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________________ १६४ कडुय-कतिविध ६७६ २६२. जी० ३।४१६,४४५,४४७,४५६,४५७, कागवेहण [कर्णवेधन ] रा०८०३ कणिका [कणिका] जी० ३।३३२ कडुय [कटक] ओ० ४०. रा० ७६५. जी० ११५; कणिया [कणिका] ओ० १७०. रा० १५६. ३१२२,११०,७२१,८६०,६५५ जी० ३।६४३ से ६४५,६५४ से ६५६ कड्डिजमाण [कृष्यमान ] रा०५६ कणियार [कणिकार] जी० ३१८७२ कठिण [कठिन ] ओ० ४६,६४ कण्ह [कृष्ण ] ओ०६६. जी० ३।२७८,३४८ कढिय क्वथित] जी० ३१५६२,६०१ कण्हकंद [कृष्णकन्द] जी० २७३ कणइर कणवीर] जी० ३३५६७ कण्हकेसर कृष्णकेसर जी० ३१२७८ कणइरगुम्म [कणवीरगुल्म ] जी० ३।५८० कण्हपरिवाया [कृष्णपरिव्राजक] ओ०६६ कणग [कनक] ओ० १९,२३,५०,६३,६४,८२. कण्हबंधुजीव [कृष्णबन्धुजीव] जी० ३।२७८ रा० २८,३२,६६,७०,१२६,१३०,१३७,१७३, कण्हमत्तिया [कृष्णमृत्तिका] जी० ११५८ २१०,२१२,२८५,६८१,६६५. जो० ३१२८१, कण्हराई कृष्णराजी, कृष्णराज्ञी जी० ३११९ २८५,३००,३०७,३५४,३७२,३७३,४५१, कण्हलेस [कृष्णले श्य] जी० ६।१८६,१६३ ५८६,५६३,५६६,५६७.६४७,७४७,८६६, कण्हलेसा [कृष्णलेश्या] जी० २१३३; ३।१५० ८८५,९३६ . कम्हलेस्स [कृष्णले श्य] जी० ६.१८५,१६६ कणगजाल [कनकजाल] रा० १६१. जी० ३।२६५ कण्हलेस्सा [कृष्णलेश्या] जी० १२१ कणगजालग [कनकजालक] जी० ३।५६३ कण्हसप्प [कृष्णसर्प] जी० ॥२७८ कणगत्तयरत्ताभ [कनकत्वग्रक्ताभ] कण्हासोय [कृष्णाशोक] जी० ३।२७८ जी० ३.१०६३ कत [कृत] जी० ३१५६१ कणगप्पम [कनकप्रभ] जी० ३१८६६ कसमाल [कृतमाल] जी० ३१५८२ कणगमय [कनकमय] जी० ३४१५,६४३,६४४, कतर [कतर] जी० २०६८ से ७२,६५,६६,१३४ से १३८,१४१ से १४६; ३।११३८, २५२, कणगामय [ कनकमय] रा० २५४. जी. ३।३५२, ५६, ७२०, ६।२५३,२८६ से २६१,२६३ ४१५,६३२,६४३,६५४,६५५,७३६ कति कति रा० ७६७. जी० १३१६,२०,५६, कणगावलि [कनकावलि] ओ० २४,१०८,१३१. ५६,६२,७४,७६,८२,८५, ६०,६३,१०१,११६, जी० ३४५१ १२८,१३०,१३४; ३१७७,६८,१०८,१५०, कणगावलिपविभत्ति [कनकावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ १५७,१६०,१६५,१६७,१७२ से १७४,२३५ कणिया {क्वणिता] जी० ३१५८८ से २३७,२४१,२४२,२४५,२४६,२४६,२५४, कण्ण [कर्ण] रा० १५,४०,१३२,१३५,१७३. २५५,२५८,२६६.७०३,७०७,७२२,७३३ से जी० ३।२६५,२८५,३०५ ७३५,७४६,७६६,८०६,८१३,८२०,२४, कण्णछिण्णग [कर्णछिन्नक] ओ०६० ८३७,८५१,८५५,६६३ से ६६६,१०१५, कण्णपाउरण [कर्णप्रावरण] जी० ३।२१६ १०१७,१०२३.१०२६,१०४०,१०४१,१०४४, कग्णपोट [कर्णपीठ] ओ० ४७,७२ १०७५,११०१,१११२ कण्णपूर [कर्णपूर] ओ० ५७,१०६,१३२ कतिक्त्तो [कतिकृत्वस्] जी० ३१७३० कण्णवाली [कर्णवाली] जी० ३१५६३ कतिविष कतिविध] जी० ३१६ से ११,३७,३८, कग्णवेयणा [कर्णवेदना] जी० ३१६२८ १४७,१६१.१८५, ६३१, ५१३७ ८६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003569
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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