SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १११८८,१६८ ११११३८ ११११५४ ११११५६ ११।१५६ ११११६६ १२१३२ १३३१०७ १४११०७ १४.११० १५६१८६ १५११८६ २५१५६६ २५२५७० २५॥५७१ एवं जहेव ओववाइए तहेव जहा ओक्वाइए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणधरे एवं जहा दढप इण्णस्स एवं जहा दढपइण्णे जहा ओववाइए जहा अम्मडो जाव बंभलोए एवं जहा कणिओ तहेव सव्व जहा कुणिओ ओववाइए जाव पज्जुवासइ एवं जहा ओववाइए जाव आराहगा एवं जहा ओववाइए अम्मडस्स वत्तव्वया एवं जहा ओववाइए दढप्पइण्णवत्तब्धया एवं जहा ओववाइए जाव सव्वदुक्खाणमंतं जहा ओक्वाइए जाव सुद्धेसणिए जहा ओववाइए जाव लहाहारे जहा ओक्वाइए जाव सव्वगाय भगवई वृत्ति पत्र ७ पत्र ११ पत्र ३१७ पत्र ३१८ पत्र ३१६ पत्र ४६२ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४७६ पत्र ४७६ पत्र ४८१ पत्र ४८२ पत्र ५१६ पत्र ५२० पत्र ५२१ औपपातिकात् सव्याख्यानोऽत्र दृश्यः औषपातिकवद्वाच्या "एवं जहा उववाइए" त्ति तत्र चेदं सूत्रमेवम् "एवं जहा उववाइए जाव" इत्यनेनेदं सूचितम् "जहा चेव उवबाइए" ति तत्र चैवमिदं सूत्रम् "जहा उववाइए" ति तत्र चेदं सूत्रमेवं लेशतः "जहा उबवाइए" ति तदेव ले शतो दय॑ते "एवं जहा उक्वाइए" तत्र चैतदेवं सूत्रम् जहा उबवाइए" ति चेदमेवं सूत्रम् "जहा उववाइए परिसावन्नओ" ति यथा कौणिकस्यौपपातिके "जहा उववाइए" ति एवं चैतत्तत्र "जहा उववाइए" ति अनेन यत्सुचितं तदिदम् "जहा उववाइए" ति करणादिदं दश्यम "एवं जहा उववाइए"त्ति अनेन यत्सूचितं तदिदम "जहा उववाइए" इत्येतस्मादतिदेशादिदं दश्यम् "एवं जहा उववाइए" इत्येतत्करणादिदं दृश्यम् "एवं जहेवे" त्यादि एवम्' अनतरशतेनाभिलापेन यथोपपातिके सिद्धानधिकृत्य संहननायुक्तं तथैवेहापि वाक्यपद्धतिरोपपातिकप्रसिद्धाऽध्येता पत्र ५२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003569
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy