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________________ यूहर ओहाडणी [ दे० अवघाटनी ] रा० १३०, १६०. जी० ३।२६४,३०० ओहि [ अवधि ] जी० ३ १०७, ११११ ओहि - ओह | ओघ ] रा० ६, १२ ओहिणाण [ अवधिज्ञान ] ओ० ४० रा० ७३६, ७४३,७४६ afa | अवधिज्ञानलब्धि | ओ० ११६ ओहिणाणविनय | अवधिज्ञान विनय ] ओ० ४० ओहिणाणि [ अवधिज्ञानिन् ] ओ० २४. जी० ११११६,१३३, ६ १६१, १६५, १६६, १६७, १६६,२०४,२०८ ओहिदंसण [ अवधिदर्शनिन् ] जी० ११२६, ६६; १३१,१३४,१३८, १४० ओहिनाणि | अवधिज्ञानिन् ] जी० १।६६; ६६१५ ओहि [ औधिक ] जी० २२५१ ५१२४, २६.३० ओहीनाण [ अवधिज्ञान ] जी० ३।११११ 5 क [क] रा० १५ कह [ कति ] ओ० १७३. १० ७६६,७७६. जी० १११५, २१ से २३,२६,२७,६४, ३७६, १६६ से १७१,७४८, ८०६ कइसमय | कतिसामयिक ] ओ० १७४ कओ | कुतस् ] जी० ११५१ ३३१५५१०८२ कंक [ कङ्क ] जी० ३१५६८ कंकड [ कङ्कट ] ओ० ६४. रा० १७३,६८१. जी० ३१२८५ / कंख | काङ्क्ष | कखइ. रा० ७१३ कंखति. ओ० २०.० ७१३ कंखिय | काङ्क्षित ] रा० ७७४ कंचण [काञ्चन] ओ० २६,६४. रा० ३२, १५६, २२. जी० ३ ३३२,३७२, ४५७, ४८७,५८६, ५६३,५६७ कंचनकोसी [काञ्चनकोशी ] ओ० ६४ कंचनग [ काञ्चनक ] जी० ३३६६१,६६२,६६४, ६६६ Jain Education International ओहाडणी-कंदणया कंचणमय [ काञ्चनमय ] जी० ३।६६१ कंचणिया [ काञ्चनिका ] ओ० ११७ कंचि [ किञ्चित् ] आं० ११६,११७. २१० ७६५ कंची [ काञ्ची ] जी० ३।५६३ कंचु | कञ्चुकिन् ] रा० ६८८ से ६६०,८०४ केचुइज्ज | कञ्चुकीय ] आं० ७० कंय | कचुक ] ० ६६,७० कंटक [ कटक ] जी० ३१६६२ कंटय [ कण्टक] ओ० १४. रा० ६७१. जी० ३३८५,६२२ कंठ [ कण्ठ ] ओ० ७१. रा० ६१,६९,७६ कंठमुरवि | दे० कण्ठमुरवी ] ओ० १०८,१३१. रा० २८५ कंठसुत्त [ कण्ठसूत्र ] जी० ३.५६३ कंठेगुण [ कण्ठगुण] रा० १३१,१४७, १४८,२८०. जी० ३१३०१,४४६ कंठेमाकड [कृतकण्ठेमाल ] ओ० ५२. रा० ६८७ से ६८६ कंड [ काण्ड ] रा० ६६४. जी० ३।६, ७, ९, १०, १६, १७,२४,२५,६० से ६३, ५६२ कंड [ काण्डक] रा० ७५८,७५६ कंड [ काण्डक] १० ७५८, ७५६ कंडु [ कण्डु ] ओ० ६ कंड [कन्दु ] जी० ३।७८ कंत [कान्त ] ओ० १५,४६,६८,११७१४३. रा० १७,१८, ६७२,६७३, ७५० से ७५३, ७७४, ७९६,८०१. जी० १४१३५; ३ ॥ ५६७, ८७२,१०६०,१०६६ कंततराय [कान्ततरक ] रा० २५ से ३१,४५. जी० ३।२७८ से २८४,६०१ कंतारभत्त [ कान्तारभक्त ] ओ० १३४ कंतारभयग | कान्तारभृतक ] ओ० १० कंति [ कान्ति ] ओ० २३,६६.७१. रा० ६१ कंद [ कन्द ] ओ० ६४, १३५. रा० २२८. जी० ११७१३।३८७, ६४३, ६७२ jarer [न्दन] ओ० ४३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003569
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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