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पणि-पत्तियमाण
जी. ३.४५७,४७१,५१६ पणि [पर ] जी० ३ ६०७ पणिय पणित, पण्य ] ओ०१. रा० ७७४ पणियगिह । पणित, पण्यगृह ] ओ० ३७ पणियसाला [पणित, पण्यशाला] ओ० ३७ पणिहाय प्रणिय, प्रणिहाय जी० ३१७३ से
७५, १२४,१२५,७६५,१०२५ पणीत प्रणीत | जी० ११ पणीयरसपरिच्चाय [प्रणीतरसपरित्याग | ओ० ३५ पणुवीस [पञ्चविंशति | जी० ३।२२६३५ पणोल्लिय प्रणोदित ] ओ० ४६ पण्णओ | प्रज्ञातम्] रा० ७५२,७५४,७५६,७५८,
७६०,७६२,७६४ पण्णगद्ध [पन्न गार्ध] जी० ३१३०२ पण्णट्ठ पञ्चपष्टि] जी० ३१२२२ पण्णट्टि [पञ्चपष्टि] रा० १६४ पण्णत्त | दे०] ओ० १ पण्णत्त प्रज्ञप्त) ओ०२. रा० ३. जो०११ पण्णत्तर पञ्चनप्तति | जी० ३१२४६ पण्णत्तरि [पञ्चसप्तति ] जी० ३१६६१ पण्णत्ति प्रज्ञप्ति स० ८१७ पण्णरस [पञ्चदशन् ] जी० ३।१२ पण्णरसविष [पञ्चदशविध] जी० ३३२२६ पण्णरसविह [पञ्चदश विध] जी० ११८०; २०१४ 4/पण्णव | प्र-! ज्ञापय | -- wणवइंसु. जी० ११.
----पण्णवे:ओ० ५२. रा०६८७ -पण्णवेति
जी० ३१२१०..-पण्णवे हेंति. जी० ३१८३८.३ पण्णवणा प्रज्ञापना] T० ७७४. जी० ११५,५८,
७२,१००,११०,१११,११६,११८,१२६,१३५
१८६३।१८४,२१४,२३२,२३३ पण्णवणापद [प्रज्ञापनापद] जी० ३।२२०,२३१ पण्णवित्तए प्रज्ञापयितुम् | रा० ७७४ पण्णवीस पञ्चविंशति ] जी० ३।१२ पण्णवेमाण [प्रज्ञापयत् ] ओ०६८
पिण्णाय [प्रज्ञा-पण्णायति. जी. ३.६६E पण्णास [पश्चात् ] रा० २०९. जी० २१३९ पण्हावागरणवसाधर [प्रश्नव्याकरणदशाधर |
ओ० ४५ पतणतणाइत्ता | प्रतनतनाय्य | रा० १२ पितणतणाय प्र-तनतनाय }- पतणतणायंति.
रा० १२ पतणु [प्रतनु ] ओ० ६१,११६ पतरग [प्रतरक | जी० ३.३०२ पितव |प्र : तव — पतवंति, जी० ३।४४७.
-पतवेंति. रा० २८१ पतिट्ठाण प्रतिष्ठान ] रा० १६,१७५.
जी० ३२८७,३००,४४६,४४८ पत्त [पत्र] ओ० ५,६,८,१३,१६,२७,६४. रा०६,
१२.२६,३१,१६१,१७४,२२८,२५८,२७०, २७६,७८२. जी० ११७१,७२, ३१११८,११६, २०४,२७५,२७६,२८३,२८४,२८६,३३४, ३८७,४१६,४३५,४५४,५८१,५८६,५६६,
६२२,६४३,६७२ पत्त प्राप्त] ओ० ३७,११७,१४०,१५७,१६२,
१६५।१६,२२. राः १,६३,६५.६६७,७६६,
७९७. जी० ३.८६७ पत्तच्छज्ज पत्रच्छेद्य | ओ० १४६. रा० ८०६ पत्तट्ठ | दे० प्राप्तार्थ ] ओ०६३. रा० १२,७५८,
७५६,७६५ ७६६,७७० पत्तभार [पत्रभार) ओ० ५,८. जी० ३.२७४ पत्तमंत [पत्रवत् ] ओ० ५.८. जी० ३१२७४ पत्तल [पत्रन ओ०१६,४७. जी० ३१५९६,५६७ पत्तासव वानव जी० ३१८६० पत्ताहार पत्राहार ओ०६४ पत्तिय |प्रति। ---पत्तिएज्जा. रा० ७५०.
----पत्तियामि, रा०६६५ पत्तिय | पत्रित | रा० ७८२ पत्तियमाण प्रतियत् | जी० १११
१ द्रष्टव्यम् -निशीथभाष्य ४४३५ ।
१. अनुकरण वचन ।
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