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________________ विहिय-बेउब्वियामुग्धात ७३६ विहिय [विहित] ओ० १५. रा० ६७२ वीसाएमाण [विस्वादयत् | रा०७६५,८०२ विहुय [विधुत | जी० ३१५८० वीसादणिज्ज विश्वादनीय ] जी. ३१६०२,८६०, विहूण | विहीन जी० ३।२६८,३६० ८६६,८७२,८७८ वीइक्कंत अतिक्रान्त , मो० १४३,१४४. वीहि वोहि जी० ३।६२१ रा०८०२ वीहि [वीथि | जी० ३१२६८,३१८ वोईवइत्ता [व्यतिबज्य | ओ० १६२. रा० १२६. वीहिया [वीथिका ] ओ० ५५. रा० २८१. जी० ३१६३८ जी० ३१४४७ वोईवययाण अतियजत् ] रा० १०,१२,२७६. वीस विंशति जी० ३.१३६ जी० ३।४४५ बुग्गाहेमाण | व्युग्राह्यत् | ओ० १५५,१६० वोचि बीचि ओ० ४६. जी० ३।२५६ विच्च विवुच्चइ. ओ० ८६. रा० १२३. वीचिपट्ट | वाचिपट्ट] जी. ३१५६७ जी० ३१२३६ –बुच्चलि. जी० ३१५८ बीजेमाण | वीजयत् भी० ३१४१७ -~-बुच्चति. रा० १२३. जी. ३२२३६ वीणगाह [बीणाग्राह] ओ० ६४ वुड्डसावग [वृद्धश्रावक ओ० ६३ वीणा मीणा रा० ७७,१७३. जी० ३.२८५ बुड्डि वृद्धि] जी० ३।७५१,७८२,८४१ घोतसोग [वीतशोक] जी० ३१६२७ वृत्त | उक्त ओ० ५६. रा० १०,१२,१४,१८, थीतिवइत्ता [अतिव्रज्य ] जी० ३१७३६ ६०,६३,६४,७४,२७६,६५५,६८१,७०१, वोतिवतित्ता व्यतिव्रज्य ] जी० ३१३५१ ७०३,७०७,७२५,७६२. जी० ३१४४५,५५५ वीतिवः वि + पति+व्रज्]-वीतिबइंसु. जी० ३१८४०-वोतिवइस्संति. जी. ३२८४० वृपाएमाण [गुलादयत् ] ओ० १५५,१६० -~-वोतिवएज्जा. जी० ३८६-वीतिवयंति. बूह [व्यूह ! ओ० १४६. रा० ८०६ घेइय [व्येजित] रा० १७३. जी० ६।२८५ जी० ३१८४० गेइयपुडंतर [वेदिकापुटान्तर] रा० १६७ वोतिवयमाण [पतित्रजत् ] रा०५६. जी० ३१८६, नेइयफलक [वेदिकाफलक] रा० १६७ १७६,१७८,१८०,१८२ बेइया |वेदिका रा० १७,१८,२०,३२,१२६, वीतीवइत्ता व्यतियज्य रा० १२६ १६७. जी० ३।३७२,६०४,७२३,७७६,७७७, वोषि वीथि] श्री० ३।३५५ ७७६,६१० थोरवलए [वीरवलय] ओ० ६३ गेइयावाहा वेदिकाबाहु | रा० १६७ वीरासणिबीरासनिक ओ० ३६ घोउखि विकारिन् ] ओ० ५१ वोरिय [वीर्य ओ० ७१,८६ से १५,११४,११७, वेउवि [विकर्तुम् रा०१८ १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा०६१. जी० ३१५८६ वेउविध ! वैक्रिय रा० २७६,२८०. जी० १९८२, वीरिभलाद्ध वीर्यलब्धि] ओ० ११६ ६३,११६,१३५; ३।१२६।४,४४५,८४२ वीवाह | विवाह ] श्री० ३१६१४ वेउन्विामीसासरीर वैक्रियकमिश्रकशरीर] वीसंद ! वि-+स्यन्द् ]--बीगंदति. जी० ३१५८६ ओ० १७६ वीसंदित विस्यन्दित ] जी० ३१८७२ देउम्वियलद्धि [वैक्रिय लब्धि] प्रो० ११६ वोसत्य विश्वस्त] ओ० १ वेउब्वियसमग्घात [वैक्रियसमुद्घात] वीससा | विनसा] जी० ३६५८६ से ५६५ जी० ३।१११२,१११३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003569
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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