SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पएसि-कहाणगं वेयप्पहाणे' नयप्पहाणे' नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे सोयप्पहाणे नाणप्पहाणे दंसणप्पहाणे चरित्तप्पहाणे ओराले 'घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छृढसरीरे संखित्तविपुलतेयलेस्से °च उदसपुवी चउणाणोवगए पंचहिं अणगारसएहिं सद्धि संपरिवड़े पुव्वाणपुवि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव सावत्थी नयरी जेणेव कोदए चेइए तेणेव उवागच्छइ, सावत्थीनयरीए वहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। चित्तस्स जिण्णासा-पदं ६६७. तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग-तिय-च उक्क-चच्चर-चउम्मुह-महायहपहेसु महया जणसद्दे इ वा जणवूहे इ वा 'जणवोले इ वा जगकलकले इ वा 'जणउम्मी इ वा" जणसणिवाए इ वा 'बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेई-एवं खलु देवाणुप्पिया! पासावच्चिज्जे केसी नामं कुमार-समणे जातिसंपण्णे' पुव्वाणुपुट्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमा गए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नगरीए वहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगि हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महत्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया! तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-नमसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! केसि कुमार-समणं वंदामो णमसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं पज्जुवासामो। एयं णे पेच्चभवे इहभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ ति कटु वहवे उग्गा उग्गयुत्ता भोगा भोगपुत्ता एवं दुपडोयारेणं-राइण्णा खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई लेच्छईपुत्ता, अण्णे य वहवे राईसरतलवर-माडंविय-कोडुविय-इब्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभितयो अप्पेगइया वंदणवत्तियं अप्पेगइया पूयणवत्तियं अप्पेगइया सकारवत्तियं अप्पेगइया सम्माणवत्तियं अप्पेगइया दंसणवत्तियं अप्पेगइया कोऊहलवत्तियं अप्पेगइया अस्सुयाइं सुणेस्सामो सुयाई निस्संकियाई करिस्सामो अप्पेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, अप्पेगइया गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जीयमेयंति कटु ग्रहाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगल-पायच्छित्ता सिरसा कंठमालकडा आविद्धमणिसुवण्णा कप्पियहारद्धहार-तिसर-पालंव१. x (क, ख, ग, घ, च)। पज्जुवासइ । २. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. राय० सू०६०६। ३. ४ (घ)। १०. अत्र औपपातिके ५२ सूत्रे ‘पंचाणव्वइयं सत्त४. सं० पा०--ओराले चउदसपुवी। सिक्खाव इयं दुवालसविहं गिहिधम्म' इति ५. जणसमूहे (छ)। पाठो विद्यते, किन्तु अर्थसमीक्षयास्माभिरत्र ६. ४ (क, ख, ग, घ)। 'गिहिधम्म' इत्येव पाठः स्वीकृतः । अर्थ७.४ (क, ख, ग, घ)। समीक्षार्थ द्रष्टव्यं ६६५ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६.सं० पा.--जणसण्णिवाए इ वा जाव परिसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003569
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy