवज्जण-पदं ६६५, समणोवासय-वण्णग-पदं ६६८, जियसत्तुणा पाहुड-पेसण-पदं ६६९, चित्तस्स निवेयण-पदं ७००, केसिस्स पडिवयण-पदं ७०३, पुणोनिवेयण-अभुवगमण-पदं ७०४, उज्जाणपाल-निदेसण-पदं ७०६, पाहुड-उवणयण-पदं ७०८, केसिस्स सेयविया-आगमण-पदं ७११, उज्जाणपालगाणं चित्तस्स निवेदण-पदं ७१३, चित्तस्स केसि-पज्जुवासणा-पदं ७१४, चाउज्जाम-धम्मदेसणा-पदं ७१७, चित्तस्स निवेदण-पदं ७१८, केसिस्स पडिवयण-पदं ७१६, चित्त-पएसि-पदं ७२३, पएसि के सि-पदं ७३६, जीव-सरीर अण्णत्त-पदं ७४८, तज्जीव-तच्छरीरपदं ७५०, जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५१, तज्जीव-ज्छरीर-पदं ७५२, जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५३, तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७५४, जीव-सरीर-अण्णत-पदं ७५५, तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७५६, जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५७, तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७५८, जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५६, तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७६०, जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७६१, तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७६२, जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७६३, तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७६४, मूढ-कठ्ठहारय-पदं ७६५, अक्कोसं पइ पएसिस्स वितक्कणा-पदं ७६६, के सिस्स समाधाण-पदं ७६७, पएसिस्स पडिकलवट्टण-हेउ-पद ७६८, ववहारग-पदं ७६६, जीवोवदसण8-निवेदण-पदं ७७०, केसिस्स समाधाण-पदं ७७१, हस्थि-कुंथु-जीव-समाणत-पदं ७७२, कुल-परंपरागयदिट्टि-अच्छडण-पदं ७७३, अपहारग-दिळंत-पदं ७७४, पएसिस्स गिहिधम्म-पडिवज्जण-पदं ७७५, आयरियविणयपडिवत्ति-पदं ७७६, पएसिस्स अत्त-निवेदण-पदं ७७७, पएसिस्स खामणा-पदं ७७८, चाउज्जामधम्म-कहण-पदं ७७६, रमणिज्ज-अरमणिज्ज-पद ७८०, पएसिणा रज्जस्स चउभागकरण-पदं ७८८, पएसिस्स समणोवासयत्त-पदं ७८६, पएसिस्स रज्जोवर-पदं ७६०, सूरिकताए सुरियकतेण मंतणा-पदं ७६१, सूरियकताए विसप्पओग-पदं ७६३, पएसिस्स समाहि-मरण-पदं ७६५, सूरियाभ-देव-पदं ७६७, दढपइण्णग-पदं ७६६ । Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत-निर्देशिका • . ये दोनों बिन्दु पाठ-पूर्ति के द्योतक हैं। पाठ-पूर्ति के प्रारम्भ में भरे बिन्दु और समापन्न में रिक्त बिन्दु ० का संकेत किया गया है । देखे, पृष्ठ ८, सू ८ ' ' यह दो या उससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है। ० पाठ में संलग्न दिया गया एक बिन्दु अपूर्ण पाठ होने का सूचक है। देखें, पृष्ठ ३, पाठान्तर १२, पृ० ११६. सूत्र १४२ [?] कोष्ठकवर्ती प्रश्नचिह्न आदशों में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें, पृ० २२, सूत्र ३२ x क्रोस पाठ नहीं होने का द्योतक है। देखें, पृ० १ पाठान्तर ६ जाव आदि पर जो अंक है वे पूर्ति आधार स्थल के द्योतक है। जैसे-पृ०६, पाठान्तर १५ पृ० १०२ सूत्र ६६ पाठान्तर का अंक ६ पृ० ६७, सूत्र ४५, पाठान्तर का अंक ५ पृ० ११५, सूत्र १३६, पाठान्तर का अंक १४ पृ० ११६, सूत्र १४२, पाठान्तर का अंक २ पृ० १२५, सुत्र १२६, पादटिप्पणांक १,२,३ आदि सं० पा० संक्षिप्त पाठ नाघु० नायाधम्मकहाओ वृत्ति जं० पुवृ० जंबुद्दीवपण्णत्ती पुण्यसागरीयवृत्ति , शावृ० ॥ ॥ शान्तिचन्द्रीयवृत्ति " होवृ० , , हीरविजयवृत्ति राय० वृ० रायपसेणियं वृत्ति राय० सू० रायपसेणियं सूत्र मो०सू० मोवाइयं सूत्र उत्त० उत्तरज्झयणाणि भ० भगवती पण्ण. पण्णवणा जी० जीवा जीवाजीवाभिगमे जंबु० जंबू० जंबुद्दीवपणती पाहा. पण्हावागरणं Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव पदं १. तेणं' कालेणं तेणं समएणं आमलकप्पा नाम नयरी होत्या - रिद्ध-त्थिमिय"समिद्धा जाव' पासादीया दरिसणीया' अभिरुवा पडिरूवा ॥ सूरियाभो २. तीसे णं आमलकप्पाए नयरीए वहिया उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए अंबसालवणे नाम चेइए होत्था - चिराईए' जाव" पडिरूवे || ३. • "तस्स णं वणसंडस्स वहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे असोगवरपायवे पण्णत्ते ॥ ४. तस्स णं असोगवरपायवस्स हेट्ठा ईसि खंधसमल्लीणे, एत्थ णं महं एक्के पुढविसिलापट्टए पण्णत्ते ॥ ५. सेयो राया । धारिणी देवी || 1 ६. सामी समोसढे । परिसा निग्गया जाव' राया पज्जुवासइ ॥ सूरियाभस्स ओहिओग-पदं ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरियाभे" देवे सोहम्मे कप्पे सूरियाभे विमाणे सभाए सुहम्मा सूरियाभंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहि, चउहि अग्ग महिसीहि सपरिवाराहि, तिहि परिसाहि, सत्तहि अणिएहि, सत्तहिं अणिया हिवईहि, सोलसहि आयरक्खदेवसाहस्सीहि, अन्नेहि वहूहि सूरियाभविमाणवासीहि वेमाणिएहि देवेहि देवीहि यसद्धि संपरिवुडे महयायनदृ" - गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय- घण-मुइंग-पडुप्पवादियरवेण दिव्वाई भोग भोगाई भुंजमाणे विहरति, इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं १. नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं १२ नमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्व साहूणं । (क, ख, ग, घ, च, छ ) । २. नाम (क, ख, छ); णाम (च ) 1 ३. रिद्धत्थमिय ( क, ख, ग, च); रिद्धित्थिमिय (घ, छ) । ४. ओ० सू० १ । ५. दरिसणिज्जा (वृ) ६. पोराणे (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ७. ओ० सू० २-७ । ८. सं० पा०—असोयवरपाथवे पुढविसिलापट्टए वक्तव्या ओवाइयगमेणं नेया । पूर्णपाठार्थं द्रष्टव्यं ओ० सू० ८ १३ । ६. ओ० सू० १६-६६ । १०. सूरिया णामं (वृ ) । ११. महतामहतनट्ट (क, ख, ग, च) । १२. परूप्पवादियरवेणं ( ख ) । ८१ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासति' । सूरियाभेण भगवओ वंदण-पदं । ८. तत्थ समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे (दीवे ? ) भारहे वासे आमलकप्पाए नयरीए बहिया अंबसालवणे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणं पासति, पासित्ता हतुटु-चित्तमाण दिए पीइमणे' परमसोमणस्सिए हरिसवस'. विसप्पमाणहियए विगसियवरकमलणयणे' पयलिय'-वरकडग-तुडिय-केऊर-मउड-कुंडलहार-विरायंतरइयवच्छे पालव-पलबमाण-धोलंत-भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं सुरवरे सीहासणाओ अब्भुठेइ, अब्भुढेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेति, करेत्ता 'तित्थयराभिमुहे सत्तटुपयाई" अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणू धरणितलं सि निहट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि 'निवेसेइ, निवेसेत्ता" ईसि पच्चुन्नमइ, पच्चुन्नमित्ता 'कडयतुडियथंभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ, पडिसाहरेत्ता' करयलपरिग्गहियं 'दसणहं सिरसावत्तं'' मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासीनमोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं आदिगराणं तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं 'पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं'" लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं जीवदयाणं सरणदयाण बाहिदयाण धम्मदयाण धम्मदेसयाण धम्मनायगाणं धम्मसारहीण धम्मवरचाउरतचक्कवट्टीणं अप्पडिहयवरनाणदसणधराण वियदृछउमाण" जिणाणं जावयाण "तिण्णाणं तारयाणं बुद्धाणं वोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं 'सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं सिवमयलमख्यमणंतमक्खयमव्वावाहमपुणरावत्तयं" सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आइगरस्स तित्थयरस्स जाव सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामस्स । वंदामि ण भगवंतं तत्थगयं इहगते, पासइ मे भगवं तत्थगते इहगतं ति कटट वंदति णमंसति, वंदित्ता णमंसित्ता 'सीहासणवरगए पुव्वाभिमुहं सण्णिसण्णे" || १. पासइ पासित्ता (क, छ)। १३. X (क, ख, ग, घ)। २. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । १४. विउट्टछम्माणं (क); - (ख, ग, घ); ३. पीयमणे (क, ख, ग, घ, च, छ) । विउट्टछउमाणं (च)। ४. हरसवस (घ)। १५. जाणगाणं (क, ख, ग, घ)। ५. विहसिय' (छ)। १६. बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं तिण्णाणं ६. पचलिय (च)। तारयाणं (क, ख, ग, घ)। ७. सत्तट्रपयाई तित्थयराभिमुहे (क, ख, ग, घ, १७. x (क, ख, ग, घ); सव्वन्तुणं सव्वदंसीणं ८. जाणं (च, छ) । ६. णिमेइ णिमेत्ता (क, ख, ग, च)! १०. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। ११. सिरसावत्तं दसनहं (क, ख, ग, घ, च, छ)। १२. सहसंबुद्धाणं (ओ० सू० २१) । १८. 'मपुणरावत्ति (च)। १६. "नामधेज्ज (क)। २०. पासउ (क, ख, ग, घ, च, छ)। २१. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ); सिंहासनवरगतः गत्वा च (व)। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरियाभो आभिओगिय-देव-पेसण-पदं ६. 'तए णं तस्स सूरियाभस्स" इमे एयारूवे 'अज्झथिए चिंतिए पथिए मणोगए संकप्पे' समुपज्जित्था-सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं वंदित्तए नमंसित्तए सक्कारितए सम्माणित्तए कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासित्तएत्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता आभिओगिए देवे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आमलकप्पाए नयरीए बहिया अंबसालवणे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तं गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवं दीवं भारहं वासं आमलकप्पं नयरि अंवसालवणं चेयं समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेह, करेत्ता वंदह णमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता साई-साई नामगोयाइं साहेह. साहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमंडलं जं किंचि 'तणं वा पत्तं वा कळं वा सक्करं वा असुइं अचोक्खं पूइयं दुभिगंधं तं सव्वं आहुणिय-आहुणिय एगंते एडेह, एडेत्ता णच्चोदगं णाइमट्टियं पविरलफुसियं' रयरेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगंधोदयवासं वासह, वासित्ता णिहयरयं णटरयं भट्टरयं उवसंतरयं पसंत रयं करेह, करेत्ता जलयथलयभासुरप्पभूयस्स बेंटट्ठाइस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमस्स जन्नुस्सेहपमाणमेत्ति ओहिं' वासं वासह, वासित्ता कालागरु-पवरकुंदुरुक्क"-तुरुक्कधूव"-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंध"-वरगंधगंधियं" गंधवट्टिभूतं दिव्वं सुरवराभि वाटत. १. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि २. मणोगए अज्झथिए चितिए पत्थिए संकप्पे णमंसामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि। एयं मे पेच्चा ३. 'सेयं खलु' अतः प्रारभ्य 'पज्जुवासित्तएत्ति हियाए सुहाए खमाए दयाए णिस्सेयसाए कट्ट' इतिपर्यन्तः पाठो वृत्त्याधारण स्वीकृतः । आणुगामियत्ताए भबिस्सतित्ति कटु । ज्ञाताधर्मकथायां अस्य संवादी पाठो लभ्यते। ४. तुम्भे (छ)। द्रष्टव्यं अंगसुत्ताणि भाग ३ पृष्ठ ३७१: ५. तणं वा, काष्ठं वा, काष्ठशकलं वा, पत्रं वा, नायाधम्मकहाओ २१११११२। आदर्शेषु कचवरं वा (व)। विस्तृतः पाठो लभ्यते-एवं खलु समणे भगवं ६. पफुसियं (क, ख, ग, घ, च)। महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आमल- ७. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । कप्पाए नयरीए बहिया अंबसालवणे चेइए ८. पमाणमेत्तं (क, ख, ग, घ)। अहापडिरूवं मोग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं ६. ओह (क, घ, च)। तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ! तं महाफलं १०. कंदुरुक्क (क, ख, ग, घ, च); "कुदरुक्क खलु तहारूवाणं अरहंताणं णामगोयस्स वि (छ)। सबणयाए किमंग पुण अभिगमण-बंदण-णमंसण- ११. धूय (क, ख, ग, घ); धूमय (च)। पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि १२. सुगंधि (पइण्णगसमवाओ सू० १४४) । आयरियस धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए १३. वरगंधियं (घ) । किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ रायपसेणइयं गमणजोग्गं करेह य 'कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता" य खिप्पामेव एयमाणत्तियं' पच्चप्पिणह ॥ आभिओगिय-देवेहि भगवओ वंदण-पदं १०. तए णं ते आभिओगिया देवा सूरिया भेणं देवेणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुटु चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण° हियया करयलपरिगहियं दसणह सिरसावत्तं 'मत्थए अंजलि' कटु एवं देवो ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुगंति, पडिसुणेत्ता उत्तरपुरथिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वे उब्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंडं निसिरंति, तं जहा--रयणाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं' अंजणाणं अंजणपुलगाणं रययाण जायसवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्राणं अहाबायरे पोग्गले परिसाउँति, परिसाडेत्ता अहासूहमे पोग्गले परियायंति, परिया इत्ता दोच्चं पि वेउब्बियसमुग्धाएणं समोहणंति, समोहणित्ता उत्तरवेउब्वियाई रूवाई विउव्वंति, विउवित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए 'चवलाए चंडाए° जवणाए" सिग्याए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुदाणं मझमझेणं बीईवयमाणावीईवयमाणा जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव आमलकप्पा णयरी जेणेव अंवसालवणे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं महावीरं तिक्खुत्तो 'आयाहिणं पयाहिण करेंति, करेत्ता वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी--अम्हे णं भंते ! सूरियाभस्स देवस्स आभियोग्गा देवा देवाणुप्पियं वंदामो णमसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं पज्जुवासामो ।। वंदणाणुमोदण-पदं ११. देवाइ" ! समणे भगवं महावीरे ते देवे"एवं वयासी-'पोराणमेयं देवा ! जायमेयं देवा ! किच्चमेयं देवा ! करणिज्जमेयं देवा! आइण्णमेयं देवा ! अब्भणुण्णायमेयं देवा ! जण्णं भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियदेवा अरहते भगवंते वंदंति १. कारावेह करेत्ता य कारावेत्ता (क, ख, ग, घ, ६. ओकिट्ठाए (घ)। १०. चंडाए चवलाए (क, ख, ग, घ, च, छ) । २. सर्वादशेषु एवमाणत्तियं' पाठोस्ति, किन्तु ११. जयणाए (क, ख, ग, घ, च, छ)। अर्थविचारणया तथा औपपातिक (६१ सूत्र) १२. आयाहिणपयाहिणं (क, छ) । अनुसत्य पायमाणत्तियं' पाठः स्वीकृत: 1 १३. देवाय (क, ख, ग, च, छ); तए णं देवा य 'एवमाणत्तियं' लिपिदोषाज्जात इति संभाव्यते। ३. सं० पा०--हट्टतुटु जाव हियया । १४. देवा (क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । १५. जुत्तमेयं देवा पोराणमेयं देवा किच्चमेयं देवा ५. अंजलि मत्थए (क, ख, ग, घ, च, छ) । ... (छ); पोराणमेतत् "जीतमेतत् अभ्यनु६. जोइरसाणं (घ, च)। ज्ञातमेतत्... करणीयमेतत् ..."आचीर्णमेतत.. ७. रयणाणं जाव (च, छ) ! ८. समोहणति (क, ख, ग, घ, छ) । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता तओ साइ-साइं जामगोयाइं साहिति, तं पोराणमेयं देवा ! •जीयमेयं देवा! किच्चमेयं देवा! करणिज्जमेयं देवा ! आइण्णमेयं देवा !० अब्भणुण्णायमेयं देवा ! आभिओगिएहि जोयणमंडलनिव्वत्तण-पदं १२. तए णं ते आभिओगिया देवा' समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठ 'तुट्ठ-चित्तमाणं दिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण° हियया समण भगवं महावीरं वदति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता उत्तरपुरथिम दिसीभागं अवक्कमंति, भवक्क मित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाई दंड निसिरंति, तं जहा–रयणाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसार गल्लाणं हंसगम्भाण पुलगाणं सोगंधियाण जोईरसाणं अंजणाणं अंजणपुलगाणं रययाणं जायरूवाण अंकाणं फलिहाणं रिटाणं अहावायरे पोग्गले परिसा.ति, परिसाडेत्ता अहासुहमे पोग्गले परियायंति, परियाइत्ता दोच्चं पि वेउव्वियसमग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संवट्यवाए" विउव्वंति, से जहाणामए-भइयदारए सिया तरुणे ‘वलवं जुग जुवाणे" अप्पायके थिरग्गहत्थे 'दढपाणि-पाय-पिट्ठेतरोपरिणए"' घण-णिचिय-वट्टवलियखंधे चम्मेदृगदुघण-मुट्ठिय-समाहय-निचियगत्ते उरस्सवलसमण्णागए तलजमलजुयलवाहू लंघण-पवणजइण-पमद्दणसमत्थे" छेए दक्खे पत्तठे" कुसले मेधावी णि उणसिप्पोवगए एग महं 'दंडसंपुच्छणि वा सलागाहत्थगं वा५ वेणु सलाइयं वा गहाय रायंगणं वा रायंतेउरं वा 'आराम वा उजाणं वा देवउल वा सभं वा पर्व वा अतुरियमचवलमसंभंतं निरंतरं सूनि उण सव्वतो समंता संपमज्जेज्जा, एवामेव तेवि सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा संवद्रयवाए १. पोराणयमेयं (क, ख, ग, घ, च)। क्रमो भिन्नो विद्यते--लंघणवग्गणजवणवायाम२. सं० पा० --देवा जाव अब्भणुण्णायमेयं । समत्थे (°गयणवायामणसमत्थे-च, जयण ३. देवा २ (क, ख, ग, घ, च, छ) । वायामपमद्दणसमत्थे-छ) चम्मेट्ठदुधणमुट्ठिय४. सं. पा.--हट जाव हियया। समाहयनिचियगते (गायगते-क, ख, ग, ५. सं० पा० रयणाणं जाव रिट्ठाणं । घ) उरस्सबलसमण्णागए तालजमलजुयल६. अहबायरे (क, ख, ग, च)। बाहू (जुयलफलिहनिभबाहू (क, ख, ग, घ, ७. संवट्टावाए (क) ८. कम्मारदारए (क, ख, ग, घ, च); भइयदारए १३. वायामणसमत्थे (वृपा)। कम्मादारए (छ)। १४. पढें--प्रष्ठो--वाग्मी (वृ, जी० ३।११८) । ६. जुगवं बलवं (क, ख, ग, घ, च, छ)। १५. सलागाहत्थमं वा दंडसंपुच्छणि वा (वृ)। १०. अप्पायंके थिरसंघयणे (क, ख, ग, घ, च, छ) १६. देवउलं वा सभं वा पदं वा आराम वा ११. पडिपूण्णपाणिपाए पिळंतरोरुपरिणए (क, ख, उज्जाणं वा (व)। ग, घ, च, छ); दढपाणिपायपासपिट्ठत रोरु- १७. एवमेव (च); एवमे (छ) । परिणते (अणु० ४१६, जी० ३१११८) । १८. संवटवाए (क, ख, ग, घ, छ); संवट्टावाए १२. वलियावलियखंधे (क, ख, ग, घ, छ); वलिय वलियखंधे (च); अतः परं आदर्शेषु पाठाना Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ रायपसेणइयं विउव्वंति, विउव्वित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वतो समंता जोयणपरिमंडलं जं किंचि 'तणं वा पत्तं वा' 'कट्ठ" वा सक्करं वा असुइं अचोक्खं पूइयं दुन्भिगंधं तं सव्वं आहुणिय-आहुणिय एगते एडेंति, एडित्ता खिप्पामेव उवसमंति', उवसमित्ता--दोच्चं पि वेउन्वियसमग्याएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता अब्भवद्दलए विउव्वं ति', से जहाणामएभइयदारगे सिया तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए एगं महं दगवारगं वा 'दगथालगं वा दगकलसगंवा दगभगंवा गहाय आराम वा 'उज्जाणं वा देव उलं वा सभं वापवं वा अतरिय 'मचवलमसंभंतं निरंतरं सुनिउण. सव्वतो समंता आवरिसेज्जा, एवामेव तेवि सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा अब्भवद्दलए विउव्वंति, विउविवत्ता खिप्पामेव पतणतणायंति', पतणतणाइत्ता खिप्पामेव विज्जुयायंति, विज्जुयाइत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमंडलं गच्चोदगं णातिमट्टियं तं पविरल-फुसियं रयरेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगंधोदगं वासं वासंति, वासेत्ता णिहयरयं णट्टरयं भटुरयं उवसंतरयं पसंतरयं करेंति, करेत्ता खिप्पामेव उवसामंति, उवसामित्ता___तच्चं पि वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता पुप्फवद्दलए विउच्वंति, से जहाणामए-मालागारदारए सिया तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए एगं महं 'पुप्फछज्जियं वा पुप्फपडलगं वा पुप्फचंगेरियं वा गहाय रायंगणं वा" 'रायंतेउरं वा आराम वा उज्जाणं वा देवउलं वा सभं वा पर्व वा अतुरियमचवलमसंभंतं निरंतर सुनिउणं सव्वतो समंता कयग्गहगहियकरयलपब्भट्ठविप्पमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेज्जा, एवामेव ते सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा पुष्फवद्दलए विउव्वंति, विउवित्ता खिप्पामेव पतणतणायंति", 'पतणतणाइत्ता खिप्पामेव विज्जुयायंति, विज्जुयाइत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स मुल्वओ समंता जोयणपरिमंडलं जलयथलयभासुरप्पभूयस्स बेंटट्ठाइस्स दसद्धवण्णकुसुमस्स जण्णुस्सेहपमाणमेत्ति ओहिं" वासं वासंति, वासित्ता कालागरुपवरकंदुरुक्क "-तुरुक्क-धूव-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं" गंधवट्टिभूतं दिव्वं सुरवरा भिगमणजोगं करेंति य कारवेंति य करेत्ता य कारवेत्ता य खिप्पामेव उवसामंति, उवसामित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं १. सं० पा०-पत्तं वा तहेव । ६. पप्फुसियं (क, ख, ग, घ)। २. तणकाष्ठादि (व)। १०. पुप्फडलग वा पुष्फचंगेरियं वा पुप्फवस्थियं वा ३. उवसमिति (च, छ); पच्चुवसमंति (व) । (क, ख, ग, घ, च); पुप्फपडलग वा पुप्फ४. विउव्वंति अब्भवद्दलए विउवित्ता (क, ख, पत्थियं वा पुप्फचंगेरियं वा पुप्फछज्जियं वा ग, घ, च, छ)। ५. दगवेलगं° (क, ख, ग, घ, च); दगवालगं° ११. सं० पा० रायंगणं वा जाव सव्वतो। (छ); दगकुंभगं वा दगथालगं वा १२. पतणतणायति (क, ख, ग, घ, छ); दगकलरागं वा (व)। सं०पा-पतणतणायंति जाव जोयणपरिमंडलं । ६.सं० पा०-आराम वा जाव पर्व । १३. उव्विं (क); ओहं (च) । ७.सं० पा०-अतुरिय जाव सव्वतो। १४. कुंदरुक्क (ख, म, घ, च)। ८. पतणुतणायंति (क, ख, ग, घ, छ)। १५. गंधवरगंधियं (च, छ) । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो महावीरं तिक्खुत्तो' 'आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदति नमसंति, वंदित्ता नमसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ अंवसालवणाओ चेइयाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता ताए उक्किट्ठाए' 'तुरियाए चवलाए चंडाए जवणाए सिग्वाए उद्भूयाए दिव्are देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झमज्झेणं वीईवयमाणा-वीईवयमाणा जेणेव सोहम्मे कप्पे जेणेव सूरियाभे विमाणे जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुरियाभं देवं करयलपरिम्महियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एणं विजएणं वद्धावेंति, बद्धावेत्ता तमाणत्तियं पञ्चप्पियंति ॥ सूरियामस्स गमण - घोसणा-पदं १३. तए णं से सूरिया देवे तेसि आभिओगियाणं देवाणं अंतिए एयमठ्ठे सोच्चा निसम्म हट्ट - "चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसबस - विसप्पमाण हियए पायत्ताणियाहिवरं देवं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो ! देवाणुपिया ! सूरियाभे विमाणे सभाए सुहम्माए मेघोघरसियगंभीरमहरसदं जोयणपरिमंडल सूसरं घंट तिक्खुत्तो उल्लालेमाणे - उल्लालेमाणे महया - महया सद्देणं उग्घोसेमाणे - उग्घोसेमाणे एवं 'वयाहि - आणवेइ" णं भो ! सुरियाभे देवे, गच्छति णं भो ! सूरिया देवे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आमलकप्पाए जयरीए अंवसालवणे चेइए समणं भगवं महावीरं अभिवंदए, तुब्भेवि णं भो ! देवाणुप्पिया ! सव्विड्ढीए' 'सव्वजुतीए सव्ववलेणं सव्वसमुदपणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सच्वविभूसाए सव्वसंभ्रमेणं सव्वपुप्फगंध मल्लालंकारेणं सव्वतुडियसहसणिनाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं मह्या समुदएणं महया वरतुडिय जमगसमग-पडुप्पवाइयरवेणं संख-पणव-पडह-भेरि झल्लरि-खर मुहि हुडुक्क मुरयमुइंग-दुंदुहि णिग्घोस' णाइयरवेणं णियगपरिवालसद्ध संपरिवुडा साई- साई जाणविमाणाई दुरूढा समाणा अकालपरिहीणं' चेव सूरियाभस्स देवस्स अंतियं' पाउब्भवह || १४. तए से पायत्ताणियाहिवती देवे सूरियाभेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे हट्टतुट्ट" - • चित्तमादिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाण हियए" करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं देवो ! तहत्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव सूरियाभे विमाणे जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव मेघोघर सियगंभीरमहरसद्दा जोयणपरिमंडला सुस्सरा घंटा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं मेघोघ १. सं० पा०-- तिक्खुत्तो जाव वंदित्ता । २. सं० पा० - उक्किट्ठाए जाव वीईवयमाणा । ३. अंते (क, ख, ग ) ! ४. सं० पा०--- हट्टतुट्ट जाव हियए । ५. वयासी आणवेसि (क, ख, ग, घ, च, छ ) 1 ६. सन्वड्डीए (छ); सं० पा० - सव्विड्ढीए जाव णाइयरवेणं । ७. णातियरवेणं (क, ख, ग, घ, च, छ) 1 ८. अकालपरिहीणा ( ख, ग, घ, च, छ) । ८७ ९. अंतिके (वृ) । १०. सं० पा०--- हटुतुट्ठ जाव हियए । ११. अतः परं 'क, च, छ' इत्यादर्शेषु एवं देवो' 'ख, ग' आदर्शयोः एवं देवा' इत्येव पाठो विद्यते । वृत्तौ 'जाव पडिणित्ता' इति संक्षिप्तपाठस्य निर्देशोस्ति यावच्छब्दकरणात् करयलपरिसाहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं देवा ! तहत्ति आणाए farer ari पsिसुइ' ति द्रष्टव्यम् । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ रायपसेणइयं रसियगंभीरमहुरसदं जोयणपरिमंडलं सुसरं घंटं तिनुत्तो उल्लालेति । तए णं तीसे' मेघोघरसियगंभीरमहरसहाए जोयणपरिमंडलाए सूसराए घटाए तिखुत्तो उल्लालियाए सभाणीए से सुरियाभे विमाणे पासायविमाण-णिक्खुडावडियसद्दघंटापडिसुया'-सयसहस्ससंकुले जाए यावि होत्था ।। १५. तए णं तेसि सूरियाभविमाणवासिणं वहूणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य एगंतरइपसत्त-निच्चप्पमत्त-विसय-सुहमुच्छ्यिाण सूसरघंटारव-विउलवोल-तुरिय-चवल". पडिवोहणे कए समाणे घोसणकोहलदिण्णकण्ण-एगग्गचित्त-उवउत्त-माणसाणं से पायत्ताणीयाहिवई देवे तस्सि घंटारवं सि गिसंत-पसंतसि महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणे एवं वयासी-हंत सुणंतु भवंतो मूरियाभविमाणवासिणो वहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सूरियाभविमाणपइणो वयणं हियसुहत्थं । आणवेइ णं भो ! सुरियाभे देवे, गच्छइ णं भो ! सरिया देवे जबडीवं दीवं भार वासं आमलकप्पं नार अंवसालवणं चेडयं समण भगवं महावीरं अभिवंदए, तं तब्भेवि ण देवाणप्पिया! सविडढीए अकालपरिहीणं" चेव सरियाभस्स देवस्स अंतिय पाउब्भवह ।। सूरियाभविमाणवासिदेवाणं समवसरण-पदं १६. तए णं ते सूरियाभविमाणवासिणो वहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य पायत्ताणियाहिवइस्स देवस्स अंतिए एयमझें सोच्चा णिसम्म हतु- चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण° हियया अप्पेगइया बंदणवत्तियाए अप्पेगइया पूयण वत्तियाए अप्पेगइया सक्कारवत्तियाए अप्पेगइया सम्माणवत्तियाए अप्पेगइया कोऊहलवत्तियाए 'अप्पेगइया असुयाइं सुणिस्सामो, अप्पेगइया सुयाई अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणाइ वागरणा पुच्छिस्सामो, अप्पेगइया सूरियाभस्स देवस्स क्यणमणुयत्तेमाणा" अप्पेगइया अण्णमण्णमण वत्तेमाणा" अप्पेग इया जिणभतिरागणं 'अप्पेगइया धम्मो त्ति अप्पेगइया जीयमेयं ति कटु सविड् ढीए जाव" अकालपरिहीणं" चेव" सूरियाभस्स देवस्स अंतियं पाउन्भवंति !! १. तीए (ख, ग, घ, च, छ) । १०. कोउहल्लवत्तियाए (क, घ); कोऊहल्लवत्ति२. समाणाए (घ)। याए (च); कुतूहलजिनभक्तिरागेण (व)। ३. "वडिसुया (क, ख, ग, घ, च) । ११. अप्पेगइया सूरियाभस्स देवस्स वयणमण्यत्ते४. x (ख, ग, घ, च)। माणा अप्पेगइया अस्सुयाई सुणस्सामो अप्पेग५. हंद (च); अहं भो (छ) । इया सुयाइं निस्संकियाई करिस्सामो (व) । ६. पूर्णपाठार्थ द्रष्टव्यं त्रयोदशसूत्रम् । १२. अण्णमण्णभन्नेमाणा (च, छ) । ७. अकालपरिहीणा (क, ख, ग, घ, च, छ)! १३. x (व)। ८. सं० पा०---हट्टतुट्ट जाव हियया। १४. राय० सू०१३ । ६. अतः परं औपपातिके (सू० ५२) जम्बूद्वीप- १५. अकालपरिहीणा (क, ख, ग, घ, च, छ) 1 प्रज्ञप्तौ (५२७) च 'दसणवत्तियं' पाठो १६. एव (क, घ); एवं (ख, ग, च) । विद्यते । नात्रासौ लभ्यते । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो जाणविमाण-विउव्वण-पदं १७. तए णं से सूरियाभे देवे ते सूरियाभविमाणवासिणो वहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सविडढीए जाव' अकालपरिहीणं चेव अंतियं पाउन्भवमाणे पासति, पासित्ता हतु-'चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण हियए आभिओगियं देवं सद्दावेति. सहावेत्ता एवं वयासी --खिप्पामेव भो ! देवाण प्पिया ! अणेगखंभसयसणि विलृ लीलट्टियसालभंजियाग' ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालगकिन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्तं खंभुग्गय-वइरवेइया -परिगयाभिरामं विज्जाहर-जमलजुयल-जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्समालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाण भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयालेसं सुहफासं सस्मिरीयरूवं घंटावलि-चलियमहुर-मणहरसरं मूह कंतं दरिसणिज्ज णिउणोविय-मिसिमिसेंतमणि रयणघंटियाजालपरिक्खित्तं' जोयणसयराहस्सवित्थिण्णं दिव्वं गमणसज्ज सिग्घगमणं णाम जाणविमाण वि उव्वाहि, विउवित्ता खिप्पामेव एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।। १८. तए णं से आभिओगिए देवे सूरियाभेण देवेणं एवं कुत्ते समाणे हट्टतुटु 'चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण° हियए करयलपरिग्गहियं 'दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं देवो! तहत्ति आणार विणएण वयणपडि सुणेइ, पडिसुणित्ता उत्तरपुरथिमं दिसीभागं अवक्कमति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहाणइ. समोहणित्ता संखेज्जाइजोयणाई 'दडं निसिरति, त जहा--- रयणाणं वइराण वेरुलियाण लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगम्भाणं पुलगाणं मोगंधियाणं जोईरसाणं अंजणाणं अंजणपुलगाणं रययाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाण° अहावायरे पोग्गले 'परिसाउँइ, परिसाडिला अहासुहमे पोग्गले परियाएइ, परियाइत्ता" दोच्चं पि वेउब्वियसमुग्धारण समोहणति, समोहणित्ता अणेगखंभसयसण्णि विट्ठ' 'लीलट्ठियसालभंजियागं ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-प उम - लयभत्तिचित्तं खंभुग्गय-वइरवेइया-परिगयाभिरामं विज्जाहर-जमलजुयल-जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्समाल णीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं भिभिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं घंटावलि-चलिय-महुर-मणहरसरं सुहं कृतं दरिसणिज्जं णिउण१. राय० सू० १३ ॥ ८. 'उचितानि (वृ)। २. मं० पा०-- हट्टतुट जाद हियए । ९. मिसिमिमेंतरयण' (क, ख, ग, घ, च)। ३. 'सालिभंजियाग (च, छ) । १०. एवमाणत्तियं (ख, ग, घ, च, छ) ।। ४. वरवइरवेइया (क, ख, ग, घ, च); पवरवइर. ११. सं० पा०.--हतुटू जाव हियाए। __ वेइया (छ)। १२. सं० पा..करयलपरिग्गहियं जाव पडिसुणेइ। ५- अच्चीसहस्समालिणीय (क, ख, ग, घ, च, १३. सं० पा०.---जोयणाई जाव अहाबायरे । १४. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. भासिमाण (क, ख, घ, च); भासमाणं १५. सं० पा०-अणेगखंभसयसण्णिविट्ठ जाव (ग); भिसिमाण (छ) । जाणविमाणं । ७. भिब्भिसिमाणं (क, ख, ग, घ) Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं ओविय-मिसिमिसेंतमणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं जोयणसयसहस्सवित्थिण्णं दिव्वं गमणसज्ज सिग्धगमणं णाम दिव्वं जागविमाणं वेउन्वि' पबत्ते यावि होत्था ॥ • तिसोवाणपडिरूवग-विउव्वण-पदं १६. तए णं से आभिओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाणविमाणस्स तिदिसिं' तिसोवाणपडिरूवए विउव्वति, तं जहा--पुरथिमेणं दाहिणणं उत्तरेणं । तेसिं तिसोवाणपडिरूवगाणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा~-वइरामया णिम्मा, रिट्ठामया पतिट्ठाणा, वेरुलियामया खंभा, सुवण्णरुप्पामया फलगा, लोहितक्खमइयाओ सूईओ, वइरामया संधी, णाणामणिमया अवलंबणा अवलंबणबाहाओ य पासादीया' 'दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। ० तोरण-पदं २०. तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं' 'पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं तोरणा पण्णत्ता । तेसि गं तोरणाणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-तेणं तोरणा णाणामणिमया, णाणामणिएसु" थंभेसु उवनिविट्ठसण्णिविट्ठा, "विविमुत्ततरारूवोवचिया', विविहतारारूवोवचिया" 'ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-बालग-किन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजरवणलय-पउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गय-वइरवेइया-परिगयाभिरामा विज्जाहर-जमलजुयलजंतजुत्ता पिव अच्चीसहस्समालणीया रूवगसहस्सकलिया भिसमाणा भिब्भिसमाणा चक्खुल्लोयणलेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवा घंटावलि-चलिय-महुर-मणहरसरा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ ० अट्ठमंगल-पदं २१. तेसि ण तोरणाणं उप्पि अट्ठमंगलगा पण्णत्ता, तं जहा-सोत्थिय-सिरिवच्छणंदियावत्त-वद्धमाणग-भद्दासण-कलस-मच्छ-दप्पणा' 'सव्व रयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा समरीइया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।। • भय-पदं २२. तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे किण्हचामरज्झए 'नीलचामरज्झए लोहियचामर१.विउब्बियं (क, ख, ग, च, छ); वेउब्वियं मणिमया गाणामणिमएसु (व)। ७. विविहमुत्तंत रोवचिया (जी० ३।२८८) । २. तिदिसि ततो (क, ख, ग, घ, च)। ८. विविहतारारूवोवइया विविहमुत्तंतरोवविया ३.x (क, ख, ग, घ, च, छ) । (क, ख, ग, घ, च, छ); सं० पा०४. सं० पा०-पासादीया जाव पडिरूबा। विविहतारारूवोवचिया जाव पडिरूवा। ५. तिसोमाण (च)। क्वचिदेतत्साक्षाल्लिखितमपि दृश्यते (व) । ६. पुरतो तोरणे विउव्वति ते णं तोरणा जाणा- ६.सं० पा०-दप्पणा जाव पडिरूवा।। मणिमएसु (क, ख, ग, घ);पुरतो तोरणा १०.सं० पा० -किण्हचामरज्झए जाव सुक्किलविउव्वंति ते णं तोरणा जाणामणिमएस चामरज्झए। (छ); पुरतो तोरणे विउव्वइ तोरणा णाणा Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ज्झए हालिद्दचामरज्झए° सुक्किल चामरज्झए अच्छे सण्हे रुप्पपट्टे वइरदं डे' जलयामलगंधिए सुरम्मे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे विउव्वइ ।। • छत्तातिछत्तआदि-पदं २३. तेसि ण तोरणाणं उप्पि बहवे छत्तातिछत्ते 'पडागाइपडागे घंटाजुगले चामरजुगले" उप्पलहत्थए पउम - णलिण - सुभग - सोगंधिय-पोंडरीय-महापोंडरीय-सतपत्तसहस्सपत्तहत्थए सव्वरयणामए अच्छे 'सण्हे लण्हे घट्टे मछे णीरए निम्मले निप्पंके निक्कंकडच्छाए सप्पभे समरीइए सउज्जोए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे° पडिरूवे विउव्वइ॥ ० भूमिमाग-विउवण-पदं २४. तए णं से आभिओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाणविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं विउव्वति, से जहाणामए-आलिंगपुक्खरेइ वा मुइंगपुक्खरेइ वा 'परिपुण्णे सरतलेइ" वा करतलेइ वा चंदमंडलेइ वा सूरमंडलेइ वा आयंसमंडलेइ वा उरब्भचम्मेइ वा 'वसहचम्मेइ वा" वराहचम्मेइ वा सीहचम्मेइ वा वग्घचम्मेइ वा 'मिगचम्मेइ वा“दीवियचम्मेइ वा अणेगसंकूकीलगसहस्सवितते, आवड-पच्चावड-सेढि-पसेढि'सोत्थिय-सोवत्थिय-पुसमाणव-वद्धमाणग-मच्छंडग-मगरंडग"-'जार-मार'.फल्लावलिपउमपत्त-सागरतरंग-वसंतलय-पउमलयभत्तिचित्तेहिं सच्छाएहिं सप्पभेहिं समरीइएहिं सउज्जोएहि णाणाविपंचवण्णेहिं मणीहिं उवसोभिए, तं जहा- किण्हेहिं णीलेहिं लोहिएहिं हालिद्देहिं सुक्किलेहिं । • मणि-वण्णावास-पदं २५. तत्थ णं जेते किण्हा मणी, तेसिं गं मणीणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए--जीमूतएइ वा अंजणेइ वा खंजणेइ वा कज्जलेइ वा 'मसीइ वा मसीगुलियाइ वा" गवलेइ वा गवलगुलियाइ वा भमरेइ वा भमरावलियाइ वा भमरपतंगसारेइ" वा १. वइरामयदंडे (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. परिपुण्णसरतलेइ (वृ)। २. सुकम्मे (क, ख, ग, घ)! ७. X (क, ख, ग, घ, च, छ)। ३. घंटाजुयले पडागाइपडागे (क, ख, ग, घ, च); ८. छगलचम्मेइ वा (वृ); जीवाजीवाभिममे घंटाजुयले चामरजुयले पडागाइपडागे (छ)। (३१२७७) विगचम्मेति वा' इति पाठोस्ति । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती (४।३०) गंगामहानद्यास्तोर- ६. सहस्सवितते जाणाविहपंचवन्नेहिं मणीहिं णवर्णने तथा जीवाजीवाभिगमे (३१२९१ वापी- उवसोभिते (व)। वर्णने च स्वीकृतपाठस्य संवादी पाठो लभ्यते । १०. सोवत्थिय (च); सोत्थिय (छ)। ४. अत्र सर्वासु प्रतिषु 'कुमुद' इति पाठो लभ्यते, ११. मच्छंडा-मगरंडा (च, छ) । किन्तु वृत्तौ 'पद्महस्तका:' पाठो व्याख्यातोस्ति १२. जारा-मारा (च)। तथा १३८ सूत्रे जाव 'पउमहत्या' एवंविधः १३. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ); क्वचित् 'मसी पाठः प्राप्यते, तेनात्र ‘पउम' इति पाठो इति वा मसीगुलिया इति वा' न दृश्यते (५)। युज्यते । १४. पत्तसारेइ (क, ख, ग, घ, छ) । ५. सं० पा०-अच्छे जाव पडिरूवे। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ रायपसेणइयं जंबूफलेइ वा अद्दारिद्रुइ वा परपुढेई' वा गएइ वा गयकलभेइ वा 'किण्हसप्पेइ वार किण्हकेस रेइ वा आगासथिग्गलेइ वा किण्हासोएइ वा किण्हकणवीरेइ वा किण्हबंधजीवेइ वा भवे एयारूवे सिया ? णो' इणठे समठे, 'ते णं किण्हा" मणी इत्तो इट्टतराए चेव कंततराए चेव 'पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णणं पण्णत्ता। २६. तत्य ण जेते नीला मणी, तेसि णं मणीणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए-भिगेइ वा भिंगपत्तेइ वा सुएइ वा सुयपिच्छेड वा चासेइ वा चासपिच्छेइ वा णीलीइ वा णीलीभेदेइ वा णीलीगुलियाइ वा सामाएइ वा 'उच्चंतगेइ वा वणरातीइ वा हलधरवसणे इ वा मोरग्गीवाइ वा 'पारेक्यम्गीवाद वा अयसिकुसुमेइ वा 'वाणकूसुभेइ वा" अंजणके सियाकुसुमेइ वा नीलुप्पलेइ वा णीलासोगइ वा ‘णीलकणवीरेइ वा णीलबंधजीवेइ वा भवे एयारूवे सिया? णो इणठे सभठे, ते ण णीला मणी एत्तो इतराए चेव" *कंततराए चेव पियत राए चेव मणुषणतराए चेव मणामतराए चेव वणेणं पण्णत्ता ।।। २७. तत्य ण जेते लोहिया मणी, तेसि ण मणीणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए -- 'ससरुहिरेइ वा उरभरुहिरेइ वा वराहरुहिरेइ वा मणुःसरुहिरेइ वा महिसरुहिरेइ वा वालिंदगोवेइ वा वालदिवाकरेइ वा संझब्भ रागेइ वा गुंजद्धरागेइ वा जासुअणकुसुमेइ वा किंस्यकुसुमेइ वा पालियायकुसुमेइ वा जाइहिंगुल एइ वा सिलप्पवालेइ वा पवाल अंकुरेइ वा लोहियक्षमणीइ वा लक्खारमगेइ वा किमि रागवलेइ वा चीणपिदरासीइ वा 'रत्तप्पलेइ बा" रत्तासोगेइ वा रत्तकणवीरेइ वा रत्तबंधजीवेइ वा भवे एयारवे सिया? जो इणछे समठे, ते णं लोहिया मणी इत्तो इतराए चेव •कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्ण तराए चेव मणामतराए चेव ° वण्णेणं पण्णता । २८. तत्थ णं जेते हालिद्दा मणी, तेसि णं मणीणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए– चंपएइ वा चंपगछल्लीइ वा 'चंपगभेएइ वा हालिद्दाइ वा हालिद्दाभेदेइ वा हलिहागुलियाइ वा हरियालियाइ वा हरियालभेदेइ वा हरियालगुलियाइ वा 'चिउरेइ वा १. परदृतेइ (क, ख, ग, च); परठ्ठतेइ (घ)। १०. सं० पा०--इट्ठत राए चेव जाव वणेणं । २. x (क, ख, ग, घ, च) । ११. उरभरुहिरेइ वा ससरुहिरेइ वा नररुहिरेइ वा ३. गोयमा ! णो (जी० ३।२७८) । वराहरूहिरेइ वा बालिंदगोवेइ (क, ख, ग, ४. ओवम्म समणाउसो ! ते णं किण्हा (व) । घ); उरभरुहिरेइ वा नररुहिरेइ वा वराहरु५. ४ (वृ)। हिरे वा बालिदगोवेइ (च); उरभरुहिरेइ वा ६. उच्चंतेति वा (क, ख, ग, घ)। ससरुहिरेइ वा वराहरुहिरेइ वा बालिदगोवेइ ७. x (क, ख, ग, घ, च, छ)1 ८. x (क, ख, ग, घ, च, छ); इत उर्ध्व १२. किमिकंदलेइ (क, ख, ग); किमिरागरत्त क्वचित् -'इंदनीलेइ वा महानी लेइ वा मरग- कंबलेइ (जी० ३१२८०) । तेइ वा' इति दृश्यते (व)। १३. ४ (क ,ख, ग, घ)। ६. णीलबंधुजीवेइ वा णीलकणवीरेइ वा (क, १४. सं० पा०—इट्ठत राए चेव जाव वण्णेणं । ख, ग, घ, च, छ)। १५. ४ (क, ख, ग, घ)! Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो चिउरंगरातेइ वा" 'वरकणगेइ वा वरकणगनिघसेइ वा वरपुरिसवसणेइ वा अल्लकीकुसुमेइ वा चंपाकुसुमेइ वा कुहंडियाकुसुमेइ वा 'कोरंटकदामेइ वा" तडवडाकुसुमेइ वा घोसेडियाकुसुमेइ वा सुवण्णजूहियाकुसुमेइ वा सुहिरण्णकुसुमेइ वा 'वीययकुसुमेइ वा पीयासोगेइ वा पीयकणवीरेइ वा पीयबंधुजीवेइ वा भवे एयारूवे सिया ? णो इणठे समठे, ते णं हालिदा मणी एत्तो इदुतराए चेव' कंततराए चेव पियतराए चेव मणुष्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णेणं पण्णत्ता ॥ २६. तत्थ णं जेते सुक्किला मणी, तेसि णं मणीणं इभेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए-अंकेइ वा 'संखेइ वा चंदेइ वा कुमुद-उदक-दयरय-दहिघण-खीर-खीरपूरेइ वा कोंचावलीइ वा हारावलीइ वा हंसावलीइ वा वलागावलीइ वा चंदावलीइ वा" सारतियबलाहएइ वा धंतधोयरुप्पपट्टेइ वा सालि पिट्ठरासीइ वा कुंदपुप्फरासीइ वा कुमुदरासीइ वा सूक्कच्छिवाडीइ वा पिहुमंजियाइ वा भिसेइ वा मणालियाइ वा गयदंतेइ वा लवंगदलएइ वा पोंडरियदलएइ वा सेयासोगेइ वा सेयकणवीरेइ वा सेयबंधजीवेइ वा भवे एयारूवे सिया ? णो इणठे समठे, ते णं सुक्कि ला मणी एत्तो इटुतराए चेव "कंततराए चेय पियतराए चेव मणण्णतराए चेव मणामतराए चेव बण्णण पण्णत्ता ।। ३०. तेसि णं मणीणं इमेयारूवे गंधे पण्णत्ते, से जहाणामए---कोटुपुडाण वा तगर. पुडाण वा एलापुडाण वा चोयपुडाण वा चंपापुडाण वा दमणापुडाण वा कुंकुमपुडाण वा चंदणपुडाण वा उसीरपुडाण वा मरुआपुडाण वा जातिपुडाण वा जूहियापुडाण वा मल्लियापुडाण वा बहाणमल्लियापुडाण वा केतगिपुडाण वा पाडलिपुडाण वा णोमालियापूडाण" वा अगुरुपुडाण वा लवंगपुडाण वा 'वासपुडाण वा कप्पूरपुडाण वा अणुवायंसि वा ओभिज्जमाणाण वा कोट्रिज्जमाणाण वा भंजिज्जमाणाण" वा उक्किरिज्जमाणाग वा विक्किरिज्जमाणाण वा परिभज्जमाणा" वा भंडाओ' भंडं साहरिज्जमाणाण वा ओराला मणण्ण मणहरा घाणमणनिव्वुतिकरा सव्वओ समता गंधा अभिनिस्सवंति" भवे एयारूवे सिया ? १. चउरंगेइ वा चउरंगरातेइ वा (क, च, छ); ८. वा सिंधुवारमल्लदामेति वा (जी० ३।२८२)। चउरंगेइ वा चिउरंगराते इ वा (ख, ग); १. सं० पा०.-इद्रतराए वेव जाव वण्णणं । चिउरंगेइ वा चिउरंगरातेइ वा (घ) १०. णेमालिया (च)। २.४ ()। ११. कप्पूरपुडाण वा वासपुडाण वा (क, ख, ग, घ, ३. वा सुवण्णसिप्पेइ वा (क, ख, ग, घ, च, छ)। च, छ)। ४.४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। १२. वा पडिकूलवायंसि (छ) । ५. कोरंटवरमल्लदामेति वा (क, ख, ग, च, छ); १३. रुचिज्जमाणाण (जी० ३।२८३) । बीअकसमेइ वा कोरंटवरमल्लदामेति वा १४. परिभाइज्जमाणाण वा (वृपा) । १५. भंडाओ वा (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. सं० पा.--इट्रतराए चेव जाव वणणं । १६. ४ (छ)। ७. संखेति वा चंदेति वा कुंदेति वा दंतेति वा १७. अभिनिस्सदंति (क, ख, ग); अभिनिस्सरंति हंसावलीति बा कोंचावलीति का हारावलीति (छ, वृ); अभिनिस्सवन्ति (वपा)। वा चंदावलीति वा (क, ख, ग, घ, च, छ) । Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं इट्ठे समट्ठे ते णं मणी एत्तो इट्टतराए चेव' "कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चैव मणामतराए चेव' गंधेणं पण्णत्ता ॥ ३१. तेसि णं मणीणं इमेयारूवे फासे पण्णत्ते से जहानामए- आइणेइ वा रूएइ वा बूरेइ वा णवणीएइ वा हंसगब्भतूलियाइ वा सिरीसकुसुमनिचयेइ वा बालकुमुदपत्तरासीइ' वा भवे एयारूवे सिया ? णो इणट्ठे समट्ठे, ते णं मणी एतो इट्टतराए चेव' 'कंततराए चैव पितराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव' फासेणं पण्णत्ता । पेच्छाघर मंडव- विउध्वण-पदं ९४ ३२. तए से आभिओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाणविमाणस्स बहुमज्झदेस भागे, एत्थ णं महं पिच्छाघरमंडवं विउब्वइ - अणेगखंभसयसन्निविट्ठ अब्भुग्गय - सुकयवइरवेइया ं-तोरणवररइय - सालभंजियागं' सुसिलिट्ठ - विसि लट्ठ संठिय-पसत्थ-वेरुलियविमलखंभं णाणामणिकणगरयणखचिय उज्जल बहुसमसुविभत्तभूमिभागं ईहामिय-उसभतुरग नर मगर - विहग वालग किन्नर - रुरु- सरभ चमर-कुंजर वणलय- पउमलयभत्तिचित्तं 'खंभुग्गय - वइरवेड्यापरिगयाभिरामं विज्जाहरजमलजुयल जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्समालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं" कंचणमणिरयणथूभियागं णाणाविहपंचवण्णघंटापडागपरिमंडियग्गसिहरं चवलं मरीतिकवयं विणिम्यंत लाउल्लोइयमहियं " गोसीस - सरस-रत्तचंदण - दद्दर दिन पंचंगुलितलं उवचियवंदणकलसं वंदणघड-सुकय-तोरणपडिदुवारदेसभा गं आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं पंचवण्णसरससुरभिमुक्क पुप्फपुंजोवयारकलियं कालागरु-पवर कुंदुरुक्कतुरुक्क - धूव-मघमघेतगंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूतं 'अच्छर-गण-संघसंविकिणं दिव्वतुडियस संपणाइयं "" अच्छं" "सहं लव्हं घट्टं मठ्ठे णीरयं निम्मलं निप्पंकं निक्कंकडच्छायं सप्पभं समरीइयं सउज्जोयं पासादीयं दरिसणिज्जं अभिरुवं पडिरूवं । • पेच्छाघरमंडवे भूमिभाग- विजयण-पदं १४ ३३. तस्स णं पिच्छाघरमंडवस्स अंत्तो" बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं विउव्वति जाव' मणीणं फासो ॥ १. सं० पा० - इट्ठत राए चैव जाव गंधेणं । २. बालकुसुमपत्तरासीइ (क, ख, ग, घ, च, वृपा) । ३. सं० पा० - इट्टतराए चैव जाव फासेणं । ४. वरवेइया (क, ख, ग, घ च छ ) वृत्तावपि 'वरवेदिका' इति व्याख्यातमस्ति, किंतु जीवाजीवाभिगमस्य ( ३।३७२ ) सूत्रस्य तथा ज्ञाताधर्मकथायाः ( १|१| ८६ ) सूत्रस्य सन्दर्भे वरast' इति पाठ उपयुक्तोस्ति । प्रस्तुतसूत्रस्य (१७) सूत्रे यानविमानवर्णनेपि 'वइरवेइया' इति पाठो लभ्यते । ५. तोरणवरवर (क, ख, ग, घ ) । ६. सालिभंजियागं ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. सुविभत्तदेसभायं (क, ख, ग, घ, 'सुविभत्त देस भूमिभायं (छ) । ८. x (च) । ९. मिरीति (क, ख, ग, घ, च, छ) । १०. लाइयउल्लो इयमहियं (बु) | ११. दिव्वतुडियस संपणाइयं अच्छरघणसंघसंविइष्णं (क, ख, ग, घ, च, छ ) । १२. सं० पा० -अच्छं जाव पडिरूवं । १३. X ( क, ख, ग, घ, च, छ) 1 १४. राय० सू० २४-३१ । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ० पेच्छाघरमंरके उल्लोय-विउवण-पदं ३४. तस्स णं पेच्छाधरमंडवस्स उल्लोयं विउन्वति-पउमलयभत्तिचित्तं' अच्छं' *सण्हं लण्हं घट्ट मळं णीरयं निम्मलं निप्पंक निवकंकडच्छायं सप्पभं समरीइयं सउज्जोयं पासादीयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं ॥ • पेच्छाघरमंडवे अक्खाडग-विउवण-पदं ३५. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगं वइरामयं अक्खाडगं विउव्वति ।। ० अक्खाडए मणिपेढिया-विउवण-पदं ३६. तस्स णं अक्खाडयस्स बहुमज्झदेसभागे, एत्थ गं महेगं मणिपेढियं विउव्वतिअट्ट जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई वाहल्लेणं, सव्वमणिमयं अच्छं' 'सण्हं लण्हं घ→ मट्ठ णीरयं निम्मलं निप्पंक निक्कंकडच्छायं सप्पभं समरीइयं सउज्जोयं पासादीयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं ।। ० मणिपेढियाए सोहासण-विउठवण-पदं ३७. तीसे णं मणिपेढियाए उवरि, एत्थ णं महेगं सीहासणं विउच्वइ । तस्स णं सीहासणस्स इमेयारूसे वण्णावासे पण्णत्ते-तवाणिज्जामया चक्कला, रययामया सीहा, सोवणिया पाया, णाणामणिमयाइं पायसीसगाई, जंबूणयमयाइं गत्ताइ, वइरामया संधी, णाणामणिमए वेच्चे से णं सीहासणे ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किन्नररुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्ते ससारसारोवचियमणिरयणपायपीढे अत्थरग-मिउमसूरग-णवतयकुसंत-लिव-केसर-पच्चत्थुयाभिरामे' 'आईणग-रूय-बूर-णव१. जीवाजीवाभिगमे (३१३०८) 'एउमलयाभत्ति- एतः पाठभेदयिते लिव्व' इति पाठस्य चित्ता जाव सामलयाभत्तिचित्ता सव्वतवणिज्ज- 'लिच्च' इति रूपे परावर्तनं जातम् । वृत्तिकारमया' इति पाठो लभ्यते । किन्तु प्रस्तुतसूत्रा- र्यथा यथा पाठो लब्धस्तथा तथा व्याख्यातःदर्शषु केवलं पचलताया एव उल्लेखो विद्यते, नायाधम्मकहाओ (वृत्तिपत्र १७) लिम्बोवृत्तावपि इत्थमेवास्ति - पचलताभक्तिचित्रं बालोरभ्रस्योर्णायुक्ताकृत्तिः । जीवाजीवाभिगमे 'जाव पडिरूवमि' ति, यावच्छन्दकरणात (वृत्तिपत्र २१०) लिच्चानि-नमनशीलानि 'अच्छं सण्ह' मित्यादिविशेषणकदम्बकपरिग्रहः । च केशराणि | रायपसेणइयवृत्ती लिम्बानि २, ३. सं० पा०—अच्छं जाव पडिरूवं । कोमलानि नमनशीलानि च केशराणि मध्ये ४. वच्चे (च)। यस्य मसुरकस्य तत् नवत्वक्कुशान्तलिम्ब५. संसार' (क, ख, ग, च, छ)। केशरम् । रायपसेणइयवृत्तौ कोमलानि, जीवा६.प्रस्तुतसूत्रे अस्य पदस्य द्वौ पाठभेदो लभ्येते जीवाभिगमस्य वृत्तो नमनशीलानि इति लिक्ख (क); लिव्व (ख, ग, घ, च, छ)। व्याख्यातमस्ति । अनेन अर्थसादृश्यं प्रतीयते । ज्ञाताधर्मकथायां (१।१।१८) अस्य पदस्य लिच्च' इति पदं लिपिकाराणां प्रसादत एवं ' लिव इति पाठभेदो विद्यते । जीवाजीवा- जातमस्ति। भिगमे (३३३११) मूलपाठे लिच्च' इति पदं ७, पत्थयाभिरामे (च); पडुत्थयाभिरामे (छ) । विद्यते, पाठान्तरे च 'लिक्ख' इति पदमस्ति । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं णीय-तुलफासे सुविरइयरयत्ताणे ओयवियखोमदुगुल्लपट्टपडिच्छायणे रत्तंसुअसंवुए सुरम्मे" पासाईए' दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ ० सीहासणे विजयदूस-विउध्वण-पदं ३८. तस्स णं सीहासणस्स उवरिं, एत्थ णं महेग विजयदुसं विउव्वइ–संखंक -कंददगरय-अमयमहियफेणपुंजसन्निगासं सब्बरयणामयं अच्छं सह पासादीयं दरिसणिज्ज अभिरूवं पडिरूवं ।। ० विजयदूसे अंकुस-विउवण-पदं ३६. तस्स णं सीहासणस्स उरि विजयदूसस्स य बहुमज्झदेसभागे, एत्थ णं महं एग वयरामयं अंकुसं विउव्वति ।। ० अंकुसे मुत्तादाम-विउव्वण-पदं ४०. तस्सि च णं वयरामयं सि अंकुसंसि कुंभिक्कं मुत्तादामं विउव्वति । से गं कुंभिक्के मुत्तादामे अण्णेहिं च उहिं कुंभिक्केहि मुत्तादामेहिं तदद्धच्चत्तपमाणमेत्तेहि पव्यओ समता संपरिखित्ते । ते णं दामा नवणिज्जलंबूसगा सुबष्णपयरमडियागा" णाणामगिरयावित्रिहहारहारउवसोभियसमुदया" ईसि अण्णमण्णमसंपत्ता" पुव्वावरदाहिणत्तरागएहि वाएहिं मंदायं-मंदाय 'एज्जमाणा-एज्जमाणा' पलंबमाणा"-पलबमाणा" पझंझमाणा-पझंझमाणा उरालेणं मणुण्णणं मणहरेणं कण्णमणणिव्वुतिकरेणं सद्देणं ते पएसे सव्वओ समंता आपूरेमागा-आपूरेमाणा सिरीए अतीव -अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ ० भद्दासण-विउवण-पदं ४१. तए णं से आभिओगिए देवे तस्स सीहासणस्स अवरुत्तरेणं" उत्तरेणं उत्तरपुर१. सुविरइ-रयत्ताणे (रइत्ताणे ... ख, ग, घ) १०. पयरगमंडियागा (ख, ग); पइरमंडियागा ओविय (उवचिय--क,च,छ) खोमदुगुल्लपट्ट- (च); ४ (व)। पडिच्छायणे रत्तंसुअसंवुए (संवडे - च, छ) ११. समुदाया (वृ)। सुरम्मे आईणगरूयबु रणवणीयतूलफासमउए १२. संपत्ता वाएहिं (घ, च, छ) । (क, ख, ग, घ, च, छ)। १३. एईज्जमाणाणं २ (क, ख, ग); एइज्जमाणाणं २. पासातीए (क, ख, ग, घ)। २ (घ); एइज्जमाणं एइज्जमाणं (च); ३. विउव्वंति (व) । एकवचनस्य कर्ता कथं बह- एयज्जमाणाणं एयज्जमाणाणं (छ) । वचनं क्रियायाम् । १४. बलंबमाणा (क, ख, ग)। ४. संख (घ, छ, द)। १५. पलंबमाणाणं (घ)। ५. जीवाजीवाभिगमे (३।४१२) जाव पदेन पूर्णः १६. पडंकमाणा (क) : पब्भकमाणा (ख,ग,च,छ) । पाठः सूचितोस्ति । १७. अतीत (च)। ६, ७. वि उब्वंति (व)। एक वचनस्य कर्ता कथं १८. 'अवरुत्तरेणं' अत्र सप्तमी स्थाने तृतीया वर्तते । स्थानाङ्गसूत्रे वृत्तिकारेण दाहिणणं' 'एतादशेष बहुवचनं क्रियायाम् । प्रयोगेष णं' वाक्यालंकारत्वेन स्वीकृतम् । ८. अद्धकुंभिक्के हिं (क, ख, ग, घ, च, छ) । किन्तु अत्र वृत्तिकृता तृतीया सप्तमी ६. पमाणेहि (क, ख, ग, घ, च, छ) । विभक्तिरूपेण व्याख्याता । Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७ सूरियाभो थिमेणं, एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि भद्दास साहसीओ विउव्वइ || ४२. तस्स णं सीहासणस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सूरियाभस्स देवरंस चउन्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं चत्तारि भद्दासणसाहस्सीओ विउव्व ॥ ४३. तस्स णं सीहासणस्स दाहिणपुरत्थिमेणं, एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स अभितरपरिसाए अट्ठण्हं देवसाहस्सीणं अट्ठ भद्दासणसाहस्सीओ विउव्वइ । एवं - दाहिणेणं मज्झिमपरिसाए दसहं देवसाहस्सीणं दस भद्दा सणसाहस्सीओ विउव्वति । दाहिणपच्चत्थिhi बाहिरपरिसाए बारसहं देवसाहस्सीणं वारस भद्दासणसाहस्सीओ विउव्वति । पञ्चतिथसहं अणियाहिवतीणं सत्त भद्दासणे विजन्वति ॥ ४४. तस्स णं सोहासणस्स चउदिसिं एत्थ गं सूरियाभस्स देवस्स सोलसहं आयरक्खदेवसाहस्सीणं सोलस भद्दासणसाहस्सीओ विउव्वति, तं जहा - पुरत्थिमेणं चत्तारि साहसीओ, दाहिणेणं चत्तारि साहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं चत्तारि साहस्सीओ, उत्तरेण चत्तारि साहसीओ ॥ जाणविमाण- विउध्वणस्स निगमण-पदं ४५. तस्स दिव्वस्स जाणविमाणस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते से जहानामएesources वा हेमंतयबालियसूरियस्स', खयरिंगालाण वा रत्ति पज्जलियाणं, जवाकुसुमवणस्स' वा केसुयवणस्स वा पारियायवणस्स वा सव्वतो समता संकुसुमियस्स भवे एयारूवे सिया ? णो इणट्ठे' समट्ठे । तस्स णं दिव्वस्स जाणविमाणस्स एत्तो इतराए चेव" "कंततराए चेव पियतराए चैव मणुष्णतराए चैव मणामतराए चेव वण्णे पण्णत्ते । गंधो य फासो य जहा मणीणं ॥ ४६. तए गं से आभियोगिए देवे दिव्वं जाणविमाणं विउव्वइ, विउव्वित्ता जेणेव सूरिया देवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं' 'दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्भावेति वद्धावेत्ता तमाणत्तिय पच्चष्पिणति || जाणविमाणारोहण-पदं ४७. तणं से सूरिया देवे अभियोगस्स देवस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म " "तुट्ठ-चित्तमाणं दिए पोमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाण हियए दिव्वं जिणिदाभिगमणजोरगं उत्तरवेउग्वियरूवं विउव्वति विउव्वित्ता चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, दोहिं अणिएहि, तं जहा - गंधव्वाणिएण य पट्टाणिएण य सद्धि संपरिवुडे तं दिव्वं जाणविमाणं अणुपयाहिणीकरमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहति, १. बालसूरियस (छ) 1 २. जासुमणस्स (क, ख, ग, घ, च) ; जावसुमणस्स (छ)। ३. इणमट्ठे (क, ख, ग, घ, च) 1 ४. सं० पा० –– इट्ठतराए चैव जाव वण्णे । 1 ५. राय० सू० ३०,३१ । ६. सं० पा०-- करयल परिग्गहियं जाव पच्चपिगति । ७. सं० पा० - हट्ट जाव हियए । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं दुरुहित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सणसणे ॥ ६८ ४८. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ तं दिव्वं जाणविमा अणुपयाहिणीक रेमाणा उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं दुरुहंति, दुरुहिता पत्तेयंपत्तेयं पुव्वत्थेहिं भद्दासहि णिसीयंति । अवसेसा देवा य देवीओ य तं दिव्वं जाणविमाणं' ● अणुपयाहिणीक रेमाणा दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं दुरुहंति, दुरुहिता पत्तेयंपत्तेयं पुव्वत्थेहि भद्दासहि निसीयंति || पयाण-सज्जा-पदं ४६. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स तं दिव्वं जाणविमाणं दुरुदस्स समाणस्स अट्ठट्ठ मंगला' पुरतो अहाणुपुव्वीए संपत्थिया, तं जहा – सोत्थिय - सिरिवच्छ'-'गंदियावत्त वृद्ध माणग-भद्दासण - कलस-मच्छ दप्पणा || ५०. तयणंतरं च णं पुण्णकलसभिंगार - दिव्वायवत्तपडागा सचामरा दंसणरइया आलोयदरिसणिज्जा' वाउयविजयवैजयंतीपडागा ऊसिया गगणतलमजुलिहंती पुरतो वीए संपत्थिया || ५१. तयतरं चणं वेरुलियभिसंतविमलदंड पलंब कोरंट मल्ल दामो वसोभितं चंदमंडलनिमं समुस्सियं विमलमायवत्तं पवरसीहासणं च मणिरयणभत्तिचित्तं सपायपीढं सपाउयाजोयस माउत बहुकिकरामरपरिग्गहियं पुरतो अहाणुपुव्वीए संपत्थियं ॥ ५२. तयमंतरं च णं वइरामय वट्ट - लट्ठ-संठिय-सुसिलिट्ठ परिघट्ट-मट्ठ-सुपतिट्ठिए विसिट्ठे " अणेगवरपंचवण्णकुड भी सहस्सपरिमंडियाभिरामे' वाउय विजयवे जयंतीपडागच्छत्तातिच्छत्तकलिए तुंगे गगणतलमगुलिहंत सिहरे जोयणसहस्समुसिए महति महालए महिंदझए पुरतो अहाणुपुव्वीए संपत्थिए । ५३. तयणंतरं व णं सुरूव" - णेवत्थ- परिकच्छिया सुसज्जा सव्वालंकारभूसिया महया भड-चडगर-पहगरेणं पंच अणीयाहिवइणी पुरतो अहाणुपुव्वीए संपत्थिया ॥ ५४. तयणंतरं" च णं बहवे आभियोगिया देवा देवीओ य सएहि-सएहि रूवेहि, 'सहि-सएहि, विसेसेहि, सहि-सएहि विवेहि, सएहि सएहि णिज्जोएहि, "" सहि-सएहि वह पुरतो अहाणुपुव्वीए संपत्थिया ।। १. सं० पा० – जाणविमाणं जाव दाहिणिल्लेणं । २. मंगलगा (वृ) । ३. सं० पा० – सिरिवच्छ जाव दप्पणा । ४. दिव्वाय छत्तपडागा (ओ० सू० ६४, जं० ३।१७८) । ५. लोयदरिस णिज्जा (क, ख, ग, घ, च, छ ) ! ६. तयानंतरं (क, ख, ग, घ, च, छ) 1 ७. समाजया (क, ख, ग, च) 1 ८. सिट्टो (क, ख, ग ) ; सिट्ठे (घ, च, छ) । ६. सहस्सुस्सिए (वृ ) । १०. सरूव (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ११. एतत्सूत्रं वृत्तौ नास्ति व्याख्यातम् । १२. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती (३|१७८) चिह्नाङ्कितपाठस्य स्थाने एतादृश: पाठो विद्यते ' एवं वेसेहि चिधेहि निओएहि' । अस्य पाठस्य 'वेसे हिं' इति पदं सम्यक् प्रतिभाति । 'विसेसेहिं' इति पदस्य कश्चिद् विशिष्टोर्थो नैव ज्ञायते । णेज्जा एहि (क, ख, ग, घ ) 1 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ५५. तयणंतरं च णं सूरियाभविमाणवासिणो वहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सविड्ढीए जाव' नाइयरवेणं सूरियाभं देवं पुरतो पासतो य मांगतो य समणुगच्छति ।। जाणविमाण-पच्चोरहण-पदं ५६. तए णं से सूरियाभे देवे तेणं पंचाणीयपरिखितेणं वइरामयवट्ट-लट्ठ-संठिय*सुसिलिट्ठ-परिघट्ट-मट्ठ-सुपतिटिएणं विसिटेणं अणेगवरपंचवण्णकुडभी-सहस्सपरिमंडियाभिरामेणं वाउद्धयविजयवेजयंतीपडागच्छत्तातिच्छत्तक लिएणं तुंगेणं गगणतलमणुलिहंतसिहरेणं° जोयणसहस्समूसिएणं महतिमहालतेणं महिंदज्झएणं पुरतो कड्ढिज्जमाणेणं चउहिं सामाणियसाहस्सीहि', 'चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहि, सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं' सोलसहिं आयरक्खदेव साहस्सोहि अण्णेहि य वहिं सूरियाभविमाणवासीहि वेमाणिएहिं देवेहिं देवी हि य सद्धि संपरिवुडे सविड्ढीए जाव' णाइयरवेणं सोधम्मस्स कप्पस्स मज्झंमज्झेणं तं दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवजुति दिव्वं देवाणुभावं उवदंसेमाणेउवदंसेमाणे 'पडिजागरेमाणे-पडिजागरेमाणे जेणेव सोहम्मस्स कप्पस्स उत्तरिल्ले णिज्जाणमग्गे तेणेव उवागच्छति, जोयणसयसाहस्सिएहिं विग्गहेहिं ओवयमाणे वीतिवयमाणे ताए उक्किट्ठाए 'तुरियाए चवलाए चंडाए जवणाए सिघाए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए° तिरियमसंखिज्जाणं दीवस मुद्दाणं मज्झमज्झेगं वीतीवयमाणे-वीतीवयमाणे जेणेव 'नंदीसरवरे दीवे जेणेव दाहिणपुरथिमिल्ले रतिकरपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दिव्वं देविढि 'दिव्वं देवजुति दिव्वं देवाणुभावं पडिसाहरेमाणेपडिसाहरेमाणे पडिसंखेवेमाणे-पडिसंखेवेमाणे जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव आमलकप्पा नयरी जेणेव अंबसालवणे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तेणं दिव्वेणं जाणविमाणेणं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता" समणस्स भगवओ महावीरस्स उत्तरपुरथिमे दिसीभागे" तं दिव्वं जाणविमाणं ईसिं चउरंगुलमसंपत्तं धरणितलंसि ठवेई, ठवेत्ता चउहिं अम्गम हिसीहिं सपरिवाराहिं, दोहिं अणिएहि य- गंधव्वाणिएण य णट्टाणिएण य सद्धिं संपरिवुडे ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति ।। ५७. तए तस्स सरियाभस्स देवस्म चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति । अवसेसा देवा य देवीओ य ताओ दिवाओ जाणविमाणाओ दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति ।। १. राय० सू० १३ ॥ ७. मं० पा.--उक्किट्टाए जाव तिरियमसं२. सं० पा०-संठिय जाव जोयणसहस्समसिएणं । खिज्जाण । ३. सं० पा०--सामाणियसाहस्सीहिं जाव सोल- ८. नन्दीश्वरो द्वीपः (व) । सहि। ६. सं० पा०-~देविड्ढि जाव दिव्वं । ४. राय० सू० १३ । १०. विमाणेणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. उवलालेमाणे उवलालेमाणे (वृ) । ११. X (क, ख, ग, घ, च)। ६. वयमाणे (क, ख, ग, घ, च) । १२. दिसाभागे (क, ग, च)। Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० सूरियाभस्स-वंदण-पद ५८. तए णं से सुरियाभे देवे [ चउहि सामाणियसाहस्सीहिं ? ] ' चउहिं अग्गमहिमीहिं' 'सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणिया हिवईहिं, सोलसहिं आयरवखदेव साहस्सीहिं अण्णेहि य वहूहिं सूरियाभविमाणवासीहिं वेमाणिएहिं वेहिं देवी यसद्धिं संपरिवडे सव्विड्ढीए जाव' गाइयरवेणं * जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेति, करेत्ता वंदति नमसति, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी- अण्णं भंते! सूरियाभे देवे देवाप्पियं वंदामि नमसामि' 'सवकारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं° पज्जुवासामि ।। वंदणाणुमोद-पदं रायपसेणइयं ५६. सूरियाभाइ ! समणे भगवं महावीरे सूरियाभं देवं एवं वयासी - पोराणमेयं सूरियाभा ! 'जीयमेयं सूरियाभा !" किच्च मेयं सूरियाभा ! करणिज्जमेयं सूरियाभा ! आइणमेयं सूरियाभा ! अब्भणुष्णायमेयं सूरियाभा ! जण्णं भवणवइ वाणमंतर-जोइसमणिया देवा अरहंते भगवंते वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता तओ पच्छा साई-साइं नाम-गोत्ताइं साहिति तं पोराणमेयं सूरियाभा ! जाव अब्भणुष्णाय मेयं सूरियाभा ! पज्जुवासणा-पदं ६०. तए णं से सूरिया देवे समणेण भगवया महावीरेणं एवं वृत्ते समाणे हट्ठ "तुट्ठ-चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेति, उट्ठेत्ता' समणं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति, वंदित्ता नमसित्ता नच्चासपणे नातिदूरे सुस्समाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासति || धम्मदेसणा-पदं ६१. तए णं समणे भगवं महावीरे सूरियाभस्स देवस्स तीसे य महतिमहालियाए 'इसिप रिसाए मुणिपरिसाए जतिपरिसाए विदुपरिसाए देवपरिसाए खत्तियपरिसाए इक्खागपरिसाए कोरव्वपरिसाए अगसयाए अणेगवंदाए अगसयवंदपरिवाराए परिसाए ओहबले अइवले महब्बले अपरिमियबल-वीरिय-तेय-माहप्प- कंतिजुत्ते सारय-णवत्थणिय-महुरगंभीरकोंच णिग्घोस-दुंदुभिस्सरे, उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाई' अमम्म१. सप्तमसूत्रानुसारेणात्रैष पाठो युज्यते । ५. सं० पा० - नमसामि जाव पज्जुवासामि । २. सं० पा०-- अग्गमहिसीहि जाव सोलसहि । ६. x ( क, ख, ग, च, छ ) । ७. X (क, ख, ग, घ, च, 1 ३. राय० सू० १३ । ४. जाइए (क, ख, ग, घ, च ) । ८. सं० पा०-हट्टु जाव समणं । ६. रायपसेणइयवृत्तौ आचार्य मलयगिरिणा औपपातिकस्य पाठः समुद्धृतः, स च अभयदेवसूरिव्याख्यातपाठात् किञ्चिद् भिद्यते— ( ओवाइय वृत्ति पृ० १४७) अगरलयाए अमम्मणाए सव्वक्खरसण्णिवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासानुगामिणीए सरस्सईए ( रायपसेणइय वृत्ति पृ० ११६ पं० बेचरदास द्वारा संपादित ) अगए अमम्मणाए फुडविसय महुरगंभीरगाहिगाए सव्वक्खरसन्निवाइयाए गिराए Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १०१ जाए सुव्वत्तक्खर-सण्णिवाइयाए पुग्णरत्ताए सव्वभासाणुगामिणीए सरस्सईए जोयणणीहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ–अरिहा धम्म परिकहेइ" जाव परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया ।। पण्ह-वागरण-पदं ६२. तए णं से सूरियाभे देवे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ट- चित्तमाणंदिए पीइमाणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण-हियए उढाए उठेति, उद्दुत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी -अहण्णं भंते ! सूरियाभे देवे किं भवसिद्धिए ? अभवसिद्धिए ? सम्मदिट्टी ? मिच्छदिट्टी ? परित्तसंसारिए ? अणंतसंसारिए ? सुलभवोहिए ? दुल्लभवोहिए ? आराहए ? विराहए? चरिमे ? अचरिमे ? सूरियाभाइ ! समणे भगवं महावीरे सूरियाभं देवं एवं वयासी-सुरियाभा! तुमण्णं भवसिद्धिए, नो अभवसिद्धिए । 'सम्मदिट्टी, नो मिच्छदिट्ठी। परित्तसंसारिए, नो अणंतसंसारिए। सुलभवोहिए, नो दुल्लभबोहिए। आराहए, नो विराहए। चरिमे, नो अचरिमे। नट्टविहि-उवदंसण-पदं ६३. तए णं से सूरियाभे देवे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुटुचित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी-तुब्भे णं भंते ! सव्वं जाणह सव्यं पासह, 'सव्वओ जाणह सव्वओ पासह", सव्वं कालं जाणह सव्वं कालं पासह, 'सव्वे सव्वभासाणुगामिणीए सव्वसंसयविमोयणीए अपुणरुत्ताए सरस्सईए अत्र 'अगरलयाए,' 'पुण्ण रत्ताए' इति शब्दद्वयं आलोच्यमस्ति । 'अगरलयाए' (सुविभक्ताक्षरतया) इति पाठापेक्षया 'अगग्गयाए' (अगद्गदया) इति पाठः समीचीनः प्रतिभाति । 'पूण्णरत्ताए' इति पाठस्य व्याख्या अभयदेवसूरिणा इत्थं कृतास्ति-पूर्णा च स्वरकलाभिः रक्ता च-गेयरागानुरक्ता या सा तथा तया ।। वृत्तिकारेण आदर्श एतादृश एव पाठो लब्धस्तेन तथा व्याख्यातः । रायपसेणइयवृत्तो (पृ० १६०) गेयस्य अष्टगुणानां व्याख्या प्रसंगे 'पूर्ण', 'रक्त' इतिगुणद्वयं व्याख्यातमीरितं यथा---तत्र यत् स्वरकलाभिः परिपूर्ण गीयते तत् 'पूर्णम्,' गेयरागानुरक्तेन यद् गीयते तद् रक्तम् । एषा व्याख्या अभयदेवसूरिकृत पूर्णरक्त' व्याख्यया तुल्यास्ति । अनया ज्ञायते सा व्यर्था नास्ति, तेन आचार्यमलयगिरिणा समुदधत: औपपातिकपाठो वाचनाभेदस्य प्रतीयते । १. चिन्ह्राङ्कितपाठ आदर्शषु नोपलभ्यते । एष ४. सं० पा०-चित्तमाणदिए जाव परमसोमण बत्त्याधारण स्वीकृतः । द्रष्टव्यानि औपपाति- स्सिए। कस्य ७१ से ७६ सूत्राणि ।। ५. सोमणसे (क, ख, ग, च, छ)। २.सं० पा०—हदुतु? जाव हिए । ६. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ३.सं० पा०-अभवसिद्धिए जाव चरिमे । Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ रायपसेणइयं भावे जाणह सव्वे भावे पासह" । जाणंति णं देवाणुप्पिया ! मम पुब्बिं वा पच्छा वा ममेयरूवं दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवजुइं दिव्वं देवाणुभावं लद्धं पत्तं अभिसमण्णामयं ति, तं इच्छामि ण देवाणप्पियाणं भत्तिपुश्वगं गोयमातियाणं समणाणं निग्गंथाणं दिव्वं देविडिढ दिव्वं देवजुइं दिव्वं देवाणुभावं दिव्वं वत्तीसतिवद्धं नट्टविहि उवदंसित्तए । ६४. तए णं समणे भगवं महावीरे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे सूरियाभस्स देवस्स एयमह्र णो आढाइ णो परियाणइ तुसिणीए संचिट्ठति ।। ६५. तए णं से सूरियाभे देवे समणं भगवं महावीरं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासीतुम्भे णं भंते! सव्वं जाणह' 'सव्वं पासह, सव्वओ जाणह सव्वओ पासह, सव्वं कालं जाणह सव्वं कालं पासह, सव्वे भावे जाणह सव्वे भावे पासह । जाणंति णं देवाणुप्पिया ! मम पुष्वि वा पच्छा वा ममेयरूवं दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुइं दिव्वं देवाणुभावं लद्धं पत्तं अभिसमण्णागयं ति, तं इच्छामि णं देवाणुप्पियाणं भत्तिपुव्वगं गोयमातियाणं समणाणं निग्गंथाणं दिव्वं देविढिं दिव्वं देवजुई दिव्वं देवाणुभावं दिव्वं बत्तीसतिबद्धं नट्टविहि उवदंसित्तएत्ति कटु समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवककमति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णई, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंड निसिरति', 'तं जहा-रयणाणं वइराणं वेरुलियाणं लोह्यिक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजगाणं अंजणपुलगाणं रययाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिटाणं अहावायरे पोग्गले परिसाडेति, परिसाडेत्ता अहासुहमे पोग्गले परियाएइ परियाइत्ता दोच्चं पि वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण्णति, समोहणित्ता बहुसमरमणिज्ज भूमिभागं विउव्वति, से जहानामए-आलिंगपुक्खरेइ वा जाव" मणीणं फासो ॥ ६६. तस्स णं बहसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे पिच्छाघरमंडवं विउव्वति-अणेगखंभसयसन्निविट्ठ वण्णओ' अंतो वहुसमरमणिज्जं भूमिभागं उल्लोयं अक्खाडग च मणिपेढिय च विउव्वति ।। ६७. तीसे णं मणिपेढियाए उरि सीहासणं सपरिवारं जाव' दामा चिट्ठति ।। ६८. तए णं से सूरियाभे देवे समणस्स भगवतो महावीरस्स आलोए पणामं करेति, करेत्ता अणुजाणउ मे भगवंति कटु सीहासणवरगए तित्थयराभिमुहे सण्णिसणे ॥ ६६. तए णं से सूरियाभे देवे तप्पढमयाए नाणामणिकणगरयविमल-महरिह'निउण-ओविय-मिसिमिसेतविरचियमहाभरण-कडग'-तुडियवरभूसणुज्जलं पीवरं पलंबं दाहिणं भुयं पसारेति । १. ४ (क, ख, ग, च, छ) । २. सं० पा०-जाणह जाव उवदंसित्तए । ३. समोहणइ (क, ख, ग, च, छ) । ४. सं० पा०—निसिरति अहाबायरे अहासुहमे दोच्चपि वे उब्वियसमुग्घाएणं जाव बहसम! ५. राय० सू० २४.३१ । ६. राय० सू० ३२-३६ । ७. राय० सू० ३७-४४ । ८. निउणोविय (क, ख, ग); निउणोवचिय (घ, च)। ६. कणग (क, ख, ग, घ, च)। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १०३ तओ णं सरिसयाणं सरित्तयाणं सरिब्बयाणं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण-गुणोववेयाणं एगाभरण-वसणग हियणिज्जोयाणं दुहओ संवेल्लियग्गणियत्थाणं 'आविद्धतिलयामेलाण पिणद्धगेवेज्जकंच्याणं" उप्पीलिय-चित्तपट्ट-परियर-सफेणकावत्तरइय-संगय-पलंब-वत्थंतचित्त-चिल्ललग-नियंसणाणं एगावलि-कंठरइय-सोभंत-वच्छ-परिहत्थ-भूसणाणं अट्ठसयं नट्टसज्जाणं देवकुमाराणं णिग्गच्छइ ।। ७०. तयणंतरं' च णं नानामणि' 'कणगरयणविमल-महरिह-निउण-ओविय-मिसिमिसेतविरचियमहाभरण-कङग-तुडियवरभूसणुज्जलं° पीवरं पलंब वाम भुयं पसारेति ।। तओ णं सरिसियाण सरित्तयाण सरिव्वतीणं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण-गुणोववेयाण एगाभरण-वसणगहियणिज्जोईणं दुहओ संवेल्लियग्गणियत्थीणं आविद्धतिलयामेलीण" पिणद्धगेवेज्जकंचुईणं नानामणि-कणग-रयण-भूसण-विराइयंगमंगीणं चंदाणणाणं चंदद्धसमनिलाडाणं चंदाहियसोमदंसणाणं उक्का इव उज्जोवेमाणीण सिंगारागारचारुवेसाणं संगयागय-हसिय-भणिय-चिट्ठिय-विलासललिय-संलावनि उणजुत्तोवयारकुसलाणं गहियाउज्जाणं अट्ठसयं नट्टसज्जाणं देवकुमारीणं णि गच्छइ ।। ७१. तए णं से सूरियाभे देवे 'अट्ठसयं संखाणं विउव्वइ, अटुसयं संखवायाणं विउब्वइ, अट्ठसयं सिंगाणं विउव्वइ, अट्ठसयं सिंगवायाणं विउब्वइ, अट्ठसयं संखियाणं विउव्वइ, अदृसयं संखियवायाणं विउव्वइ", अट्ठसयं खरमुहीणं विउव्वइ, अट्ठसयं खरमुहिवायाणं विउव्वइ, अट्ठसयं पेयाणं विउव्वइ, अट्ठसयं पेयावायगाणं विउब्वइ, अट्ठसयं पिरिपिरियाणं विउव्वइ, अट्ठसयं पिरिपिरियावायगाणं विउव्वई', एवमाइयाइं" एगणपण्णं आउज्जविहाणाइं विउब्वइ, विउव्वित्ता तए णं ते वहवे देवकुमारा य देवकुमारीयाओ य सद्दावेति ।। ७२. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य सूरियाभेणं देवेणं सद्दाविया समाणा हट्ट" तुद्र-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसष्पमाणहियया जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं 'दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी-संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! जं अम्हेहि कायव्वं ।। ७३. तए णं से सुरियाभे देवे ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य एवं बयासीगच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेह, १. X (वृ)। ६. अतः परं वृत्तौ अन्येषां आतोद्यानां नामान्यपि २. तयाणंतरं (क, ख, ग, घ, च, छ) । उल्लिखितानि सन्ति द्रष्टव्यानि वत्तिपत्राणि ३. सं० पा०--नानामणि जाव पीवरं । १२६-१२८ । ७७ सुत्रे शेषातोद्यानां नामानि ४. सरिसयाणं (क, ख, ग, वृ)। साक्षाल्लिखितानि सन्ति । ५. 'मेलाणं (छ)। १०. एवमातियाणं (क, ख, ग, घ, छ); एवमाति६. x (क, ख, ग, घ, च) ! याणि (च)। ७. x (ख, ग, घ)। ११. सं० पा०-हट्ट जाव जेणेव । ८. परिपरियाणं (च, छ) । १२. सं० पा०-करयलपरिगहियं जाव वद्धावेत्ता। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ रायपसेणझ्यं करेत्ता वंदह नमसह, वंदित्ता नमंसित्ता गोयमाझ्याणं' समणाणं निग्गंथाणं तं दिव्वं देविढिं दिव्वं देवजुर्ति दिव्वं देवाणुभावं दिव्वं बत्तीसइबद्धं गट्टविहिं उवदंसेह, उवदंसित्ता खिप्पामेव एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। ७४. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य सूरियाभेणं देवेणं एवं कुत्ता समाणा हट्ठ' 'तुटु-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं देवो! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता जेणेव सभणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरें 'तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव गोयमादिया समणा निग्गंथा तेणेव निग्गच्छंति ॥ ७५. तए णं ते वहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति, करेत्ता समामेव पंतीओ बंधंति, बंधित्ता समामेव ओणमंति, ओणमित्ता समामेव उण्णमंति', उण्णमित्ता एवं सहियामेव ओणमंति, ओणमित्ता सहियामेव उण्णमंति, उष्ण मित्ता संगयामेव' ओणमंति, ओणमित्ता संगयामेव उण्णमंति, उण्ण मित्ता थिमियामेव" ओणमंति, ओणमित्ता थिमियामेव उण्णमंति, उण्ण मित्ता समामेव पसरंति, समामेव आउज्जविहाणाई गेण्हंति, गेण्हित्ता समामेव पवाएंसु समामेव पगाइंसु समामेव पणच्चिंसु॥ ७६. किं ते ? उरेण मंद, सिरेण तारं, कंठेण वितारं, तिविहं तिसमय-रेयग-रइयं गुंजावककुहरोवगूढं रत्तं तिट्ठाणकरणसुद्धं सकुहरगंजंत"-वंस-तंती-तल-ताल-लय-गहसूसंपउत्तं महरं सम सल लियं मणोहरं मउरिभियपयसंचार सुरइं सूति वरचारुरूवं दिव्वं गट्टसज्ज गेयं पगीया" वि होत्था ।। ७७. किं ते २ ? उद्धमंताणं-संखाणं सिंगाणं संखियाणं खरमुहीणं पेयाणं पिरिपिरियाणं, आहम्मंताणं-पणवाणं पडहाणं, अफालिज्जमाणाणं-भंभाणं होरंभाणं, तालिज्जतीणं-भेरीणं झल्लरीणं दुंदुहीणं, आलवंताणं"-मुरयाणं" मुइंगाणं नंदीमुइंगाणं, उत्तालिज्जताणं-आलिंगाणं कुतुवाणं गोमुहीणं मद्दलाण, मुच्छिज्जंताणं-वीणाणं विपंचीण वल्लकीणं, कुट्टिज्जंतीणं--महंतीण कच्छभीणं चित्तवीणाणं, सारिज्जंताण-बद्धीसाणं सुघोसाणं नंदिघोसाणं, फुट्टिज्जतीण-भामरीणं छब्भामरीणं" परिवायणीणं, छिप्पंताणं १. गोयमातियाणं (च)। १०. सकुहरकुजत (क, ख, ग, च)। २. द्वात्रिंशद्विधम् (व)। ११. गीया (क, ख, ग, घ, च, छ) । ३. सं० पा०..-हट्ठ जाव करयल जाव पडिसुणंति । १२. किं च ते देवकुमारा देवकुमारिकाश्च प्रगीतवन्त ४. सं० पा०-महावीरं जाव नमंसित्ता । प्रतितवन्तश्च ? (वृ)। ५. उन्भमंति (क, ख, ग)। १३. आलिपंताणं (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. थिमियमेव (क, घ, च); थिमियामेव (छ)। १४. मुरयवराणं (क, छ); मुरजवराणं (घ) । ७. संगयामेव (क, व, च)। १५. मद्दीलीणं मद्दलाणं (घ) । ८. तिसम (क, ख, ग, घ, च)। १६. स्पन्दनम् (कृ)। ६. कुंजावंक° (क) 1 गुंजा+अवंक -गुंजावंक १७. उब्भामरीणं (क, ख, ग)। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरियाम तूणाणं तुंबवीणाणं, आमोडिज्जंताणं-- आमोटाणं' झंझाणं' नउलाणं, अच्छिज्जंतीणंमुकुंदाणं हुडुक्कीणं विचिक्कीणं, वाइज्जंताणं - करडाणं डिडिमाण किणियाणं कडंबाणं, ताज्जिता --- दरगाणं दरिगाणं कुतुंबराणं' कल सियाणं मड्डयाणं' आताडिज्जंताणं *-- तलाणं तालाणं कंसतालाणं, घट्टिज्जंताणं-रिगिसियाणं' लत्तियाणं मगरियाणं सुंसुमारियाणं, फूमिज्जंताणं -- वंसाणं' वेलणं वालीणं परिलीणं बद्धगाणं" ।। ७८. तए गं से दिव्वे गीए 'दिव्वे नट्टे दिव्वे वाइए"", " अन्भुए गीए अब्भुए नट्टे अब्भुए वाइए, सिंगारे गीए सिंगारे नट्टे सिंगारे वाइए, उराले गीए उराले नट्टे उराले वाइए, मणुष्णे गीए मणुण्णे नट्टे मणुण्णे वाइए, 'मणहरे गीए मणहरे नट्टे मणहरे वाइए, उप्पिजलभूते कहकहभूते" दिव्वे देवरमणे पवते यावि होत्था || ११३ ७६. तणं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स सोत्थिय - सिरिवच्छ- नंदियावत्त- वद्धमाणग-भद्दासण- कलस-मच्छ दप्पण - मंगलभत्तिचित्तं णामं दिव्वं नट्टविधि उवदति ॥ ८०. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति, करेत्ता तं चैव भाणियव्वं जाव" दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था || ८१. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स आवड- पच्चावड-सेढि पसेढि सोत्थिय-सोवत्थिय" - समाणव वद्धमाणग-'मच्छंडा-मगरंडाजारा-मारा"" - फुल्लावलि - पउमपत्त- सागरतरंग - वसंतलता"- पउमलयभत्तिचित्तं णामं दिव्वं वह वदति ॥ ८२. एवं च एक्किविकयाए णट्टविहीए समोसरणादिया एसा वत्तव्वया जाव" दिव्वे देवरमणे पत्ते यावि होत्या ॥ ८३. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स १. आमोताणं (क, च, छ) । २. कुंभाणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ३. किरिया (क, ख, ग, घ ) । ४. करंबाणं ( क ) । ५. कुसुंबा (क, ख, ग, घ, च, छ ) ; वृत्त्याधारेण स्वीकृतम् । वृत्तेः १२७ 'कुस्तुम्बराणाम्' इति पदं दृश्यते । ६. मडुयाणं ( क, ख, ग, घ, व, छ) 1 ७. आवडिज्जंताणं (क, ख, ग, च, । ८. गिरिसियाएणं ( क ); गिरिसियाणं ( ख, ग, घ, च, छ ) ६. कुमिसाणं ( क ) | १०. पव्वगाणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ११. दिव्वे वाइए दिव्वे नट्टे (वृ) । १०५ एतत्पदं पृष्ठेपि १२. सं० पा० एवं अन्भुए सिंगारे उराले मणुन्ने । १३. मणहरे नट्टे मणहरे गीते (क, ख, ग, घ, च, छ) । १४. 'कहा' (क, ख, ग, घ, च, छ ); " कहग' (घ) | १५. राय० सू० ७५-७६ । १६. + (च, छ) । १७. पूसमाणग ( क, ख, ग, च, छ ) ; (घ) 1 १८. मच्छंडग-मग रंग - जार-मारा (छ) । १९. चतुर्विंशतितमे सुत्रे 'लय' शब्दो विद्यते अत्र तु 'लता' । २०. राय० सू० ७५-७८ 1 पूसमाण Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं ईहामिअ-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग - वालग-किन्नर-रुरु - सरभ-चमर - कुंजर- वणलयपउमलयभत्तिचित्तं णामं दिव्वं पट्टविहिं उवदसति ।। ८४. एगओवक, 'एगओखहं दुहओखह', 'एगओचक्कवालं दुहओचक्कवालं चक्कद्धचक्कवालं" णामं दिव्वं पट्टविहिं उवदंसेंति । ८५. चंदावलिपविभत्ति च' सूरावलिपविभत्ति च वलयावलिपवित्ति च हंसावलिपविभत्ति च एगावलिपवित्ति च तारावलिपविभत्ति च 'मुत्तावलिपवित्तिं च कणगावलिपविभत्ति च रयणावलिपवित्तिं च 'आवलिपविभत्ति च" णामं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेंति ॥ ८६. चंदुग्गमणपविभत्ति च सूरुन्गमणपविभत्तिं च उग्गमणुग्गमणपविभत्तिं च णाम दिव्वं णट्टविहि" उवदंसें ति ।। ८७. चंदागमणपविभत्ति च सुरागमणपविभत्तिं च आगमणागमणपविभत्तिं च णामं दिव्वं णविहि उवदंसेंति । ८८. चंदावरणपवित्ति च सूरावरणपविभत्ति च आवरणावरणपविभत्तिं च णाम दिव्वं पट्टविहिं उवदंसेंति ॥ ९. चंदत्थमणपविभत्ति च सूरत्थमणपविभत्ति च अत्थमणत्थमणपविभत्ति च णामं दिव्वं पट्टविहि उवदंसेति ॥ ६०. चंदमंडलपविभत्तिं च सूरमंडलपविभत्तिं च नागमंडलपविभत्तिं च जक्खमंडलपविभत्तिं च भूतमंडलपविभत्तिं च 'रक्खस-महोरग-गंधव्वमंडलपविभत्तिं च मंडलपविभत्तिं च णामं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेति ।। ६१. 'उसभमंडलपविभत्तिं च सीहमंडलपविभत्तिं च", हयविलंबियं गयविलंबियं, 'हयविलसियं गयविलसियं", मत्तहयविलसियं मत्तगयविलसियं, 'मत्तयविलंबियं मत्तगयविलंबियं" दुयविलंबियं णामं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेंति ॥ ६२. सागरपविभत्तिं च नागरपविभत्तिं च सागर-नागरपविभत्तिं च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ।। ६३. नंदापविभत्तिं च चंपापविभत्तिं च नंदा-चंपापविभत्तिं च णामं दिव्वं पट्टविहिं १. ४ (ख, ग, वृ)। गागमणपवित्ति, क्वचिद् एतद् नास्ति । अत्र २. चक्कदुचक्कवालं (क, घ) । जीवाजीवाभिगमवृत्ति (पत्र २४६) रपि द्रष्टव्या ३. वा (घ)। ७. गट्टविहं (घ, च, छ)। ४. वलियालि ' (क, ख, ग) । ८. x (व)। ५. कणगावलिपवित्तिं च मुत्तावलिपविभत्ति च ६. उसभल लियविक्कंतं सीहललियविक्कंतं (क,ख, (घ)। ग, घ, च, छ) । ६. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । आदर्शषु एतेषां १०. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । नाट्यविधीनां पाठ: सर्वत्र एकरूपो नास्ति । ११. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। क्वचित् नाट्यविधेमौलिक नाम लिखितमुप- १२. सगडुद्धियपवित्ति च सागर (क, ख, ग, घ, लभ्यते, यथा---उग्गमणुगमणपविभत्ति आगम- च, छ) । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरियामो उवदंसेंति ॥ १४. मच्छंडापविभत्तिं च मयरंडापविभत्ति च 'जारापविभत्ति च मारापविभत्ति च" मच्छंडा-मयरंडा-जारा-मारापवित्तिं च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ १५. 'क' ति ककारपविभत्ति च 'ख'त्ति खकारपविर्भात्त च 'ग' त्ति गकारपविभत्ति च 'घ' त्ति धकारपविभत्ति च 'ड' ति कारपविभत्तिं च ककार-खकार-गकार-घकारङकार-पविभत्तिं च णामं दिव्वं पट्टविहिं उवदंसेंति ।। १६. एवं-चकारवग्गो वि ।। १७. टकारवग्गो वि।। १८. 'तकारवग्गो वि। १६. पकारवग्गो वि" । १००. असोयपल्लवपविभत्तिं च अंबपल्लवपविभत्तिं च जंबूपल्लवपविभत्तिं च कोसंबपल्लवपविभत्तिं च पल्लवपविभत्ति' च णामं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेंति ।। १०१. पउमलयापविभत्तिं च नागलयापविभत्तिं च असोगलयापविभत्तिं च चंपगलयापविभत्तिं च चूयलयापविभत्तिं च वणलयापविभत्तिं च वासंतियलयापविभत्तिं च अइमुत्तयलयापविभत्तिं च कुंदलयापविभत्ति च° सामलयापविभत्तिं च लयापविभत्तिं च णाम दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ १०२. दुयं णाम दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ।। १०३. विलंबियं णाम दिव्वं णद्रविहिं उवदंसेंति ॥ १०४. दुय विलंवियं णामं दिव्वं पट्टविहिं उवदंसेंति ।। १०५. अंचियं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसें ति ।। १०६. रिभियं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ।। १०७. अंचियरिभियं णामं दिव्वं पट्टविहिं उवदंसं ति ।। १०८. आरभड णाम दिव्वं णविहिं उवदसति ।। १०६. भसोलं णामं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेंति ।। ११०. आरभडभसोलं णामं दिव्यं णट्टविहिं उवदंसें ति ।। १११. उप्पायनिवायपसत्तं' संकुचिय-पसारियं रियारिय" भंतसंभंतं णामं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेंति ।। ११२. तए णं ते वहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति जाव दिब्वे देवरमणे पवते यावि होत्था ।।। १. जारपविभत्ति च मारपविभत्ति च (छ)। ६. उप्पायनिवायपवत्तं (क, ख, ग, घ, च); २. तवग्गो वि पवग्गो वि (क, ख, ग, च, छ)। उप्पायनिवायपविभत्तं (छ); अयं पाठो वृत्त्य३. पल्लव २ पविभत्ति च (क, ख, ग, घ)। नुसारी स्वीकृतः । ४. सं० पा०-पउमलयापविभत्ति जाव सामलया- ७. रयारइयं (क, ख, ग, घ, च, छ) ; रेवकापवित्ति । रचितं (ब)। ५. लया २ पविभत्ति (घ)। ८. राय० सू० ७५-७८। . Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणाइयं ११३. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स 'चरमपूव्वभवणिबद्धं च चरमचवणनिबद्धं च चरमसाहरणनिबद्धं च चरमजम्मणनिबद्धं च चरमअभिसेअनिबद्धं च चरमबालभावनिबद्धं च चरमजोव्वणनिबद्धं च चरमकामभोगनिबद्धं च चरमनिक्खमणनिबद्धं च चरमतवचरणनिबद्धं च चरमणाणुप्पायनिबद्धं च चरमतित्थपवत्तणनिबद्धं च चरमपरिनिव्वाणनिबद्धं च चरमनिवद्धं च" णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेति ।। ११४. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य चउव्विहं वाइत्तं वाएंति, तं जहा-ततं विततं धणं सुसिर । ११५. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ च चउन्विहं गेयं गायंति, तं जहा–'उक्खित्तं पायंत मंदायं रोइयावसाणं च" ॥ १. पूवभवचरियनिबद्धं च देवलोयचरियणिबद्धं च चवणचरियणिबद्धं च साहरणचरियणिबद्धं च जम्मणचरियणिबद्धं च अभिसेअचरियनिबद्धं च बालभावचरियनिबद्धं च कामभोगवरियनिबद्धं च तवचरणचरियनिबद्धं च तित्थपवत्तणचरियनिबद्धं च परिनिव्वाणचरियनिबद्धं च चरिमचरियनिबद्ध च (क, ख, ग, घ, च, छ) । २. असिरं (जी० ३१४४७) । ३. रायपसेणइय (सू० ११५) रायपसेणइय (सू०२८१)स्थानांग (४१६३४) जीवाजीवाभिगम (३२४४७) उक्खित्तं उक्खित्तायं उक्खित्तए उक्खित्तं पायंतं पायंतायं पत्तए पवतं मंदायं मंदाय मंदए मंदायं रोइयावसाण रोइयावसाणं रोविदए रोइयावसाणं रायपसेणइय (सू० ११५) वृत्ति :--उत्क्षिप्तं प्रथमतः समारभ्यमाणम् पादान्तम् –पादवृद्धम् वादि-चतर्भागरूपपादबद्धम् इति भावः । मध्यभागे मूर्छनादिगुणोपेततया मन्दं मन्दं घोलनात्मकम रोचितावसानम् इति--रोचितं यथोचित लक्षणोपेततया भावितम्-सत्यापितम् इति यावत् अवसानं यस्य तद् रोचितावसानम् (वृत्ति, पृ० १४४,१४५)। रायपसेणइय सू० २८१ । अत्र वृत्तिकृता नास्ति किञ्चिद् व्याख्यातम् स्थानाङ्ग (४६३४) वृत्तिकारेण लिखितमत्र-नाट्यगेयाभिनयसूत्राणि सम्प्रदायाभावान्न विवृतानि (वृत्ति, पत्र २७२) । ___ जीवाजीवाभिगम (३६४४७) । वृत्ति :--'उत्क्षिप्त' प्रथमतः समारभ्यमाणम् 'प्रवृत्तम्' उत्क्षेपावस्थातो विक्रान्तं मनाम्भरेण प्रवर्तमानं मन्दायमिति ----मध्यभागे मूर्छनादि गुणोपेततया मन्दं मन्दं घोलनात्मक रोचितावसान' मिति रोचितं....यथोचितलक्षणोपेततया भावितं सत्यापितममिति यावत अवसानं यस्य तद् रोचितावसानम् (वत्ति, पत्र २४७)।। रायपसेणइयसूत्रे द्विवारं गेयस्य उल्लेखोस्ति, तत्र द्वितीयवारे प्रथमवतिनो द्वयोः शब्दयोः स्वाथिकः क प्रत्ययः कृतोस्ति तेन ‘उक्खित्तायं, पायंतायं' पाठो जातः। यद्यपि आदर्शषु पायत्तायं' पाठो दृश्यते किन्तु लिपि दोषाद् एवं जात: प्रतीयते । तेन अस्माभिर्मूले 'पायंतायं' पाठः स्वीकृतः । जीवाजीवाभिगमे त्रयः शब्दा: रायपसेणइयशब्देश्यस्तुल्या वर्तन्ते केवलं द्वितीयशब्दो भिन्नोस्ति । स्थानांगे 'पत्तए, रोविदए' द्वौ शब्दो भिल्लो वर्तते । असो वाचनाभेदोस्ति अथवा लिपिदोषेण परिवर्तनं जात मिति न निश्चेतुं शक्यते । Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरियाभो १०१ ११६. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य चउब्विहं णट्टविहिं उवदंसेंति, तं जहा - अंचियं रिभियं आरभडं भसोलं च ॥ ११७. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य चउव्विहं अभिणयं' अभिणेंति, तं जहा - 'दिट्ठतियं पाडंतियं' सामन्न ओविणिवाइयं' लोगमज्झावसायिं च " || ११८. तए गं ते बहवे देवकुमाराय देवकुमारियाओ य गोयमादियाणं समणाणं निग्गंथाणं दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवजुति दिव्वं देवाणुभावं दिव्वं वत्तीसइबद्ध" नट्टविहिं उवदंसित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदति नमसंति, वंदित्ता नमसित्ता जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वृद्धावेंति, वृद्धावेत्ता एयमाणत्तियं' पच्चप्पियंति || ११६. तए णं से सूरिया देवे तं दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवजुई दिव्वं देवाणुभावं पडिसाहरइ, पडिसाहरेत्ता खणेणं जाते एगे एगभूए । १२०. तए णं से सूरियाभे देवे समणं भगवं महावीरं तिक्खुसो आयाहिणं पयाहिणं करेइ वंदति नम॑सति, वंदित्ता नमसित्ता नियगपरिवालसद्धि संपरिवुडे तमेव दिव्वं जाणविमाणं दुरुहति, दुरुहिता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए || १. पट्ट अभिणयं ( क, ख, ग, घ, ख ) 1 २. पाडियंतियं (घ); पाडियं ( ख, ग, च, छ ); २८१ सूत्रेपि सर्वप्रतिष पाडंतियं' पाठो विद्यते । ३. सामंतोवणिवाइयं (क, ख, ग, घ, च, छ ) 1 ४. अंतम भावसाणियं (क, ख, ग, घ ); २८१ सूत्रे एतत्तुल्यप्रकरणे सर्वासु प्रतिषु 'लोगमज्भावसाणियं' इति पाठोस्ति तथा जीवाजीवाभिगमे ( ३।४४७) पि एष पाठो लभ्यते । जीवाजीवाभिगम ( ३०४४७ ) ५. रायपसेणइय ( सू० ११७, २८१ ) दिट्ठतिथं स्थानांग (४।६३७) दिट्ठतिते पाडंतियं पाडिसुते सामन्नविणिवाइयं लोगमज्भाव साणियं स्थानाङ्गवृत्ती नास्ति व्याख्यातोसी पाठः । रायपसेणइयसूत्रे प्रथमवारमसौ व्याख्यातोस्ति – 'दान्तिकम् प्रात्यन्तिकम् सामान्यतोविनिपातम् लोकमध्यावसानिकम् |' ( वृत्ति, पृ० १४५ ) । वृत्त्यनुसारेणात्र 'सामनओविणिवातं' पाठो युज्यते । जीवाजीवाभिगमवृत्तावपि 'सामान्यतोविनिपातिकम्' इति व्याख्यातमस्ति । आदर्शेषु 'सामंतोवणिवा - इयं जातम् । सम्भवतः 'सामन्नओ' स्थाने 'सामन्नो' जातः अस्यैव 'सामन्तो' रूपे परिवर्तन जातमिति प्रतीयते । स्थानांगे 'डिसुते' पाठस्तथा जीवाजीवाभिगमवृत्ती प्रतिश्रुतिकम्' इति व्याख्यातास्ति पाठः । एतौ द्वावपि 'रायपसेणइय सूत्रस्य' 'पाडंतिय' शब्दाद वाचनाभेदं गच्छतः । ६. देवाणुभाग (क, ख, ग, घ, च, छ) 1 ७. बत्तीसइ निबद्धं (क, ख, च, छ) । ८. एवमाणत्तियं (क, ख, ग, घ, च, छ ) । सामन्नओविणिवाइयं लोगमभावसिते दिट्ठतियं पाडिय सामन्नतोविणिवातियं लोगमज्भावसाणियं Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० रायपसेणइयं कूडागारसाला-दिद्वैत-पदं १२१. 'भंतेति' ! भयवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी---- १२२. सूरियाभस्स णं भंते ! देवस्स एसा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभावे कहिं गते कहि अणुप्पविठे ? गोयमा ! सरीरं गए सरीरं अणुप्पविठे।।। १२३. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-सरीरं गए सरीरं अणुप्पविट्ठ ? मोयमा ! से जहानामए कूडागारसाला सिया-दुहतो लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया णिवायगंभीरा । तीसे णं कूडागारसालाए अदूरसामंते, एत्थ णं महेगे 'जणसमूहे एगं" महं अब्भवद्दलगं वा वासवद्दलगं वा महावायं वा एज्जमाणं' पासति, पासित्ता तं कूडागारसालं अंतो अणुप्पविसित्ताणं चिट्ठइ । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति–सरीरं गए, सरीरं अणुप्पविठे ।। सरियाम-विमाण-पदं १२४. 'कहिं णं" भंते ! सूरियाभस्स देवस्स सूरियाभे नामं विमाणे पग्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो उड्ढे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं पुरओ' बहूई जोयणाई वहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई बहूई जोयणसयसहस्साइं 'वहुईओ जोयणकोडीओ वहुईओ जोयणकोडाकोडीओ" उड्ढं दूरं वीतीवइत्ता, एत्थ णं सोहम्मे नाम १. भंतेत्ति (क, ख, ग)। २. पुस्तकान्तरे तु इदं वाचनान्तरं दृश्यते-'तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जिठे अन्तेवामी' इत्यादि.--'इंदभूई नाम अणगारे गोयमसगोत्ते सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे कणगपुलगनिघसपम्हगोरे उम्गतवे दित्ततवे महातवे उराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविपुलतेयलेस्से चउदसपुटवी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाई समणस्स भगवतो महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढेजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले, समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णको उहल्ले, उठाए उठेइ, उट्ठाए उद्वित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, तेणेव उवागच्छिता समणं भगवंतं महावीरं तिक्वत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति, तिक्वत्तो आयाहिणपयाहिणं करेत्ता वंदति नमसति, वंदिता नमंसित्ता एवं वयासी'-(व)। ३. जणसमूहे चिट्ठति, तए णं से जगसमूहे एग (च, छ); जनसमूह : तिष्ठति, स च एकं (व) । ४. एज्जमाणं वा (क, ख, ग, घ)। ५. कहण्णं (क); कहणं (ख, ग, च, छ); कहं गं (घ)। . ६. ४ (क, ख, ग, घ, च)। ७. बहुगीतो जोयणसहस्सातो बहुगीतो जोयणकोडाकोडीतो बहुगीतो जोयणसहस्सकोडीओ (क, ख, ग, च); बहुगीतो जोयणको डीतो बहुगीतो जोयणकोडाकोडीतो बहुगीतो जोयणयसहस्सकोडीतो (घ)। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो कप्पे पण्णत्ते-पाईणपडीणायते उदीणदाहिण वित्थिपणे अद्धचंदसंठाणसंठिते अच्चिमालिभासरासिवण्णाभे, असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविक्खंभेणं, असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं, 'सव्वरयणामए अच्छे सण्हे लण्हे घठे मठे णीरए निम्मले निप्पंके निक्कंकडच्छाए सप्पभे समरीइए सउज्जोए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे", एत्थ' णं सोहम्माणं देवाणं बत्तीसं विमाणावाससयसहस्साई' भवंति इति मक्खायं । ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ।। १२५. तेसिं णं विमाणाणं बहुमज्झदेसभाए पंच वडेंसया पण्णता, तं जहा–असोगवडेंसए सत्तवण्णव.सए' चंपगवडेंसए चूयव.सए मज्झे सोधम्मव.सए ते णं बडेंसगा सव्वरयणामया अच्छा जाव' पडिरूवा ।। १२६. तस्स णं सोधम्मवडेंसगस्स महाविमाणस्स पुरथिमेणं तिरियं असंखेज्जाई जोयणसयसहस्साई वीईवइत्ता', एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सूरियाभे विमाणे पण्णत्तेअद्धतेरस जोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं, गुणयालीसं च सयसहस्साई वावन्नं च सहस्साइं अट्ठ य अडयाले जोयणसते परिक्खेवेणं, [सबरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे ?] ॥ ० पागार-पदं १२७. से णं एगेणं पागारेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। से णं पागारे तिणि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले एगं जोयणसयं विक्खंभेणं, मज्झे पन्नासं जोयणाई विक्खंभेणं, उप्पि पणवीसं" जोयणाई विक्खं भेणं । मूले वित्थिपणे मज्झे संखित्त उप्पि तणुए, गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वरयणामए" अच्छे जाव' पडिरूवे ।। • कविसीस-पदं १२८. से णं पागारे णाणाविहपंचवण्णेहि कविसीसएहि उवसोभिए, तं जहा-- किण्हेहि नीलेहिं लोहितेहि हालिद्देहि सुक्किलेहिं कविसीसएहि । ते णं कक्सिीसगा एग जोयणं आयामेणं, अद्धजोयणं विक्खंभेणं, देसूर्ण जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामया" अच्छा जाव" पडिरूवा ॥ १. प्रतिषु एष पाठो नास्ति । वृत्तिगतस्य ६. कोष्ठकवर्ती पाठः प्रतिषु नोपलभ्यते, किन्तु 'सर्वात्मना रत्नमयः यावत् करणात् अच्छे १२४ सूत्रक्रमेण अत्रासौ युज्यते । संक्षिप्तसण्हे घट्टे' इति पाठस्यानुसारेण स्वीकृतोयं पद्धत्यनुसारेण लिपिकार ने लिखित इत्यनुपाठः। मीयते । २. तत्र (व)। १०. पणवीसं (घ)। ३. विमाणवास' (क, ख, ग, छ)। ११. सव्वकणगामए (क, ख, ग, घ, च, छ)। ४. मक्खाया (क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. राय० सू० २३ । ५. सहिवण्ण (क, ख, ग)। १३. णाणामणिपंचवणेहिं (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. राय० सू० २१। १४. सव्वमणिया (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. वीतीवइज्जा (क, ख, ग, घ)। १५. राय० सू० २१ । ८. ऊयालीसं (क, ख, ग, घ)। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेपइयं • द्वार-पदं १२६. सूरियाभस्स णं विमाणस्स एगमेगाए बाहाए दारसहस्सं-दारसहस्सं भवतीति मक्खायं । ते णं दारा पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाई जोयणसयाइं विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा ईहामिय-उसभ-तुरग-गर-मगर-विहगवालग-किन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कंजर - वणलय - पउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गय - वइरवेइयापरिगयाभिरामा विज्जाहर-जमल-जुयल-जंतजुत्ता पिव अच्चीसहस्समालणीया' रूवगसहस्सकलिया भिसमाणा भिन्भिसमाणा चक्खुल्लोयणलेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवा।। १३०. वण्णो दाराणं तेसि होइ, तं जहा-वइरामया णिम्मा, रिट्ठामया पइट्टाणा, वेरुलियमया खंभा, जायरूवोवचिय - पवरपंचवण्णमणिरयणकोट्टिमतला, हंसगन्भमया एलुया, गोमेज्जमया इंदकीला, लोहियक्खमईओ दारचेडाओ, जोईरसमया उत्तरंगा, लोहियक्खमईओ सूईओ, वइरामया संधी, नाणामणिमया समुग्गया, वइरामया अग्गला अग्गलपासाया, रययामईओ' आवत्तणपेढियाओ, अंकुत्तरपासगा, निरंतरियघणकवाडा, भित्तीसु चेव भित्तिगुलिया छप्पन्ना तिण्णि होंति, गोमाणसिया तत्तिया, णाणामणिरयणवालरूवग'-लीलट्ठियसालभंजियागा, वइरामया कूडा, रययामया' उस्सेहा, सव्वतवणिज्जमया उल्लोया, गाणामणिरयणजालपंजर-मणिवंसग -लोहियक्ख-पडिवंसग'-रययभोमा', अंकामया पक्खा पक्खबाहाओ, जोईरसमया" वंसा वंसकवेल्लुयाओ", रययामईओ पट्टियाओ, जायरूवमईओ ओहाडणीओ, वइरामईओ उवरिपुंछणीओ, सव्वसेयरययामए छायणे, अंकमय-कणगकूडतवणिज्जथूभियागा, सेया 'संखतल-विमल-निम्मल-दधिघण-गोखीरफेणरययणिगरप्पगासा, तिलग-रयणद्धचंदचित्ता", नाणामणिदामालंकिया, अंतो बहिं च सण्हा, तवणिज्ज-वालुया-पत्थडा, सुहफासा सस्सिरीयस्वा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा॥ • वंदणकलस-पदं १३१. तेसि णं दाराणं उभओ पासे" दुहओ निसीहियाए सोलस-सोलस वंदणकलसपरिवाडीओ पण्णत्ताओ। ते णं वंदणकलसा वरकमलपइट्ठाणा सुरभिवरवारिपडिपुण्णा १. 'मालिणीया (क, ख, ग, घ, च, छ) । पाठः । २. "गया (क, ख, ग, घ, च)। ७. वंस (क, ख, ग, घ, च, छ)। ३. अतः परं जीवाजीवाभिगमे (३१३००) 'वेरुलियामया कवाडा' इति पाठो बिद्यते। ६. भोम्मा (क, ख, ग, च)। ४. वइरामई (जी. ३१३००); आह च जीवा- १०. "रसा (क, ख, ग, छ) । भिगममूलटीकाकार :-'अर्गलाप्रासादा यत्रा- ११. कवेडयातो (छ)। गेला नियम्यते' इति । एतौ द्वौ अपि बज्ररत्न- १२. संखतल - विमल-निम्मल-दहिघण-गोखीरफेणमयो (व)। रययनियर-प्पगासद्धचंदचित्ताई (वृपा); "इत्ता ५. वालगरूवग (क, ख, ग, घ, च, छ)। (क, ख, ग, घ, च)। ६. रयणामय (क, ख, ग, घ, च, छ); जीवाजीवा- १३. पासा (क, ख, ग, च, छ) । भिगमस्य (३१३००) अनुसारेण स्वीकृतोयं Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ११३ चंदणकयचच्चागा आविद्धकंठेगुणा पउमुप्पलपिधाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव' पडिरूवा महया-महया महिंदकुंभसमाणा' पण्णत्ता समणाउसो ! ।। • णागदंत-पदं १३२. ते सि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस-सोलस णागदंतपरिवाडीओ पण्णत्ताओ । ते णं नागदंता मुत्ताजालंतरुसियहेमजाल-'गवक्खजाल-खिखिणीघंटाजालपरिक्खित्ता" अब्भुग्गया अभिणि सिद्धा तिरियं सुसंपग्गहिया अहेपन्नगद्धरूवगा पन्नगद्धसंठाणसंठिया सव्ववइरामया अच्छा जाव' पडिरूवा महया-महया गयदंतसमाणा पण्णत्ता समणाउसो! तेसु णं णागदंतएसु वहवे किण्हसूत्तबद्धा वग्धारियमल्लदामकलावा गीलसुत्तबद्धा वग्धारियमल्लदामकलावा लोहितसुत्तबद्धा वग्धारियमल्लदामकलावा हालिद्दसुत्तबद्धा वग्धारियमल्लदामकलावा सुक्किलसुत्तबद्धा वग्धारियमल्लदामकलावा ! ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा सुवण्णपयरमंडियगा* नाणामणिरयण-विविहहारद्धहार उवसोभियसमुदया •ईसिं अण्णमण्णमसंपत्ता पुव्वावरदाहिणुत्तरागएहिं वाएहिं मंदायंमंदायं एज्जमाणा-एज्जमाणा पलंबमाणा-पलबमाणा पझंझमाणा-पझंझमाणा उरालेणं मणुण्णण मणहरेणं कण्णमणणिवतिकरेण सद्देणं ते पएसे सव्वओ समंता आपूरेमाणाआपूरेमाणा' सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति । तेसि णं णागदंताणं उरि अण्णाओ सोलस-सोलस नागदंतपरिवाडीओ पण्णत्ताओ। ते णं नागदंता' 'मुत्ताजालंतरुसियहेमजाल - गवक्खजाल - खिखिणीघंटाजालपरिविखत्ता अब्भुग्गया अभिणिसिट्ठा तिरियं सुसंपग्गहिया अहेपन्नगद्धरूवा पन्नगद्धसंठाणसंठिया सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा महया-महया गयदंतसमाणा पण्णत्ता समणाउसो ! तेसु णं णागदंतएम वहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वेरुलियामईओ धूवघडीओ पण्णताओ। ताओ णं धूवघडीओ कालागरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्क-धूव-मघमतगंधुद्धयाभिरामाओ सुगंधवरगंधियाओ गंधवट्टिभूयाओ ओरालेणं मणुण्णेणं मणहरेणं घाणमणणिव्वुतिकरेणं गंधेणं ते पदेसे सव्वओ समंता आपूरेमाणा-आपूरेमाणा" "सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ ० सालभंजिया-पदं १३३. तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस-सोलस सालभंजिया. १. राय० सू० २१ । ६. राय० सू० २१ । २. पडिरूवगा (वृ)। ७. मण्डितानि (वृ) : 'पत रगमंडिता (जी. ३. इंदकुंभसमाणा (क. ख, ग, घ, च, छ); ३।३०२); प्रस्तुतागमस्य चत्वारिंशत्तमे सूत्रे जीवाजीवाभिगमे (३।३०१) पि 'महिंदकुंभ- पयरमंडियागा' इति पाठो विद्यते । समाणा' इति पाठो विद्यते । ८. सं० पा०-समुदया जाव सिरीए । ४. जाला-खिखिणीजाल (क, ख, ग, घ, च, ६. सं० पा०-.-नागदंता तं चेव गयदंतसमाणा। १०. सं० पा०-आपूरेमाणा जाव चिठ्ठति। ५. सुसंपरिग्गहिया (वृ)। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ रायपसेणइयं परिवाडीओ पण्णत्ताओ। ताओ णं सालभंजियाओ लील ट्ठियाओ सुपइटियाओ सुअलंकियाओ' णाणाविहरागवसणाओ णाणामल्ल पिणद्धाओ मुट्टिगेज्झसुमज्झाओ आमेलग-जमलजुयल-वट्टिय-अब्भुण्णय-पीण-रइय-संठियपओहराओ' रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिउविसय-पसत्थ-लक्खण-संवेल्लियग्गसिरयाओ ईसि असोगवरपायवसमुट्ठियाओ वामहत्थग्गहियग्गसालाओ ईसि अद्धच्छिकडक्खचिट्टितेहिं लूसमाणीओ विव, चक्खुल्लोयणलेसेहि अण्णमण्णं खिज्जमाणीओ विव, पुढविपरिणामाओ सासयभावमुवगयाओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्का विव उज्जोवेमाणाओ विज्जु-घण-मिरिय-सूर-दिप्पंत-तेय-अहिययर-सन्निकासाओ सिंगारागारचारवेसाओ पासाईयाओ' 'दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ तेयसा अतीव-अतीव उवसोभेमाणीओउवसोभेमाणीओ चिट्ठति ।। ० जालकडग-पदं १३४. तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस-सोलस 'जालकडगा पण्णत्ता" । ते णं जालकडगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ।। • घंटा-पदं १३५. तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ निसीहियाए सोलस-सोलस घंटापरिवाडीओ पण्णत्ताओ । तासि णं घंटाणं इमेयारूवे वणावासे पण्णत्ते तं जहा-जंबूणयामईओ घंटाओ. वइरामईओ लालाओ, णाणामणिमया घंटापासा, तवणिज्जामईओ संकलाओ, रययामयाओ रज्जूओ । ताओ णं घंटाओ ओहस्सराओ मेहस्सराओ हंसस्सराओ कुंचस्सराओ सीहस्सराओ दहिस्सराओ णदिस्सराओ णदिघोसाओ मजूस्सराओ मजूघोसाओ सूस्सराओ सूस्सरघोसाओ ओरालेणं मणुण्णणं मणहरेणं कण्णमणनिव्वुतिकरेणं सद्देणं ते पदेसे सव्वओ समंता आपूरेमाणाओ-आपूरेमाणाओं' 'सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणाओ-उवसोभेमाणाओ चिट्ठति ।। • वणमाला-पदं १३६. तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस-सोलस वणमालापरिवाडीओ पण्णत्ताओ। ताओ णं वणमालाओ गाणादुमलय-किसलय-पल्लव-समाउलाओ छप्पयपरिभुज्जमाण-सोहंत-सस्सिरीयाओ पासाईयाओ' 'दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ १. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। याम् । २. संठियपीवरपओहराओ (क, ख, ग, घ, च, ४. 'माणाओ (घ)। ५. लेसातो (क, ख, ग, घ)। ३. कडक (क, ध, च); "कडक्क (ख, ग); ६. सं० पा.-पासाईयाओ जाव चिट्ठति । वृत्तिकारेण 'अर्ध' तिर्यग् वलितं इति व्याख्या- ७. जालकडगपरिवाडीओ पण्णत्ताओ (क, ख, ग, तम् । जीवाजीवाभिगमस्य (पत्र २०७) वृत्ती घ, च, छ)। 'अड्ड' तिर्यग् वलितं इति व्याख्यातमस्ति । ८. "णिग्योसाओ (क, ख, ग, घ, च, छ)। अत्रापि 'अड' इति पदं युक्तमस्ति । एतद् ६. सं० पा०-आपूरेमाणाओ जाव चिट्ठति । देशीभाषा पदं विद्यते, 'आडो' इति भाषा- १०.सं० पा०—पासाईओ। Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ सूरियाभो पडिरूवाओ॥ ० पगंठग-पदं १३७. तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस-सोलस पगंठगा पण्णत्ता। ते ण पगंठगा अड्ढाइज्जाइं जोयणसयाई आयाम-विक्खंभेणं, पणवीस जोयणसयं बाहल्लेणं, सव्ववइरामया अच्छा जाव' पडिरूवा। तेसि णं पगंठगाणं उरि पत्तेयं-पत्तेयं पासायवडेंसगा पण्णत्ता। तेणं पासायवडेंसगा अड्ढाइज्जाई जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पणवीस जोयणसयं विक्खंभेणं', अब्भुग्गयमूसिय-पहसिया इव, विविहमणिरयणभत्तिचित्ता वाउद्धृय विजयवेजयंतीपडाग-च्छत्ताइछत्तकलिया तुंगा गगणतलमणुलिहंतसिहरा जालंतररयण" पंजरुम्मिलि यव्व मणिकणगथूभियागा वियसियसयवत्त-पोंडरीय -तिलगरयणद्धचंदचित्ता अंतो बहिं च सण्हा तवणिज्ज -वालुयापत्थडा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा जाव दामा॥ • तोरण-पदं १३८. तेसि णं दाराणं उभओ पासे दिहओ णिसीहियाए ? ] सोलस-सोलस तोरणा पण्णत्ता---णाणामणिमया णाणामणिमएसु खंभेसु उवणिविट्ठसन्निविट्ठा जाव" पउमहत्थगा ॥ १३६. तेसि णं तोरणाणं पुरओ' दो दो सालभंजियाओ" पण्णत्ताओ। जहा हेट्ठा तहव" ॥ १४०. तेसि णं तोरणाणं पुरओ नागदंतगा पण्णत्ता । जहा हेट्ठा जाव" दामा । १४१. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयसंघाडा गयसंघाडा नरसंघाडा किन्नरसंघाडा किंपुरिससंघाडा महोरगसंघाडा गंधवसंघाडा उसभसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा" ॥ १. राय० सू० २१। है. जावदामा उरि पगंठगाणं उझया छत्ताइच्छत्ता २. पणु (च)। (क, ख, ग, घ, च, छ) 'दामा' इति पाठ३. अत्र 'आयाम-विक्खंभेणं' इति पाठः अपेक्षि- ग्रहणेन३३-४० सूत्रस्य चिट्ठति' पर्यन्तः तोस्ति । जीवाजीवाभिगमे (३१३०७) एत- पाठो ग्राह्यः । तल्याप्रकरणे आयाम-विक्खंभेणं' इति पाठो १०. उभयो: पार्श्वयोरेकैकनषेधिकीभावेन या द्विधा विद्यते। नषेधिकी तस्याम्-इति वृत्त्यनुसारेण कोष्ठ४. पहासिया (छ, वृ)। कान्तर्गतः पाठो युज्यते। ५. सूत्रे चात्र विभक्तिलोपः प्राकृतत्वात् (वृ)। ११. राय० सू० २०-२३ । ६. 'रीया (क, ख, ग, घ)। १२. पुरतः प्रत्येकम् (ब)। ७. अतोने आदर्शेषु णाणामणिदामालंकिया' इति १३. सालि (च छ) । पाठो लभ्यते। वृत्तौ नास्ति व्याख्यातोसो। १४. राय० सू० १३३ । जीवाजीवाभिगमवृत्तावपि (पत्र २०६) नास्ति १५. राय० सू० १३२ । व्याख्यातः । मुद्रितवृत्तौअसौ केनापि प्रक्षिप्तः। १६. राय० सू० २१ । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेर्वृत्तित्रयेसो व्याख्यातो दृश्यते । १७. अतः परं जीवाजीवाभिगमे (३।३१८) ८. "णिज्जा (क, ख, ग, घ, च) । संक्षिप्तपाठ एव स्वीकृतोस्ति। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ रायपसेणइयं १४२. "तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयपतीओ ।। १४३. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयवीहीओ। १४४. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयमिहणाई ।। १४५. तेसि गं तोरणाणं पुरओ दो दो पउमलयाओ' 'दो दो नागलयाओ दो दो असोगलयाओ दो दो चंपगलयाओ दो दो चुयलयाओ दो दो वणलयाओ दो दो वासंतियलयाओ दो दो अइमुत्तयलयाओ दो दो कुंदलयाओ दो दो सामल याओ णिच्चं कुसुमियाओ' 'णिच्चं माइयाओ णिच्चं लवइयाओ णिच्चं थवइयाओ णिच्चं गुलइयाओ णिचं गोच्छियाओ णिच्चं जमलियाओ णिच्च जुवलियाओ णिच्चं विणमियाओ णिच्चं पणमियाओ [णिच्चं सुविभत्त-पिंडि-मंजरि-वडेंसगधरीओ ?] णिच्चं कुसुमिय-माइय-लवइय-थवइयगुलइय-गोच्छिय-जमलिय-जुवलिय-विणमिय-पणमिय-सुविभत्त-पिडि-मंजरि-वडेंसगधरीओ 'सव्वरयणामईओ अच्छाओ" 'सण्हाओ लण्हाओ घटाओ मट्ठाओ णीरयाओ निम्मलाओ निप्पंकाओ निक्कंकडच्छायाओ सप्पभाओ समरीइयाओ सउज्जोयाओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ। १४६. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो दिसासोवत्थिया' पण्णत्ता-सव्वरयणामया अच्छा पडिरूवा ।। १४७. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो वंदणकलसा पण्णत्ता। ते णं वंदणकलसा वरकमलपइट्ठाणा' 'सुरभिवरवारिपडिपुण्णा चंदणकयचच्चागा आविद्धकंठेगुणा पउमुप्पलपिधाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा मह्या-मया महिंदकुंभसमाणा पण्णत्ता समणाउसो° ! ॥ १४८. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो भिंगारा पण्णत्ता । ते णं भिंगारा वरकमलपइट्ठाणा' 'सुरभिवरवारिपडिपुण्णा चंदणकयचच्चागा आविद्धकंठेगुणा पउमुप्पलपिधाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा महया मत्तगयमहामुहाकतिसमाणा" पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ १४६. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो आयंसा पण्णत्ता । तेसि णं आयंसाणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-तवणिज्जमया पगंठगा," अंकामया मंडला 'अणुग्धसितनिम्म१. सं० पा०–एवं पंतीओ वीही मिहुणाई;. ६. सं० पा०--वरकमलपइट्टाणा जाव महया । वीहीतो पंतीतो (क, ख, ग, घ, च, छ)। १०. मत्तगयमुहाकतिौं (क, ख, ग, घ, च, छ); २. राय० सू० १४१ । मत्तगयमहामुहागिइ (वृ)1 ३. सं० पा० ....पउमलयाओ जाव सामलयाओ। ११. अतः परं प्रयुक्तादर्शषु एतादृशः पाठो ४. सं० पा०-कुसुमियाओ सव्वरयणामईओ। लभ्यते-वेरुलियमया सुरया वइरामया ५. "मय अच्छा (व); सं.पा.-अच्छाभो जाव दोवारंगा नानामणिया मंडला' एष वृत्ती पडिरूवाओ। नास्ति व्याख्यातः । जीवाजीवाभिगमादशेष ६. अक्खयसोवस्थिया (क, ख, ग, घ, च, छ) । (३।३२२) एष पाठः किञ्चिद्भेदेनोप७. जाम्बूनदमया (वृपा)। लभ्यते-वेरुलियमया छरूहा वइरामया वरंगा ८. सं० पा०-वरकमलपइट्ठाणा तहेव । णाणामणिमया बलक्खा अंकमया मंडला । तस्य Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ११७ लाए छायाए" समणुबद्धा, चंदमंडलपडिणिकासा मया महया अद्धकायसमाणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ १५०. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो वइरनाभा थाला पण्णत्ता -अच्छ-तिच्छाडियसाल- तंदुल - संदिप डिपुण्णा इव चिट्ठति सव्वजंबूणयमया अच्छा जाव पडिरूवा महया - महया रहचक्कसमाणा' पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ १५१. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो पातीओ पण्णत्ताओ। 'ताओ गं" पातीओ अच्छोदगपरिहत्थाओ णाणाविहस्स' फलहरियगस्स वहुपडिपुण्णाओ विव चिट्ठति सव्वरणामईओ अच्छाओ जाव पडिरुवाओ महया मया गोकलिजगचक्क समाणीओ' पण्णत्ताओ समणाउसो ! | १५२. तेसि गं तोरणाणं पुरओ दो दो सुपइट्ठगा' पण्णत्ता । 'ते णं सुपइट्ठगा सुसव्वोणाणाविहस्स च पसाधणभंडस्स बहुपडिपुण्णा" इव चिट्ठति सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ १५३. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो मणोगुलियाओं' पण्णत्ताओ । तासु णं मणोगुलियासु बहवे सुवण्णरुप्पामया फलगा पण्णत्ता । तेसु णं सुवण्णरुप्पामएसु फलगेसु बहवे वइरामया नागदंतया पण्णत्ता । तेसु णं वइरामएसु नागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता । तेसु णं रययामएसु" सिक्कगेसु बहवे वायकरगा पण्णत्ता । ते णं वायकारगा किण्हसुत्तसिक्कग " - गवच्छिया" गीलसुत्तसिक्कग-गवच्छिया लोहियसुत्तसिक्कग-गवच्छिया हालिद्दसुत्तसिक्कग-गवच्छिया सुविकल सुत्तसिक्कग- गवच्छिया सव्ववेरुलियमया अच्छा जाव पंडिरूवा ॥ वृत्तावपि ( पत्र - २१३ ) असो व्याख्यातास्ति । प्रस्तुतागमे वृत्तिकारण मलयगिरिणा उपलब्धादर्शेषु नैष पाठो दृष्टः तेन न व्याख्यातः अथवा उत्तरवर्तिभिलिपिकारैः जीवाजीवाभिगमादर्शमनुसृत्य अत्रापि प्रक्षिप्त: अथवा वाचना भेदस्यापि संभावनाकर्तुं शक्या । १. निम्मलाते छायाते ( क, ख, ग, घ ) ; X ( च, छ) । २. सालिय (क, ख, ग, घ, च, छ) । ३. रहचक्कवालसमाणा (क, ख, ग, घ, च, छ); वृत्तौ 'रथचक्रसमानानि' इति व्याख्यातमस्ति । जीवाजीवाभिगमे ( ३१३२३) पि 'रहचक्कसमाणा' इति पाठोस्ति । ४. तोणं (क, ख, ग, घ, च) । ५. णाणामणिपंचवण्णस्स ( क, ख, ग, घ, छ) 1 ६. गोकलिंजर' (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. सुपट्टा (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ८. णाणाविहभंडविरइया (क, ख, ग, घ, च, छ) ; मूलपाठः वृत्त्याधारेण स्वीकृतोस्ति । जीवाजीवाभिगमे ( ३।३२५ ) पि एतादृश एव पाठो दृश्यते । तथा ९. मण (क, ख, ग, घ ) ; मणिगु ( च, छ) । १०. वइरामया (क, ख, ग, घ, च, छ ); वृत्ती जीवाजीवाभिगमस्य (३२६) आदर्शषु वृत्तावपि (पत्र २१४) च रजतपदमुपलभ्यते । प्रस्तुतागमस्यादर्शेषु 'बहर' इति पदं केनापि लिपिदोषादिकारणेन प्रविष्टमभूत् । ११. वइरामए (क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. सिक्का (क, ख, ग, घ, च, छ ) 1 १३. गवत्थिता (घ ) | Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ रायपसेणइयं १५४. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो चित्ता रयणकरंडगा पण्णत्ता-से जहाणामए रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चित्ते रयणकरंडए वेरुलियमणि'-फालियपडल'-पच्चोयडे साए पहाए ते पएसे सव्वतो समंता ओभासेति उज्जोवेति तावेति पभासेति', एवमेव तेवि चित्ता रयणकरंडगा साए पभाए ते पएसे सव्वओ समंता ओभासेंति उज्जोवेति तावेति पभासेंति। १५५. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयकंठा गयकंठा नरकंठा किन्नरकंठा किंपुरिसकंठा महोरगकंठा गंधव्वकंठा उसभकंठा सव्वरयणामया' अच्छा जाव पडिरूवा ॥ १५६. 'तेसि णं तोरणाणं पुरओ' दो दो पुप्फचंगेरीओ मल्लचंगेरीओ चुग्णचंगेरीओ गंधचंरीओ वत्थचंगेरीओ आभरणचंगेरीओ सिद्धत्थचंगेरीओ लोमहत्थचंगेरीओ पण्णत्ताओ सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। १५७. 'तेसि णं तोरणाणं" परओ दो दो पुप्फपडलगाई मल्लपडलगाई चण्णपडलगाई गंधपडलगाइं वत्थपडलगाई आभरणपडलगाइं सिद्धत्थपडलगाइं° लोमहत्थपडलगाई पण्णत्ताई सव्वरयणामयाइं अच्छाई 'सण्हाइं लण्हाई घट्ठाई मट्ठाई णीरयाई निम्मलाई निप्पकाई निक्कंकडच्छायाइं सप्पभाई समरीइयाई सउज्जोयाइं पासादीयाई दरिसणिज्जाइं अभिरूवाई पडिरूवाई ।। १५८. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो सीहासणा पण्णत्ता। तेसि णं सीहासणाणं वण्णाओ जाव" दामा। १५९. तेसि गं तोरणाणं पुरओ दो दो रुप्पमया" छत्ता पण्णत्ता। ते णं छत्ता वेरुलियविमलदंडा" जंबूणयकण्णिया वइरसंधी मुत्ताजालपरिगया अट्ठसहस्सवरकंचणसलागा दद्दरमलयसुगंधि-सव्वोउयसुरभिसीयलच्छाया मंगलभत्तिचित्ता चंदागारोवमा ॥ १६०. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो चामराओ पण्णत्ताओ । ताओ णं चामराओ 'चंदप्पभ-वेरुलिय-वइर-नानामणि रयणखचियचित्तदंडाओ' 'सुहमरययदीहवालाओ संखंककुंद - दगरय - अमयम हियफेणपुंजसन्निगासातो'५ सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ १. वेरुलिया (क, ख, ग, घ, च)। १०. सं० पा०-अच्छाई जाव पडिरूवाई। २. फलिह (क, ख, ग, घ, च, छ)। ११. राय० सू० ३७-४०1 ३. पगासति (क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. रुप्पच्छदा (जीवा० ३१३३२) । ४. पगासेंति (क, ख, ग, घ)। १३. तिविठ्ठदंडा (क, ख, ग); निविट्ठदंडा ५. वइरामया (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. तेसु णं हयकंठएसु जाव उसभकठएसु (क, ख, १४. णाणामणिकणगरयणविमलमहरिहतवणिज्जुज्जग, घ, च, छ)। लविचित्तदंडाओ चिल्लियाओ (क, ख, ग, घ, ७. सिद्धत्था (ख, ग, च, छ); सिद्धत्थग (वृ)। च, छ)। ८. तासु णं पुप्फचंगेरीसु जाव लोमहत्थचंगेरीसु १५. संखंक-कुंद - दगरय-अमयमहियफेणपुंजसन्निगा__क, ख, ग, घ, च, छ)। साओ सुहुमरययदीहवालाओ (क, ख, ग, घ, ६. सं० पा०-पुष्फपडलगाई जाव लोमहत्थपड- च, छ)। लगाई। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ११६ १६१. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो तेल्लसमुग्गा कोट्ठसमुग्गा पत्तसमुग्गा' चोयगसमुग्गा तगरसमुग्गा एलासमुग्गा हरियालसमुग्गा हिंगुलयसमुग्गा' मणोसिलासमुग्गा अंजणसमुग्गा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ • दार-पदं १६२. सूरिया णं विमाणे एगमेगे दारे अट्ठसयं चक्कज्झयाणं, एवं मिगज्झायाणं ' गरुडज्झयाणं' रुच्छज्झयाणं छत्तज्भयाणं पिच्छज्झायाणं सउणिज्झयाणं सोहज्झायाणं, उसभज्झायाणं, अट्टस सेयाणं चउ-विसाणाण नागवरकेऊणं ॥ १६३. एवामेव सपुव्वावरेणं सूरियाभे विमाणे एगमेगे दारे 'असीयं असीयं" केउसहस्सं भवति इति मक्खायं ॥ १६४. तेसि णं दाराणं एगमेगे दारे" पण-पर्णा भोमा पण्णत्ता । तेसि णं भोमाणं भूमिभागा उल्लोया य भाणियव्वा" [तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभाए जाणि तेत्तीस माणि भोमाणि " ] । तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभा गे पत्तेयं पत्तेयं सीहासणे [पण्णत्ते ? ] सीहासणवण्णओ सपरिवारो । अवसेसेसु भोमेसु पत्तेयं-पत्तेयं 'सीहासणे पण्णत्ते"" ॥ १६५. तेसि णं दाराणं उत्तरागारा " सोलसविहेहि रयणेहिं उवसोभिया, तं जहा -- रयणेहिं" "वइरेहिं वेरुलिएहिं लोहियक्खेहिं मसारगल्लेहिं हंसगब्भेहिं पुलगेहिं सोगंधिए हिं जोईरसेहिं अंजणेहिं अंजणपुलगेहि रयएहिं जायरूवेहि अंकेहिं फलिहेहिं रिट्ठेहिं ॥ १६६. तेसि णं दाराणं उप्पिं अटूट्ठ मंगलगा" "पण्णत्ता 1 १. x (क, ख, ग, घ ) २. हिंगुरु ( क ) ; हिंगुलुय° ( ख, ग, ब ) । ३. वारे (क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. असयं ( क, ख, ग, घ, च, छ) 1 ५. मिगि (च ) ! ६. जंग० ( च, छ) । ७. पण्डितबेचरदासजी संपादितवृत्तौ ( पृ० १८० ) 'रुद्ध' इतिपदं मुद्रितमस्ति, किन्तु नास्यात्रसङ्गतिर्दृश्यते । प्रस्तुत सूत्रस्य हस्तलिखितवृत्तौ 'ऋच्छ' इति पदमस्ति । 'घ' संकेतितादर्शेपि 'ऋच्छ' इतिपदं लभ्यते । जीवाजीवाभिगमसूत्रस्य ( ३।३२५ ) हस्तलिखितवृत्तावपि 'ऋच्छ' इतिपदं निर्दिष्टमस्ति । शेषप्रयुक्ता - दषु एतत् पदं अस्य स्थाने वा अन्यत् पदमनुपलब्धमस्ति । ८. आसीयं (क, ख, ग, च); असीयं (घ, छ ) ! ६. सुरिया विमाणे (क, ख, ग, घ, च, छ) । १०. राय० सू० २४-३१, ३४ । ११. कोष्ठकवतिपाठः आदर्शषु नोपलभ्यते, वृत्तावस्ति व्याख्यातः — बहुमध्यदेशभागे यानि त्रयस्त्रिशतमानि भौमानि । जीवाजीवाभिगमे ( ३३३३६ ) एतत् संवादी पाठो विद्यते । १२. राय० सू० ३७-४४ । १३. भद्दासणा पण्णत्ता (क, ख, ग, घ, च, छ) ; शेषेषु च भौमेषु प्रत्येकमेकैकं सिंहासनं परिवारहितम् (वृ) 1 १४. उत्तिमा (क, ख, ग, ग, च, छ ); उवरिमा ( वृपा) । १५. सं० पा० -- रयणेहि जाव रिट्ठेहि । १६. सं० पा० - मंगलगा सज्झया जाव छत्ताति छत्ता 1 १७. राय० सू० २१ । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० रायपसेणइयं १६७. तेसि णं दाराणं उप्पिं वहवे किण्हचामरज्झया॥ १६८. तेसि णं दाराणं उप्पिं वहवे छत्तातिछत्ता ।। १६६. 'एवामेव सपुव्वावरेणं सूरियाभे विमाणे चत्तारि दारसहस्सा भवंतीति मक्खायं"। ० वणसंड-पदं १७०- सूरियाभस्स विमाणम्स चउद्दिसिं पंच जोयणसयाई अवाहाए चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा-'असोगवणे, सत्तवण्णवणे चंपगवणे, चूयवणे" पुरथिमेणं असोगवणे, दाहिणेणं सत्तवण्णवणे, पच्चत्थिमेणं चंपगवणे, उत्तरेणं चूयवणे । तेणं वणसंडा साइरेगाई अद्धतेरस जोयणसयसहस्साई आयामेणं, पंच जोयणसयाई विवखंभेणं, 'पत्तेयं पत्तेयं" पागारपरिखित्ता 'किण्हा किण्होभासो" नीला नीलोभासा हरिया हरिओभासा सीया सीओभासा णिद्धा णिद्धोभासा तिव्वा तिव्वोभासा किण्हा किण्हच्छाया नीला नीलच्छाया हरिया हरियच्छाया सीया सीयच्छाया णिद्धा णिद्धच्छाया तिव्वा तिब्वच्छाया घणकडियकडच्छाया रम्मा महामेहणिकरंबभूया' वणसंडवण्णओ" । ० वणसंड-भूमिभाग-पदं । १७१. तेसि णं वणसंडाणं अंतो वहुसमरणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता-से जहानामए आलिंगपुक्खरेति वा जाव णाणाविह" पंचवणेहिं 'मणीहि य" तणेहि य उवसोभिया । १७२. तेसि णं गंधो फासो णायव्वो" जहक्कम ।। १७३. तेसि ण भंते ! तणाण य मणीण य पून १. राय० सू० २२ । इति इह शरीरस्य मध्यभागे कटिस्ततोऽन्य२. राय० सू०२३। स्थापि मध्यभागः कटिरिव कटिरित्युच्यते, ३. x (व)? एवामेव मक्खायं (वृपा) । कटिस्तटमिव कटितटं घना अन्योऽन्यशाखा४. आबाहाते (क, ख, ग, घ, च, छ) । प्रशाखानुप्रवेशतो निविडा कटितटे-मध्यभागे ५. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । छाया येषां ते तथा--मध्यभागे निविड६. पुत्रवेणं (क, ख, ग, घ, च, छ)। तरच्छाया इत्यर्थः । अस्माभिः यावत्पदसूचितः ७. जोयणसहस्साइं (च, छ) । पाठः औपपातिकादवतारितः तेन तदनुसारी एव ८. पत्तेयं (क, ख, ग, घ, च)। पाठः स्वीकृतः । द्रष्टव्यं औपपातिक (सू० ४) ६. किण्हा किण्होभासा जाव पडिमोयणा सुरम्मा सूत्रस्य पादटिप्पणम् । (व); अत्र वृत्तिकृतान्येपि केचिच्छन्दा ११. ओ० सू० ५-७ । व्याख्याताः। सं० पा०किण्होभासा ते णं १२. राय० सू० २४ । पायवा मूलमंतो। १३. णाणामणि (क) । १०. वृत्तौ यावत्पदसूचितः पाठो व्याख्यातोस्ति । १४. ४ (क, च, छ) । तत्र 'घणकडितडियच्छाया' इति पाठस्य १५. राय० सू० २४-२६ । व्याख्या उपलभ्यते--'घनकडितडियच्छाया, १६. राय० सू० ३०, ३१ । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १२१ 'मंदाय-मंदाय" एइयाणं वेइयाणं 'कंपियाणं चालियाणं फंदियाणं घट्टियाणं खोभियाण उदीरियाणं केरिसए सद्दे भवइ ? गोयमा ! से जहानामए सीयाए वा संदमाणीए वा रहस्स वा सच्छत्तस्स सज्झयस्स सघंटस्स सपडागस्स सतोरणवरस्स सनंदिघोसस्स सखिखिणिहेमजालपरिखित्तस्स हेमवय-चित्तविचित्त-तिणिस-कणगणिज्जुत्तदारुयायस्स' सुसंपिणद्धारकमंडलधुरागस्स" कालायससुकयणेमिजंतकम्मस्स आइण्णवरतुरगसुसंपउत्तस्स कुसलणरच्छेयसारहि-सुसंपरिग्गहियस्स सरसय-वत्तीस-तोण-परिमंडियस्स सकंकडावयंसगस्स सचाव-सर-पहरण-आवरण-भरियजोहजूज्झ-सज्जस्स रायंगणसि वा रायंतेउरंसि वा, रम्मंसि वा मणिकोट्टिमतलंसि अभिक्खणं-अभिक्खणं अभिघट्टिज्जमाणस्स उराला' मणुण्णा मणोहरा' कण्णमणनिव्वुइकरा सदा सवओ समंता अभिणिस्सवंति, भवेयारूवे सिया ? णो इणठे समठे। से जहाणामए वेयालियवीणाए उत्तरमंदा-मुच्छियाए" अंके२ सुपइट्ठियाए कुसलमरनारिसुसंपग्गहियाते चंदण-सार-निम्मिय-कोण-परिघट्टियाए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयम्मि मंदायं-मंदायं एइयाए वेइयाए [कंपियाए"] चालियाए फिदियाएं"?] घट्रियाए खोभियाए उदीरियाए ओराला मणण्णा मणहरा कण्णमण निव्वुइकरा सद्दा सव्वओ समता अभिनिस्सवंति, भवेयारूवे सिया ? णो इणठे समठे। से जहानामए किन्नराण वा किंपुरिसाण वा महोरगाण वा गंधव्वाण वा भद्दसालवणगयाण वा नंदणवणगयाणं वा 'सोमणसवणगयाणं वा५ पडगवणगयाणं वा हिमवंत-मलयमंदरगिरि-गुहासमन्नागयाणं वा एगओ" सहियाण सन्निसन्नाणं समुन्विट्ठाण" पमुइयपक्कीलियाणं गीयरइ-गंधव्वहरिसियमणाणं गज्ज पज्ज कत्थं गेयं पयवद्धं पायवद्धं १. मंदायं (क, ख, ग, घ, च, छ) । फंदियाणं' इति पाठः, तद्वत् अत्र 'कंपियाए.--- २. चालियाणं (क, ख, ग, घ, च); चलियाणं फंदियाए' इति पाठो न लभ्यते ! जीवाजीवाभिस्पन्दियाणं (छ)। .. गमे (३१२८५) एष पाठ उपलब्धोस्ति। ३. छ प्रती 'विचित्त' इति पाठोस्ति, अन्यासु च १५. ४ (क, ख, ग, घ, च)। प्रतिष 'चित्त' इति पाठः, किन्तु वृत्तौ जीवा- १६. कंदर' (क, ख, ग, घ); मंदिर (छ) । जीवाभिगमे (३।२८५) तद्वृत्ती (पत्र १६२) १७. एकयओ (क, ख, ग, घ)। च-चित्रविचित्रं-मनोहारिचित्रोपेतम् इति १८. संगहियाणं (च, छ)। व्याख्यातमस्ति। १६. सहिताणं संमुहागयाणं समुपविट्ठाणं संनिवि४. "णिज्जत्त' (क, ख, ग, घ, च) । द्वाणं (जीवा० ३।२८५)। ५. द्धाचक्क (क, ख, ग, च)। २०. अत्रादर्शषु गंधव्वरइहसियमणाणं' इति पाठो ६. ससंपग्ग (क, ख, ग, घ, च, छ) । लभ्यते । वृत्तौ नास्त्यसौ व्याख्यातः । पंडित ७. कंकडा (क, ख, ग, घ, च)। बेचरदाससम्पादिते प्रस्तुतसूत्रे पंधव्वहसियम८. भरियज्झ (क, ख, ग, घ, च, छ) । णाण' इति पाठो दृश्यते । किन्तु अर्थ विचार१. नियट्रिज्जमाणस्स उराला (छ) ! जया नषोपि सम्यक प्रतिभाति । जीवाजीवाभि१०. x (4)। गमस्य (३१२८५) सन्दर्भ असौ पाठः स्वी११. समुच्छियाए (च, छ) । कृतोस्ति । १२. अंक (क, च, छ); अंकं (ख, ग, घ)। २१. गच्छं (क, ख, ग, घ, च)। १३,१४. अस्मिन्नेव सूत्रे पूर्व 'कंपियाणं चालियाणं । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं १२२ 'उक्खित्तायं पायत्ताय" मंदायं रोइयावसाणं सत्तसरसमन्नागयं अट्ठरससुसंपउत्त' छद्दोसविप्पमुक्कं एक्कारसालंकारं अद्रुगुणोववेयं, गुंजावककुहरोवगूढ' रत्तं तिट्ठाण करणसुद्ध" "सकुहरगुंजतवंस-तंती- तल-ताल-लय-गमुसंपत्तं महुरं समं सललियं मणोहरं मउरिभियपयसंचारं सुरइं सुगति वरचारुरूवं दिव्वं णट्टसज्जं गेयं° पगीयाणं भवेयारूवे सिया ? हंता सिया ॥ • वणसंड जलासय-पदं १७४. तेसि णं वणसंडाणं तत्थ तत्थ 'देसे तर्हि तहिं" बहूओ खुड्डा खुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सहाओ रययामयकूलाओ' समतीराओ वयरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण-सुज्झ - रयय- वालुयाओ वेरुलिय- मणि - फालिय- पडल -पच्चोयडाओ सुओयार" - सुउत्ताराओ गाणामणि- तित्थ " - सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ" संछन्नपत्तभिस- मुणालाओ बहुउप्पल कुमुय-नलिण-सुभग-सोगंधियपोंडरीय - सयवत्त-सहस्सपत्त - केसरफुल्लोवचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छ विमलसलिल पुण्णाओ 'पडिहत्थभमंत मच्छकच्छभ-अणेगस उणमिहुणगपविचरिताओ पत्तेयंपत्तेयं पउमवरवेदिया परिक्खित्ताओ पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिखित्ताओ" अप्पेगइयाओ आसवोयगाओ 'अप्पेगइयाओ वारुणोयगाओ" अप्पेगइयाओ खीरोयगाओ अप्पेगइयाओ areगाओ अप्पेगइयाओ खोदोयगाओ" अप्पेगतियाओ पगईए" उयगरसेणं पण्णत्ताओ पासादीयाओ दरिस णिज्जाओ अभिरुवाओ पडिवाओ || १७५. तासि णं खुड्डाखुड्डियाणं वावीण" "पुक्खरिणीण दीहियाणं गुंजालियाणं सरसीणं सरपंतियाणं सरसरपंतियाण बिलपतियाणं पत्तेयं पत्तेयं चउद्दिसि चत्तारि १. ओक्खित्तायं पयत्तायं ( च, छ ) ; उक्खित्तायं पवत्तायं (जीवा० ३।२८५ ) ! २. x (क, ख, च, छ ) ; ( ३२८५ ) प्यसावस्ति | जीवाजीवाभिगमे ४. X ( क, ख, ग, घ, च, छ ) ५. सं० पा०-- तिद्वाणकरणसुद्धं पगीयाणं । ३. गुंजावक्क° (क, ख, ग, घ, च, छ ) गुंजा + ११. x (क, ख, ग, घ, च) । अवंक॰ ... गुंजावंक' । ६. तह तह देसे देसे (क, छ); तहि देसे देसे ( ख, ग, घ, च) जीवाजीवाभिगमे (३२८६) पि 'देसे तहि तहि' इत्येव दृश्यते । ७. X ( क, ख, ग, घ, च, छ); वृत्याधारेण स्वीकृतोसौ पाठः । जीवाजीवाभिगमे (३२८६) पि दृश्यते, तद्वृत्तावपि चास्ति व्याख्यातः । ८. कूडाओ (क, ख, ग, घ, च, छ ) । सज्झ (क, ख, ग, घ, च); सुब्भं ( जीवा० ३१२८६) । १०. सुहोयार ( जीवा० ३।२८६ ) | १२. अणु (क, ख, ग, घ, च ) । १३. x (क, ख, ग, घ च छ ) ; जीवाजीवाभिगमे ( ३।२८६) व्यावस्ति । १४. X ( क, ख, ग, घ, च) | १५. खोयगातो (घ) । अतः परं जीवाजीवाभिगमे ( ३।२६६ ) एतत् अतिरिक्तं विशेषणं लभ्यतेअप्पेगतियाओ अमय रससम रसोदाओ । १६. X (क, ख, ग, घ, च, छ) । १७. सं० पा०वावीणं जाव बिलपंतियाणं । Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १२३ तिसोमाणपडिरूवगा पण्णत्ता। तेसि णं तिसोमाणपडिरूवगाणं 'अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा–वइरामया नेमा रिट्ठामया पतिट्ठाणा, वेरुलियामया खंभा, सुवण्णरुप्पमया फलगा, लोहितक्खमइयाओ सूइओ, वयरामया संधी, णाणामणिमया अबलंवणा अवलंबणबाहाओ य पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा"। १७६. "तेसि णं तिसोमाणपडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं तोरणं पण्णत्तं' ।। १७७. तेसि णं तिसोमाणपडिरूवगाणं उप्पि अट्ठमंगलगा पण्णत्ता॥ १७८. तेसि णं तिसोमाणपडिरूवगाणं उप्पि वहवे किण्हचामरज्झया ॥ १७६. तेसि णं तिसोमाणपडिरूवगाणं उप्पि बहवे छत्तातिछत्ता ॥ १८०. 'तासि णं खुड्डाखुड्डियाणं वावीणं 'पुक्खरिणीणं दीहियाणं गुंजालियाणं सरसीणं सरपंतियाणं सरसरपंतियाण बिलपंतियाणं" तत्थ तत्थ 'देसे तहि तहि" वहवे उप्पायपव्वयगा नियइपव्वयगा" जगईपव्वयगा" दारुइज्जपव्ययगा दगमंडवा दगमंचगा" दगमालगा दगपासायगा" उसड्डा" खुडखुड्डगा अंदोलगा पक्खंदोलगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा॥ १८१. तेसु५ णं उप्पायपव्वएसु" 'नियइपव्वएसु जगईपव्वएसु दारुइज्जपव्वएसु दगमंडएसु दगमंचएसु दगमालएसु दगपासायएसु उसड्डएसु खुड्डखुड्डएसु अंदोलएसु पक्खंदोलएस वहुई हंसासणाई कोंचासणाइं गरुलासणाई उण्णयासणाई पणयासणाई दीहासणाई 'भद्दासणाई पक्खासणाई मगरासणाईसीहासणाई पउमासणाई दिसासोवत्थियासणाई सव्वरयणामयाइं अच्छाई जाव पडिरूवाइं॥ ० वणसंड-घरग-पदं १८२. तेसु णं वणसंडेसु तत्थ तत्थ 'देसे तहिं तहि" वहवे आलिघरगा मालिघरगा कयलिघरगा लयाघरगा अच्छणधरगा पिच्छणघरगा मज्जणघरगा पसाधणघरगा गब्भ१. वणो (क, ख, ग, घ, च); वण्णतो (छ)। ११. जई (क, ख, ग)। २. सं० पाo-तोरणाणं झया छत्ताइछत्ता य १२. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। यव्वा । १३. पन्वयमा (क, ख, ग, घ, च)। ३. राय० सू० २० । १४. उसरदगा (क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. राय० सू० २१ । १५. तेसि (क, ख, ग, घ, च, छ)। ५. राय० सू० २२ । १६. सं० पा०-उप्पायपव्वएसु पक्खंदोलएसु । ६. राय० सू० २३ । १७. पक्खासणाई मगरासणाई भद्दासणाई (क, ख, ७. सं० पा०-वावीणं जाव बिलपंतियाणं । ग, घ, छ)। ८. तासु (तासि) णं खुड्डावावीसु जाव बिलपंति- १८. उसभासणाई सीहासणाई (क, ख, ग, घ, ___ यासु (क, ख, ग, घ, च, छ) । च, छ)। ६. तहिं तहिं देसे देसे (क, ख, ग, घ); तेहि तेहि १६. तहि तहि देसे देसे (क, ख, ग, घ, च, छ) । देसे देसे (च, छ) । २०. x (क, ख, ग, घ, च)। १०. नियय (क, ख, ग, घ, च, छ, वृपा)। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ रायपसेणझ्यं घरगा मोहणघरगा' सालघरगा जालघरगा 'कुसुमघरगा चित्तघरगा' गंधव्वघरगा आयंसघरगा' सन्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ १८३. तेसु णं आलिघरगेसु 'मालिघरगेसू कयलिघरगेसु लयाघरगेसु अच्छणघरगेसु पिच्छणघरगेसु मज्जणघरगेसु पसाधणघरगेसु गब्भघरगेसु मोहणघरगेसु सालघरगेसु जालघरगेसु कुसुमघरगेसु चित्तघरगेसु गंधब्वघरगेसु आयंसघरगेसु तहिं तहिं घरएसु वहुई हंसासणाई 'कोंचासणाई गरुलासणाई उग्णयासणाई पणयासणाई दीहासणाई भद्दासणाई पक्खासणाई मगरासणाइं सीहासणाई पउमासणाई. दिसासोवत्थियासणाई सव्वरयणामयाइं अच्छाई जाव पडिरूवाई ।। ० वणसंड-मंडवग-पदं १८४. तेसु णं वणसंडेसु तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं वहवे जाइमंडवगा जूहियामंडवगा 'मल्लियामंडवगा णोमालियामंडवगा" वासंतिमंडवगा' 'दहिवासुयमंडवगा सूरिल्लिमंडवगा तंबोलिमंडवगा मुद्दियामंडवगा शागलयामंडवगा अतिमुत्तलयामंडवगा अप्फोयामंडवगा" मालुयामंडवगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ १८५. तेसुणं जाइमंडवएसुरु 'जूयिामंडवएसु मल्लियामंडवएसु णोमालियामंडवएस वासंतिमंडवासू दहिवासूयमंडवएस सूरिल्लि मंडवएसू तंवोलि मंडवएस मुहियामंडएस णागलयामंडवएसु अतिमुत्तलयामंडवएसु अप्फोयामंडवएसु° मालुयामंडवएसु बहवे पुढविसिलापट्टगा अप्पेगतिया हंसासणसंठिया जाव अप्पेगतिया दिसासोवत्थियासणसंठिया अण्णे य बहवे वरसयणासणविसिट्ठसंठाणसंठिया" पुढविसिलापट्टगा पण्णत्ता समणाउसो! आईणग-रूय-बूर"-णवणीय-तूल-फासा सब्बरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा । तत्थ५ णं बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य आसयंति सयंति चिळंति निसीयंति त्यति हसंति रमंति ललंति कीलं ति कित्तंति" मोहेंति पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फल विवागं पच्चणुब्भवमाणा विहरति । १. मोह (क, ख, ग, घ)। १०. सुरिल्लिमंडवगा दहिवासुयमंडवगा (क, ख, २. चित्तधरगा कुसुमघरगा (क, ख, ग, घ, ग, घ)। __ च, छ)। ११. अणया (क, ख, ग, घ)। ३. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. सं० पा०-जाइमंडवएसु जाव मालुयामंडव४. सं० पा०-आलिघरगेसु जाव आयंसघरगेसु । एस। ५. सं० पा०-हंसासणाई जाव दिसासोवत्थियास- १३. मंसलसुघट्ठविसिट्ट (क, ख, ग, घ, च, छ, णाई । वृपा)। ६. देसे देसे (क, ख, ग, घ, च, छ) । १४. पूर (क, ख, ग, घ)। ७. जातिमंडवसंठाणगा (क, ख, ग, घ, छ) । १५. अत्थि (क, ख, ग, घ, च)! ८. णेमालियामल्लिया (घ); नोमालिया १६. x (ब) । मल्लिय (छ)। १७. ४ (व)। ६. वासंतिय (क, ख, ग, घ)। १८. चिट्ठति विहरंति (च, छ) । Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १२५ . वणसंड-पासायवडेंसग-पदं १८६. तेसि णं वणसंडाणं वहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं पासायव.सगा पग्णत्ता। ते एं पासायवडेंसगा पंच जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाई जोयणसयाई विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसिय-पहसिया इव' तहेव' बहुसमरमणिज्जभूमिभागो उल्लोओ सीहासणं सपरिवार' । तत्थं णं चत्तारि देवा महिड्ढिया 'महज्जुइया महावला महायसा महासोक्खा महाणुभागा पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा-असोए' सत्तपण्णे चंपए चूए !! ० भूमिभाग-पदं १८७. सूरियाभस्स णं देवविमाणस्स अंतो बहुसम रमणिज्जे भूमि भागे पण्णत्ते" जाव' तत्थ णं वहवेमाणिया देवा य देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठति निसीयंति तुयदृति, हमति रमंति ललंति कीलंति कित्तंति मोहेति पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणे कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलविवागं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति 11 ० उवगारिया-लयण-पदं १८८. तस्स णं वहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसे, एत्थ णं महेगे उवगारिया -लयणे पण्णत्ते-एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्ख भेणं, तिणि जोयणसयसहस्साई सोलस सहस्साई दोषिण य सत्तावीसे जोयणसए तिन्नि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचिविसेसूणं परिक्खेवेणं, जोयणं वाहल्लेणं, सवजंबूणयामए अच्छे जाव पडिरूवे ॥ • पउमवरवेइया-पदं १८६. से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेण सव्वओ समंता संपरिखित्ते। सा गं पउमवरवेइया अद्धजोयणं उड्ढे उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं, उवकारियलेणसमा परिक्खेवेणं ॥ १६०. तीसे गं पउमवरवेइयाए इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-वइरामया" १. राय० सू० १३७ । रक्षाणां 'आहेवच्चं पोरेवच्चं' इत्यादि प्राग्वत । २. राय० सू० २४-३४। "प्राग्वद्' इति वृत्तिकारस्य सूचनया ज्ञायते ३. राय० सू० ३७-४४ । वृत्तिकारस्य सम्मुखे भिन्नवाचनायाः मूलपाठः ४. सं०पा०.-महिडिढया जाव पलिओवमद्वितीया।। ५. आसोए (क, ख, ग, घ, च)। ७. पण्णत्ते, तं जहा----वणसंडविणे (क, ख, ग, ६. वृत्ती अतोने अधिकं विवृतमस्ति---'ते णं घ, च, छ) । यद्यप्यसी पाठः सर्वासु प्रतिषु इत्यादि, ते अशोकादयो देवाः स्वकीयस्य लभ्यते तथापि नावश्यक: प्रतिभाति । वृत्तावपि वनखण्डस्य स्वकीयस्य प्रासादावतंसकस्य, नास्ति गहीतोसो। सूत्रे बहवचनं प्राकृतत्वात् प्राकृते वचनव्यत्य- ८. राय. सू. २४-३१।। योऽपि भवतीति, स्वकीयानां सामानिकदेवानां ६.सं० पा०-आसयंति जाव विहरति । स्वासा स्वासामग्रमहिषीणां सपरिवाराणां १०. उवारिय (घ); उवाइय (छ)। स्वासा स्वास परिषद स्वेषां स्वेषामनीकानां ११.सं० पा०--वइरामया सूवण्णरुप्पामया फलगा स्वेषां स्वेषामनीकाधिपतीनां स्वेषां स्वेषामात्म- नाणामणिमया । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ रायपसेणइयं 'नेमा रिटामया पइट्टाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया फलगा लोहितक्खमईयो सूईओ वहरामया संधी नाणामणिमया कलेवरा णाणामणिमया कलेवरसंघाडगा णाणामणिमया रूवा जाणामणिमया रूवसंघाडगा अंकामया' •पक्खा पक्खवाहाओ, जोईरसमया वंसा वंसकवेल्लुयाओ रययामईओ पट्टियाओ जायरूवमईओ ओहाडणीओ, वइरामईओ° उवरिपुंछणीओ 'सव्वसेयरययामर छायणे" || १६१. सा णं पउमवरवेइया एगमेगेणं हेमजालेणं एगमेगेणं गवक्खजालेणं एगमेगेणं खिंखिणीजालेणं एगमेगेणं 'घंटाजालेणं एगमेगेणं मृत्ताजालेणं एगमेगेणं मणिजालेणं एगमेगेणं कणगजालेणं एगमेगेणं रयणजालेणं एगमेगेणं पउमजालेणं सव्वतो समंता संपरिखित्ता'। ते णं जाला तवणिज्जलंबूसगा जाव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिठंति ॥ १६२. तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे' तहिं तहिं बहवे हयसंघाडा 'गयसंघाडा नरसंघाडा किन्नरसंघाडा किंपुरिससंघाडा महोरगसंघाडा गंधव्वसंघाडा उसभसंघाडा सव्व रयणामया अच्छा जाव पडिरूवा" । १६३. 'तीसे गं पउमवरवेयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं वहवे हयपंतीओ०॥ १६४. तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं वहवे हयवीहीओ० ॥ १६५. तीसे गं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहूई हयमिहुण्णाइं० ।। १६६. तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं वहवे पउमलयाओ०१॥ १६७. से केपट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ-पउमवरवेइया पउमवरवेइया ? गोयमा ! पउमवरवेइयाए णं तत्थ तत्थ देसे" तहिं तहिं वेइयासु वेइयाबाहासु य वेइयफलएसु" य वेइयपुडंतरेसु य, खंभेएसु खंभवाहासु खंभसीसेसु" खंभपुडतरेसु, सूईसु सूईमुखेसु सूईफलएसु १.सं० पा०-अंकामया... उवरिपुंछणीओ। ५. X (छ)। २. सव्वरयणामए अच्छायणे (ख, ग, घ, च, ६. परिक्षिप्ताः (व) । छ); जीवाजीवाभिगमवृत्ती (३१२६४, वृत्ति ७. दामा (क, ख, ग, घ, च, बृपा)। पत्र १८०) सव्वसेयरययामए छायणे' इति पाठो ८. राय० सू० ४० । । व्याख्यातोस्ति । रायपसेणीयवृत्ती 'सव्व रयणा- १. देसे देसे (क, ख, ग, च, छ)। मए' इति पाठो लिपिदोषाज्जातः । वृत्तिकृता १०.सं० पा०-हयसंघाडा जाव उसभसंधाडा। तत सर्व द्वारवत भावनीयं' इत्युल्लिखितम् । ११. सं० पा०--पडिरूवा जाव पंतीतो वीहीतो तत्रापि च 'सव्व सेयरययामए' इति पाठोस्ति मिहणाणि लयाओ। (राय० सू० १३०), वृत्तावपि (पृ० १६०) १२,१३,१४. राय सू० १६२ । 'रजतमयं' इति व्याख्यातमस्ति । १५. रायः सू० १४५ । ३. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । १६. देसे देसे (क, ख, ग, च, छ)। ४. रयणजालेणं सब्वरयणजालेणं (क, ख, ग, घ १७. x (बृत्ति, जी० ३।२६६)! च); सव्वरयणजालेणं (छ) ! १८. फलतेसु (क, ख, ग, घ, च, छ) । Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरियाभो १२७ सूईपुडंतरेसु, पक्खेसु पक्खवाहासु पक्खपेरंतेसु पक्खपुडतरेसु" वहुयाई उप्पलाई पउमाइं कुमुयाई णलिणाई सुभगाइं सोगंधियाइं पोंडरीयाइं महापोंडरीयाई सयवत्ताइं सहस्सवत्ताई सव्वरयणामयाइं अच्छाई पडिरूवाइं महया वासिक्कछत्तसमाणाइं पण्णत्ताई समणाउसो ! से एएणं अट्ठणं गोयमा ! एवं उच्चइ---प'उमवरवेइया पउमवरवेइया ।। १६८. पउमवरवेइया णं भंते ! कि सासया असासया ? गोयमा! सिय सासया सिय असासया ।। १६६. से केणठेणं भंते ! एवं बच्चइ-सिय सासया सिय असासया? गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासया, वण्णपज्जेवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहिं असासया। से एएणठेणं गोयमा ! एवं बुच्च इ-सिय सासया सिया असासया ।। २००. पउमवरवेइया णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! ण कयाति णासि, ण कयाति णत्थि, ण कयाति न भविस्सइ, भुविं च भवइ य' भविस्स इ य, धुवा गियया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया णिच्चा पउमवरवेइया ।। २०१. सा णं पउमवरवेइय। एगेण वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयगाई चक्कवालविक्खंभेणं, उवयारिया-लेणसमे परिक्खेवेणं । वणसंडवण्णओ भाणियव्वो जाव विहरंति ।। ० उवगारिया-लयण-पदं २०२. तस्स णं उवयारिया-लेणस्स चउद्दिसि चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णता वण्णओ तोरणा झया छत्ताइच्छत्ता" । • भूमिभाग-पदं २०३. तस्स णं उवयारिया-लयणस्स उवरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जावर मणीणं फासो ॥ ० मूलपासायव.सग-पदं २०४. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महेगे मूलपासायवडेंसए पण्णत्ते । से णं मूलपासायवडेंसते पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाई जोयणसयाई विक्खंभेणं अब्भुग्गय मूसिय वण्णओ" भूमिभागो उल्लोओ" सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता ।। १. ४ (वृत्ति); जीवाजीवाभिगमे (३।२६९) ८. राय० सू० १७०-१८५ । पक्खपेरतेसु' इत्येकमेव पदमस्ति । १०. अत: परं 'अट्ठमंगलगा इति पदं गम्यमस्ति । २. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ११. राय० सू० १६-२३ । ३. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। १२. राय० सू० २४-३१ ! ४. राय० सू०१५७ । १३. पासाय (क, ख, ग, घ, च, छ)। ५. वासिक्कय (क, ख, ग, घ, छ)। १४. राय० सू० १३७ । ६. भवइ (क, ख, ग, घ, च, छ)। १५. राय० सू० २४-३४ ॥ ७,६. उवारिया (क, ख, ग, घ, च)। १६. राय० सू०३७-४४ । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ रायपसेणइयं ० पासायव.सग-पदं २०५. से णं मूलपासायवडेंसगे' अण्णेहिं उहिं पासायव.सएहिं तयधुच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं सव्वओ समंता संपरिखित्ते' । ते णं पासायवडेंसगा अड्ढाइज्जाई जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं पणवीसं जोयणसयं विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसिय जाव वण्णओ' भूमिभागो उल्लोओ' सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं अट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता' ।। २०६. ते णं पासायवडेंसया अण्णेहिं चउहिं पासायवडेंसएहिं तयद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहि सव्वओ समंता संपरिखित्ता । ते णं पासावडेंसया पणवीसं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं, वाट्ठि जोयणाई अद्धजोयणं च विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसिय वण्णओ भूमिभागो उल्लोओ सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं अट्ठ मंगलगा झया छत्तातिच्छत्ता ।। २०७. ते णं पासायवडेंसगा अण्णेहिं चउहिं पासायव.सएहिं तदछुच्चत्तप्पमाणमेत्तेहि सब्वओ समंता संपरिक्खित्ता। ते णं पासायवडेंसगा वावठिं जोयणाइं अद्धजोयणं च उड्ढे उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खं भेणं वण्णओं उल्लोओ सीहासणं अपरिवारं अट्ठट्ट" मंगलगा झया छत्तातिछत्ता ।। २०८. ते" पासायव.सया अण्णेहिं चउहि पासायवडेंसगेहिं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेहि सव्वतो समता संपरिक्खित्ता । ते णं पासायवडेंसगा एक्कतीस जोयणाई कोसं च उड्ढं उच्चत्तेणं, पन्नरसजोयणाई अड्ढाइज्जे कोसे विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसिय वण्णो भूमिभागो जाव" झया छत्तातिछत्ता ।। • सुहम्म-सभा-पदं २०६. तस्स णं मूलपासायवडेंसयस्स उत्तरपुरथिमेणं, एत्थ णं सभा सुहम्मा पण्णत्ताएग जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, बाबत्तरि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसन्निविट्ठा जाव" अच्छरगणसंघसंविकिण्णा दिव्वतुडियसद्दसंपणाइया अच्छा जाव पडिरूवा।। १. पासाय' (क, ख, ग, घ, च, छ) । व्याख्यातम् । यथा-'ते पि प्रासादावतंसका २. परिक्षिप्तः (व)। अन्यश्चतुर्भिः प्रासादावतंसकस्तदोच्चत्व ३. राय० सू० १३७ ।। प्रमाणैः अनन्तरोक्तप्रासादावतंसकार्टोच्रत्व४. राय० सू० २४-३४ । प्रमाणैर्मूलप्रासादावतंसकापेक्षया षोडशभाग५. राय० सू० ३७-४४ । प्रमाण; सर्वतः समंतात् संपरिक्षिप्ताः; ६. राय० सू० २१-२३ । तदर्बोच्चत्वप्रमाणमेव दर्शयति- एकत्रिशतं ७. राय सु० १३७ । योजनानि क्रोशं च ऊर्ध्वमुच्चस्त्वेन पंचदश८. राय० सू० २४-३४ । योजनानि अर्द्धतृतीयांश्चैवक्रोशान् विष्क६. सपरिवारं (क, ख, ग, घ, च, छ) । म्भतः । एतेषामपि स्वरूपादि वर्णनमनन्त१०. पासायउवरि' अट्ट (क, ख, ग, घ, च, छ)। रोक्तम् । ११. 'च, छ' प्रत्योरेतत्सूत्रं नैव दृश्यते । वृत्तो १२. राय० सु० २०५ । (० २१३) अर्द्धतृतीयक्रोशाधिकपंचदश १३. राय० सू० ३२ । योजनोनिां प्रासादावतंसकानां सूत्रमस्ति Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो • सुहम्म-सभा-वार-पदं २१०. सभाए णं सुहम्माए तिदिसिं तओ दारा पण्णत्ता, तं जहा -- पुरत्थिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं । ते णं दारा' सोलस' जोयणाई उड्ढं उच्चतेणं, अट्ठ जोयणाइं विक्खभेणं, तावतियं देव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा' जाव' वणमालाओं ॥ ० मुहमंडव-पदं २११. तेसि णं दाराणं पुरओ पत्तेयं - पत्तेयं मुहमंडवे पण्णत्ते । ते गं मुहमंडवा एगं जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खभेणं, साइरेगाई सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं "अणेगखं भसयसन्निविट्ठा जाव ' अच्छरगण संघसंविकिण्णा दिव्वतुडियसद्द - संपणाइया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ • दार-पदं २१२. तेसि णं मुहमंडवाणं तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता, तं जहा - पुरत्थिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं । ते णं दारा सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा जाव' वणमालाओ || ● भूमिभाग उल्लोय-पदं २१३. तेसि णं मुहमंडवाणं भूमिभागा उल्लोया' ॥ ० मंगलग-पर्व ० २१४. सिणं मुहमंडवाणं उवरि अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता" || पेच्छाघर- मुहमंडव-पदं २१५. सिणं मुहमंडवाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं पेच्छाघरमंडवे पण्णत्ते । मुहमंडववत्तब्वया" जाव" दारा ॥ ● भूमिभाग उल्लोय-पदं २१६. " तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं भूमिभागा उल्लोया" || • अक्खाजग-पदं २१७. तेसि बहुसमरमभिज्जाणं भूमिभागाणं वहुमज्झदेसभाए पत्तेयं - पत्तेयं वइरामए अक्खाए पण्णत्ते || ● मणिपेढिया पदं २१८. सिणं वइरामयाणं अक्खाडगाणं बहुमज्झदेसभागे पत्तेय पत्तेयं मणिपेढिया १. दारा साइरेगाई (छ) । २. सोलस सोलस (वृ) । ३. वरकमल° (छ) । १२९ ४. राय० सू० १२६-१३६ । ५. वणमालाओ तेसि णं दाराणं उवरि मंगलरूवा १२. राय० सू० २११, २१२ । १३. सं० पा० - भूमिभागा उल्लोया । १४. राय० सू० २४-३४ । छत्ताइछत्ता (छ) । ६. सं० पा० वष्णओ सभाए सरिसो । ७. राय० सू० ३२ । ६. राय० सू० १२६-१३६ । ६. राय० सू० २४-३४ । १०. राय० सू० २१-२३ । ११. मुहमंडवा वष्णेयव्वा (क, ख, ग, घ, च, छ ) 1 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं पण्णत्ता । ताओ णं मणिपेढियाओ अट्ट जोयणाई आयामविक्खंभेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ ।। ० सीहासण-पदं २१६. तासि गं मणिपेढियाणं उरि पत्तेयं-पत्तेयं सीहासणे पण्णत्ते। सीहासणवण्णओ' सपरिवारो॥ ० मंगलग-पदं २२०. तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं उरि अट्ठ मंगलगा झया छत्तातिछत्ता' । ० मणिपेढिया-पदं २२१ तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णताओ। ताओ णं मणिपेढियातो सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई वाहल्लेणं, सब्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। ० चेइयथूम-पदं २२२. तासि णं मणिपेढियाणं उरि पत्तेयं-पत्तेयं चेइयथ्भे पण्णत्ते। ते णं चेइयथुभा सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, साइरेगाइं सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, सेया संखंक'- कुंद-दगरय-अमय-महिय-फेणपुंजसन्निगासा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ० मंगलग-पदं २२३. तेसि णं चेइयथूभाणं उवरि अट्ठ मंगलगा झया छत्तातिछत्ता जाव सहस्सपत्तहत्थया ।। ० मणिपेढिया-पवं २२४. तेसि णं चेइयथूभाणं 'पत्तेयं-पतेयं चउद्दिसि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं मणिपेढियाओ अटु जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ।। ० जिणपडिमा-पदं २२५. तासि णं मणिपेढियाणं उरिं चत्तारि जिणपडिमातो जिणुस्सेहपमाणमेत्ताओ पलियंकनिसन्नाओ' थूभाभिमुहीओ सन्निखित्ताओ चिट्ठति, तं जहा--उसभा वद्धमाणा चंदाणणा वारिसेणा॥ ० मणिपेढिया-पदं २२६. तेसि णं चेइयथूभाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं मणिपेढिताओ सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, १. राय ० सू० ३७-४४॥ 'चेइय' इति पदं युज्यते । २. राय० सू० २१-२३ । ५. सं० पा०–संखंक सब्बरयणामया । ३. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. चउद्दिसि पत्तेयं-पत्तेयं (क, ख, ग, घ, च, ४. थूभे (क, ख, ग, घ, च, छ); वृत्तेस्तथा छ)। जीवाजीवाभिगमस्य (३३८१) अनुसारेण ७. "सन्निसण्णा (व)। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरियाभो सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ || चेइयरुषख पदं २२७. तासि णं मणिपेढियाणं उवरि पत्तेयं पत्तेयं चेइयरुवखे पण्णत्ते । से णं चेइयरुक्खा अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धजोयणं उव्वेहेणं, दो जोयणाई खंधो, 'अद्धजोयणं विक्खंभेणं", छ जोयणाई विडिमा, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाई आयाम विक्खंभेणं', साइरेगाई अट्ट जोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ता || २२८. तेसि णं चेइयरुक्खाणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा -- वइरामयमूलसुपट्ठियविडिमा' रिट्ठामय 'विउलकंद वेरुलिय" - रुइलखंधा सुजायवरजायरूवपढमगविसालसाला नाणामणिमयरयणविविहसाहृप्पसाह - वेरुलियपत्त-तवणिज्जपत्तबिंटा जंबूणय-रत्त-मउय-सुकुमाल पवाल 'पल्लव-वरंकुधरा" विचित्तमणि रयणसुरभि - कुसुम'फल-भर'"- नमियसाला 'सच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सउज्जोया" अहियं नयणमणणिव्वुइकरा' अमयरससमरसफला' पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिवा" 11 ० १. अदुजोयणाई (क, ख, ग, घ, च, छ ); 'अजtयणं विक्खंभेणं' एष वृत्त्यनुसारी पाठोस्ति । प्रत्यनुसारी पाठ इत्थमस्ति- 'अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं' प्रतीनां 'अट्ठ जोयणाई' एष पाठः अशुद्धः प्रतीयते । जीवाजीवाभिगमे ( ३।३८६) 'अद्धजोयणं विक्खभेणं' इत्येव पाठो दृश्यते । २. विष्कम्भेन (वृ) 1 ३. सुविडिमा (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ४. विउलाकंदा वेरुलिया (क, ख, ग, घ, च), वृत्तौ 'विउल' शब्दो न व्याख्यातः । ५. सोभियावरंकुरग्गसिहरा ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. भरभरिय (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । ८. मणतयणणि° (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. फला सच्छाया सप्पभा सस्सिरिया सउ जोया (क, ख, ग, घ, च I १०. २२० सूत्रानन्तरं प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्ती एवं व्याख्यातमस्ति - एते च चैत्यवृक्षा अन्यैर्बहुभिस्तिलकलवक - छत्रोपग- शिरीष- सप्तपर्ण - दधिपर्ण-लो-ध-चन्दन-नीप- कुटज पनस-ताल १३१ तमाल- प्रियाल- प्रियङ्गु पारापत राजवृक्ष नन्दिवृक्षः सर्वतः समन्तात् सम्परिक्षिप्ता, ते च तिलका यावन्नन्दिवृक्षा मूलमन्तः कन्द मन्त इत्यादि सर्वमशोकपादपवर्णनायामिव तावद् वक्तव्यं यावत् परिपूर्ण लतावर्णनम् । प्रयुक्तादर्शषु एतद्व्याख्यानुसारी पाठो नैव लभ्यते । किन्तु जीवाजीवाभिगस्य आदर्शेषु तादृश: पाठो लभ्यते स चैवमस्ति - तेणं चेइयरुक्खा अण्णेहि बहूहि तिलय-लवयछत्रोग- सिरीस सत्तिवण्ण-दहिवण्ण -लोद्ध-धवचंदण - (अज्जुण ? ) नीव - कुडय कथंब - पणस - ताल-तमाल- पियाल-पियंगु पारावय-रायरुक्खदिक्तेहि सव्वओ समता संपरिक्खित्ता । ते णं तिलया जाव नंदिरुक्खा कुस - विकुस - विसुद्ध - रुक्खमूला मूलमंतो कंदमंतो जाव सुरम्मा । ते णं तिलया जाव नंदिरुक्खा अण्णाहि बहूहि परमलयाहि जाव सामलयाहि सव्वतो समता संपरिक्खित्ता । ताओ णं पउमलयाओ जाव सामलयाओ निच्चं कुसुमियाओ जाव परिवाओ (जीवा० ३।३८८ - ३६० ) । जीवाजीवाभिगमस्य वृत्तावपि एष व्याख्यातोस्ति । Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ ० मंगलग-पदं २२. सि णं चेइरुवखाणं उवरि अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइछत्ता ॥ ० मणिपेढिया-पदं २३०. तेसि णं चेइयरुक्खाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता । ताओ णं मणिपेढयाओ अट्ठ जोयणाई आयाम-विवखंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ || महिदय-पदं २३१. तासि णं मणिपेढियाणं उवरिं पत्तेयं पत्तेयं महिंदज्झए पण्णत्ते । ते णं महिदझया सट्ठि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उब्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं वइरामय- 'लट्ठ - संठिय-सुसिलिट्ठ" परिघट्ट-मट्ठ-सुपतिट्टिया विसिट्टा अणेगवरपंचवण्ण कुडभीसहस्सपरिमंडियाभिरामा वा उद्घयविजय- वेजयंती-पडाग-च्छत्तातिच्छत्तकलिया तुंगा गगणतलमलिहंत सिहरा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा || ० मंगलग - पर्द o ० २३२. तेसि णं महिदज्झयाणं उवरि अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्तातिछत्ता ॥ नंदाक्खरिणी-पदं २३३. तेसि णं महिंदज्झयाणं पुरतो पत्तेयं पत्तेयं नंदा' पुक्खरिणी पण्णत्ता । ताओ गं पुक्खरिणीओ एवं जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खभेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं, अच्छाओ जाव' पगईए' उदगरसेणं पण्णत्ताओ" पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पfsरूवाओ । पत्तेयं पत्तेयं पउमवर वेइयापरिक्खित्ताओ, पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ" । o तिसोवाणपडियग-पदं २३४. तासि णं णंदाणं पुक्खरिणीणं तिदिसि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता । तिसोवाणपडिरूवगाणं वण्णओ" तोरणा झया छत्तातिछत्ता । O मोगुलिया-पदं २३५. सभाए णं सुहम्माए अडयालीसं मणोगुलियासाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तं जहापुरत्थिमेणं सोलससाहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं सोलससाहस्सीओ, दाहिणेणं अट्ठसाहस्सीओ, उत्तरेणं असाहसीओ । तासु णं मणोगुलियासु बहवे सुवण्णरुप्पामया फलगा पण्णत्ता । सुणं सुवण्णरुपामसु फलगेसु बहवे वइरामया णागदंतया पण्णत्ता । तेसु णं वइराम सु १. जोयणं (क, ख, ग, घ ); जोइणं ( च, छ) । २. लट्ठि पसिलिट्ठ (क, ख, ग, घ, च ) 1 ३. x ( क, ख, ग, घ, च) । ४. ०छत्तकलिया (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. गगणतलम भिखमाण' (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. नंदाओ (क, ख, ग ) ! रायपसेणइयं ७. द्वाविंश (छ) । ८. राय० सू० १७४ । ६. पागइयाओ (क, ख, ग, घ, च ) ; पगइयाओ (छ) । १०. सं० पा० ११. राय० सू० १२. राय० सू० पण्णत्ताओ । १८६ - २०१ । १६-२३ । Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियामो णागदंतएसु किण्हसुत्तबद्धा बग्धारियमल्लदामकलावा' चिट्ठति ॥ ० गोमाणसिया-पदं २३६. सभाए णं सुहम्माए अडयालीसं गोमाणसियासाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तं जहा"पुरस्थिमेण सोलससाहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं सोलससाहस्सीओ, दाहिणणं अटुसाहस्सीओ, उत्तरेणं अट्ठसाहस्सीओ। तासु णं गोमाणसियासु बहवे सुवण्णरुप्पामया फलगा पण्णत्ता। तेसु णं सुवण्णरुप्पामएसु फलगेसु वहवे वइरामया नागदंतया पण्णत्ता । तेसु णं वइरामएसु णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता । तेसु णं रययामएसु सिक्कगेसु वहवे वेरुलियामइओ धूवघडियाओ पण्णताओ। ताओ णं धूवघडियाओ कालागरु-पवर' 'कंदुरुक्क-तुरुक्क-धूवमघमघेतगंधुद्धयाभिरामाओ सुगंधवरगंधियाओ गंधवटिभ्याओ ओरालेणं मणुण्णणं मणहरेणं घाणमणणिबुतिकरेणं गंधेणं ते पदेसे सव्वओ समंता आपूरेमाणा-आपूरेमाणा सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा' चिट्ठति ।। • भूमिभाग-पदं २३७. सभाए णं सुहम्माए अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे घण्णत्ते जाव' मणीहिं उवसोभिए मणिफासो य उल्लोओ य ।। ० मणिपेढिया-पदं २३८. तस्स णं बहुसमरमाणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता-सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, सन्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ।। ० चेइय-खंभ-पद २३६. तीसे णं मणिपेढियाए उरि, एत्थ णं माणवए चेइयखंभे पण्णत्ते--सट्टि जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, जोयणं उव्वेहेणं, जोयणं विक्खंभेणं, 'अडयालीससिए अडयालीसइकोडीए अडयालीसइविग्गहिए" सेसं जहा महिंदज्झयस्स ।। • जिण-सकहा-पदं २४०. माणवगस्स णं चेइयखंभस्स उरि बारस जोयणाई ओगाहेत्ता, हेद्वावि बारस जोयणाई वज्जेता, मज्झे छत्तीसाए" जोयणेसु, एत्थ णं वहवे सुवण्णरुप्पामया फलगा पण्णत्ता । तेसु णं सुवण्णरुप्पामएसु फलएसु बहवे वइरामया णागदंता पण्णत्ता। तेसु णं वइरामएसु नागदंतेसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु वहवे वइरामया गोलवट्टसमुग्गया पण्णत्ता । तेसु णं वयरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहुयाओं १. अत्र समर्पणसूचकः संकेत: केनापि कारणेन अडयालीसं सइविग्गहे (क, ख, ग, घ, च, त्रुटितोस्ति । १३२ सूत्रमिह प्राप्तमस्ति । छ)। द्रष्टव्यं जीवाजीवभिगमस्य ३३६७ सूत्रम् । ६. राय० सू० २३१, २३२ । २. सं० पा.---जहा मगोगुलिया जाव णागदंतया। ७. बत्तीसाए (क, ख, ग); छव्वीसाए (च); ३. सं० पा०-कालागरुपवर जाव चिट्ठति । तीसाए (छ)। ४. राय० सू० २४-३४। ८. बहवे (क, ख, ग, घ, च,छ) । ५. अडयालीसं असीइए अडयालीसं सइकोडिए Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ रायपसैणय जिण-सकहाओ संनिखित्ताओ चिठ्ठति । ताओ णं सूरियाभरस देवस्स अन्नेसिं च बहणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ' 'वंदणिज्जाओ पूय णिज्जाओ माणणिज्जाओ सक्कारणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जाओ। ० मंगलग-पदं २४१. माणवगस्स चेइयखंभस्स उवरिं अट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता ।। ० मणिपेढिया-पदं २४२. तस्स माणवगस्स चेइयखंभस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता-अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा॥ ० सीहासण-पदं २४३. तीसे णं मणिपेढियाए उरि, एत्थ णं महेगे सीहासणे पण्णत्ते-सीहासणवण्णतो सपरिवारो॥ • मणिपेढिया-पदं २४४. तस्स ण माणवगस्स चेइयखंभस्स पच्चत्थि मेणं, एत्थ ण महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता--अट्ट जोयणाई आयाम विक्खं भेणं, चत्तारि जोयणाई वाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।। ० देवसयणिज्ज-पदं २४५. तीसे णं मणिपेढियाए उवरि, एत्थ णं महेगे देवसय णिज्जे पण्णत्ते । तस्स णं देवसयणिज्जस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहाणाणामणिमया पडिपाया, सोवण्णिया पाया, णाणामणिमयाइं पायसीसगाई, जंबूणयामयाइं गत्तगाई, 'वइरामया संधी", णाणामणिमए वेच्चे, रययामई तुली, 'लोहियक्ख मया बिब्बोयणा, तवणिज्जमया गंडोवहाणया" से णं देवसयणिज्जे 'सालिंगणवट्टिए उभओविब्बोयणे" दुहओ उण्णते मज्झे णयगंभीरे गंगापुलिणवालुया" उद्दालसालिसए सुविरइयरयत्ताणे ओयवियखोमदुगुल्लपट्टपडिच्छयणे रत्तंसुयसंवए सुरम्मे आईणग-रूय-बूर-णवणीय-तुलफासे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ ० मणिपेढिया-पदं २४६. तस्स णं देवसयणिज्जस्स उत्तरपुरथिमेणं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता--अट्ट जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ १. सं० पा०-अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुवासणि- ५. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। ज्जाओ। ६. णयगंभीरे सालिंगणवट्टीए (क, ख, ग, घ, २. राय० सू० ३७-४४। ३. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. “बाल (क, ख, ग, घ, च); वालुए (छ) । ४. तवणिज्जमया गंडोवहाणया लोहियक्खमया ८. अत्र वृत्तौ प्रतिच्छदनं' विद्यते, किन्तु ३७ सूत्रे (मई) बिब्बोयणा (क, ख, ग, घ, च, छ)। 'प्रतिच्छादनम्' अस्ति । Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ० महिंदज्झय-पदं २४७. तीसे णं मणिपेढियाए उरि, एत्थ णं खुड्डए' महिंदज्झए पण्णत्ते-सद्धि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं' उव्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, वइरामयवट्टलट्ठसंठियसुसिलिट्ठ'- परिघट्ट-मट्ठ-सुपतिट्ठिए विसिट्ठे अणेगवरपंचवण्णकुडभीसहस्सपरिमंडियाभिरामे वाउद्धयविजय-वेजयंतीपडागच्छत्ता तिच्छत्तक लिए तुंगे गगणतलमणुलिहंतसिहरे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ।। ० मंगलग-पदं २४८. तस्स णं खुड्डामहिंदज्झयस्स उरि अट्ठ मंगलगा झया छत्तातिच्छत्ता ॥ • पहरणकोस-पदं २४६. तस्स णं खुड्डामहिंदज्झयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स महं एगे चोप्पाले नाम पहरणकोसे पण्णत्ते-सव्ववइरामए अच्छे जात्र पडिरूवे । तत्थ णं सुरियाभस्स देवस्स फलिहरयण-खग्ग-गया-धणुप्पमुहा बहवे पहरणरयणा संनिखित्ता चिउंति-उज्जला निसिया सुतिक्खधारा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। ० मंगलग-पदं २५०. सभाए णं सुहम्माए उवरि अट्ठ मंगलगा झया छत्तातिच्छता ॥ • सिद्धायतण-पदं २५१. सभाए णं सुहम्माए उत्तरपुरस्थिमेणं, एत्थ णं महेगे सिद्धायतणे पण्णत्तेएग जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं जोयणाई विक्खंभेणं, वावरि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं सभागमएणं जाव गोमाणसियाओ, भूमिभागा उल्लोया तहेव ।। ० मणिपेढिया-पदं २५२. तस्स णं सिद्धायतणस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता-सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, अट्र जोयणाई वाहल्लेण। • जिणपडिमा-पदं २५३. तीसे णं मणिपेढियाए उरि, एत्थ णं महेगे देवच्छंदए पण्णत्ते-सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, साइरेगाइं सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे ।। __ २५४. तत्थ णं अट्ठसयं जिणपडिमाणं जिणुस्सेहप्पमाणमित्ताणं संनिखित्तं संचिति । तासि णं जिणपडिमाणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-तवणिज्जमया हत्थतलपायतला, अकामयाइं नक्खाइं अंतोलोहियक्खपडिसेगाई, कणमामईओ जंघाओ, कणगामया १. खुड (क, ग)। ४. राय० सू० २०६.२३६ । २. २३१ सूत्रे 'अद्धकोस' पाठो विद्यते, अत्र तु ५. राय० सू० २४-३४ । सर्वासु प्रतिषु 'जोयणं' पाठो लभ्यते । वृत्त्यनसारेणापि 'अद्धकोसं' पाठो युज्यते, यथा- ७. अतः पर जीवाजीवाभिगमे (३।४१५) अत्र एष 'तस्य प्रमाणं वर्णकश्च महेन्द्रध्वजवद् पाठो विद्यते-कणगामया पादा, कणगामया वक्तव्यम्। गोप्फा' । आनखशिखवर्णने एष उपयुक्तोस्ति । ३. सं० पा०–सुसिलिट्ठ पडिरूवे । Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेगइयं जाणू, कणगामया ऊरू, कणगामईओ गायलट्ठीओ, 'तवणिज्जमईओ नाभीओ, रिट्ठामईओ रोमराईओ, तवणिज्जमया चूचुया", तवणिज्जमया सिरिवच्छा', सिलप्पवालमया ओट्ठा, फालियामया दंता, तवणिज्जमईओ जीहायो, तवणिज्जमया' तालुया, कणगामईओ नासिगाओ अंतोलोहियक्खपडिसेगाओ, अंकामयाणि अच्छीणि अंतोलोहियक्खपडिसेगाणि', 'रिट्ठामईओ ताराओ', रिद्वामयाणि अच्छिपत्ताणि, रिद्वामईओ भमुहाओ, कणगामया कवोला', कणगामया सवणा, कणगामईओ णिडालपट्टियाओ, वइरामईओ सीसघडीओ, तवणिज्जमईओ केसंतकेसभूमीओ, रिट्ठामया उवरिमुद्धया ।। २५५. तासि णं जिणपडिमाणं पिट्ठतो पत्तेयं पत्तेयं छत्तधारगपडिमाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं छत्तधारगपडिमाओ हिमरययकुंदेंदुप्पगासाइं सकोरंटमल्लदाम-धवलाई आयवताई सलील 'धारेमाणीओ-धारेमाणीओ" चिट्ठति ।। २५६. तासि णं जिणपडिमाणं उभओ पासे 'दो दो" चामरधारपडिमाओ° पण्णत्ताओ। ताओ णं चामरधारपडिमाओ चंदप्पह-बइर-वेरुलिय-नानामणिरयणखचियचित्तदंडाओ" 'सुहम रययदीहवालाओ संखककंददगरयअमयमहियफेणपुंजसन्निगासाओ'१२ 'धवलाओ चामराओ"३ 'गहाय सलील वीजेमाणोओ 'सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ५॥ २५७. तासि णं जिणपडिमाणं पुरतो दो दो नागपडिमाओ 'जक्खपडिमाओ भूयपडिमाओ" कुंडधारपडिमाओ संनिखित्ताओ चिट्ठति-सब्बरयणामईओ अच्छाओ १. तवणिज्जमया चुच्च्या तवणिज्जामईओ द्वे' इति व्याख्यातमस्ति, अनेन 'दो दो' इति नाभीओ रिद्वामईओ रोमराईओ (क, ख, पाठः सङ्गच्छते। द्रष्टव्यम्-जीवाजीवाग, घ, च, छ) । भिगमस्य ३।४१७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । २. अतः परं जीवाजीवाभिगमे (३।४१५) अत्र १०. धारग" (क, ख, ग, घ)। एष पाठो विद्यते -'कणगमईओ बाहाओ, ११. गाणामणिकणगरयणविमलमहरिहतवगिज्जू - कणगमईओ पासाओ, कणगमईओ गीवाओ, जलविचित्तदडाओ चिल्लियाओ (क, ख, ग, रिट्ठामए मंसू। घ, च, छ)। ३. तवणिज्जा" (च,छ)। १२. संखंककुंदगरयअमयमहियफेणपुंजसन्निगासाओ ४. 'सेगाओ (च, छ)। ___ सुहुमरययदीहवालाओ (क,ख,ग,ध,च,छ) । १३. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । १४. सलीलं उधारेमाणीतो २ (क, ख, ग, घ); ७. दामाई (च, छ)। वृत्ती एकवचनं व्याख्यातम् । सलीलं धारेमाणीओ २ (च, छ)। स्वीकृतपाठः ८. उधारेमाणीओ-उधारेमाणीओ (क, ख, ग, घ वृत्त्यनुसारी वर्तते । जीवाजीवाभिगम- (३। ४१७) सूत्रपि एष एव पाठः स्वीकृतोस्ति । ६. पत्तेयं पत्तेयं (क, ख, ग, घ, च, छ); मूल- १५. x (क, ख, ग, घ, च, छ) 1 पाठः वृत्त्याधारेण स्वीकृतः । पूर्ववर्ती पत्तेयं १६. भूयपडिमाओ जक्खपडिमाओ (क, ख, ग, घ, पत्तेयं' इति पाठस्य 'एकका' इति व्याख्यात- च, छ)। मस्ति । अत्र 'प्रत्येकम् उभयोः पाश्वयोः 'द्वे Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो जाव पडिरुवाओ | २५८. 'तत्थ णं देवच्छंद " जिणपडिमाणं पुरतो असयं घंटाणं अट्ठसयं वंदनकलसाणं असयं भिंगाराणं एवं - आयंसाण थालाणं पाईणं सुपट्टाणं मणोगुलियाणं वायकरगाणं चित्ताणं रयणकरंडगाणं, हयकंठाणं "गयकंठाणं नरकंठाणं किन्नरकंठाणं किपुरिसकंठाणं महोरगकंठाणं गंधव्वकंठाणं, 'उसभकंठाणं पुप्फचंगेरीणं' 'मल्लचंगेरीणं चुण्णचंगेरीणं गंधचंगेरीणं वत्थचंगेरीणं आभरणचंगेरीणं सिद्धत्थचंगेरीणं लोमहत्थचंगेरीणं, पुष्फपडलगाणं * • मल्लपडल गाणं चुण्णपडलगाणं गंधपडलगाणं वत्थपडलगाणं आभरणपडलगाणं सिद्धत्थपडलगाणं° लोमहत्थपडलगाणं, सीहासणाणं छत्ताणं चमराणं, तेल्लसमुग्गाणं' 'कोट्ठसमुग्गाणं पत्तसमुग्गाणं चोयगसमुग्गाणं तगरसमुग्गाणं एलासमुग्गाणं हरियालसमुग्गाणं हिंगुलयसमुग्गाणं मणोसिलासमुग्गाणं 'अंजणसमुग्गाणं, अट्ठसयं झयाणं', अट्ठसयं धूवकडुच्छ्रयाणं संनिखित्तं चिट्ठति ॥ २५६. तस्स णं सिद्धायतणस्स उवरि अट्टमंगलगा झया छत्तातिच्छत्ता || 'वायसभा-पदं २६०. तस्स णं सिद्धायतणस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगा उववायसभा पण्णत्ता जहा सभाए सुहम्माए तहेव जाव' 'उल्लोओ य" । २६१. 'तस्स ं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स वहुमज्झदेसभागे, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता" -- अट्ठजोयणाइं" "आयाम विक्खंभेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा । देवसयणिज्जं तहेव सयणिज्जवण्णओ" । अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्तातिछत्ता ॥ २६२. तीसे णं उववायसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगे हरए पण्णत्ते - एवं जोयणस्य आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, दस जोयणाई उन्वेहेणं तहेव " ॥ १. तासि णं (क, ख, ग, घ, च, छ) । २. सं० पा० - हयकंठाणं जाव उसभकंठाणं । ३. सं० पा० पुष्कचंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगेरीणं । ४. सं० पा० - पुप्फपडलगाणं जाव लोमहत्थपडलगाणं ! ५. सं० पा० - तेल्लसमुग्गाणं जाव अंजणसमुग्गाणं । ६. वृत्ती सङग्रहणीगाथाद्वयमपि दृश्यते- चंद कलसा भिंगारगा य, आयंसया य थालाय । पातीउ सुपट्टा मणगुलिका वायकरगा य ॥ १॥ चिता रयणकरंडा, हय-गय-नरकंठगा य चंगेरी । पडलग-सीहा सण - छत्त- चामरा समुग्गय-या य ॥२॥ १३७ ७. राय० सू० २०६-२३७; तस्याश्च सुधर्मागमेन स्वरूप वर्णन - पूर्वादिद्वारत्रयवर्णनमुखमण्डप - प्रेक्षागृहमण्डपादिवर्णनादिप्रकाररूपेण तावत् वक्तव्यं यावत् उल्लोकवर्णनम् (वृ) । ८. x ( क, ख, ग, घ, च, छ ) ६. असौ पाठो वृत्त्यनुसारी स्वीकृत: -- तस्य च बहुसमरणीय भूमिभागस्य बहुमध्यदेश भागेत्र महत्येा मणिपीठिका प्रज्ञप्ता ( वृ ) | १०. सं० पा०—अटूजोयणाई | ११. राय० सू० २४५ । १२. अत्र प्रारम्भ 'उववायसभाए णं उवरि' इति वाक्यशेष: 1 १३. राय० सू० २३३ । Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ रायपसेणइयं २६३. से णं हरए एगाए पउमवरवेइयाए एगेण वणसंडेण सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । पउमवरवेइया वणसंडवण्णओ' । २६४. तस्स णं हरयस्स तिदिसं तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता॥ ० अभिसेगसभा-पदं २६५. तस्स णं हरयस्स उत्तरपुरथिमेणं, एत्थ णं महेगा अभिसेगसभा पण्णता सुहम्मागमएणं जाव' गोमाणसियाओ। मणिपेढिया' सीहासणं अपरिवार" जाव' १. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। राय० सू० १८६-२०१ । २. राय० सू० २३४ । ३. राय० सू० २०९-२३७ । ४. राय० सू० २६१ ५. सपरिवारं (क, ख, ग, घ, च, छ) । २६५, २६७, २६६ एष त्रिष्वपि सूत्रेषु 'सीहासणं अपरिवारं' इति पाठो युज्यते, यद्यपि आदर्शेषु तथा पंडितबेचरदास-संपादितवृत्तौ 'सीहासणं सपरिवार' पाठो लम्यते, किन्तु २६५ सूत्रे 'जाव दामा' इति समर्पणवाक्येन 'सीहासणं अपरिवारं' अस्यैव पाठस्य पुष्टिर्जायते । वृत्तिकृत्ता अपरिवारं सिंहासनं व्याख्यातम्, किन्तु लिपिदोषेण मुद्रणदोषेण वा अपरिवारस्य स्थाने सपरिवारं जातम् । जीवाजीवाभिगमवृत्त्यवलोकनेन एतत् स्पष्टं भवति । __ जीवाजीवाभिगमवृत्ति (पत्र २३६) ____ रायपसेणइयवृत्ति (पृ० २३५, २३६) सिंहासनवर्णकः प्राग्वत्, नवरमत्र परिवार- सिंहासनवर्णकः प्राग्वत् नवरमत्र परिवारभूतानि भद्रासनानि न वक्तव्यानि । भूतानि भद्रासनानि च वक्तव्यानि । तस्याश्चाभिषेकसभाया उत्तरपूर्वस्या तस्याश्च अभिषेकसभाया उत्तरपूर्वस्यां दिशि अत्र महत्येकालंकारसभा प्रज्ञप्ता, दिशि अत्र महत्येका अलंकारसभाप्रज्ञप्ता, सा च प्रमाणस्वरूपद्वारत्रयमुखमण्डप सा अभिषेकसभावत् प्रमाण-स्वरूप-द्वारश्यप्रेक्षागृहमण्डपादिवर्णनप्रकारेणाभिषेक - मुखमण्डप - प्रेक्षागृहमण्डपादिवर्णनप्रकारेण सभावत्तावद्वक्तव्या यावदपरिवार तावद् वक्तव्या यावत् परिवारसिंहासनम् । सिंहासनम् । तस्या अलंकारसभाया उत्तरपूर्वस्यां तस्याश्च अलंकारसभाया उत्तरपूर्वस्यां दिशि अत्र महत्येका व्यवसायसभा प्रज्ञप्ता, दिणि अत्र महत्येका व्यवसायसभा प्रज्ञप्ता, सा चाभिषेकसभावप्रमाणस्वरूपद्वारश्रय सा च अभिषेकसभावत् प्रमाण-स्वरूपमुखमण्डपादिवर्णनप्रकारेण तावद्वक्तव्या द्वारत्रय-मुखमण्डपादिवर्णनप्रकारेण तावद यावदपरिवारं सिंहासनम् । वक्तव्या यावत् सिंहासनं सपरिवारम् । रायपसेण इयवृत्ती न वक्तव्यानि' स्थाने ‘च वक्तव्यानि' मुद्रितमस्ति । वृत्त्यनुसारेण अलंकारसभाया: व्यवसायसभायाश्च अभिषेकसभावत् वर्णनमस्ति तेनानयोरपि सूत्रयोरपरिवारं सिंहासनं युज्यते । अत्र वृत्तौ च 'यावदपरिवारं सिंहासन' स्थाने याक्त परिवारसिंहासन' तथा 'यावत सिंहासनं सपरिवारं' इति मुद्रितमस्ति । जीवाजीवाभिगमवृत्तेः सन्दर्भ तथा प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तेहर्दैिन मुद्रितपाठोऽशुद्धः प्रतीयते । तेनास्माभि: 'अपरिवारं' इति पाठः स्वीकृतः । ६. राय० सू० ३७-४०। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १३९ NIT दामा चिट्ठति ॥ ___ २६६. तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सुबहु अभिसेयभंडे' संनिखित्ते चिट्ठइ। अट्ठट्ठ' मंगलगा तहेव' ।। • अलंकारियसभा-पदं २६७. तीसे णं अभिसेगसभाए उत्तरपुरथिमेणं, "एत्थ णं महेगा" अलंकारियसभा पणत्ता ! जहाँ सभा सुधम्मा मणिपेढिया अट्ट जोयाणाई' सीहासणं अपरिवारं"। __२६८. 'तत्थ गं" सूरियाभस्स देवस्स सुबहु अलंकारियभंडे संनिखित्ते चिट्ठति । सेसं तहेव। • ववसायसमा-पदं २६६. तीसे णं अलंकारियसभाए उत्तरपुरथिमेणं, एत्थ णं महेगा ववसायसभा पण्णत्ता। जहा उववायसभा जाव" मणिपेढिया सीहासणं अपरिवारं" अट्ठार मंगलगा ।। २७०. तत्थ" णं सूरियाभस्स देवस्स एत्थ णं महेगे पोत्थयरयणे सन्निखित्ते चिट्ठइ । तस्स णं पोत्थयरयणस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-'रिट्ठाम ईओ कंबिआओ"", तवणिज्जमए दोरे, नाणामणिमए गंठी, अंकमयाइं पत्ताई", वेरुलियमए" लिप्पासणे, 'तवणिज्जमई संकला, रिट्ठामए छादणे'"", रिट्ठामई मसी, वइरामई लेहणी", रिट्ठामयाई अक्खराइं, धम्मिए लेक्खें"। १. आभि (क, ख, ग, घ)। ११. सपरिवार (क, ख, ग, घ, च, छ); द्रष्टव्यं २. अत्र प्रारम्भे 'अभिसेयसभाए णं उरि' इति २६५ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । राय. सू० वाक्यशेषः। ३७-४० । ३. राय ० सू० २१-२३ । १२. अत्र प्रारम्भे विवसायसभाए णं उरि' इति ४. महा (क, ख, ग, घ)। वाक्यशेषः । राय० सू० २१-२३ । ५. अभिषेकसभावत् प्रमाण-स्वरूप-द्वारत्रय- १३. तस्स (क, ख, ग, घ)। मुखमण्डप-प्रेक्षागृहमण्डपादिवर्णनप्रकारेण तावद् १४. रयणामइयाई रिट्ठाई उकंठियाई (क, ख, ग, वक्तव्या यावत् परिवारसिंहासनम् (१)। च, छ); रिट्ठकठियाई रयणामयाइं (घ)। राय० सू० २०६-२३७ । १५. रयणामए (वृ); जीवाजीवाभिगमवृत्तौ (पत्र ६. राय० सू० २६१। । २३७) रजतमयो दवरगः ।। ७. सपरिवारं (क, ख, ग, घ, च, छ); द्रष्टव्यं १६. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । २६५ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । राय० सू० १७. नाणामणिमए (व); जीवाजीवाभिगमवृत्ती ३७-४०। (पत्र २३७) नाणामणिमयं लिप्यासनम् । ८. तओ (क, ख, ग, घ)। १८. लिवासणे (क, ख, ग, च); लिवीमाणे (घ) । ९. राय० सू० २६६ । १९.रिट्रामए छंदणे तवणिज्जामई संकला (क, ख, १०. अभिषेकसभावत् प्रमाण-स्वरूप-द्वारत्रय- ग, घ, च, छ) ! मूखमण्डपादिवर्णनप्रकारेण तावद् वक्तव्या २०. लेहिणी (घ)। यावत् सिंहासनं सपरिवारम् (व)। राय० २१. सत्थे (क, ख, ग, घ, च, छ, वपा) । सू० २६०-२६१1 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० २७१. ववसायसभाए णं उवरि अट्ठट्ठमंगलगा' | २७२. तीसे' णं ववसायसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं, महेंगे बलिपीढे पण्णत्ते- अट्ठ जोयणाई आयाम विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे || २७३. तस्स णं वलिपीढस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगा' नंदा पुक्खरिणी पण्णत्ता | हरयसरिसा ॥ सूरियाभवेव-पदं [तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरिया देवे सूरियाभे विमाणे उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए उबवण्णे । ] ' २७४. तए से सूरियाभे देवे अहुणोववण्णमित्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए णं पज्जत्तिभावं गच्छइ, [तं जहा --- आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणपाणपज्जत्तीए भासमणपज्जत्तीए ] ॥ २७५. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था -- ' किं मे पुव्वि करणिज्जं ? कि मे पच्छा करणिज्जं ? कि मे पुव्वि सेयं ? किं मे पच्छा सेयं ? कि पुव्विपि पच्छा वि" हियाए सुहाए खमाए णिस्सेयसाए आनुगामियत्ताए भविस्सइ ? || २७६. तए 'तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगा देवा सूरियाभस्स देवस्स इमेयारूवं अज्झत्थियं चितियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं समुप्पण्णं समभिजाणित्ता जेणेव सूरिया देवे तेणेव उवागच्छंति, सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पि - या सूरिया विमाणे सिद्धायतणंसि जिणपरिमाणं जिणुस्सेहपमाणमेत्ताणं अट्ठसयं संनिखित्तं चिट्ठति । सभाए णं सुहम्माए माणवए चेइए खंभे, वइरामएस गोलवट्टस मुग्गएसु बहूओ जि -सहाओ संनिखित्ताओ चिट्ठति । ताओ णं देवागुप्पियाणं असि च बहूणं माणियाणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ" "वंदणिज्जाओ पूर्याणिज्जाओ माणणिजाओ सक्कारणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जाओ । तं एयणं देवापिया पुव्वि करणिज्जं तं एयण्णं देवाणुप्पियाणं पच्छा करणिज्जं तं एयण्णं देवाप्पिया पुव्विसेयं तं एयण्णं देवाणुप्पियाणं पच्छा सेयं तं एयणं" देवाणुप्पियाणं रायपसेणइयं १. राय० सू० २१ २३ । २. प्रयुक्तादर्शेषु २७२, २७३ सूत्रयोः क्रमभेदो विद्यते । ६. पज्जत्तभावं (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ७. कोष्ठकान्तरवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । ८. कि मे पुव्वि सेयं किं मे पुवि पच्छाएवि (क, ख, ग, घ, च) ३. x (क, ख, ग, घ, च, छ) 1 ४. राय० सू० २६२-२६४ । ६. सं० पा० - अज्झत्थियं जाव समुप्पण्णं । ५. एतत् कोष्ठकवत्तसूत्रं आदर्शेषु नोपलभ्यते, १० सं० पा० – अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुवास वृत्तौ व्याख्यातमस्ति । णिज्जाओ । ११. एतं णं (क, ख, ग, घ ) 1 जीवाजीवाभिगमस्य ३।४३९ सूत्रेणापि अस्य समर्थनं जायते ॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १४१ पुवि पि पच्छा वि हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सति ॥ सूरियाभस्स अभिसेग-पदं २७७. तए णं से सूरियाभे देवे तेसिं सामाणियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमटठं सोच्चा निसम्म दृढ़तदार चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण° हियए' सयणिज्जाओ अब्भुट्ठति, अब्भुठेत्ता उववायसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ, जेणेव हरए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता हरयं अणुपयाहिणीकरेमाणे-अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पुरत्थिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जलावगाहं करेइ, करेत्ता जलमज्जणं करेइ, करेता जलकिड्डं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुईभए हरयाओ पच्चोत्तरइ, पच्चोत्तरित्ता जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अभिसेयसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे-अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ।। २७८. तए f सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगा देवा आभिओगिए देवे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो ! देवाणु प्पिया ! सूरियाभस्स देवस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं इंदाभिसेयं उवट्ठवेह ॥ २७६. तए णं ते आभिओगिआ देवा सामाणियपरिसोववण्णेहिं देवेहिं एवं वुत्ता समाणा हट्ट' "तुद-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण हियया करयलपरिग्ग हियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं देवा ! तहत्ति आणाए विणएणं वयण' पडिसुणंति, पडिसुणित्ता उत्तरपुरथिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई 'दंडं निसिरंति, तं जहा--रयणाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजणाणं अंजणपुलगाणं रययाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसा.ति, परिसाडेता अहासुहमे पोग्गले परियायंति, परियाइत्ता' दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णं ति, समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोवण्णियागं कलसाणं, अट्ठसहस्सं रुप्पमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं मणिमयाणं कलसाणं, अट्टसहस्सं सुवण्णरुप्पामयाणं कलसाण, अट्टसहस्सं सुवण्णमणिमयाणं कलसाणं. अट्ठसहस्सं रुप्पमणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं सुवण्णरुप्पमणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं भोमिज्जाणं कलसाणं, एवं-भिगाराणं आयंसाणं थालाणं पाईणं १. ४ (क, ख, ग, घ)। २. सं० पा.--हट्टतुटु जाव हियए। ३. हयहियए (ख, ग, घ, च, छ)। ४. पुरत्थिमेणं (क, ख, ग, घ, च) ! ५. सं० पा०-हट्ट जाव हियया। ६. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। ७. संपा०.-जोयणाइं जाव दोच्चं । ८. अटुसयं (क, ख, ग, घ, च), Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ रायपसेणइयं सुपतिट्ठाणं 'मणोगुलियाणं वायकरगाणं चित्ताणं" रयणकरंडगाणं, पुप्फचंगेरीणं •मल्लचंगेरीणं चुण्णचंगेरीणं गंधचंगेरीणं वत्थचंगेरीणं आभरणचंगेरीणं सिद्धत्थचंगेरीणं° लोमहत्थचंगेरीणं, पुप्फपडलगाणं' 'मल्लपडलगाणं चुण्णपडलगाणं गंधपडलगाणं वत्थपडलगाणं आभरणपडलगाणं सिद्धत्थपडलगाणं लोमहत्थपडलगाणं, सीहासणाणं छत्ताणं चामराणं, तेल्लसमुरगाणं' 'कोट्ठसमुग्गाणं पत्तसमुगाणं चोयगसमुग्गाणं तगरसमुग्गाणं एलासमुरगाणं हरियालसमुग्गाणं हिंगुलयसमुग्गाणं मणोसिलासमुग्गाणं. अंजणसमुग्गाणं अट्ठसहस्सं झयाणं, अट्ठसहस्सं धूवकडुच्छुयाण विउव्वंति, विउवित्ता ते साभाविए य वेउविवए य कलसे य जाव कडुच्छुए य गिण्हति, गिण्हित्ता सूरियाभाओ विमाणाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए 'चंडाए जवणाए सिग्धाए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुदाणं मज्झंमज्झेणं वीतिवयमाणावीतिवयमाणा जेणेव खीरोदयसमुद्दे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता खीरोयगं गिण्हंति, गिण्हित्ता 'जाई तत्थुप्पलाई 'पउमाइं कुमुयाई गलिणाई सुभगाई सोगंधियाई पोंडरीयाई महापोंडरीयाई सयवत्ताइं° सहस्सपत्ताई ताई गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पुक्खरोदए समुद्दे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पुक्खरोदयं गेण्हंति, गेण्हिता जाई तत्युप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई ताई गिण्हंति, गिण्हित्ता" जेणेव समयखेत्ते जेणेव भरहेरवयाइं वासाइं जेणेव मागहवरदामपभासाइं तित्थाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तित्थोदगं गेण्डति, गेण्डित्ता तित्थमद्रियं गेण्डति, गेण्डित्ता जेणेव गंग-सिंधू-रत्ता-रत्तवईओ महानईओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं" गेण्हंति, गेण्हित्ता उभओकूलमट्टियं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव चुल्ल हिमवंतसिहरिवासहरपव्वया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे" सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पउम-पुंडरीय दहा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दहोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताइं ताई गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव हेमवय-एरण्णवयाइं वासाइं जेणेव रोहिय-रोहियंस-सुवण्णकूलरुप्पकलाओ महाणईओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता १. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) ! ७. सं० पा०-चवलाए जाव तिरियमसंखेज्जाणं २. सं० पा०-पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थ- जाव वीतिवयमाणा । चंगेरीणं । ८.सं पा०–तत्थुप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई। ३. मं० पा०-पुप्फपडलगाणं जाव लोमहत्थ- ६. जाई तत्थुप्पलाइं ताइं गेहति गेण्हित्ता (क, पडलगाणं। ख, ग, घ)। ४.सं० पा०-तेल्लसमुग्गाणं जाव अंजणस- १०. सरितोदगं (जी० ३.४४५) 1 मुरगाणं । ११. सव्वतुयरे (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. अट्ठमयं (क, ख, ग, घ, च, छ)। १२. दहे (छ)। ६. "च्छयाणं (क, ख, ग, घ, च, छ)। १३. ४ (क, ख, ग, घ)। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो उभओकुलमट्टियं गिव्हंति, गिण्हित्ता जेणेव 'सद्दावाति-वियडावाति"-वट्टवेयड्ढपव्वया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्व तूयरे' 'सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए गिण्हंति, गिरिहत्ता' जेणेव महाहिमवंत-रुप्पिवासहरपव्वया तेणेव उवागच्छंति', 'उवागच्छित्ता सव्वत्यरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वामल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए गिम्हति गिण्हित्ता जेणेव महापउम-महापुंडरीयदहा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दहोदगं गिण्हंति, गिहित्ता 'जाई तत्थ उप्पलाई जाव सहस्सपताई ताई गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव हरिवासरम्मगवासाइं जेणेव हरि'-हरिकंत-नरनारिकताओ महाणईओ तेणेव उवागच्छंति', 'उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता उभओकूलमट्टियं गेण्हंति गेण्हित्ता जेणेव गंधावालि-मालवंतपरियागा वट्टवेयड्ढपन्वया तेणेव 'उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव णिसढ-णीलवंत-वासधरपव्वया' तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सन्बतूयरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्यमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए गिण्हंति, गिण्हित्ता' जेणेव तिगिच्छि केसरिहाओ तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता दहोदगं गेण्डति, गेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई ताई गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव पुव्वविदेहावरविदेहवासाइं२ जेणेव सीता"-सीतोदाओ महाणदीओ तेणेव उवागच्छंति", "उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेहंति, गेण्हित्ता उभओकलमट्टियं मेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव सव्वचक्कवट्रिविजया जेणेव सव्वमागहवरदामपभासाइं तित्थाई 'तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तित्थोदगं गेहंति, गेण्हित्ता तित्थमट्टियं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव सव्वंतरणईओ५ 'तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता उभओकूल मट्टिय गेण्हंति, गेण्हित्ता' जेणेव सव्ववक्खारपव्वया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे" 'सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए य गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव मंदरे पव्वते जेणेव भद्दसालवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे सव्वयुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए य गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव णंदणवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचंदणं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव सोमणसवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे जाव १. सद्दावतिवियडावतिपरियागा (क, ख, ग, घ, ६. सं० पा०.--वासधरपक्या तहेव जेणेव । च,छ) स्वीकृतपाठः वृत्त्यनुसारी वर्तते। द्रष्टव्यं १०. तिगच्छि (क, घ, ग, घ, च)। __ 'ठाणं' ४:३०७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ११. सं० पा०-उवागच्छंति तहेव जेणेव ! २. सं० पा०-सव्वतूयरे तहेब जेणेव । १२. महाविदेहेवासे (क, ख, ग, घ, च, छ) । ३. सं० पाo...उवागच्छंति तहेव जेणेव । १३. ४ (क, ख, ग, घ)। ४. सं० पा०-गिण्हित्ता तहेव जेणेव । १४. सं० पा०--उवागच्छंति तहेव जेणेव । ५. हरिसलिल (क, ख, ग घ, च, छ) । १५. जीवाजीवाभिगमे (३।४४५) 'वक्खारपव्वया' ६. नरकंतो (घ); नारिकताओ (छ) । पाठः अत: पूर्व विद्यते । ७. सं० पा०-उवागच्छंति तहेव जेणेव । १६. सं० पा०-सब्बतरणईओ जेणेव । ८. सं० पा० -तेणेव तहेव जेणेव । १७. सं० पा०-सव्वतूयरे तहेव जेणेव । Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचंदणं च दिव्वं च 'सुमणदामं गिव्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पंडगवणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सव्वतयरे जाव सम्वोसहिसिद्धत्थए च सरसं च गोसीसचंदणं च दिव्वं च" सुमणदाम दद्दरमलयसुगंधियगंधे गिण्हंति, गिण्हित्ता एगतो मिलायंति, मिलाइत्ता ताए उक्किाए' 'तुरियाए चवलाए चंडाए जवणाए सिग्धाए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झमज्झणं वीईवयमाणावीईवयमाणा जेणेव सोहम्मे कप्पे जेणेव सूरियाभे विमाणे जेणेव अभिसेयसभा जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धाति, वद्धावेत्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं विउलं इंदाभिसेय उवट्ठवेंति ।। २८०. तए णं तं सूरियाभं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ, चत्तारि अग्गमहिसीओ सपरिवारातो, तिण्णि परिसाओ, सत्त अणियाओ, सत्त अणियाहिवइणो', 'सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ', अण्णेवि बहवे सूरियाभविमाणवासिणो देवा य देवीओ य तेहिं साभाविएहि य वेउव्विएहि य वरकमलपइट्ठाणेहि सुरभिवरवारिपडिपुण्णेहिं चंदणकयचच्चाएहिं आविद्धकंठेगुणेहिं पउमुप्पलपिहाणेहि सुकुमालकरयलपरिग्गहिएहिं अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाण', 'अट्ठसहस्सेणं रुप्पमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सेणं मणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सेणं सुवण्णरुप्पामयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सेणं सुवण्णमणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सेणं रुप्पमणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सेणं सुवण्णरुपमणिमयाणं कलसाणं , अटुसहस्सेणं भोमिज्जाणं कलसाणं सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहिं सव्वतूयरेहि 'सव्वपुप्फेहिं सव्वगंधेहि सवमल्लेहि सव्वोसहिसिद्धत्थएहि य सविड्ढीए जाव" नाइयरवेणं" महया-मह्या इंदाभिसेएणं अभिसिंचंति ।। अभिसेगकाले देवकिच्च-पदं २८१. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स महया-महया इंदाभिसेए वट्टमाणे-अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं नच्चोयगं नातिमट्टियं पविरलफुसियरयरेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगंधोदगवासं वासंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं हयरयं नटुरयं भट्टरयं उवसंतरयं पसंतरयं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं आसियसंमज्जिवलितं सुइ"-संमट्टरत्यंत रावणवीहियं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं मंचाइमंचकलियं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं णाणाविहरागोसियझयपडागाइपडागमंडियं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं लाउल्लोइयमहियं गोसीससरसरत्तचंदणदद्दर१. X (क, ख, घ, घ)। ८. मं० पा०—कलसाणं जाव असहस्सेणं । २. सं० पा०---उक्किट्टाए जाव जेणेव । ९.सं० पा०-सव्वतुयरेहिं जाव सम्वोसहिसिद्ध३. सेयं तो (क, ख, ग, घ, च, छ) । त्थएहिं । ४. सं० पा.-अणियाहिवइणो जाव अण्णेवि । १०. राय० सू०१३। ५. "द्वाणेहि य (क, ख, ग, घ, च, छ)। ११. नाइएणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। १२. सुई (क, ख, ग, घ); सुयं (छ)। ७. 'सएणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरियाभी १४५ दिण्ण पंचगुलितल करेंति अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं उवचियवंदणकलसं वंदणघड सुकतोरणपडिवारदेसभागं करेंति अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं आसतोसत्तविट्टवरघारियमल्लदामकलावं करेंति अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं पंचवण्णसुरभि' - मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिये करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमानं कालागरुपवरकुंदुरुक्क - तुरुक्क - धूव-मघमघेतगंधुद्धयाभिरामं करेंति अप्पेगइया देवा सूरियाभं faari सुगंधगंध गंधवट्टिभूतं करेंति अप्पेगतिया देवा हिरण्णवासं वासंति, सुवण्णवासं वासंति, रयणवासं वासंति, वइरवासं वासंति, पुप्फवास वासंति, 'फलवासं वासंति", मल्लवासं वासंति, गंधवासं वासंति चुण्णवासं वासंति, आभरणवासं वासंति, अप्पेगतिया देवा हिरण्णविहि भाएंति एवं सुवण्णविहि रयणविहि पुप्फविहिं फल विहि मल्ल विहि गंध णविहि आभरण विहि भाएंति अप्पेगतिया देवा चउव्विहं वाइतं वाएंतिततं विततं घणं सुसिरं अप्पेगइया देवा चउब्विहं गेयं गायंति, तं जहा उक्खित्तायं पायंतायं मंदायं रोइयावसाणं" अप्पेगतिया देवा दुयं नट्टविहि उवदंसेति अप्पेगतिया देवा विलंबियं णट्टविहि उवदंसेंति अप्पेगतिया देवा दुय-विलंबियं णट्टविहि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा अंचियं नदृविहि उवदंसेंति अप्पेगतिया देवा रिभियं नट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेrइया देवा अंचिय-रिभियं नट्टविहिं उवदंसेंति अप्पेगइया देवा आरभडं नट्टविहिं उवदति अप्पेगइया देवा भसोलं नट्टविहिं उवदंसेति अप्पेगइया देवा आरभड-भसोलं नट्टविहिं उवदति अप्पेइगया देवा उपायनिवायपसत्तं संकुचिय- पसारियं रियारिय अंत-संभंत णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति अप्पेगतिया देवा चउव्विहं अभिणयं अभिणयंति, तं जहा - दिट्ठतियं पाडंतियं सामन्न ओविणिवाइयं' लोगमज्झावसाणियं अप्पेगतिया देवा 'बुक्कारेंति अप्पेगतिया देवा पीर्णेति अप्पेगतिया लासेंति, अप्पेगतिया तंडवेंति" अप्पेगतिया बुक्कारेंति, पीर्णेति, लासेंति, तंडवेंति, अप्पेगतिया अप्फोडेंति, अप्पेगतिया वग्गंति अप्पेगतिया तिवई छिंदंति अप्पेगतिया अप्फोडेंति, वग्गंति, तिवई छिंदति अप्पेगतिया हयहेसियं करेंति अप्पेगतिया हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, अप्पेगतिया रहघणघणाइयं करेंति, अप्पेगतिया हयहेसियं करेंति, हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, रहघणघणा करेंति, अपगतिया 'उच्छलेंति, अप्पेगतिया पोच्छलेंति" अप्पेगतिया उक्aिट्ठिय १. वण्णसरस सुरभि (ओ० सू० २) । २. सुगंधियं (घ) सुगंधवरगंधगंधिए ( ओ० सू० २) । ३. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. अतः परं वइरविहि' इति पाठः प्राप्तोस्ति, किन्तु आदर्शेषु नोपलभ्यते जीवाजीवाभिगमवृत्ती 'वइरवासं वइरविहि' एतौ द्वावपि न स्तो व्याख्यातौ । ५. तत्थ अप्येगइया देवा आभरण (क, ख, ग, घ, च, छ} । 7 द्रष्टव्यं ६. पायत्तायं (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ७. रोइंदा (क, ख, ग, घ, च, छ ) ; ११५ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ८.रेयाइयं (क, ख, ग, घ, च, छ) 1 ६. सामंत (क, ख, ग, च, छ ); द्रष्टव्यं ११७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । १०. वक्कारेंति अप्पेगतिया पीर्णेति अप्पेगतिया आयासेति अप्पेगतिया तंडावेंति (क, च) । ११. उच्छोलेंति अप्पेगतिया पच्छोलेंति (क, ख, ग, घ) । Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं करेंति, अप्पेगतिया उच्छलेंति, पोच्छलेंति, उक्किट्टियं करेंति, अप्पेगतिया ओवयंति', अप्पेगतिया उप्पयंति, अप्पेगतिया परिवयंति, अप्पेगइया तिण्णि वि, अप्पेगइया सीहनायं नयंति, अप्पेगतिया पाददद्दरयं करेंति, अप्पेगतिया भूमिचवेडं दलयंति, अप्पेगतिया तिण्णि वि, अप्पेगतिया गज्जंति, अप्पेगतिया विज्जुयायंति, अप्पेगइया वासं वासंति, अप्पेगतिया तिण्णि वि करेंति, अप्पेगतिया जलंति, अप्पेगतिया तवंति, अप्पेगतिया पतवेंति, अप्पे. गतिया तिण्णि वि, अप्पेगतिया हक्कारेंति, अप्पेगतिया थुक्कारेंति', अप्पेगतिया थक्कारेंति, अप्पेगतिया 'साइं साइं नामाई साहें ति", अप्पेगतिया चत्तारि वि, अप्पेगतिया देवसण्णिवायं करेंति, अप्पेगतिया देवुज्जोयं करेंति, अप्पेगइया देवुक्कलियं करेंति, अप्पेगइया देवकहकहग करेंति, अप्पेगतिया देवदुहदुहगं करेंति, अप्पेगतिया चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगइया देवसण्णिवायं, देवुज्जोयं, देवुक्कलियं, देवकहकहगं, देवदुहदुहगं, चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगतिया उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया, अप्पेगतिया वंदणकलसहत्थगया अप्पेगतिया भिंगारहत्थगया जाव धूवकडुच्छयहत्थगया हद्वतु' 'चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण हियया' सव्वओ समंता आहावंति परिधावति ।। वद्धावण-पदं २८२. तए णं तं सूरियाभं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अण्णे य बहवे" सूरियाभरायहाणिवत्थव्वा देवा य देवीओ य महया-महया इंदाभिसेगेणं अभिसिंचंति, अभिसिंचित्ता पत्तेयं-पत्तेयं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-जय-जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! 'जय-जय नंदा ! भदं ते, अजियं जिणाहि, जियं च पालेहि, जियमज्झे वसाहि-इंदो इव देवाणं, चंदो इव ताराणं, चमरो इव असुराणं, धरणो इव नागाणं, भरहो इव मणुयाणं--बहूई पलिओवमाइं बहूई सागरोवमाइं वहूई पलिओवम-सागरोवमाई चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं सूरियाभस्स विमाणस्स अण्णेसिं च बहूणं सूरियाभविमाणवासीणं देवाण य देवीण य 'आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहराहि त्ति कटु महया-मह्या सद्देणं जय-जय सदं पउंजंति ।। १. जीवाजीवाभिगमे (३।४४७) केषाञ्चित् १०. बहेव 2 (क, ख, ग, घ)। पदानां व्यत्ययो दृश्यते।। ११. जय नंदा भई ते (क, ख, ग, छ); जय जय २. वुक्कारेंति (च, छ); थूत्कुर्वन्ति (वृ)। भदं ते (घ)। ३. साइं नामाइं सावेंति (क, ख, ग, घ, च, छ)। १२. यद्यपि प्रतिषु आहेवच्चं जाव महया-मया ४. अप्पेगइया देवा (क, ख, ग, घ, च, छ) । कारेमाणे पालेमाणे विहराहि' एवं पाठो लभ्यते, ५. देवा (क, ख, ग, घ, च, छ) । किन्तु लिपिदोषादसौ पाठः अशुद्धो जात इति ६. दुहुदुहुगं (क, ख, ग, घ, च, छ) । प्रतीयते । जीवाजीवाभिगमे (३१४४८) एष ७. राय० सू० २७६ ।। पाठ: समीचीनो वर्तते-आहेवच्च जाव ८. सं० पा०—हटुतु? जाव हियया । आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे ६. अतः परं सूरियाभे विमाणे' इति पाठोपेक्ष्यते, विहराहित्ति कट्ट महता-महता सद्देणं जय-जय द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३१४४७ सूत्रम् ।। सई पति । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १४७ अलंकरण-पदं २८३. तए णं से सुरियाभे देवे महया-महया इंदाभिसेगेणं अभिसित्ते समाणे अभिसेयसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छति, निग्गच्छित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे-अणुपयाहिणीकरेमाणे अलंकारियसभं पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अगुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासणवरगते पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ।। २८४. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगा देवा अलंकारियभंड उववेति ॥ २८५. तए णं से सूरियाभे देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाई लुहेति, लहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिपति, अणलिपित्ता नासानीसास-वाय-वोझं चक्खहरं वण्णफरिसजुत्तं हयलालापेलवातिरेगं धवलं कणग-खचियंतकम्मं आगासफालिय-समप्पभं दिव्वं देवदूसजुयलं नियंसेति, नियंसेत्ता हारं पिणिद्धेति, पिणिवेत्ता अद्धहारं पिणिद्धेइ, पिणिवेत्ता एमावलि पिणिद्धेति, पिणिवेत्ता मुत्तावलि पिणिद्धेति, पिणिवेत्ता रयणावलि पिणि इ, पिणिद्धत्ता एवं-अंगयाइं केयूराइं कडगाई तुडियाई कडिसुत्तग' दसमुदाणंतगं विकच्छसुत्तगं मुरवि कंठमरवि पालंब कंडलाइं चुडामणि चित्तरयणसंकर्ड' मउडं-पिणि इ, पिणिवेत्ता गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघाइमेणं चउन्विहेणं मल्लेणं कप्परुक्खग पिव अप्पाणं अलंकिय-विभूसियं करेइ, करेत्ता ददरमलयसुगंधगंधिएहिं गायाई भुकुंडेति' दिव्वं च सुमणदाम पिणि?ई ॥ २८६. तए णं से सुरियाभे देवे केसालंकारेणं मल्लालंकारेणं आभरणालंकारेणं वत्थालंकारेणं-चउव्विहेणं अलंकारेणं अलंकियविभूसिए समाणे पडिपुण्णालंकारे सीहासणाओ अब्भुट्ठति, अब्भुठेत्ता अलंकारियसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छति, ववसायसभं अणुपयाहिणीकरेमाणेअणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे' तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासणवरगते पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ॥ २८७. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगा देवा पोत्थयरयणं उवणेति ॥ सिद्धायतणपवेस-पदं २८८. तते णं से सूरियाभे देवे पोत्थयरयणं गिण्हति, गिरिहत्ता 'पोत्थयरयणं मुयइ, १. माणे (क, ख, ग, घ)। ___ इति पाठो व्याख्यातोस्ति । २. आलंकारिया (क, ख, ग)! ५. भखंडेइ (क, ख, ग, घ, च, छ); द्रष्टव्यं ३. कडिसुत्तगा (क, ख, ग, घ, च)। जीवाजीवाभिगमस्य ३१४५१ सूत्रस्य पादटिप्प४. प्रयुक्तादर्शेषु एष पाठो नोपलभ्यते, वृत्तौ एष णम् । व्याख्यातोस्ति । भगवत्यां (६.१९०) एवं ६, सं० पा०-सीहासणे जाव सण्णिसण्णे । जहा सूरियाभस्स अलंकारो तहेव जाव चित्तं' ७. उवणमंति (क, ख, ग, घ, च, छ) । इति समर्पणपाठोस्ति, तद्वत्तौ ‘रयणसंकडुक्कडं' Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૬ रायपसे इयं मुइत्ता" पोत्थयरयणं विहाडेइ, विहाडित्ता पोत्थयरयणं वाएति, वाएत्ता धम्यियं ववसायं 'ववसइ, ववसइत्ता" पोत्थयरयणं पडिणिक्खिवइ' पडिणिविखवित्ता सीहासणातो अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता ववसायसभातो पुरथिमिल्लेणं दारेणं पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता गंदं पुक्खरिणि पुरथिमिल्लेणं तोरणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ. पच्चोरुहित्ता हत्थपादं पक्खालेति, पक्खालेत्ता आयंते चोक्खे परमसुईभूए एवं महं सेयं रययामयं विमलं सलिलपुण्णं मत्तगय महामुहागितिसमाणं भिगारं पगेण्हति, पगेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई" "पउमाई कुमुयाई णलिगाई। सुभगाई सोगंधियाइं पोंडरीयाई महापोंडरीयाई सयवत्ताई' सहस्सपत्ताई ताई हति हित्ता दातो पुक्खरिणीतो 'पच्चोत्तरति, पच्चोत्तरित्ता" जेणेव सिद्धायतणे तेणेव पहारेत्थ गमणाए || २८६. तए णं तस्स सूरियाभरस देवस्स" चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अण्णे य बहवे सूरियाभविमाणवासिणो' 'वैमाणिया देवा य° देवीओ य अप्पेगतिया उप्पल हत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पितो समणुगच्छति । २६०. तए णं 'तस्स सूरियाभस्स देवस्स” आभिओगिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया वंदणकल सहत्थगया जाव" अप्पेगतिया धूवकडच्छुयहत्थगया तुटु" " चितमाणं दिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस विसप्पमाणहियया सूरियाभं देवं तो-पितो समणुगच्छति ॥ २१. तए से सूरियाभे देवे चउहिं सामाणियसाहस्सीहि जाव आय रक्खदेवसाहसीहि अह वहूहि य" "सूरियाभविमाणवासीहि वेमाणिएहि देवेहि य देवी हि यसद्धि संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव" णातियरवेणं जेणेव सिद्धायतणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सिद्धायतणं" पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव देवच्छंद जेणेव १. x (क, ख, ग, घ, च, छ) 1 १३. राय० सू० १३ । ३. पडिणिक्खवइ (क); पडिक्खिवइ ( ख, ग, घ ) । ४. x ( क, ख, ग, च, छ ) 1 २. गिहिति गिहित्ता (क, ख, ग ) गिव्हति १४. जीवाजीवाभिगमे ( ३।४५७ ) अतो यः गिव्हित्ता (घ ) | पाठोस्ति स प्रकरणदृष्ट्या सङ्गतोस्ति । प्रस्तुतसूत्रादर्श स नोपलभ्यते । वृत्तिश्च संक्षिप्तास्ति किन्तु तं पाठं बिना प्रकरणसम्बन्धो नैव जायते स च एवमस्ति - अणुष्वयाहिणीकरेमाणे अणुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेण अणुपविसति, अणुपविसित्ता आलोए जिणपडिभाणं पणामं करेति, करेत्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवच्छेदए जेणेव जिणपडिमाओ तेणेव उवागच्छई, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता जिणपडिमाओ पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वा दगधाराए पहावेति, पहावित्ता सरसेणं ५. सं० पा० – उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई । ६. पच्चीरुहति पच्चो रुहित्ता ( क, ख, ग, घ, च, छ) 1 ७. तं सूरियाभं देवं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ८. सं० पा० - सूरियाभविमाणवासिणो देवीओ । जाव ६. तं सूरियाभं देवं ( क, ख, ग, च, छ) 1 १०. राय० सू० २७६ ११. सं० पा० – हट्टतुट्ठ जाव सूरियाभं । १२. सं० पा० बहूहि य जाव देवेहि । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरियाभो १४६ जिणपsिमाओ तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जिगपडिमाणं आलो पणाम करेति, करेता लोमहत्थगं हिति, गिहित्ता 'जिणप डिमाणं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता " जिrपडिमाओ सुरभिणा' गंधोदरणं व्हाएइ, व्हाइत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाइं अणुलिपइ, अणुलिपइत्ता, जिणपरिमाणं अहयाई देवद्राजुयलाई नियंसेइ, नियंसेत्ता 'अग्गेहि वरेहि गंधेहि मल्लेहिय अच्चे, अच्चेत्ता पुप्फारुहणं मल्लारहणं वण्णारुहणं चुण्णारुहणं गंधारुणं आभरणारुहणं" करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलाव करेइ, करेत्ता कथग्गगहियक रयलपब्भट्टविप्प मुक्केणं दसद्धवणेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेता जिणपडिमाणं पुरतो अच्छेहि सण्हेहि रययामहि अच्छरसा - तंदुलेहि अट्ठट्ठ' मंगले आलिहइ, तं जहा- सोत्थियं "सिरिवच्छं नंदियावत्तं वद्धमाणगं भद्दासणं कलर्स मच्छं दप्पणं ॥ थुइ-पदं २६२. तयानंतरं च गं चंदप्पभ - वइरवे रुलिय' - विमलदंडं कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क- तुरुक्क-धूव-मघमत-गंधुत्तमाणुविद्धं च धूवट्ट विणिम्मुयंत वेरुलियमयं कडुच्छ्रयं परमहिय पयत्तेगं धूवं दाऊण जिणवराणं सत्तट्ठ पदाणि ओसरति, ओसरिता दसंगुलि अंजलि करियमत्थयम्मि य पयतेणं," अट्ठसय विसुद्ध गंथजुतेहि अत्थजुत्तेहि" अरुतेहि महावितेहि संथुणइ, संधुणित्ता" वामं जाणुं अंचेइ, अंचित्ता दाहिणं जाणं धरणितलंस हिट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवाडेइ", निवाडित्ता ईसि पच्चण्णमइ, पच्चनमित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी- नमोत्थुणं अरहंताणं भगवंताणं आदिगराणं तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाण पुरिसवरगंधहत्थीगं लोगुत्तमाणं लोगणाहाणं लोगहिआणं लोगपईवाणं गोसीसचंदणेणं गाताई अणुलिप, अणुलिपित्ता tfs अाई देवसजुयलाई नियंसेव नियंसेत्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहि मल्लेहि य अच्चेति, अच्चेता पुष्कारुहणं मल्लारुहणं वष्णारुणं चुणारुहणं गंधारहणं आभरणारुहणं करेति, करेत्ता जिणपडिमाणं पुरतो अच्छे हिं सहेहि रययामएहि अच्छरसा तंदुलेहि अट्टट्ठमंगलए आलिहति, आलिहिता कयगाहग्गहितकरतलपभदुविमुक्केणं दसद्धवणेणं कुसुमेणं पुष्कपुंजीव या रकलितं करेति, करेत्ता चंदप्पभ o १. x ( क, ख, ग, च, छ) । २. सुरभि (क, ख, ग, घ, च, छ) । ३. x (क, ख, ग, घ, छ) ; स्वीकृत: पाठो जीवाजीवाभिगमवृत्तावपि (पत्र २५४ ) व्याख्या - तोस्ति । ४. सहेहि सेहि ( च, छ) । ५. अच्छरसाहि (क, ख, ग, घ, च, छ); जीवाजीवाभिगमवृत्तौ ( पत्र २५४ ) अच्छरसतन्दुलाः, पूर्वपदस्य दीर्घान्तता प्राकृतत्वात् । ६. अट्ट ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. सं० पा० सोत्थियं जाव दप्पणं । ८. रणवइरवेरुइय ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. पत्तयं (क, ख, ग, च) ; पत्तेयं (घ ) । १०. x ( क, ख, ग, घ, च, छ ) ११. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. संधुणित्ता सत्तट्ठपयाई पच्चोसक्कइ पच्चोसविकत्ता ( क, ख, ग, घ, च, छ) । १३. निवडेइ ( क, ख, ग, घ, च, छ) । Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० रायपसेणइयं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं वोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मणायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचा उरंतचक्कवट्टीणं अप्पडियवरणाणदसणधराणं विअट्टच्छउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं बुद्धाणं बोयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सवण्णूणं सव्वदरिसीणं सिवं अयलं अरुअं अणंतं अक्खयं अव्वावाहं अपुणरावित्तिसिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता २६३. जेणेव सिद्धायतणस्स वहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' दिव्वाए दगधाराए अब्भवखेइ, अब्भक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलं 'दलयइ, दल इत्ता" कयग्गहगहियं 'करयलपब्भट्ठविप्पमुक्केणं दसद्ध वण्णेणं कुसुमेणं पुप्फ पुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयइ, दलयित्ता० दाहिणिल्लं पइ गमण-पदं २६४. जेणेव सिद्धायतणस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता दारचेडाओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिवाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्त' 'विउलवटेवग्धारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गहगहियक रयलपब्भट्टविष्पमुक्केणं दसद्धवणेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयइ, दलयित्ता २६५. जेणेव दाहिणिल्ले दारे मुहमंडवे जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थग परामुसइ, परामुसित्ता बहुमज्झदेसभागं लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिवाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलं मंडलगं आलिहइ, आलिहित्ता कयग्गहगहिय करयलपब्भट्ठविप्पमुक्केणं दसवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयइ, दलयित्ता--- २६६. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स पच्चस्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता दारचेडाओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलयित्ता पुष्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्त' 'विउलवदृवग्घारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गहगायिकरयलपन्भट्ठविप्पमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयइ, १. उवागच्छित्ता लोमहत्थर्ग परामुसइ, परामुसित्ता सिद्धायतणस्स बहुमज्झदेसभागं लोमहत्थेणं पमज्जति पमज्जित्ता (क, ख, ग, घ, च, ३. कयग्गाह (क, ख, ग, घ, छ)। सं० पा०-कयग्गहहियं जाव पूजोवयारक लियं । ४. सं० पा०-आसत्तोसत्त जाव धुवं । ५. सं० पा०–कयम्गहग हिय जाव धूवं । ६. सं० पा०-आसत्तोसत्त कयग्गहगहिय धूवं । २. पंचांगुलितलं ददाति (व); मंडलगं आलिहइ, आलिहिता (क, ख, ग, घ, च, छ)। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरियामो दलयित्ता २६७. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थं परामुसइ, परामुसित्ता खंभे य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जिना जहा चेव पच्चत्थिमिल्लस्स दारस्स जाव' धूवं दलयइ, दलयित्ता २९८. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता दारचेडाओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता तं चेव सव्वं ।। २६६. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दारचेडाओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता तं चेव' सव्वं ॥ ३००. जेणेव दाहिणिल्ले पेच्छाघरमंडवे जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स बहुमज्झदेसभागे जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थग परामुसइ, परामुसित्ता अक्खाडगं च मणिपेढियं च सीहासणं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलयित्ता पुप्फारुहणं' 'जाव आभरणारहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गहगहियकरयल: पब्भट्ठविप्पमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयइ, दलइत्ता ३०१. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चस्थिमिल्ले दारे 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव' ।। ३०२. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे (उत्तरिल्ला खंभपंती ? ) तेणेव उबागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ।। ३०३. जेणेव दाहिणिल्लरस पेच्छाधरमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ।। ३०४. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाधरमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ॥ १. राय० सू० २६६ । २. राय० सू० २६६ । ३. राय० सू० २६६ ! ४. सं० पा०-पुष्फारुहणं आसत्तोसत्त जाव ध्वं । ५. सं० पा०-पच्चस्थिमिल्ले दारे तं चेव, उत्तरिल्ले दारे तं चेव, पूरस्थिमिल्ले दारे तं चेव, दाहिणिल्ले दारे तं चेव । ६. राय० सू० २६६ । ७. यथा--२६७ सूत्रे 'उत्तरिल्ला खंभपंती,' ३२५, ३३० सूत्रयोः 'दाहिणिल्ला खंभपंती' ३३५,३४० सूत्रयोः पच्चथिमिल्ला खंभपंती'-इति पाठो विद्यते, अतः अस्मिन् सूत्रे 'उत्तरिल्ले दारे' इत्यस्य स्थाने उत्तरिल्ला खंभपंती' इति पाठो युज्यते । किन्तु एष पाठो वृत्तौ प्रतिषु च क्वापि नोपलब्धः तेन मूलपाठे 'उत्तरिल्लेदारे' इत्येव सुरक्षितः। Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ रायपसेणइयं . . __ ३०५. जेणेव दाहिणिल्ले चेइयथूभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता चेइय° थूभं च मणिपेढियं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलयित्ता पुप्फारुहणं' 'जाव आभरणारुणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गहगहियकरयलपन्भटविणमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुष्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ताधवं दलयइ, दलयित्ता---- ३०६. जेणेव पच्चथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्च थिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जिगपडिमाए आलोए पणाम करेइ, करेत्ता तं चेव ।। ३०७. जेणेव उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव सव्वं ।। ३०८. जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता त चेव' ।। ३०६. जेणेव दाहिणिल्ला मणिपेढिया जेणेव दाहिणिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव सव्वं ।। ३१०. जेणेव दाहिणिल्ले चेइयरुक्खे तेणेव उवागच्छइ, "उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामसित्ता चेइयरुक्खं च मणिपेढियं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता तं चेव'। ___३११. जेणेव दाहिणिल्ले महिंदज्झए 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामु सित्ता महिंदज्झयं च मणिपेढियं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता तं चेव" सव्वं ॥ ३१२. जेणेव दाहिणिल्ला नंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामु सित्ता तोरणे य तिसोवाणपडिरूवए य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं" "चच्चए दलयइ, दल यित्ता पुष्फारुहणं जाव आभरणारहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गहगहियकरयलपब्भट्टविप्पमुक्केणं दसवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता---- • उत्तरिल्लं पद गमण-पदं ३१३. सिद्धायतणं अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदापुक्खरिणी तेणेव १. सं. पा०-उवागच्छित्ता थूभं । ६. राय० सू० २६४। २. सं० पा०--मणिपेढियं च दिवाए। १०. सं० पा०–महिंदज्झए तं चेव । ३. सं० पा०—पुप्फारहणं आसत्तोसत्त जाव धूवं । ११. राय० सू० २६४ । ४. राय. सू० २६१,२६२ । १२. सं० पा०—गोसीसचंदणेणं पुष्फारुहणं आस५,६,७. राय० सू. २६१, २६२ । त्तोसत्त धूवं । ८. सं० पा०-उवागच्छइतं चेव । Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १५३ उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं चेव' । ३१४. जेणेव उत्तरिल्ले महिंदज्झाए तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता॥ ३१५. जेणेव उत्तरिल्ले चेइय रुक्खे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३१६. जेणेव उत्तरिल्ले चेइयथूभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ।। ३१७. जेणेव पच्चथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चस्थिमिल्ला जिणपडिमा 'तेणेव उवागच्छई, उवागच्छित्ता तं चेव ॥ ३१८. जेणेव उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ॥ ३१६. जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ॥ ३२०. जेणेव दाहिणिल्ला मणिपेढिया जेणेव दाहिणिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव।। ३२१. जेणेव उत्तरिल्ले पेच्छाघरमंडवे जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स बहमज्झदेसभागे जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जा चेव दाहिणिल्ले वत्तव्बया सा चेव सव्वा ।। ३२२. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चस्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता ॥ ३२३. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" ।। ३२४. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" ॥ ३२५. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स दाहिणिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता। ३२६. जेणेव उत्तरिल्लस्स दारे मुहमंडवे जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ।। ३२७. जेणेव उत्तरिल्ले मुहमडवस्स पच्चथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता । ३२८. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३२९. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, १. राय० सू० ३१२ । २. राय० सू० ३११॥ ३. राय० सू० ३१० । ४. सं० पा०-~-जिणपडिमा तं चेव । ५,६,७,८. राय० सू० ३०६ । ६. राय० सू० ३०० । १०,११,१२. राय० सू० २६६ । १३. राय० सू० २६७ : १४. राय० सू० २६५ १५,१६. राय० सू० २६६ । Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं उवागच्छित्ता । ३३०. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता। ३३१. जेणेव सिद्धायतणस्स उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव। ० पुरथिमिल्लं पइ गमण-पदं ३३२. जेणेव सिद्धायतणस्स पुरिथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३३३. जेणेव पुरथिमिल्ले दारे मुहमंडवे जेणेव पुरिथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स बहमज्झदेसभागे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३३४. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ।। ३३५. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स पच्चथिमिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता॥ ३३६. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता॥ ३३७. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३३८. जेणेव पुरथिमिल्ले पेच्छाघरमंडवे" "जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" ।। ३३९. जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३४०. जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चथिमिल्ला खंभपती तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" ॥ ३४१. जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" ॥ १. राय० सू० २६६ । ६. राय० सू० २६६ । २. राय० सु० २६७। १०. सं० पा०—पेच्छाघरमंडवे एवं थूभे जिण३,४. राय० सू० २६४। पडिमाओ चेइयरुक्खा महिंदज्झया नंदापुक्ख५. राय० सू० २६५ । रिणी तं चेव जाव धूवं दलइ २त्ता । ६. सं० पा.---दाहिणिल्ले दारे पच्चथिमिल्ला ११. राय० सू० ३००। खंभपंती उत्तरिहले दारे तं चेव पूरस्थिमिल्ले १२. राय० सु० २६७ । दारे तं चेव । १३. राय० सू० २६७ । ७. राय० सू० २६६ । १४. राय० सू० २६६ । ८. राय० सू० २६७ । Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरियामो ३४२. जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता' ॥ ३४३. जेणेव पुरथिमिल्ले चेइयथूभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' ॥ ३४४. जेणेव दाहिणिल्ला मणिपेढिया जेणेव दाहिभिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता' ॥ ३४५. जेणेव पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चत्थिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३४६. जेणेव उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ||" ३४७. जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३४८. जेणेव पुरथिमिल्ले चेइयरुक्खे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३४६. जेणेव पुरथिमिल्ले महिंदज्झए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३५०. जेणेव पुरथिमिल्ला नंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' ॥ सुम्मसभापवेस-पदं १५५ ३५१. जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सभं सुहम्मं पुरत्थि - मिल्लेणं दारेण अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव माणवर चेइयखंभे जेणेव वइरामया गोलवट्टसमुग्गा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता वइरामए गोलवट्टसमुग्गए लोमहत्येणं पमज्जइ, पमज्जित्ता वइरामए गोलवट्टसमुग्गए विहाडे, विहाडेत्ता जिणसकहाओ लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेइ, पक्खालेत्ता अग्गेहि वरेहिं गंधेहि य मल्लेहि य अच्चेइ, अच्चेत्ता धूवं दलयइ, दलयित्ता जिसकहाओ वइरामएस गोलवट्टसमुग्गएसु पडिणिक्खिवइ, पडिणिक्खिवित्ता माणवरां चेइयखंभं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलयित्ता पुप्फारुहणं जाव" धूवं दलयइ, १. राय० सू० २९६ २. राय० सू० ३०५ ३,४,५. राय० सू० ३०६ | ६. राय० सू० ३०६ । ७. राय० सू० ३१० ८. राय० सू० ३११ । ६. राय० सू० ३१२ । १०. अतः 'पडिणिक्खिवइ' पर्यन्तं वृत्तौ ( पृष्ठ २६४) भिन्नः पाठो व्याख्यातोस्ति---यत्रैव मणिपीठिका तत्रागच्छति, आलोके च जिनसस्थां प्रणामं करोति, कृत्वा यत्र माणवक चैत्यस्तम्भो यत्र वज्रमयाः गोल वृत्ताः समुद्गकाः तत्रागत्य समुद्गकान् गृह्णाति, गृहीत्वा विघाटयति, विधाय व लोमहस्तकं परामृश्य तेन प्रमार्ण्य उदकधारया अभ्युक्ष्य गोशीर्षचन्दनेनानुलिपति, ततः प्रधानैर्गन्धमात्येरचयति धूपं दहति, तदनन्तरं भूयोऽपि वज्रमयेषु गोलवृत्तसमुद्ङ्गेषु प्रतिनिक्षिपति । जीवाजीवाभिगमस्य - ३।५१६ द्रष्टव्यं सूत्रम् । ११. राय० सू० २६४ | Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ रायपसेणइस दलयित्ता ३५२. जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे 'तेणेव उवागच्छइ. उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता मणिपेढियं च सीहासणं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता तं चेव ॥ ३५३. जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवसयणिज्जे 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता मणिपेढियं च देवसयणिज्जं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता तं चेव ॥ ३५४. जेणेव मणिपेढिया जेणेव खुड्डागमहिंदज्झए' 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामसइ, परामु सित्ता मणिपेढियं च खुड्डागमहिंदज्झयं च लोमहत्थएणं पमज्जइ पमज्जित्ता तं चेव' । ३५५. जेणेव पहरणकोसे चोप्पालए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता फलिहरयणपामोक्खाइं पहरणरयणाई लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्नेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलयित्ता पुप्फारुहणं 'जाव आभरणारुहणं आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गहगहियकरयलपब्भट्ठविप्पमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयइ, दलयित्ता ३५६. जेणेव सभाए सुहम्माए बहुमज्झदेसभाए' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव धूवं दलयइ, दलयित्ता ३५७. जेणेव सभाए सुहम्माए दाहिणिल्ले दारे' 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता१.सं० पा०-सीहासणे तं चेव । जेणेव देवसयणिज्जे तेणेव-इति पाठोस्ति २. राय० सू० २६४। किन्तु जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवसयणिज्जे' ३. सं० पा०--देवसयणिज्जे तं चेव । अयं पाठः पूर्वपंक्तावेवागतस्तेन पुनर्न युज्यते । ४. राय० सू० २६४1 १०. राय० सू० २६३ । ५. सं० पा०—खुड्डागमहिंदज्झए तं चव। ११. सं० पा०-दाहिणिल्ले दारे तहेव अभिसेयस६. राय० सू० २६४।। भासरिसं जाव पुरथिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी ७. पहरणकोसं चोप्पालं (क, ख, ग, घ, च, छ); जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ २त्ता तोरणे २४६ सूत्रस्य सन्दर्भ आदर्शगत: पाठः सम्यग य तिसोवाणे य सालिभंजियाओ बालरूवए न प्रतिभाति । य तहेव, जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छइ ८.सं० पा.---पुष्फारुहणं आसतोसत्त जाब २ ता तहेव सीहासणे च मणिपेढियं च सेसं धूवं । तहेब आययणसरिसं जाव पुरथिमिल्ला नंदा ६. प्रस्तुतसुत्रस्य तथा जीवाजीवाभिगमस्य (पत्र पुक्खरिणी जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवा२५७) सभायाः सुधर्माया बहुमध्यदेशभागेऽर्च गच्छइ २त्ता जहा अभिसेयसभा तहेव सब्वं निका पूर्ववत् करोति-इति विवरणानुसारी जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छइ २ ता पाठोत्र स्वीकृतः । यद्यपि प्रतिषु जेणेव सभाए तहेव लोमहत्थयं परामसइ, पोत्थयरयणे लोमसुहम्माए बहमज्झदेसभाए जेणेव मणिपेढिया हत्थएणं पमज्जाइ २ ता दिव्वाए दगधाराए Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १५७ ३५८-३७५. (जहा २९४-३१२ सुत्ताणि तहेव णेयव्वाणि) ॥ ३७६. सभं सुहम्म अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ।। ३७७-३६३. (जहा ३१३-३३० सुत्ताणि तहेव णेयवाणि) ॥ ३६४. जेणेव सभाए सुहम्माए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता'। ३६५. जेणेव सभाए सुहम्माए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता-- ३६६-४१३. (जहा ३३२-३५० सुत्ताणि तहेव णेयव्वाणि) ।। • उववायसभापवेस-पदं ४१४. जेणेव उववायसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उववायसभं पुरस्थिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ अणुपविसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवसयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता मणिपेदियं च देवसयणिज्जं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता ।। ४१५. जेणेव उववायसभाए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' ।। ४१६. जेणेव उववायसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता-- ४१७-४३४. (जहा २६४-३१२ सुत्ताणि तहेव णेयब्वाणि) ॥ ४३५. उववायसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ४३६-४५२. (जहा ३१३-३३० सुत्ताणि तहेव णेयव्वाणि)॥ ४५३. जेणेव उववायसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता'। ४५४. जेणेव उववायसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता४५५-४७२. (जहा ३३२-३५० सुत्ताणि तहेव णेयव्वाणि) । ४७३. जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता तोरणे य तिसोवाणपडिरूवए य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता॥ ० अमिसेगसमापवेस-पदं ४७४. जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभिसेयसभं पुरत्थिअम्गेहि वरेहि य गंधेहि भल्लेहि य अच्चेइ व्याख्यातोस्ति । उपपातसभाया अनन्तरमसी २त्ता मणिपेढियं सीहासणे च सेस तं चेव, पाठोऽविकलरूपेण समायातः । संभवतः पुरथिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी। (जेणेव हरए लिपिदोषेण सोत्रापि पुनलिखितः । तेणेव उवागच्छद २ ता तोरणे य तिसोवाणं १. राय० सू० ३३१ । य सालिभंजियाओ य बालरूवए य तहेव)। २. राय० सू० २६४ । कोष्ठकवर्ती पाठः सर्वासुप्रतिषु वर्तते, किन्तु अस्य ३. राय० सू० २६३ । सूत्रस्य वृत्तौ (पृष्ठ २६७) तथा जीवाजीवा- ४. राय० सू० ३३१ । भिगमस्य वृत्तौ (पत्र २५८) चापि नासौ ५. राय० सू० ३१२ । पार Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ रायपसेणइयं मिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थग परामुसइ, परामुसित्ता मणिपेढियं च सीहासणं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता'। ४७५. जेणेव अभिसेयभंडे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामसित्ता अभिसेयभंडं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता' ।। ४७६. जेणेव अभिसेयसभाए वहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' ।। ४७७. जेणेव अभिसेयसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता--- ४७८-४६५. (जहा २६४-३१२ सुत्ताणि तहेव णेयवाणि) । ४६६. अभिसेयसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ४६७-५१३. (जहा ३१३-३३० सुत्ताणि तहेव णेयवाणि) ५१४. जेणेव अभिसेयसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता । ५१५. जेणेव अभिसेयसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता-- ५१६-५३३. (जहा ३३२-३५० सुत्ताणि तहेव णेयव्वाणि) । ० अलंकारसभापवेस-पदं ५३४. जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थग परामुसइ, परामुसित्ता मणिपेढियं च सीहासणं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता ॥ ५३५. जेणेव अलंकारियभंडे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता अलंकारियभंडं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता' ।। ५३६. जेणेव अलंकारियसभाए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता। ५३७. जेणेव अलंकारियसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता५३८-५५५. (जहा २६४-३१२ सुत्ताणि तहेव णेयव्याणि) । ५५६. अलंकारियसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ५५७-५७३. (जहा ३१३-३३० सुत्ताणि तहेव णेयवाणि) । ५७४. जेणेव अलंकारियसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ५७५. जेणेव अलंकारियसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता-- ५७६-५६३-- (जहा ३३२-३५० सुत्ताणि तहेव णेयव्वाणि) ॥ १,२. राय० सू० २६४। ३. राय० सू० २६३ । ४. राय० सु० ३३१ । ५.६. राय० सू० २६४ । ७. राय० सू० २६३ । ८. राय० सू० ३३१॥ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १५६ ० ववसायसमापवेस-पदं ५६४. जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छइ, रवागच्छित्ता ववसायसभं पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव पोत्थयरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थग परामुसइ, परामुसित्ता पोत्थयरयणं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अन्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता अग्गेहिं वरेहि य गंधेहि मल्लेहि य अच्चेइ, अच्चेत्ता पुप्फारुहणं॥ ५६५. जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता मणिपेढियं च सीहासणं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता॥ ५६६. जेणेव ववसायसभाए वहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' ।। ५६७. जेणेव ववसायसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता५६८-६१५. (जहा २६४-३१२ सुत्ताणि तहेव णेयव्वाणि) ॥ ६१६. ववसायसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ६१७-६३३. (जहा ३१३-३३० सुत्ताणि तहेव णेयव्वाणि) ॥ ६३४. जेणेव ववसायसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता । ६३५. जेणेव ववसायसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ६३६-६५३. (जहा ३३२-३५० सुत्ताणि तहेव णेयवाणि) ॥ • सूरियाभविमाणे अच्चणिया-पदं ६५४. 'जेणेव वलिपीढे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वलिविसज्जणं करेइ, करेत्ता आभिओगिए देवे सद्दावेई", सद्दावेत्ता एवं क्यासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सूरियाभे विमाणे सिंघाडएसु तिएसु चउक्केसु चच्चरेसु चउम्मुहेसु महापहपहेसु पागारेसु' अट्टालएसु चरियासु दारेसु गोपुरेसु तोरणेसु आरामेसु उज्जाणेसु 'काणणेसु वणेसु वणसंडेसु वणराईसु" अच्चणियं करेह, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह ।। ६५५. तए णं ते आभिओगिया देवा सरियाभेणं देवेणं एवं वत्ता समाणा 'हतद्धचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं देवो! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति°, पडिसुणेत्ता सूरियाभे विमाणे सिंघाडएसु तिएसु चउक्कएसु चच्चरेसु १,२. राय० सू० २६४ । विसज्जणं करेइ' इति पाठ: ६५६ सूत्रे 'तए णं ३. राय० सू० २६३ से सूरियाभे देवे' इति पाठान्तरं व्याख्यात४. राय० सू० ३३१ । मस्ति । ५. वृत्ती (पृष्ठ २६७) अस्य पाठस्य स्थाने भिन्नः ६. पागारएसु (क, ख, ग, घ, च, छ) । पाठो व्याख्यातोस्ति-बलिपीठे समागत्य तस्य ७. वणेसु वणराईसु कागणेसु वणसंडेसु (क, ख, बहमध्यदेशभागवत् अचं निकां करोति, कृत्वा ग, घ, च, छ) । च आभियोगिकदेवान शब्दापयति । 'बलि- ८. सं० पा०-समाणा जाब पडिसूणेत्ता। Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० रायपसेणइयं चउम्मुहेसु महापहपहेसु पागारेसु अट्टालएस चरियास दारेस् गोपुरेस तोरणेस आरामेस उज्जाणंसु काणणेसु वणेसु वणसंडेसु वणराईसु अच्चणियं करेंति, करेता जेणेव सूरियाभे देवे' 'तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। ० नंदापुक्खरिणी-गमण-पदं . ६५६. तए' णं से सूरियाभे देवे जेणेव गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नंदं पुक्खरिणि पुरस्थि मिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता हत्थपाए पक्खालेइ, पक्खालेत्ता गंदाओ पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरेइ, पच्चुत्तरेत्ता जेणेव सभा सुधम्मा तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।। • सुहम्मसभा-निसीदण-पदं ६५७. तए णं से सूरियाभे देवे चउहि सामाणियसाहस्सीहिं जाव सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहि अण्णे हि य' वहूहिं सूरियाभविमाणवासीहिं वेमाणिएहि देवेहि य देवीहि य सद्धि संपरिण्डे सविड्ढीए' 'सव्वजुतीए सव्ववलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सम्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सव्वतुडियसहसण्णिनाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमग-पडुप्पवाइयरवेणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुइंग-दुंदुहिनिग्घोस नाइयरवेणं जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सभं सुहम्मं पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ।। ६५८. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरथिमिल्लेणं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ च उसु भद्दासणसाहस्सीसु निसीयंति ।। ६५६. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पुरथिमेणं चत्तारि अग्गम हिसीओ चउसु भद्दासणेसु निसीयंति ।। ६६०. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणपुरत्थिमेणं अभितरियाए परिसाए अट्ठ देवसाहस्सीओ अट्ठसु भद्दासणसाहस्सीसु निसीयंति ॥ ६६१. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणणं मज्झिमाए परिसाए दस देवसाह१. सं० पा०-देवे जाव पच्चप्पिणंति । ५. सं० पा०-सव्विड्ढीए जाव नाइयरवेणं । २. वृत्तौ (पृष्ठ २६८) भिन्नः पाठो व्याख्या- ६.४१ सूत्रे उत्तरेणं पाठोस्ति तदनुसारेणात्राप्यसौ तोस्ति–ततः सूर्याभदेवो बलिपीठे बलिवि- युज्यते । जीवाजीवाभिगमे (३५५८) मर्जन करोति, कृत्वा चोत्तरपूर्वा नन्दापुष्क- प्यस्मिन्नेव प्रकरणे चासौ विद्यते । रिणीमनुप्रदक्षिणीकुर्वन् पूर्वतोरणेनानुप्रविशति ७. ४२ सूत्रे 'चत्तारि भद्दासणसाहस्सीओ' इति अनूप्रविश्य च हस्तौ पादौ प्रक्षालयति । पाठोस्ति । अत्र 'चउसु भद्दासणेसु निसीयंति' द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३।५५६ सूत्रम् । तत्र संभवतः सपरिवारवर्णने साहस्सीओ इति ३. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । पाठः कृतः। ४. वेमाणिय (क, ख, ग, घ, च, छ) । Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरियाभो स्सीओ दसहि भट्टासणसाहस्सीहि निसीयंति ॥ ६६२. तए ण तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरियाए परिसाए वारस देवसाहस्सीतो वारसहिं भद्दासणसाहस्सीहिं निसीयंति ॥ ६६३. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पच्चत्थिमेणं सत्त अणिया हिवइणो सत्तहिं भद्दासणेहिं णिसीयंति ।। ६६४. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चउद्दिसि सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ सोलसहि भद्दासणसाहस्सीहि णिसीयंति, तं जहा-पुरथिमिल्लेणं चत्तारि साहस्सीओ, दाहिणणं चत्तारि साहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं चत्तारि साहस्सीओ, उत्तरेणं चत्तारि साहस्सीओ, ते णं आयरक्खा सण्णद्ध-वद्ध-वम्मियकवया उत्पीलियसरासणपट्रिया पिणद्धगेविज्जा आविद्ध'-विमल-वरचिंधपट्टा गहिया उहपहरणा ति-णयाणि ति-संधीणि वयरामयकोडीणि धणूइं पगिज्झ परियाइय-कंडकलावा णीलपाणिणो पीतपाणिणो रत्तपाणिणो चावपाणिणो चारूपाणिणो चम्मपाणिणो दंडपाणिणो खग्गपाणिणो पासपाणिणो नील-पीय-रत्त चाव-चारु-चम्म-दंड-खग्ग-पासधरा' आयरक्खा रक्खोवगा गुत्ता गुत्तपालिया जुत्ता जुत्तपालिया पत्तेयं-पत्तेयं समयओ विणयओ 'किंकरभूया इव" चिट्ठति ॥ सुरियाभ-वण्णग-पद। ६६५. सूरियाभस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णता ? गोयमा ! चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ ६६६. सुरियाभस्स णं भंते ! देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगाणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णता। एमहिड्ढीए एमहज्जुईए एमहब्बले एमहायसे एमहासोक्खे एमहाणुभागे सूरियाभे देवे । 'अहो णं" भंते ! सरियाभे देवे महिड्ढीए' 'महज्जुईए महब्बले महायसे महासोक्खे महाणभागे। ६६७. सूरियाभेणं भंते ! देवेणं सा दिव्वा देविड्ढिी सा दिव्वा देवज्जुई से दिव्वे देवाणभागे-किण्णा' लद्धे ? किण्णा पत्ते ? किण्णा अभिसमण्णागए ? पुन्वभवे के आसी ? किंणाभए वा ? को वा गोत्तेणं ? कयरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणीए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आगरंसि वा आसमंसि वा संबाहंसि वा सण्णिवेसंसि वा? किं वा दच्चा ? किं वा भोच्चा? किंवा किच्चा? किं वा समायरित्ता? कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा 'माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म जण्णं सूरियाभेणं देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी' 'सा दिव्वा देवज्जुई से दिव्वे देवाणुभागे लद्ध पत्ते अभिसमण्णागए? १. बद्धआविद्ध (च, छ) । विहरति'। द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य २. पासवरधरा (क, ख, ग, ध, च)। ३।५६३ सूत्रम् । ३. "भूयाइ (च); भूयाई (छ) ।। ५. अम्हाणं (छ)। ४. अतोग्रे 'छ' प्रतौ 'एएहि चउहिं सामाणिय- ६.सं० पा०-महिड्ढीए जाव महाणुभागे। साहस्सीहिं जाव दिव्वाई'; वृत्तौ (पृष्ठ २७१) ७. किण्हा (च)। च-तेहिं च उहिं सामाणियसाहस्सीहि, इत्यादि ६. x (क, ख, ग, घ)। सुगम, यावत् 'दिव्वाई भोगभोगाइं भुंजमाणे १. सं० पा०-देविड्ढी जाव देवाणुभागे । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं केयइ-अद्ध-पदं ६६८. गोयमाति ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी-एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे केयइ'-अद्धे नाम जणवए होत्था-रिद्ध-स्थिमियसमिद्धे पासादीए 'दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ सेयविया-पदं ६६६. तत्थ णं केइय-अद्धे जणवए सेयविया णाम नगरी होत्था--रिद्ध-स्थिमियसमिद्धा जाव पडिरूवा ।। मिगवण-पदं ६७०. तीसे णं सेयवियाए नगरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभागे, एत्थ णं मिगवणे णामं उज्जाणे होत्था-रम्मे नंदणवणप्पगासे सव्वोउय-पुप्फ -फलसमिद्धे सुभसुरभिसीयलाए छायाए सव्वओ चेव समणुबद्धे पासादीए 'दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ।। पएसि-पदं ६७१. तत्थ णं सेयवियाए णगरीए पएसी णामं राया होत्था-महयाहिमवंत-महंतमलय-मंदर-महिंदसारे अच्चंतविसुद्ध-दीहरायकुल-वंससुप्पसूए णिरंतरं रायलक्खण-विराइयंगमंगे बहुजणबहुमाणपूइए सव्वगुणसमिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउसुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मणुस्सिदे जणवयपिया जणवयपाले जणवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्घे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न-विउल-भवण-सयणासण-जाण-वाहणाइण्णे बहुधणबहुजायरूवरयए आओगपओगसंपउत्ते विच्छड्डिय-पउरभत्तपाणे बहुदासी-दास-गो-महिसगवेलगप्पभूए पडिपुण्ण-जंत-कोस-कोट्ठागाराउधागारे वलवं दुब्वलपच्चामित्ते--ओहयकंटयं नियकंटयं मलियकंटयं उद्धियकंटयं अकंटयं ओहयसत्तुं नियसतुं मलियसत्तुं उद्धियसत्तुं १. केकइ (छ)। ५. ओ० सू० १। २. रिद्धि (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। ३. सं० पा०-पासादीए जाव पडिरूवे । ७. सं० पा०-पासादीए जाव पडिरूवे । ४. केयगइ (छ)। ८. सं० पा०...-महयाहिमवंत जाव विहरइ । १६२ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परसि-कहाणगं निज्जियसत्तुं पराइयसत्तुं ववगयदुब्भिवखं मारिभयविप्पमुक्कं खेमं सिवं सुभिक्खं पसंतडिवडमरं रज्जं पसासेमाणे विहरइ । अधम्मिए अधम्मिट्ठे अधम्मक्खाई अधम्माणुए अधम्मपलोई अधम्मपलज्जणे' अधम्मसीलसमुयाचारे अधम्मेण चैव वित्ति कप्पेमाणे हण-छिंद-भिंदपवत्तए' 'लोहियपाणी पावे चंडे रुद्दे खुद्दे" साहस्सीए उक्कंचण-वंचण - माया-नियडि-कडकवड-साइसंपओगबहुले' निस्सीले निव्वए निम्गुणे निम्मेरे निप्पच्चक्खाणपोसहोववासे, बहूणं दुप्पय-च उप्पय-मिय-पसु-पक्खि सरिसिवाणं घायाए वहाए उच्छायणयाए' अधम्मकेऊ समुट्टिए,' गुरूणं णो अब्भुट्ठेइ णो विषयं पउंजइ, 'समण- माहणाणं नो अब्भुट्ठेइ नो विणयं परंजइ", सयस्स वि य णं जणवयस्स णो सम्मं करभरवित्ति पवत्तेइ || सूरियकंता-पदं ६७२ . तस्स णं पएसिस्स रण्णो सूरियकंता नामं देवी होत्था-सुकुमालपाणिपाया' • अहीणपडिपुण्णपंचिदियसरीरा लक्खणवंजणगुणोववेया माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकारकंतपियदंसणा सुरूवा करयलपरिमियपसत्थतिवलीवलियमज्झा कुंडलुल्लि हियगंडलेहा कोमुइरयणियर विमलपडिपुण्णसोभवयणा सिंगारागार चारुवेसा संगय-गय- हसिय- भणिय - विहिय-विलास-सल लिय-संलाव-निउणजुत्तोवयारकुसला पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरुवा, पएसिणा रण्णा सद्धि अणुरत्ता अविरत्ता इट्ठे सद्द"•फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सर कामभोगे पच्चणुभवमाणी" विहरइ ॥ सूरियकंत-पदं ६७३. तस्स णं पएसिस्स रण्णो जेट्ठे पुत्ते सूरियकंताए देवीए अत्तए सूरियकंते नाम कुमारे होत्था – सुकुमालपाणिपाए" "अहीण डिपुण्णपंचिदियसरीरे लक्खणवंजणगुणोववेए माणुम्माणप माणप डिपुण्णसुजायसव्वंग सुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरू पडिवे It १. पज्जणे (क, ख, ग ) ; पज्जवमाणे (घ) ; 'पजणणे ( च, छ, वृ); वृत्ती 'अधम्मपजणणे' इति पाठो व्याख्यातोस्ति - अधमं प्रकर्षेण जनयति-- उत्पादयति लोकानामपीत्यधर्मप्रजनन:' । वृत्तिकारेण यादृश: पाठो लब्धस्तादृशो व्याख्यातः । किन्तु अन्यागमानां संदर्भेसी पाठो विचार्यते तदा 'अधम्मपलज्जणे' इति पाठ: संगतिमर्हति । सूत्रकृतांगे (२२) ५७) 'अधम्मपलज्जणा' इति पाठोस्ति । औपपातिके ( सू० १६१ ) 'धम्मपलज्जा' इति पाठोस्ति । अत्रापि 'अधम्मपलज्जणे' पाठ आसीत् । पाठसंशोधने प्रयुक्तादर्श त्रयेभ्योस्य पुष्टिर्जायते । तत्र पज्जणे' इति पाठो लभ्यते । अत्र लकारो लिपिदोषेण त्यक्तोस्ति । केषु - १६३ चिदादर्णेषु लिपिदोषेण वर्णविपर्ययो जातस्तेन 'अधम्मपजणणे' इति पाठः संवृत्तः । २. भिंदा० (क, ख, ग, ध, च, छ) । ३. चंडे रुद्दे खुद्दे लोहियपाणी (क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. x ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. संपओगे (क, ख, ग, च) 1 ६. उच्छृणयाउ (क, ख, ग, च, छ ) 1 ७. समट्टिओ (क, ख, ग, घ ) | ८. x ( क, ख, ग, घ, च, छ) 1 ६. सं०पा०-- सुकुमालपाणिपाया धारिणी वष्णओ । १०. सं० पा० –सद्द जाव विहरइ । ११. सं० पा०- - सुकुमालपाणिपाए जाव पडिरूवे । १२. सुकुमालपाणिपाए जाव सुन्दरे (वृ ) । Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ रायपसेणइयं ६७४. से णं सुरियकंते कुमारे जुवराया वि होत्था । पएसिस्स रणो रज्ज च रठं च बलं च वाहणं च 'कोसं च" कोट्ठारं च पुरं च अंतेउरं च' सयमेव पच्चुवेक्खमाणेपच्चुवेक्खमाणे विहरइ ।। चित्त-सारहि-पदं ६७५. तस्स णं पएसिस्स रण्णो जेठे भाउय-वयंसए चित्ते णाम सारही होत्था -- अड्डे 'दित्ते वित्ते विच्छिण्ण-विउल-भवण-सयणासण-जाण-वाहणाइण्णे बहुजणस्स अपरिभूए साम-दंड-भेय-उवप्पयाण-अत्थसत्थ-ईहामइविसारए, उप्पत्तियाए वेणतियाए कम्मयाए पारिणामियाए-- चउव्विहाए बुद्धीए उववेए, पएसिस्स रण्णो बहुसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य" 'रहस्सेसु य गुज्झेसु य सावत्यीरहस्सेसु य निच्छएसु य" ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे" मेढी पमाणं आहारे आलवणं चक्खू, मेढिभूए पमाणभूए आहारभूए आलंवणभूए चक्खुभूए, सव्वट्ठाण -सव्वभूमियासु लद्धपच्चए' विदिण्ण विचारे रज्जधुरार्चितए आवि होत्था ।।। कुणाला-पदं ६७६. तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला" नामंजणवए होत्था--रिद्ध-स्थिमियसमिद्धे" 'पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ।। सावत्थी-पदं ६७७. तत्थ णं कुणालाए जणवए सावत्थी नामं नयरी होत्था-रिद्ध-स्थिमियसमिद्धा जावर पडिरूवा ॥ कोठ्य-पदं ६८. तीसे णं सावत्थीए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए कोट्ठए नामं चेइए होत्था-पोराणे" जाव" पासादीए ।। जियसत्तु-पदं ६७६. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पएसिस्स रण्णो अंतेवासी जियसत्तू नाम राया होत्था-महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव" रज्ज पसासेमाणे विहरइ॥ पाहुड-उवणयण-पदं ६८०. तए णं से पएसी राया अण्णया कयाइ महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं सज्जावेइ, सज्जावेत्ता चित्तं सारहिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छ णं १. ४ (क, ख, ग, घ, च) । ६. लद्धओवलद्धपच्चए (छ)। २. कोट्ठागारं (छ)। १०. कुणाल (क,ख,ग,घ,च)। ३. च जणवयं च (क, ख, ग, घ, च, छ)। ११. सं० पा.---'समिद्धे । ४. सं० पा०–अड्ढे जाव बहुजणस्स । १२. ओ० सू०१। ५. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। १३. अत्र 'चिराइए' स्थाने 'पोराणे' पाठः प्रतीयते। ६. गुज्झसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य (३)। १४. ओ० सू० २-७ । ७. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। १५. राय० सू०६७१ । ८. सव्वट्ठा (क, ख, ग, घ, छ)। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं चित्ता ! तुमं सावत्थि नगरि जियसत्तस्स रण्णो इमं महत्थं महग्यं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेहि , जाई तत्थ रायकज्जाणि य रायकिच्चाणि य रायणीईओ य रायववहारा' य ताई जियसत्तुणा सद्धि सयमेव पच्चुवेक्खमाणे विहराहि त्ति कटु विसज्जिए॥ ६८१. तए णं से चित्ते सारही पएसिणा रण्णा एवं वृत्ते समाणे हट्ट' 'तुटू-चित्तमाणं. दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ°, पडिसुणेत्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं गेहइ, गेण्हित्ता पएसिस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्ख मइ, पडिणिक्खमित्ता सेयवियं नगरि मज्झमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिह पाहुड ठवेइ, ठवेत्ता कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो ! देवाणप्पिया! सच्छत्तं 'सज्झयं सघंट सपडागं सतोरणवरं सनंदिघोसं सखिखिणि-हेमजालपरिखित्तं हेमवय-चित्त-विचित्त-तिणिस-कणगणिज्जुत्तदारुयायं सुसंपिणद्धारकमंडलधुरागं कालायससुकयणेमिजतकम्म आइण्णवरतुरगसुसंपउत्तं कुसलणरच्छेयसारहिसुसंपरिग्गहियं सरसयबत्तीसतोणपरिमंडियं सकंकडावयंसगं सचाव-सर-पहरण-आवरण-भरियजोहजुज्झसज्ज° चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह', "उवट्ठवेना एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ६८२. तए णं ते कोडुवियपुरिसा तहेव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सच्छत्तं जाव जुद्धसज्ज चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेंति, उवट्ठवेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। ६८३. तए णं से चित्ते सारही कोडुबियपुरिसाणं अंतिए एयमझें 'सोच्चा निसम्म हतुटु-चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण° हियए हाए कयवलिकम्मे कयकोउय-मंगलपायच्छित्ते सण्णद्ध-बद्ध-वम्मियकवए उप्पीलिय-सरासणपट्टिए पिणद्धगेविज्जविमल"-वरचिंधपट्टे गहियाउहपहरणे तं महत्थं" "महन्धं महरिहं विउलं रायारिहं° पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहेति, दुरुहेत्ता बहुहिं पुरिसेहि सण्णद्ध वद्ध-वम्मियकवए उप्पीलियसरासणपट्टिए पिणद्धगे विज्जविमल-वरचिंध्रपट्टे गहियाउहपहरणे हिं सद्धि संपरिवुडे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरेज्जमाणेणं-धरेज्जमाणेणं महया भड-चडगर-रहपहकरविदपरिक्खित्ते" साओ गिहाओ णिग्गच्छइ, सेयवियं नगरि मझमझेणं णिग्गच्छइ, सुहेहिं १. सं० पा०–महत्थं जाव पाहुडं । २. अवणेहि (क,ख,ग,घ,च,छ) । ३. ववहारा (क,ख,ग,घ,च,छ) । ४. सं० पा०-~-हटु जाव पडिसुणेत्ता । ५. सं० पा०-महत्थं जाव पाहुडं । ६. सं० पा० .-महत्थं जाव पाहुडं । ७. सं० पा०-सच्छत्तं जाव चाउग्घंट। ८. सं० पा०-उवट्ठवेह जाव पच्चप्पिणह । ६. सं० पा०--एयम→ जाव हियए । १०. सनद्धगेविज्जबद्धआबद्धविमल (क, ख, ग, घ, च, छ)। ११. सं० पाo--महत्थं जाव पाहुई। १२. सं० पा०---सण्णद्ध जाव गहियाउहपहरणेहिं । १३. पंडुपरि० (क, ख, ग, च, छ)। Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइर्य वासेहिं पायरासेहिं नाइविकिठेहि अंतरा वासेहिं वसमाणे-वसमाणे केयइ-अद्धस्स' जणवयस्स मज्झमज्झेणं जेणेव कुणालाजणवए जेणेव सावत्थी नयरी तेणेव उवागच्छइ, सावत्थीए नयरीए मज्झमज्झेणं अणुपविसइ, जेणेव जियसत्तुस्स रण्णो गिहे जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, तुरए निगिण्हइ, रहं ठवेति, रहाओ पच्चोरुहइ, तं महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं गिण्हइ, जेणेव अभितरिया उवट्ठाणसाला जेणेव जियसत्तू राया तेणेव उवागच्छइ, जियसत्तू रायं करयलपरिग्गहियं' 'दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, तं महत्थं' 'महग्धं महरिहं विउल रायारिह° पाहुडं उवणेइ ।। ६८४. तए णं से जियसत्तू राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं° पाहुडं पडिच्छई', चित्तं सारहिं सक्कारेइ सम्माणेइ पडिविसज्जेइ, रायमग्गमोगाढंच से आवासं दलयइ ।। चित्तस्स आवास-पदं ६८५. तए णं से चित्ते सारही विसज्जिते समाणे जियसत्तुस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव 'चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, सावत्थि नगरि मज्झमझेणं जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ, तुरए निगिण्हइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, व्हाए कयवलिकम्मे कयकोउयमंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्याइं पवरपरिहिते अप्पमहग्घाभरणालं किए जिमियभुत्तत्तरागए विय णं समाणे पुत्वावरण्हकालसमयंसि गंधव्वेहि य णाडगेहि य उवनच्चिज्जमाणे उवगाइज्जमाणे उवलालिज्जमाणे इठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणे विहरइ ।। केसि-आगमण-पदं ६८६. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमार-समणे जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे वलसंपणे रूवसंपण्णे विणयसंपण्णे नाणसंपण्णे दसणसंपण्णे चरित्तसंपण्णे लज्जासंपण्णे लाघवसंपण्णे ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोहे जियणिद्दे जिति दिए जियपरीसहे जीवियासमरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे" गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निग्गहप्पहाणे निच्छयप्पहाणेर अज्जवप्पहाणे महवप्पहाणे लाघवप्पहाणे खंतिप्पहाणे गुत्तिप्पहाणे" मुत्तिप्पहाणे विज्जप्पहाणे मंतप्पहाणे बंभप्पहाणे १. अद्धाए (क, ख, ग, घ, च, छ) । २. मं० पा०--महत्थं जाव पाहुडं । ३. सं० पा०—करयलपरिग्गहियं जाव कटु । ४. सं० पाo-महत्थं जाव पाहुड । ५. सं० पा०.-महत्थं जाव पाहुडं । ६. पिच्छइ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७.X(क, ख, ग, घ, च, छ) । ८. चाउघंटं आसरह (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. वच्चंसि सोहागंसि' (छ)। १०. जस्संसि बायंसि (क, ख, ग, घ, च, छ) । ११. वयप्पहाणे (क, ख, ग, ध, च, छ)। १२. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। १३. x (क, ख, ग, घ, च) । Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं वेयप्पहाणे' नयप्पहाणे' नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे सोयप्पहाणे नाणप्पहाणे दंसणप्पहाणे चरित्तप्पहाणे ओराले 'घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छृढसरीरे संखित्तविपुलतेयलेस्से °च उदसपुवी चउणाणोवगए पंचहिं अणगारसएहिं सद्धि संपरिवड़े पुव्वाणपुवि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव सावत्थी नयरी जेणेव कोदए चेइए तेणेव उवागच्छइ, सावत्थीनयरीए वहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। चित्तस्स जिण्णासा-पदं ६६७. तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग-तिय-च उक्क-चच्चर-चउम्मुह-महायहपहेसु महया जणसद्दे इ वा जणवूहे इ वा 'जणवोले इ वा जगकलकले इ वा 'जणउम्मी इ वा" जणसणिवाए इ वा 'बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेई-एवं खलु देवाणुप्पिया! पासावच्चिज्जे केसी नामं कुमार-समणे जातिसंपण्णे' पुव्वाणुपुट्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमा गए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नगरीए वहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगि हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महत्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया! तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-नमसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! केसि कुमार-समणं वंदामो णमसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं पज्जुवासामो। एयं णे पेच्चभवे इहभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ ति कटु वहवे उग्गा उग्गयुत्ता भोगा भोगपुत्ता एवं दुपडोयारेणं-राइण्णा खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई लेच्छईपुत्ता, अण्णे य वहवे राईसरतलवर-माडंविय-कोडुविय-इब्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभितयो अप्पेगइया वंदणवत्तियं अप्पेगइया पूयणवत्तियं अप्पेगइया सकारवत्तियं अप्पेगइया सम्माणवत्तियं अप्पेगइया दंसणवत्तियं अप्पेगइया कोऊहलवत्तियं अप्पेगइया अस्सुयाइं सुणेस्सामो सुयाई निस्संकियाई करिस्सामो अप्पेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, अप्पेगइया गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जीयमेयंति कटु ग्रहाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगल-पायच्छित्ता सिरसा कंठमालकडा आविद्धमणिसुवण्णा कप्पियहारद्धहार-तिसर-पालंव१. x (क, ख, ग, घ, च)। पज्जुवासइ । २. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. राय० सू०६०६। ३. ४ (घ)। १०. अत्र औपपातिके ५२ सूत्रे ‘पंचाणव्वइयं सत्त४. सं० पा०--ओराले चउदसपुवी। सिक्खाव इयं दुवालसविहं गिहिधम्म' इति ५. जणसमूहे (छ)। पाठो विद्यते, किन्तु अर्थसमीक्षयास्माभिरत्र ६. ४ (क, ख, ग, घ)। 'गिहिधम्म' इत्येव पाठः स्वीकृतः । अर्थ७.४ (क, ख, ग, घ)। समीक्षार्थ द्रष्टव्यं ६६५ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६.सं० पा.--जणसण्णिवाए इ वा जाव परिसा Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ रायपसेणइयं पलंवमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहाभरणा पवरवत्यपरिहिया चंदणोलित्तगायसरीरा, अप्पगइया हयगया अप्पेगइया गयगया अप्पेगइया रहगया अप्पेगइया सिवियागया अप्पेगइया संदमाणियागया अपेमइया पायविहारचारेणं पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता महया उक्किट्टसीहणाय-वोल-कलकल रवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणा सावत्थीए णयरीए मज्झमज्झेणं णिग्गच्छंति, जिग्गच्छित्ता जेणेव कोट्टए चेइए जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता केसि-कुमार-समणस्स अदूरसामंते जाणवाहणाई ठवेंति, ठवेत्ता जाणवाहणेहिंतो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता केसिं कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति° ॥ ६८८. तए णं तस्स सारहिस्स तं महाजणसई च जणकलकलं च सुणेत्ता य पासेत्ता य इमेयारूवे अज्झथिए' 'चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था-किं गं अज्ज' सावत्थीए णयरीए इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा रुद्दमहे इ वा मउंदमहे इ वा 'सिवमहे इ वा वेसमणमहे इ वा" नागमहे इ वा 'जक्खमहे इ वा भूयमहे इ वा" थूभमहे इ वा चेइयमहे इ वा रुक्खमहे इ वा गिरिमहे इ वा दरिमहे इ वा अगडमहे इ वा 'नईमहे इ वा" सरमहे इवा सागरमहे इवा? जंणं इमे वहवे उग्गा उग्गपत्ता भोगा राइण्णा इक्खागा णाया कोरव्वा "खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई मल्ल इपुत्ता लेच्छई लेच्छइपुत्ता इन्भा इब्भपुत्ता, अण्णे य बहवे राईसर-तलवर-माउंविय-कोडंविय-इब्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभितयो व्हाया कयवलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सिरसा कंठमालकडा आविद्वमणिसुवण्णा कप्पियहार-अद्धहार-तिसर-पालंव-पलंवमाण-कडिसुत्तय-कयसोहाहरणा चंदणोलित्तगायसरीरा पुरिसवग्गुरापरिखित्ता महया उक्किट्ट-सीहणाय-वोल-कलकलरवेणं' "समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा अंवरतलं पिव फोडेमाणा एगदिसाए एगाभिमुहा अप्पेगतिया हयगया अप्पेगतिया गयगया" अप्पेगतिया रहगया अप्पेगतिया सिवियागया अप्पेगतिया संदमाणियागया अप्पेगतिया° पायविहारचारेणं महया-महया वंदावंदएहिं निग्गच्छति । एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता १.सं० पा०–अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था। २. अज्ज जाव (क,च)। ३. x (क,ख,ग,घ,च)। ४. भूयमहे इ वा जक्खमहे इ वा (क, ख, ग, घ, च, छ)। ५. X (च)। ६. x (क,ख,ग,घ,च,छ)। ७. भोगादिभिः सर्वः सह पुत्तरूपस्य विकल्पा बोद्धन्याः। ८.सं० पा०-कोरव्वा जाव इन्भा ! ६.सं० पा०–कलकलरवेणं..."एगदिसाए जहा उववाइए जाव अप्पेगतिया। रायपसेणइयवृत्तौ समग्रः पाठो व्याख्यातोस्ति । तत्र औपपातिकस्य समर्पणसूचना नास्ति । आदर्शषु सा किमर्थ कृतेति न ज्ञायते । औपपातिकस्य वृत्त्यनुसारिपाठे 'अंबरतलपिव' इत्यादि नास्ति, वाचनान्तरे तत् समुपलभ्यते । द्रष्टव्यं औपपातिकस्य ५२ सूत्रस्य वाचनान्तरम् । १०. सं० पा०-अप्पेगतिया गयगया जाव पायवि हारचारेणं । Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं कंचुइ-पुरिसं सद्दावेइ, सद्दावेता एवं वयासी---'कि णं" देवाणु प्पिया! अज्ज सावत्थीए नगरीए इंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वा ? 'जणं" इमे बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा [जाव ?] णिग्गच्छति ।। कंचुइपुरिसस्स निवेदण-पदं ६८६. तए णं से कंचइ-पुरिसे केसिस्स कुमारसमणस्स आगमण-गहिय-विणिच्छए चित्तं सारहिं करयलपरिगहियं 'दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ°, वडावेत्ता एवं क्यासी--णो खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज सावत्थीए णयरीए इंदमहे इ वा जाव' सागरमहे इ वा । जं णं इमे वहवे उग्गा उग्गपुत्ता जाव' वंदावंदरहिं निगच्छंति । एवं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमार-समणे जातिसंपण्णे जाव' गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए' 'इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए णगरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तेणं अज्ज सावत्थीए नयरीए वहवे उग्गा जाव इब्भा इन्भपुत्ता अप्पेगतिया वंदणवत्तियाए 'अप्पेगइया पूयणवत्तियाए अप्पेगइया सक्कारवत्तियाए अप्पेगइया सम्माणवत्तियाए अप्पेगइया सणवत्तियाए अप्पेगइया कोऊहलवत्तियाए अप्पेगइया अस्सयाई सणेस्सामो सयाई निस्संकियाई करिस्सामो, अप्पेगइया मंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, अप्पेगइया गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जीयमेयंति कटु व्हाया कयबलिकम्मा कय-को उय-मंगल-पायच्छिता सिरसा कंठेमाल कडा आविद्धमणि-सुवण्णा कप्पियहारद्धहार-तिसरपवर-पालंव-पलंबमाण-कडिसुत्त-सुकय-सोहाभरणा पवरवत्थ-परिहिया चंदणोलित्तगायसरीरा अप्पेगइया हयगया अप्पेगइया गयगया अप्पेगइया रहगया अप्पेगइया सिवियागया अप्पेगइया संदमाणियागया अप्पेगइया पायविहारचारेणं' महया-महया वंदावंदएहि णिग्गच्छति ॥ चित्तस्स केसि-समीवे गमण-पदं ६६०. तए णं से चित्ते सारही कंचुइ-पुरिसस्स अंतिए एयम→ सोच्चा निसम्म हट्टतुटु'"- चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिस-वस-विसप्पमाण-हियए कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! चाउग्घंट" आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह, 'उवट्ठवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ६६१. तए णं ते कोथुवियपुरिसा तहेव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सच्छत्तं जाव जुद्धसज्जं १. किण्हं (क,घ,च,छ)। ६. राय० सू० ६८६ ।। २. जाव (क, ख, ग, घ, च,छ); अत्र भोगा इत्य- ७. सं० पा०—इहमागए जाव विहरइ । स्यानन्तरं जाव शब्दो युज्यते, किन्तु लिपि- ८. सं० पा०-वंदणवत्तियाए जाव महया। दोषात 'जं णं' इत्यस्य स्थाने लिखित: १. द्रष्टव्यं ६८५ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । प्रतीयते । १०. मं० पा०-हट्टतुटु जाव हियए। ३. सं० पा० करयलपरिग्गहियं जाव वद्धा- ११. चाउघंट (क, ख, ग, घ, च, छ) । द्रष्टव्यं वेत्ता। ६८१ सूत्रम् । ४,५. राय० सू०६८८ । १२. सं. पा.-उववेह जाव सच्छत्तं उवति । Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेगाइयं चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेंति, उवद्ववेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। ६६२. तए णं से चित्ते सारही हाए कयवलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिते अप्पमहग्घाभरणालं कियसरीरे जेणेव चाउघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ', दुरुहित्ता सकोरेंटमल्लदामेण' छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भड-चडगर-वंदपरिखित्ते सावत्थीणगरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोटुए चेइए जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसि-कुमार-समणस्स अदूरसामते तुरए णिगिण्हइ, रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसि कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता णच्चासण्णे णातिदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे पंजलि उडे विणएणं पज्जुवासइ।। धम्मदेसणा-पदं ६६३. तए णं से केसी कुमार-समणे चित्तस्स सारहिस्स तीसे महतिमहालियाए मदच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्म कहेड, तं जहा-सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहातो वेरमणं ॥ ६९४. तए णं सा महतिमहालिया महच्चपरिसा केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसि पडिगया ।। चित्तस्स गिहिधम्म-पडिवज्जण-पदं । ६९५. तए णं से चित्ते सारही केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ट"तुटु-चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण हियए उठाए उठेइ, उठेत्ता केसि कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सद्दहामि णं भंते ! निगंथ पावयणं । पत्तियामि णं भंते ! निग्गथं पावयणं । रोएमि णं भंते ! निग्गथं पावयणं । अब्भुट्टेमि गं भंते ! निम्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! 'तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! जं णं तुभे वदह' त्ति कटु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए वहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा जाव इब्भा इन्भपुत्ता चिच्चा हिरण्णं", एवं–धणं धन्नं बलं वाहणं १. रूह (क, ख, ग, घ, च)। निग्गथं' इति पाठः समायातः। भगवतः २. कोरेंट (क, ख, ग, घ, च, छ); द्रष्टव्यं पार्श्वस्य शासने श्रिमण' पदस्य अर्हत्' पदस्य ६८३ सूत्रस्य पाठः। वा प्रयोगः समुपलभ्यते । ३. चडगरेणं (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. एवमेयं भंते २ अवितहमेयं भंते सच्चेणं एस ४. सं० पा०-हट्ट जाव हियए । अछे जण्णं तुब्भे वयह (क,ख,ग, घ,च,छ) । ५. निग्गंथाणं (क, ख, ग, घ, च, छ) 1 अस्य ७. औपपातिके २३ सूत्रे अतोने चिच्चा सुवर्ण' पाठस्य औपपातिकानुसारित्वमस्ति, तेन पाठो लभ्यते । Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परसि-कहाण कोसं कोट्ठागारं पुरं अंतेउरं, चिच्चा विउलं धण-कणगरयण-मणि-मोत्तिय संख-सिलप्पवाल संतसारसावएज्जं विच्छह्नित्ता विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, मुंडा भवित्ता गं अगाराओ अणगारियं पव्वयंति, णो खलु अहं तहा संचाएमि चिच्चा हिरण', • एवं -- धणं धन्नं वलं वाहणं कोसं कोट्ठागारं पुरं अंतेउरं, चिच्चा विउलं धण - कणग-रयणमणि - मोत्तिय संख - सिल प्पवाल- संतसारसावएज्जं, विच्छड्डित्ता विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पवइत्तए, अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए 'चाज्जामियं गिहिधम्मं" पडिवज्जिस्सामि । अहासुहं देवाप्पिया ! मा पडिबंध करेहि || ६६६. तए गं से चित्ते सारही केसिस्स कुमार - समणस्स अंतिए 'चाउज्जामियं गिहिधम्मं " उवसंपज्जित्ताणं विहरति ॥ ६६७. तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव पहारेत्थ गमगाए, चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए || समणोवासय-वण्णग-पदं ६८. तणं से चित्ते सारही समणोवासए जाए' - अहिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे आसव-संवर-निज्जर-किरियाहिगरण बंधप्पमोक्खकुसले असहिज्जे' देवासुर-णागसुवण जक्ख- रक्खस किण्णर- किंपुरिस गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहि देवगणेहि निरथाओ पावणाओ अणइक्कमणिज्जे, निग्गंथे पावयणे णिस्संकिए णिक्कखिए णिव्वितिगिच्छे लट्ठे गहियट्ठे अभिगयट्ठे पुच्छियट्ठे विणिच्छियट्ठे अट्ठमिजपेमाणुरागत्ते अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अट्ठे परमट्ठे सेसे अणट्ठे 'ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउरघरप्पवेसे चाउदसमुद्दिट्ठपुष्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणे "", १. दाइयं ( क, ख, ग, घ, च ) । २. सं० पा० - हिरण्णं तं चैव जाव पव्वइत्तए । ३. पंचावश्यं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिम्मिं (क, ख, ग, घ, च, छ ) ; ६६३ सूत्रे केशिस्वामिना चित्तसारथये चातुर्यामिको धर्मः कथितः, तदानीं चित्तसारथिना द्वादशविधो गृहिधर्मः कथं स्वीकृत: ? प्रस्तुतपाठः औपपातिकसूत्रेण पूरितः । तत्र पंचाणुव्वइयं सतसिखावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं' इति पाठः आसीत् स एवात्र अनुकृतः, किन्तु अर्थसमीक्षयात्र 'चाउज्जामियं गिहिधम्मं' इति पाठी युज्यते । १७१ ४. पडिवज्जितए (क, ख, ग, घ, च, छ) । एतत् पाठस्य स्वीकारे 'अहं णं देवाणुपियाणं अंतिए' इति वाक्ये किमपि क्रियापदं न स्यात् तथा 'च' उवास गदसाओ' (११२३) सूत्र एतत्तुल्यवाक्ये 'पडिवज्जिस्सामि' पाठो विद्यते । तेनात्रापि स एव पाठो युज्यते । ५. करेसी (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. द्रष्टव्यं पूर्वसूत्रस्य पादटिप्पणम् । ७. जाव (क, ख, ग, घ, च) । अशुद्धं प्रतिभाति । ८. असहिज्ज ( ख, ग, घ, च ) । ६. x ( क, ख, ग, घ, च, छ ) 1 १०. अयमट्ठे ( क, ख, ग, घ, च, छ ) । ११. चा उद्दसमुद्दिषुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमा ऊसियफलिहे अवगुयदुवारे चियत्तंतेउरपरघरप्पवेसे (क, ख, ग, घ,च, छ) । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ रायपसेणइयं समणे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पीढ- फलग - सेज्जा- संथारेणं वत्थपडिग्गह- कंवल-पायपुंछणेणं ओसह - भेसज्जेण य पडिला भेमाणे - पडिलाभेमाणे, 'वहूहि सीलव्वय-गुण- वेरमण-पच्चवखाण-पोसहोववा से हिं" अप्पाणं भावेमाणे जाई तत्थ रायकज्जाणि य' •रायकिच्चाणि य रायणीईओ य° रायववहाराणि य ताइं जियसत्तुणा रण्णा सद्धि सयमेव पच्चुवेक्खमाणे- पच्चुवेक्खमाणे विहरइ || जियसत्तुना पाहुडपे सण-पदं ६६. तए णं से जियसत्तुराया अण्णया कयाइ महत्थं महग्घं महरिहं विउलं यारिहं पाहुडं सज्जे, सज्जेत्ता चित्तं सारहि सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - गच्छाहि णं तुमं चित्ता ! सेयवियं नगरं पएसिस्स रण्णो इमं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं यार पाहु वहि, मम पाउग्गं च गं जहा भणियं अवितमसंदिद्धं वयणं विष्णवे हि त्ति कट्टु विसज्जिए || चित्तस्स निवेयण-पदं ७००. तए णं से चित्ते सारही जियसत्तुणा रण्णा विसज्जिए समाणे तं महत्थं • महग्घं महरिहं विउ रायारिह' पाहुडं 'गिव्हइ, गिण्हित्ता" जियसत्तुस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सावत्थीणयरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ, तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं ठवेइ, पहाए कवलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छिते सुद्धप्पावेसाई मंगललाई वत्थाई पवर परिहिते अप्पमहग्घाभरणालं कियसरीरे सकोरेंटमल्लदा मेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेण महया पायविहारचारेण महया पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ते रायमग्गमोगाढाओ आवासाओ निग्गच्छइ, सावत्थीणगरीए मज्झमज्झेणं निगच्छति, जेणेव कोट्टए चेइए जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छति, केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्मं सोच्चा" "निसम्म हट्टतुटु-चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता केसि कुमार-समणं तिखत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता' एवं वयासी एवं खलु १. अहापरिग्गहेहि तवोकम्मेहि (बृ); बहूहि सीलव्वय-गुण - वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि (वृपा ) | २. सं० पा० रायकज्जाणि य जाव रायववहाराणि । ३. सं० पा० – महत्यं जाव पाहुडं । ४. नगरं ( च, छ) 1 ५. सं० पा० -- महत्थं जाव पाहुडं । ६. मं० पा० .. महत्थं नाव पाहुडं । ७. गिन्हइ जाव (क, ख, ग, घ, च, छ); अन 'जाव' शब्द: अनावश्यकः प्रतिभाति । ६८१ सूत्रेण तुलनायां कृतायां 'जाव' शब्दस्य स्थाने 'गिहिता' पाठो युज्यते । ८. सं० पा० - महत्थं जाव पाहुडं । ६. सं० पा०-हाए जाव सरीरे सकोरेंट महया । १०. पायचारविहारेण ( क, ख, ग, घ, छ ) : प्रस्तुतागमस्य ६८८ सूत्रे तथा औपपातिकस्थ ५२ सूत्रे तथा 'च' प्रती 'पायविहारचारेणं' पाठोस्ति, तेन स एव मूले स्वीकृतः । ११. सं० पा० – सोच्चा जाव हट्ठ उट्ठाए जाव एवं । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १७३ अहं भंते ! जियसत्तणा रण्णा पएसिस्स रण्णो इमं महत्थं •महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं° पाहुडं उवणेहि त्ति कट्ट विसज्जिए। तं गच्छामि णं अहं भंते ! सेयवियं नगरि । पासादीया णं भंते ! सेयविया नगरी । दरिसणिज्जा' णं भंते ! सेयक्यिा णगरी । अभिरूवा णं भंते ! सेयविया नगरी । पडिरूवा णं भंते ! सेयविया नगरी। समोसरह णं भंते ! तुब्भे सेय वियं नगरिं ॥ ७०१. तए णं से केसी कुमार-समणे चित्तेणं सारहिणा एवं वृत्ते समाणे चित्तस्स सारहिस्स एयमझें णो आढाइ पो परिजाणाइ तुसिणीए संचिट्ठइ।।। ७०२. तए णं चित्ते सारही केसि कुमार-समणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासीएवं खलु अहं भंते ! जियसत्तुणा रण्णा पएसिस्स रणो इमं महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेहि त्ति कट्ट विसज्जिए । तं गच्छामि णं अहं भंते ! सेय वियं नरि। पासादीया णं भते ! सेयविया गरी। दरिसणिज्जा णं भंते ! सेयविया णगरी। अभिरूवा णं भंते ! सेयविया नगरी। पडिरूवा णं भंते ! सेयविया नगरी° । समोसरह णं भंते ! तुब्भे सेयवियं नगरि ।। केसिस्स पडिवयण-पदं ७०३. तए णं केसी कुमार-समणे चित्तेणं सारहिण दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे चित्तं सारहिं एवं वयासी-चित्ता से जहाणामए वणसंडे सिया--किण्हे किण्होभासे 'नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे णिद्धे णिद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीअच्छाए णिद्धे णिद्धच्छाए तिब्वे तिव्वच्छाए घणकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंवभूए जाव' पडिरूवे । से गूणं चित्ता ! से वणसंडे बहूणं दुपय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खी-सिरीसिवाणं अभिगमणिज्जे ? हंता अभिगमणिज्जे। तंसि च णं चित्ता ! वणसंडंसि वहवे भिलुगा नाम पावसउणा" परिवति । जे णं तेसिं वहूणं दुपय-च उप्पय-मिय-पसु-पक्खी-सिरीसिवाणं ठियाण चेव मंससोणियं आहारेति । से पूणं चित्ता ! से वणसंडे तेसि णं वहणं दुपय - चउप्पय-मिय--पसु-पक्खी -सिरीसिवाणं अभिगमणिज्जे ? णो ति, कम्हा ण ? भंते ! सोवसग्गे, एवमेव चित्ता ! तुभं पि सेयवियाए णयरीए पएसी नाम राया परिवसइ-- अहम्मिए जाव' णो सम्म करभरवित्ति पवत्तेइ । तं कहं णं अहं चित्ता ! सेयवियाए नगरीए समोसरिस्सामि ? पुणो निवेयण-अब्भुवगमण-पदं ७०४. तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं एवं वयासी-किं णं भंते ! तब्भं पएसिणा रण्णा कायव्वं ? अत्थि णं भंते ! सेयवियाए नगरीए अण्णे वहवे ईसर-तलवर१.X (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. ओ० सू० ५-७ 1 २. सं० पा०--महत्थं जाव पाहुडं । ७. पावसमणा (क); पासवणा (च, छ)। ३. एवं दरिसणिज्जा (क, ख, ग, घ, छ)। ८. संपा०-दुपय जाब सिरीसिवाणं । ४. सं० पा०--महत्थं जाव विसज्जिए। चेव ६. राय० सू० ६७१।। जाव समोसरह । १०. सं० पा०-ईसर-तलवर जाव सत्थवाह । ५. सं० पा०-किण्होभासे जाव पडिरूवे। Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ रायपसेणइयं • माविय कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि सेणावइ' सत्थवाहपभितयो, जेणं देवाणुप्पियं वं दिस्संति नमसिस्संति' सक्कारिस्संति सम्माणिस्संति कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं' पज्जुवासिस्संति, विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभिस्संति, पाडिहारिएण पीढ-फलग-सेज्जासंथारेण उवणिमं तिस्संति' ॥ ७०५. तए गं से केसी कुमार-समणे चित्तं सारहि एवं व्यासी - अवि याई चित्ता ! समोसरिस्सामो' || उज्जाणपाल - निद्देसण-पदं ७०६. तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं वंदइ नमसइ, केसिस्स कुमारसमणस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, जेणेव सावत्थी नगरी जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुवियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवागुप्पिया ! चाउरघंट आसरहं जुत्तामेव उवटुवेह | जहा सेयवियाए नगरीए निगच्छइ, तहेव जाव' अंतरा वासेहिं वसमाणे वसमाणे कुणाला - जणवयस्स मज्झमज्झेणं जेणेव केकय'- अद्धे जणवए जेणेव सेयविया नगरी जेणेव मियवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उज्जाणपालए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीजाणं देवाप्पिया ! पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमार-समणे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागच्छिज्जा तया णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! केसि कुमार-समणं वंदिज्जाह् नमंसिज्जाह, वंदित्ता नमसित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं अणुजाणेज्जाह", पाडिहारिएणं पीढ-फलग'- सेज्जा- संथारेण उवणिमंतिज्जाह, एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चपिणे जाह ॥ ७०७. तए णं ते उज्जाणपालगा चित्तेणं सारहिणा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठ - "चित्तमाणदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस - विसप्पमाण हियया करयलपरिग्गहियं " • दसहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वृद्धावेत्ता एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुर्णेति । पाहुड उवणयण-पदं ७०८. तए णं चित्ते सारही जेणेव सेयविया णगरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेयवियं नगर मज्झं मज्झेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव पएसिस्स रण्णो गिहे जेणेव वाहिरिया उवद्वाणसाला तेणेव उवागच्छइ, तुरए णिगिण्हइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, तं महत्थं" "महग्धं महरिहं विजलं रायारिहं पाहुडं° गेण्हइ, जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छइ, पएसि रायं करयल" परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु १. सं० पा० – नर्मसिस्संति जाव पज्जुवासिस्संति । ७. अणुजाणेत्ता (क, ख, ग, घ, च, छ) । २. निमेहति (बु) । ८. सं० पा० - पीढफलग जाव उवणिमंतिज्जाह । ६. सं० पा० - हट्ठतुट्ठ जाव हियया । १०. सं० पा०--- करयलपरिग्गहियं जाव एवं ११. सं० पा० - महत्थं जाव गेण्हइ । १२. सं० पा०-- करयल जाव बढावेत्ता | ३. जाणिस्साम (बु) ; समोसरिस्सामो ( वृपा ) | ४. राय० सू० ६८२, ६८३ । ५. कुणाल ( क, ख, ग, घ, च, छ ) 1 उ.रा.प.च. छ ( | Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १७५ जएणं विजएणं वद्धावेइ°, वद्धावेसा तं महत्थं 'महन्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं' उवणेई॥ ७०६. तए णं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहडं पडिच्छइ, चित्तं सारहिं सक्कारेइ, सम्माणेइ, पडिविसज्जे॥ ७१०. तए णं से चित्ते सारही पएसिणा रणा विसज्जिए समाणे हट्ठ' 'तुदृचित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए पएसिस्स रण्णो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, जेणेव चाउग्धंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घंटे आसरहं दुरुहइ, सेयवियं नगरि मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, तुरए णिगिण्हइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, पहाए' 'कयवलिकम्मे° उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थाएहिं बत्तीसइवद्धएहिं नाडएहिं वरतरुणी-संप उत्तेहिं 'उवणच्चिज्जमाणे उवगाइज्जमाणे" उवलालिज्जमाणे इठे सद्द-फरिस - रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणे° विहरइ । केसिस्स सेयविया-आगमण-पदं ७११. तए णं से केसी कुमार-समणे अण्णया कयाइ पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जासंथारगं पच्चप्पिणइ, सावत्थीओ नगरीओ कोट्ठगाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पंचहिं अणगारसएहि सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं° विहरमाणे जेणेव केयइ-अद्धे जणवए जेणेव सेयविया नगरी जेणेव मियवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति ।। ७१२. तए णं सेयवियाए नगरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु महया जण सद्दे इ वा जणवूहे इ वा जणवोले इ वा जणकलकले इ वा जणउम्मी इ वा जणसण्णिवाए इ वा जाव परिसा णिग्गच्छइ ।। उज्जाणपालगाणं चित्तस्स निवेदण-पदं ७१३. तए णं ते उज्जाणपालगा इमीसे कहाए लट्ठा समाणा हट्ठतुट्ठ- चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण हियया जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छंति, केसि कुमार-समणं वंदंति नमसंति, अहापडिरूवं ओग्गहं अणुजाणंति, पाडिहारिएणं पीढ-फलग-सेज्जा संथारएणं उवनिमंतंति, णामं गोयं पुच्छंति ओधारेंति", १. सं० पा......महत्थं जाव उवणेइ । ८. सं० पा०-अणगारसएहिं जाव विहरमाणे। २. उवणमेइ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. सं० पा०—सिंघाडग महया जणसद्देइ वा ३. सं० पा०—महत्थं जाव पडिच्छ । परिसा। ४. सं० पा०-हट्ट जाव हियए। १०. राय० सू० ६८७ ५. सं० पा०--हाए जाव उपि । ११. सं० पा०-हट्टतुटु जाव हियया । ६. उवणच्चिज्जमाणे २ उवगेयमाणे २ (क, ख, १२. सं० पा०—पाडिहारिएणं जाव संथारएणं । __ ग, घ, 'च)। १३. आधारेंति (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. सं० पा०--फरिस जाव विहरइ । Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं एगंतं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता अण्णमण्णं एवं वयासी-जस्स णं देवाणु प्पिया ! चित्ते सारही दंसणं कंखइ सणं पत्थेइ दसणं पीहेइ दसणं अभिलसइ, जस्स णं णामगोयस्स वि सवणयाए हट्टतुटु'- चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमण स्सिए हरिसवस-विसप्पमाण हियए भवति, से णं एस केसी कुमार-समणे पुव्वाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सेयवियाए णगरीए वहिया मियवणे उज्जाणे अहापडिरूव' •ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अपाणं भावेमाणे° विहरइ तं' गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! चित्तस्स सारहिस्स एयमनॊ पियं निवेएमो पियं से भवउ, अण्ण मण्णस्स अंतिए एयमट्ठ पडिसुणेति जेणेव सेयविया णगरी जेणेव चित्तस्स सारहिस्स गिहे जेणेव चित्ते सारही तेणेव उवागच्छंति, चित्तं सारहि करयल 'परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटट जएणं विजएणं वद्धाति, वद्धावेत्ता एवं वयासी-जस्स णं देवाणु प्पिया ! दंसणं कंखंति' 'दंसणं पत्थेति दसणं पीहेति सणं अभिलसंति, जस्स णं णामगोयस्स वि सवणयाए हटू" "तुटु-चित्तमाणं दिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया भवह, से णं अयं पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमार-समणे पुव्वाणुपुचि चरमाणे *गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सेयवियाए णगरीए बहिया मियवणे उज्जाणे अहापडिरूवं ओम्यहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे° विहरई॥ चित्तस्स केसि-पज्जुवासणा-पदं ७१४. तए णं से चित्ते सारही तेसिं उज्जाणपालगाणं अंतिए एयम→ सोच्चा णिसम्म हदतु - चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए विगसियवरकमलणयणे पयलिय-वरकडग-तुडिय-केऊर-मउड-कुंडल-हार-विरायंत रइयवच्छे पालंबपलंबमाण-घोलंत-भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं सारही आसणाओ अब्भुठेति, पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पाउयाओ ओमुयइ, एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, अंजलि-मउलियम्गहत्थे" केसि-कुमार-समणाभिमुहे सत्तट्ठ प्याई अणुगच्छइ, करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं क्यासी--'नमोत्थु णं अरहताणं जाव" सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमोत्थु णं केसिस्स कुमार-समणस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स। वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासइ" मे भगवं तत्थगए इहगयं ति कटु वंदइ नमंसइ, ते उज्जाणपालए विउलेणं वत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, विउलं १. पेच्छइ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६.सं० पा०—चरमाणे समोसढे जाव विहरइ । २.९० पा०-हट्टतुट्ट जाव हियए। १०. सं० पा०-हट्टतुट्ठ जाव आसणाओ। ३. सं० पा०-अहापडिरूवं जाव विहरइ। ११. मउलियहत्थे (क, ख, ग, घ, च)। ४. ता (क, घ, च, छ); तो (ख, ग) । १२. राय० सू० ८। ५. गेहे (क, छ)। १३.४ (क) ६. सं० पा०-करयल जाव वद्धाति । १४. पासउ (क, ख, ग, घ, च, छ); अष्टमे सूत्रे ७. मं० पा०--कखंति जाव अभिलसंति। वृत्तिमनुसृत्य 'पासइ' पाठः स्वीकृतः तथैव ६. सं० पाo-हट्ट जाव भवह । अत्रापि । Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि कहाणगं १७७ जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ, कोडंबियपूरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो! देवाणुप्पिया! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह', 'उवद्ववेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। ७१५. तए णं ते कोडुवियपुरिसा' तहेव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सच्छत्तं सज्झयं जाव उवट्ठवेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। ७१६. तए णं से चित्ते सारही कोडंबियपुरिसाणं अंतिए एयमढें सोच्चा निसम्म हतु- चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवरपरिहिते अप्पमहग्याभरणालं कियसरीरे जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भडचडगर-वंदपरिखित्ते सेयवियाणगरीए मझमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव मियवणे उज्जाणे जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसिकुमार-समणस्स अदरसामंते तुरए णिगिण्हइ, रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता जेणव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसि कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता णच्चासण्णे णातिदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणएणं पज्जुवासई॥ चाउज्जाम-धम्मवेसणा-पदं ७१७. तए णं से केसी कुमार-समणे चित्तस्स सारहिस्स तीसे महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं कहेइ, तं जहा-सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं । तए णं सा महतिमहालिया महच्चपरिसा के सिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया ॥ चित्तस्स निवेदण-पदं ७१८. तए णं से चित्ते सारही केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुटु - चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उदाए उठेइ, उठेत्ता केसि कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु भंते ! अम्हं पएसी राया अधम्मिए जाव' सयस्स वि जणवयस्स नो सम्मं करभरवित्ति" पवत्तेइ, तं जइ णं १. द्रष्टव्यं ६८१ सूत्रम् । चडगरेणं तं चेव जाव पज्जुवासइ । धम्मकहाए २. सं० पा०-उवट्ठवेह जाव पच्चप्पिणह । जाव तए णं। ३. सं० पा०-कोडवियपूरिसा जाब खिप्पामेव । ७. आरुहिता (क): रुद्वित्ता ( ख ग. ४. राय० सू० ६५२। ८. सं० पा०--हट्टतुटु तेहव एवं। ५.सं० पा०-हट्टतुटु जाव हियए। ६. राय० सू० ६७१। ६. सं. पा०—कयबलिकम्मे जाव सरीरे जेणेव १०. करभरपवृत्ति (क); पवित्ति (ख, ग, घ, चाउग्घंटे जाव दुरुहित्ता सकोरेंट महया भह च, छ)। Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ रायपसेणइयं देवाणप्पिया ! पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खेज्जा । बहुगुणतरं खलु होज्जा पएसिस्स रण्णो, तेसिं च बहणं दुपय-च उप्पय-मिय-पसु-पक्खी-सिरीसवाणं, तेसिं च बहूणं समण-माहणभिक्खुयाणं, तं जइ णं देवाणुप्पिया ! पएसिस्स रणो धम्ममाइक्खेज्जा बहुगुणतरं होज्जा सयस्स वि य णं जणवयस्स ।। केसिस्स पडिययण-पदं ७१६. तए णं केसी कुमार-समणे चित्तं सारहिं एवं वयासी-एवं खलु चउहिं ठाणेहिं चित्ता ! जीवे' केवलिपण्णत्तं धम्म नो लभेज्ज सवणयाए, तं जहाआरामगयं वा उज्जाण गयं वा समणं वा माहणं वा णो अभिगच्छइ णो वंदइ णो णमंसइ णो सक्कारेइ णो सम्माणेइ णो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, नो अट्राई हेऊई पसिणाइं कारणाई वागरणाई पुच्छइ । एएण वि ठाणेणं चित्ता! जीवे' केवलिपण्णत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए। उवस्सयगयं समणं वा' 'माहणं वा णो अभिगच्छइ णो वंदइ णो णमंसइ णो सक्कारेड णो सम्माणेइ णो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, नो अट्ठाई हेऊइं पसिणाई कारणाई वागरणाई पुच्छइ° । एएण वि ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्म नो लभइ सवणयाए। गोयरग्गगय" समणं वा माहणं वा •णो अभिगच्छइ णो वंदइ णो णमंसह जो सक्कारेइ णो सम्माणेइ णो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ णो विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेइ, नो अट्ठाई 'हेऊइं पसिणाइं कारणाई वागरणाइं° पूच्छइ । एएण वि ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए । जत्थ वि य" णं समणेण वा माहणेण वा सद्धि अभिसमागच्छइ तत्थ 'वि य" णं हत्थेण वा वत्थेण वा छत्तेण वा अप्पाणं आवरित्ता चिट्ठइ, नो अट्टाई 'हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाई° पुच्छइ । एएण वि ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्म नो लभइ सवणयाए। एएहि च णं चित्ता ! चरहिं ठाणेहिं जीवे केवलिपण्णत्तं धम्म लभइ सवणयाए, तं जहाआरामगयं वा उज्जाणगयं वा समणं वा माहणं वा अभिगच्छइ वंदइ नमसइ 'सक्कारेड सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, अट्ठाइं" 'हेऊई पसिणाई कारणाई १. जीवा (क, छ)। तिष्ठति इदं प्रथमं कारणम्', एवं मूलपाठलब्धं २. जीवा (छ) । धर्माऽश्रवणस्य चतुर्थं कारणं धर्मश्रवणस्य ३. सं० पा०-समणं वा तं चेव जाव एएण। प्रथमकारणत्वेन निर्दिष्टम् । ४, बत्तिकृता 'प्रातिहारेण पीठफलकादिना नामन- ५. सं० पा०-माहणं वा जाव पज्जूवासेइ। वयतीत्यादि तृतीयम्, गोचरगतं न अशनादिना ६, ६. सं० पा०-अट्ठाई जाव पुच्छइ । प्रतिलाभयति–इत्यादि चतुर्थम' कारणं स्वी- ७. x (क, च, छ) । कृतं तथा 'यत्रापि श्रमणः-साधुः माहन:- ८.X (क, च, छ) । परमगीतार्थः श्रावकोऽभ्यागच्छति तत्रापि १०.सं. पा.-नमंसइ जाव पज्जुवासेइ । हस्तेन वस्त्राञ्चलेन छत्रेण वाऽऽत्मानमावृत्य न ११. सं० पा०--अट्ठाई जाव पुच्छइ । Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १७६ वागरणाइं° पुच्छइ। एएण वि' 'ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्म लभइ सवणयाए। उवस्सयगयं' 'समणं वा माहणं वा अभिगच्छइ वंदइ णमंसइ सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, अट्ठाई हेऊई पसिणाइं कारणाइं वागरणाई पुच्छइ। एएण वि ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्म लभइ सवणयाए । गोयरग्गगयं समणं वा' 'माहणं वा अभिगच्छइ वंदइ णमंसइ सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, विउलेणं' 'असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेइ, अट्ठाई 'हेऊई पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं° पुच्छइ । एएण वि ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्म लभइ सवणयाए । जत्थ वि य णं समणेण वा माहणेण वा सद्धि अभिसमागच्छइ तत्थ वि य णं णो हत्थेण वा' 'वत्थेण वा छत्तेण वा अप्पाणं आवरेत्ताणं चिट्ठइ । एएण वि ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्म लभइ सवणयाए । तझं च णं चित्ता! पएसी राया- आरामगयं वा" 'उज्जाणगयं वा समणं वा माहणं वा णो अभिगच्छइ णो वंदइ णो णमंसइ णो सक्कारेइ णो सम्माणेइ णो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, नो अट्ठाई हेऊइं पसिणाई कारणाई वागरणाई पुच्छइ। तं कहं णं चित्ता ! पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खिस्सामो? उवस्सयगयं समणं वा माहणं वा णो अभिगच्छइ णो बंदइ णो णमंसइ णो सक्कारेइ णो सम्माणेइ णो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, गो अट्ठाइं हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाइं पुच्छइ । तं कहं गं चित्ता ! पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खिस्सामो? गोयररगगय समण वा माहण वा णो अभिगच्छइ णो वदई णो णमसइ णो सक्कारेइ णो सममणेइ णो कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, णो विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेइ, णो अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाइं पुच्छइ। तं कहं णं चित्ता ! पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खिस्सामो? जत्थ वि य णं समणेण वा माहणेण वा सद्धि अभिसमागच्छइ तत्थ वि य णं हत्थेण वा वत्थेण वा छत्तेण वा अप्पाणं आवरेत्ता चिट्ठइ। तं कह णं चित्ता ! पएसिस्स रणो धम्ममाइक्खिस्सामो? 11 ७२०. तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं एवं वयासी-एवं खलु भंते ! अण्णया कयाइ कंबोएहिं चत्तारि आसा उवायणं' उवणीया, ते मए पएसिस्स रण्णो अण्णया चेव उवणेया । तं एएणं खलु भंते ! कारणेणं अहं पएसिं रायं देवाणुप्पियाणं १. सं० पा०-एएण वि जाव लभइ । २. सं० पाo.-उवस्सयगयं । ३.सं० पा०-समणं वा जाव पज्जुवासेइ । ४. सं० पा०- विउलेणं जाव पडिलाभेइ । ५. सं० पा०—अट्ठाई जाव पुच्छइ । ६. सं० पा०-हत्थेण वा जाव आवरेत्ताणं । ७. सं० पा.-.-आरामगयं वा तं चेव सव्वं भाणि यवं आइल्लएणं गमएणं जाव अप्पाणं । ८. उवणयणं (क); उवयणं (ख, ग, घ, च, छ) ६. विणेया (क, ख, ग, घ, च) Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० रायपसेणइयं अंतिए हव्वमाणेस्सामि । तं मा णं देवाणप्पिया ! तुब्भे पएसिस्स रण्णो धम्इमाइक्खमाणा गिलाएज्जाह । अगिलाए णं भंते ! तुब्भे पएसिस्स रणो धम्ममाइक्खेज्जाह । छंदेणं भंते ! तुब्भे पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खेज्जाह ।। ७२१. तए णं से केसी कुमार-समणे चित्तं सारहिं एवं वयासी---अवि याइं चित्ता ! जाणिस्सामो।। ७२२. तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं बंदइ नमसइ, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउघंट आसरहं दुरुहइ, जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए। चित्त-पएसि-पदं ७२३. तए णं से चित्ते सारही कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए कयनियमावस्सए सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते साओ गिहाओ णिग्गच्छइ, जेणेव पएसिस्स रण्णो गिहे जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छइ, परसिं रायं करयल' 'परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं° कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं कंवोएहिं चत्तारि आसा उवायणं' उवणीया, ते य मए देवाणु प्पियाण अण्णया चेव विणइया । तं एह णं सामी! ते आसे चिढ़े पासह ॥ ७२४. तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी-गच्छाहि णं तुमं चित्ता ! तेहिं चेव चहिं आसेहिं चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेहि', 'एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ ७२५. तए णं से चित्ते सारही पएसिणा रण्णा एवं वुत्ते समाणे हद्वतु'- चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण हियए उवट्ठवेइ, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ ॥ ७२६. तए णं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स अंतिए एयमठे सोच्चा णिसम्म हट्टतट्र- चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए ण्हाए कय-वलिकम्मे कयकोउय-मंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिते. अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ निग्गच्छइ, जेणामेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्धंट आसरहं दुरुहइ, सेयवियाए नगरीए मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ ॥ ७२७. तए णं से चित्ते सारही तं रहं गाइं जोयणाई उब्भामेइ ।। ७२८. तए णं से पएसी राया उण्हेण य तण्हाए य रहवाएण य" परिकिलते समाणे चित्तं सारहिं एवं वयासी-चित्ता ! परिकिलते मे सरीरे, परावत्तेहि रहं ।। ७२६. तए ण से चित्ते सारही रहं परावत्तेइ, जेणेव मियवणे उज्जाणे तेणेव उवाग१. पंडरे (क); "पंडर (ख, ग, घ, च)। ५. सं० पा०-हठ्ठतुट्ट जाव हियए । २. सं० पा०-करयल जाव कटटु । ६. सं० पा०-हतुटू जाव अप्पमहग्याभरणा३. उवणयं (क, ख, ग, घ, च)। लंकियसरीरे । ४. सं० पा.---उवट्ठवेहि जाव पच्चप्पिणाहि। ७. ४ (क, छ) । Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परसि-कहाणगं १८१ च्छ, पएस रायं एवं व्यासी- 'एस णं" सामी ! मियवणे उज्जाणे, एत्थ णं आसाणं समं किलामं सम्मं अवर्णमो ॥ ७३०. तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी - एवं होउ चित्ता ! ७३१. तए णं से चित्ते सारही जेणेव केसिस्स कुमार - समणस्स अदूरसामंते तेणेव उवागच्छइ, तुरए णिगिण्हेइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चीरुहइ, तुरए मोएति, पएस रायं एवं वयासी- - एह णं सामी ! आसाणं समं किलामं सम्मं अवणेमो ॥ ७३२. तए णं से पएसी राया रहाओ पच्चो रुहइ, चित्तेण सारहिणा सद्धि आसाणं समं किलामं सम्मं अवणेमाणे' जत्थ [तत्थ' ? ] 'केसि कुमार-समणं" महइमहालियाए महच्चपरिसाए मज्झगए महया - महया सद्देणं धम्ममाइक्खमाणं पासइ, पासित्ता इमेयावे अज्झथिए' चितिए पत्थए मणोगए संकल्पे समुप्पज्जित्था - जड्डा खलु भो ! जडुं पज्जुवासंति | मुंडा खलु भो ! मुंडं पज्जुवासंति । मूढा खलु भो ! मूढं पज्जुवासंति । अपंडिया खलु भो ! अपंडियं पज्जुवासंति । निव्विण्णाणा खलु भो ! निव्विण्णाणं पज्जुवासंति | से केस णं एस पुरिसे जड्डे मुंडे मूढे अपंडिए निव्विण्णाणे, सिरीए हिरीए उवगए,' उत्तप्पसरीरे ? एस णं पुरिसे किमाहारमाहारेइ ? किं परिणामेइ ?" कि खाइ ? किं पियइ ? कि दलयइ" ? किं पयच्छइ ? जेणं" एमहालियाए मणुस्सप रिसाए महया मया सद्देणं ब्रूया" । [साए वि णं उज्जाणभूमीए नो संचाएमि सम्म पकामं पवियरित्तए ?]" एवं संपेहेइ, संपेहित्ता चित्तं सारहि एवं वयासी - चित्ता ! जड्डा खलु भो ! जड्डुं पज्जुवासंति" । "मुंडा खलु भो ! मुंडं पज्जुवासंति । मूढा खलु भो ! मूढं पज्जुवासंति | अपंडिया खलु भो ! अपंडियं पज्जुवासंति । निव्विण्णाणा खलु भो ! निब्विण्णाणं पज्जुवासंति 1 से केस णं एस पुरिसे जड्डे मुंडे मूढे अपंडिए निव्विण्णाणे, सिरीए हिरीए उगए, उत्तप्पसरीरे ? एस णं पुरिले किमाहारमाहारेइ ? कि परिणामेइ ? कि खाइ ? किं पियइ ? कि दलयइ ? किं पयच्छइ ? जेणं एमहालियाए मणुस्सप रिसाए महया - महया सद्देणं° ब्रूया | साए वि णं उज्जाणभूमीए तो संचाएमि सम्म पकामं पवियरित्तए ॥ ७३३. तए णं से चित्ते सारही पएस राय एवं वयासी - एस णं सामी ! १. सरणं (क, च ) 1 'जंणं एस' इति लभ्यते । २-२. पवीणामो ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. पवीणेमाणे (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. अत्रादर्शषु ' जत्थ' पाठो लभ्यते, किन्तु अर्थ विचारणया 'तत्थ' पाठो युज्यते । १२. थूभियाए ( क च ) ; ब्रूयाइ (छ) । १३. ७२७ सूत्रे केशिस्वामिना प्रदेशिराजकृतः संकल्प एव स्मारितः । तत्र 'साए वि णं उज्जाणभूमीए तो संचाएमि सम्मं पकामं पवियरित्तए' इति पाठो विद्यते, तदास्मिन् प्रदेशिराजकृतसंकल्पसूत्रे स पाठांशः कथं न स्यात् ? इति पौर्वापर्यार्थविचारणया 'साए वि... इति' पाठांशोत्र युज्यते । ६. केसी कुमार-समणे (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. सं० पा० – अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था । ८. ववगए (क, ख, ग, घ, च) । ६. x (क, ख, ग, घ, च) १०. दलइ (च) । ११. जण्णं (क, ख, ग, घ, व, छ); मुद्रितवृत्तौ १४. सं० पा० - पज्जुवासंति जाव बूया । Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ रायपसेणइयं पासवच्चिज्जे केसी नाम कुमार-समणे जातिसंपण्णे जाव' चउणाणोवगए 'अहोऽवहिए अण्णजीविए। ७३४. तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी-'अहोऽवहियं णं" वयासि चित्ता ! अण्णजीवियं णं वयासि चित्ता ! हंता सामी ! अहोऽवहियं णं वयामि, अण्णजीवियं णं वयामि ।। ७३५. अभिगमणिज्जे णं चित्ता ! एस पुरिसे ? हंता सामी ! अभिगमणिज्जे । अभिगच्छामो णं चित्ता ! अम्हे एयं पुरिसं ? हंता सामी ! अभिगच्छामो । पएसि-केसि-पदं ७३६. तए णं से पएसी राया चित्तेण सारहिणा सद्धि जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छइ, केसिस्स कुमार-समणस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी- तुब्भे गं भंते ! अहोऽवहिया अण्णजीविया ? ७३७. तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी-पएसी ! से जहाणामए अंकवाणिया इवा संखवाणिया इ वा संकं भंसेउकामा" णो सम्म पंथं पुच्छंति। एवामेव पएसी! तुमं वि विणयं भंसेउकामो नो सम्म पुच्छसि । से पूर्ण तव पएसी ! मम पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--जड्डा खलु भो ! जड़े पज्जुवासंति । 'मुंडा खलु भो ! मुंड पज्जुवासंति । मूढा खलु भो ! मूढं पज्जवासंति । अपंडिया खलु भो! अपंडियं पज्जुवासंति । निविण्णाणा खलु भो ! निविण्णाणं पज्जुवासंति । से केस णं एस पुरिसे जड्डे मुंडे मूढे अपंडिए निविण्णाणे, सिरीए हिरीए उवगए, उत्तप्पसरीरे ? एस णं पुरिसे किमाहारमाहारेइ ? किं परिणामेइ ? कि खाइ ? कि पियइ ? किं दलयइ ? किं पयच्छइ ? जे णं एमहालियाए मणस्सपरिसाए महया-महया सद्देणं बूया । साए वि णं उज्जाणभूमीए नो संचाएमि सम्म पकाम' पवियरित्तए । से पूणं पएसी! अत्थे समत्थे ? हंता ! अस्थि ।। ७३८. तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी–से केस णं भंते ! तुझं नाणे वा सणे वा, जेणं तुम्भं मम एयारूपं अज्झत्थियं चितियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं समुप्पण्णं जाणह पासह ? ७३६. तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी-एवं खलु पएसी ! अम्हं समणाणं निग्गंथाणं पंचविहे गाणे पण्णत्ते, तं जहा-आभिणिबोहियणाणे सुययाणे ओहिणाण मणपज्जवणाणं केवलणाण। ७४०. से कि तं आभिणिवोहियणाणे? आभिणिबोहियणाणे चउबिहे पण्णत्ते, तं जहा-उग्गहो ईहा अवाए धारणा ।। १. राय० सू०६८६। ५. भंजेउ' (क, ख, ग, घ, च, छ)। २. अहोहिए अणं जीवे (क, ख, ग); अहोहिए ६. सं० पा०--अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था । अण्णजीवी ७. सं० पा०---पज्जुवासंति जाव पवियरित्तए । ३. अहोहि अण्णं (क, ख, ग, घ) । ८. जं णं (घ)। ४. अहोहियं (क, ख, ग, घ) । ६.सं. पा.--अज्झत्थियं जाव संकप्पं । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एसि-कहाण १८३ ७४१. से किं तं उग्गहे ? उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, जहा नंदीए जाव' से तं धारणा । सेतं आभिणियिणाणे || ७४२. से किं तं सुयणाणं ? सुयणाणं दुविहं पण्णत्तं तं जहा - अंगपविट्ठ च अंगवाहिरगं च सव्वं भाणियव्वं जाव' दिट्टिवाओ ॥ ७४३. से किं तं ओहिणाणं ? ओहिणाणं दुविहं पण्णत्तं तं जहा - भवपच्चइयं च खओवसमियं च जहा नंदीए ॥ ७४४. " से किं तं मणपज्जवणाणे १० मणपज्जवणाणे दुबिहे पण्णत्ते, तं उज्जुमई य विउलमई य' | ७४५. " से किं तं केवलणाणं ? केवलणाणं दुविहं पण्णत्तं तं जहा -- भवत्थकेवलणाणं च सिद्धकेवलणाणं च । ७४६. तत्थ णं जेसे आभिणिबोहियणाणे से णं ममं अस्थि । तत्थ णं जेसे सुयणाणे, सेविय ममं अत्थि । तत्थ गं जेसे ओहिणाणे, से वि य ममं अस्थि । तत्थ णं जेसे मणपज्जवणाणे, सेवि य ममं अस्थि । तत्थ णं जेसे केवलणाणे, से णं ममं नत्थि, से णं अरहंताणं भगवंताणं । इच्चेएणं पएसी ! अहं तव चउव्विहेणं छाउमत्थिएणं णाणेणं इमेरूवं अज्झत्थियं चितियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं समुप्पण्णं जाणामि पासामि || ७४७. तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी -- अह णं भंते ! इहं उवविसामि ? पएसी ! साए उज्जाणभूमीए तुमंसि चेव जाणए । जीव- सरीर अण्णत्त-पदं ७४८. तए गं से पएसी राया चित्तेणं सारहिणा सद्धि केसिस्स कुमार - समणस्स अदूरसामंते उवविसइ, केसि कुमार-समणं एवं वयासी -- तुब्भं णं भंते ! समणाणं णिग्गंथाणं एस" सण्णा एस इण्णा" एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे 'एस पमाणे एस समोसरणे, जहा -- अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो तं जीवो तं सरीरं ? ॥ १२ ७४६. तए णं केसी कुमार-समणे पएस रायं एवं वयासी - पएसी ! अम्हं समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा" एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संक एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा -अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो 'तं जीवो" तं सरीरं ॥ १. नंदी सृ० ४०-४६ २. नंदी सू० ७३-१२६ ३. सं० पा० - ओहिणाणं भवपच्चइयं खओवस - १०. एसा (छ) 1 मियं । जहा - ४. नंदी सू० ७-२२ । ५. सं० पा०—मणपज्जवणाणे । ६. नंदी सू० २३-२५ ७. सं० पा० तहेव केवलणाणं सव्वं भाणियव्वं । ८. नंदी सू० २७-३३ । ६. सं० पा० – अज्झत्थियं जाव समुप्पण्णं । ११. पण्णा (क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. x ( क, ख, ग, घ, च) । १३. सं० पा० एस सण्णा जाव एस समोसरणे । १४. तज्जीवो (क, ख, ग, घ, च) 1 Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ रायपसेणइयं तज्जीव-तच्छरोर-पदं ७५०. तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-जति णं भंते ! तुभं समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा' 'एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस° समोसरणे, जहा - अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो 'तं जीवो तं सरीरं- एवं खलु ममं अज्जए होत्था, इहेव सेयवियाए णगरीए अधम्मिए जाव' सयस्स वि य णं जणवयस्स नो सम्म करभरवित्ति पवत्तेति से गं तुभं वत्तव्वयाए सूवहं पावकम्म कलिकलूसं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णय रेसु नरएस णेरइयत्ताए उववष्णे । तस्स णं अज्जगस्स अहं णत्तुए होत्था -इठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए वहुमए अणुमए रयणकरंडगसमाणे जीविउस्सविए हिययणंदिजणणे उंबरपुप्फ पिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? तं जति णं से अज्जए ममं आगंतुं वएज्जा-एवं खलु नत्तुया ! अहं तव अज्जए होत्था, इहेव सेयवियाए नयरीए अधम्मिए जाव नो सम्मं करभरवित्ति पवत्तेमि । तए णं अहं सुबहुं पावकम्म कलिकलुसं समज्जिणित्ता [कालमासे कालं किच्चा अण्णय रेसु ? ] नरएसु [णेरइयत्ताए ?] उववण्णे तं मा णं नत्तुया ! तुम पि भवाहि अधम्मिए जाव नो सम्म करभरवित्ति पवत्तेहि । मा णं तुमं पि एवं चेव सुवहुं पावकम्म 'कलिकलुसं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णय रेसु नरएसु रइयत्ताए° उववज्जिहिसि । तं जइ णं से अज्जए ममं आगंतु वएज्जा तो णं अहं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो तं जीवो तं सरीरं। जम्हा णं से अज्जए मम आगंतुं नो एवं वयासी, तम्हा सुपइट्ठिया मम पइण्णा समणाउसो! जहा तज्जीवो तं सरीरं ।। जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५१. तए णं से केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी-अत्थि णं पएसी ! तव सूरियकता णामं देवी ? हंता अत्थि । जइ णं तुम पएसी तं सूरियकंतं देवि हायं कयबलिकम्म कयकोउयमंगलपायच्छित्तं सव्वालंकारभूसियं केणइ पुरिसेणं ण्हाएणं कियबलिकम्मेणं कयकोउयमंगलपायच्छित्तेणं सव्वालंकारभूसिएणं सद्धि इठे सद्द-फरिस-रस-रूवगंधे पंचविहे माणुस्सते कामभोगे पच्चणुब्भवमाणि पासिज्जासि, तस्स णं तुम पएसी ! पुरिसस्स के डंडं निव्वत्तेज्जासि ? अहं णं भंते ! तं पुरिसं हत्थच्छिण्णगं वा पायच्छिण्णगं वा सूलाइगं वा सूल भिण्णगं वा एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवएज्जा। ___ 'अह णं" पएसी से पुरिसे तुम एवं वदेज्जा-मा ताव मे सामी! मुहुत्तागं" हत्थच्छि१. सं० पा०--एस सण्णा जाव समोसरणे । ६. पन्ना (क, ख, ग, घ, च)। २. तज्जीवो (क, ख, ग, घ, च) । ७. विभुसियं (छ)। ३. राय० सू० ६७१। ८. सं० पा०-हाएणं जाव सब्दालंकारभूसिएणं । ४. सं० पा.-.--पावकम्मं जाव उववज्जिहिसि। ६. अहण्णं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. रोवएज्जा (क, ख, ग, घ, च, छ) ! १०. मुहत्तगं (छ) । Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं पणगं वा पायछिण्णगं वा सूलाइगं वा सूल भिण्णगं वा एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवेहि जाव ताव अहं मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणं एवं वयाभि--एवं खलु देवाणुप्पिया ! पावाइं कम्माइं समायरेत्ता इमेयारूवं आवई पाविज्जामि, तं मा णं देवाणप्पिया ! तुब्भे वि केइ पावाई कम्माई समायरहो, मा णं से वि एवं चेव आवई पाविज्जिहिह', जहा णं अहं । तस्स णं तुम पएसी ! पुरिसस्स खणमवि एयमट्ठ पडिसुणेज्जासि ? णो तिणठे समठे। कम्हा णं ? जम्हा गं भंते ! अवराही णं से पुरिसे। एवामेव पएसी! तव वि अज्जए होत्था इहेव सेयवियाए णयरीए अधम्मिए जाव णो सम्म करभरवित्ति पवत्तेइ । से णं अम्हं वतव्वयाए सुबहुँ 'पावकम्म कलिकलुसं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णय रेसु नरएसु णेरइयत्ताए° उववण्णे । तस्स णं अज्जगस्स तुम पात्तए होत्था-इठे कंते' •पिए मणुणे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए वहुमए अणमए रयणकरंडगसमाणे जीविउस्सविए हिययणंदिजणणे उंबरपुप्फ पिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग पुण° पासणयाए ! से णं इच्छइ माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ [हव्वमागच्छित्तए ?] । चउहिं च णं ठाणेहि पएसी ! अहुणोववण्णए नरएस नेरइए इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ [हव्वमागच्छित्तए ?] । ___अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए से णं तत्थ महब्भूयं वेयणं वेदेमाणे इच्छेज्जा माणुस्सं लोग हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ [हब्वमागच्छित्तए ?] | अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए न रयपालेहिं भुज्जो-भुज्जो समहिट्ठिज्जमाणे इच्छइ माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ [हव्वमागच्छित्तए ?] । अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए निरयवेयणिज्जसि कम्मसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अणिज्जिण्णंसि इच्छइ माणुसं लोग हब्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ [हन्वमागच्छि त्तए ?] - अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए निरयाउयंसि कम्मसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अणिज्जिण्णंसि इच्छइ माणुसं लोग हब्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ [हव्वमागच्छित्तए ?] 1 इच्चेएहि चउहि ठाणेहि पएसी अहुणोववण्णे नरएसु नेरइए इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ [हव्वमागच्छित्तए ?] । तं सद्दहाहि णं पएसी ! जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तं जीवो तं सरीरं ।।। तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७५२. तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-अत्थि णं भंते ! एस पण्णओ उवमा, इमेण पुण कारणेणं नो उवागच्छइएवं खलु भंते ! मम अज्जिया होत्था, इहव सेयवियाए नगरीए धम्मिया' 'धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्माणुया धम्मपलोई धम्मपलज्जणी धम्मसीलसमुयाचारा धम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणी समणोवासिया १. सं० पा०–हत्थच्छिण्णगं वा जाव जीवियाओ। ५. सं० पा०-सुबहं जाव उववणे । २. समायरउ (क, ख, ग, घ)। ६. सं० पा०--कते जाव पासणयाए। ३. पाविज्जिहिइ (घ, च)। ७. सं० पा०--धम्मिया जाव वित्ति । ४. राय० सू० ६७१ । ८. 'माणा (घ)। Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं अभिगयजीवा' 'जीवा उवलद्धपुण्णपावा आसव-संवर-निज्जर-किरियाहिगरण-बंधप्पमोक्खकुसला असहिज्जा देवासुर - णाग - सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किण्णर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्वमहोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जा, निग्गंथे पावणे हिस्संकिया णिक्कंखिया णिवि तिगिच्छा लट्ठा गहियट्ठा अभिगयट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियदा अदिमिजपेमाणुरागरत्ता अयमाउसो! निग्गंथे पावयणे अट्ठे परमठे सेसे अणठे ऊसियफलिहा अवंगुयदुवारा चियत्तंतेउरघरप्पवेसा चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्ण पोसहं सम्म अणुपालेमाणी, समगे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणणं ओसह-भेसज्जण य पडिलाभेमाणी-पडिलागेमाणी, बहूहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं. अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। साणं तुझं वत्तव्वयाए सुवहुं पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णय रेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णा। तीसे णं अज्जियाए अहं नत्तुए होत्था---इ8 कते' 'पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए रयणकरंडगसमाणे जीविउस्सविए हिययणंदिजणणे उंबरपुप्फ पिव' दुल्लभे सवणयाए, किमंग पूण° पासणयाए, तं जइ ण सा अज्जिया मम आगत एवं वएज्जा-एवं खलू नत्त्या ! अहं तव अज्जिया होत्था, इहेव सेयवियाए नयरीए धम्मिया' 'धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्माणया धम्मपलोई धम्मपलज्जणी धम्मसीलसमयाचारा धम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणी समणोवासिया जाव अप्पाणं भावेमाणी विहामि । तए णं अहं सुबहुँ' पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता' 'कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु° देवलोएसु देवत्ताए उववण्णा, तं तुम पि णत्तुया ! भवाहि धम्मिए धम्मिठे धम्मक्खाई धम्माणुए धम्मपलोई धम्मपलज्जणे धम्मसीलसमुयाचारे धम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणे समणोवासए जाव अप्पाणं भावेमाणे विहराहि । तए णं तुमं पि एयं चेव सुवहुं पुण्णोवचयं" समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए° उवज्जिहिसि। तं जइ णं अज्जिया मम आगंतुं एवं वएज्जा तो णं अहं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा- अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो तज्जीवो तं सरीरं । जम्हा सा अज्जिया ममं आगंतु णो एवं वयासी, तम्हा सुपइट्ठिया मे पइण्णा' जहातज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं । जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५३. तए णं केसी कुमार-समणे 'पए सिं रयिं एवं वयासी-जति णं तुमं पएसी ! व्हायं कयवलिकम्म कयकोउयमंगलपायच्छित्तं उल्लापडगं भिंगार-कडच्छयहत्थगयं देवकुलमणुपविसमाणं केइ पुरिसे वच्चघरंसि ठिच्चा एवं वदेज्जा-एह ताव सामी! इह १. सं. पा.- अभिगयजीवा सन्वो वण्णओ जाव ५. सं० पा०-समजिणित्ता जाव देवलोएस । अप्पाणं। ६.सं० पा०-धम्मिए जाव विहराहि । २. सं० पा०-कते जाव पासणयाए। ७. सं० पा०--पुण्णोवचयं जाव उववज्जिहिसि । ३. सं० पा०-धम्मिया जाव वित्ति। ८. पण्णा (क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. सुहं (क, ख, ग, घ, च, छ) । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १८७ मुहुत्ताग' आसयह वा चिट्ठह वा निसीयह वा तुयट्टह वा । तस्स णं तुमं पएसी ! पुरिसस्स खणमवि एयमट्ठ पडिसुणिज्जासि ? णो तिणठे समठे। कम्हा णं ? जम्हाणं भंते ! असुई असुइ-सामंतो एवामेव पएसी ! तव वि अज्जिया होत्था, इहेव सेयवियाए णयरीए धम्मिया जाव' अप्पाणं भावेमाणी विहरति । सा णं अम्हं वत्तव्वयाए सुबहं' 'पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता काल मासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णा। तीसे णं अज्जियाए तुम णत्तुए होत्था-इठे •कते पिए मणुणे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए रयणकरंडगसमाणे जीविउस्सविए हिययणंदिजणणे उबरपुप्फ पिव दुल्लभे सवणयाए°, किमंग पुण पासणयाए ? सा णं इच्छइ माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए।। चउहि ठाणेहिं पएसी ! अहुणोववण्णए देवे देवलोएसु इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए-- अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु दिव्वेहि कामभोगेहि मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे, से गं माणसे भोगे नो आढाति नो परिजाणाति । से णं इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए। अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु दिवेहि कामभोगेहिं मुच्छिए" 'गिद्धे गढिए° अज्झोववण्णे, तस्स णं माणुस्से पेम्मे वोच्छिण्णए भवति, दिव्वे पेम्मे संकेते भवति । से णं इच्छेज्जा माणसं लोग हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए । अहुणोदवण्णे देवे देवलोएसु दिव्वेहिं कामभोगेहिं मुच्छिए 'गिद्धे गढिए अज्झोववणे, तस्स णं एवं भवइ---इयाणि गच्छं मुहुत्ते गच्छं जाव इह अप्पाउया णरा कालधम्मुणा संजुत्ता भवंति, से णं इच्छेज्जा माणुस्सं लोग हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु दिव्वेहि 'कामभोगेहिं मुच्छिए गिद्धे गढिए° अज्झोववण्णे, तस्स माणुस्सए उराले दुग्गंधे पडिकूले पडिलोमे भवइ, उड्ढं पि य णं चत्तारि पंचजोअणसए असुभे माणुस्सए गंधे अभिसमागच्छति । से णं इच्छेज्जा माणुस्सं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए । इच्चेएहिं चउहि ठाणेहिं पएसी ! अहणोववण्णे देवे देवलोएसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ हब्वमागच्छित्तए । तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी ! जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं.। तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७५४. तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी--अस्थि णं भंते ! एस १. मुहुत्तगं (क, छ)। २. राय० सू० ७५२ ।। ३. सं० पा०-सुबहुं जाव उववण्णा । ४. सं० पा०-इठे किमंग । ५. सं० पा.--मुच्छिए जाव अज्झोववपणे । ६. सं० पा०--मुच्छिए जाव अज्झोववरणे । ७. सं० पा०-दिव्वेहिं जाव अज्झोववण्णे । ८. हवइ (व)। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं पण्णओ उवमा, इमेणं पुण' कारणेणं णो उवागच्छतिएवं खलु भंते! अहं' अण्णया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अणेगगणणायक-दंडणायमराईसर-तलवर- माडंबिय-कोडुविय- इन्भ-सेट्टि - सेणावइ- सत्यवाह-मंति- महामंति-गणगदोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम-दुय-संधिवालेहि सद्धि संपरिवडे विहरामि । तए णं मम णगरगुत्तिया ससक्खं 'सहोढं सलोइं" सगेवेज्ज अवउडगबंधणबद्धं चोर उवणेति । तए णं अहं तं पुरिसं जीवंतं चेव अओकुंभीए पविखवावेमि, अओमएणं पिहाणएणं पिहावेमि, अएण य तउरण य कायावेमि, आयपच्चइएहि पुरिसेहिं रक्खामि । तए णं अहं अण्णया कयाई जेणामेव सा अओकुंभी तेणामेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता तं अओकभि उग्गलच्छावेमि', उग्गलच्छावित्ता तं पुरिसं सयमेव पासामि, णो चेव णं तीसे अओकुंभीए केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जओ णं से जीवे अंतोहितो वहिया णिग्गए । जइ णं भंते ! तीसे अओकुभीए होज्ज केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जओ णं से जीवे अंतोहितो वहिया णिग्गए, तो णं अहं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा-- अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। जम्हा णं भंते ! तीसे अओकुंभीए णत्थि केइ छिड्डे इ वा 'विवरे इ वा अंतरे इ वा, राई वा, जओ णं से जीवे अंतोहितो बहिया निग्गए, तम्हा सुपतिट्ठिया मे पइण्णा जहातज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं ।। जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५५. तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी पएसी! से जहाणामए कडागारसाला सिया-दुहओ लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया णिवायगंभीरा । अह णं केइ परिसे भेरिं च दंडं च गहाय कूडागारसालाए अंतो-अंतो अणुप्पविसति, अणुप्प विसित्ता तीसे कडागारसालाए सव्वतो समंता घण-निचिय-निरंतर-णिच्छिड्डाई दुवारवयणाई पिहेइ। तीसे कडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए ठिच्चा तं भेरि दंडएणं महया-महया सद्देणं तालेज्जा। से णणं पएसी ! से सद्दे णं अंतोहितो वहिया णिग्गच्छइ ? हंता णिग्गच्छइ। अत्थि गं पएसी ! तीसे कूडागारसालाए केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जओ णं से सद्दे अंतोहितो वहिया णिग्गए ? नो 'तिणठे समझें । एवामेव पएसी! जीवे वि अप्पडिहयगई पुढवि भिच्चा सिलं भिच्चा पव्वयं भिच्चा अंतोहितो बहिया णिग्गच्छइ, तं सहाहि गं तुमं पएसी ! अण्णो जीवो" अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं ॥ १. पुण मे (क, ख, ग, च, छ ८. सं० पा०—छिड्डे इ वा जाव निग्गए। २. ४ (क, च)। ६. पन्ना (क, ख, ग, घ, च, छ)। ३. ईसर (क, ख, ग, घ, च, छ) । १०. दुवारणयणाई (ख, ग)। ४. सहोद (क, ख, ग, घ, छ); सहोट (च) ११. सं० पा०--छिड्डे इ वा जाव राई। ५. उल्लंछावेमि (घ)। १२. इणमठे (क)। ६. अयोकुंभीए (क, ख, ग); अयकुंभीए (घ)। १३. सं० पा०-जीवो तं चैव । ७. सं० पा०-छिड्डे इ वा जाव राई । Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १५६ तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७५६. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-अस्थि णं भंते ! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं णो उवागच्छइ-एवं खलु भंते ! अहं अण्णया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए' 'अणेगगणणायक-दंडणायग-राईसर-तलवर-माउंवियकोडुविय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-मंति-महामंति-गणग-दोवारिय-अमच्च-चेड- पीढमद्दनगर-निगम द्य-संधिवालेहिं सद्धि संपरिवडे विहरामि। तए णं ममं णगरगुत्तिया ससक्खं सहोढं सलोई सगेवेज्ज अव उडगबंधणबद्धं चोरं° उवणेति । तए णं अहं तं पुरिसं जीवियाओ ववरोवेमि, ववरोवेत्ता अओकुंभीए पक्खिवावेमि, अओमएणं पिहाणएणं पिहावेमि', 'अएण य तउएण य कायावेमि, आय पच्चइएहिं पुरिसेहिं रक्खावेमि । तए णं अहं अण्णया कयाइ जेणेव सा कुंभी तेणेव उवागच्छ। मि, उवागच्छित्ता तं अओकुंभिं उग्गलच्छावेमि, तं अओकुंभि किमिकुभि पिव पासामि, णो चेव णं तीसे अओकुंभीए केइ छिडडे इ वा 'विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जतो ण ते जीवा बहियाहितो अणपविद्वा। जति णं तीसे अओकभीए होज्ज केइ छिडडे इ वा •विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जतो णं ते जीवा बहिया हितो. अणुपविट्ठा, तो णं अहं सद्दहेज्जा 'पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं । जम्हा णं तीसे अओकुंभीए नत्थि केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जतो गं ते जीवा बहिया हितो° अणुपविट्ठा, तम्हा सुपति टिआ मे पइण्णा जहा-तज्जीवो, 'तं सरीर", 'नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं ।। जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५७. तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी--अत्थि णं तुमे पएसी ! कयाइ य अए धंतपुव्वे वा धमावियपुव्वे वा? हंता अस्थि । से णणं पएसी! अए धंते समाणे सवे अगणिपरिणए भवति? 'हता भवति", अत्थि णं पएसी! तस्स अयस्स केइ छिड्डे इ वा •विवरे इ वा अंतरे वा राई वा जेणं से जोई वहियाहिंतो अंतो अणुपविठे? नो तिणठे समझे। एवामेव पएसी! जीवो वि अप्पडिहयगई पुढवि भिच्चा सिलं भिच्चा पव्वयं भिच्चा बहियाहिंतो अंतो अणुपविसइ । तं सद्दहाहि णं तुम पएसी" ! 'जहा--- अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं° ।। तज्जीव-तच्छरीर-पदं ___ ७५८. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी--अस्थि णं भंते ! एस १. सं० पा०–उवट्ठाणसालाए जाव विहरामि । ७. सं० पा०-छिड्डे इ वा जाव अणुपविट्ठा । २. सं० पाo.-ससक्खं जाव उवणेति । ८. तस्सरीरं (क, ग, घ, च, छ)। सं० पा०३. सं० पा०-पिहावेमि जाव पच्च इएहि । सरीरं तं चेव। ४. सं० पा०--छिड्डे इ वा जाव राई । ६.४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. सं० पा०-छिड्डे इ वा जाव अणुपविट्टा । १०. सं० पा०—छिड्डे इ वा जेण । ६. सं० पा०---सद्दहेज्जा जहा अपणो जीवो तं ११. सं० पा०–पएसी! तहेव । चेव। Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० रायपसेणइयं पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ–भंते ! से जहाणामए–केइ पुरिसे तरुणे वलवं जुगवं जुवाणे अप्पायंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पिट्ठतरोरुपरिणए घणणिचिय-बट्ट-वलियखंधे चम्मेढग-दुघण-मुट्ठिय-समाय-निचियगत्ते उरस्सबलसमण्णागए तलजमलजुयलबाहू लंघण-पवण-जइण-पमहणसमत्थे छेए दवखे पत्तठे कुसले मेधावी णि उण सिप्पोवगए पभू पंचकंडगं निसिरित्तए ? हंता पभू । जति णं भंते ! सच्चेव' पुरिसे वाले •अदवखे अपत्तठे अकुसले अमेहावी मंदविण्णाणे पभू होज्जा पंचकंडगं निसिरित्तए, तो गं अहं सद्दहेज्जा' पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं । जम्हा णं भंते ! सच्चेव पुरिसे जाव मंदविण्णाणे णो 'पभू पंचकंडयं निसिरित्तए, तम्हा सुपइट्ठिया मे पइण्णा जहा-तज्जीवो' 'तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं ।। जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५६. तए णं केसी कुमार-समणे पएसिं रायं एवं वयासी–से जहाणामए-केइ पुरिसे तरुणे" *वलवं जुग जुवाणे अप्पायंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पिट्ठतरोरुपरिणए घण-णि चिय-वट्ट-वलियखंधे चम्मेदृग-दुघण-मुट्ठिय-समाह्य-निचियगत्ते उरस्सबलसमण्णागए तल-जमल-जुयलवाहू लंघण-पवण-जइण-पमद्दणसमत्थे छेए दक्खे पत्तठे कुसले मेधावी णिउण सिप्पोवगए गवएणं धणुणा नवियाए जीवाए नवएणं उसुणा 'पभू पंचकंडग" निसिरित्तए ? हंता पभू । सो चेव पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए कोरिल्लएणं धणणा कोरिल्लयाए जीवाए कोरिल्लएणं उसुणा पभू पंचकंडगं निसिरित्तए ? णो तिणठे समठे । कम्हा णं भंते ! तस्स पुरिसस्स अपज्जताई उवगरणाइं हवंति । एवामेव पएसी! सो चेव पुरिसे बाले" •अदक्खे अपत्तठे अकुसले अमेहावी मंदविण्णाणे अपज्जत्तोवगरणे णो पभू पंचकंडयं निसिरित्तए, तं सद्दहाहि णं तुम पएसी! जहा--अण्णो जीवो" •अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं । तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७६०. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-अस्थि णं भंते ! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ--भंते ! से जहाणामए-केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगते पभू एग महं अयभारग वा तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए ? हंता पभू । सो चेव णं भंते ! पुरिसे जुण्णे जराजज्जरियदेहे सिढिलवलियावणद्धगत्ते दंडपरिग्गहियग्गहत्थे पविरलपरिसडियदंतसेढी आउरे किसिए पिवासिए दुब्वले १. सं. पा.---तरुणे जाव सिप्पोवगए। ५. पभू यं च कंडग (क, च)। २. से चेव (क) ६. सं० पा०-तज्जीवोतं चेव । ३. सं० पा०--बाले जाव मंदविण्णाणे; अस्य ७. सं० पा०--तरुणे जाव सिप्पोवगए । पाठस्य पूति: छेए दक्खे पत्तठे कुसले मेहावी' ८. पडिचियाए (क, ख, ग, घ, च, छ)। अनेन पाठेन कृता। ६. पभू णं च कंडग (क) । ४. सं० पा०-सद्दहेज्जा जहा अण्णो जीवो तं १०. सं० पा०—बाले जाव मंदविण्णाणे। ११. सं० पा०—जीवो तं चेव । चेव । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १९१ परिकिलंते नो पभू एगं महं अयभारगं वा' 'त उयभारगं वा सीसगभारग° वा परिवहित्तए। जति णं भंते ! सच्चेव पुरिसे जुण्णे जराजज्जरियदेहे 'सिदिलवलियावणद्धगत्ते दंडपरिग्गहियग्गहत्थे पविरलपरिसडियदंतसेढी आउरे किसिए पिवा सिए दुब्वले परिकिलते पभू एगं महं अयभारगं वा' 'तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए, तो गं अहं सद्दहेज्जा' •पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो तज्जीवो तं सरीरं । जम्हा णं भंते ! सच्चेव पुरिसे जुण्णे* *जराजज्जरियदेहे सिढिलवलियावणद्धगत्ते दंडपरिग्गहियग्गहत्थे पविरलपरिसडियदंतेसेढी आउरे किसिए पिवासिए दुव्वले परिकिलंते नो पभू एगं महं अयभारगं वा 'तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए, तम्हा सुपतिहिता मे पइण्णा" जहा- तज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं° ।। जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं __ ७६१. तए णं केसी कुमार-समणे पएसिं रायं एवं वयासी-से जहाणामए-केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए णवियाए विहंगियाए णवएहि सिक्कएहिं णवएहिं पच्छियापिडएहिं पहू एगं महं अयभारगं वा 'तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए ? हंता पभू । पएसी! से चेव णं पुरिसे तरुण जाव निउणसिप्पोवगए जुण्णियाए दुब्बलियाए घुणक्ख इयाए विहंगियाए", जुण्णएहिं दुब्वलएहिं घुणक्खइएहि सिढिल-तयापिणद्धएहि सिक्कएहिं, जुण्णएहिं दुब्बलएहिं घुणक्खइएहिं पच्छियापिडएहि पभू एगं महं अयभारग वा 'तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए ? णो तिणठे समठे। कम्हा णं ? भंते ! तस्स पुरिसस्स जुण्णाइं उवगरणाई भवंति। एवामेव पएसी ! से चेव पुरिसे जुणे" 'जराजज्जरियदेहे सिढिलवलियावणद्धगत्ते दंडपरिग्गहियग्गहत्थे पविरलपरिसडियदंतसेढी आउरे किसिए पिवासिए दुब्बले परि° किलते जुण्णोवगरणे नो पभू एग महं अयभारगं वा 'तज्यभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए, तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी ! जहा–अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं ।। तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७६२. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं बयासी-अत्थि णं भंते" ! 'एस १. सं० पा०-अयभारगं वा जाव परिवहित्तए। एहिं (छ) । २. सं० पा०-जराजज्जरियदेहे जाव परिकिलते। १०. सं० पा०.-अयभारगं वा जाव परिवहित्तए । ३. सं० पा०-अयभारगं वा जाव परिवहित्तए। ११. वाहंगियाए (क, ख, ग, घ, च, छ)। ४. सं० पा०-सद्दहेज्जा तहेव ! १२. पच्छिपिंडएहिं (क, ख); पत्थियापिडएहिं ५. सं० पा०--जुण्णे जाव किलंते । (ग, घ); पच्छिपिडएहिं (च); पच्छपिंड६. सं . पा० - अयभारगं वा जाव परिवहित्तए। एहिं (छ)। ७. सं० पा०--पइण्णा तहेव । १३. सं० पा०-अयभारगं वा जाव परिवहित्तए । ८. के वि (घ, च)। १४. सं०पा०-जुण्णे जाच किलंते ! ६. पच्छियापिंडएहि (क); पत्थियपिडएहिं (ख, १५. सं० पाo...अयभारगं वा जाव परिवहितए। ग, घ); पट्ठियापिडएहिं (च); पत्थयपिंड- १६. सं० पा०.-भंते जाव नो ! Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ रायपसेणइ पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइएवं खलु भंते ! 'अहं अण्णया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अणेग-गणणायक-दंडणायग-राईसर-तलवर-माउंवियकोविय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-मंति-महामंति-गणग-दोवारिय-अमच्च- चेड-पीढमद्दनगर-निगम-य-संधिवालेहि सद्धि संपरिवुडे विहरामि । तए णं मम णगरगुत्तिया चोर उवणेति। तए णं अहं तं पुरिसं जीवंतर्ग' चेव तुलेमि, तुलेत्ता छविच्छेयं अकुव्वमाणे जीवियाओ ववरोवेमि, मयं तुलेमि णो चेव णं तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स केइ अण्णत्ते वा नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा लहुयत्ते वा। जति णं भंते ! तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स केइ अण्णत्ते वा' नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा लहुयत्ते वा, तो णं अहं सद्दहेज्जा" •पतिएज्जा रोएज्जा जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। जम्हा णं भते ! तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स, मुयस्स वा तूलियस्स नत्थि केड अण्णत्ते वा नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा° लहुयत्ते वा, तम्हा सुपतिट्ठिया मे पइण्णा जहा-तज्जीवो 'तं सरीरं णो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं ॥ जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७६३. तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी-अत्थि णं पएसी! तुमे कयाइ वत्थी 'धंतपुटवे वा धमावियपुटवे" वा ? हंता अस्थि ! अस्थि णं पएसी ! तस्स वत्थिस्स पुण्णस्स वा तुलियस्स, अपुण्णस्स वा तुलियस्स केइ अण्णत्ते वा 'नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा° लहुयत्ते वा ? णो तिणठे समठे। एवामेव पएसी ! जीवस्स अगरुलधुयत्तं पडुच्च जीवंतरस वा तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स नत्थि केइ अण्णत्ते वा 'नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा लहयत्ते वा, तं सद्दहाहि णं तुम पएसी" ! जहा–अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं ॥ तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७६४. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-अस्थि णं भंते ! एस२ पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ–एवं खलु भंते ! अहं अण्णया" 'कयाइ वाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अणेग-गणणायक-दंडणायग-राईसर-तलवर-माडंबिय१. सं० पा.-भंते जाव विहरामि । ८. वातपुण्णे (क, ख, ग, घ, च, छ)। २. जीवतगं (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. सं० पा.-.-अण्णत्ते वा जाव लहुयत्ते । ३. आणते (क, ख, ग, च, छ)। १०. सं० पा०-अण्णत्ते वा जाव लइयत्ते। ४. सं० पा.--अण्णत्ते वा जाव लहुयत्ते । ११. सं० पा०—पएसी तं चेव । ५. सं० पाल-सद्दहेज्जा तं चेव । १२. सं० पा०-एस जाव नो। ६. सं० पा०-अण्णत्ते वा."लहुयत्ते । १३. सं० पा०-अण्णया जाव चोरं । ७. सं० पा०-तज्जीवो तं चेव । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १६३ कोडुविय - इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-मंति - महामंति - गणग - दोबारिय- अमच्च-चेडपीढमद्द-नगर-निगम-दूय-संधिवाले हिं सद्धि संपरिवुडे विहरामि । तए णं मम णगरगुत्तिया ससक्खं सहोद सलोई सगेवेज्जं अवउडगबंधणबद्धं चोरं उवणेति । तए णं अहं तं पुरिसं सव्वतो समंता समभिलोएमि, नो चेव णं तत्थ जीवं पासामि ।। तए णं अहं तं पुरिसं दुहा फालियं' करेमि, करेत्ता सव्वतो समंता समभिलोएमि, नो चेव णं तत्थ जीवं पासामि । एवं तिहा चउहा संखेज्जहा फालियं करेमि', 'करेता सव्वतो समंता समभिलोएमि, णो चेव णं तत्थ जीवं पासामि । जइ णं भंते ! अहं 'तंसि पुरिसंसि', दुहा वा तिहा वा चाहा वा संखेज्जहा वा फालियंमि जीवं पासंतो, तो णं अहं सद्दहेज्जा' पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा- अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं° । जम्हा गंभंते ! अहं तंसि दुहा वा तिहा वा चउहा वा संखेज्जहा वा फालियंमि जीवं न पासामि, तम्हा सुपतिट्ठिया मे पइण्णा जहा--तज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं ॥ मूढ-कट्ठहारय-पदं ७६५, तए गं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी-मूढतराए गं तुम पएसी! ताओ तुच्छतराओ! के णं भंते ! तुच्छतराए ? पएसी ! से जहाणामए–केइ पुरिसा वणत्थी वणोवजीवी वणगवेसणयाए जोइं च जोईभायणं च गहाय कट्ठाणं अडवि अणुपविट्ठा। तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए 'छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता समाणा एग पुरिसं एवं वयासी-अम्हे गं देवाणुप्पिया! कट्ठाणं अडवि पविसामो, एत्तो गं तुमं जोइभायणाओ जोई गहाय अम्हं असणं साहेज्जासि । अह तं जोइभायणे जोई विज्झवेज्जा, तो णं तुम कट्ठाओ जोइं गहाय अम्हं असणं साहेज्जासि त्ति कटु कट्ठाणं अडविं अणुपविट्ठा । तए णं से पुरिसे तओ मुहुत्तंत रस्स तेसिं पुरिसाणं असणं साहेमि त्ति कटु जेणेव जोतिभायणे तेणेव उवागच्छइ, जोइभायणे जोइं विज्झायमेव पासति । तए णं से पुरिसे जेणेव से कढे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं कळं सव्वओ समंता समभिलोएति, नो चेव णं तत्थ जोइं पासति । तए णं से पुरिसे परियरं बंधइ, फरसुं गेहइ, तं कळं दुहा फालियं करेइ, सव्वतो समंता समभिलोएइ, णो चेव णं तत्थ जोइं पासइ । एवं 'तिहा चउहा संखेज्जहा वा १. पालियं (च,छ)। २. सं० पा०-करेमि णो। ३. तं पुरिसं (क,च,छ)। ४. पासं (क, ख, ग, घ, च, छ) ! ५. सं० पा० सद्दहेज्जा तं चेव । ६. सं० पा०--सरीरं तं चेव । ७. अकामियाए (क,ख,ग,घ); अकामयाए (च, छ); सं० पा०–अगामियाए जाव किचि । ८. एत्तो (क); पुत्ता (च, छ)। ६. सं० पा०–एवं जाव संखेज्जहा। Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ रायपसेणइयं फालियं करेइ, सव्वतो समता समभिलोएइ, नो चेव णं तत्थ जोइं पासइ। तए णं से पुरिसे तंसि कठेसि दुहाफालिए वा' 'तिहाफालिए वा चउहाफालिए वा° संखेज्जहाफालिए वा जोइं अपासमाणे संते तंते परिस्संते निविण्णे समाणे परसु एगते एडेइ, परियरं मुयइ, मुइत्ता एवं वयासी-अहो ! मए तेसिं पुरिसाणं असणे नो साहिए त्ति कटु ओहयमणसंकप्पे चिंतासोगसागरसंपविठे करयलपल्लत्थमुहे' अट्टज्झाणोवगए भूमिगयदिट्ठिए झियाइ। तए णं ते पुरिसा कट्ठाई छिदंति, जेणेव से पुरिसे तेणेव उवागच्छंति, तं पुरिसं ओहयमणसंकप्पं चितासोगसागरसंपविठं करयलपल्लत्थमुहं अट्टज्झाणोवगयं भूमिगयदिद्वियं झियायमाणं पासंति, पासित्ता एवं वयासी-कि णं तुम देवाणुप्पिया ! ओहयमणसंकप्पे' •चिंतासोगसागरसंपविट्ठे करयलपल्लत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए भूमिगयदिट्ठिए' झियायसि ? तए णं से पुरिसे एवं वयासी-तुभ णं देवाणप्पिया ! कट्ठाणं अडवि अणुपविसमाणा' मम एवं वयासी -अम्हे णं देवाणुप्पिया ! कट्ठाणं अडवि' पविसामो, एत्तो णं तुम जोइभायणाओ जोइंगहाय अम्हं असणं साहेज्जासि। अह तं जोइभायणे जोई विज्झवेज्जा, तो णं तुम कट्टाओ जोइं गहाय अम्हं असणं साहेज्जासि त्ति कटु कट्टाणं अडवि अणु-पविट्ठा ।। तए णं अहं तओ मुहत्तंतरस्स तुब्भं असणं साहेमि त्ति कटु जेणेव जोइभायणे तेणेव उवागच्छामि जाव झियामि। तए णं तेसिं पुरिसाणं एगे पुरिसे छेए दक्खे पत्तठे 'कुसले महामई विणीए विण्णाणपत्ते उवएसलद्धे ते पुरिसे एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! हाया कयबलिकम्मा' 'कयकोउयमंगलपायच्छित्ता हव्वमागच्छेह जा णं अहं असणं साहेमित्ति कटु परियरं बंधइ, परसुं गिण्हइ, सरं करेइ, सरेण अरणि महेइ, जोइं पाडेइ, जोई संधुक्खेइ, तेसिं पुरिसाणं असणं साहेइ । तए णं ते पुरिसा ण्हाया कयबलिकम्मा" 'कयकोउयमंगल°-पायच्छित्ता जेणेव से पुरिसे तेणेव उवागच्छंति। तए णं से पुरिसे तेसिं पुरिसाणं सुहासणवरगयाणं तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइम उवणेइ । तए ण ते पुरिसा तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा वीसाएमाणा" •परिभुजेमाणा परिभाएमाणा एवं च णं विहरंति । जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं १. सं० पा०-दुहाफा लिए वा णाव संखेज्जहा । २. °सागरं पविठे (घ)। ३. पल्हत्यमुहे (क)। ४. सं० पा०–मणसकप्पं जाव झियायमाणं । ५. सं० पा०-मणसंकप्पे जाव झियायसि । ६. अणुपविठ्ठा समाणा (घ)। ७. सं० पा०-अडवि जाव पविद्रा । ८. सं० पा०-पतठे जाव उवएसलद्धे । ६. सं०पा०--कयबलिकम्मा जाव हव्वमागच्छेह । १०. सं० पा.-कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता। ११. सं० पा०--वीसाएमाणा जाव विहरंति । Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एसि-कहाणगं १६५ समाणा आयंता चोक्खा परमसुईभूया तं पुरिसं एवं वयासी - अहो ! णं तुम देवाप्पिया ! जड्डे मूढे अपंडिए णिब्विण्णाणे अणुवएसलद्धे जे गं तुमं इच्छसि कट्ठसि दुहा फालियंसि वा तिहा फालियंसि वा चउहा फालियंसि वा संखेज्जहा फालियंसि वा जोति पात्तिए । से एएणट्ठेणं पएसी ! एवं बुच्चइ मूढतराए णं तुमं पएसी ! ताओ तुच्छत राओ ॥ reeti ts पएसिस्स वितक्कणा-पदं ७६६. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी -- जुत्तए णं भंते ! तुब्भं इय छेयाणं दक्खाणं पत्तट्ठाणं' कुसलाणं महामईणं विणीयाणं विष्णाणपत्ताणं उवएसलद्धाणं अहं इमीसे महालियाए महच्चपरिसाए मज्झे उच्चावहि आओसेहि आओसित्तए, उच्चावयाहि उद्धसणाहि उद्धसित्तए, उच्चावया हि निब्भंछणाहि निब्भंछित्तए, उच्चावयाहिं निच्छोडणाहि निच्छोडित्तए ? ॥ afare समाधाण-पदं ७६७. तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं बयासी - जाणासि णं तुमं पएसी ! कति परिसाओ पण्णत्ताओ ? भंते! जाणामि चत्तारि परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहात्तिपरिसा, गाहावइपरिसा, माहणपरिसा, इसिपरिसा । । जाणासि णं तुमं पएसी ! एयासि चउन्हं परिमाणं कस्स का दंड-णीई पण्णत्ता ? हंता ! जाणामि - जेणं खत्तियपरिसाए अवरज्झइ से णं हत्थच्छिण्णए वा पायच्छिण्णए वा सीसच्छिण्णए वा सुलाइए वा एगाहच्चे कूडाहच्चे जीवियाओ ववरोविज्जइ । जे गं गाहावइपरिसाए अवरज्झइ, से णं तणेण वा वेढेण* वा पलालेण वा वेढित्ता अगणिकाएणं झामिज्जइ' । जे णं माहणपरिसाए अवरज्झइ, से णं अणिद्वाहि अकंताहि अप्पियाहि अण्णा अमणामाहि वग्गूहिं उवालभित्ता कुंडियालंछणए वा सूणगलंछणए वा कीरइ, निव्विसए वा आणविज्जइ । जे गं इसिपरिसाए अवरज्झइ, से णं णाइअणिद्वाहि •णाइअकंताहिं णाइअप्पियाहि पाइअमणुष्णाहि गाइअमणामाहि वग्गूहि उवालब्भइ । एवं च ताव पएसी ! तुमं जाणासि तहावि गं तुमं ममं वामं वामेणं दंडं दंडेणं पडिकूलं पडणं पडलोमं पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेणं वट्टसि || पए सिस्स पडिकूल- वट्टण हेउ-पदं ७६८. तणं एसी राया केसि कुमार समणं एवं वयासी - एवं खलु अहं देवाणुप्पिएहि पढमिल्लएणं चैव वागरणेणं संलद्धे, तए णं ममं इमेयारूवे अज्झथिए' 'चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था जहा जहा णं एयस्स पुरिसस्स वामं वामेणं" १. सं० पा० दुहाफालियंसि वा जोति । २. पट्ठाणं (क, ख, ग, घ, च, छ) ३. इमाए ( क ) ; इमीसेए ( ख, ग, घ, च, छ ) 1 ४. वेंण ( क ) ; वेंढे ( ख, ग ) ; x (घ) । ५. झाविज्जइ (घ ) । ६. सं० पा० - अकंताहि जाव अमणामाहिं । ७. सं० पा०--- णाइअणिट्ठाहिं जाव णाइअमणा माहि । ८. संलत्ते (क्वचित् ) । ६. सं० पा० - अज्झथिए जाव संकप्पे | १०. सं० पा० - वामेणं जाव विवच्चासं । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेनाइयं *दंडं दंडेणं पडिकूलं पडिकूलेणं पडिलोमं पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेणं वद्रिस्सामि, तहा-तहा णं अहं नाणं च नाणोवलंभं च, दंसणं च दंसणोवलंभं च, जीवं च जीवोवलंभं च उवलभिस्सामि । तं एएणं कारणेणं अहं देवाणुप्पियाणं वाम वामेणं' 'दंडं दंडेणं पडिकूलं पडिकूलेणं पडिलोम पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेणं वट्टिए ।। ववहारग-पदं ७६६. तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी-जाणासि णं तुम पएसी ! कइ ववहारगा पण्णत्ता? हंता जाणामि, चत्तारि ववहारगा पण्णत्ता--देइ नामेगे णो सण्णवेइ । मण्णवेइ नामेगे नो देइ । एगे देइ वि सण्णवेइ वि । एगे णो देइ णो सण्णवेइ । जाणासि णं तुमं पएसी ! एएसि चउण्हं पुरिसाणं के ववहारी ? के अव्ववहारी ? हंता जाणामि-तत्थ एं जेसे पुरिसे देइ णो सग्णवेइ, से णं पुरिसे ववहारी। तत्थ णं जेसे पुरिसे णो देइ सण्णवेइ, से णं पुरिसे ववहारी। तत्थ णं जेसे पुरिसे देइ वि सण्णवेइ वि, से पुरिसे ववहारी । तत्थ णं जेसे पुरिसे णो देइ णो सण्णवेइ, से णं अववहारी। 'एवामेव तुम पि ववहारी, णो चेव णं तुम पएसी ! अववहारी" ।। जीवोवदंसणळं-निवेदण-पदं ___७७०. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-तुब्भे णं भंते ! 'इय छेया" दक्खा' 'पत्तट्टा कुसला महामई विणीया विण्णाणपत्ता° उवएसलद्धा, समत्था णं भंते ! ममं करयलंसि वा आमलयं जीवं सरीराओ अभिणिवट्टित्ताणं उवदंसित्तए ? ॥ केसिस्स समाधाण-पदं ७७१. तेणं कालेणं तेणं समएणं पएसिस्स रण्णो अदूरसामंते वाउयाए संवृत्ते । तणवणस्सइकाए एयइ वेयइ चलइ फंदइ घट्टई उदीरइ, तं तं भावं परिणमइ। तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी-पाससि णं तुमं पएसी राया ! एयं तणवणस्सइकायं एयंत वेयंतं चलंत फंदतं घटतं उदीरंतं तं तं भावं परिणमंतं ? हता पासामि । जाणासि णं तुम पएसी! एवं तणवणस्सइकायं किं देवो चालेइ ? असुरो वा चालेइ ? णागो वा चालेइ ? किण्णरो वा चालेइ ? किंपुरिसो वा चालेइ ? महोरगो वा चालेइ ? गंधयो वा चालेइ ? हंता जाणामिणो देवो चालेइ, *णो असुरो चालेइ, णो णागो चालेइ, णो किण्णरो चालेइ, जो किंपुरिसो चालेइ, णो महोरगो चालेइ° णो गंधब्बो चालेइ, वाउयाए चालेइ। पास सि णं तुम पएसी ! एयरस वाउकायस्स सरूविस्स सकम्मरस सरागस्स समोहस्स सवेयस्स सलेसस्स ससरीरस्स एवं? णो तिणठे समठे। १.सं० पा०.- वामेणं जाव विवच्चासं। ५. व्वा (क)। २. एवामेव णो चेव णं तुमं पएसी अववहारी ६. संजुत्ते (क, ख, ग, घ, च, छ) । ववहारी (क, ख, ग, घ, च) ! ७. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। ३. अइछेया (क)। ८. सं० पा०-एयंत जाव तं तं । ४. सं० पा०-दक्खा जाव उवएसलद्धा। ६. सं० पा०-चालेइ जाच णो गंधव्वो। Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परस-कहाणगं १६७ जइ णं तुमं पएसी ! एयस्स वाउकायस्स सरूविस्स' 'सकम्मरस सरागस्स समोहस्स सवेयस्स ससस्स ससरीरस्स रूवं न पाससि, तं कहं णं पएसी ! तव करयलंसि वा आमलगं जीवं [सरीराओ अभिणिवट्टिताणं ? ] उवदंसिस्सामि ? एवं खलु पएसी ! दसाणाई छउमत्थे मणुस्से सव्वभावेणं न जाणइ न पासइ, तं जहाधम्मत्थिकार्य, अधम्मत्थिकार्य, आगासत्थिकार्य, जीवं असरीरबद्ध, परमाणुपोग्गलं, सर्द, गंध, वायं, अयं जिणे भविस्सइ वा णो भविस्सइ, अयं सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्सइ वा नो वा करिस्सर । एताणि चैव उत्पष्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली सव्वभावेणं जाणइ पासइ, तं जहा - धम्मत्थिकार्य', 'अधम्मत्थिकार्य, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरवद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्द, गंध, वायं, अयं जिणे भविस्सइ वा णो भविस्सइ, अयं सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्सर वा णो वा करिस्सइ, तं सहाहि णं तुमं पएसी ! जहा - अण्णो जीवो *अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं । हस्थि - कुंथु जीव समाणत्त-पदं ७७२. तए णं से पएसी राया केसि कुमार समणं एवं वयासी-से णूणं भंते ! हस कंथुस्सय समे चेव जीवे ? हंता पएसी ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चैव जीवे । सेणू भंते! हत्थीओ कुंथू अप्पकम्मतराए चेव अप्प किरियतराए चेव 'अप्पासवतराए चेव" "" अप्पाहारत राए चेव अप्पनीहारतराए चेव अप्पुस्सासतराए चेव अप्पनीसासतराए चेव अप्पिढितराए चेव अप्पमहतराए चेव अप्पज्जुइतराए चेव° ? कुंथु हत्थी महाकम्मतराए चैव महाकिरिय' तराए चेव महासवतराए चेव महाहारतराए चेव महानीहारत राए चेव महाउस्सासतराए चेव महानीसासतराए चेव महिड्डितराए चेव महामहतराए चैव महज्जुइतराए चेव ? | हंता पएसी ! हत्थीओ कुंथू अप्पकम्मतराए चेव कुंथूओ वा हत्थी महाकम्मतराए चेव", • हत्थीओ कुंथू अप्प किरियतराए चेव कुंथूओ वा हत्थी महाकिरियतराए चेव, हत्थीओ कुंथू अप्पासवतराए चैव कूंथूओ वा हत्थी महासवतराए चेव, एवं आहार नीहार उस्सासनीसास - इड्ढि महज्जुइ एहि हत्थीओ कुंथू अप्पतराए चैव कुंथूओ वा हत्थी महातराए चेव । कम्हा णं भंते ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चैव जीवे ? पएसी ! से जहाणामए कूडागारसाला सिया -- दुहओ लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया णिवाय° गंभीरा । अह णं केइ पुरिसे जोई व दीवं व गहाय तं कूडागारसाल अंतो-अंतो अणुपfans, तीसे कूडागारसालाए सव्वतो समंता घण- निचिय - निरंतर - णिच्छिड्डाई दुवार - वयणाई पिहेति, तीसे कूडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए तं पईवं पलीवेज्जा । तए णं से पईवे तं कूडागारसालं अंतो- अंतो ओभासेइ उज्जोवेइ तावेति पभासेइ, णो चेव गं बाहि । १. सं० पा० - सरूविस्स जाव ससरीरस्स । २. सं० पा० - धम्मत्थिकार्य जाव णो । ssc महज्जुइ अप्पतराए चेव । ३. सं० पा०-जीवो तं चेव । ६. सं० पा० - महाकिरिय जाव हंता । ७. सं० पा०-- महाकम्मतराए चैव तं चैव । ८. सं० पा०-- सिया जाव गंभीरा । ४. X (क, ख, ग, घ, च, छ) 1 ५. सं० पा० एवं आहार नीहार उस्सास नीसास Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ रायपसेणइयं अह णं से पुरिसे तं पईवं इड्डरएणं पिहेज्जा, तए णं से पईवे तं इहरयं अंतो-अंतो ओभासेइ उज्जोवेइ तावेति पभासेइ, णो चेव णं इड्डुरगस्स बाहिं, णो चेव णं कूडागारसालं, णो चेव णं कडागारसालाए वाहिं । एवं--गोकिलिजेणं' 'पच्छियापिडएणं गंडमाणियाए 'आढएणं अद्धाढएणं पत्थएणं अद्धपत्थएणं कुलवेणं अद्धकुलवेणं चाउब्भाइयाए अट्ठभाइयाए सोलसियाए बत्तीसियाए च उसट्टियाए" अहं णं से पुरिसे तं पईवं दीवचंपएणं पिहेज्जा। तए णं से पदीवे दीवचंपगस्स अंतो-अंतो ओभासेति उज्जोवेइ तावेति पभासेइ, नो चेव णं दीवचंपगस्स वाहि, नो चेव णं चउस ट्ठियाए बाहिं णो चेव णं कूडागारसालं, णो चेव णं कूडागारसालाए बाहिं । एवामेव पएसी ! जीवे वि जं जारिसयं पुत्वकम्मनिबद्धं बोंदि णिवत्तेइ तं असंखेजेहिं जीवपदेसेहिं सचित्तीकरेइ-खुडियं वा महालियं वा। तं सदहाहि णं तुमं पएसी ! जहा -अण्णो जीवो 'अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं ॥ कुल-परपरागयादोट्ठ-अच्छडण-पद ७७३. तए णं पएसी राथा केसि कुमार-समणं एवं वयासी-एवं खलु भंते ! मम अज्जगस्स एस सण्णा' 'एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस° समोसरणे, जहा--तज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं। तयाणंतरं च णं ममं पिउणो वि एस सण्णा' 'एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा-तज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं ।। तयाणंतरं मम वि एस सण्णा" "एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा-तज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं! तं नो खलु अहं बहुपुरिसपरंपरागयं कुलपिस्सियं दिष्टुिं छड्डेस्सामि ।। अयहारग-दिळंत-पदं ७७४. तए णं केसी कुमार-समणे पएसिरायं एवं वयासी-मा णं तुमं पएसी ! पच्छाणुताविए भवेज्जासि, जहा व से पुरिसे अयहारए । के णं भंते ! से अयहारए ? पएसी! से जहाणामए-केइ पुरिसा अत्थत्थी अत्थगवेसी अत्थलुद्धगा अत्थकंखिया अत्थपिवासिया अत्थगवेसणयाए विउल पणियभंडमायाए सब भत्तपाण-पत्थयणं गहाय एवं महं अगामियं छिण्णावायं दीहमद्धं अडवि अणुपविट्ठा । तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए 'छिण्णावायाए दीहमद्धाए° अडवीए कंचि देसं १. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। ५. सं० पा०-एस सण्णा जाव समोसरणे। २.गंडमाणियाए पच्छिपिडएणं (क,च); गंडमा- ६.सं० पा०–एस सण्णा । णियाए पडिपिडएणं (ख,ग); गंडमाणियाए ७. सं० पा०- एस सण्णा जाव समोसरणे। पिच्छिपिडिएणं (छ)। ८. छंड्डिस्सामि (च)। ३. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ९. अकामियं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. सं० पा०-~-जीवो तं चेव । १०. सं० पा०-~अगामियाए जाव अडवीए। Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एसि-कहाणगं १६६ अणुपत्ता समाणा एगमहं अयागरं पासंति- अएणं सव्वतो समंता आइण्णं विच्छिष्णं' सच्छडं" उवच्छडं" फुडं अवगाढं गाढं पासंति, पासित्ता हट्ट चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस - विसप्पमाण - हियया अण्णमण्णं सहावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी - एस णं देवाणुपिया ! अयभंडे इट्ठे कंते पिए मणुण्णे' मणामे, तं सेयं खलु देवाप्पिया ! अम्हं अयभारयं बंधित्तए त्ति कट्टु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमट्ठ पडिसुर्णेति, अयभार बंधंति, बंधित्ता अहाणुपुब्बीए संपत्थिया । तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए' 'छिण्णावायाए दीहमद्धाए' अडवीए कंचि देसं अणुपत्ता समाणा एवं महं तउनागरं पासंति- तउएणं आइण्णं" "विच्छिष्णं सच्छडं उवच्छडं फुडं अवगाढं गाढं पासंति, पासित्ता हट्टतुट्ठ-चित्तमाणं दिया पीड्मणा परमसोमणस्सिया हरिसवस - विसप्पमाणहियया अण्णमण्णं सहावेंति, सद्दा वेत्ता एवं वयासी -- एस पं देवाप्पिया ! उभंडे' इट्ठे कंते पिए मणुष्णे' मणामे । अप्पेणं चेव तउएणं सुबह भति तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अयभारयं छड्डेत्ता तज्यभारयं बंधित्तए त्ति कट्टु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमट्ठ पडिसुर्णेति, अयभारं छड्डेति तउयभारं बंधंति । तत्थ णं एगे पुरिसे णो संचाएइ अयभारं छड्डेत्तए, तउयभारं बंधित्तए । तए णं ते पुरिसा तं पुरिसं एवं वयासी -- एस णं देवाणुप्पिया ! तउयभंडे' 'इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे । अप्पेणं चैव तणं सुबहं अए लम्भति । तं छड्डेहि णं देवाणुप्पिया ! अयभारगं, तयभार बंधाहि । तणं से पुरिसे एवं वयासी- दूराहडे मे देवाणुप्पिया ! अए, चिराहडे मे देवाणुप्पिया ! अए, अइगाढबंधणबद्धे मे देवाणुप्पिया ! अए, असिलिबंधणवद्धे मे देवाणुप्पिया ! अए, धणियबंधणवद्धे मे देवागुप्पिया ! अए - णो संचाएमि अयभारगं छड्डेत्ता तयभारगं बंधत्तए । तणं ते पुरिसा तं पुरिसं जाहे णो संचाएंति बहूहि आघवणाहि य पष्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्त" वा तया अहाणुपुवीए संपत्थिया । तणं ते पुरिसा तीसे अगामियाए छिष्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता समाणा एवं महं तंबागरं पासंतिततया अहाणुपुब्बीए संपत्थिया । तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दोहमद्धाए अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता समाणा एवं महं रुप्पागरं पासंतित- .......तया अहाणुपुव्वीए संपत्थिया । तणं ते पुरिसा ती अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता १. विणिच्छिण (क, च) ; विणिकिण्णं (घ); विष्णिच्छिष्णं (छ) । २. सच्छड्ड (क, ख, ग ) ; सघडं (घ ); संत्थडं (च) ; सच्छण्णं (छ) । ३. उवत्थड (च,छ) । ४. सं० पा० - हट्टतुट्ठ जाव हियया । ५. सं० पा०—कंते जाव मणामे । ६. मं० पा० – अगामियाए जाव अडवीए । ७. सं० पा० – आइण्णं तं चेव जाव सद्दावेत्ता ! ८. सं० पा० - तयभंडे जाव मणामे । ६. सं० पा० – तयभंडे जाव सुबहं । १०. विष्णवित्तए ( क, ख, ग, घ, छ) ११. सं० पा०-- एवं तंबागरं रूप्पागरं सुवण्णागरं रयणागरं वइरागरं ! Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० रायपसेनश्य समाणा एगं महं सुवण्णागरं पासंति "" तया अहाणुपुव्वीए संपत्थिया। तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता समाणा एग महं रयणागरं पासंति....." तया अहाणुपुवीए संपत्थिया। तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता समाणा एगं महं वइरागरं पासंति-वइरेणं आइण्णं विच्छिण्णं सच्छडं उवच्छडं फुड अवगा गाढं पासंति, पासित्ता हद्वतुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! वइरभंडे इ8 कंते पिए भणुण्णे मणामे । अप्पेणं चेव वइरेणं सुवहुं रयणे लब्भति, तं सेयं खलु देवाणप्पिया! रयणभारयं छड्डे त्ता वइरभारयं बंधित्तए त्ति कट्ट अण्णमण्णस्स अंतिए एयमट्ठ पडिसुणेति, रयणभारं छड्डे ति वइरभारं बंधंति । तए णं मे पुरिसे णो संचाएइ अयभारं छड्डेत्तए, वइरभारं बंधित्तए। तए णं ते पुरिसा तं पुरिसं एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया! वइरभंडे इठे कंते पिए मणुण्णे मणामे। अप्पेणं चेव वइरेणं सुबहुं अए लब्भति । तं छड्डे हि णं देवाणुप्पिया ! अयभारगं, वइर. भारगं बंधाहि। तए णं से पुरिसे एवं वयासी-दुराहडे मे देवाणु प्पिया! अए, चिराहडे मे देवाणुप्पिया ! अए. अइगाढबंधणबद्ध मे देवाणप्पिया ! आए, असिलिट्रबंधणवद्ध मे देवाणप्पिया! अए. धणियबंधणवद्धे मे देवाणुप्पिया ! अए-णो संचाएमि अयभारगं छड्डेत्ता वइरभारयं बंधित्तए। तए णं ते पुरिसा तं पुरिसं जाहे णो संचाएंति बहूहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा तया अहाणुपुवीए संपत्थिया । तए णं ते पुरिसा जेणेव सया जणवया जेणेव साई-साई नगराइं तेणेव उवागच्छंति, वइरवेयणं करेंति, सुबहुं दासी-दास-गो-महिस-गवेलगं गिव्हंति, अतृतलमूसिय'-पासायवडेंसगे करावेंति, ण्हाया कयवलिकम्मा उप्पि पासायवरगया फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं वत्तीसइबद्धएहिं नाडएहि वरतरुणीसंप उत्तेहि उवणच्चिज्जमाणा उवगिज्जमाणा उवलालिज्जमाणा इ8 सद्द-फरिस-रस-रूव-गधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणा विहरंति । तए णं से पुरिसे अयभारए' जेणेव सए नगरे तेणेव उवागच्छइ, अयभारगं गहाय वेयणं" करेति । तसि अयपुग्गलंसि निद्वियंसि झीणपरिव्वए' ते पुरिसे उप्पि पासायवरगए 'फुट्टमाणेहि मुइंगमत्थएहिं बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहि वरतरुणीसंपउत्तेहिं उवणच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे इठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए १. मूलिय (क,ख,ग,च,छ)। ६. सं० पा०---पासायवरगए जाव विहरमाणे; २. सं० पा०-फरिस जाव विहरंति । अत्र पच्चणुभवमाणे पासति' इत्यनेनैवार्थ ३. पूर्व 'अयहारए' इति पाठो दृश्यते । संगतिर्जायते । “पच्चणुभवमाणे विहरमाणे' ४. अयवेयणं (क, ख, ग, च, छ)। द्विरुक्तमिवाभाति, किन्तु सर्वेषु आदर्शेषु इत्थमेव ५. परिसाए (क)। पाठो लभ्यते। Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एसि-कहाणगं २०१ पञ्च भवमाणे विहरमाणे पासति, पासिता एवं वयासी - अहो णं अहं अधणे अपुणे अकत्थे अकलक्खणे हिरिसिरिवज्जिए' हीणपुण्ण चाउसे दुरंतपंतलक्खणे । जति णं अहं मित्ताण वा णाईण वा नियगाण वा सुतओ तो णं अहं पि एवं चेव उप्पि पासायवर गए' फुट्टमाणेहि मुइंगमत्यएहि वत्ती सइबद्ध एहि नाडएहिं वरतरुणी संपउत्तेहि उवणच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे इट्ठे सह-फरिस - रस- रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सर कामभोए पच्चणुभवमाणे विहरतो । से तेणट्ठेणं पएसी ! एवं बुच्चइ - मा गं तुमं पएसी ! पच्छाणुताविए भवेज्जासि, जहा व से पुरिसे अयभारए || एसिस गिहिधम्म-पडिवज्जण पदं ७७५. एत्थ गं से पएसी राया संबुद्धे केसि कुमार-समणं वंदइ' 'नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी --- णो खलु भंते ! अहं पच्छाणुताविए भविस्सामि, जहा व से पुरिसे अयभारए, तं इच्छामि णं देवाणुप्पियाणं अंतिए केवलिपण्णत्तं धम्मं निसामित्तए । अहासुहं देवाप्पिया ! मा पडिबंध करेहि । धम्मकहा जहा चित्तस्स गिहिधम्मं पडिवज्जइ, जेणेव सेयविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ आयरिय-वियप डिवत्ति-पदं ७७६. तए णं केसी कुमार-समणे पएस रायं एवं वयासी - जाणासि णं तुमं पएसी ! कइ आयरिया पण्णत्ता ? हंता जाणामि, तओ आयरिआ पण्णत्ता, तंजहा -- कलायरिए, सिप्पारिए, धम्मारिए । जाणासि णं तुमं पएसी ! तेसिं तिष्हं आयरियाणं कस्स का विणयपडिवत्ती पउंजियव्वा ? हंता जाणामि - कलायरियस्स सिप्पायरियस्स उवलेवणं' संमज्जणं वा करेज्जा, पुप्फाणि वा आणवेज्जा, मज्जावेज्जा, मंडावेज्जा', भोयावेज्जा वा, विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलज्जा, पुत्ताणुपुत्तियं वित्ति कप्पेज्जा । जत्थेव धम्मायरियं पासिज्जा तत्थेव वंदेज्जा णमंसेज्जा सक्कारेज्जा सम्माणेज्जा, कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जा, फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइ मेणं पडिला भेज्जा, पाडिहारिएणं पीढ - फलग सेज्जा- संथारएणं उवणिमंतेज्जा । एवं च ताव तुमं पएसी ! एवं जाणासि तहावि गं तुमं ममं वामं वामेणं" "दंड दंडेग पsिकूलं पडिकूलेणं पडिलोमं पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेणं वट्टित्ता ममं एयमट्ठ अक्खामित्ता जेणेव सेयविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए । एसिस्स अत्त निवेदण-पदं ७७७. तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं क्यासी -- एवं खलु भंते ! मम eared अज्झथिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकपे समुप्पज्जित्था -- एवं खलु अहं १. परिवज्जिए ( क, ख, ग, घ, छ ) । २. सं० पा०---पासायवरगए जाव विहरतो । ३. सं० पा०वंदइ जाव एवं । ४. राय० सू० ६६३ । ५. उलेवणं (क, च, छ ) 1 ६. मुंडावेज्जा (क, छ) 1 ७. सं० पा० – वामेणं जाव वट्टित्ता । ८. सं० पा० अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था । Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ रायपसेणइयं देवाणुप्पियाणं वामं वामेणं' 'दंडं दंडेणं पडिकूलं पडिकूलेणं पडिलोमं पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेणं° वट्टिए, तं सेयं खलु मे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमलकोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए रत्तासोगपगास-किसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागर-णलिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सर स्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते अंतेउरपरियालसद्धि संपरिवुडस्स' देवाणुप्पिए वंदित्ता नमंसित्ता एतमट्ठे भुज्जो-भुज्जो सम्म विणएणं खामित्तए त्ति कटु जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ।। पएसिस्स खामणा-पदं ७७८. तए णं से पएसी राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए' 'फुल्लुप्पल-कमलकोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए रत्तासोगपगास-किसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागर-गलिणिसंडवोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे° तेयसा जलते हट्टतुट्ट •चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमण स्सिए हरिसवस-विसप्पमाण° हियए जहेव कणिए तहेव' निग्गच्छइ-अंतेउर-परियालसद्धि संपरिडे, पंचविहेणं अभिगमेण 'अभिगच्छइ, [तंजहा-सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए, अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणयाए, एगसाडियं उत्तरासंगकरणेणं, चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेणं, मणसो एगत्तीभावकरणणं] 1 केसि कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ नमसइ, एयमझें भुज्जो-भुज्जो सम्म विणएणं खामेइ ।। चाउज्जामधम्म-कहण-पदं ७७६. तए णं केसी कुमार-समणे पएसिस्स रण्णो सूरियकतप्पमुहाणं देवीणं तीसे य महतिमहालियाए महच्चपरिसाए 'चाउज्जाम° धम्म परिकहेई॥ रमणिज्ज-अरमणिज्ज-पदं ७८०. तए" णं से पएसी राया धम्म सोच्चा निसम्म उढ़ाए उठेति, केसि कुमार१. सं० पा०-वामेणं जाव वट्टित्ता । ६. सं० पा०---अभिगमेणं जाव वंदइ । २. परिवुडस्स (क, ख, ग, च)! ७. कोष्ठकतिपाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । ३. सं० पा०---रयणीए जाव तेयसा । ८. सं० पा०--महच्चपरिसाए जाव धम्म । ४. सं० पा०--हट्ठ? जाब हियए। ६. राय० सू० ६६३ । ५. ओ० सू० ६३-७० १०. केशिस्वामिना प्रदेशिराजस्य चातुर्यामः धर्म: कथितः ! (द्रष्टव्यं सू० ७७६) प्रदेशिराजेन च देश रूपेण चातुर्याम: धर्मः स्वीकृतः । (द्रष्टव्यं सू० ७६६) किन्तु अत्र तत्स्वीकारस्य नास्ति कश्चिदुल्लेखः । ७६६ सूत्रे 'पुचि पिणं मए के सिस्स कुमार-समणस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए' इत्यादि उल्लिखितमस्ति किन्तु इह नास्ति तस्योल्लेखः, तेनेति प्रतीयतेसौ पाठः संक्षिप्तपद्धत्या टितो जातः । प्रकरणानुसारेणात्र इत्थं पाठो युज्यते-तए णं सा महतिमहालिया महच्चपरिसा केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया। तए णं से पएसी राया के सिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हतचित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्टाए उठेइ, उठेत्ता केसि कुमार-समणं Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं २०३ समणं वंदइ नमसइ, जेणेव सेयविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए । ७८१. तए णं केसी कुमार-समणे पएसि राय एवं वयासी-मा णं तुमं पएसी ! पूवि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा' अरमणिज्जे भविज्जासि, जहा--से वणसंडेइ वा, णट्टसालाइ वा, इवखुवाडेइ वा, खल वाडेइ वा ॥ ७८२. कहं णं भंते ! 'वणसंडे पुष्वि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवति ? पएसी ! --- जया णं वणसंडे पत्तिए पुप्फिए फलिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे चिट्ठइ, तया णं वणसंडे रमणिज्जे भवति । जया णं वणसंडे नो पत्तिए नो पुरिफए नो फलिए नो हरियगरेरिज्जमाणे णो सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे चिट्ठइ तया णं जुष्णे झडे' परिसडिय-पंडुपत्ते सुक्क रुक्खे इव मिलायमाणे चिट्ठइ, तया णं वणसंडे णो रमणिज्जे भवति ॥ ७८३. [कह" णं भंते ! णट्टसाला पुचि रमणिज्जा भवित्ता पच्छा अरमणिज्जा भवति ? पएसी ! ?] जया ण णसाला गिज्जइ' वाइज्जइ नच्चिज्जइ अभिणिज्जइ हसिज्जइ रमिज्जइ, तया णं णटटसाला रमणिज्जा भवइ । जया णं णटटसाला णो गिज्जई" •णो वाइज्जइ णो नच्चिज्जइ णो अभिणिज्जइ णो हसिज्जइ° णो रमिज्जइ, तया णं णसाला अरमणिज्जा भवइ॥ तिक्खत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सहहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । पत्तियामि णं भंते ! निग्गथं पावयणं । रोएमि णं भंते ! निग्गथं पावयणं । अब्भुठेमि णं भंते ! निम्मथं पावयणं । एवमेयं भंते ! निर्गथं पावयणं । तहमेयं भंते ! निग्गंथं पावयणं । अवितहमेयं भंते ! असंदिरमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते! जंणं तुम्भे वदह ति कट्ट वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-- जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उम्गा उग्गपुत्ता भोगा जाव--सू०६८८ इन्भा इन्भपुत्ता चिच्चा हिरणं, एवं-धणं धन्नं बलं वाहणं कोसं कोडागारं पुरं अंतेउर, चिच्चा विउलं धण-कणग-रयणमणि-मोत्तिय-संख-सिल-पवाल-संतसार-सावएज्ज, विच्छडित्ता विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, मडा भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वयंति, णो खलु अहं तहा संचाएमि चिच्चा हिरणं, एवं-धणं धनं बलं वाहणं कोसं कोट्रागारं पुरं अंतेउर, चिच्चा विउलं धण-कणग-रयणमणि - मोत्तिय - संख-सिल-प्पवाल-संतसार-सावएज्जं, विच्छड्डिता विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, मुडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्व इत्तए, अहं णं देवाणु प्पियाणं अंतिए चाउज्जामियं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामि । तए णं से पएसी राया केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए चाउज्जामियं गिहिधम्म उवर्मपज्जित्ताणं विहरति । तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं वंदइ नमसइ, जेणेव सेविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। १. पच्छा मा (क, ख, ग, घ, च, छ)। ५.७८३, ७८४, ७८५ : कोष्ठकतिपाठः पूर्व२. सं० पा०-भंते ! वणसंडे । सूत्रक्रमेण पूरितोस्ति । ३. डोडे (क, ख, ग, घ); झाडे (च, छ)। ६. वइगिज्जइ (च. छ) । ४. वणे (क, च, छ) । ७. सं० पा०—गिज्जइ जाव णो रमिज्जइ । Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणाइ ७८४. [कहं णं भंते ! इक्खवाडे पुचि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवति ? पएसी! ?] जया णं इक्खुवाडे छिज्जइ भिज्जइ लुज्जइ खज्जइ पिज्जइ दिज्जइ, तया णं इक्खवाडे रमणिज्जे भवइ । जया णं इक्खुवाडे णो छिज्जइ' •णो भिज्जइ णो लुज्जइ णो खज्जइ णो पिज्जइ णो दिज्जइ°, तया णं इक्खुवाडे अरमणिज्जे भवइ ।। ७८५. [कहं णं भंते ! खलवाडे पुचि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवति ? पएसी ! ?] जया णं खलवाडे उच्छुब्भइ उडुइज्जइ' मलइज्जइ पुणिज्जइ खज्जइ पिज्जइ दिज्जइ, तया णं खलवाडे रमणिज्जे भवति । जया गं खलवाडे णो उच्छुब्भइ' णो उडुइज्जइ णो मलइज्जइ नो पुणिज्जइ नो खज्जइ णो पिज्जइ णो दिज्जइ, तया णं खलवाडे° अरमणिज्जे भवति । ७८६. से तेणठेणं पएसी! एवं वुच्चइ-मा णं तुम पएसी ! पूवि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविज्जासि, जहा-से वणसंडेइ वा गिट्टसालाइ वा, इक्खुवाडेइ वा खलवाडेइ वा ।। ७८७. तए णं पएसी केसि कुमार-समणं एवं वयासी-णो खलु भंते ! अहं पुब्धि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविस्सामि, जहा-से वणसंडेइ वा 'णट्टसालाइ वा, इक्खुवाडेइ वा खलवाडेइ वा,-अहं णं सेयबियापामोक्खाई सत्तगामसहस्साई चत्तारि भागे करिस्सामि—एगं भागं बलवाहणस्स दल इस्सामि, एग भाग कोट्ठागारे छुभिस्सामि, एग भागं अंतेउरस्स दल इस्सा मि, एगेणं भागेणं महतिमहालियं कूडागारसालं करिस्सामि । तत्थ णं वहूहिं पुरिसेहिं दिण्णभइ-भत्त-वेयणेहिं विउलं असणं पाणं साइमं खाइम उवक्खडावेत्ता वहूणं समण-माहण-भिक्खयाणं पंथिय-पहियाणं परिभाएमाणे, वहहिं सीलव्वय-गुणव्वय-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोवबासेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सामि त्ति कटु जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए। पएसिणा रज्जस्स चउभाग-करण-पदं ७८८. तए णं से पएसी राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमलकोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए रत्तासोग-पगास-किसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागर-णलिणिसंडवोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिस्मि दिणयरे° तेयसा जलते सेयवियापामोक्खाई सत्तगामसहस्साइं चत्तारिभाए करेइ-एगं भागं बलवाहणस्स दलयइ", १. सं० पा०—छिज्जइ जाव तयाणं । पाठः इत्थं लभ्यते-पोसहोववासेहिं अहापरि२. उड (क, घ, च)। महिएहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे ३. सं० पा०-उच्छुब्भइ जाव अरमणिज्ज । विहर।।' सूत्रकृताङ्गे (२।२।४२) पि इत्थ४. सं० पा०-दणसंडे इ वा । मेव-पोसहोववासेहि अहापरिग्गहिएहि ५. सं० पा०--वणसंडे इ वा जाव खलवाडे । तवीक म्मेहि अप्पाणं भावेमाणा विहरति ।' ६. 'समक्खाइं (च, छ) । ६. दिसं (क)। ७. पंथियाणं (क)। १०. सं० पा०-कल्लं जाव तेयसा । ८.सं० पा.--- पोसहोववासस्स जाव ११. सं० पा०-दलयइ जाव कूडागारसाल । विहरिम्सामि; औपपातिके (सू० १२०) अयं Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं २०५ •एगं भागं कोढागारे छुभइ, एगं भागं अंतेउरस्स दलयइ, एगेणं भागेणं महतिमहालियं कूडागारसालं करेइ। तत्थ णं बहूहिं पुरिसेहिं 'दिण्णभइ-भत्त-वेयणेहि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं° उववखडावेत्ता बहूणं समण- माहण-भिक्खुयाणं पंथिय-पहियाणं परिभाएमाणे विहरइ॥ पएसिस्स समणोवासयत्त-पदं ७८६. तए णं से पएसी राया समणोवासए अभिगयजीवाजीवे' 'उवलद्धपुण्णपावे आसव-संवर-निज्जर-किरियाहिगरण-बंधप्पमोक्ख-कुसले असहिज्जे देवासुर-णाग-सूवण्णजक्ख-रक्खस-किण्ण र-किंयुरिस-गरुल-गंधव-महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अण इक्कमणिज्जे, निग्गंथे पावयणे हिस्संकिए णिक्कंखिए णिव्वितिगिच्छे लद्धठे गहियठे अभिगयठे पुच्छियठे विणिच्छियठे अट्टिमिजपेमाणुरागरत्ते अयमाउसो निगंथे पावयणे अट्ठे परमठे सेसे अणठे, ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउरघरप्पवेसे चाउद्दसट्टमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणे, समणे जिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जण य पडिलाभेमाणे-पडिलाभेमाणे बहहिं सीलव्वयगुण-वेरमण-पच्चवखाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेमाणे° विहरई॥ पएसिस्स रज्जोवरइ-पदं ७६०. जप्पभिई च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिई च णं रज्जं च रठं च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्टागारं च पुरं च अंतेउरं च जणवयं च अणाढायमाणे यावि विहरति ॥ सूरियकंताए सूरियकतेण मंतणा-पदं ७६१. तए णं तीसे सूरियकताए देवीए इमेयारूवे अज्झथिए' 'चितिए पथिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था- जप्प भिई च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिई च णं रज्जं च रट्ठ" *च वलं च वाहणं च कोडागारं च पुरं च अंतेउरं च ममं जणवयं च अणाढायमाणे विहरइ, तं सेयं खलु मे पएसि रायं केण वि सत्थप्पओगेण वा अग्गिप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा उद्दवेत्ता' सूरियकंत कुमारं रज्जे ठवित्ता सयमेव रज्जसिरि 'कारेमाणीए पालेमाणीए" विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता सूरियकतं कुमारं सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं बयासी-जप्पभिई च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभियं च णं रज्जं च 'रठं च वलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च पुरं च° अंतेउर च ममं जणवयं च माणुस्सए य कामभोगे अणाढायमाणे विहरइ, तं सेयं खलु तव पुत्ता ! पएसिं रायं केणइ सत्थप्पओगेण वा 'अग्गिप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा विसप्पओगेण १. सं० पा०—पुरिसे हि जाव उवक्खडावेत्ता। ६. उववेत्ता (छ)। २. सं० पा०-समण जाव परिभाएमाणे । ७. कारेमाणी पालेमाणी (छ) । ३. सं० पा०-अभिगयजीवाजीवे विहरइ । ८. सं० पा०- रज्जं च जाव अंतेउरं । ४. सं० पा० --अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था । ९.सं० पा०-सत्थप्पओगेण वा जाव उहवेत्ता। ५. रट्टे जाव अंतेउरं। Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ वा उद्दवेत्ता सयमेव रज्जसिरि 'कारेमाणस्स पालेमाणस्स" विहरित्तए || ७६२. तए णं सूरियकंते कुमारे सूरियकंताए देवीए एवं वृत्ते समाणे सूरियकंताए देवीए एमट्ठ णो आढाइ णो परियाणाई तुसिणीए संचिट्ठइ ॥ सूरियकताए विसप्पओग-पदं ७६३. तए णं तीसे सूरियकंताए देवीए इमेयारूवे अज्झत्थिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था -- माणं सूरियकंते कुमारे पएसिस्स रण्णो इमं रहस्सभेयं करिसइति कट्टु पएसिस्स रण्णो छिद्दाणि य मम्माणि य रहस्साणि य विवराणि य अंतराणि य पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ || ७६४. तए णं सूरियकंता देवी अण्णया कयाइ पएसिस्स रण्णो अंतरं जाणइ, जाणिता असणं पाणं खाइमं साइमं 'सव्व वत्थ- गंध मल्लालंकार" विसप्पजोगं पउंजइ । पएसिस्स रणो व्हायरस' 'कयवलिकम्मस्स कयकोउय मंगल' पायच्छित्तस्स सुहासणवरगयस्स तं विससंजुत्तं असणं पाणं खाइमं साइमं सव्व वत्थ-गंध-मल्लालंकारं निसिरेइ ॥ एसिस्स समाहि-मरण-पदं ७६५. तए णं तस्स एसिस्स रण्णो तं विससंजुत्तं असणं आहारेमाणस्स सरीरगंसि वेणा पाउन्भूया - उज्जला विपुला पगाढा कक्कसा कडुया 'फरुसा निठुरा " चंडा" तिव्वा दुक्खा दुग्गा दुरहियासा, पित्तजरपरिगयसरीरे 'दाहवक्कतिए यावि" विहरइ ॥ ७६६. तए णं से पएसी राया सूरियकंताए देवीए अप्पदुस्समाणे जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, पोसहसालं पविसइ", उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, दम्भसंथारगं संथरेइ, दब्भसंथारगं दुरुहइ, पुरत्याभिमुहे संपलियंकनिसणे करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - नमोत्थु णं अरहंताणं जाव" सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं केसिस्स कुमार - समणस्स मम 'धम्मोवदेसगस्स धम्मायरिय वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासइ मे भगवं तत्थगए इहगयं ति कट्टु वंदइ नमसइ । पुव्वि पिणं मए केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए" पच्चक्खाए १. कारेमाणे पालेमाणे (क, छ) 1 २. सं० पा० - अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था । ३. वम्माणि (च ) 1 ४. विहुराणि (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. सं० पा० असणं जाव साइमं । सव्वालंकारं ( क ) ; ६. वत्थं गंधं ( च, छ) । ७. सं० पा०-हायस्स जाव पायच्छितस्स । ८. सं० पा० असणं जाव अलंकारं । रायपसेणइयं सव्वत्थ Ex (क, ख, ग, च, छ) । १०. वंता (क, च, छ) । ११. दाहवक्कतिया वि (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ) ! १२. पमज्जइ (च) 1 १३. राय सु० ८ । १४. धम्मोवएसद्वाणस्स (क, ख, ग, घ, छ); x (च) । १५. सं० पा०--पच्चक्खाए जाव परिग्गहे; ७७६ सूत्रानुसारेण केशिस्वामिना प्रदेशिराजाय चातुर्यामको धर्मः कथितः । ७८० सूत्रस्य पादटिप्पणगत पाठानुसारेण प्रदेशिराजेन केशिस्वामनोन्तिके चातुर्यामको गृहिधर्मः स्वीकृतः । प्रस्तुतसूत्रे पूर्वोक्तपाठानां संदर्भे एवासौ पाठः पूरितः तेनात्र चातुर्यामिक धर्मस्येव पाठो युज्यते । Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ पएसि-कहाणगं 'थूलए मुसावाए पच्चक्खाए, थूलए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए, थूलए परिगहे पच्चक्खाए, तं इयाणि पि णं तस्सेव भगवतो अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि' 'सव्वं मुसावायं पच्चक्खामि सव्वं अदिण्णादाणं पच्चक्खामि सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि सव्वं-कोहं, •माणं, मायं, लोहं, पेज्जं, दोसं, कलह, अब्भक्खाणं, पेसुण्णं, परपरिवायं, अरइरई, मायामोसं°, मिच्छादसणसल्लं, अकरणिज्जं जोयं पच्चक्खामि । सव्वं असणं पाणं खाइम साइमं चउन्विहं पि आहारं जावज्जीवाए पच्चक्खामि । जं पि य मे सरीरं इट्ठ कंतं पियं मणुण्णं मणामं पेज्जं वेसा सियं संमयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं मा णं सीयं मा णं उण्हं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं वाला मा णं चोरा मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाइय-पित्तिय-सिभिय-सण्णिवाइय' विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति एवं पि य णं चरिमे हिं ऊसासनिस्सासेहिं वोसिरामि त्ति कटु आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सूरियाभे विमाणे उववायसभाए' 'देवसयणिज्जसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए सूरियाभदेवत्ताए° उववण्णे ॥ सूरियाम-देव-पदं ७६७. तए णं से सूरियाभे देवे अहुणोववण्णए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति, [तंजहा-आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणपाणपज्जत्तीए भास-मणपज्जत्तीए] । तं एवं खलु गोयमा ! सूरियाभेणं देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवजुती दिव्वे देवाणभावे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए। ७६८. सूरियाभस्स णं भंते ! देवस्स केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता ।। दढपइण्णग-पदं ७६६. से णं सूरियाभे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे जाणि इमाणि कुलाणि भवंति–अड्ढाई दित्ताई विउलाई वित्थिण्ण-विपुल-भवण-सयणासण-जाण-वाहणाइं बहुधण-बहुजातरूव-रययाई 'आओगपओग-संपउत्ताई" विच्छड्डियपउरभत्तपाणाई बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूयाई बहुजणस्स अपरिभूयाई तत्थ अण्णय रेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चाइस्सइ ।। ८००. तए णं तंसि दारगंसि गब्भगयंसि चेव समाणंसि अम्मापिऊणं धम्मे दढा पइण्णा भविस्सइ ।। ८०१. तए णं तस्स दारयस्स नवण्हं मासाणं वहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण य राइंदियाणं १. सं० पा०-पच्चक्खामि जाव परिग्गहं । ६. कोष्ठकवर्ती पाठो व्याख्यांश: प्रतीयते । २. सं० पा०-कोहं जाव मिच्छादसणसल्लं । ७. ४ (क,ख,ग,घ,च,छ) । ३. सं० पा०-इठं जाव फुसंतु। ८. प्रस्तुतागमे औपपातिकसूत्रे च दृढप्रतिज्ञस्य ४. इह प्रथमा बहुवचनलोपो दृश्यते । प्रकरणं प्रायः समानमस्ति, केवलं पाठरचनायाः ५. सं० पा०-उववायसभाए जाव उववण्णे । किञ्चित्-किञ्चिद् भेदो दृश्यते । Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ रायपोषवं वितिक्कताणं' सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुण्णपंचिदियसरीरं लवखण-वंजण-गुणोववेयं माणुम्माणपमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंग ससि-सोमाकारं कंतं पियदसणं सुरूवं दारयं पयाहिइ॥ ८०२. तए णं तस्स दार गस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठितिवडियं करेस्संति ततिय दिवसे चंदसूरदसणगं करेस्संति छठे दिवसे जागरिय' जागरिस्संति, एक्कारसमे दिवसे वीडक्कते संपत्ते बारसमे दिवसे णिवत्ते अस इजायकम्मकरणे चोक्खे संमज्जिओवलित्ते विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेस्संति, मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधिपरिजणं आमंतेत्ता तओ पच्छा पहाया कयबलिकम्मा 'कयकोउयमंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिता अप्पमहग्घाभरणा लं किया भोयणमंडवंसि सुहासणवरगया तेणं मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणेण सद्धि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा वीसाएमाणा परि जेमाणा परिभाएमाणा एवं 'च णं" विहरिस्संति । जिभियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया तं मित्तणाई-णियग-सयण-संबंधि-परिजणं विउलेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेस्संति मम्माणिस्संति, तस्सेव मित्त- णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स पुरतो एवं वइस्संति ---जम्हा णं देवाणुप्पिया ! इमंसि दारगंसि गब्भगयंसि चेव समाणंसि धम्मे दढा पइण्णा जाया, 'तं होउ णं अम्हं एयस्स दारयस्स दढपइण्णे णामे णं ॥ ८०३. तए णं तस्स अम्मापियरो अणु पुट्वेणं ठितिवडियं च चंदसूरदरिसणं च जागरियं च नामधिज्जकरणं च 'पजेमणगं च पचंकमणगं च कण्णवेहणं च संवच्छरपडिलेहणगं च 'चूलोवणयं च" अण्णा णि य बहूणि गब्भाहाणजम्मणाइयाई महया इड्ढी-सक्कार-समुदएणं करिस्संति ॥ ८०४. तए णं दढपतिण्णे दारगे पंचधाईपरिविखत्ते-[खीरधाईए 'मज्जणधाईए मंडणधाईए अंकधाईए कीलावणधाईए'"], अण्णाहिं बहूहिं खुज्जाहिं चिलाइयाहिं १. अत्र 'सा' इति कर्तृपदं अध्याहार्यम् । द्रष्टव्यं करेहिति दढपइण्णत्ति (ओ० सू० १४४) । ठाणं ६।६२ सूत्रम् । ११. पुरगामणं च पंथगामणं च पज्जेमामणगं च २. सोम्मा (क, ख, ग) । पिंडवद्धावणगं च पज्जमाणमं च (क); परं३. धम्मजागरियं (क) 1 गामणं च पंचगामणं च पजेगामणगं च पिंड४. बारसाहे (क, च)। वद्धावणगं च पज्जमाणगं च (ख, ग, च); ५. सं० पा०-क्यबलिकम्मा जाव लंकिया। पगामणं च पचंकमणं च पजेपमाणगं च पिंड६. सं० पा०—णाइ जाव परिजणेण । वद्धावणगं च पज्जमाणगं च (छ)। ७. चेव णं (क, ख, ग, च, छ) । १२. चोलावणं च उवणयं च (क, ख, ग, घ); ८.सं० पा०-णाइ जाव परिजणं । चोलविणं च (च)। ६.सं. पा.---मित्त जाव परिजणस्स । १३. मंडणधाईए मज्जणधाईए कीलावणधाईए १०.तं होउ णं अम्हं दारए दढपइण्णे गामेणं । तए अंकधाईए (व) । कोष्ठकवी पाठो व्याख्यांश: णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्जं प्रतीयते । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परसि-कहाणगं वामणियाहिं वडभियाहि वब्बरियाहि वउसियाहिं' जोगियाहि पल्हवियाहि ईसिणियाहि थारु इणियाहिं' लासियाहि लउसियाहि दमिलाहि सिहलीहिं पुलिंदीहि आरवीहि पक्कणीहिं वहीहि मुरंडीहि ' सबरीहि' पारसीहि णाणादेसीहि विदेस-परिमंडियाहि 'इंगिय-चितियपत्थिय - वियाणयाहि संदेश वत्थ- गहिय- वेसाहि" निउणकुसलाहिं विणीयाहिं, चेडियाचक्कवाल - वरतरुणिवंद-परियाल - संपरिवुडे वरिसधर'-कंचुइमहयरवंदपरिक्खित्ते हत्याओ हत्थं साहरिज्जमाणे- साहरिज्जमाणे उवणचिज्जमाणे उवणचिज्जमाणे "अंकाओ अंक " परिभुज्जमाणे - परिभुज्जमाणे 'उवगाइज्जमाणे - उवगाइज्जमाणे " उबलालिज्जमाणेउवलालिज्जमाणे 'उवगृहिज्जमाणे उवगृहिज्ज माणे" अवतासिज्जमाणे- अवतासिज्जमाणे 'परिवदिज्जमाणे- परिवदिज्जमाणे" परिचुंबिज्जमाणे- परिचुंविज्जमाणे रम्मेसु मणिकोट्टिम तलेसुपरंगमाणे परंगमाणे " गिरिकंदरमल्लीणे विव" चंपगवरपायवे णिव्वाघायंसि सुहंसुहे परिवढिस्सइ || ८०५. तए णं तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो सातिरेगअट्ठवासजायगं जाणित्ता सोभणसि तिहिकरण णवखत्त-मुहुत्तंसि व्हायं कयवलिकम्मं कयकोउयमंगल-पायच्छित्तं सव्दालंकार विभूसियं करेत्ता महया इड्ढीसक्का रसमुदएणं कलायरियस्स उवणेहिति ॥ ८०६. तए णं से कलायरिए तं दढपइण्णं दारगं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुपज्जवसाणाओं बावन्तरि कलाओ सुत्तओ अत्थओ य गंथओ य 'करणओ य" 'सिक्खावेहिइ सेहावेहिइ", तं जहा - १. लेहं २. गणियं ३. रूवं ४. नट्टं ५. गीयं ६. वाइयं ७. सरगयं ८. पुक्खरगयं ६. समतालं १०. जूयं ११. जणवायं १२. पासगं १३. अट्ठावयं १४. पोरेकव्वं १५. दगमट्टियं १६. अन्नविहि १७. पाणविहि १८. वत्थविहि १६. विलेवणविहि २०. सयणविहि २१. अज्जं " २२. पहेलियं २३. मागहियं " २४. गाहं २५. गोइयं * २६. सिलोगं २७. हिरण्णजुति २८. सुवण्णजुति २६. आभरणविहिं ३०. तरुणीपडिकम्मं ३१ इत्थिलक्खणं ३२. पुरिसलवखणं ३३. हयलक्खणं ३४. १. बक्क° (क); चउ' (ख, ग, च) ; पउसियाहि ११. x ( क, ख, ग, घ, च, छ ) । ( ओ० सू० ७० ) । २. पण्ण (ख, ग, घ, च) । ३. बारुणियाहि (क, च, छ ); ( ख, ग, घ ) । ४. x ( क, ख, ग, घ, च, छ ) । ५. मरुंडीहि (ओ० सू० ७० ) । दारुणिणियाहि ६. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. सदेसनेचच्छगहियवेसाहि इंगियचितिपत्थिय वियाणियाहि (क, ख, ग, घ, च, छ) । ८. वरिसवर (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ६. अंगेण अंग (क, ख, ग, घ, च, छ) । १०. परिगीयमान: (वु) 1 १२. x ( क, ख, ग, घ, च, छ) । १३. ओपपातिक १४४ सूत्रस्य वाचनान्तरे'परंगमाणे ' इति पाठो दृश्यते । २०६ १४. इव (क) 1 १५. X ( क, ख, ग, घ, च) । १६. सिक्खावेहिय सेहावेहि य ( क ) ; सेहावेहि य सिक्खावेहिय (बु) । १७ जणवयं (घ, च, छ) । १८. अज्जे (क, ख, ग, च) १६. मागहियं णिद्दाइयं (घ, च, छ ) । २०. गीयं (च, छ) । Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं गयलक्खणं ३५. गोणलक्खणं ३६. कुक्कुडलक्खणं ३७. छत्तलक्खणं ३८. चक्कलक्खणं' ३६. दंडलक्खणं ४०. असिलक्खणं ४१. मणिलक्खणं ४२. कागणिलक्खणं' ४३. वत्युविज्जं ४४. णगरमाणं ४५. खंधावारमाणं ४६. चारं ४७. पडिचारं ४८. वूहं ४६. पडिवहं ५०. चक्कवूहं ५१. गरुलवूहं ५२. सगडवूहं ५३. जुद्धं ५४. निजुद्धं ५५. जुद्धजुद्ध" ५६. अट्टिजुद्धं ५७. मुट्ठिजुद्धं ५८. वाहुजुद्धं ५६. लयाजुद्धं ६० ईसत्थं ६१. छरुप्पवायं ६२. धणुवेयं ६३. हिरण्णपागं ६४. सुवण्णपागं* ६५. सुत्तखेड्ड" ६६. वट्टखेड्ड ६७. गालियाखेडं ६८. पत्तच्छेज्जं ६६. कडगच्छेज्जं ७०. सज्जीवं ७१. निज्जीवं ७२. सउणरुयं इति । ८०७. तए णं से कलायरिए तं दढपइण्णं दारगं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावर्त्तारि कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य गंथओ य करणओ य सिक्खावेत्ता सेहावेत्ता अम्मापिऊणं उवणेहिइ ॥ ८०८. तए णं तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विउलेणं असण- पाणखाइम साइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारिस्संति सम्माणिस्संति, विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दल इस्संति, दलइत्ता पडिविसज्जेहिति ।। ८०६. तए णं से दढपइण्णे दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुपत्ते वावत्तरिकलापंडिए णवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारए' गीयरई गंधव्वणट्टकुसले सिंगारागारचारुरूवे संगय-गय-हसिय- भणिय-चिट्ठिय-विलासणिउण- जुत्तोवयारकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी यावि भविस्सइ || २१० ८१०. तए णं तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं' •विष्णयपरिणयमित्तं जोव्वणगमणुपत्तं वावत्तरिकलापंडियं णवंगसुत्तपडिबोहियं अट्ठारसविहदे - सिप्पगार भासाविसारयं गीयरई गंधव्वणट्टकुसलं सिंगारागारचारुरूवं संगय-गय- हसियभणिय-चिट्ठिय-विलास पिउण-जुत्तोवयारकुसलं हयजोहि गयजोहि रहजोहिं बाहुजोहिं वाहुप्पम अलंभोग समत्थं साहसियं विद्यालचारि च वियाणित्ता विउलेहि अण्णभोगेहिय पाणभोगेहि य ले भोगेहि य वत्थभोगेहि य सयणभोगेहि य उवनिसंतेहिति ॥ ८११. तए णं दढपइण्णे दारए तेहि विउलेहि अण्णभोगेहि पाणभोगेहि लेणभोगेहि वत्यभोगेहिं सयणभोगेहि णो सज्जिहिति णो गिज्झिहिति णो मुज्झिहिति णो अज्झोववज्जिहति । से जहाणामए पउमुप्पलेइ" वा पउमेइ वा" कुमुएइ वा नलिइ वा सुभगेइ वा सुगंधिएइ वा पोंडरीएइ वा महापोंडरीएइ वा सयपत्तेइ वा सहस्तपत्ते वा १. x (क, ख, ग ) । २. कागिणि° (क) । ३. जुद्धाइजुद्धं (क, ख, ग ) 1 ४. पागं मणिपागं धाउपागं ( क, ख, ग, घ, च, छ ) । ५. खेडं (क, ख, ग, च, छ । ६. विदेसप्प (क, घ) 1 ७. भिंगारा ( क ) । ८. सं० पा०—उम्मुक्कबालभावं जाव वियाल - चारि । ६. सं० पा० - अण्णभोगेहि जाव सयणभोगेहि । १०. ' उप्पलेइ' ओ० सू० १५०; अत्रापि 'उप्पले ' इति पाठो युक्तोस्ति । ११. सं० पा०-- पउमेर वा जाव सयसहस्पतेइ वा । Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एसि-कहाणगं २११ पंके जाते जले संबुड्ढे गोवलिप्पइ पंकरएणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव दढपणे वि arry कामेहिं जाए भोगेहि संवड्ढिए णोवलिप्पिहिति' कामरएणं णोवलिप्पिहिति भोगरएणं णोवलिप्पि हिति मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं || ८१२. से णं तहाख्वाणं येराणं अंतिए केवलं बोहि बुज्झिहिति, मुंडे' भवित्ता अगाराओ अणगाfरयं पव्वइस्सति ॥ ८१३. से णं अणगारे भविस्सइ - इरियासमिए' भासासमिए एसणासमिए आयाणभंड- मत्त - णिकखेवणासमिए उच्चार- पासवण खेल-सिंघाण जल्ल-परिद्वावणियासमिए ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुतिदिए गुत्तबंभयारी अममे अकिचणे निरुवलेवे कंसपाई मुक्कतोए, संखो इव निरंगणे, जीवो विव अप्पsिहयगइ जच्चकणगं पिव जायरूवे, आरिफ लगा इव पागडभावे, कुम्मो इव गुत्तिदिए, पुक्खरपत्तं व निश्वलेवे, गगणमिव निरालंबणे, अणिलो इव निरालए, चंदो इव सोमलेसे, सूरो इव दित्ततेए, सागरो इव गंभीरे, विग इव सम्बओ विपमुक्के, मंदरो इव अप्पकंपे, सारयसलिलं व सुद्धहियए, खग्गविसाणं व एगजाए, भारुडपक्खी व अप्पमत्ते, कुंजरो इव सोंडीरे, वसभो इव जायत्थामे, सीहो इव दुद्धरसे, वसुंधरा इव सव्वफासविसहे, सुहुहुयासणे इव तेयसा जलते || १४. तस्स णं भगवतो अणुनरेणं णाणेणं अणुत्तरेणं दंसणेणं अणुत्तरेणं चरित्तेण अणुत्तरेणं आलएणं अणुत्तरेणं विहारेणं अणुत्तरेणं अज्जवेणं अणुत्तरेणं मध्वेणं अणुत्तरेणं लाघवेण अणुत्तराए खेतीए अणुत्तराए गुत्तीए अणुत्तराए मुत्तीए अणुत्तरेणं सव्वसंजमसुचरितवफल'- णिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अणते अणुत्तरे कसिणे पडणे शिरावरणे णिव्वाघाए केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जिहिति ॥ ८१५. तए णं से भगवं अरहा जिणे केवली भविस्सइ, सदेवमणुयासुरस्त लोगस्स परियायं जाणिहिति, तं जहा - आगति गति ठिति चवणं 'उववायं तक्कं" कडं मणोमाणसियं खइयं भूत्तं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं, अरहा अरहरसभागी तं कालं तं मणवयकायजोगे वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सा || १६. तए णं दढपणे केवली एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूहं वासाई केवलिपरियागं पाउणहिति, पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं आभोएत्ता, बहूई भत्ताई पच्चवखाइस्सइ, बहूई भत्ता असणाए छेइस्सइ, जस्सट्ठाए कीरइ णग्गभावे मुंडभावे केसलोए बंभचेरवासे अण्हाणगं अदंतमणगं अच्छत्तगं अणुवाहणगं भूमिसेज्जाओ फलहसेज्जाओ परधरपवेसो लद्धावलढाई माणावमाणाई परेसि' हीलगाओ निंदणाओ खिसणाओ तज्जणाओ ताडणाओ गरहणाओ उच्चावया विरूवरूवा बावीसं परीसहोवसग्गा गामकंटगा अहियासिज्जंति, तमट्ठे आराहेहि, आराहित्ता चरिमेहिं उस्सास - निस्सासहि सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिनिव्वाहिति सव्वदुक्खाणमंत करेहिति ॥ १. सं० पा० गोवलिप्पिहिति मित्तणाइ । २. केवलं मुंडे (क, च, छ) । ३. सं० पा० - इरियासमिए जाव सुहुयहुयासणे । ४. सुचरितवसुचरियफल (क, ख, ग, घ,च, छ ) ; सच्च संजम तव सुवरियसोषचियफल (५०८१) । ५. उववायं तत्थं (घ); उववातत्यं (च) ; उबवायतत्थं (छ) । ६. औपपातिके ( सू० १५४) परेहि पाठो लभ्यते । Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ रायपसेणइयं ८१७. सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति । णमो जिणाणं जियभयाणं । णमो सुयदेवयाए भगवतीए । णमो पण्णत्तीए भगवईए । णमो भगवओ अरहओ पासस्स । पस्से सुपस्से पस्सवणी णमो।। प्रन्य-परिमाण अक्षर-परिमाण: ६३५९४ अनुष्टुप्-श्लोक-परिमाण : २६३४, अक्षर ६ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और आधार-स्थल निर्देश ओवाइयं पूर्ति आधार-स्थल सूत्र पूर्त-स्थल सूत्र ११७ १५७ ~ 2. > WP ~ .. ८६ १५३ १४६ १८३ ११७ वृत्ति, पृष्ठ १८८ १०५ संक्षिप्त-पाठ अगामियाए जाव अडवीए अद्रारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता परलोगस्स आराहया सेसं तं चेव अणंते जाव केवलवरणाणदंसणे अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहि अपज्जवसिया जाव चिट्ठति अपडिविरया एवं जाव परिग्गहाओ अभिगय जीवाजीवे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, णवरं ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउरघरदारपवेसी' एयं ण बुच्चई अयबंधणाणि वा जाव महद्धणमोल्लाई अवहमाणए जाव से असंजए जाव एगंतसुत्ते आगमेसिभद्दा जाव पडिरूवा आभिणिबोहियणाणी जाव केवलणाणी आयारधरा जाव विवागसुयधरा आवलियाए जाव अयणे इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी उदए जाव झीणे एक्कतीसं सागरोवमाइंठिई परलोगस्स अणाराहगा सेसं तं चेव एवं एएणं अभिलावेणं तिरिक्खजोणिएसु एवं चेव पसत्थं भाणियव्वं १. क्वचित्-'चियत्तघरतेउरपवेसी' ति (व) । १२० १०६ १३७ ८५,८७ ७२ ८४ वृत्ति, पृष्ठ १५३ नंदी सू०२ नंदी सू० ७६ वृत्ति, पृष्ठ ६८ १५२ ११७ ० ० Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं जाव सव्वं परिमा एवं माण माया लोहा एवं सुपष्णते सुभातिए सुविणीए सुभाविए एवमाइक्खर जाव एवं एवमादयामि जाव परुबेमि कंदमते जाव पविमोयणे कंदमंतो एएसि वण्णओ भाणियव्वो जाव सिविय कंपिल्लपुरे जाव धरतए करयल जाव एवं करयल जाव कट्टु गामागर जावसणिवेसे घरसए जाय वसहि चंदण जाव गंधवट्टिभूयं जावज्जीवाए जाव परिग्गहे नवरं सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवए णमंत्तिए वा जाव पज्जुवासित्तए ५२० हाए जाव अप्प० व्हाया जाय पायछताओ तं चैव पसत्यं यव्वं, एवं चेव वइविणओवि एएहि पहि चैव यव्वो तं चैव सव्वं वरं चउरासी वाससहरसाई ठिई पण्णत्ता तं चैव सव्वं वरं ठिई चउसवास सहरसाई तित्यगरस्स जाव संपाविकामस तिदंडए य जाव एगंते तेत्तीस सागरोवमाई ठिई आराहगा चेव सेसं तं चैव तेरस सागरोवमाई ठिई अणाराहगा सेसं तं चेव दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता परलोगस्स आराहगा सेसं तं चेव दस सागरोवमाई टिई पण्णत्ता सेसं तं चैव देवे..... ****** धम्मिया जाव कप्पेमाणा नागभावे जावतमद्रुमाराहिता नम्गभावे जाब मंत नडपेच्छा इ वा जाब मागहपेच्छा ११७ १६८ ७६ ११८ ११८ १० ११८ २१,११७ १ से १३, १५, १६ १५५,१५० से १६१. १६२.१६८ ६२ ११६ ५५ १२१ १३६ ५३ ७० ४० ६३ ६१ २१ ११७ १६७ १५५ ११७ ११४ ७३ १६३ १६६ १६५ १०२ ११७ १६८ ७६ ११८ ११५ ५,७ ५,७ ११८ २० २० ८६ ११८ २ ११७ २ २० २० ४० ६१ ८६ E ११७ ८६ ८६ * * ८६ ७३ १६१ १५४ १५४ २ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "पंडियं जाव अलंभोगस मत्थं पगइभट्याए जाव विणीययाए पडिविरया जाव सव्वाओ परिमाहवेरमणे जाव मिच्छादंसणसल्ल विवेगे परिव्वायए जाव वर्साहि पलिओचमं वासयहस्सममहिय ठिई सेसं तं चैव पावयणे जाव किमंग पोमणे जाव हियए बावीसं सागरोवमाई ठिई अणाराहगा सेसं तं चेव बावीसं सागरोवमा ठिई आशहगा सेस तं चेव" बावीस सागरोवमाई ठिई परलोगस्स अणाराहगा सेसं तं चैव भासासमिया जाव णमेव मणुस्सेसु ******** ****** महिडिएस जाव महासोक्सु महिदिया जाय चिरट्टिया मूलभोष वा जाव बीभोवणे लख्या जाव मंदिर खा लोभाओ जाय मिच्छादंसणसल्लाम लोभे अत्थि जाव मिच्छादंसण सल्ले वणं जान जाइ वहमाणए जाव णो बहमाणए जाव णो सगडं वा एवं तं चैव भाणियव्वं जाव गण्णत्थ एक्काए गंगामट्टियाए ५२१ सग वा जाव संमाणियं सच्चेव हेडिल्ला बत्तव्या जाव मिसीय सिभ जाब मंत तुजाव हियए हट्ट जाव हियया १. तहेव (क, ख ) 1 १४६ ११६ १६३ ७१ ११८,११६ ६४ ८०.८१ ६२ १५८ १६२ १५९ १६४ ७३ ७२ ७२ १२३-१३३ १०० ५३, ५४ १८१ सिम्झिहिति जाव मंत १६६ सुकुमालपाणिपाए जान समिसोमाकारे १४३ सेस तं चैव जान चउतद्विवाससहस्साई ठिई पण्णत्ता ६२ सेस तं चैव वरं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई ex २१,५३,५६,६३,८० १३५ १० १६३ ७१ १७० ११२.११३ १३८ २०.७८ १४८ ६१ ११७ ठाण १।११४-१२५ ११८ ८६ ७६ २० ८६ ८६ ८६ भगवती २११ ७३ ४७ ७२ वृत्ति & ७१ ठा १२१००-१०७ १६६ १११ १३७ १००-११० वृत्ति, पृष्ठ १७६ २०,२१ १७७ १५४ १५. ६१ ८६. २० २० Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ ७ हट्टतुटु जाव हिययाओ हयगय जाव सण्णाहियं हारविराइयवच्छा जाव पभासेमाणा रायपसेणइयं १३०; जी० २६४ ७५० ७७४ ७६५ ७७४ वृत्ति, पृष्ठ २२५ १५७ अंकामया"उवरिपुंछणीओ १६० अकंताहिं जाव अमणामाहिं अगामियाए जाव अडवीए ७७४ अगामियाए जाव किंचि अग्गमहिसोहिं जाव सोलसहि अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुवासणिज्जाओ २४०,२७६ अच्छं जाव पडिरूवं ३२,३४,३६ अच्छाई जाव पडिरूवाई अच्छाओ जाव पडिरूवाओ अच्छे जाव पडिरूवे अज्झस्थिए जाव संकप्पे ७६८ अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था ६८८,७३२,७३७,७७७,७६१,७६३ अज्झत्थियं जाव संकप्पं अज्झत्थियं जाव समुप्पण्णं २७६,७४६ अजोयगाई........ अट्टाई जाव पुच्छइ ७१६ अडवि जाव पविट्ठा अड्ढे जाव बहुजणस्स ६७५ अणगारसएहिं जाव विहरमाणे ७११ अणियाहिवइणो जाव अण्णेवि २८० अणेगखंभसयसण्णिविट्ठं जाव जाणविमाणं अण्णत्ते वा जाव लहुयत्ते ७६२,७६३ अण्णत्ते वा... लहुयत्ते ७६२ अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहि अण्णया जाव चोरं अरिय जाव सव्वतो अप्पेगतिया गयगया जाव पायविहारचारेणं ६८८ अभवसिद्धिए जाव चरिमे अभिगमेणं जाव वंदइ ७७८ २६१ २४४ ७१६ ७६५ ओ० १४ ६८६ Mur ओ० ५२ ६२ ओ०६६ १. वृत्ती विशेषणानि किञ्चिदन्यूनानि दृश्यन्ते । Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८६ ६१८ ७६४ ७६० ७६४ ७८७ ७६४ ओ०८,१३ ३,४ ७१३ ७७४ mero ७१६ १८३ २६६ २६४ २६१ अभिगयजीवाजीवे...विहरइ अभिगथजीवा सव्वो वण्णओ जाव अप्पाणं अयभारगं वा जाव परिवहित्तए असणं जाव अलंकार असणं जाव साइम असोयबरपायवे पुढविसिलापट्टए वत्तव्वया उववाइयगमेणं नेया अहापडिरूवं जाव विहरइ आइण्णं तं चेव जाव सहावेत्ता आपूरेमाणाओ जाव चिह्रति आपूरेमाणा जाव चिट्ठति आराम वा जाव पवं आरामगयं वा तं चेव सव्वं भाणियव्वं आइल्लएणं गमएणं जाव अपाणं आलिघरगेसु जाव आयंसघरगेसु आसत्तोसत्त... कयग्गहगहिय..."धूवं आसत्तोसत्त जाव धूवं आसयंति जाब विहरंति इठं जाव फुसंतु इटुसराए चेव जाव गंधेणं इट्ठत राए चेव जाव फासेणं इट्टतराए चेव जाव वष्णे इट्टतराए चेव जाव वण्णेणं इठे... किमंग इरियासमिए जाव सुहुयहुयासणे इहमागए जाव विहरइ ईसर-तलवर जाव सत्थवाह उक्किट्ठाए जाव जेणेव क्किट्ठाए जाव तिरियमसंखिज्जाणं उक्किट्ठाए जाव वीईवयमाणा उच्चत्तेणं वण्णओ उच्छुब्भइ जाव अरमणिज्जे उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई उपायपब्वएमु पक्खंदोलएसु उम्मुक्कबालभावं जाव वियालचारि उवट्ठवेह जाव पच्चप्पिणह १८५ ओ०११७ २६ से २६ ७५३ ८१३ ७५० ओ० २७ ६८७ २१० ७८५ २८८ १८१ ८१० ६८१,७१४ २०६ ७८५ १६७ १८० ८०६ ६८२ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ ६८१,६८२ ७२५ ७५४ ७२४ ७५६ ७६६ ७१६ ३१० जी० ३१३३६ ७१६ ३०५ २७६ ३०५ ७१६ ७७१ २९४ ७१६ ७७१ ६८३ ७८ ७८ ७७२ ७६४ ७७२ ७६५ ७७४ १४२-१४४ ७७४ उवट्ठवेह जाव सच्छत्तं उवटुवेंति उवट्ठवेहि जाव पच्चप्पिणाहि उवट्ठाणसालाए जाव विहरामि उबवायसभाए जाव उववणे उवस्सयगयं. उवागच्छइ तं चेव उवागच्छंति तहेव जेणेव उवागच्छित्ता"थूभं एएण वि जाव लभइ एयंतं जाव तं तं एयम→ जाव हियए एवं अभए सिंगारे उराले मणुण्णे एवं आहार-नीहार-उस्सासन्नीसास-इढि-महज्जूइ अप्पत राए चेव एवं जाव संखेज्जहा एवं तंबागरं रुप्पागरं सुवण्णागरं रयणागरं वइरागरं एवं पंतीओ वीही मिहुणाई एस जाव नो एस सण्णा जाव एस समोसरणे एस सण्णा जाव समोसरणे एस सण्णा जाव समोसरणे.... एस सष्णा""तयाणंतरं ओराले... चउदसपुवी ओहिनाणं भवपच्चइयं खोवसमियं कंखंति जाव अभिलसंति कंते जाव पासणयाए कते जाव मणामे कयग्गहगहिय जाव धूवं कयग्गहगहिय जाव पुंजोबयारकलियं कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता कयबलिकम्मा जाव लंकिया कयबलिकम्मा जाव हव्वमागच्छेइ कयबलिकम्मे जाव सरीरे जेणेव चाउम्घंटे जाव दुरुहिता सकोरेंट""महया भडचडगरेणं तं चेव ७६४ ७४६ ७५०,७७३ ७७३ ७७३ १४१ ७५४ ७४८ ७४८ ७७३ ७७३ मो० ८२; भ० १६ नंदी ७ ७४३ ७१३ ७५१,७५२ ७७४ २६५ २६३ ७२० २९४ ६६२ ८०२ ७६५ ६६२ ६९२ १. अंतराए (क,ख,ग,घ,च,छ) । Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२५ ६६२-६६४ ७१३ MPS ४६ १७० जाव पज्जुबासइ । धम्मकहाए जाव तए णं ७१६,७१७ करयल जाव कट्ट ७२३ करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वढावेत्ता ७०८ करयलपरिगहियं जाव एवं ७०७ करयलपरिग्गहियं जाव कटु ६८३ करयलपरिग्गहियं जाव पच्चप्पिणति करयलपरिगहियं जाव पडिसुणेइ करयलपरिगहियं जाव वद्धावेत्ता करेमिणो ७६४ कलकलरवेणं" एगदिसाए जहा उववाइए जाव अप्पेगतिया ६८८ कलसाणं जाव अट्ठसहस्सेणं कल्लं जाव तेयसा ७८८ कालागरुपवर जाव चिट्ठति २३६ किण्हचामरज्झए जाव सुविकल्लचामरझए किण्होभासा..." किण्होभासे जाव पडिरूवे ७०३ कुसुमियाओ सव्व रयणामईओ कोडुबियपुरिसा जाव खिप्पामेव ७१५ कोरव्वा जाव इब्या कोहं जाव मिच्छादसणसल्लं ७६६ खुड्डागमहिंदज्झए तं चेव ३५४ गिज्जइ जाव णो रमिज्जइ ७८३ गिहित्ता तहेव जेणेव २७६ गोसीसचंदणेणं.. पुप्फारहणं आसत्तोसत्त.."धूवं चरमाणे समोसढे जाव विहरइ ७१३ चवलाए जाव तिरियमसंखेज्जाणं जाव वीतिवयमाणा २७६ चालेइ जाव णो गंधवो ७७१ चित्तमाणदिए जाव परमसोमणस्सिए छिज्जइ जाव तया णं ७८४ छिडेइ वा जाव अणुपविट्ठा छिड्डेइ वा जाव निग्गए छिड्डेइ वा जाव राई ७५४ से ७५६ छिड्डेइ वा. जेणं जणसण्णिवाए इ वा जाव परिसा पज्जुवासइ ६८७ वृत्ति, पृष्ठ २८६ २७६ ওওও १३२ वृत्ति, पृष्ठ ८० ओ०४ ओ०४ ओ०५ ६८२ वृत्ति, पृष्ठ २८५ ओ० ११७ स ३५२ ७८३ २७६ २६४ ७१३ ওও? m ७५६ G 6 CcX1 6 6 ७५४ ७५६ ७५४ ७५४ ७५७ ७५४ ओ० ५२ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ ७६० ७६० २३५ m १८४ " २ ३०६-३०६ 6 ~ 6 ८०२ ८०२ ओ० १२ ओ० १५० ७७४ जराजज्जरियदेहे जाव परिकिलते जहा मणोगुलिया जाव णागदंतया जाइमंडवएसु जाव मालुयामंडवएसु १८५ जाणविमाणं जाव दाहिणिल्लेणं ४८ जाणह जाव उवदंसित्तए जिणपडिमा तं चेव ३१७-३२० जीवो तं चेव ७५५,७५६,७७१,७७२ जुण्णे जाव किलंते ७६०,७६१ जोयणाई जाव अहाबायरे जोयणाई जाव दोच्चं २७६ णाइअणिवाहि जाव णाइलमणामाहि णाइ जाव परिजणं णाइ जाव परिजणेण णिच्चं कुसुमियाओ.... गोवलिप्पिहिति"मित्त बहाए जाव उप्पि बहाए जाव सरीरे सकोरेंट..."महया बहाएणं जाब सवालंकारभूसिएणं ग्रहायस्स जाव पायच्छित्तस्स ७६४ तउयभंडे जाव मणामे ७७४ त उयभंडे जाव सुबहुं ७७४ तज्जीवो तं चेव ७५८,७६२ तत्थुप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई २७६ तरुणे जाव सिप्पीवगए ७५८,७५६ तहेव केवलनाणं सव्वं भाणियन्वं तिक्खुत्तो जाव वंदित्ता १२ तिट्ठाणकरणसुद्धं....पगीयाणं तेणेव तहेव जेणेव तेल्लसमुग्गाणं जाव अंजणसमुग्गाणं २५८,२७६ तारणाण झया छत्ताइछत्ता य णेयब्बा १७६-१७६ दक्खा जान उवएसलद्धा ওও दप्पणा जाव पडिरूवा दलयइ जाव कडागारसालं ७८८ दाहिणिल्ले दारे तहेव अभिसेयसभासरिसं जाव पुरथिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी जेणेव हरए तेणेव उवाग २ तातोरणे य सिसोवाणे य सालि ६६२ ७७४ ७७४ ७५२ १९७ १२ नंदी २६ १७३ २७६ २७६ २०-२३ वत्ति, पृष्ठ १६ ७८७ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२७ ३५७-६५३ २६४-३५० २६६-२६६ ३३४-३३७ ७५३ ७५३ ७०३ ७०३ भंजियाओ वालरूवए य तहेव, जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छइ २ ता तहेव सीहासणे च मणिपेढियं च सेसं तहेव आययणसरिसं जाव पुरस्थिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ २ ता जहा अभिसेयसभा तहेव सब्वं जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छइ २ ता तहेव लोमहत्थयं परामुसइ पोत्थय रयणे लोमहत्थएणं पमज्जइ २ ता दिवाए दगधाराए अग्गेहि वरेहि य गंधेहि मल्लेहि य अच्चेइ २ ता मणिपेढियं सीहासणे च सेसं तं चेव, पुरथिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ २ ता तोरणे य तिसोवाणं य सालिभंजियाओ य बालरूवए य तहेव। दाहिणिल्ले दारे पच्चस्थिमिल्ला खंभपंती उत्तरिल्ले दारे तं चेव पुरथिमिल्ले दारे तं चेव दिन्वेहि जाव अज्झोववण्णे दुपय जाव सिरीसिवाणं दुहाफालिए वा जाव संखेज्जहा दुहाफालियंसि वा जोति देवसयणिज्जे तं चेव देवा जाव अब्भणण्णायमेयं देविडिट जाव दिव्वं देविड्ढी जाव देवाणुभागे देवे जाव पच्चप्पिणंति धम्मस्थिकायं जाव णो धम्मिए जाव विहराहि धम्मिया जाव वित्ति नमसइ जाव पज्जुवासेइ नमसामि जाव पज्जुवासामि नमंसिस्संति जाव पज्जुवाससिस्संति नागदंता तं चेव जाव गपदंतसमाणा नानामणि जाव पीवरं निसिरति अहाबायरे अहासुहमे दोच्चंपि वेउब्वियसमुग्धाएणं जाव बहुसम" पइण्णा तहेव ७६५ or mr 6XY x ७६५ ७६५ वृत्ति, पृष्ठ २३५ ३५३ x . ६५५ ७७१ ७५२ ७५२ ६६७ १२ ७७१ ७५२ ७१६ ७०४ १३२ ती ७६० Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ o००४ Norm ओ० ११ ओ० ११ ओ० १५० ७५३ ७५३ ७५७ ६६३ ६६३ ३०१ से ३०४ ७३७ ७३२ ७३२ ७३२ १४२-१४५ १६३-१६६ २३३ १७४ पउमलयाओ जाव सामलयाओ पउमलयापविभत्ति जाव समलयापवित्ति पउमे इ वा जाव सयसहस्सपत्ते इ वा पएसी तं चेव पएसी ! तहेव पच्चक्खाए जाव परिग्गहे पच्चक्खामि जाव परिम्गह पच्चथिमिल्ले दारे तं चेव, उत्तरिल्ले दारे तं चेक, पुरथिमिल्ले दारे तं चेव, दाहिणे दारे तं चेव पज्जुवासंति जाव पवियरित्तए पज्जुवासंति जाव बूया पडिरूवा जाव पंतीतो वीहीतो मिहणाणि लयाओ पण्णताओ.... पतणतणायंति जाव जोयणपरिमंडलं पत्तं वा तहेव पत्तठे जाव उवएसलद्धे पाडिहारिएणं जाव संथारएणं पावकम्मं जाव उववज्जिहिसि पासाईयाओ... पासाईयाओ जाव चिठ्ठति पासादीए जाव पडिरूवे पासादीया जाव पडिरूवा पासायवरगए जाव विहरतो पासायवरगए जाव विहरमाणे पिहावेमि जाव पच्चइएहिं पीढफलग जाव उवनिमंतिज्जाह पुण्णोवचयं जाव उववज्जिहिसि पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगेरीणं पुप्फपडलगाई जाव लोमहत्थपडलगाई पुप्फपडलगाणं जाव लोमहत्थपडलगाणं पुप्फारुहणं ""आसत्तोसत जाव धूवं पुरिसेहिं जाव उवक्खडावेत्ता पेच्छाघरमंडदे एवं थमे जिणपडिमाओ चेइयरुक्खा महिंदज्झया नंदापुक्खरिणी ७६५ ७१३ ७५० ७५० १३६ १३३ ६६८,६७० जी० ३१३०३ २१ ७७४ ७७४ ७०४ ७५२ ७७४ ७७४ ७५६ ७०६ ७५२ २५८,२७६ १५७ २५८,२७६ ३००,३०५,३५५ ७८८ १५६ १५६ २६४ ७८७ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तं चैव जाव धुवं दलइ २ सा पोसहवासस्थ जाव विहरिस्तामि फरिस जाव विहर फरिस जाय विहरति बहूहि य जाव देवेहि बाले जाव मंदविष्णाचे भंते जाव नो भंते जाव विहरामि भंते पणसंडे भूमिभागा उल्लोया मंगलगा सज्झया जाव छत्तातिछत्ता मणपज्जवणाणे मणसंकरणं जाव भियायमाणं मणसंकरपे व भिषायसि मणिपेढियं च.... दिव्वाए महन्वपरिसाए जाब धम्मं महत्थं जाव उवणेइ महत्वं जान गेह महत्थं जाव पडिच्छ महत्यं जाव पाहुड महत्वं जाव विसब्जिए तं चैव जाव समोस रह महाहिमवंत जाव विहरइ महाकम्मतराए चैव तं चैव महाकिरिय जाव हंता महामोरं जाव नमसिता महिद भए.....तं चैव महिदिया जाय पलिओचमद्वितीया महिष्ठीए जाव महाणुभागे माहणं वा जाव पज्जुवासे मित्त जाव परिजणस्स मुच्छिए जाव अज्कोववण्णे ५२८ ३३८-३५० ७८७ ७१० ७७४ २६१ ७५८,७५६ ७६२ ७६२ ७८२ २१६ १६६,१६७,१६८ ૭૪૪ ७६५ ७६५ ३०५ ७७६ ७०८ ७०८ ७०६ ६८०,६०१,६०३,६८४,६६१,७०० ७०२ ૬. ७७२ ७७२ ૭૪ ३११ १८६ ६६६ ७१६ ८०२ ७५३ वृत्ति, पृष्ठ २६४ सू० ३००, २६६, २६७, २६६, २६, ३०५, ३०६, ३०६, ३०६,२०६, ३१०, ३११. ३१२ ७८६ ६८५ ६८५ ७५८ ७५४ ७५४ ७८१ २१३ २१,२२,२३ नंदी २३ ७६५ ७६५ २६४ ६६३ ७०० ६८१ ६०४ ६८० ७०० ओ० १४ ७७२ ७७२ ε ३०५ छो० ४७ ६६६ ७१६ ८०२ ७५३ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० ७६१ ७६१ १२ १० ७७७ ওওও १० १६५ १२ ६८० जी० ३।२६४ ६२ १९० ७७५ ६८६ ७८६ ७८७ २११-२१४ १४८ ओ० ५२; राय०६८८ ७८१ ७५१ २०६,२१०,२३७,२५१ १३१ ७६७ ७७६,७७७ ७६८ १७५,१८० २७६ १७४ रज्जं च जाव अंतेउरं रहें जाव अंतेउरं रयणाणं जाव रिद्वाणं रयणीए जाव तेयसा रयणेहिं जाव रिोहिं रायंगणं वा जाव सम्वतो रायकज्जाणि य जाव रायववहाराणि वइरामया सुवण्णरुप्पामया फलगा नाणामणिमया वंदइ जाव एवं वंदणवत्तियाए जाव मया वणसंडे इ वा.... वणसंडे इ वा जाव खलवाडे वण्णओ सभाए सरिसो वरकमलपट्टाणा जाव महया वरकमलपइट्टाणा तहेव बामेणं जाव वट्टित्ता वामेणं जाब विवच्चासं वावीणं जाव बिलपंतियाणं वासधरपब्वया तहेव जेणेव विउलेणं जाव पडिलाभेइ विविहतारारूवोवचिया जाव पडिरूवा वीसाएमाणा जाव विहरंति संखंक....सव्वरयणामया संठिय जाव जोयणसहस्समूसिएणं सच्छत्तं जाव चाउग्घंट सण्णद्ध जाव गहियाउहपहरणेहिं सत्थप्पओगेण वा जाव उद्दवेत्ता सद्द जाव विहरइ सद्दहेज्जा....जहा अण्णो जीवो तं चेव सद्दहेज्जा तं चेव सद्दहेज्जा तहेव समज्जिणित्ता जाव देवलोएसु समणं वा जाव पज्जुवासेइ समणं वा तं चेव जाव एएण समण जाव परिभाएमाणे समागा जाव पडिसुणेत्ता समिद्धे... समुदया जाव सिरीए २७६ ७१६ २० २२२ ८०२ १६० ५२ ६८१ ६८३ ७६१ ६८३ ओ०१५ ७५६,७५८ ७६२,७६४ ७५४ ७५४ ७५२ ७५२ NMMs. ०४ Wwxx ७१६ ७८७ ६६८ ० Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरीरं तं व Refare जाव ससरीरस्स सव्वंतरणईमो जेणेव सम्बतूरे सहेब जेणेव सव्वत्यरेहि जाय सन्वोसहि सिद्धत्य एहि सव्विदीए जाब (ना) नाइयरवे ससक्ख जाव उवणेंति सामाणियसाहस्सीहि जाव सोलसहि सिघाडग... महया जणसद्देइ वा परिसा सिया जाव गंभीरा सिरिच्छ जाव दध्यणा सीहासणे जाव सणसणे सीहासणे तं चैव सुकुमालपाणिपाए जाव पडिरूवे सुकुमाल पाणिपाया धारिणी वण्णओ सुबहु जाव उबवण्णा सुबहु जाव उववणे सुसिलिगु जाव परिवे सूरियाभविमाणवासिणो जाव देवीओ सोच्चा जाव हट्ट.... उट्ठाए जाव एवं सोत्थियं जाव दप्पणं हंसासनाई जाव दिसासोवत्थियासणाई हदुजाव करयल जाव परिसुति हट्ट जाव जेणेव ह जान पडिसुमेता हदु जाव भवह हट्टु जाय समर्थ हट्ट जाव हियए हजाब हिमा हट्ठट्ठ जाव अप्पमहग्घाभरणालं कियसरीरे हद्रुतद्र जाव आसणाओ हद्रुतु जाव सूरिया हजाब हियए दुजाव हिया हट्ट तव एवं त्वच्छ वा जाव जीबियाओ हत्थेण वा जाव आवरेताणं ५३१ ७५६, ७६४ ७७१ २७६ २७६ २५० १३.६५७ ७५६ ७१२ ૩૨ ४६ २८६ ३५२ ६७३ ६७२ ७५३ ७५१ २४७ २८६ ७०० २६१ १८३ ७४ ७२ ६८१ ७१३ ६० ४७,६९५,७१० १२,२७१ ७२६ ** २६० १३, १४, १७, १८,६२,२७७, ६१०,७१३,७१६,७२५७७८ १०.१६, २०१७०७,७१३, ७७४ ७१८ ७५१ ७१६ ७५२ ७७१ २७६ २७६ २७६ ओ० ६७ ७५४ 19 ६८७ ७५५ २१ २८३ वृत्ति, पृष्ठ २६६ ८०१ ओ० १५ ७५२ ७५० २३१ ७ * २१ १८१ १० ७१३ १० ७१३ ६२ छ ८ ७१६ ८. ८ ८ ६६५ ७५१ ७१९ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हयकंठाणं जाव उसभकंठाणं हयसंघाडा जाव उसभसंघाडा हिरणं तं चेद जाव पव्वइत्तए २५८ १६२ ६६५ १५५ १४१ ६६५ जीवाजीवाभिगमे अकंततरगा चेव जाव अमणामतरगा ३१८४ अणिट्ठा जाव अमणामा अपढमसमयबेइंदिया जाव पढमसमयपंचिदिया ६१ अप्पा वा एवं जाव विसे साहिया ५११६ आयामेणं जाव दो ३३३७६ आसयंति जाव विहरंति ३१२१७ आसादणिज्जे जाव इट्टतराए चेव आसादे ३१८६६ आसादणिज्जे जाव पल्हायणिज्जे ३१८७२ आहारसण्णा जाव परिग्गहसण्णा १२० आहेबच्चं जाव दिवाई आहेवच्चं जाव पालेमाणा इंगाले जाव तत्थ नियमा ११७८ ईहामिय उसभ जाव पउमलयभत्तिचित्ता ३१३११ उक्किट्टाए जाव दिव्वाए ३२४४५ उद्दाइत्ता सो चेव विही एवं धायइसंडेवि ३१७१८,७२० उप्पलाइं तं चेव ३।४४५ उववेते जाव सव्विदियगातपल्हायणिज्जे ३१८७८ उवागच्छित्ता जाव कटु ३१५५५ एएणं अभिलावेणं जाव दसविहा १६१० एवं चत्तारिवि गमा, पढमबिइयभंगेसु अपरियाइत्ता एगंतरियगा अच्छेत्ता अभेत्ता, सेसं तहेव (क,ख, ग,ट,त्रि); ते च्चेव आलावता ह्व जाव हंता पभू ३१९६५-६६७ एवं जहा अच्चीणि णवरं एवतियाई पंच ओवासंतराई ३३१७८ एवं जहा पण्णवणाए जाव सेत्तं एवं जहा पण्णवणापदे जाव पंचहिं ३।२२८ कतरेहितो जाव विसेसाहिया २११३४-१३६ कयग्गाहग्गहित जाव पुंजोक्यारकलितं ३४५८ कयगाह जावधूवं ३१४६० कामावत्ताई जाव कामुत्तरव डिसयाई ३.१७६ कालं जाव असंखेज्जा कालं जाव आवलियाए ५६ गेण्हित्ता तं चेव ३१४४५ ३१२७८ भ० १२२२४ ४११,६१ ४११६ ६।३७२ ३।२६७ ३८६० ३२८६० पण्ण० ८१ ओ०सू०६८ ३२३५० पण्ण० १।२६ ३।२८८ ३८६ ३२५७५,५७६ ३१४४५ ३.८६० ३१४४५ १११० ११५ ३१९६१-६६३ ३३१७६ पण्ण० ११३ पण्ण० ११८७ ४११६ ३१४५७ ३४५८ ३११७५ पण्ण० १८१२६ पण्ण० १८१३ ३।४४५ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३३ ३१४५६ ३।२८३ ३१२७८ ३१२७८ ३।१७६ गोसीसचंदणेणं जाव चच्चए दलयति आसत्तोसत्त कयरगाह धूवं ३१४६१ चेव जाव फासेणं ३१२८४ चेव जाव मणामत राए ३१२८३ चेव जाव वण्णणं ३१२७६-२८२ जहा अच्चीणि णवरं सत्त ओवसंत राई विक्कमे सेसं तहेव ३११८० जहा अविसुद्धलेस्सेणं छ आलावगा एवं विसुद्धलेस्सेणवि छ आलावगा भाणितवा जाय विसुद्धलेस्से ३।२०५-२०८ जहा गईओ ३१४४५ जातीकुलकोडीजोणीपमुह व पण्णत्ता ३.१६६ जातीकुल जाव समक्खया ३।१६८ जोयणकोडी जाव अब्भंतरपुक्खरद्धस्स ३१८३५ जोयणसहस्साई जाव परिक्खेवेणं ३।१०७४ णं जाव केवचिरं ४१,४३ तं चेव जाव महावेदणतरा ३११२६ तं चेव णं जाव णो ३।११६ तहेब जाव सायासोक्खबहुले ३१११६ तित्थसिद्धा जाव अणेगसिद्धा १८ तित्थाई तहेव जहेब ३।४४५ तुरियाए जाव दिव्वाए ३११७६ पगतिभद्दगा जाव विणीता ३१८४१ पच्छावि जाव आणुगामियत्ताए ३१४४२ पणिहाय जाय सव्ववस्खुड्डिया ३३१२४ पण्णत्ता जाव तेसु ३१३६८ पत्तेयं जाव णिसीयंति ३३५६० पयलाएज्ज वा जाव उसिणे ३।११६ पुढवी जाव सव्वक्खुड्डिया ३।१२५ पुप्फारुणं जाव धूवं ३१४६५ पोग्गला य जाव असासयावि ३।७२७ भविस्स इ जाव अवढिए ३१३५० महज्जुतीए जाव महाणुभावे ३१३५० महताहतनगीयवादितरवेणं दिवाई भोगभोगाइं भंजमाणा ३१८४५ महिड्ढीए जाव महाणुभागे ३.८६ मुत्ताजालंतरुसिया तहेव जाव समणाउसो ३।३०२ लवणस्स णं पएसा धाय इसंडं दीवं पुट्ठा तहेव जहा जंबूदीवे धाय इसंडेवि सो च्चेव गमो ३१७१५-७१८ वट्टे जाव चिट्ठति ३८६२,८६५,८७१, ५७७,६२५ ३११६६-२०२ ३१४४५ ३१६० ३.१६७ ३१८३२ ३।८२ है।३६ ३११२६ ३।११८ ३१११८ पण्ण० १११२ ३१४४५ ३१८६ ३१७६५ ३४४१ ३३१२४ ३१३६७ ३१५५८ ३।११८ ३११२४ ३३४५६ ३१७२४ ३।२७२ ३८६ ३१८४२ वृत्ति, पत्र १०६ ३।३०२ ३१५७१-५७४ ३१७०४ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३४ वलयागार जाव चिट्ठति वलयागारसंठाणसंठिते जाव चिट्रति वलयागारसंठाणसंठिते जाव संपरिबिखत्ताणं वलयागारे तहेव जाव जे मव्वतुवरे य तहेव सध्वपाणा जाव देवनाए देवित्ताए आलण जाव हता सब्वपुप्फे तं चेव मामाशियसाहस्मीहि जाव अण्णेहि पिज्झति जाव अंतं सेरियागुम्मा जाव महाजाइगुम्मा सेस तं चेव मोहम्मीसाण जाव अणुत्तरेसु हट्ठतुट्ट जाव हियए हृढत? जाव हियया हतुट्ठा करतल जाव कटु एवं देवोत्ति जाव पडिसुणेत्ता हट्ठतुद्धा जाव हरिसवस विसप्पमाणहियया हयकंठगाणं जाव उसभकंठगाणं पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगेरीणं पुप्फपडलगाणं अट्ठसयं तेल्लसमुग्गाणं जाव धूवकडुच्छ्याण ३८५६ ३१८६८ ३१८४८ ३१४७ ३१४४५ ३३११३० ३१४४५ ३१५५७ ११३२ ३२५८० ३३१७८,१८२ ३११०३८ ३१४४३ ३१४४५ ३१५५५ ३१७०४ ३७०४ ३१७०४ ३४६ ३१४४५ ३१११२८ ३।४४५ ३४४६ ओ० सू०७२ जंबु० २०१० ___३११७६ पण्ण. २०४६ वृत्ति, पत्र २४३ ३१४४३ ३१४४५ ३१४४१ ३१४१६ ३।३२८-३३५, वृत्ति, पत्र २३४ पण्ण० ११२३ हिमे जाव जे १९६५ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-२ तुलनात्मक ओवाइय सूत्र १४ राज-वर्णक जंबुद्दीवपण्णत्ती ३.२,३ अत्र राजवर्णकस्य प्रकारान्तरं चापि लभ्यते । देवी-वर्णक नायाधम्मकहाओ शराम नमोत्थु-पूर्वावस्था-वर्णक रायपसेण इयं सूत्र ८,७१४ नायाधम्मकहाओ ॥११११ ओवाइय सूत्र १५ ओवाइय सूत्र २१,५४ नमोत्थु-सूत्र बोवाइय सूत्र २१: रायपसेणइयं सूत्र ८: णमोत्थ णं अरहताणं भगवंताणं आइगराणं नमोत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं आदिगराण तित्थगराणं सहसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससी- तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं हाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयजीवदयाणं दीवो ताणं सरणं गई पइदा धम्मवर- गराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं जीवचाउरंतचक्कवट्टीणं अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं दयाणं सरणदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाण धम्मवियदछउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं देसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीण धम्मवरतारयाणं मुताणं मोयगाणं बुद्धाणं बोया चाउरतचक्कवट्टीणं अप्पडिहय वरनाणदंसणधराणं सवण्णणं सव्वदरिमीणं सिवमयलमरुयमणतमक्ख- वियदृछाउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं यमब्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेज्जं ठाण बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वण्णणं सव्वसंपत्ताणं। दरिसीणं सिवमयलमस्यमणंतमक्खयमब्वाबाहम पुण रावत्तयं' सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं। १. २६२ सूत्रे नास्ति । ३. २६२ सूत्रे सिवं अयलं अरुअं अणतं अक्खयं २. १६ सूत्रे 'जाणए' पाठो विद्यते । अव्वाबाहं अपुणरावित्ति । Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाओ १२ : समणे भगवं महावीरे आइगरे विभक्ति भेदेनैव समणेणं भगवया महावीरेणं आदिगरेणं तिस्थगरेणं पाठो निर्दिष्टसूत्रांकेषु विद्यते सूत्र १६,२१,५४ सयंसंबुद्धेणं पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसबर पोंडरीएणं पुरिसवरगंधहस्थिणा लोगोत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदएणं चक्खुदरणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेणं धम्मसारहिणा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदंसणधरेणं वियदृच्छउमेणं जिणेणं जावरणं तिण्योणं तारएणं बुद्धणं बोहएणं मुत्तेणं मोयगेणं सब्वष्णुणा सव्वदरिसिणा सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणवत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामेण । भगवती १७ समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्ध पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपोंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी लोगुत्तमे लोगनाहे लोगपदीवे लोगपज्जोयगरे अभयदए चक्खुदए मग्गदए सरणदए धम्मदेसए धम्मसारही धम्मवरचाउरंतचक्कवटी अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए बुद्ध बोहए मुत्ते मोयए सवण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुयमगंतमक्खयमव्वाबाहं सिद्धिमतिनामधेयं ठाणं संपाविउकामे। -जंबुद्दीवपण्णत्ती ०२१ -~-नायाधम्मकहाओ १११७ -अणुत्तरोववाइयदसाओ ३।७५ प्रभात-वर्णक ओवाइय सूत्र २२ : रायपसेणइयं सूत्र ७२३ : कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल कमल- कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास- कोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए कयनियमावकिसुय-सुथमुह-गंजद्धराग-सरिसे कमलागरसंडबोहए स्सए सहस्सररिसम्मि दिणयरे तेयसा जलते। उट्रियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयता जलते। रायपसेणइयं सूत्र ७७७ : कल्लं पाउप्पभाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलु Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २४,३२,३४,३५,३६ सूत्र २५, २६ ओवाइय सूत्र २३ : चइता हिरण्णं चिच्चा सुवण्णं चिच्चा धणं एवं - धणं बलं वाहणं कोर्स कोट्ठागारं रज्जं रट्ठं पुरं अंतेउरं, चिच्चा विउलधण कणग- रयण-मणिमोत्तिय संख - सिलप्पवाल- रत्त- रयणमाइयं संत-सारसावतेज्जं विच्छडुइत्ता विगोवइत्ता, दाणं च दाईयाणं परिभायइत्ता, मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया । सूत्र २७ सूत्र २७,२८,२६ ५३७ म्मिलियम्स अहापंडुरे पभाए रत्तासोगपगासकिसु - सुमुह- गुंजद्ध रागसरिसे कमलागर णलिणिबोए उट्टियम्म सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते । भगवती २।११६६ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोयप्पकासे किसु सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहर उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते । - अनगार-प्रव्रज्या महाओ १११।२४ ( अतिरिक्त पाठ ) अणुओगदारं, लोइयं दव्वावस्तयं सू० १६ आयार-चूला १५/२६ : चिच्चा हिरणं, चिच्चा सुवण्णं, चिच्चा बलं, चिच्चा वाहणं चिच्चा धण धण्ण-कणय रयण-संत-सारसावदेज्ज, विच्छड्डेत्ता, विगवित्ता, विस्साणित्ता, दायारेसु णं दायं पज्जभाएत्ता रायपसेणइयं सूत्र ६६५ : चिच्चा हिरण्णं, एवं --- धणं धष्णं बलं वाहणं कोसं कोट्ठागारं पुरं अंतेउरं चिच्चा विउलं धण-कणगरयण-मणि मोत्तिय संख सिल प्वाल संतसारसावएज्जं, विच्छडित्ता विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, मुंडा भवित्ता णं अगाराओ अणगारिय पव्ययंति | निर्ग्रन्थ-तप-वर्णक - - पहावागरणाई ६६ रायपसेणइयं सूत्र ६८६ भगवती २१५ नायाधम्मक हाओ ११११४ भगवती २१५५ रायपसेणइयं सूत्र ८१३ निरयावलियाको ३१४ पहा वागरणाई १०।११ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २७,२८,२६,३२,३४-३६ सूत्र ३०-४४ सूत्र ३१ सूत्र ३२ सूत्र ३३ सूत्र ३६ जंबुद्दीवपण्मत्ती २०६८ से ७० पज्जोसवणाकप्पो सूत्र ७८,७६,८० द्रष्टव्यम-अंगसुत्ताणि भाग-१ परिशिष्ट २: आलोच्यपाठ तथा वाचनान्तर सूयगडो २।२।६४ से ६६ भगवती २५१५५७ से ६१८ उत्तरज्झयणाणि ३०७-३६ बाह्यतप ठाणं ६/६५ यावत्कथिक ठाणं २।२००,२०१ ऊनोदरिका भगवती ७१२४ ववहारो, ८.१७ कायक्लेश ठाणं ७।४६ प्रतिसंलीनता ठाणं ४।१६०,१९२ ठाणं ५।१३५ आभ्यन्तरतप ठाणं ६।६६ प्रायश्चित्त ठाणं १०१३७ विनय ठाणं ७।१३०-१३७ वैयावत्य ठाणं १०1१७ स्वाध्याय ठाणं ५।२२० ध्यान ठाणं ४१६०-७२ देव-वर्णक पाणवणा रा४०-६३ सूत्र ३७ सूत्र ३८ सूत्र ३६ सूत्र ४० सूत्र ४१ सूत्र ४२ सूत्र ४३ सूत्र ४७-५१ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ५२ सूत्र ५५ सूत्र ६३ सूत्र ६४-६६ सूत्र ६६ सूत्र २६,७० सूत्र ७० सूत्र ७२ सूत्र ७३ सूत्र ७६ ५३६ परिषद्-गमन - वर्णक रायपसेणइयं सूत्र ६८८, ६८६ नगरी सज्जा-वर्णक जंबुद्दीपण्णत्ती ३।७ नित्यकर्म-वर्णक नायाधम्मका १।१।२४ जंबुद्दीपण्णत्ती ३६ निगमन-वर्णक भगवती ६।२०४ से २०६ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३।१७७-१८६ पज्जोसवणाकप्पो सूत्र ७५ परिषद्-वर्णक रायपसेणइयं सूत्र ६१ : सूत्र ७१ : तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणि- तीसे य महतिमहालिताए इसिरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अणेगसयाए परिसाए जतिपरिनाए विदुपरिसाए देवपरिसाए अगसवंदा असयवंदपरियालाए ओहबले ' .... । खतियपरिसाए इक्खागपरिसाए को रव्वपरिसाए अगस्याए अगवंदाए अणेगसयवंदपरिवाराए महति महालियाए मोहवले .... | पर्युपासना-वर्णक दासीनाम भगवती ६/३३, १४५, १४६ रायपसेणइयं सूत्र ८०४ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३।११ नायाधम्मक हाओ ११११८२ देवलोक और देव वर्णक सूयगडो २१२ आयुबंध ठाणं ४६२५,६२८ भगवती ८१४२५ से ४२८ धर्मश्रद्धा-प्रकटन रायपसेणइयं सूत्र ६६५ भगवती २५२, ६।१६४ नायाधम्मक हाओ १|१|१०१ उवासगदसाओ ११५१ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ८२ गौतम-वर्णक भगवती ११ उवासगदसाओ ११६६ वाणमंतर-उपपात भगवती ११४६ गंगाकुलवासी-वानप्रस्थक-तापस भगवती १२५६ निरयावलियाओ ३१३ सूत्र ८८,८६ सूत्र ६४ सूत्र १७ परिव्राजक-वर्णक भगवती २।२४ । अम्मड-परिव्राजक भगवती १४:११० से ११२ दृढप्रतिज्ञ रायपसेण इयं सूत्र ७६६-८१६ सूत्र ११५-१५४ सूत्र १४१-१५४ सूत्र १४६ रायपसेणइयं सूत्र ८०६ ७२ कलाएं जंबुद्दीवपण्णत्ती समवाओ वृत्ति पत्र १३६,१३७ ७२।७ लेहं लेह गणियं रूवं नट २. गणियं ३. रूवं ४. णटें ५. गीयं ६. वाइयं ७. सरगयं ८. पुक्खरगयं ६. समतालं १०. जूयं ११. जणवायं १२. पासगं १३. अट्ठावयं १४. पोरेकव्वं १५. दगमट्टियं गणियं रूवं नटें गीयं वाइयं सरगयं पुक्खरगयं समतालं गणियं रूवं नट गीयं वाइयं सरगयं पुक्खरगयं समताल णायाधम्मकहाओ १।१८५ लेहं गणियं रूवं न गोयं वाइयं सरगयं पोक्खरगयं समतालं जूयं गीअं वाइयं सरगयं पोक्ख रगयं समताल' जूअं जणवाय पासयं अट्ठावयं पोरेकव्वं दगमट्टियं जूयं जयं जणवायं पोरेकव्वं जणवायं पासगं अट्ठावयं पोरेकव्वं दगमट्टियं अट्टावयं जणवायं पासयं अट्ठावयं पोरेकव्वं दगमट्टियं दगमट्टियं अन्नविहिं १. क्वचित् 'तालमान'मिति पाठः । Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अण्णविहि पाणविहिं वत्थविहिं विलेवणविहि सयणविहिं अज्जं पहेलियं मागहियं गाहं १६. अण्णावहिं १७. पाणविहि १८. वत्थविहि १६. विलेवणविहिं २०. सयणविहि २१. अजं २२. पहेलियं २३. मागहियं २४, गाई २५. गोइयं २६. सिलोयं २७. हिरण्णजुत्ति २८. सुवण्णजुत्ति २६. गंधत्ति ३०. चुराणजुत्ति ३१. आभरणविहि ३२. तरुणीपडिफम्म ३३. इत्थिलकखणं ३४. पुरिसलक्खणं ३५. हयलक्खणं ३६. गयलक्खणं ३७. गोण लक्खणं ३८. कुक्कुडलक्खणं ३६. छत्तलक्षणं ४०. दंडलक्खणं ४१. असिलक्खणं ४२. मणिलक्खणं ४३. काकणिलक्खणं ४४. वत्थविज्ज ४५. खंधावारमाणं ४६. नगरमाणं ४७. वूह ४८. पडिवूह ४६. चार ५०. पडिचारं ५१. चक्कवूह ५२. गरुलवूह ५३. सगडव्हं अन्नविहि पाणविहिं वत्थविहिं विलेवणविहि सयणविहि अज्जं पहेलियं मागहियं गाई गीइयं सिलोग हिरण्णजुत्ति सुवण्णजुत्ति आभरणविहिं तरुणीपडिकम्म इस्थिलकावणं पुरिसलक्षणं हवलक्खणं गयलक्खणं गोणलक्खणं कुक्कुडलक्षणं छत्तलक्षण चक्कलक्खणं दंडलक्षण असिलक्खणं मणिलक्खणं कागणिलखणं वत्थुविज्ज गरमाणं खंधावारमाणं चारं पडिचारं अन्न विहिं पाणविहि पाणविहि लेणविहिं वस्थ विहिं सयणविहिं विलेवणविहि अज्ज सयविहि पहेलियं अज्ज मागहियं पहेलियं मागहिअं सिलोग गाहं गंधजुत्ति गीइ मधुसित्थं सिलोग आभरणविहिं हिरण जुत्ति तरुणीपडिकम्म सुवण्णजुत्ति इत्थीलक्खणं चुण्णजुत्ति पुरिसलक्षणं आभरणविहिं हयलक्खणं तरुणीपरिकम्म गयलक्खणं इथिलक्खणं गोणलक्खणं पुरिसलक्खणं कुक्कुडलक्खणं हवलक्षणं मिढयलक्खणं गयलक्खणं चक्कलक्खणं गोगलक्खणं छत्तलक्खणं कुक्कुडलक्खणं दंडलक्खगं छत्तलक्खणं असिलक्षणं दंडलक्खणं मणिलक्खणं असिलखणं काकणि लक्खणं मणिलक्खणं चम्मलक्खणं कागणिलक्खणं चंदचरियं वत्थुविज्ज सूरचारियं खंधावारमाणं राहुचरियं नगरमाणं गहचरियं चार सोभाकरं पडिचार दोभाकरं विज्जागयं पडिवूह मंतगयं चक्कवूह रहस्समयं गडवूह सभास मुगडवूहं चारं पडिचारं गीइयं सिलोयं हिरण्णजुत्ति सुवाणजुत्ति चुण्णजुत्ति आभरणविहि तरुणीपडिकम्म इत्थीलक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं गोणलक्खणं कुक्कुडलक्खणं छत्तलक्खणं दंडलक्खणं असिलक्षणं मणिलक्खणं कागणिलक्खणं वत्थुविज्ज खंधारमाण नगरमाणं पडिवूहं चक्कवूह गरुलवूह सगडवूह जुद्धं पडिवूह चारं पडिचारं चक्कव्हं गरुलवूह सगडवूह जुद्ध Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२ पडिवहं ५४. जुद्धं ५५. निजुद्धं ५६. जुद्धाइजुद्धं ५७. मुट्ठिजुद्धं ५८. बाहुजुद्धं ५६. लयाजुद्ध ६०. ईसत्थं ६१. छरुप्पवाद ६२. धणुवेदं ६३. हिरण्णपागं ६४. सुवण्णपागं ६५. वट्टखेड्ड ६६. सुत्तखेड्डं ६७. णालियाखेड्ड निजुद्धं जुद्धजुद्धं अट्ठिजुद्धं मुट्ठिजुद्धं बाहुजुद्धं लयाजुद्धं ईसत्थं छरुप्पवायं धणुवेयं हिरण्णपागं सुवण्णपागं सुत्तखेड्डं नियुद्धं जुद्धातियुद्ध दिट्ठिजुद्धं मुट्ठिजुद्धं बाहुजुद्धं लयाजुद्धं इसत्थं छरुप्पवायं धणुव्वेयं हिरण्णपागं सुवण्णपागं सुत्तखेड्डं वत्थखेड्डं नालिआखेड्ड ईसत्थं निजुद्धं जुद्धाइजुद्धं खंधावारमाण अट्ठिजुद्धं नगरमाणं मुट्ठिजुद्धं वत्थुमाणं बाहुजुद्ध खंधावारनिवेस लयाजुद्ध नगरनिवेसं ईसत्थं वत्थुनिवेस छरुप्पवायं धणुवेयं छरुप्पगयं हिरण्णपागं आससिक्खं सुवण्णपाग हत्थिसिक्खं वट्टखेड्डं घणुब्वेयं सुत्तखेड्डं हिरण्णपागं नालियाखेड्डं सुवण्णपागं मणिपागं धातुपागं बाहुजुद्ध दंडजुद्धं पत्तच्छेज्जं मुट्ठिजुद्धं अट्ठिजुद्धं निजुद्धं जुद्धाति वट्टखेड्डं णालियाखेडड ६८. पत्तच्छेज्ज पत्तच्छेज्ज पत्तच्छेज्ज ६६. कडगच्छेज्जं कडगच्छेज्ज कडच्छेज्ज नालियाखेड्ड कडच्छेज्ज वट्टखेड्डं ७०. सज्जीवं सज्जीवं सज्जीवं पत्तच्छेज्ज सज्जीवं कडगच्छेज्जं ७१. निज्जीवं निज्जीवं निज्जीवं सज्जीवं निज्जीवं निज्जीवं ७२. सउणरुयं सउणरुयं स उणरुअं सउणरुयं सउणरुतं मुनित्व आराहणा सूत्र १५४ राइपसेणइयं सूत्र ११६ जस्सदाए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए जस्सदाए कीरइ णग्गभावे मंडभावे केसलोए बंभअदंतवणए केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तगं चेरवासे अण्हाणगं अदंतवणगं अच्छत्तगं अणुवाहणगं अणोवाहणगं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कट्टसज्जा भूमिसेज्जाओ फलहसेज्जाओ परघरपवेसो लदावलपरघरपवेसो लद्धावलद्धं परेहि हीलणाओ द्वाई माणावमाणाई परेहि हीलणाओ निदणाओ निंदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ खिसणाओ तज्जणाओ ताडणाओ गरहणाओ तालणाओ परिभवणाओ पव्वहणाओ उच्चावया उच्चावया विरूवरूवा बावीसं परीसदोवसरमा Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गामकंटगा बावीसं परिसहोवसग्गा अहिया- गामकंटगा अहियासिज्जति, तमलैं आराहेहिइ, सिज्जति तमट्ठमाराहिता.... आराहिता"। सूयगडो २।२।६७ जस्सट्ठाए कीरइ जग्गभावे मुंडभावे अण्हाणगे अदंतवणगे अछत्तए अगोवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्धं माणावमाणणाओ हीलणाओ निदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ तालणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीसं परीसहोबसग्गा अहियासिज्जति तमह्र आराहेति, तमलैं आराहेत्ता....। ठाणं १९६२ से जहानामए बज्जो! मए समणाणं णिगंथाणं नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए अच्छत्तए अणुवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कटूसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परधरपवेसे लावलद्धवित्तीयो पण्णत्ताओ। भगवती ३४३३ जस्साए कीरइ नग्गभावे मंडभावे अण्हाणयं अदंतवणयं अच्छत्तयं अणोवाहणयं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कट्टसेज्जा केसलोओ बंभचेरवासो परपरप्पवेसो लद्धावलद्धी उच्चावया गामकंटगा बावीस परिसहोवसग्गा अहियासिज्जति तमलैं आराहेइ, आराहित्ता..। नायाधम्मकहाओ १११६३३२४ निरयावलियामओ ॥१ सूत्र १५५ सूत्र १६१, १६२ सूत्र १६२ देवकिल्विषक-उपपात भगवती २४० श्रावक-वर्णक सूयगडो २२७१,७२ रायपसेणइयं सूत्र ६६८ भगवती रा६४ अनगार-वर्णक सूयगडो २०२१६३.६४,६७ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १६६-१८४ सूत्र १७० केवली-समुद्घात पण्णवणा ३६७६-६४ गंधसमुद्गक विकिरण भगवती ६।१७३ ईषत्प्राग्भारापृथ्वी पण्णवणा २१६४-६६ ठाणं पा१०६,११० समवाओ १२।११ सिद्ध-वर्णक पण्णवणा २०६७ सूत्र १९२-१६४ सूत्र १६२,१६३ सूत्र १६५ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-३ सद्दसूची प्रमाणविधि [ • अव्यय, सर्वनाम, क्त्वा, तुम्, यप्, प्रत्यय के रूप और धातुरूप के साक्ष्य-स्थल का निर्देश प्रायः एक बार दिया गया है।। रूट (4) अंकित शब्द धातुएं हैं। उन के रूप डैस (-) के बाद दिए गए हैं। शब्द के बाद साक्ष्य-स्थल का अक सूत्र का है, तथा दो अंक प्रतिपति व सूत्र का है, तीसरा अंक सूत्र के अन्तर्गत गाथा का है। जहां एक या दो संगहणी गाथाए हैं वहां उसके प्रमाण उसी सूत्रांक में दे दिए गए अ अइमुत्तयलयापविभत्ति [अतिमुक्तकलताप्रविभक्ति] म [च] रा ६७५ रा० १०१ अइ अयि ] स० ११,५६,६२ अइ रुग्गय [अचिरोद्गत ] रा० ४५ अइ [अति] रा० ७६७ अइरेग [अतिरेक ओ० २३. जी० ३१५६०,७२६, अइकंत [अतिकान्त] जी० ३।५६७ ७३१,७३२ अइक्कत [अतिक्रान्त ओ० १६८,१६५ अइविकिट्ठ [अतिविकृष्ट] रा० ६८३ अइक्कम [अतिक्रम् ] - अइक्कमति ओ० ६२ अइसेस [अतिशेष] ओ० ५२,६९,७०. अइक्कीलावास [अतिक्रीडावास] जी० ३१७५६, जी० ३।५६८ ७५७ अईव [अतीव] रा० १३२. जी० ३१५८० अगाड [अतिगाढ] रा० ७७४ अउणतीस एकोनत्रिंशत् ] जी० ३।२२६१५ अइदूर [ अतिदुर] ओ० ४७,५२,८३. रा०६८७ अउणपण्ण [एकोनपञ्चाशत् ] जी० ३१२२६।३ अइबल [अतिबल ] ओ० ७१. रा०६१ अइमट्टिय [अतिमृत्तिक | रा०६ अउणाणउति एकोननवति ] जी० ३१८२३ अइमुत्तकलया [अतिमुक्तकलता] जी० ३१५८४ अउणापण्ण [एकोनपञ्चाशत् ] ओ० १६२ अइमुत्तयलया [अतिमुक्तकलता] ओ० ११. अउणासोति [एकोनाशीति ] जी० ३१५७० रा० १४५ अउत | अयुत] जी० ३१८४१ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૬ अउल [ अतुल ] ओ० १६५।१६. जी० ३।११६ कुंभी [अयस्कुम्भी ] रा० ७५४,७५६ अमोजा [ अयोध्य ] ओ० ५७ अओमय [ अयोमय ] रा० ७५४,७५६. जी० ३१११६ अंक [ अङ्क ] ओ० ४८, ५१. रा० १०,१२,१८, २६,३८,६५,१३०,१६०, १६५, १७३,२२२, २५६, २७६,८०४. जी० ३।७,२८२,२८५, ३००, ३१२,३३३, ३८१,४१७,५६६, ८९४ अंक (मय ) [ अङ्कमय ] जी० ३१७४७ घाई [ अङ्कधात्री ] रा० ८०४ कमय [ अङ्कमय ] रा० १३०,२७०. जी० ३१३००,३२२, ४३५ वाणिय [ अङ्कवणिज् ] रा० ७३७ कहर [अङ्कधर ] जी० ३१५६६ कामय [ अमय ] रा० १३०, १४९, १६०, २५४. जी० ३।२६४,३००, ४१५ कि [ अङ्कित ] ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७ अंकुर ] अङ्कुर ] ओ० ५,८,१८४. रा० २७, २२८. जी० ३।२७४, २८०, ३८७, ६७२ अंकुस [ अङ्कुश ] रा० ३६, ४०. जी० ३(३१३, ३३८, ५६७,६३४, ८६२ अंकुस [ अङ्कुशक] ओ० ११७ कोल्ल [ अोठ ] जी० ११७४ अंग [ अङ्ग ] ओ० १५,६३,१४३. रा० ८०६, ८१०. जी० ३।५६६ अंगण | अङ्गन ] ओ० २८ अंगपट्ठि [ अङ्ग प्रविष्ट ] रा० ७४२ बाहिर [अङ्गबाह्यक ] रा० ७४२ अंगभंग [ अङ्गाङ्ग ] ओ० १४. रा० ७०,६७१, जो० ३१५६८ अंगय [ अङ्गक | ओ० ६३ अंग [ अङ्गद] ओ० ४७,७२,१०८,१३१. रा० २८५. ३२४५१ श्रंगारक | अङ्गारक] ओ० ५० अल-अंजणगिरि अंगुल [ अगुल] ओ० १६,१७०,१६२,१६५५७. रा० ५६, १८८, ७६६. जी० १३१६,७४,८६,९४, १०१, १०३, १११, ११२, ११६,११६,१२१, १२३ से १२५,१३०, १३५, ३८२,६१,२६०, ४३६, ५६६,५६७,७८८, ८३८३१७,६६६, १०७४, १०८७,१०८६,११११ ५ २३, २६; ६४०,५१, ६७, १७१ अंगुलक [ अगुलक ] जी० ३।२६० अंगुल [ अगुलक ] जी० ३ । १०७४ लय [ अगुलक ] जी० ३१८२ अंगुलि ] अङ्गुलि ] रा० २६२. जी० ३१४५७ अंगुलिज्जग [ अङ्गुलीयक] ओ० ६३ अंगुलितल [ अङ्गुलितल ] ओ० २,५५. रा० ३२, २८१, २३, २६५. जी० ३।३७२, ४४७, ४५८, ४६०, ५५४ अंगुलिय [ अङ्गुलिक ] ओ० १७० अंगुली [ अङ्गुली ] ओ० १६ अंगुलीय [ अङ्गुलीक] ओ० ६३. जी० ३१५६६, ૨૭ अंगुलेज्जग [ अङ्गुलीयक] जी० ३१५६३ ( [ कृष् ] - अंचे ओ० २१. रा० ८. जो० ३।४५७ चितरिभित [ अञ्चितरिभित ] जी० ३।४४७ चित्ता [कृष्ट्वा ] रा० २६२ चिय [ अञ्चित ] रा० १०५. ११६,२५१. जी० ३।४४७ चियरिभिय [ अञ्चितरिभित] रा० १०७, २८१ चेत्ता [कृष्ट्वा ] ओ० २१. रा० ८. जी० ३३४५७ अंजण [ अञ्जन ] ओ० ४७. रा० १०, १२, १८, २५, ६५, १६१, १६५, २५८, २७६. जी० ३१७,२७८, ३३४,४१९, ४४५ अंजणकेसिंगा [ अञ्जनकेशिका ] जी० ३।२७६ अंजणकेसिया ( अञ्जनकेशिका | रा० २६ अंजणग] [ अञ्जनक] ओ० १३. जी० ३१८८२, ८८३,६१०,६१३ से ६१६ अंजणगिरि [ अञ्जनगिरि ] ओ० ६३ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंजणपुलय-अंतो अंजणपुलय अञ्जनपुलक] रा० १०,१२,१८,६५, १६५,२७६. जी० ३१७ अंजणमय [अञ्जनमय] जी० ३१८८२ अंजणा [अञ्जना] जी० ३१४,६८७ अंजलि [अञ्जलि ] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, ६२,६६,११७. रा०८,१०,१२,१४,१८,४६, ७२,७४,११८,२७६,२७६,२८२,२६२,६५५, ६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, ७२३,७६६. जी० ३।४४२,४४५,४४८,४५७, ५५५ अंजलिपग्गह अञ्जलि प्रग्रह] गो. ६६,७०, रा०७७८ अंजलिप्पग्गह अञ्जलिप्रग्रह] ओ० ४० अंजू [अजू] जी० ३।६० अंडग [अण्डक] ओ० ३३ अंख्य [अण्डज] जी० ३।१४७,१४८,१६१ अंडबद्धग [अन्दुबद्धक ओ० ६० अंत [अन्त] ओ० ७२,७४१४,१५४,१६५,१६६, १७७,१८१. रा० ३७,७७१,८१६. जी० १११३३, ३१५२,१२४,१२५,३११,६४२,६५३, ७२३,७५४,७६२,७६५ से ७७६ प्रतकम्म [अन्तकर्मन् ] रा० २८५. जी० ३।४५१ अंतगडदसाघर [अन्तकृतदशाधर ] ओ० ४५ अंतर [अन्तर] रा० १३२,२८१,७५४ से ७५७, ७६३,७६४. जी० १११४१,१४२; २१६३,६६, ५६,८८,६२,१२५,१२६,१३३,१५०,१५१; ३१६० से ६३,६५,६६,६८ से ७२,११८,११६, २८८,३०२,४४७,५७०,५६८,७१४,८०२,८१५, ८२७,८३८.२७,८५२,६५२,१०२२,११३६, ११३७, ४११६,१७, ५।१७,२३,२४,३०; ६।१०।७१३८१४; ६।४,१२,१३,१६,२५, २६,३३,३४,३६,४६ से ५४,५६,६०,६५,७१, ७२,८३,८४,८६,६२,६३,६६,१०५ से १०७, १११,११७,११६,१२६ से १२८,१३६,१३७, १३६,१४६,१५२,१५३,१६५,१६,१७७, १७६,१८०,१६३ से १६५,२०४ से २०७, २१६ से २१९,२२८ से २३०, २४१ से २४४, २४६,२४६,२६२ से २६५,२७७ से २८५ अंतरणई [अन्तर्नदी] रा० २७९ अंतरणदी [अन्तर्नदी] जी० ३१४५५,६३७ अंतरचीव [अन्तर्वीप] जी० २०६१ अंतरदीवक | अन्तीपज,°क] जी० २।८६ अंतरदीवग [अन्तर्वीपज,क) जी० २५५,१०१, ११६,१२६; २१३४,७०,७२,७७,८५,६६, १०६,११६,१२४,१३३,१३७,१३८,१४७, १४६ ; ३।१५५,२१५,२१६,२२७,८३६ अंतरदीवय [अन्तर्वीपज, क जी० १.१०१ अंतरदीविया [अन्तर्वीपिका ] जी० २१११,१३,६६, ७०,७२,१४७,१४६ अंतरा अन्तरा] ओ० ५५. रा० २०,६८३,७०६. __ जी० ३१७२६ अंतराय [अन्तराय] ओ० ४४ अंतरित [अन्तरित] जी० ३।४३६ अंतरिय [अन्तरित ] रा०७६६. जी० ३८३८१२६ अंताहार [अन्त्याहार] ओ० ३५ अंतिय [अन्तिक] ओ० २१,४७ से ५१,५४,६३, ७८,८०,८१,११७,१२०,१२११५१. रा० १२, १३,१५ से १७,४७,६२,२७७,६६७,६८१, ६८३,६८५,६६०,६६४ से ६६६,७००,७०६, ७१०,७१३,७१४,७१६,७१८,७२०,७२६, ७७४,७७५,७६६,८१२. जी. ३१४४३ अंतेउर [अन्तःपुर ओ० २३,७०,१६२. रा० ६७४,६६५,६६८,७५२,७७७,७७८, ७८७ से ७६१ अंतेउरिया [अन्तःपुरि की ] ओ० ६२ अंतेपुर अन्त:पुर] जी० ३१२८५ अंतेवासि [अन्तेवासिन् ] ओ० २३ से २५,२७,८२, ११५. रा० ६७६ अंतो [अन्तर् | ओ० ७०,६२ रा० २४,३३,६६, १३०,१३७,१८७,२५४,७५४,७५५,७५७, Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ अंतोमुहुत्त-अकसाइ ७७२. जी० १११२७, ३१७७,१११,११८,२१४, अंबरतल [अम्बरतल] ओ० ५२. रा०६८८ २७७,२६८,३००,३०७,३०६,३३६,३५२, अंबसालवण | आम्रशालवन | रा०२,८ से १०, ३५९,३६०,३६४,३६८,३६६,३६६,४१५, १२,१३,१५,५६ ६४८,६७३,७५५,७५७,८३८११५,८३६,८४०, अंबिल [अम्ल जी० ११५, ३१२२ ८४२,६०५ अंबिलोदय [अम्लोदक ] जी० ११६५ अंतोमुहुत अन्तर्मुहूर्त | जी० ११५२,५६,६५,७४, अंबुभक्सि अम्वुभचिन् ] ओ० ६४ ७६,८२,८७,८८,१० १,१०३,१११,११६,१२१, अंसुय [अंशुक जी० ३१५६५ १२३ से १२५,१२७,१२८,१३३,१३७ से अकंटय [अकण्टक ] ओ०६,१४. रा० ६७१. १४०,१४२; १२० से २२,२४ से ३४,४६, जी० ३।२७५ ५०,५३ से ६१,६३,६५ से ६७,७६,८२ से अकंडुयय अकण्डयक ओ० ३६ ८४,८७,८८,१०,११,१०७,१०६ से १११, अकंत अकान्त] T० ७६७. जी. १९६५३।६२ ११३,११४,११६,११६ से १३३; ३३१५६, अकंततरक [अकान्तत क जी० ३१८४ १६१,१६२,१६५,१८६ से १६१,२१४,११३२, अकक्कस अकर्कश] ओ० ४० ११३४ से ११३७, ४१३ से ११,१६,१७, १५, अकडुय [अकटुक ओ० ४० ७,८,१० से १६,२१ से २४,२८ से ३०; ६३, अकण्ण | अकर्ण जी० ३।२१६ ८ से ११;७१ १३, १४ ; ६॥२३ से २६,३१,३३, अकम्मभूमक [अकर्मभूमक] जी० २११३३ ३४,३६,४१,४७,५२,५७ से ६०,६८ से ७३, अकम्मभूमग [अकर्मभूमक] जी० ११५१,५५, ७५,७८,८०,८३,८५,८६,९०,६२,६३,६६,६७, १०१,११६,१२६; २।३०,३२ से ३४,७७,८५, १०२,१०३,१०५,११४,११५,११७,११८, ६६,१०६,११६,१२४,१३७,१४७,१४६; १२३,१२५,१२६,१२८,१३२,१३६,१४४, ३।१५५,२१५,२२८,८३६ १४६,१५०,१५२,१५३,१६०,१६४,१६५, अकम्मभूमि [अकर्मभूमि ] जी० २११३७ १७२,१७३,१७६ से १७८,१८६ से १६१, अकम्मभूमिक [अकर्मभूमिज,°क] जी० २।५७,५८, १६३,१६४,१६८,२०२,२०४,२०७,२११, २१६ से २१८,२२२,२२३,२२५,२२८,२२६, अकम्मभूमिग [अकर्मभूमिज,°क ] जी० २१५६ से २४१,२४२,२५७ से २६०,२६२,२६४,२७७, ६१,६६,७०,७२,१३८,१४७,१४६ २७८ अकम्मभूमिय अकर्मभूमिज जी० ११०१ अंतोमुहुत्तिय [अन्तर्मुहर्तिक | ओ० १७३,१८२ अकम्मभूमिया [अकर्मभूमिजा] जी० २।११,१३, अंतोसल्लमयग [अन्तर्शल्यमृतक ] ओ०६० ७०,७२,१४७,१४६ अंदोलग [अन्दोलक] रा० १८०. जी० ३।२६२ अकयत्य अकृतार्थ रा० ७७४ अंदोलय [अन्दोलक] रा० १८१ अकयलक्खण [अकृतलक्षण] रा० ७७४ अंधकार [अन्धकार] ओ० ४६ अकरंडुय | अकगण्डक ] ओ० १६. जी० ३१५६६, अंधयार [अन्धकार | ओ० ५,८,५७. जी० ३१२७४ अंधिया [अन्धिका | जी० १८६ अकरण | अकरण ] ओ० ७८ से ८१ अंब [आम्र] जी० ११७१ अकरणिज्ज अकरणीय ] ओ० ११७. रा० ७६६ अंबड [अम्बड] ओ०६६ अकसाइ | अकपायिन् ] जी० १३१३१६२८, अंबपल्लवपविभत्ति [आम्रपल्लवप्रविभक्ति] रा०१०० १४८,१५१,१५४,१५५ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाइय-अग्गलपासाय अकाइय [अकायिक] जी० ६।१८ से २०,१८२, अक्खीण [अक्षीण] रा० ७५१ १८४ अक्खीणमहाणसिय [अक्षीण महानसिक] ओ० २४ अकामछुहा [अकामक्षुध् ] ओ० ८६ अक्खुभियजल [अक्षुभितजल] जी० ३१७८३,७८४ अकामणिज्जरा [अकामनिर्जरा] ओ० ७३ अक्खेवणी [आक्षेपणी] ओ० ४५ अकामतहा [अकामतृष्णा] ओ० ८६ अखंड [अखण्ड] ओ० १६. जी० ३१५६६ अकामबंभचेरवास [अकामब्रह्मचर्यवास] ओ० ८६ अखुभियजल [अक्षुभितजल] जी० ३१७८३ अकाल [अकाल] रा० १३,१५ से १७ अगड [अवट] ओ० १,६६ अकिंचण अकिञ्चन ] ओ० २७. रा० ८१३ अगडमह [अवटमह] 'रा० ६६८ अकित्तिकारग [अकीतिकारक] ओ० १५४ अगणि [अग्नि ] रा० ७५७. जी० ३१७७ अकिया [अकृत्वा] ओ० १७२ अगणिकाय [अग्नि काय] रा० ७६७. अकिरिय [अक्रिय ] ओ० ४० जी० ३८४१ अकुडिल [अकुटिल] ओ० ४६ अगत्थिगुम्म [अगस्तिगुल्म] जी० ३१५८० अकुणत्तर एकोनसप्तति] जी० ३८२७ अगरला [अगरला,अगरल्लि] ओ० ७१. रा० ६१ अकुव्वमाण [अकुर्वत्] रा० ७६२ अगरुलघुयत्त [अगरुल चुकत्व] रा० ७६३ अकुसल [अकुशल] रा० ७५८,७५६ अगलुय [अगरुक] ओ० ११०,१३३ अकुसलमण [अकुशलमनस् ] ओ० ३७ अगामिया [अग्रामिका] ओ० ११६,११७. अकुसलवय [अकुशलवचस्] ओ० ३७ रा० ७६५,७७४ अकोसायंत [अकोशायमान, विकसत्] ओ० १६ अगार अगार] ओ० १५,२३,५२,७६,७८,१२०, अक्किट्ठ [अक्लिष्ट] जी० ३१६३० १५१. रा० ७०,१३३, ६७२, ६८७, ६८९, अक्कोह [अक्रोध] ओ० १६८ ६६५, ५०६, ८१०, ८१२ अक्ख [अक्ष] ओ० १२२ अगारपम्म [अगारधर्म] ओ० ७५,७७ अक्षय [अक्षय] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२००, अगारसामाइय [अगारसामायिक ] ओ० ७७ २६२. जी० ३।५६,२७२,३५०,४५७,७६० अगिला दे० अग्लानि] ओ० ७१. रा० ७२० अक्सर [अक्षर ओ०७१,१८२. रा० ६१,२७०. अगुरु [अगुरु रा० ३० जी० ३१४३५ अगेज्म [अग्राह्य] ओ०५ जी० ३१२७४ अक्खाइगपेच्छा [आख्यायकप्रेक्षा] जी० ३।६१६ अग्ग [अग्र] ओ० २३,६६. रा० ६६,७०,१३३, अक्खाङग [अक्षवाटक] रा० ३५,६६,२१८,३००. २६१,३५१,५६४. जी० ३१३०३,४५७,५१६, जी० ३।३७७,४६५,८६१ ५४७,५८०,५६७,६७४ अक्खाडय अक्षवाटक] रा०३६,२१७,३००, आगमहिसी [अग्रमहिषी] रा० ७,४२,४७,५६,५८, ३२१,३३८. जी० ३।४६५,४८६,५०३,८६० २८०,६५६. जी. ३१३४०, ३५०, ३५६, अक्खात [आख्यात] जी० ३२३२ ४४६,४४८,५५७,५५६,५६३,६१६ से १२२, अक्खामित्ता [अक्षमयित्वा रा० ७७६ १०२३,१०२६ अक्खाय [आख्यात] रा० १२४,१२६,१६३,१६६. अग्गय [अग्नक ] जी० ३१५६१ जी० ११३७७,१६१,१७४,२५७,३३५, अग्गलपासाय [अर्गलाप्रासाद] रा० १३०. ३५४,३५५,३५७,६५८,७२८,७३३,१०३८ जी० ३३०० Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग्गला-अच्छ अग्गला [अर्गला] रा० १३०. जी० ३१३०० अगसिहर [अग्रशिखर] ओ० ५,८. रा० ३२. जी० ३१२७४,३७२ अग्गसो अग्रशस्] जी० ११५८,७३,७८,८१ अग्गहत्य [अग्रहस्त] ओ० ४७. रा० १२,७१४, ७५८ से ७६१. जी० ३.११८ अग्गि अग्नि ] ओ०४८,१८४. रा० ७६१. जी० ३१६०१,८६६ अम्गेश अग्राह्य] ओ०८ अग्गोदय [अग्रोदक ] जी० ३३७३३ अचंड [अचण्ड] जी० ३१५६८ अबक्खुदंसणि [अचक्षुर्दर्शनिन् ] जी० १।२६,८६, ६०; ६१३१,१३३,१३७,१४० अधरिम [अचरम] रा० ६२. जी० ६।६३,६५,६६ अचवल [अचपल] रा० १२ अचित्त [अचित्त ] ओ० २८,४६,६६,७०. रा०७७८ अचिर [अचिर] जी० ३१५६० अचोक्स [दे० अचोक्ष ] रा० ६,१२. जी० ३१६२२ अच्च [अ]—अच्चेइ ओ० २. रा० २६१. __जी० ३१५१६-अच्चेति जी० ३१४५७ अच्चंत [अत्यन्त] ओ० १४. स० ६७१ अच्चणिज्ज [अर्चनीय] ओ० २. रा० २४०,२७६. जी० ३१४०२,४४२,१०२५ अच्चगिया [अर्चनिका] रा० ६५४,६५५. जी०३१४६३,४६६,५१७,५५४,५५५ अच्चा [अर्चा] ओ०७२ अच्चासग्ण अत्यासन्न ] ओ० ४७,५२,८३. रा०६०,६८७,६६२,७१६ अच्चि अचिस् ] ओ० ४७,७२. रा० १७,१८,२०, ३२,१२६. जी० २७८,३३८५,१७५,२८८, ३००,३७२ अच्चिकत चिःकान्त] जी० ३११७५ अच्चिकूड [अचि कूट] जी० ३३१७५ अच्चिज्झय [अचिवंज] जी० ३११७५ अच्चिप्पभ [अर्चिःप्रभ जी० ३३१७५ अच्चिमालि [अचिर्मालिन रा० १२४ अच्चिमाली | अचिर्मालिनी] जी० ३१६२०,१०२३, १०२६ अच्चियावत्त [अचिरावत जी० ३३१७५ अच्चिलेस्स [अचिर्लेश्य ] जी० ३६१७५ अच्चिवण्ण [अचिर्वर्ण] जी० ३३१७५ अच्चिसिंग अचिः शृङ्ग) जी० ३११७५ अञ्चिसिट्ठ [अचिः शिष्ट] जी० ३११७५ अच्चुत [अच्युत] जी० ३११०३८,११२२ अच्चुत्तरडिसग [अचिरुत्तरावतंसक] जी० ३३१७५ अच्चुय [अच्युत] ओ० १५८,१५६,१६२,१६०, १६२. जी० २१९६३।१०५४,१०५५,१०६२, १०६६,१०७४,१०८८,१०६१,११११,१११२, १११५,१११६ अच्चुयवइ [अच्युतपति ] ओ० ५१ अच्चुत्ता [अचित्वा] रा० २६१. जी० ३४५७ अच्चोदग [अत्युदक रा० ६,१२. जी० ३।४४७ अच्चोयग अत्युदक] रा० २८१ अच्छ अच्छ] ओ० १२,१६४. रा० २१ से २३. ३२,३४,३६,३८,१२४ से १२८,१३१,१३२, १३४,१३७,१४१,१४५ से १४८,१५० से १५३,१५५ से १५७,१६०,१६१,१७४,१८० से १८५,१८८,१६२,१६७,२०६,२११,२१८, २२१,२२२,२२४,२२६,२३०,२३३,२३८, २४२,२४४,२४६,२५३,२५६,२६१,२७३, २६१. जी० ३।११८,११६,२६१ से २६३, २६६,२६८,२६६,२८६,२८६ से २६७,३०१, ३०२,३०४,३०७,३०८,३१२,३१८,३१६, ३२३ से ३२६,३२८ से ३३०,३३२,३३४, ३३७,३४७,३४८,३५२,३५३,३५५,३६१, ३६५,३७२,३७७,३८०,३८१,३८३,३८५, ३६२,३६५,३६६,४००,४०४,४०६,४०८, ४१०,४१३,४१४,४१८,४२२,४२५,४२७, ४३७,४५७,६३२,६३६,६४४,६४६,६४६, ६५५,६६१,६६८,६७१,६७५,६८६,७२४, ७२७,७३६,७५०,७५८,८३६,८४२,८५४, Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अच्छ-अट्ट १५॥ ८५७,८६३,८८१,८५२,८६१,८६३ से ८९५, अजीवाभिगम [अजीवाभिगम] जी० ॥२ से ५ ८६७,८६६,६०१,६०४,६०६,६०७,६१०, अजोगत्त [अयोगत्व ] ओ०१८२ ६११,६१८,६५७,१०३८,१०३९,१०८१ अजोगि [अयोगिन् ] जी० १११३३;६।२१,४६, अच्छ आस्!-अच्छेज्ज ओ० १६५।१८ ४७,५३,११३,११६,१२० अच्छ [ऋक्ष जी० ३१६२० अज्ज [अद्य] रा०६८८,६८६ अच्छणघरग [आसनगृहक] रा० १८२,१८३. अज्ज {आर्य ओ० १४६ जी० ३१२६४ अज्जग [आर्यक] रा० ७५०,७५१,७७३ अच्छपण [आच्छन्न ] जी० ३।५८१ अजय [आर्यक] रा० ७५०,७५१ अच्छत्तग [अछत्रक] ओ० १५४,१६५,१६६. अज्जव [ आर्जव] ओ० २५,४३. रा०६८६,८१४ रा०८१६ अज्जा [आर्या | रा० ८०६ । अच्छरस [अच्छरस] रा० १६२. जी० ३.४५७ अज्जिया [आर्यिका] ओ० १६. रा० ७५२,७५३ अच्छरा [दे० ] ओ० १७०. जी० ३।८६ अज्जुण [अर्जुन ] ओ० ६,१०. जी० ३।५८३ अच्छरा अप्सरस्] रा० ३२,२०६,२११. अज्जुणसुवण्णगमय [अर्जुनसुवर्णकमय] ओ० १६४ जी० ३१३७२,५६७,६२१,११२२ अज्झत्थिय [आध्यात्मिक] रा० ६,२७५,२७६, अच्छि [अक्षि] ओ० १६. रा० २५४. ६८८,७३२,७३७,७३८,७४६,७६८,७७७, जी० ३३१२६८,३०३,४१५,५६६ ७६१,७६३. जी० ३।४४१,४४२ अच्छिज्जत आच्छिद्यमान] रा० ७७ अज्मयण [अध्ययन] जी० १११ अच्छिद्द [अच्छिद्र ] ओ० ५,८,१६,२६. अज्झवसाण [अध्यवसान] ओ० ११६,१५६. __ जी० ३१२७४,५६६,५६७ जी० ३.१२९६ अन्छिपत्त [अक्षिपत्र] रा० २५४. जी० ३१४१५ अझोयरय [अध्यवत रक] ओ० १३४ अच्छिवेदणा [अक्षिवेदना] जी० ३.६२८ ‘अज्झोववज्ज [अधि+उप+ पद्] अच्छेत्ता [अछित्वा] जी० ३१६६० -- अज्झोक्वज्जिहिति ओ० १५०. रा०८११ अच्छेयकर [अछेदकर] ओ० ४० अज्झौववण्ण [अध्युपपन्न] रा० ७५३ अच्छरग आश्चर्य जी०३५६७ अट्ट {आतं] ओ०७४ अज [अज जी० ३१६१८ अट्ट (माण) [आर्तध्यान यो० ४३ अजरा अजरा] ओ० १६५।१८ अट्टज्झाण | आतध्यान ] रा०७६५ अजहण्ण [अजघन्य ] जी० ३।५६७ अट्टणसाला | अट्टनशाला ओ० ६३ अजहण्णमणुक्कोस [अजघन्योत्कर्ष ] जी० ६।४८, अट्टालग [ अट्टाल क] जी० ३१५६४,६०४ अट्टालय [अट्टालक] ओ० १. रा० ६५४,६५५. अजिण [अजिन ] ओ० २६ जी० ३१५५४ अजित [अजित] जी० ३।४४८ अट्टियचित्त [आतितचित्त] ओ०७४।५ अजिय [अजित ] ओ० ६८. रा० २८२. अट्ट अर्थ ओ० २०,२१,५२,५४,५७,५६,६१, जी० ३४४८ ६३,८४ से ६५,१११ से ११४,११७ से १२०, अजीरग [अजीरक] जी० ३।६२८ १५४,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६५ से अजीव [अजीव] ओ०७१,१२०,१३७,१३८,१६२. १६७,१६६,१७०,१७२,१७७,१८३,१८४, स० ६६८,७५२,७८६ १८६ से १६१. रा० १३,१६,२५ से ३१,४५, Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ अट्ठ-अणईई ४७,६४,१२३,१७३,१६७,१६६,२७७,६८३, अट्ठावय [अष्टापद] ओ० १४६. रा० ८०६. ६८७,६६०,६६८,७०१,७१३,७१४,७१६, जी० ३१५६७ ७१६,७२६,७५१ से ७५३,७५५,७५७,७५६, अट्ठावीस [अष्टाविंशति] ओ०१७०. रा० १५५. ७६१,७६३,७६५,७७१,७७४,७७६ से ७७८, जी. ३५ ७८६,७८६,७६२,८१६. जी० ३।५८,८४,८५, अट्ठावीसइविह [अष्टाविंशतिविध ] जी० २०१२ १६ से २०३.२३६,२४७,२५६,२६६,२७१ अदावीसतिविष [अष्टाविंशतिविध] जी० २१६ २७० से २८५,३५०,४४३,५७७,५६६,६०१, अट्ठावीसतिविह । अष्टाविंशतिविध] ओ० ५० ६०२,६०५ से ६०७,६०६,६१०,६१२ से अट्ठासीत [अष्टासीति] जी० ३।८३७ अट्रि [अस्थि ] ओ० १२०. रा०६९८,७५२, ६७४,७००,७०६,७२१,७३१,७३८,७४१, ७८६. जी० ११९५,१३५:३१६२,१०६० ७४३,७४६,७५०,७६०,७६३,७६५,७६८, अद्विद्ध [अस्थियुद्ध] रा० ८०६ ७७०,७७६,७८२,७८६,७८७,८०८,८१६, अट्टिसुह [अस्थिसुख ] ओ०६३ ८२६,८३३,८३६,८४०,८५४,८५७,८६०, अडड [अटट] जो० ३८४१ ८६३,८६६,८६६,८७२,८७५,८७६,५८०,६२३, अडतालीस [अष्टचत्वारिंशत् ] जी० ३८२७ ६२५,६२७,९४१,९४८,६४६,६८९ से १६२, अडयाल [अष्टचत्वारिंशत् ] रा० १२६. ९६४ से ६९६,६६९,१०२४,१०२५,१०४२, जी० ३१३५१ १०४४,१०४६,१०४६,१०५१ से १०५३ अडयालीस [अष्टचत्वारिंशत् ] रा०२३५. जी० ३१६८ अट्ट [अष्टन् ] ओ० १२. रा० ८. जी २३६ अट्टअट्टमिया [अष्टाष्टकिका] ओ० २४ ।। अख्यालीसप्रंसिय अष्टचत्वारिंशदस्त्रिक] रा० २३६ अद्वतीस [अष्टात्रिंशत्] जी० ३१७० अडयालीसइकोडीय [अष्टचत्वारिंशत्कोटीक] रा०२३६ अट्ठपिटुणिहिता [अष्टपिष्टनिष्ठिता] जी० ३८६० अख्यालीसइविपहिय अष्टचत्वारिंशद्विग्रहिक अट्ठभाइया [अष्टभागिका] रा० ७७२ रा० २३६ अट्ठभाग [अष्टभाग] जी० २१३६,४४ अडवो [अटवी ] ओ० ११६,११७. रा० ७४४,७६५ अट्ठम {अष्टम ] ओ० १७४,१७६ अट्ठमभत्त [अष्टमभक्त] ओ० ३२. जी० ३।५६६ अडहत्तर [अष्टसप्तति ) जी० ३७७ अड्ढ [आढय] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,६७५, अट्ठमी [अष्टमी ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७६६. जी० ३१५६४ ___ ७५२,७८६. जी० ३।७२३,७२६ अड [अर्ध] जी० ३१६६२ अट्ठया [अर्थ ] ओ० २०,१३७,१३८ अड्डबावट्टि [अर्धद्विषरिट | जी० ३१६६३ अदविह अष्टविध] जी० ११५,१०,२।१७; ३।११७, ८।१,२३, ६।१६७,२०६,२२० अड्डाइज्ज [अर्धतृतीय ] ग० १२६. जी० ३।६१, अट्ठसिर [अष्टशिरस् ] ओ० १३ २३७,२३८,२४३,३५५,६३२,६४७,६४६, ६७३,६६४,६७३,१०५३,१०५५:५।२६ अटार अष्टादशन् ] ओ०१६२ अट्ठारस [अष्टादशन् ] ओ० १४८. जी० २।४८ अणइक्कमणिज्ज [अनतिक्रमणीय ] ओ०१२०, अट्ठारसविह [अष्टादविध] रा० ८०६,८१० १६२. रा०६६८,७५२,७८९ अणइक्कमणिज्जवयण [अनतिक्रमणीयवचन] अट्ठावण्ण [अष्टपञ्चाशत् ] जी० ३।६६१ ओ०६१ १. ईति रहित। अणईइ अनीति'] ओ० ५,८. जी० ३१२७४ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंत-अणाढिया अणंत [अनन्त] ओ० १६.२१,५४,१५३,१६५, अणगारसामाइय [अनगारसामायिक ] ओ० ७६ १६६,१७२,१८२,१६५८. रा० ८,२६२,८१४, अणगारिया [अनगारिता] ओ०२३,५२,७६,७८, जी० १९,६७,७३,७४,१३६२६३,६५,८८, १२०,१५१. रा०६८७,६८६,६६५,८१२ १३२; ३१४५७ ; ५।६,२४,२६,४१ से ५१,५६ अणच्चासायणा [अनत्याशातना] ओ० ४० से ५८; ८१४;६।२३,२६,३३,६६,७१,७३,७८, अणच्चासायणाविणय [अनत्याशातनाविनय ] १६४,१६५,१७८,२०२,२०४,२५८ ओ० ४० अणंतक [अनन्तक] जी० ३४५१ अणट्ट [अनर्थ ] ओ० १२०,१६०. रा० ६६८, ७५२,७८६ अणंतखुत्तो [अनन्तकृत्वस्] जी० ३।१२७,६७५, ११२८ से ११३० अबढावंड [अनर्थदण्ड ओ० १३६ अणंतग [अनन्तक] ओ० १०८,१३१. रा० २८५ अणण्हयकर अनास्लवकर] ओ० ४० अणंतगुण [ अनन्तगुण] ओ० १६५।१४. अणत्थर [अनर्थदण्ड] ओ० १०४,१२७ जी० ११३५,३७,४०,१४३; २१३४,१३६, अणत्यग्वेरमण [अनर्थदण्डविरमण] ओ० ७७ १३८ १४१,१४२,१४५,१४६,१४६; अणवसमाण [अनवकांक्षत् ] ओ० ११७ ३।११३८;४।१६ से २१,२५,५॥१८,२०,२५, अणवज्ज [अनवद्य ] ओ० १३७,१३८ २७,३१,३३,३६,५२,६०; ६।१२:७:२१ से अणवटुप्पारिह [अनवस्थाप्याह| ओ०३६ अगवदित [अनवस्थित जी० ३३८३८।१० २३; ८१५६५ से ७,१४,१७,२०,२७ से । अणवट्ठिय अनवस्थित] जी० ३१८३८१३२,८४१ २६,३५,६१,६२,६६,७४,८७,६४,१००,१०८, अणवणिय [अनपन्निक] ओ० ४६ ११२,१२०,१३०,१४०,१४७,१५५,१५८, अणवयम्ग [अनवदन] ओ०४६ १६६,१६६,१८१,१८४,१६६,२०८,२२०, अणवरय अनवरत ] ओ० ६८ २३१,२५१,२५३,२५५,२६६,२८७,२८६, अणसण [अनशन ओ० ३१,३२,११७,१४०,१५४, २६२,२६३ १५७,१६२,१६५,१६६. रा०८१६ अणंतपएसिय [अनन्तप्रदेशिक] जी० ११३३ अणह [अनघ] ओ०६८ अणंतर [अनन्तर] ओ०६४,१४१,१८२,१६२. अणाइ [अनादि] ओ० ४६ रा० ५० से ५५,७०,२६२,७७३,७६६. अणाइय [अनादिक जी० ६।११,१३,१६,६५, जी० ११४३,६१,११६,३११२१,१५६,६६८, ६६,८६,१६४,१७६ ८३८।२५,८८२,११२७ अणाउत्त [अनायुक्त | ओ० ४० अणंतरसिद्ध [अनन्तरसिद्ध] जी० ११७८ अणागय [अनागत ] ओ० १८३,१८४,१६५ अणंतवाग [अनन्तवर्ग | ओ० १६५।१५ अणागार [अनाकार] ओ० १६५।११. अणंतवत्तियानुपेहा [अनन्तवृत्तिता(का)नुप्रेक्षा] जी० १२३२,८७, ३.१०६,१५४,१११० ओ०४३ ६।३६,३७ अणंतसंसारिय [अनन्तसंसारिक] रा० ६२ अणाढायमाण [अनाद्रियमाण] रा०७६०,७६१ अणगार [अनगार] ओ० २७,४५,८२,१५२, अणाढित [अनादृत] जी० ३१७०० १६४,१६६. रा०६८६,७११,८१३. अणाठिय [अनादृत ] जी० ३।६८०,७००,७०१, जी० ३.१६८ से २०६ ७६५ अणगारषम्म [अनगारधर्म] ओ० ७५,७६ अगाढिया [अनादृता] जी० ३१७००,७०१ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५४ अणाणुपुख्ती (अनानुपूर्वी | जी० ११४८ अणादिय [अनादिक | जी० ६।२५,१३३ अणावीय [अनादिक] जी० ६।२३,३१,३४,६४, ७२,८१,११०,१७४,२०२,२०६ अणारंभ अनारम्भ | ओ० १६३ अणारिय [अनार्य | ओ० ७१. जी० ३१६२८ अणालोइय अनालोचित | ओ०६५.११५,१५६ अणाहारग ! अनाहारक] जी० ६।३८,५१ से ५५ अणाहारय [अनाहाक] जी० ६।४२ से ४८ अणिव अनिन्द्र | जी० ३१११२० अणिविय [अनिन्द्रिय | जी० ६।१५ से १७,१६७, १६६,२५६,२६१,२६५,२६६ अणिक्खित अनिक्षिप्त ] ओ० ११६ अणिगण अनग्न | जी० ३१५६५ अणिच्च | अनित्य ] ओ०७४ अणिच्चाणुहा [अनित्यानुप्रेक्षा | ओ० ४३ अणिज्जिण्ण [अनिर्जीर्ण] रा० ७५१ अणि? [अनिष्ट ] रा० ७६७. जी० ११६५; ३६२,६७,१२२,१२३,१२८,१२६ अणिद्वतरक [अनिष्टतरक | जी० ३१८४,८५ अगिढतरय (अनिष्टत रक जी० ३१११८,११६ अणिठ्ठर अनिष्ठुर ओ० ४० अणिहय | अनिष्ठीवक | ओ० ३६ अणित्यंत्य {अनित्यंस्थ] ओ० १६१८, जी० १४६७,७४ अणिय [अनीक] रा० ७,४७,५६,५८,२८०. जी० ३।३५०,४४६,५५७,५६३ अणियट्टि [अनिवृत्ति ] ओ० ४३ अणियाण अनिदान] ओ० २५,१६४ अणियाहिवइ [अनीकाधिपति ] रा० ७,५६,५८, २८०. जी० ३२३५०,४४६,५५७,५६३ अणियाहिवति [अनीकाधिपति] ० ४३. जी० ३१३४४,५६१ अणिल [अनिल ] ओ० २७. १० ८१३ अमिसिट अनिसृष्ट | ओ०१३४ अणाणुपुवी-अणुत्तरोववात्तिय अणिहुतिदिय [अनिभृतेन्द्रिय ] ओ० ४६ अणीय [अनीक] ० ५६ अणीयाहिवइ [अनीकाधिपति] रा० ५३ अणु (अणु जी० ११४४ ; ३१६६८,६EE अणुगंतव्य | अनुगन्तव्य ] जी० ३।५,१२,३५५, ७७५ अणुगच्छ [अनु + गम् | अणुगच्छइ ओ० २१, रा० ६--अणुगछति जी० ३।४५५ अणुगच्छित्ता [अनुगम्य ओ० २१. रा०८ अणुग्घसित [अनवपित] रा० १४६ अणुचर [अनु + चर]-.--अनुचरंति जी० ३१८३८.११ अणुचरंत अनुवरत् ] जी० ३१८३८.१० अणुचरिय [अनुचरित] ओ०१ अणुचिण्ण [अनुचीर्ण] जी० १३१ अणुजाण [अनु+ज्ञा]--अणुजाणउ रा० ६८. - अणु नाणति रा० ७१३.- अशुजाणेज्जाह रा० ७०६ अणुताव [अनुताप | जी० ३३१२८ अणुत्त अणुत्व] जी. ३१६६E अणुत्तर (अनुत्तर | ओ०७२,७६ से ८१,१५३ १६५,१६६. रा० ८१४. जी० ३.१२,७७, ११७,१०३८,१०५६,१०८४,१०८६,१०६२, ११०४,११०६ से ११११,१११३,१११८, ११२०,११२३,११२५ अणुत्तरविमाण [अगुत्तरविमान} ओ० १६०. जी० ३३१०६६,१०७०,१०७२,१०७४,१०७७ से १०८२,१०८६,११३० अणुत्तरोववाइय [अनुत्तरोपपातिक] जी० १११२३; ___३।१०६४,१०६७ अणुत्तरोवाइयवसाधर अनुत्तरोपपातिकदशाधर] ओ० ४५ अणत्तरोववातिय | अनुत्त रोपपातिक] जी० २।६३, ६६,१४८,१४६, ३३१०७६,१०६०,१०६६, १०६८,१०६६,११०६.११०८,१११४,१११६, १११८,११२५ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुवणकर-अणुवीइ अनुद्दवणकर [अनुदवणकर) ओ० ४० अणुप्पविस [अनु-प्रविश ] ----अणुप्पविसति अणुपत्त [अनुप्राप्त ] ओ० ११६,११७. रा० ८०६, रा० ७५५. जी० ३।४४३ ८१० अणुप्पविसमाण [ अनुप्रविशत् ] जी० ३।१११ अणुएवाहिण अनुप्रदक्षिण] जी० ३।४४३ अणुप्पविसित्ता अनुप्रविश्य ] रा० ७५५. अणुपयाहिणीकरमाण [अनुप्रदक्षिणीकुर्वत्] जी० ३४४३ रा० ४७,४८,२७७,२८३,२८६,३१३,३७६, अणुप्पविसित्ताणं [अनुप्रविश्य रा० १२३ अणुप्पेह | अनु-+ प्र+ईश्] --अणुप्पेहंति अणुपरियट्टित्ता [अनुपरिवर्त्य ] ओ० १७० __ ओ० ४५ अणुपरियट्टिताणं [अनुपरिवर्त्य | जी० ३८६ अणुप्पेहा | अनुप्रेक्षा] ओ० ४२,४३ अिणुपरियड [अनु+परि+वृत् -अणुपरिय- अणुबद्ध ( अनुबद्ध] जी० ३।११६,१२६ डंति जी० ३१८४२ अणुब्भड [अनुभट] जी० ३१५९७ अणुपविट्ठ [अनुप्रविष्ट ] रा० ७५६,७५७,७६५, अणुभाव [अनुभाव ] जी० ३।१२६।६,८३८११६ ७७४ अणुमय [अनुमत] ओ० ११७. रा०७५० से अिणुपविस | अनु- प्र+विश्] --अणुपविसइ ७५३,७६६. जी० १४१३५६७ ओ०५६. रा०२७७.-अणुपविसति अणुयत्तेमाण [अनुवर्तमान] रा० १६ रा०२८३. जी० ३१४४३ अणुरत्त [अनुरक्त ] ओ० १५. रा० ६७२ अणुपविसमाण [ अनुप्रविशत् रा० ७५३,७६५ अणुराग [ अनुराग] ओ ० ६६,१२०,१६२. अणुपविसित्ता अनुप्रविश्य ] ओ० ५६. रा०६९८,७५२,७८६ रा० २७७. जी. ३१४४३ अणुलिप [अनु+लिम्प]--अणुलिपइ अणुपाल [अनु+पालय् ].--अणुपालेंति ३.२१८ रा० २६१. जी० ३.४५७.--अणुलिपति अणुपालेता [अनुपाल्य ] ओ० १६२. जी० ३१६३० रा० २८५. जी० ३१४५१ अणुपालेमाण [अनुपालयत् । ओ० १२०. अणु लिपइत्ता | अनुलिप्य] रा० २६१ रा० ६६८,७५२,७८६ अणुलिपित्तए अनुलेप्तुम् ] ओ० ११०,१३३ अणुपुल्व [अनुपूर्व ओ० ५,८,१६,११६,११७, अणुलिपित्ता [अनुलिप्त] रा० २८५. १६८. रा० ८०३. जी० ३।११८,११६,२७४, ___जी० ३।४५१ ५६६,५६७ अणुलित [अनुलिप्ज] ओ० ४७,६३ अणुप्पण्ण [अनुत्पन्न | ओ० १६६ अणुलिहंत [अनुलिहत्] ओ० ६४. रा० ५०,५२, अणुप्पत्त [अनुप्राप्त रा० ७६५,७७४ ५६,१३७,२३१,२४७. जी० ३१३०७,३६३ अणुप्पवाहिणीकरेमाण [अनुप्रदक्षिणीकुर्वत् | अणुलेवण [अनुलेपन | ओ० ४७,७२ जी० ३।४५२ अणुवएस अनुपदेश] रा० ७६५ अणुप्पयाहिण [अनुप्रदक्षिण जौ० ३१४४५ अणुवत्तेमाण [ अनुवर्तमान] रा० १६ अणुप्पयाहिणीकरेमाण अनुप्रदक्षिणीकुर्वत् अणुवाय अनुवात ] रा० ३०. जी० ३।२८३ जी० ३।४४६,४५४,४५७,४७८,५२३,५२६, । अणुवाहणग अनुपानल्क] रा०८१६ ५३७,५४४,५५१,५५६ अणुविद्ध [अनुविद्ध] रा० २६२. जो० ३।४५७ अणुप्पविट्ठ [अनुप्रविष्ट ] रा० १२२,१२३ अणुवीइ [अनुवीचि] जी० १११ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुवेलंघर-अति अणुवेलंधर [अनुवेलन्धर] जी० ३१७४७ से ७५० ५६३,५६६,६३७,६३८,६५२,६५८ से ६६०, अणुव्वय [अणुव्रत ] ओ० ७७ ६६५,६६६,६७६,७१०,७१३,७२१,७३६, अणुसज्ज [अनु-+ सङ्ग्] -अणुसज्जति ७४७,७६०,७६१,७६३ से ७६६,७६८,७७० ____ अगोवमा (दे) खाद्यविशेष से ७७४,८००,८१४,८४३,८४६,६१७,१०२५ अणुसज्जणा [अनुसउजना] जी ० ३१२१८,६३१ ।। अण्ण [अन्न ] ओ० १४६.१५०. रा०८१०,८११ अणुसार [अनुसार] जी० ३१७७ अण्णउत्थिय [अन्ययूथिक ] ओ० १३६. अणुहो [अनु+भू]----अणुहोति ओ० १९५२१ जी० ३।२१०,२११ अणूण [अनून] जी० ३१८३८:२७ अग्णगिलायय [अन्नग्लायक] ओ०३४ अग अनेक ] ओ० १.५ से ८,१०,१६,४६,६३, अण्णजीविय [अन्य जीविक] रा० ७३३,७३४,७३६ ७१,१६५. रा०७,१७,१८,२४,३२,५२,५६, अण्णत्त [अन्यत्व रा० ७६२,७६३ ६१,६६,१७४,२०६,२११,२३१,२४७,७५४, अण्णत्य [अन्यत्र ओ० ८६ जी० ३१७२१ ७५६,७६२,७६४. जो० ३।११८,११९,२५६, अण्णमण्ण [अन्यान्य ] ओ० ५२,११७,११८. २७४ से २७७,२८६,३७२,३७४,३६३,५८१, रा० १६,४०,१३२,१३३,६८७,७१३,७७४. ५८५ से ५६६,६३६,६४६,६७३,६७४,७५६, जी० ३२२,२७,११०,१११,२६५,३०३,६२०, ८८४,८८८ ६२५,८४५ अणेगजीव [अनेकजीव] जी० १७१ अण्णयर [अन्यतर ओ०२८,७२,८६ से १३, अणेगवासपरियाय [अनेकवर्षपर्याय ओ० २३ १०५,१०६,१२८,१२६,१८६. रा० ७५० से अणेगविष [अनेकविध] जी० २११०३ ७५३,७६६. जी० ११३३, ३१२३९ अणेगविह अनेकविध ] ओ० ३२ से ३६, अण्णया अन्यदा] बो० ११६. रा०६८० जी. १९६५.७१ से ७३,७८,८१,५४,८८, अण्णलिंगसिद्ध । अन्यलिङ्गसिद्ध] जी० श८ ८६,१०७,१०८,११२,११४,११५,२।६ अण्णविहि [अन्नविधि] ओ० १४६ अगसिद्ध [अनेकसिद्ध] जी० ११८ अण्णाण [अज्ञान] ओ० ४६. जी० १।१०१,१२८; अणोगाढ [अनवगाढ ] जी० ११४२ ३१५२ अणोग्यसिय [अनवर्षित ] जी० ३:३२२ अण्णाणवोस [अज्ञानदोष ] ओ० ४३ अणोवम अनुपम ओ० १६५१७,२२. अण्णाणि [अज्ञानिन्] जी० ११३०,८७,९६,११६, अणोवमा [दे०] खाद्यविशेष जी० ३१६०१ १३३,१३६, ३।१०४,१५२,११०७,११०८%, अणोवाहणम [अनुपानक] ओ० १५४,१६५,१६६ है।३०,३२,३५.१४३,१५६,१६४ से १६६ अण्ण [अन्य ] ओ० १७,२३,५२,७६ से ८१. रा० ४०,५६,५८,१३२,१८५,२०५ से २०८, अण्णाणिय अज्ञानिक जी० ६।३४ २४०,२७६,२८०,२८२,२८६,२६१,६५७, अण्णायचरय [अज्ञातचरक ओ० ३४ ६८७,६८८,७०४,७४८ से ७६४,७७१ से अण्णोग्ण [अन्योन्य] ओ० १६५९ ७७३,९०३,८०४. जी० ११५०,६५,७१ से अण्ह आ+स्नु-अहाइ ओ०५४ ७३,७८,८१,८४,८८,१००,१०३,१११,११२, अण्हयकर (आस्नवकर] ओ० ४० ११४ से ११६,११८,१२१,३१२६७,३०२, अण्हाणग [अस्नानक | ओ० ८६,६२. रा० ८१६ ३१३,३५०,३५१,३६८ से ३७१,३८८,३६०, अण्हाणय [ अस्नानक] ओ० १५४,१६५,१६६ ४०२,४४२,४४६,४४८,४५५,४५७,५५७, अति [अयि ] रा० १२१,६६८ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतिक्कम अस ५५७ अत्यत्पिय [अर्थाथिक] ओ०६८ अत्यमणत्यमणपविभत्ति [अस्तमनास्तमनविभक्ति] रा० ८६ अत्थरग आस्तरक] रा० ३७. जी० ३१३११ अस्थसत्य | अर्थशास्त्र] रा० ६७५ अत्यि अथिन् ] रा० ७७४ अस्थि [अस्ति] ओ० ७१. जी. ३१२२ अस्थिभाव [अस्तिभाव] ओ० ७१ अत्यिय [अस्थिक ] जी० ११७२ अदंतमणग [दे० अदन्तधावनक] रा० ८१६ अवंतवणय [दे० अदन्तधावनक ] ओ० १५४, अतिक्कम अति + क्रम् ]--अतिक्कमइ जी० ३.८३८।१६ अतित्यगरसिद्ध अतीर्थकरसिद्ध ] जी० १८ अतित्यसिद्ध [अतीर्थसिद्ध ] जी० ११८ अतिदूर [अतिदूर रा० ६०,६६२,७१६ अतिमट्टिय [अतिमृत्तिक] रा० १२,२८१. जी० ३.४४७ अतिमुत्तग लया] [अतिमुक्तकलता] जी० ३.२६८ अतिमुत्तमंडवग अतिमुक्तमण्डपक ] जी० ३१२९६ अतिमुत्तलयामंडवग [अतिमुक्तलतामण्डपक] रा० १८४ अतिमुत्तलयामंडवय अतिमुक्तलतामण्डक रा०१८५ अतिरस [अति रस] जी० ३१५६२ अतिरेग [अतिरेक] रा० २८५. जी० ३१४५१, ५६७,७२३,७३०,७३२ अतिवय [अति+व -अतिवयंति जी० ३।१२६ अतिहिसंविभाग [अतिथिसंविभाग] ओ० ७७ अतीत [अतीत] ओ० १६८ अतीव [अतीव ] रा० ४०,१३५,२३६. जी० ३१२६५,३०२,३०३,३०५,३१३,३६८, ५८१,५६६ अतुरिय [अत्वरित | रा० १२ अतुल अतुल ] ओ०१६२२ अत्तगवेसणया [आर्तगवेषणता| ओ० ४० अत्तय [आत्मज) रा०६७३ अत्तुक्कोसिय [आत्मोत्कर्पिक] ओ० १५६ अस्थ अर्थj ओ० ३७. रा० १५,२६२,७३७, ७७४. जी० ३।२५०,४५७ अत्थ अस्त ] जी० ३।१७६,१७८,१८०,१८२ अत्थओ [अर्थतम् ] ओ० ४६. रा० ८०६,८०७ अत्यगिउर [अर्थनिकुर जी०६:८४१ अबक्ख [अदक्ष रा० ७५८,७५६ अवत्तावाण अदत्तादान] औ० ७१,७६,७७ अदत्तावाणवेरमण [अदत्तादानविरमण ] ओ०७१ अविट्रलाभिय अदष्टलाभिक] ओ० ३४ अविण्ण [अदत्त ] ओ० १११ से ११३,११७,१३७, १३८ अदिण्णादाण [अदत्तादान ] ओ० ११७,१२१,१६१, १६३. रा० ६६३,७१७,७६६ अवुत्तरं ! दे०] जी० ३१२३६ अदुवा [दे०] जी० ३।१२७ अदूरसामंत [अदूरसामन्त) ओ० ५२,६९,७०,८२. रा० १२३,६८७,६६२,७१६,७३१,७३६, ७४८,७७१ अद्द आद्र] ओ० ४७ अद्दारिट्ट आारिष्ट ] रा० २५. जी० ३।२७८ अद्ध [अर्ध [ ओ० १७०. रा० ४०,१२८,१४६, १८८,१८६,२०५ से २०८,२२७,२३१,२४७, ६६८,६६६.६८३,७०६,७११,७७२. जी० २।३८,३६,४१,४२, ३८२,१०७,२३८, २४७,२५०,२५६,२६०,२६२,२६३,३००, ३१०,३१३,३५२ से ३५४,३५९,३६१ से ३६४,३६८ से ३७१,३७७,३८३,३८६,३६२, ३६३,४०१,४०४,४०६,४०८,४२२,४२७, ५६६,५६० से ५७०,५६४,५९६,६३४,६४२, Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ अबकविठ्ठ-अपच्छिम ६४४,६४६,६५२,६५३,६५५,६७२ से ६७४, ६७६,६८३,६८५,७०६,७०८,७११,७२७, ७३२,७३७,७५६,७५८,८००,८१४,८२५, ८५१,६३६,६४४,१०१२ से १०१४,१०२८, १०३०.१०३२,१०३३,१०७४,११२४ अद्धकविट्ट [अधकपित्थ! जी० ३.१००८ अद्धकविट्ठक [अर्धकपित्थक ) जी० ३१२५७ अद्धकाय अर्धकाय | जी० ३।३२२ अडचंद अर्धचन्द्र ] रा० १२४,१३०,१३७. जी० ३।३००,३०७,५७७ अद्धच्छि [अर्धाक्षि] रा० १३३. जी० ३।३०३ अबछट्ट [अर्धषष्ठ] जी० ३।४३ अट्टम [अर्धाष्टम] ओ० १४३. रा०८०१. जी० ३।३६३,४०१,६३२ अवट्ठारस [अर्धाष्टादशन् ] जी० ३.१०५२ अवणवम अर्धनवम] जी० ३३१०४६ अद्धतेरस [अर्धत्रयोदशन् ] ओ० ५४. रा० १२६, १७०. जी० ३११६६,३५२, ३७२,३७४,३७६, ३६५,४१२,४२५,६६८ अखनवम |अर्धनवम] जी० ३।१०४६ अद्धनाराय [अर्धनाराच ] जी० ११११६ अवपंचम [अर्धपञ्चम] जी० २०३६ ; ३।४२,४७, २२,४०२,१०४६,१०४७ अक्षमागह | अर्धमागध ] जी० ३,५६४ अद्धमागहा अर्धमागधी ओ०७१ रा०६१ अद्धमास [अर्धमास] जी० ३३११८, १२६ अद्धमासपरियाय [अर्धभासपर्याय | ओ० २३ अद्धमासिय [अर्थमासिक ] ओ० ३२ अद्धसेलसुष्ट्रिय [अर्धशैलसुस्थित ] जी ० ३१५६४ अद्धसोलस [अर्धषोडशन् | जी० ३१३६८, ३६६, १०५१ अद्धाहार [अधंहार ओ० ५२,६३,१०८,१३१ रा० ४०,१३२,२८५,६८७, से ६८६. जी० ३१२६५,३०२,४५१,५६३ अद्धा [अद्धा, अध्वन् ] ओ० ११६,११७,१८२ से १८४,१६५।१४,१५,२२. रा०७६५,७७४ अद्धाज्य [अन्वायुष्क] जी० ३२१४ अबाढय अर्धाढक ओ० ११२,१३७ अद्धाण [अन् ओ० ६६,१२२ अद्धासमय (अध्वसमय | जी० ११४ अद्भुट्ट दि० जी० ३।१०७,२३७,२४२,२४३ अद्भुव [अत्रुव | ओ० २३ अद्धकूणणउति [ अधैंकोननवति | जी० ३१७५४ अद्धकोषणउइ [ अर्धे कोननवति | जी० ३७६२ अद्धकोणणवति | अधुकोननवति । जी० ३।७६८ अधष्ण [अधन्य ] रा० ७७४ अधम्म अधर्म ] रा० ६७१ अधम्मकेउ [अधर्म केतु] रा० ६७१ अधम्मक्खाइ [अधर्माख्याति ] रा० ६७१ अपम्मत्यिकाय [अधर्मास्तिकाय ] रा० ७७१. ___ जी० १४ अधम्मपलज्जण | अधर्मप्ररञ्जन] रा० ६७१ अधम्मपलोइ ! अधमप्रलोकिन् । रा०६७१ अधम्मसीलसमुयाचार अधर्मशीलसमुदाचार] रा० ६७१ अघम्माणय [अधर्मानुग] रा०६७१ अपम्भिय [आधर्मिक रा०६७१,७१८,७५०,७५१ अपम्मिट्ठ [अधमिष्ठ । ६७१ अधर अधर जी० ३।५६७ अघिय | अधिक ] जी० ३।३८७,८७८ अधे [अबस् ] जी० ३११११ अधेसत्तमा | अधःसप्तमी] जी० २११००,१०८, १२७,१३८,१४६, ३१२१,३८,४४,४६,४७, ५० से ५२,५४ से ५६,५८,५६,८३ से ५६,८८ से १०,६२,६६,१०२,१०४,१०७,१०६,११६, १२०,१२३,१२६ असत्तमो अधःसप्तमी] जी० ३१६६ अन्न अन्य रा०७ अन्नयिहि [अन्नविधि ] रा० ८०६ अपंडिय अपण्डित रा० ७३२,७३७,७६५ अपच्छिम [अपश्चिम ओ०७७ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपज्जत्त-अपुराण ५५६ अपज्जत्त अपर्याप्त | रा० ७५६. जी० ११५१,६३, अपराजित | अपराजित जी० ३१८१,२६६,७०७, ६५,१०१, ३११२६६,१३३,१३४, ४।२५; ७१३,८२४ ५५१७,२४,२६ से ३०,३३,३५,३६,३६ ४०, अपराजिय [अपराजित | ओ० १६२.जी० ३१७९६, ४२,४५,४८,५०,५२,५४ से ६० ८१३ अपजतग | अपर्याप्तक | ओ० १८२. जी० १३१४, अपराजिया (अपराजिता] जी० ३ ६१६, १०२६ ५८,६७,७३,७८,८१,८४,८८,८६,६२,१००, अपरिगह | अपरिग्रह | अं.० १६३ १०३,१११,११२,११६,११८,१२१,१२६,१३५; अपरितावणकर [अपरितापगकर अं० ४० ३।१३६,१३६,१४०,१४६, ४।२,५,१८,२०, अपरित्त अपरीत ] जी० ११६७,७४; ६७५,७६, २२,२३,२५: ५।३,४,७,११,१८ से २२,२५ ८ ७ से २७,३१ से ३४,३६; १०,६३,६४ अपरिपूय [अपरिपूत] ओ० १११ से ११३,१३७, अपज्जत्तय [अपर्याप्तक] जी० ११५५,१०१, ४११० १३८ अपज्जत्ति [अपर्याप्ति ] जी० श२७,८६,६६,१०१, अपरिभूय [अपरिभूत ] ओ० १४१. रा० ६७५, ११६,१२८,१३३,१३६ ७६६ अपज्जवसित अपर्यवसित ] जी ० ६।२३,२४,६६, अपरिमिय [अपरिमित | ओ० ४६,७१. रा०६१ ८१,८२,६२,१०४,१२५,१७५,१९२,२०१,२४० अपरियाइत्ता अपर्यादाय] जी० ३९९० अपरियाधिय | अपरितारित] जी० ३१६३० अपज्जवसिय अपर्यवसित] ओ० १८३,१८४,१६५. अपरिवार [अपरिवार रा० २०७,२६५,२६७, जी० ६११० से १३,१६,२५,२६,३१,३३,३४, २६६. जी० ३।४२८,४३१,४३४ ४५,५४,५८,६०,६५,६८,७१,७२,८६,६८, अपरिसेसिय [अपरिशेषित] जी० ३।७५१ ११०,११६,१३३,१३५,१४५,१६३,१६४,१७४. अपलिक्खीण [अपरिक्षीण | ओ १७१ १७६,१८०,१६५,२०२,२०५,२०६,२१५,२१६, अपवरक अपवरक जी० ३।५९४ २२७,२३०,२४६,२६१,२६५,२७६,२८५ अपसस्थकाय विणय अप्रशस्तकायविनय | ओ० ४० अपडिकूलमाण [अप्रतिकूलयत् ] ओ० ६६ अपसस्थमणविणय अप्रशस्तमनोविनय ] ओ० ४० अपडिक्कत | अप्रतिक्रान्त ) ओ ६५,१५५.१५६ अपसत्यवइविणय अप्रशस्तवाविनय ओ० ४० अपडिबद्ध [अप्रतिबद्ध | ओ० ७४४ अपस्समाण [अपश्यत् । ओ० ११७ अपडिविरय | अप्रतिविरत ] ओ० १६१ अपासमाण [अपश्यत् रा० ७६५ अपढम [अप्रथम ] जी० १६; ७:१,३,५,१०,१२, अपि [अपि] ओ० २३. रा० १६. जी० ११३४ १४,१६,१८,२१ से २३; ६:१ से ७,२३२, ___ अपुट्ठ ! अस्पृष्ट] जी० ११४१ २३४,२३६,२३८, २४२,२४४,२४६ २४८, अपुट्ठलाभिय अपृष्टलाभिक ] ओ० ३४ २५१ से २५३ २५५,२६७,२६६,२७१,२७३, अयुणरावत्तग [अपुनराव कि ओ० १९,२१,५४ २७६ २७८,२८०,२८२,२८५,२८७ से २६३ अपुणरायत्तय [अपुनरावर्तक स० ८ अपतिट्ठाण [अप्रतिष्ठान | जी० ३।१२ अपुणरावित्ति [अनावृत्ति, अपुनरावतिन् ] रा० अपत्तट्ट [अप्राप्तार्थ] ग० ७५८,७५६ २६२. जी० ३:४५७ अपद | अपद जी० ३.१९६ अपुणरुत्त ( अपुनरुक्त ] २१० २६२, जी० ३४५७ अपराइत [अपराजित ] जी० ३।६४१ अपुण्ण [पूर्ण] रा० ७६३ अपराइय [अपराजित] जी० ३१५६६ अपुग्म [अपुण्य] रा० ७७४ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपुरोहिय-अप्पुस्सुय अपुरोपुहय [अपुरोहित] जी० ३३११२० अप्पतराय [अल्पतरक] रा० ७७२ अपुष्य अपूर्व] जी० १४५० अप्पतिट्ठाण [अप्रतिष्ठान] जी० ३:११७ अपूह' [अपोह] ओ० ११६,१५६ अप्पदुस्समाण [अप्रद्विषत् ] रा० ७६६ अपेज [अपेय ] जी० ३१७२१ अप्पनीसासतराय [अल्पनिःश्वासतरक] अप्प [अल्प ओ० २०,५३,६१ से ६३. रा० १२, रा० ७७२ ६८५,६६२,७००,७१६,७२६.७५३,७५८, अप्पनीहारतराय [अल्पनीहारतरक] रा० ७७२ ७५९,७७२,७७४,८०२. जी०१।१४३; २०६८ अप्पपरिग्गह । अल्पपरिग्रह ] ओ० ६१ से १३, से ७२,७५,९६,१३४ से १३८,१४१ से १४६; १६१,१६३ ३३११८,६६५,१०३७,११३८; ४:१६,२२, अप्पबहु [अल्पबहु] जी० २११५१ ; ४१२५ २५, १६,२०,२६,२७,३२ से ३६,५२, अप्पबहुप [अल्पबहुक] जो०६६ ५६,६०; ७४२०,२२,२३ ; ६७,१४,५५, अप्पमत्त अप्रमत्त ] ओ० २७ रा० ५१३ २५० से २५३,२५५२८६ से २६३ अपमहतराय [ अल्पमहत्तरक १० ७७२ अप्पमाण [अल्पमान] ओ० ३३ अप्प [आत्मन् ] ओ०२१ से २६,४५,५२,७१,८२, अप्पमाय (अल्पमाय] ओ० ३३ ८६,६४,६८,१२०,१४०,१५४,१५५,१५७, अप्पलोह {अल्पलोभ ओ० ३३ १६०.रा०८,९,२८५,६८६,६८७,६८६,६६८, अप्पसद्द [अल्पशब्द ] ओ० ३३ १११,७१३,७१६,७५२,७५३,७८७,७८६, अप्पाण [प्रात्मन् ] जी० ३।१९८ से २०६.४५१ ५१४,८१६,८१७. जी. ३.५६६,६४४ अप्पाबहु [अल्बहु] जी० ४।२२:७।२१; ६३३७ अप्पकंप [अप्रकम्प ओ० २७. रा० ८१३ अप्पाबहुग [अल्पबहुक] जी० श२५,७४२०; अप्पकम्मतराय [अल्पकर्मतरक] रा० ७७२ का५;६२७ अप्पकिरियतराय [अल्यक्रियातरक रा० ७७२ अप्पाबहुय [अल्पबहुक } जी० २१६४,५११८,३१% अप्पकोह [अल्पक्रोघ] ओ० ३३ ६६१२,६४१७,२०,३५,६१,६६,७४,८७,६४, अप्पगति [अल्पगति] जी० ३.११२० १००,१०८,११२,१२०,१३०,१४०,१४७, अप्पज्जइतराय [अल्पधुतितरक] रा० ७७२ १५५,१५८,१६६,१६६,१८१,१८४,१६६, अप्पझंश {अल्पझञ्झ] ओ० ३३ ।। २०८,२२०,२३१ २५४,२६६. अप्परिकम्म [अप्रतिकर्मन् | ओ० ३२ अप्पारंभ [अल्पारम्भ | ओ०६१ से ३,१६१,१६३ अप्पडिबद्ध [अप्रतिबद्ध] ओ० २६ अप्पासवतराय [अल्यानवतरक] रा० ७७२ अप्पडिलेस [अप्रतिलेश्य ओ० २५ अप्पाहार [अल्पाहार] ओ० ३३ अप्पडिलोमया | अप्रतिलोमता] ओ० ४० अप्पाहारतराय [अल्पाहारतरक] रा० ७७२ अप्पडिवाइ [अप्रतिपातिन् । ओ० ४३ अप्पिच्छ [अल्वेच्छ} आ० ६१ से १३ जी० ३३५६८ अप्पडिहय [अप्रतिहत] ओ० १६,२१,२७,५४,८४, अप्पिडितराय [अल्पर्धितरक] रा० ७७२ ८५,८७,८८.० ८,२६२,७५५,७५७,८१३. अपिडिय [अल्पधिक] जी० ३।१०२१ जी० ३।४५७ अप्पिय अप्रिय ] रा० ७६७ जी० १२९५, ३१९२ अप्पणया [आत्मन् जी० १,५०,६६ अप्पियतरक [अप्रियता क] जी० ३८४ अप्पतर [अल्पतर ओ० ८६ अप्पुस्सासतराय [अल्पोच्छ्वासतरक] रा. ७७२ १. वृत्ती-बूह [ व्यूह] इति व्याख्यातमस्ति । अप्पुस्सय [अल्पौत्सुक्य ] मो० १६४ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्पेस अन्भट्ट ५६॥ अप्पेस [अप्रेष्य] जी० ३.११२० अभवद्दलय [अभ्रवालक रा० १२, १२३ अप्पोस्य [अल्पौत्सुक्य ) ओ० २५ अब्भहिय [अभ्यधिक ] ओ० ६५,६४,६५. अप्फाल आ+स्फाल्]--अफालेइ ओ० ५६ जी० २।३६.४१,४८,४६,५३ से ५५,५७ से अप्फालिजमाण [आस्फाल्यमान] रा० ७७ ६१,६६,८३,८४,१२६; ३१०२७ से १०३०, अप्फालेता (आस्फाल्य] ओ० ५६ ११३५, ४११६, ५॥१०,२६; ६१६; १२, अप्फुडिय [अस्फुटित ] ओ० १६ जी० ३।५६६ १३, १४,१७२,१७६,१८६ से १६१,१६३, अफोड [आ-+-स्फोटय --अप्फोडेति रा० २०३,२१२,१२५,२२८,२३८,२४१,२७३,२७७ २८१ जी० ३.४४७ अब्भासवत्तिय [अभ्यासवर्तित ओ० ४० अप्फोतामंडवग [दे० अप्फोयामण्ड पक] जी० अन्भिंग [अभ्यङ्ग] ओ० ६३ ३२६६ अभिगण अभ्यङ्गन] ओ० ६३ अप्फोयामंग्वग [दे० अप्फोयामण्डपक] जी० १८४ अभिगिय अभ्यजित] ओ० ६३ अप्फोयामंडवय [ दे० अप्फोयामण्डपक] रा० १८५ अभिंतर [आभ्यन्तर ओ० ६,३०,५५,६० से ६२. अफवस [अपरुष] ओ० ४० रा०४३. जी. १२३६,२५५,२७५,४४७, अफुसमाणगइ [अस्पृशद्गति j ओ० १५२ ६४३,६५८,७६६,७६७,७७५,८३१ से २३४, अबद्धिय [अबद्धिक] ओ० १६० अबहिल्लेस [अहिलेश्य ] ओ० २५, १६४ अम्भिंतरय आभ्यन्त रक] ओ० ३०,३८,४४. अबहुप्पसण्ण [अबहुप्रसन्न] मो० १११ से ११३, जी० ३।६५८ १३७, १३८ अम्भितरिय [आभ्यन्तरिक] रा० ६६०,६८३. अबाथा [अबाधा] जी० २११३६; ३३३३ से ३६, जी० १२३५ से २३६,२४१ से २४३,२४६, ६० से ६३, ६५, ६६, ६८, से ७२, ३००, २४७,२४६,२५० २५४ से २५६, २५८, ३४१, ५६६,५७०,६६२,६६१,७१४,८२७,१०२२ ५६०,७३३,१०४० से १०४२,१०४४,१०४६, अबाहा [अबाधा] ओ० १६२. रा० १७०. १०४७,१०४६,१०५३,१०५५ जी० २१७३, ६७, ३१६६, ३५८,५६६, अभिंतरिल्ल [आभ्यन्तरिक] जी० ३११००७ ६३६, ७१४, ८०२, ८१५, ८२७, ८५२, अिभुक्ख [अभि+ उ]-अब्भुक्खइ १००१ से १००६, १०२२ जी० ३१४७०--अब्भुक्खति जी० ३४५८-- अबाहूणिया [अबाधोनिका] जी० २०७३, ६७, अभुक्खेइ रा० २६३--अभुक्खेति जी० ३१४६० अब्भ [अभ्र] ओ० १६. जी० ३५६७, ६२६ अभुक्खित्ता [अभ्युक्ष्य] जी० ३१४५८ अभंतर [अभ्यन्तर ] अ.० १७०. जी० ३।८३८।१२ अब्भुक्खेता [अभ्युक्ष्य ] रा० २६३. जी० ३।४६० अभंतरय [अभ्यन्तरक] जी० ३१८६, २६०. ६८१ अब्भुग्गत [अभद्गत] जी० ३।३०२,३५६,३६८, अब्भक्खाण [अभ्याख्यान] ओ०७१, ११७, १६१, ३७०,६३४,१००८ १६३. रा० ७६६ अन्भुग्गय [अभ्युद्गत] ओ० ६७. रा० ३२,१३२, अब्भक्खाणविवेग [अभ्याख्यानविवेक ओ० ७१। १३७,१८६,२०४ से २०६,२०८. जी. ३१३०७ अन्भणुष्णाय [अभ्युनुज्ञात] रा० ११, ५६ ३५५,३६४,३६९,३७१,३७२,५६७,६७३ अन्भस्वस अभ्ररुक्ष] जी० ३ ६२६ अब्भुट्ट [अभि+ उत्+ष्ठा] - अन्भुढेइ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ भुट्टा अभिवंदा ओ० २१. ०८. जी० ३।४४३ -- अब्भुट्ठेति अभिणिसिह [ अभिनिसृष्ट ] रा० १३२ जी० रा० २७७ जी० ३।४५४ अब्भुट्ठेमि रा० ६६५ अभुट्ठाण [ अभ्युत्थान] ओ० ४० अभुट्टिय [ अभ्युत्थित ] ओ० २६ अब्भुट्ठेता [ अभ्युत्थाय ] ओ० २१ रा० ८. जी० ३।४४३ । अभुण्णय [ अभ्युन्नत] रा० १३३. जी० ३/३०३, ૬ ૨૭ अम्भु [ अद्भुत ] रा० ७ अभयवय | अभयदय ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८, २६२. जी० ३।४५७ अभवसिद्धिय [ अभवसिद्धिक ] रा० ६२. जी० ६ १०६ से ११२ अभाग [ अभाषक ] जी० ६ ५६, ६०, ६१ अभास [ अभावक | जी० ६५८ अभि [ अभिजित् ] जी० ३१८३८/३२,१००७ अभिक्खणं [ अभीक्ष्णम् ] रा० १७३. जी० ३ २८५ afreeera [ अभिक्षाला भिक] ओ० ३४ अभिगच्छ [ अभि + गम् ] -- अभिगच्छइ ओ० ६६. ० ७१६-- अभिगच्छति ओ० ७०. - - अभिगच्छामो रा० ७३५ अभिछणा [ अभिगमन ] ओ०४० अभिगम [ अभिगम ] ओ० ६६, ७० ८० ७७८ अभिगमण [ अभिगमन ] ओ० ५२. रा० ६, १२, ४७,६८७. जी० ३।८४१ अभिगमणिज्ज | अभिगमनीय] रा० ७०३, ७३५ अभि [ अभिगत ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२,७८६ अभिगिन [ अभिगृह्य ] जी० ३।५६२ अभिघट्टिज्जमाण | अभिघट्यमान | रा० १७३. जी० ३।२८५ अभिगवंत [ अभिनन्दत् ] ओ० ६८ अभिणं दिज्ज माण | अभिनन्द्यमान | ओ० ६६ अभिनय [ अभिनय ] रा० ११७, २८१. जी० ३१४४७ अभिविट्टित्ताणं [ अभिनिर्ययं ] रा० ७७० ३।३०२ अभिस्सिव [ अभि + निर् + स्रु ] -- अभिणिस्स वंति, रा० १७३. जी० ३।२८३ / अभिणी | अभि + नी ] - अभिणयति रा० २८१जी० ३।४४७ - अभिणिज्जइ रा० ७८३अभिर्णेति रा० ११७ अभित | अभिष्टवत् ] ओ० ६८ अभिवमाण [ अभिष्ट्यमान | ओ० ६६ अभि | अभिद्रुत ] जी० ३।१२६.७ अभिनव | अभिनिर्+ स्रु ] - अभिनिस्सदति रा० ३० अभि | अभिमुख ] ओ० ४७, ५२,६६,७०,८३. २० ६०, ६८७,६६२,७१४,७१६ अभिराम [ अभिराम ] ओ० २,५५,५७,६३. रा० ६,१२,१७,१८,२०,३२,३७,५२, ५६, १२६, १३२,२३१,२३६,२४७, २८६. जी० ३।२८८, ३००,३०२, ३११,३७२, ३६३, ३६८, ४४७, ५८६ अभिव | अभिरूप ] ओ० १,७,८,१० से १३,१५, ७२,१६४. १० १,१६ से २३,३२,३४, ३६ से ३८, १२४,१३०,१३३, १३६, १३७, १४५, १५७, १७४,१७५,२२८,२३१,२३३, २४५,२४७, २४६, ६६८,६७०, ६७२, ६७६,७००,७०२. जी० ३।२३२,२६१,२६६,२६६, २७६,२५६ से २८८,२१०, ३३०, ३०३, ३०६, ३०७, ३११, ३८७, ३६३, ४०७,४१०,५८१, ५८४, ५८५, ५६६,५६७,६३९, ६७२,८५७,८६३, ११२१, ११२२ अभिलस [ अभि + लब् ] – अभिलसइ रा० ७१३ ...अभिलसंति ओ० २०. रा० ७१३ अभिलाव [ अभिलाप ] जी० ३।४, ५,१२,४१,४३, ४४,७७,८८, १२५,२२६,४५१ अभिवंद | अभिवन्दितुम् ] ओ० ५५. रा० १३ अभिवंदा [ अभिवन्दितुम् ] ओ० ६२. Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिसमण्णागय-अयभारग ५६३ अभिसमण्णागय [अभिसमन्वागत] रा०६३,६५, अमम्मण [अमन्मन] ओ०७१. रा०६१ ६६७,७६७ अमय अमृत] रा० ३८,१६०,२२२,२५६. जी० अभिसमागच्छ [अभि-+सं+आ+ गम् । ३३३३३,३८१,३८७,८६४ ...अभिसमागच्छइ रा०७१६. अमयरस | अमतरस ] रा० २२८. जी० ३.२९६ -----अभिसमागच्छति रा०७५३ अमर [अमर ओ० ४६,१६॥२०. रा० ५१ अभिसिंच [अभि-+सिच |--अभिसिंचति रा० अमरवह [अमर पति ] ओ० ६४ २८०. जी० ३।४४६ अमलगंधिय [अमलगन्धिक] ओ० १२. ० २२ अभिसिंचित्ता [अभिषिच्य] रा० २८२. जी० अमलगंधीय [अमलगन्धिक] जी० ३।२६० ३४४८ अमला अमला] जी० ३१६२१ अभिसित्त [भिषिक्त रा० २८३. जी० ३।४४६ अमाण [अमान | ओ० १६८ अभिसेक (अभिषेक जी० ३ ४३६ अमाय [अमाय] ओ० १६८ अभिसेगसभा [अभिषेकसभा] रा० २६५,२६७ ।। अमिय [अमृत ! ओ० १६५।१८ अभिसेय [अभिषेक ] ओ० ६८. स० २६६,४७५. अमेहावि अमेधाविन् । रा० ७५८,७५६ जी० ३१४४५,५३४,५६७ अमोह [ अमोघ ] जी० ३१६२६,८४१ अभिसेयसभा अभिषेकममा रा० २७७,२७६, अमोहा [अमोघा | जी० ३१६६६,६१० २५३,४७४,४७६,४७७,४६६,५१४,५१५. अम्मड | अम्बड ओ० ११५,११७ से १४१ जी० ३.४२६,४३०,४३१,४३४,४४३,४४५, अम्मापिइ [अम्बापितृ औ० १४२,१४६ ४४६,५५३,५३५ से ५३९ अम्मापिउ अम्बापितृ] ओ० १४७,१४६. रा० अभिहड [अभिहृत ओ० १३४ ८००,८०७ अभिहणमाण [अभिघ्नत् ] जी० ३३११० अम्मापिउसुस्सूसग | अम्बापितृशुश्रूषक ] ओ०६१ अभिहय [अभिहत ] जी० ३।११८,११६ अम्मापियर [ अम्बापितृ] ओ० १४४,१४५. रा० अभूओवघाइय [अभूतोपघातिक] ओ० ४० ८०२,८०३,८०५.८०८,८१० अमेत्ता [अभित्वा] जी० ३।६६० अभेयकर [अभेदकर] ओ० ४० अम्ह [अस्मत् रा० ८. जी. ३.४४१ अय [अयस् ] रा०७५४,७५६,७५७,७७४ अमच्च [अमात्य] ओ० १८. रा० ७५४,७५६, ७६२,७६४ अयकोट्ट । अयःकोष्ठ ] जी० ३७८ अमछरियया [अमत्रारिकता] ओ० ७३ ।। अयगर [अजगर जी० १.१०५,१०६, ३१६२५ अमणाम [दे० अमन 'आप'] रा० ७६७. जी० अयगरी [अजगरी] जी० २१८ ११६५; ३ ६२,१२२,१२३, १२८ अयण [अयन ओ० २८. जी० ३१८४१ अमणामतरक दे० अमन 'आप' तरक] जी० अयपाय [अयस्पात्र ओ० १०५,१२८ ३३८४,८५ अपिंड [अयस्पिण्ड] जी० ३१११८,११६ अमणुण्ण [अमनोज्ञ ] ओ० ४३. रा० ७६७. अयपुग्गल [ अयस्पुद्गल] रा० ७७४ जी० ११६५; ३.३६९२ अयबंधण [अयोबन्धन] ओ० १०६,१२६ अमणुण्णतरक [अमनोज्ञतरक] जी० ३१८४ अयभंड [अयोभाण्ड ] रा० ७७४ अमत [अमृत] जी० ३.३१२,४१७ अयभार [अयोभार] रा० ७७४ अमम [अमम } ओ० २७. रा० ८१३. जी० ३।६३१ अयभारम [अयोभारक] रा ० ७६०,७६१,७७४ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ अयभार [ अयोभारक ] रा० ७७४ अयभारय [ अयोहारक, अयोभारक ] रा० ७७४,७७५ अल [ अचल ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२. जी० ३४५७ अयसकारण [ अयशःकारक ] ओ० १५५ अयसि [ अवती ] ओ० १३,४७, रा० २६. जी० ३२७६ अहार [ अयोहारक, अयोभारक ] रा० ७७४,७७५ अया [ अजा ] जी० ३।६१६ अयागर [ अयआकर ] रा० ७७४, जी० ३.११८ अयोग [ अयोगिन ] जी० ६ ११६ अयोमय [ अयोमय ] जी० ३।११६ अयोमुह [ अजमुख ] जी० ३।२१६ अरह [ अरति ] ओ० ४६. जी० ३ १२८।१० अरहर [अरतिरति ] ओ० ७१,११७,१६१,१६३ रा० ७६६ अरकमंडल [अरकमण्डल ] रा० १७३,६८१. जी० ३२२८५ अरणि [अरणि] रा० ७६५ अरति [ अरति ] जी० ३।१२८ अरतिरतिथिवेग [ अरतिरतिविवेक ] ओ० ७१ अरमणिज्ज [अरमणीय] रा० ७८१ से ७८७ अरसाहार [अरसाहार ] ओ० ३५ अरह [अर्ह ] रा० ७७१,८१५,८१७ अरहंत [अर्हत्] ओ० २१,४०,५२,५४,७१,११७, १३६. रा० ८,११,५६,२६२,७१४, ७४६, ७६६. जी० ३८४५७,७६५,८४१ अरि [अरि] जी० ३।६१२,६३१ अरिस [ अर्शस् ] जी० ३६२८ अरिह [अहं] ओ० ७१,१४७, रा० ६१, ७१४, ७७६,८०८ अवण [अरुण] जी० ३३६२७,६२८,६५० अरुणप्पभ [ अरुणप्रम ] जी० ३.७४८,७४६,७५३ अरुण महावर [ अरुण महावर ] जी० ३।६३० अरुणवर [ अरुणवर ] जी० ३७७५, ९२६,६३० अयभार अलेस अरुणवरभद्द [ अरुणवरभद्र ] जी० ३।९२६ अरुणवरमहाभद्द [ अरुणवरमहाभद्र | जी० ३.६२६ अरुणवरोव [ अरुणवरोद | जी० ३१६३०,६३१ अरुणवरोभास [ अरुणवरावभास ] जी० ३।६३१, ६३२ अरुणवरोभासभद्द | अरुणवरावभासभद्र ] जी० ३६३१ अरुणवरोभासमहाभद्द [ अरुणवरावभासमहाभद्र ] जी० ३१६३१ अरुणवरोभासमहावर [ अरुणवरावभासमहावर ] जी० ३१६३२ अरुणवरोभासवर [अरुणवरावभासवर ] जी० ३६३२ अरुणोद [ अरुणोद | जी० ३६२८, ६२६ अरुय [ अरुज ] ओ० १६.२१, ५४. रा० ८,२९२. जी० ३।४५७ अवि [ अरूपिन् ] जी० ११३,४ अलं [ अलम् ] ओ० १४८ ० ८०६ अलंकार [अलङ्कार ] त्रो० ६७,७०,१२,१४७, १६१,१६३. रा० १३, ५३, १७३,२८६,६५७, ७१४, ७५१, ७६४,८०२,८०५,८०८. जी० ३:२८५,४४६, ४५५ अलंकारि [ अलङ्कारिक ] रा० २६८,२८४, ५३५. जी० ३ । ४३२, ५४१ अलंकारियसभा [ अलङ्कारिकसभा ] रा० २६७, २६६,२८३,२८६,५३४, ५३६, ५३७,५५६, ५७४, ५७५. जी० ३।४३१, ४३३, ४३४,४४६ ४५२,५४०, ५४२ से ५४६ अलंकित [ अलंकृत ] जी० ४,४५२ अलंकिय [ अलङ्कत ] ओ० २०,५३,६३ रा० १३०, २८५,२८६,६८५, ६८६, ६६२,७००, ७१६,७२६,८०२. जी० ३।३००, ४५१ अलभमाण [ अलभमान ] ओ० ११७ अलाउपाय [अलाबुपात्र ] ओ० १०५,१२८ अलाय [अलात ] जी० १७८३२८५ अलियवयण [ अलीकवचन ] ओ० ७३ असे [मलेश्य ] जी० १ १३३ ६ २६,१६५ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलेस्स-अक्सेस अलेस्स [अलेश्य] जी० ६।१८५,१६२,१९६ अलोग [अलोक ] ओ० १६०२ अलोय [अलोक] ओ०७१ अलोह [अलोभ] ओ० १६८ अल्लई [आद्रको] जी० ३१२८१ अल्लकी [आद्रकी] रा० २८ अल्लोण [आलीन ] ओ० १६,६१ रा० ८०४. जी० ३१५६६ से ५१८,७६५,८४१ ।। अल्लीणया [आलीनता] ओ०११६ अवउडग दे० अवकोटक] रा० ७५४,७५६,५६४ अवंक [अवक्र] रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ अवंग [अपाङ्ग] रा० १३३. जी० ३।३०३ अवंगुयदुवार [दे० अपावृतद्वार] ओ० १६२. रा०६९८,७५२,७८६ अवक्कम [अप+क्रम् ] -अवक्कमति रा०१०. जी० ३१८७-अवक्कमति स०१८ अवक्कमित्ता अपक्रम्य ] रा०.१० जी० ३।४४५ अवक्खेवण [अवक्षेपण] ओ० १८० अवगय [अपगत] ओ० ६३ अवगाल [अवगाढ] रा० ७७४ अबक्षाणायरिय [अपध्यानाचरित] ओ० १३६ ।। अवट्टित [अवस्थित ] जी ० ३१५६.५६६ । अवद्विय [अवस्थित] ओ० १६. रा० २०० जी० ३१२७३, ३५०, ७६०, ८३८:११ अब [अपार्घ] जी० २१६५, ८८,१३२; ३१८३६, ६।२३,२६,३३,६६,७१,७३,७८, १४६, १६४, १६५, १७८, २०२, २०४ अवड्डोमोदरिय [अपार्धायमोदरिक, उपार्धा०] ओ० ३३ अवद्ध [अवनद्ध] रा० ७६०, ७६१ अवणी [अप-+नी] --- अवणेमो रा०७२६ अवणीत [अपनीत जी० ३८७८ अवणीयउवणीयचरय अपनीत उपनीतचरक] ओ० ३४ अवणीयचरय [अपनीतचरक] ओ० ३४ अवणेमाण [अपनयत् ] रा० ७३२ अवण्णकारग [अवर्णकारक] ओ० १५४ अवतासिज्जमाण [अपत्रस्यमान] रा०८०४ ‘अवकाल [अव-दलय --अवदालेइ ओ० १७० अवदालिय [अवदालित] ओ०१६ अवदालेत्ता [अवदल्य ] ओ० १७० अवधिणाणि ]अवधिज्ञानिन् ] जी० ३।१०४,११०७ अवमाण [अपमान ] रा० ८१६ अवमाणण [अपमानन] ओ०४६ अवयंसग [अवतरक } रा० १७३, ६८१ अवर अपर] रा० ४०, १३२, १६३, १६६ जी० ३१२६५, २८५, ३५८, ५६५ विरजा [अप्+ग -अवरज्झइ रा० ७६७ अवरह [अपराल रा०६८५ अवरत्त अपरात्र] रा० १७३ अवरविदेह [अपर विदेह जी० २१२६,५६,७०, ७२,८५,६६,११५,१२३,१३७, १३८, १४७, १४६ ; ३।४४५, ७६५ अवरविदेहक [अपर विदेहक | जी० २।१३२ अवरविदेहिया [अपर विदेहिका] जी० २१६५ अवराहि [अपराधिन् ] रा० ७५१ अवरुत्तर [अपरोत्तर] रा०४१,६५८. जी० ३।३३६,५५८,६३५,६५७,६८० अवलंबण [अवलम्बन] रा० १६, १७५. जी० ३२८७, ८६० अवलंबणबाहा अवलम्बनबाहु] रा० १६,१७५. जी० ३१२८७ अवलद्ध [अपलब्ध] ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ८१६ अवलि अवलि] रा० २६ जी० ३१२८२ अवलिया [अवलिका रा० २५ जी० ३।२७८ अवव [अवव ] जी० ३१८४१ अवसाण [अवसान ] ओ० ६३ अवसेस [ अवशेष ओ० ७२, ७६, १६७ रा० ४८, ५७, १६४ जी० ११५६, ६७, ३.२५०, ३४५, ३५६, ६३०, ६६४, ६६५, १०२६ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ अववहारि [ अव्यवहारिन् ] रा० ७६६ अवहट्टु [अपहृत्य ] ओ०६६ अवमाणय [अवमानक ] ओ० १११ से ११३, १३७,१३८ अवहार [ अपहार ] जी० ३।१२७ अवहित [ अपहृत ] जी० ३६० अवहिय [ अपहृत ] जी० ३।१०८५ २०८६ / अवहीर [ अप + हृ] - अवहीरंति जी० ३६० अवहीरमाण [ अपह्रियमाण ] जी० ३६०, १०८६ अवाईण [ अवातीन, अवाचीन ] ओ०५, ८ जी० ३।२७४ अवाड [ अप्रावृतक ] ओ. ३६ अवाय [ अवाय ] रा० ७४० वायविजय [ अपायविचय] ओ० ४३ अवाणुप्पेहा [अपायानुप्रेक्षा ] ओ० ४३ अवि [अपि ] रा० १२ जी० १११६ श्रविश्रोसरणया [अव्युत्सर्जन ] ओ० ६६, ७० रा० ७७८ rfare [ अविग्रह ] ओ० १८२ afara [ अविघ्न ] ओ० ह अवितह [ अवितथ ] मो० २६, ६६,७२. रा० ६६६ अविद्धत्य [ अविध्वस्त ] जी० ३।११८ अविपयोग [ अविप्रयोग ] ओ० ४३ अवियारि [ अविचारिन् ] ओ० ४३ अविरत [ अविरक्त ] ओ० १५ रा ६७२ अविरय [ अविरत ] ओ० ८४ ८५ ८७ ८८ अविरल [ अविरल ] ओ० ४, ८, १६ जी० ३१२७४, ५६६, ५६७ अविरहिय [ अविरहित ] जी० ३८३८ । १७ अविराय [ दे० अप्रस्फुटित ] जी० ३।११८ अविरुद्ध [ अविरुद्ध ] ओ० ६३ अविलोण [ अविलीन ] जी० ३।११८ अविसंधि [ अविशन्धि ] ओ० ७२ अविसय [ अविषय ] जी० १/४७ अववहारि-असंखेज्ज afaaita [ अविशुद्धलेश्य ] जी० ३।१६९ से २०४, २०६, २०६ अविस्साम [ अविश्राम ] ओ० ५० अवेय [ अवेदित ] रा० ७५१ raar [ अवेदक ] जी० ६ २२, २६, २७,१२६, १३० अवेar [ अवेदक ] जी० ६१२४, २८ अवेय [ अवेद ] जी० १|१३३ अवेग [ अवेदक ] जी० ६ १२१ अवेयय ] अवेदक ] | १२५ अष्वत्तिय [अव्यक्तिक] ओ० १६० अव्यय [ अव्यय ] रा० २०० जी० ३३५६,२७२, ३५०, ७६० व्यवहारि [अव्यवहारिन् ] रा ७६६ वह [ अव्यथ] ओ० ४३ अवहित [अव्यथित ] जी० ३।६३० अब्याबाह [अव्याबाध] ओ० १६, २१, ५४, १६५।१३ ० ८,२९२ जी० ३।४५७ अवाहित [ अव्याहृत ] जी० ३१२३६ अस [ अ ] - अस्थि, ओ० २८ २० २०० जी० ११८२ - अथ ओ० २१ रा० ८ जी ३२४५७ - असि रा० ७४७ आसि रा० २०० जी० ३।२६ - आसी ओ० १६५/३ रा० ६६७ - सिप रा० १६८- सिया ओ० ३३ रा०१२ असई [ असकृत् ] जी० ३२६७५ असंकलिg [ अक्लिष्ट ] ओ० ४७ असं किलि परिणाम (असंक्लिष्टपरिणाम ] ओ० ६० असंख [असंख्य ] जी० १११२८ असंखिज्ज [असंख्येय ] रा० ५६ जी० ११८०, १२१ ३१८६ असंखेज्ज [असंख्येय ] ओ० १७३, १५२. रा० १० १२,१२४,१२६,२७६,७७२. जी० १ ३३,५१ ५५,५६,५८,६१,६२,६४,६५,७३, ७७ से ७६ ८१,८२,८७,८८,१०,१६,१०१,१०३, ११२. Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असंखेज्जइभाग-असरिस ११६,११६,१२३,१२८,१३३,१३६,१३६, जी०६१४१, १४३,१४६,१४७ १४०; २।१२०,१३१, ३।१६,२१,२६,२७, असंत असत् ] ओ० १६५।१६ ५१,६४,६५,८१,८२,१०,११०,१५५,१६५, असंविद्ध [असन्दिग्ध] ओ० ६६. रा० ६६६ २५७,२५६,३५१,४४५,६३८,७०१,७१०,७३६, असंनिहि । असन्निधि] जी० ३२५६८ ७४७,७६१,७६४,७६८,७६६,७७६ से ७७६, असंपत्त | असम्प्राप्त ] ओ० ४७,८४,८५,८७. रा० ८१४,८३८१,६४०,६४४,६५२,६५३,१००६, ४०,५६, १३२. जी १५८, ७३,७८,८१, १०७३.१०७४,१०८३,१०८५,१०८६,११११, १११५, १८, ६,२२,२३,२६,४१ से ५० असंबद्ध असम्बद्ध जी० ३३११०,१११५ ५६,५८, ८१४; ६४०, ५१,६७,१७१,२५७ ।। असंभंत | असम्भ्रान्त ] रा०१२ असंखेजहभाग [असंख्येयतमभाग | रा० ७६६. असंवुड [असंवृत] ओ० ८४,८५,८७ जी० ११६,७४,८६,६४,१०१,१०३,१११, असंसहचरय [असंसृष्टचरक] ओ०२४ ।। ११२,११६,१११,१२१,१२३,१२५,१३०, असंसारसमावण्ण [असंसारसमापन्न] जी ११६ से ६ १३५,१३६; २।२५, ३० से ३४,५३, ५७ से असच्चामोसमणजोग अमत्यमृषामनोयोग] ६१,७३, ६/६७, १८६ ओ० १७८ असंखेज्जगुण [असंख्येयगुण ओ० १८२,१६५।१०. असच्चामोसवइजोग [असत्यमृषावाग्योग] ओ० जी० २१६६, ७१,७२,६५,६६,१३४ से १३६, १७९ १३८,१४३ से १४६; ३।१६५, ११३८ असण [अशन] ओ० ११७,१२०,१४७,१६२. ४॥२३,२५, ५११८ से २०, २५,२७,३१ से रा०६६८,७०४,७१६,७५२,७६५,७७६,७८७ ३६,५२,५६,६०, ६११२, ७.२०, २२,२३; से ७८६,७६४ से ७६६,८०२,८०८ ८।५, ६, ७,५५,१००,१२०,१४०,१४७, असणग [अशनक] ओ० १३ १५८,१६६,१८१,१८४,२०८,२२०,२३१, असणि [अशनि] जी० २१७८ २५० से २५२, २५५,२६६.२८६ से २८८, असण्णि [असं शिन् ] जी० १२२४, ८६,६६,१०१, २६०,२६१,२६३ ११६,१२८,१३६; ३८८; १०१,१०३, असंखेज्जजीविय [असंख्येयजीविक] जी० ११७१,७२ . १०६,१०८ अखेजतिभाग [असंख्येयतमभाग) जी० २११३९; असति [अपकृत् ] जी० ३११२७. ३१६१, १५६,२१८,४३६,६२६,९६६,१०८६, असब्भावपट्टवणा [असद्भावप्रस्थापना] १०८७,१०८६,११११, ५६, २३,२४,२६ जी० ३.१०६,११८,११६ ९४०, ५१,१७१,१८७,१८८ असब्भावभावणा [असद्भावोद्भावना] असंखेज्जभाग [असंख्येयभाग] ओ० १६२. ओ०१५५,१६० जी० ३६१ असमोहत [असमवहत ] जी० १।१२८; ३३१५८, असंग [असङ्ग] ओ० २० १६८, १६६,२०४,२०५ असंघयण [असंहनन | जी० ३११२६४ असमोहय (असमवहत] जी० ११५३,६०.८७ असंघयाणि [असंहनिन् ] जी ० ११६५, १३५; असम्मोह [असम्मोह ] ओ०४३ ३३६२,१०६० असरणाणुप्पेहा (अशरणानुप्रेक्षा] ओ० ४३ असंजय [असंयत] ओ० ८४,८५,८७,८८. असरिस [असदृश ] जी० ३६११०,१११५ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ असरीर-अहापडिरूव असरीर [अशरीर] ओ० १८३,१८४,१६५।११. असुरहार [असुरद्वार] जी० ३८८५ रा० ७७१ असुरिंद असुरेन्द्र ] ओ० ४८. जी० ३१२३५ से असरीरि [अशरीरिन् ] जी० ६।६२,१७०,१७५, २३६,२४३ १८०,१८१ असुह [अशुभ] जी०३६२,१२६१० असहिज्ज [असाहाय्य] रा० ६६८,७५२,७८६ असोग [अशोक ओ०८,९,१२,१३. रा० ३,४, असहेज्ज [असाहाय्य ] ओ० १२०,१६२ १३३. जी० १७१; ३१३०३,६२७ असावज्ज [असावद्य] ओ० ४० असोगलया [अशोकलता] ओ० ११. रा० १४५.. असासत [अशाश्वत ] जी० ३१५७,५६ जी० ३.२६८,५८४ असासय [अशाश्वत] रा० १६८,१६६. जी० ३१८७, असोगलयापविभत्ति [अशकलताप्रविभक्ति] २७०,२७१,७२४,७२७,१०८१ रा० १०१ असि [असि] मो० ६४. जी० ३६११०,६०७,६३१ असोगवडेंसय [अशोकावतंसक] रा० १२५ असिइ [अशीति] जी० ३१५ असोगवण [अशोकवन] रा० १७०. जी० ३।३५८ असिद्ध [असिद्ध] जो० ६६,११,१३,१४,१६,२६, असोय [अशोक रा० १८६. जी० ३३५६,५६० असोयपल्लवपविभत्ति [अशोकपल्लवप्रविभक्ति] असिपत्त [असिपत्र] जी० ३१८५ रा० १०० असिय [असित] रा० १३३. जी० ३३०३ अस्स [अश्व ] जी० ३।७६३ असिलक्खण [असि लक्षण] ओ० १४६. रा ८०६ । अस्सकण्णि [अश्वकर्णी] जी० ११७३ असिलिट्ठ [अश्लिष्ट] रा० ७७४ अस्साद आस्वाद] जी० ३१९५८ असीत [अशीति] जी० ३१३५५ अस्साय [असात ] जी० ३३१२६५,१० असोति [अशीति] जी० ३३१७ अस्सुय [अश्रुत] ओ० ५२ असीय [अशीति ] रा० १६३. जी० ३।३३५ अह [अथ ] ओ० २२ असुइ [अशुचि] ओ० ६८,१४४, रा० ६,१२,७५३, अहसायचरितविणय | यथाख्यातचरित्रविनय] ८०२ जी० ३८४,६२२ ओ० ४० असुभ [अशुभ] रा० ७५३. जी० ११९५; ३७७, अहत [अहत] जी० ३।४५१ ११६,१२६४ अहमिद [अहमिन्द्र] जी० ३११०५६,११२० असुभाणुप्पेहा [अशुभानुप्रेक्षा] ओ ४३ अहय [अहत ] ओ०६३. रा०७,२६१. जी० ३१४५७ असुय [अश्रुत] रा० १६ अहर [अधर ] ओ० १६,४७. जी० ३३५६६ असुर [असुर] मो० ६८,१२०,१६२. रा० २८२, अहव [अथवा] जी० ३।५९४ ६६८,७५२,७७१,७८६,८१५. जी० ३।२३२, अहवा [अथवा जी० १११३३ ४४८,८८५ अहवणवेव [अथर्वणवेद] ओ० ६७ असुरकुमार [असुरकुमार] ओ० ४७. जी० २।१६, अहाणुपुथ्वी [ यथानुगूर्वी | ओ ६४. रा० ४६ से ३७, ३१२३३,२३४,२४० ५४,७७४ असुरकुमारराय [असुरकुमारराज] जी० ३।२३४ ।। अहा [अय] रा० ७२३ ___ से २३६.२४३ अहापडिरूव [ यथाप्रतिरूप] ओ० २१,२२,५२. असुरकुमारिद [असुरकुमारेन्द्र] जी० ३।२३४ रा० ८,६,६८६,६८७,६८६,७०६,७११,७१३ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहापरिग्गहिय-आइय अहापरिग्गहिय [ यथापरिगृहीत] ओ० १२० अहाबायर [ यथाबादर] रा० १०,१२,१८,६५, २७६. जी० ३।४४५ अहाह [पथासुख) रा०६६५,७७५ अहासुहम यथासूक्ष्म] रा० १०,१२,१८,६५, २७६. जी० ३१४४५ अहि [अहि] जी० १११०५.१०६,१०८; ३१८४,६५,६२५,६३१ अहिगय [अभिगत] रा० ६८८ अहिगरण [अधिकरण] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८,७५२,७८६ अहिय [अधिक] ओ० ५७,६३ रा०७०, १३३, २३८. जी० २११५१; ३३२२६६२,५,३०३, ६७२,११२२, ७.१६,१८, ६।४,२४४,२४६, २८०,२८२,११२२ अहिययर [अधिकतर रा० १३३. जी० ३।३०३, ११२२ अहियास [अधि+ आस्, सह |-अहियासिज्जति ओ० १५४. रा० ८१६ अहिलाण [अमिलान] ओ० ६४ अही [अही] जी० २१८ अहीण [अहीन] ओ० १५,१४३.रा० ६७२,६७३ ८०१ अहणा [अधुना] जी० ३१४४८ अहुणोववण्ण [अधुनोपपन्न ] रा० ७५१,७५३ अहणोक्यपणमित्तय [अधुनोपपन्नमात्रक रा० २७४ अहणोववण्णय [अधुनोपपन्नक] रा० ७५१,७५३, ७६७ अहे [अधस् ] ओ० १८६. रा० १३२ जी० ११४५ अहेसत्तमा [अधःसप्तमी] जी० ११६२,११६, १२२ ; २।१३५,१४८,१४६ ; ३१११ से १३, २७,३२,४३,४७,४६,५३.७६,७७,७६,८०,८२, ८७, ६३ से ६५,६७,१०३,१०४,१०६,१०८, ११५.११७,१२१ से १२३,१२५,१२७,१२८ अहो [अहो] रा०६६६ अहोनिस [अहनिश] जी० ३।१२६८ अहोरत [अहोरात्र] ओ० २८ जी० ३८४१ अहोवहिय [आधोवधिक] रा० ७३३,७३४,७३६ अहोवाय [अधोवात] जी० १८१ अहोसिर [अधःशिरस् ] ओ० ४५,८२ आ आइ [आदि] ओ० २३,६३,६६. जी० १०१३३; ३।१०२७ आई [३०] रा० ७०५ आइक्स [आ+चक्ष,ख्या} - आइक्खइ ओ० ५२. रा० ६८७-आइक्खंति जी० ३।२१०आइक्खह ओ० ७६-आइक्खामि जी० ३१२११–आइक्खिस्सामो रा०७१६ -आइक्खेज्जा रा०७१५-आइक्खेज्जाह रा० ७२० आइक्सग [आख्यायक] ओ० १,२ आइक्खगपेच्छा [आख्यायकप्रेक्षा] ओ० १०२, १२५ आइक्खमाण [आचक्षाण,आख्यात् ] ओ०७६ से ८१ रा० ७२०,७३२ आइक्खित्तए [आचक्षितुम् ,आख्यातुम् ] ओ० ७६ आइगर [आदिकर] ओ० १६,२१,५२,५४ रा०८ आइच्च [आदित्य] जी० ३१८३८।४ आइज्ज आदेय ] ओ०१६ आइण [आजिन] रा० ३१ आइणग [आजिनक] जी० ३:४०७,५६५ आइग्ण [आकीर्ण ] ओ० १,१४,१६,६४. रा० १७३,६७१,६७५,६८१,७७४. जी० ३१२८५,६६५ आइपण [आचीर्ण ] रा० ११,५६ आइण्ण [दे० जात्यश्व जी० ३।५६६ आइय | आदिक] ओ० २३,१२०,१४६,१६२ जी० ३१२५६ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आईण-आगार आओसित्तए [आक्रोष्टुम् ] रा० ७६६ आकति [आकृति | रा० १४८ आकारभाव {आकारभाव] जी० ३१२५६ आकासतल [आकाशतल जी० ३६५६४ आकिति [आकृति ] जी० ३१४५४ आकोसायंत {आकोशायमान, विकसत्] जी० ३१५६६,५६७ आगइ | आयति] जी० १११४ आगइय [ आगनिक] जी० ११७४,७७,८७,८८,६६, आईण आजिन] जी० ३।२८४,१०७६ आईणग [आजिनक] ओ० १३ रा० ३७,१८५, २४५. जी० ३।२६७,३११ आउ [आयुम् | जी० ११२८ आउ दे० अप्] जी० २११३०,१३६ ; ३११२३, ६७४; ५८,१२,२०,२७,२६,३३,३६; ६२५७ आउकाइय [अप्कायिक] जी० १११२; ३।१८२, । १८४,२५६,२६२,२६६, १६,१८,८५ आउकाय [अप्काय ] जी० ३११३५,७२५,७२८ आउक्काइय | अप्कायिक जी० ११६३,६५; २११०२,१३८,१४६,१४६,३३१३५, ११, १६,२०; १ आउक्खय | आयुःक्षय ] ओ० १४१. रा० ७६६ आउज्ज [आतोद्य] रा० ७०,७१,७५ आउधागार [आयुधागार ओ० १४. रा० ६७१ आउय | आयुष्क] ओ० ४४,६१ से ६३,१५७, १७१,१८८. रा० ७५३. जी० ११५१,५५,६१, ८७, १०१,११६,१२७,१३३, ३।१५५,६३० आउर | आतुर रा० ७६०,७६१. जी. ३१११८, आउल | आकुल | ओ०६३. जी०३१८४ आउस आयुष्मत् ] ओ० ७६,१२०,१७०. रा० १३१,१३२,१४७ से १५१,१८५,१६७,६६८) ७५०,५२,७८६. जी०१:५६,६२,६५,८२,६६, १२८,१४०, ३११७६,१७८,१८०,१८२,२५६, २६६,२६७,३०१,३०२,३२१ से ३२४,५८२, ५८६ से ५६५,५६८,६००,६०३ से ६०७,६०६ से ६१७,६२०,६२२ से ६२५,६२७,६२८,६३०, ६६५,१०५६,११२० आउसेस [आयुःशेष] रा० ८१६ आउह [आयुध] रा०६६४,६८३. जी० ३१५६२ आएज्ज [आदेय | जी० ३१५६७ आएस [आदेश j जी० २।१५०, ६.१२२ आओग आयोग] ओ० १४,१४१ रा० ६७१,७६६ आओस [आक्रोश] रा० ७६६ आगंतुं [अगन्तुम् ] रा० ७५० आगच्छ [आ+ गम् |-- आगच्छइ ओ० १७७ --आगच्छंति जी० ३२३६-आगच्छिज्जा रा० ७०६ -आगच्छेज्ज ओ०१८०.आगरेज्जा औ० २१. जी. ३९६ आगच्छेन या०.७६५ आगच्छित्तए आगन्तुम् ] रा० ७५१ आगत | आगत रा० १७३. जी० ३३२६५,२८५ आगति आगति स०८१५ आगतिय आगतिक] जी० ११५६,६२,६४,६५, ६७,७६,८०,८२,१०३,१११,११२,११६,११६, १२१,१२३,१२८,१३४,१३६ आगमण आगमन ] ओ० ५१. रा०६८९ आगमणागमणपविभत्ति आगमनागमन प्रविभक्ति रा०५७ आगमेसिभह | आगमिष्यद्भद्र] ओ० ७२ आगम्म आगन्य | ओ०२ आगय आगत | ओ० ५२. रा० ४०,७०,१३२, ६८५,६८७,६८६,७१३,७६५,८०२. जो० ११६६ आगरकर ओ०६८,८४ से ६३,६५,९६, १५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. रा०६६७. जी० ३१८४१ आगार आकार | ओ०१६. जी० ३१४८ से ५०, ३०३,३४६,३५७,६३७,६५९,७३८,७४३, ७६३,११२२ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मागारभाव-आताडिज्जत आगारभाव [आकारभाव] जी० ३१२१८,५७८, आणत्तिया [आज्ञप्तिका ओ०५५ से ६१. रा० ५६६,५६७ ६,१२,१७,४६,७३,११८,६५४,६५५,६५१, आगास [आकाश ] ओ० १३,१६ ६८२,६६०,६६१,९०६,७१४,७१५,७२४, आगासस्थिकाय [आकाशास्तिकाय रा० ७७१. ७२५. जी० ५५४,५५५ जी० १२४ आणपाणपज्जत्ति आनप्राणपर्याप्ति, आनापानआगासथिग्गल [आकाश 'थिग्गल'] रा० २५ पर्याप्ति] रा० २७४,७९७ जी० ३१२७८ आणपाणपज्जत्ति मानप्राणपर्याप्ति, आनापानआगासफलिह [आकाशस्फटिक जी० ३१४५१ पर्याप्ति] जी० ११२६ आगासफालिह [आकाशस्फटिक)। रा० २८५ आणय [आनत ] ओ० ५१,१६२. जी० ३११०३८, आगासाइवाइ [आकाशातिपातिन् ] ओ० २४ १०५३,१०६२,१०६६,१०६८,१०७६,११११ आगासिय [आकाशिक] ओ० १६ आणव (आ+ज्ञापय् ] - आणविज्जइ रा० ७६७. आगिति [आकृति ] स० २८८. जी० ३।३२१ -~-आषवेइ रा० १३.---आणवेज्जा रा०७७६ आघव आ+ख्या --आधविज्जति जी० आणा [आज्ञा] ओ० ५६,५७,५६,६१,६८,७६, ३।०४१ ७७. रा० १०,१४,१८,७४,२७६,२८२,६५५, आघवण [आख्यान ] रा ० ७७४ ६८१,७०७. जी० ३३५०,४४५,४४८,५५५, आघवित्तए [आख्यातुम्] रा० ७७४ आघवेमाण [आख्यात् ] ओ०६८ आणापाणु [आनापान, आनप्राण] ओ० २८. जी. आजीविटत आजीवदृष्टान्त] जी० ३११७४ ३१८४१ आजीवय [आजीवक] ओ० १५८ आणापाण अपज्जत्ति आनागनापर्याप्ति, आनाप्राणामारह [आधा -आडहइ, ओ० ५६ पर्याप्ति ] जी० १२७ आडहित्ता [आधाय ] ओ० ५६ आणापाणुपज्जत्ति [आनापानपर्याप्ति, आनप्राणआढय आढक] ओ० ११३,१३८. रा०७७२ पर्याप्ति] जी० ३।४४० आढा [आ-द] —-आढाइ रा० ६४.---आढाति आणामित आनामित] जी० ३१५६७ रा० ७५३ आणामिय [आनामित] ओ० १६ जी० ३१५६६ आणंदा [आनन्दा] जी० ३।६१४ आणारुइ | आज्ञारुचि ओ० ४३ आणंदिय आनन्दित] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, आणाविजय }आज्ञाविचय ] ओ० ४३ ६२,६३,७८,८०,८१. रा०८,१०,१२ से १४, आणी | आनी]-.-आणेस्सामि रा० ७२० १६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७, आणुगामियत्त | आनुगामिकत्व ] ओ० ५२. रा० २७९,२८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०,६६५. २७५,२७६,६८७. जी० ३.४४१,४४२ ७००,७०७,७१०,७१३,७१४,७१६,७१८,७२५, आणुपुम्व आनुपूर्व्य रा० १७४. जी० ३२२८६ ७२६,७७४,७७८. जी० ३१४४३,४४५,४४७, आणपुथ्वी [आनुपूर्वी] जी० ११४८ ५५५ आतंक [आतङ्क] जी. ३१६२८ आणण आनन] ओ० ५१,६३,६५ आतंब [आताम्र] जी० ३:५६६ आणत [आनत] जी० २।६२,६६,१४८,१४६ आतपत्त आतपत्र जी० ३१४१६ ३११०५४,१०८६,१०८८ आताडिज्जंत [आताड्यमान] रा० ७७ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ आतिय-आमतेत्ता आतिय [आदिक] रा०६३,६५ आतोज्ज [आतोद्य | जी० ३१५८८ आदंसग [आदर्शक] जी० ३१३५५ आवंसमुह [ आदर्शमुख ] जी० ३।२२६ आदर | आदर] ओ०६७. रा० १३,६५७ आदरिसफलग [आदर्शफल क] ओ० २७. रा० ८१३ आदि [आदि] ५२,७०. जी० ११४६; २११३१; ३.२२६,२५०.८६६.८७२,८७५.८७६,८७६, ८८१,६२६,६२७,६३७,६४१,६४८,६४६, ६५२,१०८४,१०८६,६४१४६ आदिगर | आदिकर ओ० ५४. रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ आदिय | आदिक] रा० ७४,८२,११८. जी० ४५७,४५९,४६१,४६२,४६५,४७०,४७७, ५१६,५२०,५४७,७७५,६३६,११२१ से ११२३ आभरणचित्त आभरणचित्र] जी० ३५९५ आभरणविहि [आभरणविधि] ओ० १४६ रा० ८०६ आभा | आमा] ओ० ५१ आभासित आमाषिक जी० ३।२१६ आभासिय आभाषिक ] जी० ३।२१६ आभासियदीय | आभाषिकद्वीप] जी० ३.२१६, २२३ आभासिया (आभाषिका] जी० २११२ आभिओगिय [आभियोगिक ओ० १५६. रा० ६,१०,१२,१३,१७ से १६,२४,३२,४१,४६, ५४,२७८,२७९,२६०,६५४,६५५. जी. ३।४४४,४४५,४५०,४५३,४५६,५५४,५५५, आदीय |आदिक] जी० ३१२५६,६५० आवेज्ज [आदेय ] जी० ३१५६६,५६७ आदेस [आदेश] जी० ११५८,७३,७८,८१,२।२०, ४८ आधार [आहार | जी० १.१२८ आधाव आ+धाव-आवावंति जी० ३.४४७ आपडिपुच्छमाण आप्रतिपृच्छत् | ओ०६६ आपुच्छणिज्ज [आपच्छनीय] रा० ६७५ आपूरत [आपूर्यमाण] जी० ३१७३१ आपूरेमाण [आपुर्यमाण'] रा० ४०,१३२, १३५,२३६. जी० ३।२६५,३०२,३०५,३६८. आबाह [आबाध | ओ०१६६ आवाहा (आराधा जी० ३६२०,६२५ आभरण [आभरण] ओ० २०,५२,५३,६३. रा०६९,७०,१५६,१५७,२५८,२७६,२८१, २८६,२६१,२६४,२६६,३००,३०५,३१२, ३५५,६८५,६८७,६८६,६६२,७००,७१६, ७२६,६०२. जी० ३.३२६,४९६,४४७,८५२, १-आपूरयन्ति शत्रन्तस्य शाबिंद रूपम् [जी० वृत्ति । आभिणिबोधियणाणि आभिनिबोधिकज्ञानिन | जी० ३.१०४,११०७ आभिणिबोहियणाण [आभिनिबोधिकज्ञान) ओ०४० रा० ७३६ से ७४१,७४६ आभिणिबोहियणाणविणय [आभिनिबोधिकज्ञान विनय ओ० ४० आभिणिबोहियणाणि आभिनिबोधिकज्ञानिन् । ओ० २४. जी० ११८७,६६,११६,१३३; ६।१५६,१६०,१६५,१६६.१६८,२०४,२०८ आभिणिबोहियनाणि आभिनिवाधिकज्ञानिन] जी०६।१९७ आभियोग | आभियोग्य ] रा० ४७ आभियोग्ग [अभियोग्य] रा १० आभिसेक्क आभिषेक्य] मो० ५५ से ५७,६२ से ६४,६६ आभोएत्ता | आय] १०८१६ अभीएमाण [आभागयत् | रा० ७ आमंत | आ.+ मन्त्रम् ---आमतेइ ओ० ५५ आमंतेत्ता आमन्त्र्य] ओ०५५. रा०६६८ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आमरणंतदोस-आयावणभूमि आमरणंतदोस आमरणान्तदोष] ओ० ४३ आमलकप्पा [आमलकल्पा] रा० १,२,८ से १०, आमलग [आमलक] रा० ७७१ जी ११७२ आमलय [आमलक] रा० ७७० आमेल [आपीड] ओ० ४६ रा० ६९,७० आमेलग [आपीडक ] रा० १३३ जी० ३३०३, ५६७ आमेलय {आपीडक ] ओ० ५७ आमोट [आमोट] रा० ७७ आमोडिज्जत [आमोट्यमान] रा० ७७ आमोसहिपत्त [आमाँषधिप्राप्त ] ओ० २४ आय [आत्मन् ] जी० ११५० आयंक [आतङ्क] ओ० ४३,११७. रा० १२,७५८, ७५६,७६६. जी० ३३११८ आयंत [आवान्त ] ओ० २१,५४. रा० २७७, २८८,७६५,८०२ जी० ३.४४३ आयंब [आताम्र ओ० १६ आयंबिलय [आचाम्लक ] ओ० ३५ आयंबिलवनमाण आचाम्लवर्धमान] ओ० २४,३५ आयंस [आदर्श] रा० १४६,२५८,२७६, जी० ३१५९७ आयंसग [आदर्शक] जी० ३ ३२२,४१६,४४५ आयंसघरग [आदर्शगृहक रा० १८२,१८३. जी० ३.२६४ आयंसघरय आदर्शगृहक जी० ३।२६५ आयसमंडल [आदर्शमण्डल] रा० २४ जी० ३३२७७ आयंसमुह [आदर्श मुख जी० ३३२१६,२२६।४ आयंसय आदर्शक] ओ० १३ आयत [आयत] ओ० १६,४७. रा० १२४. जी० २५३१५७७,५९६,६३६,१०३६ आयपच्चइय | आत्मप्रत्यायिक, प्रात्ययिक] रा० ७५४,७५६ आयय [आयत] जी० ३.२२,५६७ आयर [आदर] जो० ३।४४६ आयरक्ख [आत्मरक्ष रा०७,४४,५६,५८,२८०, २८२,२८६,२६१,६५७,६६४. जी० ३१३४५, ३५०,३५६,४४६,४४८,५५७,५६२,५६३, ६३७,६५६,६८०,७००,१०२५,१०३८ आयरिय [आचार्य] ओ० ४०,४१,१५५. रा० ७७६ आयव [आतप] ओ० ८६ आयवस [आतपत्र] ओ०६४. रा० ५०,५१,२५५ आयवाभा [आतपाम ] जी० ३.१०२६ आयाए [आदाय] रा० ७७४ आयाण [आदान] ओ०१६. जी० ३१५९६ आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिय [प्रादानभाण्डामत्र निक्षेपणासमित ओ० २७,१६४ आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिय आदानभाण्डामत्र निक्षेपणासमित] ओ० १५२. रा० ८१३ आयाम [आयाम] ओ० १३,१७०,१६२. रा० ३६,१२४,१२६,१२८,१३७,१७०,१८८,२०६, २११,२१८,२२१,२२२,२२४,२२६,२२७, २३०,२३३,२३८,२४२,२४४,२४६,२५१ से २५३,२६१,२६२,२७२. जी० ३.५१८१,८२, ८६,२१७,२२२,२२६,२६०,३०७,३१०,३५१, ३५३,३५५,३५८,३५६,३६१,३६४,३६५, ३६८ से ३७२,३७४,३७६,३७७,३८०,३८१, ३८३,३८५,३८६,३६२,३९५,४००,४०४, ४०६,४०८,४१२ से ४१४,४२२,४२५,४२७, ४३७,५७७,५६७,६३२,६३४,६३६,६४२, ६४४६४६,६४६,६५२,६५५,६६८,६७१,६७३ से ६७५,६७६,६८३,७३६ ७३७,७५४,७५८, ७६२,७६५,७६८,८३५,८५२,८८४,८८७, ८६१,८६३ से ८९५,८६७,८६६,६०१,९०६, १०७,६१०,१०१० से १०१४,१०७३,१०७४ आयामसित्यभोइ आयामशिक्थभोजिन् ओ० ३५ आयारषर आचारधर ] ओ० ४५ आयारवंत [आकारवत् ओ० १ आयावणभूमि [आतापनभूमि] ओ० ११६ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयवणा-आवथ आयावणा [आतापना] ओ०६४ आयाक्य | आतापक] ओ० ३६ आयावाय आत्मबाद ओ० २६ आयावेमाण आतापयत् ] ओं० ११६ आयाहिण आदक्षिण | ओ०४७,५२,६९,७०,७८, ८०,८१. रा०६,१०,१२,५६,५८,६५,७३,७४, ११८,१२०,६८७,६६२,६६५,७००,७१६, ७१८,७७८ आयिण [आजिन जी० ३१६३७ आरंभ आरम्भ | ओ०६१ से ६३,१६१,१६३ आरंभसमारंभ आरम्भसपारम्भ ] ओ०६१ से १३ आरण | आरण] ओ० ५१,१६२. जी० ३।१०३८, १०५४,१०६६,१०६८,१०७६,१०८८,११११ आरबी | आरबी] ओ० ७०. रा०८०४ आरभड [आरभट] रा० १०८,११६,२८१. जी० ३१४४७ आरभडभसोल [आरभटभसोल] रा० ११०,२८१. जी० ३१४४७ आराम | आराम ] ओ० १,३७. रा० १२,६५४, ६५५,७१६. जी. ३१५५४ आराह आ+राध्]--आराहेहिइ रा०८१६ आराहग आराधक | ओ० ८६ से १५,११४,११७, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७ आराहणा आराधना ओ० ७७ आराहय [आराधक ओ०७६,७७. रा० ६२ ।। आराहिता | आराध्य ] ओ० १५४. रा० ८१६ आरिय | आर्य | ओ० ५२,७१. रा० ६६७,६८७. जी० ३१२२६ आरहण आरोहण] रा० २६१,२६४,२६६,३००, ३०५,३१२,३५५. जी० ३१४५७,४५६,४६१, ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५४७,५६४ आरोहग आरोहक] ओ०६४ आलंकारिय [आलङ्कारिक] जी० ३१४५० आलंबण [आलम्बन | ओ० ४३. रा० ६७५ आलंबणभूय [आलम्बनभूत] रा० ६७५ आलय [आलय] रा० ८१४ आलवंत आलपत्] रा० ७७ । आलावग [आलापक] जी० ३१६२; १५१,५८ आलिंग | आलिङ्ग] रा० २४,६५,६७,१७१. जी० ३।२१८,२७७,३०६,५७८,५८८,६७०,७५५, ८८३ आलिगक [आलिङ्गक] जी० ३१७८ आलिंगणवट्टिय [आलिङ्गनतिक रा० २४५. जी० ३४०७ आलिघरग [आलिगृहक] रा०१८२,१८३. जी० ३ २६४,८५७ आलिघरय आलिगृहक जो० ३।२६५,८५७ आलिह [आ-+-लिख्]-..आलिहइ रा० २६१. ....आलिखति जी० ३,४५७ आलिहिता [आलिख्य ] रा० २६५. जी. ३१४५७ आलुय [आलुक | जी० ११७३ आलोइय [आलोचित] ओ० ११७.१४०,१५७, १६२,१६४,१६५ रा० ७६६ आलोय आलोक] ओ० ६३,६४. रा० ५०,६८, २९१,३०६. जी० ३।४५७,४७१,५१६ आलोयणारिह [आलोचनाह] ओ० ३६ आवइ [आपत् ! रा० ७५१ आवइकाल [आपत्काल ] ओ० ११७ आवकहिय यावत्कथिक ] ओ० ३२ आवज्जीकरण [आवर्जीकरण] ओ० १७३ आवड आवृत्त] रा० २४. जी. ३१२७७ आवडपच्चावडसेढिपसेढिसोत्थियसोवत्थियप्रसमाणबवद्धमाणगमच्छंडमगरंडाजारामाराफुल्लावलिपउमपत्तसागरतरंगवसंतलतापउमलयभत्तिचित्त [लावृत्तप्रत्यावृत्तश्रेणिप्रवेणिस्वस्तिकसौवस्तिक पूष्यमाण ववर्धमाणकमत्स्याण्डमकराण्डकजारकमारकफुल्लाबलिपद्मपत्रसागरतरङ्गवासन्तीलतापमलताभक्तिचित्र] रा० ८१ आवडिय [आपतित] रा०१४ आवण [आपन] ओ०१,५५. रा०२८१. जी. ३.४४७,५६४ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवत्त-आसाय - आवत्त [आवर्त ] रा० ६६. जी० ३१८३८११० आवतणपेढिया [आवर्तनपीठिका] रा० १३०. जी० ३१३०० आवबहुल [आपबहुल ] जी० ३.६,१०,१७,२५, आवरण आवरण] ओ० ५७,६४. रा० १७३, ६८१. जी० ३१२८५ आवरणावरणपविभति आवरणावरणप्रविभक्ति रा०८८ आवरित्ता [आवृत्य] १० ७१६ आवरिस | आ-वृष-आवरिसेज्जा रा० १२ आवरेत्ता [आवृत्य] रा० ७१६ आवरेत्ताणं [आवृत्य ] रा० ७१६ आवलिपविभत्ति [आवलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ आवलियपविट्र आवलिकाप्रविष्ट] जी. ३१७८ आवलियबाहिर आवलिकाबाह्य | जी०३१७८ आवलिया [आवलिका] ओ० २८ जी० १११३६, ७२०, ७२३, ७२४, ७२६, ७३१. ७३२. जी० २।८४; ३१६१८, ६३१, १०१५ आसकण्ण अश्वकर्ण] जी० ३।२१६, २२६ आसग [आस्यक ] जी० ३।१०६ आसण आसन ओ० १४, १४१. रा० १८५, ६७१, ६७५ ७१४, ७६६. जी० ३।२६७ ५७६, ६८३, ११२८, ११३० आसणप्पयाण [आसनप्रदान] ओ० ४० आसणाभिग्गह [आसनाभिग्रह ओ०४० आसत्त आसक्त) ओ० २.५५. रा० ३२, २८१ २६१,२९४,२६६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३।३७२, ४४७, ४५६, ४६१, ४६२, ४७०, ४७७, ५१६, ५२० आसपर [अश्वधर ] ओ०६६ आसम [आश्रम] ओ० ६८, ८६ से ६३, ६५ ६६, १५५, १५८ से १६१, १६३, १६८. रा०६६७ आसमुह [अश्वमुख ] जी० ३१२१६, २२६ आसय आस् --आसयंति रा० १८५ जी० ३१२१७---आसयह रा०७५३ आसरह [अश्वरथ ] रा० ६८१ से ६८३,६८५१६६० से ६६२, ६६७, ७०६, ७१०, ७१४, ७१६, ७२२,७२४,७२६ आसल आसल] जी० ३८१६, ८६०, ६५६ आसव आश्रव ओ० ७१,१२०,१६२. रा० ६६८, ७५२ ७८९ आसव | आसव] जी० ३१५८६ आसवोद [आसवोद | जी० ३।२८६ आसवोयग | आयवोदक रा० १७४ आसा | आशा] ओ० २५, ४६, रा० ६८६ आसाएमाण [आस्वादयत् ] रा० ७६५, ८०२ आसाद [आस्वाद | जी० ३.९६०, ८६६, ८७२ ८७८, ६५५, ६६० आसादणिज्ज [ आस्थादनीय] जी० ३६६०२, ८६० ८६६,८७२,८७८,६५५,६६० आसाय आस्वाद] जी० ३१६०१ ६०२, ६६१ आवलियापविट्ठ [आवलिकाप्रविष्ट ] जी० ३।१०७१ आवलियाबाहिर [आवलिकाबाह्य जी० ३।१०७१ आवस्सय | आवश्यक ] रा० ७२३ आवास [आवास] ओ० १,१६२. रा०६८४, ६८५, ७००, ७०६. जी० ३१२५७ ७३५ से ७४३, ७४५ से ७४७,७४६ से ७५१, ७७५, ६३७ आवाह | आवाह] जो० ३।६१४ आविद आद्धविद्ध ओ० ५२, ६३. रा० ६६, ___७०, १३१, १४७, १४८, २८०, ६६४, ६८७ से ६८६, जी० ३१३०१, ४४६ आविल [ आविल ] जी० ३।७२१ आवीकम्म [आविष्कर्मन् ] रा० ८ १५ आस अश्व] ओ० ६६, १०१,१२४. रा० Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आसालिय-इंदाभिसेग आसालिय [आशालिक] जी० १११०५, ११०, आहारसपणा [आहारसंज्ञा] जी० ११२०,१३२; १३३, २।१०५ ३।१२८ आसित्त आसिक्त ओ० ५५, ६० से ६२ आहारित्ता आहार्य ] जी० ३१६०३ आसिय [ आषिक्त] रा० २८१. जी० ३।४४७ आहारेत्तए [ आहर्तुम् ] ओ०६३ आसीत [अशीति जी० ३१५ आहारेमाण [आहरत् ] ओ० ३३. रा० ७६५ आसीविस [आमीविष] जी० १११०७ आहाव | आ-+धाव्]--आहावति रा० २८१ Vआह []-आहंसु जी० १११० आहिय [आख्यात] जी० ३।८३८।३ ___ आहिज्जति जी० ११० आहु [आहोत] ओ० २ आहत [आहत ] जी० ३१८४५ आहुणिज्ज [आहवनीय ] ओ०२ आहम्मत आयमान] रा० ७७ आहुणिय [आहत्य] रा०६ प्राय [आहत ] ओ०६८ आहेवच्च [आधिपत्य] ओ० ६८. रा० २८२. आहर [आ+ह ]--आहरेइ ओ०११८ जी० ३।३५०,३५६,४४८,५६३,६३७,६५९, आहरण [आभरण] ओ० ४६. रा०६८८ ७६०,७६३ आहाकम्मिय [आधामिक] ओ० १३४ आहार ! आहार) ओ०३३,७३,६२,११७ से ११६. रा० ७३२,७३७,७७२,७६६. जी०१।१४,३३, _[चित्] ओ० ७४।४ ५०,५६,६५,८२,८७,९६,१०१,११६,१३३, इ [इति ) जी० ३।६५ १३६,३१६७,१२७,१२६,५६६,६००,६०३, इइ-एति जी० ३।१७६---एह रा०७२३ ६३१,६६६ इइ [इति ] रा० २४ आहार | आधार रा० ६७५ इओ [इतस्] ओ०८८ ‘आहार [आ+ हारय् ]-~~-आहारेइ रा० ७३२-- इंगाल [अङ्गार रा० ४५. जी० १७८; ३१८५, आहारेति रा०७०३. जी०१:३३ आहारअपज्जत्ति [आहारापर्याप्ति] जी० ११२७ ।। इंगालसोल्लिय [अङ्गारपक्व | ओ०६४ आहारग | आहारक जी०६।३८ से ४०,४६, इंगिय [इङ्गित ओ०७०. रा०८०४ इंद |इन्द्र ओ०६८, रा० २८२. जी० ३.४४८, आहारगमीसासरीर | आहारकमिश्रक्शीर] ओ० ७५५,८४३,८४६,८४७,६३७,१०४८ इंदकील | इन्द्रकील] ओ० १. रा० १३० इंदखील [इन्द्रकील] जी. ३।३०० आहारगसरीर [आहारकशरीर] ओ० १७६ जी , इंदगोव [इन्द्रगोप] रा० २७ ६।१७८ इंदगोवय [इन्द्रगोपक] जी० ३।२८० आहारगसरीरि [आहारकशरीरिन् ] जी० ६।१७०, इंदग्गह [इन्द्रग्रह] जी० ३१६२८ १७३,१८१ इंदट्ठाण [इन्द्रस्थान जी० ३१८४४,८४७ आहारत्त आ हारत्व] जी० ३।११०० इंदषण [इन्द्रधनुष ] जी० ३१६२६,८४१ आहारपज्जत्ति आहारपर्याप्ति | २० २७४,७६७ इंदभूइ [३न्द्रभूति | ओ० ८२ जी० १२२६३१४४० इंदमह | इन्द्रमह] रा०६८८,६८६ जी० ३१६१५ आहारभूय [आधारभूत ) रा० ६७५ इंदाभिसेग [इन्द्राभिषेक] रा० २८२,२८३. आहारय आहारक] जी. ३६,४१ जी० ३.४४६,४४७ ५०,५५ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंदाभिसेय-इन्भ इंदाभिसेय [इन्द्राभिषेक रा० २७८ से २८१ इडि [ऋद्धि] मो० ४७,६५,६७,७२,८६ से १५, जी० ३.४४४,४४८,४४६ ११४,११७,१५५,१५७ से १६०.१६२,१६७. इंदिय [इन्द्रिय ] ओ०६३. जी० १११४,२२,८६, रा० १३,१५ से १७,५५,५६,५८,२८०,२६१, ८८,६०,९६,१०१,११६,१२८,१३६, ३१५६२, ६५७,७७२,८०३,८०५. जी० ३।४४६,४४८, ४५७,५५७,६०६ इंदियपज्जत्ति [इन्द्रियपर्याप्ति ] रा० २७४,७९७. इण [एतत् ] जी० ३।५ जी० ॥२६; ३१४४० इणं [इदम्] ओ० ७२ इंदियपडिसंलोणया [इन्द्रियप्रतिसंलीनता] ओ० इति [इति रा० ८. जी० ३११८ इतिहास [इतिहास] ओ०६७ इंदु [इन्दु] रा० २५५. जी० ३१४१६ इत्तरिय [इत्वरिक ] ओ० ३२ इक्कमिक्क [एकक] जी. ३११२७ इत्ति [इति] जी० ११३६ इक्खाग [इक्ष्वाकु] रा० ६८८ इत्तो [इतस् ] ओ०१६५।१७. ० २५. इक्खगपरिसा [इक्ष्वाकुपरिषद् ] १० ६१ जी० ३।२७८ इक्खुवाड [इक्षुवाट] रा० ७८१,७८४,७८६, इस्थ [अत्र) जी० ३१२४४ ७८७ इत्थंठिय [इत्थंस्थित] ओ०७२ इगयालीस [एकचत्वारिंशत् ] जी० १७१८ इरिय [स्त्री] जी० २११०५ इच्छ [इष]--इच्छइ रा० ७५१- इच्छसि इथिकहा [स्त्रीकथा] ओ०१०४,१२७ रा० ७६५-इच्छसी जी० ३१८३८२६ इत्थिया [स्त्री] ओ० ६२. जी० २१११,१५ से १६, -इच्छामि रा०६३--इच्छेज्ज रा० ७५१ ३७,६७ से ७२,७४,१४४,१४६ से १४८,१५१; - इच्छेज्जा रा० ७५१ ३.८८ इच्छा [इच्छा] ओ० ४६ इथिलक्खण [स्त्रीलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ इच्छापरिमाण [इच्छापरिमाण] ओ०७७ इथिवेद [स्त्रीवेद जी० १६१३६; २१७३,७४; इच्छिय [इष्ट] मो० २३,६६. रा० ६६५ ।१२६ इच्छियपरिच्छिय [इष्टप्रतीप्ट ] ओ० ६६. इत्थिवेदग [स्त्रीवेदक] जी० ६।१३० रा०६६५ इत्यिवेय [स्त्रीवेद] जी० ११२५,१३३ इट्ठावाय [इस्टकापाक] जी० ३।११८ इथिवेयग [स्त्रीवेदक] जी० ६।१२१ इट्ट [इष्ट] ओ० १५,६८,११७. रा० ६७२,६८५, ५. इत्थिवेयय [स्त्रीवेदक] जी० ६।१२२ ७१०,७५० से ७५३,७७४,७६६. इत्थी स्त्रिी ] ओ० ३७. जी० २।१ से ३,६,१०, जी० ११३५, ३.१०६०,१०९६,११२४ १४,२० से ३०,३२ से ३६,३६ से ४६,५४, इद्रुतर [इष्टतर] जी० ३।१०७८, १०७६ ५६ से ६६,७०,७६,७८,८०,८३,८५.८६,९४, इट्टतराय [इष्टतरक] २२० २५ से ३१,४५. १०५,१४१ से १५१, ३३१४८,१४६,१६४ इत्थीलिंगसिद्ध [स्त्रीलिङ्गसिद्ध] जी०११८ जी० ३१२७८ से २८४,६०१,६०२,८६०,८६६, ८७२,८७८,६५६,६६१ इदाणि [इदानीम् ] जी० ३१८४३ इम्भ | इभ्य] ओ० २३,५२,६३. रा०६८७ से इड्डरग [दे०] रा० ७७२ ६९६,६६५,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४. इड्र य (दे०] रा० ७७२ जी. ३६०६ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ इन्भपुत्त-उक्कोस इन्भपुत्त [इभ्यपुत्र] रा०६८८,६८६,६६५ इम (इदम् ] ओ० ७. जी० १३१० इयाणि इदानीम् ] ओ० ११७. रा० ७५३ इरियासमिय | ईर्याः मित ] ओ० २७,१५२,१६४ इव इव | ओ० २३. रा० ७०. जी० ३१४४८ इसिपरिसा ऋषिपरिपद् | ओ० ७१. रा० ६१, ७६७ इसिवादिय ऋषिवादिक] ओ० ४६ इह (इह ! ओ० २१. रा०६८७. जी० १११ इह [इह | ओ० २१. रा० ६८७. जी०३।११६ इहगत | इहगत ] रा०८ इहगय [इहगत ] ओ० २१. रा० ७१४ इहभव इहव] यो० ५२. रा०६२७ इहलोग [ इहलोक ] ओ० २६ ईहा [ईहा] ओ० ११६,१५६. रा० ७४० ईहामइ ईहामति) रा० ५७५ ईहामिअउसभतुरगनरमगरविहगवालगकिन्नररहसरभचमरकंजरवणलयपउमलयभत्तिचित [ईहामृगवृषभतु र गरमकर विहग-यालकफिन्तररुरुसरभचमरकुञ्जरवनलतापलता भक्तिचित्र] रा० ८३ ईहामिय [ईहामृग] ओ० १३. रा० १७,१८,२०, ३२.३७,१२६. जी० ३१२८८,३००,३११,३७२ जा उ उ [तु] जी०२।१५१ उंबर [उदुम्बर] जो० ११७२ उंबरयुएफ | उदुम्बरपुष्प ] रा० ७५० से ७५३ उक्कंचण [दे०] रा० ६७१ उपकंधणया [दे० ] ओ०७३ उक्कलियावाय [उत्कलिकावात ] जी० ११८१ उक्कस [उत्कर्ष ] जी० श२८ उक्का | उल्का ] रा० ७०,१३३. जी. ११७८ ईयाल [एकचत्वारिंशत् ] जी० ३।७३६ ईरियासमिय [ ईसिमित ] रा० ८१३ ईसत्य [इष्वस्त्र] ओ० १४६. रा० ८०६ । ईसर ईश्वर ओ० १८,२२,६३,६८, रा० २८२, ६८७,६८८,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४. जी०३३५०, ४४८,५६३,६०६,६३७,७२३ ईसा [ईषा] जी० ३।२५४ ईसाण ईशान] ओ० ५१,१६०, १९२. जी. १९५६; २.१६,४७,६६,१४८,१४६; ३१६१६,६२१,१०३८,१०४३,१०४४,१०५७, १०६५,१०६७,१०७१,१०७३,१०७५,१०७७ से १०८३,१०८५,१०८७,१०६०,१०६१, १०६३, १०६७ से १०६६.११०१,११०५, ११०७,११०६ से १११२,१११४,१११५, १११७,१११६,११२१,११२२,११२४,११२८ ईसाणग। ईशानक] जी० ३११०४३ ईसि ईषत् ] ओ १३. रा० ४. जी० ३.२६५ ईसिणिया [ ईशानिका] ओ० ७०. रा० ८०४ ईसी [ईषत् ] ओ० ४७ ईसीपभारा [ईषत्प्रारभारा] मो० १६१ से १६५ उक्कापात [उल्कापात ] जी० ३६६२६ उक्कामुह [उल्कामुख ] जी०३१२१६,२२६ उक्किट्ठ [उत्कृष्ट ] ओ० ५२. रा० १०,१२,५६, २७६,६८७,६८८. जी० ३१८६,१७६,१७८, १८०,१८७,४४५,८४२,८४५ उक्किट्टि [उत्कृष्टि] जी० ६।४४७ उक्किट्ठिया [उस्कृष्टिका] रा० २८१ उक्किरिज्जमाण [उत्कीर्यमाण] रा० ३० जी० ३।२८३ उक्कुडुयासणिय [उत्कुटुकासनिक] ओ ३६ उक्कोडिय [औत्कोटिक] ओ० १ उक्कोस [ उत्कर्ष ] ओ० ६४,६५,११४,१५५,१५७, १५६,१६०,१६२,१६७,१८७,१८८,१६५।५. जी० १११६,५२.५६,६५,७४,७६,८२,८६ से ८८,६०,६४,९६,१०१,१०३, १११,११२,११६. ११६,१२१,१२३ से १२५,१३०,१३३,१३५ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्कोसपद-उच्छलंत ५७६ से १४०,१४२, २०२० से २२,२४ से ५०, उम्गत उद्गत जी० ३।३००,५६५ ५३, से ६१,६३,६५ से ६७, ७३,७६,८२ से उगतव { उग्रतपस् ] ओ० ८२ ८४,८६ से ८८,६० से ६३,६७ १०० से १११, उग्गपुत्त उग्रपुत्र ] ओ० ५२. रा०६८७ से ६८६, ११३,११४,११६ से १३३,१३९; ३१८६,८६ ६१,१०७,११८ से १२०,१२६१२,१३६,१६१, उगमणग्गमणपविभत्ति (उदगमनोगमन प्रविभक्ति १६२,१६५,१७६,१७८,१८०,१८२,१८६ से रा०८६ १६२,२१८,६२६,८४४,८४७,८६०,९६६, उम्गय [उद्गत रा०१७,१८,२०,३२,१२६. १०२२.१०२७ से १०३६,१०८३,१०८४, जी० ३१२८८,३७२,५६० १०८७,१०८६,११११,११३१,११३२,११३४ उग्गलच्छाव | दे०]-- उगलच्छामि ग०७५४ से ११३७; ४३ से ११,१६.१७, ५५,७,८, उग्गलच्छावित्ता दे०] रा० ७५४ १० से १६,२१ से २४,२८ से ३०; ६२,३, उगह [अवग्रह] रा० ७४०,७४१ ६,८ से ११, ७३,५.६,१०,१२ से १८; उग्धोसेमाण [ उद्घोषयन् | स०१३,१५ ६२ से ४,२३ से२६,३१,३३,३४,३६,४०,४१, उच्च {उच्च ] जी ० ३१३१३ ४३,४७,४६,५१,५२,५७ से ६०,६५ से ७३, उच्चंतग [उच्चन्तक] रा० २६. जी. ३१२७६ ७७,७८,८०,८३,८५.८६,१०,६२,६३,६६,६७, उच्चत्त [उच्चत्व] ओ०१८७. रा० ४०.१२७ से १०२,१०३,१०५,१०६,११४,११५,११७,११८, १२६,१३७,१८६,१८६,२०४ से २१२,२२२, १२३ से १२८,१३२,१३४,१३६,१३८,१४२, २२७,२३१,२३६,२४७,२५१,२५३. १४४,१४६,१४६,१५०,१५२,१५३,१६० से जी० ३३१२७,२६१ से २६३,३००,३०७, १६२,१६४,१६५,१७१ से १७३,१७६ से १७८) ३५२ से ३५५,३५६,३६४,३६८ से ३७४, १८६ से १६१,१६३,१६४, १९८ से २००, ३७६,३८१,३८६,३६३,४०१,४१२,४१४, २०२ से २०४,२०६,२०७,२१० से २१४, ५६६,५६७,६३२,६३४,६४६,६४७,६५२६६१ २१६ से २१८,२२२ से २२५,२२८,२२६, ६६३,६७२ से ६७५,६७६,६८६,७०६,७१३, २३४,२३६,२३८,२४१ से २४४,२४६,२५७ ७३६,७३७,७५६,७६५,८३६,८८२,८८४, से २६०,२६२,२६४,२६६,२७१,२७३,२७७ ८८५,८८७,८८८,८६४,८६८,६००,६०७, स २८२ ६११,६१८,१०६७,१०६६,१०७० उक्कोसपद उत्कर्षपद] जी० ३११६५ से १६७ उच्चार [उच्चार] रा० ७६६ उफ्कोसपय [उत्कर्षपद] जी० ३.१६५ उच्चारण [उच्चारण ] ओ०१८२ उक्खित्त [उक्षित] रा० ११५. जी० ३।४४७ ।। उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिद्रावणियासमिय उक्खित्तचरय [उत्क्षिप्तचरक ] ओ० ३४ (उच्चारप्रस्र वणवेलसिंघाणजल्लपारिष्ठापनिउक्खित्ताणिदिखत्तधरय [उत्क्षिप्तनिक्षिप्तचरक कीसमित ] ओ० २७,१५२,१६४. रा० ८१३ ओ० ३४ उच्चावय [उच्चावच] ओ० १४०,१५४,१६५, उक्खित्ताय [उत्क्षिप्तक] रा० १७३,२८१. १६६. रा० ७६६,८१६. जी० ३२३९,९८२ जी० ३।२८५ उच्छंग [उत्सङ्ग] ओ०६४ उक्खु [इक्षु] जी० ३१६२१ उच्छल [उत् + शल्-उच्छलेति रा० २८१. उक्खेवण [उत्क्षेपन] ओ०. १८० जी० ३.४४७ उग्ग [उन] ओ २३,५२. १० ६८७ से ६८६,६६५ उच्छलंत [उच्छलत्] ओ०४६ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८० उच्छायणया उण्ण यासण उच्छायणया [ उच्छादना ] रा० ६७१ उच्छु ! इक्षु ] ओ० १. जी० ३८७८, ६६१ √ उच्छुभ [ उत् + क्षिप् [ -- उच्छु भइ, रा० ७८५ उच्छूढ [ उत्क्षिप्त ] ओ १६. जी० ३।५६६ उच्छूढसरीर | उत्क्षिप्तशरीर ] ओ० ८२. रा० ६६६ उट्ठिय [ उत्थित ] ओ० २२. रा० ७७७,७७८, उज्जम [ उद्यम | ओ० ४६ √ उट्ठा [ उत् + ष्ठा ] -- उट्ठे इ. ओ० ७८. रा०६९५ - उट्ठेति. ओ० ८१.- उट्ठेति. रा० ६० उट्ठा [ उत्था] ओ० ७८.८०.८१, ८३. रा० ६०,६२, ६१५,७००,७१८,७८० ७८८ उज्जल | उज्वल ] ओ० ५,८,१६,५७. रा० ३२, ६६,७०,२४६,७६५. जी० ३।११०,१११, ११७,२७४,३७२,४१०,५८६ से ५६१,५६६ उज्जाण [ उद्यान ] ओ० १,३७. ० १२,६५४, ६५५,६७०,७०६,७११,७१३, ७१६, ७१६, ७२६. जी० ३।५५४ उज्जाणपालग [ उद्यान पालक ] २१० ७०७,७१३, ७१४ उज्जाण पालय [ उद्यानपालक ] रा० ७०६ उज्जाणभूमि | उद्यानभूमि [ रा० ७३२,७३७,७४७ उज्जालि [ उज्वालित ] जी० ३१५८६ उज्जु [ऋजु ] ओ० १६,४७. जी० ३।५६६,५६७ उज्जुमइ [ ऋजुमति ] ओ० २४. रा० ७४४ उज्जय [ ऋजुक] ओ० १६. जी० ३३५६६, ५६७ उज्जुसेढी [ ऋजुश्रेणी] भो० १८२ उज्जोइय [ उद्योतित ] जी० ३०५६८ उज्जोएमाण [ उद्योतयत् ] जी० ३।३०३ उज्जोय [ उद्योत ] ओ० १२. रा० २१, २३, २४, ३२, ३४, ३६, १२४, १४५, १५७,२२८, २५७. जी० ३।२६१, २६६, २६६, २७७, ३८७, ५८६, ५६०, ६७२ उज्जोव [ उद् + द्युत ] – उज्जवेइ. रा० ७७२, जी० ३,३२७ - उज्जोवेति रा० १५४. जी० ३।३२७ - उज्जोवेति. रा० १५४ जी० ३।७४१ उज्जोविय [ उद्योतित ] ओ० ५१,६३,६५ उज्जीवेमाण [ उद्योतयत् ] ओ० ४७,७२. रा० ७०, १३३. जी० ३।११२१,११२२ उट्ट [ उष्ट्र ] ओ०१०१,१२४. जी० ३२६१८ उट्टियासमण [ उष्ट्रिकाश्रमण ] ओ० १५८ उट्टी [ उष्ट्री ] जी० ३।६१६ उशा [ उत्थाय ] ओ० ७८. ० ६० [ [ उटज ] तापगृह जी० ३७८ √ उड़ [ दे० ] – उडु इज्जइ. रा० ७८५ [उपति] ओ० १६ उडुति [ उडुपति ] जी० ३।५६६ उड्ड [ उर्ध्व ] ओ० ११९.१८२, १६२. रा० १२४, १२७ से १२६,१३७,१८६, १८६, २०४ से २१२, २२२,२२७,२३१,२३६,२४७,२५१, २५३, ७५३. जी० १२४५; ३.२५७,२६१ से २६३, ३००, ३०७, ३५२ से ३५५,३५६.३६४,३६८ से ३७४,३७६, ३८१, ३८६, ३१३,४०१, ४१२, ४१४,५६६,६३२,६३४, ६४६, ६४७, ६६१, ६६३,६७२ से ६७५,६७६,६८६,७०६,७१३, ७३६,७३७,७५६,८३८११२,८३६, ८४२, ८४५, ८८२,८८४,८८५,८८७, ८८८,८६४,८८, ६००,६०७,९११, ११८, १०३८, १०६७,१०६६, १०७०, ११११ उहंजण [उर्ध्वजानु ] ओ० ४५,८२ उठवाय [ऊर्ध्ववात] जी० १८१ उड़ढीमुह [ उद्धी' मुख ] जी० ३१८४२ उष्णइय [ उन्नतिक] ओ० ६ जी० ३।२७५, २६६, ६३६,८५७,८६३ उष्णत [ उन्नत ] रा० २४५ √ उष्णम [ उत् + नम् ] - उष्णमंति. रा० ७५ उष्णमत्ता [ अन्नम्य ] रा० ७५ उणय [ उन्नत ] ओ० १,१६. जी० ३३४०७,५६६, ५६७ उष्णयासण [ उन्नतासन] रा० १८१,१८३. जी० ३१२६३ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उण्णाम-उद ५८१ उण्णामा उद्-नामय ]---उण्णामिज्जइ. जी० १७२६ उण्ड [उष्ण ओ० ११७. रा० ७२८,७६६. जी० ३.११८,११६ उत्तप्प उत्तप्त) रा०७३२,७३७ उत्तम [उत्तम] ओ० २३,५१. रा० २६२. जी० ३.४५७,५६२,५९६ से ५६८ उत्तमंग [उत्तमाङ्ग] जी० ३१५६६ उत्तर [उत्तर] ओ० २१. रा० १६,४०,४१,४४. १३२,१७०,१७३,२१०,२१२,२३५,२३६, ६५८,६६४,६८५,७६५,८०२. जी० २।४० ३१५,२२,२७,६३,६६ से ७२,७७,२२६,२२७, २३२,२५७.२६५,२८५,३३६,३४५.३५८, ३७३,३६७,३६८,५५८,५६२,५६६,५६६, ५७७,५६५,५६७,६०१,६६५,६३८,६३६, ६४७,६५७,६६०,६६१,६६५,६६६,६७३, ६८०, ६८२,६८६,६६२,६६५,६६६,७०१, ७११, ७१३,७२२,७३६,७४५,७४७,८१२, ५३६,८८२,८८५,६०२,१००४,१००६,१०१५ उत्तरंग [उत्तरङ्ग] रा० १३०. जी० ३३०० उत्तरकुरा [उत्तरकुरु] जी० २०१३; ३१५७८, से ५६७,६०५ से ६२८,६३१,६३२,६३६,६६६, ६६८,७०२ उत्तरकुरा [उत्तरकुरा] जी० ३१६१६६३७ उत्तरकुर उत्तरकुरु] जी० २३३,६०,७०,७२, १६,१३७,१३८,१४७,१४६; २२१८,२२८, उत्तरपुरथिम [उत्तरपौरस्त्य] ओ० २. रा० २, १०,१२,१८,४१,५६,६५,२०६,२४६,२५१, २६०,२६२,२६५,२६७,२६६,२७२,२७३, २७६,६५८,६७०,६७८. जी० ३१३३६,३७२, ४०८,४१२,४२१,४२५,४२६,४३१,४३४, ४३७,४३८,४४५,५५८,६३५.६५७,६६८, ६८०,६८३,७५० उत्तरपुरथिमिल्ल [उत्तरपौरस्त्य] जी० ३।२१७, २२२,५५६,६८६,६६८,६१८,६१६. उत्तरमंदा | उत्तरमन्द्रा उत्तरमन्दा] रा० १७३. जी० ३१२८५ उत्तरवेउविवय [उत्तरवैक्रिय] रा० १०,४७. जी० ११६४,६६,१३५,१३६ ; ३।९१,६३,४४६, १०८७,१०८८,१०६१,११२१,११२२ उत्तरागार [उत्तराकार रा० १६५ उत्तरासंग उत्तरासङ्गा ओ० २१,५४, रा० ८, उत्तरासंगकरण [उत्तरासङ्गकरण ओ०६६. रा० ७७८ उत्तरिज्ज [उत्तरीय ओ० ६३ उत्तरित्तए [उत्तरीतुम्] ओ० १२२ उत्तरिल्ल [औदीच्य औत्तराह] रा० ४८,५६, ५७,२६७,३०२,३०७,३१३ से ३१६,३१८, ३२१ से ३३१,३३६,३४१ ३४६,३७६,३६४, ४३५, ४५३,४६६,५१४,५५६,५७४,६१६, ६३४. जी० ३१३३,३६,३८,२२७,२४०,२४८, २५०,२५६,४६२,४६७,४७२ ४७८ से ४५१, ४८३,४८६ से ४६६,५०१,५०६,५११,५२३, ५२४,५२६,५३०,५३७,५३८,५४४,५४५, ५५१,५५२,६७३,६६७,६६८,९१६ उत्ताणग [ उत्तानक] ओ०१ उत्ताणयछत्त [उत्तानकछत्र] ओ० १६४ उत्तालिज्जत [उत्ताड्यमान ] रा० ७७ उत्तासणय [उत्त्रासनक] जी० ३१८३ उत्तिमंग [उत्तमाङ्ग] ओ० १६. जी० ३१५६७ उद [उद] जी० ३२२८६ उत्तरकुरुद्दह [उत्तरकुरुद्रह] जी० ३१६६६ उत्तरकूलग [उतरकूलक अं० ६४ उत्तरतर [उत्तरतर ओ० ७६ से ८१ उत्तरपच्चत्थिम [उत्तरपाश्चात्य ] जी० ३१२२५, ६८८,७५३ उत्तरपच्चथिमिल्ल [ उत्तरपाश्चात्य ] जी० ३१२२१, ६६६,६६७,६१८,६२२ उत्तरपासग [उत्तरपार्वक] रा० १३० उत्तरपासय [उत्तरपार्श्वक] जी० ३१३०० Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ उदक-उप्पतित्ता उदक [ उदङ्क] जी० ३१५८७ उद्दा(ण) दे०] जी० ३१८७२ उदक [उदक] रा० २६. जी० ३।८१६ उद्दाइत्ता {अवद्राय, अवद्रुत्य ] जी० ३।५७५ उदकजोणिय [उदकयोनिक] जी० ३१७८७ उद्दाल [अवदाल] रा ० २४५. जी० ३१४०७ उदग [उदफा ओ०६३,११७. रा० १५१,२७६, उद्दाल [उद्दाल ] जी० ३१६३१ २८१. जी० ३१४४५,४४७,७२१,७२६,८५४, उद्दालक [उद्दालक] जी० ३१५८२ ८५७,६४६ उद्दिट्ट [उद्दिष्ट] जी० ३१८३८।२५ उदगत्त उदकत्व] जी० ३।७८७ उद्दिट्ठा [दे० उद्दिष्टा] ओ० १२०,१६२. उदगमच्छ [उदकमत्स्य ] जी० ३१६२६,८४१ रा०६९८,७५२.७८६. जी० ३१७२३,७२९ उदगमाल [उदकमाल ] जी० ३७६२ उद्देसिय [औद्देशिक ] ओ० १३४ उदगरस [उदकरस ] रा०२३३. जी. ३१२८६, उद्धसणा [उद्धर्षणा] रा० ७६६ ८१६,८५४,६५६,६५७,६६४ उद्धसित्तए [उद्धर्षितुम् ] रा० ७६६ उदगवारग [उदकवारक] जी० ३.११८ उद्धं मत [उद्धमत् ] जी० ३७३१ उदग्ग [ उदग्र] जी० ३१८३६ उद्धम्ममाण [उद्हन्यमान ] ओ० ४६ उदधि उदधि] जी० ३।१०६,५६७ उद्घायमाण [उद्धावत् ] ओ० ४६ उदय [उदय] ओ० ३७,११६,११७ उद्धार [उद्धार] जी० ३१९७३ उवय [उदक ] ओ० ६,१११ से ११३,११७,१३७, । उद्धारसमय [उद्धारसमय ] जी० ३।६७३ १३८, रा०६,२८०,२८२,२६१,३५१. उद्धारसागरोवम [ उद्धारसागरोपम] जी० ३।६७३ जी० ३१३२४,४४६,४४८,७२६,८६०,८६६, उद्धिय [उद्धृत ] ओ० १४. रा० ६७१ ८७२,८७८,६४६,६५५,६५७,६६१ उड्य [उद्भूत ] ओ० २,५५,६४. रा० ६,१२३२, उदयपत्त उदयप्राप्त] ओ० ३७ ५०,५२.५६,१३२,१३७,२३१,२३६,२४७, उदर [उदर जी० ३।५६६ | २८१. जी० ३१८६,१७६,१७६,१८०,१८२, उदहि [उदधि] मो० ४८ ३०२,३०७,३७२,३६३,३६८,४४५,४४७, उदि [उद्+इ]- उदेति. जी० ३।१७६ उदीण उदीर्चन] रा० १२४. जी० ३१५७७, १०३६ उधुमंत [उद्ध्मायमान] रा०७७ उदोणवाय [उदीचीनवात] जी. ११८१ उधुव्यमाण [ उदयमान ] ओ० ६५ उदीर [उद्+ ईरय]-- उदीरइ. रा० ७७१. उद्ध्य [ उद्धृत] रा० १०,१२,५६,२७६ -उदीरेंति, जी ३६११० उन्नइय [उन्नलिक] जी० ३।११८,११६ उदीरंत [उदीरयत्] रा० ७७१ उन्नय उन्नत ] ओ० १६ जी० ३१५६७,५९८ उदीरण [उदीरण] ओ० ३७ उपप्पुय ! उपप्लुत ] जी० ३।११६ उदीरिय [उदीरित] रा० १७३,७७१. उप्पइत्ता उत्पत्य ] ओ० १६२. जी० ३.१०३८ जी० ३।२८५ उप्पण्ण [उत्पन्न ] ओ० १६६. रा० ७७१ उदु [ऋतु] जी० ३१९४१ उप्पण्णकोऊहल्ल [उत्पन्नकोतूहल्ल] ओ०८३ उद्दडग उदंडक] ओ०६४ उप्पणसंसय [ उत्पन्नसंशय ] ओ०८३ उद्दवणकर [उदवणकर] ओ० ४० उप्पण्णसङ्घ [उत्पन्नश्रद्ध] ओ० ८३ उहवेत्ता उद्त्य] रा०७६१ उप्पतित्ता [उत्पत्य जी० ३।२५७ ४५१ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उप्पत्ति-उराल उपपत्ति [ उत्पत्ति ] ओ० १८४ उत्पत्तिया [ औत्पत्तिकी ] रा० ६७५ / उपव [ उत् + पत् ] – उप्पयंति रा० २८१. जी० ३।४४७ उप्पल [ उत्पल ] ओ० १२,२२,१५० २१० २३, १३१, १४७, १४८, १७४, १६७,२७६ से २८१, २८८,२८६, ७२३,७७७,७७८,७८८. जी० ३।११८, ११६, २५६, २६६, २६६, २६१, ३०१, ४४५, ४४७, ४५४, ४५५, ५६८, ६३७, ६५६, ६६४, ७३८,७४३, ७५०, ७६३, ७६५, ७७५, ८४१,६३७ उप्पल गुम्म [ उपलगुल्म ] जी० ३।६६६ उपलटिय [ उपलवृतिक] ओ० १५८ उप्पला [ उपला ] जी० ३।६८६ उप्पलुमला [उत्पलोज्वला ] जी० ३१६६६ उपाहता [उत्पाद्य ] जी० ११५० उप्पाश्यपव्यय [ओत्पातिकपर्वत ] भो० ५७ / उप्पाड [ उत् + पाद्य ] — उप्पाडेंति ओ० १६६ उप्पारमय [उत्पाटना ] ओ० १०३,१२६ उपातपव्वत [ उत्पात पर्वतक] जी० ३१९४८ उत्पातपव्यय [ उत्पात पर्वत ] जी० ३१८५७ उप्पाद [ उत्पाद ] जी० ३१९१७ उपाय [उत्पाद] जी० ३।१२६/१० उप्पायनिवायपसत [ उत्पादनिपातप्रसक्त ] रा० १११, २०१. जी० ३१४४७ उपायपव्वत [ उत्पात पर्वत] जी० ३,२६३ उपायपव्यय [ उत्पात पर्वत ] रा० १५१. जी० ३।२६२,८५७ उपायपव्यय [ उत्पात पर्वतक ] रा० १५० उप [ उपरि ] ओ० १६८. रा० २१. जी० ३३५० उप्पलभूत [ उत्पिञ्जलभूत ] रा० ७८६ उप्पीस [ उत् + पीड् ] - उप्पोलेति. जी० ३१७६५ उपपीलिय [ उत्पीडित ] ओ० ५७. रा० ६६,६६४, ६८३. जी० ३५६२ उफेस [ दे० ] ओ० ६१ √ उब्भाम [ उद् + भ्रामय् ] - उन्मामेइ. रा० ७२७ उभिज्जमाण [ उद्भिद्यमान] जी० ३१२८३ उभओ [उमतस् ] ओ० ६६,११५. रा० १३१ से १३८,२४५, २५६.२७६. जी० ३।३०१ से ३०७,३१५, ३५५,४०७, ४१७, ६३२, ६३६, ७८८ से ७६०, ८३६ ५८३ उभय [ उभय ] जी० ३४४५ उभयओ [ उभयतस् ] जी० ३१८८६ उम्मब्जग [ उन्मज्जक] ओ० ६४ उम्माण [ उन्मान ] मो० १५,१४३. रा० ६७२, ६७३,८०१ उम्मि [ऊर्मि ] रा० ६८७ उम्मिलित [ उन्मीलित ] जी० ३१३०७ उम्मिलिय [ उन्मीलित ] ओ० २२. रा० १३७, ७२३, ७७७,७७८, ७८८ उम्मसि [ उन्मिषित ] जी० ३।११८,११६ मुवक [ उन्मुक्त ] ओ० १६५/२० रा० ८०६ ८१० उयगरस [ उदकरस] रा० १७४ उपर [ उदर] ओ० १६ [उरस्] ओ० ७१. रा० ६१,७६ उरग [ उरग] जी० ३८८ उरगपरिसप्प [ उरगपरिसर्प ] जी० २।११३ उरत्य [ उरःस्थ ] जी० ३।५६३ उरपरिसप्प [ उरः परिसर्प ] जी० १।१०४,१०५, १११,१२२ से १२४; २।२४,१२२; ३१४३, १४४,१६२ उरपरिसप्पी [ उर: परिसर्पिणी] जी० २२७, ८, ५२ उरम्भ [ उरन ] रा० २४, २७. जी० २१२७७, २८० उरस [ ओरस्य ] रा० १२,७५८, ७५६. जी० ३१११५ उराल [ दे० उदार] रा० ४०, ७८, १३२,१७३, ७५३ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८४ उल्ल [ आर्द्र ] रा० ७५३ √ उल्लंघ [ उत् + लङ्घ. ] - उल्लंघेज्ज ओ० १८० उलंघण [उल्लङ्घन | ओ० ४० + उल्साल [ उत् + लालय् ] -- उल्लालेति. रा० १४ उल्लालिथ [ उल्लालित ] रा० १४ उल्लालेमाण [ उल्लालयत् ] रा० १३ उल्लिहिय [ उल्लिखित ] ओ० १५ रा० ६७२ उलोइय [ दे० ] ओ० २,५५. रा० ३२,२८१. जी० ३१३७२, ४४७ उल्लोग [उल्लोक ] जी० ३३५५८८८ उल्लीय [ उल्लोक ] रा० ३४,६६,१३०,१६४, १८६,२०४ से २०७, २१३, २१६, २६७, २५१, २६०. जी० ३३००, ३०८, ३३७, ३५६, ३५६, ३६४.३६८ से ३७१,३७४, ३६६, ४१२, ४२१. ४२६,६३४,६४८, ६७३, ९०४ उet [ उपचित ] मो० १६. जी० ३।५९६ उबउक्त [ उपयुक्त ] ओ० १५२ से १८४, १९५।११. रा० १५. जी० ११३२,८७,१३२,१३३; ३।१०६,१५४,१११०; ६/३६,३७ एस [ उपदेश ] ओ० ५७. ० ७४८ से ७५०, ७६५,७६६,७७०,७७३ उवएसरुइ [ उपदेशरुचि ] ओ० ४३ ओग [ उपयोग] ओ० ४६. जी० ११४,९६, १०१,११६,१२८, १३३.१३६; ३११२७ ४, १६० : १६६ उबकरण [ उपकरण] ओ० ३३ उवकरणत्त [ उपकरणत्व ] जी० ३।११२८, ११३० उवकारियलयण [ उपकारिकालयन ] रा० १८६ √ उवक्खड | उप | स्कृ] – उवक्वडावेस्संति. रा० ८०२ उवक्खड [ उपस्कृत ] जी० ३१५६२ उवक्खडावेत्ता | उपस्कृत्य ] रा० ७८७ उबग [ उपग] जी० ३१८३८२१ उगत [ उपगत ] रा० ७६० जी० ३।११६.३०३ जवगय | उपगत | ओ० ६३, ७४१५, १६५/१३. उल्ल- वणिविट्ट रा० १२, १३३,६८६,७३२, ७३३,७३७,७५८, ७५६, ७६१,७६५. जी० ३ ११८ उवगरण [ उपकरण ] ओ० ३३. रा० ७५६,७६१ उवगाइज्जसाण [ उपगीयमान ] रा० ६८५,७१०, ८०४ उबगारियालयण [ उपकारिकालयत | रा० १८८. जी० ३।३६१ से ३६४ उब गिज्जमाण [ उपगीयमान | रा० ७७४ उमगूढ [ उपगूढ़ ] रा० ७६, १७३. जी० ३२२८५ उवहिज्जमाण | उपगूह्यमान ] रा० ८०४ उवचय [ उपचय ] २१० ७५२,७५३ उचित [ उपचित] जी० ३।२५६ उवचिय [ उपचित] ओ० २,१६,५५. रा० २०, ३२,३७,१३०,१७४,२८१. जी० ३ ११८ ११६,२८६,२८८,३००, ३११,३७२, ४४७, ५६६ उच्छक [ उपस्तृत ] रा० ७७४ उबजुंजिकण [ उपयुज्य | जी० ३१७७ उवज्झाय [ उपाध्याय ] ओ० ४०, १५५ उवज्झायवेयावच्च | उपाध्यायवैयावृत्य ] ओ० ४१ √ उबट्ठव [ उप + स्थापय् ] - उबटूवेइ. रा० ७२५ ----उववेंति. रा० २७९. जी० ३।४४५ उद्ववेत्ता [ उपस्थाप्य ] ओ० ५८. रा० ६८१ उवट्टाणसाला [उपस्थानशाला ] ओ० १८, २०, ५३, ५५,५८,६२,६३. रा० ६८३,६८५,७०८, ७५४,७५६,७६२,७६४ उद्वाविय | उपस्थापित | ओ० ६२ उवट्ठिय [ उपस्थित | ओ० ७६,७७ उवणगरमगाम [ उपनगर म | ओ० १६, २० उवणच्चिज्जमाण | उपनृत्यमः न ] रा० ७१०,७७४, ८०४ उवणिय [ उपनिर्गत ] ओ० ५,८ / उवणिमंत उप + निमन्त्रय् ] उवणिमंतिज्जाह रा० ७०६ - उवणिमतिस्संति. रा० ७०४—उवाणमंतेज्या रा० ७७६. उवणमंत ओ० १४६. ० ८१० उवणिविट्ठ | उपनिविष्ट | रा० १३८. जी० ३२८८ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवणी-उववण्णपुव √ उवणी [ उप + ती ] --उवणेइ. रा० ६८३ -- उवर्णेति रा० २८७. जी० ३:४५० - जवणेहि रा० ६८० उवणेहिइ. रा० ८०७ उवणेहिति ओ० १४५. रा० ८०५ --- वहिति ओ० १४६ जवणीत [ उपनीत ] जी० ३१८८६ उaणीय [ उपनीत ] रा० ७२०, ७२३. जी० ३५६२,६०१ उवणीयअवगीयचरय [ उपनीतअपनी तरच रक ] ओ० ३४ उवणीयचरय | उपनीतचरक] ओ० ३४ उवणेय [ उपनेय ] रा० ७२० / उववंस [ उप + दर्शय् ] -- उवदंसिस्सामि रा० ७७१ – उवदंति रा० ७६. जी० ३३४४७ -- अवदसे. रा० ७३ उबवंसितए | उदर्शयितुम् | रा० ६३ उवयंसत्ता [ उपद] रा० ७३ उबवं सेमाण [ उपदर्शयत् ] रा० ५६ उवदिट्ठ [ उपदिष्ट ] ओ० ४६ उद्दव [ उपद्रव ] जी० ३।६२४ उवनचिचज्जमाण | उपनृत्यमान ] रा० ६८५ उवनिमंत [ उप + निमन्त्रय् ] उवनिमंति रा० ७१३ उवनिविट्ठ [ उपनिविष्ट ] रा० २० उवप्पयाण | उपप्रदान ] रा० ६७५ उभोगपरिभोगपरिमाण | उपभोगपरिभोग परिमाण ] ओ० ७७ उवमा [ उपमा ] ओ० १३,२३,१६५/१६. रा० १५६,७५२, ७५४,७५६, ७५८, ७६०,७६२, ७६४. जी० ३१२७,२३२ उमा [दे०] खाद्य विशेष जी० ३१६०१ उवयार | उपचार ] अं० २,१५,५५ २० १२,३२, ७०,२८१,२६१,२६३ से २६६,३००,३०५, ३१२,३५४,६७२,८०६,८१० जी० ३७२, ४४७, ४५७ से ४६२, ४६५. ४७०, ४७७, ५१६, ५२०,५५४,५८०, ५६१,५६७ उदयारियालयण [ उपकारिकालयन | २१० २०३ saurरियाले [ उपकारिकालयन ] रा० २०१, २०२ उवरि [ उपरि ] रा० १३०. जी० ३ २६४ [उपरि ] ओ० १२. रा० ३७. जी० ३।७७ safter | उपरिचर ] जी० ३।११७ उरिम | उपरितन | ० १६० जी० ३७१,७२, ३१७, ३४६,३५७ ८५ उवरिमगेविज्ज [ उपरितनवे | जी० २२६६ उवरिमगेवेज्ज [ उपरितनबेय ] जी० २ १४८, १४९ उवरिमगेवेज्जग | उपरितनग्रैवेयक ] जी० ३ १०५६ वरिल्ल [ उपरितन ] मो० १६२,१६५. जी० ३।६० से ७०,७२,६७४,७२५,७२८,१००३ से १००७,११११ √ उवलंभ [ उप + लभ् ] -- उबल भेज्जा. जी० ३१११८ --- उवल भिस्साम. रा० ७६८ जल | उपलब्ध ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२,७८६ उवला लज्जमाण | उपलाल्यमान ७१०,७७४,८०४ उप [ उप + लिप् । उदलिप्पड़, ओ० १५०. रा० ८११ - उवलिप्पि हिति. ओ० १५०८११ उवलित [ उपलिप्त ] ० ५५, ६० से ६२. रा० २८१,५०२. जी० ३।४४७ रा० ६८५, उबलेवण [ उपलेपन ] रा० ७७२ उववज्ज [ उप + पद् । उववज्जइ, ओ० ८७ -- उववज्र्ज्जति. ओ० ७३. जी० १.५१ -- उववज्जिहिति ओ० १४० - - उववज्जिहिंसि रा० ७५० उबवण्ण [ उपपन्न | ओ० ११७. रा० २७९,७५० से ७५३,७६६. जी० ३५३, ११७,१२६ / ५, ४३६, ४४०, ४४५, ८३८ २१, ५४३, ८४६ | उपन्न | रा० २७६ से २७८,२८४, २८७,६६६. जी० ३।४४३ से ४४५, ८४२, ८८४५ ववणपुष्व | उपपन्नपूर्व ] जी० ३।५३,६७५, Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपवस्तु-विग्ग उवसमिता [उपशम्य] रा.१२ उबसामिता [उपशाम्य] रा०१२ उबसोभित [उपशोभित] जी० ३।२६५,३०२, ११२८,११३० उववत्त [उपपत्तु] ओ०७२,८६ से १५,११४, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७ उववन्नपुष्य [उपपन्नपूर्व ] जी० ३।१२७ उववात [उपपात] जी० १।१२८, ३१८८,८४४, ८४७,८५६,८८०,६४६,१०८२ उववातसभा [उपपातसभा] रा० २७४. जी० २४३६ जय । उपपात] ओ० ८६ से १५,११४,११७, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० ५१५. जी० १३१४,५१,५६,६५.७६,८२,८७,६६, १०१,११६,१३३,१३६, ३।१२७३,१२६६, उपवायसभा [उपपातसभा] रा०२६०,२६२, २६६,२७७,४१४ से ४१६,४३५,४५३,४५४, ७६६. जी० ३१४२१,४२४,४२५,४४३,५२६ से ५३१ उपविणिगय [उपविनिर्गत] जी० ३।२७४ उविस [उप+विश्]--उवविसइ. रा०७४८ ___--उवविसामि. रा. ७४७ उदयेत [उपपेत] जी० ३।६०१,६०२,८६०,८६६, ८७२,८७८ उववेय [उपपेत] ओ० १,१५,१४३. रा० ६६,७०, १७३,६७२,६७३,६७५,८०१. जी. ३.२८५, ५८६ से ५६६ उपसंत [उपशान्त] ओ० ६१. रा० ६,१२,२८१. जी० ३।४४७,७६५,८४१ उवसंतया [उपशान्तता] ओ० ११६ उपसंपज्जिताणं [उवसंपद्य] ओ० ३७. रा० ६६६. जी० ३१८४३ उवसगाउपसर्ग औ० ११७,१५४,१६५,१६६. रा० ७०३,७६६,५१६ उवसम [उपशम] ओ० ७६ से ८१ उवसम [उप-+शम् ] - उवसमंति रा० १२ -उवसामंति रा० १२ उपसोभिय [उपशोभित ] ओ० ६४. रा० २४,४०, ५१,१२८,१३२,१६५, १७ १,२३७. जी० ३१३०६,३५३,३५७,३६० उवसोमेमाण उपशोभमान] रा० ४०,१३२, १३५,१६१,२३६,७८२. जी० ३१२६५,३०२, ३०५,३१३,३६८,५८०,५८१ उपसोहिय [उपशोभित ] जी० ३।२७७ उपस्सय [उपायय] रा० ७१६ उवहाण [उपधान ] ओ० ३० उवहिविउस्सम्ग [उपधिव्युत्सर्ग] ओ० ४४ उवागच्छ [उप+आ+गम्[-उवागच्छइ. ओ० २०. रा० ४७. जी० ३१४५७ -उवागच्छंति. ओ० ५२. रा० १०. जी० ३.४४२-उवागच्छति रा० १४. जी० ३४४३--उवागच्छामि. रा०७५४ उवागच्छित्ता | उपागम्य ओ० २०. रा० १०. जी० ३।४४२ उवागय [उपागत ] ओ० १६,२० उवाय [उपाय ] ओ० १८२ उवायण [उपायन] रा०७२०,७२३ Vउवालंभ | उप+आ-- लभ्]-उवालम्भइ. रा० ७६७ उवालभित्ता [आलभ्य रा० ७६७ उवासमदसाधर [उपासकदशाधर] ओ० ४५ उिये उप+६]-उवेइ ओ० ११८.--उति. ओ०७४. जी. ३६०३ उभ्वट्टणा [उद्वर्तना] जी० ११६६; ३११२१,१२७। ५,१५६; ६३११३ उन्पट्टित्ता [उद्वर्त्य ] जी० १२५४ उव्वट्टिय [उद्वृत्त ] जी० ३।११८,११६,१२१ उव्वलण [उद्वलन] ओ० ६३ उम्विग्ग [उद्विग्न ] ओ० ४६. जी. ३१२१६ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उम्बिद्ध-ऊसास ५८७ उविध [ उद्विद्ध] ओ० १ उसिय [ उत्सृत] रा० १३२. जी० ३।२०२ उन्वेग उद्वेग] जी० ३।६२८ उसोर [उशीर] रा० ३०. जी० ३१२८३ उब्वेष [उद्वेध ] जी० ३१७३६,७६४,६००,६०१, उसु [दषु] रा० ७५६. जी० ३१६३१ ६१०,६११ उस्सण [दे०] बाहुल्यत: ओ० ८७. जी० ३१९६४ उन्वेह [उद्वेष रा० २२७,२३१,२३३,२३६,२४७, उत्सप्पिणी [ उत्सर्पिणी] जी० १.१३६,१४०; २६२. जी. ३,३८६,३६३ ३६५,४०१,४२५, २८८,१२० ; ३।६०,१६५,८४१,१०८५, ५८, ६३२,६३६,६४२,६५३,६६१,६७२.६७६, ६,२३,२६६।२३,४०,६७,२५७ ६८३,६८६,७२३,७२६,७८८,७६४,७६५, उस्सप्पिय | उत्सपित जी० ३१५८६ ८३६,८८२,६१८ उस्सविय [उच्छित] रा० ७५० से ७५३ उसड्ड [उत्सृत] रा० १८० उस्सास [उच्छ्वास] ओ० १५४,१६५,१६६. स० उसड्डय उत्सृतक] रा० १८१ ७७२,८१६. जी० ३३१२८ उसस्त उत्सत] ओ०२,५५. रा० ३२,२८१,२६१, उस्सासत्त उच्छ्वासत्व जी० ३।१०६९ २९४,२६६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० उस्सिय [उच्छित ] जी० ३RE ३१३७२,४४७,४५६,४६१,४६२,४६५,४७०, उस्सुय उत्सुक] ओ० ५१ ४७७,५१६,५२० उस्सेष [उत्सेध] जी० ३१६७६,७८६,७६५,८९६ उसभ [ऋषभ, वृषभ] ओ० १३,१६,५१. रा० १७° उस्तेह [उत्सेध ] ओ० १३,८२. रा० ६,१२,१३०, १८,२०,३२,३७,१२६,१४१,१६२. जी० २२५.२५४,२७६. जी० ३१३००,३८४,४१५, २२७७,२८८,३००३११,३१८,३७२,५६३, ४४२,७८६,७६४ ५६५ से ५६७ उसभकंठ [ऋषभकष्ठ रा० १५५,२५८. जी. ऊण [ऊन ] रा० १८८. जी० २०५७,६१,७३, ३.५, ३१३२८ ३४,३६,४१,४३,४४,५६७, ४१६:५७,२८; उसभकंठग ऋषभकण्ठक जी०३.४१६ ७३,५,६,१०,१२,१५,१७,६२ से ४,४०,५१, उसभज्मय [ऋषभध्वज | १० १६२. जी० ३।३३५ १७१,२३४,२३६,२३८,२४३,२६६,२७१, उसभनाराय [ऋषभनाराच] जी० ११११६ २७३,२७६,२८१ उसभमंडलपविभत्ति | ऋपभमण्डलप्रविभक्ति | रा० ऊणग [ऊनक] जी० २३०,३१,५८ से ६०,१३६; ३१२१८,६२६ उसमा [ऋषभा] रा० २२५. जी० ३६३८४,८६६ ऊणय [ऊनक ! ओ० ३३. जी० २१३२ से ३४ उसिण [ उष्ण] जा० श५, २२२,११२ से ११५, कणिया ऊनिका] ओ० १६५१६ ११६ करु [ऊरु ओ० १६. रा० १२,२५४,७५८,७५६. उसिणभूत [उष्णीभूत] जी० ३।११६ जी० ३३११८,४१५,५६६ से ५१८ उसिणभूय [उप्णीभूत ] जी० ३।११६ ऊरुजाल ] ऊरुजाल | जी० ३३५६३ उसिणवेदणा [ उष्णवेदना] जी० ३।११२,११४, । ऊसड | उत्सृत | जी० ३१२६२ ऊसविय [उच्छित ] मो०६७ उसिनवेदणिज्ज [ उष्णवेदनीय] जी ३.११८ ऊसास [उच्छ्वास ] ओ० ११७. रा० ७६६. उसिमोदय उष्णोदक] जी० ११६५ ३११२७१३ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८८ ऊसासत्त-एगत्त ४५५ ऊसासत्ता | उच्छ्वासता] जी० ३।६७ एक्केक्क [एकेक] जी० ३१६६७ ऊसित | उच्छित जी० ३१२१८,३०७,३५५,६३४, एक्शेक्कय एकक | जी० ३१८३८।४ ६४२,७५४,७६२,७६८.७७०,७७२.१००८ एक्कोणवीसति | एकोनविंशति ] जी० ३.५७७ ऊसितोदग | उच्छ्रितोदक] जी० ३.७८३,७८४ एक्कोदक [एको दक] जी० ३.७६५ ऊसिय उिच्छित ] अ.० ४६,५५,६४,१६२. एक्कोदगएकोदक | जी० ३७६५ र।० ५०,५२,५६,१३७,१८६,२०४ से २०६, एग एक ओ० १६. २४० ३. जी० ११० २०८,२८१,७७४,७८६. जी०३३५९,३६४, एगडय एकक] ओ० २३.४५,५२.७८.८६.१४०, ३६८ से ३७१,४४७,५९७,५६८,६५३,६७३, १५६,१६५,१६६, रा० १६,१७४,२८१,६८७, ७५४,७६२,७६६ ६८६. जी० १९६,११६, ३१८६,१०४,४४७, ऋग्छज्य [ ऋ क्षध्वज ] र:० १६२. जी० ३३५ एगओ एकतस् ] रा०८४,१७३ एमओखह [एकत:खह] रा० ८४ एइय [एजित] रा० १७३. जी० ३१२८५ एगओचक्कवाल [एकतश्चक्रवाल] रा० ८४ एऊणपण्ण एकोनपञ्चाशत् ] जी० ३।८३२ एगओवंक (एकतोवक्र] रा० ८४ एक [एक ] जी० १.७२ एगंत एकान्त ] ओ० ११७. रा० ६,१२,१५, एकत्त [एकत्व ] जी० ३।११० एकत्तीस एकत्रिंशत् जी० ३.६३४ एगंतवंड एकान्तदण्ड] मो०८४,८५,८७ एकाणउति [एकनव त] जी० ३.८१२ एगंतबाल एकान्तबाल ] ओ० ८४,८५,८७ एकावलि [एकादलि] जी० ३१४५१ एगंतसुत्त एकान्तसुप्त] ०८४,८५,८७ एकासीइ [एकाशीति] जी० ३१७०६ एगखुर | क त्रुर] जी० १११०३,१२१:२१६ एकासोति [एकःशःति | जी० ३ ७६४ एगगुण एक गुण जी० ११३५,३७,४० एकाह [एकाह) जी० ३ १७६,१७८,१८०,१८२ एगाग | एक रा० १५ एकूणवीसतिकोनविंशति । जी० ३.५७७ एगच्च एकाचं] ओ० ७२,१६७ एकोवग |एकोदक) जी० ३७९५ एगच्चाओ एकस्मात् ] ओ० १६१ एक्क [एक] ओ० ३. रा०४. जी. २।४८ एगजायजातओ० २७. रा ८१३ एक्कतीस |एकत्रिंशत् ] ओ० ३३. रा०२०७. एगजीव । एकजीव | जी० ११७२ जी० ३६१ एगजोविय एकजीविक] जी. ११७२ एक्कवीस [एकविंशति ] जी० ३१७३६ एगट्ट । एष्टि ] जी० ३१७६८ एक्कार एकादशन् ] जी० ३ १००२ एगट्टिय एकास्थिक जी० १७०,७१ एक्कारस एकादशन्। रा० १७३. जी० ३१२८५ एगतिय कक] रा० १७४,१८५,२८१,२८६, एक्कारसम [एकादश] ओ० १४४. रा०८०२ २६०,६८,६५६. जी० ११३३, ३.८६, एक्कारसमासपरियाय [एकादशमासपर्याय) १०८,१५६,१७८.१८०,१८२,२८६,२६७, ओ०२३ ४४७,५७५,५७६,७१९,७२०,८०६,८०७, एक्कासीत [एकाशीति ] जी० ३१६३२ ८५७,१०८० एक्कासीय [एकाशीति ] जी० ३.२२६।४ एगतो [एकतस् ] रा० २७६. जी० ३।२८५,४४५ एक्किक्किय [एकैकक] 1० ८२ एगत्त एकत्व | जी० ३.११०,१११५,१११६ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगत्तवियक्क-एमेव ५८१ एगत्तवियक्क [एकत्ववितर्क ] ओ० ४३ एगुरुइया [एकोरुकिका] जी० २०१२ एगत्ताणुप्पेहा [एकत्यानुप्रेक्षा) ओ० ४३ ।। एगूरुय | एक क] जी० ३।२१६ से २२२,२२७ एगत्तिभावकरण [एकत्वीभावकण, ओ० ६६,७० एगूरुयदीव [एकोषकद्वीप जी० ३।२२२,२२७ एगत्तीभावकरण एकत्तीधावकरण | रा० ७७८ एगोणचत्तालीस | एकोनचत्वाशित् ] जी० ३७६६ एगदंत [एकदन्त | जी० ३१५९६ एगोणवीस एकोनविंशति ] जी० ३११०५३ एगदिसा | एकदिशा] रा०६८८ एगोदग एषोदक] जी० ३१७६५ एगपवेसिय कप्रादेशिक] जी० ३१७२३,७२६ । एगोरुय [एको रुक जी० ३२१६,२१७,२२६ एगभूय [एक भूत् ! रा० ११६ एगोरुयदीव (कोरुक द्वीव ] जी० ३.२१७,२१८ एगमेग एकेक | रा० १२६,१६२ से १६४,१६१. एज्जमाण [एजमान] रा० ४०,१२३,१३२. जी० ३.१०६,२६५,३५४,३५५,६३२,६६१, जी० ३।२६५ ७२३,७२६,६०१,१०००,१०२३ "एड [इल,एड्] ....एडेइ. रा० ७६५-एडेंति. एगराइया [एक रात्रिकी ओ०२४ रा० १२.. एडे. रा०६ एगसट्टि [एकपष्टि] जी० ३।११० एडित्ता [एलित्वा,एडित्वा ओ० ११७. रा० १२ एकसायि [एकसाटिक | अ ० २१,५४,६६. एडेत्ता [एलिवा,एडित्वा! रा०६ रा० ८,७१४,७७८ एणी एणी] i० १६. जी० ३१५९६ एगसालग [ एकशालक] जी० ३१५६४ एतारूव एतद्रूप] जी० ३१२७८ से २८२,२८४, एगसिद्ध एकसिद्ध | जी० ११८ २८५,३८७,४४२,८६०,८६६,८७२,८७८ एगागार | एकाकार जी० १२१०६,११६ : ३८ से एत्तो [इतस् ! ओ० ३३. ० २६. जी० ३।८४ चोरी ११,२१३,६५४ एत्थ [अत्र] ओ० १३. रा० ३. जी० ३१७७ एगाभिमुह [ "काभिमुख रा० ६८८ एमहज्जुईय | इयन्महद्युतिक न० ६६६ एगावलि एकाबलि ] ओ० २४,१०८,१३१. एमहज्जुतीय श्यामद्युतिक] जी० ३१५६५ रा० ६६,२८५. जी० ३१५६३ एमहब्बल (इयन्महाबल | २० ६६६. एगावलिपविभत्ति [एकाननिविभक्ति रा. ८५ जो० ३१५६५ एगासीइ [एकाशीति | जी० ३७०६ एमहाणुभाग | बन्नहानुभाग स० ६६६. एगाह । एकाह | जी० ३१८६,११८,११६ जी० ३१५६५,६४० एगाहच्च [एकाहत्य | रा० ७५१,७६७ एमहायस यन्महायशस् रा०६६६. एगाहिय एकाहिक जी० ३१६२८ जी० ३१५६५ एगिदिया एकेन्द्रिय | जी० १५५, २।१०१,१०२, एमहालत सन्म त् जी० ३१६,१७६,१७८ ११०,१११,१२०,१२६,१३६,१३८,१४६,१४६, एमहालय यन्महत् । ०७३२,७३७. ३।१३० से १३५,१११५, ४१ से ३, ५ से जी० ३।१८२,१०८० ७,१०,११,१६,१६ से २२,२५, ६।२ से ७, एमहासोक्ख यन्म हासौख्य रा० ६६६. १६७,१६६,२२१,२२२,२२८,२३१ जी० ३१५६५ एएणयाल | एकोनचत्वारिंशत् जी० ३७६४ एगणपण्ण एकोनपञ्चाशत् । रा० ७१ एमहिडियमहधिक जी० ३।६३८ जी० १०८ एमहिड्डीय विन्मधिक १० ६६६. जी० ३१५६५, एगणवीस | एकोनविंशति ] जी० ३।१०५३ ५६८,७०१,७६४ एगणासीति | एकोनाशीति] जी० १२१८ एमेव [एवमेव] जी० ३।२२६ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एम्महिड्डीय [इयन्महधिक] जी० ३।६६४ एय [एतत् ] ओ० २१. रा०६३. जी. १११ एय [ए]--एयइ. रा० ७७१-एयंति. जी० ३७२६ एयंत एजमान] रा० ७७१ एयरव एतद्रूप] रा०६३,६५ एवारूव एतद्रूप] ओ० ३०,६२,१४४,१५८, १५६. रा० ६,१९,२०,२५ से ३१,३७,४५, १३५,१४६,१७३,१७५,१६०,२२८,२४५, २५४,२७०,२७५,२७६,६८८,७३२,७३७, ७३८,७४६,७५१,७६८,७७७,७६१,७६३, ८१६. जी० ३१८४,८५,११८,२६४,२७८ से २८३,२८५,२८७,३०५,३११,३२२,४०७, ४१५,४३५,४४१,५६७,६०१,६०२,६४३,६५४ एरणवत [ऐरण्यवत] जी० २।१४५ एरण्णवय [ऐरण्यवत] रा० २७६. जी० २६१३, ३१,५८,७०,७२ एरवत [ऐरवत] जी० रा६६,१३६,१४७,१४६ एरवय [ऐरवत] रा० २७६. जी० २०१४,२८, ५५,७०,७२,११५,१२३; ३१२२६,४४५,७६५ एरावणदह [ऐरावणद्रह] जी० ३१६६७ एरिस [ई दृश] ओ० ७६ से ८१ एरिसग [ईदृशक] जी० ३।१०६ एल [एड] जी० ३।६१८ एला [एला] रा० ३०,१६१,२५८,२७६. जी० ३१२८३,३३४,४१६ एलिगा | एडिका जी० ३१६१६ एलुय [एलुक] रा० १३०. जी०३१३०० एव [एव] रा० १० एवइय [एतावत् ] जी० ३११८२,८३८।२,३ एवं | एवम् | ओ० २०. रा०८. जी० ११० एवंभूत | एवंभूत ! जी० ३।२८५ एवतिय (एतावत् ] जी० ३१७६,१७८,१८०, १७२,६७३ एवमेव [एवमेव रा० ७०३. जी० ३.१७४ एम्महिड्डीय-ओमित्ता एवामेव [एवमेव] ओ० १५०. रा० १२. जी० ३.११८ एसणासमिय [एषणासमित] ओ० २७,१५२,१६४. रा० ८१३ एसणिज्ज एषणीय] ओ० ३७,१२०,१६२. रा०६६८,७५२,७७६,७८६ एसुहुम [ इयत्सूक्ष्म ] जी० ३।६९३,९९७ ओ ओइम [अवतीर्ण] ओ० ५१ ओगाढ [अवगाढ] रा० ६८४,६८५,७००,७०६. जी०१३३, ४२,४३,५०, ३१२२ योगाह [अव+गाह.]--ओगाहइ. जी० ३।११८-ओगाहति. जी. ३११९ –ओगाहेंति. ओ० ११७ मोगाहणा [अवगाहना] ओ० १९५४ से ८. रा०७६६. जी० १११४,१६,७४,८६,८८, ९०,६४,१०३,१११,११२,११६,११६,१२१, १२३ से १२५,१३०,१३५, ३३९१,२३६, ४३९,६६९,१०८७,१०८६ ओगाहित्तए [अवगाहितुम् ] ओ० ६६ मोगाहित्ता [अवगाह्य ] ओ० ११७. जी० ३७७ ओगाहेत्ता [अवगाह्य ] ओ० ११७. रा० २४० ओपिहित्ता [अवगृह्य ] ओ० २१. रा. ८ ओग्गह | अवग्रह] ओ० २१,२२,५२. रा०८,६, ६८६,६८७६८६,७०६,७११,७१३ ओरिगह [अव+ग्रह.]--ओरिगण्हइ. रा०६८६ ओघ [ओघ] रा० १३,१४ ओचूल [अवचूल ] ओ० ५७ ओच्छण्ण [अवच्छन्न ] ओ०६ ओच्छन्न [अवच्छन्न ओ० ६. जी० ३१२७५ ओ? [ओष्ठ] ओ० १६,४७. रा० २५४. जी० ३१४१५,५६६,५९७,८६० ओछिपणग [ओष्ठछिन्नक] ओ०१० ओणम [अव+ नम्] -ओणमंति. रा० ७५ ओमित्ता [अवनम्य] रा० ७५ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ औणय-ओहस्सर मोणय [ अवनत ] मो० ७० areer [ अवस्तृक ] ओ० ६३,६५ ओवन [ओदन] जी० ३५६२ / ओधार [ अव + धारय् ] -- ओधारेंति. रा० ७१३ / ओभास [ अव + भास् ] — ओभाइ. जी० ३१३२७ - ओभासेइ. रा० ७७२ -- ओभासेति. रा० १५४. जी० ३।३२७ -- ओभासेति. रा० १५४. जी० ३।७४१ ओभासमान [ अवभासमान ] जी० ३।२५६ ओभिज्जमाण [ उद्भिद्यमान ] रा० ३० ओमत्त [ अवमत्व [ रा० ७६२,७६३ / ओमुय [ अव + मुच् ] - ओमुयइ. ओ० २१. रा० ७१४ ओमुत्ता [ अवमुच्य ] ओ० २ ओमोदरिया [ अवमोदरिका ] ओ० ३३ ओमोरिया [raमोरिका ] ओ० ३१ ओयंसि [ ओजस्विन् ] ओ० २५. रा० ६८६ ओविय [ दे० ] ओ० १६,४७. रा० ३७,२४५. जी० ३।३११,४०७, ५६६ ओराल [ दे० उदार ] ओ० ८२. रा० ३०,१३२, १३५,१७३, २३६, ६८६. जी० ११७५,८३, १३६, ३१२६५, २८३, २८५,३०२,३०५, ७२६,७८५, ७८६८४१ ओरालिय [ औदारिक ] ओ० १८२. जी० १११५, ५६,६४,७४,७६,८२,८५,१०१,११६,१२८, १३० ओरालियमोसासरीर | औदारि मिश्र कशरीर ] ओ० १७६ ओरालियसरीर | औदारिकशरीर ] ओ० १७६ ओरालियसरि [ औदारिकश रोरित् ] जी० ६ १७०,१७१,१७६, १८१ ओरोह [ अवरोध ] ओ० १ ओलंबियग [ अवलम्बितक ] ओ० ६० ओलित [ दे० उपलिप्त ] ओ० ५२. रा० ६८७ से ६८६ ओवइय [ दे० ] जी० १८८ ओaff [ ओपनिधिक, औपतिहितिक ] ओ० ३४ ओम् [ औपम्य ] ओ० १६५/१७. जी० ३।१२७१५ / ओवय [ अब + पत्] - ओवयंति रा० २८१. जी० ३१४४७ ५६६ ओवयमाण [ अवपतत् ] रा० ५६ ओवहिय [ औपधिक ] ओ० १६१, १६३ ओवासंतर [ अवकाशान्तर ] जी० ३ १३,१६,२१, २६,२७,३०,३२,६५,६७, १७६, १७८, १८०, १८२,१०६२ से १०६४ ओविय [ दे० ] परिकर्मित ओ० ६३. रा० १७, १८,६६,७० जी० ३।५६३ / ओवील [ अव + पोड् ] - ओवीलेति. जी० ३१७६५ ओस [ दे० अवश्याय ] जी० १२६५ ओसच्णकारण [ अवसन्नकारण] जी० ११५०,६५, १३६ ओसण्णग [ अवसन्नक] ओ० २० ओसण्णदोस [ उत्सन्नदोष ] ओ० ४३ ओसप्पिणी [ अवसर्पिणी ] जी० १११३६,१४०; २१२० ३६०,१६५, ८४१, १०८५ ५८, ६,२३, २६, ६ २३,४०,६७,२५७ / ओसर [ अप + सृ] - ओसरति, रा० २६२. जी० ३।४५७ ओसरिता [अपसृत्य | रा० २६२. जी० ३०४५७ ओसह [ ओषध ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२,७८६ ओसहि ओषधि | रा० १५२, २७६,२८०. जी० ११६६; ३।३२५,४४५,४४६,४४८ ओसारिय [ अवसारित ] ओ० ५७ महबल [ ओघवल ] ओ० ७१. रा० ६१ ओह | उपहत, अवहूत ] ओ० १४. रा० ६७१, ७६५ ओहस्सर [ओधस्वर] रा० १३५. जी० ३३३०५, ५६८ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यूहर ओहाडणी [ दे० अवघाटनी ] रा० १३०, १६०. जी० ३।२६४,३०० ओहि [ अवधि ] जी० ३ १०७, ११११ ओहि - ओह | ओघ ] रा० ६, १२ ओहिणाण [ अवधिज्ञान ] ओ० ४० रा० ७३६, ७४३,७४६ afa | अवधिज्ञानलब्धि | ओ० ११६ ओहिणाणविनय | अवधिज्ञान विनय ] ओ० ४० ओहिणाणि [ अवधिज्ञानिन् ] ओ० २४. जी० ११११६,१३३, ६ १६१, १६५, १६६, १६७, १६६,२०४,२०८ ओहिदंसण [ अवधिदर्शनिन् ] जी० ११२६, ६६; १३१,१३४,१३८, १४० ओहिनाणि | अवधिज्ञानिन् ] जी० १।६६; ६६१५ ओहि [ औधिक ] जी० २२५१ ५१२४, २६.३० ओहीनाण [ अवधिज्ञान ] जी० ३।११११ 5 क [क] रा० १५ कह [ कति ] ओ० १७३. १० ७६६,७७६. जी० १११५, २१ से २३,२६,२७,६४, ३७६, १६६ से १७१,७४८, ८०६ कइसमय | कतिसामयिक ] ओ० १७४ कओ | कुतस् ] जी० ११५१ ३३१५५१०८२ कंक [ कङ्क ] जी० ३१५६८ कंकड [ कङ्कट ] ओ० ६४. रा० १७३,६८१. जी० ३१२८५ / कंख | काङ्क्ष | कखइ. रा० ७१३ कंखति. ओ० २०.० ७१३ कंखिय | काङ्क्षित ] रा० ७७४ कंचण [काञ्चन] ओ० २६,६४. रा० ३२, १५६, २२. जी० ३ ३३२,३७२, ४५७, ४८७,५८६, ५६३,५६७ कंचनकोसी [काञ्चनकोशी ] ओ० ६४ कंचनग [ काञ्चनक ] जी० ३३६६१,६६२,६६४, ६६६ ओहाडणी-कंदणया कंचणमय [ काञ्चनमय ] जी० ३।६६१ कंचणिया [ काञ्चनिका ] ओ० ११७ कंचि [ किञ्चित् ] आं० ११६,११७. २१० ७६५ कंची [ काञ्ची ] जी० ३।५६३ कंचु | कञ्चुकिन् ] रा० ६८८ से ६६०,८०४ केचुइज्ज | कञ्चुकीय ] आं० ७० कंय | कचुक ] ० ६६,७० कंटक [ कटक ] जी० ३१६६२ कंटय [ कण्टक] ओ० १४. रा० ६७१. जी० ३३८५,६२२ कंठ [ कण्ठ ] ओ० ७१. रा० ६१,६९,७६ कंठमुरवि | दे० कण्ठमुरवी ] ओ० १०८,१३१. रा० २८५ कंठसुत्त [ कण्ठसूत्र ] जी० ३.५६३ कंठेगुण [ कण्ठगुण] रा० १३१,१४७, १४८,२८०. जी० ३१३०१,४४६ कंठेमाकड [कृतकण्ठेमाल ] ओ० ५२. रा० ६८७ से ६८६ कंड [ काण्ड ] रा० ६६४. जी० ३।६, ७, ९, १०, १६, १७,२४,२५,६० से ६३, ५६२ कंड [ काण्डक] रा० ७५८,७५६ कंड [ काण्डक] १० ७५८, ७५६ कंडु [ कण्डु ] ओ० ६ कंड [कन्दु ] जी० ३।७८ कंत [कान्त ] ओ० १५,४६,६८,११७१४३. रा० १७,१८, ६७२,६७३, ७५० से ७५३, ७७४, ७९६,८०१. जी० १४१३५; ३ ॥ ५६७, ८७२,१०६०,१०६६ कंततराय [कान्ततरक ] रा० २५ से ३१,४५. जी० ३।२७८ से २८४,६०१ कंतारभत्त [ कान्तारभक्त ] ओ० १३४ कंतारभयग | कान्तारभृतक ] ओ० १० कंति [ कान्ति ] ओ० २३,६६.७१. रा० ६१ कंद [ कन्द ] ओ० ६४, १३५. रा० २२८. जी० ११७१३।३८७, ६४३, ६७२ jarer [न्दन] ओ० ४३ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कंदप्प- कडुच्छु कंद [ कन्दर्प ] ओ० ४६ af [ कादपि ] ओ० ६४, १५ कंदमंत [कन्दवत् ] ओ० ५,८,१०. जी० ३।२७४, ३८६,५८१ कंदरा [ कन्दरा ] रा० ८०४ कंदाहार [कन्दाहार] आं० १४ कंबिय [ क्रन्दित ] ओ० ४६, ४६ कंसोलिय [कन्दुक्त्र] ओ० ६४ कंपि [कम्पित] ० १७३. जी० ३१२८५ कंपिल्लपुर | काम्पिल्यपुर] आं० ११५, ११८ कंपेमाण [ कम्पमान ] ओ० ५२ कंबल [ कम्बल ] ओ० १२०,१६२. रा० २७, ६१८, ७५२,७५२,७८६. जी० ३१२८०, ५६५ far [म्बका ] रा० २७० जी० ३१४३५ कं [ कम्बु ] ओ० १६. जी० ३३५६६,५६७ कंबोय [ कम्बोज ] रा० ७२०,७२३ कंस [ कांस्य ] जी० ३।६०८ कंसताल [कांस्यताल ] रा० ७७. जी० ३३५८८ सपाई [कांस्यपात्री ] ओ० २७ रा० ८१३ कंसलोह [पाय ] [ कांस्यलोहपात्र ] ओ० १०५, १२८ लोह [ बंधण ] [ कांस्यलोहबन्धन ] ओ० १०६, १२६ · ककारणकारगका रघका रङकारपविभत्ति [ ककारखकारगकारका रङकारप्रविभक्ति ] रा० ६५ ककारविभत्ति [ककारप्रविभक्ति ] रा० १५ reet [ कर्करी] जी० ३।५८७ कक्कस [ कर्कश ] रा० ७६५. जी० ३ ११० कक्कोड [ कर्कोट ] जी० ३।७५० कक्कोडग [कर्कोटक ] ३१७५० कक्कोड [ कर्कोटक ] जी० ३।७४८ से ७५० कक्ख [ कक्ष ] ओ० ६२ जी० ३५६७ कक्खड [ काखट ] जी० ११५,३६,४०, ५०, ३१२२ कच्छ [ कक्ष ] ओ० ५७. जी० ३६३७ कच्छभ [ कच्छप ] रा० १७४. जी० ११६६, ११८; ३।११८, ११६,२८६, ६६५ कच्छभी [ कच्छपी ] रा० ७७. जी० ३१५८८ कच्छु [कच्छू ] जी० ३ । ६२८ ५६३ √ कज्ज [ कृ ] -- कज्जति. ओ० १६१ कज्ज [ कार्य ] रा० ६७५. जी० ३ २३६,१११५ कज्जल | कज्जल | ओ० १६. रा० २५. जी० ३।२७८, ५६५,५६६ कज्जलंगी [ कज्जलाङ्गी ) ओ० १३ कज्जलप्पभा [ कज्जलप्रभा ] जी० ३।६८७ कज्जहेउ ! कार्यहेतु] ओ० ४० कट्टु [ कृत्वा ] ओ० २० रा० ८. जी० ३।८६ कट्ट [काष्ठ ] ० ६, १२,७६५ कटुसेज्जा [काष्ठशय्या ] ओ० १५४,१६५,१६६ कटुसोल्लिय [ काष्ठपक्व ] ओ० ६४ कड [कृत ] ओ० ७४१६ रा० १८५, १८७,८१५ जी० ३०२१७, २६७, २६८, ३५८ कडंब [कडम्ब ] रा० ७७ कडक्ल [ कटाक्ष ] रा० १३३. जी० ३/३०३ कडग [कटक] ओ २१,४७,५४,६३,७२. २०८, ६६,७०,२८५,७१४. जी० ३।४५१,५६३ कडगच्छेज्ज [ कटकच्छेद्य ] ओ० १४६. रा० ८०६ कच्छाय [कटच्छाय ] ओ० ४. रा० १७०,७०३. जी० ३।२७३ कच्छु [ दे० ] रा० ७५३ कड [ कटक ] ओ० १०८,१३१. रा० ८. जी० ३।४५७ काह [ कटाह ] जी० ३७८ कडि [ कटि ] ओ० १६,६४. जी० ३१५६६ कडिय [ कटित ] ओ० ४. रा० १७०,७०३. जी० ३।२७३ ast [ कटिसूत्र ] ओ० ५२,६३ १०८, १३१. रा० ६८७,६८६ far [ कटिसूत्रक ] रा० २८५ hist [ कटिसूत्रक ] रा० ६८८ कच्छुग [ दे० ] जी० ३३६०८ कच्छु [ दे० ] रा० २५८, २७६, २८१,२६०, Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ कडुय-कतिविध ६७६ २६२. जी० ३।४१६,४४५,४४७,४५६,४५७, कागवेहण [कर्णवेधन ] रा०८०३ कणिका [कणिका] जी० ३।३३२ कडुय [कटक] ओ० ४०. रा० ७६५. जी० ११५; कणिया [कणिका] ओ० १७०. रा० १५६. ३१२२,११०,७२१,८६०,६५५ जी० ३।६४३ से ६४५,६५४ से ६५६ कड्डिजमाण [कृष्यमान ] रा०५६ कणियार [कणिकार] जी० ३१८७२ कठिण [कठिन ] ओ० ४६,६४ कण्ह [कृष्ण ] ओ०६६. जी० ३।२७८,३४८ कढिय क्वथित] जी० ३१५६२,६०१ कण्हकंद [कृष्णकन्द] जी० २७३ कणइर कणवीर] जी० ३३५६७ कण्हकेसर कृष्णकेसर जी० ३१२७८ कणइरगुम्म [कणवीरगुल्म ] जी० ३।५८० कण्हपरिवाया [कृष्णपरिव्राजक] ओ०६६ कणग [कनक] ओ० १९,२३,५०,६३,६४,८२. कण्हबंधुजीव [कृष्णबन्धुजीव] जी० ३।२७८ रा० २८,३२,६६,७०,१२६,१३०,१३७,१७३, कण्हमत्तिया [कृष्णमृत्तिका] जी० ११५८ २१०,२१२,२८५,६८१,६६५. जो० ३१२८१, कण्हराई कृष्णराजी, कृष्णराज्ञी जी० ३११९ २८५,३००,३०७,३५४,३७२,३७३,४५१, कण्हलेस [कृष्णले श्य] जी० ६।१८६,१६३ ५८६,५६३,५६६,५६७.६४७,७४७,८६६, कण्हलेसा [कृष्णलेश्या] जी० २१३३; ३।१५० ८८५,९३६ . कम्हलेस्स [कृष्णले श्य] जी० ६.१८५,१६६ कणगजाल [कनकजाल] रा० १६१. जी० ३।२६५ कण्हलेस्सा [कृष्णलेश्या] जी० १२१ कणगजालग [कनकजालक] जी० ३।५६३ कण्हसप्प [कृष्णसर्प] जी० ॥२७८ कणगत्तयरत्ताभ [कनकत्वग्रक्ताभ] कण्हासोय [कृष्णाशोक] जी० ३।२७८ जी० ३.१०६३ कत [कृत] जी० ३१५६१ कणगप्पम [कनकप्रभ] जी० ३१८६६ कसमाल [कृतमाल] जी० ३१५८२ कणगमय [कनकमय] जी० ३४१५,६४३,६४४, कतर [कतर] जी० २०६८ से ७२,६५,६६,१३४ से १३८,१४१ से १४६; ३।११३८, २५२, कणगामय [ कनकमय] रा० २५४. जी. ३।३५२, ५६, ७२०, ६।२५३,२८६ से २६१,२६३ ४१५,६३२,६४३,६५४,६५५,७३६ कति कति रा० ७६७. जी० १३१६,२०,५६, कणगावलि [कनकावलि] ओ० २४,१०८,१३१. ५६,६२,७४,७६,८२,८५, ६०,६३,१०१,११६, जी० ३४५१ १२८,१३०,१३४; ३१७७,६८,१०८,१५०, कणगावलिपविभत्ति [कनकावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ १५७,१६०,१६५,१६७,१७२ से १७४,२३५ कणिया {क्वणिता] जी० ३१५८८ से २३७,२४१,२४२,२४५,२४६,२४६,२५४, कण्ण [कर्ण] रा० १५,४०,१३२,१३५,१७३. २५५,२५८,२६६.७०३,७०७,७२२,७३३ से जी० ३।२६५,२८५,३०५ ७३५,७४६,७६६,८०६,८१३,८२०,२४, कण्णछिण्णग [कर्णछिन्नक] ओ०६० ८३७,८५१,८५५,६६३ से ६६६,१०१५, कण्णपाउरण [कर्णप्रावरण] जी० ३।२१६ १०१७,१०२३.१०२६,१०४०,१०४१,१०४४, कग्णपोट [कर्णपीठ] ओ० ४७,७२ १०७५,११०१,१११२ कण्णपूर [कर्णपूर] ओ० ५७,१०६,१३२ कतिक्त्तो [कतिकृत्वस्] जी० ३१७३० कण्णवाली [कर्णवाली] जी० ३१५६३ कतिविष कतिविध] जी० ३१६ से ११,३७,३८, कग्णवेयणा [कर्णवेदना] जी० ३१६२८ १४७,१६१.१८५, ६३१, ५१३७ ८६६ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कतिविह-कम्मभूमिया १६५ कतिहि कितिविध] जी० ३।१८३,६७६,६७७; । कप्पोवग [कल्पोपग] ओ०७२ ११३८,३६,५३ से ५५ कम्बल [कबंट] ओ० ६८,८६ से ६३,६५,६६, कतो कुतस् ] जी० ३८८ १५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. रा० ६६७ कत्तिया [कृत्तिका] जी० ३।६३७ कम [क्रम] जी० ३१७७८,८३८:१४ कत्थ [कुत्र] ओ० १६५११ कमंडलु [कमण्डलु] जी० ३।५६७ कत्थ [कथ्य रा० १७३. जी० ३१२८५ कमल [कमल] ओ० २१,२२,५४. रा० ८,१३१, कत्थई [कुत्रचित् ] ओ० २८ १४७,१४८,१७४,२८०,७१४,७२३,७७७,७७८, कत्थुलगुम्भ [कस्तुलगुल्म] जी० ३।५८० ७५८. जी० ३.११८,११६,२८६,३२१,४४६, कदंब [कदम्ब] जी० ३३५८३ ४४८,५९७ कद्दम [कर्दम जी० ३१७५१ कमलागर [कमलाकर ओ० २२. रा० ७७७, कद्दमय [कर्दमक] जी० ३१७४८ ७७८,७८८ कदमोदय [कर्दमोदक ] ओ० १११ से ११३,१३७, कम्म [कर्मन् ] ओ० २६,४६,७१ से ७४१५,७६ से १३८ ८१,८६,११६,१५६,१६७,१७१,१८२,१८४, कपिहसिय [कपिहसित] जी० ३८४१ १९५२०. रा० १८५,१८७,७५०,७५१,७७१, ७७२. जी० २.७३,६७,१३९ ३३१२६६, रुप्प [कल्प] ओ० २९,६५,६५,६७,११४,११७, २१७,२६७,२६८ १४०,१५५,१५७ से १५६,१६२,१६०. कम्मंत [दे० कर्मान्त ] ओ०१६१,१६३ रा० ७,१२,५६,१२४,२७६,७६६. कम्मंस [कर्माश मो० १७१,१८२ जी० २।१६,४६,६६,१४८,१४६; ३१७७५, ८४२,८४५,६३७,१०३६,१०५७ से १०५६, कम्मकर [कर्मकर] ओ०६४ कम्मग [कर्मक] जी० ६।१७६ १०६२,१०६५,१०६७,१०७१,१०७३,१०७७ कम्मगसरीर [कर्मकशरीर] ओ० १७६ से १०८३,१०८५ से १०८७,१०६०,१०६१, कम्मगसरीरि किमकशरीरिन् ] जी०६।१७०,१७४ १०६३,१०९७ से १०६६,११०१,११०५, कम्मठिति कर्मस्थिति] जी० २।७३,६७,१३६ ११०७,११०६ से १११२,१११४,१११५, कम्मणिसेम [कर्मनिषेक] जी० २।१३६ १११७,१११६,११२१,११२२,११२४,११२८ कम्मणिसेय [कर्मनिषेक ] जी० २७३,९७ कप्प कृप] - कप्पइ. ओ० ९९.--कप्पंति. ओ० कम्मपति [कर्मप्रकृति] ओ० १६८ ६३. -कप्पेज्जा. रा० ७७६ कम्मभूमक [कर्मभूमक] जी० २।०६,१३२ कप्पणा [कल्पना] ओ० ५७ कम्मभूमग [कर्मभूमक] जी० १:१५६; २०१४,२८, कप्परक्ख [कल्परूक्ष ओ० ६३ २६,७७,८५,६६,१०६,११५.१२३,१३८,१४७, कप्परक्खग [कल्परूक्षक] रा० २८५ १४६३.२१२,२२६,८३६ कप्परक्सय [कल्परूक्षक] रा० ३४५१ कम्मभूमय [कर्मभूमज] जी० २२७ कप्पिय कल्पित] ओ० ५२,६२,६३. रा०६८७ कम्मभूमि [कर्मभूमि] जी० २।१३७ से ६८१ कम्मभूमिग [कर्मभूमिज] जी० १७०,७२,१३८, कप्पूर [कर्पूर] रा० ३०. जी० ३।२८३ १४७,१४६ कप्पेमाण [कल्पमान] ओ०६१ से १३,१६१,१६३. कम्मभूमिय [कर्मभूमिज] जी० १०१०१ रा० ६७१,७५२ कम्मभूमिया [कर्मभूमिजा] जी० २१११,१४,५५, Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ ७०, ७२, १४७, १४६ कम्मय [ कर्मक] जी० १११५, ५६, ६४, ७४, ७६, ८, २ ५,६३,१०१,११६,१२८, १३०,१३५ कम्मया [ कर्मजा ] रा० ६७५ कम्मविस्सा | कर्म] ओ० ४४ कम्मसरीर [कर्मशरीर] ओर १७६. जी० ३।१२६६ कम्मसरीरि [ कर्मशरीरिन् ] जी० ६।१८१ कम्मार [ दे० | जी० ३ ११८,११६ कम्मारय | दे० ] जी० ३३६१० कम्हा [ कस्मात् ] ओ० १७१. रा० ७०३. जी० ३।७२३ कय [कृत ] ओ० २,२०,५२, ५३, ५७,६२,६३,७०, ६२. १० १५,१३१, १४७, १४८५, २८०, ६८३, ६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००,७१०,७१६, ७२३,७२६,७५१,७५३, ७६५, ७७४,७६४, ८०२,८०५. जी० ३१३०१,४४६ कय [ कच ] ओळ ६३. रा० १२,२६१,२६३ से २६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३३४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, ५१६,५२०,५५४ कब [ कदम्ब ] जी० ३३३८८ कयपडिकिरिया | कृतप्रतिक्रिया ] ओ० ४० कयर [ कतर ] ओ० १८५ से १८० रा० ६६७. जी ० १ १४३, ३ | १००७, १०२०,१०२१, १०३७४११६,२२,२५,५१६,२०,२६, २७, ३२ से ३६,६०; ७/२२, २३, ६७, १४,५५, २५० से २५२,२५५, २६२ कलिधरग [ कदलीगृह ] रा० १८२,१८३. जी० ३।२६४ कली [कदली ] जी० ३।५६७ कयवर | कचवर ] जी० ३१६२२ कया [ कदr] जी० ३२७२ sars [ कदाचित् ] ओ० ११६. ० ६८०. जी० ३१५६ कयाई [ कदाचित् ] रा० ७५४ कम्मय-करयल कथाति [ कदाचित् ] रा० २०० काrि [ कदापि कदाचित् ] जी० ३।७०२ कर | कर ] ओ० १५. जी० ३१५८६, ५६७ / कर [ कृ] - करावेति रा० ७७४- करिस्सइ रा० ७७१- करिस्सति रा० ८०३ करिस्सामि रा० ७८७. करिस्सामो ओ० ५२. रा० ६८७. - करेइ. ओ० २१. रा० ५६. जी० ३।४६१. - करेंति. ओ० ४७. रा० १०. जी० ११२७ करेज्ज. जी० ३१६६७. करेज्जा. ओ० १८०, ग० १२. करेति. रा० ८. जी० ३।४४३. करेमि रा० ७६४. करेस्संति.रा० ८०२. करेह. रा० ६ - करेहि. ओ० ५५. ० ६६५. - करेहिति. ओ० १४४. -- करेहिति ओ० १५४. रा० ८१६. कारवेति रा० १२. कारवेह. रा० ६. कारवेहि ओ० ५५. काहिति ओ० १४४. - कीर. ओ० १५४. रा० ७६७ करंड [करण्डक ] ओ० ११७. रा० ७६६ करकंट | करकण्ट | ओ० ६६ करग [करक ] जी० ३१५८७ करड [वरट ] रा० ७७ करडी [करटी ] जी० ३।५८८ करण | करण ] ओ० १६, २५.४६, ६३, १४४, १४५, १६१, १६३. २० ७६, १७३,६८६,८०२,८०३, ८०५. जी० ३२८५,५६६,८५४ करणओ [करणतस् ] ओ० १४५. रा० ८०६,८०७ करणया | करणता ] ओ० १७१ करणिज्ज | करणीय] रा० ११,५६,२७५,२७६. जी० ३।४४१, ४४२ करतल [ करतल ] रा० २४. जी० ३।२७७, ४४५, ४४६,४४८, ४५८ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७, ५१६,५२०,५५४, ५५५ करभरवित्ति [करभरवृत्ति ] रा० ६७१,७०३, ७१८, ७५०, ७५१ कर [ करक ] जी० १६५ करयल [ करतल] ओ० १५, २०, २१, ५३, ५४,५६, Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करवत-कवल ५६७ ६२,११७. रा० ८,१०,१२,१४,१८,४६,७२ कलायरिय (कलाचार्य ] ओ० १४५ से १४७. रा. ७४,११८,२७६,२७६,२८०,२८२,२६१ से ७७६,८०५ से ८०८ २६६,३००,३०५,३१२,३५५,६५५,६७२, कसाव [कलाप] ओ० २,५५. रा० ३२,१३२, ६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, २३५,२८१,२६१,२६४,२६६,३००,३०५,३१२, ७२३,७६५,७७०,७७१,७६६. जी० ३।४४३ ३५५,६६४. जी० ३।३०२,३७२,३६७,४४७, ४५७ ४५६,४६१,४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०, ५६३,५६३ करवत करपत्र] जी० ३१११० कलिंग [कलिङ्ग] जी० ३१५६५ करित्तए [कर्तुम् ] ओ०१०३ करिय [कृत्वा] रा० २९२. जी० ३।४५७ कलिकलुस [कलिकलुष] रा० ७५०,७५१ कलित [कलित] जी० ३।३७२,४४७,४५७,४५६, करेत्ता [कृत्वा] ओ० २१. स० ६. जी० ३।४४३ ४६०,५६४,५६५ करेमाण[कुर्वाण] ओ० ५२,६४,६४,११६,१५६. कलित्त [कटित्र] ओ० १३ रा०६८७,६८८. जी, ३१४४३,४४५,८४२, कलिय [कलित ] ओ ० १,२,१५,४६,५५ से ५७, २४५,६१७: ६२,६५. रा० १२,१७,१८,२०,३२,५२,५६, करोडिया [करोटिका] ओ० ११७ १२६,१३७,२३१,२४७,२८१,२६१,२६३ से करोडो करोटी] जी. ३१५८७ २६६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३१२८८, कलंक [कलङ्क] जी० ३१५६५ ३००,३०७,३७२,३६३,४५८,४६०,४६२, कलंकलीभाव [कलङ्कलीभाव] ओ० १६५ ४६५,४७०,४७७,५१६,५५०,५५४,५८०, कलंब कदम्ब ओ. ६,१० कलंबचीरियापत्त [कदम्बचीरिकापत्र जी०.३॥८५. ५६,५६७ कलुस [कलुष] बो० ४६ कलंबुय [कदम्बक ] जी० ३१८३८१२,१५,८४२ . कलकल कलकल] ओ० ५२. रा० ६८७,६५८. ___ कलेवर कलेवर] रा० १६०. जी० ३।२६४ कल्लकल्य] ओ०२२. रा० ७२३,७७७,७७८, जी० ३१८४२,८४५ ७८८ कलफलेंत [कलकलायमान] ओ० ४६ कलण [कलन] ओ० ४६ कल्लाण [कल्याण ] ओ० २,५२,७१,१३६. रा०६, १०,५८,१८५,१८७,२४०,२७६,६८७,७०४, कलमसालि [कलमशालि] जी० ३१५६२ ७१६,७७६. जी. ३२१७,२९७,२६८,३५८, कलस कलश ओ० २,१२,६४. रा० २१,४६, २७६,२८०,२६१. जी० ३२८६,४४५,४४६, ४०२,४४२,५७६,६०२ ४४८,५८७,५६७ कल्लाणग [कल्याणक] बो० ४७,६३,७२. जी. कलसिया [कल शिका] रा० ७७ १५६५ कलह कलह ] ओ० ४६,७१,११७,१६१,१६३। कल्लोल [कल्लोल] ओ० ४६ रा० ७६६. जी० ३।६२७ कवइय [कवचिक ] ओ० ५७ कलहंस कलहंस] ओ०६. जी. ३१२७५ कवड [कपट] रा० ६७१ फलहविवेग कलहविवेक ओ०७१ : कवय [कवच ] ओ० १६५२०. रा०६६४,६८३. कला [कला] ओ० १४६.१४८,१४६. रा० ८०६, जी०.३१५६२ ८०७.5०६,६१० कवल [कवल ] ओ० ३३ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९८ कवाड-काय कदार [कपाट] ओ० १,१७४. रा० १३.. जी० काइय [कायिक] ओ०६६ ३१३०० काउं [कृत्वा ओ० १३७ कविट्ठ [कपित्थ] जी० ११७२ काउंबरीय [काकोदुम्बरिका] जी० १७२ कवियच्छू [कपिकच्छू] जी० ३८५ काउलेस कापोतलेश्य ] जी०६१६३ कबिल [कपिल] ओ० ६. जी० ३।२७५ काउलेसा कापोतलेश्या] जी० ६८,६६ कविसीसग [कपिशीर्षक] ओ० १. रा० १२८. काउलेस्स [कापोतलेश्य ] जी० ६१८५,१८८,१६६ जी० ३३३५३ काउलेस्सा [कापोतलेश्या] जी० १२२१ कविसीसय [कपिशीर्षक] रा० १२८. जी० ३।३५३ काऊ [कापोती] जी० ३१७७ कविहसिय [कपिहसित जी० ३३६२६ काकणिलक्खण काकिणीलक्षण] ओ० १४६ कवेल्लुयावाय [कवेल्लुकापाक] जी० २११८ कागणिलक्षण [काकिणीलक्षण] रा०८०६ कवोत [कपोत] जी० ३३५६८ कामणिमंसक्खावियग [काकिणीमांसवादितका कवोल [कपाल ] ओ० १६. रा० २५४. ओ०१० कागण [कानन] रा० ६५४,६५५. जी० ३१५५४ जी० ३।४१५,५६६,५६७ कसाय [कषाय ] ओ० ४४,४६. जी. ११५,१४, कापिसायण [कापिशायन] जी० ३१८६० १६,८६,६६,१०१,११६,१२८,१३६, ३१२२; काम [काम] ओ० १५,४३,१४६,१५०,१६८. रा० ६७२,६८५,७१०,७५१,७५३,७७४,७६१, ८११. जी० ३।१७६,११२४ कसायपरिसलीगया [कषायप्रतिसंलीनता] ओ० ३६ कामकंत [कामकान्त] जी० ३।१७६ कसायविउस्सग्ग (कषायव्युत्सर्ग] ओ० ४४ कामकूर कामकूट] जी० ३११७६' कसायसमुग्धाय [कषायसमुद्घात] जी० ११२३, कामगम [कामकम] ओ० ४६,५१ ८५,३।१०८,१११२,१११३ कामगामि कामकामिन् जी० ३३५६८,६०६ कसिण [कृष्ण] ओ० १६,४७. जी० ३१५६६,५६७ काममय [कामध्वज ] जी० ३।१७६ कसिण [कृत्सन] ओ० १५३,१६५,१६६. कामस्थिय [कामार्थिक ] ओ०६८ रा० ८१४ कामप्पा [कामप्रभ] जी० ३३१७९ कह {कथय् ]--कर्हति. ओ० ४५-- कहेइ. कामरय [कामरजस् ] ओ० १५०. रा० ८११ रा०६६३ कामरूवारि कामरूपधारिन्] ओ० ४६ कहं [कथम् ] ओ० ११८. रा०७०३. कामलेस्स | कामलेश्य] जी० ३३१७६ जी० ३१२११ कामवग्ण कामवर्ण] जी० ३११७६ कहकहभूत कहकहभूत ] रा० ७८ कामसिंग कामशृङ्ग] जी० ३३१७६ कहग [कथक ] ओ० १,२ कामसिट्ट [कामशिष्ट ] जी० ३३१७६ कहमपेच्छा [कथकप्रेक्षा] ओ० १०२, १२५. कामावत [कामावर्त] जी० ३३१७९ जी० ३६१६ कामुत्तरडिसय [कामावतंसक] जी० ३११७६ कहा [कथा] ओ० २०,४५,५३. रा०७१३ काय [काय ] ओ० २४. रा० १४६,८१५. कहि [व] जी० १११२७ जी० ३१११०,१११,१७४; १।६६ कहिं [क्व, कुत्र] ओ० १४०. रा० १२२. काय [काचय]---कायावेमि रा०७५४ जी० ११५४ काय [पाय] [काचपात्र] ओ० १०५.१२५ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काय-कालमेह १६४ काय [बंधण] [काचबन्धन] ओ० १०६,१२६ ६६,७३,७६,८६,८८,६२,६७,१०७ से १०६, कायअपरित्त [कायापरीत] जी० ६७६,८० १११,११३,११४,११६,१२०,१२१,१२५, कायकिलेस [कायक्लेश] ओ० ३१,३६ १२६,१३१ से १३३,१३६,१५०; ३ १२,२२,४५, कायगुत्त [कायगुप्त ] ओ० २७,१५२,१६४. ८३.६०,६४,११७ से १२०,१५६,१८६,१६२, रा० ८१३ १६५ से १९७,२१४,२३८,२४३,२४७,२५०, कायजोग [काययोग] ओ० ३७, १७५ से १७७, २५२ से २५६,२५८,४३६,५६४,५६५५८६, १८०,१८२ ५६६,६२६,६३०,७२४,८१६,१३८ । १६,१८, कायजोगि [काययोगिन्] जी० ११३१,८७,१३३; २०,८४४,८४७,१०२७,१०४२,१०८५,१०८६, ३।१०५,१५२,११०६६।११३,११५,११८, ११३१,११३६,११३७, ४।३,५,६,१६,१७; १२० १५,८,९,२१ से २४,२८ से ३०,७।२; काय द्विति [कायस्थिति] जी० ३।११३३; ६।१२२ ८।३।४; ६।२,३,१२,२३,२५,२६,३३,४०, कायपरित्त [कायपरीत] जी० ६७६,७७,८३ ४६,५१,५२,५६.६६,७१,७३,७८,६७,१६४, कायबलिय [कायबलिक] ओ० २४ १७१,१७८,२०२,२०४,२५७ से २५६ कायम्व [कर्तव्य] रा० ७२,७०४. जी० ३.१२७; कालो [कालतस् ] ओ० २८. रा० २००. जी० १२३३,१३६,१४०:२।४८,४६,५४,५७ कायविषय [कायविनय] ओ० ४० से ६२,८२,८३, ३३२७२, ४७ से १९१८, कायसमिय [कायसमित] ओ० १६४ १,१२ से १६,२३,२६६१८७६; १०,११, कायापरित [कायापरीत] जी० ६८५ २३,२४,३१,३६ से ४८,५७५८,६८,७८,७६, कारंरक [कारण्डक] ओ० ६. जी० ३।२७५ ८९,६०,६६,६७,१०२,१०३,११४,११५,१२२, कारण कारण] रा० १६,६७५,७१६,७२०,७५२, १२२,१४२,१६० से १६३, १७१,१८६ से ७५४,७५६,७५८,७६०,७६२,७६४,७६८ १६१,१६३,१६५,१६८ से २०७,२१० से कारवाहिया कारवाहिक, कारबाधित] ओ०६८ २१२,२१४,२१६,२२२ से २२५,२२७ से कारवेत्ता [कारयित्वा] ओ० ५५. रा०६ २३०,२३३ से २३८,२४० से २४४,२४६, कारावण [कारण] ओ० १६१,१६३ २४६,२५७ से २६३,२६५,२६८ से २७३, कारेमाण [कारयत्] ओ०६८. रा० २८२,७६१. २७५ से २८२,२८४,२५५ जी० ३।३५०,४४८,५६३,६३७ कालतो [कालतस् ] जी० २१८४,११७ से १२०, १२२ से १२४,३१५६,१६३,१६४,११३३ से कारोडिय [कारोटिक] ओ०६८ ११३५:५८,१०,२२६।१६,२३,६४,७६,७७ काल [काल] आ० १,१८,२२ स २२,२७,२८,०५, कालधम्म [कालधर्म रा० ७५३ ४७ से ५१,८२,८७,८६ से ६५,११४,११७, कालपोर [दे. कालपर्वन् ] जी० ३८७८ १४०,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. कालमास [कालमास] ओ० ८७,८६ से १५,११४, रा० १,७,६३,६५,१७३,२७४,६६५.६६६, ११७,१४०,१५५.१५७ से १६०,१६२,१६७. ६६८,६७६,६८५,६८६,७५०,७५१ से ७५३, रा० ७५० से ७५३,७६६. जी. २११७, ७७१,७६६,७६८,८१५. जी० ११५,३४,३५, ५०,५२,६६, १२७,१३७ से १४२, २१२० से कालमिगपट्ट [कालमृगपट्ट] जी० ३१५६५ २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,६३,६५, कालमेह [कालमेघ ] ओ० ५७ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालय-कित्तिय कालयकालक] जी०:३१८१६. किसुथ किंशुक] ओ० २२. रा० २७.७७७,७७८, कालसंघिय [कालसन्धित] जी० ३१५८६ ७८. जी० ३३११८, २८०, ५६० कालागरु. [ कालागुरु रा०, ६,१२,३२,१३२ किच्च [कृत्य] रा० ३१, ५६ २३६,२८१,२६२. जी० ३१३०२,३७२,३६८, किच्चा [कृत्वा] ओ० ८७- रा० ६६७, ४४७,४५७ जी० ३.११७ कालागुरु [कालागुरु ] ओ० २,५५. किट्ठिया [कृष्टिका] जी० १९७३ कालाभिग्गहचरय [कालाभिग्रहचरक] ओ० ३४ । किडकर [क्रीडाकर] ओ० ६४ कालायस [कालायस] ओ०.६४. रा० १७३, किणिय [किणित] रा० ७७ ६८१. जी० ३२२८५ किण्णर [किन्नर ओ० १३, ४६. रा०.६६८, कालोद [कालोद ] जी० ३१७७५,८१० से ८१२, ७५२, ७७१, ७८६. जी. ३१२६६, २८५, ८१४,८१६,८१८ २८८, ३००, ३१८, ३७२ कालोभास [कालावभास] जी० ३८३,६४ ... कालोय | कालोद] जी० ३१७७० से ७७३,८००, किण्णरक [किन्न रकण्ठ] जी० ३।३२६ . किण्णरकंठग [किन्नरकण्ठक? जी०३१४१६ ८०३ से ८०७,८१३,८१५,८१६ से ८२१, किण्य [कथम् ] रा० ६६७ ६५६,९६४,६६५,६६७,६५० किण्ह [कृष्ण] ओ० ४, १२, १३, १६. रा० २२, कालोयय [कालोदक] जी० ३।७७२ २४, २५, १२८,१३२, १५३, १६७, १७०, कावपेच्छा [कावप्रेक्षा] जी०.३।६१६ १७८, २३५, ७०३. जी. ३१७८१, २७३, काविल [कापिल ] ओ०६६ काविसायण कापिशायन] जी० ३।५८६ २७७, २७८, २९०, २१८, ३०२, ३२६, ३५.३, ३५८, ३८२, ३९७, ५८५, ५६७, कास [काश] जी० ३१६२८ कासित्ता [काशित्वा] जी० ३।६३० ५३८:१७, १०७५ किइकम्म [ कितिकमन्] ओ० ४० किण्हकणवीर [कृष्णकणवार] रा० २५. कि [किम्] रा० ६२. जी० १०२ . जी० ३.२७८ किंकर [किङ्कर] ओ० ६४, रा० ५१ किण्हकेसर [कृष्णकेसर] रा० २५ किंकरभूत [किङ्करभूत ] जी० ३।५६२ किण्हच्छाय [कृष्णच्छाय] ओ० ४. रा. १७०, फिकरभूय [किङ्करभूत ] रा० ६६४ । -७०३. जी० ३।२७३ किचि | किञ्चित्.) ओ० १६६. रा० ६. जी० २६२ किण्हबंधुजीव { कृष्णबन्धुजीव ] रा० २५ किंचूणोमोदरिय किञ्चिदूनावमोदरिक ओ० ३३ किण्हलेस [कृष्णलेश्य] जी० ३३१०१ किण्हलेस्सा [कृष्णले श्या] जी० ३.१०१, १०२ किपागफल [किम्पाकफ़ल] ओ० २३ किंपुरिस [किम्पुरुष ] ओ० ४६, १२०, १६२... किण्हसप्प [कृष्णसर्प] रा० २५ रा० १४१, १७३, १६२, ६६८, ७५२, ७७१, किण्हासोय [कृष्णाशोक] रा० २५ ७५६. जी० ३.२६६, २८५, ३१८ किण्होभास [कृष्णावभास ] ओ० ४. रा० १७०, किंपुरिसकंछ । किम्पुरुषकण्ठ ] रा० ११५, २५८. . ७०३. जी० ३।२७३,२६८,३५८,५८५ जी० ३१३२८ कित्त [कोतम् ] -- कित्तति. रा० १८५ किपुरिसकंठग [किम्पुरुषकण्ठक] जी० ३,४१६ कित्तिय [कीति ] ओ०:२. किमय किम्मय ] जी०-३१८७, १०८१' १. अगरे, भल्लातक, अर्जुन (आप्टे) Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किन्नर-कुंभिक्क ६०१ किन्नर [किन्नर] ओ० १२०,१६२. रा० १७, कुंडधारपडिमा [कुण्डधारप्रतिमा] रा० २५७ १८, २०, ३२, ३७, १२६, १४१, १७३,१६२. जी० ३१४१८ जी० ३।३११ कुंडल [कुण्डल ] ओ० १५, २१, ४७, ४६, ५१, किन्नरकंठ [किन्नरकण्ठ ] रा० १५५, २५८ ५४, ६३, ६५, ७२, १०८, १३१. ग०८, किमंग [किमङ्ग] ओ० ५२. रा०६८७ २८५, ६७२, ७१४. जी० ३३४५१, ५६३, किमि [कृमि ] जी० ३१८४ किमिकुंभी [कृमिकुम्भी] रा० ७५६ कुंडलभद्द [कुण्डलभद्र | जी० ३१६३३ किमिय [कृमिक] जी० ३।१११ कुंडलमहाभद्द [कुण्डलमहाभद्र | जी० ३१६३३ किमिराग ] कृमिराग] रा० २७. जी० ३।२८० कुंडलमहावर [ कुण्डलमहावर] जी० ३।६३३ किर [किल ] जी० ३११२६०१ कुंडलवर कुण्डलवर जी० ३।६३३ किरण [किरण] ओ० १६. जी० ३१५६०,५९६, कुंडलवरभद्द [कुण्डलवरभद्र ] जी० ३।९३३ कुंडलवरमहाभद्द [कुण्डलवरमहाभद्र | जी० ३६३३ किरिया [क्रिया] ओ०४०,१२०,१६२. रा०६६८, कुंडलवरोभास कुण्डलवरावभास / जी०३९३३ __७५२, ७८६. जी० ३।२१०,२११ कुंडलबरोभासमहावर | कुण्डलांवरावभासमहावर किलंत [क्लान्त] जी० ३११८, ११६ __ जी० ३६३३ किलाम [क्लम] रा० ७२६, ७३१, ७३२ कंडलवरोभासवर [कुण्डलवरावभासवर | जी० ३१९३३ किलेस [क्लेश] ओ० ४६ किग्विसिय [किल्विषिक] ओ० ६८ इंडिया [कुण्डिका] ओ०.११७ किसलय [किसलय] ओ० ५, ८. रा० १३६, कुंडियालंछणय [कुण्डिकालाञ्ण क | रा०.७६७ __ जी० ३।२७४, ३०६ कुंत कुन्त | ओ०.६४. जी० ३।११० किसि कृषि] जी० ३।६०७ कुंतरंग [कुन्तान] जी० ३.८५ किसिय [कृशित ] रा० ७६०, ७६१ कुंतग्गाह [कुन्तग्राह] ओ०६४ कुंथु [कुन्थु] रा० ७७२. जी० ३,१११ कोड [क्रीड्]-कीडति जी० ३।२६८ कुंद कुन्द ओ०१६. रा०२६, ३८, १६०,२२२, कोयगड [क्रीतकृत] ओ० १३४ २५५, २५६. जी० ३:२८२,३१२,३३३, कील क्रीड्]--कोलंति रा० १८५. जी० ३३२१७ ३८१, ४१६, ४१७, ५६६, ५६७, ८६४ कोलग कोलक] रा० २४. जी० ३।२७७ कुंदगुम्म [कुन्दगुल्म] जी० ३१५८० कोलण [क्रीडन] ओ०४६ कंदलया कुन्दलता] ओ० ११. रा० १४५,३.२६८, कोलिया [कीलिका] जी० ११११६ कुंकुम [कुङ कुम] ओ० ११०, १३३. रा० ३०. कुंदलयापविभत्ति | कुन्दल ताप्रविभक्ति] रा० १०१ जी० १२८३ कुंदुरुक्क [कुन्दुरुक] ओ० २, ५५. रा० ६, १२, कुंचस्सर [ कोञ्चस्वर] रा० १३५ ३२, १३२, २३६,२८१, २६२. जी० ३१३०२, कृषिय [कुञ्चित] ओ० १६. जी० ३।५६६,५६६ ३७२, ३६८, ४४७, ४५७ कुंजर कुञ्जर] ओ० १,१३, २७. रा० १७, १८, कुंभ [कुम्भ ] जी० ३।५६७ २०, ३२, ३७, १२६, ८१३. जी० ३।११८, कुंभारावाय [कुम्भकारापाक] जी० ३१११८ ११६,२८८, ३००, ३११, ३७२ कुंभिक्क[कौम्भिक, कुम्भार] रा० ४०. जी० ३३१३ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुंभी-कुसुम कुंभी [कुम्भी] रा० ७५६ रा० १७४,१६७,२७६,२८१,२८८,८११. कुक्कुइय [कौकुचिक] ओ० ६५ जी० ३१२८२,२८६ कुक्कुड [कुक्कुट] ओ० १, ३३ कुम्म [कूर्म ] ओ० १६,२७,३७. रा० ०१५. कुक्कुडलक्षण [कुक्कुटलक्षण] ओ० १४६. जी० ३१५६६,५६७ रा०८०६ कुरा [कुरु, कुर जी० ३१५७८ से ५६६,६०५ से कुच्छि कुक्षि] ओ० १९. जी० ३१५९६ से ५६८, ६२८,६३१,६३२,६३६,६६६,६६८,७०२, ७०८ कुरु कुरु] जी० ३१७७१३ कुच्छिसूल [कुक्षिशूल] जी० ३१६२८ कुरुविंद [कुरुविन्द ] ओ० १६. जी० ३१५६६ कुज्जायगुम्म [कुब्ज रुगुल्म ] जी० ३।५८० कुल [कुल ] ओ० १४,२३,४०,१४१,१५५. कुट्टिनंत [कुट्टयमान] रा० ७७ ___ रा० ७६६. जी० ३।१६० कुट्टिमतल [कुट्टिमतल] ओ० ६३ कुलकोडि [कुलकोटि] जी० ३।१६० से १६२, कुट्ट [कुष्ठ) जी० ३।६२८ १६५ से १६६,१७१,१७४,६६६,६६८ कुडभी [कुडभी] रा० ५२,५६, २३१, २४७. फुलक्खय [कुलक्षय] जी० ३।६२६,६२८ जी० ३१३६३ कुलघररविषया [कुलगृहक्षिता] ओ० ६२ कुडय [कुटज] ओ० ६.१०. जी. ३१३८८, ५८३ । कुलणिस्सिय [कुलनिश्रित ] रा० ७७३ कुरिल {कुटिल ] ओ० १, ४६. जी० ३४५६७ कुलरोग [कुल रोग] जी० ३१६२८ कुटुंब [कुटुम्ब] रा० ६७५ कुलव [कुडव] रा० ७७२ कुड्डु [कुट्य] जी० ३१७२४, ७२७ कुलवेयावच्च [कुलवैयावृत्य] ओ० ४१ कुणाला ! कुणाला] रा० ६७६, ६७७, ६८३, ७०६ कुलसंपण्ण [कुल सम्पन्न ] ओ० २५. रा० ६८६ कणिम [दे. कुणप] ओ०७३. जी० ३।८४ कुलिम्वय [ कुटीव्रत] ओ०६६ । कुतुंब [कुस्तुम्ब रा०७७ कुवलय | कुवलय] ओ० १३. जी० ३।५६७ कुतुंबर [कुस्तुम्बर] रा० ७७ कुस [कुश | ओ०८,१०. रा०३७. जी. ३।३११, कुत्तियावण [कुत्रिकापण] ओ० २६ ३८६,५८१ से ५८३,५८६, से ५६५ कुत्तुंबक [कुस्तुम्बक] जी० ३१७८ कुसग कुशाग्र ] ओ० २३ कुमार [ कुमार] रा० ६७३, ६७४, ७६१ से ७६३ कुसल | कुशल | ओ० १५,३७,६३,६४,१२० १४८, कुमारग्गह [कुमारग्रह] जी० ३१६२८ १४६,१६२. रा० १२,७०,१७३,६७२,६८१, कमारसमण [कुमारश्रमण] रा० ६८६, ६८७, ६६८,७५२,७५८,७५६,७६५.७६६,७७०, ६८६,६६२ से ६६७, ७०० से ७०६, ७११, ७८६,८०४,८०६,८१०. जी०३।११८,२८५, ७१३,७१४, ७१६ से ७२२,७३१ से ७३३, ५८८,५६७ ७३६ से ७३६ ७४७ से ७८१, ७८७, ७६६ कुसुम कुसुम] ओ० १३,४७,४६. रा० ६,१२,२६ कुमुद कुमुद] रा० २६, ३१. जी० ३।११८, से २८,३१,२२८,२६१,२६३ से २६६,३००, ११६, २५६, २८२, २८४, ५६७ ३०५,३१२,३५५. जी. ३१२७६ से २८१, कुमुदप्पभा [कुमुदप्रभा] जी० ३१६८३ २८४,३८७,४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, कुमुदा [कुमुदा] जी० ३६६८३,६१५ ५१६,५२०,५५४,५८०,५६०,६७२ कमुय । कुमुद] [कुमुद] ओ०१२,१५०. किसुम [कुसुमय]---कुसुमंति. जी० ३१५८० Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसुमघरग केवतिय ६०३ कुसुभघरग [कुसुमगृहक रा० १५२,१८३. केकय | केकय रा० ७०६ जी० ३।२६४,८५७ केतकी [ केतकी] जी० ३१२८३ कुसुमघरय [कुसुमगृहक ] जी० ३१८५७ केतगी (केतकी १० ३० कुसुमदाम [कुसुमदामन् ] जी० ३१५६१ केयह [केकय रा० ६६८, ६६६,६८३,७११ कुसुमासव [कुसुमासव] ओ० ६. जी० ३।२७४ ।। केमहालत [किरन्महत्] जी० ३११७६,१७८,१८२ कुसुमित [कुसुमित] जी० ३।५८६ केमहालय [कियन्महत् जी० १११६,३८६ ६१, कुसुमिय [कुसुमित ओ०५,८,१०,११. ६४,१८०,२५६,७६० से ७६२,६६९,१०८०, रा० १४५. जी० ३१२६८,२७४,३६०,५८४, १०८७,१००८ ७०२,८०८,८२६ केयुय [ केतुक] जी० ३।७२३ कुहंड [कूष्माण्ड ] ओ० ४६ केयूर [केयूर] रा० २०५. जी० ३१४५१,५६३ कुहंडिया [ कूष्माण्डी] रा० २८. जी. ३१२८१ केरिसग [कीदृशक ] जो० ३।६४,१११६ कुहणा [कुहणा] जी० ११६६,७२ फेरिसय [की दृशक | रा० १७३. जी० ३८३ से ८५,६५ से कुहर [कुहर] रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ ७,१०६,११६,११८,११६,१२२, कहिय कुथित ] जी० ३१८४ १२३,१२८,२१८,२८३, से २८५,५७६,५६६. कर कट] ओ०६३. रा० १३०, १७१. ५६७,६०१,६०२,६५५,६५८,६६१,१०७७ से १०७६,१०६३,१०६७ से १०६६,१११४, जी० ३१११६,३००,६८६,६६०,६६२ से ६६८, १११७,११२१ से ११२४ ७७५,८४५,६३७ फेरिसिय (कीदृशक) जो० ३।११२२ कूडागार [कुटाकार ओ० १६. जी० ३१५६४, केलास ! कैलाश ] जी० ३।७४८,७४६,७५२,६२३ केलासा [कैलाशा जी० ३।७५२ कूडागारसाला [ कूटाकारशाला] रा० १२३,७५५, केली [ केली] ओ० ४६ ७७२,७८७,७८८ केवइ [कियत्] जी० ११४१,१४२ कूडाहच्च [कूटाहत्य] रा० ७५१,७६७ केवइय [कियत् ] ओ० ८६ से ६५,११४,११७, कूणिय [कूणिक ] ओ० १४,२०,२१,५३ से ५६, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० ६५५, ६२ से ७१,८०. रा० ७७८ ६६६. जी० ११५२; ३१७७,८१,२५९,७९८, कल [कूल ओ० ११५. रा० १७४,२७६. ८०२,८३०,१००४,१०४२,१०६२,१०६७, जी० ३।२८६,४४५,६३२,६३६,६६८ १०६९; ४१३ कूलषम्मग [कूलमायक] ओ० ६४ केवचिरं [कियच्चिरम् ] रा० २०० जी० ४७ कूवागाह [कृपग्राह] ओ० ६४ केवच्चिरं [किच्चिरम् | जी० १११३६ कूवमह [कूपमह ] जी० ३१६१५ कूवय [कूपक ] मो० ४६ केवति | कियत् ] जी० ३।६०,१६२,१६५ से १६७, केउ केतु] ओ० ६ से ८,१०,५०. रा० १६२, ५६६,६२६,११३१,११३६.११३७, ६।१२, १६३. जी० ३।२७५,२७६,३३५,३५५ केउकर [ केतुकर] ओ० १४. रा० ६७१ केवतिय [कियत्] रा० ७६८ जी० १११३७,१३८; केऊर [केयूर] ओ० २१,५४,१०८,१३१. २।२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६, रा० ८,७१४ ६३,६६,७३,७६,८६,८८,६२,६७,१०७ से Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केवल-फोक्कुइय १०६,१११,११३,११४, ११६,१२५,१२६, जी० ३।४५२ १३३,१३६,१५० ; ३१५,१२,१४ से २१,३३, केसंतकेसभूमी ( केशान्तकेशभूमी] ओ० १६. ३४,३६,४०,४२,४४,५१,६० से ६३,६६,७७, रा० २५४. जी०३.४१५,५६६ ८०,१,८६,१०७,१२०,१५६,१८६,१९२, केसर [केसर] रा०२५,३७,१७४. जी. ३१११८, २३८,२४३,२४७,२५०,२५६,५६४,५६५, ११६,२५६ २७८,२८६,३११,६४३ ५७०,७०६,७१४,७३२,७८८,७८६,७६४, केसरिबह केसन्द्रिह | जी० ३।४४५ ८१२,८१५,८२३,८२७,८३२,८३४,८३५, केसरिद्दह [केसरिद्रह] रा० २७६ ८३६,८४४,८४७,८५०,६५३,६५४,६७२, केसरिया केसरिका] ओ० ११७ ६७३,१००० से १००६,१०१०,१०२२,१०२७, केसलीय [ केशलोच ] औ० १५४,१६५,१६६. १०७३,१०८३,१०८५,११११, ४१५,१६,१७; रा० ८१६ ५१५,२१,२३,२४,२९,३०,७१२६२,४, केसव | केशव | जी० ३।१२६ २५,२६,३३,४६,५२ केसि [कैशि] रा०६८६,६८७,६८६,६६२ से केवल [केवल] ओ० १५१,१५३,१६०,१६५, ६९७,७०० से ७०६,७११,७१३,७१४,७१६ १६६. रा० ८१२,८१४. जी० ३.१०२५ से ७२२,७३१ से ७३३,७३६ से ७३६,७४७ केवलकप्प [केवलकल्प] ओ० १६६. रा० ७. से ७८१,७८७,७६६ ___ जी० ३१८६. केसि [केशिन् ] रा० १३३. जी. ३१३०३ केवलणाण [ केवलज्ञान] ओ० ४०,१६५।१२. रा० केसुयं [किंशुक | रा० ४५ कोइल [कोकिल ] ओ० ६. जी० ३।२७५,५६७ केवलणाणविणय केवल ज्ञानविनय औ० ४० कोउय [कौतुकं ] ओ० २०,५२,५३,६३,७०. केवलणाणि [ केवलज्ञानिन् ओ० २४. जी० ६।१६३, रा० ६८३,६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००, १६५,१६६,१६७,२०१,२०५,२०८ ७१६,७२६,७५१,७५३,७६५,९७४,८०२, केवलयंसणि [केवलदर्शनिनु ] जी० १।२६,८६; ८०५ ६।१३१,१३५,१३६,१४० केवलदिट्ठि [ केवलदृष्टि] ओ० १६५।१२ कोउयकारग | कौतुककारक ] ओ० १५६ केवलनाणि [ केवलज्ञानिन् ] जी० १६१३३ कोउहल्ल [कौतुहल] जी० ३।६१६ ६१५९,१६३ कोऊहल [कोतुहल ] ओ० ५२. रा० १५,१६.६८७, केवलपरियाग [ केवलपर्याय ] ओ० १६५ केवलि [ केवलिन् ] ओ० ७२,१५४,१७१,१७२.। कोंच | कौञ्च | १० २६. जा० ३।२८२ रा० ७१९,७७१,७७५,८१५,८१६. कोंचणिग्घोस | कोञ्चनिर्घोष ] ओ०७१. रा०६१ जी० २१२६, ६।३६,४१,४२,४४ से ४८,५०, कोंचस्सर क्रिोम्चस्वर) जी० ३.३०५,५६८ ५२ से ५४ कोंचासण | क्रौञ्चासन | रा० १८१,१८३. केवलिपरियाग | केवलिपर्याय ] ओ० १५४. जी० ३।२६३ रा० ५१६ कोंडलग [ कोण्डलक ओ० ६. जी. ३१२७५ केवलिसमुग्याय [ केवलिसमुद्घात ] ओ० १६८, कोकंतिय [ कोकन्तिक जी० ३।६२० १७४. जी० १११३३ कोकासित [दे० ] जी० ३१५६६ केस [केश] ओ० १३,४७,६२. रा० २८.६. कोक्कुइय [कौकुचिक ] ओ० ६४ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कौट्टण-कोह कोट्टण [ कुट्टन ] ओ० १६१,१६३ कोट्टिज्माण [ कुद्र्यमान ] रा० ३० कोट्टिमतल ( कुट्टिमतल ] रा० १३०,१७३,८०४. जी० ३१२८५,३०० कोट्टिय [कुट्टयित्वा ] जी० ३।११८, ११६ कोट्टेज्जमाण [ कुट्टधमान ] जी० ३१२०३ कोट्ठ [कोष्ठ ] रा० ३०,१६१,२५८,२७६. जी० ३१२३४, २८३, ४१६,६३७,१०७८ star [ कोष्ठक ] रा० ७११. जी० ३१५६४ nigefa [ hiroefa ] ओ० २४ कोga [ कोष्ठक ] रा० ६७८,६८६,६८७,६८६, ६६२,७००,७०६ कोट्ठागार [ कोष्ठागार ] ओ० १४,२३. रा० ६७१,६६५, ७८७,७८८,७६०, ७६१ कोद्वार [कोष्ठागार ] रा० ६७४ कोडकोडी [कोट कोटी ] जी० ३१७०३, ७२२,८०६, ८२०,८३०,८३४,८३७,८३८३३१,८५५, १००० nistratfs | कोटाकोटि ] ओ० १६२. रा० १२४ कोडाकोडी | कोटाकोटी] जी० २२७३,६७, १३६; ३७०३, ५०६, १०३८; ५२६ कोडि | कोटि ] ओ० १,१६२. रा० १२४ कोडिकोडी | कोटिकोटी ] जी० ३१००० कोडी | कोटी ] रा० ६६४. जी० ३१२३२,५६२, ५७७,६५८, ८२३,८३२,८३५,८३६, १०३८ कोडीय [ कोटीक ] रा० २३६. जी० ३१४०१ फोडुंब [ कौटुम्ब ] जी० ३।२३६ कोडुंब [ कौटुम्बिन् | जी० ३४१२६ डुंबिय | कौटुम्बिक ] ओ० १,१८,५२,६३. रा० ६८१ से ६-३, ६८७.६८८,६६०,६६१, ७०४,७०६,७१४ से ७१६,७५४,७५६, ७६२, ७६४. जी० ३।६०६ कोण | दे०कोण ] रा० १५३. जी० ३१२८५ कोणिय ] कोणिक ] आं० १५, १६,१८,२०,६२ कोत्तिय | कोत्रिक ] ओ० ६४ कोद्दालक [ कुद्दालक ] जी० ३१५८२ कोमल [ कोमल ] ओ० ५,८,१६,२२,६३ रा० ७२३,७७७,७७८,७८८. जी० ३।२७४, ५६६,५६७ कोई [ कौमुदी ] ओ० १५. ० ६७२. जी० ३१५६७ ६०५ कोयासिय [ विकसित' ] ओ० १६ कोरंट [कोरण्ट ] ओ० ६३,६४. रा० ५१,२५५ कोरंटक [ कोरण्टक ] रा० २८. जी० ३१२५१ कोरंयगुम्म [कोरण्टक गुल्म ] जी० ३२५८० कोरक [ कोरक ] जी० ३१२७५ कोरव्a [ कौरव्य ] ओ० २३. रा० ६८८. जी० ३।११७ कोरव्यपरिसा [ कौरव्यपरिषद् ] रा० ६१. कोरिल्लय [ दे० ] रा० ७५६ कोरेंट [कोरण्ट ] ओ० ६५. रा० ६८३,६६२, ७००,७१६. जी० ३१४१६ कालसुण [कोलशुनक ] जी० ३१६२० कोलाहल [कोलाहल ] ओ० ४६ कोव [कोप ] जी० ३११२८ कोस [क्रोश ] १४,२३,१७० रा० १५८,२०७, २०८, २३१,२४७,६७१, ६७४, ६६५, ७६०, ७६१. जी० ३।४३,४४,८२,२६०,३५२ से ३५५, ३५०, ३६१,३६४३६८, ३६६, ३७२,३७४, ३६३३६५, ४०१,४०२, ४१२, ४२५, ६३४, ६४२,६४४,६४६,६५३, ६५५,६६३, ६६८, ६७३,६७४,६७६, ६८३,६८५, ६६१, ७१४, ७३६,७५४,७५६,७६२,७६८ से ७७०, ७७२, ८०२,८१५,८३६,१०१२ से १०१४ कोसंब [कोशात्र ] जी० १/७१ कोसंब पल्लवविभत्ति [कोशाम्रपल्लवप्रविभक्ति ] रा० १०० कोसेज्ज [ कौशेय ] ओ० १३. जी० ३।५६५ कोह [ क्रोध ] ओ० २८,३७,४४,७१,६१,११७, ११६,१६१, १६३,१६८. २१० ७९६. जी० ३११२८, ५६८,७६५,८४१ १. हे० ४१६५ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोहंगक-खलु कोहंगक [कोभङ्गक] ओ०६ कोहकसाइ [क्रोधकधायिन् ] जी० १११३१; ६.१४८,१४६,१५२,१५५ कोहकसाय {क्रोध कषाय ] जी० १११६ कोहविवेग [ क्रोधविवेक ] ओ० ७१ ख [ख] रा० ६५ खइय [क्षायिक] रा० ७६१,८१५ खइय [खचित] जी० ३३३७२ खमोवसम [क्षयोपशम ] ओ० ११६,१५६ खंजण [खञ्जन] ओ०१३. रा० २५. जी० ३१२७८ खंड [खण्ड] जी० ३१५६२,६०१,८६६ खंडरक्स [खण्डरक्ष] ओ० १ खंडिय [खण्डिक] ओ० ६८ खंति [क्षान्ति । ओ० २५,४३. रा०६८६,८१४ संतिखम [क्षान्तिक्षम ओ० १६४ खंवग्गह [स्कन्दग्रह] जी० ३ ६२८ खंदमह [स्कन्दमह] रा०६८८. जी० ३१६१५ खंघ [स्कन्ध] ओ० ५,८,१३,१६. रा० ४,१२, २२७,२२८,७५८,७५६. जी० ११५,७१,७२, ३३२७४,३८६,३८७,५६६,६७२,६७६,७६३ खंषमंत | स्कन्धवत् ] ओ० ५,८. जी० ३.२७४ खंधावारमाण [स्कन्धावारमान] ओ० १४६. रा० ८०६ खंधि [स्कन्धिन् ] जी० ३१२७४ खंभ [स्तम्भ ] रा० १७ से २०,३२,६६,१२६, १३०,१३८,१७५,१६०,१६७,२०६,२११, २७६,२६७,३०२,३२५,३३०,३३५,३४०. जी० ३।२६४,२६६,२८७,२८८,३००,३७२, ३७४,४६२,४६७,४६०,४६५,५००,५०५, ५६७,६४६,६७३,६७४,७५६,५८४,८८७, ११२८,११३० खंभपुडन्तर [स्तम्भपुटान्तर रा० १६७. जी० ३१२६६ खंभबाहा स्तम्भबाहु] स० १६७. जी० ३१२६६ खंभसीस [स्तम्भशीर्ष ] रा० १६७. जो० ३।२६६ खकारपविभत्ति खकारप्रविभक्ति] रा० ६५ खग्ग [खड्ग] ओ० २७,५१,६६. रा० २४६,६६४, ८१३. जी० ३१५६२ खरगपाणि खड्गपाणि] रा०६६४. जी० ३१५६२ खधित [खचित ] जी० ३१४१० खचिय [खपित] रा० ३२,१६०,२५६,२८५. ___ जी० ३३३३३,४५१ खज्जूर (सार) [खर्जू रसार] जी० ३१५८६ खजूरसार खजूरसार] जी० ३।८६० खजूरिवण [खजूरीवन] जी० ३१५८१ खट्टोदय [खट्टोदक ] जी० ११६५ बडहडग [दे० ] जी० ३।२६२ खण |क्षण] रा० ११६,७५१,७५३ खत्तिय क्षत्रिय ] ओ० १४,२३,५२. रा०६७१,६८७ खत्तियपरिब्वाय क्षत्रियपरिव्राजक] ओ०६६ खत्तियपरिसा [क्षत्रियपरिषद् ] रा० ६१,७६७ खन्न | दे० } जी० ३७८१,७८२ खम क्षम] ओ० ५२. रा० २७५,२७६,६८७. जी० ३.४४१,४४२ खध क्षय रा० ७६६ खयर [खदिर] रा० ४५ खर [खर] ओ० १०१,१२४. जी० ११५७,५८%; ३६६६.६१८ खरकंड [खरकाण्ड ] जी० ३,६,७,१४,२३,२६ खरपुढवी [खरपृथ्वी ] जो० ३११८५,१९१ खरमुहिवाय [खरमुखीवादक] रा०७१ खरमही खुरमुखी | ओ० ६७. रा० १३,७१,७७, ६५७. जो० ३।४४६,५८८ खल [खल ] ओ० २८ खलवाड [खलवाट ] रा० ७८१,७८५ से ७८७ खलु खलु] ओ० ५२. रा० ६. जी० १२१ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खव-खुडाय खिव [क्षपय् ]--खवेइ ओ० १५२. खिम्जमाण [खिद्यमान] ओ० १३३. जी० ३।३०३ जी० ३०८३८।१८ खित्त [क्षिप्त जी० ३१६८६ खवयंत [क्षपयत् ] ओ० १८२ खिप्पामेव [क्षिप्रमेव] ओ० ५५. रा० ६. जी. खवेत्ता क्षियित्वा] ओ० १६८ खसर खसर] जी० ३१६२८ खिवित्ता [क्षिप्वा] जी० ३।६८८ खहयर खेचर] ओ० १५६. जो० १६८,११३, खीण [क्षीण] ओ० १६८ ११६,११७,१२५, २।२५,६६,७२,७६,८३, खीर [क्षीर] ओ० ६२,६३,. रा० २६. जी० ८७,६६,१०४,११३,१३१,१३६,१३८,१४६, ३२८२,७७५ १४६; ३.१३७,१४५ से १४७, १६१ खीरधाई [क्षीरधात्री] रा०८०४ खहयरो [खेचरी] जी० २।३,१०,५३,६९,७२, खोरपूर [क्षीरपूर] रा० २६. जी० ३।२८२ १४४,१४६ खीरवर [क्षीरवर] जी० ३८६२,८६३,८६५ खिा [खाद्-खज्जइ. रा० ७८४---खाइ. खीरासव क्षीराश्रव] ओ० २४ खीरोद [क्षीरोद] जी० ३२८६,४४५,८६५,८६६ रा० ७३२ खाइ [दे०] ओ० १६२ ८६८,६५६,६६३ खाइम [खाद्य ] ओ० ११७,१२०,१४७,१६२. खोरोदग [क्षीरोदक] जी० ३।४४५,९६३ खोरोबय [क्षीरोदक] जी० ११६५ रा० ६६८,७०४,७१६,७५२,७६५,७७६, खोरोयग [क्षीरोदक] रा० १७४,२७६ ७८७ से ७८६,७६४,७६६,८०२,८०८ ख क्षुध्] जी० ३।१२७,५६२ खाओवसमिय {क्षायोपमिक] रा० ७४३ खुज्ज [कुब्ज] जी० १६११६ खाणु स्थाणु] जी० ३६२५,६३१ खुज्जा [कुब्जा] ओ० ७०. रा० ८०४ खाम [क्षमय ]-खामेइ. रा० ७७७ खुडू क्षुद्र रा० १७४,१७५,१८०. जी. ३१२६६, खामित्तए [क्षमयितुम् ] रा० ७७७ २८७,२६२,४१०,५७६,६३७,७३८,७४३, खाय [खात] ओ०१ ७६३,८५७,८६३,८६६,८७५,८५१ खायमाण खादत् ] जी० ३।१११ खुडखड्डग [क्षुद्रक्षुद्रक] रा० १८० खार [क्षार] जी० ३३६२७,६५५ खुडखुडय [क्षुद्रक्षुद्रक] रा० १८१ खारय [क्षारक] जी० ३१७३१ खुड्डय [क्षुद्रक] रा० २४७. जी० ३।४०६ खारवत्तिय क्षारवतित ] ओ० ६० खुड्डा क्षुद्रक } रा० २४८,२४६. जी० ७११७ खारा [खारा] जी० २६ खुड्डाग [क्षुदक] ओ० २४. रा० ३५४. जी. खारोदय [क्षारोदक ] जी० ११६५ ३१५१६, ७५,६,१०,१२,१५,१६,१८६२ से खिखिणिजाल [किङ्किणीजाल] रा० १६१. जी. ४,४०,५१,१७१,२३६,२३८,२४३,२४४,२४६, ३३२६५,३०२ २७१,२७३,२७६ से २८२ खिखिणी ! किङ्किणी ] ओ० ६४. रा० १३२,१७३, खुड्डापाताल [क्षुद्रकपाताल] जी० ३१७२६,७२८, ६८१. जी० ३१२८५,५६३ ७२६ खिसण [ खिसन ] ओ० ४६ खुड्डापायाल क्षुद्र कपाताल जी० ३१७२६,७२७, खिसणा [खिसना] ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ७२६ खुड्डाय [क्षुद्रक] ओ० १७०. जी० ३।८६,२६० Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खुड्डालिंजर-गंडलेहा खुडालिजर [दे० क्षुद्रकालिञ्जर जी० ३।७२६ खोतोदय [क्षोदोदक जी० ११६५ खुड्डिय [क्षुद्रिक जी० ३५९३ खोद क्षीद] जी ३४१३१,६४६ खुड्डिया [क्षुद्रिका] ओ० २४. रा० १७४,१७५, खोदरस [क्षोदरस] जी० ३१८७८ १८०,७७२. जी० ३।१२४,१२५,२८६,२८७, खोदवर। र] जी० ३१८७४,८७५,८७७,६२७ २६२,५७६,६३७,७३८,७४३,७६३,८५७,८६३, खोदोद [क्षोदोद | जी० ३१८७७,८७८ ८८०,६२५, ८६६,८७५,८८१ ६२८,६३२ खुत्तग [दे०] ओ०६० खोदोदग [क्षोदोदक जी० ३१८७५,८८१, ६१० खुद्द क्षुिद्र ] रा० ६७१ खोदोय क्षोदोद, जी० ३।२८६ खुम्भ [क्षुभ् !-- -खुब्भंति जी० ३।७२६ खोदोयग [क्षोदोदक रा० १७४ खुभियजल क्षुभितजल | जी० ३१७८३,७८४ खोमिय क्षोमित ] रा० १७३. जी० ३१२८५ खुरपत्त [क्षुरपत्र] जी० ३।५।। खोम क्षौम ] रा० ३७,२४५ जी० ३३३११ खुहा [क्षुधा ] ओ० ११७. रा० ७६६. जी० ४०७,५६५ ३३१०६,११८,११६,१२८,१११४ खोय क्षोद] जी० ३१७७५ खेड (खेट | ओ०६८,८४ से ६३,६५,९६,१५५, खोयरस {क्षोदरस ] जी० ३।५८६ १५८ से १६१,१६३,१६८. रा० ६६७ खेत [क्षेत्र] ओ० २८,१६२. जी० ११५०; २।२६ से २६,५४ से ५६,६५,८४,८८,११४,१२३, गग] रा०६५ १३२, ३।१०७, ७४१,७६१,८३८।२५, गइ { गति ] ओ० १६,२१,२७,४६,५०,५४,८६ से ११११ ६५, ११४,११७, १५५, १५७ से १६०, खेत्तओ क्षेत्रतस् । ओ० २८. जी० ११३३,१३६, १६२,१६७,१७२. रा० ७५५,७५७,८१३ १४०।२।१२०, ५८,९,२३.२६; २३, जी० ११४; ३१८३८१२२ ४०,६७,२५७ गइय [गतिक ] जी० ११६४,७४,७७,८७,८८, खेतच्छेद [क्षेत्रछेद ] जी० ३१४६,४७ खेत्तच्छेय [क्षेत्रछेद जी० ३।२१ से २७,४५ गइरइय | गति रतिक ओ० ५० खेत्ताभिग्गहचरय क्षेत्राभिग्रहबरक] ओ० ३४ गंगा [गङ्गा] ओ० ११५,११७. रा० २४५,२७६. खेम [क्षेम ओ०१,१४. ० ६७१ जी० ३१४०७,४४५,६३७ खेमंकर [क्षेमकर] ओ० १४. १० ६७१ गंगाकूला [गङ्गाकूल क] ओ० ६४ खेमंधर [क्षेमधरj ओ०१४. रा० ६७१ गंगामट्टिया (गङ्गामृत्तिका] ओ० ११०,१३३ खेय [खेद] ओ० ६३ गंगावत्तग [गङ्गावर्तक] ओ० १९ खेलूड (दे०] जो० ११७३ गंगावत्तय [गङ्गावर्तक] जी० ३१५६६,५६७ खेलोसहिपत्त (वेलौषधिप्राप्त ओ० २४ गठि [ ग्रन्थि ] ओ० १. रा० २७०. जी० ३।४३५, खोखुन्भमाण | चोक्षुभ्यमान] ओ० ४६ ८७८,६६३,६६७ खोत [क्षोद | जी० ३१६६२ गंड | गण्ड] ओ० ४७,६४,७२ खोतरस [क्षोपरस जी० ३१६६४ गंडमाणिया | गण्डमानिका] रा०७७२ खोतोद क्षोदोद | जी०३१६६१ गंडलेहा [गण्डलेखा] ओ० १५. रा० ६७२. जी० खोतोदग [क्षोदोदक] जी० ३६९४८ ३१५६७ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गंडीपम-गज्ज गंडीपय [गण्डीपद] जी० १११०३ मंडोवहाणय [गण्डोपधानक] रा० २४५ गंडोवहाणिया [गन्डोपधानिका] जी० ३६४०७।। गंता [गला] ओ० १८२ जी० ३१७८८ गतूंग [गत्वा] मो०.१६५ गंय [ग्रन्थ ] रा० २६२. जी० ३।४५७ पंथिम ग्रिन्थिम] ओ० १०६,१३२. रा०२५५. जी० ३४५१,५६१ गंष [गन्ध] ओ० २,१५,४७,५१,५५,६३,६७,७२. ६२,१४७,१६१,१६३,१६६,१७०. रा०६. १२,१३,३०,३२,४५,१३२,१५६,१५७,१७२, १६६,२३६,२५८,२७६ से २८१,२६१,२६२, ३५१,५६४,६५७,६७२,६८५,७१०,७१४, ७५१,७५३,७७१,७७४,७६४,८०२,८०८. जी० ११५,३६,५०,५८,७३,७८,८१:३३२२, ५८,८४,८७,६५,१२७,२७१,२८३,३०२,३०६, ३२६,३७२,३६८,४१६,४४५ से ४४७,४५१, ४५७,५१६,५४७,५७८,५६६,५६२,५१८,६०१, ६०२,६४५,६४८,६५६,७७५,८६०,८६६, ८७२,८७८,६३७,९७२,९८२,१०७८,१०८१ १०६७,१११७,१११८,११२४ गंपओ [गन्धतस् ] जौ० ११३७,५० गंधकासाइ [गन्धकाषायिन् ] ओ० ६३. रा० २८५. जी० ३१४५१ गंधंग [गन्धाङ्ग] जी० ३.१७० गंधजत्ति गिन्धयुक्ति] ओ० १४६ गंपतो गन्धतस् ] जी० ३१२२ गंधद्धाणि [गन्धघ्राणि] ओ०७,८,१०. जी. ३।२७६ . गंधमंत [गन्धवत् जी० ११३३, ३६, ३।५६२ गंधमावण [गन्धमादन] जी० ३।६६८ गंधमायण [गन्धमादन] जी० ३१५७७ गंधवट्टि [गन्धवति ] ओ० २,५५,६२. रा०६, १२,३२,१३२,२३६,२८१ जी० ३।३०२, ३७२, ४४७ गंधरुव [गन्धर्व] ओ० ४६,१२०,१४८.१४६. १६२. रा० १४१,१७३,१६२,६८५,६१८, ७५२,७७१,७८६. जी० २११७; ३१२६६, २८५,३१८,५८८ गंपव्वकंठ [गन्धर्वकण्ठ] रा० १५५,२५८ जी० ३१३२८ गंधव्वकंठग [गन्धर्वकष्ठक] जी० ३६४१६ गंषन्वघरग गन्धर्वगृहक ] रा० १८२,१८३ जी. ३१२६४ गंधव्यणट्ट [गन्धर्वनृत्य ] रा० ८०६,८१० गंषश्वनगर [गन्धर्वनगर] जी० ३।६२८ गंधवाणिय [गन्धर्वानीक] रा०४७.५६ गंधहस्थि [गन्ध हस्तिन | ओ०१४.१६२११४ रा०८,२६२,६७१. जी० ३१४५७ गंधावति (गन्धापातिन् | जी. ३१७६५ गंधावाति [गन्धापातिन् । रा० २७६. जी. ३४४५ गंधिय [गन्धिक] ओ०२,५५. रा०६,१२,२२,३२, १३२,२३६,२८१,२८५. जी० ३३०२:३७२, ४४७,४५१ गंधीय [गन्धिक) जी० ३।२६० गंभीर गम्भीर] ओ० १,५,८,१६,२७,४६,४६, ७१. रा०१३,१४,६१,१७४,२४५,८१३. जी० ३१८३,११८,११६,२७४,२८६,४०७, ५६६,५६७ गकारपविभत्ति [गकारप्रविभक्ति । रा० ६५ गगण [गगन] ओ० २७,६४. रा० ५०,५२.५६ १३७,२३१,२४७,५१३. जी० ३३३०७,३६३ गच्छ [गम् ---गच्छ. रा०६८०.-गच्छइ. रा० १५-गच्छंति. ओ० १७१. जी० १५४. --- गच्छति. रा० १३. जी० ३.४४०--गच्छह रा०६-गच्छामि. रा० १९.-गच्छामो.' ओ० ५२. रा०६८७.—गच्छाहि. रा० ६६६. - गच्छिहिति. ओ० १४० गच्छंत [गच्छत् ] ओ०४० गच्छित्तए [गन्तुम् ] ओ० १०० गज्ज [गद्य ] रा० १७३. जी० ३१२८५ गिज्ज [गर्ज]- गज्जति. रा० २८१. Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० गज्जित-गयलक्षण जी० ३.४४७ गम्भस्थ [गर्भस्थ ] ओ० १४२,१४४ गज्जित [गजित] जी. ३१६२६ गम्भवक्कैतिय [गर्भावक्रान्तिक] जी० ११६७,११७, गड्ड [गतं] जी० ३१६२३,६३१.३ १२५,१२६,१२६; ३।१३८,१४०,१४२,१४५, गिढ [ग्रथ् ]-- गढेज्जा. जी० ३।६६३ १४६,२१२,२१५,२२६ गठित्तए [ग्रथयितुम्] जी० ३१६६० गम्भवास [गर्भवास] ओ० १६५ गढिय [ग्रथित ] रा० ७५३ गम्भाहाण [गर्भाधान ] रा० ८०३ गण [गण] आ० ६.१६,४०,४१,४६,५०,६३,६८, गम गिम्]--गमिस्सामो. ओ १८.-गमिहिति. १५५,१६२,१६२. रा० ३२,२०६,२११. रा० ७६६.-—गम्मती. ओ०७४ जो० ३ ११८,११६,२७५,३७२,५८२,५८६ स गम गम] जी० ३१२१८,६६६,७१३,७४२,७४४, ५६६, ६००,६०३ से ६१७,६२०,६२५,६२७, ७४५,६२८,९२६.१०४५,१०४८ ६२८,६३०,६३९,७४६,११२० गमण [गमन] ओ० ४०,४६,६५,६६,१२२, गमग [गणक] ओ० १८. रा० ७५४,७५६,७६२, रा० १७,१८,२८८,६५६,६६७,७७५,७७६, ७६४ ७८०. जी० ३४५४,५५६ गणणायक [मणनायक] ओ०१८ गमय [गमक] रा०२५१,२६५. जी०३७५१ गणनायक [गणनायक ] ओ० ६३. रा० ७५४,७५६, गमित्तए [गन्तुम् ] ओ० १०० ७६२,७६४ गय [गज] ओ० १६,४८,५२,५५ से ५७,६२,६४, गणविउस्सग्ग {गणव्युत्सर्ग ] ओ० ४४ ६५. रा०२५,१४१,१४८,१६२,६८७ से ६८६. गणिय [गणित] ओ० १४६. रा० ८०६,८०७ जी० ३१२६६,२७८,३१८,३२१,३५५,४५४, गणवेयावच्च {गणवैयावृत्य] ओ० ४१ ५८६,५६६,५६७,१०१५ गणेत्तिया [दे०] ओ० ११७ गय [गत] ओ० १५,१६,२१,४६ से ४६,६५,१७२, मत [गत] रा० १२२,२८३,२८६. जी० ३१४४३, १७५,१७७,१६५।२२. रा०८,४७,६८,१२२, ४४७,४४६,४५६,५५७,७४६ १२३,१७३,२७५,२७७,२८१,२८६,२६०, गता [गदा जी० ३।११० ६५७,६७२,६८७ से ६८६,७१०,७१९,७५३, गति गति] रा०८१५. जी. ३१५६७,८४२,८४५ ७६५,७७४,७६४,८००,८०२,८०६,१०, गतिकल्लाण [गतिकल्याण] ओ०७२ जी. ३१२८५,४४१,४५५,५६६,५६७ गतिय [गतिक जी० ११५६,६२,६५,६७,७९,८०, गयकंठ [गजकण्ड ] रा० १५५,२५८. जी० ३।३२८ ८२,१०३,१११,११२,११६,११६,१२३,१२८, गयकंठग [गजकण्ठक] जी० ३१४१६ १३४,१३६ गयकरण [गजकर्ण] जी० ३१२१६,२२३ गयकण्णदीव [गजकर्णद्वीप] जी० ३ २२३ गत गात्र] ओ० ४७,६३. रा० १२,३७,७५८ से गयकलभ [गजकलभ] रा०२५. जी० ३.२७८ ७६१ जी० ३३११८,३११,४०७ गयजोहि [गजयोधिन् ] ओ० १४८,१४६. गत्तग [गात्रक] रा० २४५ रा० ८१०,८११ गम्भ [गर्भ रा० ८००,८०२. जी० ३.५६२ गयवंत | गजदन्त] रा० २६,१३२. जी० ३१२८२, गम्भघर गर्भगृह जी० ३१५६४ गन्भघरग [गर्भगृहक ] रा ० १८२,१८३. पयवहया [गतपतिका] ओ०६२ जी० ३.२६४ गयलक्षण [गतलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गयवइ-गामरोग गयवइ [गजपति ] ओ० ५१,६३ गहणया [ग्रहणता] ओ० ५२. रा० ६८७ गयविलंबिय [गजबिडम्बित] रा० ६१ गहणी [ग्रहणी] जी० ३१५६८ गयविलसिय [गजविलसित] रा० ६१ गहदंड [ग्रहदण्ड ] जी० ३३६२६ गया [गदा] ओ० १. रा० २४६ महमुसल [म्हमुसल] जी० ३।६२६ गरहणा [गर्हणा] ओ० १५४,१६५,१६६. गहविमाण [ग्रहविमान] जी० २।४२, ३।१००६, रा०८१६ १०१२,१०१७,१०३१ गडज्मय [गरुडध्वज रा० १६२. जी० ३१३३५ गहसंघाडय [ग्रहशृङ्गाटक } जी० ३१६२६ गाय [गरुक] जी० ११५; ३२२२ गहाय गृहीत्वा] रा० १२. जी० ११८ गरुयत्त [गरुकत्व] रा० ७६२,७६३ गहित | गृहीत] जी० ३1३०३,४५७,४५६,४६१ गरुल [गरुड ] ओ० १६,४७,४८,१२०,१६२. रा०६९८,७५२,७८६. जी० ३।५६६ गहिय | गृहीत ] ओ० ४६,४६,७०,११६,१२०,१६२. गहलवूह [गरुडव्यूह ] ओ० १४६. रा०८०६ रा० १२,६६,७०,१३३,२६१,२६३ से २६६, गरलासण [गरुडासन] रा० १८१,१८३. ३००,३०५,३१२,३५५.६६४,६८३,६८६,६६८, जी० ३१२६३ ७५२,७८६,८०४. जी ३४५८,४६०,४६२, गस [गल ओ० ५७. जी० ३।५६७ ५२०,५५४,५६२ गवक्ख गवाक्ष] जी० ३३६०४ ‘गा [ग]-गायंति. रा० ११५. जी०३४४७. गवस्खजाल [गवाक्षजाल] रा० १३२,१६१. --गिज्जइ. रा० ७८३ जी. ३२६५,३०२ गाउय [गव्यूत, गव्यूति] ओ० १६५. गवच्छिय दे० आच्छादनम् ] रा० १५३. जी० ११८८,९०,१०३,१२१,१२४,१३०; __ जी० ३६३२६ ३३१०७,७५६,९१८,१०२२ गवल [गवल] ओ० ४७. रा० २५. जी० ३।२७८ गाढ गाढ] रा०७७४ गवेलग [गवेलक] ओ० १,१४,१४१. गात [गात्र] जी० ३१४५१,४५७,६०२,८६०,८६६, ___ रा०६७१,७४४,७६६ ८७२,५७८ गवेसण गवेषण] ओ० ११७,११६,१५६ गातलहि मात्रयष्टि] जी० ३।५६७ गयेसणया [गवेषणा] रा० ७६५,७७४ गाया गाथा) जी० ३१५८ गवेसि [गवेषिन् ] रा० ७७४ गाषा [गाथा] जी० ३१६३१ गह [ग्रह] ओ० ५०,६३,१६२. रा० १२,७६,१७३, गाम [ग्राम] ओ १,२८,२६,४६,६८,८६ से ६३, २६१,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२,३५५. ९५,९६,१५५१५८ से १६१,१६३,१६५. जी० २११८, ३१२८५,६३१,७०३,८०६, रा० ६६७,७८७७८८, जी० ३१६०६,६३१, ८३८।३,६,६,२२,२६,३०,८४५,१०२०,१०२१, १०२६,१०३७,१०३८ गहअवसब्द [ग्रहापसव्य] जी० ३१६२६ गामकंटग [नामकण्टक] ओ० १५४,१६५,१६६. गहगज्जित [ग्रहजित] जी० ३१६२६ रा० ८१६ गहगण [ग्रहगण] रा० १२४. जी० ३।५८६, गामदाह [ग्रामदाह] जी० ३१६२६ ८३८।१०,२१,८४१,८४२,१०२० । गाममारी [ग्राममारी] जी० ३१६२८ गहजूद ग्रहयुद्ध जी० ३१६२६ गामरोग [ग्रामरोग] जी० ३।६२८ ८४१ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गामाणुगाम-गुणं गामाणुगाम [ग्रामाणुग्राम ] ओ० १६,२०,५२,५३. गिलाय [ग्लै] -गिलाएज्जाह. रा० ७२० .... रा० ६८६,६८७,६८६,७०६,७११,७१३ गिल्लि [दे० ] ओ० १००,१२३. जी० ३१५८१. गाय [गात्र ] ओ० १,३६,३७,५२,६३,७०,६४, ५८५,६१० . ११०,१३३. २१० २८५,२६१,६८७ से ६८६. गिह [ गृह ) ओ० २०,५३. रा० ६८१,६८३,७०८, जी० ३।११८ ७१०,७१३,७२३,७२६ गाय [गो] जी० ३।६३१ गिहिथम्म [गृहिधर्म | ओ० ५२,७८,६३. रा० ६८७, गायंत [गायत् ] ओ०६४ ... ६८६,६६५,६६६.७७५ गायलद्वि [गात्रयष्टि] ओ० ७०. रा० २५४. गिहिलिगसिद्ध [गृहिलिङ्गसिद्ध) जी० ११८ ... __ जी० ३।४१५ गीइया | गीतिका ओ० १४६. रा० ८०६ ।। गांवो [गो] जी० ३।६१६ गीत [गीत ] जी० ३१८४२,८४५ गाह ग्राह ] जी० ११६६,११८, ३२४५७. से ४६२, गीय गीत ओ० ४६.६८,१४६. रा० ७,७८, ४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५५४ ८०६. जी० ३.३५.०,५६३,१०२३ । गाह [ग्राहय् ] — गाहेइ. ओ० ५६ गीयजस गीत यशस् ] जी० ३१२५६ माहा गाथा ओ० १४६. रा०८०६. जी० ३।५, गीयरई [गीत रति ] ओ० १४८,१४६. रा० १७३, १२,१२७,३५५ ८०६,८१० गाहावइपरिसा [गृहपतिपरिषद् ] रा० ७६७ . . गीयरइप्पिय [गीत रतिप्रिय | ओ०६५ गाहेत्ता [ग्राहयित्वा] अॅ०५६ गीयरति [गीतरति] जी० ३।२८५ V गिज्य [गृध् --गिज्झिहिति ओ० १५०. ... गोवा [ग्रीवा ] ओ० १६. रा० २६. जी० ३१२७६, रा० ८११. . ... . गिण्ह [ग्रह, }--गिहइ. ओ १७०.:-गिम्हति. गुंजत [गुञ्जत् ] ओ० ६ रा० ७६,१७३.. .. - जी० ३।२७५,२८५ .. . रा० २८१. जी. ३१४४५.---गिण्हति. ... रा० २८८-- गिराहामो. ओ० ११७ गुंजद्धराग [गुजार्धराग] ओ० २२. रा०२७,७७५ ७७८,७८८. जी. ३२८० . गिहित्तए [ग्रहीतुम् ] ओ० ११७. जी० ३।६८८ गिम्हित्ता [गृहीत्वा] ओ १७०. रा० २८१. गुंजा [गुजा] रा० ७६,१७३. जी० ३१२८५ जी० ३१४४५ गुंजालिया [ गुजालिका] ओ० ६६. रा० १७४, . गिद्ध [गृद्ध] रा० ७५३ १७५,१८०. जी. ३१२८६ .. गिम्ह [ ग्रीष्म ओ० २६ गुंजावाय {गुजावात ] जी० १८१ गिम्हकाल [ग्रीष्मकाल] ओ० ११५ गुज्झ [गुच्छ ] ओ०.६ से ८,१०. जी० ११६९; गिरा [गिर्] जी० ३।५६७ ..३२७५ गिरि [गिरि रा० ८०४. जी० ३।५६७,८३६ गुज्म [ गुह्य ] रा० ६७५ गिरिपक्खंदोलग [गिरिपक्षान्दोलक | ओ० ६० . गुज्झदेस [गुह्यदेश] जी० ३।५६६ ... गिारपाडयग | गारपतितक] आ० ६० गुड [ गुड] जी० ३४५६२ गिरिमह [गिरिमह] रा०६८८ .... . गुण [ गुण] ओ० १,१४,१५,२३,२५,६३,६६,१२० मिलाणभत्त [ग्लान भक्त ] ओ० १३४ . . . . . १४०,१४३, १५७. रा ६६,७२,१७३,६७१२ गिलाणवेयावच्च ग्लान वैयावृत्य] ओ० ४१:. ६७३,६८६.६६८,७५२७८६,५०१. Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणणिप्फण्ण-गोक्खीर जी० ११५०, ३१२८५,५६६,५६७ गुणणिकपण गुणनिष्पन्न ] ओ०१४४ गुणतर [गुणतर] रा० ७१८ गुणभाव [गुणभाव] ओ० १६५११२ गुणयालीस {एकोनचत्वारिंशत् ] रा० १२६ गुणव्वय [गुणवत] ओ० ७७. रा० ७८७ गुणसेढिया [गुणश्रेणिका ओ०१८२ गुणिय [गुणित ] जी० ३८३८२६ गुत्त [गुप्त) ओ० २७,१५२,१६४. रा० १२३, ६६४,७७५,७७२,८१३. जी० ३१५६२ गुत्तदुवार गुप्तद्वार रा० १२३,७५५,७७२ गुत्तपालित [गुप्तपालिक] जी० ३३५६२ गुत्तपालिय [गुप्तपालिक] रा० ६६४ गुत्तबंभयारि [गुप्तब्रह्मचारिन् ] ओ० २७,१५२, १६४. रा०८१३ गुति [गुप्ति] रा० ६८६,८१४ गुत्तिदिय [ गुप्तेन्द्रिय] ओ० २७,३७,१५२,१६४. रा० ११३ गुप्पमाण [गुप्यत् ] ओ० ४६ गुप्फ [गुल्फ] ओ० १६. जी० ३।५६६ गुमगुमंत [गुमगुमायमान ] ओ० ६. जी० ३।२७५ गुम्म [गुल्म] ओ० ६ से ८,१०. जी० १६६; ३२२७५,५८०,६३१ गुरु गुरु] रा० ६७१ गुल [गुड] ओ० ६२. जी० ३।६०१, ८६६ गुलइय ] दे॰] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. __ जी० ३१२६८,२७४ गुलगुलंत [गुलगुलायमान ] ओ० ५७ गुलिका [गुलिका] ओ० ४७. रा० २५,२६,२८. ___जी० ३।२७८,२७६,२८१ गुहा [गुहा ] रा० १७३. जी० ३२८५ गूढ गूढ ] ओ० १६. जी. ३१५९६ गूढदंत [गूढदन्त ] जी० ३१२१६ गेज्म [ग्राह्य ] रा० १३३. जी० ३१३०३ गेष्ट [ग्रह-गेण्ह इ. रा. ७०८. जी० ३४५६.—गेण्हति. रा० ७५. जी० ३१४४५ गेण्हित्तए [ग्रहीतुम्] जी० ३।६८६ गेण्हित्ता [गृहीत्वा] रा० ७५. जी० ३४४५ गेद्धपट्टग [गृध्रपृष्ठक] ओ०६० गेय [गेय] रा० ७६,११५,१७३,२८१. जी० ३।२८५,४४७ गेविज [वेय] रा०६६४,६८३ गेविजविमाण [ग्रेवे यविमान ] ओ० १९२ गेवेज्ज अवेय] ओ०५७,१६०. रा० ६६,७०. जी० २६२,३१५६२,५६३,१०३८,११०३, ११०५,११०७,१११६,१११७,११२०,११२३, ११२४,११२६ गेवेज्जक [प्रैवेयक ] जी० २०१४८,१४६ गेवेग्जक [वेयक] ओ०६३ गेवेज्जविमाण [गवेयविमान] ओ० १६०. जी० ३११०६३,१०६६,१०६६,१०७१,१०७३, १०७६ गेवेज्जा [वेयक] जी० ३३१०८४,१०८६, १०६२,१०६५.११०३,११०५,११०७, १११६,१११७, ११२०,११२३,११२४, ११२६ गेह [गेह] जी० ३१६०५,६३१,८४१ गेहागार [गेहाकार जी० ३।५६४ गेहाययण गेहायतन) जी० ३१६०५ गेहाव [य? ] ण [गेहायतन] जी० ३१८४१ गो गो ओ० १,१४,१४१. रा० ६७१,७७४, ७६६. जी० ३८४ गोकण्ण | गोकर्ण] जी० ३।२१६,२२४ गोकपणदीव [गोकर्णद्वीप] जी० ३।२२४ गोकलिजग [गोकिलिजक] रा० १५१. जी० ३३२४ गोकिलिज [गोकिलिञ्ज रा० ७७२ गोक्खीर गोक्षीर] ओ०१६,१६४ जी० ३।६०१, Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१४ ८६६, ६५६ गोखीर | गोक्षीर] ओ० ४७ रा० १३०. जी० ३:३००, ५६६ गोवर [ गोघृतवर ] जी० ३८७२, ९६० गोच्छिय [ गुच्छित ] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. जो० ३१२६८,२७४ गोण [ गो] ओ० १०१,१२४, १४४. जी० ३१६१८ गोणलक्खण [ गोलक्षण ] ओ० १४६ रा० ८०६ गोणस | गोनस ] जी० १३१०८ गोतमदीव [ गौतमद्वीप ] जी० ३१७६२ गोतित्थ | गोतीर्थ ] जी० ३७६०, ७६१,७६३ गोधूम | गोस्तूप ] जी० ३।७३४ से ७४०, ७४२, ७४५, ७५० गोभा [ गोस्तूपा ] जो० ३१७३८,६१०,६२१ गोधूम [ गोधूम ] जी० ३१६२१ गोपुच्छ | गोपुच्छ ] रा० १२७. जी० ३।२६१, ३५२,५६७, ६३२,६६१, ६८, ७३६, ८८२ गोपुर [ गोपुर ] ओ० १. रा० ६५४,६५५. जी० ३।५५४,५६४, ६०४ गोफ [ गुल्फ ] जी० ३।४१५ गोमकीड [ गोमयीट ] जी० ११८६; ३३१११ गोमाणसिया [ गोपासिका ] रा० १३०,२३६, २५१,२६५. जी० ३३३००, ४१२,६०३ गोमाणसी [गोपानसी ] जी० ३२३६८,४१२, ४२१, ४२६ गोमुह [ गोमुख ] जी० ३१२१६ गोमुही [ गोमुखी ] रा० ७७ गोमेज्जमय [ गोमेदमय ] रा० १३०. जी० ३।३०० गोय गोत्र ] ओ० २०,४४,५२, ५३. रा० ६,११, ६८७,७१३. जी० ३११२८ गोयम [ गौतम] ओ० ८३,८६,८८ से ६५, ११४, ११७ से १२०,१४०, १४१, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७,१७०, १७१,१७३ से १७६, गोखीर- गोयम १७८, १७६, १८४ से १५८, १६२. रा० ६३, ६५,७३,७४, ११८, १२१, १२३, १२४, १७३, १६७ से २००,६६५,६६६,६६८,७९७ से ७६६,८१७. जी० १११५ से ३७, ३६ से ४६, ५१ से ५६, ५० से ६२,६४,७४,७६,८२,८५ से ८७, ६०, ६३ से ६६,१०१,११६,१२७,१२८,१३० से १३४,१३७ से १४३, २२० से २४,२६ से ३०, ३२ से ३६, ३६, ४६, ४८, ४६, ५४, ५७ से ६३,६६,६८ से ७४.७६, ८२ से ८४,८६,८८, ६२,६५ से ६८,१०७ से १०९, ११३,११४, ११६ से ११६, १२२ से १२६,१३३ से १४०; ३॥३ से १२, १४ से २१,२८ से ३५, ३७ से ४४,४८ से ६३,६६,७३,७६ से ३८,१०१ से १०४,१०६ से ११०,११२ से ११६,११८ से १२०,१२२ से १२८,१४७,१५० से १६१, १६३,१६७ से १७४, १७६, १७८, १८०, १८२, १८३,१९८५ से २०३,२११,२१४,२१७ से २२३, २२७,२३२,२३५ से २३६,२४१ से २४३, २४५ से २४७, २४६, २५०,२५५ से २५६, २६९ से २७२,२७८, २८५, २६६, ३००, ३५०, ३५१,५६४ से ५६६,५६८ से ५७०, ५७२, ५७४ से ५०८,५६६,५६७,५६६ से ६०४, ६२ से ६३२,६३७ से ६३६, ६५६, ६६०, ६६४,६६६,६६८,७०० से ७०३, ७०५ से ७०८,७१०,७११,७१४ से ७१६,७१८ से ७२३, ७२६,७३० से ७३६,७३५ से ७४३,७४५, ७४६,७४८ से ७५०,७५४,७६० से ७६६, ७६८ से ७७०, ७७२, ७७६ से ७७८,७८३, ७८४,७८७ से ७६५,७९७ से ८००,५०२, ८०४,८०६,८०८८०६,८११ से ८१५८१६, ८२०,८२२ से ८२५,८२७, ८२६,८३०, ८३२ से ८३६, ८३, ८४०, ८४२ से ६४७, ८४६ से ८५१,८५४,८५७,८६०,८६३,८६६,८६६, ८७२८७५,८८,८८१, ८८२, ११८, १३६, ९४०, ६४४, १५३ से ६६१,१६३ से ६६६, Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोयमदीव-घण ६६६, ६७२ से ६७६,६८२ से ६८७,८६, ६६६ से १००८, १०१०, १०११,१०१५, १०१७,१०२० से १०२३,१०२५ से १०२७, १०३७ से १०४२, १०४४, १०५७, १०५८, १०६३,१०६५, १०६७, १०६६, १०७१, १०७३ से १०७५, १०७७ से १०८१,१०८३, १०८५ से १०८७,१०८६ से १०६३, १०६५, १०६८, १०६६, ११०१,११०५, ११०६ से ११२४,११२८ से ११३१,११३४ से ११३८ ४१३, ५ से ११,१६,१७,१६,२२,२३,२५; ५५,८,१०,१२ से १७,१६ से २४,२८ से ३०, ३४, ३५, ३७ से ३६, ४१ से ५०, ५२ से ५६, ५८ से ६०, ६८, ७१२, ६, २०; ६२, ४, १० से १४,१६, २३ से २६,३१,३३,३६,४१ से ४७,४६, ५२, ५५,५७,५८,६४,६८,७७,७८, ८६,६०,६६,६७, १०२, १०३, ११४,११५, १२२, १३२, १४२, १६० से १६३,१७१, १८६ से १६१, १३, १९५,१६८ से २०७, २१० से २१२,२१४ से २१, २२२ से २२५, २२७ से २३०, २३३ से २३८,२४० से २४४, २४६, २४६ से २५३,२५५, २५७ से २६३,२६५, २६८ से २७३,२७५ से २५२,२८४ से २६३ nterata [गौतमद्वीप ] जी० ३।७५४,७५५, ७६०, ७६१ गोर [ गोचरा ] रा० ७१६ गोर [गौर] ओ० ८२ गोलवट्ट [ गोलवृत्त ] रा० २४०, २७६,३५१. जी० ३।४०२.४४२, ५१६,१०२५ गोलियालिछ | गोलिकालिञ्छ | जी० ३।११८ गोaasa [ गोत्रतिक ] ओ० ६३ गोसीस | गोशीर्ष ] ओ० २,५५,६३. रा० ३२, २७६,२८१२८५,२६१,२६३ से २६६,३००, ३०५,३१२,३५१,३५५,५६४. जी० ३:३७२, ४४५,४४७,४५१,४५७, ४६२, ४६५, ४७०, ४७७, ५१६,५२०,५४७,५५४ गोहा [ गोधा ] जी० १ ११२ गोही [ गोधी ] जी० २६ [घ] ६१५ घ [घ] रा० ६५ घओद [ घृतोद ] जी० ३।२८६ ओवय [ घृतोदक ] जी० ११६५ घओयग | वृतोदक ] रा० १७४ घंटय [ घण्टाक ] जी० ३१२८५ घंटा [ घण्टा ] ओ० २,१२,५७,६४. रा० १३.१५, _२३,३२,१३५,१७३,२५८, ६८० जी० ३.२६१,३०५,३७२, ४१६ घंटाजाल [ घण्टाजाल ] रा० १३२, १९१. जो० ३२६५,३०२ घंटापास [ घण्टापा ] रा० १३५. जी० ३१३०५ घटावलि [ घण्टावलि ] रा० १७,१८,२० घंटिया [ घण्टिका ] रा० १७,१८. जी० ३।५६३ घंस [घर्ष ] जी० ३ | ६२३ after [घर्षितक ] ओ० ९० कारविर्भात [धकारप्रविभक्ति ] रा० १५ घट्ट [ घट्ट् ] घट्टइ. रा० ७७१ - घट्टति जी० ३३७२६ घट्टत [ घट्टयत् ] रा० ७७१ घट्टणया [ घट्टन ] ओ० १०३, १२६ घट्टिज्जत ] वट्टघमान ] रा० ७७ घट्टिय | घट्टित ] रा० १७३. जी० ३१२५५ घट्ट [ धृष्ट] ओ० १२,१६४. रा० २१,२३,३२, ३४.३६,१२४, १४५, १५७. जी० ३।२६१. २६६,२६६ घडग [ घटक ] जी० ३।५८७ घडत [ घटत्व ] जी० ३३२२,२७,७८४,७८७ घण [ धन ] ओ० १, ४, ५, ८, १३, १६,४७,६८. रा० ७,१२,११४,१३३,१७०,२८१,७०३.७५५, ७५८,७५६, ७७२. जी० ३६७,८०, ११८, २७३, २७४,३००, ३०३, ३५०, ४४७, ५६३, Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धमदंत-चउद्दस ५८६,५९६,८४२,८४५,१०२५,११२२ घणदंत | घनदन्त] जी० ३।२१६,२२६ घणवतद्दीव [घनदन्तद्वीप ] जी० ३।२२६॥६ घणवात [धनवात] जी० ३१३,१६,२१,२६,२७, ३७,४७,४६,५०,६४ घणवाय घिनवात ] जी० १९८१, ३१३०,३८,४२, १०५८,१०५६ घणोदधि [घनोदधि] जी० ३६१३,२६,३०,३२, ३७ से ४०, ४५,४६,४८,४६,६० से ७२ घणोदहि [घनोदधि] जी० ३।१८,२०,२७,६३, १०५७ घम्मा [धर्मा] जी० ३।३ घय [धृत] जी० ३३५६२,७७५ घयवर [धृतवर] जी० ३८६८,८६६,८७१ घयोदघतोद] जी० ३८७१,८७२,८७४,६६०, घुण [घुण] रा० ७६१ घुम्मत [पूर्ण्यमान] ओ०४६ घोड [घोट] जी० ३.६१८ घोर घोर | ओ० ४६,८२ रा० ६८६ घोरगुण [घोरगुण] ओ० ८२. रा०६८६ घोरतवस्सि [घोरतपस्विन् ] ओ० ८२. रा० ६८६ घोरबंभचेरवासि | घोरब्रह्मचर्यवासिन् ] ओ० ८२. रा० ६८६ घोलंत [घोलयत् ] ओ० २१,५४. रा०८,७१४ घोलियग [धोलितक] ओ०६० घोस [घोय] मो० ६६ घोसण [ घोषण] रा० १५ घोसाडिया कोशातकी] रा० २८. जी० ३।२८१ घोसेयब्व [घोषयितव्य ] जी० ३।८८ [ड] रा०६५ कारपविभत्ति [ङकारप्रविभक्ति] रा० ६५ घयोदग [घृतोदक] जी० ३ घर [गृह } ओ० २८,११८,११६,१५४,१६२, १६५,१६६. रा० ६६८,७५२,७८६. जी० ३१५६४ घरग गृहक ] जी० ३१५७६ घरय [गृहक ] ओ०७,८,१०. रा० १८३. जी० ३१५७६,५६३ घरसमुदाणिय [गृहसामुदानिक ] ओ० १५८ घरह | गृहक ] जी० ३१८६३ घरोलिया गृहकोकिला | जी० राई घाइ | घातिन् ] ओ० ८७ घाण घ्राण ओ० १७०. रा०३०,१३२,२३६. जी० ३१२८३,३०२,३९८ घाणिदिय घ्राणेन्द्रिय ] ओ० ३७. जी. ३१९७६ घातक [घातक जी० ३४६१२ घाय [घात] रा०६७१ घास | ग्राम | ओ० ३३ छ [च ] ओ० ७, रा० ७. जी० २१ चइता [त्यत्वा, चित्वा] ओ०२३. रा० ७६६ चइत्ताणं [त्यक्त्वा ] ओ० १६५।१ चउ [चतुर्] ओ०१६. रा० ७. जी० श१६ चउपक [चतुक] ओ० १,५२,५५. रा०६५४,६८७, ७१२. जी०३।२२६५५४ चउक्कत चतुष्कक मी० ३३१४२,१४४ चउक्कय [चतुष्कक] ० ६५५ चउणउय | चतुर्नवनि | जी० ३१८२३ चउत्थ [चतुर्थ] ओ० १७४,१७६. जी० १।१२१ चउत्थग [चतुर्थक जी० ६.१४६ चउत्थभत्त | चतुर्थभक्त ] ओ० ३२ चउत्था | चतुर्थी ] जी० ३१२ चउत्थी चतुर्थी | जी० २।१४८,१४६; ३.४, ६६,८८,६१.१६५,११११ चउदसपुन्वि [चतुर्दशपूर्विन् ] रा०६८६ चउद्दस [चतुर्दशन् ] ओ० १६. जी० २१४८ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउद्दसी-चंददीव चउद्दसी चतुर्दशी] ओ० १२० १०३,१०५,११३,१२१,१२५,१३५; २।६, चरहसभत्त [चतुर्दशभक्त] ओ० ३२ १०,१५,७८ ; ३२३०,४५१,४५२,५८८, चउप्पई [चतुष्पदी जी० २१५,६ ११३८, ६।११३,१२१,१३१,१४१,१४७ चउप्पद [चतुष्पद] जी० २।११३,१२२, ३।१४२ चउसट्टि [चतुष्पष्टि ] ओ० ६२. जी० ३६११ चउप्पय | चतुष्पद] रा० ६७१,७०३,७१८, चउट्टिया चतुष्पष्टिका | रा० ७७२ जी० ११०१ से १०३,१२०,१२१; २३१,२३, चउसालग [चतुःशालक] जी० ३५९४ ५१, ३८८,१४१,१४२,१६३,७२१ चउहा [चतुर्धा] रा० ७६४,७६५ चउप्पाइया | चतुष्पादिका] जी० २६ चंकमंत [चक्रम्यमाण] ओ०५७ चउम्भाग (चतुर्भाग | जी० ३१२४७,२५०,२५६, चंगेरी [चङ्गेरी रा० १५६,२५८.२७९. १०२७ से १०३५ जी० ३५३२६,३५५,४१६,४४५ चउभाग [चतुर्भाग] जी० २।४० से ४३; ३।२४७ ।। चंचल [चञ्चल | ओ० २३,४६,४६ चउमासिय | चातुर्मासिक | ओ० ३२ चंडचण्ट ] ओ० ४६. रा० १०,१२,५६,२७६, चउम्मुह [चतुर्मुख ! ओ० ५२,५५. रा० ६५४, ६७१,७६५. जी० ३३८६,११०,१७६,१७, ६५५,६८७,७१२. जी० ३१५५४ १८०,१८२,४४५ चउरंगल [चतुरङ्गुल रा० ५६. जी० ३२५६६, चंडा | चण्डा जी० ३१२३५,२३९,२४१,१०४०, ८३८११७ १०४४ चउरत [चतुरंत) ओ० ४६ चंद [चन्द्र | ओ० १६,२७,५०,६४६८,१७०. चउरंस [चतुरस्र] जी० ११५, ३१२२,७७,७८, रा० २६,७०,१३३,२८२,८०२,८०३,८१३. ३५२,५६४,५६७,१०७१ जी० १११८, ३२५८,२८२,३०३,४४८,५६६, चउरकप्प | चतुष्कल्प जी० ३.५६२ ५६७,७०३,७२२,७६२ से ७६४,७६६,७६८, चउरासीइ | चतुरशीति | ओ० ६३. जी० १:१०३ ७७०,७७२,७७४ से ७७६,७७८,८०६,८२०, चउरासीति [ चतुरशीति | जी० ३।१६ ८३०,८३४,८३७,८३८४,७,१०१५ से २३, चउरिदिय चतुरिन्द्रिय ] जी० ११८३,६०; । २५ से २७.२६,३२,८४५,८७३,८७६,८७६, २६१०१,१०३,११२,१२१,१३६,१४६,१४६; ६२६,६३७.६५३,१०१७,१०२०,१०२१, ३।१३०,१३६,१६७,४११,४,८,१४,१८ से १०२३ से १०२६,११२२ २०,२४,२५, ८१,३,५,६।१,३,५,७,१६७, चंदण | चन्दन । ओ० ६.१०,२६,४७,५२,६३, १६६,२२१,२२३,२२६,२३१,२५६,२५६, ११०,१३३. रा० ३०,१३१,१४७,१४८, २६४,२६६ १७३,२५८,२७६,२८०,२८५,२६१,२६३ से चउविसाण [चतुर्विषाण रा० १६२. २६८,३००,३०५,३१२,३५१,३५५,५६४, जी. ३३३३५ ६८७ से ६८६. जी० ३।२८३,२८५,३०१, चउवीस [चतुर्विंशति ] ओ० ३३. जी० ३।२३६ ४४५,४५१,४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, चाउम्विध | चतुर्विध] जी० ३।१,४४७ ५१६,५२०,२४७,५५४,५८३,८३८।२६ चउठिवह । चतुर्विध ] ओ० २८,३७,४५,६३,११७. चंदत्यमणपविभत्ति चन्द्रास्तमन प्रविभक्ति | रा० ११४ से ११७, २८१,२८५,२८६,६७५, रा० ८६ ७४०,७४६,७६६. जी० ११५,१०,८३,६१, चंददीक [चन्द्रद्वीप] जी० ३१७६२,७६३,७६६, Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदद्दह-चक्कट्टि ७६८,७७०,७७२,७७४,७७६,७७८ चंदद्दह | चन्द्रदह ] जी० ३१६६७ चंदद्दीव [चन्द्रद्वीप] जी० ३१७६३ चंदद्ध [चन्द्राधं ] ओ० १६. रा०७०,१३३. जी० ३।३०३,५६६,११२२ चंदपडिमा [चन्द्रप्रतिमा] ओ० २४ चंदपरिएस [चन्द्रपरिवेश] जी० ३॥८४१ चंदपरिवेस [चन्द्रपरिवेश] जी० ३१६२६ चंदप्यम चन्द्रप्रभ] स० १६०,२६२. जी० ३१३३३,४५७ चंदप्पभा [चन्द्रप्रभा जी० ३।५८६,७६३,८६०, ६५८,१०२३ चंदप्पह [चन्द्रप्रभ | रा० २५६ जी. ३३४१७ चंदमंडल [चन्द्रमण्डल ] रा० २४,५१,१४६. जी० ३२७७,३२२ चंदमंडलपविभति [चन्द्रमण्डलप्रविभक्ति] रा०६० चंदव.सय [चन्द्रावतंसक ] जी० ३।१०२४, जी० ३१३०३,३८४,८६६,११२२ चंदावरणपविभत्ति [चन्द्रावरणप्रविभक्ति] स० ८८ चंदावलि [चन्द्रावलि ] रा० २६ चंदावलिपविभत्ति | चन्द्रावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ चंदिम [चन्द्रनम् ] ओ० १६२. रा० १२४. जी० ३।२५७,८४१,८४२,८४५,६६८ से १०००,१०२०,१०२१,१०३८। पन्दुग्गमणपविभत्ति चन्द्रोद्गमनप्रविभक्ति] रा० ८६ चंपक [चम्पक जी० ३।२८१ चंपग [चम्पक | ०२८,८०४. जी० ३१२८१ चंपग [लया | चम्पकलता] जी० ३१२६८ चंपगलया | चम्पकलत! | ओ० ११. रा०१४५. जी० ३.५६४ चंपगलयापविभत्ति [चम्प कलताप्रविभक्ति | स० १०१ चंपगवडेंसय | चम्कावतंसक ] रा० १२५ चंपगवण [चम्पकवन] रा० १७०. जी० ३१३५८. चंपय | चम्पक रा० २८,१८६. जी० ३१२८१, ३५६ चंपारम्पक 10 २८,३०. जी. ३१२८१,२८३ चंपा | चम्पा औ० १,२,१४,१६ से २२,५२,५३ ५५,६० से ६२,६७,६८,७० चंपापविभत्ति । चम्पकप्रविभक्ति ] ० ६३ चकारवग्ग |चका वर्ग) रा०६६ चक्क | चक्र] ओ०१६,१६. रा० १५०,१५१ जी० ३।११०,३२३,३२४,५६६,५६७ चक्कग | चक्रक] जी० ३३५६३ चक्कज्झय चक्रवज रा० १६२. जी. ३१३३५ चक्कद्धचक्कवाल चक्रार्ध चक्रताल रा० ८४ चक्कपाणिलेहा वक्राणि खा जी० ३।५९६ चक्कल ! दे०] रा० ३७. जी० ३६३११ चक्कलक्खण | चक्रलक्षण] रा० ८०६ चक्कवट्टि (चक्रवर्तित् ] ओ० १९,२१,५४,७१. चंदवण्ण चन्द्रवर्ण जी० ३१७६३ चंदवण्णाभ [चन्द्रवर्णाभ] जी० ३१७६३,१००८, १०१०,१०१५ चंदविमाण [चन्द्रविमान] जी० २।१८,४०; ३३१००३ से १००६,१०२७ चंदविलासिणी | चन्द्रविलासिनी रा० १३३. जी० ३।३०३,११२२ चंदसालिया [चन्द्रशालिका] जी० ३५९४ चंदसूरदसणग [चन्द्रसूरदर्शनक ] रा० ८०२ चंदसूरदसिणया [चन्द्रसुरदर्शनिका] ओ० १४४ चंबा [चन्द्रा] जी० ३१७६४,७७६,७७८ चंदागमणपविभत्ति चिन्द्रागमनप्रविभक्ति। रा० ८७ चंदागार [चन्द्राकार | रा० १५६. जी० ३१३३२, चंदाणणा [चन्द्रानना] १० ७०,१६३,२२५. Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चक्फवाग-चरमणाणुप्पायनिबद्ध ६११ १०८,१५४,२७६,२६२. जी० ३।३२७,४४५, ४५७,५६२,६०२,७६५,८४१,८६६,६५६ चक्कवाग | चक्रवाक ओ०६. जी० ३।२७५ चक्कवाल [चक्रवाल ओ० ७०,१७०. रा० २०१, १०४. जी. ३१८६,२६०,२७३,३६२,५८६, ७०५,७०६,७३२.७६४,७६५,७९७,७९८, ८११,८१२,८२२,८२३,८३२,८४६,८५०, ८८२,६१८ चक्कवह [चक्रव्यूह | ओ० १४६. रा०८०६ चक्किय । चक्रिक | ओ०६८ चक्खिदिय [चक्षुरिन्द्रिय] ओ० ३७. जी० ३१६८ चक्खु [ चक्षुष | रा० ६७५. जी० ३१६३३ चक्खुदंसणि [चक्षुर्दर्श निन् ] जी० ११२९,८६,६०; ___१३१,१३२,१३६,१४० चक्खुदय [चक्षुर्दय] ओ० १६,२१,५४. १०८, २६२. जी० ३१४५७ चक्खुप्फास [चक्षुस्स्पर्श | ओ० ६६,७०. रा० ७७८ चक्नुभूय [चक्षुर्भूत | रा० ६७५ चक्खुल्लोयणलेस [चक्षुलोकनलेश] रा० १७,१८, २०,३२,१२६,१३३. जी० ३२२८८,३००,३०३, ३२,३३.१२६,२८२. जी० ३.२३४ से २३९, २४३,२४५,२४७,२५०,२५६,२५८,२८८, ३००,३११,३७२,४४८ चमस [चमस] ओ० १११ गे ११३,१३७,१३८ चम्म चर्मन् ] रा० २४,६६४. जी. ३१२७७,५६२, चम्म [पाय] चर्मपात्र ] ओ० १०५,१२८ चम्म | बंधण] [चर्मबन्धन ] ओ० १०६,१२६ चम्मपक्खि [चमपक्षिन् ] जी० ११११३,११४,१२५ चम्मयक्खी ! चर्मपक्षिणीj जी० २०१० चम्मपाणि | चर्म पाणिj १० ६६४. जी० ३१५६२ चम्मेढग { चर्मेप्टक रा० १२, ७५८, ७५६. जी० ३.११८ चय | चय, ज्यव ] ओ० १४१. रा० ७६६. जी० ३१११२७ चय [शक्]—चएइ. ओ० १६५।१६ चय |--चयंति. जी. ३०८७ चय [त्यज्]—चय इ. जी० ३३१२६।५ चयंत त्यजन् ] ओ० १९५३ चयण | च्यवन ] जी० ३।१६० चिर [चर्| - -चरइ. जी० ३१८३८१२....चरंति. ओ० ४६. जी. ३१७०३-चरति जी० ३.१००१-चरिसु. जी० ३१७०३ -चरिस्संति जी० ३१७०३ चरण [चरण] ओ० १५, २५. रा० ६८६. जी० ३४५६७ चरमअभिसेयनिबद्ध [चमाभिषेकनिबद्ध ] रा० ११३ चरमंत [चरमान्त ! जी० ३।६६८ चरमकामभोगनिबद्ध चरमकामभोगनिबद्ध] रा० ११३ चरमचवणनिबद्ध चमच्य इननिरद्ध] रा० ११३ चरमजम्मणनिबद्ध | चरमन्मनिबद्ध र० ११३ चरमजोवणनिबद्ध | चरम यौवनगिबद्ध रा० ११३ चरमणाणप्पायनिबद्ध | चरमज्ञानोत्पादनिबद्ध ] रा० ११३ ३७२ चक्खुहर [चक्षुहर रा० २८५. जी. ३१४५१ चच्चय [चर्चक] ग० २६४,२६६,३००,३०५, ३१२,३५१,३५५,५९४. जी. ३१४५६,४६१, ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५४७ चच्चर [चल्वर | ओ० १,५२,५५. रा० ६५४, ६५५,६८७,७१२. जी० ३१५५४ चच्चाग | दे० चर्चाक ] रा० १३१,१४७,१४८, जी० ३.३०१ चच्चाय | दे० चर्चाक] रा० २८०. जी० ३।४४६ चडगर [दे०] रा० ५३,६८३,६६२,७१६ चत्तालीस | चत्वारिंशत् ] जी० ३।६६ चतुरासीति | चतुरशीति | जी० ३।८८२ चतुरिदिय | चतुरिन्द्रिय ] जी० २।१३८,१४६; ४२१ चमर [चभर] ओ० १३,६८. रा० १७,१८,२०, Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० चरमतयचरणनिबद्ध [ चरमतपश्चरणनिबद्ध ] रा० ११३ चरमतिस्तनिबद्ध [ चरमतीर्थप्रवर्तन निबद्ध ] रा० ११३ ataforefros [ चरमनिष्क्रमणनिबद्ध ] रा० ११३ चरमनिदाघकाल [ चरमनिदाघकाल ] जी० ३१११८, ११६ चरमनिबद्ध [ चरमनिबद्ध ] रा० ११३ चरमपरिनिव्वाणनिबद्ध | चरमपरिनिर्वाणनिबद्ध ) रा० ११३ चरमपुष्वभवनिबद्ध [ चरमपूर्व भवनिबद्ध ] रा० ११३ चरमबालभावनिबद्ध [चरमबालभावनिवद्ध ] रा० ११३ चरमसाहरणनिबद्ध | चरमसंहरणनिबद्ध | रा० ११३ चरमाण [ चरत् ] ओ० १६, २०, ५२, ५३. २० ६८६, ६८७, ७०६, ७११, ७१३ aft [ चरित्र ] रा० ६८६, ८१४ चरितविणय | चरित्रविनय | ओ०४० चरितसंपण्ण [ चरित्र सम्पन्न | ओ० २५. रा० ६८६ चरिम | चरम ] ओ० ११७, १५४, १९२, १९५१३. रा० ६२, ७६६, ८१६. जी० ६१६३, ६४,६६ चरिमंत | चरमान्त | जी० ३।३३, ३४, ३७, ३८, ६० से ६८,२१७,२१६ से २२५, २२७,६३२, ६३. ६६६, ११११ चरिमभव [ चरमभव ] ओ० १६५४४ चरिममोहणिज्ज [ चरममोहनीय] ओ० ८६ aft [ चरित] ओ० ४६ चरिया [ चरिका ] ओ० १, १६०. रा० ६५४, ६५५. जी० ३।५५४, ५६४ रियल सामण्ण [ चर्यालिङ्गसामान्य ] ओ० १६० चर [ चरु ] ओ० १११ से ११३, १३७, १३८ √ चल [ चल् ] - चलइ. रा० ७७१ -- चलति. जी० ३७२६ -- चाले. रा० ७७१ चलंत [ चलत् ] ओ०५, ८, ४६. ० ७७१ चरमतवचरण निबद्ध - चामर जी० ३।२७४ चलण [ चरण ] ओ० १६. जी० ३।५६६, ५६७ चलणमालिया । चरणमालिका ] जी० ३।५९३ चलणी | चलनी । जी० ३।६२३ चलिय | चलित ] रा० १७, १८, २० √चव [ च्यु ] -- चवति जी० ३१८४३ चवण [ च्यवन ] रा० ८१५. जी० १११४ चबल [ चपल ] ओ० २१,४६, ४६, ५४.०८, १०, १२ १५, ३२, ५६, १७६, ७१४. जी० ३३८६, १७६, १७८, १८०, १८२, ४४५ चवलायत [ चलायमान ] जी० ३१५६७ चवलिय [ चलित ] जी० ३१५८७ चसग [ चपक] जी० ३।५८७ art [ त्यागिन् ] ओ० १६४ चाउवकोण | चतुष्कोण ] रा० १७४. जी० ३३११८, ११६, २८६ चाउरघंट [ चतुर्घण्ट ] रा० ६८१ से ६६३, ६८५, ६९० से ६६२, ६६७, ७०६, ७१०, ७१४, ७१६, ७२२, ७२४, ७२६ चाज्जाता | चतुजतक ] जी० ३१८७८ चायाम [ चातुर्याम ] रा० ६६३,७१७,७७६ चाउज्जामिय | चातुर्यामिक ] रा० ६६५, ६६६ चात्थगाहिय | चातुकाहिक ] जी० ३२६२८ चाउस [ चतुर्दश | T० ७७४ उसी [ चतुर्दशी | ओ० १६२. रा० ६६८, ७५२,७८६ चार भाइया | चातुर्मागिका ] २१० ७७२ चाउमासिय[ चानुमनिक ] जी० ३।९१७ चाउरंगणी [ चतुरङ्गिणी] ओ० ५५ से ५७,६२, ६५ चाउरंत | चतुरन्त | ओ० १६,२१,५४. रा०८, १५४,२९२. जी० ३ ३२७, ४५७, ६०२,८६६, ६५६ चाउरक्क [ चातुरक्य ] जी० ३।६०१,८६६ चाडुकर [ चाटुकर] ओ०६४ चामर [ चामर] ओ० १२,१६,६३ से ६५. Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चामरगाह-चियत्त ६२१ रा०२२,२३,५०,१६०,१६७,१७८,२५६, चिखल [दे०] ओ० ४६ २७६. जी० ३।२६०,२६१,३३३,३४८,३५५, चिच्चा त्यक्त्वा ओ० २३. रा० ६६५ ३८२,४१७,४१६,४४५,५६७ इचिट्ट [ष्ठा]-चिटुइ. ओ० ३७. रा० १२३. चामरगाह चामरग्राह] ओ०६४ जी० ३।४८.--चिट्ठति ओ० १८३. रा० ४०. चामरधारपडिमा चामरधारप्रतिभा रा०२५६. जी० ३१२२.-चिटुति. रा०२७६,जी०३१४८. जी० ३।४१७ -चिटुह. रा०७५३.-चिट्ठज्ज. ओ० १८० चार [चार] ओ० ५०,१४६. रा० ८०६. चिट्ठ ]दे०] रा० ७२३ जी० ३।७०३,७२२,८०६,८२०,८३०,८३४, चिट्ठित [चेष्टित रा० १३३ ८३७,८३८१२,१३,२०,२२,८४२,८४५,१००१, चिट्ठिय [ चेष्टित रा० ७०,८०६,८१० १००३ से १००७ चित्त [चित्त] ओ० २०,२१,४६,५३,५४,५६,६२, चारगबद्धग [चारकबद्धक] ओ० ६० ६३,७८,८०,८१. रा० ८,१०,१२ से १८,२०, चारण [चारण ] ओ० २४. जी० ३१७९५,८४०, २४,३२,३४,३७,४७,६०,६२,६३,७२,७४, १२६,२७७,२७६,२८१,२६०,६५५,६८१, चारि [चारिन् ] ओ० ५०. जी० ३१५९७ ६८३,६६०,६६५,७००,७०७,७१०,७१३. चारु चार ओ० १५,१६,२५,४६. रा०७०,७६, ७१४,७१६,८१८,७२५,७२६,७७४,७७८ १३३,१७३,६६४,६७२,८०६,८१०. चित्त (चित्र, चित्त] रा०६७५,६८०,६८१,६८३ जी० ३१२५५.३०३,५६२,५८७,५६६,५६७, से ६८५,६८६,६९०,६६२,६६३,६६५ से ११२२ ७१०,७१३,७१४,७१६ से ७३६,७४८ चारपाणि चारुपाणि] रा० ६६४. जो० ३१५६२ चित्त | चित्र] ओ० १६,४६,५७,६४. रा० ६६, चालिय [चालित रा० १७३. जी० ३१२८५ १३०,१३७,१५४,१६०,१७३,२५६,२५८, चालेमाण (चालयत् ] जी० ३११११ २७९,२८५,६८१. जी० ३।२८५,३००,३०७, चाव [चाप ओ० १६,६४. रा० १७३,६६४, ३२७,३३३,३५५,४१६,४४३,४४५,४४७, ६८१. जी० ३।२८५,५६२,५६६,५६७ ४५१,५५५,५९६ चावरगाह ! चापाह] ओ०६४ चित्तंग [चित्राङ्ग] जी० ३१५९१ चावपाणि चापपाणि] रा० ६६४. जी० ३१५६२ ।। चित्तंगय चित्राङ्गक जी० ३१५६१ चास [चाप | रा० २६. जी० ३।२७६ चित्तंतरलेस [चित्रान्तरलेश्य जो० ३१८४५ चासपिच्छ | चायपिच्छ] रा० २६, जी० ३।२७६ । चित्तंतरलेसाग [चित्रान्तरलश्याक ] जी० ३१८३८।२ चिउर चिकूर रा० २८. जी. ३१२८१ चित्तघरग [चित्रगृहक ] रा० १८२,१८३. चिउरंगराग [चिकुराङ्गराग] जी० ३१२८१ जी० ३२६४ चिउरंगरात | चिकुराङ्गराग] रा० २८ चित्तपट्ट [चित्रपट्ट] रा०६६ चिता चिन्ता | ओ० ४६. जी० ३१६४८,६४६ चित्तरस | चित्रन्स जी० ३१५६२ चितिय | चिन्तित | ओ० ७०. रा० ६,२७५,२७६, चित्तल {चित्रल | जी० ३।६२० ६८८,७३२,७३७,७३८,७४६,७६८,७७७, चित्तवीणा [चित्रवीणा स०७७ ७६१,७६३,८०४. जी० ३१४४१,४४२ चित्तसाल चित्रशाल | जी० ३३५९४ चिध [ चिह्न ! ओ० ४७ से ५१. रा० ६६४,६८३. घियत्त [दे० प्रीत, सम्मत ] ओ० ३३, १६२. जी० ३।५६२ रा०६६८, ७५२, ७८६ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ चिट्ठिय [ चिरस्थितिक ] ओ० ७२ चिराईय [विरादिक, चिरानीत] ओ० २ ० २ चिराड [ चिराहृत] रा० ७७४ चिलाइया | किरातिका ] रा० ८०४ चिलाई | किराती | ओ० ७० चिल्लय [ ३० ] ओ० ४६. जी० ३१५८६ चिल्ललग | दे० ] १० ६६. जी० ३१६८२ ati | trive ] जी० ३१५६५ tatofug | चीनपृष्ट ] रा० २७. जी० ३१२८० चुण | चूर्ण | १० १५६, १५७, २५८, २७६, २८१,२६१. जी० ३।३२६, ४१६, ४४७, ४५७ चुणति [ चूर्णक्ति ] ओ० १४६ चुप | च्युत | ओ० प चुलणिसुत | चलनीसुत ] जी० ३।११७ चुलसीत [ चतुरसीति ] जी० ३७२८ चुल्ल हिमवंत ( क्षुल्ल हिमवत् ] रा० २७६. जी० ३।२१७, २१६ से २२१, ४४५, ७६५, ६३७ चूचुय [ चूचुक ] रा० २५४. जी० ३।४१५, ५६७ चूडामणि | चूडामणि] २१० २८५. जी० ३३४५१ चूत [चूत] जी० ३।३५६ चूतवण | चूतवन ] जी० ३।३५८ चूप [चूत] रा० १८६ चूय (लया ) | चूतलता | जी० ३३२६८ चूयलया | चूतलता | ओ० ११. रा० १४५. जी० ३.५८४ चूयलयापविभत्ति | चूतलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ च्यवडेंसय | चूलावलंसक ] रा० १२५ चूयवण | चूतश्न | रा० १७० जी० ३।३५८ चूलामणि | चूडामणि] ओ० ४७, १०८. जी० ३।५६३ चूलिया | चूलिका | ०३२८४१ चूलोक्षणय | चूडापनय | ०८०३ चूलोवणवण [न] जी० ३०६१४ इय [ चव्य] ओ० १ से ३,१६ से २२, ५२, ५३, ६५, ६६, ७०, १३६. ०२, ८ से १०, १२, चिट्ठिय-चोयग १३, १५, ५६, ५८, २४०, २७६, ६७८, ६८६, ६८७, ६८६,६६२, ७००, ७०४, ७०६,७११, ७१६, ७७६ चेयखंभ [ चैत्यस्तम्भ ] रा० २३६ से २४२, २४४, ३५१. जी० ३।४०१ asar / चैत्यस्तू | ० २२२ से २२४, २२६, ३०५,३१६,३४३. जी० ३,३८१,३८२,३८५, ४७०, ४८१,५०८ चेयमह [ चैत्यमह] ० ६०० जी० ३३६१५ चेक्ख [ चैत्यक्ष ] ० २२७ से २३०, ३१०, ३१५, ३४८. जी० ३।३८६ से ३८८, ३६१, ३६२, ४१२, ४७५. ४८०, ५१३ चेद्विय | चेष्टित ] जी० ३।३०३, ५६७ चेड [ चेट ] ओ० १८. १०७५४, ७५६, ७६२, ७६४ चेडिया [ चेटिका ] ओ० ७०. ० ८०४ चेति [ चैत्य ] जी० ३।४०२, ४४२ चेतिखंभ [ चैत्यस्तम्भ ] जी० ३ | ४०२ से ४०४, ४०६, ४४२, ५१६, १०२५ चेतियथूभ | त्यस्तूप ] जी० ३२३८३, ४५१,८९४, ८६५ ८६७ चेतियरुक्ख [ चैत्यरूक्ष | जी० ३८६८, ८६ चेल (पाय ) [ चलपात्र ] ओ० १०५, १२८ चेल (बंषण ) [ चेलबन्धन | ओ० १०६, १२६ चेलुक्व [ चेलोत्क्षेप ] रा० २८१. जी० ३।४४७ aaf | चतुष्पष्टि ] जी० ३।२१८ चोक्ख [ चोक्ष ] ओ० २१, ५४, ६८. रा० २७७, २८८,७६५, ८०२. जी० ३।४४३ चोक्खायार [ चोक्षाचार] ओ० ६८ चोत्तीस | चतुस्त्रिशत् ] जी० ३१६६६ चोट्स | चतुर्दशन् ] जी० ३१३६ चोपाल | चोप्पाल ] रा० २४६ जी० ३१४१०, ५२०,६०४ atree [ चोपालक ] रा० ३५५ चोय | दे० ] रा० ३० जी० ३।२८३,३३४, ४१६,५८६ चोयग [ दे० ] रा० १६१,२५८, २७६ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोयाल-छरु चोयाल [प्रतुश्चत्वारिंशत् ] जी० ३.८३० चोयासव [दे० कोशासव] जी० ३८६० चोर चोर ओ० ११७ ग० ७५४,७५६,७६२ चोरकहा चोरकथा ओ० १०४,१२७ चोवत्तरि चतु:सन्तति जी० ३१७३३ (छ) छ षष् ] रा० १७३ जी०१:४६ छउमत्थ छमस्थ] ओ० १६६,१७०. रा० ७७१. जी० १३१२६३।६६३,३,६६७, ९३६,४२ से ४४,४६,५१ छउमत्यपरियाग [छयस्थपर्याय ] ओ० १६६ छंद [छन्द] ओ० ६७ रा० ७२० छकोडीय [षट्कोटोक] जी० ३६४०१ छगल [लगल] ओ० ५१ जी० ३.१०३८ छज्जीवणिया [षट्जीवनिका ओ० ७४१३ छट्ट | षष्ठ| ओ०६७,१४४,१७४,१७६, रा० छत्त [छत्र] ओ० २,१६,५२, ५७,६३ से ६५, ६७,६६,७०. रा० १५६,१७३,२७६,६८१ से ६८३,६६१,६६२,७००,७१५,७१६,७१६. जी० ३।२६६,२८५,३३२,३५५,४१६,४४५. ५९६,५६७,६०४ छत्तज्मय [छत्रध्वज ] २० १६२. जी० ३।३३५ छत्तपारपडिमा [छत्रधारप्रतिमा] जी० ३१४१६ छत्तधारमपहिमाछत्रधारकप्रतिमा रा०२५५ छत्तय | छत्रक] ओ०११७ छत्तलक्खण [छत्रलक्षण औ० १४६. रा० ८०६ छत्ताइच्छत्त [छत्रातिछत्र] रा० २०२,२०४, २०५ छत्ताइछत्त [छत्रातिछत्र) ओ० १२. रा० १३७, २२६. जी० ३१२६१,३१४,३५७,३७१,३७५, ४३३ छतातिच्छत्त [छत्रातिछत्र] रा० ५२,५६,२०६, २३१,२४७,२४८,२५०,२५६ छत्तातिछत्त [छत्रातिछत्र] रा० २३,१६८,१७६, २०७,२०८,२२०,२२३,२३२,२३४,२६१, जी० ३.३०७,३४६,३५६,३६७ से ३७०, ३७६,३८२,३६१,३९३,३६४,३६६,४०३, ४११,४२०,४२४,४३०,४३६,६६६ छत्तीस [षत्रिंशत् ] ओ० १६. रा० २४०. जी. ३७१० छत्तोव | छत्रोष ओ० ६,१०. जी० ३।५८३ छत्तोवग छत्रोपका जी० ३।३८८ छप्पण्ण षट्पञ्चाशत् जो० ३१३०० छप्पन्न | पटपञ्चाशत् । रा० १३० जी० ३१५६८ छप्पय (षट्पद] ओ० ६. रा० १३६,१७४. जी० ३१११८,११६,२७५,२८६,३०६ छब्भाग षड्भाग ओ० १६५ छन्भामरी पड्भ्रामरी न०७३ छम्मासिय [पाण्मासिक ओ० ३२ छयाल [षट्च वाभित्] जी० ३१८१५ छरु सरु | ओ० १६. जी. ३५६६ छठंछट्ठ षष्ठंषष्ठ] ओ० ११६ छट्ठभक्त [षष्ठभक्त ] ओ० ३२ छट्ठा षष्ठी | जी० २११३५,१३८; ३१२,६१ छविया षष्ठिका] जी० ३।१२५ छट्ठी [पष्ठी] जी० २११४,१४६ ; ३।४,३६.७१ ७४,७५,७७,८०,११११ छडिय [छटित रा० १५० जी० ३१३२३ छिडछर्दय, मुच्]-छड्डेति. रा० ७७४ छड्डेस्यामि. रा ० ७७३-छड्डेहि रा० ७७४ छडिल्लिया छाँदा ओ० ६२ छ?त्तए [दयितुम् ] रा० ७७४ छड्डेत्ता छदिया] 1. ७७४ छण्ण | छन्न | जी० ३।२७५ छण्णउय [षण्णवति । जो० ३१८२० छण्णालय [दे० पणालक] ओ० ११७ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ छरुप्पवाद-जंधा छरुप्पवाद [सहप्रवाद] ओ० १४६ छिप्पंत [स्पृश्यमान] रा० ७७ छरप्पवाय [त्सरुप्रवाद] रा० ८०६ छिरा [शिरा) जी० १।६५,१३५ ; ३६६२,१०६० छरुह [त्सरुक] जी० ३।३२२ छिरिया | दे० ] जी० ११७३ छलस [पड़न] जी० ३३४०१ छिवाडो [दे० ] रा० २६. जी० ३।२८२ छलसीत [पडशीति] जी० ३१७३६ छोइत्ता क्षुत्वा जी० ३।६३० छल्लो (दे०] रा० २८. जी० ३१२८१ छोरबिरालिया [क्षीरबिडालिका] जी० राह छवि [छवि जी०३६६,५६८ छोरविरलिया [क्षीरबिडालिका] जी० १७३ छविगहित / पविग्रहिक] जी० ३।४०१ छुभ [क्षिप्]-~छुभइ रा० ७८८.---छुभिस्सामि छविच्छेद छविच्छेद] जी० ३१६२० रा० ७८७ छविच्छेय [छविच्छेद रा० ७६२. जी० ३६२५ छुहा [क्षुध् ] ओ० १६०१८ छम्विह [पविध ] ओ० ३० ३१,३८. जी० १।१०, छुहिय [क्षुधित] जी० ३.११६ ११६; ३।१८३,१८५,६३१; ५।१,६०; ६:१५६. छेत्ता [छित्त्वा ] जी० ३१९६१ १६७,१७०,१८१ इछेद [छिद् ] -- छेदेति ओ० ११७ छव्वीस षड्विंशति | जी० ३।१०६६ छेदारिह [छेदाई ] मो० ३६ छाउमस्थिय छानस्थिक] रा० ५४६ छेदित्ता [छित्वा ] ओ० ११७ छादण [छादन] रा० २७०. जी० ६।२६४,३००, छदेत्ता [छित्त्वा] ओ० १६२ छेदोवद्रावणियचरित्तविणय [छेदोपस्थापनीय छायण [छादन] रा० १३०,१६० चरित्रविनय ] मो० ४० छाया छाया] ओ० १२,४७,७२,१६४. रा० २१, पछेय [छेदय् ]-छेइस्सइ. रा०८१६ २३,२४,३२,३४,३६,१२४,१४६,१५६,१७०, ० छेय [छेक ] ओ० ६३,६४. रा० १२,१७३,६८१, २२८,६७०,७०३. जी० ३१२६१,२६६,२६६, ७५८,७५६,७६५,७६६,७७०. जी. ३८६, ११८,१७६,१७८,१८०,१८२,२८५,४४५, २७७,३२२,३३२,३८७,५६८,६०४,६७२ छाक्ट्ठ [षट्पष्टि] जी० ३.१०२२ छावट्टि [षट्पप्टि ) जी० ३१८३८।४ छेयकर [छेदकर] ओ० ४० छेयारिय [छेकाचार्य] ओ० १.५७ छावत्तर षट्सप्तति] जी० ३१७०३ छिद | छिद्-छिद. रा०६७१...दिति रा० छवट्ट सेवात] जी० १।१७,५६,१०१,१११ २८१. जी० ३।४४७ ___ छोडिय [छोटित] जी० ३।५६६ पछिज्ज छिद् ]-छिज्जइ. रा० ७८४ छिज्जमाण [छिद्यमान] जी० ३१२२ से २५,२७, ज [यत् ओ० ३७. रा० ६. जी०१५ ४५ से ४७ जइ [यदि] ओ० ५७. रा० ७१८. जी०२५५ छिड्ड [छि:! ० ७५४ से ७५७ जइण [जविन् ] ओ० ५७. रा० १२,७५८,७५६. छिण्णावाय छिन्नापात | ओ०११६,११७. जी० ३ ८६,१७६.१७८,१८०,१८२,४४५ रा० ७६५,७७४ जइपरिसा यतिपरिषद् ] ओ० ७१ छित्त [क्षेत्र] ओ०१ जओ (यतस् ] रा० ७५४,७५५. जी० १६६ छिद्द [छिद्र ] रा० ७६३ जंघा [जङ्घा ओ०१६. रा०२५४. जी. ३१४१५, Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंत - जनबोल ५६६,५६७ जंत [ यन्त्र ] ओ० १४ १२६,६७१. जी० रा० १७, १८, २०,३२, २८८, ३००,३७२ जंतकम् [ यन्त्रकर्मन् ] ओ० ६४. रा० १७३,६५१. जी० ३।२८५ अंतवाडचल्ली [ यन्त्रपाटचुल्ली ] जी० ३१११८ बुद्दी [ जम्बूद्वीप ] ओ० १७०. रा० ७ से १०, १३,१५,५६,१२४,६६० जी० ३८६, २१७, २१६ से २२१.२२७२५६,२६०,२६६. ३००,३५१.४४५,५६६, ५६८ से ५७७,६३८, ६६०,६६५,६६६,६६८,७०१ से ७०४,७०८, ७२३,७३६,७४०,७४२,७४५,७५०, ७५४, ७६२,७६४ से ७६६,७७५,७६५.६१६ से २२, ६५३,१०३६,१०७४, १०५० जंबुद्दीवग [ जम्बूद्वीपक] जी० ३।७०६,७१०, ७६२,७६४ से ७६६, ८१४ जंबुद्दीवाहिवति [जम्बूद्वीपाधिपति] जी० ३।७१५ जंबूपेठ ] जम्बूपीठ ] जी० ३१६६८,६६९ जंबू [जम्बू ] जी० ११७१: ३।६६८, ६७२,६७३, ६७८ से ६८३,६८८,६८६,६९२ से ७००, ७६५ जंबूदमय [ जाम्बूनदमय ] जी० ३।३२३ जंबूणय [ जाम्बूनद ] रा० १५६,२२८. जी० ३३३३२, ३८७, ६७२ अंबूजयम [ जाम्बूनदमय ] रा० ३७,१५०. जी० ३१३११,४०७, ६४३ जंबूणयामय [ जाम्बूनदमय] रा० १३५,१८८, २४५. जी० ३।३०५,३६१,६६६,६६६, ८३६ जंबूदीव [ जम्बुद्वीप ] जी० ३७००,७५४,१००१, १००७, १०२२ जंबूदीवाहिति [ जम्बूद्वीपाधिपति ] जी० ३३७०० जंबूपल्लवपविभत्ति [ जम्बू पल्लवप्रविभक्त ] रा० १०० जंबूपेठ [ जम्बूपीठ ] जी० ३१६६८,६७० अंबूफस [ जम्बूफल ] ओ० १३. रा० २५. जी० ३२७८ जंबूफलकालिया [ जम्बूफलका लिया ] जी० ३१८६० जंबूरुक्ख [ जम्बूरूक्ष ] जी० ३१७०२ जंबूवण | जम्बूवन ] जी० ३।७०२ जंबूड [ जम्बूषण्ड ] जी० ३ ७०२ जंभात्ता | जृम्भयित्वा ] जी० ३१६३० जख [ यक्ष ] ओ० ४६, १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२,७८६. जी० ३७८०, ६४७, ६५० Grant [ यक्षग्रह ] जी० ३१६२८ treaser | यक्षप्रतिमा ] रा० २५७. जी० ३१४१८ जलमंडलपविभति [यक्षमण्डलप्रविभक्ति | रा० ६० क्aमह [यक्षमह ] रा० ६८८. जी० ३३६१५ क्वालित [ यक्षादीप्त ] जी० ३१६२६ अगईपव्यय [ जगतीपर्वत ] रा० १८१ जगपव्यय [ जगतीपर्वतक ] रा० १८० जगती [जगती ] जी० ३ २६० से २६३,२७३, २६८ गतीपयम [ जगतीपर्वतक ] जी० ३२६२ अघण [ जघन ] ओ० १५ ६२५ [जात्य ] ओ० १६,६४. जी० ३ ५६६,५१७, ८५४,८७८ जच्चकणग [ जात्यकनक] ओ० २७. रा० ८१३ गुलु | जय हिंगुलुक ] जी० ३१५१० जज्जरिय [ जर्जरित ] रा० ७६०, ७६१ जडि [ जटिन् ] ओ० ६४ जड्डु [जाड्य ] रा० ७३२,७३५,७६५ जण [जन ] ओ० १,६,६८,११६. रा० १२३, ७६६ जणइत्ता [ जनयित्वा ] मो० ६६ जणउम्मि [जनोमि ] रा० ६८७,७१२ जणकलकल | जन कलकल ] ओ० ५२. रा० ६८७, ६८८,७१२ जणक्य [ जनक्षय ] जी० ३६२८ जणबोल [ जनबोल ] ओ० ५२. ० ६८७,७१२ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२६ जणवय-जल जणवय जनपद] ओ० १४६. रा०६६८,६६६, ६७१,६७६,६८३,७०६,७११,७१८,७५०, ७७४,७६०,७६१ जणवयकहा [जनपदकथा] ओ० १०४,१२७ जणवयपाल [जनपदपाल ] ओ० १४. रा० ६७१ जणवयपिय [जन पदप्रिय] ओ० १४. रा० ६७१ जणवयपुरोहिय [जनपदपुराहित | ओ० १४ रा०६७१ जणवाय | जनवाद] ओ० १४६. रा० ८०६ जणवूह [ जनव्यूह ! मो० ५२ रा० ६८७,७१२ जणसण्णिवाय [जनसन्निपात ] ओ० ५२. रा०६८७,७१२ जणसद्द [जनशब्द ] ओ० ५२. रा० ६८७,६८८, ७१२ जणिय [जनित] ओ० ५१ जणुक्कलिया [जनोत्कलिका] ओ० ५२ जम्मि [जनोमि ] ओ० ५२ जण्णइ याज्ञिक ! ओ०६४ जण्णु [जानु ] रा० १२ जति [यदि] रा० ७५० जतिपरिसा [यतिपरिषद् ] रा० ६१ जतो [यतस् | रा० ७५६ जत्ताभिमुह यात्राभिमुख ओ० ५५,५८,६२,७० जत्तिय [ यावत् ] जी० ३१७७,१२७ जत्थ [यत्र] रा० ७१६. जी० ११५८ जया (यथा] जी० ३६८ जन्न [यज्ञ] जी० ३१६१४ जन्नु [जानु] रा०६ जप्पभिइ | यत्प्रभृति रा० ७६०,७६१ जमहत्ता [दे० '] ओ० २६ जमग यमक जी० ३३६३२,६३३,६३५,६३७ से जमगवण [यमकवर्ण] जी० ३१६३७ जमगवण्णाभ [यमकवर्णाभ] जी० ३१६३७ जमगसमग [दे०] ओ०६७. रा० १३,६५७ जी० ३१४४६ जमगा [यमका] जी० ३१६३७ से ६३६ जमगागार [यमकाकार जी० ३१६३७ जमबग्गिपुत्त जमदग्निपुत्र] जी० ३३११७ जमल [यमल] ओ० १,५७. रा० १२,१७,१८,२०, ३२,१२६,१३३,७५८,७५६. जी० ३.११८,२२८,३००,३०३,३७२,५६७ जमलिय यमलित ओ० ५,८,१०. रा० १४५. जी० ३१२६८,२७४ जम्म | जन्मन् ] ओ० १८४ जम्मण जन्मन्] ओ० ४६. रा० ८०३. जी० २:३० से ३४,५७ से ६१,६६,११६, १२४,१३३ : ३।६१७ अम्हा [यस्मात्] रा० ७५० जय [जय] ओ० २०,५३,६२ से ६४,६८. रा० १२,४६,७२,११८,२७६,२७६,२८२, ६५५,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७२३. जी० ३।४४२,४४५,४४८ जयंत [जयन्त ] ओ०१६२. जी० ३।१८१,२६४ ५६८,७०७,७१२,७६६,८१३,८१४,६४१ जयंती [जयन्ती] जी० ३।६१६,१०२६ जयणा [यतना] ओ० ४६ जया [ यदा] ओ० २१. रा० ७० ६. ३।७२६ जर [जरा] ओ० ४६,१७२ जर [ज्वर] जी० ३३११८,११६,६२८ जरद [जरठ] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ जरा जरा] आं०७४,१६५,१६५।८,२१. रा० ७६०,७६१ जल जल ओ० १,२३,४६,६८,१११ से ११३, १२२,१३७,१३८,१५०. रा० १७४,८११. जी. ३।११८,११६,२८६,६४२,६५३,७५४, ७६२,७६८,७७०,७७२ जिस [ज्वल्] —जलंति. रा० २८१, जी० ३।४४७ जमगप्पमा [यमकप्रभा जी० ३१६३७ १. पुनरावर्तनेनातिपरिचितं कृत्वा (३०) । Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलत-बहण्ण जलंत ज्वलत् ] ओ० २२,२७. रा० ७२३,७७७, ___ ७७८,७८८,८१३ जलकिडा [जलक्रीडा] रा० २७७. जी. ३१४४३ जलचर [जलचर | जी० ३:१२६:१,१६६ जलज [जलज) जी० ३.१७१ जलणपवेसि [ज्वलनप्रवेशिन् । ओ०६० जलपवेसि [जलप्रवेशिन् ] ओ० ६० जलमज्जण जलमज्जन } रा० २७७. जी० ३४४३ जलय [जलज] ओ०१२. रा० ६,१२,२२. जी० ३।२६० जलयर [जलचर] ओ० १५६. जी० १२९८,६६, १०१,१०३,११२,११३,११६ से ११६,१२१, १२३,१२५, २१२२,६९,७२,७६,६६,१०४, १०५,११३,१२२,१३६,१३८,१४६,१४६; ३११३७ से १४०,१४२,१४४ जलयरी जलचरी] जी० २,३,४,५०,५३,६६, ७२,१४६,१४६ जलरय [जलरजस्] ओ० १५०. रा० ८११ जलरुह [जलरुह ] जी० ११६६ । जलवासि [जलवासिन्] ओ० ६४ जलसमूह [जलसमूह ] ओ० ४६ जलाभिसेय [जलाभिषेक ओ० ६४. रा० २७७ जलावगाह ! जलावगाह] रा० २७७ जलिय [ज्वलित] जी० ३।५६० जल्ल [दे०] ओ० १, २, ८६,६२. जी० ३१५६५ जल्लपेच्छा [जल्ल' प्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० ३१६१६ जल्लोसहिपत्त [जल्लोषधिप्राप्त ] ओ० २४ जव [यव] ओ० १. जी० ३।५६७, ६२१, ७८८, जवलिय [यवलित) जी० ३३२६८ जवाकुसुस [जपाकुसुम रा०४५ जस [ यशस्] ओ०८६ से १५, ११४, ११७, १५५, १५७ से १६०, १६२, १६७ जसंसि [यशस्विन् ] ओ० २५. रा० ६८६ जसोधरा [ यशोधरा जी० ३,६६६ जह यथा ] ओ० ७४. जी० १७२ जहक्कम [ यथाक्रम ] रा० १७२ जहण | जघन ) जी० ३१५६७ जहण [जघन्य | अं० १८७, १८८, १६५. जी० १२१६, ५२, ५६, ६५, ७४, ७६, ८२, ८६ से १८, ६४, ६६, १०१, १०३, १११, ११२, ११६, ११६, १२१, १२३ से १२५, १३०, १३३, १३५ से १४०, १४२; २१२० से २२, २४ से ५०, ५३ से ६१, ६३, ६५ से ६७, ७३, ७६, ८२ से ८४, ८६ से ८८, 801 से ६३, ६७, १०७ से १११, ११३, ११४, ११६ से १३३, १३६; ३८६, ८६,६१, १०७, १२०, १५६,१६१, १६२, १६५, १७६, १७८, १८०, १८२, १८६ से १६०, २१८, ६२६, ८४४, ८४७, ६६६, १०२१, १०२७ से १०३६,१०८३, १०८४, १०८७, १०८६, ११११, ११३१, ११३२, ११३८ से ११३७; ४।३, ४,६ से ११, १६, १७; १५, ७, ८, १० से १६, २१ से २४, २८ से ३०; ६१२, ३, ६, ८ से ११, ७.३, ५, ६, १०, १२ से १८६२ से ४,२३ से २६, ३१, ३३, ३४, ३६,४०, ४१, ४३, ४७, ४६,५१,५२, ५७ से ६०, ६८ से ७३, ७७, ७८, ८०, ८३, ८५,८६,६०,६२,६३,६६, ६७,१०२, १०३, १०५, १०६, ११४, ११५, ११७, ११८,१२३ से १२८, १३२, १३४, १३६, १३८, १४२, १४४, १४६, १४६, १५०, १५२, १५३,१६० से १६२, १६४, १६५, १७१ से १७३, १७६ से १७८, १८६ से १६१, १६३, १९४, १६८ . से २००, २०२ से २०४, २०६, २०७, २१० जवण [जवन] रा०१०, १२, ५६, २७६. जी० ३३११८ जवमा | यवमध्य ] जी० ३७८८ जयममा [यवमध्या ओ०२४ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ जहण्णजोगि-जाय से २१२, २१४, २१६ से २१८, २२२, २२५, २२८, २२६, २३४, २३६, २३८, २४१ से २४४, २४६, २५७ से २६०, २६२, २६४, २६६, २७१, २७३, २७७ से २८२ जहण्णजोगि [जघन्ययोगिन् ] ओ० १८२ जहण्णपद [जघन्यपद ] जी० ३।१६५ से १६७ जहा [यथा] ओ० ६६. रा० १०. जी. ११४ जहाणामत | यथानाम | जी० ३१६६० जहाणामय | यथानामक ] ओ० १५०,१६४, १८४. रा० १२, २४, २५, २७, २८, ३०. १५४, १७३, ७०३, ७३७, ७५५, ७५८ से ७६१, ७६५, ७७२, ७५४, ८११. जी० ३।८४,११८, ११६,२१८,२८०,२८१,२८३ से २८५,३०६, ३२७, ५७८, ६०१, ६७०, ८८३ जहानामय [यथानामक] रा० २६, २६,३१, ४५, ६५, १२३, १७१, १७३. जी. ३८५, ६५, २७७ से २७६, २८२, ६०२, ७५५, ८६०, ८६६, ८७२, ८७८, ६५८, ६५६, ६६१, १०७८, १०७६ जहाभणिय [यथाभणित] रा० ६६६ जहासंभव [यथासम्भव ] जी० १११३६ जहि यत्र] जी ० ३।११२७ जहिच्छित [यथेप्सित जी० ३३१११५ जहिच्छिय [यथेप्सित | जी० ३१५६८, ६०६ जा [या] -- जति. जी० ३१८३८११ जाइ [जाति ] ओ० २३, १९५, १६५।२१ जाइमंडवग जातिमण्डपक] रा० १८४ जाइमंडवय [जातिमण्डपक] रा० १८५ जाइसंपण्ण [जातिसम्पन्न ] ओ० २५ जाइसरण [जातिस्मरण] ओ० १५६, १५७ जाइहिंगुलय [जातिहिङगुलक] रा० २७ जाईमंडवग [जातिमण्डपक ] जी० ३१२६६ आईमंवय [जातिमण्डपक] जी० ३३२६७ जाग [याग ओ० २ 1 जागर [जाग] - जागरिस्संति. रा०८०२ जागरिया (जागरिका] ओ० १४४. रा० ८०२, ८०३ माण [यान] ओ० १,७,८,१०,१४,५२,५५,५८, ५६,६२,७०,१००,१२३,१४१. रा० ६७१, ६७५,६८७,७६६. जी० ३।२७६,५८१,५८५, ६१७ जाण | ज्ञा]-जाणइ. ओ० १६९. रा० ७७१. जी० ३।१९८-जाणंति. रा० ६३. जी. ३।१०७ जाणंती... ओ. १६५७१२--जाणति, जी० ३१२०० -जाणह. रा०६३ - जाणामि. रा० ७४६--जाणासि. रा. ७६७ --जाणि स्यामो.रा० ७२१- जाणिहिति, स० ८१५ जाणमाण [जानान, जानत् ] रा० ८१५ जाणय [२] ओ० १६,२१,५४. रा०७४७ जाणविमाण [यानविमान रा० १३,१७ से १६, २४,३२,४५ से ४६,५६,५७,१२० जाणसाला [यान शाला] ओ० ५६ जाणसालिय यान शालिक] ओ० ५८,५६ जाणित्ता [ज्ञात्वा ] ओ० १४५. रा० ७६४ जाणु [जानु] ओ० १६,२१,५४. रा० २५४,२६२. __ जी० ३।४१५,४५७,५६६,५६७ जात जात] रा० ११६,८११ जातस्य [ जातरूप] रा० ७६६. जी० ३१७,३८७ जातरूवमय [जातरूपमय ] जी० ३३२६४ जाता [जाता] जी० ३।१०४०,१०४४ जाति [जाति] रा० ३०. जी० ३.१६० से १६२, १६६ से १६६,१७१,१७४,२८३,२६७.६६६ जातिगुम्म [जातिगुल्म ] जी० ३१५८० जातिपसन्ना [जातिप्रसन्ना] जी० ३१८६० जातिमंडवग [जातिमण्डपक] जी ३१८५७ जातिमंडषय [जातिमण्डपक] जी० ३१८५७ जातिसंपण्ण [जातिसम्पन्न ] रा० ६८६,६८७, ६८६,७३३ जातिहिंगुलय [जातिहिङगुलक] जी० ३।२८० जाय [जात ] ओ० २७,१५०. रा० १४,६६८, ७६०,७६१,८०२,८११ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जायकम्म-जियपरीसह ६२६ जायकम्म [जातकर्मन] ओ० १४४ जावतिय [यावत् । जी० ३.९७२,६७३ जायकोउहल्ल जातकोतहल्ल] ओ ८३ जावय [जापक] ओ० २१,५४. रा. ८,२६२. जायम । जातक] ओ० १४५. रा० ८०५ जी० ३१४५७ जायत्याम जातस्थामन्] रा०८१३ जासुअण [जपासुमनस् । रा० २७ जायरूप | जातरूप] ओ० १४,२७,१४१. रा० १०, जासुयण [जपासुमनस् | जी० ३१२८०,५६० १२,१८,६५,१३०,१६५,२२८,२७६,६७१, जाहिया | जाहिका] जी० २१६ ८१३. जी. ३१३००,६७२ जाहे ! यदा ] रा० ७७४. जी० ३.८४३ जायरूप पाय] [जातरूपपात्र] ओ० १०५, जिइंदिय जितेन्द्रिय] ओ० २५,४६,१६४ १२८ जिण [जिन ] ओ० १६,२१,२६,५१,५२,५४,१७२. जायरूव बंधण] [जातरूपबन्धन] ओ० १०६, रा०८,१६,२२५,२५४, २६२,७७१,८१५, ८१७. जी० ११:३३३८४,४१५,४४२,४५७, जायसवमय [जातरूपमय] रा० १३०,१६०, जी० ८३८।१,८६६,९१७ जिण [जि]-जिणाहि. ओ० ६८. रा० २८२. जायसंसय जातसंशय] ओ०८३ जी० ३।४४८ जायसड्ढ जातश्रद्ध] ओ० ८३ जिणपडिमा [जिनप्रतिमा ] रा० २२५,२५४ से जाया जाता] जी०३:२३५,२३९,२४१ २५८,२७,२६१,३०६ से ३०६,३१७ से जार [जार] रा० २४. जी० ३३२७७ ३२०,३४४ से ३४७. जी० ३१३८४,४१५ से जारापविभत्ति [जारकप्रविभक्ति] रा०६४ ४१६,४४२.४५७,४७१ से ४७४,४८२ से जारिसय यादृशक रा० ७७२ ४८५,५०६ से ५१२,६७६,८६६,६०८ जाल [जाल] ओ०१६,६३,६४. रा० १७,१८.. जिणमय [जिनमत ] जी० १११ जी० ३१८४,५९६ जिणवर [जिनवर] ओ० ४६. रा० २६२. जी० जालंतर जालान्तर] रा० १३७. जी० ३१३०७ ३।४५७ जालकडग [जालकटक] रा० १३४. जी० ३।३०४ जिणसकहा दे० जिण 'सकहा ] रा० २४०,२७६, जालकडय [जाल कटक] जी० ३।२६२ __ ३५१. जी० ३,४०२,४४२,५१६,१०२५ जालघरग | जालगृहक ] रा० १८२,१८३. जी० जिणिव [जिनेन्द्र ] रा० ४७ ३।२७५,२६४ जित [जित] जी० ३।४४८ जालपंजर | जालपञ्जर] रा० १३०. जी० ३१३०० जितिदिय [जितेन्द्रिय] रा०६८६ जालवंद जालवृन्द] जी० ३१५६४ जिभछिण्णग [जिह्वाछिन्नक] ओ०६० जालहरय जलिगृहक ] ओ०६ जिन्भिंदिय | जिह्वन्द्रिय] ओ० ३७ जाला | ज्वाला जी०११७८; १९८३१८५, जिमिय [निमित १० ६८५,७६५,८०२ ११८, ११६,५८६ जिय [जित ] ओ० ६८. रा० २८२,६८६. जी० जाव [यावत् । ओ०६०. रा० १ जी०१२३४ ३४४८ जावइय | यावत् ) जी० ३:१७६,१७८,१८०,१८२ जियकोह [जितक्रोध ओ० २५. रा० ६८६ जावं [यावत् ] जी. ३८४१ जियणिद्द [ जितनिद्र] ओ० २५. रा० ६८६ जावज्जीव यावज्जीव ओ०११७,१२१,१३६, जियपरीसह जितपरीषह] ओ० २५. रा. १६१,१६३ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३० जियभय-जुत्तपालित जियभय [जितभय] 1० ८१७ जियमाण [जितमान ] ओ० २५. रा० ६८६ जियमाय [जितमाय ] ओ० २५. रा०६८६ जियलोभ {जितलोभ ] ओ० २५ जियलोह [जितलोभ] रा० ६८६ जियसत्तु [जितशत्रु] रा० ६७६,६८०,६८३ से ६८५,६६८ से ७००,७०२ जीमूत [जीमूत] जी० ३१२७८ जीमूतय [जीमूतक] रा०२५ जीय [जीत] ओ० ५२. रा० ११,१६,५६,६८७, जीवपएसिय जीवप्रदेशिक ओ० १६० जीवा [जीवा] रा० ७५६. जी० ३६५७७,६३१ बोधाजीवाभिगम [ जीवाजीवाभिगम] जी १:१,२ जीवाभिगम [जीवाभिगम] जी० ११२,६ से १०; ६७,८,२६३ जोविय [जीवित ] ओ० २३,२५. रा० ६८६,७५० से ७५३,७५६,७६२,७६७ जीविया [जीविका ओ०१४७. रा० ७१४,७७६, जीव [जीव] ओ० २७,७१ से ७३,७४।४,५,८४ से ८६,१२०,१३७,१३८,१६२,१८५ से १८८. रा० ६६८,७१६,७४८ से ७६४,७६८,७७० से ७७३,७८६,८१३,८१५. जी० ११०,११, १५ से ३३,५१ से ५४,५६,५६ से ६२,६४, ७४,७६,८२,८५ से ८७,६०,६३ से ६६,१०१, ११६,१२८,१३० से १३४,१४३,२।१,१५१ ३११,५३,५४,८७,११८,१२६,१२७,१२७७२, ५,१२६५,९,१५० से १६०,१८३,१६२,२१०, २११,५७५,५७६,७१६,७२०,७२४.७२७, ७८७,८०६,८१८,८२८,८५३,८५६,८५०, ६४६,९७४,६७५,१०८१,११२८,११३०, ११३८, ४११,२५, ५॥१,६०, ६।१,१२,७१, २३:८1१,५,६।१७ से ८,१५,१८,२१,२२, २८ से ३०,३६,३८,५६,६२,६३,६६,६७, ७५,८८,६५,१०१,१०६,११२,११३,१२१, १३१,१४१,१४७,१४८,१५६,१५८,१५६, १६७,१७०,१८१,१८२,१८५,१६६,१६७, २०८,२०६,२२०,२२१,२३२,२५५,२५६, २६७,२६३ जीवजीवग जीवंजीवक] ओ० ६. जी० ३१२७५ जीवंत [जीवत् ] रा० ७५४,७६२,७६३ जीवंतग [ जीवत्क] रा० ७६२ जीवघण [ जीवधन] ओ.० १८३,१८४,१६५।११ जीवदय [जीवदय] ओ० १६,२१,५४, रा०८ जीबोवलंभ [जीवोपलम्भ] रा० ७६८ बोहा जिह्वा] ओ० १६,४७. रा० २५४. जी. ३४१५,५९६,५६७ ह [द्युति] ओ० ४७,७२,८६ से ६५,११४, ११७,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० १३,६५७ जुज [युज्}-जुजइ. ओ० १७५ झुंजमाण [युजान ] ओ० १७६,१७८ से १८० जुग युग] ओ० १६. जी० ३।५९६,८४१ जुगल [बुगल] रा०२३. जी. ३१५६७ जगव [युगपत् ] ओ०१८२ जगव युगवत् रा० १२,७५८,७५६. जी० ३३११८,११६ अग्य [सुग्य] ओ०१,७,८,१०,१००,१२३. जी० ३।२७६,५८१,५८५,६१७ जुझसज्ज [ युद्ध सज्ज ] रा० १७३,६८१ जुण्ण [जीणं ] रा० ७६०,७६१,७८२ जुण्णय [जीर्णक] रा० ७६१ जुति [द्युति] रा० १३,१२१,६५७. जी० ३.४४६, ४५७ जुत्त [युक्त ] हे० १५,१६,२३,५५,५७,५८,६२, ७०,७१.० १७,१८,२०,३२,६१,७०, १२६,२८५,२६२,६६४,६७२,६८१,६५२, ६६०,६६१,७०६, ७१४,७२४,८०६,८१०. जी० ३१२८८,३००,३७२,४५१,४५७,५६२, ५८६,५६२,५६६,५६७,३८३२ जुत्तपालित [युक्तपालिक] जी० ३१५६२ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जुत्तपालिय-जोतिस जुतपालिय [ युक्तपालिक] रा० ६६४ नृतय [युक्तक ] रा० ७७६ जुत्तामेव [ युक्तमेव ] रा० ७०६ जुति [ युक्ति ] ओ० ६७ जुद्ध [ युद्ध ] ओ० १४६. रा० ८०६. जी० ३३६३१ जुद्धबुद्ध [ युद्धयुद्ध ] रा० ८०६ जुद्धसज्ज [ युद्धसज्ज ] ओ० ५७,६४. रा० ६८२, ६६१. जी० ३२८५. जुद्धा जुम्ह [ युष्मत् ] To & जुयल [भुगल ] ओ० १२,५७ १० १२, १७, १८, २०,३२,१२६,१३३,२८५.२६१, ७५८,७५६. जी० ३।११८,२८८, २६१,३००,३०३, ३७२, _४५१,४५९,५६७ जुयलग [ युगलक ] जी० ३१६३० जुवइ [ युवति] खो० १ [ युद्धातियुद्ध ] ओ० १४६ जुवराय [ युवराज ] रा० ६७४. जी० ३६०६ जुलिय [ युगलित ] ओ० ५,८,१०. २१० १४५. जी० ३१२६८,२७४ जूहिया मंडवय | यूथिकामण्डपक ] रा० १८५ जे [ ज्येष्ठ ] ओ० ८२. रा० ६७३, ६७५ जेट्ठामूल [जष्ठाभूल ओ० ११५ जेणामेव [ यत्रेव ] रा० ७५४. जी० ३१४४३ जोइ [ ज्योतिस् ] 1० ७५७,७६५, ७७२ जोभायण [ ज्योतिर्भाजन ] रा० ७६५ जोइस [ ज्योति, ज्योतिष ] ओ० ५०. रा० ५६. जी० ३१८३८१२ जुवाण [ युवन् ] रा० १२,७५८, ७५६. जी० ३।११८ जोणि [ योनि ] ओ० १६५ जूय [ द्यूत ] ओ० १४६. रा० ८०६ जूयय [ यूपक] जी० ३ ७२३ ज्या [ यूका ] जी० ३३७८६ जूद [ यूप ] जी० ३१५६७ जूवय | यूपक ] जी० ३६२६ जूवा [ यूका | जी० ३६२४ जूहिया | यूथिका ] 1० ३० जी० ३।२८३ जूहियागुम्म | यूथिका गुल्म ] जी० ३१५८० जूहिया मंडव | यूकामण्डपक] रा० १८४. जी० ३:२६६ जोइसामयण [ ज्योतिषायण ] ओ० ६७ जोइसिणी [ ज्योतिषी ] जी० २१७१,७२,१४८ जोइसिय [ ज्योतिष्क, ज्योतिषिक ] ओ० ५०,९४. रा० ११. जी० १११३५ २३१५, १८, ३६ से ४४,७१७२,६६, ३।२३०, ८३८।२१,६१७ जोईरस [ ज्योतीरस] २० १०, १२,१८, ६५, १६५, २७६ जोईरसमय [ ज्योतीरसमय ] रा० १३०,१६० जोता [ योजयित्वा ] ओ० ५६ जोग | योग ] ओ० ११७. रा० ८१५. जी० १ ३४, ६,१०१,११६,१२८, १३६; ३११२७, १६०, ७०३, ७२२, ५०६, ८२०, ८३०, ८३४,६३७, ८३८११०,३२ जोगनिरोह [ योगनिरोध ] ओ० १८२ जोडिलीया [ योगप्रति संलीनता ] ओ० ३६ जोगि [ योगिन् ] ओ० ६६ जोग्ग [ योग्य ] ओ० ६३. रा० ६, १२,४७ ६३१ [ योनिमुख ] जी० १२५८,७३,७८, ८१ जोणिया [ योनिका ] ओ० ७०. रा० ८०४ जोणिसंग्रह [ योनिसंग्रह ] जी० ३६१४७ जोसिल [ योनिशूल ] जी० ३।६२८ [ योनिमुख ] जी० ३३१६० से १६२, १६६ से १६६, १७१, १७४, ६६६, ६६८ जगह [ योनिसङ्ग्रह ] जी० ३ १६०, १६१, १६३ जोह [ ज्योत्स्न ] जी० ३१८३८१६, २० जोति [ ज्योतिस् ] रा० ७६५ जोतिभायण [ ज्योतिर्भाजन ] रा० ७६५ जोतिरस | ज्योतीरस ] जी० ३१७ जोतिरसमय [ ज्योतीरसमय ] जी० ३१२६४, ३०० जोतिस [ ज्योतिस् ज्योतिष ] जी० ३३८५८,८६१, Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ जोतिसराय-झय ५६४, ८६७, ८७०, ६२४, ६४२, ६५२, ४४५, ५६६, ५६८ से ५७०, ५७७, ६३२, १००१, १००२, १००६ ६३४, ६३८, ६३६, ६४२, ६४४,६५३,६५६, जोतिसराय [ज्योतीराज] जी० ३१२५७, २५८, ६६०, ६६१, ६६३, ६६६,६६८, ६७१,६७८, १०२३ से १०२६ ६७६ ६८२, ६८३, ६८६ से ६८६, ७०६, जोतिसविसय [ज्योति विषय ] जी० ३.१००६ ७१०, ७१४, ७२३ से ७२८, ७३२, ७३६, जोतिसिंद ज्योतिरिन्द्र, ज्यौतिपेन्द्र | जी० ३।२५७, ७३७, ७३६ से ७४२, ७४५, ७५०, ७५४, २५८, १०२३ से १०२६ ७५६, ७५८, ७६१, ७६२, ७६४ से ७३९, जोतिसिणी [ज्योतिषी] जी० २११४६ ७८० से ७६२, ७६४, ७६५, ७६८, ८०२, जोतिसिय [ज्योतिप्क, ज्योतिपिक ] जी० २१९५, ८१२ ८१४, ८१५, ८२३, ८२७, ८३२, ६६, १४८, १४६; ३१२५७, ५६०,७६३, ८३५, ८३८।२७, २८, ८३६, ८४२, ८४५, १०२५ ८५०, ८५२, ८८२,८८४, ९८५, ८८७, जोय | योग] ओ० ६४. रा० ५१, ७६६. ८८८, ८६१, ८६३ से ८६५, ८६७ से १०१, जी० ३७०३, ६।६६ ९०६, ६०७, ६१०, ११,६१८, ६४०,६४४, १६६ से १७१, १००१ से १००६, १०१० से जोय योजय् —जोइंसु. जी० ३७०३जोइस्सति.जी० ३७०३--जोएइ. ओ० ५६ १०१२, १०३८, १०६५ से १०७०, १०७३, जोएस्संति. जी० ३७०३ -जोयंति. ३७०३ १०७४, १०८७. १०५८ जोयणय [योजनक] जी० ३३२२६, ६६३ जोयण [ योजन] ओ० ७१, १७०, १६२, १६५. जोयणिय [योजनिक] ओ० १६२ रा०६, १०, १२, १४, १७, १८, ३६, ५२, जोवण | यौवन] ओ० ४७. रा०६६, ७०. ५६, ६१, ६५, १२४, १२६ से १२६, १३७, जा० ३१५६७ १७०, १८६, १८८, १८६, २०१, २०४ से जोव्वणय [यौवनक] रा० ८०६, ८१० २१२, २१८, २२१, २२२, २२४, २२६, जोह [योध] ओ० २३, ५२, ५५ से ५७,६२,६५. २२७, २३०, २३१, २३३, २३८ से २४०, रा० १७३, ६८१,६८७,६८८. जी. ३१२८५ २४२, २४४, २४६, २४७, २५१ से २५३, झ २६१, २६२, २६७, २७२,२७६, ७२७,७५३. झंझा (झञ्झा रा०७७ जी० ११७४, ८६. १०१, १११, ११६, १२३, झंझावाय [झञ्झावात ] जी० १८१ १३५; ३१५, १४ से २१, २५ से २७, ३३ से झड | दे० ] रा० ७८२ ३६, ३६ से ४३, ४७, ६० से ७२, ७७, ८० झय ध्वज] ओ० २,१२,५५, ५७, ६५. रा० २२, से ८२, ८६, १२६७, २१७, २१६ से २२७, १६७, १७३, १७८, २०२, २०४ से २०८, २३२, २५७, २६० से २६३, २७३, २६८, २१४, २२०, २२३, २२६, २३२, २३४, ३००, ३०७, ३१०, ३५१, ३५२, ३५४, २४१, २४८, २५०, २५८, २५६,२६१,२७६, ३५५, ३५८, ३५६, ३६१, ३६२, ३६४, २८१,६८१, ७१५. जी० ३।२८५, २६०, ३६५, ३६८ से ३७४, ३७६, ३७७, ३८०, ३४८, ३५६, ३६७ से ३७१, ३७५, ३७६, ३८१, ३८३, ३८५, ३८६, ३६२, ३६३, ३८२, ३६१, ३६४, ४०३, ४१२,४१६,४२०, ३६५, ४०० से ४०२, ४०४, ४०६, ४०८, ४२४, ४३०, ४३३, ४३६, ४४५,४४७.५८६ ४१२ से ४१४, ४२२, ४२५, ४२७, ४३७, ५६७, ६०४ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झल्लरी-ठियलेस सल्लरी झल्लरी] ओ०६७. रा० १३,७७,६५७. जी० ३१२८ से ३२, ७८,४४६, ६१८ झस | झप] ओ० १६. जी. ३१५९६ झाण [ध्यान ] ओ० ३८,४३, ४६ झाणकोट्ठोवगय [ध्यानकोष्ठोपगत ] ओ० ४५,८२ साम [दग्ध] जी० ३६६ झिाम [दह, ] झाभिज्जइ रा०७६७ ‘झिया [ध्य] --झियाइ रा० ७६५ --झियामि । रा० ७६५.---झियायसि रा० ७६५ झियायमाण [ध्यायत् ] रा० ७६५ झीण क्षीण ] ओ० ११६,११७. रा० ७७४ झीणोदग क्षीणोदक ] आ० ११७ मुसिय [ शुषित] जी० ३।११८,११६ झुसिर [शुषिर] जी० ३१८०,९६,४४७,५८८ झूसणा [जूषणा] ओ० ७७ सूसित्ता जुषित्वा] आ० १४० झूसिय [जुष्ट, शुषित ] ओ० ११७ ठाणपय स्थानपद] जी० ३३१०४८,१०५६ ठाणप्पय [स्थानपद] जी० ३१७७ ठाणमग्गण [स्थानमार्गण] जी० ११३४,३६,३६ ठि [ स्थिति] ओ० ८६ से ६५,११४,११७.१४०, १५५,१५७ से १६०, १६२,१६७,१७१. रा० ६६५.६६६. जी०१:१४,५२,५६,६०; २११५१; ३२१२७१५,१२६३५,१६०,६३१,१०४२ ठिइक्खय [स्थितिक्षय ] ओ० १४१ रा० ७६ ठिइय [स्थितिक | ओ० ७०. जी० ११३३ ठिइडिया [स्थितिपतिता] मो० १४४ ठिईय [स्थितिक] जी० ३१७२१ ठिच्चा [स्थित्वा] रा० ७३६ ठित [स्थित जी० ३।३०३,८४५ ठिति [स्थिति] रा० ७६८,८१५, जी० ११६५, ७४,८२,८७,८८,६६,१०३,१११,११२,११६, ११६,१२०,१२३ से १२५,१२८,१३३,१३६ से १३८२२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,७६ से ८१,८५,१०७ से १०६, १११ से ११४,११६,११८,१५०, ३।१२०, १५६,१६२,१६५,१८६,१६२,२१८,२३८, २४३.२४७,२५०,२५६,२५८,५६४,५६५, ६२६,१०२७,१०४२,१०४४,१०४६,१०४७, १०४६,१०५०,१०५२,१०५३,१०५५,११२६, ११३१, ४१३,५,६ ; ५।५,७,२१,२८, ६३२,५, ७; ७२,८; ८१२; ६२ ठितिपद [स्थितिपद] जी० ३.१९२ ठितिवडिया | स्थितिपतिता) रा० ८०२,८०३ ठितीय [स्थितिक] रा० १८६. जी० ३३३५०, ३५६,६३७,६५६,७००,७२४,७२७,७३८, ७६०,७६३,७६५,८०८,८१६.८२६,८४२, ८४५,८५४,८५७,८६३,८६६,८६६,८७२, ८७५,८७८,८८५,९२३,६२५ ठिय स्थित ) ओ० ४०. रा० १७,१८,१३०,१३३, ७०३. जी० ३।३०० ठियलेस [स्थितलेश्य] ओ० ५० टकारवग्ग [टकारवर्ग ] रा० ६७ ठिव स्थापय --ठवेइ रा०६८१-ठवेई रा०५६–ठवेंति ओ० ५२. रा०६८७ –ठवेति ओ० ६६. रा०६८३ ठवित्ता | स्थापयित्वा) रा० ७६१ ठविय स्थापित ) ओ० १३४ ठवेत्ता (स्थापयित्वा] ओ० ५२. र१० ५६ ठाण | स्थान] आ० १६.२१,४०,५४,७३,६५, ११७,१५५,१५६. रा० ८,७६,१७३,२६२, ६७५.७१४,७१६,७५१,७५३,७७१,७६६. जी० १११२४; ३२२८५,४५७,८४३,८४५, ८४६ आणदिइय [स्थानास्थतिक ] ओ० ३६ ठाणधर स्थानधर ओ० ४५ ठाणपद [स्थानपद] जी० ३।२३३,२३४,२४८, २५० से २५२,२५७,१०४५ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३४ डंड [ दण्ड ] T० ७५ १ संत [ दह्यमान ] जी० ३।४४७ डमर [ डमर ] ओ० १४. रा० ६७१. जी० ३१६२७ डमरकर [ डमरकर ] ओ० ६४ [ डिण्डिम ] रा० ७७. जी० ३८८ fsa [ डिम्ब ] ओ० १४. ० ६७१. जी०३१६२७ (ठ) टंक [ दे० ढङ्क ] जी० १ ११५ टिकुण [ दे० ] जी० ३६२४ (ण) [न] ओ० ४७. रा० ६. जी० ११८२ उत [ नयुत ] जी० ३१८४१ [नवति ] जो० ३।१००३ णउति | नवति ] जी० ३ १००४ 3 [ नवति ] जी० ३।२५७ उल [ नकुल ] जी० ११११२ उली | नकुली ] जी० २६ णं [ दे० ] ओ० १. रा० २. जी० १1१० गूलिय [ लाङ्गूलिक | जी० ३।२१६ गुलियो [लाङ्गूलिकद्वीप ] जी० ३।२२४ गंगोलिय [ लाङ्गूलिक ] जी० ३।२२० गंगोलियदीव [ लाङ्गूलिकद्वीप ] जी० ३।२२० वणवण [ नन्दनवन ] रा० २७६. जी० ३२४४५ गंदा [ नन्दक' ] ओ० ६८ गंदा | नन्दा ] रा० २३४, २८८, ३१३, ३७६, ४३५, ४६६,५५६,६१६. जी० ३१३६५. ३६६,४१२, ४२५,४३८,४५४,४७७, ४७८, ५१५, ५२३, _५२६,५३७,५४४,५५१,५५६,६८३,६८५, ६८६,६८८,१०१,६१०,६१४ से ६१६,६१६ दिघोस | नन्दिघोष | ओ० ६४. रा० १३५. १. नन्दति--समृद्धी भवतीति नन्दास्यामन्त्रमिदम्, इह च दीर्घत्वं प्राकृतत्वात् (वृ) | जी० ३।२८५, ३०५ दिजगण [ नन्दिजनन ] रा० ७५० दयावत [ नन्द्यावर्त ] ओ० ५१,६४. रा० २१, ४६. जी० ३१२८६, ५६४ इंड- गोहपरिमंडल विरुक् [ नन्दिक्ष] ओ० ६,१०. जी० ३१५८३ दवा [ नन्दिवना ] जी० ३।६१४ णं दिसेणा [नन्दिषेणा ] जी० ३।६१० दिस्सर [ नन्दिस्वर] रा० १३५. जी० ३१३०५ विस्तर [ नन्दीश्वर ] जी० ३१६४८, ६४६ दिस्सरवर | नन्दीश्वरवर ] जी० ३१८८० से ८८२,६१८,६२५ मंदिरसरोद [ नन्दीश्वरोद ] जी० ३३६२५६२७ दी | नन्दो ] जी० ३१७७५ it [ नन्दीमुख] ओ० ६ दुत्तरा | नन्दोतरा | जी० ३ ६१४,६१६ क्ख [ नख] ओ० १६. जी० ४१५,५६६ क्खत [ नक्षत्र | ओ० ५०, १४५, १६२. र० ८०% जी० ३७७५८०६, ८२०८३०, ८३४, ८३७,८४१,८४२, ८४५, ६३७, १०००, १००७,१०२०,१०२१,१०३७, १०३८ trafaमाण [ नक्षत्रविमान ] जी० २१४३, ३/१०१३,१०१८,१०३३ ख | नख ] जी० ३३५६७ नगर | नगर | ओ० ४६. जी० ३।६०६ जगरगुत्तिय नगरगुप्तिक ] श० ७५४,७५६, ७६२,७६४ नगरमाण [ नगरमान ] २० ८०६ नगररोग [ नगररोग ] जी० ३।६२८ गरी [ नगरी ] ० २०,५३. रा० ६७१,६८६, ६६२,७००,७०२,७०६,७०८,७१३, ७१६, ७५० जग्गभाव | नग्नभाव ] रा० ८१६ णग्गोह [ न्यग्रोध ] जी० १७२ जग्गोहपरिमंडल [ न्यग्रोधपरिमण्डल | जी० ११११६ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवंत-गव मवंत [ नृत्यत् ] ओ० ६४ raण [ नर्तन ] ओ० ४६ दृ [ नाट्य ] ओ० १४६, १४८, १४९. जी० ३६३१, १०२५ ट्टग [ नाट्यक] ओ० १,२ पेच्छा [ नाट्यप्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५ पेच्छा [ नाट्यप्रेक्षा ] जी० ३।६१६ हमाल [ वृत्तमाल ] जी० ३।५८२ ट्टविधि [ नाट्यविधि ] जी० ३१४४७ विहि [ नाट्यविधि ] रा० ७३,८१ से १५,१०० से १११, ११३,११६,२८१. जी० ३१४४७ सज्ज [ नाटयसज्ज ] रा० ७६,१७३ साला [ नाट्यशाला ] १० ७८१,७८३,७८६, ७८७ ट्टाणिय [ नाटघानीक] १० ४७,५६ [नष्ट ] रा० ६, १२. जी० ३४४७ पेच्छा [नटप्रेक्षा ] जी० ३।६१६ णय [ नप्तृक ] रा० ७५० से ७५३ त्यभाव [ नास्तिभाव ] ओ० ७१ णमिह [ नदीमह ] जी० ३३६१५ पुंसंग [ नपुंसक ] जी० १११२८ २११ : ३३१४८, १४६,१६४ पुंगवेय [ नपुंसक वेद ] जी० ११२५, १०१ पुंगवे [ नपुंसक वेदक ] जी० ११८६ म [नम् ] - णमेइ जी० ३।४५७ / मंस [ नमस्य् ] --- मंसइ ओ० २१ - णमंसंति. ओ० ४७. १० ६८७. जी० ३।४५७ __ णमंसति रा०८ मंसह. रा० ६ - णमंसामो. ओ० ५२. रा० १० -- मंसेज्जा. रा० ७७६ सण [ नमस्यन ] ओ० ५२ समाण [ नमस्यत् ] ओ० ४७,५२,६६,८३. रा० ६०,६८७,६६२,७१६ सिलए [ नमस्थितुम् ] ओ० १३६ णमंसित्ता [ नमस्थित्वा ] ओ० २१. १०८ जी० ३२४५७ मिय [नमित ] जी० ३।३८७,५६७ णमेत्ता [नमयित्वा ] जी० ३।४५७ णमो [ नमस् ] ओ० २१. रा० ८१७. जी० ३।४५७ णय [नत ] रा० २४५,६६४. जी० ३।४०७, ५६२ यण [नयन ] ओ० १६,२१,४७,५४, रा० ८. ७१४. जी० ३।३८७,५६७ raणकीयरासि [नयनकीकाराशि) ओ० १३ यणप्पाडियग [ उत्पाटितकनयन ] ओ० ९० यर [ नगर] ओ० २८,२६,६८,८९ से १३,६५, ६६,११५, ११८, ११६, १५५, १५८ से १६१, १६३,१६८ ६३५ णयरगुत्तिय [ नगरगुप्तिक ] ओ० ६०, ६१ जयरी [ नगरी ] ओ० २,१४,२० से २२, ५२, ५५, ६० से ६२,६७,६८,७० १० १०,१३,६८७ से ६८६,७००, ७०३, ७५०, ७५३ जर [नर] ओ० १३,४६. रा० १२६,१७३,६८१, ७५३. जी० ३१२८५,२८८, ३११,३१८,३७२ ree [ नरक ] जी० ३७८ से ५१,८४ कंठक [नरकण्ठक ] जी० ३।३५५०३ गरम [ नरक ] ओ० ७४११, ३. जी० ३११२,७७, ८५ से ८७, १२७ रपवर [ नरप्रवर] ओ० १४ णरय [ नरक ] ओ० ७४. जी० ३१७७,८५,११७ से ११६ ras [ नरपति ] ओ० १,२३,६३,६५ रक्सभ [ नरवृषभ ] ओ० ६५ रसीह [ नरसिंह] ओ० ६५ रिद [ नरेन्द्र ] ओ० ६५ लागणि [ नलाग्नि] जी० ३।११८ लिज [ नलिन | रा० २३,११७,२७६,२८८. जी० ३१११८, ११६, २५६, २८६,२६१,८४१ ली [ नलिनी] ओ० १. रा० ७७७,७७८, ७८८ जव | नवन् ] ओ० १४३. रा० ८०१. जी० १११० Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३६ णव-जातिय णव नव] ओ० १,५,८,७१. रा०६१. जी० ३,२७४,५६७ णवंग नवाङ्ग] रा० ८०६,८१० णवण वमिया [नवनबकिका] ओ० २४ णवणीइयागुम्म नवनीतिकागुल्म] जी० ३३५८० णवणीत ( नवनीत | जी० २८४,२६७ णवणीय [नवनीत | ओ० १३,६२,६३. रा० ३१, ३७,१८५,२४५. जी० ३१४०७ णवनीय [नवनीत | जी० ३१३११ णवतय [नवत्वक् ] रा० ३७ णवमिया [नवमिका] जी० ३१६२१ गवय [नवक] रा० ७५६,७६१ णवरं | दे०] जी० ११५६ णवरि [दे०] जी० ११६६ गवविष [नवविध जी० ८१,५; ६।२२१,२३२ णह [नख ] ओ० ६२. रा० ८,१०,१२,१४,१८, ४६,७२,७४,११८,१५०,२७६,६५५,६८१, ६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४,७२३. जी० ३१५६७ गाइ [ज्ञाति ] ओ० १५०. रा० ७५१,७७४,८०२, णागद्दार [नागद्वार] जो० ३।८८५ णागधर [नागधर] ओ० ६६ णागपइ [नागपति] ओ० ४८ णागफड | नागस्फटा] ओ० ४८ णागमह नागमह] जो० ३३६१५ णागराय नागराज जी. ३७३४ से ७३६, ७४०,७४२,७४५,७४८ से ७५०,७८१,७८२ णागरुक्ख [ नागरूक्ष] जी० ११७१ णागलया [ नागलता] ओ० ११. जो० ३।५८४ गागलयामंडवग [ नागलतामण्डपक] रा० १८४. जी० ३।२६६ जागलयामंवय नागलतामण्डपक रा० १८५ णाङग नाटक] रा० ६८५ जाण [ज्ञान ओ० ४६,५४,१५३,१६५,१६६, १८१,१८,१६५१११. रा० २६२,६८६,७३३, ७३६,७४६,७७१,८१४. जी० ३।१५२,४५७, जाणत्त नानात्व] जी० ११११६; ३।१६१,१६५, २१८ णाणविणय ज्ञानविनय ] ओ० ४० माणसंपण्ण ज्ञान:म्पन्न ओ० २५ णाणा [नाना] ओ० ५०,६३,७०. रा० १६,२०, ३२,३७,४०,१३०,१३३,१३५.१३६,१३५, १७५,१६०,२४५,८०४. जी० ३१७८,२६४, २६५.२८६ से २८८,३००,३०२,३०५, ३०६,३११,३२२,३७२,४३५,६५४,१०७१, गाइय [नादित ] औ० ६,६७. रा० १३,५६,५८. जी० ३१२७५,२८६,४५७,५५७ णाऊण ज्ञात्वा] ओ० २३ णाग नाग] ओ० ६६,१२०,१६२. रा०६६८, ७५२,७७१,७८६. जी० ३।३३५,५६६,७३३, ८८५,६४४,६४५,६४७ जागरगह नागग्रह] जी० ३१६२८ भागदंत नामदन्त) रा० १३२,२४०. जी० ३।३०२,३१७,४०२ जागवंतग नागदन्तक] जी० ३।३०२,३१७,३२६, णाणावरणिज्ज जानावरणीय ] ओ० ४४ जाणाविह नानाविध] ओ०६ से ८,१०,४६,५५, १०७,१३०. रा० २४,३२,१२८,१३३,१५१, १५२,१७१,२८१. जी० ३।२७५,२७७,३०३, ३२४,३२५.३५३.४४७ जाणि | जानिन् | जी० ११८७,६६,११६,१३३, १३६, ३३१०४,१५२,११०७,११०८६।३०, णागदंतय नागदन्तक रा० १३२,१५३,२३५, २३६. जी० ३।३०२,३२६,३५५ णागदीव नागट्टीप] जी० ३१९४४,६४५ णातिय नादित रा० २६१ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णाभि-णिग्गय णाभि नाभि | ओ० १६. जी० ३।४१५,५६६, णि उण [निपुण] ओ० १५,४६,६३. रा० १२,१७, ५६७ १८,७५८,७५६,८०८,८१०. जी० ३।११६, णाम [नामन् ] ओ० १४,१५,२०,४४,५२,५३,८२, ५८८,५६२,५६७ १४४,१७१,१६२,१६५५१६. रा०११,१७, जिओग निमोद | जी० ५१३३ १८,७६,८१,८३ से ६५,१०० से १११,११३, णिओत [निगोद जी० ५।१६ २८१,६६६ से ६७२,६७५,६८७,७१३,७५१, हिओद [निगोद] जी० ५२८ से ३०,३७,३८,४१ ८०२. जी. ११३१३,४,१२८,२१७,२१६ से ४३,५०,५२,५६ से २२३,२२५,२२७,२६०,३००,३५०,३५१, णिोदजीव [निगोदजीव ] जी० ५।३७,५३,५८ से ४०१,५६६,५६८,५६६,५७७,५८२,५८६ से ५६२,५६५,६३२ ६३८,६३६,७००,७०१, णिकरिय निकरित] ओ०१६ ७०४,७०८,७१०,७११,७३६,७४०,७४२, णिकाय निकाय] ओ० ४६ ७४५,७५०,७५४,७६१,७६२,७६५,७६६, णिकरंब [निकुरम्ब] ओ० ४. रा० १७०. ७६८ से ७७०,७७२,७७५ से ७७८,७६५, ___ जी० ३१५९६ ७६६,८००,८१०,८१४,८२१,८२५,८२६, णिक्कंकड निष्कङ्कट] जी० ३.२६१,२३६ ८४८,८५६,८५६,८६२,८६५,८६८,८७१, णिक्कंखिय | निष्काङ्क्षित] ओ० १२०,१६२. ८७४,८७७,८८०,६२५,६२७ स ६३२ रा०६६८,७५२,७८६ ६३८ से १४१,६४३,६४४,९७२,१०३६, मिक्खित्तउक्खित्तचरय निक्षिप्त उत्क्षिप्तचरक] ओ० ३४ णामक | नामाङ्क] ओ० ५० णि क्खित्तचरय [निक्षिप्तचरक ] ओ० ३४ मामधेज्ज [नामधेय ] ओ० १६,२१,५१,५४, णिक्खड [निष्कुट ] रा० १४ १४४,१६३. जी० ३१३५०,६६६,७०२,७६०, णिगर [निकर] रा० १३०. जी० ३१३००,५६०, ५६७ णामधेय [नामधय } ओ० ११७. रा० २६२. णिगरण निगरण] जी० ३१५८६ जी० ३१४५७ णि गरित निकरित जी० ३६५६७ णामय नामक रा०६६७. जी. ३१७७५ णिगलमालिया [ निगडमालिका ] जी० ३१५६३ णाय |ज्ञात ओ०२. रा०६८८ इणिगिण्ह [नि !-ग्रह --णिरिहाइ रा०६६३ णाय । ज्ञात, नाग ओ०२३ णिगोदजीव [ निगोदजीव जी० ५१५६ णायव ज्ञातव्य रा० १७२ णि वर्गथ (निम्रन्थ । ओ० २५,३३,७२,७६. णाराय [ नाराच जी० ३।११० रा०६६८,७४८ से ७५०,७५२,७८९ णारी नारी] जी० ३१२८५ णिग्गंथी [निन्थी] ओ० ७६ णालबद्ध नालबद्ध जी० ३।१७४ :णि गच्छ निर --गम् |-णिग्गच्छइ, रा० ६९. णालिएरिवण नालिकेरीवन जी० ३१५८१ जी० ३।४४३...णिगच्छति. ओ०५२. णालियाखेड नालिकाखेल ओ० १४६. २०६८७. जी० ३।४४५ रा० ८०६ णि ग्गच्छित्ता निर्गत्य] ओ० ५२. रा० ६८७. णासा (नासा ओ० १६,४७. जी०३:५६६,५१७ जी० ३।४४३ जासिया नासिका जी० ३१४१५ जिग्गय [निर्गत] ओ० ६३. रा० ७५४,७५५ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिग्गह-णियाणमयग णिग्गह [निग्रह] ओ० २५ णिव्हग [निह्नव] ओ० १६० णिग्यांत निर्धात] जी० ३१६२६ ‘णिद्दा [निद्रा] ---णिद्दाएज्ज. जी० ३।११८ णिग्याय [ निर्घात ] जी० ११७८ गिद्ध (स्निग्ध] ओ० ४,१३,१६,४७. रा० १७०, णिग्घायण [निर्घातन] ओ० २६ ७०३. जी. ३।२२,२७३,५८६,५६६,५६७, णिग्घोस [ निर्घोष ओ०६७. रा० १३. १०६८ जी० ३.४४६,४५७ गिद्धत [निर्मात ] ओ० १६.४७ णिघस [निकष ] ओ०६२ णिद्धच्छाय [ स्निग्धच्छाय | ओ० ४. रा० १७०, णिचयनिचय ) ओ० २३. जी० ३१२८४ ७०३. जी० ३१२७३ णिचिय [निचित] रा० १२,७५८,७५६. णिद्धोभास | स्निग्धावभास] ओ० ४. रा. १७०, ___ जी० ३:५६६ ७०३ जी० ३१२७३ णिच्च [नित्य] ओ० ५,८,१०,११. रा० १४५, णिषि [निधि ] जी० ३।६३७ २००. जी० ३२५६,११६,२६८,२७२,२७४, णिप्पंक [निष्पक] ओ० १६४. जी० ३।२६१,२६६ ३५०,६३७,१:०२,७२१,७३८,७६०,७६३, णिभय [निर्भय ] ओ० ४६ ८०८,८१६,८२६,८३३,८३६,८३८।१७,८४०, णिभिज्जमाण [निभिद्यमान] जी० ३।२८३ ८५४,६२३ णिभ | निभ| ओ०६४.जी. ३.५९६ णिच्चमंडिया नित्यमण्डिता] जी० ३।६६६ णिमग निमग्न ] ओ० १६. जी० ३:५६६ णिच्चालोय [नित्यालोक] जी० ३।१०७७ णिमिसिय / निमिषित ] जी० ३।११८ णिञ्चुज्जोय [नित्योदयात ] जी० ३।१०७७ हिम्मच्छ निर्मत्स्य ] जी० ३१९६५ णिच्छिड्डु | निश्छिद्र ] रा० ७५५,७७२ जिम्मल [निर्मल ] ओ० १६,४७,१८३,१८४,१९४. णिच्छिपण निच्छिन्न ] ओ० १६५।२१ ___ जी० ३।२६१,२६६,२६६,३०० णिज्जरण [निर्जरण] ओ० ४६ णिम्मा नेमा] रा० १६,१३० णिज्जरा निर्जरा] ओ० ७१,१६६,१७० णिम्माय [निर्मात] ओ०६३ इणिज्जा [निर्-- या] ---णिज्जंतु, ओ०६२. णियइपम्वय [नियतिपर्वत] जी० ३।२६२ णिज्जाहिस्सामि. ओ० ५५ पणियंस नि+बस् --णियंसेइ. जी. ३१४५१ णिज्जाणमग निर्याणमार्ग ! ओ०७२. रा० ५६ । णियंसण निकान] ओ० ४६ णिज्जामय [निर्याभक ] ओ० ४६ णियंसेत्ता | निवस्त्र] जी० ३।४५१ णिज्जास नियसि | जी० ३१५८६ णियग निजक] ओ० ७०,१५०. रा० १३,७५१, णिज्जत्त नियुक्त] ओ० ४८,४६,६४. रा० १७३, ८०२,८११ जियत्य दे०] रा० ६६,७० णिज्जह [नि!ह ] जी० ३६५६४ णियम [नियम] ओ० ३२. जी० ११५८,५६,७८, णिज्जोय | नियाग | रा० ५४,६६,७० ६१,६६.१३३,१३६; ३३१०४,११०७ णिठुर | निष्] ओ० ४० णियमसा [नियमसात् ] ओ० १९५:१० णिडाल ललाट ओ० १६. रा० १३३. णियय नियत] रा० २००. जी० ३१५६,३५० जी० ३३५६३,११२२ णियया [नियता] जी० ३१६६६ णिडालपट्टिया ललाटपट्टिका] रा ० २५४. णियलबद्धग [निगडबद्धग] ओ०६० जी० ३१४१५ णियाणमया [निदानमृतक) ओ ६. Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिरंतर-णिहि ६३६ णिरंतर [निरन्तर] ओ० १४. रा०६७१ ७५२,७८६ जी० ३.२५६,५६७ णिवुइकर [निर्वतिकर ] ग० २८८. जो० ३।३०२, णिरंतरित निरन्तरित जी० ३१३०० ३९८ णिरय निरय] ओ० ४६. जी. ३१११६ णितिकर [निर्वृतिकर] रा० ४०,१३२. णिरयावास निरयावान | जी० ३१२ ____ जी० ३१२८३, २८५.३८७ णिरयुद्देस निरयोद्देश ] जी० ३।१०८० णिन्वय [निर्वत | ओ०१ जिरवयव | निरवयव ] जी० ३ २५० णिन्वेयणी [निर्वेदनी] ओ० ४५ मिरवकख निरवकांक्ष| ०४६ । णिसंत | निशान्त ] रा० १५ हिरातंक निरालङ्क | जी० ३१५६८ णिसग्गरुड [निसर्गरुचि ] ओ० ४३ णिरावरण [निराबरण रा०८१४ णिसढ | निषध रा० २७६. जी० ३१७९५ णिरुवद्दव | निरुपद्रव] ओ० १ णिसग्ण [निषण्ण ] ओ० ६३. जी० ३१३८४ णिरुवलेव | निरुपलेष] ओ० १६. जी० ३१५६६ णिसम्म [निशम्य ] ओ० २१. ग० १६. णिरुवहत [निरुपहत] जी० ३।५६२ जी० ३,४४३ णिरुवय [निरुपह्त ] जी० ३६५६४ णिसह निषध ] जी० ३६४४५ णिरोह निरोध ओ० ३७ इणिसिर [नि--सृज]---णिसिरति. जी० ३१४४५ जिल्लेव [निर्लेप ] जी० ३।१६५ णिसीइत्ता | निषद्य) ओ० ५४ ‘णिवाड [नि- पात्] --णिवाडे. बी० ३।४५७ ।। णिसीद [नि--षद् ]-निसंदति. जी० ३६३५८ शिवाय (निपात ] ओ० १५० णिसीषिया (निपीधिका, नैधिकी] जी० ३१३०३. णिवाय (निवात] रा० १२३,७५५,७७२ ३०५,३०६,८५६ णिवायगंभीर [ निवातगम्भीर १० १२३,७५५, इणिसीय [ निषद् -णिनीएज्ज. ओ. १८० ७७२ -णिसीयइ. ओ० ५४--णिसीयंति. णिवृद्धि { निवृद्धि ) जी० ३१८४१ रा० ४८. जी० ३१२१७ इणिवेद नि । वे रय् ....णिवेदे . ओ० १६ ... णिसीहिया नियोधिका, नैषेधिकी रा० १३२ णिवेदेति, ओ० १७.--णियेदेमि, ओ० २० से १३४,१३६,१३७. जी. ३१३०१,३०२, णिध्वण निव्रण) ओ०१६. जी. ३१५६७ ३०४,३०७,३१५,३५५ णिवत्त निवृत्त ओ० १४४. ग० ८०२ णिस्संकिय नि:शङ्कित ) ओ० १२०,१६२. णिवत्त । निर--वर्तय ----णिवत्तेइ. रा० ७७२ रा०६९८,७५२,७५६ णिव्वत्तिय निर्वतित जी० ३१५६२ हिस्सा निश्रा जी०१:५८, ७३,७८,८१ णिध्दाघातिम | नियाधातिन् . निर्यापातिम णिस्सास [निःश्वाग] ओ० १५४,१६५,१६६ जी० ३.१०२२ णिस्सिय [नि मृत ] जी० १७८ णिज्वाधाय [नियाघात ओ० १५३,१६५, १६६. णिस्सेयस [निःश्रेयस् ग० २७५. जी० ३।४४१, रा० ८०४,८१४. जी० १८२ ४४२ णियाणमग | निर्वाणमार्ग अं.० ७२. रा० ८१४ णिहत !नित जी. ३.४४७ णिवादित निर्वाटिन नी० ३१८७८ णिहय निहत रा० ६,१२ णिव्यितिगिच्छनिविचिकिता रा० ६१८, णिहि निधि] जी० ३१७७५,८४१ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० यि [ निभृत ] ओ०४६ जीण | णी | - जीणेइ. ओ० ५६ गोणेसा [नीत्वा ] मो०५६ णीय [नीरजस्] ओ० १६४. रा० २१,२३,३२, ३४,३६,१२४,१४५,१५७. जी०३।२६१,२६६, २६६ गोल | नील] ओ० ४७. रा० २४,२६,१३२, १५३, ६६४. जी० ३१३२६,५६२, ५६५,५६६ नीलकणवीर | नीलकणवीर | रा० २६. जी० ३२७६ गोलग | नीलक ] जी० ३।२७६ गोलपाणि | नीलपाणि | रा० ६६४. जी० ३५६२ नीलबंधुजीव | नीलबन्धुजीव ] रा० २६. जी० ३२७६ गीललेस्स [नीललेश्य ] जी० ६ १८७ जललेस्सा | नीललेश्या | जी० ३।६६ नीलवंत | नीलवत् ] रा० २७६. जी० ३ ५७७, ६६० पीलवंतद्दह [नोलवद्रह ] जी० ३।६५६, ६६६ नीलासोग [नीलाशोक ] रा० २६ नीलासोय | नीलाशांक ] जी० ३।२७६ नीली [नीली ] रा० २६. जी० ३।२७६ जोलीगुलिया | नीलीगुलिका | रा० २६. जी० ३।२७६ नीलोभेद | नीलीभेद | रा० २६. जी० ३।२७६ णीलुप्पल | नीलोत्पल ] ओ० १३. २१० २६. जी० ३.२७६ जीव [नीप] ओ० ६,१०. जी० ३५८३ णीसास | नि:श्वास | ओ० ११७. जी० ३।४५१ नोहारि [ निर्धारिन् ] ओ० ७१. २० ६१ नीहारिम | निर्धारित्] ओ० ७,८,१०. जी० ३।२७६ णी [ स्तिg ] जी० ११७३ णू [ नूनम् | ओ० १६९. रा० ७०३. जी० ३२६८३ fig-tभव सिद्धिय उर [ नूपुर ] जी० ३।५६३ म [नैक ] रा० ७२७ मि [ नेमि ] ओ० ६४. रा० १७३,६५१. जी० ३१२८५ तव्व | नेतव्य ] जी० ३३२१८,६६६,८८६,१०४८ यय [ नेतव्य ] जी० १ ४० ३ २६८, ६६७, ७६१ या [ नैर्यात्रिक] ओ० ७२ रय [ नैरयिक] ओ० ४४,७१,७३, ७. जी० १११०,१२८ : २ ११८,१२६,१३४, १३५,१३८, १४४,१४५,१४८ ३३८ से ६२,६४,६७, १०४,११६,११८ से १२१, ११३१ से ११३३, ११३६,११३८, ६२, ५, १०६ ७ ७, ८, १३, १४, २० से २३ : ६।१५६,१५८,२०६,२१०, २१६,२२१,२२४,२२६, २२, २३१ से २३४, २३६,२४१,२४२,२४७, २५० से २५२, २५४,२५५,२६७ से २६६, २७४, २७७,२७८, २८३, २८६ से २८८, २६३ रयत [नैरयिकत्व ] ओ० ७३. रा० ७५०, ७५१. जी० ३।११७,११३३ वच्छ [नेपथ्य ] ओ० ४६ वस्थ [ नेपथ्य ] ओ० ७०. रा० ५३, ५४,८०४ जेवत्थि [नेपथ्य ] ओ०५७ बुतिकर [ निर्ऋतिकर ] जी० ३१२६५ ह | स्नेह ] जी० ३।५८६ जौ [नो ] ओ० ३३. रा० २५. जी० १।२५ अपज्जत्त | नोअपर्याप्तक | जी० ६२६३ जोअपज्जतय [नोअपर्याप्तक | जी० ६६१ गोअपरित [तोपरीत ] जी० ८२ अभवसिद्धिय | अभवसिद्धिक ] जी० ६ ११० से ११२ गोअसंगत | नोअसंयत ] जी० ६ १४५ संजय [ नोअसंयत ] जी० ९१४१,१४७ णोअणि [नोअसं ज्ञन् ] जी० ६ १०७ गोपज्जत | नोपर्याप्त ] जी० १६६६३ गोपरित [ नो/रीत ] जी० ८२,८६,८७ गोभवसिद्धिय [ नोभवसिद्धिक] जी० ६।११० से Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोमालिया-तच्च ६४१ ताउयभंड [अपुकभाण्ड] रा० ७७४ णोमालिया [नवमालिका] रा०३०. जी० ३१२८३ तउयभारग [त्रपुकभारक] रा० ७६०,७६१, जोमालियागुम्म [नवमालिकागुल्म] जी० ३।५८० ७७४ गोमालियामंडवग (नवमालिकामण्डपका तउयभारय [त्रपुकभारक] र ०७७४ १८४. जी० ३.२६६ तउयागर त्रिपुकाकर] जी० ३१११८ णोमालियामंडवय [नदमालिकामण्डपक ] रा० तए ।ततम् ] ओ० ५२. रा० ६. जी० ३१४४० १८५ तओ [ततम् 7०११,५६,७०,८०२. णोसंजत | नोसंयत ] जो० ६.१४५ जी० ३।६८६ णोसंजतासंजत [नोसंयतासंयत जी० १४५ Vतंडव ताण्डवय् -- -तंडवेति. :०२८१. गोसंजय नोसंयत जी०६।१४१,१४७ जी० ३.४४७ णोसंजयासंजय | नोसंयतासंयत | जी० ६११४१, तंत नान्त] रा० ७६५ १४७ तंती [तन्त्री ओ०६८. रा० ७,७६,१७३. गोसणि [नोसंज्ञिन् ] जी० ६१०७ जी० ३।२८५,३५०,५६३,८४२,८४५, व्हाइत्ता [स्पनयित्वा] रा० २६१ १०२५ व्हाण (स्नान] ओ० १६१,१६३ तंतुमय तन्तुमय | जी० ३३५६५ पहाणपोढ स्नान पीठ] ओ० ६३ तंबुल ( तण्डुल | रा० १५०,२६१. जी० ३।३२३, व्हाणमंडव स्नानमण्डप] ओ० ६३ ४५७,५६२ व्हाणमल्लिया [स्नानमल्लिका] रा० ३०. तंदुलछिण्णग [तण्डुलछिन्नक] ओ०६० जी० ३१२८३ तंब [ताम्र ओ० १६,४७. जी. ३५५६६, व्हाय [स्नात] ओ० २०,५२,५३,७०. स०६८३, तंबच्छि [ताम्राक्षि] जी० ३१८६० ६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००,७१०, तंबपाय [ताम्रपात्र ओ० १०५,१२८ ७१६,७२६,७५१,७५३,७६५,७७४,७६४, तंवबंधण [ताम्रवन्धन ] ओ० १०६,१२६ ८०२,८०५ तंबागर [ताम्राकर] रा० ७७४. जो० ३।११८ हाय स्नपय]---हाएइ. रा० २६१ संबिय ताम्रिक] ओ० १०८,१३१ हारु [स्नायु] जी० १६५,१०५; ३।६२, तंबोलिमंडवग ताम्बूलीमण्डपक] स० १८४ १०६० तंबोलिमंडवय ताम्बूलीमण्डपक] रा० १८५ बिहाव [स्नपय-हावेति. जी. ३१४५७ तंबोलीमंडवग | ताम्धूत्रीमण्डपक] जी० ३।२६६ व्हावेत्ता [स्नपयित्वा ! जी० ३।४५७ तंस यस्र जी० ११५; ३१२२,७८,७६.५६४, १०७१,१०७५ त तत् ] ओ० १. रा० १. जी० १११ तकारवग्ग [तकारवर्ग) रा०६८ तइय तृतीय] ओ० १४४,१७४,१७६,१८२ तक्क [ तर्क | रा० ८१५ तउआगर [वपुकाकर रा० ७७४ तक्कर [तस्कर] ओ० १ तउय [पुक] रा० ७५४,७५६,७७४ तगर [तगर] रा० ३०,१६१,२५८,२७६. तउयपाय [त्रकात्र] ओ० १०५,१२८ जी० ३.२८३,३३४,४१६ तउयबंधण [वयुकबाधन] ओ० १०६,१२६ तच्च [तृतीय] रा० १२,६५,७०२,७०३ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ तच्चसत्तराइंदिया-तरुणी तच्चसत्तराईदिया [तृतीयसप्तरात्रिदिवा] ओ०२४ तच्चा | तृतीया] जी० ११२५:२।१४८,१४६%; ३३२,४,६८,७४,६१,१२५,११११ तज्जण | तर्जन अं.० १६१,१६३ तज्जणा तर्जना ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ८१६ तज्जायसंसद्धचरय | तज्जातमंसृष्टचरक] ओ० ३४ तज्जोणिय [तद्योनिक | जी० ३।७२१,६१५ तड | तट] जी० ३।४४५ तडवडा | दे०] रा० २८. जी. ३२२८३ तण तु न | रा० ६,१२,१७१,१७३,७६७. सी०११६६; ३१२७७ से २८५,२६८,३६०, ५७८,६२२,६६० तणवणस्सइकाइय [तृणवनस्पतिकायिक] स० ७७१ तणु । तनु] ओ० १६. जी० ३१५६६ से ५६८ तणु य तिनुक) रा० १२७. जी० ३१२६१,३५२, ५६५.५६७,६३२,६६१,६८६,७३६,८३६, ८५४,८८२ तणुयतर तिनुकतर ओ० १६२ तणुयरी | तनुतरी] ओ० १६३ तणु बात [तनुवात ] जी० ३.१३,१६,२१,२६, ३७,५०,६५,६७ तण वाय [तनुवात | जी० १८१; ३।३०,३८,४४, ४७ तणू तनू ] ओ० १६३ तण्हा तृष्णा] ओ० ११७,१६५।१८. ० ७२८, जी० ३.११८,११६ तत तत] रा० ११४,२८१. जो० ३१४४७,५८८ ततिय [तृतीय रा०८०२ ततिया [तृतीया] जी० ३१८८ तते [ततस् ] जी० ३:५५५ ततो [ततस् ] ओ० १४१. जी० ३.१०२३ तत्त [तप्त | ओ० १६,४७,५०. जी. ३१११८, ५६०,५६६ . तत्ततव [तस्ततपस् ] ओ० ८२ तत्तिय [तावत् ] रा० १३०. जी० ३।३०० तत्तो [ततस् ] जी० ३११२७ तत्य [तत्र ओ० १४. रा० ८. जी० ११११ तत्थ त्रस्त ] जी० ३.११६ तत्यगत [तत्रगत ] रा०८ तत्थगय | तत्रगत | ओ०२१,५४. रा० ७१४, ७६६ तदावरणिज्ज |तदावरणीय ओ० ११६,१५६ तदुभय [तदुभय] ओ० १५५,१६०. ___ जी० ३।१०६०,१०६१ तदुभयारिह । तदुभयाह ] ओ० ३६ तद्देवसिय [तद्देवतिक] ओ० १६,१७ तप्पढमया | तत्प्रथमता] ओ० ६४. रा०६६, २५. जी० ३१४५० तप्पभिइ [तत्प्रभृति । रा० ७६०,७६१ तमतमप्पभा [तमस्तम:प्रभा] जी० ३।४१ तमतमा [तमस्तमा] जी० ३।४ तमप्पभा [तमःप्रभा] जी० ३४१,४३,४४ तमा [तमा ] जी० ३।७८,८१,१०२,११५ तमाल |तमाल | ओ०६,१०. जी. ३।३८८, ५५३ तम्हा [तस्मात् ] रा० ७५० तय त्वच्] जी० ३१३११ तया [तदा] ओ० २१. रा० २६२ तया [त्वच्] ओ० ६४. रा० ७६१. जी० ११७१ तयामंत | त्वग्वत् ओ०५,८. जी० ३।२७४ तयासुह [वकसुख ] ओ०६३ तयाहार [वगाहार] ओ०६४ तिर |त--तरंति. ओ० ४६ तरंग तरङ्ग] ओ० १६,४६. रा० २४,८१. जो ३,२७७,५६६,५६७ तरमिल्लहायण [तरोमल्लिहायन] ओ० ६४ तरुण तरुण] ओ० ५,८,१६,६४. रा० १२,७५८ से ७६१. जी० ३.११८,११६,२७४,५९६,५६७ तरुणो [तरणी] रा० ७१०,७७४,८०४ Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरुणी पडिकम्म- तारारूव तरुण किम् [ तरुणीप्रतिकर्मन् ] ओ० १४६. रा० ८०६ तरुपक्खंदोलग [तरुपक्षान्दोलक ] ओ० १० तरुपडियग [तरुपतिनक] ओ० ६० तल [तल] ओ० १३,१६,६३,६४,६८,१६४. रा० ७, १२:५०, ५२, ५६,७६,७७, १३७, १७३, १७४, २३१, २४८, ७५८, ७५६, ७७४. जी० ३।२८५, २६६, ३०७,३५०, ३६३, ५६३, ५८८,५६६,६०४,६४२,८४५, १०२५ तलभंग [ तलभङ्गक} ओ० ४७. रा० ३१५६३ तलवर [३०] ओ० १८,५२,६३. १० ६८७, ६८८, ७०४,७५४,७५६,७६२,७६४. जी० ३१६०६ लाग [ तडाग ] ओ० १ तामह [ तडागम ] जी० ३।६१५ तलाय [तडाग ] ओ० ६६ तलिण [तलिन ] ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७ तव [ तपस् ] ओ० २१ से २४,२६,३०,३५,४५, ४६,५२,८२,११७. रा० ८, ९,६८६,६८७, ६८६,७११,७१३,८१४,८१७. जी० ३६६६ तव [ तप् ] ---तवंति रा० २८१. जी० ३।४४७ --- तविसु जी० ३।७०३ - तविस्संति. जी० ३।७०३ – तवेंति. जी० ३१८४५ तवणिज्ज [ तपनीय] भो० १६,४७,५० रा० ४०, १३०,१३२,१३७,१७४,१६१,२८८. जी० ३१२६५,२८६,३००,३०२, ३०७, ३१३, ३८७, ३६७,५६०,५६६,६७२ तवणिज्जमय [ तपनीयमय ] रा० १३०, १४६, २८५, २५४, २७० जी० ३।३००, ३०५, ३०८, ३११,३२२, ३३७, ३६६, ४०७, ४१५, ४३५, ६४३, ९०४ तणिज्जामय [ तपनीयमय ] रा० ३७ aafस्स | तरस्विन् ] ओ० २५ तवस्सिवेयावच्च [ तरस्विवैयावृत्य ] ओ० ४१ तवारिह [ तपोहं] ओ० ३६ ६४३ तोकम्म [ तप:कर्मन् ] ओ० २४,११६,१२० तस [ स ] ओ० ८७. जी० १1११,७५,८३,१३६, १३८,१४० से १४३ ५।१७ rester [ xesifun ] जी० ३।१८३,१६४, १६७, ५।१,४,६,१०,१६,१८ से २०६१८२, १८४ Reet [ सकाय ] जी० ३:१७४ तसिय [ त्रासित ] जी० ३।११६ तह [ तथा ] ओ० ६६. रा० १०. जी० १।१४ तहप्पार तथाकार ] ओ० ४०,१०५, १०६, १२८,१२६, १४१, १६१,१६३. जी० १६५, ७१ से ७३,७८,८१,८४,८८,८६,१००.१०३, १११,११२,११४ से ११६.११८,१२१ तहा [ तथा ] ओ० १७७. रा० १०. जी० ११४ तहारूव [ तथारूप ] ओ० ५२,१५१. रा० ६६७, ६८७,८१२ तहि [ तत्र] ओ० ८६. रा० १७४. जी० ३।२६६ ताडना [ताडना ] रा० ८१६ सावंत [ ताड्यमान ] रा० ७७ ताण [ त्राण ] ओ० १६,२१,५४ तार [तार] रा० ७६ तारग [ तारक ] जी० ३३८३८३११ तारमा [ ताराग्र ] जी० ३१८३८२,२६ तारय | तारक ] ओ० १६,२१,५४ ० ८,२६२, जी० ३।४५७ तारयग्ग [ तारकाग्र ] जी० ३८३८२६ तारा [तारा ] ओ० ५०,६३,६८,१६२. रा० २५४, २८२. जी० ३३४१५,४४८, ८३८११,२१,३०,१०२०,१०३७ तारागण [ तारागण ] जी० ३१७०३, ७२२, ५०६, ८२०,८३०, ८३४,८३७,८३८१३१,८५५, १००० तारापिंड [ तत्रापिण्ड ] जी० ३१८३८११ ताराख्व [ तारारूप ] रा० २०,१२४. जी० ३,२८८,८४१, ८४२, ८४५,६६८, १००३ से १००६,१०२० से १०२२,१०३७,१०३८ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ तारावलिपविभत्ति-तिय ४४५ तारावलिपविभत्ति [तारावलिप्रविभक्ति] रा ० ८५ तिगिन्छिदह [तिगिच्छिद्रह ] जी० ३१४४५ ताराविमाण [ तारा विमान] जी० २:१८,४४ तिगुण [त्रिगुण ] जी० २११५१३३१०१० से ३।१००६,१०१४,१०१६,१०३५ ताल [नाल] ओ० ६,१०,६८. रा०७,७६,७७, तिगुणिय [ त्रिगुणित] जी० ३१८३८१२४ १७३. जी० ११७२३।२८५,३५०,३८८, तिघरंतरिय [त्रिगृहान्तरिक] ओ० १५८ ५६३,५८८,८४२,८४५,१०२५ तिण [इदम् | रा० ७५१. जी. ३१२७८ Vताल ताडय) ---तालेज्जा. रा० ७५५ तिणिस [तिनिश] ओ० ६४. रा० १७३,६८१ तालण | ताडन ] ओ० १६१,१६३ तिण्ण [तीर्ण ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२. तालणा [ताडना | ओ० १५४,१६५,१६६ जी० ३१४५७ तालायर [तालाचर] ओ०१ लित्त | तस्तओ० १६५।१८,१६.जी० ३११०६ तालिज्जत ताड्यान रा० ७७ तित तिक्त जी० १.५, ५०; ३।२२ तालियंत [तालवृन्त ओ० ६७ तित्थ [तीर्थ ] रा० १७४,२७६. जो० ३२८६, तालु [तालु] ओ० १६,४७. जी०३१५९६,५६७ तालुय तालुक] रा० २५४ जी० ३,४१५ तित्थगर [तीर्थकर ओ०१६,२१,५२,५४. रा०८, ताव [तावत् ] ओ० ७६. रा० ७५१. जी० २१८१ २९२. जी० ३,४५७ ताव [तापय –तावे इ. जी. ३१३२७ -ताति. तित्यगरसिद्ध तीर्थकरसिद्ध] जी० १८ रा० १५४ जी० ३१३२७–तावेति. रा० तित्थगराभिमुह [ तीर्थकराभिमुख ओ० २१,५४ १५४ जी० ३७४१ तित्थयर तीर्थकर ओ० ६९,७०. रा०८ तावइय [तावत् ] रा० १२६. जी० ३१३७३ तित्थयराभिमुह [ तीर्थकराभिमुख ] स० ८,६८ तावं [तावत् ] जी० ३१८४१ तित्यसिद्ध | तीर्थ सिद्ध] जी० ११८ तावक्खेत [तापक्षेत्र] जी० ३१८३८।१४,१५,८४२, तिस्थाभिसेय [तीर्थाभिषेक ] ओ०१८ तित्थोदग [तीर्थोदक] रा० २७६. जी. ३१४४५ तावतिय [तावत् ] रा० २१०,२१२ जो ३१३००, तिदंडय [त्रिदण्डक] ओ०११७ ३५४,६४७, ८८५ तिपडोगार [त्रिप्रत्यावतार, त्रिपदावतार] जी० तावस [तापस ] ओ०१४ ताविय [तापयित्वा | जी० ३:११८ तिपडोया [त्रिप्रत्यावतार, त्रिपदावतार जी० ताहे [तदा | जी० ३.८४३ ३१६३६ ६३८,६५० ति [त्रि] ओ० ७७. २१० ७. जी० १११७ तिप्पणयार | तेपन, तेवन | ओ० ४३ ति [इति ] रा० ७०३ तिभाग | त्रिभाग ओ० १९५४ से ६,८ जी० तिक्युत्तो त्रिम ] ओ० २१,४७,५२,५४,६६,७०,७८, ३३४ से ३६,४०,४१,४४,४६,७२५,७२८, ८०,८१,८३.रा०८ से १०,१२,से १४,५६,५८, ७२६,८७६ ६५,७३,७४,११८,१२०,२६२,६८७.६९२, तिमासपरियाय [त्रिमासपर्याय ] ओ० २३ ६६५,७००,७१६,७१८,७७८. जी. ३४५७ तिमिर तिमिर जी० ३१५८६ तिग त्रिक] ओ० १,५२ तिय [यिक] ओ० ५५. ० ६५४,६५५,६८७, तिगिच्छि [तिगिच्छि] रा० २७६ ७१२. जी. ३१५५४ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तियाह-तिसालग ६४५ तियाह {यहजी ३८६,११८,११६ तिल [तिल जी० ११७२; ३१६२१ तिरिक्ख { तिर्यच् ! जी० ११५१,१२३, २२५,६४, तिलकरयण [तिलकरत्न] जी० ३।३०७ १२२, ६३१ तिलग | तिलक] जी० ३१५६३,६३१ तिरिक्खजोणि तिर्यग्योनि ] मो०७४.१,३ जी० तिलगरयण तिलकरल] रा० १३०,१३७. जी० ३३०० २१२,३,६,१०,२१ से २४,४६,६८,६६, तिलपप्पडिया [तिलपर्पटिका] जी० ११७२१३ ७२,१४२,१४५.१४६,१४६,१५१ तिलय [तिलक] ओ० ६ से ११. रा० ६६,७०, तिरिक्खजोणिणी [ तिर्यग्यो निकी } ओ० ७१. जी० ११७२; ३१३८८ से १०,५८३,७७५।२ जी० ६.१,४,६,१२, ६२०६,२१२,२१८.२२२ तिलागणि तिलाग्नि जी० ३१११० तिरिक्खजोणिय लियंग्योनिक अं०७१,७३, तिवइ त्रिपदी] रा०२८१ १५१, जा० ११२१.१८,२५५६:२१.६१,६७, तिवति | त्रिपदी| जी० ३।४४७ १८,१०१ से १०३,११६,११७,११६,१२५, तिवलि ( त्रिवलि ] ओ० १५. रा० ६७२. २१७५,७६,८२,८३,८८,६६,६६,१०१ से १०५, जी० ३३५६७ १०७ से १११,११३,११,१२२,१८,१२६, . तिवासपरियाय [त्रिवर्षपर्याय ] ओ० २३ १३८,१३६,१३८,१४२,१४५.१४६,१४६,१५१; ३११,१२१,१३० से १४७,१५५, १५६,१६१ से तिविष त्रिविध] जी० २११०४,१०६,१५१ः ३१३८,१४८,१४६,१५३,१६४,२१५,८३६; १६३,१६६,११३२,११३४.११३७,११३८ ६१३,८,१० से १२; ७.१,५,६,१०,१५,१६,२० ५५७; ६११२ से २३; १५६,२०६,२११,२१७,२२०,२२१, तिविह [विविध] ओ० ३३,३७,६६,७०,७६. २२५,२२६,२३१,२३२,२३५,२३६,२४३, से रा० ७६. जी० ११०,१२,७५,९६,११७, २४५,२५०,२५१,२५३,२५५,२६७,२७०, ११६,१२६,१३३,१३६; २१ से ३,८,११, २७१,२७६,२८०,२८६,२८७,२८६,२६३ ७५ से ७७,६६,१५१, ३३७,७८,१३७, तिरिक्खजोणियत्त [ तिर्यग्योनिकल्व ] ओ० ७३. १६१:१०७१, ६२३,३२,६७,६९,७५,८८, जो० ३:११३४ ६५.१०१,१०६,१६४,२०२ तिरिय तर्यच आ० ४४,४६. रा० १०,१२,५६, तिब्व [तीन] ओ० ४,४६,६६. रा० १७०,७०३, १२६,१३२.२७ ६. जी० ११४५,७६८७,६६, ०६५. जी० ३१११०,२७३,६०८,६११ १०१,१३६; ३.१२६१२,२५७,३०२,३५१, तिब्वच्छायतीव्रच्छाय] ओ० ४. रा० १७०,७० ४४५,६३८,३०१,७१०,७९६,७४७,७६१,७६४, जी. ३१२७३ ७६८,७६६,८१४,८३८११२,६४०,६४४,१००६, लियोभास तीवावभास] ओ० ४. रा० १७०, ११११, ६।१५८ ७०३. जी० ३३२७३ तिरियक्खेवण तिर्यक्क्षेपण ] ओ० १८० तिसत्तक्खुत्तो [त्रिसप्तकृत्वस् ] ओ० १७०. तिरियलोय (तिर्यग्लोक ] जी० ३:२५६ जी० ३८६ तिरियवाय तिर्यमःत ] जी० ११८१ तिसर | त्रिसर] ओ० ५२,६३. रा० ६८७ से ६८६ तिरोड [किरीट ओ० ५१ तिसरय त्रिमरक] ओ०१०८,१३१ तिरुव त्रिरूप | जी० २।१५१ तिसालग त्रिशालक] जी० ३५९४ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४६ तिहा [ त्रिधा ] रा० ७६४,७६५ तिहि [ तिथि ] ओ० १४५. २० ८०५ तीर [ तीर] ६१० ० १७४. जी० ३ ११८,११६,२८६, तीस [त्रिशत् ] ओ० १६२. जी० ३।१२ तीतिवह [ शिद्विध | जी० २ १३ तीसविध [ त्रिशद्विध ] जी० ३।२२८ तु [तु] जी० ३८३८५ तुंग [ तुङ्ग ] ओ० १६, ४६, ४७, ६४. २०५२, ५६, १३७, २३१,२४७. जी० ३।३०७, ३६३, ५६६, ५६७ तुंड [ तुण्ड ] जी० ३।१११ बीणपेच्छा [ तुम्बीणाप्रेक्षा ] जी० ३।६१६ तुंबवीणा [तुम्बवीणा ] रा० ७७ ववीणिय [ तुम्ववीणिक | ओ० १,२ तुंबवीणियपेच्छा [तुम्बवीणिकप्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५ तुंबा [तुम्बा ] जी० ३।२५८ तुच्छतराय [तुच्छत रक] रा० ७६५ तुच्छत्त [ तुच्छत्व ] रा० ७६२,७६३ तुट्ट [तुष्ट ] ओ० २०,२१,५३,५४,५६,६२,६३, ६८,७८,८०,८१. रा० ८,१०,१२ से १४, १६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४, २७७, २७६, २८१,२६०,६५५,६८१,६६३, ६०, ६६५, ७००, ७०७,७१०,७१३,७१४,७१६,७१८, ७२५, ७२६, ७७४,७७८. जी० ३ । ४४३, ४४५, ४४७, ५५५ यि [ त्रुटित | ओ० २१,४७,५४,६३,७२, १०८, १३१. T० ८,६६,७०,२८५,७१४. जी० ३१४५१,४५७,५६३ तुडिय | तूर्य | ओ० ६७,६८. रा० ७,१३,३२,२०६, २११,६५७. जी० ३३३५०, ३७२, ४४६, ५६३, ६४६,८४२,८४५ तुडिय [ दे० | जी० ३१८४१ तुडिय [ तुटिक ] ' जी० ३।१०२३ से १०२५ १. आर चूर्णिकृत् - तुटिकमन्तपुरमुपदिश्यते' [वृत्ति पत्र ३८४ ] | तिहा- तुसार डियंग [ दे० ] जी० ३१५८८,८४१ तुडिया [ त्रुटिता ] जी० ३१२५४, २५८ √ तुट्ट [ त्वग् + वृत् ] - तुयट्टति रा० १८५. जी० ३।२१७ – तुयगृह. रा० ७५३. तुट्टेज्ज ओ० १८० गुण [त्वग्वर्तन ] ओ० ४० सुरक्क [तुरुष्क ] ओ० २,५५ तुरग [तुरंग ] ओ० १,१३, १४,६४. रा० १७, १८, २०,३२,३७,१२६,१७३,६८१. जी० ३३२८५, २८८,३००,३११,३७२,५६६ सुरय [तुरंग] रा० ६८३,६८५,६६२,७०८,७१०, ७१६,७३१ सुरित [वरित ] जी० ३१८६ रिय [ ] जी० ३।४४६ सुरिय [ त्वरित ] ओ० २१,४६, ५४. रा० ८, १०, १२,१५,५६,२७६,७१४. जी० ३।१७६,१७८, १८०, १८२,४४५, ६८६ रियति [ त्वरितगति ] जी० ३६८६ सुरुक्क | तुरुष्क ] रा० ६, १२,३२,१३२,२३६,२८१, २२. जी० ३१३०२, ३७२, ३६८, ४४७, ४५७ तुल [ सोलय् ] - तुलेमि. रा० ७६२ तुला [तुला ] रा० ७४८५ से ७५०, ७७३ तुलिय [तुलित ] रा० ७६२,७६३ तुलेत्ता [ तोलयित्वा ] रा० ७६२ तुल्ल [ तुल्य ] ओ० १६. जी० १११४३; २६८ से ७२,६५,६६,१३४ से १३८,१४१ से १४६; ३।७३ से ७५,५६६.६६८, ६६६, १०३७, ११३८ ४८१६ से २३,२५; ५११६,२०, २६, २७, ३२ से ३६,५२,५६,६८ ७ २०,२२,२३, ६१७, १४, ५५, १६६, १८१,२०८, २५० से २५३,२५५, २८६ से २६३ तुल्लत्त [ तुल्यत्व ] जी० ३१६६६ तुवर [तूबर ] जी० ३/४४५,४४६,४४८ तुलागणि [तुपारित ] जी० ३३११८ सुसार [तुवार ] ओ० १६४. जी० ३ ११६ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुसारकूड-तोरण ६४७ तुसारकूर [तुषारकूट] जी० ३१११६ तेत्तीसम [त्रयस्त्रिश] रा० १६४ तुसारपडल | तुषारपटल ] जी० ३१११६ तेमासिय [त्रैमासिक] ओ० ३२ तुसारपुंज [तुषारपुञ्ज जी० ३।११६ तेभासिया [त्रैमासिकी ] ओ० २४ तुसिणीय [तुष्णीक ] रा० ६४,७०१,७६२ तेय [तेजस् ] ओ० २२,४७,५७,६५,७१,७२,१८२. तण [तुण] रा० ७७ रा० ६१,१३३,७२३,७७७,७७८,७८८,८१३. सूणइल्ल [तूणावत् ] औ० १,२ जी० ३१३०३,५८६,११२२ तूणइल्लपेच्छा [तूणावत्प्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. तेयंसि तेजस्विन् ओ० २५. रा०६८६ जी० ३१६१६ तेयग तैजस ] जी० ४१७९ तूयर [तूबर] रा० २७६,२८० तेयगसरोरि तैजसशरीरिन् ] जी० ६।१७०,१७४ तूल तूल ] ओ० १३. रा० ३७,१८५,२४५. तेयय [तै जस] जी० १११५,५६,६४,७४,७६,८२, जी० ३१२६७,३११,४०७ ८५,६३,१०१,११६,१२८,१३५ तूली [तूली] रा०२४५. जी० ३.४०७ तेया [तैजस | जी० ३।१२।६; १८१ तेइंदिय [त्रीन्द्रिय] जी० १।८३,८८,६०; २।१०१, तेयासमुग्घात [तैजससमुद्घात] जी० ३।१११३ १०३,११२,१२१,१३६,१३६,१४६,१४६; तेयासमुग्धाय [तैजससमुद्धात] जी० ३।१५७ ३११३०,१६८, ४१,४,१३,१८ से २१,२४, तेयाहिय व्याहिक ] जी० ३.६२८ २५; ११,३,५; ६।१,३,५,६,१६९,२२३,२३?, तेर [त्रयोदशन् जी० ३।२६६।५ २५६,२६४,२६६ तेरस [त्रयोदशन् ] ओ० १५५. रा० १८८. तेउ [तेजस्] जी० १११२८,१३३; २११३०; जी० ३.३४ श८; ६।१९४,२५७ तेरासिय [वैराशिक] ओ० १६० तेउकाइय | तेजस्कायिक ] जी० ५।६,२६; तेल्ल [तैल] ओ० ६३,६२,६३. रा० १६१,२५८, ६१८२,१८४,२५६,२६२,२६६ २७६. जी० ३।३३४,४१६,४४५ तेउक्काइय [तेजस्कायिक] जी० ११७५,७६,७६, तेल्लम तैलक] जी० ३१५८६ ८०; २२१००,१३६,१३८,१४६,१४६; २१,१३. तेल्लापूय [तैलापूप] ओ० १७०. जो० २।२६० १८,२०, ८.१,५ तेल्लापूव [तैलापूप] जी० ३।८६ तेउलेस्स [तेजोलेश्य] जी०६।१८५,१८६,१६६ तेवण्ण [त्रिपञ्चाशत् ] जी० १२१११ तेउलेस्सा [तेजोलेश्या] जो० ३।११०१ तेवीस [त्रयोविंशति ] जी० ३१७३६ तेंदिय [वीन्द्रिय] जी० ६१६७, २२१,२२६,२५६ ।। तोण [तूण] ओ० ६४. स० १७३,६८१. तेंदुय [हिन्दुक] जी० ११७२ ___ जी० ३.२८५ तेजससमुग्धाय [तेजससमुद्घात] जी० ३।१११२, तोमर तोमर] ओ० ६४. जी. ३१११० तोमरग [तोमराग्र] जी० ३१८५ तेणाणुबंधि स्नानुबन्धिन् ] ओ० ४३ तोय [तोय ] ओ० २७ तेणामेव तत्रैव] रा० ७५४ जी० ३१४४३ तोयपट्ट [तोयपृष्ठ ओ० ४६ तेणिस [तनिस जी० ३।२८५ तोरण तोरण] ओ० १,२,५५,६४. रा० २० से तेतलि [तेजस्तलिन, तेतलिन् ] जी ३१६३१ २३,३२,१३८ से १६१,१७३,१७६,२०२,२३४, तेत्तीस [त्रयस्त्रिंशत् ओ० १६७. जी० १०६६ २७७,२८१,२८८,३१२,४७३,६४५,६५५,६८१ Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्ति-धेरवेयावच्च ६४८ जी० ३१२८५,२८८ से २६१,३१५ से ३३४, ३५५,३६३,३७२,३६६,४२५,५४३,४४७, ४५४,४७७,५३२,५५४,५५६,५७६,५६७, ६०४,६४१,६६६,६८४,८५७,६०१ त्ति [इति ] रा०६ थंभ [ स्तम्भ] रा० २० थंभणया | स्तम्भन } ओ० १०३,१२६ थंभिय स्तम्भित ] ओ० २१,४७,५४,६३,७२. रा० ८. जी० ३.४५७ ।। थिक्कार [दे०] - थक्कारेंति. रा० २८१. जी० ३१४४७ थण स्तन ] ओ० १५. जी० ३४५६७ थणिय [स्तनित] ओ० ४८,७१. स० ६१ थणियकुमार [स्तनितकुमार] जी० २०१६ थणियकुमारी | स्तनितकुमारी] जी० २।३७ थणिय सद्द [स्तनित शब्द ] जी० ३१८४१ थलचर [स्थलचर जी० २।१२२ थलज [स्थलज] जी० ३।१७१ थलय [स्थलज] रा० ६,१२ थलयर स्थलचर] ओ० १५६. जी० ११६७,१०२ से १०४,११२,११७,१२०,१२४, २१६,२३, २४,६६,७२,७६,६६,१०४,५१३,१३६,१३८, १४६,१४६; ३.१३७,१४१ से १४४,१६१ से पालिपाग [स्थालीपाक] जी० ३।६१४ याली [स्थाली ] जी० ३१७८ पावर [स्थावर जी० ११११,१२,७४,१३७,१३६, १४१,१४३ यावरकाय [ स्थावरकाय ] जी० ३।१७४ थासग [स्थासक] ओ०६४ थिबुग [स्तिबुक] जी० ११६४,६५ थिभुग स्तिबुक ] जी० ३६५६ विभुय [स्थिबुक ] जी० ३.६४३ थिमिओदय [दे० स्तिमितोदक ] अ० १११ से ११३,१३७,१३८ थिमिय [दे० स्तिमित ] ओ०१. रा० १,७५, ६६८,६६६,६७६,६७७ पिर [स्थिर} ओ० १६. रा० १२,७५८,७५६. जी० ३१११८,५६६,१०६८ पिल्लि [दे०] ओ० १००,१२३. जी० ३।५८१, ५८५,६१७ बीड [दे०] जी० ११७३ पिक्कार [थूत्कारय - थुक्कारेति. रा० २८१. जी० ३।४४७ शुभ स्तूिप] जी० ३१४१२,५६७,६०४ यूभमह [स्तूपमह ] रा०६६८, जी० ३.६१५ पभाभिमुह | स्तूपाभिमुख ] रा० २२५. जी० ३।३८४,८६६ थूभियग्ग [स्तूपिकाग्र] ओ० १६२ यूभियाग (स्तूपिकाक] रा० ३२,१२६,१३०, १३७,२१०,२१२. जी० ३१३००,३०७,३५४, ३७२,३७३,६४७,८८५ थूभियाय [स्तुपिकाक] जी० ३।३०० थूल [स्थूल ] ओ० ७७ थूलय [स्थूलक | ओ० ११७,१२१. रा० ७६६ थेज्ज [स्थैर्य ] रा० ७५० से ७५३ पेर स्थविर | ओ० २५,४०,१५१. रा० ६८७, ८१२. जी० १.१; ३११ थेरवेयावच्च [स्थविरवैयावृत्य] ओ० ४१ २५.८९६ थलचरी [स्थलचरी] जी० २।३,५,५१,६६,७२, १४६,१४६ थवइय [स्तवकित] ओ०५,८,१०. रा० १४५. जी० ३२६८,२७४ थाम [स्थामन् ] ओ० २७ थारुइणिया [थारुकिनिका ओ०७०, रा. ८०४ थाल स्थाल ] रा० १५०,२५८,२७६. जी० ३६३२३,३५५,४१६,४४५,५८७,५६७ थालइ [स्थालकिन् । ओ०६४ थालिपाक | स्थालीपाक] जी० ३१६१४ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोव-दगपासायय ६४६ थोव [स्त क] ओ० २८,१७१. जी० ११४३; दत [बंधण] [दन्तबन्धन] ओ० १०६,१२६ २०६८ से ७३,६५,६६,१३४ से १३८,१४१ दंतमाल [दन्तमाल] जी० ३,५८२ से १४६; ३।५६७.९४१,१०३७,११३८; दंतवेदणा [दन्तवेदना] जी० ३।६२८ ४.१६ से २३,२५: ५।१५ से २०,२५ से २७, दंतुक्खलिय दन्तोलूखलिक] ओ० ६४ ३१ से ३६,५२,५६,६०; ६.१२, ७।२०,२२, वंस दिश] ओ० ८६,११७. ०७६६. जी० २३ ; ८1५, ६५ से ७,१४,१७,२०,२७ से २६, ३१६२४,६३१२३ ३५,३७,५५,६१,६२,६६,७४,८७,६४,१००, सण [दर्शन] ओ० १५.१६ से २१,४६,५१ से १०८,११२,१२०,१३०,१४०,१४७,१५५, ५४,६४,१४३,१५३,१६५,१६६,१८३,१८४. १५८,१६६,१६६,१८१,१८४,१६६,२०८, रा० ८,५०,७०,१३३,२६२,६८६,६८७.६८६, २२०,२३१,२५० से २५३,२५५,२६६,२८६ ७१३,७३८,७६८,७७१,८१४. जी० १११४, से २६३ १६,१०१,११६,१२८,१३३,१३६, ३।३०३, थोवतरक [स्तोकनरक ] जी० ३११०१,११४ ४५७,११२२ थोवतरग [स्तोकत रक] जी० ३।६६,११३ दसणविणय [ दर्शनविनय ] ओ० ४० सणसंपण्ण [दर्शनसम्पन्न ] औ० २५. रा० ६८६ संसणोवलंभ [दर्शनोपलम्भ] रा० ७६८ वओभास [दकावभास] जी० ३।७३५,७४०,७४१, दक्ख [दक्ष ओ० ६३. रा० १२,७५८,७५६, दंड [दण्ड | ओ० १२,६४,१७४. स० १०,१२,१८, ७६५,७६६,७७०. जी० ३।११८ २२,५१,६५,१५६,१६०,२५६,२७६,२६२, दक्षिण [दक्षिण ] जी० ३१५६०,५६६,६३६,६७३, ६६४,६७५,७५५,७६०,७६१,७६७,७६८, ७४०,७४१ ७७६,७७७. जी० ३।११७,२६०,३३२,३३३, दक्षिणकूलग [दक्षिणकूलग] ओ० ६४ ४१७,४४५,४५७,५६२,५८६ दक्षिणपच्चत्यिम [दक्षिणाश्चात्य ] जी० ३१६५७ वंडणायक दण्डनायक ! ओ०१८ दक्षिणपुरत्यिम [दक्षिणपीरस्त्य] जी० ३।६८६ दंडणायग [दण्डनायक] रा० ७५४,७५६,७६२, दक्खिणिल्ल [दाक्षिणात्य ] जी० ३।४८६ ७६४ दंडणीइ [ दण्डनीति | रा० ७६७ वग [दक ] रा० १२. जी० ३१७४१ दंडनायग [ दण्डनायक] ओ० ६३ वगएक्कारसम [ दकैकादश ] ओ० ६३ दगकलसग [दककलशक] रा० १२ दंडपाणि दण्डपाणि रा० ६६४ वंडय | दण्डक] रा० ७५५ दगकुंभग [दककुम्भक] रा० १२ दगतइय (दकतृतीय ] औ० ६३ दंडलक्षण [दण्डलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ दंडसंपुच्छणी दि० दण्डसंपुच्छणी, दण्डसम्पुसनी] दगथालग दकस्थालक] रा० १२ दगधारा [दकधारा रा० २६३ से २६६,३००, रा० १२ दंडि | दण्डिन् । ओ० ६४ ३०५,३१२.३५१,३५५,५६४. जी० ३।४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७,५१७,५२०,५४७, दंत । दन्त | ओ० १६.२५,४७,६४. रा०२५४, ७६०,७६१. जी० ३१४१५,५९६ दगपासायग [दकप्रासादक ] रा. १८०. जी० दंत [दान्त ] ओ० १६४ ३।२६२ दंत [पाग] [दन्तपात्र] ओ० १०५,१२८ दगपासायय [दकप्रासादक ] रा० १८१ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० afar [ द्वितीय] ओ० ६३ गमंच [दकमञ्चक ] रा० १८० जी० ३३२६२ वगमंचय [ दकमञ्चक ] रा० १८१ मंडय [दकमण्डप ] रा० १८१ दगमंडव [दकमण्डप ] रा० १५० दगमंडवग] [ दकगण्डपक] जी० ३।२६२ गमट्टिया [ मृत्तिका ] ओ० १४६. रा० ८०६ वगमालग [ दकमालक ] रा० १८० जी० ३।२६२ गमालय [दकमालक ] रा० १८१ aree | दरजस् ] ओ० १६,४६,४७, १६४. ० ३८,१६०,२२२,२५६. जी० ३।२६२,३१२, ३३३,३८१, ४१७,५७६,५६७,८९४ गवार [दकवार ] जी० ३।११६ crates [ दकवारक ] जी० ३।५८७ दगवारग [ दकवारक ] रा० १२ दत्तम [दकसप्तम] ०६३ arसीम [ दकसीम ] जी० ३२७३५,७४५ से ७४७ दच्चा [ दत्वा ] रा० ६६७ द [ दग्ध ] ओ० १८४ [ दृढ] ओ० १,१४२, १४४. रा० १२,७५८, ७५६,८००, ८०२. जी० ३।११८ ढपण [ दृढप्रतिज्ञ ] ओ० १४४ से १५०, १५४. रा० ८०२, ८०५ से ८११,८१६ ढपतिरण [ दृढप्रतिज्ञ ] रा०८०४ ढरहा [ दृढरथा ] जी० ३।२५४ दढाउ | दृढायुष्] जी० ३।११७ age | दे० दर्दर ] ओ० २,५२, ५५. रा० ३२, १५६, २७६,२८१,२८५. जी० ३ ३३२,३७२,४४५, ४४७, ४५१,५६४ वहग [ दे० दर्दरक ] रा० ७७. बी० ३।५८७ दर [ दे० दर्दरक ] ० २८१. जी० ३०७८, ४४७ हरिगा | दे० दर्दरिका ] रा० ७७ ददुर [ दर्दर ] ओ० ५१. जी० ३।१०३८ af [दधि ] जी० ३१५६७ दर्गावइय दलइत्ता घण [नि ] रा० १३०. जी० ३१३०० [दधिमुख ] जी० ३६११,९१२ दधिवासु मंडव [दधिवासुका मण्डपक] जी० ३।२६६ पण [ दर्पण ] ओ० १२,१६. रा० २१,४६,२६१. जी० ३२८६, ३४७,५६६ पण | दर्पणक | ओ० ६४ दप्पणिज्ज [ दर्शनीय | ओ० ६३. जी० ३:६०२, ८६०,८६६,८७२, ८७८ दब्भसंधारण | दर्भसंस्तारक ] रा० ७६६ दमणा [ दमनक ] रा० ३०. जी० ३।२८२ दमिला [ द्रविडा, मिला ] रा० ८०४ दमिली | द्रविडा, द्रमिला ] ओ० ७० वयपत्त [ दयाप्रप्त ] ओ० १४. २० ६७१ दरदरजस् ] रा० २६ दरिमह [म] रा० ६८८ दरिय] [ दृप्त | ओ० ६. जी० ३१२७५ दरिस [ दर्शन] रा० ८०३ दरिसणावरणिज्ज [ दर्शनावरणीय] ओ० ४४ दरिसणिज्ज | दर्शनीय | ओ० १,५,७,८,१० से १३ १५.४६,६४,७२,१६४. २०१७ से २३,३२,३४ ३६ से ३८,५०,१२४,१३०, १३१,१३६, १३७, १४५, १५७,१७४, १७५, २२८, २३१,२३३, २४५,२४७, २४६, ६६८, ६७०, ६७२,६७६, ७००,७०२ जी० ३१८४,२३२,२६१,२६६. २६६,२७८,२७६,२८६ से २८८,२६०,३००, ३०३,३०६, ३०७,३११,३८७,३१३,४०७, ४१०, ५८१,५८४,५८५,५६६, ५१७,६३९, ६७२, ८३६८५७,८६३,११२१,११२२ दरणीय | दर्शनीय | रा० १ दरी [ दरी | जी० ३१६२३ दल | दल ] जी० ३२८२,५६७ दलहत्ता | दत्वा ] ओ० २१. रा० २६३. जी० ३।४५८ १. प्राप्त करुणागुण: [ वृ] दयाप्राप्तः स्वभावत: शुद्धजीवद्रव्यत्वात् । Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दलय-दार दलय [दलक] रा० २६ दहित्ता [दग्ध्वा ] जी० ३१५१६ दिलय [दा] --दलइस्संति. ओ० १४७. रा० दहिवण [दधिपर्ण ] ओ० ६,१०. जी० ३१३८८ ८०८–दल मामि. रा० ७८७ -- दल एज्जा. दहिवासुयमंडवम [दधिवासुकामंडपक] रा० १८४ रा० ७७६.---दलयइ. ओ० २१. रा० २६३ दहिवासुयमंडवय [दधिवासुकाभण्डवक] रा. १८५ जी० ३१५१५.-दलयंति, रा०२८१. जी० दादा]--दिज्जइ २.० ७८४.- देह रा० ७६६ ३.४४७.-दल यति. जी० ३१४५८ दाइय [दायिक] ओ० २३. रा ० ६६५ दलयित्ता दत्वा ] रा० २६३ दाऊण [दत्वा] रा० २६२. जी० ३।४५७ दवकर द्रवकर] ओ० ६४ दाडिम [दाडिम] ओ० ६,१०. जी० ११७२; दवम्गि [दवाग्नि] जी० २०६८; ३:११८,११६ ३॥५६६,५६७ दयग्गिवड्डम दवाग्निदग्धक] ओ० ६० वाण [दान] ओ० २३. रा० ६६५ दवप्पिय [द्रवप्रिय ] ओ० ४६ दाणधम्म [दानधर्म ] ओ० ६८ वस्व [द्रव्य ] ओ० २८,४६,६६,७०. रा० ७७८. दातु [दातृ ] ओ० ११७ जी० ११३३, ३३२२,२३,२७,४५,५०६,५९२; दाम | दामन् ] रा० २८,३२,४०,५१,६७,१३०, श५१ १३२,१३७,१४०,१५८, २३५,२५५,२६५, दवओ [द्रव्यतस् ] ओ० २८. जी. ११३३ २८१,२६१,२६४,२६६,३००,३०५,३१२, दवट्ठ [ द्रव्यार्थ ] जी० ५१५२,५६,६० ३५५,६८३,६६२,७००,७१६. जी० ३१२८१, दव्वट्ठया [ द्रव्यार्थ] रा० १६६. जी० ३१५८,६७, ३००,३०२,३१३,३३१,३३८,३५५,३५६, २७१,७२४,७२७.१०८१ ३६७,४१२,६३४,८६२ दश्वविउसग [द्रव्यव्युत्सर्ग] ओ० ४४ दामिणि [दामिनी] जी० ३३५६७ दवभिग्गहचरय द्रव्याभिग्रहच रक] ओ० ३४ वामिल [द्राविडजी० ३।५६५ दम्बीकर [दर्वी कर] जी० १११०६,१०७ दार [द्वार ओ० १,१६२. १० १२६ से १३८, दन्दोमोदरिया [ द्रव्यावमोदरिका] ओ० ३३ १६२ से १६६.२१० से २१२,२१५,२७७, दस दशन्। ओ० ४७. रा० ८. जी. ११७४ २८३,२८६.२८८,२६१,२६४ से २९६,३०१ से दसण [दशन] जी० ३५९७ ३०४,३२२ से ३२४,३२७ से ३२६,३३१ से दसणुप्पडियग [उत्पाटितकदशन] ओ०६० ३३४,३३६,३३७,३३६,३४१,३४२,३५१,३५७, दसदसमिका | दशदशकिका) ओ० २४ ३६४,३९५,४१४,४१६,४५३,४५४,४७४, दसद्ध [दशार्ध] रा० ६. जी० ३१४५७ ४७७,५१४,५१५,५३४,६३७,५७४,५७५, दसमभत्त (दशमभक्त ) ओ० ३२ ५६४,५६७,६३४,६३५.६५४,६५५,६५७. जी. दसविष [दशविध ] जी० ६।१,२५६ २२६६ से ३०७,३१५,३३५,३३६,३४६ से दसविह [दशविध ओ० ३६,४१. जी० ११४,१०; ३५१,३५४ से ३५७,३७३,३७४,४१२,४२१, २।१६, ३१२३१६८,२६७,२६३ ४४३,४४५,४४६,४५२,४५४,४५७,४५६ से दह [द्रह) रा० २७९. जी० ३१४४५,६३६,६४०, ४६१,४६३,४६४,४६६,४६८,४६६,४७५, ६६६,७७५,६३७ ४७६,४८७ से ४८६,४६१ से ४६४,४६६ से वहमह द्रहमह जो० ३३६१५ ४६६,५०१,५०२,५०४,५०६,५०७,५१६, दहि दधि] ओ०६२,६३ ५१७,५२२,५२४ से ५२६,५२८,५३०,५३१, दहियण [दधिधन] रा० २६. जी० ३१२८२ ५३३,५३६,५३८ से ५४०,५४३,५४५ से Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दारग-दित्ततेय १०० ५४७,५५०,५५२ से ५५४,५५७,५६३,५६६, दाहिणपच्चस्थिम | दक्षिणाश्चात्य रा० ४३, ५६८ से ५७०,५६४,६४७,६७३.६७४,७०७ ६६२. जी० ३।२२४,३४३,५६०,७५२ से ७११,७१३,७१४,७६६ से ८०२,८१३ से दाहिणपच्चथिमिल्ल [दक्षिणपाश्चात्य जी० ८१५,८२४ से ८२७,६५१,८५२,८८५ से ३।२२०,६६४,६९५,६१८,६२१ ८८८,६३६,६४०,६४४,६५५ दाहिणपुरथिम [दक्षिणपौरस्त्य | रा० ४३,६६०, दारग [दारक] ओ० १४२,१४४ से १४७, रा० जी० ३६४१,५६०,७५१ ८००,८०२,८०४ से २१० दाहिणपुरस्थिमिल्ल | दक्षिणपौरस्त्य | रा०५६ दारचेडा [द्वारचेटा] र१० १३०,२६४,२६६.२६८ जी० ३१२१६,२२३,६६२,६६३,६१८,९२० २६६ जी० ३३०० दाहिणवाय | दक्षिणवात ] जी० १८१ दारचेडी ! द्वारचेटी] जी० ३४५६,४६१ दाहिणहत्य दक्षिणहस्त ओ०६६ दारय दारक] ओ० १४३,१४४,१४८, से १५० दाहिणिल्ल दाक्षिणात्य ०४८,५७,२६४ से रा० १२,८०१,८०२,८०६,८११ ३०५,३०६ से ३१२,३२०,३२१,३२५,३३४, जी० ३।११८,११६ ३३६,३१,३५७,४१६,४७७,५३७,५६७. दारुइज्जपव्यय [दाहकीयपर्वत | रा० १८१ जी० ६१३३,३८,२१७,२१६ से २२३,२२५, दारुइज्जपव्ययय [दारुकीयपर्वतक] रा० १८० २३४,२४४,२५०,२५३,४५६ से ४७०,४७४ दारुपब्वयग | दारुपर्वतक] जी० ३१२६२ से ४७७,४६५,४६०,४६५,४६६,४,५०६, दारुपाय [दारुपात्र] ओ० १०५,१२८ ५२२,५२,५३६,५४३,५५०,६३२,६३६, दारुय दारुक] आ०६४ ६६६,६-३,६६३,६६४,६१४ । दारुयाग [ दारुकक] जी० ३।२.५ दिलैंतिय दान्तिक १० ११७,२८१. दारुयाय [दारुकक) रा०१७३,६०१ जी० ३३८४७ दालिम | दाडिम ओ०१६ दिदुलाभियाटलाभिक | ओ० ३४ दास दास] ओ० १४,१४१. स० ६७१,७७४, दिट्टि दृष्टि रा० ७४८ से ७५०,७७३. ___७६६. जी० ३।६१०,६३ ११२ जी० ११४,६६,१०१,११६,१२८,१३३,१३६ दासी । दासी | ओ० १४,१४१. रा०६७१,७७४, ३११२,१६० दिहिय दृष्टिक रा० ७६५ दिद्विवायष्टिादरा० ७४२ दाह [दाह ] रा० ७६५. जी० २।१४०,३१११८, दिणयर दिनक ओ० २२. रा० ७२३,७७७, ११६,६२८ ११७८,७८. जी० ३१६३८१२,१३,२६ दाहिण | दक्षिण ओ० २१,५४. रा०८,१६,४०, दिण्ण दत्त | ओ० २,१७,५५,१११ से ११३, ४३,४४,६६,१२४,१३२,१७०,१७३,२१०, १३७,१३८. रा० १५,३२,२८१,७८७,७८८. २१२, २३५,२३६,२६२,६६१,६६४. जी० जी० ३४८७ ३।२१७,२१६ से २२१,२६५,२८५.३४२, दित्त | दृप्त, शप्न ! ओ० १४,१४१. रा० ६७१, ३४५,३५८,३७३,३६७,३६८,८५७,१.६९५६६, ६७५,७६६ ५६७,५६६,५७७,६४७,६६८,६५२,५८६ दित्त ] दीप्त ओ०६३,६५ जी० ३।६३८१२६ ६६२,६६५,६६६,७११,८५२,८८५,६०२, दित्ततव दीप्तनपम् । ओ० ८२ १०१५,१०३६ दित्ततेय दीप्ततेजस् ] ओ०२७. रा० ८१३ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिन-दौविम दिन्न दत्त] जी० ३१३७२ ३६३,३७३,३८३,३६६,६४७,६६६,६७३, विप्पंत [दीप्यमान ओ० ६३. रा० १३३. ६७४,६८४,७२३,८८२,८८५,८८८८६५, जी० ३३०३,५८६,५६०,११२२ ११०,६१४ से ६१६,६१६ से १२२ दिप्पमाण | दीप्यमान | ओ० ६५. जी. ३:५६१ दिसिव्यय [दिग्द्रत ] ओ०७७ विवङ् [व्यध, द्वयपार्ध जी० २१७३; ३१२३८, विसौभाग [ दिग्भाग] रा० १०,१२,१८,५६,६५, २४३ २७६,६७०. जी. ३।४४५ दिवस | दिवश ! ओ० १४४, रा० ८०२. विसीभाय [दिग्भाग] ओ० २. रा० २,६७८ जी० ३।८३८३१८,८४१ दोणारमालिया [दीणारमालिका] जी० ३१५६३ दिव्व [दिव्य ] ओ० २,४७,६४,७२. रा० ७,६, वीद [द्वीप] ओ० १६,२१,४८,५४,१७०. रा. ७, १०,१२,१७ से १६,२४,३२,४५ मे ५०,५६,५७. १०,१२,१३,१५,५६,१२४,२७६,६६८. ६३,६५,७३,७६,७८ से १५,१०० से ११३. जी० ३१८६,२१७,२१६ से २२३,२२५ से ११८ से १२०.१२२,१७३,२०६,२११,२७६, २२७,२५७,२५६,२६०,२६६.३००,३५१, २८१,२८५,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२, ४४५,५६६,५६० से ५७७,६३८,६६०,६६८, ३५१,३५५,५६४,६६७,७५३,७६७. ७०१ से ७०४,७०८,७११,७१५ से ७१६, जी०३८६,१७६.१७८,१८०,१८२,२८५, ७२३,७३६,७३९,७४०,७४२,७४५,७५०, ३५०,३७२,४४५,४४६,४५१,४५७ से ४६२, ७५४,७५५,७६०,७६२,७६४ से ७६६,७६८ ४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५४७,५५४, से ७८०,७६५ से १००,८०२ से ८०४,८०६, ५६३,६४६,८४२,८४५,१०२४,१०२५, ८०८ से ११०,८१४,८१६,८१७,८२१ से विश्वा [ दिव्याक] जी० १११०८ ८२५,८२७,८२६ से ८३१,८३८.२३,२६, दिसा दिशा) ओ० ४७,७२,७६ से ८१. ८४८,८५१,८५६,८५७,८५६,८६२,८६३, रा० २६४,६८८. जी० ३।३६,७५२,७५३, ८६५,८६८,८६६,८७१,६७४,८७५,८७७, १०१८,१०१६,१०२१ ८८० से ८८२,६१८,६२५,६२७ से १३५, विसाकुमार दिशाकुमार) ओ० ४ ६३७ से १४०,६४३,६४५, ६५० से ५४, दिसादाह | दिशादाह ) जी० ३१६२६ ६७२ से ६७५,१००१,१००७,१०२२,१०३६, दिसापोक्खि | दिशाप्रोक्षिन् । ओ०६४ १०८०,११११ दिसासोत्थिय दिशास्वस्तिक ] ओ० १६ दीव दीप] रा० ७७२ दिसासोवत्यिय दिशासीवस्तिक रा० १४६. दीवग [द्वीपक] जी० ३७७० जी०३:३१६,५९६ दीवचंपग [दोपचम्पक] रा० ७७२ दिसासोबत्थियासण |दिशा वस्तिकाभन । दीवचंपय [दीवचम्पक] रा० ७७२ रा० १८१.१५३,१८५. जी. ३१२६३,२६५, दीवणिज्ज (दीपनीय] जी० ३१६०२,८६०,८६६, २६७,८५७ ८७२,८७८ दिसि ! दिग्] रा० १६,४४,६१,१२०,१७०,१७५, दीवसिहा ! दीपशिखा जी० ३१५८६ २०२,२१०,२१२,२२४,२३४,६६४,६६४, दीवायण [टीपायन | ओ० ६६ ६६७,७१७,७७,७८७. जी. ११४६,५६, दीविच्चग [द्वीपग] जी० ३१७८० ८२,८७,६६,१०१, ३।३४,३५,२८७,३५८, दौविग द्वीपिक] जी० ३१६२० Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ दीविय-दुय दीविय [द्वीपिक] रा० २४. जी० ३।८४,२७७ दुधण [द्रुधण] स० १२,७५८,७५६. दीविया [दीपिका] जी० ३.५८६ जी० ३।११८ दीविल्लग ! द्वीपग] जी० ३१७७५ दुघरंतरिय द्विगृहान्नरिक ओ० १५८ दोह [दीर्घ ] ओ० १४,१६,२८,११६,११७, दुच्चिण्ण [दुश्चीर्ण | ओ०७१ १६५।४. २०१६०,२५६,६७१.७६५,७७४. दुट्टा दुष्ट ] ओ० ४६ जी० ३१३३३,४१७,५६६,५६७ दुत द्रुत ] जी० ३,४४७ दोहासण | दीर्घासन] रा० १८१,१८३. दुतविलंबित [द्रुतविलम्बित | जी० ३१४४७ जी० ३।२६३ दुद्ध [ दुग्ध ] जी० ३१५६२ दोहिया [ दीपिका ओ० १,६,९६. रा० १७४, बुद्धजाति [दुग्ध जाति ] जी० ३१५८६ १७५,१८०. जी० ३।२७५,२८६ दुरिस [दुर्धर्ष ] ओ० २७. रा० ८१३ दीहोकर | दीर्थी--कृ–दोहोकरेज्जा. दुपडोयार द्विप्रत्यावतार, द्विपदावतार ओ० ५२. जी० ३१६६७ रा०६८७ दोहोकरित्तए | पीकतुभ् | जी० ३।६६४ से ६१७ दुपय [ द्विपद ] रा० ७०३,७१८ दु [द्वि] रा० ४७. जी० ११९ दुपाय [द्विपक] जी० ३१११८,११६ बुंदुभिस्सर [दुन्दुभिस्वर] ओ० ७१. रा० ६१ दुप्पय [द्विपद | रा० ६७१ बुंदुहिणिग्धोस । दुन्दुभिनिर्घोष ] ओ०६७. दुप्पवेस | दुष्प्रवेश] बो०१ रा० १३,१३५. जी० ३।४४६,५५७ दुफास [दुःस्पर्श जी० ३९८१ दुदुहिनिग्धोस [ दुन्दुभिनिर्घोष] रा० ६५७. दुफासत्त [दुःस्पर्शत्व] जी० ३।६८७ जी० ३१५५७ दुब्बल दुर्बल] ओ० १४. रा० ६७१,७६०,७६१. दुंदुहिस्सर [ दुन्दुभिस्वर | रा० १३५. ___ जी० ३।११८,११६ लो० ३१३०५ दुब्बलय [दुर्बलक] रा० ७६१ दुंदुही [दुन्दुभी ] रा० ७७ दुभिक्स [ दुक्षि ओ० १४. रा० ६७१ दुक्ख [दुःख ] ओ० २६,४६,७२,७४११,४,५, दुभिक्खभत्त (दुर्भिक्षभक्त | ओ० १३४ १५४,१६५,१६६,१७७,१८१,१६५२१. दुम्भिखमयग [ दुर्भिक्षमृतक] ओ०६० रा० ७७१,७६५,८१६. जो० १११३३; दुब्भिगंध [दुर्गन्ध रा० ६,१२. जी० ११५,३६, ३७,५०, ३१२२,६२२,६७६,६८५ ३१११०; १२६७,८,८३८॥१३ दुभिगंधत्त ! दुर्गन्धत्व] पी० ३१९८५ दुक्खुत्तो दिम् | जी० ३१७३०,७३१ दुन्भिसद्द दुःशब्द] जी० ३।६७७,९८३ दुखुर द्विध्रुर जी० १।१०३ बुब्भसहत्त [दुःशब्दत्य | जी० ३१९६३ दुगुण द्विगुण जी० ३।२५६ बुब्भूय दुर्भूत जी० ३१६२८ दुगुणित द्विगुणित) जी० ३३५६७ दभागपत्तोमोवरिय द्विभाग प्राप्तावमोदरिका दुगुणिय द्विगुणित] जी. ३८३४।२४ ओ० ३३ दुगुल्ल दुकूल] रा० ३७,२४५. जी० ३१३११, दुम [द्रुभ] रा० १३६. जी. ३१३०६,५८२,५८६ ४०७,५६५ से ५६५,६०४ दुग्ग दुर्ग स० ७६५. जी० ३।११० दुमासपरियाय हिमाऽपर्याय] ओ० २३ दुग्गंध दुर्गन्ध रा० ७५३ दुय द्रुत रा० १०२,९८१ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुविलंबिय-देव दुयविलंब [ द्रुतविलम्बित ] रा० ६१,१०४, २८ १ बुयाह | द्वयह ] जी० ३३८६, ११८, ११६, १७६, १७८, १८०,१५२ दुरंत [ दुरन्त ] रा० ७७४ दुरभि [ दुरभि ] जी० ३१८४ दुरस ] दूरस] जी० ३६८० दुरहियास | दुरध्यास, दुरधिसह ] २० ७६५. जो० ३।११०,१११,११७ √ दुरुह [ आ + रुह ] - दुरुह इ. रा० ६८५--- दुरुहंति रा० ४८. दुरुहति. रा० ४७-दुरुहेति रा० ६८३ दुरुहिता [ आरुह्य ] रा० ४७ दुरुता [ आरुह्य ] रा० ६८३ दुरूढ ( आरूढ | ओ० ६३,६४, ० १३,४६ दुरूव [ दुरूप ] जी० ३६७८,६८४ √ दुरूह [ आ + रुह ] -- दुरूति जो० ७० दुहिता [ आरुह्य ] ओ० ७० दुहिताणं [ आरुह्य ] ओ० १०१ दुल्लभ [ दुर्लभ ] रा० ७५० से ७५३ दुल्लभबोहिय | दुर्लभबोधिक ] १० ६२ दुध [ द्वि ] जी० ३।२५१ दुवारवयण ( द्वावदन] रा० ७५५,७७२ दुवालस [ द्वादशन् | ओ० ३३. जी० ३।३३ बालसंग | द्वादशान् । ० २६ दुवालसहि [ द्वादशविध | रा० ५२७७७८. जी० १६६ वासपरियाय विपर्याय] ओ० २३ विष | द्विविध | जी० ३।१३६, १४०, १४१,१६३, ११२२, ६ १३७ दुहि [ विविध ] ओ० ३२,४०,७४. १० ७४१ से ७४५. जी० १ २, ३, ५ से ७, १०, ११, १३.१४, ५७,५८,६३,६५ से ६८,७०,७६,८०,८१,८४, ८,८६,६२,६४,१६,६७,१०० से १०४, १०६,१११,११,११६,११८ से २२,१२६, ६५५ १२६,१३३,१३५,१३६, १४३, २५, ७, १६ ३:७८,७६,८१,८२,६१, १३, १२७१५, १३२ से १३५,१३८, १३६.१४२ से १४६, २१२,२२६, ६७७ से १८१,१०२२,१०७१ से १०७४, १०८७,१०९१,१११०, ११२१ ४ २ ५२ से ४,३७ से ४०, ५३ से ५५; ६८, ६, ११, १५,१६,१८,२१,२२,२४,२८ से ३१,३६, ३८,३९,४२,४४,४६,५६,५८,६२,६३,६५, ६६,६८,७६,७९,८१,१२५,१३३,१५१, १७४ gror [दुवर्ण ] जी० ३५६७ हओ [ द्वितस्, द्वय ] रा० ६६,७०,१३१ से १३८, २४५, ७५५,७७२. जी० ३।३०१ से ३०३, ३०५ से ३०७,३१५,३५५,४०७,५७७ ओखा [ द्वितः खहा ] रा० ८४ दुहओचक्कवाल [ द्वितश्चक्रवाल ] रा० ८४ दुहतो द्वितस्, द्वय ] रा० १२३. जी० ३।३०४ दुहा ( द्विधा ] रा० ७६४,७६५. जी० ३८३१ इज्जत [दूगमाण ] ओ० ४६ दूइज्माण | दूयमाण ] ओ० १६, २०, ५२, ५३. रा० ६८६,६८७,६८६,७०६,७११,७१३ दूय [दूत ] ओ०१८,६३. रा० ७५४,७५६, ७६२, ७६४ दूर [दुर] ओ० १६२. रा० १२४. जी० ३११०३८ दूरंगइय [ दुरंगतिक ] ओ० ७२ तरसत्त [ दूरतत्व ] जी० ३२६८६ वराहड [दूराहृत ] रा० ७७४ { गुरूदत्त दुरूपत्व | जी० ३१६८४ दूस [ दुव्य ! ओ० ५६. जी० ३।६०८ दूसरवण | दृष्यरत्न ] ओ० ६३ देव [देव] ओ० ४४, ४७ से ५१,६८,७१,७३,७४, से ६५,११४,११७,१२०,१४०,१४१, १२५,१५७ से १६०, १६२, १६७, १७०, १६५:१३,१४, रा० ७,६ से १६,२४,३२,४१ Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५६ से ४४,४६ से ४६, ५४ से ६५,६८,६६,७१ से ७४, ११८ से १२०, १२२१२४, १२६, १८५ से १८३,२४०, २४६.२६६, २६८,२७०, २७४ से २६१,६५४ से ६६७, ६६८,७५२,७५३, ७७१,७८६,७६७ से ७६६.१५. जी० १५१, ५४,५६,६१,६५,८२,८७,६१,१०१,११६, १२३,१२८,१३५,१३६, २१२, १५ से १६, ३५ से ३:३० से ४७,६२,६७,६८,७१,७२, ७५,७८,८१,६० से ६३, ६५, ६६, १४४, १४५, १४८, १४९, १५१: ३११,८६,१२७,१२६२, १७६, १७८, १८०, १८२,१०४,१४,१६८ से २०६, २१७,२३० से २३४, २३६,२३८,२३६, २४२ से २४४,२४६,२४७, २४६ से २५२, २५५ से २५७,२६७,२६८, ३३६ से ३४५, ३५०,३५१,३५८ से ३६०,३७२,४०२, ४१०, ४२६,४३२,४३५,४३ε से ४५७,५५४ से ५६५, ५६७,५६८,६३५,६३७, ६३८, ६५६, ६६४, ६६६,६८०,७००,७०१,७१०, ७२१, ७२४, ७३८,७४१,७४३,७४६,७६०, ७६३,७६५, ७३८,७६५,८०८,८१६,८२६,८४०, ८४२, ८४३,८४५,८४६,८५४,८५७,८६०,८६३, ८६६,८७२८७५, ८८५, ६१७,६२३,६२५, ६२७ से ६३५, ६३८ से ६४०, ६४२ से ६४५, ६४७,६५०,६५१,६५४,६८८ से ६६७,६६६, १०१५, १०१७,१०२५,१०२७,१०२६,१०३१, १०३३,१०३५,१०३८,१०३६, १०४१ से १०४४, १०४९, १०४७, १०४९ से १०५६, १०८२,१०८३,१०८५ से १०८७,१०८६ से १०६३, १०६७ से १०६६,११०१,११०५, ११०७,११०६ से १११२,१११४ से १११७, १११६ से ११२४, ११३२, ११३३, ११३७, ११३८ ६३१, ५, ७, ८, १२; ७.१, ७, ८, १६ से २१,२३; ६।१५६,१५८,२०६,२१३, २१८,२२०, २२१,२२६,२२६,२३१,२३२, २४८, २५४, २६७, २७४, २८३, २८६,२६१,२६३ देवकलिया देवत्त careofलया [देवोत्कलिका ] जी० ३।४४७ देवउल [ देवकुल ] रा० १२ देवकज्ज [ देवकार्य ] जी० ३०६१७ देवकम्म [ देवकर्मन् ] जी० ३३१२६६,८४० देवकहकह [ देवकहकर ] जी० ३१४४७ वह [ देवकहकहरु | रा० २८१ dafoot | देवकिल्विपिक | ओ० १५५ dafafa | देव किल्विषिकत्व | ओ० १५५ देवकुमार [ देवकुमार ] रा० ६६,७१ से ७५,७६ से ८१, ८३, ११२ से ११८ देवकुमारिया | देवकुमारिका ] रा० ८३, ११५ से ११८ देवकुमारी | देवकुमारी | रा० ७० से ७५, ७६ से १,११२ से ११४ देवकुश | देवकुरु ] जी० २।१३, ३१६१६,६३७ वेवकुरु | देवकुरु | जी० २३३३,६०,७०,७२,१६, १३७, १३८, १४७, १४६; ३१२२८,७६५ देवकुल [ देवकुल ] त्रो० ३१. रा० ७५३ dog [ देवगति ] रा० १०, १२,५६,२७६ देवगण [ देवगण ] रा० ६६८,७५२, ७८६. जी० ३।११२० देवगति [ देवगति ] जी० ३३८६, १७६,१७८, १८०, १८२,४४५ देवत | देवगुप्त ] ओ० ६६ देवच्छंदग | देवच्छन्दक ] जी० ३२६०७ देवच्छंद [ देवच्छन्दक ] रा० २५३, २५८, २६१. जी० ३।४१४,४१५, ४१६, ४५७, ६७५, ६७६, ६०७,६०८ देवजुइ | देवधुति | रा० ६३,६५,११६ देवजुति [ देवद्युति ] रा० ५६,७३,११८,७६७ देवज्जुइ | देवयुति ] रा० ६६७ देवज्जुति [ देवधुति ] रा० १२२ देवत्त [ देवत्व ] ओ० ७२,७३,८६ से ६५, ११४, देवता | देवतः ] जी० ३।७३७ ११७,१४०, १५७ से १६०,१६२,१६७. रा० ७५२,७५३. जी० ३११२८, ११३० Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवदीव-देस देवदी [ देवद्वीप ] जी० ३७७६,७७७ drator [aate ] जी० ३१७७६,७७७ agger | देवदुदुह । रा० २८१. जी० ३३४४७ देवस [ देवदृष्य ] रा० २७४, २८५, २६१, ७५६. जी० ३१४३६, ४४३, ४५१, ४५७ देवद्दार | देवद्वार ] जी० ३:८८५ देवthar [ देवद्वीप ] जी० ३२७७६,७७७ देवपरिसा [देवपरिषद् | ओ० ७१. २० ६१ देवभद्द [ देवभद्र ] जी० ३ : ९४२.६५१ देवमहाभद्द | देवमहाभद्र | जी० ३६४२,६५१ देवमहावर [देव महावर ] जी० ३१६५१ देव [ दैवत ] ओ० २,५२,१३६. ० ६,१०,५८, २४०,२७६,६८७,७०४,७१६,७७६. जी० ३।४०२, ४४२ देवया [देवता] ओ० १३६ देवरमण [ देवरमण ] रा० ७८,८०,८२,११२ देवराय [देवराज ] जी० ३६१६ से ९२२,१०३६ से १०४४ देवलोग [देवलोक ] ओ० ७४१२, १४१. रा० ७६६. जी० ३।६३० देवलोय [ देवलोक ] ओ० ७१,७२, ७४१२,८६ से ६३. रा० ७५२,७५३. जी० ३६३० देववर | देववर ] जी० ३।६५१ देवविमाण [ देवविमान ] रा० १८७ देवसण्णिवाय [ देवसन्निपात] रा० २८१ देवनिवाय [देवसन्निपात ] जी० ३।४४७ देवसमवाय [ देवसमवाय ] जी० ३।६१७ देवसमिति [ देवसमिति ] जी० ३१९१७ देवसमुदय [ देवसमुदय ] जी० ३१११७ देवसमुद्दग [देवसमुद्रक] जी० ३२७७८ देवसयणिज्ज [देवशयनीय ] रा० २४५,२४६,२६१, ३५३, ४१४, ७६६. जी० ३१४०७, ४०८,४२३, ४३६, ४४३, ५१६,५२६,६५०, ६७३, ७५६ देवक्ख [देवौख्य ] ओ०७४/२ देवापि [ देवानुप्रिय ] २०,२१,५२, ५३, ५५, ६५७ ५६,५८,६०,६२,११७,११८, १२० रा० ६, १०, १३, १४, १७, ५८, ६३, ६५, ७२, ७३, २७६, २७८, ६५४,६८१,६८७ से ६६०, ६६५, ७०४,७०६, ७१३, ७१४,७१८, ७२०, ७२३,७५१,७६५. ७६८,७७४,७७५,७७७,८०२. जी० ३१४४२, ४४४,५५४ देवाणुभाग [ देवानुभाग ] रा० ६६७ देवा भाव | देवानुभाव ] २० ५६,६३,६५,०३, ११८,११६, १२२.७६७ देविंद [देवेन्द्र ] जी० ३३६१६ से ९२२, १०३६ से १०४४, १०५५ देविड | देवधि ] ओ० ७४२ ० ५६,६३६५. ७३, ११८, ११६.१२२,६६७७६७ देवित्त [ देवीत्व ] जी० ३।११२८ से ११३० देवी [ देवी ] ओ० १५,५५,५८,६२,७०,०१,८१. रा० ५,७,१५ से १३, ४८, ५४ से ५८, १८५, १८७,२४०,२७६,२८०,२८२,२५६ से २६१. ६५७, ६७२, ६७३, ७५१,७७६,७६१ से ७६४, ७६६. जी० ३३१६८ से २०६,२१७,२३७, २३८,२४३,२४६,२४७, २४६, २५०,२५६, २६७, २६८, ३५०, ३५८, ३६०, ४०२, ४४२, ४४६,४४८, ४५५ से ४५७, ५५७, ५६३,६३७, ६५६,७६०, ७६३, १०२३, १०२५, १०२८, १०३, १०३२, १०३४,१०३६,१०४११०४२, १०४४, ११२२, ११२६; ६।१,६,७,१२ ६ २०६, २१४,२१८, २२० der for [देवोत्कलिका ] २० २८१ { देवज्जोय | देवत] रा० २८१. जी० ३।४४७ देवोद [ देवोद ] जी० ३।७७६,७७७, ६४३,६४४ देवोar | देवोदक | जी० ३१७७८,७७६ देस [ देश ] ओ० १६, १६५११० रा० १७४, १८०, १५२,१४,१८,१६२ से १६७,७६५,७७४, ८०४. जी० ११४,५; ३ २६६ से २६६, २८६, २६२,९६४,२६६,५७० से ५६६,६४०,६५, ६६४,७०२,७२६,८०८, ८२६,८५७,८६३, ८६६,८७५,८८१ Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५८ देसंतर-धणुवेय देसंतर [देशान्तर ओ० ११६,११७ ६५,२७६,७०२,७०३. जी० ३१२४,४४५ देसकहा । देशकथा] ओ० १०४,१२७ दोच्चा | द्वितीया] जी० १११२४,२।१३५,१३८, देसकालण्णया | देशकालज्ञता ] ओ० ४० १४८,१४६; ३।२,४,६६,६७,७३,७४,८८,६१, देसभाग ग] रा० ३२,३६,३६,६६,१६४, २१८,२६१,२८१,३००,३२१,३३३. जी. दोणमुह द्रिोशमुख ] ओ०६८,८९ से १३,६५, ३१२७५,३६५.३७२,४४७,४६०,४६५,५५४, ६६,१५५१५८ से १६१,१६३,१६८. ५६६,७५६,७६२,७८२,८८२,९१३ रा० ६६७ देसभाय | देशभाग ] ओ० २,६,८,१६,५५,१६२. दोभग दौर्भाग्य | जी० ३१५६७ रा० ३,३५.१२५,१८६,२०४,२१७,२२७,२३८, दोमासिय द्वैमामिक । मो० ३२ २५२,२६३,२६५,३२६,३३८,३५६,४१५, दोमासिया द्वैमासिकी ओ० २४ ४७६,५३६,५६६,७५५,७७२. जी० ३।२६३, दोर [दवरक] रा० २७०. जी. ३४३५ ३१०,३१३,३३८,३५६,३५६,३६१,३६४, दोवारिय [दोवारिक] ओ० १८. रा० ७५४,७५६, ३६८,३६६, ,६८६,४००,४१३,४२२, ७६२,७६४ ४२७,४५८,४६०,४८६,४६१,४६८,५०३, दोस | दोष ओ० ३७.७१,११७,१६१,१६३. ५२१,५२७,५३५,५४२,५४६,६३४,६३६, रा० १७३,७९६. जी० ३,२८५,५६८ ६४२,६४६,६४६,६६३,६६८,६७१ से ६७३, दोसिणाभा [दे० ज्योत्स्नाभा] जी० ३३१०२३ ६७६,६८५,६६१,७३७,७५८,८३१,८८४, ८६०,८६१,६०६,६११,६१८,१०२३,१०३६ देसावयासिय [देशावकाशिक] ओ० ७७ धंत | ध्मात] रा० २६,७५७. जी० ३।२८२ देसिय [देशित ] जी० १११ धंतपुश्व [ध्मातपूर्व] रा० ७५७,७६३ देसी [देशी] ओ०४६,७०. रा० ८०६,८१० वण [धन ] ओ०५,१४,२३,१४१. रा०६७१, देसीभासा {देशीभापा] ओ० १४८,१४६ ६६५,७६६ देसूण [देशोन रा० १२८,२०१. जी० २०२६ से । घणक्खय [धनक्षय ] जी० ३१६२८ ३४,३७,५४ से ६१,६५,८४,८८,११४११६, धणिय [दे०] ओ० ४६. रा० ७७४. जी० २५५६ १२३,१२४,१३२ ; ३।२४७,२५०,२५६,२७३, २६८,३६२,३६६ से ३७१,५७०,६२६,६४६, घणु [धनुष ] ओ० १,६४,१७०,१८७,१६५. ६७३,६७४,७०६,७३२,८८२, ६।२३,२६,३३, रा० १८८,१८६,२४६,६६४,७५६. जी०११६४,११२,११६,१२५,३८२,६२, ४१,६६,७३,७८,१४२,१४४,१४६,१६२,१६४, २१८,२६०,२६३.३५३,५६२,५६८,६४७, १६५,१७८,२००,२०२ से २०४ देसोण देशोन | जी० ३.३५३ ६४६,६७३ से ६७५,६८३,७०६,७८८, देह [देह] रा० ७६०,७६१. जी० ३१५६६ १०१४,१०२२ देहधारि [देहधारिन् ] ओ० १६ घणुग्गह [धनुह] जी० ३१६२८ दो [द्वि] ओ० १७० धणुपट्ट [धनुष्ष्ठ ] जी० ३।५५७,६३१ दोकिरिय [वक्रिय] ओ० १६० घणुवेद [धनुर्वेद ] ओ० १४६ दोच्च [द्वितीय] ओ० ११७. रा० १०,१२,१८, घणुवेय [धनुर्वेद] रा०८०६ Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घण्ण धायतिसंड धण [धान्य ] ओ० २३ धन्न [ धन्य ] ओ० १६४. २० ६९५ धमाविव [मापितपूर्व ] रा० ७५७,७६३ धम्म [ धर्म] ओ० १६,२१,४०,४६,५४,६६,७१, ७२ ७४ से ७७,७६ से ८ १,१४२, १४४, १६१, १६३. ० ८,१६,६१,६२,२६२,६६३ से ६६५,७००,७१७ से ७२०,७३२, ७५२,७७५, ७७६,७८०,८००,८०२. जी० ३.४५३ धम्मका [ धर्मकथा ] ओ० ४२,४३. ६० ७७५ धम्म [H] ] [ धर्म्य व्यान ] ओ० ४३ Rears [ धर्माख्यायित् ] ओ० १६१,१६३. रा० ७५२ धम्मचरण [ धर्मचरण ] जी० २ २६ से २६,५४ से ५७,६५,८४,८८,८६,११४,१२३,१३२ पति [ धर्मचिन्तक ] ओ० ९३ धम्मज्य [ धर्मध्वज ] ओ० १६ घमणाय [ धर्मनाक ] ८० २९२. जी० ३।४५७ धम्मका [ धर्मास्तिकाय ] रा० ७७१. जी ० १८४ धम्मदय | धर्मदय ] रा० ८,२९२. जी० ३।४५० धम्मदेस्य [ धर्मदेशक ] रा०८,२१२. जी० ३१४५७ Wearer [ धर्मनाक ] रा०८ धम्मपण ] धर्म प्ररजन ] ओ० १६१,१६३. रा० ७५२ मक्लोइ [ धर्मप्रलोकिन् ] रा० ७५२ धम्मप्पलोई [ धर्मप्रलोकिन् ] ओ० १६१,१६३ धम्मसमुदायार [ धर्मसमुदाचार] ओ० १६१,१६३ घम्मसारहि [ धर्मसारथिन् ] रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ सीलसमुयाचार [ धर्मशीलसमुदाचार] रा० ७५२ धम्माय [ धर्मानुग ] ओ० १६१,१६३. रा० ७५२ धम्माfरय [ धर्माचार्य ] ओ० २१,५४,११७. रा० ७१४, ७७६,७६६ मिट्ट [ धर्मिष्ठ ] ओ० १६१,१६३. रा० ७५२ ६५६ aftar [ धार्मिक ] ओ० ५२,५७,१६१,१६३. रा० २७०,२८८,६६७,६८७,७५२,७५३. जी० ३२४३५, ४५४ धम्मोवदेस [ धर्मोपदेशक ] ओ० २१.५४,११७. २० ७१४,७९६ घर [धृ] धरति जी० ३१७३३ घर [ घर] ओ० ५,८,१६,२१,४७,४६,५४, ७२. रा०८, २२, १४५, २६२,६६४,७७१. जी० ३१२६८,२७४, ३८७, ४५७, ५६२,५८४,६७२ ७०२, ५०६,८२६ धरण [ धरण] अं० ६८. रा० २८२. जी० ३ : २४४ से २४७,२५०,४४८ धरणितल [ धरणितल ] ओ० २१,५४.०८, ५६, २६२. जी० ३।४५७ धरणियल [ धरणितल ] जी० ३१४५७,८८२ घरिज्माण [ श्रियमाण ] ओ० ६३, ६५. रा० ६६२,७००,७१६ परिसणा [ धर्षणा ] ओ० ४६ धरेज्जमाण [ त्रियमाण ] रा० ६८३ षय [धव | ओ० ६,१०. जी० ११७२३३३८८ ५८३ वल [ धवल ] ओ० १६,४६, ४७.६३, ६४. २१० २५५, २५६, २०५ जी० ३।३७२, ४१६,४१७, ४५१,५६६,५६७ धवलहर [धवलगृह ] जी० ३१५६४ घाई [धात्री ] रा० ८०४ घाउरत [ धातुरक्त ] ओ० १०७,११७,१३० घातसंड [ श्रातकीपण्ड जी० ३१७११ trator [धातकीरूक्ष ] जी० ३१८०८ etasaण | धत्तीवन ] जी० ३६८०८ धाasis [ धातकीपण्ड ] जी० ३७०८, ७१५ से ७२०, ७६८,७७०, ७७१,७९६ से ८००, ६०२ से ५०४, ५०६, ८०८, ८०६, ८३८/२३,२५ घाई [ धातकी ] जी० ३७७५,८०८ घाईड [ धातकीपण्ड ] जी० ३२५०६८३८२४ धातिसंड [ धातकीपण्ड ] जी० ३।७६६ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारग-नगरगुण धारग [धारक] ओ०६७ धारणा [धारणा ] रा० ७४०,७४१ धारि [धारिन् ] ओ० ४७,५१,७२. जी. ३.५६७, १०१५ धारिणी धिारिणी] ओ०१५. रा०५ धारित्तए [धारयितुम् ] ओ० १०५ धारेमाण [धारयत्] रा०२५५. जी०३४१६ धिइ धृति ] ओ० ४६ जी० ३१११८ घिति [धृति] जी० ३।११८,११६ धीर धीर] ओ० ४६ धुरा [धूर्] ओ० ६४ धुराग [धूपक] रा० १७३,६८१. जी० ३।२८५ ।। धुव ध्रुव] रा० २००. जी० ३४५६,२७२,३५०, ७६० धूमकेतु [धूमकेतु] ओ० ५० धूमप्पभा [धूमप्रभा] जी ०३४१,४३,४४,१०१, ११०,११४ धूमवट्टि [धूपवर्ति ] जी० ३।४५७ धूमिया [धूमिका] जी० ३१६२६ धूया [दुहित] जी० ३१६११ धूलि [धूलि] जी० ३।६२३ धूव [धूप] ओ० २,५५. रा०६,१२,३२,१३२, । २३६,२५८,२७६,२८१,२६०,२६२ से २६७, ३००,३०५,३१२,३५१,३५५,३५६. जी० ३:३०२,३७२,३६८,४१६,४४५,४४८,४५६ से ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५५४, ६७६,६०८ धूवघडिया [धूपटिका] रा० २३६. जी०३।३९८, ४१२,६०३ धूवघडी धूपघटी] रा० १३२. ३१३०२ धूववट्टी [धूपवति रा० २६२ षोत [धौत] जी० ३.५९६ घोय [धौत] ओ० १६,४७. २६० २६. जी० ३२८२,५६० न (न] ओ० ४७. रा० २००. जी ० ३।२७२ नई | नदी] ओ०६६. जी० ३.७७५ नईमह [नदीमह] ग० ६८८ नउल [नकुल ] रा० ७७ नंगलिय [लाङ्गलिक | ओ०६८ नंदणवण [ नन्दनवन ] रा० १७३,६७०. जी० ३२८५,५६७ नंदा न्दका ना० २८२. जी० ३।४४८ नंदा | नन्दा रा०२३३,२७३,२८८,३१२,३५०, ६५६. जी ३५५६ नंदाचंपापविभत्ति निन्दाचम्बाप्रविभक्ति। रा०६३ नंदापविभत्ति नन्दाप्रविभक्ति] रा०६३ नंदिघोस [नन्दिघोष | रा० ७७,१७३,६८१. जी० ३३५६८ नंदिमुयंग [नन्दिमृदङ्ग [ जी ३१७८ नंदियावत्त [नन्द्यावर्त | ओ० १२. रा० २६१ नंदिरुक्ख [नन्दिरूक्ष] जी० ३.३८८ से ३६० नंदिस्सर निन्दिस्वर] जी० ३१५६८ नंदी [नन्दी] २०७४ १,७४३ नंदीमुइंग | नन्दीमृदङ्ग रा०७७ नंदीमुह [नन्दी मुख जी० ३१२७५ नंदीसरवर नन्दीश्वरवर ] रा०५६ नक्कछिण्णग [न ऋछिन्नक] ओ० ६० नक्ख निख] २५४ मक्खत्त नक्षत्र रा० १२४. जी २:१८ ; ३१७०३, ७२२,८३०,८३८१३,५,८,११,१३,२२,३०, १००७ नवखत्तविमाण [नक्षत्रविमान] जी० २।४३; ३।१००६ नखवेदणा नरवेदना] जी० ३।६२८ नग नग] जी० ३१५६६ नगर [नगर] ओ० १८. रा० ६६७,७५४,७५६ ७६२,७६४,७७४. जी० ३१५९६ नगरगुण ! नगरगुण] ओ० १६५।१६ Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नगरदाह-नसिण नगरदाह [नगरदाह] जी० ३१६२६ नगरमाण [नगरमान] ओ० १४६ नगरी [नगरी] ओ० १६. रा० ६६६,६७०,६८०, ६८१,६८३,६८५,६५७,६८८,६६९,७००, ७०२ से ७०४,७०६,७०८,७१० से ७१२, ७२६,७५२,७७५,७७६,७८० नग्गा [नग्नजित्] ओ० ६६ नग्गभाव [नम्नभाव] ओ० १५४,१६५,१६६ निच्च [नृत्-नच्चिज्जइ. रा०७८३ नच्चंत [नृत्यत् ] ओ० ४६ नच्चणसील [नुत्यनशील] ओ०६५ नट्ट [नाट्य ] ओ०६८. रा० ७,७८,८०६. जी० ३१२९५,३५० नट्टविधि [नाट्यविधि ] १० ७६ नट्टविहि ! नाट्यविधि रा० ६३,६५,११८,२८१ नट्टसज्ज [नाट्यसज्ज] रा० ६६,७० न? [नष्ट] रा० २८१ नक [नट] ओ० १,२ नहपेच्छा [नटप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५ नत्तुय [नप्त] रा० ७५०,७५२ निद [नद्]-नदंति. जी० ३१४४७ नदी नदी] जी. ३१८४१ नपुंसग [नपुंसक] जी ० २।६६ से ११६, १२०, १२१,१२३,१२५ से १२६,१३२ से १३८, १४० से १५० नपुंसगलिगसिद्ध [नपुंसकलिङ्गसि] जी० ११८ नपुंसगवेद [नपुंसकवेद] जी० २११३६, १४०; ६।१२४,१२८ नपुंसगवेदग [नपुंसकवेदक] जी० ६।१३० नपुंसगवेय [नपुंसकवेद] जी० ११६६,१३६ नपुंसगवेयम [ नपुसकवेदक] जी० ६।१२१ नपुंसय [नपुंसक] जी० २।११७ से ११६, १२२ । से १२४ निमंस [नमस्य -नमसइ. रा० ७१४ नमसंति. रा०१०--नमंसति. रा० १२० -नमंसह. रा०७३--नमंसिज्जाह. रा० ७०६--नमंसिस्संति. रा०७०४ नमसण [ नमस्यन] रा० ६८७ नमंसणिज्ज नमस्यनीय] ओ० २ नमंसित्तए नमस्यितुम् ] रा०६ नमंसित्ता [नमस्यित्वा ] ओ० ६६. रा० १०. जी० ३१४७१ नमियनमित] रा०२२८. जी. ३१६७२ नमो नमस्] रा०८ नय [नय] ओ० २५. रा० ६८६ निय [नद्]—नयंति. रा०२८१ नयण नयन ओ० १,१५,६६. रा० २२८. जी० ३१५६६ नयरो नगरी] ओ० १,१६,६९. रा० १,२,८, ६,१५,५६,६७७ से ६७६,६५३,६८६ से ६८६,७५०,७५२ नर [नर] ओ० ५,८,६४,६६. रा० १७,१८,२०, ३२,३७,१४१,१७३,१६२. जी० ३।२६६, २७४,३००,५६७ भर (कंता) [नरकान्ता] रा० २७६ नरक [नरक] जी० ३६६ नरकंठ | नरकष्ठ] रा० १५५,२५८. जी० ३१३२८ नरकंठग [नरकण्ठक] जी० ३।४१६ नरकंता [नरकान्ता] जी० ३.४४५ नरग [नरक ] ओ० ७१. जी० ३।८६,१२७ नरपवर [नरप्रवर ] रा० ६७१ नरय [नरक] रा० ७५०,७५१. जी०३१८३, ___ ८७,११६,१२६२ नरयपाल [नरकपाल रा० ७५१ नरयावास [नरकावाम] जी० ३१७७,१२७ नरवइ निरपति] ओ०१ नरवसभ [नरवृषभ ] जी० ३११२६११ नरिंद नरेन्द्र ] ओ० २१,५४ नलवण [नलवन ] ओ० २६ नलिण [नलिन] ओ०१२,१५०. रा. १७४, ८११. जी० ३१५६५ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ नलिणा-नारिकता नलिणा [नलिना] जी० ३१६८६ नाण |ज्ञान] ओ०१६,२६. रा० ८,६८६,७३८, नव [नवन् ] ओ० ६३. रा० ८०१. जी० २।२० । ७६८. जी० १२१४,१०१, ३.१२७,१६०; नव [नव] जी० ३।३११ मवंग [नवाङ्ग] ओ० १४८,१४६ नाणत्त [नानात्व ] रा० ७६२,७६३ नवणिहिपति [नवनिधिपति ] जी० ३१५८४ नाणसंपण्ण [ज्ञानसम्पन्न रा०६८६ नयम [नवम] जी० ३१३५६ माणा [नाना] रा० ६६,७०,१३०,१३२,१६०, नवय [नवक] रा० ७५६ १६०,२२८,२५६,२७०,७६८. जी० १४१३६; नवरं [दे० ] जी० १७७ ३१२६४,२८८,३११,३८७,४०७,४१७,६४३, नवविह [नवविध] जी० १:१०; ६२५५ ६७२ नह [नख] जी० ३१३२३ नाणाविह [नानाविध ] जी० १७२; ३१२७७, ३७२ नाइय [नादित] रा० ५५,२८०,६५७. जी० ३।११८,११६,४४८,८५७,८६३ नाणि [ज्ञानिन् ] जी० २।३०।३।१०४ नाउं ज्ञातुम् ] जी० ३१८३८,२६ नाणोवलंभ [ज्ञानोपलम्भ] रा० ७६८ नाग [नाग] ओ० १६.६८. रा० १६२,२८२. नातव्य [ ज्ञातव्य] रा० ३१६८८ जी० ३३२३२,४४८,७३३,७८०,६५० नादित [नादित ] जी० ३।४४६ नागकुमार नागकुमार] जी० २।३७; ३।२४४, नाणा [नाना] जी० ३३३३३ २४८ नाभि नाभि] रा० २५४ नागकुमारराय [नागकुमारराज] जी० ३१२४४ नाम नामन् ] ओ० १,२. रा० १,२,६,५६,१२४, से २४७,२४६,२५०,६५७,६५६,६६० २४६,२८१,६६८,६७२,६७३,६७६ से ६७६, नागकुमारिंद [नागकुमारेन्द्र ] जी० ३१२४४ से ६८६,६८७,६८६,७०३,७०६,७१३,७३२, २४७,२४६,२५०,६५७,६५६,६६० ७६६. जी० ३१३,४,१२८,३००,४१०,४४७, नागवंत नागदन्त ] रा० १३२,२४० ५९३,५६४,६३२,६३८,६३६,६६०,६६६, नागवंतग नागदन्तक] रा० १४०. ६६८,७११,७५६,७६४,८१४,८३१,८३८१३, जी० ३१३९८ ८५१,६३३,१०५६ नागदंतय [नागदन्तक] रा० १५३,२३६. नामग [नामक ] जी० ३१२४ जी० ३।३६७,३६८,४०३ नामाधिज्ज [नामधेय] रा० ८०३ नागपडिमा [नागतिमा रा० २५७. नामधेज्ज नामधेय | जी० ३१६६६,६७२ जी० ३४१८ नामधेय [नामधेय रा०८,७१४,७६६ नागमंडलपविभत्ति | नागमण्डलप्रविमक्ति] नायव्य [ज्ञातव्य ] जी० ३।१२६।३ रा०६० मायाधम्मकहाधर जाताधर्मकथाघर] ओ० ४५ नागमह नागमह] रा०६८८ नारय [नारद ] ओ०६६ नागरपविभत्ति [नागरप्रविभक्ति] रा० ६२ नाराय [नाराथ] जी० १६११६ नागराय नागराज] जी० ३१७४८,७५० नारायग्ग | नाताचान] जी० ३१८५ नागलया [नागलता] रा० १४५. जी० ३।२६८ नारि नरी] ओ० ६६ नागलयापविभत्ति [नागलताप्रविकि] रा० १०१ नारिकता नारीकान्ता रा० २७६. नाड्य नाटका रा० ७१०,७७४ जी० ३.४४५ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नारी-निभ नारी [नारी ] रा० १७३ नाल [नाल ] जी० ३।६४३ तालिएर | नालिकेर | जी० १।७२ नाली | नाडी | जी० ३७८ नावा [नौ] जी० ३१७६३ नासा [ नासा ] रा० २८५. जी० ३।४५१ नासिगा [ नासिका ] रा० २५४ निजण | निपुण] ओ० ६३. रा० ६६,७०,६७२, ७५ से ७६१,८०४. जी० ३।११८ निंदणा ( निन्दना ] ओ० १५४, १६५,१६६. रा० ८१६ निंब [निम्त्र ] जी० ११७१ free [ निकर ] ओ० १३ निकुरंब [ निकुरम्ब | रा० ७०३. जी० ३।२७३ निकुरु' ब [निकुरुम्ब] ] ओ० १६ frrier [ निष्कङ्कट ] ओ० १२,१६४. रा० २१, २३,३२,३४,३६,१२४, १४५, १५७. जी० ३१२६६ freete | fromोध ] ओ० १६८ निक्खमंत | निष्क्रामत् | जी० ३३८३८११४ freanण [ निष्क्रमण | जी० ३१५६४,६१७ निगम [ निगम ] ओ० १८,६८,८० से ६३,६५, ६६, १५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. रा० ६६७, ७५४, ७५६, ७६२, ७६४ / निहि [निः । - ग्रह ] - निगिण्हइ. रा० ६८३ निर्णय | न ] ओ० २४,७६ से ८१,१२०, १६२,१६४. रा० ६३,६५,७३,७४, ११८, ६६५,६६८, ७३८,७५२,७८६ √ निगच्छ [ निर् + गम् ] निग्गच्छइ. ओ० ६७. रा० २७७ – निम्गच्छति ओ० ७० रा० ७४ - निग्गच्छति रा० २८३ निग्गच्छमाण [ निर्गच्छत् ] ओ० ६८ निगच्छत्ता [ निर्गत्य ] ओ० ६६. रा० २८३ निगमण [ निर्गमन ] जी० ३१८४१ निम्य [ निर्गत ] रा० ६,७५४ निग्रह [ निग्रह] ओ० ३७. रा० ६८६ निःगुण [ निर्गुण] रा० ६७१ निग्धोस [ निर्घोष ] जी० ३।४४८, ५५७ fric | निघण्टु ] ओ० ६७ निस | निकष ] रा० २८. जी० ३३२८१ निचय | निचय | रा० ३१ निचिय [ निचित ] ओ० १६. रा० १२,७५५, ७५८, ७५६,७७२. जी० ३।११८, ५६६ निच्च | नित्य | ओ० ४६. रा० १५. जी० ३।३६०, ५८४,८३८१७ निच्छय [ निश्चय ] ओ० २५, रा० ६७५,६८६ निच्छोडणा | निश्छोटना ] रा० ७७६ निच्छोडित्तए | निश्ोटयितुम् ] रा० ७३६ निजुद्ध | निर्युद्ध | ओ० १४६. जी० ८०६ निज्जरा | निर्जरा | ओ० १२०,१६२, १६६. रा० ६६८, ७५२,७८६ ६६३ निज्जिय | निर्जित | ओ० १४. रा० ६७१ निज्जीव | निर्जीव | ओ० १४६. रा० ८०६ निज्जुत [ निर्युक्त ] जी० ३१२८५ निट्ठिय [निष्ठित ] ओ० १८३,१८४, रा० ७७४ निठुर | निष्ठुर ] रा० ७६५. जी० ३।११० निडाल [ ललाट ] जी० ३१३०३,५१६ निद्दा | नि+द्रा ] - निद्दाएज्ज. जी० ३।११६ निद्ध | स्निग्ध | जी० ११५, ५०६ ३१२७५,५६६ नित | निर्मात | जी० ३०५६०, ५६६ निम | निर्धूम ] जी० ३१५६० निय | नित | ओ० ५०. जी० ३।२७४ निष्पंक | निष्पक] ओ० १२. रा० २१,२३,३२, _३४,३६,१२४, १४५, १५७. जी० ३।२६६ निष्पकंप | निष्प्रकम्प | आं० ४६ निष्प चक्खाण | निष्प्रत्याख्यान | रा० ६७१ निष्पन्न | निष्पन्न ] जी० ३।६०२ निबद्ध [ निवद्ध ] रा० ७७२ निन्छना | निर्भर्त्सना ] रा० ७७६ तिब्भंछित । निमंत्सितुम् ] रा० ७७६ निभ [ निम] रा० ५१ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ निमज्जग [ निमग्नक ] ओ० ६४ निमित्त | निमित्त ] जी० ३११२६१६ निमिसिय | निमिषित ] जी० ३।११६ निमीलिय | निमीलित ] जी० ३११२६८ निम्मल | निर्मल | ओ० १२,१६,४७. रा० २१, २३,३२,३४,३६,१२४, १३०, १४५, १४६, १५७. जी० ३१३२२,५६६, ५६७ निम्माण | निर्माण ] ओ० १६८ निम्माय | निर्माय ] ओ० १६८ निम्मिय | निर्मित ] रा० १७३. जी० ३३२८५ निम्मेर | निर्भर ] रा० ६७१ नियइपव्यय [ नियति पर्वत ] रा० १८१ नियइपस्य | नियति पर्वतक ] रा० १८० √ नियंस [ नि + वस् ] – नियंसेइ रा० २६१ - नियंसेति रा० २८५ नियंसण | निक्सन] रा० ६६ नियंसेत्ता [ निवस्य ] रा० २८५ नियम [ निजक ] रा० १२०.७७४ नियsि [ निकृति ] रा० ६७१ नियम [ नियम ] ओ० २५ ० ६८६,७२३. जी० १३०,६५,८७,६६,११६,१३३,१३६० ३|१०४; १२६/३ ८३८१४,६६६, ११०८ नियय [ नियत ] जी० ३।२७२, ७६० निरंगण [ निरङ्गण] ओ० २७. रा० ८१३ निरंतर | निरन्तर ] ० १२.७५५,७७२ निरंतरिय [निरन्तरित] रा० १३० निरय [निरय | जी० ३।१२६, १२७ २ निरयभव [निरयभव ] जी० ३।११६, १२६५ निरयवेय णिज्ज | निरथवेदनीय] रा० ७५१ निरयाज्य | निरयायुष्क | रा० ७५१ निरयावास | निरयावास | जी० ३ १२, ७७, १२७ निरवसेस [ निरवशेष ] जी० ३।१८४, ४१२, ४२६, ७५० निरालंबण | निरालम्बन] ओ० २० रा० ८१३ निरालय | निरालय ] ओ० २७. २०८१३ निरावरण [ निववरण] ओ० १५३,१६५,१६६ निमज्जग-निव्विसय / निरंभ [ नि + रुध् ] - निभइ मो० १८२ निरंभित्ता | निरुध्य ] ओ० १८२ निरुत्त [ निरुक्त ] ओ० ६७ जीं० ३१४८८ freवलेव | निरुपलेप ] ओ० २७. रा० ८१३. जी० ३।५६८ दिवस'ग | निरुपसर्ग ] froad | निरुपहत ] ओ० १६. जी० ३३५६६ निरेयन [ निरेजन | ओ० १८३, १८४ निरोदर | निवेदर | जी० ३३५६७ निरोध [ निरोग | जी० ३।२७५ निरोयय | निरोगक] ओ० ६ निरोह [ निरोध ] ओ० ३७ निलाड [ ललाट | रा० ७० मिल्लेव [ निर्लेप | जी० ३ १६६, १६७ निल्लेबण | निर्लेपन ] जी० ३११६६ निल्लोह | निर्लोभ ] ओ० १६८ / निवाड [ नि + पातय् ] - निवाडेइ रा० २६२ निवाहिता [ निपात्य ] रा० २६२ निवाय [निपात ] जी० ३।८६ √ निवेद | नि + वेदय् । - निवेदिज्जासि ओ० २१ / निषेध [ नि + वेदय् ] – निवेएमो. रा० ७१३ / निवेस [नि + वेशय् ] -- निवेसेइ. ओ० २१. ०८ निवेत्ता | निवेश्य | ओ० २१. रा०८ निव्वण [ निर्व्रण] जी० ३१५९६ / निव्वत निर्वर्तय् ] -- निव्वत्तेज्जासि रा० ७५१ निव्वय [ निर्व्रत ] ० ६७१ निव्वाघाम [ निघातिन्, निर्व्याघातिम] ओ० ३२. जी० ३।१०२२ निव्वाण | निर्वाण | ओ० १६५।१६ निविय निकृतिक ] ओ० ३५ निव्विण्ण | निर्विण्ण ] रा० ७६५ निव्विण्णाण | निर्विज्ञान ] रा० ७३२,७३७,७६५ निव्वितिमिच्छ [निर्विचिकित्स ] ओ० १२०,१६२ निव्विसय [ निर्विषय ] रा० ७६७ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निव्वुइकर तोपज्जत्त निव्बुडकर [ निर्वृतिकर ] रा० १७३. जी० ३:३०५, ६७२ निव्वुतिकर [ निर्वृतिकर | रा ३०,१३५ निसरण [ निषण्ण ] ओ० ११७. रा० ७६६. जी० ३१८९६ निसन्न [ निषण्ण ] रा० २२५ निसम्म [ निशम्य ] रा० १३ निसामित्तए | निशमितुम् ] रा० ७७५ निसिय [ निशित ] रा० २४६ / निसिर [ नि + सृज् ] निशिरंति. रा० १०--- निसिरति रा० ६५-निसिरेइ रा० ७६४ निसित्तिए [ निसटुम् ] रा० ७५८ freisत्ता [ निषद्य ] औ० २१ निलोदण [ निषीदन] ओ० ४० निसीय [नि + षद् ] – निसीयइ ओ० २१-निसीयंति रा० ४८ - निसीयह. रा० ७५३ निसोहिया [निषीधिका, नैषेधिकी ] रा० १३१, १३५ निस्सकिय [ निःशङ्कित ] ओ० ५२. रा० ६८७, ६८६ निस्सास [ निःश्वास ] रा० ७६६,८१६ निस्सील [ निःशील ] रा० ६७६ निस्सेयस [ निःश्रेयस ] ओ० ५२. रा० २७६,६८७ निहट्टु [ निहृत्य ] रा० ८ निह [ निहत ] ओ० १४. ० ६७१ नीर [नीरजस् ] ओ० १२, १८३, १८४ नील नील | ओ० ४, १२. रा० २२, १२८, १७०, ६६४, ७०३. जी० १ ५, ५०, ३१२२,४५, २७३,२६०, १०७५, १०७६ नीलच्छाय | नीलच्छाय ] ओ० ४. रा० १७०, १७३. बी० ३।२७३ नीललेस | नीललेश्य | जी० ६११६३ नोललेसा (नीलया । जी० २६६,१०० नीललेस्स | नीललेश्य | जी० ६.१५५,१९६ नीललेस्सा [नीललेश्या ] जी० १४२१ नीलवंत [नीलवत् ] जी० ३१४४५,६३२,६५७,६५६ ६६८, ७६५ नवंत [नीलवद्द्रह ] जी० ३६३६,६४०, ६४२ ६५ से ६६१,६६६ नीलवंता | नीलवती ] जी० ३३६५६ नीलुप्पल [नीलोत्पल] ओ० १३. ० २६ नीलोभास [नीलावभास ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३।२७३ नोव | नीप ] जी० ३।३८८ नीसास | निःश्वास ] रा० २८५,७७२. जी० ३५६८ ६६५ नीहार [नीहार] रा० ७७२ नृणं [ नूनम् ] जी० ३६८२ नेम [म] रा० १७५, १६० जी० ३।२६४,२८७, ३०० नेयव्व | नेतव्य ] जी० २।१५० ३१३०६ des [ नैरयिक] रा० ७५१. जी० ११५१,५४, ६१,८२,८७,६२,६६, १०१,११६, १२१, १२३, १२८,१३६, २६६, १००, १०८, १२७, १३४, १३५,१३६, १४८, १४९, ३१,२,७७,६८,६३, ६५,६६,६८,१०३,१०६ से ११२,११८,११६, १२१ से १२३,१२८, १२६१४, ६, ७, ८, १५५, १५३ १६२; ६१,७,१२; ७११ से ३, १६, २२; २१०,२१३,२२० नेरइयत्त [नैरयिकत्व ] जी० ३११२७ नेल [नैल] ओ० १६ सज्जिय [धिक ] ओ० ३६ नेहाणुराग [ स्नेहानुराग ] जी० ३।६१३ तो तो | रा० ६२. जी० ११२४ नोपज्जत | अपर्याप्तक | जी० ६८८६४ नोअपरित | तोपरी ] जी० २२७५,८६,८७ atra सिद्धिय [ नोभवसिद्धिक | जी० ६ १०६ नोअसण्ण | नोअसंज्ञिन् ] जी० १/१३३; ६।१०१, १०४,१०८ नोइंद्रिय [नोइन्द्रिय | जी० १११३३ नोपज्जत [नोपर्याप्त ] जी हा Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नोपज्जत्तग-मएसघण नोपज्जत्तग [नोपर्याप्तक] जी० ६।८८,६४ पउमजाल [पद्मजाल] रा० १६१. जी. ३।२६५ नोपरित्त [नोपरीत] जी० ७५ पउमद्दह [पद्मद्रह] जी० ३।४४५ नोबायर [नोबादर) जी० ६६५,९८ से १०० पउमपत्त [ पद्मपत्र रा० २४. जी० ३।२७७ नोभवसिद्धिय [नोभवसिद्धिक ] जी० ६।१०६ पउमपम्हगोर पद्मपक्ष्मगौर| ओ०५१, जी० नोसण्णा | नोसंज्ञा] जी० १२१३२ ३१०६४ नोसण्णि [नोसंझिन्] जी० १११६,१३३; ६।१०१, पउमप्पभा [पदरप्रभा जी० ३१६८३ १०४,१०८ पउमरुक्ख [पझरूक्ष ] जी० ३१८२६ नोसुहम [नोसूक्ष्म ] जी० ६१६५.६८ से १०० पउमलया [पघलता ओ०११,१३. रा०१७,१८, २०,३२,३४,३७,१२६,१४५,१८६. जी. ३३२६८,२७७,२८८,३००,३०८,३११,३१५, पइट्ठा प्रतिष्ठा] ओ० १६.२१,५४ ३३७,३५६,३७२,३६०,३६६,५८४,६०४ पइट्ठाण प्रतिष्ठान ] ओ० १६८. रा० १३०, । पउमलयापविभत्ति पद्मलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ १३१,१४७,१४८, १६०,२८०. जी० ३ २६४, पउमवण [पनवन] जी० ३१८२६ ३०१,३२१ पउभवरवेइया [पद्मवरवेदिका रा० १७४,१८६ पट्ठिय [प्रतिष्ठित] ओ० १६०१,२. से १६८,२००,२०१,२३३,२६३. जी. जी० ३३१०५७ से १०६४ ३।२१७,२५६,२६४ से २७०,२७२,२७३, पइण्णा [प्रतिज्ञा ] ओ० १४२,१४४. रा० ७४८ से ३६२,३६५,६३२,६३६,६६१,६६८,६७८, ७५०,७५२,७५४,७५६,७५८,७६०,७६२, ६८३,६८६,७०६,७३६,७५४,७६२७६९, ७६४,७७३,८००,८०२ ८५७ पइभय [प्रतिभय] ओ० ४६ पउमवरवेदिया पिद्मवरवेदिका] जी० ३१२१७, पइरक्खिया | पतिरक्षिता] ओ०६२ २६३,२६६,२८६.२६८,७९८,८१२,८२३, पइरिक्क [दे०] जी० ३३५६४ ८३६८५०,८८२,६११ पइसेज्जा [पति शय्या] ओ० ६२ पउमसंड [पापण्ड] जी० ३१८२६ पईव [प्रदीप रा० ७७२ पउमा [पना] जो० ३।६८३,९२० पउंज प्र+युज]-पउंजइ. रा०६७१. पउमासण पासन रा० १८१,१८३. जी० -पउंजंति ओ०६८. रा० २८२. जी० ३।४४८ ३.२६३,३६६,३७१ पउंजमाण [प्रयुञ्जान ] ओ० ६४ । पउमुत्तर पद्मोत्तर | जी० ३१६०१ पउंजियव प्रयोक्तव्य] रा० ७७६ ।। पउमुप्पल [पोत्पल ] रा० ८११ पउट्ठ [प्रकोष्ठ ओ० १६. जी० ३४५६६ पउर [प्रचुर] ओ० १,१४,४६,७४,१४१. रा० पउत प्रयुत] जी० ३१८४१ ६७१,७६६ पउम | पद्म ओ० १२,१६,१५०. रा० २३,१३१, पउसिया' [बकुलिका ] ओ० ७० १३८,१४७,१४८,१९७,२७६,२८०,२८८, पएस प्रदेश] ओ० १६५.१०. रा० ४०, १३२, ८११. जी. ३।२५६,२६६,२६१,३०१,४४६, १५४. जी० ११५,३३, ३३०२,३६८,५७१, ४५४,५६७,५९८,६४२,६४३,६५२ से ६५४, ७१५,८०८,८१६ ६५७,६५८,८२६,८४१,६३७ पएसघण प्रदेशधन ] ओ० १६॥३ पउमगंध [पगन्ध | जो० ३।६३१ १. बउतियाहिं [ राय० सू० ८०४] Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पपसि-पंति २६६ पएसि [प्रदेशिन् ] रा०६७१ से ६७५,६७६ से पंचणउइ [पञ्चनवति] जी० ३१७१४ ६८१,७००,७०२ से ७०४,७०८ से ७१०, पंचणउति [पञ्चनवति] जी० ३१७६८ ७१८ से ७२०,७२३ से ७२६,७२८ से ७३४, पंचनउति [पञ्चनवति जी० ३।७६६ ७३६ से ७३६, ७४६ से ७८२,७८६ से ७६१, पंचाणउत [पञ्चनवति जी० ३३६१ ७६३ से ७६६ पंचाणउति [पञ्चनवति ] जी० ३१७२३ पयोग [प्रयोग] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,७६१, पंचाणुष्वइय [पञ्चानुवतिक] ओ० ५२,७८ ७९४ पंचिदिय [पञ्चेन्द्रिय ] ओ० १५,७३,१४३,१८२. पओयघर [प्रतोदधर ओ० ५६ रा०६७२,६७३,८०१. जी० २५५२१०१, पोयलट्टि [प्रतोदर्याष्ट] ओ० ५६ ११३,१२२.१३८,१४६; ३३१३०,४१,४,६, पओहर [पयोधर] रा० १३३. जी० ३।३०३ ६,१०,१५,१६,२४,२५, ८.५६।१ से ३,७ पंक [पङ्क] ओ० ८६,६२,१५०. रा० ८११. पंचेंदिय पिञ्चेन्द्रिय] जी० ११८३,६१,६७,६८, __ जी० ३,६२३ १०१ से १०३,११६,११७.१२५,१३६; पंकप्पभा [पङ्कप्रभा] जी० ३।३६,४१,४३,४४, २११०४,१०५,१३६,१३८,१४६,१४६ १००,११३ ३।१३७ से १४७,१६१ से १६३,१६६,१११५; पंकबहुल [पङ्कबहुल] जी० ३।६,६,१६,२५,३०, ४१६,१८,२०,२१:१५,७,१६७,१६६,२२१, २२५,२२६,२३१,२५६,२५६,२६०,२६४, पंकरय [पङ्कजस् ] ओ० १५०. रा० ८११ पंकोसण्णग [पङ्कावसन्नक] ओ०६० पंजर [पञ्जर] रा० १३७. जी० ३०७ पंच [पञ्चन् ] ओ० ५०. रा० २४. जी० ३१३४ पंजलिउड [प्राञ्जलिपुट] ओ० ४७,५२. रा०६०, पंचगिताव [पञ्चाग्निताप] ओ० ६४ । ६८७,६६२,७१६ पंचम [पञ्चम] ओ०६७,१७४,१७६. जी० पंजलिकड {कृतप्राञ्जलि ] ओ० ७० पंडग [पण्डक] ओ० ३७ ३।३३८ पंचमा [पञ्चमी] जी० १६१२३; २११४८,१४६; पंखगवण [पण्डकवन ] रा० १७३,२७६. जी० ३२८५,४४५ ३१२,३६ पंडरग (पण्डरक] जी० ३।९६३ पंचमासिय [पाञ्च मासिक] ओ० ३२ पंडिय पण्डित] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० पंचमी [पञ्चमी] जी० ३१४,७४,८८,६१,१६२, पंड पाण्डु] ओ० ५,८. रा० ७८२. जी० ३।२७४ १११११२ पंडुर [पाण्डुर ओ० १,१६,२२,४७. रा०७२३, पंचविध [पञ्चविध] जी० २११०१,१०२; ७७७,७७८,७८८. जी० ३१५९६ ३३१३० ; ४१२५, ६१४८ पंडुरतल [ हम्मिय] [पाण्डुरतलहH] जी० ३५९४ पंचविह [पञ्चविध] ओ० १५,३७,४०,४२,६६, पंडुरोग [पाण्डुरोग] जी० ३१६२८ ७०. रा० २७४,२७५,६७२,६८५,७१०, पंत प्रान्त्य | रा० ७७४ ७३६,७५१,७७४,७७८,७६७. जी० १:५, पंताहार प्रान्त्याहार ओ० ३५ ६६,११८,२.४,१८, ३११३१,४५०,४४१, पंति [पङ्क्ति ] ओ० ६६. रा० ७५,२६७,३०२, ८३८१२१,६७६,४११, ६.१५६,१५८ ३२५,३३०,३३५,३४०. जी० ३।२६७,३१८, पंचसयर [पञ्चसप्तति जी० ३१८३८१३१ ३५५,४६२,४६७,४६०,४६५,५००,५०५,५६४, Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ पंथ-पग्गहिय ८३८७ से ४ पाखालण [प्रक्षालन ] ओ० १११ से ११३,१३७, पंथ [पत्थ,पथिन् ] रा० ७३७ पंथिय [पाथिक ] रा० ७८७,७८८ पक्खालिय [प्रक्षालित] ओ०१८ पंसुविट्टि [पांशुवृष्टि] जी० ३१६२६ पक्खालेत्ता [प्रक्षाल्य ] रा०२८८. जी. ३१४५४ पकड्डिज्जमाण [प्रकृष्यमाण ] ओ० १६ पक्खासण [पक्ष्यासन, पक्षासन] रा० १८१,१८३. पिकर |प्र-कृ-पकरेंति. ओ० ७३. जी० ३१२६३ जी० ३.१२४.-पकरेति. जी. ३२१० पक्खि [पक्षिन् ] रा ६७१,७०३,७१८. पकरेत्ता प्रकृत्य ] ओ०७३ जी० १।१०१; ३।८८,१६५,७२१ पकरणता |प्रकरण] जी० ३।२१० V पक्खिव [प्र+क्षिप्]-पविखवइ. जी० ३.५१६. पकरणया [प्रकरण ] जी० ३।२११ -पक्षिवेज्जा. जी० ३.१०६ पकाम [प्रकाम] रा० ७३२,७३७ पक्खिव (प्रक्षेपय ]- -पविखवावेमि. रा० ७५४ पकामरसभोइ [प्रकामरसभोजिन् । ओ० ३३ पक्विवित्ता [प्रक्षिप्य ] जी० ३५१६ पकार [प्रकार] जी० २१६८; ३१५६५ पक्खुभित [प्रक्षुभित] जी० ३१८४२,८४५ पकारवग्ग पकारवर्ग] रा० ६६ पक्खुभिय [प्रक्षुभित | ओ० ४६,५२. रा० ६८७ पक्कणी [ पक्कणी ] ओ० ७०. रा० ८०४ पगइ [प्रकृति ] ओ० ७३,६१,११६. रा० १७४, पक्किट्टग [पक्वेष्टक ] जी० ३।८४५ २३३. जी० ३।६२५ पक्कोलित [प्रक्रीडित] जी० ३।६१७ पगंठग [प्रकण्ठक] रा० १३७, १४६. जी० ३३०७, पक्कीलिय [प्रक्रीडित ] रा० १७३. जी० ३१२८५ पक्ख [पक्ष | ओ० २८, रा० १३०,१६०,१६७. पगति । प्रकृति | जा० ३।२८६ ५६८,६२०,७६५, __जी० ३१२६४,२६६,३००,८४१ ८१६,८४१,८५४,६५६,६५७,६६४ पक्खंदोलग [पक्ष्यन्दोलक,' पक्षान्दोलक रा० १८०. पगतित्थ [प्रकृतिस्थ ] जी० ३.११२१ से ११२३ __ जी. ३।२६२,८५७ पगम्भ [प्रगल्भ ] जी० ३.५६१ पक्खंदोलय [पक्ष्यन्दोलक, पक्षान्दोलक] रा० १८१. पगाढ [प्रगाढ] रा० ७६५. जी० ३।११० __ जी० ३।२६३,८५७ पियाय [प्र+गै]-पगाइंसु. रा०७५ पक्यपुडतर [पक्षपुटान्तर रा० १९७ पगार [प्रकार] रा० ८०६,८१०. जी० २०७४, पक्खपेरंत [पक्षपर्यन्त] रा० १६७. जी० ३२६६ १४०,१५१ पक्षबाहा [पक्षबाहु] रा० १३०,१६०,१९७. पगास [प्रकाश] ओ० १३,१६,२२,४७. रा० १३०, जी० ३१२६४,२६६,३०० २५५,६७०,७७७,७७८,७८८. जी० ३१३००, पिक्खाल [प्रक्षालय]-पक्खाले इ. रा० ३५१. ४१६,५८६,५६६,५६७ —पवखाले ति रा० २५८. जी० ३१४५४ पगिज्झ [प्रगृह्य ] रा० ६६४ पगिझिय [प्रगृह्य ओ० ११६ १. यत्र तु पक्षिण आगत्यात्मानमन्दोलयन्ति ते पगीय प्रिमीत रा०७६,१७३. जी. ३१२८५ पक्ष्यन्दोलकाः [राय० ब०]। पिगेण्ह [प्र+ग्रह.]-पगेण्हति रा० २८८ २. 'गिरिपक्खंदोलया' गिरिपक्षे--पर्वतपार्श्वे छिन्न- पगेण्हित्ता [प्रगृहय] रा० २८८ टगिरी वात्मानमन्दोलयन्ति येते तथा पग्गहित्तु [प्रगृह्य ] जी० ३।४५७ [ओ० ०] . पहिय [प्रगृह्य] ओ० ६७. रा० २६२ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचकमणग पन्चोत्तर पचकमण [ प्रचंक्रमणक] रा० ८०३ ~ पच्चक्ख, क्खा [ प्रति + आ + ख्या ] पच्चक्खति ओ० १५७ -- पच्चक्खामि रा०७६६ _पञ्चक्खामो. ओ० ११७ पृच्चक्खा इस्सइ. रा० ८१६ पच्चक्खाण [ प्रत्याख्यान ] ओ० १२०, १४०, १५७. रा० ६६८, ७५२, ७८७,७८६ पच्चक्वाय { प्रत्याख्यात ] ओ० ८४,८५,८७,८८, ११७,१२१,१३६ रा० ७६६ पच्चखित्ता | प्रत्याख्याय | ओ० १५७ पञ्चणुभवमाण [ प्रत्यनुभवत् ] १० १८५, १८७, ७५१. जी० ३१०६, ११८, ११६, १२२, १२३, २१७,२१७, २६८,५७६ पच्चणुभवमाण [ प्रत्यनुभवत् ] ओ० १५. रा० ६७२,६८५, ७१०,७७४. जी० ३।११६, ११८,११६,१२८, ३५८, १११४, १११७, १११८, ११२४ पच्चत्थिम [ पाश्चात्य ] रा० ४३, ४४, १७०, २३५, २३६,२४४,२४६,६६३,६६४. जी० ३।३००, ३४४,३४५,३६७,३६८, ४०६, ४१०, ५६१, ५६२, ५६८,५७७,६३२,६६१,६६६, ६६८, ६७३,६८२,६६३,६६४,६६७, ६६८,७०८, ७१२,७४२,७४४,७५४,७६१, ७६५, ७६८, ७६६,७७१ से ७७३,७७६,७७८,८००, ८१४ ८२५,८५१,८८२, ८८५६०१,६३६,६४०, ६४४,१०१५ पचत्थिमिल्ल [ पाश्चात्य ] रा० २६६, २६७,३०१, ३०६,३१७,३२२,३२७, ३३५,३४०, ३४५. जी० ३।३३,२२०, २२१, २२४, २२५,४६१. ४६६,४७१, ४८२,४८७, ४६२, ५००, ५०५, ५१०,५७७,६७३,६६५ से ६६७,७६६,७७१, ७७३,७७५ ७७७, ६१५ पच्चत्थु [ प्रत्यवस्तृत ] रा० ३७ / पच्चप्पिण [ प्रति + अर्पय् ] - पञ्चपिणइ. ओ० ५७ – पच्चपिणंति. रा० १२. जी० ३।५५५ - पच्चप्पियति. रा० ४६ -- पच्चपिणह. रा० ६. जी० ३।५५४ - पच्चप्पिणाहि ओ० ५५. रा० १७ - पच्च पिणेज्जा. ओ० १५० ६६६ -- पच्चष्पिणेज्जाह रा० ७०६ पच्चमाण [ पच्यमान | जी० ३।१२६८ पच्चामित [ प्रत्यमित्र ] ओ० १४. रा० ६७१. जी० ३१६१२ / पच्चाया [ प्रति + आ + जन् ] - पच्चाइस्सइ. रा० ७६७ - पच्चायति. ओ० ७१. जी० ३१५७२ – पन्चायाहिति. ओ० १४१. पचावड [ प्रत्यावर्त ] रा० २४. जी० ३।२७७ पच्चष्णम [ प्रति । उत् + नम् ] – पच्चु॰णमइ ओ० २१. रा० २६२ ---पच्चुष्णमति. जी० ३१४५७ पच्चमित्ता [ प्रत्युन्नभ्य ] ओ० २१. रा० २६२. जी० ३।४५७ पच्चुत्तर [ प्रति + उत् + तृ] - पच्चुत्तरति. जी० ३१४४३ – पन्चुत्तरेइ. रा० ६५६जी० ३।४५४ पच्चुत्तरिता [ प्रत्युत्तीर्य ] जी० ३१४४३ पच्चुत्तरेता [ प्रत्युत्तीर्य ] रा० ६५६. जी० ३०४५४ पच्चुत्थत [ प्रत्यवस्तृत ] जी० ३।३११ पच्चुद्धर [ प्रति + उ + धृ ] - पचचुद्ध रिस्सामि जी० ३।११८ पच्चरित ए [ प्रत्युद्धर्तुम् ] जी० ३।११८ पच्चन्नम [ प्रति + उत् + नम् ] -- पच्चुन्नमइ. रा०८ पच्चन्नमित्तर [ प्रत्युन्नम्य ] रा०८ पच्चसकाल [ प्रत्यूषकाल ] जी० ३।२८५ / पच्चुवेक्ख [ प्रति । उप + ईक्ष् ] – पच्चु वेक्वे इ. ओ० ५६ पच्चुवेक्खमाण [ प्रत्युपेक्षमाण ] रा० ६७४,६८०, ६६८ पच्चवेक्ता [ प्रत्युपेक्ष्य ] ओ० ५६ पच्चोणिवयंत [ प्रत्यवनिपतत् ] ओ० ४६ पच्चोत्तर [ प्रति + उत् + तु ] – पच्चोत्तरइ. रा० २७७- पच्चोत्तरति रा० २८० Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० पच्चोत्तरित्ता-पट्टिया ६४६ पच्चोत्तरित्ता [प्रत्युतीर्य ] रा० २७७ जी० ११४,२६,८६,६६,१०१,११६,१३३, पच्चोयर [दे०] रा० १५४,१७४. जी० ३।२८६, १३६,३१४४०,४४१ पज्जत्तिभाव [पर्याप्तिभाव] रा० २७४,२७५, पिच्चोरभ [प्रति + अव--रुह-पच्चोरुभति. ७६७. जी. ३१४४०,४४१ जी० ३१५५६ पजलिय [प्रज्वलित ] रा० ४५ पच्चोरुभित्ता [प्रत्यवरुह्य ] जी० ३१५५६ पज्जव [पर्यव] रा० १६६. जी० ३।५८,८७, पिच्चोरुह प्रति+अव+रुह.]-पच्चोरुहइ. २७१,७२४,७२७,१०८१ ओ० २१. रा०२७७. जी. ३१४४३ पज्जवसाण [पर्यवसान ] ओ० १४६. रा० ८०६, ---पच्चोरहति ओ० ५२. रा० ५७ ८०७. जी० ११४६; ३३२५०,२५६,६४८, -पच्चोरुहति रा०८. जी० ३।४४३ पच्चोरुहित्ता प्रत्यवरुद्ध] ओ० २१. रा०८. पज्जालिय [प्रज्वालिता जी० ३५९४ जी० ३१४४३ पिज्जुवास [परि+उप-आस् ]--पज्जुवास इ. पच्छय [प्रच्छद] ओ० ५७ ओ०६६. रा०६- पज्जुवासंति. ओ०४७. पच्छा [पश्चात् ] ओ० १६५,१६६,१७७. रा० ६८७.-पज्जुवासति. रा०६० रा० ५६,६३,६५,२७५,२७६७८१ से ७८७, -पज्जुवासामि. रा०५८-पज्जुवासामो. ८०२. जी. ३.४४१,४४२,६८६,१०४८, रा० १०-पज्जुवासिस्संति. रा० ७०४ १११५ -पज्जुवासेइ. रा०७१६-पज्जुवासेज्जा पच्छाणुताविय [पश्चादनुतापिक] रा० ७७४, रा० ७७६ पच्छियापिडय [पच्छिकापिटक] रा० ७६१,७७२ पज्जवासणया [पर्युपासना] ओ० ४०,५२. रा०६८७ पजेमणग [प्रजेमनक] रा० ५०३ पज्जुवासणा [पर्युपासना] ओ० ६६ पजोग [प्रयोग[ रा० ७६४ पज्जवासणिज्ज [पर्युपासनीय ओ० २. पज्ज [पद्य] रा० १७३. जी० ३।२८५ १० २४०,२७६. जी० ३।४०२,४४२,१०२५ पज्जत्त [पर्याप्त ] जी० ११५१,५५,६३,६५; पज्जवासमाण [पर्युपासीन] ओ० ८३ ३।१३३,१३४; ४१६,२२,२३,२५,५।१७,२६, पज्जयासित्तए [पर्युपासितुम् ] ओ० १३६. २८ से ३०,३२ से ३६,३६,४०,४३,४६,४६, रा०६ ५२,५४ से ६० पज्जोसवणा [पर्युषणा,पर्युपशमन | जी० ३१६१७ ज्जत्तग[पयाप्तक] आ० १८२.जा. ११२, पझंझमाण [पझञ्झमान ] रा० ४०,१३२. ६७,७३,७८,८१,८४,८८,८६,६२,१००,१०३, जी० ३१२६५ १११,११२,११६,११८,१२१,१२६,१३५, पदपि ] रा० ३७,२४५,६६४,६८३. ३३१३६,१३६,१४०,१४६,४१२,६,१८,२१ से २३,२५,५॥३,४,७,१८ से २२,२४,२५,२७, पण पित्तन] ० ६८,८६ से ६३,६५,६६,१५५, ३१,३३,३४,३६,५०; 815८,८६.६२,६४ १५८ से १६१,१६३,१६८. रा०६६७. पज्जत्तय [पर्याप्तक] ओ० १५६. जी० १११०१ जी० ३।५६५ ४.११, ५॥१२ से १६,२६,५२,६० पट्टिया [पट्टिका] रा० १३०,१६०,६६४,६८३. पम्नत्ति [पर्याप्ति] रा० २७४,२७५,७६७. जी. ३१२६४,३००,५६२ . ७७५ Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पट्ठ-पडिपाद ६७१ ४०७ पट्ट [प्रष्ठ] जी० ३.११८ --पडिच्छए. ओ०२ पड [पट] ओ० २३,६३ पडिच्छण्ण [प्रतिच्छन्न] जी० ३१५८१ पडत [पतत् ] जी० ३।५६० पडिच्छमाण [प्रतीच्छत् । ओ०६६ पड़ग [पटक ] रा० ७५३ पडिच्छयण [प्रतिच्छदन] रा० २४५. जी० ३१३११, पडबुद्धि [पटबुद्धि] ओ० २४ पडल [पटल ] रा० १२,१५४,१७४. पडिच्छायण [प्रतिच्छादन] रा० ३७ जी० ३१११६,२८६,३२८,३३०,३५५१३ पडिच्छिय [प्रतीप्ट] ओ० ६६. रा० ६६५ पडलग [पटलक] रा० १२,१५७,२५८,२७६. पडिजागरमाण प्रतिजाग्रत् ] रा० ७६३ जी० ३।४१६,४४५ पडिजागरेमाण [प्रतिजाग्रत्] रा० ५६ पडह पिटह] ओ० ६७. रा० १३,७७,६५७. पडिजाण [प्रतियान] ओ० ६२ जी० ३११७८,४४६,५८८ पडिण [प्रतीचीन ] जी०३१५७७,१०३६ पडागा [पताका] ओ० ५५,६४. रा० ३२,५०,५२, पडिणिकास [प्रतिनिकाश ] रा० १४६. जी. ५६,१३७,१७३.२३१,२४७,६८१.जी०११८०, ३१२२२ ८२; ३२२८५,३०७,३७२,३६३ पिडिणिक्खम [प्रति+निस् + क्रम्]-पडिणिपडागाइपडागा [पताकातिपताका ] ओ० २,१२, खमइ. ओ० २०. रा०२८६. जी० ३४५४. ५५. रा० २३,२८१. जी० ३१२६१ ____पडिणिक्खमंति रा० १२. जी० ३४४५ पडागातिपडागा पताकातिपताका] पडिणिक्यमित्ता [प्रतिनिष्क्रम्य] ओ० २०. रा० जी० ३।४४७ १२. जी० ३।४४५ पिडिकम्प प्रति+कल्पय् ]-पडिकप्पेइ. परिणिक्खिव [प्रति-नि-क्षिप ....पडिणिओ० ५७-पडिकप्पेहि. ओ० ५५ क्खिव इ. रा०२८८. जी० ३१५१६.--पडिणिपडिकम्पिय [प्रतिकल्पित ] ओ० ६२ विखवेइ, जी० ३।४५४ पडिकप्पेत्ता [प्रतिकल्प्य ] ओ०५७ पडिणिक्विवित्ता प्रतिनिक्षिप्य] रा० २८८. जी० पडिकूल [प्रतिकूल ] रा० ७५३,७६७,७६५,७७६, ३१५१६ ७७७ पडिणिविखवेत्ता [प्रतिनिक्षिप्य] जी० ३१४५४ पडिक्कंत [प्रतिक्रान्त] ओ० ११७,१४०,१५७, पिडिणियत्त प्रति+नि-वृत् |---पडिणियत्तइ. १६२. रा० ७६६ ओ० १७७---पडिणियत्तंति.जी. ३७४६ पडिक्कमणारिह [प्रतिक्रमणार्ह ] ओ० ३६ पडिणियत्तित्ता [प्रतिनिवृत्य] ओ० १७७ पडिगय [प्रतिगत ] ओ० ७ से ८१. रा० ६१, पडिणीय [प्रत्यनीक] ओ० १५५. जी० ३।६१२ पडिदुवार {प्रतिद्वार] ओ० २,५५. रा० ३२,२८१. १२०,६६४,६६७,७१७,७२२,७७७,७८७ पडिगाहित्तए [प्रतिग्रहीतुम्] ओ० १११ जी. ३१३७२,४४७ पडिग्गह [प्रतिग्रह] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, पिडिनिक्खम [प्रति-+निस् । कम्] -पडिनिक्ख७५२.७८६ मइ. रा० ७१०.–पहिनिक्खमंति. रा० २७६. पडिग्गाहित्तए [प्रतिग्रहीतुम् ] ओ० ११२ ___ --पडिनिक्खमति जी० ३१४४६ पडिचंद [प्रतिचन्द्र ] जी० ३१६२६,८४१ पडिनिक्खमित्ता [प्रतिनिष्कम्य] रा० २७६. जी० पडिचार प्रतिचार ओ०१४६. रा० ८०२ ३१४४६ पिडिच्छ प्रति+इष्]--परिच्छइ. रा० ६८४ पडि पाद प्रतिपाद] जी० ३,४०७ Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिपाय-पडिविसज्ज पडिपाय [प्रतिपाद] रा० २४५ ३१६,३२३ से ३२६,३२८ से ३३०,३३३, पिडिपिधा [प्रति + पि+-धा-पडिपिधेइ. जी० ३३४,३३७,३४७,३४८,३५२,३५३,३५५,३६१, ३३५१६ ३६५,३७२,३७७,३८०,३८१,३८३,३८५.३८७, पडिपिधेत्ता [प्रतिपिधाय] जी० ३३५१६ ३६०,३६२,३६३,३६६,४००,४०१,४०४,४०६ पिडिपुच्छ [प्रति-+प्रच्छ ] – पडिपुच्छंति. ओ० ४५ ।। से ४०८,४१०,४१३,४१४,४१८,४२२,४२७, परिपुच्छण [प्रतिप्रश्छन] ओ० ५२. रा० ६८७ ४३७,५८१,५८४,५८५,५६६,५६७,६३२,६३६, पडिपुच्छणा [प्रतिप्रच्छना] ओ० ४२ ६४४,६४६,६४६,६५५,६६१,६६८,६७१,६७२, परिपुच्छणिज्ज प्रतिपृच्छनीय रा० ६७५ ६७५,६८६,७२४,७२७,७३६,७५८,८३६,८५७, पडिपुण्ण [प्रति पूर्ण] ओ० १४,१५,१६,६३,७२, ८६३,८८१,८८२,८६१,८६३ से ८६५,८६७, १२०,१४३,१५३,१६२,१६५,१६६,१७०. ८६८,६०४,६०६,६०७,६११,६१८,१०३८, रा० १३१,१४७,१४८,१५०,१५२,२८०,२८६, १०३६,१०८१,११२१,११२२ ६७१ से ६७३,६६८,७५२,७८६,८०१,८१४. पडिरूवय [प्रतिरूपक | रा०१६.२०,१७५ से १७६, जी० ३।३०१,३२३,३२५,४४६,४५२,५६२, २०२,२३४,२६४. जी० ३१२८७,२८८,३६३, ५६६,५६७,६१० ३९६,५७६,६४०,६४१,६६६.६८४ पडिपुग्णचंद [प्रतिपूर्णचन्द्र ] जी० ३१८६,२६० परिचय [प्रतिरूपक रा० १६,४७,४८,५६,५७, पडिपुग्न [प्रतिपूर्ण] जी० ३१५९६ २७७,२८८,३१२,४७३,६५६. जी०३।४४३, परिबंध [प्रतिबन्ध ] ओ० २८. रा० ६६५,७७५ ४५४,४७७,५३२,५५६ पडिबद्ध प्रतिबद्ध] जी० ३।२२ पिडिलाभ [प्रति+लाभय]-पडिलाभिस्संति. पडिबोहण [प्रतिबोधन] रा० १५ रा०७०४.- पडिलाभेइ. रा०७१६. पडिबोहिय [प्रतिबोधित] ओ० १४८,१४६. रा० -पडिलाभेज्जा. रा० ७७६ ८०६,८१० पडिलामेमाण [प्रतिलाभयत् ] ओ० १२०,१६०. पडिमट्ठाइ [प्रतिमास्थायिन् ] ओ० ३६ रा० ६६८,७५२,७८९ पडिमोयण [प्रतिमोचन] जी० ३२७६,५८१,५८५ पिडिलेह [प्रति + लिख्]—पडिले हेइ. रा० ७६६ पडियाइक्खिय [प्रत्याख्यात ] ओ० ११७ पडिलोम [प्रतिलोम] रा० ७५३,७६७,७६८,७७६, पडिलव [प्रतिरूप] ओ०७,१० से १२,१५,७२,१६४. रा० १,२,१६ से २३,३२,३४,३६ से ३८, पडिवंसग [प्रतिवंशक] रा० १३०. जी० ३१३०० १२४ से १२८, १३० से १३४,१३६,१३७, पिडिधज्ज [प्रति-: पद्—पडिवज्जइ. १४१,१४५ से १४८,१५० से १५३,१५५ से ओ० १८२. रा० ७७५.–पडिबज्जति. १५७,१६०,१६१,१७४,१७५,१८० से १८५, ओ०१५७. ....पडिवज्जिामि. रा०६९५. १८८,१९२,१९७,२०६,२११,२१८,२२१,२२२, --पडिवज्जिमामो. ओ० ५२. रा०६८७ २२४,२२६,२२८,२३०,२३१,२३३,२३८,२४२, २४४ से २४७,२४६,२५३,२५६,२५७,२६१, पडिज्जित्ता [प्रतिपद्य ] ओ० १५७ २७३,६६८ से ६७०,६७२,६७३,६७६,६७७, पडिवण्ण [प्रतिपन्न] ओ० २४,७८,८२,१८२ ७००,७०२,७०३. जी० ३१२३२,२६० से २६३. पडिवत्ति [प्रतिपत्ति] जी० १०; ६१८ २६६ से २६६,२७६,२८६ से २६७,३०० से पडिविरय प्रतिविरत ] ओ० १६१,१६३ ३०४,३०६ से ३०८,३१० से ३१२,३१८, पिडिविसज्ज [प्रति-+-वि+सर्जय्] ७७७ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिवूह - पणाम -पडिविसज्जेइ. ओ० ५४. रा० ६८४. --पडिविसज्जेहिति. ओ० १४७.०८०८ परिवह [ प्रतिव्यूह ] ओ० १४६. रा० ८०६ सिंमाण | प्रतिसंक्षिपत् ] रा० ५६ पडिलीणया [ प्रतिसंलीनता ] ओ० ३१,३७ पडि संसाणा [ प्रतिसंसाधना ] ओ ४० / डिसर [ प्रति + संहृ] - पडिसाहरइ. ओ० २१.०८ पडसाहरिता | प्रतिसंहृत्य ] ओ० २१ पडसाहरेत्ता [ प्रतिसंहृत्य ] रा०प पडिसाहरेमाण [ प्रतिसंहरत् । रा० ५६ / पडिसुण [ प्रति + श्रु ] - पडिसुगंति. रा० १०. जी० ३१४४५. - पडिणिज्जासि रा० ७५३. -- पडिसुणेइ. ओ० ५६. रा० १८. -- पडिसुर्णेति ओ० ११७. रा० ७०७. जी० ३।५५५. --पडिसुणेति रा० १४ पडिसुणेज्जासि रा० ७५१ पडिणित्ता [ प्रतिश्रुत्य ] रा० १८. जी० ३।४४५ पडित्ता [ प्रतिश्रुत्य ] ओ० ५६. ० १०. जी० ३१५५५ पsि [ प्रतिश्रुत ] रा० १४ पडिसूर [ प्रतिसूर ] जी० ३।६२६, ६४१ पडिसेग [ प्रतिषेक ] रा० २५४ डिसेविय | प्रतिषेवित ] रा० ८१५ पडिलेह [ प्रतिषेध ] जी० २२६६,१०१ परिहत | प्रतिहत ] जी० ३।७४६ पsिहत्य | दे० ] रा० १७४. जी० ३।३२४,८५७, ८६३,८६६,८७५, ८८१,९४८ पsिt | प्रतिहत ] ओ० १६५।१,२ पण [ प्रतीचीन ] रा० १२४. जी० ३१६३६ पडीणवात | प्रतीचीनवात ] जी० ११८१ पडीवाय | प्रतीचीनवात ] जी० ३१६२६ पडु [ पटु ] ओ० ६८. रा० ७,१३,६५७. जी० ३१३५०, ४४६, ५६३, ८४२, ८४५, १०२५ पडुच्च [ प्रतीत्य ] रा० ७६३. जी० १ ३४ ६७३ पड़प्पन्न [ प्रत्युत्पन्न ] जी० ३३१६५ से १६७ पप्पामा [ प्रत्युत्पद्यमान ] जी० ३।२५६ पडोयार [ प्रत्यवतार ] ओ० ४३. जी० ३।२१८, २५६,५७८,५६६,५६७ पढम [ प्रथम ] ओ० ४७, १४४,१७४, १७६, १८२. रा० ८०२. जी० ३१२२६,६८२,६८३,६८८; ७१,२,४,६,११,१३,१५,१७,२०,२२२३; ६१ से ७,२३२, २३३, २३५, २३७, २४१,२४३, २४५, २४७, २५०, २५२,२५३,२५५,२६७,२६८, २७०,२७२,२७५,२७७, २७६, २८१,२८४,२८६, २८८ से २६३ पढमग [ प्रथमक ] रा० २२८. जी० ३१३८७,६७२ पढमसत्तराइं दिया [ प्रथमसप्तरात्र दिवा ] ओ० २४ पढमसरयकाल | प्रथमशरत्काल ] जी० ३।११८, ११६ पदमा [ प्रथमा ] जी० ३१२,३,८८,११११ पढमिल्य [ प्रथम ] रा० ७६८ पणजीव [ पनकजीव | ओ० १८२ पणच्च [ प्र + नृत्य् ] -- पच्चिसु. रा० ७५ पणतीस [पञ्चत्रिंशत् ] जी० ३०८०२ पणपण [ दे० पञ्चपञ्चाशत् ] जी० ६ । ६ पणपन्न | दे० पञ्चपञ्चाशत् | जी० २।२० पणमिय [ प्रणत | ओ० ५,८,१०. रा० १४५. जी० ३१२६८,२७४ पणयाल | पञ्चचत्वारिंशत् | जी० ३।२२६६ पणयालीस | पञ्चचत्वारिंशत् ] ओ० १९२. जी० ३३३०० पालीसहि | पञ्चचत्वारिंशद्विध] ओ० ४० पण यासण [ प्रणतासन ] रा० १८१,१८३. जी० ३।२९३ पणव [ पणव ] ओ० ६७. रा० १३,७७,६५७. जी० ३१७८, ४४६, ५८८ वणिय | पणपनिक ] ओ० ४६ पणवीस | पञ्चविंशति । रा० १२७. जी० ३६१ पणस [ पनस ] जी० ३३३८८ पणाम [ प्रणाम ] रा० ६८,२६१,३०६. Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ पणि-पत्तियमाण जी. ३.४५७,४७१,५१६ पणि [पर ] जी० ३ ६०७ पणिय पणित, पण्य ] ओ०१. रा० ७७४ पणियगिह । पणित, पण्यगृह ] ओ० ३७ पणियसाला [पणित, पण्यशाला] ओ० ३७ पणिहाय प्रणिय, प्रणिहाय जी० ३१७३ से ७५, १२४,१२५,७६५,१०२५ पणीत प्रणीत | जी० ११ पणीयरसपरिच्चाय [प्रणीतरसपरित्याग | ओ० ३५ पणुवीस [पञ्चविंशति | जी० ३।२२६३५ पणोल्लिय प्रणोदित ] ओ० ४६ पण्णओ | प्रज्ञातम्] रा० ७५२,७५४,७५६,७५८, ७६०,७६२,७६४ पण्णगद्ध [पन्न गार्ध] जी० ३१३०२ पण्णट्ठ पञ्चपष्टि] जी० ३१२२२ पण्णट्टि [पञ्चपष्टि] रा० १६४ पण्णत्त | दे०] ओ० १ पण्णत्त प्रज्ञप्त) ओ०२. रा० ३. जो०११ पण्णत्तर पञ्चनप्तति | जी० ३१२४६ पण्णत्तरि [पञ्चसप्तति ] जी० ३१६६१ पण्णत्ति प्रज्ञप्ति स० ८१७ पण्णरस [पञ्चदशन् ] जी० ३।१२ पण्णरसविष [पञ्चदशविध] जी० ३३२२६ पण्णरसविह [पञ्चदश विध] जी० ११८०; २०१४ 4/पण्णव | प्र-! ज्ञापय | -- wणवइंसु. जी० ११. ----पण्णवे:ओ० ५२. रा०६८७ -पण्णवेति जी० ३१२१०..-पण्णवे हेंति. जी० ३१८३८.३ पण्णवणा प्रज्ञापना] T० ७७४. जी० ११५,५८, ७२,१००,११०,१११,११६,११८,१२६,१३५ १८६३।१८४,२१४,२३२,२३३ पण्णवणापद [प्रज्ञापनापद] जी० ३।२२०,२३१ पण्णवित्तए प्रज्ञापयितुम् | रा० ७७४ पण्णवीस पञ्चविंशति ] जी० ३।१२ पण्णवेमाण [प्रज्ञापयत् ] ओ०६८ पिण्णाय [प्रज्ञा-पण्णायति. जी. ३.६६E पण्णास [पश्चात् ] रा० २०९. जी० २१३९ पण्हावागरणवसाधर [प्रश्नव्याकरणदशाधर | ओ० ४५ पतणतणाइत्ता | प्रतनतनाय्य | रा० १२ पितणतणाय प्र-तनतनाय }- पतणतणायंति. रा० १२ पतणु [प्रतनु ] ओ० ६१,११६ पतरग [प्रतरक | जी० ३.३०२ पितव |प्र : तव — पतवंति, जी० ३।४४७. -पतवेंति. रा० २८१ पतिट्ठाण प्रतिष्ठान ] रा० १६,१७५. जी० ३२८७,३००,४४६,४४८ पत्त [पत्र] ओ० ५,६,८,१३,१६,२७,६४. रा०६, १२.२६,३१,१६१,१७४,२२८,२५८,२७०, २७६,७८२. जी० ११७१,७२, ३१११८,११६, २०४,२७५,२७६,२८३,२८४,२८६,३३४, ३८७,४१६,४३५,४५४,५८१,५८६,५६६, ६२२,६४३,६७२ पत्त प्राप्त] ओ० ३७,११७,१४०,१५७,१६२, १६५।१६,२२. राः १,६३,६५.६६७,७६६, ७९७. जी० ३.८६७ पत्तच्छज्ज पत्रच्छेद्य | ओ० १४६. रा० ८०६ पत्तट्ठ | दे० प्राप्तार्थ ] ओ०६३. रा० १२,७५८, ७५६,७६५ ७६६,७७० पत्तभार [पत्रभार) ओ० ५,८. जी० ३.२७४ पत्तमंत [पत्रवत् ] ओ० ५.८. जी० ३१२७४ पत्तल [पत्रन ओ०१६,४७. जी० ३१५९६,५६७ पत्तासव वानव जी० ३१८६० पत्ताहार पत्राहार ओ०६४ पत्तिय |प्रति। ---पत्तिएज्जा. रा० ७५०. ----पत्तियामि, रा०६६५ पत्तिय | पत्रित | रा० ७८२ पत्तियमाण प्रतियत् | जी० १११ १ द्रष्टव्यम् -निशीथभाष्य ४४३५ । १. अनुकरण वचन । Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्ती-मभास पत्ती [पात्री ] जी० ३।५८७ पतंग | प्रत्येक ] जी० ५२६ पत्तेगसरीर | प्रत्येकशरीर ] जी० ५।३१ पत्तेय | प्रत्येक ] ओ० ५०. रा० २०, ४८, १३७, {६४,१७०,१७४ से १७६, १८६,२११,२१५, २१७ से २१६,२२१,२२२,२२४.२२६,२२७, २३०,२३१,२३३,२५५,२५६,२८२,६६४. जी० ३।२५६, २८६ से २८८, ३०७ से ३१३, _३४५, ३५५,३५६, ३५८,३५६,३६३, ३६८, ३६६,३७२ से ३७८, ३८०, ३८१,३८३ से ३८६,३९२, ३६३, ३६५, ४१६, ४१७, ४४८, ५५८ से ५६२,६३२,६३४, ६३५,६३७, ६४१, ६६१,६६२, ६८३ ६८४, ७२५, ७२७, ७२८, ७६२,७६३,८५७,६८२८८८८७ से ८६१,८६३,६०३,६०६,६०८, ६१०,६११, ६१३,१०४५५२८, ३० ६ १७४ पत्तेयजीव [ प्रत्येकजीव ] जी० ११७१ पत्ते बुद्धसिद्ध [ प्रत्येकबुद्धसिद्ध ] जी० १८ पत्तेरस [ प्रत्येकरस ] जी० ३१६६३ यसरीर [ प्रत्येकशरीर ] जी० ११६८,६६, ७२ ५३१,३३ से ३६ पत्तोमोरिय [ प्राप्तावमोदरिक ] ओ० ३३ √ पत्थ [ प्र + अर्थय् ] – पत्थति. ओ० २० --- पत्थे इ. रा० ७१३ - पत्येति. रा० ७१३ पत्थ [ प्रस्थ ] ओ० १११ पत्य [ पथ्य ] जी० ३८५४, ८७८, ६५७ पत्थड [ प्रस्तट ] स० १३०, १३७. जी० ३।३००, ३०७ पत्थडोदग | प्रस्तटोदक | जी० ३०७८३,७८४ पत्यय पथ्यक] २१० ७७२ पत्थयण [ पथ्यदन ] रा ० ७७४ पत्थर [ प्रस्तर ] ओ० ४६ पत्थिज्जमाण [ प्रार्थ्यमान ] ओ० ६६ पत्थिय [ प्राधित] ओ० ७०. ८० ६,२७५, २७६, ६८८, ७३२,७३७, ७३८, ७४६, ७६८, ७७७, ७६१,७९३,८०४. जी० ३।४४१, ४४२ पद [ पद ] रा० ७६,२९२. जी० ३।१८४, ४५७ ६३७ पदाहिण [ प्रदक्षिण ] जी० ३१४४३ पदाहिणावत्तमंडल [ प्रदक्षिणावर्त मण्डल ] जी० ३१८४२ ६७५ पदीव [ प्रदीप ] रा० ७७२ पदेस [ प्रदेश ] रा० १३५, २३६,७७२. जी० १३४; ३१३०५, ३२७,५७३,५६७,६६८,७१७, ७८८, ७८६८०३,८२८, ८२६, ८४५, ८५३, ६४६ ; ५१५१ पदेसता | प्रदेशा i ] जी० ५३५१,५२ पदेसया [ प्रदेशार्थ ] जी० ५५० से ५२,५८ से ६० पन्नगद्ध [ पन्नगाधं ] रा० १३२ पन्नरस [ पञ्चदशन् ] रा० २०८. जी० ३।३८३| १६ पम्नरसइ [ पञ्चदश ] जी० ३१८३८११६ पन्नरसहि [ पञ्चदशविध ] जी० २।१४ पन्नास [ पञ्चाशत् ] रा० १२७. जी० २।२० पपडमोय [ पर्पटमोदक ] जी० ३१६०१ पप्फुल्ल [ प्रफुल्ल ] जी० ३।२५६ भट्ट [ प्रभ्रष्ट ] रा० १२,२६१, २६३ से २६६, ३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३।४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, ५१६, ५२०,५५४ पन्भार [ प्राग्भार] ओ० ४६ भंकरा [ प्रभङ्करा ] जी० ३११०२३,१०२६ पभंजण | प्रभञ्जन ] जी० ३१७२४ पभा / प्रभा ] ओ० ४७,७२. रा० २१,२३,२४, ३२,३४,३६,१२४, १४५, १५४, १५७,२२८,२७३ ७७७७७८,७८८. जी० ३/२६१, २६६, २६६. ३२७, ३८७,६३७, ६५६, ६७२, ७२८, ७८३, ७५०,७६३,७६५, १०७७ पाय | प्रभात ] ओ० २२ २०७२३,७७७,७७८, ७८८ भास [ प्रभास ] रा० २७६ जी० ३।४४५ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७६ / प्रभास [ प्र - - - भास् ] - पभासिसु जी० ३१७०३ - पभासिस्संति जी० ३।७०३ - पभासेइ. रा० ७७२. जी० ३।३२७ - पभासेति. रा० १५४. जी० ३।३२७ - पभासेति. रा० १५४. जी० ३२७४१ पभासेमाण | प्रभासमान । ओ० ४७,७२. जी० ३.११२१ पभिइ | प्रभृति ] रा० ७६०, ७६१ पभिति [ प्रभृति | ओ० ५२,६३. रा० ६८७,६८८, ७०४. जी० ३८३८२५ भु [ प्रभु ] रा० ७५८ से ७६१. जी० ३।११०, ६८८ से ६६७, १०२३ से १०२५, १११५, १११६ भू [ प्रभूत] ओ० १,१४,४६,१४१. ० ६, १२,६७१,७६६. जी० ५८६ / पमज्ज | प्र - + मृज् ] --- पमज्जइ. रा० २६१ - पमज्जति जी० ३।४५७ पमज्जिता [ प्रमृज्य ] रा० २६१. जी० ३१४५७ पमत्त [ प्रगत | रा० १५ मद्दण [ प्रमर्दन] ओ० २६. रा० १२,०५८.७५६. जी० ३ ११० पमाण | प्रमाण ] ओ० १५,१६,३३,१२२,१४३. रा० ६.१२,४०,२०५ से २०८, २२५, २५४, २७६,६७२,६७३,६७५,७४५ से ७५७,७७३, ८०१. जी० ३।३१३,३६८ से ३७१,३८४, ४०६,४१२,४१५,४४२, ५६८, ५६६, ५९६,५६७, ६५२,६६६,६७३,६७६, ६७९, ६८५, ६८६, ६८८, ६६१ से ६६८.७३७,७५०,७५३, ७६४, ७६५,८००,८८,८६६,८६८,६१६ से ६२१, ६४१, १०७४ धमाणपत्त [ प्रमाणप्राप्त ] ओ० ३३ पाणभूय ] प्रमाणभूत | रा० ६७५ माय | प्रमाद ] ओ० ४६ पमादायरिय [ प्रमादात्ररित ] ओ. पमुइय | प्रमुदित ] ओ० १,१६,४६. १० १७३. १३६ प्रभास -पथावण जी० ३१५६६ पमुच्चमाण [ प्रमुञ्चत् ] जी० ३१११पमुदित [ प्रमुदित ] जी० ३१२८५ पमुह | प्रमुख | ओ० ५५,५८,६२,७०,७१,८१. रा० २४६,७७६ पमोकक्ख [ प्रमं क्ष] रा० ६१८,७५२,७८६ पन्ह [ पक्ष्मन् | ओ० ८२ पह | पद्म | ० ९1१४ पहल | पक्ष्मल | ओ० ६३. रा० २८५. जी० ३।८५१ पम्हलेस | पश्य | जी० ६ १६० पहलेस्स [ पद्मलेश्य ] जी० ६।१८५, १९६ पहलेस्सा | पद्मलेश्या j जी० ३१११०२ पय | पद | ओ० २१, ५४. रा०८,७१४. जी० ३।२३६,२८५ पर्यटन | कण्टक | जी० ३।३२२ √ पयच्छ [ प्र - यम् ] - पयच्छइ. रा० ७३२ पण | पचन ] ओ० १६१,१६३ पण [ प्रतनु ] जी० ३३५६८,६११,७६५,८४१ पयत [ प्रयत| जी० ३४५७ पयत्त [ प्रयत्न | रा० २६२. जी० ३.६०१,८६६ पबद्ध | पदबद्ध | रा० १७३. जी० ३।२८५ पययदेव [पतगदेव, पलकदेव ] ओ० ४६ पयर [ प्रतर | रा० ४०, १३२ परम [ प्रतरक | जी. ३।२६५, ३१३,५६३ पयला ( प्र -- क्लाय् ] – पयलाएज्ज. जी० ३।११८ पर्यालय | प्रचलित | ओ० २१, ५४. रा०८, ७१४ पयसंचार | पदञ्चार] रा० ७६,१७३. जी० ३२२८५ √ पया | प्र | - जनय् ] वा रा० ८०१ -पर्यात ओ० १८३ पाणुसारि | पदः रिन् । ओ० २४ पयार | प्रचार] ओ० ३७ पयावण [ पाचन ] ओ० १६१,१६३ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पयाहिण-परिक्खित्त ६७७ पयाहिण प्रिदक्षिण] ओ० ४७,५२,६६,७०,७८, परमण्ण [परमान] जी० ३५६२ ८०,८१,८३. रा० ६,१०,१२,५६,५८,६५. परमसीय [परमशीत] जी० ३१११५ ७३,७४,११८,१२०,८७,६६२,६६५.७००, परमसुक्कलेस्सा [परमशुक्ललेश्या] जी० ११०४ ७१६,७१८,७७८ परमसुक्किल [परमशुक्ल जी० ३११०७६, १०६६ पयाहिणावत्त |प्रदक्षिणावर्त ) ओ० १६. परमहंस [ परमहंस] ओ०६६ जी० ३।५६६,५९७,८३८।१०.११ परमाउ [परमायुष ] ओ०६८ पयोधर [पयोधर ] जी० ३१५६७ परमाणु परमाणु] जी० ७७१. जी० ११५ पर पिर] ओ० १५४,१५५,१६० से १६३,१६५, परलोग [परलोक] ओ० २६, ८६ से १५, ११४, १६६. रा० ८१६ ११७, १५५, १५७ से १६०, १६२, १६७ परं परम् | जी० ३१८३८१२३ परवाइ | परवादिन् | ओ० २६ परंगमाण | पर्यङ्गन] रा० ८०४ परवाय [परवाद | ओ० २६ परंपर | परम्पर] जो० ११४३ परसु [परशु] रा० ७६५ परंपरगय परम्परगत | ओ० १६५२० परस्सर [पराशर] जी० ३।६२० परंपरसिद्ध [परम्प सिद्ध] जी० १७,६ पराइय [पराजित ] ओ० १४. जी० ६७१ परामुस [परा । मृश्] --परामुसइ. रा० २६४. परक्कम पराक्रमजो० ८६ से ६५,११४,११७, जी० ३१४६० ----परामुसति. रा० २६८. १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७ जी० ३.४५७ परग [परक जी० ३१५८७ परामुसिता [परामृश्य] रा० २६४. जी० ३।४५७ परधर [ परगृह ] रा० ८१६ पिरावर्त [परा-1-वृत्]-परावत्तेइ. रा० ७२६ परच्छंवाणुवत्तिय [परच्छन्दानुवर्तित | ओ० ४० परपरिवाइय [परपरिवादिक] ओ० १५६ -परावत्तेहि. रा० ७२८ परपरिवाय परपरिवाद] ओ० ७१,११७,१६१. परासर पराशर] ओ० ६६ । परिकच्छिय | परिकक्षित रा० ५२ परिकम्म [परिकर्मन् ] ओ० ३६ परपरिवायविवेग पर परिव दविवेक ओ० ७१ “परिकह परि-कथय ।----परिकहे ओ०७१. परपुट्ट | परपुष्ट] रा० २५. जी० ३ २७८ रा०६१ परम परम ओ०२०, २१, ५३, ५४, ५६, ६२, परिकले ५६, १२ परिकहे परिकथयितुम् ओ० १६५।१६ ६३,७८,८०,८१. स० ८,१०,१२ से १४,१६ परिकिलंत परिक्लान्त ] रा० ७२८, ७६०,७६१ से १८, ४७, ६०, ६२, ६३, ७२, ७४, २७७, परिकिलेस परि + क्लिश् । —परिकिलेसंति २७६, २८१,२८८, २६०, ६५५, ६८१,६८३, ओ० पर ६६०, ६६५, ७००, ७०७, ७१०, ७१३,७१४, परिकिलेस [परिक्लेश] ओ० १६१,१६३ , ७१६, ७१८, ७२५, ७२६, ७६५, ७७४,७७८, परिकिलेसित्ता परिक्लिश्य ] ओ० ८६ ८०२. जी० ३११६, ४४३, ४४५,४४७,४५५ परिक्खित्त [परिक्षिप्त ] ओ० १, ५२, ६४, ७०. परमकिण्ह । परम कृष्ण ] जी० ३१८३, ६४ रा० १७,१८,१३२,१७०,१७४,२३३,६८१, परमकिण्हलेस्सा । परमकृष्ण श्या । जी० ३.१०२ ६८३, ६८७,६८८, ६६२, ७००, ७१६,८०४. परमट्ट [परमार्थ ] ओ० १२०, १६२. रा० ६६८, जी० ३.२५६,२८६,३०२,३५८,३६५,६३२, ७५२, ७८६ ६६१, ६८३, ७६२, ८५७,८८२,६१०,६११ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिक्खेव-परिभव परिक्खेव [परिक्षेप] ओ० १७०. रा० १२४,१२६, ५१८ १८८,१८६,२०१. जी० ३।५१,८१,८२,८६, परिणम | परिणम् - परिणमइ, ओ० ७१. १२७, २१७, २२२, २२६१३ से ६, २६०, रा० ७७१ -परिणमंति, जी० १६५ २६३, २७३, २६८,३५१, ३६१, ३६२,५७७, परिणमंत | परिणमत् ] रा०७७१ ६३२, ६५८, ६६१, ६६८,६८६, ७०६,७३६, परिणममाण [परिणमत्] जी० ३१९८२ ७५४, ७६२, ७६५, ७७०,५६४, ७६५,७६८, परिणय [परिणत] ओ० ५,८. रा० १२,७५८,७५६ ८१२, ८२३, ८३२, ८३५, ८५०,८८२,६११, ८०६,८१०. जी० ११५; ३,२२,११८,२७४,५८६ ६१८, ६५२,१०१० से १०१४,१०७३,१०७४ ५८८ से ५६२,५६४ । परिखित्त | परिक्षिप्त ] ग० ५६, १७३, ६८१. परिणाम [परिणाम | ओ०७१,१०,११६,१५६. रा० जी० ३२२८५ १३३. जी. ३।१२८,३०३,५८६,५८८,५६२, परिगत [परिगत] जी० ३।२८८, ३००, ३३२ ६७४,६७६ से १८२ परिगय [परिगत ] ओ० २ रा० १७, १८, २०, परिणाम [परि। णामय ] ...परिणामेइ. रा०७३२ ३२, १२६, १५६, ७६५. जी० ३।३७२ अपरिणिवा | परि-- निर+बा]-परिणिबाइ.ओ. परिग्गह [परिग्रह ] ओ०७१, ७६, ७७, ११७, १७७-परिणि व्वायंति. ओ०७२. जी० १११३३ १२१, १६१, १६३. रा० ६६, ७१७, ७६६ ...-परिनिवाहिति. ओ० १६६ --परिणिबा. परिग्गहवेरमण [परिग्रहविरमण | ओ० ७१ हिति. ओ० १५४ परिग्गहसण्णा [परिग्रहसंज्ञा] जी० ११२०; ३।१२८ परिणिन्वाण [ परिनिर्वाणj ओ० ७१ जी० ३।६१५ परिगहिय [परिगृहीत] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, परिणिन्य परिनिर्वत ओ०७१ ६२,६४,११७,१३६. रा० ८,१०,१२,१४,१८, परिताव [परिताप ] ओ० ८६ ४६,५१,७२,७४,११८,२७६,२७६ से २८२,२६२' परितावणकर [परितापनकर | ओ० ४० ६५५,६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, परिताविय परितापित | ओ० ६२ ७२३,७६०,७६१,७६६. जी० ३१४४२,४४५, परित परीत] जी० १.२६,६२,६४,६५,७७,७६, ४४६,४४८,४५७,५५५,६३०,७२७ ८०,८२,८७,८८,६६,१०१,१०३,११२,११६, परिघट्टिय [परिघट्टित रा० १७३. जी. ३।२८५ ११६,१२१,१२३,१२८,१३४,१३६, ६७५, परिषट्ठ परिघृष्ट ] रा० ५२,५६,२३१,२४७. जी. ३१३६३,४०१ परित्तसंसारिय [परीतसंसारिक] रा०६४ परिचत्त परित्यक्त] ओ०६२ परिघाव [परि+धाव -परिधावंति. रा० २८१. परिचंबिज्जमाण |परिचम्व्यमान | रा०८०४ जी० २१४८७ परिच्छेय परिच्छेद । ओ० ५७ परिनिव्वा परि + निर ।-वा ] .....परिनिव्वापरिजण [परिजन । ओ० १५०. रा० ७५१,८०२ हिति. रा०८१६ परिपोलता [परिपीड़य] जी० १५० पिरिजाण {परि ज्ञा}--परिजाणाइ. रा० ७०१ परिपुण्ण [परिपूर्ण] रा० २४ —परिजाणाति. रा० ७५३ परिपूत [परिप्त | जी० ३।८७८ परिजूसिय [परिजुष्ट ] ओ० ४३ परिपूय परिपूत ] ओ० १११ से ११३,१३७,१३८ परिणत [परिणत] जी० ११५, ३१५८७,५६३,५६५, परिभव (परिभव] ओ० ४६ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिभवणा-परिवढि ६७६ ८०२ परिभवणा [परिभवना | ओ० १५४,१६५,१६६ ७७८,८०४ परिभाइत्ता[ परिभाज्य रा० ६६५ परियावणकर [परितापनकर] ओ० १६१,१६३ परिभाएमाण [परि भाजयत् ] रा०७६५,७८७,७८८, । परिरय [परिरय] ओ० १६२. जी० ३१२१६११, २,४,५,८३६,६१० परिभायइत्ता | परिवाज्य] ओ० २३ परिलित [परिलीयमान] ओ० ६२. जी० ३।२७५ परि जमाण परि जान | ओ० ११६,११७ परिलो [दे०] रा० ७७ परिभुजेमाण [परिभुञान ० ७६५,८०२ परिवंदिज्जमाण [परिवन्धमान ] ० ८०४ परिभुज्जमाण | परिभुज्यमान] ० ३०,१३६.१७४, परिवच्छिय [परिवनित'] ओ० ५७ ___ ८०४. जी० ३! ११८,११६,२८३,२८६,३०६ ।। परिवज्जिय [परिवजित ] जी० ३।६२२ परिभोगत्त [परिभोगत्व | जी० ३।६१८ परिवड्ड [परि--- वृध्] ----परिवड्ढइ. जी. ६१६,६२१ ___ ३१८३८।१८.---परिवढिस्स इ. रा० ८०४ परिमंडल परिमण्डल| रा०६,१२,१४. जी. परिक्य [परि : वृत् ] -परिवयंति. रा० २८१. ११५; ३ २२ जी० ३२४४७ परिमंडित [परिमण्डित ] जी० ३।३७२ परिवस [परि-1-वस] परिवस इ. ओ०१४ परिमंडिय परिमण्डिन । ओं० १,५७,६४,७०. रा० २०७०३.-.-परिवसंति औ०१८४. ३२,५२,५६,१७३,२३१.२४७,६८१,८०४. रा० १८६. जी० ३१२३२.-परिवसति. जी० ३:३६३ जी० ३१२३४ परिमद्दण [परिमर्दन] ओ० ६३ परिवसण [परिवसन] जी० ३१५६८ परिमाण |परिमाण ] जी० ३।१२७४३,२५०,२५८ परिवह [परिवह]-परिवहति परिमिय परिमित | जो० १५. रा० ६७२ जी० ३११०१५ परिमिपिंडवाइय [परिमितपिण्डपातिक ] ओ० ३४ परिवहितए [परिवोढुम्] रा० ७६० परियट [परिवत] - परिययंति ओ० ४५ परिवाइणी [परिवादिनी | जी० ३१५८८ परिवाहिती परियट्टणा परिवर्तना] ओ० ४२,४३ परिवाडी [परिपाटी] रा० १३१ से १३३,१३५, परियत परिवर्त जो० ४६ १३६. जी० ३१३०१ से ३०३ परियर [परिकर रा० ६६,७६५ परिवायणी पिरिवादिनी] रा०७७ परियाई परि + आ---दा--परियाएइ रा० । परिवार [परिवार ओ० ७०. रा० ७,४२,४७, १८-परियायनि रा० १०.जी. ३१४४५ ५६,५८,६१,६७,१६४,१८६,२०४ से २०६, परियाइत्ता मर्यादा रा० १०. मी० ३।४४५ २१६,२४३,२८०. जी० ३।३४०,३५०,३५६, परियाइय | पर्यात १०६६४. जो० ३.५६२ ३६६,३६८,३७८,४०५,४४६.४४८,५५७, परियाग [पर्याय | ओ० ६४,१५५,१५८ से १६०, ५६३,६३५,६५७,६६३६७३,६८०,६८५, ७३.७,७४०,७४२,७४५,७५०,७६२,७६५, परियाण परि-ज्ञा - परियाणइ रा० ६४ ७६८,७७०,१०००,१०२३,१०५४ परियाय पर्याय ! ओ० २३,११४,१४०. परिवाल [परिवार रा० १३,१२० रा० ८१५ परिविद्धंसइत्ता [परिविद्धवस्य ! जी० ११५० परियारणिति [परिचारद्धि] जी. ३३१०२५ परिवुष्टि [परिवृद्धि] जी० ३।७८८,७८६ परियाल [परिवार] ओ० २३,७०,७१. रा० ७७७, १. परिपक्षितं -परिगृहोतं परिवृत्तम् (व)। Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८० परिव्वय [ परिव्यय ] रा० ७७४ परिवायr | परिव्राजक ] ओ० १०१९ से १३३ परिव्वाया [परिव्राजक ] ओ० ६६ से ९६,११७ परिसडिय [ परिशटित ] ओ० १४. रा० ७६०, ७६१,७८२ परिसप्प [ परिसर्प ] जी० १ १०२,१०४,१२०, १२२, ३११४१, १४३ परिसप्पी [परिस ] जी० २१५,७ परिसा | परिषद् ] श्र० ४३, ७६. रा० ६,७,४३, ५६,५८,६१.२७६ से २८०,२८४,२८७,६६० से ६६२,६६६,६६३, ६६४, ७१२,७१७, ७३२, ७३७,७६ ६,७६७,७७६. जी० ३।२३५ से २३६, २४१ से २४३,२४५ से २४७, २४६, २५०, २५४ से २५६,२५८, ३४१ से ३४३, ३५०, ३५६, ४४२ से ४४६,५५७,५६०,५६३, ८४२,८४५, १०४० से १०४२,१०४४,१०४६ से १०५३,१०५५ / परिसा परि + शाटय् ] -- परिसाति जी० ३।४४५ – पडिसाडेइ रा० १८. - परिसाति रा० १० परिसात्ता [ परिशाय ] जी० ११५० परिसाडिता [ परिणाट्य ] रा० १८. जी० ३।४४५ परिसाडेत्ता [ परिशाय ] रा० १० परिसामंत [ परिणामन्त ] जी० ३११२६ परिसेय [ परिषेक | जी० ३।४१५ परिशोधित [ परिशोधित | जी०८७८ परिस्त [परिश्रान्त ] ओ० ६३. रा० ७६५ परिस्सम [ परिश्रम ] ओ० ६३ / परिहा [ परि + धा] -- परिइ जी० ३।४४३ परिहत्थ [ दे० ] ओ० ४६. रा० ६६,१५१. जी० ३।११८, ११६,२८६ परिहा [ परि + हा ] परिहायइ. जी० ३८३८११६. - परिहायति जी० ३.१०७ परिहाणि | परिहाणि | जी० ३१६६०,८३८ । १६,२० परिहायमाण [ परिहीयमाण ] ओ० १६२. जी० ३।६६८,८८२ परिव्वय पलिओम परिहारविसुद्धिचरितविणय [ परिहारविशुद्धिचरित्रविनय ] ओ० ४० परिहित [ परिहित] रा० ६८५,६६२,७००,७१६, ७२६,८०२. जी० ३।११२२ परिहिय | परिहित ] ओ० २०,४७,५२, ५३, ७२. रा० ६८७,६८६ परिहीण [ परिहीण | ओ० ७४ ६,१८२, १६५३८. रा० १३,१५,१७ परित्ता ( परिधाय | जी० ३-४४३ परीसह [ परीपह] ओ० ११७,१५४,१६५,१६६ परूढ [प्ररूढ] अं० ε२ / परुव [ प्र + रूपय् ] – परुवेइ. ओ० ५२. रा० ६८७ - परूवेंति. जी० ३।२१०. —पत्रेमि. जी० ३।२११ रूवि [ प्ररूपित ] जी० १।१ परूबेमाण [ प्ररूपपत्] ओ०६८ पलंब [प्रलम्ब ] ओ० ४७,४६,५७,६४,७२. ० ५१,६६,७० लंबमाण [ प्रलम्बमान ] ओ० २१,५२,५४,६३. रा०८,४०, १३२,६८७ से ६८६,७१४. जी० ३१२६५ पलाल [पलाल ] रा० ७६७ पलिओम [ पत्योपम | ओ० ६४,६५. रा० १८६, २८२,६६५,६६६,७१८. जी० ११२१,१२५, १३३; २१२०.२१,२५ से २८, ३० से ४६, ५.३ से ५५, ५७ से ६१,७३, ८३, ८४, १३६; ३१५६, १६५,२१८,२३८,२४३,२४७, २५०, २५६, ३५०, ३५६, ४४५, ५६४, ५६५,६२९,६३७, ६५६,७००, ७२१,७२४, ७२७,७३८, ७६१, ७६३,७६५, ८०८,८१६,८२६,८४१,८५४, ८५७,८६०,८६३,८६६,८६६,८७२, ६७५, ८७८८५६२३,६२५,१०२७ से १०३६, १०४२,१०४४,१०४६, १०४३, १०४६ से १०५३, १०५५,१०८६, ११३२, ११३५ ६३, ६, ६, ७ ५, ६, १२, ६३१८७ से १८६,२१२, २१४,२२५,२३८,२७३ Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पलिच्छन्न-पबीइय पलिच्छन्न [परिच्छन्न ] ओ० ६. जी० ३।२७५ ।। पवला इया [दे०] जी० २६ पलित्त प्रदीप्त] जी० ३.५८९ पवहण [प्रवहण ] ओ० १००,१२३ पलिय [पलित] जी० ३१५६७ पवा [प्रपा] ओ० ३७ रा० १२ पलियंक [पर्य] रा० २२५. जी० ३।३८४ पवाइय प्रवादित] ओ०६७,६८, रा० १३,६५७. पलिह [परिघ ] ओ० १६ जी० ३।३५०,५६३,१०२५ पिलीव [प्र-- दीपय ]- - पलीवेज्जा. रा०७७२ पवादित प्रवादित रा०८४२,८४५. जी० ३१४४६ Vपल्लंघ/प्रलंघ | ..-पल्लंबज्ज. ओ० १८० पवादिय [प्रवादित ] स०७ पल्लंघण [प्रलङ्घन ] ओ० ४० V पवाय --वादय् ]-~-पवाएंसु. रा० ७५ पल्लग [पल्यक] जी० ३।६११ पवाल [प्रदाल ओ० ५,८,१६,२३,४७. रा० २७, पल्लत्यमुह [पर्यस्तमुख रा० ७६५ २२८.६६५. जी० २७१.२७४,२८०,३८७, पल्लव पिल्लव ] अ.० ५,८. र ० १३६,२२८. ५६६,६०८,६७२ जी० ३।२७४,३०६,३८७,६७२ पवालमंत [प्रवल बत् ] ओ० ५,८. जी० ३१२७४ पल्लवपविभत्ति | पल्लवप्रविभक्ति रा० १०० पविइण्ण [प्रविकीर्ण ] ओ०१ पल्हविया [पह्नाविका] ओ० ७०. रा० ८०४ पविक्खरमाण [प्रविकिरन] जी० ३१११८ पल्हायणिज्ज [प्रह्लादनीय ] ओ०६३ पविचरित [प्रविचरित] रा० १७४ पवंच [प्रपञ्च मो० १६५ पविचरिय प्रविचरित] जी० ३।२८६,६३६ पवंचेमाण प्रपञ्चयत् ] जी० ३।२३६ पविट्ठ [प्रविष्ट] ओ० ६४. जी० ३१५५,७८ पवग {प्लवक] ओ० १,२ पिविणी {प्र+वि--नी] -पविणेज्जा. जी० पवगपेच्छा प्लवकप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० ३११८ । ३१६१६ पवित्तय [पवित्रक] ओ० १०८,११७,१३१ पवण [पवन] ओ० ४८,५७ पवित्ति [प्रवृत्ति ] ओ० १६,१७ पवण [प्लवन] रा० १२,७५८,७५६. जी० ३१११८ पवित्तिवाउय [प्रवृत्तिव्यापृत, प्रवृत्तिवादुक] ओ० पवत्त [प्रवृत्त ] रा० १८,७८,८०,८२,११२ जी० १६,१७,२०,२१,५३,५४ ३४४७ पवित्थरमाण [प्रविस्तरत्] जी० ३१२५६ पिवत्त [प्र-वर्तय] -पवत्तेइ. रा० ६७१- पविद्धत्य [प्रविध्वस्त] जी० ३.११८, ११६ पवत्तेति. रा० ७५०-पवत्तेमि. रा० ७५०. पविमोयण [प्रविमोचन] ओ०७,८,१० पवत्तेहि. रा. ७५० पवियरितए [प्रविचरितुम् ] रा० ७३२,७३७ पवत्तय [प्रवर्तक रा० ६७१ पविरल [प्रविरल] रा० ६,१२,२८१,७६०,७६१. पवत्ताय | जी० ३१२८५ ___ जी० ३.४४७,५६१ पवयणणिण्हग [प्रवचननिह्नवक] ओ० १६० पविराय [ दे०प्रस्फुटित ] जी० ३१११८,११६ पवर प्रवर] ओ० २,२०,४७, से ५३,५५ से ५७, पविलीण [प्रविलीन] जी० ३।११८,११६ ६३से६५,७२. रा० ६,१२,३२,५१,१३०,१३२, पविस [प्र+विश्] --पविसइ. रा० ७६६. २३६,२८१,२६२,६८५,६८७६८६.६६२, ___-पविसामो. रा० ७६५ ७००,७१६,७२६,८०२. जी० ३।३००,३०२, पविसंत [प्रविशत् जी० ३।८३८।१४ ३७२,३९८,४४७,४५७,५६७,११२२ पवीइय [प्रवीजित] ओ० ६७ Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ पवीणी-पहरण पिवीणी [प्र. विनी]-पवीणेइ ओ० ५६ पसण्णा [प्रसन्ना] जी० ३।८६० पवीणेत्ता [प्रविणीय ] ओ० ५६ पसत्त [प्रसक्त] रा० १५ पिबुच्च [प्र+वच्] पबुच्चति जी० ३१८४१ पसत्य |प्रशस्त ] ओ० १५.१६,४६,५२,११६,१५६. पवेस [प्रवेश ] ओ० १५४,१६२,१६५,१६६. रा० रा० ३३,१३३ ६७२. जी० १११, ३।३०३, १२६,२१०,२१२,६६८,७५२,७८६,८१६. जी. ३७२,५९६ से ५६८ ३।३००,३५४,३७७.५६४,६४३,८८५ पसत्यकायविणय [प्रशस्तकायविनय आ० ४० पव्वइत्तए [प्रवजितुम् ] ओ० १२०. रा. ६९५ पसस्थमणविणय प्रशस्तमनोविनय ] ओ० ४० पवइय [प्रवजित ] ओं० २३,७६,७८,६५,१५५, पसस्थवइविणय [प्रशस्तवाग्विनय ] ओ० ४० १५६ पसत्थु [प्रशास्तु] ओ० २३. रा०६८७,६८८ पम्वग [पर्व ग] जी० ११६६ पसम्ना प्रसन्ना] जी० ३१५८६ पम्वत | पर्वत | रा०२७६. जी० ३१४४५,६३२, V पसर [ प्रस]-पस रंति. रा०७५ ६३७,६६१,६६२,६६४,६६६,६६८,७३५,से पसरिय [प्रसृत ओ० ४६. जी० ३१५८६ ७४३,७४५,७४६,७५०,७९५,८३१,८३३,५३६ पसव [प्र+] —पसवति. जी. ३१६३० से ६४२,८४५,८६६,८८२,६१० से ११२,६१४ पसवित्ता { प्रसूय ] जी० ३।६३० से ११६,६१८से९२३ पसाधण [प्रसाधन] रा० १५२. जी० ३१३२५ पव्वतग (पर्वतक] जी० ३८६३,८७५,८८१,९२७ पसाधणघरग [प्रसाधनगृहक ] रा० १५२,१८३ पव्वतय [पर्वतक] जी० ३१८६३ पिसार [प्र--सारय-पसारेति. रा०६६ पिन्वय [प्र-व्रज् |--पब्वइस्सति. रा० ८१२. पसासेमाण [प्रशासयत् ] ओ० १४. रा० ६७१,६७६ -पन्वइस्सामो, ओ० ५२. रा०६८७. पसाहणघरग [प्रसाधनगृहक ] जी० ३१२६४ -~-पवइहिति. ओ०१५१. -पव्वयंति पसाहा [प्रशाखा] ओ० ५,८. रा० २२८. रा० ६६५. जी० ३१२७४,३८७,६७२ पव्वय | पर्वत] रा०५६,१२४,२७६,७५५,७५७. पसिढिल [प्रशिथिल ] ओ० ५१ जी० ३१२१७,२१६ से २२१,२२७,३००,५६८, पासण [प्रश्न] मा पसिण [प्रश्न ] ओ० २६. रा० १६,७१६ ५७७,६३२,६३३,६३८,६३६,६६८,७०१, पसु [पशु आ० ३७. रा०६७१,७०३,७१८. ७३६,७३८,७४०,७४२,७४४,७४५,७४७,७४६ जी० ३७२१ ७५०,७५४,७६२,७६५,७६६,८७५,८८३,६३७पसेढि [प्रश्रेणि] रा०२४. जी० ३१२७७ १००१,१०३६ पस्सा [पश्या] रा० ८१७ पवयग पर्वतक] जी० ३१५७६ पस्सवणी [प्रस्रवणी] रा० ८१७ पन्चयमह [पर्वतमह] जी० ३।६१५ पह [गथ ] ओ० ५२,५५. रा० ६५४,६५५,६८७, पवयराय | पर्वतराज] जी० ३१८४२ ७१२. जी० ३१५५४,८३८।१५ पम्वहणा [प्रव्यथना] ओ० १५४,१६५,१६६ पहकर दे० ओ० १,६. रा०६८३. जी. ३।२७५ पव्वा [पर्वा ] जी० ३३२५८ पहार दे० स०५३ पसंग [प्रसङ्ग] धो० ४६ । पहट्ट [प्रहृष्ट] ओ० १६. जी० ३१५६६ पसंत [प्रशान्त ] ओ० १४. रा० ६,१२,१५,२८१, पहरण [प्रहरण ] ओ० ५७,६४. रा० १७३,६६४, ६७१. जी० ३।४४७ ६८१,६८३. जी० ३१२८५,५६२ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहरणकोस-पाणाइवाय पहरणकोस [ प्रहरण होश ] रा० २४९, ३५५. जी० ३.४१०,५२० पहरणरयण [ प्रहरणरत्न रा० २४६, ३५५. जी० ३।४१०, ५२० पहसित | प्रहसित ] जी० ३।३०७, ३६४,६३४,६३६, १००८ पाओगमण [ प्रायोपगमन ] ओ० ३२ पहसिय [ प्रहसित ] रा० १३७,१८६. जी० ३३३५५, पाओवगय [ प्रायोपगत | ओ० ११७ ३५६,३६० से ३७१,५८६,६७३ पहा प्रभा] ओ० १२,२२. २०१५४. जी० ३५८६ पहाण [ प्रधान ] ओ० २३,२५,१४६. ० ६८६, ८०६,८०० जी० ३५६२, ५६७ पहार 1 + धारय् ] - पहारेज्जा. ओ० ४०. --हारेत्य ६५,२८८.० ३।४५४ पहाविय ! प्रधावित ] ओ० ४६ पहिg [ प्रहृष्ट | ओ० ५१ पहिय [पथिक ] रा० ७८७,७८८ forefa [ प्रथितकीर्ति ] ओ० ६५ पहोण [ प्रहीण ] ओ० ७२ पहु [ प्रभु ] ओ० ११९. रा० ७६१ पहेलिया [ प्रहेलिका ] ओ० १४६. ० ८०६ पाई | पात्री | रा० २५८, २७६ पाईण [ प्राचीन ] रा० १२४. जी० ३३५७७, ६३६, १०३६ पाईणवात [ प्राचीनवात ] जी० ११८१ पाणवाय [प्राचीनवात | जी० ३१६२६ पाउ [प्रादुस्] ओ० २२. रा० ७२३,७७७,७७८, ७८८ पाउ [ प्रायोग्य ] रा० ६६६ / पाउण [त्र + आप् ] -- पाउणइ ओ० १५२. पाउणति ओ० ९४ - पाउगिहिति. ओ० १४० रा० ८१६ पाणिता [प्राप्य | ओ० ६४. रा० ८१६ पाउन्भव [ श्रादुस् | भू] - पाउ भवति. रा० १६-- पाउह. रा० १३ -पाउन्भवित्था. बो० ४७ 1 पाउन्भवमाण [ प्रादुर्भवत् ] रा० १७ पाउन्भूय [प्रादुर्भूत] ओ० ७६ से० १. रा० ६१, १२०,६९४,६६७,७१७,७२२, ७७७, ७८७,७६५ पाउया [ पादुका ] ओ० २१,५४,६४ ० ५१, ३१४ ६८३ पागडभाव [ प्रकटभाव ] ओ० २७. रा० = १३ पागडिय [ प्रकटित ] ओ० ५०, ५१ पाय [प्राकृत ] जी० ३१८३८१३ पागलासण [पाकशासन ] जी० ३।१०३६ पागार [ प्राकार ] ओ० १. रा० १२७, १२८,१७०, ६५४,६५५. जी० ३।३५२, ३५३,३५८, ५५४,५६४ √ पाड [ पातय् ] -- पाडेइ. रा० ७६५ पाडंतिय [ प्रात्यन्तिक ] रा० ११७,२८१ पाउलि [ पाटलि ] ओ० ३० जी० ३१२८३ पाडिय [ प्रतिश्रुत ] जी० ३१४४७ पाडियक्क [ प्रत्येक] ओ० ५५,५८,६२,७० पारिहारिय [ प्रातिहारिक ] ओ० १२०,१६२. रा० ७०४,७०६,७११,७१३, ७७६ पाडिहेर [प्रातिहार्य ] ओ० २ पाण [पान ] ओ० १४, ११७, १२०, १४१, १४७, १४६, १५०, १६२. रा० ६७१,६८६,७०४, ७१६,७५२,७६५,७७४,७७६,७९७,७८६, ७६४,७६७,७६६,८०२,८०८,८१०,८११ पाण [प्राण ] ओ० ८७,१६१, १६३. जी० ३।१२७, ६७५,१०२८, ११३० पाणक्य [ प्राणक्षय ] जी० ३।६२६,६२८ पाणत [ प्राणत ] जी० ३।१०७६,१०८८ पाणय ( प्राणत | ओ० ५१,१६२. जी० ३११०३८, १०५३,१०६६,१०६८ पाणविहि [पानविधि ] ओ० १४६. रा० ८०६ पाणाइवाय | प्राणातिपात] ओ० ७१,७६,७७, ११७, १२१, १६१,१६३. रा० ६६३,७१७, ७६६ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८४ पाणाइवायवेरमण-पारिणामिया पाणाइवायवेरमण [प्राणातिपात विरमण] ओ०७१ पायतल [पादतल] रा० २५४. जी० ३३४१५ पाणि [पाणि] ओ० १५,१६,३७,६३,६४,१४३. पायत्त [पादात] ओ० ६४ रा० १२,६६४,६७२,६७३,७५८,७५६,८०१, पायवाणियाहिबइ पादातानीकाधिपति, पादात्यनीजी० ३३११८,५६२,५६६ काधिपति ] २० १३,१६ पाणिलेहा {पाणिरेखा] ओ० १६. जी० ३१५९६, पायत्ताणियाविति पादातानीकाधिपति, ५६७ पादात्यनीकाधिपति | रा० १४ पाणिय [पानीय] ओ० ४६ पायत्ताणीय [पादातानीक, पादात्यतीक। पाताल [पाताल जी० ३१७२६,७२८ ओ० ६४ पाती पात्री] रा० १५१. जी० ३।३२४,३५५, पायत्ताणीयाहिवइ पादातानीकाधिपति, पादात्यनी काधिपति | रा० १५ पाद [पाद] रा० २८१,२८८. जी० ३१३११, पायत्ताय [प्रवृत्तक, पादारतक] रा० १७३ ४०७,४१५,४४७,४५४ पायपीढपादपीठ ओ० २१,५४. रा० ८,३७, पादचारविहारि | पादचारविहारिन् ] जी० ३.६१७ ५१,७१४. जी. ३:३११ पादपीढ [पादपीठ ] ओ० ६४ पायपंछण पादो छा] ओ० १२०,१६२. पादव [पादप] जी० ३३०३ रा० ६६८,७५२,७८६ पामिच्च {पामृत्य] ओ० १३४ पायबद्ध पिादबद्ध] रा० १७३. जी० ३२८५ पामोक्ख [प्रमुख, प्रमुख्य] रा० ३५५,७८७,७८८. पायरास [प्रातराश] रा०६८३ जी० ३१४१०,५२० पायव [पादप] ओ०५,८,९,१२,१३. रा० ३,४, पाय [पात्र] ओ० ३३ १३३,८०४. जी० ३१२७४ पाय [पाद] ओ० १५,३७,५२,६३,६६,६०,१११ पावविहारचार [पादाविहारचार] ओ० ५२. से ११३,१३७,१३८,१४३. रा० १२,३७, रा०६८७ से ६८९,७०० २४५,६५६,६७२,६७३,७५८,७५६,८०१. पायचीट [पादपीठ] ओ०१६ जी. ३१११८,५५६ पायसीस [पादशीष ] जी० ३।४०७ पायए [पातुम् ] ओ० १३४,१३५ पायसीसग [पादशीर्षक] रा०३७,२४५. जी० ३।३११ पायंचणी {पादकाञ्चनी] जी० ३१५८७ पायाल [पाताल ] ओ० ४६. जी० ३१७२८, पायंत प्रवृत्त, पादान्त] रा० ११५ पायंताय [प्रवृत्तक, पादान्तक] रा० २८१ पारंचियारिह पारञ्चिताह ] ओ० ३६ पायच्छिण्णग [पादच्छिन्नक] रा० ७५१ पारग [पारग ओ०६७ पायच्छिण्णय [पादच्छिन्नक रा० ७६७ पारगय | पारगत ) ओ० १६५।२० पायच्छित्त [प्रायश्चित्त ] ओ०२०,३८,३६.५२, पारगामि [पारगामिन् । ओ० २६ ५३,७०. रा० ६८३,६८५,६८७ से ६८९, पारब्भमाण [प्रारभमान] ओ० ११७ ६६२,७००,७१६,७२६,७५१,७५३,७६५, पारसी पारती] ओ०७०. रा०८०४ ७६४,८०२,८०५ पारावय [पारापत] जी० ३१३८८ पायछिण्णा [पादछिन्नक] ओ० ६० पारिजातकवण [पारिजातक वन] जी० ३१५८६ पायजाल [पादजाल ] जी० ३६५६३ पारिणामिया पिारिणामिकी] रा०६७५ Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पारियाय-पासायघडेंसक ६८५ पारियाय [पारिजात] रा० ४५ पारिहेरग प्रातिहायक जी० ३१५६३ पारी [दे० पारी] जी० ३१५८७ पारेवय [पारापत] रा० २६. जी० ३१२७६. 4 . पाल [पालय ....पालथाहि. ओ० ६८. जी० ३१४४ : ...-पालेति. श्रो०६१---पालेहि रा० २८२ पालंब [प्रालम्ब] ओ० २१,५२,५४,६३,१०८, १३१. रा०८,२८५,६८७ से ६८६,७१४. जी० ३१५६३ पालग पालक ] ओ० ५१ पालित्ता पालयित्वा] ओ०६१ पालियाय [पारिजात ] १० २७. जी० ३।२८० पालेमाण [पालयत् ] ओ० ६८, रा० २८२,७६१. जी० ३६३५०,४४८,५६३,६३७ पाव पाप] ओ०७१,७६ से ८१,१२०,१६२. रा०६७१,६६८,७५२,७८६ पाव [प्र+आप्]--पावइ, ओ० १६५।१४ -पाविज्जामि. रा० ७५१-पाविज्जिहिह. रा० ७५१ पावकम्म [पापकर्मन् ] ओ० ८४,८५,८७,८८. रा० ७५०,७५१ पावकम्मोवएस [पापकर्मोपदेश] ओ० १३६ पावग [पापक] ओ० ७४१६ पाक्य [पापक ओ० ७१ पावयण [प्रवचन] ओ० २५,७२,७६ से ८१, १२०,१६२,१६४. रा० ६६५.६६८,७५२, ७८६ पावसण [पापशकुन ] रा० ७०३ पास (पार्श्व ओ० १६. रा० १३१ से १३८, २५६,८१७. जी० ३१३५८,४१५,५६६,५६७, ७७५ पास [पाश] रा० ६६४. जी० ३१५६२ पास | दश्]-पास इ. ओ०५४. रा० ७१४. जी० ३१११८-पासंति. ओ०५२. रा० ७६५. जी० ३११०७- पास ति. रा०७. जी० ३१२००-पाससि.० ७७१.. पासह. रा०६३–पासामि. रा० ७६६-पासिज्जा. रा० ७७६. -पासिज्जासि. रा० ७५१. --- पासेज्जा. जी० ३।११५ पासंत [पश्यत् ] रा० ७६४ पासगापाशक ) ओ० १४६. रा०८०६ पासग्गाह पाशग्राह] ओ०६४ पासणया [दर्शन] रा० ७५० से ७५३ पासतो पार्श्वतस् ] ० ५५ पासपाणि [पाशपाणि रा०६६४ पासमाण [पश्यत् ] रा ० ८१५ पासवण |प्रस्त्रवण] रा० ७६६ पाससूल [पावशूल, जी. ३१६२८ पासाइय [प्रामादीय, प्रासादिक] जी० ३।२८६ से २५८,२६० पासाईय [प्रासादीय, प्रासादिक ओ० ७२. रा० २०,३७,१३०,१३३,१३६,२५७. जी० ३।२६६, ३०६,३११,४०७,४१०,५८५,५६६,५६७, ६७२,११२१ पासाण [पाषाण] रा० १७४. जी० ३१२८६ पासाद [प्रासाद] जी० ३७६२ पासादवडेंसग [प्रासादावतंसक ] जी० ३७६२ पासादीय [प्रासादीय, प्रामादिक] ओ० १,७,८, १० से १३,१५,१६४. रा० १,१६,२१ से २३, ३२,३४,३६.३८,१२४,१३७,१४५,१५७, १७४,१७५,२२८,२३१,२३३,२४५,२४७, २४६,६६८,६७०,६७२,६७६,६७८,७००, ७०२. जी० १२३२,२६१,२६६,२७६,३००, ३०३,३०७,३८७,३६३,५८१,५८४,६३६, ८५७,८६३,११२२ पासाय [प्रासाद] रा० १४,७१०,७७४. जी० ३१५६४,६०४ पासायडिसय [प्रासादावतंसक जी० २७७० पासायव.सक प्रासादावतंसक ] जी० ३१३६६, ३७० Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८६ पासायवर्डेसन [ प्रसादावतंसक ] रा० १३७, १८६, २०५,२०७, २०८, ७७८. जी० ३।३०७ से ३०६, ३१४,३५५,३५६,३६४,३६७, ३६९ से ३७३, ६३४,६३६,६८६,६८६,६६२ से ६६८, ७६२ पासावर्डेस [प्रासादावतंसक ] रा० २०४ पासवर्डेस [ प्रासादावतंसक | सं० २०४ से २०६. जी० ३।३५६,३६४,३६८ से ३७१, ६६३,६७३,६८५,६८८,७३७ पासावचिचज्ज [ पाश्र्वापत्य ] रा० ६८६,६८७, ६८९,७०६,७१३, ७३३ पासि [ पार्श्व ] ओ० ६६. जी० ३१३०१ से ३०७, ३१५,३५५,४१७,६३६,७८८ से ७६०, ८३६, ८८६ पासितए [ द्रष्टुम् ] रा० ७६५ पासिता [ दृष्ट्वा ] ओ० ५२. रा० ८. जी० ३. ११८ पासेत्ता [ दृष्ट्वा ] रा० ६८ पाहुड | प्राभूत] रा० ६८०,६८१,६८३,६८४, ६६६,७००,७०२,७०८,७०६ पाहुणगभत्त [ प्राणकभक्त ] ओ० १३४ पाहुजिज्ज [ प्राहवनीय ] ओ० २ पि [ अपि ] ० १० पण [ प्रियदर्शन ] ओ० ६३ पिउ | पितृ] ओ० १४. रा० ६७१,७७३ पिंगल | पिङ्गल ] ओ० ६३ frगलक्ख [ पिङ्गलाक्ष ] जी० ३१२७५ पिंगलक [ पिङ्गलाक्षक ] ओ० ६ पिछि | निच्छिन् | ओ० ६४ पिंजर [ पिञ्जर] जी० ३१८७८ fiscal [पिण्डहरिद्रा ] जो० ११७३ पंडि [ पिण्डि ] ओ० ५,८,१०. १० १४५. जी० ३।२६८,२७४ पिडिम [ पिण्डिम ] ओ० ७,८,१० जी० ३१२७६ पिडियग्गसिरय [पिण्डिताशिरस्क] ओ० १६ पिंडियसिर पिडितशिरस् ] जी० ३१५९६ पासायवडेंसग-पियंगु पिच्छज्य [ पिच्छध्वज | रा० १६२. जी० ३३३३५ पिच्छणधरण [ प्रेक्षणगृहक ] रा० १०२, १८३ पिच्छाघरमंड [ प्रेक्षागृहमण्डप ] रा० ३२, ३३,६६ पिट्टण [ पिट्टन ] ओ० १९१,१६३ पिटुओ [ पृष्ठतस् ] ओ० ६६. जी० ३,४१६ पिट्छंतर [ पृष्ठान्तर ] रा० १२,७५८,७५६ जी० ३१११८,५६८ पिट्ठतो ( पृष्ठतस् ] रा० २५५, २६६, २६० जी० ३।४५५,४५६ fugees [freereas ] जी० ३,७८ पिट्टिकरंड [ पृष्ठिकरण्डक ] जी० ३१२१८,५६८ पिडग [पिटक ] जी० ३१८३८ १४ से ६ पिडय [पिटक ] जी० ३१८३८१३,५,६ पिनद्ध [ पिनद्ध] ओ० १७,६३. रा० ६६,७०, १३३,६६४,६८३. जी० ३।३०३, ५६२ पिणय [पिनक ] रा० ७६१ पिणय [ पीनक ] जी० ३।५८७ / विद्धि [ प + न पि + नि + धा ] --पिणिदेइ. -१० २८५. जी० ३।४५१. -- पिणिद्वेति. रा० २८५. जी० ३१४५१ पिणिद्धre [पिनद्धम् ] ओ० १०८ पिषिद्धेत्ता [पिना ] रा० २८५. जी० ३।४५१ पितिपिंड निवेदन [ पितृपिण्डनिवेदन | जी० ३।६१४ पित्तजर [वित्तम्बर] रा० ७५ वित्तिय | पैत्तिक | ओ० ११७. रा० ७९६ विषाण | विधान | रा० १३१,१४७, १४८. जी० ३।४४६ पिबित्तए [ पातुम् ] ओ० १११ पिय | प्रिय ] ओ० १५,२०,५३,६८,११७,१४३. रा० ७१३,७५० से ७५३,७७४,७६६. जी० १११३५; ३।१०६०, १०६६ पिय | पितृ ] ओ० ७१. / पिय | पा] - पिज्ज ० ६७१. जी० ३।६११ रा० ७८४ - पियइ. रा० ७३२ पियंगु [प्रियङ्गु ] ओ० ६,१०. जी० ३३८८, ५८३ Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पियतराय-पुंज पितराय [प्रियतरक ] रा० २५ से ३१,४५. जी० ३२७८ से २८४,६०१ पियदसण | प्रियदर्शन] रा० ६७२,६७३,८०१. जी० १५०८ पियय [ प्रियक] ओ० ६, १० पियर | पितृ ] रा० ८०२,८०३,५०५,८०८,८१० पियरक्खिया [ पितृरक्षिता ] ओ० ६२ पियाल | प्रियाल | जी० ३३३८८,५८३ पिरली [ पिरलो ] जी० ३।५८८ पिपरिया | पिपरिया | रा० ७१,७७ परिपरियावाय [परिपिरियावादक ] १० ७१ fra [ इव] ओ० २७. ₹१० १७. जी० ३१४५१ पिवासा | पिपासा ] ओ० ४६,११७. रा० ७६६. जी० ३११०६, १२७,१२८,५६२,१११४ पिवासिय [पिपासित ] रा० ७६०,७६१,७७४. जो० ३१११८,११६ पिसाय | पिशाच ] ओ० ४६. जी० ३११७, २५२, २५३ पिसायकुमार | पिशाच कुमार ] जी० ३१२५३ पिसायकुमार राय [पिशाचकुमारराज | जी० ३२५२ से २५६ fuereकुमारिद [ पिशाचकुमारेन्द्र ] जी० ३।२५३ से २५६ पिडग [ पिठरक ] जी० ३७८ / पिहा [पि + धा । - पिहावेमि. रा० ७५४. -- विहेइ. रा० ७५५. -- पिज्जा. रा० ७७२ विहाण | विधान ] रा० २६०. जी० ३।३०१ पिहाणथ | विधानक ] रा० ७५४,७५६ पिर्णामजिया [दे० पिहूणमज्जा | रा० २६ fuge | पृथुल ] ओ० १६. जी० ३।५९६,५६७ पीइगम [ प्रीतिगम] ओ० ५१ पोइदाण [ प्रीतिदान ] ओ० २१,५४,१४७. रा० ७१४,७७६,८०८ पण [ प्रीतिमनस् ] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, ६२,६३,७८,८०,८१. रा० ८,१०,१२ से १४, १६ से १८,४७, ६०, ६२, ६३, ७२, ७४, २७७, ६८७ २७६,२८१, ६०, ६५५, ६८१,६८३, ६६०, ६६५, ७००, ७०७,७१०, ७१३, ७१४,७१६, ७१८,७२५,७२६,७७४, ७७८. जी० ३३४४३, ४४५, ४४७,५५५ पीठ [ पीठ | ओ० २७,१२०, १६२ ० ६६८, ७०४,७०६,७११,७१३, ७५२, ७७६,७८६ पोढम्माह | पीठग्राह ] ओ० ६४ पोढमद्द | पीढमर्द ] ओ० १८. रा० ७५४,७५६, ७६२, ७६४ पोण [ पीन ] ओ० १६. रा० १३३. जी० ३ ३०३, ५६६,५६७ पीण [ पीनय् ] -पी ंति. जी० ३०४४७. - पीर्णेति श० २८१ पीणणिज्ज [ प्रीणणीय] ओ० ६३ पोत [ पीत ] जी० ३।५६५ पीतपाणि [ पीतपाणि] २० ६६४ पीय [ पीत ] रा० ६६४. जी० ३।५६२ पीraणवीर [पोतकणवीर ] रा० २८० जी० ३।२८ पीयपाणि [ पीतपाणि] जी० ३१५६२ पीयबंधुजीव [ पीतबन्धुजीव ] रा०२८. जी० ३।२८१ पीयासोय [ पीताशोक ] रा० २८. जी० ३१२८१ पीलियम [ पीडितक ] ओ० १० पीलु [ पीलु ] जी० ११७१ पीवर | पीवर ] ओ० १६. T० ६९, ७०. जी० २५९६,५६७ पीह [ स्पृह ] - पीहति. ओ० २० - पीहेड़. रा० ७१३. पीति. रा० ७१३ पुंछणी [ पुणी] रा० १३०,११०. जी० ३।२६४ ३०० पुंज [ पुञ्ज ] ओ० २,५५ २० १२,३२,३८,१६०, २२२,२५६,२८१,२६१,२६३ से २६६,३००, ३०५, ३१२,३५५. जी० ३।३१२,३३३,३५२, ३०१, ४१७, ४४७, ४५७ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७,५१६,५२०,५५४,५८०, ५६०,५६१,८६४ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८८ पुंडग-पुढविक्काइय पुंडग [पुण्ड्रक] जी० ३१८७८ पुच्छणा [प्रच्छना] ओ० ४३ पुंडरिंगिणी [पुण्डरीकिणी] जी० ३।६१५ पुच्छा पृच्छा] ओ० १६०. जी० ११६१, ३१४, पुंडरीय { पुण्डरीक ओ० १२,१६,२१,५४. १२,३५,४१,४३,८२,९६ से १०२,११३ से रा० ८,२७६,२६२. जी० ३।११८,११६,४५७, ११५,१२५,१५५,१५६,१६२,१६३,१६६, ५६.६,६२६ १६८,१६६,१८७ से १६१,२३३,२३४,२४३, पुररीयद्दह [पुण्डरीपंद्रह | जी० २४४५ ७२२,५३६, ८२०,८३०,८३४,८३७,६५६,६५७. पुक्खर पुष्कर ओ० १७०. रा० २४,६५,१७१. ६५६,६६०,६६८,६७८,९७६,१०११.१०४१, जी० ३१२१८,२७७ ३०६,५७८,६७०,७५५, १०४४,१०४५,१०५२,१०५६,१०६२ से १०६४, ७७५,८१६,८१७,८२१ से ८२५,८२७,८२६ से १०६६,१०७४,१०८६,१११८,११२६,११३२ ८३१,८४८,८८३ पुक्खरकणिया [पुकरणिका] जी० ३१८६२६ पुच्छितव्य [प्रष्टव्य] जी० ३।३६,७७ पुक्खरगय [पुष्करगत ] ओ० १४६. रा० ८०६ पुच्छिय [पृष्ट ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, पुक्खरणो पुरकरणी] जी० ३१९०१,६१०,६११, ७५२७८६ ६१४ से ६१६ पुच्छियध्व [प्रष्टव्य] जी० ३।२४४ पुषखरस्थिभग [ पुष्करस्थिभुक] जी० ३१६५४ पुट्ट [स्पृष्ट ] ओ० १६५।६,१०. जी. ११४१, ३१२२,५७१,५७३,५७७,७१५,७१७,८०३, पुक्खरस्थिभुय [पुष्करस्थिभुक ] जी ० ३३६४३,६५४ ।। पुक्खरद्ध [या कराई ] जी० ३।८३१ से ८३४ ८१६,८२८ पक्खरपत्त करपत्र ओ० २७. रा०८१३ पुट [पुष्ट] जी० ३१५९७ पुखरवर | पुष्करवर] जी० ३१७७४,७७५ पुटलाभिय [पृष्टलाभिक ] ओ० ३४ पुक्खरवरग [ पुष्करवरग] जी० ३१७७४ पुट्टि [पुष्टि] जी० ३१५६२ पुखरिणी (पु' करिणी] ओ० ६,६६. रा. १७४, पुड [पुट] रा० ३०. जी० ३।२८३,१०७८ १७५.१८०,२३३,२३४,२७३,२८८,३१२,३१३ पुढवि [पृथिवी] ओ० १८६,१६१ से १९५. ३५०,३७६,४३५,४६६,५५६,६१६,६५६. जी० श१२,१२१ से १२५,२।१००,१०८, जी०३।११८,११६,२७५,२८६,३६५,३६६, १३०,१३५,१३८,१४८,१४६:३।१६१,१६२, ४१२,४२५४३८,४५४,४७७,५१५,५२३, १६५,१६६,३०३,७७५,६३७,६७४; १२०,३३ ५२६,५३७,५४४,५५१,५५६,६८३ से ६८६ पुढविकाइय [पृथ्वीकाधिक ] जी० १११२,१३,६२, पुक्खरोद | पुरोद] जी० ३.४४५.७७५,८२५, १२८, २०१०२,१११.१३६,१३८,१४६ ; ८४८ से ८५१,८५४ से ६५६,८५६,८७६,६४६, ३२१३१ से १३५.१८३.१८४,१६४१९५; १४६९५७,६६२,९६४ ५१,२,५,८,१८ से २०,८१५६१८२,१८४, पुक्खरोदा [पुष्कमोदक] जी० ३१४४५ २५६,२५७,२६२,२६३,२६६ पुक्खरोदय | पुष्करीद ० २७६ पुढविकाल [पृथ्वी काल] जी० ५।१७,२२,३० पुग्गलपरियट्ट [ पुलारिवर्त! जी० १३१३६ ८.३,६७७,८५.६६ पुच्छ [प्रच्छ] ---पुच्छ३. २० ७१६.-.पुछोत. पुढविक्काइय [ पृथ्वी कायिक] जी० १:६७; रा० ७१३.--पुन्छसि. रा०७३७. २११३६,१४९, ३३१२६,१३२,५।१२,२०, -पच्छिर सामोरा० १६ ८.१,३ Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुढविसिलापट्टग पुरत्या भिमुह पुढविलापट्ट [ पृथ्वीशिलापट्टक] रा० १८५. जी० ३।२६७,८५७,८६२ पुढविलापट्ट [ पृथ्वी शिलापट्टक ०४ पुढवी [पृथिवी ] रा० १२४,१३३,७५५,७५७. जी० २।१२७, १४८, १४९, ३२ से ६, ११ से ३५, ३७ से ४०, ४२,४४ से ५७,५६ से ६६, ७३ से ८१, ८३ से ६८, १०३,१०४,१०६ से ११२,११६,११७,१२०, १२७, १२८ १६ १५, १८५ से १६१,२३५, २५७,६००,६०१, १००३,१०३८,१०५७ से १०५६, १०६३, १०६५, १०६६,११११: ५।१७ पुढवाइयत [ पृथ्वी कायिकत्व ] जी० ३।१२८ पुढक्काहत्त [ पृथ्वी कायिकत्व ] जी० ३।११२८, ११३० पुढवीसिलापट्टग [ पृथ्वीशिलापट्टक ] जी० ३।५७६ पुढवी सिलापट्ट | पृथ्वीशिलापट्टक ] रा० १३ पुण [पुनर् ] ओ० ५२. रा० ७५० जी० २१५० पुण [ पू] - पुर्णिज्जइ. रा० ७८५ पुणभव [ पुनर्भव] ओ० १६५ पुणो [ पुनर् ] ओ० ६३. जी० ३८३८ । १४ पूण | पूर्ण ] २० १७४, २८८,७६३. जी० ३।११८, ११६, २०६, ४५४,५८६,७८४,७८७,८७८ पुण्ण [पुन्य] ओ० ७१.१२०,१६० रा० ६६८, ७५२,७५३,७७४,७८६ पुण्णकलस [ पूर्णकलश ] ओ० ४८,६४. रा० ५० पुण्णप्पभ [ पूर्णप्रभ ] जी०३८७८ पुण्णरयमाण [ पूर्णप्रमाण ] जी० ३१७८४,७८७ पुष्णभद्द | पूर्णभद्र ] ओ० २,३, १६ से २२, ५२, ५३, ६५,६६,७० पुण्णमासिणी [पौर्णमासी, पूर्णमासी ] ओ० १२०, १६२. रा० ६६८,७५२, ७५६. जी० ३१७२३, ७२६ पुण्णरत्ता [ पूर्णरक्ता] ओ० ७१. रा० ६१ पुण्णा [पुन्दाग ] जी० १/७१ ६८६ पुत [पुत्र ] रा० ६७३, ७६१. जी० ३६११ पुत्ताणुपुत्तिय [ पौत्राणुपुत्रिक ] रा० ७७६ पुप्फ [पुष्प ] ओ० २,६,१६,४७. ५५,६७, ६२, ६४. रा० १२,१३,२६, ३२, १५६, १५७, २५८,२७६ से २८१,२६१,२६३ से २६, ३००,३०५, ३१२,३५१,३५५,५६४,६५७, ६७०, ७७६. जी० ११७१ ३.१७१, २७५, २८२,३२६,३३०, ३७२, ४१९, ४४५ से ४४८, ४५७ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७,५१६, ५२०,५४७,५५४, ५८०,५८१,५८६,५६१,५६६, ५६७,६००, ६०२,८३८/२,१५,८४२८७२ पुप्फग [ पुष्पकः ] ओ० ५१ पुष्पचंगेरिया [ पुष्पचङ्गेरिका रा० १२ पुष्कछज्जिया [ पुष्पछाधिका ] रा० १२ पुष्पदंत [ पुष्पदन्त ] जी० ३३८६३ पुप्फमंत [ पुष्पवत् ] ओ०५.०३।२७४ पुप्फबद्दलय [ पुप्पवादलक] रा० १२ पुष्कासव [ पुष्पाराव ] जी० ३१८६० पुष्काहार [ पुष्पाहार ] ओ० ६४ पुफिय | पुष्पित ] रा० ७८२ पुष्कुतर | पुष्पोत्तर ] जी० ३।६०१ goफोदय [ पुष्पोदक ] ओ० ६३ पुमत | पुंस्त्र ] ० १४१. १०७८६ पुर [ पुर] ओ० २२. रा० ६७४, ६६५, ७६०, ७६१ पुरओ | पुरतम् ] ओ० १६,६४,६६, ७०. रा० २०, १२४,१३६ से १६१, १७६, २११,२२१. जी० ३।३२७,३५६, ३७४, ३७६, ३८०, ३८५, ३६२,३६५,४१६,८७ पुरओकाउं [ पुरस्कृत्य ] ओ० २५,१६४ पुरच्छिम [ पौरस्त्य ] जी० ३१३०० पुरतो | पुरतस् ] रा० ४१ से ५६,२१५,२३३, २५७, २५८,२६१, ८०२. जी० ३२८८,३१६ से ३२६,३६३, ४५७, ६४१, ८३, ८६७, ८६६, ६०१ पुरत्याभिमुह [ पुरस्तादभिमुख ] ओ० २१,५४, Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७. रा० ४७,२७७,२८३,२८६,६५७,७९६, जी०३८४३,४४६,४५२,५५७ पुरत्यिम [पौरस्त्य] ० १६,४२,४४,१२६,१७०, २१०,२१२,२३५,२३६,२४२,६५.६. जी० ३।३००.३४०,३४५,३५१,३७३.३६७, ३६८,४०४,४४३,४४६,५५६,५६२,५६८, ५७७,६३२,६४७,६६१,६६६,६६८,६७३, ६८२,६६४,६६७,६६८,७०८,७१०,७३६, ७२६,७६२,७६४,७६६,७६८ से ७७०,७७२, ७३,७५३,७७६,८००,८१४,८२५,८५१, ८-२,८८५.६०२,६३६,६४४,१०१५, पुरथिमिल पोरस्त्य] रा० ४३,५६,२७७, २८३,२८६,२८८,२६१.२६८,३०३,३०८, ३१६,३२४,३२६,३३२ से ३४३ ३४७ से ३५१.३६५,४१४,४५४,४५४,५१५,५३४, ५७५,५६४,६३५,६१ ६.६५७,६६४. जो०३१३३ से ३५,३३,२१६.२२२.२२३, २२७,४४३,४४५,४५२,४५४,४५३,४६३, ४६,४७३,४८४,४८६,४६४ ४६७ से ५०८, ५१२ से ५१६,५२५,५२६,५३१,५३३,५३६, ५४०.५४६,५४७,५५३,५५६,५५७,५७७, ६६८,६७३,६८६,६६२,६६३,७६८,७७०, ७३२,७४,७७६,७७८,६१० पुरवर वर ! i० १६ जी० ३१५९६ परापरा रा० १८५,१८७. जी०३।२१७, २६७,२६८,३५८,५७६ पुरिमताल पुरिमताल' ओ० ११५ पुरिस | 'पुरुष ओ० १४,१६,१७,१६,५२.६३,६४, १६५।१८. रा०८ २८,२६२,६७१,६८१ से ६.३,६८७ सु ६६१ ७००,७०६,७१४ ७१६,५३२.७३५,७३७,७५१,७५३ ते ७५६, ७५८ से ७६२,७६४,७६५,७६८,७६६,७७२, ७७४,७७५,५६७,७८८. जी० २.१,७५ से ८६० से ३,९५,९६,६८,१४१ से १५१; पुरस्थिम-पुन्व ३११२७१५,१४८,१४६,१६४,४५७ पुरिसक्कार [पुरुषकार ओ० ८६ से १५,११४, ११७,१५५ १५७ से १६०,१६२,१६७ पुरिसपुंडरीय [पनपपुण्डरीक] ओ० १४. ग०६३१ पुरिसलक्षण पुमालक्षण | ओ० १४६. ग० ८०६ पुरिलिगसिद्ध | (रुषलिङ्गसिद्ध जी० १०८ पुरिसवग्ध युध्यमान ओ० १४. रा० ६७१ पुरिसवर पुरुषवर ओ० १४. रा० ६७१ पुरिसवरगंधह स्थि । सुरुषवरगन्धहस्तिन् | ओ. १४, १६,२१,५४. : ० ८,२६२,६७१ जी. ३.४५७ पुरिसवरपुंडरीय [ 'पुरुषवरपुण्डरीक ओ० १६,२१, ५४. रा ८,२६२. जी. ३१४५७ पुरिसवेद | जी० १।१३६; २।६७,६८; १२३,१२७ पुरिसवेदग [ पुरुषवेदक ] जी० ६.१३० पुरिसवेय पुरुषवेद ] जो० ॥२५ परिसवेयग [पुरुपवेदक ] जी० ६।१२१ पुरिससोह [पुरुषसि | ओ० १४, १६, २१, ५४. रा० ८, २६२, ६७१. जी० ३।४५७ पुरिसासीविस [पुरुषाशीविष] ओ० १४. रा० ६७१ परिसुत्तम [पुरुषात्तम रा०८ पुरिसोत्तम पुरुषोत्तम ! ओ० १६,२१, ५२, ५४. रा० २६२. जी० ३४५७ पुरोवग [पुरंपग ओ० ६, १० पुलंपुल [दे० ओ० ४६ पुलग पुलक आ० ८२. रा० १०,१२, १८, ६५, १६५, २७६ पुलय (पुलक | जी०३१७ पुलाकिमिय | पुलाकृमिक | जी० श६४ पुलिंदी मुनिन्दी | ओ० ७०. रा. ८०४ पुलिण ! लिन] र६० २४५. जी० ३।४०७ पुष [पूर्व | ओ० ७२, ११६, १५६, १६७,१८२. रा० ४०, १३२,१७३,६८५,७७२. Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुवंग-पेम ६६१ जी० ३२६५,२८५,३५८,८४१,८८१,६८८, पुहावियषक [पृथक्ववितक] ओ० ४३ ९८१ पूइकम्म [पूतिकर्मन् । ओ०१३४ पृथ्वंग [पूर्वाङ्ग] जी० ३.८४१ पूइत्तए [पूजयितुम् ] ओ० १३६ पुवकोडि [पूर्व हटि] जी० १।१०१, ११६,१२३, पूइय (पूजित | ओ० १४. १० ६७१ १२४;२:२२,२४,२६ से ३४,४८ से ५०, ५३ पूइया पतिक ना०६,१२. जी. ३२२२२ से ६१,८३,८४,१०६,११३,११४,११६.१२२ पूय [पूत ] ओ०६८ से १२४, ३।१६१,१६२,१९३५ : ६६७१२; पूयण पूजन ] ० ५२. १० १६,६८७,६८६ ६।४१,१४२,१४४,१४६,१६२,२००,२०३, पूणिज्ज [पुजनीय } प्रो० २. रा० २४०, २७६. २१२,२२५,२३८,२७३ जी० ३४०२, ४४२ पुवकोडिय [पूर्वकोटिक ] ओ० १८६ पूयफलिवण पूमपालीवन जी० ३१५८१ पुत्वक्कम | पूर्वक्रम ] 100 ३१८८० पूर पूरय ---पूरे इ. ओ० १७४ पुखणत्थ | पूर्वन्यस्त रा० ४८. जी० ३१५५८ से पूरिम पूरिम, पूर्य ] ओ०१०६,१३२. रा०२८५. ५६०,५६२ जी० ३१४५१,५६१ पुन्वपुरिस | पूर्वपुरुष] ओ० २ पूस पुष्य जी० ३८३८६३२ पुव्वणित पूर्वभणिन] जी० १८८१ पूसमाण पुष्यमाण] जी० ३१२७७ पुन्वभव पूर्वभव | रा. ६६७ पूसमाणय [पुष्यमानव ] ओ०६८ पुव्वरत्त पूर्वरात्र] रा० १७३ पूसमाण | युध्यमाणव | रा० २४ पवविदेह पूर्व विदेह। जी० २।२६,५६,६५,७०, पेच्च प्रत्य] ओ० ८८ ७२,८५,९६,११५१२३,१३२,१३७,१३८, पेच्चभव प्रेत्यभव आ० ५२. रा०६८७ १४७,१४६; ३४४५,७६५ पेच्छणघरग | प्रेक्षणगृह जी. ३।२६४ पुवाणुयुची । पूर्वानुपूर्वी । ओ० १६, २०,५२,५३. पेच्छणिज्ज प्रेक्षणीय ओ० १. जो० ३।५.६७ रा० ६८६, ६८७,७०६,७११, ७१३ पेच्छाघर [प्रेक्षागृह | जी० ३१५६१,६०४ पुस्वाभिमुह । पूर्वाभिमुख रा०८ पेच्छाधरमंशव प्रेक्षागृ मण्डप : ० ६४,२१५, पुवावर पूर्वापर रा० १६३,१६६. जी० ३११७४, २१६.२२०.२२१,३०० से ३०४,३३१ से ३३५,३५५, ३५७,६५८,७२८,७३३,१००६, ३३५,३३८ से ३४२. जी० ३१३७६ ३७६, १०२३ ३८०,४१२,४६५ से ४६६,४६६ से ४६०, पब्वि पूर्व ओ० ११७. रा०६३, ६५,२७५, ५०३ से ५०७,८८६,८६३ २७६,७८१ से ७८७. जी० २६१५०, ३२४४१, पेच्छिज्जमाण प्रेक्ष्यमाण] ओ० ६६ ४४२ पेच्छितए प्रेक्षितुम् | ओ० १०२,१२५ पहत्त [गृथक्त्व ! नी० १११०३, १११,११२,११६, पेज्ज प्रेपम्] ओ० ७१,११७,१६१,१६३. १२४,१२५, २१४८ से ५०, ५३,५४,५६,८२ रा०७६६ से ८४,६२,६३,१२२ से १२५,१२८, ३१११०, पेज्जबंधण प्रेयं बंधन। जी० ३१६११ १६७,११५५,१११६,११३५,११२७,४।१५; पेज्जविवेग योनिबंक] ओ०७१ ५।१६ २६; ६१६,११: ६८६,६३,१०२,१०६, पेढ पीट] जी० ३३६६८ १२३,१२८,२१२,२१७,२२५,२३८,२४४, पेम प्रेमन् ओ० १२०,१६२. रा०६६८,७५२, २७३,२८० ७८६ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ पेम्म-फलय पोराण पुराण] ओ० २.१० ११,५६,१८५, १८७,६७८.जी०१२५०; ३३२१७,२६७,२६८, ३५८,५७६ पोरेकव्व | पुर:काव्य ] ओ० १४६. रा० ८०६ पोरेवच्च पीरपत्य, पीरोवृत्य | ओ० ६८. ग० २८२. जी० ३१३५०,५६३,६३७ पोस [पोस] जी० ३.५६८ पोसह पोपध] ओ० १२०,१६२. रा० ६७१, ६६८,७५२,७८७,३८६ पोसहसाला गौरधशाला | स० ७६६ पोसहोववासपोपधापवास ओ०७७,१२०,१४०, १५७. 10 ६७१,७५२,७६७,७८९ पेम्म प्रेगन् रा० ७५३ पेया ! पेसा] रा० ७१,७७ पेयावायग पेयावादक] रा०७१ पेरंत | पर्यत] ओ० १६२. जी० ३१२८५,३००, ५६६,५६८,५६६,७०८,७११,८००,८१४, ८२५,८५१,६३६,६४४ पेलव पिलव) रा०२८५. जी०:४५१ पेस [प्रेष्] जी० ३१६१० पेसल |पेशल श्री० ३१८१६,८६० पेसुण्ण पैशुन्य ! ओ० ७१,११७.१६१, १६३. H० ७६६ पेसुण्णविवेष | पंजुन्य विवेक ओ०७१ पेहुणमिजा | दे० पहुणमज्जा] जी० ३१२८२ पोंडरीय पौण्डरीक] ओ० १५०. रा० २३,२६, १३७.१७४,१६७,२७६,२८८,८११. जी० २:२५६२८२,२८६,२६१,३०७ पोग्गल [पुगल औ० १६६,१७०, रा० १०, १२,१८,६५,२७६,७७१. जी० ११५,५०,६५, १३५, ३१५५,५६,८७,६२,६७,१०६,१२७, १२८,१२६३, १०,४४५,७२४,७२७,७८७, ६७४,६७६,६७७,६८२ से १८५,९८८ से ६९७,१०८१,१०६०,१०६६ पोग्गलपरियट्ट पुगलरिक्त जी०।६५,८८, १३२, ५६,२६, ६।२३,२६,३३,६६,७१, ७३,७८,१४६,१६४,१६५,१७८,२०२,२०४ 'पोच्छल उत् । शल--- पोच्ले ति. रा०२८१. जी० ३।४४७ पोट्टरोग [दे० जी० ३।६२८ पोतय पतिज जी० ३।१४६ पोत्तिय पोतिक | ओ०६८ पोत्तिया (दे० जी० १८६ पोत्थयग्गाह | गुस्तकमाह] ०६४ पोत्ययरयण पुस्तकरत्न | M० २७०,२८७,२८८, ५६४. जी० ३।४३५,४५३,४५४,५४७ पोय [पात | लो० ४६ पोयय पोतन] जी० ३३१४७,१६१,१६३,१६४ Vफंव सन्द्.ि .... फंदइ. रा० ७७१.-फंदंति. जी०६७ फंवंत स्पन्दमान रा०७७१ फंदिय स्पिन्दि] रा० १७३. जी० ३१२८५,५८८ फणस [पना | ओ० ६,१०. जी० २७२; ३।५८२ फरसु परशु! रा० ७६५ फरिस [स्पर्श औ० १५,१६१,१६३. रा० २८५. ६७२,६५,७१०,७५१,७७४. जी० ३४५१, ५८६,५६२ फरुस [पर ओ० ४०,४६. रा० ७६५. जी० ३.६६.११८ कल [लो०६,७१,१३५. रा० १५१,२२८, २८१,६७०.८१४. जी० ११७१,७२, ३५१७४, २७४,३२४,३८७,५८६,६००,६०२,६४२ फलग पलक ओ० ३७,१२०,१६२,१८०. रा० १६,१५३, ७५,१६०,२३५,२३६,२४०,६६८, ७०४,१०६. जी०३२६४,२८७,३२६,३९७, ३६८,४०२,६०२ फलगगाह । लकमा | ओ०६४ फलमंत लवत् ओ० ५,८. जी० ३।२७४ फलय फलक रा० ७११,७१३,७५२,७७६,७८६. जी० ॥३२६,४०२ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलवित्ति-बंधण फलवित्ति | फन वृत्ति जी० ३।२१७,२६७,२६८, फासमंत [स्पर्शवत् ] जी० ११३३,३६ ३५८,५७६ फासिदिय [स्पर्शेन्द्रिय ] ओ० ३७. जी० १:२२; फलविवाग | फलविपाक] ओ० ७४१६. रा० १८५, श६७६ फासुय | प्रासुक, स्पर्णक] मो० ३७,१२०,१६२. फलहसेज्जा [ फलकाथ्या ] ओ० १५४,१६५,१६६. रा०६९८,७५२,७७६,७८६ रा०८१६ फिडिय [स्फिटित | ओ०२३ फलासव फलामव | जी० ३१८६० फुफुअग्गि [दे०] जी० २१७४ फलाहार | फलाहार ओ०६४ फुटमाण [स्फुटत् ] रा० ७१०,७७४ फलिय | फलित | रा० ७८२ फुट्टिज्जत [स्फोटयमान रा० ७७ फलिह । परिघ | ओ० १,१६,१६२. रा० ६६८, फुड [स्पृष्ट] ओ० १६६,१७० ७५२,७८६. जी० ३३५६६ फुड स्फुट] रा० ७७४ फलिह ! स्फटिक ] रा० १०,१२,१८,६५,१६५,२७६. फुडिय [स्फुटित] जी० ३।६६ जी० ३७.४५१,८५४ फुल्ल [फुल्ल ] ओ० २२. रा० १७४,७२३,७७७, फलिहरयण | परिधरल। रा०२४६,३५५. ७७८,७८८. जी० ३।११८,११६,२८६ जी० ३१४१०,५२० फुल्लग [फुल्लक] जी० ३१५६३ फलिहा परिखा| ओ०१ फुल्लावलि फुल्लावलि ] रा० २४. जी. ३।२७७ फाणिय फाणित] आ०६३ फुस [स्पृश्] - फुसइ. ओ० ७१.-फुसंतु. फालिय | स्फाटिक) ओ० १५४,१७४. ओ०११७. रा० ७९६ जी० ३३२८६,३२७ फुसित्ता [स्पृष्ट्वा ओ० १६६ फालिय । पाटि:, स्काटित १० ७६४७६५ फुसिय स्पृष्ट] रा० ६,१२,२८१. जी० ३।४४६ फालियग पाटिक, स्काटितक ! ओ० ६० {क्रियमान रा० ७७ फालियमय | स्फटिकमय जी०३:५४७ ओ० १६,४६,४७. रा० ३८,१३०, फालियामय टिकाया ० १९. रा० २५४. १६०,२२२,२५६. जी०३१३००,३१२,३३३, जी० ३१४१५,८५७.६११,१००८ ३८१,४१७,५६६,८६४ फास | स्पर्श ओ० १३.२७,४७,५१,७२,१६६, फेणक [फेन क] रा० ६६ १७०. रा० ३१,३३,३७,४५,६५,१७२,१८५, फोडेमाण स्कोटयत् । ओ० ५२. रा०६८८ १६६,२०३,२३७,२४५,८१३. जी. ११५,३६, ५.०,५८,७३,७८,८१, ३१५८,८५,८७,६६, बउसिया विकुशिका रा०८०४ १२२,१२३,१२७।१,३,२७१,२८४,२६७,३०६, बंध बन्ध | ओ० ४६,७१,१२०,१६१ से १६३. ३११,३३६, ३६४,३७६,३६६,४०७,४१२, ०२६६,४०७,७१२. रा०६९८,७५२,७८६ ४२१,५७८,६०१,६०२,६४५,६४८,६५६, बंध [बन्ध] ---बंध इ. १० १६. रा० ७६५. ६७०,७२४,७२७,७५७,६६०,८६६,८७२,८७८, ..-बंधति. रा० ७७४.---बंधति रा०७५. ६७२,६८१,६६२,१०७६,१.८१,१०९८, -बंधाहि. रा० ७७४ १११७,१११८,११२४,११२५ बंधठिति गन्धस्थिति जी० २७५,९७,१३६,१५१ फासओ स्पर्शत ] जी० ११४०,५० बंधण (बन्धन] ओ० १३,४६,१७१,१६५२१. फासतो [स्पर्शतस् ] जी० ३१२२ रा० ७५४,७५६,७६४,७७४ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बंधित्तए-बहिया बंधित्तए तद्धम् । रा० ७७४ बलदेव बलदेव ओ०७१. जी० ३।७६५,८४१ बंधित्ता | बद्धवः | रा० ७५ बलव । बलवत् ] ओ० : ४. रा० १२,६७१,७५८, बंधुजीवगगुम्भ [बन्धुजीवकगुल्म जी० ३।५८० ७५६. ३१११८,११६ बंभ ब्रहान् ० २५.५१,१६२. रा०६६. बलवाउय बल मृत आं० ५५ से६३ जी०३।१०४६,१०६६,१०८८,१०६४,१११० बलसंपण्ण न 'म्पन्न । ओ० २५.१० ६८६ बंभचेर बहाचर्य जी. ३।६६६ बलागा बताका स २६ बंभचेरवास | ब्रह्मचर्यवा" ऑ० १५४,१६५,१६६. बलाया । बल का! ० ३।२८९ रा०८१६ बलाभिओग नलानिय ग] ओ० १०१,१२४ बंभष्णय वाहायक ] ओ० ६७ बलाहक बला'कजो० ३१७८५,७८६,८४१ बंभदत्त [हादत्त जी० ३।११७ बलाय [बलाहक | F०२६. जी० ३।२८२ बंभलोग गिलोक ०३:१०७६ बलि बिलि! जी० ३१२८० से २४३ बभलोय [ब्रह्मलोक ] ओ० ११०,११७,१४०. बलिकम्म बिलिकर्मन् । ओ००,५२,५३,७०. जी० २।१४८,१४६; ११०३८,१०५६,११०२ रा०६८३,६८५,६८७ से ६६६६६२,७००, Vबजा बन्ध ---बज्झती. ओ०७४।४ ७१०,७१६.१२६,७५१,७५३,७६५,७७४, बत्तीस [द्वात्रिंशत् । ओ० ३३. रा० १२४. ७६४,८०२,८०५ जी० ३१५ बलिपीढ विलिपीट। रा० २७२,२७३,६५४. जी. बत्तीसइगुण द्वात्रिंशद्गुण] जी० २११५१ बत्तीसइबद्ध द्वात्रिशद्बद्ध] रा० ७३.११८ बलिविसज्जण | मलि विसर्जन] रा० ६५४. जी. ३१५५६ बत्तीसइबद्धय [द्वात्रिंशद्बद्धक] रा० ७१०,७७४ बल्लकी बल्लको रा० ७७ बत्तीसतिबद्ध [द्वात्रिशद्बद्ध रा०६३,६५ बहली बिल्ली। आ० ७०. रा० ८०४ बत्तीसिया [द्वात्रिशिक: । रा० ७७२ बहन बहु] अ० १२,१७,२३,४७ से ५२. रा० बद्ध बद्ध j ० ५.८,५७. रा० १३२,२३५,६६४, १६,१७,२२,२३,५४,५५,७१ से ७५,७६ से ६८३,७५४,७५६,७६४,७७१,७७४. ८१,८३,११२ स ११८,१३२,१५३,१६७,१६८, जा० ३।२२,१७४,२७४,३०२,३२६,३९७,५६२ १७८ से १८०,१८२.१८४,१८५,१८७,१६२ बद्धग बद्धक रा० ७७ से १६४,१६६,२३५,२३६.२४०,२४६,२८०, बद्धीसा ! बध्वीमा ०७७ २८२, २८६, ६८७ से ६८६.६६५,७०३, बफ ] जी० ३१५६२ ७०४. जो० ३३८७,२१७,३४८,३५८, ३५६, बल्बरिया बर्वरिका रा० ८०४ ३६७,३६७,३६८,४०२,४१०,४११,४२०, बब्बरी । बर्बरी| ओ० ७० ४४६,४४८,४५५,४५६,५७६ से ५८३ ५८६ से बरहिण न ०६. जी. ३१२७४ ५६५,६४०,७०२,७२४,३२६,७२७,७२६, बल [व] ० २३,६७,८१,८६ मे ६८,११४, ७८५ ७५७,८०७,८२६,८४१,८५७,६०२, ११,१५५,१५० से १६०,१६२,१६७. ६१७,१०३०,१०३६,१०८१ ग० १२.१३,६१,६५७,६७४,६९५,७५८,७५६, बहिव रा० १३२. जी. ३१३०० ७८७,७८,६०,७६१ जी० ३.११८,४४६, बहिया बहस हस्तात् । ओ०२. रा० २. जी. ५८६,५६२ ३८३८६१ Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहु-बाणउति बहुबा ओ० १४,२३,५२,६३,६१,६८,७०,६१, ३।२६३,३१०,३१३,३१८,३३८,३५६,३५६, ६२,६४,११४,११७,१४०.१४१,१५४,१५५, ३६१,३६४,३६५,३६८,३६६,३७७,३८६, १५७ से १६०.१६२,१६५,१६६,१६५. रा०७ ४००,४१३,४२२,४२७,४६०,४६५,४८६, १५,५१,५६,५८,१२४,१७४,१८१,१५३,१६५, ४६१,४६८,५०३,५२१,५२७,५३५,५४२,५४६, २४,२७६,२८२.२६१,६५७,६७१,६७५, ५५४,६३४,६३६,६४२,६४६,६४६,६६३, ६८३,६६८,७१८,७५२,७७४.७८७ से ७८६ ६६८,६७१ से ६७३,६७६,६८५,६६१,७३७, ४६६,८०३,८०४,२१६. जी० ३११११,११८, ७५६,७५८,७६२,८३१,८८२,८८४,८८७, ११६,२५६,२६९,२८६,२६३.२६५,३८८, ८६१,९०६,६११,९१३,६१८,१०३६ ३६०,४०२,४४२,४८८,४५७.५५७,५६३, बहुमय बहुमत ओ० ११७. १० ७५० से ७५३, ५.६,५८४ से ५६५,६३७,६५,६,७२१,७३८, ७६६ ७४३,७५०,७६०,७६३,८५७,८६३,८६६, बहुमाण [बहुमान ] ओ० १४,४०. रा० ६७१ ८७५,६०१,६१७,६६५,१०२५,१०३८ बहुय बहुक ] ओ० १७१. रा ० १९७. बहुउदग | बहूदक ] ओ०६६ जी० ११७२,१४३; २०६८ से ७२,६५,९६, बहुगुणतर [ बहुगुणत र ] रा० ७१८ १३४ से १३८,१४१ से १४६ ३.४०२,५७६, बहुजणब जन आं० २,१४,५२,११८,१४६. १०२५,१०३७,१०३८४१६,२२,२५, १६, रा० ६७१,६७५,६५७ २०,२६,२७,३२ से ३६,५२,५६,६०,७४२०, बहुतरक [ बहुतरक | जी० ३.१०१ २२,२३, ६७,१४,५५,२५० से २५३,२५५, बहुतरग |बहुतरक जी० ३१६६,११३,११४ २८६ से २६७ बहुदोस | बहुदोरा ओ० ४३ बहुरय बहुरत ] ओ० १६० बहुपडिपुष्ण | बहुप्रतिपूर्ण | आ. १४३. रा० १५१, बहुल | बहुल] ओ० १,७,८,१०,४६,४६. १५२,८०१. जी० ३६३२४,३२५ रा० ६७१. जी० ३३११८,११६,२३६,२७५, २७६ बहुपरिसपरंपरामय [बहुपुरुषपरम्परागत रा० बहुविह | बहुविध ) ओ० १६५१६ ७७३ बहुप्पकार | बहुप्रकार ] जी० ३१५६५ बहुसम [बहुसम] रा० २४,३२,३३,३५,६५,६६, बहुप्पगार [बहुप्रकार जी० ३३५८६ मे ५८८, १२४,१७१,१८६ से १८८,२०३,२०४,२१७, २३७,२३८,२६१. जी० ३१२१८,२५७,२७७, बहुप्पसन्न बहुप्रसन्न] आ० १११ से ११३, ३०६,३१०,३३६,३५६ से ३६१,३६४,३६५, १३७,१३८ ३६८,३६६,३७२,३६६,४००,४२२,४२७, बहबीयवहुवीज जी. १९७०,७२ ५८०,६२३,६३३,६३४,६४५,६४६,६४८, बहुवीयग बहुबीजक जी. ११७२ ६४६, ६५६,६६२,६६३,६७०,६७१,६७३, बहुमज्श बहुमध्य] ओ० ८,१६२. रा. ३,३२, ६६०.६६१,७३७,७५५ से ७५८,७६८,८८३, ३५,३६,३६,६६,१२५,१६४,१८६.१८८,२०४, ८८४,८६०,६०५,६०६,६१२,६१३,१००३, २१७.२१८,२२७.२३८,२५२.२६१,२६३, १०३८,१०३६ २६५,३००.३२१,३२६,३३३,३३८,३५६, बाण वाण ता० ३६. जी० ३१२७६ ४१५,४७६,५३६,५९६,७३५,७७२. जी० बाणउति [द्वानवति ] जी० ३१८१५ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाणगुम्म-बालदिवाकर बायरकाल बारकाल] जी० ६६E बायरणिओद (वादरनिगोद] जी० ५।३८ बायरणिओय [बाद निगोद] जी० ५१३१,३३,३५, बायरतसकाइय | बादर त्रसकायिक जी. ५१३१ से बाणगुम्म बाणगुल्म | जी० ३.५८० बादर [बादर] जी० ३१८४१; ५।२६ से ३१,३५, ५१,५२,५८ से ६० बावरआउकाइय [बादरअ'कायिक | जी० ५।२८ बादरणिओत बादरनिगोद जी० २२६ बादरणिओद [बादरनिगोद जी० ५।२८ से ३०, ४०,४७ से ४६,५२ बावरणिओवजीव | बादरनिगोदजीव ) जी० ५१५३. ५५,५८ से ६० बादरनियोवबादरनिगोद ] जी० १४० बादरतसकाइय [बादर त्रसकायिक ] जी० ५२८ से बायरतेउक्काइय बादरत जस्कायिक जी० ५।३१,३३,३४ बायरतेउक्काइय | बादरतेजस्कायिक] जी० ११७६ ; ५१३३,३४,३६ बायरपुढवि बादर पृथ्वी । जी० ५।३१,३३,३५,३६ बायरपुढविकाइय (वादरपृथ्वीकायिक जी० १११३,५७,६५,७४; ५:३१,३३,३४,३६ बायरपुढविक्काइय [बादरपृथ्वीकायिक __ जी० ११५७,५८,६२ बायरवणस्सइकाइय बादरवनस्पतिकाथिक] जी० १५६६,६८,६६,७२ से ७४ ; ५१३३,३४, बादरतेउक्काइय [ बादरतेजस्कायिक] जी० ११७८, ७६; २८ बादरपत्तेयवणस्सतिकाइय [बादरप्रत्येकवनस्पति कायिक] जी० ५।२६ बाबरपुढवि [ बादरपृथ्वी जी० ५।२६ बावरपुढविकाइय [बादरपृथ्वीकायिक ] जी० ११५८, ३११३२,१३४; ५।२,३,२८ से ३० बाबरवणस्सइकाइय वादरवनस्पतिकायिका जी० ५।३० बादरवणस्सति [बादरवनस्पति ] जी० ५.२६ बादरवणस्सतिकाइय [बादरवनस्पतिकाधिक] जी० ॥२८ से ३१ बादरवाउ | बादरवायु] जी० ५२२६ बादरवाउकाइय [बादरवायुकायिक जी. श२८, बायरवणस्सतिकाइय | बादरवनस्पतिकायिक] जी० ५१३१,३३ से ३६ बायरधाउकाइय [ बादरवारकायिक जी० ॥३४ बायरवाउक्काइय वादरवायुकायिक ] जी० ११८०, ८२ बायाल द्वचत्वारिंशत् | जी० ३.१०२२ बायालीस द्वः बत्वारिंशत् ] ओ० १६२. जी० ११११२ बारस द्वादशन् ओ० ६०. रा०४३.जी. ११८६ बारसभत्तद्वादशभक्त ओ० ३२ बारसम द्वादश ] रा० ८०२ बारसाह द्वादशाह ओ० १४४ बाल बाल ] रा० २७,३१,७५८,७५६. जी० ३१२८०,२८४,६६० से ६६७ बालतवोकम्म बालतपःकर्मन् ओ०७३ बालदिवाकर | बालदिवाकर रा० २७. जी० ३१२८० बादरवाउक्काइय [बादरवायु कायिक] जी० श८१ बायर बिादर जी०१४४; ३१८४१५२८,२६, ३१ से ३६; १६५,६,६६,१०० बायरआउकाइयबादरअप्कायिक जी० ५२६ बायरआउक्काइय [बादरअकाधिक जी०१४६३,६५ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालभाव-बुक्कार बालभाव [ बालभाव ] रा० ८०६,८१० बालविहवा [ बालविधवा ] ओ० ६२ बालिय [ बाल ] रा० ४५ बावट्ठ [ द्वाषष्टि ] जी० ३१ ३२ बावट्टि | द्वाषष्टि ] रा० २०६. जी० २२६१ बावपण [ द्विपञ्चाशत् ] जी० ३१६:१ बाबत्तर [ द्वापति ] जी० ३६३२ बावरि [ द्वारुपति ] ० २०६. जी० १।११६ बावन्न | द्विपञ्चाशत् ] ओ० १२६ बावीस [ द्वाविंशति ] ओ० १५४. २० ८१६. जी० ११५६ बाहल [ बाहल्य] ओ० १६२. रा० ३६, १३७. १८८, २१८, २२१,२२४,२३०,२३८,२४२, २४४,२४६,२५२,२६१,२७२ जी० ३.५, १४ से २७,३० से ४७,५२,७३ से ७५,७७,५०, १२४, १२५, १२७,२३२,२५७,३०७,३१०. ३५५,३६१,३६५ ३७७, ३८०, ३८३,३८५, ३६२, ४००, ४०४, ४०६, ४०८, ४१३, ४२२, ४२७,४३७,६३४,६४२,६४४,६४६.६५३, ६५५, ६६८,६७१,७२४, ७२५, ७२७,७२८, ७५८,८६१,८६३,८६५, ८६७,८६६, ६०६, १००६,१०१० से १०१४,१०६५, १०६६ बाहा [ बाहु ] ओ० ११६. जी० ३।३५४,४१५ बाहि [ बहिस्] रा० ७७२. जी० ३१७७ बाहिर [बाह्य ] ओ० ६. २१० ४३. जी० ३७८, २३६, २७५, ६४३,६८१, ७६८, ७६६,७७५, ८३१८३८१२, ८४५, १०५५ बाहिर [बाहिर, बाह्रक ] जी० ३१७०४,७८७ बाहिर बाहिर बाह्यक] अं० ३०, ३१, ३७. जी० ३३६५८, ७८२,७८६,७८७६६० से ६६९७ बाहिरिय (बाहिरिक, बाह्यक ] रा० ६६२. जी० ३१२३५ से २३६,२४१ से २४३, २४६, २४७,२४६, २५०, २५४ से २५६,२५८,३४३, ४४७,५६०,७३३,८४२१०४० से १०४२. १०४४, १०४६, १०४७, १०४९ से १०५३ ૬૨ बाहिरिया (बाहिरिका] ओ० १८, २०, ५३, ५५, ५८, ६० से ६३ रा० ६८३,६८५,७०८, ७५४, ७५६,७६२,७६४ बाहिरिल्ल [ बाह्य ] जी० ३१७२३,१००७ बाहु | बाहु | ओ० १६. ० १२,७५८, ७५६. जी० ३१११८,५६६ बाहुजुद्ध [वाह ] ओ० १४६. रा० ८०६ बाहुजोहि [ बाहुयोधिन् | ओ० १४८, १४९, रा० ८०६,८१० बाप | बाहुन् ] ओ० १४८, १४९. २० ८०६,८१० fasय [ द्वितीय | ओ० ४७,१७६, १८२. जी० ३१२२६ बिट [ वृन्त ] रा० २२८ बिदिय [त्रीन्द्रिय ] ओ० १८२ fag [बिन्दु ] मो० २३ faफल [ रिम्बफल ] ओ० ११,४७. जी० ३।५६६ बिहणिज्ज [ बृंहणीय] जी० ३१६०२,८६०,८६६, ८७२८७८ बिम्बोण [ दे० ] रा० २४५. जी० ३।४०७ विलपतिया | दिलपक्तिका ] रा० १७४, १७५, १८०. जी० ३।२६६, २८७, २६२, ५७६ ६३७, ७३८, _७४३,७६३,८५७,८६३ बिसाला [ द्विशालक ] जी० ३१५६४ बीभच्छ [ बीभत्स ] जी० ३१८४ बी [ बीज ] ओ० १३५, १८४ atr | द्वितीय ] ओ० १७४ ator [बीक ] जी० ३१२८१ ateगुम्म | वीजगुल्म ] जी० ३।५८० ateबुद्धि [ बोजबुद्धि] ओ० २४ बीमंत | बीजवत् ] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ बीय [ बीयफ १ रा० २८ atter राई दिया [द्वितीवसप्तत्रिंदिवा ] मो० २ बाहर [बीजाहर ] ओ० ९४ √ बुक्कार [ दे० ] - बुक्कारेति. रा० २८१. जी० ३।४४७ Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ बुज्झ-भंत २६२,७७७,७७८,७८८. जी० ३१४५७ बोहि [बोधि ] ओ० १५१. रा०८१२ बोहिदय [वोधिदय रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ बोहिय [बोधित ] ओ० १६ बुज्झ दे०|--- बुज्झइ. ओ० १७७.---बुझंति. ओ० ७२. जी० १११३३.--बुझिहिति. ओ० १६६.- वृज्झिहिति. ओ० १५४. स० ८१२ Vबुज्न बुध् ] -बुझिहिति. ओ० १५१ बुझिहित्ता [बुद्ध्वा | ओ० १५१ बुद्ध [बुद्ध] ओ० १६,२१,५४.१९५।२०. रा०८, २६२. जी० ३४५७ सुद्धबोहियसिद्ध [बुद्धबोधितसिद्ध | जी० १८ बुद्धि बुद्धि | रा० ६७५ बुब्बुय (बुबुद] ओ० २३ बुह | बुध] ओ० ५० बूि [ब्र]--दूया. रा० ७३२ बर बर ओ० १३. रा०७३२. जी. ३।२८४, २६७,३११,४०७ बेइंदिय द्वीन्द्रिय] जी० ११८३,८४,८७,८८, १२८,२।१०१,१०३,११२,१२१,१३१,१३६, । १३८.१४६,१४६ ३३१३०,१३६,१६६% ४११,४,८,१२,१६,२०,२१,२३,२५; ११, ३.५; १।१,३,५,७,२६४ बॅट [वन्त] जी० ३११७४ बॅटट्ठाइ [वृन्तस्थायिन् ] रा० ६.१२ बंदिय [द्वीन्द्रिय ] जी० ४११७, ६।१६७,१६६, २२१,२२३,२६४ बेयाहिय [द्वयाहिक जी० ३१६२८ बेलंव [बेलम्ब] जी० ३१७२४ बेला बेला जी० ३१७३३ बोंड [दे०जी० ३।५६६ बोंदि [दे० ] ओ० ४७,७२,१६५।१,२. रा० ७७२ बौद्धन्व | बोद्धव्य] ओ० १६५४५,६. ___जी० ३.१२६।१० बोधव बोद्धव्य ] जी० ११६६ बोषिय [बोधित ] जी० ३।५६६,५९७ बोल [दे०] ओ० ४६,४६,५२. रा० १५,६८७, ६८८. जी० ३।६२७,८४२,८४५ बोय बोधक ] ओ० १६,२१,२२,५४. रा. ८, भइ [भृति रा० ७८७,७८८ भइणो भगिनी] जी० ३।६११ भइय [ भक्त्र] ओ० १६५।१५ भइय | भृतिक ] रा ० १२ भंगुर [भङ्गुर ओ० १६. जी. ३१५६६,५६७ भंजिज्जमाण [भज्यमान रा० ३० भंड [भाण्ड] ओ० ४६,११७. रा० ३०,१५२, २६६,२६८,२८४,४७५,५३५,७७४,७६६. जी० ३१२८३,३२५,४२६,४३२,४५०,५३४, ५४१,११२८,११३० भंग (दे० ओ० ५६ भंग्यिालिछ [भण्डिकालिञ्छ] जी० ३।११८ भंत भदन्त ओ० ६६,७६,८४ से ६५,११४, ११७,११८,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७, १६६ से १७२,१५४,१७५,१७७,१८१,१८४ से १६२. रा० १०,५८,६२,६३,६५,१२१ से १२४,१७३,१९७ से २००,६६५ से ६६७, ६६५,७००,७०२ से ७०४,७१८,७२०,७३६, ७३८,७४७,७४८,७५० से ७५४,७५६,७५८ से ७६१,७६२,७६४ से ७६७,७७०,७७२ से ७७५,७७७,७८२ से ७८५,७८७,७६८,८१७. जी० श१५ से ३३,४१ से ४६,५१ से ५४, ५६,५६ से ६२,६४,७४,७६,८२,८५ से ८७, १०,६३ से १६,१०१,११६,१२७,१२८,१३० से १३४,१३७ से १४३; २१२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,४८,४६,५४,५७ से ६३,६६,६८ से ७४,७६,८२ से ८४,८६.८८, १२,९५ से १८,१०७ से १०६,१११,११३, ११४,११६ से ११६,१२२ से १२६,१३३ से १५० ३१३ से १,११ से २०,२४ से ३५,३७ Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतसंभंत-मति से ३६,४२,४४ से ६६,७३ से ६८, १०३ से ११०, ११२, ११६, ११८ से १२८, १४७,१५० से १६२.१६५,१६७,१६६ मे १८३.१८५,१८६, १६२ से २११,२१४,२१७ से २२३,२२७, २३२ से २४२, २४४ से २४६,२४५ से २५६, २६ से २७२,२६३ से २८५, २६६,३००, ३५०,३५१,५६४ से ५७८, ५०६, ५६३, ५६६ से ६३२,६३७ से ६३९, ६५६, ६६०, ६६४,६६६ से ६६८,७००,३०१,७०३, ३०५ से ७११, ७१३ से ७२३,७३० से ७३६,३३८,७४० से ७४३,७४५,७४६.७४५ से ७५०,७५४,७६० से ७६६,७६८ से ७७०,७७२,७७६ से ७७८, ७८१ से ३६५,७६७ से ८००,८०० से ०४, ८०८०६,८११ से ८१६,८१ से ८२०, ८२३ से ८२५,८२७,८२६,८३०, ८३२ से ८३७,८३६८४०, ८४२ से ४७,८४६,८५०, ८५४,८५५,८५७,८६०,८६३,८६६,८६६, ८७२८७५८७८ से ५८१,६३६, ६४०, ६४४, ६५३ से ६५५,६५८, ६६१,६६३ से ६६६, ६६६,६७२ से ६७७,६८२ से ६८४८८ से १००८, १०१०, १०१५, १०१७,१०२० से १०२७,१०३७ से १०४४, १०५४,१०५६, १०५६, १०६२,१०६३, १०६७,१०६६, १०७१, १०७३,१०७५,१०७७ से १०८३, १०८५, १०८७,१०८९ से १०६३, १०६५, १०६७ से १०९६,११०१,११०५,११०७,११०६ से १११२, १११४,१११५, १११७,१११६, ११२१, ११२२, ११२४,११२८, ११३०,११३१,११३३ से १९३८ : ४३,७ से ११,१३,१६,२२,२३, २५, ५५, ८, १०, १२ से १६, १६ से २४,२६ से ३०,३२ से ३५,३७ से ३६, ४१ से ५०, ५२ से ५६.५८ से ६०, ६, ७.२,६,२०, ६१२, 3, १० से १४,१६,२३ ३ २६.३१,३३,३६,४१ से ४८,५२,५५, ५७ से ५६,६४, ६, ७६ से ७६, ८६, ६०, ६६,६७,१०२, १०३, ११४, ११५, ६६६ १२२,१३२,१४२,१६० से १६३.१७१,१८६ से १६३, १६५,१६८ से २०३,२१० से २१२, २१४ से २१६, २२२ से २२५, २२७ से २३०, २३३ से २३८,२४० से २४४, २४६, २४० से २५३,२५५,२५७ से २६३, २६५,२३८ से २७३,२७५ से २०२२८४ से २९३ भंत संभंत | भ्रान्तमंत्रान्त ] रा० १११,२८१. जी० ३।४४७ भंभा (दे० सम्भा | रा० ७७. जी० ३५८ सेकामशकिाम ] रा० ७३७ भगवल [भगन्दर ] जी० ३१६२८ भगव [ भगवत् ] ओ० १६, १७,१६ से २५, २७४७ से ५५,६२.६६ से ११,७५ से ८३,११७. ०८ से १३,१५,५६,५८ से ६५,६८,०३, ३४, ७६, ८१, ८३, ११३, ११८, १२०, १२१,६६८, ७१४,७६६.८१४,८१५,८१७ भगवई [ भगवती ] रा० ८१७ भगवंत [ भगवत् ] ओ० १६,२१,२३, २६ से ३०, ५१,५२,५४.११७,१५२,१६५,१६५. ०८, ६,११,५६,२६२,६८७,७१४,७४६, ७६६. जी० १११ ; ३१४५७ भगवती [ भगवती ] रा० ८१७ भगइ | भग्नजित् ] ओ०६ भज्जा [ भार्या ] जी० ३,६११ भट्टित्त [ भर्तृत्व] ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३।३५०, ५६३,६३७ भट्ट |रा० ६, १२, २०१. जी० ३१४४३ भड | भट ] ० १.२३, ५२.१० ५३,६६३,६८७, ६८८,६६२,७१६ भणित [ भणित ] जी० ३१८८१ भय [ भणित] ओ० १५, ४६, १६५३४ से ७. रा० ७०,६७२,८०६,८१०. जी० २ १५० ; ३११२६,५६७, ८३८।१,२; ६।१५७ भण्ण [ भण् ] -- भण्णंति. जी० ३१६४६ भति [भति ] ओ० १७ Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भत्त-भवगहण भत्तभक्त] ओ० १४,१७,३२,३३,११७,१४०, भमुया [5] ओ० ३१५६७ १४१,१५४,१५७,१६२,१६५,१६६. रा० भमुह [5.] ओ० १६. स० २५४, जो० ३१४१५ ६७१,७७४,७८७.७८८,७६६,८१६ भय भय] ओ०१४,२५,२८,४६. रा० ६७१, भत्तकहा भिक्तकथा] ओ० १०४,१२७ ६८६. जी० ३:१२७,१२८ भत्तपच्चक्खाण भत.प्रत्याख्यान] ओ० ३२ भयंत [भदन्त'। ओ०७२,१६७ भतपाणविउस्सग्ग [भक्तपानमुत्सर्ग ] ओ० ४४ ।। भयग [भृतक) जी० ३१६१० भत्ति | भक्ति ] ओ० ४०,५२. रा० १६ भयणा भजना) जी. १११३६ : ३२१५२ भत्तिघर [भक्तिगृह] जी० ३१५६४ भयव ! भगवत् रा० १२१ भत्तिचित्त भक्तिचित्त | ओ० १३,६३. ० १७, चित्ता ओर १३.६३. १० १७. भयसण्णा | भयमज्ञा] जी० ११२० ; ३११२८ १८,२०,२४,३२,३४,३७,५१,१२६,१३७, भर [भर रा० २२८. जी० ३।३८७,७८४,७८७ १५६,२६२. जी० ३।२७७,२८८,३००,३०७, भरणी [भरणी ] जी० ३।१००७ ३०८३११.३३२,३३७,३५६,३७२,३६६, भरत [भरत ] जी० २.१३२,३ ६७२ भरह भरत ४५७,५६७,५६३,५६५,९०४ ओ० ६८. रा० २७६,२८२. जी. भत्तिपुवग भक्तिपूर्वक ] रा० ६३,६५ २१४,२८,५५,७०,७२,६६,११५,१२२,१४.०, भद्द [भद्र] ओ० ४७,६८,७२. रा० २८२. जी० १४६ ; ३१२२६,४४५,४४७७९५ ३२४४८ भरिय [भरित] ओ० ४६,५७,६४. रा० १७३, भङ्ग [भद्रक] जी० ३१५६८,६२०,६२५,७६५,८४१ भद्दपडिमा [भद्रप्रतिमा] ओ० २४ भिव[भू–भवइ. ओ०२८, रा० २००. जी० ३१५६-भव उ. ओ० २०.रा०७१३. भद्दमोत्था [भद्रमुस्ता] जी० ११७३ -भवंति. ओ०२०, रा० १२४. जी. ३१७७ भद्दय [भद्रक] जी० ३१७६५ -भवति. रा० १२६. जी० ३३२७२-भवह. मद्दया [भद्रता] ओ० ७३,६१,११६ भद्दसालवण | भद्र शालवन] रा०१७३,२७६. रा०७१३--भवाहि. रा०७५०...-भविस्सइ. ___ जी० ३१२८५,४४५ अं.० ५२. रा० २००---भविस्सति. भद्दा [भद्रक] ओ०६८. रा०२८२. जी. ३ ४४८ जी. ३१५६ --भविस्सामि. रा०७७५ भद्दा भद्रा] जी० ३३६१५ -भवे. रा० २५. जी० ३१८४--भवेज्जासि. भद्दासण [भद्रासन] ओ० १२,६४. रा० २१,४१ रा० ७७४- भुवि. रा० २००. जी. ३५१ से ४४,४८,४६,१८१,१८३,२६१,६५८ से भव [भव ] ओ० ४६,१६५१३,७,८ ६६४. जी० ३.२८६,२६३,३३६ से ३४५, भवंत [भवत् ] रा० १५ ३६८,३७०,५५० से ५६०,६३५ भवक्षय [भवक्षय ओ० १४१,१६५१६. रा० ७६६ भमंत [भ्रमत् ] ओ०४६. रा. १७४. जी० भयग्गहण भिवग्रण] जी० ७।५,६,१०,१२,१५ ३१११८,११६,२८६ से १८;६२ से ४,४०,५१,१७१,२३६,२३८, भममाण [भ्राम्यत, भ्रमत्] ओ० ४६ भमर [म्रमर] ओ० ६.१६. रा० २५. जी० १. 'भयंतारो' ति भदन्ताः कल्याणिनः भक्तारो वा ३१२७५,२७८,५६६ नेग्रन्थ प्रवचनस्थ सेवयितारः [वृ० पृ० १५२] भमरपतंगसार [भ्रमरपतङ्गसार] रा०२५. जी० 'भयंतारो' ति भक्तार: अनुष्ठान विशेषस्य ३1२७८ सेवयितारो भयत्रातारो वा [वृ० पृ० २०३] । Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवण-भासा २४३,२४४, २४६, २७१, २७३, २७६ से २-२ भवण | भवन ] ओ० १,१४,६६, १ १ ० ६७१, ६७५,७६६. जी० ३।२३२ से २३४,२४०, २४४,२४८, ५६४, ५६७,६०४,६४६ से ६४८, ६५१,६७३, ६-२, ६-६,६६२ ले ६६८,७५६ भवणवइ | भवनपति | ० ११,५६. जी० २३६५ भवणवति [ भवनपति | जो० ३।६१७ भवजवासि | भवनवारिन् | ओ० ४८. जी० १.१३५, २११५,१६,३६,३७,७१,७२,६१,९५, १६, १४८, १४६, ३।२३० से २३२,१०४२ भवणवासिणी | भवनवासिनी ] जी० २१७१,७२, १४५, १४६ भवणावास भवनवास | जी० ३१२३२ भवत्थ | भवस्थ | 81४४ से ४८, ५२, ५३ भवत्थकेवलणाण |भवस्य केवलज्ञान ] रा० ७४५ भवधारणिज्ज [ भवधारणीय] जी० ११६४,६६, १३५,१३६ ३३६१,६३,१०८७ से १०८६, १०१, १०२, ११२१ से ११२३ भवपच्चय [ भवप्रत्ययिक | रा० ७४३ भवसिद्धिय [भवसिद्धिक ] रा० ६२. जी० ६।१०६ भविष्य | भावितात्मन् ] ओ० १६६ से १११,११२ भविता | भूत्वा ] ओ० २३. २०६८७ भसोल [भसोल ] रा० १०६,११६,२८१. जो० ३।४४७ भाइलग [ भागिक ] जी० ३१६१० भाज्य [ भ्रातृक ] रा० ६७५. भाग [भाग ] रा० ७८७,७८८. जी० ३१५७७, ६३२,६३६, ८३८११६, १०१० से १०१४ भागि [ भागिन् | रा० ८१५ भाजण | भाजन ] जी० ३.५८७ भाणितव्व [ भणितव्य ] जी० २१११२: ३२७४, १२०.१२१,१४४,२२७, ५७८, ६३१.६५७, ६४७ भाणियव्व [ भणितव्य ] ० ८०, १६४,२०१, २०४ से २०६,७४२. जी० १५१, ७२,६६, ११८,१२३, १२६,१३५ २२७६,७८,८०,८१, १०५,१०८,१११,११८,१२३, ३।७५,७७, १५६,१६२, २३१,२५०,३५६.३५८, ३५६, ३६१,४१२,४६३,६७३,६७६, ६८२,७५६, ७६६,७६६,७७५,८००,८०१,८१८,८२, ६३६,६३६, १०४४, १०५०, ११२६, ११२७; २६.२२६ भामरी [ भ्रामरी ] रा० ७७ भाय | भ्रातृ ] जी० ३।६११ भाथ [ जाग ] रा० उ८८. जी० ३१५७७ / भाय | भाजू ] भाएंति. रा० २८१. जी० ३।४४७ भायरक्खिया [ भ्रातृ रक्षिता ! ओ० ६२ भार [ भार | रा० ७७४ भारह [भारत] रा०८ मे १०,१३,१५५६,६६८ भारं पक्खि [ भारुण्डपक्षिन् ] यो० २७. रा० ८१३ भाव [ भाव ] रा० ६३,६५,१३३,७७१,८१५. जी० ३।३०३,७२९ भावओ [ भावतस् ] ओ० २८. जी० ११३३, ३४, ३६,३६ ७०१ भावविग्ग [भः वत्स ] ओ० ४४ भावाभिगचरय [ भावाभिग्रहत्तरक] ओ० ३४ भावमाण [ भावयत् ] ओ० २१ से २४,२६,४५, ५२,८२,१२०, १४०, १५७. ० ८,६,६८६, ६८७,६८६, ६६८,७११,७१३,७५२, ७५३, ७८७,७८६८१४, ८१७ भावमोदरिया [ भावावमा ] ओ० ३३ भास् [भाष | भासह ओ० ५२. रा० ६१ - भावेति जी० ३।२१० भास ( प ) ( भाषक ] जी० ९२६६ भात | भाषमाण ] ओ० ६४. जी० ३।५९१ भाग [ भाषक ] जी० ३१५६,५६,६१ भासमणपज्जत्ति | भापा मनःपर्याप्ति ] रा० २७४, ७६७. जी० ३.४४० भास [ भापक | जी० ६५७ भासरासि [ अरमराशि ] रा० १२४ भासा [ भाषा ] ओ० ७१. श० ६१,८०६,८१० Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ भासास मिय [भापासमित] ओ० २७,१५२,१६४. रा० ८१३ भासुर [भासुर] ओ० ४७,७२. रा० ६,१२ भिउम्व [भार्गव] ओ० ६६ भिंग [ भृङ्ग] ओ० १६. रा० २६. जी० ३:२७६ भिगंगय [भृङ्गाङ्गक] जी० ३:५८७ भिगणिभा भृङ्गनिभा] जी० ३६६८७ भिंगा [भृङ्गा] जी० ३१६८७ भिंगार भुङ्गार] ओ०६४,६७. रा० ५०,१४८, २५८,२७६,२८१,२८८,७५३. जी० ३।४४५, ४५४,५८७ भिंगारक [भृङ्गारक] ओ० ६. जी० ३।२७५, ३२१,३५५,४१६ भिगि [भृङ्गि] जी० ३१५६५,५६६ भिण्डमाल [भिण्डमाल, भिन्दपाल] ___ जी० ३११० भिडिमाल [भिण्डिमाल, भिन्दिपाल ] ओ० ६४ ।। भिरिमालग [भिण्डिमालय, भिन्दिपालाग्र] जी० ३८५ अभिद भिद्]-भिंद. रा० ६७१–भिज्जइ. रा० ७८४ भिभसारपुत्त [भिम्भसारपुत्र] ओ० १५,१८,२०, २१,५३ से ५६, ६२ से ६४,६६,६७,६६, ७१,८० भिक्खलाभिय [भिक्षालाभिक ओ० ३४ भिक्खायरिया [भिक्षाचर्या ] ओ० ३१,३४ भिक्खुपडिमा [ भिक्षुप्रतिमा | ओ० २४ भिक्खुय [भिक्षुक] रा० ७१८,७८७,७८८ भिगु | भृगु] जी० ३।६२३ भिच्चा भित्वा] रा० ७५५ भित्ति भित्ति ] रा० १३०. जी. ३१३०० भित्तिगुलिया [भित्तिगुलिका] रा० १३०. जी० ३।३०० भिन्नमुहुत्त [भिन्नमुहूर्त जी० ३।१२६४२,१० भिब्भिसमाण [बाभास्थमान | रा० १७,१८,२०, ३२,५२६. जी. ३१२८८, ३००,३७२ भासासमिय-भूइकम्मिय भिलुंग [दे० भिलुङ्ग] रा० ७०३ भिस [बिस] रा० २६,१७४. जी. ३३११८,११६, २८२,२८६ भिसंत [भासमान] ओ० ५,८,६४. रा० ५१ जी० ३१२७४ भिसकंद (बिसकन्द] जी० ३:६०१ भिसमाण [भासमाण ] ० १७,१८,२०,३२,१२६. जी० ३१२८८,३००,३७२ भिसिया पिकाओ० ११७ भीत भीत ] जी० ३.११६ भीम [भीम] ओ० ४६,५७. जी० ३१८३ भुंजमाण [भुजान ] ओ० ६८. ४० ७. जी० ३३५०,५६३,८४२.८४५,१०२४, १०२५ । भुकुंड [ दे०] -भुकुंडेति. रा० २८५. जी० ३१४५१ भु कुंडेता [दे० ] जी० ३।४५१ भुजंग भुजङ्ग ] जी० ३१५६७ भुज्जतर [भूयस्तर] ओ० ८६ भुज्जो [ भूयस् ] ओ० १५६. रा० ७५१ भुत्त [भुक्त] रा० ६८५,७६५,८०२,८१५ भुयम [भुजग] ओ० २,५१ । भुयगपद [भुजगपति ] ओ० ४६ भुयगपरिसप्प [भुजगपरिसर्प ] जी० २१११३ भुयगपेच्छा [भुजगप्रेक्षा] ओ० १०२, १२५ भुयगीसर [भुजगेश्वर] ओ० १६. जी. ३१५६६ भुयपरिसप्प भुजपरिसर्प जी० १।६०४, ११२. १२२, १२४;२७,६,२४,५२,१२२; ३३१४३, १४४, १६१,१६२,१६६ भुममोयग [भुगम चक] ओ० १६. जी० ३१५६६ भुया [ भुजा] ओ० १६,२१,४७,५४,६३,७२. रा० ८,६६,७०, जी० ३।४५७,५६६ भुवा [भ्रू का[ जी० ३१५९६ भुसागणि [बुषाग्नि ] जी० ३।११८ भूइकम्मिय [भूतिकर्मिक] ओ० १५६ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूओवधाइय-भोम भूओवाइय [ भूतोपघातिक ] ओ० ४० भूत [ भूत ] रा० ६,१२,३२,२८१. जी० ३१३६८, ४४३,७८०, ८४२, ८४५, १४७, ६४६, ६५० भूतक्वय [ भूतक्षय ] जी० ३१६२६ भूतग्गह [ भूतग्रह ] जी० ३१६२८ भूतपडिमा [भूतप्रतिमा [ जी० ३।४१८ भूतमंडलपविभत्ति [ भूतमण्डलप्रविभक्ति ] रा० ० भूतमह [ भूतमह ] जी० ३१६१५ भूतवडेंसा] [भूतावतंगा ] जी० ३।६२१ भूता [ भूता] जी० २१ भूताणंद [ भूतानन्द | जी० ३।२५० भूमि [ भूमि ] ओ० ५२. रा० ७६६ भूमिगय [ भूमिगत ] रा० ७६५ भूमिचवेडा [ भूमिचपेटा ] रा० २८१. जी० ३।४४७ भूमिभाग [ भूमिभाग ] ओ० १६२. रा० २४, ३२, ३३. ३५, ६५,६६,१२४,१६४, १७१, १८६ से १८८, २०३ से २०६,२०८,२१३,२१६,२१७, २३७,२३८,२५१,२६१. जी० ३।२१८, २५७, २७७,३०६,३१०,३३६,३५६,३५६ से ३६१, ३६४,३६५.३६८ से ३७२,३७४, ३६६, ४००, ४१२,४२१,४२२,४२७,५८०, ६२३, ६३३, ६३४,६४५,६४६,६४८,६४६,६५६,६६२, ६६३,६७०,६७१,६७३, ६६०, ६६१,७३७, ७५५ से ७५८, ७६२, ७६५, ७६८,७७०, ८८३, ४ से ६०,६०५, १०६, ६१२,६१३, १००३,१०३८ भूमिभाय [ भूमिभाग ] जी० ३।४२६ भूमिया [ भूमिका ] रा० ६७५ भूमिसेज्जा [ भूमिशय्या ] ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ८१६ भूमी [भूमी ] जी० ३।६३१ भूय [ भूत ] ओ० २,४,६,२६,४६,५५,६२. रा० १३२,१७०,२३६,७०३. जी० ३ १२७, २७३,३०२,३७२,४४७, ६७५, ११२८, ११३० भूयपडिमा [ भूतप्रतिमा] रा० २५७ भूयमह [ भूत मह] रा० ६६८ ७०३ भूयवादिय [ भूतवादिक] ओ० ४६ भूयानंद [ भूतानन्द ] जी० ३।२४६, २५० भूसण [ भूषण ] ओ० २१,४७,५४,५७. ० ६६, ७०. जी० ३।५६३ भूसणधर [भुगणधर ] रा० ८,७१४ भूसिय [ भूषित ] ओ० ६४. २०५३, ७५१ भेत्ता [भित्वा ] जी० ३१६६१ भेद [ भेद ] ओ० २६. जी० ११११८, १२१,१२३, १२४, १२६,१३५ २७६,७८, १०५, १०६ ; _३३१३५,१४२, १४४, २३१,२७६,२८१,९३६ मेय [द] ओ० १. रा० २८,६७५,७६३. जी० ११५८ २ १५१, ३ १२६ ६, ६५० भेकर [ भेदकर ] ओ० ४० भेरव [ भैरव ] ओ० ४६ भेरी [भेरी ] ओ० ६७. रा० १३,७७, ६५७, ७५५. जी० ३१७८, ४४६ मेरुड [ भेरुण्ड ] जी० ३१८७८ heartar [ भेरुतालवन | जी० ३५८१ सज्ज [ भैषज्य ] ओ० १२०,१६२ रा० ६६८, ७५२,७८६ भो [भोस् ] ओ० ५५. रा० १३. जी० ३।४४४ भोग [भोग] ओ० १६,२३,४३,४६, १४८ से १५०. रा० ६७२, ७५१, ७५३, ७६१,५०६ से ८११. जी० ३५६, ११२४ भोग [भोज ] ओ० ५२. ० ६८७,६८८,६६५ httfter [भोगार्थ ] ओ०६८ भोगपुत्त [ भोजपुत्र ] ओ० ५२. रा० ६८७ भोगभोग | भोग्यभोग ] ओ० ६८. रा० ७. जी० ३३५०, ५६३, ८४२, ८४५, १०२४, १०२५ भोगरय [ भोगरजस् ] ओ० १५० रा० ८११ भोच्चा] [भुक्वा ] रा० ६६७ भोजण [भोजन ] जी० ३।५१२ भोत्तए [भोक्तुम् ] ओ० १३४ भोत्तूण | भुक्त्वा ] ओ० १६५।१८ भोम [ भूम ] रा० १३०. जी० ३३०० भोम [ भौम ] २० १६४. जी० ३।३३६ से ३३८, Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०४ भोमिज्ज-मंति ३४५,३५५,३५६ २४१,२४८,२५०,२५६,२६१. जी० ३१२८६, भोमिन्ज [ भौमेय] 1० २७६,२८० ३१४,३४७,३५९,३६७ से ३७१,३.५ ३७६, भोमेज्ज [भौमेय] जी० ३३२५१,२५२ ३:२,३६१,३६४,४०३.४११,४२०,४२४, भोय भोग | ओ० १५. रा०६८५,७१०,७७४ ४३० ४१३,४६६६३६,६५१,६७७,७०८, भोय भोजय]--भोयावेज्जा. मा० ७७६ ७१.६,८८८,८६२,८६४,८६८,६००,६०६६१३ भोयण भोजन ओ० १३५, १९५१८. मंगलय | मङ्गक ! ओ० ६४. जी. ३१३५५,४५७ जी० ३१६०२ मंगल्ल माङ्गल्य रा०६८५,६६२,७००,७१६, भोयणमंडव (भोजनमण्डप रा० ८०२ ७२६,८०२ मंचाइमंच | मानिमञ्च ओ० ५५.१० २८१ मंचातिमंच मजातिमञ्च जी० ३१४४९७ मइ [मति ] ओ० ४६,५७ मंजरि जरी ओ० ५,८,१०. र. १४.. मइअण्णाणि मत्यज्ञानिन् ] जी० ११३०, ८७,६६; श्री० ३१२६८,२७४ ६२०२,२०६,२०८ मंजु, मञ्ज ओ०६६. स.० ५३५.० ३.३०५, मउ | मृदु । रा०७६,१७३ मउंदमह । मुकुन्दमः०६८८ मंड [ग]...-मंडावेज्जा. रा० ७७६ मउड [मुकुट] आ० २१,४७,४६ से ५१,५४,६३, मड मण्ड] जी० ३१८७२,६६० ६५,७२,१०८,१३१. रा०८,२८५,७१४. मंडणधाई मानधात्री] र० २०४ जी० ३१४५१,५६३ मंडल [मण्डल] अं० ५०,६४. रा० १४६. जी. मज्य [ मृटुक] ओ० १६. रा० २८८.जी० ११५०; ३३३२२,८३८११० से १२ ३२२,२८५,३८७,५६६,५९७,६७२,१०६८ मंडला मण्डलक] १०२६५. जी० १४६० मडल [मुकुल ] जी० ३:५६७ मंडलपविभत्ति [मण्डलप्रविभक्ति ग०६० मजलि [ मुकलिन जी० १११०६,१०८ मंडलरोग [मण्डलरोग जी० ३।६२८ मउलि [मौलि ओ० ४७,७२ मंडलिय माडलिक जी० ३३१२६११ मलिय । मुकुलित ] ओ० २१,५४. रा ७१४ मडलियावाय [ मालिक वात! जी० १८१ मऊर { मयूर] जी० ३४५६७ मंडव मण्डप जी० ३।५६४,८६३ मंख मङ्ग] ओ० १,२ मंडवग [माडपक ०६ से ८,१०. जी. अंखपेच्छा [मप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. ३१२७५,५०६ जी० ३।६१६ मंडवय | मण्डपको जी०३:५७६,८६३ मंगल मिल] ओ० २.१२,२०,५२,५३,६३,६८, मंडित मण्डित जी० ३.२८५,३०२,४४७ ७०, १३६. ग० ६,१०,४६,५८,१५६,२४०, मंडियमण्डित। ओ०२,४७,५५.५६, रा. २७६,२६१,६८३,६८५,६८७ से ६८६, ६६२, २८१. जी० ३ २६५,३१३ ७००,००४,७१६,७१९,७२६,७५१,७५३, मंडिया पण्डितक | M० १३२ ७६५,७७६,७६४,८०२,८०५. जी. ३.३३२, मंडियागमण्डि क] रा०४० ४०२,४४२ मंत ओ० २५. रा०६७५,६८६,७६१ मंगलग गङ्गलक] रा० २१,१६६,१७७,२०२, मंति मन्धिन् । .. १८. रा० ७५४,७५६,७६२, २०४ से २०८,२१४,२२०,२२३,२२६,२३२, Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंथ-मज्झ मंय | मन्थ] ओ० १७४ मंद | मन्द ] रा०.७६, १७३, ७५८, ७५६. जी० ३।२८५,६०१,८६६ मंदगति | मगति ] जी० शहद मंदर [मन्दर ०१४२७.२० १२४, २७६, ६७१.६७,८१३. मी० ३.१७१६ से २२१,२२०,३००, ४४५, ४६६.५६८, ५६६. ५७०६६८,७०१,७३६,७४०, ७४२.७८५ ७५०,७५४,७६२,७६५, ७६६.२७५,६३७, १००१.१०३६ मंदरगिरि मद ग०ि १७३०१२८१ मंदलेस || जी० श०३१२६ मंदलेस्स | मंदलेषय | जी० ३१८४५ मंदाय [मन्द | ९० ४०,११५, ११२, १७३,२०१. जी० ३२६५२५५, ४८७ मंदावलेस्स | मागले ०६४५ मंस (मांस | ०६२/६३ २०७०३ मंसल मांगल] ओ० १६. जी० ३।५६६, ४६७ मंसह [मासतुख ] ओ० ६३ सुश्म०१.०१० २३०४५५५२६ मकरंडक एकक | जी० ३।२७७ i गतियागुम्म [२०] जी० ३२५६० मगर [क] ० १३,४६. रा० १७,१८,२०, ३२.३७.१२६.० १६.११८३२८८, ३००, ३११,३७२, ५९६,५६७ मगड २१० २४ मगरासण | मकरासन रा० १८११८२. ज० ३।२६३ मरिया | मकरिका | स० ७५. जी० ३१५६३ मगुंद | मुकुन्द ] जी० ३१५८६ मग [ मार्ग | ० ४६,६५,७२ मरगणा ० ११७, ११९, १५६ j मग्गतो [ पृष्ठतस् ] अं० ० ५५ मदमानंदय] ० १२,२१,५४,०८, २६२. जी० ३।४५७ मघमत [ प्रसरत् ] ओ० २,५५. २० ६, १२,३२, १३२,२३६,२०१,२९२. जी० २३०२,३७२, ३६८, ४४७ ७०५ मघव ( मघवन् ] जी० ३।१०६८ मघा | मधा | जी० ३३४ म] [मृत्यु] ओ०४६ [ मत्स्य ] ओ० १२,४६,६४ ० २१,४६, १७४,२६१. जी० ११०० ३०० ११८, ११६.२५६,२०६,५६७.२६५, २६६,६६८,९६९ भडक [क] बी० ३२७७ मच्छंग [ मत्स्याण्डक] १०८४ मच्छंडा विभत्ति [ मत्स्याण्डकप्रविभक्ति ] रा० ६४ मन्डामय रंडाजारामारापविभत्ति [मस्याण्डकमकराण्डको रकम र भक्ति ० १४ मच्छंडिया | मत्स्यण्डिका । ०३६०१,८६६ मच्छंडी | मत्स्यण्टी] जी० ३।५९२ मच्छ [मत्स्व ० १६६ i मच्छित मक्षिकापत्र ] ओ० १६२ मच्छी]] [[मत्स्वी] जी० २२४ मज्ज | मद्य ] ओ० १२,६३. जी० ३१५६६ / भज्ज | मस्ज् ] - मवेज्जा. रा० ७७६ मज्जण [ मज्जन ] ओ० ६३ मज्जधर मगृह ओ० ६३ भजणधरगम रा० १८२.१८३. जी० ३१९६४ मज्जनधाई | गज्जनधात्री २००४ मज्जार [मार] जी०३२८४ मज्जिय | मज्जित ] ज०६३ मज्झ | मध्य ] ओ० १५,१६,६३,६८. रा० १२५, १२७,२४०,२४५,२०२,६७२,७६६. जी० ११४६, ३१५२,५७,८०,२६१,३५२, ५१६,६३२,६६१,६६१.७२३.७२६,७३६,८३९ ८८२ [ मध्यमध्य आं० २०,५२,६७ से ७०. ० १०,१२,५६,२७८.६०३,६०५,६८७, ६१२,७००,७०६,७०८,७१०,७१६,७२६. जी० २४४५५५७ मम Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०६ मझग [ मध्यगत ] रा० ७३२ माणिक | मध्य छिन्नक | ओ० १० मज्झिम | मध्यम ] ओ० १६५/६. २०४३,६६१. जी० ३१७७,२३६,६५८,६८१,१०५५ मज्झिमविज्ज [ मध्यम ग्रैवेय ] जी० २२६६ मज्झिमवेज्जा | मध्यम ग्रैवेयक ] जी० ३११०५६, ११११ मज्झमि [ मध्यमिक ] जी० ३३२३५ से २३६, २४१ से २४३,२४६, २४७, २४६, २५०, २५४ से २५६,२५८,३४२, ५६०, १०४० से १०४२, १०४४,१०४६, १०४७१०४९ से १०५३, १०५५ मयि | मध्यक] जी० ३५६७ मज्झिल्स | मध्यम ] जी० ३३३२५,७२८ या [ मृत्तिका ] ओ० ६८ ० ६, १२,२७६ से २८१ जी० ३०४४५, ४४६, ४४८ मट्टियापाय | मृत्तिकपात्र ओ० १०५,१२८ मट्ठ [सृष्ट ] ओ० १२,१६,४७,७२, १६४. रा० २१, २३,३२,३४,३६,५२,५६,१२४, १४५, १५७, २३१.२४७. जी० ३ / २६१, २६६, २६६,३६३, ४०१,५६६,५ε७. मड [ मृत ] जी० ३८४,६५ मर्डब [ मडन्द ] ओ० ६८,८६ से ९३,६५,६६,१५५, १५८ से १६१, १६३,१६८. रा० ६६७ मय [ दे० मडक | रा० ७७ मण [मनस् | ओ० २४,३७,४०,५७,६६,७० रा० ३०, ४०, १३२,१३५.१७३,२२८,२३६, ७६५,७७८,८१५. जी० ३।२६५,२८३, २८५, ३०२, ३०५,३८७,३६८, ६७२ मत्त [ मनोगुप्त ] ओ० २७,१५२, १६४. रा० ८१३ मणगुलिया [ मनोगुलिका ] जी० ३।४१२,४१६, ४४५ जोग | मनोयोग ] ओ० ३७, १७५, १७७,१७८, १८२ मणजोगि [ मनोयोगिन् । जी० १।३१,८७,१३३ ; ३११०५,१५३, ११०६ ६ ११३११४, ११७, १२० मज्झगय- मणिजाल मणपज्जवगाण | मनः पर्यवज्ञान ] ओ० ४०. २०७३६, ७४४,७४६ मणपज्जवणाणविणय [ मनः पर्यवज्ञान विनय ] ओ० ४० मणपज्जवणाणि [ मनःपर्यवज्ञानिन् | ओ० २४. जी० १११३३ ६ १५६, १६२, १६५, १६६, १६७,२०२, २०४,२०८ raft | मनोबलक] ओ० २४ मणविजय | मनोविनय । ओ० ४० मणसमय | मनःसमित | ओ० १६४ मणहर | मनोहर | ओ० ७, ८, १०. रा० १७, १८, २०,३०४०,७८,१३२,१३५,१७३,२३६. जी० ३।२७६.२८३, २८५,३०२, ३०५ मणाभिराम | मनोभिराम ] ओ० ६८ सणाम | दे० ] ओ० ६८, ११७. रा० ७५० से ७५३, ७७४, ७६६. जी० १/१३५, ३३१०६०, १०६६ मणामतराय | दे० ] रा० २५ से ३१, ४५. जी० ३।२७८ से २८४,६०१,६०२,८६०, ८६६,८७२८७८, ६६० मणि | मणि | ओ० २३,४७,४६,५२,६३,६४. रा० १७,१८,२४ से ३३, ३७, ४०, ४५, ५१,६५, ६६,७०,१३०, १३२, १३७, १५४, १६०,१७१, १७३, १७४,२०३,२२८, २३७, २५६,२६२, ६८७ से ६८६, ६६५, ८०४. जी० ३।२६५, २७७ से २८६, ३००,३०२, ३०७,३०९ से ३११,३३३,३३६.३६०,३६४,३७२,३७६, ३८७,३६६, ४१२, ४१७,४२१,४५७, ५७८, ५८७,५८६,५६०,५६३, ६०८, ६४५, ६४८, ६५६,६७०, ६७२,६६०, ७५७ मणि (पाय ) मणिपात्र ] ओ० १०५,१२८ मणि ( बंधन ) [ मणिबन्धन ] ओ० १०६,१२६ मणिजाल | मणिजाल ] ० १६१. जी० ३३२६५, ५६३ Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणिपेढिया मोग मणिपेढया | मणिपीठिका | रा० ३६,३७,६६,६७, २१८,२१६,२२१,२२२,२२४ से २२७,२३०, २३१,२३८, २३६,२४२ से २४७, २५२, २५३, २६१,२६४,२६७,२६६,३००,३०५ से ३११, ३१७ से ३२१, ३३८, ३४४ से ३४७, ३५२ से ३५४, ४१४,४७४, ५३४, ५६५. जी० ३१३१०, ३११,३६५, ३६६, ३७७.३७८, ३८०, ३८१,३८३ से ३८६,३६२,३९३,४००, ४०१,४०४ से ४०६,४१३,४१४,४२२,४२३, ४२७, ४२८, ४५७, ४६५, ४७० से ४७४, ४८२ से ४८६,५०३, ५०६ से ५१२, ५१६ ते ५१६, ५२६,५३३,५४०,५४८, ५५७, ६३४, ६४६, ६५०,६६३,६७१ से ६७५, ७५८, ७५६,७६५, ७६८,७७०, ८६१ से ६००,६०६,६०७ मणिमय [ मणिमय ] रा० १६,२०,३६,३७,१३०, १३५,१३८, १५५,१६०,२१८,२२१,२२४, २२६,२२८,२३०,२३८, २४२, २४४ से २४६, २६१,२७०, २७६,२८० जी० ३।२६५,२८७, २८८,३००,३०५,३११,३१३,३२२,३५३, ३६५,३७७, ३८०, ३८३, ३८५, ३६२,४००, ४०४,४०६ से ४०८, ४१३, ४२२,४२७, ४३५, ४४३, ४४५, ६४६, ६४६, ६५४,६७१,७५८, ८६१,८६३,८६५, ८६७,८६६,६०६ मणियंग [ मव्यङ्ग | जी० ३१५६३ मणिलक्खण [मणिलक्षण | ओ० १४६. रा० ८०६ fan | मणिवृत्तक | जी० ३०५८७ मणिसिलामा | मणिशलाका ] जी० ३१५८६,८६० मई [ मनुजी ] जी० ३।५६७ मणुष्ण | मनोज ] ओ० ४३,६८,११७. रा० ३०, ४०,७८,१३२,१३५,१७३,२३६,७५० से ७५३, ७७४,७६६. जी० ११३५; ३।२६५, २८३,२८५,३०२,३०५, १०६०, १०६६, १११७ गुणतराय [मनोज्ञतरक] २० २५ से ३१,४५. जी० ३२७८ से २८४, ६०१ म [ मनुज ] ०४४,६८,६०,६१,६३,१६१, ७०७ १६३,१६८. रा० २८२,८१५. जो० ११५२; ३८८,१२६, ४४८,५५६, ५६६, ५६८ से ६००, ६०३,६०५ से ६२१,६२५, ६२७ से ६३१, ७६५,८४१,११३७; २५४ मणुरायवसभ [ मनुजराजवृषभ ] ओ० ६५ मणुयलोग [मनुजलोक ] जी० ३१८३८११,४ से ६ मणुयलोय [ मनुजलोक ] जी० ३१८३८१३ मणुस [ मनुष्य ] ओ० ७३,१७० रा० २७,७३२, ७३७,७७१. जी० ११५१,५४, ५५,५६,६१,६५, ७६,८७,६१,६६,१०१,११६, १२३.१२६,१२६, १३४,१३६; २१२,११,१४,२६ से ३०, ३२ से ३४,५४, ५७ से ६१,६५,६६,६८,७०,७२,७५, ७७,८०,८४,८५,८८, १६, १०६, ११४, ११५, १२३,१२४,१३२ से १३४, १३७,१३८, १४३, १४५, १४७, १४६; ३११,८४,११८, २१२ से २१५, २१७ से २२५, २२७ से २२६,२८०, ५७६, ८३६,८३८११३, ८४०, ११३२, ११३५, ११३८ ६१.४,६,१२ ७११, ६, १२, १७, १८, २०,२३; ११५६,१५८, २०६,२१८,२२०, २३१ मस्सखेत [ मनुष्यक्षेत्र ] जी० १११२७; ३।२१४, ८३५ से ८३७,८३८२१ मस्सजोणिय [मनुप्ययोनिक ] जी० राष्ट मणस्तत [ मनुष्यत्व ] ओ० ७३ मस्सिद [ मनुष्येन्द्र ] ओ० १४. रा० ६७१ मस्सी [ मानुषी ] जी० ३: ५७६; ६ । ११४, ६, १२; ६२०६,२१८,२२० मणूस [ मनुष्य ] ओ० १. जी० ३९६३, ६६७; २१२, २२१,२२५,२२६,२३२, २३७,२३८, २४५,२४६,२५०,२५१,२५५,२६७,२७२, २७३,२८१,२८२,२८६,२८७,२६०,२६३ मणूसपfरसा [ मनुष्य परिषद् | ओ० ७८ मसी [ मानुषी | जी० ६।२१२ मणोगम [ मनोगम] ओ० ५१ मोगय [ मनोगत ] रा ० ६,२७५, २७६,६८८, Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणोगुलिया-मल ७३२,७३७,७३८,७४६,७६८,७७७,७६१, ७२३,३७४,७६६.जी०३१४४२,४४५,४४८, ७९३. जी० ३।४४१,४४२ ४५७,५५५ मणोगुलिया [मनोलिका ] रा० १५३,२३५, मद [मद] गी० ३१८६० २५८,२७६. जी० ३१३०६,३५५,३६,६०२ मद्दण मर्दन | ओ० १६१,१६३ मणोजगुम्म [मनोज गुल्म] जी० ३१५८० मद्दय मर्दक | जी० ३१५८६ मणोणुकूल [मनोनुकून जी० ३१५६४ मद्दल | मर्दल | रा० ७७ मणोमाणसिय [मनोमानसिक रा०८९५ मद्दव [ मार्दव ! ओ० २५,४३. ६० ६८६,८१४. मणोरम [ मनोरम | जी० ३.६३४ जी० ३१५६८,७६५.८४१ मणोरमा | मनोरमा जी० ३१६२० भधु [मधु जी० ३.८६० मणोरह | मनोरथ ] ओ० ६६ मधुर मधुर जी० ३१२८५ मणोसिलक | मनःशिलक! जी० ७४५ ममत्तभाव | ममत्वभाव जी० ३.६०८ मणोसिलग मनःशिलक| जी० ७४५ मम्भ मर्मन् ] रा० ७६३ मणोसिलय | मनःशिल की जी० ७३४,७४६ मय [मृत] रा० ७६२. जी०१४ मणोसिला मनःशिवारा० १६१,२५८,२७६. मयणसाला दे० ० ६. जी० ३३२७५ जी०३:३३४,४१६,७४७ मयणिज्जमदनीय औ० १३. श्री० ३.६०२, मणोसिलाइढवी मनःशिलापृथ्वी जी० ३.१८५. ६०,८६६,८७२,८७८ १८६ मयपइया मृतपत्रिका | ओ० ६२ मणोहर मनोहर रा० ७६,१७३. जी० ३।२६५, मयर [मकर] ओ० ४८ २८५ भयरंडापविभत्ति | मकाण्डक पविभक्ति रा०६४ मति | मति | जी० ३.११८,११६ मिर म---मरंलि. जी ०१:५३ मतिअण्णाणि मत्यज्ञानिन | जी० ३.१०४,११०७. भरगय मरकत अं० १३ ६।१६७,२०२ भरण | मरण | ओ० २५,४६,७४,१७२ १६१८, मत्त । अम जी० ३.११२८,१५३० १२ रा०६८६ मत्त गो० १,६,२६,५७,६८. १० १४८, ___ भरीइ मावि जी० ३:११२२ २८८. जी. ३।११८,११६,२७५,३२१,४५४ ।। मरोइया । मरीचिका] रा० २१,२३,२४,३२,६४, ३६,१२४.१४५ मत्तंगय | मत्ता क जी. ३.५८६ मरीचिया मरीचिका ओ० १६४ मत्तगयर्यावलंबियम जविलम्बित रा०६१ मरीतिकक्ष्य मीचिकवच १० ३२ मत्तगयविलसिय मिजावलसि०६१ भरुंडोम ० ७० मत्तहविलंदिय । मलहविलम्वित । रा०६१ मरुपक्खंदोलग [मरुपक्षान्दोलक | ओ०६० मत्तहयविलसित | मत यविलहित रा०६१ मरुपडियग [मरुपतितक | ओ०६० मत्थगसूल [मस्तकल जी० ३१६२८ मरुया | मख्यक,मरुत्तक | M०३०. जी० ३२८३ मत्थय । मस्तक | ओ० २०,२१,५३,५४,५६,६२, मल | मल| ओ० ८६,६२. जी० ३५६८ ११७. रा ८,१०,१२,१४,१८,४६,७२,७४, मिल मृद्-मलः ज्जइ. रा० ७८५ ११८,२७६,२७६२८२,२६२,६५५,६८१, ६८३,६८६,७०७,७०८,७१०,७१३,७१४, १. मुरंडी (रा० ८०४) । Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलय-महज्जुईय ७०६ मलय मलय] ओ० १४. रा० १५६.१७३,२७६, मसीगुलिया [मगीगुलिका ] रा० २५. ३८५,६७१,६७६. जी० ३१२८५,३३२,४४५, जी० ३।२०८ मसूर [ मसूर] जी० १११८ मलिय [मर्दित ओ० १४. रा० ६७१ मसूरग [ मसूरक ] ग० ३७. जी० ३१३११ मल्ल [ माल्य] ओ० ४७,५१,६७,७२,६२,१०६, मह | मथ् ] ----महेइ. रा० ७६५ १३२.१४७,१६१,१६३. २०१३,१३३,१५६, मह मिह ] जी० ३६३११२ १५७,२५८,२७६ से २८१,२८५,२८६,२६१, मह । महत्] ओ० ३,७,८,१०,१४,४६,५२,६७ ३५१,५६४,६५७,७००,७१४,७१६,७६४. से ६९. रा० ३,४,१२,१३,१५,३२,३५ से ३६,५३,१२३,१४८,१८८,२०४,२३८,२४२ ८०२,८०८. जी० ३१३०३,३२६,४१६,४४५, ४४६,४५१,४५७,५१६,५४७,५६१ से २४६,२५१ से २५३,२६० से २६२,२६५, २६७,२६६,२७०,२७२,२७३,२८८,६८८, मल्ल मल्ल और १,२ ७६०,७६१,७७४. जी० ३१११०,११८,११९, मल्लइ मल्लवि] ओ० ५२ रा०६८७,६८८ २७३,२७६,२६८,३३८,३६१,३६४ से ३६६, मल्लइपुत्त मल्ल विपुत्र] रा० ६८७,६८८ ४००,४०१,४०४ से ४०८,४१०,४१२ रो ४१४, मल्लग [दे० मल्लक] जी० ३१५८७ ४२१ से ४२३,४२५ से ४२८,४३१,४३४, मल्लजुद्ध मल्लद्ध] ओ० ६३ ४३५,४३७,४३८,४४६ से ४४६,४५४,६४२, मल्लदाम माल्यदामन् । ओ० २,५५,६३ से ६५. ६४६,६५०,६७१ से ६७५, ६८२,६८३,६८५, रा०३२,५१,१३२,२३५,२५५,२६४,२६६३००, ६८६,६६२ से ६६८,७३७,७५६,७५८ ३०५,३१२,३५५,६८३,६६५. जी० ३१२८२, महइ महती स०७३२. जी० ३१७७,२६२, ३०२,३७२,३६७,४१६,४४७,४५२,४५७,४५६, ७२३ ४६१,४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२० महंत महत् । ओ०१४,४६. रा०६७१,६७९. मल्लपेच्छा [मल्लप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. __जी० ३११११,१२४,१२५ जी० ३३६१६ महंती [महती] रा० ७७ मल्लिया [मल्लिका]:10 ३०. जी. ३१२८३ महामह [महाग्रह | जी० ३१७०३,७२२,८०६, मल्लियागुम्म [मल्लिकागुल्म जी० ३.५८० ८२०,८३०,८३४,८३७,८३८१६,१३, मल्लियामंडवग मल्लिकामण्डपक] रा० १८४. १००० जी०३।२९६ महग्ध महाघ ओ०२०,५३. रा० २७८,२७६, मल्लियामंडवय मल्लिकामण्डपक । स० १०५ ६८०,६८१,६८३ से ६८५,६६२,६६६,७००, मसग | मशओ० ८६,११७. रा० ७६६. ७०२,७०८,७०६,७१६,७२६,८०२. जी० ३।६२४ जी० ३१४४४,४४५ मसार मार | रा० १३ महच्च | महार्च, महार्य ] रा०६६३,६६४.७१७, मसारगल्ल | मसार गल्ल रा० १०,१२,१८,६५. ७३२,७६६,७७६ २६५.२७६. जी० ३७ महज्जुइतराय [महाद्युतितक] रा० ७७२ मसिंहार | मो. हार ओ० ६६ महज्जुइय माद्युतिक ! ओ० ४७,७२,१७०. मसी [ मसी, मपीरा ० २५,२७०. जी० ३॥ २७८, रा० १८६,५७२. जी० ३।११६ ४३५,६०७ महजईय [ महाद्युतिक] रा० ६६६ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१० महज्जुतीय-महापउमरुवख महज्जुतीय [महायुतिक ] जी० ३।४६,३५०, महण [मथन] जी० ३३५६२ महता महत्] जी० ३१३०१,३०२,३२१ से ३२३ महति [महती| ओ०७१,७६. रा०५२,५६,६१, ६६३,६६४,७१७,७७६,७८७. जी. ३२१२, ११७,११३० महती महती। जी० ३१५८८ महत्तर महतर ओ० ७० महत्तरगत महत्तरकत्व ] ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३३३५०,५६३,६३७ महत्थ महार्थ] रा० २७८,२७६,६८०,६८१, ६८३,६८४,६९६,७००,७०२,७०८,७०६. जी०३१४४४,४४५ महद्धण [महाधन] ओ० १०५,१०६,१२८,१२६ महप्पभ [महाप्रभ] जी० ३।९८५ महम्फल [महाफल ओ० ५२. रा०६८७ महब्बल [महाबल] ओ० ४७,७१,७२,१७०. ०६१,६६६. जी० ३१५६५ महन्भूय [महाभूत] रा० ७५१ मयर [महत्तर रा० ८०४ महया मत् | रा०७,१३१,१३२,१४७ से १५१, १६७,२८० से २८३,६५७,६७१,६७६,६८३, ६८७ मे ६८६.६६२,७००,७१२,७१६,७३२, ७३७,७५५.८०३,८०५. जी. ३१३२४,३५०, ४४७,५६३,८४२,८४५,१०२५ महरिह [महाह] ओ० ६३. रा० ६६,७०,२७८, २७६,६८०,६८१,६८३,६८४,६६६,७००, ७०२,७०८,७०६. जी० ३१४०४४४५, ५८६ महल्ल मिहत्) औ० ४६ महल्लिया [ महती ] ओ० २४ महआसवतर महानवतर] जी० ३।१२६ महाउस्सासतराय [महोच्छ्वासतरक] रा०७७२ महाकदिय [महाऋन्दित ओ० ४६ महाकम्मतर [महाकर्मतर] जी० ३॥ १२६ महाकम्मतराय [महाकर्मतरक] रा० ७७२ महाकाय [महाकाय] ओ० ४६ महाकाल [महाकाल ] जी० ३११२,११७,२५२, ७२४ महाकिरियतर महाक्रियतर] जी० ३।१२६ महाकिरियतराय [महाक्रिपतरक] रा० ७७२ महागुम्मिय महागुल्मिक ] जी० ३११७१ महाघोस ] महाघोष ] जी० ३।२५० महाजस [महायश- ] ओ० १७० महाजाइगुम्म महाजातिगुल्म] जी० ३१५८० महाजुद्ध [महामु जी ० ३।६२७ महाणई महानदी ओ० ११७. रा० २७६. जी० ३।४४५,६३६, महाणगर महानगर] जी० २११४० महाणदी [महानदी रा० २७६. जी० ३।३००, ५६८,६३२,६६८,७४६,८००,८१४,६३७ महाणरग [महानरक] जी० ३११२,११७ महाणिरय [महानरक] जी० ३७७ महाणील [महानील ] ओ० ४७ महाणुभाग महानुभाग] आ० ४७,७२,१७०. रा० १८६,६६६. जी. ३३८६,९८८ से १६७, १११६ महाणुभाव [महानुभाब जी० ३.३५०,७२१ महातराय महत्तरक] रा० ७७२ महातव [महातपस् ] ओ० ८२ महापायइरुक्ख [महाजातकीरूक्ष जी० ३१८०८ महानई महानदी] ० ११५,११७. रा० २७६ महानीसासतराय [महानिःश्वासत रक] रा० ७७२ महानोहारतराय [ महानीहारत रक] रा० ७७२ महापउम महापम रा० २७६ महापउभद्दह महाप मद्रह] जी० ३१४४५ महापउमरुख ! महापद्मरूक्ष जी. ३१८२६ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महापट्टण-महिंदकुम महापट्टण महापत्तन | ओ० ४६ ।। महालय महत् ] ओ० २४,७१,७८. रा० ५२, महापरिग्गहया [महापरिग्रहता ओ० ७३ ६१,६६३,६६४,७६६,७७२,७७६,७८७. महापह महापथ] ओ० ५२,५५. रा० ६५४, जी० ३११२,७७,११७,७२३,११३० ६५५,६८७,७१२. जी. ३१५५४ महालयत्त महत्त्व जी० ३.१२७ महापाताल [महायताल] जी० ३१७२३,७२६ महालिजर [महालिञ्जर जी० ३।७२३ महापायाल [महापाताल] जी० ३।०२३ से ७२५, महालिया [महती] २० ७६६,७७२ ७२६ महावत्त [महावत ] ओ० ४६ महापुंडरीय [महापुण्डरीक] ओ० १२. महावाय महावात रा० १२३ जी० ३.११८,११६ महाविजय [महाविजय] जी० ३६६०१ महापुंडरीयद्दह [महापुण्डरीकद्रह] जी० ३६४४५ महापुरिसनिपडण [महापुरुषतिपतन ] महावित्त [महावृत] रा० २६२. जी० ३।४५७ महाविदेह महाविदेह आं० १४६. रा० ७६६. जी० ३.११७,६२७ महापोंडरीय [महापौण्डरीक] ओ० १५०. जी० २११४; ३१२२६ महाविमाण (महाविमान ओ० १६७,१६२. रा० २३,१६७,२७६,२८८.८११. रा० १२६ जी० ३।२५६,२६१ महावीर [महावीर] ओ० १६ से २५,२७,४५,४७ महाबल [महाबल] रा० १८६. जी० ३१८६, से ५३,५५,६२,६६ से ७१,७८ से ८३,११७. ३५०,७२१,१११६ रा०८ से १३,१५,५६,५८ से ६५,६८,७३, महाभद्दपडिमा [महाभद्रपतिमा | ओ० २४ ७४,७६,८१,२३,११३,११८,१२०,१२१, महाभरण [महाभरण] रा० ६६,७० ६६८,८१७ महमद महामति रा०७६५,७३६,७७० महावेयणतर [महावेदनतर] जी० ३।१२६ महभंति महामन्त्रिन् । ओ०१८. रा० ७५४, महासंगाम [महासंग्राम [ जी० ३.६२७ ७५६,७६२,७६४ महासत्यनिपडण । महाशस्त्रनिपतन] जी० ३१६२७ महामहतराय (महामहत्तरक] रा० ७७२ महासन्नाह [ महासन्नाह ] जी० ३१६२७ महामहिम [महाममिन् । जी० ३१६१५,९१७ महासमुद्द [महामुद्र ओ०५२. रा०६८७. महामुह महामुख रा० १४८,२८८. जी० ३१८४२,८४५ जी. ३३३२१,४५४ महासवतराय [महास्रवतरक स० ७७२ महामेह [महामेध ओ० ४,६३. रा० १७०,७०३. महासुक्क महाशुक्र] ओ० ५१,१९२. जी० २।६६, जी० ३२७३ १४८,१४६ ; ३११०३८,१०५१,१०६१,१०६६, महायस महायशस् ] ओ० ४७.७२. रा० १८६, १६८,१०८६,१००८ ६६६. जी० ३८६,३५०,७२१,१११६ महासोक्स [महासौख्य ] ओ० ४७,७२,१७०. महारंभ [महा:म्भ] जी० ३।१२६ रा० १८६,६६६ महारंभया [महारम्भता] ओ०७३ महाहारतराय | महाहारतरक] रा० ७७२ महारव [महारव ओ०४६ | महाहिमवंत महाशिमवत् ] रा० २७६. महारुक्ख [महारूक्ष डी० ३.१७१ जी० ३।२८५,४४५,७६५ महारोरुय [महारोरुक जी० ३।१२,११७ महिंद महेन्द्र ] ओ०१४, रा०६७१,६७६ महासत महत] रा० ५६० महिंदकुंभ [महेन्द्रकुम्भ] रा० १३१, १४७. Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ महिंदज्झय-माणणिज्ज जी० ३।३०१ महेसक्ख महेशाख्य | जी० ३।६६,३५०,७२१, महिंदज्झय महेन्द्रध्वज] र: ० ५२,५६,२३१ से २३३,२३६,२४७ से २४६,३११,३१४,३४६, महोरग [मोरग ओ० १२०,१६२. २०१४१, ३५४. जी. ३।३९३ ले ३६५,४०१,४०६. १७३,१६२,६९८,७५२,७७१,७८६. ४१०,४१२.४७६,४७६,५१४,५१६,६००,९०१ जी०१:१०५,१२१, ३१२६६,२८५,३१८,६२५ महिच्छ नहेच्छ] ओ०४: महोरगकंठ महोर गकण्ठ ] रा० १५.५,२५८. महिडियम.द्धिक] ओ० ४ से २.१,७२,१७०. १० १८६ जी० ३२५३,२५७,६५,७९५ महोरगकंठगम गकाण्डक। जी० ३.४१६ ८०८,८२६,८५.७,८६०,८६३,८६६,६६६.८७३, महोरगी महोगी जी० २१८ ८७५,५७,६२१,१०२६ मा [मा ओ० ११७. रा ६६५ माहिडियतरायमालिकारक। रा०७२ माइय दे! ओ० ५.८,१०. रा० १४५. जी. महिडीयम"! रा०६६६. जी० ३८६, ३.२६८२७४ ३५.६,६३७,६६४,७००,७२१,७२४,७३८, माइय मात्रिक ओ० १६. जी० ३।५६६,५६७ ७४१,७४३,७४६,७६०,३६३,७६५,८१६, माइरक्खिया मातृरक्षिता ओ० ६२ ८५४,८५५,६२३,६८८ से ६६७,१०२१, माइल्लयामायिता । ओ०७३ १११६ माउ [मातृ] ओ० १४. रा ० ६७१ महिम [ महिमन् । जी० ३।६१६ मागथ मागध] जी० ३:४४५ महिय | मथितारा० ३८,१६०,२२२,२५६. मागह [मागध] आ० २,१११ से ११३. रा० २७६ ० ३१२१२,३३३,३-१,८६४ मागहमेच्छा [मागधप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० महिय माहित आ० २,५५. रा०:२.२८१. जी० ३१३७२,४४७ मागहय |मागका ० १३७.१३८ महिया मका, जी० ११६५, ३॥६२६ मागहिया [मागधिका | ओ० १४६. रा० ८०६ महिवइवह । महीपतिपथ | t० १ माघवती मायवती जी० २६४ महिस महिप० १,१४,१६,५१.१०१,१२४, माइंबिय मामित्रक) ओ०१८,५२,६३. रा० १४१. रः० २७,६७१,७७४,८६६. मी० ३१८४, ६८७,६८८,७०४,७५४.७५६,७६२,७६४. २८०,५६६,६१८,१०३८ जी० ३.६०६ महिसी महिपी जी० ३३६१६ माण मान | ओ०१५,२८,३७,४४,७१,६१,११७, मह मदु ओ० ६२,६३. जी. ३५८६,५६२ ११६,१४३,१६१,१६३,१६८. रा०६७१ से महुयर [मधुकर) ओ० ५७ ६७३,७४८ से ७५०,७७३,७६६,८०१,८१६. महुयरी मधुकरी । ओ० ६. जी० ३१२७५ जी० ३१२८,४३८,५६८,७६५,८४१ महुयासव मध्वाश्रक ओ० २४ माणकसाइ [मानरूपायिन् | जी० ६१४८,१४६, महरमपुर अ.०६,७१. ० १३,१४,१७,१८, १५२,१५५ २०,६१,७६,१७३. जी० २५,५०, ३१२२, माणकसाय मानकषाय ! जी०१।१६ ११८,११६,२७५,२८६,५६७,६३६,८५७,८६३ माणणिज्ज [ माननीय ] रा० २४०,२७६. जी० महेला [महेला जी० ३३५६७ ३१४०२,४४२ Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माणवक-माहण माणवक [मानवक] जी० ३३४०२,४०४,५१६ मारणंतिय मारणान्तिक ओ० ७७. श्री १०८६ मानवग | मानवक रा० २४४,३५१. जी० मारणं तियसमुग्घात मारणान्तिक.समुद्घात | जी० ३१४०३,४०६,१०२५ मानवय मानव स० २३६,२७६.३५१. जी० मारणतियसमुग्धाय मारणान्तिार.मुद्धात जी० ३१४०१,४४२,५१६ ११२३,५३,६०,८२,१०१, ३।१०८,१५८ माणविवेग [मानविने] ओ० ७१ मारापविभत्ति नाक वि..क्ति रा. १४ माणस मानस ओ०७४. रा० १५ मारि मारि] ओ० १४. ० ६४१ माणसिय [ मानसिक ] ० ६६ मालणीय मालनीय 02:१८,२१,३२५२६. माणुस मानुष] ओ० १६५.१३. रा० ७५१, ज० ३।२८८,३७२ ७५३. जी० ३।८३८।२ मालय (दे० माना जी० ३।५६४ माणुसनग मानु नग१० ३ ८३८ २,३२ मालवंत मारूपयत् जी० ३१५७७६६,६: माणुसभाव [मानुभाव ओ० ७४।३ मालवंतद्दहालयवद्रः । ३।६६७ माणसुत्तर मानुत्तर जी०६१३१,८३३. मालवंतपरियाग माल्यय पर्याय २७६ ८३६ ने ८४२८४५. जी० ३.४४: माणुस्स [मानुष्य ] ०७४।२. रा०७५१,७५३. मालवंतपरियाय | मान्यवरपर्याय जी. ३१७६५ _जी० ३:११६ मालामाला] अं० ४७,५,६३,६६,७२. जी. माणुस्सत [मानुप्यक १० ७५१ ३३५६१ माणुस्सय [मानुष्यक ] ओ० १५. रा०६८५,७१०, मालागार [मालाकार] रा० १२ ७५३,७७४,७६१ मालिघरग [मालिगृहक | T० १८२१८३. जी० मातंग मातङ्ग ओ०२६. जी० ३१११८ ३१२६४ माता मातृ । जी० ३१६११ मालिनीय/मालिनीय ] जी० ३३०० माता मात्रा | जी० ३१६६८,८८२ मालुयामंडवग | मालुकामण्डपक रा० १८४. जी. माय मा]--माएज्जा ओ०१६५११५ ३२२६६ मायंग मातङ्ग | जी० ३६११६ मालुयामंडवथ मालुकामण्डपक] रा० १८५ माया मातृ] ओ०७१,१९२. जी० ३१६३ ११२ मास माग ओ० २८,२६.११५,१४३. ग. माया माया] ओ० २८,३७,४४,७१,६१,११५, ०१. जी० ११८६, ३१११६,१७६,१७८, ११६,१६१,१६३,१६८. रा०६७१,७६६. १८०,१८२,६३०,८४१,८४४,८४७,१०८०; जी० ३६१२८,५६८,७६५,८४१ ४.४,१४ मायाकसाइ मायाकपायिन् ] जी० ६.१४८,१४६, मास माप) जी० ३१८१६ १५२,१५५ मासपरियाय मालपर्याय | ओ० २३ मायाकसाय | मायाकाय जी० १११६ मासल | माल जी० ३१८१६,८६०,६५६ मायामोस [मायामृणा] ओ०७१,११७.१६१,१६३ ।। मासिय [ मालिक ओ. ३२ मायामोसविवेग [ मायापाविवेक | ओ०७१ मासिया माति की ] ओ० २४,१४०,१५४ मायाविवेग | मायाविवेग | ओ०७१ माहण माहन ] ओ० ५२,७६ से ८१. स० ६६७, मार [मार] ग० २४. जी० ३।२७७ ६७१,६८७,६८८,७१८,७१९,७८७,७८६ Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१४ माणपरिष्वाय [मानपरिव्राजक ] ओ० १६ माणपरिसा [मान परिषद् ] रा० ७६७ माप [ माहात्म्य ] ओ० ७१. रा० ६१ माहिर [माहेन्द्र ] ओ० ५१,१६२. जी० २१६६, १४८, १४९, ३१०३८, १०४७, १०५८, १०६६, १०६८, १०७६, १०८८, १०६४, ११०२,११११ मिउ [ मृदु ] रा० ३७, १३३. जी० ३१३०३,३११, ५६२, ५६६, ५६८, ७६५, ८४१ मिउमद्दव संपण्ण [ मृदुमाव सम्पन्न ] ओ० ६१ मिउमद्दवसंपण्णया [ मृदुमादेवसम्पन्नता ] ओ० ११६ मिजा [ मज्जा ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२, ७८६ मिग [ मृग ] ओ० ५१. रा० २४. जी० ३१०३८ मिराज्य [ मृगध्वज ] रा० १६२. जी० ३।३३५ figar [ मृगलुब्धक ] ओ०६४ मिगलोम [ मृगलोम ] जी० ३२५१५ भिगवण [ मृगवन ] रा० ६७० मिच्छ [ म्लेच्छ ] ओ० १९५ १६ मिच्छत्त [ मिथ्याea ] ओ० ४६ मिच्छत्त किरिया [ मिथ्यात्वक्रिया] जी० ३१२१०, २११ मिच्छत्ताभिणिवेस [ मिध्यात्वाभिनिवेश] ओ० १५५,१६० मिच्छदिट्टि [ मिथ्यादृष्टि ] ओ० १६० रा० ६२. जी० ३।१०३,१५१ मिच्छा [ मिथ्या ] जी० ३।२११ मिच्छावंसणसल्ल [ मिथ्यादर्शनशल्य ओ० ७१, ११७,१६१, १६३. रा० ७६६ मिच्छादंसणसल्लविवेग [ मिथ्यादर्शनशल्यविवेग ] ओ० ७१ fearfief ( मिथ्यादृष्टि ] जी० ११२८,८६ ३।११०५, ११०६; ६।६७,६९ मिणालिया [ मृणालिका ] जी० ३१२८२ मित [मित ] जी० ३।५१६,५६७ मित्त [ मित्र ] ओ० १५० २१० ७५१,७७४, माहणपरिव्वाय मुत्ता ८०२,८११. जी० ३१६१३,६३१ मित्त [ मात्र ] रा० २५४,८०६,८१० freera [ मित्रपक्ष ] जी० ३१४४८ मिथुन [ मिथुन ] जी० ३१६३६ मिघुण ( मिथुन ] जी० ३।३५५ मिय [ मृग ] रा० ६७१,७०३,७१८ मिय [मित ] औ०१६ मियगंध [ मृगगन्ध ] जी० ३१६३१ मिरावण [ मृगवन ] २० ७०६,७११,७१३,७१६, ७२६ मिरिय [ मरीचि ] रा० १३३. जी० ३१२६१,३०३ मिरीहकवच [ मरीचिकवच ] जी० ३।३७२ मिरीय [ मरीचि ] जी० ३१२६६, २६६, २७७ √ मिल ! मिल्] - मिलति जी० ३१४४५ / मिलाय [ मिल् ] - मिलायंति. रा० २७६ मिलाइत्ता [ मिलित्वा ] १० २७६ मिलायमाण [ म्लायत् ] रा० ७८२ मिलित्ता [ मिलित्वा ] जी० ३१४४५ मिलेच्छ [ म्लेच्छ ] जी० ३।२२६ मिसिमित [ दे० ] ओ० ६३ मिसिमित [ दे० ] रा० १७,१८, ६६,७० मिस्स [ मिश्र ] जी० ११७११२ मिहूण [ मिथुन ] ओ० ६. जी० ३१२७५, २८६ मिger [ मिथुनक] रा० १७४. जी० ३२३१८ fagणय [मिथुनक] जी० ३।११८,११६ मोरिय [ मरीचि ] ओ० १२ मीसजाय [मिश्रजात] ओ० १३४ मोस [ मिश्रक] ओ० ४६ मोसिय [ मिश्रित ] ओ० २८ मुइंग [ मृदङ्ग ] ओ० ६७,६८. १०७, १३,२४,७७, ६५७,७१०,७७४. जी० ३३२७७,३५०, ४४६, ५६३,५८८,८४२.८४५, १०२५ मुइत्ता [ मुक्त्वा ] रा० २८८ मुइय [ मुदित ] ओ० १४. रा० ६७१ मुत्ता [ मुक्त्वा ] जी० ३।४५४ Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स०५७ मुंच-मुय मुंच मुच्] -मुच्चर. ओ१७७. मुच्चंति. ओ० मुणिपरिसा मुनिपरिषद् ] ओ० ७१. रा० ६१ ७२. जी० १११३३. -- मुच्चंती. ओ०७४।४. मुणिय [ज्ञात्वा] ओ० २३ मुच्चिहिति, ओ० १६६. ---मुच्चिहिति. ओ० मुणतथ्व [ज्ञातव्य ] जी० ३३६३४ १५४. रा० ६१६. मुणेयव्व ज्ञातव्य ] जी० ३८३८१११,२२ मुंड [मुण्ड] ओ० २३,५२,७६,७८,१२०. रा० मुत्त । मुक्त] ओ० १६,२१.४६,५४. रा० ८,२६२. ६८७,६८६,६६५,७३२,७३७,८१२ जी० ३।४५७ मुंडभाव [ मुण्डभाव ओ० १५४,१६५,१६६. रा० मुत्ता | मुक्ता] रा० २०. जी० ३।२८८ मुत्ताजाल [मुक्त, जाल] 10१३२,१५६,१६१. मुंडमाल [ मुण्डमाल ] जी० ३१५६४ जी० ३।२६५,३०२,३३२ मुंडि [मुण्डिन् ! ओ० ६४ मुत्तादाम [मुक्तादामन् ] रा० ४०. जी. ३.३१३, मुक्क [मुक्त] ओ० २,२७,५५. रा० १२.३२, २८१. जी० ३।१२६६,३७२,४४७,५८०, मुत्तालय [ मुक्तालय] ओ० १६३ ५६१,५६७ मुत्तालि मुक्तावलि ] ओ० १०८,१३१. र० २८५. जी० ३४५१,६३६ मुक्कतोय [ मुक्ततोय] रा० ८१३ मुत्तावलिपविभत्ति [ मुक्तावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ मुखछिण्णग [मुग्वछिन्नक] ओ० ६० मुत्ति [ मुक्ति] ओ० २५,४३,१६३. रा० ६८६, मुगुंद [ मुकुन्द] रा० ७७ ८१४ मुगुंदमह [मुकुन्दमह] जी० ३।६१५ मुत्तिमग [ मुक्तिमार्ग ओ०७२ मुगुंसिया [दे० ] जी० २६ मुत्तिसुह { मुक्तिसुख ] ओ० १६५।१४ मुच्छिज्जेत [मूच्छ्यमान] रा०७७ मुद्दा [ मुद्रा] ओ० ४७. रा० २८५ मुच्छिता [मूच्छिता जी० ३।२८५ मुद्दिया [ मुद्रिका ] ओ० ६३,१०८,१३१. जी० मुच्छिय मूच्छित] रा० १५,७५३ ३१४५१ मुच्छिया [ मूच्छिता] रा० १७३ मुद्दियामंडवग [मृद्वीकामण्डपक ] रा० १८४. जी. मुज्झ मुह.]मुज्झिहिति. ओ० १५०. रा० ३१२६६ ८११ मुद्दियामंडवय [मृद्वीकामण्डपक] रा० १८५ मुट्टि [ मुष्टि] रा० १३३. जी० ३१३०३ मुद्दियासार [मृद्वी कासार] जी० ३६५८६,८६० मुट्ठिजुद्ध [मुष्टियुद्ध] ओ० १४६. रा० ८०६ मुद्ध { मूर्धन् } ओ० १६,२१,५४. जी० ३१५६६ मुट्ठिय [मौष्टिक, मुष्टिया] ओ० १,२. रा० १२, मुद्धज [ मूर्धज] जी० ३१४१५ ७५८,७५६. जी० ३३११८ मुद्धय [मूर्धज] रा० २५४ मुट्ठियपेच्छा मौष्टिक प्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. मुद्धाण [मूर्धन् ] रा०८,२६२ जी० ३१६१६ मुद्धाहिसित्त [ मूर्धाभिषिक्त ] ओ० १४. रा०६७१ मुणाल मृणाल ओ० १६४. रा० १७४. जी. मुम्मुर [ मुर्मुर) जी० ११७८; ३८५ ३१११०,११६,२८६ मुय { मृत] रा० ७६२,७६३ मुणालिया मृणालिका] ओ० १६,४७. रा० २६. मुय {मुच्]-मुयइ. रा० २८८. मुयति. जी० जी० ३१५९६ ३।४५४ Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१६ मुयंग [ मृदङ्ग ] जी० ३७८ मुयंत [ मुञ्चत् ] ओ० ७,८,१०. ० ३ २७६ मुरंडी' [ मुरण्डी] रा० ८०४ मुरय [ मुरज ] ओ० ६७. १० १३७७,६५७ मुरव [ मुरज ] जी० ३७८, ४४६ मुरवि [ दे० ] ० १०८,१३१. रा० २८५ मुसंढी | दे० ] जी० ११७३ मुसल [ मुसल ] ओ० १६. जी० ३१११०, ५६६ मुसावाय [ मृषावाद] ओ० ७१,७६ ७७,११७, १२१,१६१,१६३. रा० ६६३, ७१७,७६६ मुसावायवेरमण [ मृषावादविरमण ] ओ० ७१ मुसुंढि [ दे० ] ओ० १. जी० ३।११० मुहमंगलिय [ मुखमाङ्गलिक] ओ० ६८ मंडव | सुखमण्डप ] रा० २११ से २१५,२६५ से २६६.३२६ से ३३०,३३३ से ३३७. जी० ३३७४ से ३७६,४१२, ४२१, ४६० से ४६४, ४६१ से ४६५, ४६६ से ५०२,८८७ से ८८ मुहमूल | मुखमूल | जी० ३।१२३, ७२६ मुहुत्त | मुहूर्त्त ] ० २८, १४५. रा० ७५३,८०५ मुहत्तंतर [ मुहूर्त्तान्तिर ] रा० ७६५ मुहत्ताग [ मुहूर्त्त ] रा० ७५१,७५३ मूढ | मुढ | रा० ७३२,७३७,७६५ मूढतराय | मुहतरक | रा० ७६५ मूल | मूल ] ओ० ९४,१३५. रा० १२७, २०४, २०५, २०६,२२८. जी० १।७१, ७२ ३ २६१, ३५२,३६४,३७२, ३८७, ६३२,६४३,६५४, ६६१,६७२,६७८, ६७६, ६८६, ७२३, ७२६, ७३६,७६२,८३६,८७८,८८२,१००७ मूलमंत | मूलवत् | ओ० ५८, १० जी० ३१२७४, ३८६,५८१ मूलय | मूलक | जी० ११७३ मूलारिह | मुलार्ह ] ओ० ३६ मूलाहार | मूलाहार ] ओ० ६४ मूसग [ मूषक | जी० ३८४ १. मरुण्डी] [ ओ० ७०] मुयंग- मोयम मुसिया | मुषिका ] जी० शह मेहणी [मेदिनी | जी० ३१५६७ मुह | मेषमुख | जी० ३१२१६ मेघ | मेव | रा० १३, १४ मेदि | मेढी' रा० ६७५ मेदिभूय | मेढीभूत | रा० ६७५ त्त [ मात्र | ओ० ३३, १२२. रा० ६, १२,४०, २०५ से २०८, २२५, २७६ मत्तय | मात्रक ! जी० ३०४४० hura [ मेधाविन् | रा० १२,७५८, ७५६ मेरग | मेरक | जी० ३।५८६ मेर [क] जी० ३१८६० मेरु | मे | जी० ३१८३८।१०, ११ मेरुयालवण | मेस्तालवन | जी० २५०१ मेलिय [मेलित ] जी० ३:५६२ मेहमुह | मेवमुख ] जी० ३१२१६ मेहला | मेखला ] जी० ३.५६३ मेहस्सर [ मेघस्वर ] रा० १३५. जी० ३।३०५ महावि | मेधाविन् ] ओ० ६३. जी० ३।११८ मेण | मैथुन ] ओ० ७१,७६,७७,११७,१२१, १६१,१६३ वत्तिय [ मैथुनप्रत्यय ] जी० ३११०२५ वेरमण | मैथुनविरमण ] ओ० ७१ graण्णा [ मैथुनसंज्ञा ] जी० १२० : ३०१२८ मक्ख | मोक्ष ] ओ० ७१, १२०, १६२ मोग्गर [ मुद्गर ] जी० ३३११० मोग्रम् [ मुद्गरगुल्म ] जी० ३।५८० भोणचरय [ मौनचरक ] ओ० ३४ मोत्तिय [ मौक्तिक ] ओ० २३. रा० ६६५. जी० ३१६०८ मोय [ मुच् ] मोएति. रा० ७३१ मोयग [ मोचक | ओ० २१,५४. ० ८,२६२. जी० ३।४५६ १. आप्टे, पृष्ठ १२८६-- मेठिः, मेढी, मेथि: । Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोयपडिमा-रत्तबंधुजीव मोयपडिमा ['मोय' प्रतिमा ओ० २४ रखाव [ रक्षापय]- रक्खावे मि. रा० ७५४ मोयय [मोचक ओ०१६ रक्खोवग [ रक्षोपग] रा० ६६४ मोर [मयूर] रा ० २६. जी० ३।२७६ रगसिगा [ रगसिका] जी ० ३१५८८ मोल्ल [मूल्य ] ओ० १०५,१०६ रचिय [रचित] जी० ३१३०३ मोसमणजोग ! मृपामनोयोग] ओ० १७८ रज्ज { राज्य ] ओ० १४,२३. रा० ६७१,६७४, मोसवइजोग [मृपावायोग] ओ० १७६ ६७६.७६०,७६१ मोसाणुबंधि [मृषानुवन्धिन् ! ओ० ४३ रज्ज [र]----रजिहिति. ओ० १५० मोह [मोह ] ओ० ४६. १० ७७१ रज्जधुराचितय [राज्यधूश्चिन्तक] रा० ६७५ मोह (मोहय् ] ... मोहंति. जो० ३।२१७ रज्जसिरी [राज्यश्री] रा० ७६१ ___-मोहे ति. रा० १८५ रज्जु ! रज्जु रा० १३५. जी० ३.३०५ मोहणधर [मोहनगृह] जी० ३१५६४ रटु राष्ट्र ओ० २३. रा०६७४,७९०,७६१ मोहणघरग [मोहनगृहक] रा० १८२,१८३. रण [अरण्य] ओ० २८ __जी० ३।२६४ रतण रत्न जी० ३१३४६ मोहणिज्ज मोहनीय] 3० ८५.८६ रतणसंचया रत्नसञ्चया] जी० ३९२२ मोहणीय (मोहनीय] ओ० ४४ रतणुच्चया (रलोच्चया] भी० ३१६२२ मोहरिय [मौखरिक] ओ० ६५ रति [रति ] जी० ३।११८,११६,५६७ रतिकर [रतिकर] रा० ५६. जी० ३१६१८ से य [च] ओ० ३२. रा० ७. जी० ११२ ६२२ यज्जुब्वेद [यजुर्वेद ] ओ०६७ रतिय [रतिद] जी० ३१५६६,५६७ या [च] रा० ७०५ रतिय [रसिक ] जी० ३८४२,८४५ रत्त ( रक्त] ओ० ४७,५१,६६,७१,१०७,१२०, रह [रति] ओ० ४६. रा० १५,८०६,८१० १३०,१६२. रा० २७,७६,१३३,१७३,२२८, ६६४,६६८,७५२,७७७,७७८,७८८,७८६. रहय [रचित ] ओ० १,२१,४६,५४.६४,१३४, जी० ३१२८०,२८५,३०३,३८७,५६२,५६५ से १५२. रा०८,३२,६९,७६,१३३.७१४. ५६७,६७२ जी० ३१३७२,५६१,५६६,५६७ रइय [रतिद] ओ० १६. जी० ३१५९६,५६७ रत्तंसुय [रक्तांशुक] रा० ३७,२४५. जी० रइय [रतिक ] ओ० ६३,६५ ३।३११,४०७ रइल [रजस्वत् ] जी० ३१७२१ रत्तकणवीर [ रक्तकणवीर] रा० २७. रउग्घात [रजउद्घात] जी० ३१६२६ जी० ३१२८० रंगत [ रङ्गत् ] ओ०४६ रत्तचंदण [ रक्तचन्दन] ओ० २,५५. रा० ३२, रक्खंत [रक्षत् ] ओ० ६४ २८१. जी० ३।३७२,४४७ रक्खस [राक्षस ] ओ० ४६,१२०,१६२. रततल रक्ततल] ओ० १६,४७. जी० ३१५९६ रा०६९८,७५२.७८६ रत्तपाणि [क्तपाणि] रा० ६६४, जी० ३।५६२ रक्खसमहोरगगंधश्वमंडलपविभत्ति [राक्षसमहोग- रत्तबंधजीव रक्तबन्धजीव रा० २७ गन्धर्वमण्डलप्रविभक्ति] रा०६० जी० ३१२८० Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१८ रत्तरयण-रयणामय रत्तरयण [रक्तरत्न ] ओ० २३ रयण [रत्न ओ० २३,४७,४६,६३,६४. रत्तबई [ रक्तवती] रा० २७६ रा० १०,१२,१७,१८,३२,३७,४०.५१,६५, रत्तवती [ रक्तवती] जी० ३।४४५ ६६,७०,१३०,१३२,१३७,१६०,१६५,२२८, रत्ता [ रक्ता] रा० २७६. जी० ३१४४५ २५६,२७६,२८१,२८५,२६२,६६५,७७४. रत्तासोग रक्ताशोक] ओ० २२. रा०२७,७७७, जी० ३७,२४६० से ६३,२६५,३००,३०२. ७७८,७८८. जी० ३१२८० ३०७,३११,३३३,३४६,३५७,३७२,३८७, रत्ति [रात्रि] रा० ४५ ४१७,४४५,४४७,४५७,५८७,५८६,५६०, रत्तुप्पल [रक्तोत्पल] ओ० १६. रा० २७. ५६३,६७२,७७५,६३६,६३७ जी० ३।२८०,५६६,५६७ रयणकंड [रत्नकाण्ड | जी० ३१८,१५,२० रत्था [ रथ्या] ओ० ५५. रा०२८१. रयणकरंडग [रत्नकरण्डक] ओ० २६. २० १५४, जी० ३४४७ २५८,२७६,७५० से ७५३. जी० ३।३२७, रथ [रथ ] जी० ३१८६ ४१६,४४५ रद्ध [राद्ध] जी० ३१५६२ रयणकरंडय [ रत्नकरण्डक ] रा० १५४. रम रिम् ] --- रमंति. ग०१८५. जी. ३२१७. जी० ३१३२७ ----रमिज्जइ. रा० ७८३ रयणकरंडा [रत्नकरण्डक] जी० ३।३५५ रमणिज्ज [रमणीय] ओ० १६,४७,६३,१९२. रयणजाल [रत्नजाल ] रा० १६१. जी० ३।२६५ रयणप्पभा [ रत्नप्रभा] रा० १२४. जी० १९२ रा० २४,३३,३५,६५,६६,१२४,१७१,१८६ २११००,१२७,१३५,१३८,१४८,१४६, ३१३, से १८८,२०३,२०४,२१७,२३७,२३८,२६१, ५ से १,१२ से १९,२२ से २६,२६,३०,३३, ७८१ से ७०७. जी० ३.२१८,२५७,२७७, ३७ से ३६,४२,४४,४५,४७ से ५७,५६ से ३०६,३१०,३३६,३५६ से ३६१,३६४,३६५, ३६८,३६६,३६६,४००,४२२,४२७,५८०, ६५,७३,७६ से ७८,८०,८१,८३ से १८,१०३ से ११०,११२,११६,१२० से १२४,१२६ से ५६६,५६७,६२३,६३३,६३४,६४५,६४६, १२८,२३२,२५७,१००३,१०३८,१०३६, ६४८,६४६,६५६,६६२,६६३,६७०,६७१, ६७३,६६०,६६१,७३७,७५५ से ७५८,७६८, ___ रयणप्पहा [रत्नप्रभा | ओ० १८६,१६२. ८८३,८८४,८६०,६०५,६०६,६१२,६१३, जी० १११०१:२११३५ १००३,१०३८ रयणभार [रत्नभार] रा०७७४ रम्म [रम्य ] ० ४,६. रा० १७०,१७३,६७०, रयणभारय [ रत्नभारक] रा० ७७४ ७०३,८०४. जी० २२७३,२७५,२८५,५६१ रयणमय रिलमय जी० ३१७४७ रम्मगवास [म्यक वर्ष ] रा० २७६. जी० २।१३, रयणा [रला] जी० ३५६७ से ७२,६२२ ३२,५६,७०,७२,६६,१४७,१४६; ३१२२८, रयणागर [रत्नाकर] रा० ७७४ रयणामय [रत्नमय] ० १२. रा० २१,२३,३८, रम्मयवास [रम्पकवर्ष] जी० ३।७६५ १२४,१२५,१२७,१२८,१३१,१३४,१४१, रय रजस् ] ओ० २३. रा०६,१२,२५१. १४५,१४८,१५१,१५२,१५५ से १५७,१६०, जी० ३।४४७,५६८ १६१,१८० से १८५,१६२,१९७,२२२,२५३, रय रय] लो० ४६ २५६,२५७,२७२. जी० ३।२६२,२६३,२६६, Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलि-राइंदिय ७१६ २६८,२६६,२८९,२६१ से २९६,३०१,३०४, ३१०,३१२,३१८,३१६,३२४,३२५,३२८ से ३३०,३३३,३३४,३४७,३४८,३८१,४१४, ४१८,४३७,६७५,७५०,७५३,८६३,८६६, ६०७,६१८,१०३८,१०३६,१०८१ रयणावलि [रत्नावलि ओ० १०८,१३१. रा०२८५. जी०३,४५१ रयणावलिपविभत्ति [ रत्नावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ रयणि (रलि] भो० १६५६ रयणिकर [रजनिकर | जी०३१५६७ रणियर रजनिकर औ० १५. रा० ६७२. जी० ३१८३८।१२,१३ रयणी [रजनी] ओ० २२. रा० ७२३,७७७,७७८, ७५८ रयणी रत्नी] ओ० १८७,१९५७. जी० १११३५, ३१११,७८८,१०५७ से १०८६ रयत रजत] जी० ३१७,३००,३३३,४१७ रयत्ताण [रजस्त्राण] रा० ३७,२४५. जी० ३।३११,४०७ रयय [रजत ] ओ० १४,१४१. रा० १०,१२,१८, ६५,१३०,१६०,१६५,१७४,२२८,२५५, २५६,२७६,६७१,७६६. जी. ३१२८६,३००, ३८७,४१६,६७२,६७६,७४७ रयय [पाय] [रजतपात्र] ओ० १०५,१२८ रयय [बंधण] [रजत बन्धन ] ओ० १०६,१२६ रययामय [ रजतमय] रा० ३७,१३०,१३२,१३५, १५३,१७४,१६०,२३६,२४०,२४५,२८८, २६१. जी० ३।२६४,२८६,३००,३०२,३०५, ३११,३२४,३२६,३६८,४०२,४०७,४५४, ४५७,६३६ रल्लग [रल्लक जी० ३१५६५ रव (रव ओ० ४६,५२,६७,६८. रा० ७,१३, १५,५५,५६,५८,२८०,२६१,६५७,६८७, ६८८. जी. ३१३५०,४४६,४५७,५५७,५६३, ८४२,८४५,१०२५ रवंत [रवत् ] ओ० ४६ रवभूय [ रवभूत] अ.० ५२. रा० ६८७,६८८ रवि [रवि] ओ० १६. जी. ३१५९६,५६७,८०६, ८३८३ रस [रस] ओ० १५,१६१,१६३,१६६,१७०. रा० १७३,१६६,६७२.६८५,७१०,७५१, ७७४. जी० ११५,३८,५८,७३,७८.८१; ३३५८,८७,२७१,२८५,२८६,३८७,५८६,५६२, ६०१,६०२,७२१,७२७,८६०.८६६,८७२, ८७८,९७२,६८०,६८२,१०८१,१११८,११२४ रसओ [रस्तस् ] जी० ११५० रसतो [रसतस् ] जी० ३२२ रसपरिच्चाय रसपरित्याग] ओ० ३१.३५ रसमंत [रसवत् ] जी० ११३३ ।। रसविगइ [रसविकृति ओ० ६३ रसिय [रसित] रा० १३,१४ रसोदय [रसोदक जी०११६५ रह रथ ] ओ० १,७,८,१०,५२,५५ से ५७,६२, ६४ से ६६,१००,१२३,१७०. रा० १५१, १७३,६८३,६८५,६८७ से ६८६,६६२,७०८, ७१०,७१६,७२७ से ७२६,७३१,७३२. जी० ३१२६०,२७६,२८५,३२३,५८१,५८५, ५६७,६१७ रहघणघणाइय [रथघनघनायित] रा० २८१. __ जी० ३।४४७ रहजोहि [रथयोधिन् ] ओ० १४८,१४६. रा० ५०६,८१० रहवाय [ रयवात] रा० ७२८ रहस्स | रहस्य] ओ०६७. रा० ६७५,७६३ रहित | रहित ] जी० ३।११२१ से ११२३ रहिय [रहित ] ओ० १. जी० ३१५६७ रहोकम्म [रह कमन् ] रा०८१५ राइ राजि] ओ०१६. रा०७५४ से ७५७. जी० ३४५६७ राइंदिय | त्रिदिव] ओ० २४,१४३. रा०८०१. जी० ११७६,८८, ३१६३०,४४,१३, ५१६,१३, २८,२६ Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२० राइण्ण-रिसि राइण्ण राजन्य ] ओ० २३,५२. रा०६८७,६८८। राषववहार [राजव्यवहार रा०६८०,६६८ राइय [गत्रिक] ओ० २६ रायहाणी [राजधानी] रा० २८२,६६७. जी० [एगराइय (एकरात्रिक) पंचराइय (पंचरात्रिक) ३१३५०.३५१,३५४,३५५,३५७,३५८,३६०, राईभोयण रात्रिभोजन ओ०७६ ४३६,४४२,४४५,४४७,४४८,५५५,५५५, राग [राग] ओ० ३७,४६,१२,५५,७४१६,१०७, ५५७,५६३,५६७ से ५६६,६३७,६३८,६५६, १३०,१६८. रा० १६.१३३,२८१,७७१. जी० ६६०,६६५,६६६,७०१,७१०,७९२,७१३, ३।३०३,४४७,५६५ ७२१,७३८,७३६,७४१,७४४,७४७,७५१ से रातिदिय रात्रिंदिव! जी० ३१२१८ ७५३,७६०,७६१,७६३ से ७८०,८००,८१४, राम [लाम] ओ० ६६. जी० ३.११७ १०२,६१६ से १२२,६४०,६४५ रामरक्खिया [ रामरक्षिता] जी० ३।११६ रायारिह [राजाह] रा०६८०,६८१,६८३,६५४, रामा रामा] जी० ३।६१६ ६६६,७००,५०२,७०८,७०६ राय [राजन् ] ओ०१४ से १६,१८,२०,२१,५२ रासि [राशि] ओ० १६५११५. ० २७,२६,३१. से ५६,६२ से ६८.७०,७१,८०,६६. रा०५, जी० ३१२८०,२८२,२८४,८१६,८३६ ६,१५४,६ १, ६७५,६७६ से ६८१,६८३ से राहु [राहु] ओ० ५० ६८५,६८७,६८८,६६८ से ७००,७०२ से राहुविमाण [राहुविमान ] जी० ३१८३८११७ रिउवेद ऋगवेद ओ०१७ से ७२६,७२८ से ७३४,७३६ से ७३९,७४७ ।। रिगिसिया [दे० रिङ्गिसिका] रा० ७७ से ७८१,७८८ से ७६१,७६३ से ७६६. जी. रिक्ख [ऋक्ष ] ओ० ६३. जी० ३।८३८१२६ ३:१२६,३२७,५६२,६०२,६०६,६३१,७४७, । रिट रिष्ट ] रा० १०,१२,१८,६५,१६५,२७६. जी० ३।७,८,१५,२४,३०,६२,३४६,४४५ रायंगण | राजाङ्गण] रा० १२,१७३. जी० रिटुमय [रिष्टमय ] जी० ३,४३५ ३१२८५ रिद्वय [रिष्टक ] ओ० १३ रायतेउर राजान्तःपुर] रा० १२,१७३ रिट्ठा शिष्टा] जी० ३।४ रायकउह राजककुद | ओ०६६ रिट्ठाभ [रिष्टाभ ] जी० ३१५८६ रायकज्ज ! राजकार्य ] रा०६८०,६६८ रिद्वामय रिष्ट प्रय] रा० १६,१३०,१७५,१६०, रायकहा | राजकथा ओ० १०४,१२७ २२८,२५४,२७०. जी. ३१२६४,२८७,३००, रायकिच्चगजकृत्य ] रा० ६८०,६६८ ३८७,४१५,४३५,६४३,६७२ रायकुल राजकुल रा० ६७१ रिद्ध [ऋद्ध ] ओ० १. रा० १,६६८,६६६,६७६, रायणीइ [राजनीति रा०६८०,६६८ रायधाणी [ राजधानी जी० ३१४४६,७००,७०१ रिभित [रिभित ] जी० ३.४४७ रायमग राजम १. रा०६८४,६८५, रिभिप [रिभित रा० ७६,१०६,११६,१७३, ७००,७०६ २८१. जी० ३।२८५ रायरुक्ख [राजरूक्ष] ओ० ६,१०. जी० ३१३८८, रियारिय [रितारित] रा० १११,२८१. ५८३ जी० ३.४४७ रायलदखण | राजलक्षण] रा०६७१ रिसि [ऋषि ] ओ०७१ ६७७ Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२१ रोतिया(पाय)-रोग रोतिमा (पाय) [रीतिकापात्र ] ओ० १०५, १२८ रीतिया (बंधण) रीतिकाबन्धन] ओ० १०६,१२६ रुइ रुचि रा० ७४८ से ७५०,७७३ रुहर | रुचिर | जी० ३१५६६,६७२ रुइल | रुचिर अं० ५,८,१६. ०२२८, जी. ३१२७४,३८७,५६६,५६७ रुंद (दे० विस्तीर्ण ओ० ४६ रुक्ष (रूक्ष रा० ७८२, जी० ११६६,७०,७२, ३१५८१,६०३,६०४,६३१.६७६,६३७ रुक्खगेहालय [ रूक्षगेहालय ] जी० ३१६०३,६०५ रुक्खमह रूक्षमह] रा० ६८८. जी० ३१६१५ ।। रुक्खमूल [रूक्षमूल | ओ०८,१०. जी. ३३३८६, ५८१ से ५८३,५८६ से ५६५ रुक्खमूलिय रिक्षम लिकओ०६४ रुचिजमाण [रुच्यमान ] जी० ३।२८३ रुद्द रौिद्र] ० ६७१ रुद्द (साण) रौद्रध्यान] ओ० ४३ रुद्दमह [रुद्रमह] रा० ६८८. जी० ३६१५ रुप्पकूला रूप्यकला रा०२७६. जी० ३४४५ रुप्पच्छद रूप्यच्छद जी. ३३३३२ रुप्पपट्ट रुप्यपट्ट | रा०२२,२६. जी. ३:२८२, २१० रुप्पमणिमय रूप्यमणिमय रा० २७६,२८० रुपमय { रूप्यमय रा० १५६,२७६.२८० रुप्पागर रुप्यापर| रा० ७७४. जी. ३१११८ रुप्पामणिमय [ रूप्यमणिमय जी० ३.४४५ रुप्पामय रूप्यमय जी० ३:४४५,४४६ रुपि रुक्मिन् ] रा० २७६. जी० ३१४४५, रुयमवरमहामह रचावरमहाभद्रजी० ३१६३४ रुपगवरोभास [रुचवरावभा० ३१६३४ रुयगवरोभासभ६ सिवरावभासमद्र] जी० ३।६३४ रुयगवरोभासमहाभद्द [रु कवरावभास महाभद्र | जी० ३९३४ रुयगवरोभासमहावर रुचकरराव भार महावर ] जो० ३।६३४ रुयगवरोभासवर [रुचकवरावभासवर जी० ३.६३४ रुयय रुचक ओ० १६. जी० ३६३४ रुरु | रुरु] ओ० १३. स. १७,१८,२०,३२,३७, १२६. जी. ३.२८८,३००,३११,३७२ रुहिर [ रुधिर] रा० २७. जी० ३.२८० रूत रूत] जी० ३।४०७ रूय | रूत | ओ० १३. रा० ३१,३७,१८५,२४५. _जी० ३।२८४,२९७,३११ रूव [ रूप] ओ०१५,२३,४७,६३,७२,१४६,१६१, १६३,१६२. रा० १०,४७,५४,६६,७०,७६, १७३,१६०,६७२,६८५,७१०,७५१,७७१, ७७४,८०६,८०६८१०. जी० २११५१; ३१११०,१११,२६४,२८५,५६०,५६४,५६६, ५६७,९८२,१११५,१११७,११२४ रूवग [रूपक ! २.० १७,१८,२०,३२,१२६,१३२. जी० ३.२८८,३००,३७२ रूवसंपण्ण रूपसम्पन्न आं० २५. रा०६८६ रूवि रूपिन् | रा० ७७१. जी. ११३,५ रेणु | रेणु रा० ६.१२,२८१. जी० ३।४४७ रेयग रेवक स० ७६ रेरिज्जमाण राराज्यमान रा० ७८२ रोइयाबसाण | रोचितावसान] रा० ११५,१७३, २८१. जी. ३१४४७ रोएमाण रोचमान जी० १११ रोचियावसाण रोचितावतान ओ० ३.२८५ रोग रोग ओ० ४६,११७. रा० ७६६. जी० ३.६२८,६३१ ७६५ रुयग! रुचक ओ० ४७. जी० ३१५९६,५६७, ७७५,६४२,९५२ रुयगवर रुचकवर जी० ३१६३४ रुषगवरभद्द रुचकवरभद्र जो० ३१६३४ Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ रोम-ललिय रोम [रोमन् ] ओ० ६२. जी ० ३१५९७ रोमराइ मराजि ओ० १६. रा० २५४. जी० ३,४१५,५९६,५६७ रोमसुह (रोमसुख ओ०६३ रोष [रुच्)--नोएज्जा रा० ७५० एमि. रा० ६६५ रोरुप | रोरुक] जी० ३११२,११७ रोहिणिय | रोहिणिक जी० ११८८ रोहिणी | रोहिणी ] जी० ३१६२१ रोहितंसा | रोहितांशा] जी० ३.४४५ रोहिया! रोहिता] रा०२७६. जी०३४४५ रोहियंसा | रोहितांशा २० २७६ लउड [लकुट] जी० ३।११० लज्यलकूच ] ओ० से ११. जी०७२, ३१५८३ लउल | लकुट | ओ०६४ लउलग्ग लकुटान] जी० ३१८५ लउसियालाओसिया, ल उसिया | आ० ७०. रा० ८०४ लख लङ्घ ! ओ० १,२ लेखपेच्छा लडप्रेक्षा ओ० १०२,१२५. जी० ३।६१६ लंघण [लङ्घन] रा० १२,७५८,७५६. ___ जी० ३३११८ लंतक लान्तक] ओ० ५१,१६२. जी० ३।१०३८, १०५०,११११ लतय लान्तक | मो० १५५. जी० २११४८, १४६; ३३१०६०,१०६६,१०६८,१०७६, १०८८,१०६५,११०३ लंबत | लम्बमान | जी० ३१५६१ लंबियग [लम्बितक औ० ६० लंबूसग [लम्बूसक रा० ४०,१३२,१६१. ___जी० ३:२६५,३०२ ३१३,३६७ लक्खण लक्षण ओ० १४,१५,१६,४३,१४३, १६५।११. रा० १३३,६७२,६७३,७७४,८०१. जी० ३।३०३,५९६,५६७ लक्खारसग [लाक्षारसक] रा० २७ लक्खारसय लाक्षारगक जी० ३।२८० लग्ग लग्न ] ओ० २३ लच्छी | लमी] ओ० ६५ लज्जा ! लज्जा] ओ० २५ लज्जासंपण्ण [लज्जासम्पन्न ओ० २५. रा० ६८६ लज्जु | लज्जावत ओ०१६४ लटू लाट] ओ०१,१६,६३. रा० ३२,५२,५६, २३१,२४७. जी. ३:३७२,३६३,४०१,५६६, ५६७ लटुदंत [लप्टदन्त ] जी० ३।२१६ लट्ठिग्गाह । यष्टिग्राम ओ० ६४ लाह [दे० ओ०१६. जी. ३५६६,५६७ लण्ह | एलक्ष्ण] ओ० १२,१६४, रा. २१,२३,३२, ३४,३६,१२४,१४५,१५७. जी. ३।२६१, २६६,२६६ लता [लता] जी० ११६६; ३।१७३,३५५ लत्तिया (दे०] रा० ७७ लद्ध | लब्ध्र | ओ० २०,४६,५३,१२०,१५४,१६२, १६५,१६६. रा० ६३,६५,६६७,६६८,७१३, ७५२,७६५,७६६.७७०,७८६,७६७,८१६ लद्धपच्चय लब्ध प्रत्यय ) रा०६७५ लिभ लम्-~-लब्भति. स० ७७४. -- लभइ. रा० ७१९. --लभज्ज. रा० ७१६ लयला ] रा० ७६,१७३. जी. ३१२८५ सया लतः रा. १३६. जी. ३।३०६,६३१ लयाघरग [लतागृहक] रा० १८२,१८३. जी० ३१२६४ लयाजुद्ध [लता सुद्ध] ओ० १४६. ग० ८०६ लयापविभति [लताप्रविभक्ति रा० १०१ लिल लल्] - ललंति. रा० १८५. जी. ३.२१७ सलिय [ललित] ओ० १५,५७,६३. रा० १०,७६, १७३.६७२ जी०३१२८५,५६७ Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लव-लेसा ७२३ लव लव] ओ० २८. जी० ३१८४१ जी० ३१६१६ लवइय | दे० लवकिन] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. लासिया [ल्हामिका | ओ० ७०. रा०८०४ जी० ३।२६८,२७४ लिंद लिन्द्र] जी० ३१७२१ लवंग | लवङ्ग रा० २६,३०. जी. ३ २८२ लिंब | लिम्ब] रा० ३७ लवण लवण जी० ३।२१७,२१६ से २२७,३००, लिक्खा [लिक्षा] जी० ३१६२४,७८८ ५६६,५६८,५६६.५७१, से ५७६,७०४ से लिच्च [लिच्च जी० ३।३११ ७०८,७१०,७११,७१३ से ७२३,७२६,७२८ से लित्त लिप्त रा० १२३,७५५,७७२ ७३१,७३३,७३६,७३६ से ७४१,७४५,७४७, लिप्पासण लिप्यासन | रा० २७०. जी० ३१४३५ ७५०,७५४,७६१,७६२,७६५ से ७६६,७७५, लोला लीला] रा० १७.१८,१३०,१३३. ७८१ से ७८६,७०८ से ७६६.८३८/२४,६५१, जी० ३१३००,३०३ लुक्ख रूक्ष] जी० १६५,३६,४०,५०, ३१२२ लवणगलवणक) जी० ३७१० तुद्धग | लुब्धक } रा० ७७४ लवणतोय लवणतोय] जो० ३१८३८।२३ लिय [0] लुज्जइ. रा० ७८४ लवणसिहा [ लवणशिखा जी० ३१७३२ लूसणया [लूपण } ओ० १०३,१२६ लवणाहिवइ (लवणाधिपति ] जी० ३१७२१,७५४, लूसमाण { लूषत् ] रा० १३३ लूसेमाण [लूषत् | जी. ३३०३ लवणोदय [ लवणोदक जी० ११६५ लूह रूक्षय्, मृज्—लू हेति. रा० २८५. लवय लवक] जी० ३१३८८ जी० ३४५१ लहू लघु | जी० ३.२२ लूहाहार [रूक्षाहार। मो० ३४ लहुय [लघुक | ओ० ४६. जी० ११५; ३१८७८ लूहिय रूक्षित] औ० ६३ लहुयत्त लघुकत्व स० ७६२,७६३ लूहेत्ता / रूक्षयित्वा] रा० २५५. जी० ३१४५१ लाइय (दे० ओ० २,५५. रा० ३२.२८१. लेक्ख लख्य रा० २७०. जी० ३१४३५ जी० ३३७२,४४७ लेच्छइ लिच्छवि, लेच्छवि ०५२. रा० ६८७. लाधव | लाघव ] ओ० २५. रा० ६८६,८१४ ६५८ लाघवसंपण्ण लाघवराम्पन्न | ओ० २५. रा० ६८६ लेच्छईपुत्त । लिच्छविपुत्र, लेच्छविपुत्र ] ओ० ५२. लाभत्थिय लाभार्थिक ओ६८ रा० ६८७,६८८ लाला लाला ० १३५,२८५. जी० ३३०५, लेच्छतिपुत्त लिच्छविपुत्र,लच्छविपुत्र जी० ३.११७ लेढ़ लेष्टु] आ० २६ लावणग लावणिक जी० ३१७६६ से ७६६ लेण ! लयन प्रो० १४६,१५०. रा० ८१०,८११. लावणिग लावणिक जी० ३।२८।२४ जी० ३१५६४ लावण्ण लावण्य] अरे० १५,२३. रा० ६६,७०. जी० ३१५६७ लेस लेश्या] रा० ७७१ कलास [लासम् ]- -लाति. रा. २८१. लेसणया (लेशन ] ओ० १०३,१२६ जी० ३३४४७ लेसा लेश्या ओ० ४७,७२,११६ जी० १११४ लासग लाराक ओ० १,२ २१,५६,८६,६६,१०१,१२८, ३१६८,९६, लासगपेच्छा [लासकप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. १२७.४,१२८,१५०,८४१९६६ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२४ लेस्सा-लोहियक्ख लेस्सा लेश्या] ओ० १५६. जी० ११२१,७६, ५६४,५६५. जी० ३१४४५,४५७,४६० से ११६,१३६, ३३१०१,१२८,१५०,१६०, ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५३२, ११०१ लेह [लेख] ओ० १४६. रा० ८०६,८०७ लोमहत्यय [लं महस्तकरा० २६१,२६४ से लेहणी [लेखनी] रा० २७०. जी. ३।४३५ २६७,३००,३०५,३१० से ३१२,३५२ से लोग लक रा० ७५१,७५३,८१५. जी०११४०, ३.६,४१४,४७३ से ४७५,५३४,५३५,५६४ ३१७६५,८३८१२,९७२; १९ ५६५. जी० ३४५८ लोगंत [लोकान्त ] ओ० १६५,१६५६ लोमहरिस | लोमहर्ष ] जी० ३१८३ लोगट्ठिति लोकस्थिति] जी० ३१७९५ लोय | लोक ओ०७१,१६९,१७०,१७४. लोगणाह [लोकनाथ ] रा० २६२. जी० ३१४५७ जी० १११३६, २.१२०,१३१, ३।११८,११६, लोगनाली | लोकनाडी, "नाली | जी० ३१११११ ८४१५१८,२२, २५७ लोगनाह लंकनाथ रा० ८ लोयंत लोकान्त जी० ३.३३ से ३६, १००२ लोगपईव लोकप्रदीप | रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ लायग लोकाय] ओ० १६८,१६३,१९५२ लोगपज्जोयगर [ज कप्रद्योतकर] रा० ८,२६२. लोगभिशा लोकापस्तूपिका | ओ० १६३ जो० ३१४५७ लोगपडिबुझणा ! लो गाग्रप्रतिबोधना] लोगमज्झावसाणिय [लोकमध्यावसानिक ओ०१६३ रा० ११७,२८१ जी० ३.४४७ लोयण [ले.चन] जी० ३.५६७ लोगहिय लोकहित] रा० ८,२६२. जी० ३१४५७ लोल लोल] ओ०६. जी० श२७५ लोगाणुभाव लोकानुभाव जी० ३१७९५ लोव लोग] ओ० ११७ लोगुतम लोकोत्तम] १०८,२६२. जी० ३१४५७ लोह लोभ] ओ० २८,३७,४४,६१,११७,१६१, लोगोवयारविणय [लोकोपचारविनय ओ० ४० १६३,१६८. रा० ७६६. जी. ३११२८ लोण ! लक्षण] ओ०६२. जी. ३१७२१ लोहकसाइलोभकष यिन् | जी०६१५३ लोद्ध लोध्र ० ६,१०. जी० ११७२; ३।३८८, लोहकसाय [ लोभकाय] जी० १।१६ लोहया लोभता ओ० ११६ लोभ लोभ ओ०४८,७१. जी. ३:१२८,५६८, लोहारंबरिस ला कारम्बशेष | जी० ३।११८ ७६५,८४१ लोहित लोहिक रा० १२८,१३२. जी. ३२२, लोभकसाइ [लोभकपायिन् ] जी० १:१३१; ६।१४८,१५०,१५५ लोहितक्ख लंहिताक्ष दी० ३१७,३००,४१५ लोभविवेक [लाभविवेक ओ० ७१ लोहितक्खमणि [लोहिताक्षमणि | जी० ३१२८० लोमपक्खि लोमपक्षिन् ] जी० १११३,११५ लोहितक्खमय | लोहिताक्षमय | रा० १६,१७५, लोमहत्थ [ल:महस्त ) ओ० २. रा० १५६,१५७, १६०. जी० ३१२६४,२८७,३०० २५८,२७६,२६५ से २६६,३५१. जी० ३१३२६, लोहितग | लहितक] जी० ३।२८० ३३०,४१६,४६० लोहिय लोहित | ओ० १२. रा० २२,२४,२७, लोमहत्थग | लोमहस्तक ०२६१,२६४ मे १५३. जी० १:५०३:१११,२६०,३२६, २६६,२६८,३००,३०५,३१० से ३१२,३५१ १०७५,१०७६ से ३५६,५१४,४८३ से १७५,५३४,५३५, लोहियक्ख [लोहिताक्ष] रा० १०,१२,१८,६५, Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोहियक्खमणि-वंदणकाम ७२५ १३०,१६५,२५४,२७६. जी. ३३४१५ लोहियक्खमणि [ लोहिताक्षमणि] रा० २७ लोहियक्खमय [लोहिताक्षमय [ रा० १३०,२४५ जी० ३१४०७,४७७ लोहितपाणि [लोहितपाणि] रा० ६७१ लोही | लोही] जी० १७३ लोही लौही] जी० ३१७८ व | इव] ओ० २७ वच जी. ३६१२९६ यइ [वाच्] ओ० ३७,४० वइकच्छछिण्णम [वैकक्षछिन्नक | ओ०६० वइगुत्त [वाग्गुप्त ] ओ० १६४ वइजोग [वाग्योम | ओ० ३७ वहजोगि [वाग्योगिन् } जी० ११३१,८७,१३३; ३३१०५,१५३,११०६६।११३,११४,११७, ३००,३२१,३३८,३५१. जी. ३१६७,१११, २६१,२६४,२८६,२८७,३००,३०२,३०५, ३०७,३११,३१३,३२२,३२६,३५५,३७७, ३८७,३६३,३६७,३६८,४०१,४०२,४०७, ४१०,४१५,४३५,४४२,४६५,४८६,५०३, ५१६,५६२,६४३,६५४,६७२,६७६,७२४, ७२७,८८१,८६१,६००,६२७,६४८,१०२५ वइरोयणराय | वैरोचन राज] जी० ३१२४० से २४३ वइरोणिद | वैरोचनेंद्र ] जी० ३१२४० से २४३ घहरोसभणाराय | वज्रऋषभनाराच] ओ० १८५ बहरोसभनाराय विज्रऋषभनाराच] जी० २११६ वइविणय [वाग्विन य] ओ० ४० वइसमिय वाक्समित ओ० १६४ वंक [वक्र] ओ०१ वंग वङ्ग] जी० ३१५६५ वंग व्यङ्ग] जी० ३१५९७ वंधण [वञ्चन] रा० ६७१ चंचणया [वञ्चनता] ओ०७३ वंजण [व्यञ्जन ] ओ० १५,१४३. रा० ६७२, ६७३,८०१. जी० ३।५९६ बंद विन्द्]--वंदइ. ओ० २१.--वदंति ओ० ४७. रा० १०.-वंदति. रा० ८. जी० ३।४५७.....वंदर. रा० ...---वंदामि. ओ० २१. रा० ६.- वंदामो. ओ० ५२. रा० १०.--वंदिज्जाह. रा०७०६. ---वंदिस्सति रा०६०४.-.वंदेज्जा. रा० ७७६ वंद वृन्द आ० ७०,७१. रा० ६१,६९२,७१६, १२० वइर वज्र ओ०१२,१६,४८. रा० १०,१२, १७,१८,२०,२२,३२.६५.१२६,१५६,१६०, १६५,२५६,२७६,२८१,२६२,७७४. जी० ३७,६१ से ६३,२८८,२६०,३००,३३२, ३६३,३४६,३७२,४१७,४५७,५६६ वहरणाभ वज्रनाभ जी० ३।३२३ वइरनाभ वज्रनाभ ] रा० १५० वइरभंड वज्रभाण्ड] रा० ७७४ वहरभार दज्रभार स० ७७४ वइरभारय वनमारक रा० ७७४ वइरमझा मध्याआं० २४ वइररिसहणाराय वज्रपभनाराच ओ० ८२ वइरोगर वज्राकर रा० ७७४ वइरामय वज्रमय रा० १६,३५,३७,३६,४०, ५२,५६,१३०,१३२,१३५,१३७,१५३,१७५, १६०,२१७,२१८,२२८,२३१,२३५,२३६, २४०,२५,२४७,१४६.२५४,२७०,२७६, ८०४ वंदण [वन्दन] ओ० २,५२. रा० १६,६८७,६८६ बंदणकलस वंदनकलश ओ० २,५५. रा० ३२, १३१,१४७,२५८,२८१,२६०. जी. ३१३०१, ३२०,३५५,३७२,४१६,४४७,४५६,८८६ बंदणकाम वन्दनकामा ओ०५१ Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२६ बंदणघड-बट्टखेडू वंदणघड [वन्दनघट [ ओ० २,५५. ग० ३२, ४६५,४७०,४७७,५१६,५२० २८१. जी० ३१३७२,४४७ विच्च [अ] - वच्चंति. जी० ३।१२९६ वंदणिज्ज [वन्दनीय! ओ०२. रा० २४०,२७६. वच्चंसि वर्चस्विन् ओ० २५. रा०६५६ जी० ३।४०२,४४२ वच्चग तच्चक] जी० ३१५८८ बंदावंदय वृन्दवृन्दा ] रा० ६८८,६८६ बच्चघर [व!गृह] रा० ७५३ वदित्तए वन्दितुम ] ओ० १३६. राह वच्छ [ वक्षम् ] ओ० १६, २१, ४७, ५४, ५७, वंदित्ता [वन्दित्या ओ० २१. रा० ८. ६३, ६५, ७२. रा० ८, ६६, ७१४, जी. जी० ३६४५७ ३.५९६, ११२१ वंस [ वंश] आ० १४. रा० ७६,७७,१३०,१७३, वज्ज [वर्ज] ओ० २६. नी० १३५१, ५५, ६१, १६०,६७१. जी. ३१२६४,२८५,३००,५८८ ८७.१०१,११६,१२३,१२८, ३।१५५,६०५; वंसकवेल्लुय वशकवेल्लुक ] रा० १३०,१६०. ६।१० जी० ३।२६४,३०० वज बज्र] जी० ३१५६७ बंसग | वंशक] रा० १३०. जी० ३।३०० बज्जकंद [वज्रकन्द जी० ११७३ वंसा [वंशा] जी० ३.४ वज्जरिसभनाराय [वज्रऋषभनाराच] जी० वक्कंति [अवक्रांति] जी० ११५१ ; ३।१२१,१५६, ३१५६८ १०८२ यज्जित्ता [वर्जयित्वा ] जी० ३१७७ बक्कंतिय अवक्रांतिक रा० ७६५ वज्जिय [वजित ओ०४८. रा० ७७४, विक्कम अव+ऋम ---वक्कमति जी० ११५८ जी० ३१५६८ वक्ख वक्ष जी० ३३५६७ यजेता वर्जयित्वा] रा० २४०. जी. ३४०२ वक्वार [वक्षार, वक्षस्कार] रा० २७६. वझवत्तिय वर्धवर्तित] ओ०६० जी० ३।४४५,५७७,६६८,७७५,६३७ वट्ट वृत्त] ओ० १,२,१६,५५,१७०. रा० १२, Vवगविल्ग---वगंति. रा० २८१. ३२,५२,५६,२३१,२८१,२६१,२६४,२६६, जी० ३१४४७ ३००,३०५,३१२.३५५,७५८,७५६. वगण ! वल्गन ] ओ०६३ जी०१:५; ३१२२,४८ से ५०,७७ से ७६, वग्गवगु वर्गवर्ग] जी० १६५११४ ८६,२६०,२७४,३५२,३७२,३६३,४०१, वगु वा ] ओ० ६८. रा० ७६७ ४४७,४५९.४६१,४६२,४६५,४७०,४७७, वगुरा वागुरा] ओ० ५२. रा० ६८७,६८८, ५१६.५२०,५६४,५६६,५६७,७०४,७६३, ७६६,८१०,२१,८३१,८४८,८५६,९५६, वगुलि बल्गुलि ] जी० १.११४ ८६२,८६५,८६८,८७१,८७४,८७७,८८०, वग्घ [व्याघ्र | रा० २४. जी ० ३८४,२७७,६२० ६१०,६२५,६२७ से १३२,६३८,६४३,१०७१, १०७२ वग्धमुह | व्याघ्रमुख जी. ३१२१६ वग्धारित दे० जी० ३:३०३,३६७,४४७,४५६ वट्ट । वृत् --बट्टसि. २० ७६७. - ..वट्टिस्मामि. वग्धारिय दे० ओ० २,५५. रा० ३२,१३२, रा० ७६८ २३५,२८१,२६१,२९४,२६६,३००,३०५, वट्टक वर्तक] जी० ३।५८७ ३१२,३५५. जी० ३।३०२,३७२,४६१,४६२, वट्टखेड्ड वृत्तखेल ] ओ० १४६. रा० ८०६ Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वट्टभाव-वणस्सतिकाल वट्टभाव [वृत्तभाव ओ० ५,८. जी. ३१२७४ ।। वणमाला [वनमाला ओ० ४७,४८,७२. वट्टमग्ग [वृत्तमार्ग,वर्त्म गार्ग] ओ० ५६ रा०१३६,२१०,२१२. जी० ३१३०६,३५४, वट्टमाण [वर्तमान ] ओ० ४७. रा० २८१,८१५. ३७३,५६१,६४७,६७३,८८६,८८८ जी० ३,४४७ वणराइ | वनराजि] रा०६५४,६५५. जी. वट्टमाल [वृत्तमाल] जी० ३१५८२ ३।२७६,५५४,५५५,५८५,६३१ वट्टलोह पाय] (वृत्तलोहपात्र] ओ० १०५,१२८ वणराति [वनराजि] रा०२६ वट्टलोह [बंधण] वृत्तलोहबन्धन | ओ० १०६, ____ वणलया[वनलता] ओ० ११,१३. रा० १७,१८,२०, १२६ ३२,३७,१२६,१४५. जी० ३३२८८,३००,३११, वट्टवेत [वृत्तवैताढ्य ] जी० ३।४४५ ३७२,५८४ वट्टवेयड्ड [वृत्तवैताढ्य ] रा० २७६. जी० ३।४४५, वलयापविभत्ति [वनलताप्रविभक्ति रा० १०१ वणसंड [वनषण्ड | ओ० ३,४,८. रा० ३,१७०, वट्टि [वत्ति] जी० ११७२,३१५८६ १७१,१७४,१८२,१८४,१८६,१८६,२०१, २३३,२६३,६५४,६५५,७०३,७८१,७८२, वट्टिजमाणचरय [वय॑मानचरक] ओ० ३४ वट्टित्ता । वतित्वा] रा ० ७७६ ७८६,७८७. जी० ३१२१७,२५६,२७३,२७७, २८६,२९४,२६६,२६८,३५८,३५६,३६२, वट्टिय ! वतित ओ० १६.७१. रा० ६१,१३३, २४५,७६८,७७७. जी० ३३१७२,३०३,५६६, ३६५,५५४,६३२,६३६,६६१,६६८,६८१ से ५९७ ६८३,६८८,६८६,७०६,७३६,७५४,७६२, ७६५,७६८,७६८,८१२,५२३,८३६,८५०, वडभिया [वडभिका] रा०८०४ ८५७,८८२,६१०,६११ वडभी [वडभी ] ओ० ७० वडिसग [अवतुंसक ओ० १० वणस्सइ [वनस्पति जी० ८३ वडिसब [अवतसक] ओ० १२. जी. ३१५८४ वणस्सइकाइय (वनस्पतिकायिक जी० १२१२,६६ वउँसग [अवतंसक] ओ० ५,८,६४. रा० १२५, से ७४, २११३८, ३।१३१,१३५: ५।६१५, १४५. जी० ३।२६८,२७४,२८५,७०२,८०८, ८.१६१८४,२६३ ८२६,१०३६ वणस्सइकाइयत्त [वनस्पतिकायिकत्व } जी० वडेंसय अवतंक] रा० १२५ ३:१२७ १ वडवृ] .. वड्डइ. जी. ३.७३१....वड्ढए. वणस्सइकाल[वनस्पतिकाल ] जी० ११४२ जी० ३:८३८११४.....बड्ढति. जी० ३।७२३ रा६३,६५ से ६७,११७,१२६,१२७,१३०: वण बन] रा० ४५.६५४,६५५,७६५. ४६१२७, ९:११७,१२७,२६४,२७१ जी०३५५४,५८१ वणस्सति [वनस्पति जी०५।१७ वण {लया) [वनलता] जी० ३१२६८ वणस्सतिकाइय [वनस्पतिकायिक] जी० २११०२, वत्यि | वनार्थिन् । रा० ७६५ १२०,१३१,१३६.१३८,१४६.१४६, ३५१३५ वणप्फइकाइय वनस्पतिकायिक जी० ३.१९६ ५६,३,६,१८ से २० , ८,४,५, ६।१८२,२५६, वणप्फति वनस्पति जी० ३.१२३ २५८,२६६ यणप्फतिकाइय [वगालिकायिक] श्री ३।१२६, वणस्सतिकाल वनस्पत्तिकाल] जी० २८६ से ८८,६० से १२,११६,१३१,१३३, ३।११३४ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२८ वणिय-वस्थि ११३७,४/७५२१७,३०,६८,१०,१०, ८५०,८५७,८८२,८८४,८८५,८८७,६१०, १३ से १५,१७,१८,६३,४,५८,५६,८०,८३, ६११,६३६,१००८ १०३,१०५,११५,१२४,१२६,१३६,१३८, वण्णसंजलणया | वर्णसंज्वनिता ओ० ४० १७७,१६४,२०७,९११,२१६,२१८,२२२, वण्णाभ[वभि] रा १२४. जी० ३१७७,६३७, २२६,२३६,२४१ से २४३,२४६,२६२,२७७ ६५६,६६४,७३८,७४३,७६३,८१६,८५४, से २७६,२८१,२८२ ८७२ वणिय व}ि जा० १ वण्णावास | वर्षावास | रा० १६,२०,२५ से २६, वणीवजीवि वनापजोविन्रा० ७६५ ३७,४५,१३५,१४६,१७५,१६०,२२८,२४५, वण्ण वर्ण आं० २,१३,२३,२५,४७,४६ से ५१, २५४,२७०. जी० ३२६४,२७५ से २८२, ५५,७२,१६६,१७०,१६४. रा० ६,१२,२४ २८७,३०५,३११,३२२,३५६,३८७,४०७, से २६,३२,४५,५२,५६,१२८,१३०,१७१,१९६, ४१५,४३५,६४३,६५४,८६८ २३१,२४७,२८१.२८५,२६१,२६३ से २६६, वत्त वर्त ] ओ० १६. जी. ३१५६६ ३००,३०५,३१२,३५५. जी० ११५,३४,३८,५०, वत्तमंडल [वृत्तमण्डल] मो० ६४ ५८,७३,७८,८१,३१५८,८३,८७,६४,१२७, वत्तव्य वक्तव्य ] ओ० ३३. जी० ६२५,९८२ २७१,२७७ से २५२,३००,३०६,३५३,३६०, वत्तव्वता वक्तव्यतानी० ३१५६६,८५६,८८६, ३७२,३६३,४४७,४५१,४५७ से ४६२,४६५, ६१३,६२५,६२७,६३२,६३४,६३५ ४७०,४७७,५१६,५२०,५५४,५७८,५८०, बत्तम्बया [वक्तव्यता] रा० ५२,२१५,३२१,७५० ५८६,५६१,५६२,५६५,५६३,६०१,६०२, से ७५३. जी. ३१३२,२५०,४१२,४३१,४३४, ६३७,६४५,६४८,६५६,६५६,७२४,७२७,७३८, ६७६,६६१,७०१,७१०,७७६,८००,८५६ ७४३,७६३,८६०,८६६,६७२,८७८,९७२, वत्तिय प्रत्यय ] ओ० ५२. रा०१६,६८७,६८६ १०७५.१०७६.१०८१,१०६३ से १०६६ वत्थ वस्त्र] ओ० २०,३३,४७,४६,५१ से ५३,७२, बपणओ [वर्णतस् ] जी० ११३५,५०,६६,१३६ १०७,१२०.१३०,१४७,१४६,१५०,१६.. वण्णा [वर्णक } ओ० ६३,१६१,१६३ रा० १५६,१५३,२५८,२७६,२८६,२६१, वण्णत [वर्णक] स २४३. जी० ३३२१७ ६८५,६८७,६८६,६६२,६६८,७००,७१४, वण्णतो (वर्णतम् नी० ३१२२,२७,४५ ७१६,७१६,७२६,७५२,७८६,७६४,८०२, ८०८,८१०,८११. जी० ३१३२६,४१६,४४७, वण्णमंत वर्णवत् | जी० ११३३,३४ ४५२,५६१,६७३,७७५,८७८,६३७,११२२ वण्णय वर्णक] ०६:,१५६, १६४.१७०,२०१, २०२,२०४ से २०८,२१६,२३,२३४,२६१, __वत्यंत वस्त्रान्त रा०६६ २६३.० ३२६८,३१५ से ३१७,३२०,३२१, वत्यविहि वस्त्रविधि! ओ० १४६. ० ८०६ वत्थव वास्तव्य र:०२८२. जी. ३१४४२,४४८, ३३८,३५४,३५५,३५८,३६२,३६३,३६६, ५२७ ३६८,३७३,३७४,३७८,३६५,३६६,४०१४०६, वत्थव्वग वास्ताका जी० ३।३५०,४४६,५६३ ४२३,४२५,४२८,६३२ से ६३४,६३६ से:४१, ___वस्थि वस्ति ] रा० ७६३. जी० ३६५६७ ६४६,६४७,६५०,६६१,६६८,६७३,६७४, ६७८,६७६,६८३ से ६८५,६८६,७०६,७३६, १. वत्रं च सूत्रव जनकम् । ओ० ५०।। ७५४,७५६,७५६,७६२,७६८,८१२,८२३,८३६, वर्त - सूत्रवलनकम् [जी० वृ०] 1 Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वत्यु-वरुणोद ७२६ यत्यू [वस्तु,वास्तु ओ०१ वयजोग [चोयोग] ओ० १७५,१७७,१७६,१८२ वत्थुलगुम्म [वास्तुलगुल्म ] जी० ३।५८० वयण वचन ] ओ० ४६,५६,५७,५६,६१,६६. वस्थुविज्जा वास्तुविद्या ओ० १४६. ग० ८०६ रा० १०,१४ से १६,१८,७४,२७६,६५५,६८१, Vबद [वद्]-वदत्. ओ० ६६. रा० ६९५. ६६६,७०७. जी०३१४४५,५५५ -वदेज्जा. रा० ७५१। वयण वदन] ओ० १५,१६,२१,५४, रा०६७२. वदण विदन] जी० ३१५६६ से ५९८ जी० ३.५९७ वदित्ता [वदित्वा] ओ० ७६ क्यबलिय वचोबलिक] ओ०२४ यद्दलियाभत्त बालिकाभक्त ] ओ० १३४ क्यरामय [वनभय रा०१७४ बद्धण वर्धन ] जी० ३१५६२ वर [वर ओ० १,२,५,८ से १०,१२ से १४,१६, बद्धणी [नर्धनी ! जी० ३।५८७ २१,४६,४८,४६.५१,५४,५७,५.६,६३ से ६५, वद्धमाण [वर्धमान ओ० ४८,६८ ६७.१०७,१५३,१६५,१६६,१७२. रा० ३,४, वद्धमाणग [वर्धमानक) ओ० १२,६४. रा० २१, ८,६,१२,१३.२८,३२,४७,५२,५६,६८ से ७०, २४,४६,२६१. जी० ३१२७७,२८६ ७६,१२६,१३१ से १३३,१४७,१४८,१५६, वद्धमाणा [ वर्धमाना] रा० २२५. जी० ३.३८४, १६२,१७३,१८५,२१०,२१२,२२८,२३१,२३६, २४०,२७७,२८०,२८३,२८६,२६१,२६२,३५१, विद्धाव वर्धय]- वद्धावेइ. ओ० २०. रा० ६८०। ५६४,६५७,६६४,६७१,८१,६८३,७१०, -बद्धावेंति. रा० १२. जी० ३।४४२. ७१४,७६५,७७४,७६४,८०२,८०४,८१४. --वद्धावेति. रा० ४६ जी० ३१२७४,२८१,२८२,२८५,२६७,३०० से वडावेत्ता [वर्धयित्वा] ओ० २०. रा० १२. ३०३,३२१,३३२,३३५,३५४,३७२,३७३, जी० ३१४४२ ३८७,४४३,४४६ से ४४६,४५७,५१६,५४७, वप्प वप्र] रा० १७४. जी० ३.११८,११९,२८६ ५५७,५६२,५८६,५६१ से ५६३,५६५ से ५६७, वप्पिणी [दे०] ओ०१ ६०४,६४७,६७२,८५७,८६०,८८५ वम्भिय [वमित] रा० ६६४,६८३. जी० ३१५६२ वरवरय-बरइ. जी. ३१८३८,१६ वय [वचस्] ओ० २४. रा० ८१५ वरंग [वराङ्ग] जी० ३।३२२ वय {क्यस्] ओ० ४७ वरदाम वरदामन् । रा० २७६. जी. ३।४४५ वय [व्रत ] ओ० २५,४६ वरपुरिस वरपुरुप] जी० ३१२८१ विय विद्]--वइस्संति. रा० ८०२.--वएज्जा. वराह [वराह ] ओ० १६,५१. रा०२४,२७. रा० ७५०.-वयइ. ओ०७१.-..-वयामि. ___ जी० ३।२७७,२८०,५६६,१०३८ रा० ७३४.--वयासि. ओ० २०. रा० ७३४. जी० ३१४४८.-वयासी. रा०८. वरिसधर वर्षधर] ओ० ७०. रा० ८०४ जी० ३१४४२.--वयाहि. रा०१३ वरुण [वरुण ] जी० ३१७७५,८५७ विय वच-वच्छं. ओ० १६५१७. वरुणप्पभ | वरुणप्रभ] जी० ३१८५७ ___ जी० ३३२२६ वरुणवर वरुणवर] जी० ३१८५१,८५६,८५७, ८५६ वयंस [वयस्य ] जी० ३६१३ वयंसय वयस्थक] रा० ६७५ वरुणोद [वरुण द] जी० ३।२८५,८५६,८६०, वयगुत्त [वचोगुप्त] ओ० २७,१५२. रा० ८१३ ८६२,९५८,६६३ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३० क्लब [वलक्ष] जी० ३/३२२,५६३ वलभी [ वलभी ] जी० ३१६०४, ७६३ वलीघर [ वलभीगृह ] जी० ३२५६४ वलय [ वलय ] जी० १।६६; ३।३७ से ४०, ४२, ४४ से ५०,५६३, ७०४,७६३,७६६,८१०, ८२१,८३१,८४८,८५६,८६२,८६५,८६८, ८७१, ८७४, ८७७, ८८०,६२५ मग [ वलयमृतक ] ओ० १० ar [asarमुख ] जी० ३१७२३ वलयावलिपविभत्ति ] वलयावलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ वलि [ वलि ] जी० ३३५६७ दलित [ वलित ] जी० ३।५६६ वलय [ वलित ] ओ० १५,१६. रा० १२,६७२, ७५८ से ७६१. जी० ३१५६७ वल्ली [ वल्ली ] जी० ११६६,३३१७२ वयगत [ व्यपगत ] जी० ३३५६७,६१०,६१२ से ६१६,६२४,६२७,६२८ aar [ व्यपगत ] ओ० १४,६२. रा० ६७१. जी० ३१६०७,६०६,६२२ √ ववरोव [ व्यप + रोपय् ] - ववरोवएज्जा. रा० ७५१ - ववरोविज्जइ. रा० ७६७ —बवरोवेमि. रा० ७५६ - ववरोवेहि. रा० ७५१ वववेत्ता [ व्यपरोप्य ] रा० ७५६ √ ववस [वि + अ + सो] - ववसइ. रा० २८८. जी० ३।४५४ ववसता [ व्यवसाय ] रा० २८८. जी० ३०४५४ साथ [ व्यवसाय ] ओ० ४६. रा० २८८. जी० ३।४५४ वासभा [ व्यवसायसभा ] रा० २६६, २७१, २७२,२८६,२८८,५६४, ५०६, ५६७,६१६, ६३४,६३५. जी० ३।४३४, ४३६, ४३७, ४५२, ४५४,५४७,५४० से ५५३ ववहार [ व्यवहार] रा० ६७५ ववहारग [ व्यवहारक] रा० ७६६ ववहारि [ व्यवहारिन् ] रा० ७६६ बस [ वश ] ० २०,२१,५३,५४,५६,६२,६३, ७८,५०,८१०८,१०,१२ से १४,१६ से १८, ४७, ६०, ६२, ६३, ७२,७४, २७७,२७६, २८१,२६०,६५५,६८१,६८३, ६६०, ६६५, ७००, ७०७,७१०,७१३, ७१४, ७१६, ७१८, ७२५,७२६,७७४,७७८. जी० ३।४४३, ४४५ ४४७,५५५ /वस [वस् ] - साहि. ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३१४४८ वलक्ख-वा वसंतल्या [ वासन्तीलता ] रा० २४ समय [वशार्तमृतक ] ओ० ६० वसण [ वसन] रा० २६,२८,६६,७०,१३३. जी० ३१२७६, २८१, ३०३,११२१ से ११२३ वसणभूत [ व्यसनभूत ] जी० ३।६२८ वसप्पाडियग [ उत्पाटितकवृषण] ओ० ६० वसभ [ वृषभ ] ओ० २७. रा० ८१३. जी० ३३१०१५ वसमाण [ वसत् ] रा० ६८३,७०६ सह [ वृषभ ] रा० २४ सहि [ वसति ] ओ० ३७,११८,११६,१६५. जी० ३।६०३ यसु [ वसु ] जी० ३।११७ वसुंधरा [ वसुन्धरा ] ओ० २७. रा० ८१३. जी० ३१६२२ वसुगुप्ता [ वसुगुप्ता ] जो० ३।६२२ वसुमित्ता [ वसुमित्रा ] जी० ३१६२२ बस [ वसू] जी० ३/२२ वह वध ] ओ० ४६, ७३,१६१,१६३. रा० ६७१ वहक [वधक ] जी० ३।६१२ वमाणय [ वहमानक ] ओ १११ से ११३, १३७, १३८ वा [वा ] ओ० ५२. रा० ६. जी० ३।११७ Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाइज्जत-बायणा बाइज्जत वाद्यमान] रा० ७७ वाणमंतर [वानव्यन्तर] ओ० ४६,८६ से १३. वाइत्त [वादित्र] २१० ११४,२८१ रा० ११,५६. जी० १११०१,१३५, २११५, वाइय [वाद्य] जी० ३१४४७ १६,७१,७२,९५,६६,१४८,१४६ ; ३१२१७, घाइय [वादित] ओ० ६८,१४६. रा० ७,७८, २३०,२५१,२६७,२६८,३५८,४०२,४४६, ८०६. जी ० ३१३५०,५६३,१०२५ ४४८,४५५,४५७,६२७,६५६,७६०,८५७,६१७ वाइय [वातिक ] ओ० ११७. रा० ७६६ वाणमंतरी [जानव्यन्तरी] जी० २।३८,७१,७२, वाइय [वाचिक] ओ० ६६ १४८,१४६ वाउ | वायु ओ० ४६. जी० १४१२८,१३३; वाणिज्ज [वाणिज्य] जी० ३३६०७ २ १३०,१३६; ३:३०७,३६३; ११७,२०,२४, वात [वात] रा० १७३ २५ २७ बातकरण [वातकरक] जी० ३।३५५,४१६,४४५ वाउकाइय वायुकायिक जी० २११३८; ५।१,६, वाव [वादय् ] ---वादेति, जी० ३१४४७ २६,३१,३३,३६,८१५: ६।१८२,१८४,२५६, बादित [वादित ] जी० ३१८४२,८४५ २५७,२६२,२६६ वाबाहा {व्याबाधा] जी० ३१६२०,६२५ वाउकाय [वायुकाय रा०७७१. जी. ३१३५, वाम [वाम] ओ० २१,४७,५४. रा० ८,७०, ७२५,७२८ १३३,२६२,७६७,७६८,७७६,७७७. जी. ३.४५ वाउक्कलिया [वातोत्कलिका ] जी० १८१ वाम [वाम,व्याम] ओ० ५,८ जी० ३२७४ वाउक्काइय [वायुकायिक ] जी० ११७५,८०,८२; वामण [वामन] जी० ११११६ २२१०२,१४६,१४६; ११६५:२८,१४,२०, बामणिया [वामनिका] रा० ८०४ ८.१,३ वामणी [वामनी] ओ०७० वाउभाम [वातोद्भ्राम] जी० ११८१ वामद्दण [व्यामर्दन] ओ० ६३ वाउयाय [वायुकाय] रा० ७७१ दामहत्थ वामहस्त ] जी० ३।३०३ वाउवेग वायुवेग ] जी० ३३५६८ वामुत्तग दे० वामोत्तक,व्यामोत्तक] जी० ३२५६ वाएसा वाचयित्वा] रा० २८८. जी० ३।४५४ वाय [वात] ओ० ४६,६४. रा० ४०,५०,५२,५६, वाकवासि [वल्कवासिन् ] ओ० ६४ १३२,१३७,२३१,२४७,२८५,७७१. वागर वि-+आ+क]-बागरेइ. ओ०६६ जी०३.२६५,२८५,४५१,५८०,७२६ वागरण व्याकरण] ओ० २६,६७. रा०१६, विाय वाचय]-वाएति. रा० २८८. ७१६,७६८ जी० ३४५४. बायंति.--ओ० ४५ वागरमाण [व्याकुर्वाण ] ओ० २६ वाय [वादय् ]--वाइज्जइ रा० ७८३--वाएंति वागरेयत्व [व्याकर्तव्य] जी० ३१७७ रा० ११४ वाघाइम [व्याघातिन् व्याधातिम] ओ० ३२. वायंत वादयत] ओ०६४ जी० ३।१०२२ वायकरग वातकरक] रा० १५३,२५८८,२७६. वाघातिम [ व्याघातिन्, व्याधातिम] जी० ३११०२२ जी० ३।३२६ वाघाय व्याघात] जी० २०४६,८२ वापणा [वाचना] ओ० ४२,४३ वाड [वाड, वाट] जी० ३८७८ १. अनेकाभिर्नरवामाभि: सुप्रसारिताभिः (ओ०० वाण [वाण ] ओ० १३ अनेकनरव्यामः पुरुषव्यामः सुप्रसारितैः । वाणपस्थ [वानप्रस्थ ] ओ०६४ (जी०वृ०) Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३२ बायमंडलिया-वासंतिलया वायमंडलिया [वातमण्डलिका] जी० १८१ जी० ३१२८६,३००,३०७,४०७ वायाम व्यायाम ओ०६३ वालुयापुढवी [बालुकापृथ्वी] जी० ३१८५,१८८ वारण [वारण] ओ० १६ वालुयासंथारय बालुकासंस्तारक] ओ० ११५ वारय [वारक] जी० ३१५६६ वावण्ण [व्यापन्न ] जी० ३१८४ वारि [वारि] रा० १३१,१४७,१४८,१८०. वायत्तरि [द्विसप्तति ] ओ० १४६ __ जी० ३।३०१,४४६ यावी [वापी] ओ० ६,६६. रा० १७४ १७५, वारिसेणा [वारिषेणा रा० २२५. जी० ३।३८४, १८०. जी० ३१२७५,२८६,२८७,२६२,५७६, ८६६ ५६७,६६४,८७५,८८१,६४८ वारुणि [वारुणी] जी० ३१८६० वास [वर्ष ] ओ० ६८.८६ से ६५.११४,१४०, वारुणिकत वारुणिकान्त ] जी० ३१८६० १४१,१४५,१५४,१५५,१५७ से १६०,१६५, वारुणिवरोदय [वारणीवरोदक जी० ३१८५७ १६६,१८८,१६२. रा. ८ से १०,१२,१३, वारुणी [वारुणी] जी० ३१५८६ १५,५६,२७६.२८१,६६८,७६६,८०५,८१६. वारुणोद [वारुणोद] जी० ३१२८६ जी० १३५१,५५,५६,६१,६५,७४,८२,८७,६६, वारुणोदय [वारुणोदक] जी० ११६५ १०१,१०३,१११,११२,११६,११६,१३३, वारणोयग [वारुणोदक रा० १७४. जी० १७४ १३६,१३७, २१३५ से ३६,४१,६६,७३,६२, वाल [व्याल] ओ० ११७. रा० ७६६. ६३,६६,६७,१०८,११०,१११,११८,१२६, जी० ३:३००,६२५,८२२ १३६, ३३१५५,१०६ से १६२,४४५,४४७, वाल बाल ] रा. १६०,२५६. जी. ३३३३३, ७८५,७८६,७६५,८४१,१०२७ से १०३०, ४१७ १०३८,११३१, ४।३,६,११,१२,१६, २५, वालग व्यालक] ओ० १३. रा० १७,१८,२०, ६,१०,१२,१४,१५.२८,२६, ६२,६; ७:३, ३२,३७,१२६. जी० ३।२८८,३००,३११, १३, ६२,४,२१०,२१४,२२४,२२८,२३४, ३७२ २४१,२६६,२७७ बालाग [बालान] जी० ३१७८८,७८६ वास [वास] रा० ३०,६८३,७०६. जी० ३।२८३ वालग्गपोतिया (दे० बालाग्रपोतिका] जी. ३१६०४ Vवास [व]-वासंति. रा० १२. वालरूवग व्यालरूपक] रा० १३० जी० ३.४४७–वासह. रा०६ वालरूवय [व्यालरूपक ] रा० २६४,२६६ से वासंति [वासन्ती] जी० ३१५९७ २६६,३१२,४७३, जी० ३४५६,४६१,४६२, वासंतिकलया [वासन्तिकलता] जी० ३२५८४ ४७७,५३२ वासंतिमंडवग [वासन्तीमण्डपक] रा० १८४ वालवीइय [वालवीजित] ओ० ६३ वासंतिमंडक्य [वासन्तीमण्डपक] रा० १८५ वासंतिय लयावासन्तिकलता] जी०२६८ वालवीयणय [वालवीजनक ] ओ०६६ वासंतियलया [वासन्तिकलता] ओ० ११. वालवीयणी [ वालवीजनी] ओ० ६७ रा० १४५ वाली दे० ] रा० ७७ वासंतियलयापविभत्ति [ वासन्ति कलताप्रविभक्ति] वालुयप्पभा [बालुकाप्रभा] जी० ३३३५,४१,४३, रा० १०१ ४४,६६,११२ वासंतियागुम्म [वासन्ति कागुल्म] जी० ३१५८० चालुया [बालुका] ग० १३०,१३७,१७४,२४५. वासंतिलया वासन्तीलता] जी० ३।२७७ Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासंतीमंडवग-विक्खंभ ७३३ वासंतीमंडवग [वासन्तीमण्डपक] जी० ३।२९६ वासधर वर्षधर रा० २७६. जी० ३।२१७,२१६ से २२१,२२७,४४५,६३२,६६८,७६५,८४१, ६३७ वासपरियाय [वर्षपर्याय] ओ० २३ वासवद्दलय [वर्षबादलक] रा० १२३ वासहर [वर्षधर रा० २७६. जी० ३,४४५, ७७५,७६५ वासा [वर्षा] रा० ६,१२ वासावास [वर्षावास ओ० २६ वासिक्क [वार्षिक] रा० १६७. जी० ३।२६६ वासित्ता [वषित्वा) रा०२० वासी [वासी ] ओ० २६ वासुदेव [वासुदेव [ ओ० ७१. जी० ३।७६५, वासेत्ता [वर्णित्वा] रा ० २० वाहण [वाहन ] ओ० १४,२३,५२,५६,६६,१४१. रा०६७१,६७४,६७५,६८७,६६५,७८७,७८८ ७६०,७६१,७६६ वाहणसाला [वाहनशाला] ओ० ५६ वाहणा | उपानह.] ओ० ११७ वाहा बाहु] जी० ३१५६७ वाहि [व्याधि ] ओ० ७४१२. जी० ३।१२८, ७००,७०२,७०४,७०८,७०६,७१४,७१६, ७६५,७७४,७७६,७८७,७८८,७६६८०२, ८०८,८१०,८११. जी. ३३११०,११७,२७४, ३७२,४६१,४६२.४६५,४७०,४७७,५१६, ५२०,५६६ विउलकयवित्ति विपुलकृत वृत्तिक] ओ० १६ विउलमइ (विपुलमति ओ० २४. रा० ७४४ (विउव्य वि-+] - विउव्वइ. रा० ३२. --विउव्वति. रा०१०. जी०३।११०. -विउन्वति. रा० १६.---विउव्वाहि. रा० १७. —विउब्बिसु. जी० ३३१११६.-विउविस्मति. जी० ३३१११६ विउम्पिपिडिपत्त [विक्रियद्धिप्राप्त ] ओ० २४ विउव्वणा [विकरण ] जी० ३११२७।४,१२६२ से ४ विउम्बित्तए [विकर्तुम् ] जी० ३.११० विउम्वित्ता विकृत्य] रा० १० जी० ३।११० विउम्विय [विकृत] ओ० ४६ विउठवेमाण {विकुर्वाण ] जी० ३१११०,१११५ विउस्सग्ग [ व्युत्सर्ग ओ० ३८,४३,४४ विउस्सापारिह | पुत्सहि ] ओ० ३६ विओग | वियोग] ओ० ४६ विओसरणयाँ व्युत्सर्जन] ओ०६६,७०. रा. ७७८ विद वृन्द] स०६८३. जी० ३१५८६ विहणिज्ज वृंहणीय] ओ०६३ विकच्छसुत्तग वैकक्षसूत्रक] रा०२८५ विकल्प [विकल्प] ओ० ५७. जी० ३१५६४ विकिट्ठ । विकृष्ट ओ० १. रा०६८३ विकुस विकुश ] ओ०८,१०. जी ० ३.३८६,५८१ ___से ५८३, ५८६ से ५६५ विक्कम विक्रम | ओ०१६,२३. जी० ३१७६, १७८,१८०,१८२,५९६ विक्किरिज्जमाण [विकीर्यमाण | रा० ३० विक्खंभ [विष्कम्भ] ओ० १३,१७०,१६२. रा० ३६,१२४,१२६ से १२६,१३७.१७०, १८६,१८८,१८६,२०१,२०४ से २१२,२१८, वाहित [ व्याहृत] जी० ३।२३६ वि अपि ओ० ६७. रा० २७६ विअदृच्छउम [विवृत्तछद्मन् ] जी० ३।४५३ विइय द्वितीयj ओ० १८२ विउक्कम [वि-+-उत्+क्रम् ]-विउक्क मंति. जी० ३८७ विउल विपुल | ओ० १,२,५,८,१४,१६,२३,४६, ५२,५५,६८,१४१,१४७,१४६,१५०. रा०७, १५,३२,२२८,२७८,२७६,२८१,२६१,२६४, २६६,३००,३०५.३१२,३५५,६७१,६७५, ६८०,६८१,६८३,६८४,६८७,६६५.६६६, Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३४ विक्खरिज्जमाण-विज्जुदंर २२१,२२२,२२४,२२६,२२७,२३०,२३१, २३३,२३८,२३६,२४२,२४४,२४६,२४७, २५१ से २५३,२६१,२६२,२७२. जी. ३१५१ ८१,८२,८६,१२७,२१७,२२२,२२६,२६० से २६३,२७३,२६८,३००,३०७,३१०,३५१ से ३५५,३५८,३५६,३६१,३६२,३६४,३६५, ३६८ से ३७४,३७६,३७७,३८०,३८१,३८३, ३८५,३८६,३६२.३६३,३६५,४००,४०१, ४०४,४०६,४०८,४१२ से ४१४,४२२,४२५, ४२७,४३७,५७७,६३२,६३४,६३६,६४२, ६४४,६४६,६४७,६४६,६५३,६५५,६६१, ६६३,६६८,६७१ से ६७५, ६७६,६८३,६८५, ६८६,७०६,७२३,७२६,७३२,७३६,७३७, ७५४,७५६,७५८,७६२.७६५,७६८,७७०, ७६४,७६५,७६८,८१२,८२३,८३२,८३५, ८३६,८५०,५८२,८८४,८८५,८८७,८८८, ८६१,८६३ से ८६५,८६७,८९६ से १०१, १०६,६०७,६१०,६११,६१८,९५२,१०१० से १०१४,१०७३,१०७४ विक्खरिज्जमाण [विकीर्यमाण] जी० ३१२८३ विक्खेवणी [विक्षेपणी] ओ० ४५ विग [ वृक] जी० ३८४,२७७,६२० विगय [विगत ] जी० ३३०४ विगसिय [विकसित ] रा० ८,७१४ विगोवइत्ता विगोप्य] ओ० २३. रा० ६६५ विरगह [विग्रह] ओ० ५६ विग्गहिय [विगृहीत] जी० ३१५६८ विचरिय [विचरित] जी० ३३११८,११६ विचिक्की | दे० रा. ७७ विचित्त | विचित्र | ओ० ६,४७,४८,६३,७२. रा० १७३,२२८,६८१. जी० ३।२७५,२८५, ३८७,५८७,५८६,५६१,६७२ विच्छड्डइत्ता विच्छई | मो० २३ विच्छड्डित्ता [विच्छद्य ] रा० ६६५ विच्छड्डिय [विदित] ओ० १४,१४१. रा०६७१, ७६६ विच्छविय [विच्छिविक] जी० ३१६६ विच्छिण्ण [विस्तीर्ण] ओ० १४,१६. रा० ६७५, ७७४. जी० ३।२६१,३५२.५६६,५६७,६३२, ६३६,६८६,८.२ विच्छिन्न [विस्तीर्ण] रा०६७१ विच्छिप्पमाण [विस्पृश्यमान] ओ० ६६ विच्छ्य [वृश्चिक] जी० ३८५ विजढ वित्यक्ता जी. ३१५४,५६ विजढपुस्व [वित्वक्तपूर्व जी. ३.५४,५६ विजय [विजय ] ओ० २०,५३,६२,६४,६८,१९२. रा०१२,४६,५०,५२,५६,७२,११८,१३७, २३१,२४७,२७६,२७६,६६५,६८३,६८६, ७०७,७०८.७१३,७२३. जी०३११८१,२९४ से ३०७.३१५,३३५,३३६,३३६ से ३५१,३७२, ३६३,४०२,४१०,४२६,४३२,४३५,४३६ से ४५७,५५५ से ५६५,६०१,६३८,६६०,६६५, ७०१,७०७ से ७१०,७१३,७६२,७७५.७६६, ८००,८१३,८१४,८२४,८२५,८५१,८६८, ६१६,६३७,६३६,६४०,९४४ विजयदूस [विजयदूप्य ] रा० ३८,३६. जी० ३।३१२,३१३,३३८,६३४,८६२ विजया [विजया] जो ० ३१३५०,३५१,३५४,३५५, ३५७,३५८,३६०,४३६,४४२,४४५ से ४४८, ५५४,५५५,५५७,७०४,७१०,७३६,७४४,९०२ विजाति | विज्ञाति] जी० ३१७८१,७८२ विज्जा [विद्या] ओ० २५. रा० ६८६ विज्जावर | विद्याधर] जी. ३७६५ विज्जाहर | विद्याधर ओ० २४. रा० १७,१५, २०,३२,१२६. जी. ३१२८८,३००,३७२,७६५, ८४०,८४१ विज्ज [विद्युत् ] ओ० ४८,५७. रा० १३३. ___ जी० १७८ ; ३३३०३,५६०,११२२ विज्जुकार [विद्युत्कार ] जी० ३१८४१ विज्जत [विद्युत् ] जी० ३१६२६ विज्जवंत [विद्युद्दन्त ] जी० ३१२१६ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वज्जुप्पभ-विदेह ७३५ विज्जुप्पभ [विद्युत्प्रभ] जी. ३७४६ जी० ३१३७२,४५७ विज्जुष्पभा [विद्युत्प्रभा] जी० ३।७५१ विणिम्मुयमाण [विनिर्मुञ्चत् ] जी० ३३११८ विज्जुमुह [विद्युन्मुख जी० ३।२१६ विणिवाय [विनिपात ] ओ० ४६ विजयंतरिय [विद्युदन्तरिक] ओ० १५८ विणीत [विनीत] जी० ३१७६५,८४१ विज्जयाहत्ता | तितायित्वा] रा० १२ विणीय विनीत] ओ० ६१. रा० ७६५,७६६, /विज्जुयाय [विद्युताय]-विज्जुयायंति. रा० १२. ७७०,८०४. जी० ३१५६८,७६५,८४१ जी० ३४४७ विणीयया [विनीतता] ओ० ११६ विज्जयार [विद्युत्कार] जी० ३६४४७ विष्णय [विज्ञक] रा० ८०६,८१० विज्सव [वि+ध्यापय् ] -विज्झवेज्जा. रा० ७६५ विण्णव [वि + ज्ञपय]-विष्णवेहि. रा०६६६ विज्झाय [विध्यान ] रा० ७६५ विष्णाण [विज्ञान] ओ० २३. रा० ७५८,७५६, विदुर [विप्टर] जी० ३१५८७ ७६५,७६६,७७० विडंग [विटङ्क] जी० ३१५६४ वितण्ह [वितृष्ण] जी० ३३१०६ विडाल [बिडाल ] जी० ३१६२० विततावितत] रा० २४,११४,२८१. विडिम दे० विटप} ओ० ५,८,५१. रा० २२७, जी० ३।२७७,४४७,५८८ २२८. जी० ३।२७४,३८६,३८७,५६८,६७२, विततपक्खि [विततपक्षिन्] जी० १६११३; २०१० विणइय [विनयित रा० ७२३ वितार [वितार] रा० ७६ वितिक्कत व्यतिक्रान्त ] रा०८०१ विण? [विनष्ट ] जी० ३१८४ विणमिय[विनत] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. वितिमिर वितिमिर जी० ३१५८६ जी० ३।२६८,२७४ वित्त [वित्त] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,६७५ विणय [विनय] ओ० २,२३,३८,४०,४७,५२,५६, वित्ति वृत्ति] ओ०६१ से ६३,१६१,१६३. रा० ७५२,७७६ । ५७,५६,६१,६६,७०,८३,१३६. रा० १०,१४, १८,६०,७४,२७६,६५५,६७१,६८१,६८७,६६२, वित्थड [विस्तृत ] ओ० ७१. रा० ६१. " जी० ३८१,८२,८३८:१५,१०७३,१०७४ ७०७,७१६,७३७,७७७,७७८. जी०३१४४५, वित्थरतो विस्तरतस् ] जी० ३१२५६ ५५५ विस्थार [विस्तार जी० ३.७३ विणयमओ विनयतस् ] स० ६६४ पिस्थिण्ण विस्तीर्ण ओ०१४१. रा० १७,१८, विणयतो [विनयतस् ] जी० ३१५६२ १२४,१२७,७६६. जी. ३१५७७,६६१,७३६, विणयपडिवत्ति [विनयप्रतिपत्ति] रा० ७७६ १०३६ विषयसंपण्ण [विनयसम्पन्न ] ओ० २५. रा० ६८६ विदिण्णविचार [विदत्तविचार] रा० ६७५ विणासण | विनाशन] रा०६,१२,२८१. विदित (विदित] ओ० २६ जी० ३१४४७ विदिसा [विदिशा] जी० ३।६१८ विणिच्छय विनिश्चय रा०६८९ विदिसीवाय [विदिग्वात जी० ११८१ विणिच्छिय [वि निश्चित ] मो० १२०,१६२. विदपरिसा [विदवत्परिषद ] रा०६१ रा० ६६८,७५२,७८६ विदेस [विदेश] ओ० ७०. रा० ८०४ विणिम्मुयंत विनिर्मुञ्चत् ] रा० ३२,२९२. विदेह [विदेह ] ओ० ६६. जी० २१८६ Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदेहजंबू-वियाणय विदेहजंबू [विदेहजम्बू ] जी० ३१६६६ विधाण [विधान ] जी० ३१२५६ विधि [विधि ] जी० ३६१६०,२५६,४४७,५८७ से ५८६,५६५,६३४ विपंची [विपञ्ची] रा० ७७. जी० ३१५८८ विपक्क विपक्व | जी० ३।५६२ विपरिणामाणुप्पेहा [विपरिणामानुप्रेक्षा] ओ०४३ विपुल [ विपुल ] रा०६८६,७६५. जी० ३१४४४, ४४५,४४७,४५६,५६६ विप्पइट्ट [विप्रकृष्ट] जी० ३।५६१ विघ्पओग [विप्रयोग] ओ० ४३ विप्पजहणा विप्रहाणि | ओ०१८२ विप्पजहिता | विप्रहाय] ओ० १८२ विप्पमुक्क [विप्रमुक्त ] ओ० १४,२५,२७,३६, १७२,१६५८. रा० १२,१७३,२६१,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२,३५५,६७१,६८६, ८१३. जी. ३२२८५,४५७ विप्परिणामइत्ता [विपरिणमय्य | जी० ११५० विप्पोसहिपत [विघुडौषधिप्राप्त ] ओ० २४ विस्फालिय [ विस्फारित ] जी० ३१५९६ विफलीकरण [विफलीकरण] ओ० ३७ विभम [विभ्रम] जी० ३६५६४ विभंगणाणि [विभङ्गज्ञानिन् ] जी० १।६६; ३।१०४,११०७, ६३१६७,२०३,२०७,२०८ विभत्त | विभक्त | जी० ३१५६७ विभयमाण [विभजमान] जी० ३८३१ विभति | विभक्ति] जी० ३।५६४ विभाग [विभाग] जी० ३।५६१ विभासा [विभाषा] जी० ३।२२७ विभूइ [विभूति ] ओ० ६७. रा० १३,६५७ विभूति [विभूति ] जी० ३१४४६ विभूसण [विभूषण] ओ० ४६ विभूसा | विभूषा] ओ० ३६,६७. रा० १३, ६५७. जी० ३।४४६,११२१ से ११२३ विभूसित । विभूषित] जी० ३।४५१ विभूसिय [विभूषित | अ०६३,७०. रा० २८५, २८६,८०५. जी० ३।४५२ विमउल [विमुकुल | ओ०१ । विमउलिय [विमुकुलित जी० ३।५६० विमल | विमल आ० १५,१६,४६,४३,५१,६३, ६४,१६४. रा० ३२,५१,६६,७०,१३०,१५६, १७४,८८,२९२,६६४,६७२,६८३. जी० ३३११८,११६,२८६ ३००,३३२,३७२, ४५४,४५७,५६२,५८६,५६६,५६७८६६ विमलप्पभ विमलप्रभ जी. ३१८६६ विमाण | विमान ] ० ५१. रा० ७,१२ से १४, १२४ से १२६,१२६,१६२,१६३,१६९.१७०, २७४,२७६,२७६,२८१,२८२,६५४,६५५, ७६६, जी० ३११७५ से १८२,२५७,८४२. ८४५,१०२४ से १०२६,१०३८,१०३६, १०४३,१०४८,१०५६ से १०५९,१०६५, १०६७,१०७१,१०७३,१०७५ से १०५१, १०६७,११११ विमाणावास [विमानावास रा० १२४. जी० ३.२५७,१०३८,१०३६,११२८ विमुक्क [विमुक्त ] ओ० १६५।६,१८,२१. जी० ३१४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, ५१६,५२०,५५४,५६७ विम्हावण [विस्मापन] ओ० ११६ वियट्टछउम [ विवृत्तछद्मन् ] ओ० १९,२१,५४, रा०८ वियड |विकट ] औ० १६. जी. ३१५६६,५६७ वियडावति | विकटापातिन् ] जी० ३७९५ वियडावाति | विकटापातिन् । रा० २७६. जी० ३।४४५ वियसंत | विकसत् | ओ० ४६ वियसिय | विकसित ओ०५१,४७,५४. रा० १३७. जी० ३१३०७ वियाणंत [विजानत् ] ओ० १६०१६ वियाणय [विज्ञायक | रा०५०४ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वियाणित्ता-विसय विवच्चास विपर्यास रा० ७६७,७६८,७७६, वियाणित्ता [विज्ञाय] ओ०१४६. रा०८१० वियाणिय | विज्ञात ] ओ०७० वियालचारि | विकालचारिन् । ओ० १४८,१४६. रा० ८०६.८१० विरइय विरचित] ओ०६,६३. जी० ३१२७५ विरचिय ! विरक्ति | रा०६६,७० विरत [विरत | ओ० ४६ विरय [विरत | श्रो० १६२ विरल्लिय | विरल्लित] जी० ३२५६१ विरसाहार | विरसाहार ओ० ३५ विरहित विहिन जी० ३।७६१,८४४ विरहिय विहित ] ओ० ३७. जी. ३१८४७ विराइय [विगजित ] ओ० १४,४७,५७,७२. E09०,६७१. जी० ३१५६७,११२१ विरागया | विलगता ओ० ४६ विरायंत (विराजत् । ओ० २१,५४,५७. रा०८, विवणि [विपणि ओ०१. जी० ३.६०७ विवर विवर| रा० ७५४ से ७५७,७६३ विवागविजय | विशाकविचय औ० ४३ विवागसुयधर विपायाश्रुतधर | ओ० ४५ विवाह [विवाह | जी० ३३६३१ विवाहपण्णत्तिधर | व्याख्याप्रज्ञप्निधर | ओ० ४५ विवित्तसयणासणसेवणया विविक्तणनासन सेवनता ओ० ३७ विविध विविध जी० ३।३०२,३८७,५८८,५६४ विविह विविध | ओ० १,४६,५१,११७. रा०२०, ४०,१३२,१३७,२२८,७६६. जी०६२६५, २८८,३०७,३११,५८६.५८७,५८६ से ५६३, ५६५,६७२ विवेग | विवेक ] ओ०४३,७९ से ८१ विवेगारिह { विवेकाह] ओ० ३६ विस । विषरा० ७६१,७६४,७६५ विसज्जित [विजित रा०६८५ विसज्जिय विजित ] ओ० २१. रा०६८० ६६६,७००,७०२,७१० विसप्पमाण | त्।ि ओ० २०,२१,५३,५४, ५६,६२,६३ ७८,८०,८१. रा०८,१०,१२, से १४.१६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४, २७७,२७६,२८१,२६०,६५५,६८१,६८३, ६६०,६६५,७००,७०७,७१०,७१३,७१४, ७१६,७१८,७२५,७२६,७७४,७७८, जी० ३।४४३,४४५,८४७,५५५,५६७ विसभक्खियम | विषक्षितक ओ०६० विसम | विषम | ओ. १७१. जी० ३१६२३,७०५, ७६७,८११,८२२,८४६ विसय विशद रा० १३३. जी० ३१३०३,५६२, विरायमाण | विराजमान] ओ० १ विराहय [ विसाधक ] १० ६२ विरिय | वीर्य] जी० ३१५६२ विरुद्ध विरुद्ध | ओ० ६३ विस्वरूव । विरूपरूप] रा० ८१६ विलंबिय बिलम्बित • १०३.२८१. जी० ३.४४७ विलवणया विलपनता | ओ० ४३ क्लिविय | विलपित ] ओ० ४६ विलसिय विलासित ओ०१६ विलास विलाय ओ० १५. रा० ७०,६७२, ८०६.८१०. जी० ३४५६७ विलासित विलाशित जी० ३ ५९६ विलोण विलीन जी० ३१८४ विलेवजलिपन ओ०६३,१६१,१६३,१७० विलेवणविहि वि पनविधि ] १० १४६. रा० ८०६ विव [इव | ओ० १६. रा० १३३. जी० ३३१११ विसय विषय ] ओ० २३,३७. रा० १५. जी० ३१९७६,९७७ Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसह-वाह विसह | विषह । ओ० २७. रा० ८१३ विहग विग] ओ०१३,१६,२७. रा० १७,१८, विसाण विवाण | ओ० २७. रा. ८१३ २०,३२,३७,१२६,८१३. जी० ३१२८८,३००, विसाय विवाद ओ०४६ ३११,३७२,५९६ विसारय | विशारद ] ओ० ६७,१४८,१४६. विहत्थि [विहस्ति ] जी० ३१७८८ रा०६७५,८०६,८१० विहर | वि--ह। -विहरइ. ओ० १४. रा० विसाल [विशाल] ओ० ६४. रा० २२८. जी. ६. जी० ३१२३६.----विहरति.ओ० २३. रा० ३।३८७,५९७,६७२ १८५. जी. ३.१०६.-विहरति. रा० ७. विसाला | विशाला] जी० ३१६६६,९१५ जी० ३१२३४.--विहामि. २०७५२. - विसिट्ठ | विशिष्ट ] ओ० १६,६३. रा० ३२,५२ विहराहि. ओ०६८. रा०२८२. जी. ३.४४६ ५६,१५,२३१.२४७. जी० ३।२६७,३७२, -.-विहरिस्सइ. रा० ८१५-...विहारस्सति. ३६३,५६२,५६६,५६७,६०४,८५७ रा० ८०२.- -विहरिस्पामि. रा. ७८७. विसुज्झमाण [ विशुध्यमान] ओ० ११६,१५६ --विहरज्जा. ओ० २१ विसुद्ध विशुद्ध] ओ० ८,१०,१४,४६,१८३,१८४. विहरंत | विहरत् रा० ७७४ रा० २६२,६७१. जी० ३१३८६,४५७,५८१ विहरमाण [विहत् ] ओ०१६,३०,७६,७७,६२, से ५८३,५८६ से ५६५ ६५,११४,१५३,१५८,१५६,१६५. रा०६८६, विसुद्धलेस्स [विशुद्धलेश्य] जी० ३।१६६,२०१, ७११,७७४,८१६ २०३ से २०६ विहरित्तए |निहर्तुम् ] ओ० ११७. रा० ७६१. विसेस । विशेष ओ० १९५१७, रा. ५४,१८८. ___ जी० ३११०२४ जी० ३११२६५,२१७,२२६।५,३५८,५७६, विहरिता [विहृत्य ] ओ० १५५ ८३८१३ विहव | विभव] रा० ५४ विसेसहीण विशेषहीन जी० ३१७३ विहस्सति [ वृहस्पति ओ० ५० विसेसाधिय विशेषाधिक | जी० ३१८२ विहार वि.+ घटय ]--विहाडेइ. रा०२८८. विसेसाहिब विशेषाधिक ओ० १७०,१६२. जी० जी० ३१५१६..-विहाडेति. ओ० ७४१५. १९१४३,२०६८ से ७२,९५,६६,१३४ से १३८, -विहाडेति. जी० ३१४५४ १४१ से १४६; ३१७३,७५,८६,१६७,२२२, विहाडित्ता विघट्य] रा०२८९ २६०,३५१,३६१,६३२,६६१,६६८,७३६, विहाडेत्ता [विघटय ] स० ३५१. जी० ३।४५४ ८१२,८३२,८३५,८३६,८८२,१०३७,११३८; विहाण | विधान ] रा० ७१,७५. जी० ११५८,७३, ४.१६ से २२,२५,५१८ से २०,२५ से २७ ७८,८१ ३१ से ३६,५२,५६,६०,७१२०,२२,२३, विहाणमग्गण विधानमार्गण] जी० १३४,३६, ८.५है।५,७,१४,५५,१५५,१६६,१६६,१८४, ३६ १६६,२०८,२३१,२५० से २५३,२५५,२६६, विहार विहार] ओ०३०,१२,१५,११४.११५. २८६ से २६३ १५३,१५८,१५६,१६५. रा० ८१४,८१६ विस्संत [वियान्त] जी० ३।८७२ विहि [विधि} ओ०६३. रा० २८१. विस्सुयकित्तिय विश्रुतकीतिक ओ० २ जी० ३१४७५. ४७६,५८६,५८८,५६० से विहंगिया विहङ्गिका रा० ७६१ ५६५,८३८११३; ५।३० Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहिय-बेउब्वियामुग्धात ७३६ विहिय [विहित] ओ० १५. रा० ६७२ वीसाएमाण [विस्वादयत् | रा०७६५,८०२ विहुय [विधुत | जी० ३१५८० वीसादणिज्ज विश्वादनीय ] जी. ३१६०२,८६०, विहूण | विहीन जी० ३।२६८,३६० ८६६,८७२,८७८ वीइक्कंत अतिक्रान्त , मो० १४३,१४४. वीहि वोहि जी० ३।६२१ रा०८०२ वीहि [वीथि | जी० ३१२६८,३१८ वोईवइत्ता [व्यतिबज्य | ओ० १६२. रा० १२६. वीहिया [वीथिका ] ओ० ५५. रा० २८१. जी० ३१६३८ जी० ३१४४७ वोईवययाण अतियजत् ] रा० १०,१२,२७६. वीस विंशति जी० ३.१३६ जी० ३।४४५ बुग्गाहेमाण | व्युग्राह्यत् | ओ० १५५,१६० वोचि बीचि ओ० ४६. जी० ३।२५६ विच्च विवुच्चइ. ओ० ८६. रा० १२३. वीचिपट्ट | वाचिपट्ट] जी. ३१५६७ जी० ३१२३६ –बुच्चलि. जी० ३१५८ बीजेमाण | वीजयत् भी० ३१४१७ -~-बुच्चति. रा० १२३. जी. ३२२३६ वीणगाह [बीणाग्राह] ओ० ६४ वुड्डसावग [वृद्धश्रावक ओ० ६३ वीणा मीणा रा० ७७,१७३. जी० ३.२८५ बुड्डि वृद्धि] जी० ३।७५१,७८२,८४१ घोतसोग [वीतशोक] जी० ३१६२७ वृत्त | उक्त ओ० ५६. रा० १०,१२,१४,१८, थीतिवइत्ता [अतिव्रज्य ] जी० ३१७३६ ६०,६३,६४,७४,२७६,६५५,६८१,७०१, वोतिवतित्ता व्यतिव्रज्य ] जी० ३१३५१ ७०३,७०७,७२५,७६२. जी० ३१४४५,५५५ वीतिवः वि + पति+व्रज्]-वीतिबइंसु. जी० ३१८४०-वोतिवइस्संति. जी. ३२८४० वृपाएमाण [गुलादयत् ] ओ० १५५,१६० -~-वोतिवएज्जा. जी० ३८६-वीतिवयंति. बूह [व्यूह ! ओ० १४६. रा० ८०६ घेइय [व्येजित] रा० १७३. जी० ६।२८५ जी० ३१८४० गेइयपुडंतर [वेदिकापुटान्तर] रा० १६७ वोतिवयमाण [पतित्रजत् ] रा०५६. जी० ३१८६, नेइयफलक [वेदिकाफलक] रा० १६७ १७६,१७८,१८०,१८२ बेइया |वेदिका रा० १७,१८,२०,३२,१२६, वीतीवइत्ता व्यतियज्य रा० १२६ १६७. जी० ३।३७२,६०४,७२३,७७६,७७७, वोषि वीथि] श्री० ३।३५५ ७७६,६१० थोरवलए [वीरवलय] ओ० ६३ गेइयावाहा वेदिकाबाहु | रा० १६७ वीरासणिबीरासनिक ओ० ३६ घोउखि विकारिन् ] ओ० ५१ वोरिय [वीर्य ओ० ७१,८६ से १५,११४,११७, वेउवि [विकर्तुम् रा०१८ १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा०६१. जी० ३१५८६ वेउविध ! वैक्रिय रा० २७६,२८०. जी० १९८२, वीरिभलाद्ध वीर्यलब्धि] ओ० ११६ ६३,११६,१३५; ३।१२६।४,४४५,८४२ वीवाह | विवाह ] श्री० ३१६१४ वेउन्विामीसासरीर वैक्रियकमिश्रकशरीर] वीसंद ! वि-+स्यन्द् ]--बीगंदति. जी० ३१५८६ ओ० १७६ वीसंदित विस्यन्दित ] जी० ३१८७२ देउम्वियलद्धि [वैक्रिय लब्धि] प्रो० ११६ वोसत्य विश्वस्त] ओ० १ वेउब्वियसमग्घात [वैक्रियसमुद्घात] वीससा | विनसा] जी० ३६५८६ से ५६५ जी० ३।१११२,१११३ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४० देउब्वियसमुग्घाय-वेराणुबंध १४६ वेउब्वियसमुग्धाय [ वैक्रिपसमुद्धात | रा० १०,१२, वेदिया | वेदिका | जी० ३।२६६,२८८,३००,३७२, १८,६५,२७६. जी० ११८२, ३३१०८,४४५ ७६५,७६६ से ७७५,७७८ वेउब्वियसरीर वैक्रियशरीर ओ० १७६. वेवियापुडंतर | वेदिकापुटान्तर | जी० ३१२६६ जा०६।१७० वेदियाबाहा | वेदिकाबाहु | जी० ३१२६६ वेउवि सरीरि वैक्रियशरीरिन् जी० ६ १७०, वेदेमाण | वेदयत् | ओ० ८६ रा० ७५१ १७७,१८१ वेमाणिणो [वैमानिकी] जी० २.७१,७२,१४८, वेंट [वृन्त ] जी० ३।३८७,६७२ वेग वेग] ओ० ४६,५७ वेमाणिय वैमानिक ओ० ५०. रा० ७,११,१५ वेच्च व्युत, व्यूत | रा० ३७.२४५. जी. ३.३११, से १७,५५,५६,५८,५६,१८५,१८७.२७६, ४०७ २८६,२६१.६५७. जी० १११३५, २०१५,१६, वेजयंत [ वैजयन्त ) ओ० १६२. जी० ३.१८१, ४५,४६,७१,७२,६५,६६,१४८,१४६; १२३०, २६६,५६६,५६७,७०७,७११,७९६,८१३, ६१७,१०३८ वेय विद} ओ० २५. रा० ६८६,७७१. वेजयंती | वैजयन्ती] ओ०६४, ०० ५०,५२,५६, जी० २१४,११६; २११५१, ६६६ १३७,२३१,२४७. जी० ३।३०७,३६३,६१६, 1वेय वि.+ एज् |– वेथ इ. रा० ७७१.--वेयंति. जी० ३१७२६ १०२६ वेयंत (व्ये जमान ] रा० ७७१ वेडंतिय (पाय) (दे० ओ० १०५,१२८ वेडंतिय (बंधण) | दे० ] ओ० १०६,१२६ वेषण | वेतन रा० ७८७,७८८ वेढ | वेष्ट } २०० ७६७ वेयण [दे० विक्रय | रा० ७७४ वेढणग | वेष्टनक] जी० ३.५६३ वेषणा | वेदना | ओ० १७,४६,७१,७४.१६५. रा० ७५१,७६५. जी० ११८६, ३७७,११०, वेढित्ता [ष्टित्वः रा० ७६७ १२७१४,५,१२८।१,१२६७ वेढिमवेष्टिम | ओ०१०६,१३२. रा. २८५. वेयणासमुग्धा ! वेदनाम मुद्घात ) जी० ११२३,८२. जी० ३१४५१,५६१ वेणतिया । बनयिकी स० ६७५ वेषणिज्ज [वेदनीय ] ओ० ८६,१७१ वेणु वेणु जी० ३।५८८ वेयणीय [ वेदनीय | ओ० ४४ वेणुदेव (वेगुदेव जी० ३।२५० वेदिय । विदिक औ० २ वेणुसलाइ | देणुशलाकिको ] रा० १२ वेयालिया वेवालिकी| रा० १७३. वेव | वेद] ओ० ६७. जो० २११५१ । जी० ३:२८५ वेद | वेदय् ] - वेदति. जी० ३१११२ वेयावच्च [वैयावृत्य] ओ० ३८,४१ वेदणा | वेदना] जी० ३।१११ से ११५,११७, वेर [वै] जी० ३.६२७ १२८ वेरग्ग | वैराग्य ] ओ० ४६,७४१५ वेदणासमुग्धात [वदनास मुद्घात ] जी० ३।१११२. वेरमण [विरमण } आ० ७६,७७,७६ से ८१, १२०,१४०,१५७. ०६६३,६९८,७१७, वेदणासमुग्धाव वेदनास मुद्घात जी० ३।१०८, ७५२,७८७,७८६ वेराणुबंध वैराणुबन्ध] जी० ३२६१२ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेरिसिउणिज्झय ७४१ वोज्य [उह्य रा० २८५. जी. ३४५१ वोलट्टमाण व्यपलोटस् ] जी० ३१७८४,७८७ वोसट्टमाण [विकमत् ] जी. ३१७८४,७८७ । वोसिर । वि-उत्- गज --को सिरामि. ओ० ११७. रा० ७६६ ब्य [इब ] ओ० १६. रा० १३७. जी० ३।३०७ स वेरि | वैरिन् ] जी० ३१६१२ वेरिय [वैरिक | जी० ३१६३१ वेरुलिय [वैडूर्य ] ओ० ६४. र१० १०,१२,१८, ३२,५१,६५,१५४,१५६,१६०,१६५,१७४, २२८,२५६.२७६,२६२. जी० ३१७,३३२, ३३३,३४६,३७२,३८७,४१७,४५७,६७२ वेरुलियमणि [वैडूर्यमणि जी० ३१२८६,३२७ बेरुलियमय | वैडूर्यमग्र ० १३०,१५३,२७०. २६२. जी० ३।३२२,४३५ वेरुलियामय वैडूर्यमय | रा० १६,१३२,१७५, १६०,२३६. जी० ३.२६४,२८७,३००,३०२, ३२६,३६८,४५७,६४३,८७५ वेलंधर | वेलवर) जी० ३१७३४ से ७३६,७४०, ७४२,७४५,७४७,७८१,७८२ वेलंब | वेलम्ब | जी० ३।७२४ वेलंबग | विडम्बक] ओ० १,२ वेलंबगपेच्छा [विडम्बकप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० ३.६१६ वेलवासि वेलावासिन् । ओ० ६४ वेला वेला) ओ० ४६. जी० ३।७३२ वेलु | वेणु] १०७७ वेस वेष ] ओ० १५,४६,५३,७०. रा० ७०, १३३,६७२,८०४. जी० ३१३०३,५६७, ११२२ वेसमण | वैश्रमण ओ० ६५ धेसमणमह वंश्रमणमह | स०६८८. जी० ३।६१५ बेसाणिय वैवाणिक ] जी० ३१२१६,२२१ वेसाणियदीव विधाणिकद्वीप] जी० ३।२२१, २२५ वेसासिय | वैश्वासिक ओ० ११७. रा० ७५० से सस ओ० २,१२,१५,१६,३०,५४,६० से ६५, ७०,६७,१७०,१६४. रा० ७,८,२१,२४,३२, ३४,३६,३७,४२,४७,५०,५१,५६,५८,६७, ६६,७६,१२४,१४५,१५७,१६३,१६४,१६६, १७३,१८६,२०४ से २०६,२१६,२४३,२४५, २५५,२५६.२८०,६७२,६८१ से ६८३,६६१, ६६२,७००,७०३,७१४ से ७१६,७७१,८१५. जी० ३।३५,३६,४०,४१,४३,४४,४६,१७४, २६१,२६६,२६६,२७७.२८५,२८८,३००, ३०६,३०७:३११,३३५,३४०,३५०,३५२, ३५५,३५६,३६६,३७२,३७४,३७८,३८७, ३६५,४०५,४०७,४१२,४१६,४२५,४४६ से ४४६,५५७,५६३,५६२,५६६,६५८,६६३, ६७२,६७३,६८५,७२८,७३३,७३७,७४०, ७४२,७४५,७५०,७६२.७६५.७६८,७७०, ८३८११२,१००६,१०३३,१०५४ स स्व | ओ० ६४,७१. १०६,११,१३,५६,१५४ २८१,६८३,७२३,७२६,७३२,७३७,७४७, ७७४. जी० ३३२७,३५९ सइ [स्मृति ओ० ४३ सइंदिय [सेन्द्रिय ] जी० ६:१५ से १७,६६ सइय [शतिका] ओ० १८७. जी० ३.६८१ सउण [शकुन | ओ० ६. ग० १७४. जी० ३१११ः ११६,२७५,२८६,६३६ सउणस्य [शकुनरुत] ओ० १४६. रा०८०६,८० सउणि [शकुनि ] जी० ३१५६८ सणिज्य [शकुनिध्वज] रा० १६२. जी० ६:३३५ देहाणसिय [ वैखानसिक ] ओ० ६० वोच्छिण्णय व्यवच्छिन्नक] रा० ७५३ Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४२ संकंत-संगल्लि संकंत सक्रान्त] रा० ७५३ संकड [सङ्कट] ओ० ४६. रा० २८५. ___जी० ३४५१ संकप्प सङ्कल्प ] रा०६.२७५,२७६,६८८,७३२, ७३७,७३८,७४६,७४८ से ७५०,७६५,७६८, ७७३,७७७,७६१,७६३ जी० ३६४४१,४४२ संकम [सङ्क्रम] जी० ३८३८.१२ संक्रमण [सङ्क्रमण] जी० ३३८३८।१२ संकला शृङ्खला] रा० १३५,२७०. जी० ३१३०५,४३५ संकसमाण [सङ्कसत जी० ३३११८,११६ संफिट्ट [सङ्कृष्ट ] ओ० १ संकिलिस्स ! सं+क्लिश् ] ----संकिलिस्संति. ओ० ७४१४ संकु [शङ्कु) रा० २४. जी० ३।२७७ संकुइय [शङ्कुचित] ओ० ६६. जी० ३८० संकुचियपसारिय [सङ्कुचितप्रसारित] रा० १११, २८१. जी० ३।४४७ संकुय [सङ्कुचजी० ३८३८११५ संकुल सङ्कुल ] ओ० ४६. रा० १४ संकुसुमिय [ सकुसुमित] र१० ४५ संख शङ्ख] ओ०१६,२३,२७,४७,६७,१६४. रा० १३,२६,३८,७१,७७,१६०,२२२,२५६, ६५७,६६५,८१३. जी० ३२८२,३१२,३३३, ३८१,४१७,४४६,५६६,५६७,६०८,७३४, ७३५,७४२ से ७४४,८६४ संखसाङ्ख्य] ओ०६६ संख (पाय) [शङ्खपात्र] ओ०१०५.१२८ संख (बंधण) शिबन्धन | ओ० १०६,१२१ संखतल [शङ्कतल] रा० १३०. जी० ३।३०० संखषमग [शङ्खमायक] ओ०६४ संखमाल [शङ्कमाल ] जी० ३१५८२ संखवाणिय [ शङ्खवणिज्] रा० ७३७ संखवाय शङ्कवादक] रा० ७१ संखाण [सङ्ख्यान] ओ०६७ संखादत्तिय [सङ्ख्यादत्तिक],ओ० ३४ संखिज्ज [नङ्ख्येय] जी० ४१११ संखित्त सिक्षिप्त ] रा० १२३. जी० ३।२६१, ३५२,६३२,६६१,६८६,७३६,८३६,८८२ संखित्तविउलतेयलेस्स सिक्षिप्तविपुलतेजोलेश्य ओ० ८२. रा०६८६ संखिय [शाजिक) ओ०६८ संखियवाय [शङ्खिकावादक | रा० ७१ संखिया [शङ्खिका] रा० ७१,७७. जी० ३।५८८ संखेज्ज [ सङ्ख्येय] स० १०,१२,१८,६५,२७६. जी० ११५८,७३,७८,८१,१०१,१३४,२१६३, १२१,१२६, ३१८१,८२,८६,११०,४४५,८५०, ८५२,८५५,८५८,८६१,८६४,८६७,८७०, ८७६,६२४,६२६,१०७३,१०७४,१०५३, १०८४,१११५:४८,१२ से १४,१६, ५.१०, १२ से १५,२९,४१ से ५०,५६,५८,८१३; ६।३,४,२२३,२२८,२५६ संखेन्नइभाग [सङ्ख्येयतमभाग] जी० १।६४, १२४,१३५ संवेज्जगुण [सङ्ख्येयगुण] जी० २१६६ से ७२, ६५,१६,१३६ से १३८,१४१ से १४६; ३।७३, ७५,१०३७,४१२२,२५; ११६,२०,२६,२७, ३५,३६,५२,५८,६०।६।१२,६।३७,६४,१३०, १६६,२२० संखेज्जतिभाग [मड्ड्येयतमभाग] जी० ३१६१, १०८७ संखेज्जभाग [संख्येयभाग] जी० ३.६१ संखेज्जहा [संख्येयधा] रा० ७६४,७६५ संग सङ्ग] ओ० १६८ संगत मङ्गत] जी० ३१५६६,५६७ संगतिय [साङ्गतिक ] जी० ३१६१३ संगय [सङ्गत] औ० १५.१६ रा०६६,७०,७५. ६७२,८०६,८१० जी० ३५९७ संगामिय [साङ्गामिक ओ० ५७ संगल्लि [दे०] ओ० ६६ Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संगोवंत-संठिति संगोवंग [साङ्गोपाङ्ग ओ० ६७ संघ | सडओ० ४० रा० ३२,२०६ २११ जी० ३७२ संघयण | मंहनन । मो० ८२,१८५ जी०११४, १७,८६,६५१२८,१३५, ३१६२,१२७१३, ५६८,१०६० संघणि कनिन् जी० ११६५,१०१,११६, १३०. ३१६२,१०६० संघरिससमुट्ठिय संघर्षालमुत्थिन] जी० ११७८ संघवेयावच्च वयावृत्य औ० ४१ संघाइम सङ्कातिर ओ० १०६,१३२, रा० २८५ जो० ३४५१,५६१ संघाडबाट रा० १४१,१६२ जी० ३।२६४ २६६.३१८,३५५ संघाडग सङ्घाटक श० १६० संघातत्त सातत्व जी० ३।१०६० संघाय सात ओ० ४७,७२. जी० ११७२२२,३ संघायत्त सवारत्व] जी० १४१३५३१६२ संचय [रावय] ओ० ४६ जी० ३१५९८ सिंचायसं+शक्]--संचाएइ. रा० ७५१ ----संचाएंति. रा० ७७४.. -संच एजहा. जी. ३१११६ -संचाएति. रा० ७५३ बी० ३११८- -संचाएमि रा०६६५ सिंचिट्ठ [सं+ष्ठा ... संविइ. रा० ७०१ चिटुलि. रा०६४ जी० ३.७२५ संचिणा [संस्थान] जी० ११४१, २१६२,८३, ८५,१५०,१५१, २२६; ६,७,७३८,८१३; ६१३,१६,३६,१५७,१६८,१८३,२६३ संछपण सञ्छन्न) जी० ३.११८,११६,२८६ संछन्न सञ्छन | रा० १७४ संजतासंजत संयनासंयत | जी० ६.१४४ संजमाया। ओ० २१ से २६,४५,४६,५२,१२ रा०८,६,६८६,६८७,६८६,७११,७१३,८१४, ८१७ संजमासंजम । संयमासंयम मो० ७३ संजय [संगत, ओ० ४६ जी० ६३१४१,१४२,१४६ १४७ संजयासंजय [संयतासंयत ] जी०६।१४१,१४६, १४७ संजायकोहल [संजातकोतूहल | ओ० ८३ संजायसंसय सातसंशय | ओ० ८३ संजायसड्ड [ सजातश्रद्ध] ओ० ८३ संजत संयुक्त रा० ७५३,७६५ जी० ३१५९२ संजोग [संयोगओ० २८,४६ संझम्भराग [सन्ध्याघ्रराग रा०२७ जी० ३:२८० संझा | सन्ध्या] जी०३१६२६ संझाविराग सन्ध्यादिराग जो ३१५८६ संठाण [संस्थान ओ० ४७,५०,५२,८२,१७०. १८६.१६४,१६५।३,४,८ रा० १२४,१२७, १३२,१८५ जी० १११,१४,७२,१२८,१३६; ३१२२,४८ से ५०,७८,८६,१२७११,३,१२९४३, ४,२५७,२६०,२६१,२९७,३०२,३५२,५७७, ५६८,६०४,६३२,६६१,६८६,७०४,७२३, ७२६,७३६,७६६,८१०,८२१,८३१,८३६, ८४१,८४२,८४५,८४८,८५७,८५६,८६२, ८६५,८६८,८७१,८७४,८७७,८५०,८५२, ६११,९१८,६२५,१००८,१०७१,१०६१, संठाणओ । संस्थानतस् ] जी० ३।२५६ संठाणतो [संस्थानतम् ) जी० ३१२२ संठाणविजय [संस्थानविचय ] ओ० ४३ संठित संस्थित] रा० १२४ जी० ३१२८ से ३२; ४८ से ५०,७८ ७६,८६,६३,२६०,२६१, २६७,३०२,३५२,५७७,५६७,६३२,६६१, ७०४,७०५,७६३,७६६,७६७,८१०,८११. ५२१,८२२,८३१,८३६८४२,८४५,८४८, ८४६,८५७,८५६,८६२,८६५,८६८,८७१, ८७४,८७७,८०,८६२,६११,६२५,१००८, १०६१,१०६२ संठिति [संस्थिति] जी० ३१८११ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४४ संठिय-संपरिविखत्त संठिय | संस्थित | ओ० १,१३,१६,५०,८२,१७०, १५६,१७५,१६०,२४५,६६४. जी० ३२६४, १६४. रा० ३२,५२,५६,१२७,१३२,१३३, २८७,३००,३११३३२,४०७,५६२,५६६,५६७ १८५,२३१,२४७. जी. १११८,६४,६५,६७, संधिवाल | सन्धिपाल | ओ० १८.६३. रा०७५४. ७४,७७,७९,८६,६६,११०,११६,१३०,१३६, ७५६,७६२,७६४ ३१३०,५०,७८,२५७,२५६,२६७,३०३,३०७, सिंधुक्त मं-धूक्ष]---संधुक्खेह. रा. ७६५ ३७२,३६३,४०१,५६४,५६६ से ५६८,६०४, संनिकास निकाश जी० ३१३०३ ६८६,७२३,७२६,५३६,७६३,८३८१२,१५, संनिक्खित्त | सलिक्षिप्त जी० ३।८०२,४१०, ६१५,६१८,१०७१ ४१८,४१६,४२६,४३२,४३५,४४२ संड [षण्ड ओ० २२. रा० ७७७,५७८,७८८ संनिखित्त | सन्निक्षिप्त | रा० २४०,२४६,२५४, संडासय मंदंशक] जी० ३।११८,११६ २५३.२५८,२६६,२६८,२७६ संडेय षण्डय] आ० १ संनिविद् सन्निविष्ट जी० ३२८५,३७२,३७४, संणिखित्त (सन्निक्षिप्त ] जी० ३।४१५ ६४६,६७३,६७४,८८४,८८७ संत सत् ] ओ० २३. ० ६६५. जी० ३१६०८ संपउत्त सम्प्रयुक्त] ओ० १४,२१,४३,६४,१४१. संत श्रान्त] ओ०६३. रा० ७६५ रा० ६७१,७१०,७७४,७६६ संताण | सन्तान ओ० ४६ संपओग सम्प्रयोग | ओ०४३. रा०६७१ संति [सत् ] जी० १२७२१३ संपक्खाल सम्प्रक्षाल | ओ० ६४ सिंथर सं+स्तु]-संथरइ. रा० ७६६. संपगाढ | सम्प्रगाढ | जी० ३.१२६१७ --संथरति. ओ० ११७ संपट्ठिय सम्प्रस्थित ] ओ० ६४,११५ संथरित्ता | सस्तृत्व | ओ० ११७ संपणाइय सम्प्रन दित रा० ३२,२०६,२११. संथार (संस्तार] रा०६६८,७०४,७०६,७५२, जी० ३।३७२,६४६ ७८९ संपण्ण | सम्पन्न गी० ३१५६८ संधारग संस्तारक] ओ० ३७,१२०. रा० ७११ ।। संपत्त सम्प्राप्त ! अ.० २१,५२,५४,११५,१४४. संधारय संस्तारक] ओ० १६२,१८०. रा०७१३, रा० ८,२६२,६८७,६८६,७१३,७१४,५६६, ७७६ ८०२. जी० ३४५७ सिंथण सं+स्तु]- संथुगइ. रा० २६२. जी. ३१४५७ संपत्ति । सम्पत्ति संप्राप्ति जी० ३१११६ संथुणित्ता [मंस्तुत्य] रा ० २६२. जी० ३।४५७ संपत्थिय | सम्प्रस्थित ) रा०४६ से ५४,७७४ संवट्ठ सिन्दष्ट] जी० ३३३२३ संपन्न | सम्पन्न] जी० ३।७६५,८४१ संदमाणिया [स्यन्दमानिका] ओ० १,५२,१००, सिंपमज्ज सं+4+मज् ----मपमज्जइ. ओ० १२३. रा०६८७ से ६८६. जी. ३१२७६, ५९. -संपमज्जेज्जा. रा० १२ ५८१,५८५,६१७ संपमज्जेत्ता [सम्प्रमज्य] ओ० ५६ संदमाणी | स्यन्दमानी] रा० १७३ संपरिक्खित्त सम्परिक्षिप्त ] ओ०३,६,११. रा० संदमाणीया | स्यन्दमानिका | डी० ३१२८५ १२७,२०१,२६३. जी. ३२१७,२६०,२६२, संदिव | सन्दिष्ट ] रा० १५० २६५,३१३,३५२,३६२,३६८ से ३७१,३८८, सिंदिस सं+दिश् ] —संदिसंतु रा० ७२ ३६०,६३६,६५२,६५८,६६८,६७८,६७६, संधि सन्धि] ओ० १६. रा० १६,३७, १३०, ६८१,६८६,७०४,७०६,७३६,७५४,७६६. Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपरिक्खित्ताण-संवृत्त ७४५ ७६८,८१०,१२,८२१,८२३,८३३,८३६, ८४८,८५०,८५६,८६२,८६५,८६८,८७१, ८७४,८७७,८८०,६२५ संपरिक्खिताणं [सम्परिक्षिप्य ] जी० ३।४८ संपरिखित्त सम्परिक्षिप्त | रा०४०,१८६,१६१ २०५ से २०८ संपरिवुड [गम्परिवृत] ओ० १८,१६,६३,६८, ७०. रा०९,१३,४७,५६,५८,१२०,२६१, ६५७,६८३,६८६,७११,७५४,७५६ ७६२, ७६४,७७७,७७८,८०४. जी० ३१४५७,५५७, १०२५ संपललिय | सम्प्रललित] ओ० २३ संपलियंक [सम्पर्य] ओ० ११७. रा० ७६६.. जी० ३१८६६ संपविट्ठसम्प्रविष्ट] रा० ७६५ संपाविउकाम | सम्प्राप्तुकाम | ओ० १६,२१,५४, ११७. रा०८ संपिडिय | सम्पिण्डित] ओ०६. जी० ३२७५ संपुच्छण [सम्प्रश्न ] जी० ३।२३६ संपुड [सम्पुट ] जी० ३१७६३ सिंह [सं+ प्र+ईक्ष् ]-संपेहेइ. रा०६ संहिता [सम्प्रेक्ष्य] रा०६ संयेहेत्ता सम्प्रेक्ष्य ] रा० ६८८ संबंषि सम्बन्धिन् ] जी० १५०. रा० ७५१,८०२ संभिग्णसोय [ सम्भिन्नस्रोतस् ] ओ० २४ संभोग [सम्भोग] ओ० ४० संमज्जण [सम्मार्जन] रा० ७७६ संमज्जिय [सम्मार्जित रा० २८१,८०२ संमट्ट सम्मृष्ट ! रा० २०१ | संमय [सम्मत | ओ० ११७. रा० ७६६ V संमुच्छ |सं--- मूच्र्छ ।- समुच्छंति. जी० ३.१२७ संमुच्छिम [सम्मूच्छिम, सम्मूर्छनज] जी० १।६६ से ६८,१०१ से १०५,११२,११,१२६ से १२८ ; ३११३८,१३६,१४२,१४५ से १४७, १४६,१६१,१६३,१६४,२१२ से २१४ संमुहागय | सम्मुखागत ] जी० ३।२८५ संलख [संलब्ध] रा०७६८ संलाव | संलाप] आं० १५. १०७०,६७२. जी० ३१५९७ संलेहणा | संलेखना] ओ० ७७,११७,१४०,१५४ संवच्छर [संवत्सर] जी० ११८७; १९७; ३.८४१,४।४ संवच्छरपडिलेणग [संवत्सरप्रतिलेखनक] रा० ८०३ संवट्ट [सं+वर्तय् ] --संवटेइ. ओ० ५९ संवट्टगवाय [संवर्तकवात] जी० १११ संवट्टयवाय [संवर्तकवात ] रा० १२ संवदे॒त्ता [संवर्त्य ] ओ० ५६ संवड्डिय [संबंधित] रा० ८११ संबर | मवर] औ० ४६,७१,१२०,१६२. रा०६९८,७५२,७८६ संवाह (संवाह ] ओ०६८ संविकिपण संविकीर्ण] रा० ३२,२०६,२११. जी० ३।३७२ संविद्धणित्ता [संविधूय ] ओ० २३ संवड [ संवृद्ध | ओ० १५०. रा० १११ संवुत संवृतजी० ३।४०७ संवत्त [संवृत्त] रा० ७७१ संबद्ध [सम्बद्ध] जी० ३.११०,१११५ संबाह सम्बाध | ओ०८६ से १३,६५,६६.१५५, १५८ से १६१,१६३,१६८. रा०६६३ संबाणा | सम्बाधना । ओ०६३ संबाहिय [सम्बाधित | ओ० ६३ संबुद्ध [सम्बुद्ध] रा० ७७५ संभम | सम्भ्रम] ओ०६७. रा० ५,१३,६५७, ७१४. जी० ३१४४६ संभार (सम्भार] जी० ३१५८६ संभिषण [ सम्भिन्न ] जी० ३१११११२३ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संवय | संवृत] रा० ३७,२४५. जी० ३।३११ संग | सवेग ओ०६९ संवेयणी [संवेदनी ओ० ४५ संवेल्लित [दे०] जी० ३१३०३ संवेल्लिय | दे०) रा० ६६,७०,१७३ संसट्टचरय संसृष्टच रक] अ० ३४ संसत्त संसक्त] ओ० ३७. जी. ३१८४ संसार | संसार ] ओ० २६,४६,१६५ संसारअपरित्त (संसारापरीत ] जी०६७६ संसारपरित्त [संसारपरीत। जी. ७६,७८,८४ संसारविउस्सग्ग [ संसारव्युत्सर्ग] ओ० ४४ संसारसमावण्ण [संसारसमापन्न | जी० ११६,१० संसारसमावष्णग संसारसमापन्नक] जी० १११०, ११,१४३; २।१,१५१ ; ३११,१८३,११३८; ४११,२५, २१,६०, ६.१,१२,७११,२३; ८.१,५; ६।१.७ संसारसमावण्णय संमारसमापन्नक] जी० १११० संसाराणुपेहा [संसारानुप्रेक्षा] ओ० ४३ । संसारापरित्त [संसीरापरीत] जी०६।८१,८६ संसुद्ध [संशुद्ध] ओ० ७२ इससेय [सं+ स्विद् ! --संसेयंति. जी० ३३७२६ संहत [संहत] जी० ३।५६७ संहरण [संहरण] जी० २१३० से ३४,५७ से ६१, संवुय-सची सक्कय [ संस्कृत ] जी. ३ ५६५ ।। सक्करप्पभा [शर्कराप्रभा] जी० २१०० ३।४, ११,२०,२१,२७,३१,३२,३४,४०.४३,४४,४६, ६८,१०७ सक्करा शर्क] रा० ६,१२. जी० ३।६०१, ६२२ सक्करापुढवी [शर्करापृथ्वी ] जी० ३।१८५,१६० सिक्कार मित्+कृ] ...सक्कारिस्पति रा०७०४ --- सक्कारेइ. ओ० २१. रा०६८४ ---सरकारेज्जा. रा०७७६ -- सक्कारेमि. रा० ५८ ----सक्कारेमो. ओ० ५२. रा०१०.-सक्कारेस्संति. रा० ८०२. -सक्कारेहिति. ओ० १४७ सक्कार | मत्कार, ओ० ४०,५२. रा०१६,६८७, ६८६,८०३,८०५. जी. ३१६०६ सक्कारणिज्ज [स कारणीय] ओ० २. रा० २४० २७६. जी० ३।४०२,४४२ सक्कारित्तए [सत्कर्तुम् ] ओ० १३६. रा०६ सरकारेत्ता [सत्कृत्य ] ओ० २१ सक्कुलिकण्ण [शष्कुलिकर्ण] जी० ३१२१६,२२५ सक्कुलिकण्णदीव [शष्कुलिकर्णद्वीप] जी० ३१२२५ सग स्वक] जी० ३१७६८,७६६,७७२,७७३,७७६ से ६७६,११११ सगड [श कट] ओ० १००,१२३. जी. ३१२७६, ५८१,५८५,६१७,६३१ सगडवूह [राकटब्यूह] ओ० १४६. रा०८०६ सगल [सकल | जी० ११७२, ३।५९२ सगल [शक] जी० ३१५६६ सगेवेज्ज [सगवेय] १० ७५४,७५६,७६४ सग्ग [स] ओ०६८ सचित्त सचित] ओ० २८,४६,६९,७०. रा. संहित' [संहित] जी० ११७२१३; ३१५६६,५६७ संहिय [संहित] रा० १७३. जी० ३४५६७ सक [स्वक] ३१७६५,७७० । सकक्कस [सकर्कश ओ० ४० सकसाइ [सकपायिन् ] जी० ६३२८ सकाइय [सकायिक] जी०६।१८ से २० सकिरिय [सक्रिय] ओ० ४०,८४,८५,८७ सक्क [शक] जी० ३१६२०,९२१,६३७,१०३६ से १०४२,११११ १. संहितौ- मध्यकायापेक्षया विरली ७७८ सिचित्तीकर [ सचित्तीकृ]- सचित्तीकरेइ. रा० ७७२ सची [शची] जी० ३१९२० Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सच्च-सह सच [ सत्य ] ओ० २,२५,७२,११८. रा० ६८६ सच्चमणजोग [ सत्यमनोयोग ] ओ० १७८ सच्चवजोग [ सत्यवाग्योग] ओ० १७६ सच्चामोसमणजोग [ सत्यभूषामनोयोग ] औ० १७८ सच्चामोसवइजोग [सत्यमृषावाग्योग ] ओ० १७६ सच्ची बात [ सत्यावपात ] मो० २ सच्छंद [ स्वच्छन्द ] ओ० ४६ सच्छष्ट [ संस्तृत ] रा० ७७४ सजोगि [सयोगिन् ] ओ० १८१. जी० ६१२१,४६, ४८, ५२ सज्ज [ सज्ज ] ओ० ६४. रा० १७, १८, १७३, ६८१,६८२,६६१. जी० ३१२८५ सज्ज [ सद्यस् ] जी० ३८७२ √ सज्ज [ स ] सज्जादेश २० ६८०. -सज्जिहिति. ओ० १५० रा० ८११. — सज्जेइ. रा० ६६६ सज्जावेत्ता [ सज्जयित्वा ] रा० ६८० सज्जिय [सज्जित ] जी० ३।५६२ सज्जीव [ सजीव ] ओ० १४६. रा० ८०६ सज्जेत्ता [सज्जित्वा ] रा० ६६६ सक्षा [ स्वाध्याय ] ओ० ३८, ४२ सहाण [ स्वस्थान ] जी० ६ १६६, २०८ सहि [ षष्टि ] ओ० १४०. रा० २३१. जी० ३।११८ सहितंत [पठितन्त्र ] ओ० ६७ सडंगवि [ षडङ्गविद् ] ओ० ६७ सङ्ग्रह [ श्राढकिन्] ओ० ६४ सण [सन] ओ० १३ सण कुमार [ सनत्कुमार] ओ० ५१,१६०,१६२. जी० २६६, १४८, १४९, ३३१०३८, १०४५, १०४६,१०५८, १०६६,१०६८, १०८८, १०६४, ११०२, ११११,११२६ सनखपदी ] जी० २२६ सगम्य [सनखपद ] जी० १११०३ सणिचर [ शनैश्चर ] जी० ३३६३१ समिच्छर [ शनैश्चर ] ओ० ५० सणद्ध [ सन्नद्ध] ओ० ५७. रा० ६६४,६८५३ सणय [सन्नत] ओ० १६. जी० ३३५६६,५६७ / सण्णव [संज्ञापय् ] - सण्णवेइ. रा० ७६९ सना [संज्ञा ] रा० ७४८ से ७५०,७७३. ओ० १११४,२०,८६,६६,१०१,११६,१२८, १३६; ३।१२।२ सण्णाह [ सं + नह] - सण्णाहेहि ओ० ५५ साहि [ सन्नद्ध] ओ० ६२ सणात्ता [ संता ] ओ० ५६ सण [ संज्ञिन् ] ओ० १५६, १८२. रा० १।१४, २४,८६,६६,१०९,११६,१३३,१३६; ६१०१, ७४७ १०२, १०५,१०८ सणिकास [ सन्निकाश ] जी० ३३३३३,३८१,४१७, ८६४, ११२२ सणिखित [ सन्निक्षिप्त ] जी० ३३१०२५ सणणाय [सन्निनाद] ओ० ६७. रा० १३, ६५७. २० ३/४४६ सणिपचदिय [संज्ञिपञ्चेन्द्रिय ] ओ० १५६ सणिभ [ सन्निभ ] रा० १६,४७, ६३, ६५. जी० ३१५६६ सविणमहिय [सन्निमहित ] ओ० १ सन्नियाय [सन्निपातिक ] ओ० ७१, ११७रा० ६१,७९६ सणिविदु [ सन्निविष्ट ] ओ० १. १० १७, १८, २०. जी० ३।२५८ सण्णिवेस [ सन्निवेश] ओ० ६८, ८ से ६३,६५, ६, १५५, १५८ से १६१,१६३,१६८. रा० ६६७ सणिवेसदाह [ सन्निवेशदाह ] जी० ३।६२६ सणसण [ सन्निषण्ण] रा०८,४७,६८,२७७, २८३. जी० ३/४४३, ४४६, ४५२, ५५७,८३६ सणिहिय [सन्निहित] ओ० २ सह [ श्लक्ष्ण] ओ० १२, ११४. रा० २१ से २३, ३२,३४,३६,३८, १२४, १३०, १३७,१४५, १५७, Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४८ सण्हपुढवी-सह १५४,२६१. जी० ११५७,५८, ३२६१,२६२, सत्तम [सप्तम] ओ० १७४,१७६,१८६ २६६,२६६,२८६,२६०,३००,३०७,३६५, सत्तमा [सप्तमी] जी० ३३२,४,७२,७५,७७,६१, ४२५,४५७,५६२,६३६,८३६ सण्हपुढवी श्लक्ष्णपृथ्वी] जी० ३.१८५,१८६ ससमासिया [सप्तमासिकी ओ० २४ सत [शत) रा० १२६. जी० ३८२,१७२,१७३, सत्तमी [ सप्तमी) जी० ३।३६,८८,१११११३ १६७,२२६,२४६,२५५,२५७,२६०,२८५, सत्तरस [मप्तदशन् ] जी० ३१३५६ ३३५,३५३,३५४,३५७,३५८,३६१३७२, सत्तरि [सप्तति ] जी० ३६२४६ ४१५,४१६,४४२,५७७,५६८,६३२,६३६, सत्तवण्णव.सय [सप्तपर्णावतसक] रा० १२५ ६४६,६४७,६४६,६५२,६६१,६६६,६६८, सत्तवण्णवण सप्तपर्णवन] रा० १७०. जी० ६७३,६७४६७६,७०३,७१४,७२४ से ७२६,७२८,७३३,७३६,७५०,७५६,७८८, सत्तविध सप्तविध | जी०२११००३२६१८२ ७६४,७६५,७६८,८०६,८१२,८१५,२०, सत्तविह [सप्तविध | ओ० ४०. जी० १११०,५८, ८२७,८३०,८३२,८३५,८३७,८३६,८४१, ६२, ६।१,१२, ६।१८५,१६६ ८४५,८८२,८८४,८८७,९०१,६०८,६११, सत्तसत्तमिया | सप्तसप्तकिका] ओ० २४ ६१८,९७०,१००० से १००४,१००६,१०१६, मनमिळावा सत्तसिक्खावय [सप्तशिक्षावतिक] ओ०५२,७८ | सप्तशिधानिक १०३०,१०३८,१०४४,११३७; श२६; सत्ताणउति [सप्तनवति ] जी० ३।१०३८ ६।११,७४१६६८६,१०२,२१७ सत्तावीस [सप्तविंशति ] ओ० १७०. रा० १८८. सतपत्त [शतपत्र] रा० २३. जी० ३६२५६,२६१ जी० ३८२ सतसहस्म । शतसहस्त्र | जी० ११५८; ३।२२,२७, सत्तावीसतिगुण सलविंशतिगुण] जी० २।१५१ ६७ से ७२,८६,१६१,१६७,१६६,१७४,२५७, सत्तावीसय [सप्तविंशति] जी० २।१५१ २६६,६०२,६५८,७०३,७०६,७१४,७२३, ७६४,७६५,७६८,८२३,८३६,६१०,६६६, सत्तिवण्ण [सप्तपर्ण । ओ०६,१०. जी० ३१३५६, ६६८,१०३८,१०८७,१०८८,११२८ ३८८,५८३ सताउ [शतायुए] जी० ३१५८६ सत्तिवण्णवण (सप्तपर्णवन] जी० ३।३५८ सति [स्मृति जी० ३३११८,११६ सत्त [शत्रु] ओ० १४. रा० ६७१ सतिय [शतिक ] जी० ३१६७३,६७४ सत्तुपक्ख [शत्रुपक्ष] जी० ३।४४८ सत्त [सप्तन् ] ओ० २१. रा० ७. जी० ११६५ सत्य {शास्त्र] ओ० ६७ सत्त [सत्व ] जी० ३११२७,७२१,६५५,११२८, सत्य [शस्त्र] १० ७६१ ११३० सत्यवाह [सार्थवाह ] ओ० १८,४६,५२. रा० सत्तरंग | शक्त्यन] जी० ३८५ ६८७,६८८,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४. सत्तघरंतरिय | सप्तगृहान्तरिक ] ओ० १५८ जी० ३१६०६ सत्तट्टि [सप्तषष्टि] जी० ३१७२२ सत्थोवाभियग | शस्त्रावपाटितक ओ०६० सत्तणय [सप्तनति] जी० ३।२२६ सदारसंतोस [स्वदारसन्तोष ] ओ० ७७ सत्ततीस | सप्तत्रिंशत् ] जी० ३३३५१ सदेस | स्वदेश ] ओ० ७०. रा० ८०४ सत्तपण्ण [सप्तपर्ण] रा० १८६ सद्द [शब्द ] ओ० ६,१५,६३,६४,६७,६८,१६१, सत्ति [शक्ति] ओ०६४ सत्तपतत्रिशत०३ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सह-समचउरंस १६३. रा० १३ से १५,३२,४०, १३२,१३५, १७३,२०६,२११,२८२,६५७, ६७२,६८५, ७१०,७३२, ७३७,७५१, ७५५, ७७१, ७७४. जी० ३१११८,११६,२६५, २७५, २८५, २८६, २८,३०५, ३६०,३७२, ४४६, ४४८, ५७८, ६३९,६४६,६९०,८५७,८६३, ६०५, ६७७, ८२,१११७,१११८, ११२४,११२५ √ सद्दह [ श्रव् + धा] - सद्दहामि रा० ६६५. --- सदहाहि. रा० ७५१ - सद्दहेज्जा. रा० ७५० सहमाण [ श्रद्धान] जी० १/१ सद्दाल' [ दे० ] जी० ३।११२२ √ सद्दाव [ शब्दय् ] - सहावे. ओ० ५८. रा० ६. • सहावेत. ओ० ११७. रा० २७८. जी० ३३४४४. - सहावेति रा० १३. जी० ३।५५४ सद्दावति [ शब्दापातिन् ] जी० ३।७६५ सद्दावाति | शब्दापातिन् ] रा० २७६. जी० ३।४४५ सद्दाविय [ शब्दायित, शब्दित ] रा० ७२ सहावेत्ता | शब्दयित्वा ] ओ० ५८. रा० ६. जी० ३३४४४ सहिय [ शब्दित ] ओ० २ सबद्दल [शार्दूल ] ओ० १६. जी० ३३५६६ सद्ध [ श्राद्ध] जी० ३।६१४ सद्धि [ सार्द्धम् ] ओ० १५. रा० ७. जी० ३।२३६ सन्नद्ध [ सन्नद्ध] जी० ३१५६२ सन्निकास [ सन्निकाश ] रा० १३३. जी० ३।३१२ सन्निति [ सन्निक्षिप्त ] जी० ३१४४२ सन्निति [ सन्निक्षिप्त ] रा० २२५,२७० सन्निगास [ सन्निकाश ] रा० ३८,१६०२२२,२५६ सन्निभ [ सन्निभ] ओ० १६. जी० ३३५६६ सन्निट्ठि [ सन्निविष्ट ] रा० ३२,६६,१३८,२०६, २११. जी० ३.७५६ सन्निवेस [ सन्निवेश ] जी० ३।६०६,८४१ सन्निवेसमारी [सन्निवेशमारी ] जी० ३१६२८ सन्निसन्न [ सन्निषण्ण ] रा० १७३ १. नूपुर, किंकिणी । ૭૪૨ सज्जवसित [ सपर्यवसित] जी० ६ २४,३१,६८, ६६, ८१, १२५, १७४,२०२ सपज्जवसिय [सपर्यवसित] जी० ९1११,१३,१६, २३,२५,२६,३१,३३, ३४, ५८,६०,६४,६८,६६, ७१,७२,८६,११०, १२५, १३३, १४६, १६४, १६५, १७६,२०२, २०६ सम्म [सप्रतिकर्मन् ] ओ० ३२ सपि [ सर्पिस् ] ओ० ६२, ६३ सप्पियासन [ सर्पिराश्रव] ओ० २४ सफल [ सफल ] ओ० ७१ सबरी [ शबरी ] ओ० ७० रा० ८०४ सभा [सभा ] रा० ७,१२ से १४,२०६,२१०, २३५ से २३७,२५०, २५१,२७६,३५१,३५६, ३५७, ३७६,३९४,३१५,६५६, ६५७. जी० ३।३७२, ३७३,३६७ से ३६६,४११,४१२, ४२६, ४४२, ५१६,५२१,५२२,५२४,५२५,५५६, ५५७, १०२४,१०२५ सभाव [ स्वभाव ] जी० ३१५६७ सम [ सम] ओ० १६,२६,५६,१७१, १६२. रा० ७०,७५,७६,८०,११२, १३३, १७३१७४,७७२. जी० ३५२, ११८, ११६,२८५, २६६,३०३, ३६२,३८७,५८६, ५६६, ५६७,७०५, ७२४, ७२७,७३२,७८४,७८७,७९७,८११, ८२२, ८४६,६१०,६११,६१८,६६८,११२२ सम [ श्रम ] रा० ७२६,७३१,७३२ समकंत [ समतिक्रान्त ] ओ० ४७ समइच्छमाण' [ समतिक्रामत्] ओ० ६६ समय [सामयिक ] ओ० १७३, १७४, १५२. जी० ३,५ समंता [ समन्तात् ] ओ० ३. रा० ६. जी० ३३४ समवाय [समाख्यात] जी० ३।१६७ से १६६ समग्ग [ समग्र ] ओ० ६८ समचउरंस [ समचतुरस्र ] ओ० ८२. जी० २१११६, १३६ ३५६८, १०६१.१०६२ १. हे० ४।१६२ Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५० समजोतिभूत [समज्योतिभूत ] जी० ३।११८ समज्जिणिता [ समय ] रा० ७५० मज्जुइय [समद्युतिक ] जी० ३।११२० सम] [समर्थ ] ओ०८ से ६५, ११४,११७,१२०, १५५,१५७ से १६०, १६२, १६७, १६६, १७०, १७२, १७७,१८१, १८६ से १६१ रा० २५ से ३१,४५,१७३,७५१, ७५३, ७५५,७५७,७५६, ७६१,७६३,७७१ जी० ३।८४, ८५, ११८, १६८ से २०३,२७८ से २८५,६०१,६०२, ६०५ से ६०७,६०६,६१०,६१२ से ६१७, ६२२ से ६२४,६२६,६२८, ७८२,७८६, ८६०, ८६६,८७२,८७८,६६० से ६६२, ६६४ से ६६६, १०२४ समण [ श्रमण ] ओ० १९ से २५,२७,३३,४६ से ५३,५५,६२,६६ से ७१,७५ से ८३.६५, ११७, १२०, १५५, १५६, १६२,१७० रा० ८ से १३, १५, ५६, ५८ से ६५, ६८, ७३, ७४, ७६, ८१, ८३, ११३, ११८, १२०, १२१, १३१,१३२, १४७ से १५१, १८५, १६७, ६६७,६६८, ६७१,६६८, ७१८,७१६,७३६,७४८ से ७५०,७५२,७८७ से ७८६,८१७. जी० ११५६,६२,६५,८२,६६, १२८ २ १४० ३।१७६, १७८, १८०,१५२, २५६,२६६, २६७,३०१,३०२,३२१ से ३२४, ५८२,५८६ से ५६५, ५६८,६००, ६०३ से ६०७,६०९ से ६१७,६२०,६२२ से ६२५, ६२७,६२८,६३०,७६५, ८४१, ६६५, १०५६, ११२० समणी [ श्रमणी ] जी० ३२७६५,८४१ √ समण गच्छ [ सम् + अनु + गम् ] समणुगच्छंति र० ५५ समणुगम्ममाण [ समनुगम्यमान ] ओ० ६५. जी० ३११७४ समणुगाहिज्जमान | समनुग्राह्यमान ] जी० ३१७४ समचितज्ज माण [ समनुचिन्त्यमान ] जी० ३।१७४ समणुपे हिज्जमाण [ समनुप्रेक्ष्यमान | जी० ३।१७४ समजोतिभूत-समय समबद्ध [ समनुबद्ध] रा० १४६,६७०. जी० ३।३२२,५६१ समणोवास [ श्रमणोपासक ] ओ० १६२ समणीवास्य [ श्रमणोपासक ] ओ० ७७, १२०, १४०, १६२. २० ६६८,७५२,७८६ से ७६१ समणोवासिया [ श्रमणोपासका ] ओ० ७७. रा० ७५२ समण्णा [समन्वागत ] ओ० ४३. रा० १२, ७५८, ७५६. जी० ३१११८,२८५ समतल [ समतल ] ओ० १६. जी० ३१५३६ समताल [ समताल ] ओ० १४६. रा० ८०६ समतुरंगेमाण [ समतुरङ्गायत् ] जी० ३।१११ समत्त [ समस्त ] ओ० ६३. जी० ३१७०१ समत्तगणिपिडग | समस्तगणिपिटक | ओ० २६ समत्य | समर्थ ] ओ० १४८, १४९. ० १२,७३७, ७५८,७५६,७७०,८०६. जी० ३१११८ समन्नागय] [ समन्वागत ] रा० १७३ समप्पभ [ समप्रभ ] रा० २८५. जी० ३।४५ १ समबल [समबल ] जी० ३।११२० समभिजाणित्ता | समभिज्ञाय ] रा० २७६. जी० ३।४४२ / समभिलोय [सं + अभि + लोक् ] – समभिलोएइ. रा० ७६५ – समभिलोएति. रा० ७६५. --समभिलोएमि रा० ७६४ समय | समय ] ओ० १,१८,१६,२३ से २५,२७, २८,४५,४७ से ५१,८२,११५,१७३,१७४, १५२, १६५:३. रा० १,७,७६, १७३, २७४, ६६८, ६७६, ६८५,६८६,७७१. जी० ११९, ३३; २।४८, ५४ से ३६,६५,८६,८८,८६,११७, १२३, १३२ : ३३८६, १०, ११८, ११६, २१०, २११,२८५, ४३६, ५८८, ५८६८४१८४४. ८४७,६७३, १०८३, १०८५, १०८६ ७ १ से ६, ६ से १८, २० से २३; ६ १ से ७, २४, २५,४०,४३,४८ से ५१,५७,६०,११४,११८, १२४, १२५,१२७,१३४,१३८, १४२,१४६, १५०,१५२,१६१,१६२,१७१, १७२,१७६, Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समय-समुग्घाय १९६,२००,२०३,२३२ से २३८, २४१ से २४८, २५० से २५३,२५५, २६७ से २७३, २७५ से २८२,२८४ से २६३ समय समक] जी० ३१२७३,२६८ समयओ [समयतस् ] रा० ६६४ समयखेत्त [समयक्षेत्र रा० २७६. जी. ३१४४५ समयग समयक] जी०७४ समयतो [समयतस ] जी० ३।५६२ समयस समयशस् ] जी० ३.११२० समयिक | सामयिक जी० ६।२ से ५ समयिग [सामयिक ! जी० ६६ समरस समरस] रा० २२८. जी० ३१३८७ समरसोद [समरसोद | जी० ३२८६ सिमलकर [सं-- अलं-/- कृ]-समलंकरेइ. - ओ० ५६ समलंकरेत्ता [समलङ्कृत्य] ओ० ५६ समल्लीण [समालीन] ओ०१३. रा०४ समवायघर [समवायधर] ओ० ४५ समसोक्ख समसौख्य ] जी० ३.११२० समहिदिन्जमाण [समधिष्ठीयमान ] रा० ७५१ । समाइण्ण समाकोणे ] अ० ७१. रा०६१ समाउत्त [समायुक्त ] ओ० ६४. रा० ५१ समाउल सिमाकूल] रा०१३६. जी० ३१३०६ समाण सत] ओ०२०,५२,५६,६३,६४,९८, ११७,१४२,१४४,१५७. रा० १०,१२ से १५, १८,४६,६०,६३,६४.७२,७४,२७४,२७५, २७६,२८३,२८६,६५५,६८१,६८५,७००, ७०१,७०३,७०७,७१०,७१३,७२५,७२८, ७५७.७६५,७७४,७६२,७६७,८००,८०२. जी० ३३११८,११६,४४०,४४१,४४५,४४६, ४५२,५५५,६१७,६८६ समाण समाना ओ० २३,२६,२६,११७. रा० १३१,१३२,१४७ से १५१,१९७.२८८, ७५० से ७५३,७६६, जी० २।७४,६८,१४०%; ३।१११,११८.११९,२६६,३०१,३०२,३२१ से ३२४,४५४ समाणुभाग [ समानुभाग] जी० ३।११२० समादाण [समादान] जी० ३३११७ समामेव [समकमेव] रा० ७५ सिमायर [समा+चर]- समायरह. रा० ७५१ समायरित्ता [समाचर्य ] रा० ६६७ समायरेता समाचर्य रा० ७५१ समारंभ [समारम्भ ] ओ०६१ से १३,१६१,१६३ समावडिय सिमापतित | ओ०४६ समावण्णग समापनक] जी० ३१८४२,८४५ समास [समास] जी० ३१८३८।१ समासओ समासतस् ] जी० ११५,५८,६५,७३, ८४,८८,८६,६२,१००,१०३,१११,११२,११६, ११८,१२१,१२६,१३५ समासतो समासतस् ] जी० ११७८,८१; ३।२२६ समाहय (समाहत] ओ० ४६. रा० १२,७५८, ७५६. जी० ३११८ समाहि [समाधि] ओ० ११७,१४०,१५७,१६२. रा०७६६ समिडीय समधिक जी० ३।११२० समिता [समिता] जी० ३६२३५.१०४०,१०४४, १०४६ समिद्ध [समृद्ध] ओ० १,१४. रा० १,६६८ से ६७१,६७६,६७७ समिया [समिता] जी० ३।२३६,२४१ समग्ग [ममुद्ग] ओ० ७४१५. रा० १६१,२५८, २७६,३५१. जी० ३१३३४,४१६,४४५,५९६ समुन्गक [समुद्गक ] जी० ३।४०२,५१६ समुरंगग समुद्गक ] जी० ३१३०० समग्गपक्खि [समुद्गपक्षिन् ] जी० १।११३,११६ समग्गय सिमुद्गक ] ओ० १७०. रा० १३०,२४० २७६,३५१. जी० ३।४०२,४४२,५१६,१०२५ समुग्धात [समुद्घात ] जी० ३.१०८,१५७,१११८ समग्घाय [समुद्घात] ओ० १७१,१७२,१७५, १७७. जी० १११४,२३,८२,८६,६६,१०१, ११९,१३३,१३६, ३११२७१४,१६० Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५२ समुच्छिष्णकिरिय-सम्मत्तकिरिया समच्छिण्णकिरिय | समुच्छिन्नक्रिय ] ओ० ४३ समुद्रित [समुस्थित] जी० ३३०३ समुट्ठिय [समुत्थित रा० १३३,६७१ समुदय [समुदय ] ओ० ६७. रा० १३,४०,१३२, ६५७,८०३,८०५. जी० ३।३०२,४४६,५६१ समुद्द [ समुद्र] ओ० १७०. रा० १०,१२,५६, २७६,६८८. जी० ३३८६,२१७,२१६ से २२७, २५६,२६०,३००,३५१,४४५,५६६,५६६, ५७१ से ५७६,६३८,७०४ से ७०८,७१०,७११, ७१३ से'७२३,७२६,७२८ से ७३१,७३३,७३६, ७३६ से ७४१,७४५,७४५७,७५०,७५४,७६१, ७६२,७६४ से ७६६,७७२ से ७९६,८००, ८०३,८०४,८०६,८१० से ८१६,८१८ से १२१, ८३८।२६,८४८ से ८५१,८५४ से ८५६, ७५६,८६०,८६२,८६५,८६६,८६८,८७१, ८७२,८७४,८७७,८७८,८८०,६२५,९२७, से ६३५,६३८,८३६,६४३ से १४६,६४६ से ६५२,६५५,६५८,९६१,६६३ से १६६,६६९, ६७२ से ६७५ समुद्दग [समुद्रग] जो० ३१७७५,७७८ समुद्दलिक्खा [ समुद्रलिक्षा] जी० ११८४ समुपविट्ठ [समुपविष्ट ] जी ३१२८५ समुप्पज्ज [सं+उत् + पद्समुपज्जित्या. रा०९-समुप्पज्जइ. ओ० १५६-समुप्प- ज्जति. जी० ३१५६६—समुष्पज्जित्था. रा० ६८८. जी ३१४४१.–समुप्पजिहिति. ओ० १५३. रा० ८१४ समुप्पण्ण [समुत्पन्न] ओ० ११६ १५७. रा० २७६,७३८,७४६. जी० ३१४४२ समुप्पण्णकोऊहल्ल समुत्पन्नकोतूहल] ओ०८३ समुप्पण्णसंसय [समुत्पन्नसंशय] ओ० ८३ समप्पण्णसङ्ग समुत्पन्नश्रद्ध] ओ० ८३ समुप्पन्न[समुत्पन्न ] जी० ३।२३६ समुवागत [समुपागत] जी० ३१९१७ समुस्विट्ट [समुपविष्ट ] रा० १७३ समस्सिय [समुत्सृत] रा० ५१ समूसिय [समुच्छ्रित] ओ०६४ समूह [समूह | रा० १२३ समोगाढ | समवगाढ ] ओ० १६६. जी० ३१८४५ समोयर [सं-- अवतु]---समोयरति. जी० ३११७४ समोसढ [समक्सृत] ओ० ५२,५३. रा० ६, ६८७,६८६,७१३ । समोसर [सं+अव--स! समोसरह. रा. ७०० –समोसरिज्जा. ओ०२१ --समोसरिस्सामि. रा०७०३ गमोरिस्सामो. रा. ७०५ समोसरण | समवमरण] रा० ७५,८०,८२,११२, ७४८ से ७५०,७७३ समोसरिउकाम [समवसर्तुकाम] ओ० १६,२० समोहण |सं+अवहन]-रामोहणंति, ओ० १७१ ---समोहणिसु. जी० ३११११३ ---समोहणिस्संति. जी० ३।१११३ समोहणित्ता [समवहत्य] रा० १०. जी० ३१४४५ समोहण [सं+अव-! हन्]-.-समोहण्ण३. रा० १८ --समोहणंति. रा० १०. जी० ३१४४५ समोहत [समवहत] जी० १११२८, ३११५८, २००,२०१,२०६,२०७ समोहतासमोहत समावहतासमवहत ] जी० ३२०२,२०३,२०८,२०६ समोहय समवत ओ०१६६. जी०२५३,६०,८७ सम्म सिम्यक ! ओ० १६२. रा०६७१,६६ ७०३,७१८,७२६,७३१,७३२,७३७,७५० से १५२,७७७,८७८,७८९ सम्मज्जग [ सम्मग्नक ] ओ०६४ सम्मज्जित [सम्माजित] जी० ३१४४७ सम्मन्जिय [सम्माजित } ओ० ५५,६० से ६२. जी० ३१४४७ सम्मट्ठ [सम्मृष्ट ] ० ५५. जी० ३।४४७ सम्मत्त | सम्यक्त्व] ओ० ४६ सम्मतकिरिया | सम्यक्त्व क्रिया) जी० ३१२१० Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मदिट्ठि-सयवत्त सम्मदिट्टि [सम्यग्दृष्टि ] रा० ६२. जी० १।२८, १०१४,१०१६,१०२२,१०४१,१०५२,१०५३, ८६; ३:१०३,१५१,११०५,११०६,६६७, १०५५,१०६५ से १०७०,४१५:५।१६,२६% ६८,७१,७४ ६१६३,१०६,१२३,१२८,१४४ सम्मय [मम्मत] रा० ७५० से ७५३ सय {स्वक] ओ० २०,५३. रा ० ५४,६७१,६८१, सम्माण सम्मान ओ० ४०,५२. रा० १६,६८७, ७१०,७१८,७५०,७७४ ६८६ सिय |शी —सयंति रा० १८५. जी० ३।२१७ सम्माण सं| मानय —सम्माणिस्संति. रा० सयंपभा [स्वयंप्रभा] जी० ३।१०७७ ७०४....सम्माणेइ. ओ० २१. ७०६--सम्मा- सयंबुद्धसिद्ध [स्वयंबुद्धसिद्ध] जी० ११८ ज्जा. रा० ७७६ ..सम्माति. रा०६८४ सयंभुमहावर | स्वयंभूमहावर जी० ३१६५१ सम्माणमि. रा०५८---सम्माणे मो. ओ० सयंभुरमण स्वयंभूरमण जी० ३.२५६,६४६ से ५२. रा. १० . सम्माहिति. ओ० १४७ ६५१,६६२,६६४,६६५,९६८ सम्माणिज्ज [सम्माननीय ] ओ० २. जी० सयंभूवर स्वयंभूवर ] जी० ३।६५१ ३१४०२,४४२ सयंभूरमण स्वयंभूरमण] जी० ३।९७१ सम्माणित्तए [सम्मानयितुम् ] ओ० १३६. रा० सयंभूरमणग [स्वयंभूरमणक] जी० ३१७८० संयंसंबुद्ध स्वयंसंबुद्ध रा० ८,२६२. सम्माणेत्ता [सम्मान्य ] ओ० २१ ___ जी० ३१४५७ सम्मामिच्छदिट्टि [सम्यमिथ्यादृष्टि ] जी० सयन्धि [शतघ्नि ] ओ०१ ११२८,८६; ३१११०५,११०६ सयण शयन] ओ०१४,१४१,१४६,१५०. सम्मामिच्छादिट्टि (सम्यमिथ्यादृष्टि] जी० रा० १८५,६७१,६७५,७६६,८१०,८११. ३.१०३,१५१,६४६७,७०,७३,७४ जी० ३।२६७,८५७.११२८,११३० सयण स्विजन] ओ० १५०. रा० ७५१,८०२, सम्मुह सम्मति जी० ३१२३६ ८११ सय | शत] ओ० ६३,६४,६८,७१,११५.११८, सयणविहि [शयन विधि ] ओ० १४६. रा० ८०६ ११६,१७०,१६२,१६५।५. रा. १७,१८,३२, सयणिज्ज [शयनीय रा० २६१,२७७. ६१,६६,६६ से ७१,१२४,१२७,१२६,१३७, जी० ३३६५०,६८२ १६२,१७०,१७३,१८६,१८८,२०४ से २०६, __ सयपत्त [शतपत्र ] ओ० १२,१५०, रा० ८११. २०६,२११,२३३,२५१,२५४,२५५,२६२, जी० ३।११८,११६,२८६ २६२,६८१,६८६,७११,७५३. जी० १४६४; सयपाग [शतपाक] ओ० ६३ २१४१,४८,७३,६२,६७,१२५,१२८; ३३८२, सयपोराग [शतपर्वक] जी० ३११११ ६१,१२६।६,१७४,२१७ से २२६,२२६६१,३, सयमेव [स्वयंमेव रा० ६७४,६८०,६६८,७५४, ६,२२७,२३७,२४६,२४६,२५५,२५७,२६०, ७६१ २६२,२६३,३५१,३५८,३६१,३७४,४१६, सयराई [सप्तति] जी० ३३१००० ४५७,६३२,६४७,६४६,६७४ से ६७६,६८३, सयराह [दे०] अकस्मात् ओ० १२२ ७०३,७०६,७२२,७३६,७५४,८०२,८०६ सयल [शकल] ओ० १६,४७ ८२०,८२३,८३०,८३४,८३७,८३८१६,६,३१, सयवत [शतपत्र] ओ० ४७. रा० १३७,१७४, ८३६,८८७,९०८,६१८,६६६.१००३,१००५, १९७,२७६,२८८. जी० ३१३०७ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सयसहस्स-सरीरग सयसहस्स [शतसहस्र ] ओ० १,२१,४६,५४,६८, ४५१,४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६, ६४,६५,१७०,१६२. रा० १४,१७,१८,१२४, ५२०,५४७,५५४ १२६,१७०,१८८. जी० १७३,७६,८१,१३५; सरसरपंतिया | सरःसर पङ्क्तिका रा० १७४, ३।१२,६३ से ६६,७७,८२.१२७,१६०,१६२, १७५,१८०. जी० ३।२८६ १६६ से १६८,१७१,२३२,२६०,७०६,७१०, सरसी यरसी] रा० १७४,१७५,१८०. ७२२,७२३,७६४,८०२,८०६,८१२,८१५, ___ जी० ३१२८६ ८२०,८२३,८२७,८३०,८३२.५३४,८३५, सरस्सई [सरस्वती] ओ०७१. रा०६१ ८३७,८३८।२८,८३६,८४१,८५०,८५२,६४०, सरागसंजम | मरागमयम ओ० ७३ ६४४,६६६,१०२७,१०३८,१०३६,१०७४ सरासण [शरासन] रा० ६६४,६८३. सयसाहस्सिय [ शतसाहसिक रा० ५६ जी० ३१५६२ सयसाहस्सी [शतगाहस्री | जी० ३।६५८ सरि [सदृश् जी० ३१६६६,७७५ सर | शर] ओ० ६४. रा० १७३,६८१,७६५. सरिता रारिता] जी० ३।४४५ जी० ३।२८५ सरित्तय [सदृक्त्वच ) ० ६६,७० सर [स्वर] ओ० ६,७१. रा० १७,१८,२०,६१. सरिश्वय [सदृग्वयस् ] रा० ६६,७० जी० ३३११८,११६,२७५,२८५,२८६,८५७, सरिस [मदश] ओ० १६,२२,४७. रा० ६६,७०, २७०,७७७,७७८,७५८. जी० ३।११०,४१२, सर [सरस् ] ओ०६६ ५९६ से ५६८,६८२,७०८,७१०,८१४,६२८, सरंधी [दे०जी० २६ सरग [सरक] जी० ३६५८७ सरिसक [सदृशक] जी० ३१६६६ सरगय [स्वरगत] ओ० १४६. रा० ८०६ सरिसय [मदृशक रा० ६९,७०. जी. ३१६६५, सरडी [सरटी] जी० २९ ७६२ सरण [शरण] ओ० १६,२१,५४. जी० ३१५६४ सरिसव [सर्षप] जी० ११७२ सरणबय [शरणदय] ओ० १६,२१,५४. रा०६, सरिसवविगइ [सर्षपविकृति ! ओ०६३ २६२. जी० ३।४५७ सरिसिव [सरीसृप] रा० ६७१ सरतल | सरस्तल] रा०२४. जी० ३१२७७ सरीर [शरीर] ओ० १५,२०,५२,५३,८२.११७, सरपंतिया [सरःपङ्क्तिका] रा० १७४,१७५,१८०. १४३. रा० १२२,१२३,६७२,६७३,६८६ से जी० ३१२८६ ६८६,६६२,७००,७१६,७२६,७२८,७३२, सरम [ शरभ ] ओ० १३. रा० १७,१८,२०,३२, ७३७,७४० से ७६४,७७० से ७७३.७९५, ३७,१२६. जी० ३३२८८,३००,३११,३७२ ७६६,८०१. जी० १११४,१६ से १८,५०, सरमह [सरोमह] रा०६८८ ७२१२,३,७४,८६,८८,६०,६४ से ६६,१०१, सरय [शरद् ] जी० ३१५६० १११,११२,११६,११६,१२१,१२३,१२४, सरल [सरल ] जी० २७२ १३०,१३५; ३।६१ से ६३,१२६।४,१०,५६८, सरलवण [सरलवन] जी० ३१५८१ ६६६,१०८७,१०५६ से १०६२ सरस [सरस]ओ० २,५५,६३.रा०३२,२७६,२८१, सरीरग | शरीरका रा०७९५. जी०१११५,५९, २८५,२६१,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२, ७४,७७,७६,८०,८२,८५,६०,६३,१०१,१०३, ३५१,३५५,५६४. जी. ३३३७२,४४५,४४७, ११६,१२८,१३०,१३५, ३१६४,१३६,१०६०, Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरीरस्य सव्वभासानुगामि १०६१,१०६३, १०६७, १०६८ सरीरत्थ ] शरीरस्थ ] ओ० १७४ सरोरपज्जत्ति [ शरीरपर्याप्ति ] रा० २७४, ७६७ जी० ११२६; ३/४४० सरीरय | शरीरक] जी० ११६४ : ३ १२,६५,६६, सरीरविसग्ग [ शरीरव्युत्सर्ग] ओ० ४४ सरोरि [ शरीरिन् ] जी० १/६६ सरीसिव [ सरीसृप ] जी० ३८८ सलिल [ सलिल ] ओ० २७,४६. रा० १७४, २८८. जी० ३०११०, ११६,२६६, ४५४ सलिला [सलिला ] रा० २७६. जी० ३१४४५ सलील [ सलील ] रा० २५५, २५६. जी० ३१४१६, ४१७ सलेस [रालेश्य ] जी० ६२६ सलोद्द [ सलोन ] रा० ७५४,७५६, ७६४ सल्ल [शल्य ] ओ०७२ सल्लई [ सल्लकी ] जी० ३१८७२ सल्ली [ दे० ] जी० 1 सवण [ श्रवण ] ओ० १६. रा० २५४. जी० ३३४१५, ५६६,५६७ सवणया [ श्रवणता ] ओ० २०,५२, ५३. रा० ६८७, ७१३, ७१६,७५० से ७५३ सवियारि [ सविचारित् ] ओ० ४३ सविसय [सविषय ] जी० ११४७ सविवेस [ सविशेष ] जी० ३।१०१०,१०१४ सवेदन [ सवेदक ] जी० ६१२२,२५,२७ सवेद [ सवेदक ] जी० ६ २३,२८,३२ सव [ सर्व ] ओ० २७. रा० ६. जी० १५० सव्वओ [सर्वतस् ] ओ० ३,६,२७,७६,११७. रा० ६, १२,३०, ४०, ६३, ६५, १२७, १३२, १३५,१५४,१७३,१८६,२०१,२०५ से २०७, २३६, २६३, २८१,६७०,८१३. जी० ३।२१७, ३८८,८१२,८२३,८५० भद्द [सर्वतोभद्र ] ओ० ५१ भद्दपडिमा [सर्वतोभद्रप्रतिमा ] ओ० २४ ७५५ सवंग [ सर्वाङ्ग ] भो० १५. रा० ६७२,६७३, ८०१. जी० ३१५६६, ५६७ Roaster [ सर्वकामगुणित ] ओ० १९५११८ सव्वकाल [ सर्वकाल ] ओ० १६५/१६ क्रस णिवा [ सर्वाक्षरः न्निपातिन् ] मो० २६ सव्वग्ग [ सर्वाग्र] रा० २२७. जी० ३३८६,६४२, ६५३,६७२,६७६, ७६४,७६५ सबट्ट [ सर्वार्थ ] जी० ३६३४ सवसिद्ध [ सर्वार्थसिद्ध ] बो० १६७, १६२. जी० २१७८,८१,३३१८४,१९२ सिद्ध[सर्वार्थसिद्धक ] जी० २२८५,१६; ३२३१ सव्वष्णु [ सर्वज्ञ ओ० १६,२१,५४. रा० ८, २९२. जी० ३२४५७ सव्वतो [सर्वतस ] रा० १२,४५, १६१,२०८, ७५५, ७६४,७६५,७७२,७७४. जी० ३।४६,५०, २६०,२६२,२६५,२८३,२८५.३०२,३०५, _३१३,३२७,३५२,३६२,३६८ से ३७१, ३६०, ३६८, ४४७,५६१,६३९,६५२,६५८,६६८, ६७८, ६७६, ६८१, ६८६, ७०४, ७०६, ७३६, ७४१,७५४,७७०,७७२, ७९६, ७६८, ८१०, ८२१,८३३,८३६,८४५ ८४८, ६५६,८६२, ८६५,८६८,८७१,८७४, ८७७, ८८०, ६२५ सत्ता [सर्वता] ओ० ७६ सव्वत्य [ सर्वार्थ ] ओ० ४० सव्वत्य [ सर्वत्र ] जी० २३८५ सव्यदरिसि] [सर्वदर्शिन् ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८२६२. जी० ३।४५७ सम्वद्ध पडिय [ सर्वाध्वपिण्डित ] ओ० १६५४१४, १५ सम्वद्धा [सर्वाध्व ] जी० ३११९३, १९४ पाणभूयजीवसत्त सुहावहा [सर्वप्राणभूतजीवसत्त्वसुखावहा ] ओ० १९३ सम्वभाव [सर्वभाव ] ओ० १६५/१२ सभासानुगामि [ सर्व भाषानुगामिन् ] मो० २६ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सयभासाणुगामिणी-सहस्ससो सव्वभासाणुगामिणो [सर्वभाषानुगामिनी] ओ० ७१. रा०६१ सवरतणा [ सर्वरत्ना] जी० ३६२२ सव्वागास | सर्वाकाश ] ओ० १९५११५ सविदिय [सर्वेन्द्रिय] जी० ३।६०२,८६०,८६६, ८७२,८७८ सव्विदियकायजोगजंजणया [ सर्वेन्द्रियकाययोग योजनता] ओ० ४० सम्वोउय [सर्वर्तुक ] ओ० ४६. रा० १५६,६७०. जी० ३।३३२ सब्बोसहिपत्त [सौंषधि प्राप्त] ओ० २४ सस [शश] रा० २७ ससंभम [ससम्भ्रम] ओ० २१,५४ ससक [शशक ] जी० ३।२८० ससक्खं | ससाक्ष्य, ससाक्षात्] रा० ७५४,७५६, ७६४ ससग शशक] जी० ३।६२० ससण [श्वसन] ओ० १६. जी० ३३५६६ ससरीरि [सशरीरिन् ] जी० ६।६२ ससि [शशिन् ] ओ० १५,१६,४७,६३,१४३. रा० ६७२,६७३,८०१. जी. ३१५६३,५६६, ५९७,८०९,८३८१३,२४,२६,२८,३०.३१, १००० ससुरकुलरक्खिया [ श्वसुरकुलरक्षिता] ओ० ६२ सस्सिरीय [सश्रीक] श्री० ६३. रा० १३६,२२८. जी० ३।३०६,३८७,५६६,६७२ सस्सिरीयरूव [सश्रीकरूप] रा० १७,१८,२०,३२, १२६,१३०,१३७. जी० ३।२८८,३००,३०७, ३७२ सह सह] जी० ३१६११ सहसंबुद्ध (स्वयंसम्बुद्ध] ओ० १६,२१,५२,५४ सहसा [सहसा] जी० ३।५८६ सहस्स [सहस्र] ओ० १६,६८,६६,८६ से ६३, १७०,१६२. रा० १७,१८,२०,२४,३२,५२, ५६,१२४,१२६,१२६,१५६,१६३,१६६, १८८,२३१,२४७,२७६,२८०,७८७,७८८. जी० ११५८,५६,६५,७३,७४,७८,८१,६४, ६६,१०१,१०३,१११,११२,११६,११६, १२३,१३६,१३७, २।३५ से ३६,६६,१०८, ११०,१११,११८,१२८,१२६,१३६; ३३१४ से २१,२३ से २७,५१,६० से ६३,७७,८० से ८२,६१,११८,१७४,१८६ से १६२,२२६१६, २४२,२४६,२६०,२७७,२८८,३००,३३२, ३३५,३३६,३५१,३५५,३५८,३६१,३७२, ३६३,३६८,४४५,४४६,४४८,५६६,५६८ से ५७०,५७७,५६०,५६८,६३२,६३८,६३६, ६६०,७०३,७०६,७१४,७२२,७२३,७२५, ७२६,७२८,७३२,७३३,७३६,७३६,७४०, ७४२,७४५,७५०,७५४,७६१,७६२,७६४ से ७७६,७८८ से ७६२,७६४,७६५,७६८, ८०२,८०६,८१२,८१४,८१५,८२०,८२३, ८२७,८३०,८३२,८३४,८३५,८३७,८३८१२७, ३१,८३६,८४१,८८२,६११,९१८,६७१, १०००,१०१५.१०१७ से १०१६,१०२२, १०२३,१०२८,१०२६,१०३८,१०५१, १०७३,१०७४,११३१, ४.३,६,६,११,१६, ५॥५,६,१०,१२,१४,१५,२८,२६; हार, ६,७१३,१३, ८।३; ६।२ से ४,१३२,२१०, २१४,२२४,२२८,२३४,२४१,२६०,२६६, २७७ सहस्सपत्त [सहस्रपत्र] ओ० १२,१५०. रा० २३, १७४,२२३,२७६,२८१,२८८,२८६,८११. जी० ३१११८,११६,२५६,२६६.२८६,२६१, ३१५,४४५,४४७,४५४,४५५,६३६,६३७, ६५१,६५६,६७७,७३८,७४३,७६३,६६४ सहस्सपागासहस्रपाक] ओ०६३ सहस्सभाग [ सहस्रभाग] ओ० २ सहस्सरस्सि [सहस्र रश्मि] ओ० २२. रा० ७२३, ७७७,७७८,७८५ सहस्सवत्त [सहस्रपत्र] रा० १६७,२७६ सहस्ससो [सहस्रशस्] जी० ३११२६६ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहस्सार-सामण्णपरियाग सहस्सार [महस्रार] ओ० ५१,१५७,१९२. जी० ११११६,१२३,२६१,६६,१४८,१४६, ३११०३८,१०५२,१०६१,१०६६,१०६८, १०७६,१०५३,१०८५.१०८८ सहस्सारग [सहस्रारक) जी० ३१११११ सहा [सभा] ओ० ३७. जी० ३६४१२ सहिणग [ श्लक्ष्णक ] जी० ३१५६५ सहित सहित ] जी० २।१०५; ३।२८५,६२७ सहिय [संहत ] ओ०१६ सहिय [ सहित] रा०७५. जी० ३८३८१२५ सही सखी] जी० ३१६१३ सहोढ सहोढ] २० ७५४,७५६,७६४ साई साचि ] रा० ६७१ साइज्ज [स्वाद् ] -- साइजामो. ओ० ११७ साइजणया स्वादन] ओ. ३३ साइज्जित्तए (स्वादयितुम् ] ओ० ११७ साइम [ स्वाद्य] ओ० ११७,१२०,१४७,१६२. रा० ६९८,७०४,७१९,७५२,७६५,७७६, ७८७ से ७५६,७६४,७६६,८०२,८०८ साइरेग [सातिरेक] मो० २३,१४५,१८८. रा० १७०,२११,२२२,२२७,२५३. जी० २११३ ३१२५०,३५८,३७४,३७६,३८६, ४१४,६५३,६७५,८८२,८८७,८६४६।३४, ८६,६३,१३४,१६०,१६१,१६५ साउ स्वादु ओ० ६. जी० ३.२७५ सागर [सागर] ओ० २७,४६,७४१५.६६, १६५२२. रा० २४,७६५,८१३. जी० ३३२७७,५६६,८३८१२३ सागरनागरपविभत्ति [सागरनागरप्रविभक्ति] रा०६२ सागरपविभत्ति | सागरप्रविभक्ति] रा० ६२ सागरमह (सागरमह] रा० ६८८,६८६ सागरोवम सागरोपम] ओ० ११४,११७, १४०, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० २८२. जी० श६६,१३६,१३८,२।७३,७६,८२, ६३,१७,१०७,१०८,११८,१२५,१२७,१२६, १३६ ३.१६२,१६७,४४८,८४१,१०४६, १०४७,१०४६ से १०५३,१०५५,११३१, ११३७,४|४,९,१५,१६:५१६,१०,१६२८, २६; ६.२.११७१३,१६, ८.३; ६२ से ४, ३१,३४,६८,७२,८६,६३,१०२,१०६,१२३, १२८,१३२,१३४,१६०,१६१,१६५,१७२, १७६,१८६ से १६१,१६३,१६८,१६६,२०३, २०६,२१०,२१७,२२४,२२८,२३४,२४४, २६०,२६६,२८० सागार [साकार] ओ० १८२,१६५।११. जी० २३२,८७,३३१०६,१५४,१११०% ६।३६,३७ साणुस्कोसिया [ सानुक्रोशता] ओ०७३ सातासोक्ख सातसौख्य] जी० ३.१११७ साति [साचि] जी० ११११६ साति स्वाति] जी० ३३१००७ सातिरेग [सातिरेक] रा० ८०५. जी० ११७४; २१४३,४४,४७,८२,१२५,१२८, ३१२४७, २५६,३८१,६४२,६७२,६७६,६८६,६०७, १०३४,१०३६,११३७, ४१६,१५,५१६, २६; ६३११;७१६,८१३; ६४३,३१,६८,७२, १०२,१०६,१२३,१२८,१३२,१६८,१६६, २०६,२१७,२४४,२६०,२८० सादीय [सादिक ] ओ० १८३,१८४,१६५. जी० ६।२४,२५,३१,३३,३४,८२,११०,१२५, १६३,१६२,१६५,२०१,२०२,२०५,२०६, २१५.२१६,२२७,२३०,२४०,२४६,२६१, २६५,२७६,२८५ साभाविय स्वाभाविक रा० २७९,२८०. जी० ३१४४५,४४६ साम सामन् ] रा० ६७५ सामंत [मामन्त] रा० ७५३ सामग्णपरियाग [श्रामयपर्याय ! ओ० ६५,१५५, १५६,१६० Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५८ सामन्नमोविणिवाइय-साला सामन्नओविणिवाइय [सामान्यतोविनिपातिक] सार [सार ओ०१४,२३,४६. रा० ३७,१७३, रा० ११७,२८१ ६७१,६७६,६६५. जी० ३।२८५,३११,५८६, सामन्नतोविणिवातिय [सामान्यतोविनिपातिका जी० ३1४४७ सारइय [शारदिक] जी० ३१२८२,८७२,६६० सामलतामंडवग [श्यामलतामण्डपक] सारक्सणाणुबंषि [सॉरक्षणानुबन्धिन ] ओ० ४३ जी० ३८५७ सारग [सारक, स्मारक'] ओ०६७ सामलतामंडवय [श्यामलतामण्डपक] सारतिय [शारदिक] रा० २६ जी० ३१८५७ सारय [शारद] ओ० २७,७१. रा० ६१. सामलया [एयामलता) मो० ११. रा० १४५. जी० ३१५९२,५६७ जी० ३।२६८,३०८,३७७,३६०,५८४ सारयसलिल [शारदसलिल] रा०८१३ सामलयापविभत्ति [श्यामलताप्रविभत्ति] रा० १०१ सारस [सारस ] ओ० ६. जी० ३।२७५ सामलयामंडवग [श्यामलतामण्डपक] जी० ३।२६६ सारहि [सारथि] ओ०६४. रा० १७३,६७५, सामलयामंडवय [श्यामलतामण्डपक] जी० ३।२६७ ६८०६८१,६८३ से ६८५,६८८ ले ६६०, सामलि [शाल्मली] जी० ३१५९६ ६६२,६६३,६६५ से ७१०,७१३,७१४,७१६ सामवेद सामवेद] ओ० ६७ से ७३४,७३६,७४८. जी० ३१२८५ सामाइय [सामायिक ] ओ० ७७ सारा [दे० ] जी० २।६ सामाइयचरित्तविणय [सामायिकचरित्रविनय] सारिज्जंत सार्यमान रा० ७७ ओ०४० सारीर [शारीर] ओ०७४ सामाणिय [सामानिक] रा० ७,४१,४८,५६ से । साल शाल] ओ० ६,१०. जी० ११७१; ३१५८३ ५८,२७६ से २८०,२८२,२८४,२८७,२८९, सालघरग [शालागृहक ] रा० १५२,१८३. २६१,६५७,६५८,६६६. जी० ॥३३६,३५०, ३५६,४४२ से ४४६,४४८,४५५,४५७,५५७, जी० ३१२६४ सालगग [शालनक] जी० ३१५६२ ५५८,५६३,५६५,६३५,६३७,६५७,६५९,६८०॥ सालभंजिया [शालभजिका] रा० १३३,१३६, ७००,७२१,७३८,७६०,७६३,८४३,८४६, २६४,२६६ से २६६,३१२,४७३. जी० ३१३००, १०२५ ३०३,३१६,३५५,३७२,४५६,४६१,४६२, सामाय [श्यामाक] रा० २६. जी० ३।२७६ ४७७,५३२ सामि [स्वामिन् ] ओ० ५६, रा० ६,६८१,७०७, सालभंजियाग [शालभजिकाक] रा० १७,१८, ७२३,७२६,७३१,७३३ से ७३५,७५१,७५३ ३२,१३० सामित्त [स्वामित्व] ओ० ६८. रा० २०२. सालमंत [शाखावत् ] ओ० ५,८. जी० ३१२७४ जी० ३१३५०,५६३,६३७ सालवण [शालवन] जी० ३१५८१ सामुग्ग [समुद्ग] ओ० १६ साला [शाखा] रा० १३३,२२८. जी०३०३,३८७, सामुच्छेइय [सामुच्छेदिक] ओ० १६० ५८०,६२१,६७२ से ६७४ सामुद्दग सामुद्रग] जी. ३१७८० साय [सात] जी० ३।१२६६ १. 'सारय' ति अध्यापनद्वारेण प्रवर्तकाः स्मारका साया [सात] जी० ३।११८,११६ वा अन्येषां विस्मृतस्य स्मारणात् (वृ)। Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सालि-सिंगार ७५६ सालि शालि] ओ०१. रा० १५०. जी० ३।६२१, साहरण [संहरण] जी० २१११६,१२४ साहरणसरीर [साधारणशरीर] जी० ११६८,७३ सालिपि? [शालिपिष्ट] रा० २६. जी० ३।२८२ साहरिज्जमाण [संह्रियमाण] रा० ३०,८०४. सालिसय [सदृशक] रा० २४५. जी० ३४०७ जी० ३१२८३ सावएज्ज [स्वापतेय] रा० ६६५. जी० ३१६०० साहरिज्जमाणधरय [संह्रियमाणचरक] ओ० ३४ सावज्ज सावद्य] ओ०४०,१३७,१३८ साहरित्ता [संहृत्य ] जी० ३।४५७ सावज्जजोग [सावद्ययोग] ओ० १६१,१६३ साहसिय [साहसिक] ओ० १४८,१४६. रा० सावतेज्ज [स्वापतेय] ओ० २३ ८०६,८१० सावत्थी [श्रावस्ती ] रा० ६७५,६७७ से ६८० साहस्सित [साहनिक] जी० ३१८४२ ६८३,६८५ से ६८६,६६२,७००,७०६, साहस्सिय साहसिक] रा०५६. जी. ३१८४२, ८४५ साहस्सी [साहस्री ओ० १६. रा० ७,४१ से ४४, सावय [स्वापद ओ० ४६. जी ३।६२० ४८,५६ से ५८.२३५,२३६,२८०,२८२,२८६, सावय [श्रावक] जी० ३१७६५,८४१ २६१,५६८,६५७.६५८,६६० से ६६२,६६४. सावाणुग्गहसमत्थ [शापानुग्रहसमर्थ ] ओ० २४ जी० ३:२३६,२४६,२५५,३३६,३४१ से साविया श्राविका जी० ३.७६५,८४१ सार्वेत [श्रावयत् ] मो० ६४ ३४५,३५०,३६७,३६८,४४६,४४८,४५५, ४५७,५५७,५५८,५६०,५६२,५६३,६३५, सास श्वास ] जी० ३।६२८ ६३७,६५७ से ६५९,६८०,७००,७२१,७३३, सासंत शासत् ] ओ० ६४ ७३८,७६० से ७६३,६०२,६०३,१०२५, सासत [शाश्वत] जी० ३१५७,५८,८७,७०२, १०३८,१०४१,१०४४,१०४६,१०४६ से १०५२ सासय [शाश्वत) ओ० १८३,१८४,१६५।१६,२१. साहस्सीय साहसिक] रा० ६७१ रा० १३३,१६८ से २००. जी० ३१५६, साहा [शाखा] ओ० ५,८. रा० २२८. १२७१२,२७० से २७२,३०३,३५०,७२१, ___ जी० ३।२७४,३८७,६७२ ७२४,७२६,७६०,१०८१ साहित्ता [कथयित्वा ] रा०६ सासा स्वाशा,शास्या] ओ० ४६ साहियासाधिका ओ०१६१७ सिाह [कथय,शास्]- साहिति. रा० ११ साहिय [सहित] जी० ३।६२५ --साहेति. रा० २८१. जी० ३।४४७ साहिय साधित] रा० ७६५ -साहेह. रा०६ साहु [साधु] ओ० ४६,१६१,१६३ सिाह [साथ् ]-साहेइ रा० ७६५--साहेज्जासि. सिंग शृङ्ग रा० ७१,७७ रा० ७६५. साहेमि. रा०७६५ सिंगबेर [शृङ्गबेर] जी० १९७३ साहटु संहृत्य ) ओ०२१ सिंगमेद [शृङ्गभेद] ओ० १३ साहण [स+हन् ]---साहणेज्जा .जी० ३३११८ सिंगमाल [शृङ्गमाल] जी० ३१५८२ साहम्मि यययावच्च [सार्मिकवैयावृत्य ] ओ० ४१ । सिंगवाय [शृङ्गवादक] रा०७१ साहय [संहत] ओ० १६. जी० ३।५६६,५६७ सिंगार [शृङ्गार ओ०१५. रा०७०,७८,१३३, साहर [सं+ ह!-- साहरति जी० ३१४५७ ६७३,८०६,८१०. जी०३१३०३,५६७,११२२ Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिधा -सिय सिंघाडग [नाटक ] ओ० १,५२,५५. रा० ६८७, सित्थ [सिक्थ ] जी० ३।५९२ ७१२. जी० ३१५५४,५५५ सिद्ध [सिद्ध] ओ०७१,७४१३,६,१८३,१८४, सिंघाडय शुङ्गाटका रा०६५४,६५५ १८६ से १६२,१९४१,२,४ से ११,१३,१५, सिंदुवार [सिन्दुवार] जी० ३१२८२ १७,१६ से २१. जी. १६९,१०,१२, सिंदुवारगुम्म [सिन्दुवारगुल्म ] जी० ३१५८० १४,१६,२६,४४,४५,५४,६२,६६,१५६, सिंधु [सिन्धु] रा० २७६. जी० ३।४४५,५६५ १५८,२०६,२१५,२१६ से २२१,२२७,२३० ६३७ से २३२,२४०,२४६,२६५,२६७,२७५,२७६, सिभिध श्लैष्मिक ] ओ० ११७. रा० ७६६ २८४ से २८७,२६२.२६३ सिंह [सिंह | जी० ३.७८१,७८२,१०३८ सिद्धकेवलणाण [गिद्धकेवलज्ञान ] रा० ७४५ सिंहली [सिंहली] ओ० ७०. रा० ८०४ सिद्धत्य | निद्धार्थ रा० १५६,१५७,२५८,२७६ सिक्कग [शिस्यक० १३२,१५३,२३६,२४०. जी० ३१३२६,४१६,४४५ जी० ३३३२६,४०२ सिद्धत्यय [सिद्धार्थक] रा० २७६,२८०. सिक्कय [शिक्यता] १० १३२,१४०,७६१. जी. जी० ३१४४५,४४६,४४८,५६३ ३।३०२,३२६.३६८,४०२ सिद्धवसहि सिद्धव ति] ओ० ७४१३ सिक्खा | शिक्षा | ओ० ७६,७७,६७ सिद्धाश्तण | सिद्धान्तन रा० २५१,२५२,२५६, सिक्खाव | शिक्षय ] ---सिक्खाविहिति ओ० १४६ २६०,२७६,२८८,२६१,२६३,२६४,३१३, -सिक्खावेहिइ, रा०८०६ ३३१,३३२. जी० ३६४१२,४१३,४२०,४२१, सिक्खायय शिक्षाव्रत] ओ० ७७ ४५४,४५७ से ४५६,४७८,४६६,४६७,६७४, सिक्खावित्ता [शिक्षयित्वा ! ओ० १४६ ६७६,६७७,६६१ से ६६८,८२५,८८४,९०१ सिक्खवेत्ता | शिक्षयित्वा] रा०८०७ से ६०५,६०६,६१३ सिग्घ [शीन] रा० १०,१२,५६,२७६. जी० सिद्धालय [ सिद्धालय ] ओ०७४।६,१६३ ३८६,१७६,१७८,१८०,१८२,४४५ सिद्धि [सिद्धि] ओ० ७१,१७२,१६३ सिम्घति शीघ्रगति जी० ३।६८६,१०२० सिद्धिगइ [सिद्धिगति ] ओ० १६,२१,५४,११७. सिग्धगमण [शीघ्रगमन] रा० १७,१८ रा० ८,२६२,७१४,७६६. जी. ३१४५७ सिज्झ | सिध्] ---सिज्झइ. ओ० १७७- सिद्धिभग्ग सिद्धिमार्ग Jओ०७२ सिज्झई. ओ० १९५॥१२-सिति . ओ० सिद्धिमहापट्टणाभिमुह | सिद्धिमहापत्तनाभिमुख ७२. जी० १११३३ --सिज्झिहिंति. ओ० ओ० ४६ १६६- --सिज्झिहिति ओ० १५४ रा० ८१६ । सिप्प [शिल्प ] ओ० ६३. रा० १२,७५८ से ७६१. सिज्झमाण [सिध्यत् | ओ० १८५ ___ जी० ३.११८,११६ सिढिल [शिथिल] २० ७६०,७६१ सिप्पायरिय [शिल्पाचार्य ] रा० ७७६ सिणाइत्तए [स्मातुम् ] ओ० १११ सिप्पि ! शिल्लिन् । ओ० १ सिणेह | स्नेह ] ओ० १६८. जी० ३।२२ सिपि [शुक्ति जी० ३७६३ सिता [स्यात् ] जी० ३।६०,१०६,११८,११६, सिप्पिय शिल्पिक] जी० ३१५६१ १७६,१७८,१८०,१८२.१६५,१६६ सिबिधा [शिधिका] ओ० ५२ सित्त सिक्त] ओ० ५५. जी० ३३५६२ सिय [सित] ओ० ४६ Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिय-सीओसिणवेदणा सिय [स्यात् ] जी० ११४६,७३,८२; ३१५७,५८, २७० सियरत सितरक्त] ओ० ४७ सिया [स्यात् ] जी० ३८४,८५,११८,१६७, २७८ से २८५,६०१,६०२,८६०,८६६,८७२ से ८७८,६८२,१०८५,१०८६ सियाल [शृगाल ] जी० ३१६२० सिर शिरस् ] ओ० ५२,७१. रा० ६१,७६,६८७ से ६८९ सिरय ! शिरोज] ओ० १६,५१. रा० १३३. ___ जी० ३१३०३,५६६,५६७ सिरय | शिरस्क | ओ० ६३,६५ सिरसावत्त [शिरसावतं] ओ० २०,२१,५३,५४, ५६,६२,११७. रा०८,१०,१२,१४,१८,४६, ७२,७४,११८,२७६,२७६,२८२,२६२.६५५, ६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, ७२३,७६६. जी. ३१४४२,४४५,४४८,४५७, जी० ३१२८४,३८८,५८३ सिरीसव सरीसृप] रा०७१८. जी. ३१७२१ सिरोसिव सरीसृप रा० ७०३ सिरोवेदणा [शिरोवेदना] जी० ३।६२८ सिलप्पवालमय [शिलाप्रवालमय रा० २५४. सिला [शिला मो० १६,२३,४७. रा० २७, ६६५,७५५,७५७. जी० ३३२८०,५९६,६०८ सिलातल [शिलातल] जी० ३३५६६ सिलायल [शिलातल] ओ० १६ सिलिष सिलिन्ध्र ओ०४७ सिलेस [श्लेष] जी० ११७२१५ सिलोय श्लिोक ओ० १४६. रा० ८०६ सिव [शिव] ओ० १४,१६,२१,५४. रा०८, २९२,६७१. जी० ३।४५७ सिवग [शिवक] जी० ३।७४० सिवमह {शिवमह] रा० ६८८. जी० ३६१२ सिवय [शिवक] जी० ३१७३४,७४१ सिवा {शिवा] जी० ३।६२०११,९२२ सिविया ! शिविका] जी० ३।७४१ सिविया [शिविका] ओ० ७,८,१०. ०० ६८७ से ६८६. जी० ३.२८५ सिस्स [शिष्य ] जी० ३१६१० सिस्तिरिली [दे०] जी० ११७३ सिहंडि [शिखण्डिन्] ओ०६४ सिहर [शिखर] ओ० ५. रा० ५२,५६,१३७, २३१,२४७. जी० ३.२७४,३०७,३७३ सिहरि [शिखरिन्] रा० २७६. जी. ३१२२७, ४४५,७६५ सोउंढी दे०] जी० ११७३ सीओदा [शीतोदा] जी० ३१५६८,७०८ सीओभास [शीतावभास] ओ० ४. रा० १७०, १७३. जी. ३२७३ सोओया [शीतोदा] जी० ३।४४५ सीओसिणवेदणा [शीतोष्णवेदना] जी० ३।११२, ११३,११४ सिरिकता [श्रीकान्ता] जी० ३३६८८ सिरिचंदा [श्रीचन्द्रा] जी० ३१६८८ सिरिणिलया [श्रीनिलया] जी० ३।६८८ सिरिदाम [श्रीदामन् ] जी० ३४५६७ सिरिधर [श्रीधर] जी० ३८५४ सिरिप्पम श्रीप्रभ] जी० ३।८५४ सिरिमहिया [श्रीमहिता] जी० ३१६८८ सिरिली दे० श्रीली] जी० ११७३ सिरिवच्छ [श्रीवत्स ] ओ० १२,१६,५१,६४. रा० २१,४६,२५४,२६१. जी० ३।२८६, ३४७,४१५,५६६१ सिरी [श्री रा०४०,१३२,१३५.२३६,७३२, ७३७,७७४,७८२. जी० ३१२६५,३०२,३०५, ३१३,३६८,५८०,५८१,५६१ सिरीस [शिरीष] ओ० ६,१०. रा० ३१. १. श्रीवृक्षणाङ्कितं- लाञ्छितं वक्षो येषां ते श्रीवृक्षलाञ्छितवक्षसः (व० पत्र २७१) । Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीत-सीहासण ७६२ सीत [शीत] जी० ३:२२,११३,११४,११८, ११६ सोतल [शीतल ] जी० ३।११८,११६ । सीतवेदणा [शोतवेदना जी० ३१११२ से ११४, सीता शीता] रा० २७६. जी० ३।३००,६३२, ६३६,६६८,७४६ सोतीभूय शोतीभूत ] जी० ३११८ सीतोदय [शीतोदक ] जी० १९६२ सीतोदा [शीतोदा ] रा० २७६. जी० ३१७४६, । सोसोसिण [शीतोष्ण] जी० ३३११२,११५ सीषु [सीधु] जी० ३१५८६,८६० सोमंकर [ सोमङ्कर] ओ० १४. रा० ६७१ सोमंतोवणयण सीमन्नोपनयन] जी० ३१६१४ सोमंधर [सीमन्धर ] ओ० १४. रा० ६७१ सीमा सीमा] ओ०१ सीय शीत ओ० ४,८६,११७. रा० १७०,७०३, ७९६. जी० ३.११२,११३,११५,११८,११६, २७३ सीय [सित] ओ० १६५ सीयच्छाय शीतच्छाय] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३३२७३ सीयकूड [शीतकूट] जी० ३.११६ सीयपडल [शीतपटल] जी० ३।११६ सोयपुंज शीतपुञ्ज] जी० ३।११६ सोयभूय [शीतीभूत ] जी० ३।११८,११६ सीयल [शीतल] रा० १५६,१७४,६७०. __ जी० ३१२८६,३३२,६०४ सोयवेदणिज्ज [शीतवेदनीय] जी० ३१११६ सीयवेयणिज्ज [शीतदनीय] जी० ३।११६ सीया [शीता जी० ३१४४५,८०० सोया [शिबिका] ओ० १,१००,१२३. रा० १७३. जी० ३२७६,५८१,५८५,६१७ सील [शील] ओ० ४६ सीलइ [शील जित् ] ओ०१६ सीलव्वय [ शीलवत] ओ० १२०,१४०,१५७. रा०६९८,७५२,७८७,७८९ सीवण्णी [श्रीपर्णी] जी० ११७१ सोसगपाय [मीराकपात्र] ओ० १०५,१२८ सीसगबंधण [सीमकबन्धन ] ओ० १०६.१२६ सीसगभारग [सोराकभारक] रा० ७६०,७६१ सीसघडी [ शीर्ष घटी] रा० २५४. जी० ३३४१५ सोसछिण्णा [ शीर्षछिन्नक] ओ०६० सीसछिण्णय शीर्षछिन्नक| रा० ७६७ सोसपहेलियंग [शीर्षग्रहेलिकाङ्ग] जी० ३१८४१ सीसपहेलिया [शीर्षप्रहेलिका] जी० ३८४१ सीसागर [सीसाकर] जी० ३।११८ सीह [शीघ्र] जी० ३१९८६ सीह सिंह] ओ० १६,२७,४८. ग० २४,३७, ८१३. जी. ३१८४,८८,२७७,३११,५६६, ५६७,६२०,६३१,७८२,१०१५ सोहकण्ण [सिंहकर्ण जी० ३।२१६ सीहकण्णी [ सिंहकर्णी] जी० ११७३ सोहमति शीघ्रगति] जी० ३९८६ सोहघोस (सिंहघोष | जी० ३१५६८ सोहन्सय [सिंहध्वज] रा० १६३. जी० ३।३३५ सोहणाय [सिंहनाद ओ० ५२. रा० ६८७,६८८. जी० ३1८४२,८४५ सोहणिक्कोलिय सिंहनिष्क्रीडित] ओ० २४ सीहणिसाइ [सिंह निषादिन् ] जी० ३१८३६ सोहनाद [सिंहनाद] जी० ३१४४७ सोहनाय [सिंहनाद } १० २८१ सीहनिक्कोलिय [गिहनिष्क्रीडित] ओ० २४ सोहपुच्छियग [ सिंहपुच्छितक | ओ०६० सोहमंडलपविभत्ति सिंहमण्डलप्रविभक्ति रा०६१ सोहमुह [सिंहमुख) जी० ३।२१६ सोहस्सर [सिंहस्वर] रा० १३५. जी० ३।३०५, ५६८ सोहासण [सिंहासन] ओ०१३,१६,२१,५४,६४. रा० ७,८,३७,३६,४१ से ४४,४७,५१,६७, Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुक्खाय सुजात ६८, १५८,१६४, १८१,१८३,१८६,२०४ से २०७,२१६, २४३,२६५, २६७,२६६, २७७, २७६,२८३,२८६,२८८,३००,३२१,३३८, ३५२.४७४,५३४,५६५,६५७. जी० ३३२९३, ३११,३१२,३३१.३३६,३४५, ३५५,३५६, ३५६, ३६६,३६८,३७८, ४०५, ४१९, ४२८, `४३१, ४३४,४४३, ४४५, ४४६, ४५२, ४५४, ४६५.४८६, ५०३, ५१७, ५३३, ५४०, ५४८, ५५७,६३४,६३५,६६३,६७३,६८५,७३७, ७४०, ७४२, ३४५, ७५०, ७६२, ७६५, ७६८, ७७०,८६२,१०२४ से १०२६ सुक्खाय [स्वाख्यात] ओ० ७६ से ८१ अलंकित [ स्वलङ्कृत ] जी० ३।३०३ सुअलंकिय ! स्वलङ्कृत ] रा० १३३ सुद्द [ शुचि ] ओ० १६,५५,६३,६८. ० १६, २८१. जी० ३.४४७, ५६६, ५१७ सुभूय [ शुचीभूत ] ओ० २१. रा० ७६५,००२ सुइसमायार [ शुचिसमाचार ] मो० १८ सुईभूय [ शुचीभूत ] बो० ५४. रा० २७७ सुखत्तार [ सुखोत्तार] रा० १७४. जी० ३।२८६ सुउमाल [ सुकुमार] ओ० ६३ सुभार [ सुखावतार ] रा० १७४ संक [ शुल्क ] रा० ७२७ सुंदर [ सुन्दर] ओ० १५, १६, १४३. रा० ६७३, ८०१. जी० ३।५६६, ५६७ सुंदरंगी [सुन्दराङ्गी ] मो० १५. रा० ६७२ सुमार [ शंशुमार, शिशुमार ] जी० ११६६, ११= सुमारिया [शिशुमारिका ] रा० ७७ सुमारी [ शुशुमार, शिशुमारी ] जी० २१४ सुक [शुक ] जी० ३।५६७ सुकंस [ सुकान्त ] जी० ३१८७२ सुकलित [सुक्वथित] जी० ३१५७२ सुरुद्रिय [सुक्वथित] जी० ३१०६६ सुक [ सुकृत ] ओ० २,५२,५५,६३ से ६५. रा० ३२,१७३,२८१,६८१,६८७,६८६. जी० ३।२८५,३७२, ४४७ ७६३ सुकुमाल [सुकुमार] मो० ५,८,१५,१६,६३, १४३. रा० २२८, २८०, ६७२,६७३,८०१. जी० ३१३८७,४४६, ५६६, ५६७, ६७२, १०६८ सुक्क [ शुक्र ] ओ० ५०. जी० ३१११११ सुक्क [ शुष्क ] रा० २६,७८२ जी० ३३२८२ सुक्क [ शुक्ल ] जी० ६।१५४ सूक्क ( झाण) [ शुक्लध्यान ] ओ० ४३ सुक्कपक्ख [शुक्लपक्ष ] जी० ३१८३८११८ सुक्कलेस [ शुक्ललेश्य ] जी० ६ १६१ सुक्कलेस' [ शुक्ललेश्या ] जी० ३।१५० सुक्कलेस्स [ शुक्ललेश्य ] जी० ३।१८५, १६६ सुक्कलेस्सा [ शुक्ललेश्या ] जी० ३।११०३ सुक्किल [ शुक्ल ] ओ० १२. ० २२, २४, २६, १२८,१३२,१५३. जी० १।५, ३४, ३५, ५०, १३६; ३१२२,४५,२७८,२८२,२६०,३०२, ३२६, ३५३,३६७,५१५, १०७५, १०७६, १०६५ सुविकलग [ शुक्लक] जी० ३।२८२ सुक्ख [ सौख्य ] ओ० १९५२१ सुगंध [ सुगन्ध ] ओ० २,५५,६३. रा० ६, १२,३२, १३२,२३६,२८१,२८५. जी० ३।३०२,३७२, ४४७, ४५१,५२,५६६ सुगंधि [सुगन्धि ] ओ० ७,८,१०. रा० १५६. जी० ३२७६,३३२ सुगंधिय [सौगन्धिक ] ओ० १५० रा० २७६, ८११. जी० ३१४४५ सुगुन्झवेस [सुगुह्यदेश] ओ० १६ सुगूढ | सुगूढ | जी० ३५६७ घोसा [ सुघोषा ] रा० ७७. जी० ३२७८,५८८ सुचरिय [सुचरित] रा० ८१४ सुचि [ शुचि ] जी० ३ ०५६६ सुचिरण [सुचीर्ण ] ओ० ७१. रा० १८५,१८७. जी० ३१२१७,२६७, २६८, ३५८,५७९ सुजात [ सुजात ] जी० ३।३८७ ५८६ ५६ ५६७ Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ सुजाय-सुपतिट्टित सुदंसणा सुदर्शना] जी० ३।६६८,६७२.६७३, ६७८ मे ६८३,६८८,६८६,६६२ से ७००, ७६५,६१० ६२१ सुदुत्तार [सुदुस्तार] ओ० ४६ सुद्ध [शुद्ध] ओ० २७. रा० ७६,१७३,८१३. जी० ३।२८५,५८५ सुद्धदंत [शुद्धदन्त] जी० ३।२१६ सुखदंता [शुद्धदन्ता] जी० २११२ सुखप्पावेस [ शुद्धप्रावेश, शुद्धपावेश्य, शुद्धात्मवेश] ओ० २०,५३. रा०६८५,६६२.७००,७१६, सुजाय [सुजात] ओ० ५,८,१४,१५,१६,१४३. रा० १७४,२८८,६७१ से ६७३,८०१. जी० ३१११८,११६,२७४,२८६,५६६,५६७, ६७२ सुजाया [सुजाता] जी० ३१६६६०२ सुज्म [दे०] रा० १७४. जी० ३.२५६ सुट्रिय [सुस्थित] जी० ३.५६४,७२१,७५४,७५६, ७६०,७६१ सुटिया [सुस्थिता] जी० ३१७६१ सुण [१]--सुणंतु. रा० १५-सुणह. ओ० १६५।१७--सुणिस्सामो .रा० १६ -~~~-सुणेस्सामो. ओ० ५२. रा०६८७ सुण [श्वन् । जो० ३१८४ सुणग [शुनक] जी० ३१६२० सुणति सुनति रा० ७६,१७३. जी० ३१२८५ सुणिउण [सुनिपुण] रा० ५७ सुणिद्ध [सुस्निग्ध] ओ० १६ सुणिम्मिय सुनिमित] जी० ३१५६७ सुणिसिय [ सुनिशित] जी० ३१४१० सुणेत शृण्वत् ] रा० ७७४ सुणेत्ता | श्रुत्वा] रा० ६८८ सुहा | स्नुषा] जी० ३१६११ सुतिक्खधार | सुतीक्ष्णधार] रा० २४६. जी० ३१४१० सुत्त [सूत्र] रा० १३२,१५३,२३५. जी० ३.३०२, ३२६,३६७ सुत्त सुप्त] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० सुत्तओ | सूत्रतस् ] मो० १४६. रा० ५०६,८०७ सुत्तग [ सूत्रक] जी० ३१५६३ सुत्तखेड्ड' सूत्रखेल | ओ० १४६. रा० ८०६ सुत्तरुइ [सूत्ररुचि ] ओ० ४३ सुति [शुक्ति जी० ३१५८७ . सुत्थिय [सुस्थित ] जी० ३१७६१ सुवंसण (सुदर्शन ] जी० ३१८०६ १. सूत्रखेल - सूत्रक्रीडा, अत्र खेल शब्दस्य 'खेड्ड' इत्यादेशः (जंबु. वृत्ति) सुद्धपुढवी [ शुद्धपृथ्वी] जी० ३।१८५,१८७ सुद्धवात [शुद्धवात] जी० ३१६२६ सुद्धवाय शुद्धवात | जी० १२८१ सुद्धागणि [शुद्धाग्नि] जी० ११७८,८५ सुद्धसणिय [शुद्धषणिक ! ओ० ३४ सुद्धोदय [ शुद्धोदक] ओ० ६३. जी० ११६५ सुषम्मा [सुधर्मा] रा० २६७,६५६.जी० ३१३७२, ३६६,४१२,४२१,४२६,४४२,१०२४,१०२५ सुनिउण [सुनिपुण] रा० १२ सुनिवेसिय [सुनिवेशित ] ओ०६. जी. ३१२७५ सुपइट्ट [सुप्रतिष्ठ] रा० २५८ सुपइटक [सुप्रतिष्ठक | जी० ३१५६७ सुपइट्ठग सुप्रतिष्ठक] रा० १५२. जी० ३१५८७ सुपहटिय [सुप्रतिष्ठित ] रा १३३,१७३,२२८, ७५०,७५२,७५८. जो ३।२८५,३०३,६७६ सुपक्क [सुपरव] जी० ३१५८६,८६० सुपडियाणंद [सुप्रत्यानन्द ] ओ० १६३ सुपण्णत्त [सुप्रजप्त ] ओ० ७६ से ८१ सुपण्ह [सुप्रश्न ] ओ० ४६ सुएतिट्ट [सुप्रतिष्ठ] रा० २७६. जी० ३१३५५ सुपतिटक [सुप्रतिष्ठक | जी० ३।४१६,४४५ सुपतिट्टग [सुप्रतिष्ठक] जी० ३१३२५ सुपतिहित | सुप्रतिष्ठिन] जी० ३।३८७,३६३, ४०१ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुपतिट्ठिय-सुरभि सुपतिट्ठिय [सुप्रतिष्ठित] रा० ५२,५६,२३१, सुभद्दा | सुभद्रा] ओ० ५५,५८,६२,७०,७१,८१. २४७,७५४,७५६,७६०,७६२,७६४. जो० ३१६६६ जी० ३४५६६,६७२ सुभाविय [सुभावित] ओ० ७९ से ८१ सुपरक्कत सुपराकान्त रा० १८५,१८७. सुभासिय [सुभाषित] ओ० ७६ से ८१ जी० ३१२१७,२६७,२६८,३५८,५७६ सुभिक्ख ! सुभिक्ष ओ० १,१४. रा० ६७१ सुपरिणिट्ठिय [ सुपरिनिष्ठित } ओ० ६७ सुभूम [नुभूम जी० ३।११७ सुपस्सा [सुपश्या | रा० ८१७ समझ (मुमध्य] रा० १३३. जी० ३१३०३ सुपिणद्ध । मुपिनद्ध] जी० ३६२८५ सुमण | सुमनस् ] जी० ३।६२५,६३४ सुप्पइट्टिय [सुप्रतिष्ठित] ओ० १६ सुमणदाम [मुमनोदामन् | रा० २७६,२८५. सुप्पडियाणंद [सुप्रत्यानन्द ] ओ० १६१ जी० ३१४४५,४५१ सुप्पबुद्धा सुप्रबुद्धा] जी० ३।६६६ सुमणभद्द [ समनोभद्र | जी० ३:६२८ सुप्पभ [सुप्रभ] जी० ३१८७५ सुमणा | सुमनसी | जी० ३१६६६,६२० सुप्पभा [सुप्रभा] ओ० १९४ सुमहग्ध [सुमहाय॑ ] ओ० ६३ सम्पमाण सुप्रमाण] ओ० १३,१६. जी ० ३१५६६, सुय [ शुक] ओ० ६. जी० ३१२७५ सुय [श्रुत] ओ० ५२. रा० १६,६८७,६८६ ५६७ सुप्पसारिय [सुप्रसारित ] ओ० ५,८. जी० ३१२७४ सुयअण्णाणि [श्रुताज्ञानिन् ] जी० ११३०,८७,९६; ३१०४,११०७; ९।१६७,२०२,२०६,२०८ सुप्पसूय [सुप्रसूत] आ० १४. रा० ६७१ सुयणाण [श्रुतज्ञान] ओ० ४०. रा० ७३९,७४२, सुफास [सुस्पर्श ] जी० ३।६८१,६८७ सुबद्ध । सुबद्ध] ओ० १६. रा० १७४. सुयणाणविणय [श्रुतज्ञानविनय ] ओ० ४० जी० ३१२८६,५६६,५६७ सुयणाणि {श्रुतज्ञानिन् ] ओ० २४. जी० ११८७, सुबहु [सुबहु ] रा० २६६,२६८,७५० से ७५३, ६६,११६,१३३; ३।१०४,११०७६।१५६, ७७४. जी. ३१४३२,५३४,५४१ १६०,१६५.१६६,१६७,१६८,२०४,२०८ सुभिगंध [सुगन्ध ] जी० ११५,३६,३७,५०; सुरदेवया [श्रुतदेवता] रा० ८१७ ३१६७६,६५५ सुयनाणि श्रुतज्ञानिन् ] जी० १११३३ सुम्भिगवत्त सुगन्धत्व] जी० ३६८५ सुयपिच्छ शुकपिच्छ] रा० २६. जी० ३३२७६ सुन्भिसद्द [सुशब्द] जी. ३१६७७,६८३ सुयमुह [शुकमुख ] ओ० २२. रा० ७७७,७७८, सुभिसद्दत्त [सु शब्दत्व] जी० ३६६८३ सुभ [शुभ ] ओ० ५१,११६,१५६. रा० १८५, सुरइ [सुरति ] रा० ७६,१७३ १८७,६७० जी० ११३४, ३।२१७,२६७, सुरइय [सुरचित] ओ० ४६ २६.८,३५८,५७६,६७२,१०६०,१०६६ सुरति [सुरति] जी० ३।२८५ सुभग सुभग ओ० १२,१५०. रा० २३,१७४, सुरभि {सुरभि] ओ० २,७,८,१०,४६,५५. १९७,२७६,२८८,८११. जी० ३३११८,११९, रा० ३२,१३१,१४७,१४८,१५६,२२८,२८०, २५६,२८६,२६१ २८१,२८५,२६१.३५१.६७०. जी० ३३२२, सुभचक्खुकंत [शुभ चक्षु कान्त ] जी० ३१६३३ २७६,३०१,३३२,३७२,३८७,४४६,४४७, सुभद्द [सुभद्र] जी० ३१६२८ ४५१,५१८ Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरभिगंध-सुसिर सुरभिगंध [सुरभिगन्ध] रा० ६,१२ सुदामरुप्पामय [सुवर्णरूप्यमय] रा० १६,१५३, सुरम्म {सुरम्य ] ओ० १,६ से ८,१०,१३. १६०,२३५,२३६,२४०,२७५,२८०. रा० २२,३७,२४५. जी० ३।२७५,२७६, जी० ३।२६४,२८७,३२६,३६७,३६८,४४५ ३११,३८६,४०७,५८१,५८५ सवण्णागर | सुवर्णाकर रा० ७७४. जो० ३.११८ सुरवर [सुरवर] रा० ८,६,१२ सुवयण [सुवचन] ओ० ५२. रा० ६६७,६८७ सुरस | सुरस] जी० ३१६८०,६८६ सुवासित [सुवासित ] जी० ३१८७८ सुरहि । सुरभि] ओ० ६३. जी० ३१६७२ सुविणीय [सुविनीत] रा० ७६ से २१ सुरा [सुरा] जी० ३१५८६ सुविभत्त {सुविभक्त] ओ० १,५,८,१०,१६. सुरूव [सुरूप] ओ०१५,४७ से ५१,१४३. ग० ३२,१४५. जी० ३१२६८,२७४,३७२, रा० ५३,६७२,६७३,८०१. जी० ३।२६०, ५६६,५६७ ६७८,६८४ सुविरइय [सुविरचित रा० ३७,२४५. सुरुवग [सुरूपक जी० ३५९६ जी० ३।४०७,५६६,५६७ सुरूवत्त [सुरूपत्व] जी० ३६८४ सुविरचित { सुविरचित] जी० ३१३११ सुलभबोहिय [सुलभबोधिक] रा० ६२ सुविहि सुविधि] जी० ३६५६४ सुललिय [सुललित] रा० १७३. जी० ३१२८५ सुव्वत्त { सुव्यक्त] ओ० ७१. रा० ६१ सुवण्ण | सुवर्ण] ओ० २३,५२,६३. रा० ४०,१३२, सुव्वय [ सुबत] ओ० १६१,१६३ १७४,२८१,६८७ से ६८६. जी. ३१२६५, सुसंपउत्त [सुसम्प्रयुक्त] ओ० ४६,६४. रा० ७६, २८६,३०२,३१३,४४७,६०८,८४०,८८५, १७३,६८१. जी. ३१२८५,५८८ ११२२ सुसंपग्गहित [सुसम्प्रगृहीत ] जी० ३१२८५,३०२ सुसंपग्गहिय [सुसम्प्रगृहीत] ओ० ६४. रा० १३२, सुवण्ण [सुपर्ण] मो० ४८,१२०,१६२. रा०६६८, १७३ ७५२,७८६. जी० ३१२३२ सुसंपरिंगहित [सुसम्परिगृहीत | जी० ३।२८५ सवण्णकला [सुवर्णकूला रा० २७६. जी० ३१४४५ सपरिग्गहिय [सुसम्परिगृहीत] रा० १७३.६८१ सुवण्णजुति [सुवर्णयुक्ति] ओ० १४६. रा० ८०६ सुसंपिणद्ध [सुसंपिनद्ध] रा० १७३,६८१ सुवण्णजूहिया [ सुवर्णयूधिका] रा० २८. सुसंभास [सुसंभाष] ओ० ४६ ___ जी० ३१२८१ सुसंवय [सुसंवृत] ओ०६३ सुवण्णदार [सुपर्णद्वार] जी० ३१८८५ सुसंहय ! सुमंहत] ओ० १६ सवण्णपाग [सुवर्णपाक] ओ० १४६. रा० ८०६ सुसस्कय [सुसंस्कृत] जी० ३।५९२ सुवण्णमणिमय [सुवर्णमणिमय] रा० २७६,२८०. सुसज्ज [ सुसज्ज] ओ० ५७. रा० ५३ जी० ३१४४५ सुसमाहिय [सुसमाहित] ओ० ३७ सुवण्णरुप्पमणिमय [सुवर्णरूप्यमणिमय ] रा० २७६, सुसवण [सुश्रवण ] जी० ३१५६६ २८०. जी० ३१४४५ सुसव्व [सुगर्व] रा० १५२. जी० ३३२५ सुवण्णरुप्पमय [सुवर्णरूप्यमणिमय रा० १७५. सुसामण्णरय सुश्रामण्यरत ] ओ० २५,१६४ जी० ३.४०२,६०२ सुसाहत सुसंहत] जी० ३।५६६ सवण्णरुप्पामणिमय [सुवर्णरूप्यमणिमय] सुसिणिद्ध [सुस्निग्ध] जी० ३।५९७ जी०-३२४४५ सुसिर शुषिर] रा० ११४२८१ Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुसिलिट-सुहमवणस्सतिकाइय ७६७ सुसिलिट्ट सुश्लिष्ट ओ० १६,६३,६४. रा० ३२, सुहिरण्ण [सुहिरण्य] रा०२८ ५२,५६,२३१,२४७. जी० ३।३७२,३६३,४०१, सुहिरण्णया सुहिरण्यका) जी० ३१२८१ सुहम सुक्ष्म] ओ० ४७,१७०,१८२. रा० १६०, सुसील [सुशील ] ओ० १६१,१६३ २५६. जी० ३६१३३,३३३,४१७,५६६ : सुसुइ सुश्रुति ] ओ०४६ ५१२१ से २३,२५ से २७,३४ से ३६,५१,५२, सुस्सर | सुस्वर] रा० १३५. जी० ३१३०५,५९७, ५७ से ६०; 818५,६६,६६,१०० ५१८ सुहुमआउ [सूक्ष्माप्] जी० ५।२५ सुस्सरधोस [सुस्वरघोष रा० १३५. जी० ३।३०५ सुहमआउकाइय सूक्ष्मा कायिक] जी० ५।२७,३४ सुस्सरणिग्घोस [सुस्वरनिर्धाप ) जी० ३३५६८ सुहमआउक्काइय [सूक्ष्माकायिक जी० ११६३,६४ सुस्सरा [सुस्वरा} रा० १४ सुहुमकाल [सूक्ष्मकाल] जी० ६६६ सुस्सषण [सुश्रवण | ओ० १६ सुहुमकिरिय सूक्ष्मक्रिय ] ओ० ४३ सुस्सूसणाविणय सुश्रूषणाविनय ] ओ० ४० सहमणिओद {सूक्ष्मनिगोद | जी० ५१३८,३६,४४ सुस्सूसमाण (शुश्रूषमाण] ओ० ४७,५२,६६,८३. से ४६,५२,६० रा० ६०,६८७,६६२,७१६ सुहमणिओदजीव [ सूक्ष्मनिगोदजीव जी० ५।५३, ५४,५६,६० सुह [सुख ] ओ० १,२३,२६,५२,१६५।१५,१६, सुहमणिओय [ सूक्ष्मनिगोद] जी० ५।२१,२२,२५, २२. रा० १५,२७५,२७६,६८३,६६७. २७,३४,३५ जी० ३११२६३६,४४१,४४२,५६४,६०४, सुखमणिगोद [सूक्ष्मनिगोद] जी० ५।४४ ५३८४१३ सुहमणिगोदजीव सूक्ष्मनिगोदजीव] जी० ५१६० सुह [शुभ ] ओ० ६ से ८,१०. जी० ३१२७५,२७६ सुहमणिगोय [ सूक्ष्मनिगोद] जी० ५१२६,३६ सुहंसुह सुखंसुख] ओ० १९. रा० ६८६,७११, सुहमतेउकाइय [ सूक्ष्मतेजस्कायिक जी० ५।२५, ८०४. जी. ३१६१७ २७,३६ सुहफास [सुखस्पर्श, शुभस्पर्श ] रा० १७,१८,२०, सुहुमतेउक्काइय [सूक्ष्मतेजस्कायिक] जी० ११७६, ३२,१२६,१३०,१३७. जी० ३:२८८,३००, ७७; ५१३४ ३०७,३७२ सुहमनिओग [सूक्ष्मनिगोद] जी० ५।२४ सुहम्मा [सुधर्मा] रा० ७,१२ से १४,२०६,२१०, सुहमनिओय [ सूक्ष्म निगोद] जी० ५॥३४,३५ २३५ से २३७,२५०,२५१,२७६,३५१,३५६, सुहमनिगोद { सूक्ष्मनिगोद] जी० ५।३४ ३५७,३७६,३६४,३६५,६५७,७६५,७६४, सुहमपुढविकाइय [सूक्ष्मपृथ्वीकायिक] जी० ११३६ ८०२. जी. ३।३६७,३९८,४११,४१२,५१६, १४,५६; ३।१३२,१३३, ५५२,३,२४,२५, ५२१ से ५२५,५५६,५५७ सुहलेसा [शुभलेश्या] जी० ३।६३८१२६ सुहमपुढवी [सूक्ष्मपृथ्वी] जी० ॥२७ सुहलेस्सा [शुभलेश्या] जी० ३१८४५ सुहुमवणस्सइकाइय [सूक्ष्मवनस्पतिकायिक] सुहविहार [सुखविहार जी० ३।५६४ जी० ११६६,६७; श२७,३४,३६ सुहासण | सुखासन] रा०७६५,७६४,८०२ सुहमवणस्सति [ सूक्ष्मवनस्पति ] जी० ५५२४ सुहि । सुखिन् ] ओ० १६१६,२२ । सुहमवणस्सतिकाइय [सूक्ष्मवनस्पतिकायिक सुहिय [सुहृद् ] जी० ३१६१३ जी० ५२२५,२७,३६ २७,३४ Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६८ सुहमवाउकाइय [सूक्ष्मवायुकायिक] जी० ५।२७, ३४ सुमवाक्काय [सूक्ष्मवायुकायिक ] जी० १।५० सुमपरायचरितविणय | सूक्ष्मसम्परायचरित्रविनय | ओ० ४० सुमसरीर | सूक्ष्मशरीर | जी० ३११२६/६ सुहय | सुहुत ] भ० २७. रा० ८१३ सुहोत्तार | सुखोत्तार ] जी० ३।५६४ सुहोदय | शुभोदक, सुखोदक | ओ० ६३ सुहोयार | सुखावतार | जी० ३१२८६ सूइभूत | सूचीभूत ] जी० ३१४४३ सूई | शुत्री ] रा० १६,१३०,१७५,१८०,११७. जी० ३।२६४,२६६,२८७, ३०० सूईकलाव [ शुचीकलाप ] जी० ११७७,७६ सूईपुडंतर [ शुचोपुटान्तर | रा० १६७. जी ३१२६६ सूईफलय | शुचीफलक [ रा० १६७. जी० ३१२६६ सूईभूय | शुचीभूत ] रा २८८ सूईमुख [ सूचीमुख ] रा० १६७ समुह शुचीमुख ] जी० ३।२६६ सूचिकलाव [ शुचिकलाप ] जी० ३१८५ सूणगलंछणय [सूणालाञ्छक | रा० ७६७ सूमाल [सुकुमार] रा० २८५. जी० ३१२७४, ४५१ सूयगडघर [ सूत्रकृतधर] ओ० ४५ सूयपुरिस [ सूपपुरुष ] जी० ३१५६२,५६७ सूर [ सूर] मो० १६,२२,२७,५०. रा० १३३, ७७७७७८,७८८८०३,८१३. जी० २ १८; ३।२५८, ३०३, ५८६, ५६३, ५६६,७६५, ७६७, ७६६,७७१,७७३,७७५, ७७७,७७६, ८३८१४, १०,१५,२१,२३,२४,२७,२८,२६,३२,६३७, ६५०,६५३,१०१६, १०२०, १०२१,१०२६, ११२२ सूरकतमणि [ सूरकान्तमणि] जी० १७८ सूरणकंद [ शूरणकन्द ] जी० ११७३ सूरत्थमणपविभत्ति [ सूरास्तमनप्रविभक्ति ] रा० ८६ सुहमवाउकाइय-सूरित्लि मंडवग सूरवीर [सुरद्वीप ] जी० ३।७६५,७६६,७७१,७७७ सूरद्दीव [ सुरद्वीप ] जी० ३।६३७ सूरपरिएस | सूरपरिवेश ] जी० ३१८४१ सूरपरिवेस | सुरपरिवेश ] जी० ३।६२६ सूरख्पभा | सूरप्रभा ] जी० ३ । ७६५, १०२६ सूरमंडल [ सुरमण्डल ] रा० २४. जी० ३।२७७, ५६० सूरमंडलपविभत्ति | सूरमण्डलत्र विभक्ति ] रा० १० सूरवडेंस [ सूरावतंसक ] जी० ३।१०२६ सूरवरोभास | सुरवरावभास] जी० ३।६३८ सूरविमाण [ सूरविमान ] जी० २२४१; ३३१००३ से १००५,१००६,१०११,१०२६ सुरागमणपविभत्ति [ सुरागमनप्रविभक्ति ] रा० ८७ सूराभिमुह | सूराभिमुख ] अ० ११६ सूरावरणपविभत्ति | सुरावरणप्रविभक्ति ] रा० द सूरावलिपविभत्ति [सुरावलिप्रविभक्ति] रा० ८५. सूरि | सूर्य | ओ० १६२. २०४५,१२४. जी० ३२१७६, १७८, १८०, १८२, २५७,७०३, ७२२,८०६,८२०,८३०,८३४,८३७,८४१,८४२, ८४५,६८० से १०००, १०२०,१०३७,१०३८ सूरियकंत [ सूर्यकान्त ] रा० ६७३,६७४,७६१ से ७६३ सूरियता सूर्यकान्ता ] रा० ६७२,६७३,७५१, ७७६,७६१ से ७६४,७९६ सूरियाभ [ सूर्याभ] रा० ७,६,१०.१२ से १८,४१ से ४४,४६ से ४६.५५ ६५,६८,६६,७१ से ७४, ११८ से १२०,१२२, १२४१२६,१२६, १६२,१६३, १६.०, १००, १७, २४० २०९, २६.५. २६८,२७०, २७४ से २६१,६५४ से ६६७, ७७६६ से ७६६ सूरियाभविमाणप | सूर्याभविमानपति ] रा सूरियाभविमाणवासि [ सूर्याभविमानवासिन् ] २० ७,१५ से १७, ५५,५६,५८,२८०, २८२, २८६, २६१,६५७ सूरिल्लि मंडवग [ दे० सूरिल्लिमण्डपक] रा० १८४. जी० ३।२६६ Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरिल्लिमंडवय- सोइंदिय सूरिल्लि मंडवय | दे० सूरिल्लिमण्डपक] रा० १८५ सूरुग्गमणपविभत्ति [ सुरोद्गमनप्रविभक्ति ] रा० ८६ सूरोवराग [ सूरोवराग ] जी० ३०६२६,८४१ सूल | शूल ] ओ० ६४. जी० ३१११० सुलम्म | गुलाग्र | जी० ३.८५ सुभिण्णग [ शूलभिन्नक] ओ० ६० रा० ७५१ सूलाइ | शुलातिग | रा० ७५१ सूलाइ [ शूलातिग | रा० ७६७ सूलाइयग | शूलाचितक, शूलातिग] ओ० ६० से | दे० ] ओ० ३१. रा० १२. जी० ११२ सेउ [ सेतु ] ओ० १,७,८,१०. जी० ३।२७६ सेडकर [ सेतुकर ] ओ० १४. २१० ६७१ सेज्जा [ शय्या ] ओ० ३७,१२०,१६२,१८०. रा० ६६८,७०४,७०६,७११,७१३, ७५२,७७६, ७८६ सेट्ठि | दे० श्रेष्ठिन् | ओ० १८,२३,५२,६३. रा० ६८७,६८८, ७०४,७५४,७५६,७६२, ७६४. जी० ३।६०६ सेढी [ श्रेणी] ओ० १६,४७. ० २४,७६०, ७६१. जी० ३१२७७,५६६,७२३, ७२६ सेना [सेना ] ओ० ५५ से ५७,६२,६५ सेनाas [ सेनापति ] ओ० १८,२३,५२,६३. रा० ६८७,६८८, ७०४, ७५४, ७५६, ७६२, ७६४ सेगावच्च | सेनापत्य ] ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३।३५०, ४४८, ५६३, ६३७ सेणावति | सेनापति ] जी० ३१६०६ सेत | श्वेत ] जी० ३।३००, ३५४,४५४,८८५ सेतासीय [ श्वेताशांक ] जी० ३१२८२ सेवा [ दे० ] जी० २ सेय [ श्वेत ] ओ० ५१,६५,६७,१६४. रा० १२६, १३०, १६२.१६०,२१०,२१२,२२२,२८८. जी० ३।२६४,३००, ३१२, ३३५, ३७३,३८१, ६४७ सेच [ स्वेद ] ओ० ८६, ६२ जी० ३१५६८ सेय | श्रेयस् ] ओ० ११७. रा० ६,२७५, २७६, i ७७४,७७७, ७८१. जी० ३१४४१, ४४२ सेय [सेक ] जी० ३१५६२ सेकणवीर [ श्वेतकणवीर ] रा० २६. जी० ३२८२ ७६६ सेयबंधुजीव [ श्वेतबन्धुजीव ] रा० २६. जी० ३१२८२ सेयमाल [ श्वेतमाल ] जी० ३।५८२ सेयविया [ श्वेतविका ] रा० ६६६ से ६७१,६८१, ६८३,६६६,७००,७०२ से ७०४, ५०६, ७०८, ७१० से ७१३,७१६,७२६,७५० से ७५३, ७७५,७७६,७८०७८७,७८८ योग [ श्वेताशोक ] रा० २६ सेरियाम्म [ सेरिकागुल्म ] जी० ३२५८० सेल [ल ] ओ० ४६. जी० ३१५१४ सेवा [ शैलपात्र ] ओ० १०५,१२८ सेबंघण [ शैलबन्धन ] ओ० १०६,१२९ सेला [ शैला ] जी० ३।४ सेलु [शेलु ] जी० १।७१ सेलेसी [ शैलेसी] ओ० १८२ सेवालगुम्म [ शैवालगुल्म ] जी० ३।५८० सेवालभक्लि [ शैवालभक्षिन् ] ओ० ६४ सेस [शेष ] ओ० १२०, १६२. रा० २३६,६६८, ७५२,७८६. जी० ११६४,६५,७७,७६, ८२, ८८,६०,१०१, १०३, १११, ११२, ११६, १२१, १२३, १२४ २३७, ८६, १२०, ३६० से ७२, १६४,१६५, २१६ से २२६, २४३, २५८, ३५५, ६८७,७०६,७११,७४१, ७५०, ७६२,७६५, ७६६,७६६,७७०,७७२,८३८१२२, ८५१, १४ से ६१६,६३६, ९५०, ६६२, ११२२; ५:३१, ३४; २/४,६ सेहयावरच [ शैक्षवैयावृत्य ] ओ० ४१ / सेहाव [ शिक्षय् ] - सेहाविहिति ओ० १४६. -- सेहावेहिइ. रा० ८०६ सेहावित्ता [शिक्षfree] ओ० १४६ सेहावेसा [ शिक्षयित्वा ] रा० ८०७ सोइंदिय [ श्रोत्रेन्द्रिय ] ओ० ३७. जी० १।१३३ Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७० सोडियालिछ [ शुण्डिकालिञ्छ ] जी० ३३११८ सोंडीर {शीण्डीर | ओ० २७. रा० ८१३ सोक्ख [ सौख्य | ओ० २३,१६५।१३,१४,१७. जी० ३ ११८,११६ सोग | शोक ] ओ० ४६. रा० ७६५. जी० ३११२८ सोगंघिय | सौगन्धिक | ओ० १२. रा० १०, १२, १८,२३,६५,१६५, १७४, १९७,२८८. जी० ३।११८, ११६,२५६, २८६,२६१ सोच्चा | श्रुत्वा | ओ० २१. रा० १३. जी० ३१४४३ सोणंद [ दे० ] त्रिपदिका ओ० १६. जी० ३५६६ सोणि | श्रोणि ] जी० ३।५६७ सोणिय [ शोणित] रा० ७०३ सोत्ति | श्रोणिसूत्रक ] जी० ३२५६३ सोत [ श्रोतस् ] जी० ३।७४६ सोतिदिय [ श्रोत्रेन्द्रिय | जी० ३२६७६, ६७७ सोत्थि | स्वस्ति ! जी० ३।१७७ सोत्थिकूट [ स्वस्तिकूट ] जी० ३ १७७ सोत्थिय ! स्वस्तिक ] रा० २१,२४,४६,८१,२६१. जी० ३१२७७, २८९, ३१४, ३४७, ३५५, ५६७ सोस्थिकंत [ स्वस्तिककान्त | जी० ३।१७७ सोत्थियज्य [स्वस्तिक ध्वज | जी० ३११७७ सोत्थिय | स्वस्तिकप्रभ ] जी० ३३१७७ सोत्थियलेस [स्तिषय ] जी० ३ | १७७ सोत्थियवण्ण [ स्वस्तिकवणं | जी० ३।१७७ सोत्थियसिरिवच्छनंदिया व त्तबद्ध माणगभद्दासणकलसमच्छदपणमंगलभत्तिचित्त [ स्वस्तिक श्रीवत्सनन्द्यावर्त्तवर्धमानक भद्रासन कल रामत्स्यदर्पणमङ्गलभतिचित्र ] रा० ७६ सोत्ययावत [ स्वस्तिकावर्त ] जी० ३।१७७ सोत्थिसिंग [ स्वस्तिशृङ्ग ] जी० ३.१७७ सोत्थिसि [ स्वस्तिशिष्ट ] जी० ३।१७७ सोत्युत्तरवड [ स्वस्त्युत्तरावतंसक ] जी० ३।१७७ सोडियालिछ- सोमाकार सोधम्म [ सोधम ] रा० ५६०. जी० २०६६, १४८, १४६; ३३१०३८, १०३६ सोधम्मक | सौधर्मक] जी० २ १४८, १४९ सोधम्मग [ सौधर्मक ] जी० ३३१०३६ सोधम्मवडेंस [ सौधर्मावर्तक | २०० १२६ सोधम्मवडेंसय | सौधर्माविनंसक ] रा० १२५ सोपान [ सोपान ] जी० ३।४५४,५६४ सोभ | शोभ ] ओ० ६३. जी० ३७२२,८२०,८३०, ८३४,८३७,८५५ / सोभ [ शोभय् ] -- सोभति जी० ३।७०३. सोभिसु. जी० ३।७०३. – सोभिस्मति. जी० ३।५०३. - सोभेसु. जी० ३२८०५ सोत [ शोभमान ] ओ० ४६. रा० ६६. जी० ३।३०६,५६७ सोभग्ग [ सौभाग्य ] ओ० २३ सोमण [ शोभन ] ओ० १४५. रा० ८०५ सोभमाण [ शोभमान [ जी० ३२५६१ सोभिय[ शोभित ] ओ० १ सोममाण [ शोभमान ] जी० ३३५८६ सोम [ सौम्य ] ओ० १५.१६. रा० ७०,१३३, ६७२ जी० ३।३०३, ५६६,५६७, ११२२ सोमणस [मन] ० ५१. जी० ३.९२५,६३४ सोमणसवण [ सामनमवन] रा० १७३,२७६. जी० ३१२८५, ४४५ सोमणसा [ सौमनसा ] जी० ३१६६६,६२० सोमणस्सिय सोमनस्थित, सोमनस्थिक] ओ० २० २१,५३,५४,५६.६२, ६३, ७८,८०, ८१०८, १०, १२ से १४, १६ से १८,४७, ६०, ६२, ६३, ७२,७४,२७७,२७६, २८१,२६०,६५५,६८१, ६८३,६६०,६९५,७००, ७०७, ७१०, ७१३, ७१४,७१६,७१८,७२५, ७२६, ७७४, ७७८. जी० ३१४४३, ४४५, ४४७,५५५ सोमलेस | संमश्य ] ओ० २७. रा० ८१३ सीमाकार [ सौम्याकार] ओ० १५,१४३. रा० ६७२,६७३,८०१ Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमाण-हत्य सोमाण सोपान | रा० ४७,१७५ से १७६,६५६. सोहम्मा सुधर्मा] जी० ३१३७३ जी० ३.५५६,६४०,६४१,८५७ सोहि [शोधि] ओ० २५ सोय [शौच j ओ० २५. २१० ६८६ सोहिय शोभित | ओ० ५,६,८,१६४ जी० ३३२७४, सोय [श्रोतस् ओ० १२२ २७५ सोयंधिय {सौगन्धिक जी० ३१७ सोयणया शोचनता] ओ० ४३ सोयधम्म शौचधर्म] ओ० ६७ हंत हन्त] रा० १५ सोल (पोडश | जी० ३१२२६।२ हंता हित] ओ० ८४. रा०१७३. जी. ३११३ सोलस पोडशन् ! ओ० ३३. रा. ७. जी. ३२१४ हंस हं।] ओ० १६. रा० २६. जी. ३१२८२, ५६७ सोलसग पोडशक | जी० ३६५ सोलसभत्त पोडशभक्त ओ० ३२ हंसगब्भ हिंसगर्भ ] रा० १०,१२,१८,६५ १६५, सोलसविध पोडशविध ] जी० ३६७,३५७ २७६. जी० ३७,२८४ सोलसविह [पोडशविध रा० १६५. जी० ३।३४६ हंसगन्भतूलिया हसगभलिका] रा० ३१ सोलसिया [पाडशिका र ० ७७२ हंसगन्भतूली | हंसगर्भवली | जी० ३।२८४ सोल्लियपक्व अ० १६४ हंसगम्भमय हसगर्भमय रा० १३०. जी० ३।३०० सोवणियासौवणिक ० ३७,२४५,२७६,२८०. हंसस्सर हंसम्म ] रा० १६५. जी० ३१३०५,५६८ जा०६।३११,४०७,४४५,४४६,४४० हंसालिपविभत्ति | हंसावलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ सोवत्थियौवस्तिक ओ० १२,६४. २१० २४. हंसासण [हसासन रा० १८१.१८३,१८५ जी० ३।२७७.५६६ जी० ३१२६३,२६५,२६७,८५५ हवकार आकारय]हक्कारेति रा०२८१. सोवाण | सोपान] रा० १६,२० ४८,५६,५७, जो० ३।४४७ २०२,२३४,२६४,२७७,२८८,३१२,४७३. हट हृष्ट] ओ० २०,२१,५३,५४,५६,६२,६३, जी० ३१२९७.२८५,३६३.३६६,४४३,४४७, ६८,७८,८०,१. रा०८,१०,१२ से १४, १६ ५३२,५७६,६६६.६८४ से १८,४७.६०,६२,६३,७२,७४,२७७,२७६, सोस [शोष जी० ३६२८ २८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०,६६५,७००, सोह शोभ ओ० ५२. रा० ६६७ से ६८६ ७०७,७१०,७१३,७१४,७१६,७१८,७२५,७२६, सोहंत [शभिमान] रा० १३६ ७७४,७७८.जी. ३.४४३,४४५,४४७,५५५ सोहग सौभाग्य] औ० ६६ हडप्पगाह [हडप्पनाह] ओ० ६४ सोहम्म | सौधर्म ] ओ०५१,६५,१६०,१६२. हडिबद्धग [हडिवद्धक) ओ०६० रा० ७,१२,५६,१२४,२७६,७६६. जी०११५६ हण | घातय..-हण रा० ७६१ २११६,४६,१४६; ३१६३७,१०३८,१०५७, हण हनु] ओ० १६ १०६५,१०६७,१०७१,१०७३,१०७५,१०७७ हणुया हनुका] जी० ३१५६६,५६७ से १०८३,१०८५,१०८७,१०६०,१०६१, हत्य हस्त ] ओ० २१,५४,६६,१११ से ११३, १०९३,१०६७ से १०६६,११०१,११०५, १३७,१३८. रा० १३३,२८१,२८८ से २६०, ११०७,११०६ से १११२,१११४,१११७, ६५६,७१६,७५३,८०४. जी. ३१४४७,४५४ ११६,११२१,११२२,११२४,११२८ से ४५६,५६७ Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७२ हत्थ | दे० ] ओ० ५७ हत्थग [ हस्तक ] ओ० १२. जी० ३।२६१,३१५, ६३६, ६५१,६७७,८६४ हत्य | हस्तच्छिन्नक ] रा० ७५१ हत्यच्छिण्णय हस्तच्छिन्नक ] रा० ७६७ हत्य छिण्णग | हस्तच्छिन्नक | ओ० ६० हस्थतल [ हस्ततल ] रा० २५४. जी० ३।४१५ हत्थमाला | हस्तमालक) जी० ३५६३ हत्थय | हस्तक ] रा० २३,२२३ हत्याभरण | हस्ताभरण] ओ० ४७,७२ हत्थि [ हस्तिन् ] ओ० १०१,१२४. रा० ७७२. जी० ३१८४,६१८ हत्यिक हस्तिस्कन्ध | ओ० ६५ हथिगुलगुलाइ हस्तिगुलगुलायित ] रा० २८१. जी० ३।४४७ हत्यितावस [ हस्तितापस | मो० ६४ हहि [ हस्तिमुख ] जी० ३।२१६ हस्थिरयण | हस्तिरत] ओ० ५५ से ५७, ६२ से ६४,६९ terrata [कर्णद्वीप | जी० ३१२२२ जोहि [योधिन्] ओ० १४८, १४९. ० ८०६,८१० हलक्खण [हयलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ ह्यविलंबिय | ह्यविलम्बित ] रा० ६१ विसिय [ विलसित ] रा० ६१ हत्य -हल यहेसिय [ यहेसित ] रा० २८१. जी० ३।४४७ हरतय [ हरतनुक ] जी० १२६५ हरय | हृद | रा० २६२ से २६५, २७३, २७७, ४७३. जी० ३१४२५, ४२६, ४३८, ४४३, ५३२ हरि | हरित् ] रा० २७६. जी० ३१४४५ हरिओभास | हरितावभास] २१० १७०,७०३. जी० ३।२७३ हरिकंता | हरिकान्ता] १० २७६. जी० ३२४४५ हरितकाय [हरितकाय ] जी० ३।१७४ हरितग | हरितक ] जी० ३।३२४ हरिताभ [ हरिताभ | बी० ३६ हरिताल | हरिताल ] जी० ३३८७८ हरिय [ हरित ] ओ० ४, ५, ८, १०३,१२६.१३५. रा० १७०,७०३. जी० ११६६ : ३३२७३, २७४ हरिय [ भरित ] जी० ३२२८५ after [aftcore ] जी० ३।१७४ हरियग [ हरितक ] रा० १५१,७८२ हरियच्छाय [हरितच्छाय ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३१२७३ हत्थिवाउय [ हस्तिव्यापृत ] ओ० ५६, ५७ हस्थिसोंड [ हस्तिशौण्ड ] जी० ११८८ हम्म | हर्म्य ] जी० ३।५६४,६०४ [म] ओ० १६,४८,५१, ५२, ५५ से ५७,६२, ६५. ० १४१ से १४४,१६२ से १६५, २८५,६८७ से ६८६. जी० ३।२६६, २६७, ३१८,३५५, ४५१,५६६ कंठ | कण्ठ ] रा० १५५, २५८. जी० ३।३२८ हरिवाहण [ हरिवाहन | जी० ३।९२३ हयकंठग [ हथकण्ठक ] जी० ३।४१६ कण्ण [कर्ण] जी० ३।२१६,२२२ से २२५, २२६।३ हरियाल | हरिताल ] रा० २८, १६१,२५८, २७६. जी० ३२८१,३३४, ४१६ हरियालिया [हरितालिका ] रा० २८ हरियो भास | हरितावभाव ] ओ० ४ हरिवास [ हरिवर्ष ] ० २७६. जी० २११३,३२, ५६,७०,७२,६६, १४७, १४६ : ३ २२८, ४४५, ७६५ हरि | हर्ष ] ओ०२०,२१,५३,५४,५६,६२,६३,७८, ८०, ८१. ० ८, १०, १२ से १४,१६ से १८, ४७,६०,६२, ६३,७२, ७४, २७७, २७६,२८१, २६०,६६५,६८१,६८३, ६६०, ६६५, ७००,७०७, ७१०,७१३,७१४,७१६,७१८, ७२५, ७२६, ७७४, ७७८. जी० ३।४४३, ४४५,४४७,५५५ हरिसय [हपंक ] जी० ३।५६३ हरिसिय [हर्षित ] रा० १७३. जी० ३२२८५ हल [ हल ] ओ० १. जी० ३।११० Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हलधर-हिसूल हलधर [ हलधर] ओ० १३. रा० २६. जी० ३।२७६ हलद्दा [ हरिद्रा ] रा० २८. जी० ३।२०१ / हव [ भू] - हवंति ओ० १८३. जी० ३।१२ -हवेज्ज ओ० १६५३४. - हवेज्जा ओ० १६५।१५ हय्व [अर्वाच्] ओ० ५७ o [अर्वाच्] ओ० १७० रा० ७२० जी० ३१८६ √ हस [ हस्] - हसति रा० १०५. -- हसिज्जइ रा० ७८३ संत [हत्] ओ० ६४ हसिय [ हसित ] ओ० १५,४६. रा० ७० ६७२, ८०६,८१० जी० ३१५६७ हस्त [ ह्रस्व ] ओ० १८२, १६५३४ V हाय [हा] - हायइ जी० ३।७३१. हायति जी० ३।७२३ हायण [ हायन] जी० ३।११८,११६ हार [हार] ओ० २१,४७,५२,५४,६३,६५,७२, १०८,१३१,१६४. ० ८,२६,४०,१३२, २८५,६८७ से ६८६,७१४. जी० ३।२६५, २८२,३०२, ५६२, ६३५, ११२१ हारपुक्य (पाय ) [ हारपुरकपात्र ] ओ० १०५, १२६ हारभद्द [ हारभद्र ] जी० ३१६३५ हारमहाभद्द [ हारमहाभद्र] जी० ३२६३५ हारमहावर [हारमहावर ] जी० ३।९३५ हारवर [ हारवर ] जी० ३।६३५ हारवरभद्द [हारवरभद्र ] जी० ३।६३५ हारवरमहाभद्द [हारवरमहाभद्र ] जी० ३१६३५ हारवरमहावर [हारवरमहावर ] जी० ३१९३५ हारवरोभास | हारवरावभास ] जी० ३।६३५ हारवरोभासभद्द [हारवरावभासभद्र ] जी० ३१६३५ हारवरोभासमहाभद्द [हारवरावभासमहाभद्र ] जी० ३१९३५ हारयरोभासमहावर [हारवरावभासमहावर ] जी० ३१६३५ हारवरोभासवर [हारवरावभासवर ] जी० ३१६३५ हिंसयाण [ हिप्रदान ] ओ० १३६ हिसाबंध [ हिसानुबन्धिन् ] ओ० ४३ Refer [ अधस्तन ] जी० ३३५ हित [हित ] जी० ३(४४१, ४४२ हिम [ हिम ] रा० २५५. जी० ११६५; ३|११६, ४१६ हिमकूड [ हिमकूट ] जी० ३।११६ हिमपडल [ हिमपटल ] जी० ३।११६ हिमपुंज [ हिमपुञ्ज ] जी० ३।११९ १२८ हारपुडय ( बंधन ) [ हारपुटकबन्धन ] ओ० १०६, हिमवंत [ हिमवत्] ओ० १४. रा० १७३,६७१, ७७३ हालिह [ हारिद्र ] ओ० १२. रा० २२,२४,२८, १२८,१३२, १५३. जी० ११५, १३६, ३१२२, ४५, २८१,२६०,३२६,१०७५, १०७६ हालिग [ हारिद्रक ] जी० ३।२८१ हास [हास ] ओ० २८,४६,५१ हास [ह्रस्व ] जी० ३।७८१,७८२ हासकर [हासकर ] ओ० ६४ हिलय [ हिङ गुलक ] रा० १६१,२५८,२८१. जी० ३१३३४,४१६ ६७६ हिउप्पाडियग [ उत्पाटितकहृदय ] ओ० ६० हिप [हित ] ओ० ५२. रा० १५, २७५, २७६, ६८७ हिय | हृदय ] ओ० २०, २१, २७, ५३, ५४,५६,६२, ६३,६६,७८, ८०, ८१. रा० ८,१०,१२ से १४, १६ से १८, ४७, ६०, ६२, ६३, ७२,७४, २७७, २७६,२८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०, ६१५,७००, ७०७, ७१०,७१३, ७१४,७१६, ७१८,७२५, ७२६ ७५० से ७५३,७७४, ७७८, ८१३. जी० ३१४४३,४४५,४४७,५५५ हिययगमणिज्ज [ हृदयगमनीय] ओ० ६८ हिययसूल [हृदयशूल ] जी० ३।११६,६२८ Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७४ हिरण्ण [ हिरण्य] ओ० २३. रा० २८१,६९५. जी० ३।४४७,६०८, ६३१ हिरण्णजुत्ति [ हिरण्ययुक्ति ] ओ० १४६. रा० ८०६ हिरण्णपाग [ हिरण्यपाक ] ओ० १४६. रा० ८०६ हिरण्णवय [ हिरण्यवत ] जी० ३१२८८ हिरिति [ दे० ] जी० ११७३ हिरी [ह्री ] रा० ७३२,७३७,७७४ हीण [हीन ] ओ० १९५२४. रा० ७७४. जी० ३।७३ हीर [हीर ] जी० ३।६२२ हीरय [ हीरक ] जी० ३१६२२ हीला [हीलना ] ओ० १५४, १६५, १६६, रा० ८१६ √ [ भू ] – हुंलि. जी० १।१४ हुंड [ हुण्ड ] जी० ११८६,६५,१०१,११६; ३३६३, १२६१३,४ हुंब [ दे० ] ओ० ९४ हक्क [हुडुक्क ] ओ० ६७. रा० १३,६५७. जी० ३१४४६ हुडुक्की [हुडुक्की ] रा० ७७ तवह [ हुतवह ] जी० ३१५९६ वह [ हुतवह] ओ० १६,४७. जी० ३।५६० हृयासण [ हुतासन ] ओ० २७. रा० ८१३ हु [ हुहुक ] जी० ३१८४१ हुयमाण [ दे० जाज्वल्यमान ] जी० ३१११८ हेउ [ हेतु ] ओ० ११९. ० १६,७१६,७४८ से ७५०,७७३ हेट्ठा [ अधस् ] ओ० १३,१८२. २१०४,२४०. जी० ३१७७,८०,३५६, ४०२ ट्ठि [अस] जी० ३६६८ हेमि [ अधस्तन ] जी० ३।७० से ७२,११११३ हिरण्ण हस्सीकरितए हैट्टिम विज्ज [ अधस्तनग्रैवेय] जी० २२६६ हेट्ठिमगेवेज्जग [ अधस्तन ग्रैवेयक ] जी० ३।१०५६ हेट्टिममज्झिमल्ल [ अधस्तनमध्यम ] जी० ३।७२६ हेट्ठिल्ल [ अधस्तन ] जी० ३३६०,६२ से ७१,७२५, ७२८, ७२६,१००३, १००४,१००७, ११११ हेट्ठिल्लम झिल्ल | अधस्तनमध्यम ] जी० ३१७२६ हिट्टिल्लातो [ अधस्तनतस् ] जी० ३।६६,७२ हेमंत [ हैमन्तिक ] ओ० २६. रा० ४५ हेमजाल [ हेमजाल ] ० १३२, १७३, १६१,६८१. जी० ३१२६५, २८५, ३०२, ५१३ हेप्प [ हेमात्मन् ] जी० ३।५६५ हेमवत [ हैमवत ] जी० २२६६, १४७, १४६, ३७६५ हेमवय [ हैमवत ] ओ० ६४. रा० १७३,२७६,६८१. जी० २ १३,३१,५८,७०,७२: ३१२२८, २८५, ४४५ हेरण्णवत [ हैरण्यवत | जी० २२६६. १४७ ; ३२७६५ रणवय [ हैरण्यवत ] जी० २११४६; ३२४४५ हेरु [ हेरु ] जी० ३।६३१ रुमालवण [ हेरुतालवन ] जी० ३१५८१ / हो [भु] - होइ ओ० १६५/५ २० १३०. जी० १११३६ - होई. जी० ३११२६६३ -- होउ. ओ० १४४. रा० ७३० - होंति. रा० १३०. जी० १।७२ - होति. ओ० १६५८. जी० ३११६४ --- होज्ज. रा० ७५४. जी० ३।५६२ -- होज्जा. रा० ७१८, होत्था ओ० १. रा० १ होत्तिय [ होत्रिक ] ओ० ६४ होरंभा [होरम्भा ] य० ७७. जी० ३२५८० / हस्सीकर [ ह्रस्वी + कृ ] – हस्सीक रेज्ज जी० ३१६६७ ह्रस्सीक रित्तए | ह्रस्वीकर्तुम् ] जी० ३१६६४ कुल शब्द ६६३१ Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुदि-पत्र अशुद्ध बससंडे धम्मोप भगवाओ विउसम्मे विहणि तुंबविणिपेच्छा सयमेब जायमेव घोसेडिया पोंडरिय डिडिमाख रुच्छ वणसंडेण धम्मोव भगवओ विउस्सले विहणि तुंबविणियपेच्छा सयमेव जीयमेव घोसाडिया पोंडरीय डिडिमाष मच्छ ११६ नुब्बने हुब्बो २७३ २६७ असित्ता सुब्भ ३१५ टि० १३ का अन्तिम ३२० ३७५ ३८१ कसिता सुज्झ 'सुवण्णसुज्झरययवालुयाओ' इति सुवर्ण-पीतकान्तिहेम सुझरूप्यविशेष: रजतं—प्रतीतं तन्मय्यो वालुका यासु ताः सुवर्णसुज्यरजतवालुका (म) °णिन्बु इ° ३८६६ पत्तेयंउक्वेता वाघाइमे अणुत्तरो तिरिक्ख पमोक्ख पं०११ टि० १२ पं०१६ पं०६ पं०६ पं०६ पं०४ ४२६ °विन्द्र ३.६८६ पत्तयंउबवेता बाघाइमे अणत्तरों तिरक्खि पमोकक्ख ४५७ ४६५ ४७३ Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DUET MWM Huo s taa 10 Jain Education internal