SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अकाइय-अग्गलपासाय अकाइय [अकायिक] जी० ६।१८ से २०,१८२, अक्खीण [अक्षीण] रा० ७५१ १८४ अक्खीणमहाणसिय [अक्षीण महानसिक] ओ० २४ अकामछुहा [अकामक्षुध् ] ओ० ८६ अक्खुभियजल [अक्षुभितजल] जी० ३१७८३,७८४ अकामणिज्जरा [अकामनिर्जरा] ओ० ७३ अक्खेवणी [आक्षेपणी] ओ० ४५ अकामतहा [अकामतृष्णा] ओ० ८६ अखंड [अखण्ड] ओ० १६. जी० ३१५६६ अकामबंभचेरवास [अकामब्रह्मचर्यवास] ओ० ८६ अखुभियजल [अक्षुभितजल] जी० ३१७८३ अकाल [अकाल] रा० १३,१५ से १७ अगड [अवट] ओ० १,६६ अकिंचण अकिञ्चन ] ओ० २७. रा० ८१३ अगडमह [अवटमह] 'रा० ६६८ अकित्तिकारग [अकीतिकारक] ओ० १५४ अगणि [अग्नि ] रा० ७५७. जी० ३१७७ अकिया [अकृत्वा] ओ० १७२ अगणिकाय [अग्नि काय] रा० ७६७. अकिरिय [अक्रिय ] ओ० ४० जी० ३८४१ अकुडिल [अकुटिल] ओ० ४६ अगत्थिगुम्म [अगस्तिगुल्म] जी० ३१५८० अकुणत्तर एकोनसप्तति] जी० ३८२७ अगरला [अगरला,अगरल्लि] ओ० ७१. रा० ६१ अकुव्वमाण [अकुर्वत्] रा० ७६२ अगरुलघुयत्त [अगरुल चुकत्व] रा० ७६३ अकुसल [अकुशल] रा० ७५८,७५६ अगलुय [अगरुक] ओ० ११०,१३३ अकुसलमण [अकुशलमनस् ] ओ० ३७ अगामिया [अग्रामिका] ओ० ११६,११७. अकुसलवय [अकुशलवचस्] ओ० ३७ रा० ७६५,७७४ अकोसायंत [अकोशायमान, विकसत्] ओ० १६ अगार अगार] ओ० १५,२३,५२,७६,७८,१२०, अक्किट्ठ [अक्लिष्ट] जी० ३१६३० १५१. रा० ७०,१३३, ६७२, ६८७, ६८९, अक्कोह [अक्रोध] ओ० १६८ ६६५, ५०६, ८१०, ८१२ अक्ख [अक्ष] ओ० १२२ अगारपम्म [अगारधर्म] ओ० ७५,७७ अक्षय [अक्षय] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२००, अगारसामाइय [अगारसामायिक ] ओ० ७७ २६२. जी० ३।५६,२७२,३५०,४५७,७६० अगिला दे० अग्लानि] ओ० ७१. रा० ७२० अक्सर [अक्षर ओ०७१,१८२. रा० ६१,२७०. अगुरु [अगुरु रा० ३० जी० ३१४३५ अगेज्म [अग्राह्य] ओ०५ जी० ३१२७४ अक्खाइगपेच्छा [आख्यायकप्रेक्षा] जी० ३।६१६ अग्ग [अग्र] ओ० २३,६६. रा० ६६,७०,१३३, अक्खाङग [अक्षवाटक] रा० ३५,६६,२१८,३००. २६१,३५१,५६४. जी० ३१३०३,४५७,५१६, जी० ३।३७७,४६५,८६१ ५४७,५८०,५६७,६७४ अक्खाडय अक्षवाटक] रा०३६,२१७,३००, आगमहिसी [अग्रमहिषी] रा० ७,४२,४७,५६,५८, ३२१,३३८. जी० ३।४६५,४८६,५०३,८६० २८०,६५६. जी. ३१३४०, ३५०, ३५६, अक्खात [आख्यात] जी० ३२३२ ४४६,४४८,५५७,५५६,५६३,६१६ से १२२, अक्खामित्ता [अक्षमयित्वा रा० ७७६ १०२३,१०२६ अक्खाय [आख्यात] रा० १२४,१२६,१६३,१६६. अग्गय [अग्नक ] जी० ३१५६१ जी० ११३७७,१६१,१७४,२५७,३३५, अग्गलपासाय [अर्गलाप्रासाद] रा० १३०. ३५४,३५५,३५७,६५८,७२८,७३३,१०३८ जी० ३३०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003569
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy