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________________ चक्फवाग-चरमणाणुप्पायनिबद्ध ६११ १०८,१५४,२७६,२६२. जी० ३।३२७,४४५, ४५७,५६२,६०२,७६५,८४१,८६६,६५६ चक्कवाग | चक्रवाक ओ०६. जी० ३।२७५ चक्कवाल [चक्रवाल ओ० ७०,१७०. रा० २०१, १०४. जी. ३१८६,२६०,२७३,३६२,५८६, ७०५,७०६,७३२.७६४,७६५,७९७,७९८, ८११,८१२,८२२,८२३,८३२,८४६,८५०, ८८२,६१८ चक्कवह [चक्रव्यूह | ओ० १४६. रा०८०६ चक्किय । चक्रिक | ओ०६८ चक्खिदिय [चक्षुरिन्द्रिय] ओ० ३७. जी० ३१६८ चक्खु [ चक्षुष | रा० ६७५. जी० ३१६३३ चक्खुदंसणि [चक्षुर्दर्श निन् ] जी० ११२९,८६,६०; ___१३१,१३२,१३६,१४० चक्खुदय [चक्षुर्दय] ओ० १६,२१,५४. १०८, २६२. जी० ३१४५७ चक्खुप्फास [चक्षुस्स्पर्श | ओ० ६६,७०. रा० ७७८ चक्नुभूय [चक्षुर्भूत | रा० ६७५ चक्खुल्लोयणलेस [चक्षुलोकनलेश] रा० १७,१८, २०,३२,१२६,१३३. जी० ३२२८८,३००,३०३, ३२,३३.१२६,२८२. जी० ३.२३४ से २३९, २४३,२४५,२४७,२५०,२५६,२५८,२८८, ३००,३११,३७२,४४८ चमस [चमस] ओ० १११ गे ११३,१३७,१३८ चम्म चर्मन् ] रा० २४,६६४. जी. ३१२७७,५६२, चम्म [पाय] चर्मपात्र ] ओ० १०५,१२८ चम्म | बंधण] [चर्मबन्धन ] ओ० १०६,१२६ चम्मपक्खि [चमपक्षिन् ] जी० ११११३,११४,१२५ चम्मयक्खी ! चर्मपक्षिणीj जी० २०१० चम्मपाणि | चर्म पाणिj १० ६६४. जी० ३१५६२ चम्मेढग { चर्मेप्टक रा० १२, ७५८, ७५६. जी० ३.११८ चय | चय, ज्यव ] ओ० १४१. रा० ७६६. जी० ३१११२७ चय [शक्]—चएइ. ओ० १६५।१६ चय |--चयंति. जी. ३०८७ चय [त्यज्]—चय इ. जी० ३३१२६।५ चयंत त्यजन् ] ओ० १९५३ चयण | च्यवन ] जी० ३।१६० चिर [चर्| - -चरइ. जी० ३१८३८१२....चरंति. ओ० ४६. जी. ३१७०३-चरति जी० ३.१००१-चरिसु. जी० ३१७०३ -चरिस्संति जी० ३१७०३ चरण [चरण] ओ० १५, २५. रा० ६८६. जी० ३४५६७ चरमअभिसेयनिबद्ध [चमाभिषेकनिबद्ध ] रा० ११३ चरमंत [चरमान्त ! जी० ३।६६८ चरमकामभोगनिबद्ध चरमकामभोगनिबद्ध] रा० ११३ चरमचवणनिबद्ध चमच्य इननिरद्ध] रा० ११३ चरमजम्मणनिबद्ध | चरमन्मनिबद्ध र० ११३ चरमजोवणनिबद्ध | चरम यौवनगिबद्ध रा० ११३ चरमणाणप्पायनिबद्ध | चरमज्ञानोत्पादनिबद्ध ] रा० ११३ ३७२ चक्खुहर [चक्षुहर रा० २८५. जी. ३१४५१ चच्चय [चर्चक] ग० २६४,२६६,३००,३०५, ३१२,३५१,३५५,५९४. जी. ३१४५६,४६१, ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५४७ चच्चर [चल्वर | ओ० १,५२,५५. रा० ६५४, ६५५,६८७,७१२. जी० ३१५५४ चच्चाग | दे० चर्चाक ] रा० १३१,१४७,१४८, जी० ३.३०१ चच्चाय | दे० चर्चाक] रा० २८०. जी० ३।४४६ चडगर [दे०] रा० ५३,६८३,६६२,७१६ चत्तालीस | चत्वारिंशत् ] जी० ३।६६ चतुरासीति | चतुरशीति | जी० ३।८८२ चतुरिदिय | चतुरिन्द्रिय ] जी० २।१३८,१४६; ४२१ चमर [चभर] ओ० १३,६८. रा० १७,१८,२०, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003569
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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