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लालजी ने श्रम और निष्ठापूर्वक योग दिया है । जीवाजीवामिगमे के पाठ सम्पादन में मुनि छत्रमल जी, मुनि बालचंदजी, मुनि हंसराजजी और मुनि मणिलाल जी का भी सहयोग रहा है ।
ओवाइयं की शब्द सूची मुनि श्रीचन्दजी तथा रायपसेणियं और जीवाजीवाभिगमे की भुनि हीरालालजी ने तैयार की है। प्रूफ संशोधन के कार्य में मुनि सुदर्शनजी, मुनि हीरालालजी और साध्वी सिद्धप्रज्ञाजी व समणी कुसुम प्रज्ञा का सहयोग रहा है ।
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ओवाइयं तथा रायपसेणियं का ग्रन्थ-परिमाण मुनि मोहनलालजी "आमेट" ने तैयार किया है । इस ग्रन्थ के प्रथम दो परिशिष्ट मुनि हीरालालजी ने तैयार किए है । पाठ के पुनर्निरीक्षण के समय भी मुनि हीरालालजी विशेषतः संलग्न रहे हैं।
कार्य-निष्पत्ति में इनके योग का मूल्यांकन करते हुए में इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता
हूं।
आगमविद् और आगम संपादन के कार्य में सहयोगी स्व० श्री मदनचंदजी गोठी को इस अवसर पर विस्मृत नहीं किया जा सकता। यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता ।
आगम के प्रबन्ध सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया / कुलपत्ति-जैन विश्व भारती / प्रारंभ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं । आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृत-संकल्प और प्रयत्नशील है । अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर वे अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं । जैन विश्व भरती के अध्यक्ष खेमचन्दजी सेठिया और मंत्री श्रीचन्द गाणी का भी योग रहा है। संपादकीय और भूमिका का अंग्रेजी अनुवाद जैन विश्व भारती के अन्तर्गत 'अनेकान्त शोधपीठ के डायरेक्टर नथमल टांटिया ने तैयार किया है।
एक लक्ष्य के लिये समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहार पूर्ति मात्र है । वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है।
अध्यात्म साधना केन्द्र, महरोली
अक्षय तृतीया
१ मई, १६८७ नई दिल्ली
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- युवाचार्य महाप्रज्ञ
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