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________________ अप्पेस अन्भट्ट ५६॥ अप्पेस [अप्रेष्य] जी० ३.११२० अभवद्दलय [अभ्रवालक रा० १२, १२३ अप्पोस्य [अल्पौत्सुक्य ) ओ० २५ अब्भहिय [अभ्यधिक ] ओ० ६५,६४,६५. अप्फाल आ+स्फाल्]--अफालेइ ओ० ५६ जी० २।३६.४१,४८,४६,५३ से ५५,५७ से अप्फालिजमाण [आस्फाल्यमान] रा० ७७ ६१,६६,८३,८४,१२६; ३१०२७ से १०३०, अप्फालेता (आस्फाल्य] ओ० ५६ ११३५, ४११६, ५॥१०,२६; ६१६; १२, अप्फुडिय [अस्फुटित ] ओ० १६ जी० ३।५६६ १३, १४,१७२,१७६,१८६ से १६१,१६३, अफोड [आ-+-स्फोटय --अप्फोडेति रा० २०३,२१२,१२५,२२८,२३८,२४१,२७३,२७७ २८१ जी० ३.४४७ अब्भासवत्तिय [अभ्यासवर्तित ओ० ४० अप्फोतामंडवग [दे० अप्फोयामण्ड पक] जी० अन्भिंग [अभ्यङ्ग] ओ० ६३ ३२६६ अभिगण अभ्यङ्गन] ओ० ६३ अप्फोयामंग्वग [दे० अप्फोयामण्डपक] जी० १८४ अभिगिय अभ्यजित] ओ० ६३ अप्फोयामंडवय [ दे० अप्फोयामण्डपक] रा० १८५ अभिंतर [आभ्यन्तर ओ० ६,३०,५५,६० से ६२. अफवस [अपरुष] ओ० ४० रा०४३. जी. १२३६,२५५,२७५,४४७, अफुसमाणगइ [अस्पृशद्गति j ओ० १५२ ६४३,६५८,७६६,७६७,७७५,८३१ से २३४, अबद्धिय [अबद्धिक] ओ० १६० अबहिल्लेस [अहिलेश्य ] ओ० २५, १६४ अम्भिंतरय आभ्यन्त रक] ओ० ३०,३८,४४. अबहुप्पसण्ण [अबहुप्रसन्न] मो० १११ से ११३, जी० ३।६५८ १३७, १३८ अम्भितरिय [आभ्यन्तरिक] रा० ६६०,६८३. अबाथा [अबाधा] जी० २११३६; ३३३३ से ३६, जी० १२३५ से २३६,२४१ से २४३,२४६, ६० से ६३, ६५, ६६, ६८, से ७२, ३००, २४७,२४६,२५० २५४ से २५६, २५८, ३४१, ५६६,५७०,६६२,६६१,७१४,८२७,१०२२ ५६०,७३३,१०४० से १०४२,१०४४,१०४६, अबाहा [अबाधा] ओ० १६२. रा० १७०. १०४७,१०४६,१०५३,१०५५ जी० २१७३, ६७, ३१६६, ३५८,५६६, अभिंतरिल्ल [आभ्यन्तरिक] जी० ३११००७ ६३६, ७१४, ८०२, ८१५, ८२७, ८५२, अिभुक्ख [अभि+ उ]-अब्भुक्खइ १००१ से १००६, १०२२ जी० ३१४७०--अब्भुक्खति जी० ३४५८-- अबाहूणिया [अबाधोनिका] जी० २०७३, ६७, अभुक्खेइ रा० २६३--अभुक्खेति जी० ३१४६० अब्भ [अभ्र] ओ० १६. जी० ३५६७, ६२६ अभुक्खित्ता [अभ्युक्ष्य] जी० ३१४५८ अभंतर [अभ्यन्तर ] अ.० १७०. जी० ३।८३८।१२ अब्भुक्खेता [अभ्युक्ष्य ] रा० २६३. जी० ३।४६० अभंतरय [अभ्यन्तरक] जी० ३१८६, २६०. ६८१ अब्भुग्गत [अभद्गत] जी० ३।३०२,३५६,३६८, अब्भक्खाण [अभ्याख्यान] ओ०७१, ११७, १६१, ३७०,६३४,१००८ १६३. रा० ७६६ अन्भुग्गय [अभ्युद्गत] ओ० ६७. रा० ३२,१३२, अब्भक्खाणविवेग [अभ्याख्यानविवेक ओ० ७१। १३७,१८६,२०४ से २०६,२०८. जी. ३१३०७ अन्भणुष्णाय [अभ्युनुज्ञात] रा० ११, ५६ ३५५,३६४,३६९,३७१,३७२,५६७,६७३ अन्भस्वस अभ्ररुक्ष] जी० ३ ६२६ अब्भुट्ट [अभि+ उत्+ष्ठा] - अन्भुढेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003569
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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