________________
ओवाइयं
सू० ४३
सू० ४४
सू० ६४
सू० ६५
सू० ६६
समर्पण सूत्र
सूत्र १
१
१
27
"
71
23
"
73
व्याकरण और आर्ष-प्रयोग सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा-शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है ।
11
73
17
१
१
५
५
39
सूत्र ६
>>
६
ε
21
१
१
२
२
४
भगवई
२५/६००-६१२
२५१६१३-६१८
६।२०४
Jain Education International
कुक्कुड मुसुंदि
"वंक
राय०
संक्षिप्त पद्धति के अनुसार औपपातिक में समर्पण के अनेक रूप मिलते हैं :
जाव - उदए जान भीणे (११७)
एवं जाव - अपडिविरया एवं जाव ( १६१ )
सेसं तं चेव---परलोगस्स आराहगा सेसं तं चेव ( १५७ )
भत्त
'कोला°
तुरंग
दरिस णिज्जा
कालागरु
कहग
निकुरंबभूए
दरिस णिज्जा
१५
गुलइय
अभितर
सु० ४६-५५
एवं एवं उवज्झायाणं थेराणं (१६)
अभिलावेणं - एवं एएणं अभिलावेणं (७३)
एवं तं चेव – सगडं वा एवं तं चैव भाणियव्वं जाव णण्णत्य गंगामट्टियाए (१२३ ) भाणियध्वं — एवं चेव पसत्यं भाणियव्वं (४०)
कंदमंतो एएसि वण्णो भाणियथ्यो जाव सिविय (१०)
णेयव्वं --- तं चैव पसत्थं यव्वं । एवं चैव वइविणओ वि एएहिं पएहि चैव यव्वो (४०) शब्दान्तर और रूपान्तर
बाहिर
णीवेहि
०
३।१७८
३१८०
३।१७६
For Private & Personal Use Only
कुंकड
" मुसंढि
are 'हत्त
O
• खीला "
तुरंग
दरिसणीया कालागुरु
कहक बिए
दरस णिज्जा
गुलुइय अभंतर बहिर णितेहि
(ख)
(क, ख)
(ग)
(क)
(क, ख )
(क)
(क, ख )
(क)
(क, ख, ग )
(ख) (क, ख )
333TZ
www.jainelibrary.org