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________________ ६७६ / प्रभास [ प्र - - - भास् ] - पभासिसु जी० ३१७०३ - पभासिस्संति जी० ३।७०३ - पभासेइ. रा० ७७२. जी० ३।३२७ - पभासेति. रा० १५४. जी० ३।३२७ - पभासेति. रा० १५४. जी० ३२७४१ पभासेमाण | प्रभासमान । ओ० ४७,७२. जी० ३.११२१ पभिइ | प्रभृति ] रा० ७६०, ७६१ पभिति [ प्रभृति | ओ० ५२,६३. रा० ६८७,६८८, ७०४. जी० ३८३८२५ भु [ प्रभु ] रा० ७५८ से ७६१. जी० ३।११०, ६८८ से ६६७, १०२३ से १०२५, १११५, १११६ भू [ प्रभूत] ओ० १,१४,४६,१४१. ० ६, १२,६७१,७६६. जी० ५८६ / पमज्ज | प्र - + मृज् ] --- पमज्जइ. रा० २६१ - पमज्जति जी० ३।४५७ पमज्जिता [ प्रमृज्य ] रा० २६१. जी० ३१४५७ पमत्त [ प्रगत | रा० १५ मद्दण [ प्रमर्दन] ओ० २६. रा० १२,०५८.७५६. जी० ३ ११० पमाण | प्रमाण ] ओ० १५,१६,३३,१२२,१४३. रा० ६.१२,४०,२०५ से २०८, २२५, २५४, २७६,६७२,६७३,६७५,७४५ से ७५७,७७३, ८०१. जी० ३।३१३,३६८ से ३७१,३८४, ४०६,४१२,४१५,४४२, ५६८, ५६६, ५९६,५६७, ६५२,६६६,६७३,६७६, ६७९, ६८५, ६८६, ६८८, ६६१ से ६६८.७३७,७५०,७५३, ७६४, ७६५,८००,८८,८६६,८६८,६१६ से ६२१, ६४१, १०७४ धमाणपत्त [ प्रमाणप्राप्त ] ओ० ३३ पाणभूय ] प्रमाणभूत | रा० ६७५ माय | प्रमाद ] ओ० ४६ पमादायरिय [ प्रमादात्ररित ] ओ. पमुइय | प्रमुदित ] ओ० १,१६,४६. १० १७३. १३६ Jain Education International प्रभास -पथावण जी० ३१५६६ पमुच्चमाण [ प्रमुञ्चत् ] जी० ३१११पमुदित [ प्रमुदित ] जी० ३१२८५ पमुह | प्रमुख | ओ० ५५,५८,६२,७०,७१,८१. रा० २४६,७७६ पमोकक्ख [ प्रमं क्ष] रा० ६१८,७५२,७८६ पन्ह [ पक्ष्मन् | ओ० ८२ पह | पद्म | ० ९1१४ पहल | पक्ष्मल | ओ० ६३. रा० २८५. जी० ३।८५१ पम्हलेस | पश्य | जी० ६ १६० पहलेस्स [ पद्मलेश्य ] जी० ६।१८५, १९६ पहलेस्सा | पद्मलेश्या j जी० ३१११०२ पय | पद | ओ० २१, ५४. रा०८,७१४. जी० ३।२३६,२८५ पर्यटन | कण्टक | जी० ३।३२२ √ पयच्छ [ प्र - यम् ] - पयच्छइ. रा० ७३२ पण | पचन ] ओ० १६१,१६३ पण [ प्रतनु ] जी० ३३५६८,६११,७६५,८४१ पयत [ प्रयत| जी० ३४५७ पयत्त [ प्रयत्न | रा० २६२. जी० ३.६०१,८६६ पबद्ध | पदबद्ध | रा० १७३. जी० ३।२८५ पययदेव [पतगदेव, पलकदेव ] ओ० ४६ पयर [ प्रतर | रा० ४०, १३२ परम [ प्रतरक | जी. ३।२६५, ३१३,५६३ पयला ( प्र -- क्लाय् ] – पयलाएज्ज. जी० ३।११८ पर्यालय | प्रचलित | ओ० २१, ५४. रा०८, ७१४ पयसंचार | पदञ्चार] रा० ७६,१७३. जी० ३२२८५ √ पया | प्र | - जनय् ] वा रा० ८०१ -पर्यात ओ० १८३ पाणुसारि | पदः रिन् । ओ० २४ पयार | प्रचार] ओ० ३७ पयावण [ पाचन ] ओ० १६१,१६३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003569
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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