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________________ काय-कालमेह १६४ काय [बंधण] [काचबन्धन] ओ० १०६,१२६ ६६,७३,७६,८६,८८,६२,६७,१०७ से १०६, कायअपरित्त [कायापरीत] जी० ६७६,८० १११,११३,११४,११६,१२०,१२१,१२५, कायकिलेस [कायक्लेश] ओ० ३१,३६ १२६,१३१ से १३३,१३६,१५०; ३ १२,२२,४५, कायगुत्त [कायगुप्त ] ओ० २७,१५२,१६४. ८३.६०,६४,११७ से १२०,१५६,१८६,१६२, रा० ८१३ १६५ से १९७,२१४,२३८,२४३,२४७,२५०, कायजोग [काययोग] ओ० ३७, १७५ से १७७, २५२ से २५६,२५८,४३६,५६४,५६५५८६, १८०,१८२ ५६६,६२६,६३०,७२४,८१६,१३८ । १६,१८, कायजोगि [काययोगिन्] जी० ११३१,८७,१३३; २०,८४४,८४७,१०२७,१०४२,१०८५,१०८६, ३।१०५,१५२,११०६६।११३,११५,११८, ११३१,११३६,११३७, ४।३,५,६,१६,१७; १२० १५,८,९,२१ से २४,२८ से ३०,७।२; काय द्विति [कायस्थिति] जी० ३।११३३; ६।१२२ ८।३।४; ६।२,३,१२,२३,२५,२६,३३,४०, कायपरित्त [कायपरीत] जी० ६७६,७७,८३ ४६,५१,५२,५६.६६,७१,७३,७८,६७,१६४, कायबलिय [कायबलिक] ओ० २४ १७१,१७८,२०२,२०४,२५७ से २५६ कायम्व [कर्तव्य] रा० ७२,७०४. जी० ३.१२७; कालो [कालतस् ] ओ० २८. रा० २००. जी० १२३३,१३६,१४०:२।४८,४६,५४,५७ कायविषय [कायविनय] ओ० ४० से ६२,८२,८३, ३३२७२, ४७ से १९१८, कायसमिय [कायसमित] ओ० १६४ १,१२ से १६,२३,२६६१८७६; १०,११, कायापरित [कायापरीत] जी० ६८५ २३,२४,३१,३६ से ४८,५७५८,६८,७८,७६, कारंरक [कारण्डक] ओ० ६. जी० ३।२७५ ८९,६०,६६,६७,१०२,१०३,११४,११५,१२२, कारण कारण] रा० १६,६७५,७१६,७२०,७५२, १२२,१४२,१६० से १६३, १७१,१८६ से ७५४,७५६,७५८,७६०,७६२,७६४,७६८ १६१,१६३,१६५,१६८ से २०७,२१० से कारवाहिया कारवाहिक, कारबाधित] ओ०६८ २१२,२१४,२१६,२२२ से २२५,२२७ से कारवेत्ता [कारयित्वा] ओ० ५५. रा०६ २३०,२३३ से २३८,२४० से २४४,२४६, कारावण [कारण] ओ० १६१,१६३ २४६,२५७ से २६३,२६५,२६८ से २७३, कारेमाण [कारयत्] ओ०६८. रा० २८२,७६१. २७५ से २८२,२८४,२५५ जी० ३।३५०,४४८,५६३,६३७ कालतो [कालतस् ] जी० २१८४,११७ से १२०, १२२ से १२४,३१५६,१६३,१६४,११३३ से कारोडिय [कारोटिक] ओ०६८ ११३५:५८,१०,२२६।१६,२३,६४,७६,७७ काल [काल] आ० १,१८,२२ स २२,२७,२८,०५, कालधम्म [कालधर्म रा० ७५३ ४७ से ५१,८२,८७,८६ से ६५,११४,११७, कालपोर [दे. कालपर्वन् ] जी० ३८७८ १४०,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. कालमास [कालमास] ओ० ८७,८६ से १५,११४, रा० १,७,६३,६५,१७३,२७४,६६५.६६६, ११७,१४०,१५५.१५७ से १६०,१६२,१६७. ६६८,६७६,६८५,६८६,७५०,७५१ से ७५३, रा० ७५० से ७५३,७६६. जी. २११७, ७७१,७६६,७६८,८१५. जी० ११५,३४,३५, ५०,५२,६६, १२७,१३७ से १४२, २१२० से कालमिगपट्ट [कालमृगपट्ट] जी० ३१५६५ २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,६३,६५, कालमेह [कालमेघ ] ओ० ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003569
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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