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________________ रायपसेणइयं करेंति, अप्पेगतिया उच्छलेंति, पोच्छलेंति, उक्किट्टियं करेंति, अप्पेगतिया ओवयंति', अप्पेगतिया उप्पयंति, अप्पेगतिया परिवयंति, अप्पेगइया तिण्णि वि, अप्पेगइया सीहनायं नयंति, अप्पेगतिया पाददद्दरयं करेंति, अप्पेगतिया भूमिचवेडं दलयंति, अप्पेगतिया तिण्णि वि, अप्पेगतिया गज्जंति, अप्पेगतिया विज्जुयायंति, अप्पेगइया वासं वासंति, अप्पेगतिया तिण्णि वि करेंति, अप्पेगतिया जलंति, अप्पेगतिया तवंति, अप्पेगतिया पतवेंति, अप्पे. गतिया तिण्णि वि, अप्पेगतिया हक्कारेंति, अप्पेगतिया थुक्कारेंति', अप्पेगतिया थक्कारेंति, अप्पेगतिया 'साइं साइं नामाई साहें ति", अप्पेगतिया चत्तारि वि, अप्पेगतिया देवसण्णिवायं करेंति, अप्पेगतिया देवुज्जोयं करेंति, अप्पेगइया देवुक्कलियं करेंति, अप्पेगइया देवकहकहग करेंति, अप्पेगतिया देवदुहदुहगं करेंति, अप्पेगतिया चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगइया देवसण्णिवायं, देवुज्जोयं, देवुक्कलियं, देवकहकहगं, देवदुहदुहगं, चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगतिया उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया, अप्पेगतिया वंदणकलसहत्थगया अप्पेगतिया भिंगारहत्थगया जाव धूवकडुच्छयहत्थगया हद्वतु' 'चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण हियया' सव्वओ समंता आहावंति परिधावति ।। वद्धावण-पदं २८२. तए णं तं सूरियाभं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अण्णे य बहवे" सूरियाभरायहाणिवत्थव्वा देवा य देवीओ य महया-महया इंदाभिसेगेणं अभिसिंचंति, अभिसिंचित्ता पत्तेयं-पत्तेयं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-जय-जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! 'जय-जय नंदा ! भदं ते, अजियं जिणाहि, जियं च पालेहि, जियमज्झे वसाहि-इंदो इव देवाणं, चंदो इव ताराणं, चमरो इव असुराणं, धरणो इव नागाणं, भरहो इव मणुयाणं--बहूई पलिओवमाइं बहूई सागरोवमाइं वहूई पलिओवम-सागरोवमाई चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं सूरियाभस्स विमाणस्स अण्णेसिं च बहूणं सूरियाभविमाणवासीणं देवाण य देवीण य 'आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहराहि त्ति कटु महया-मह्या सद्देणं जय-जय सदं पउंजंति ।। १. जीवाजीवाभिगमे (३।४४७) केषाञ्चित् १०. बहेव 2 (क, ख, ग, घ)। पदानां व्यत्ययो दृश्यते।। ११. जय नंदा भई ते (क, ख, ग, छ); जय जय २. वुक्कारेंति (च, छ); थूत्कुर्वन्ति (वृ)। भदं ते (घ)। ३. साइं नामाइं सावेंति (क, ख, ग, घ, च, छ)। १२. यद्यपि प्रतिषु आहेवच्चं जाव महया-मया ४. अप्पेगइया देवा (क, ख, ग, घ, च, छ) । कारेमाणे पालेमाणे विहराहि' एवं पाठो लभ्यते, ५. देवा (क, ख, ग, घ, च, छ) । किन्तु लिपिदोषादसौ पाठः अशुद्धो जात इति ६. दुहुदुहुगं (क, ख, ग, घ, च, छ) । प्रतीयते । जीवाजीवाभिगमे (३१४४८) एष ७. राय० सू० २७६ ।। पाठ: समीचीनो वर्तते-आहेवच्च जाव ८. सं० पा०—हटुतु? जाव हियया । आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे ६. अतः परं सूरियाभे विमाणे' इति पाठोपेक्ष्यते, विहराहित्ति कट्ट महता-महता सद्देणं जय-जय द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३१४४७ सूत्रम् ।। सई पति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003569
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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