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________________ गिग्गह-णियाणमयग णिग्गह [निग्रह] ओ० २५ णिव्हग [निह्नव] ओ० १६० णिग्यांत निर्धात] जी० ३१६२६ ‘णिद्दा [निद्रा] ---णिद्दाएज्ज. जी० ३।११८ णिग्याय [ निर्घात ] जी० ११७८ गिद्ध (स्निग्ध] ओ० ४,१३,१६,४७. रा० १७०, णिग्घायण [निर्घातन] ओ० २६ ७०३. जी. ३।२२,२७३,५८६,५६६,५६७, णिग्घोस [ निर्घोष ओ०६७. रा० १३. १०६८ जी० ३.४४६,४५७ गिद्धत [निर्मात ] ओ० १६.४७ णिघस [निकष ] ओ०६२ णिद्धच्छाय [ स्निग्धच्छाय | ओ० ४. रा० १७०, णिचयनिचय ) ओ० २३. जी० ३१२८४ ७०३. जी० ३१२७३ णिचिय [निचित] रा० १२,७५८,७५६. णिद्धोभास | स्निग्धावभास] ओ० ४. रा. १७०, ___ जी० ३:५६६ ७०३ जी० ३१२७३ णिच्च [नित्य] ओ० ५,८,१०,११. रा० १४५, णिषि [निधि ] जी० ३।६३७ २००. जी० ३२५६,११६,२६८,२७२,२७४, णिप्पंक [निष्पक] ओ० १६४. जी० ३।२६१,२६६ ३५०,६३७,१:०२,७२१,७३८,७६०,७६३, णिभय [निर्भय ] ओ० ४६ ८०८,८१६,८२६,८३३,८३६,८३८।१७,८४०, णिभिज्जमाण [निभिद्यमान] जी० ३।२८३ ८५४,६२३ णिभ | निभ| ओ०६४.जी. ३.५९६ णिच्चमंडिया नित्यमण्डिता] जी० ३।६६६ णिमग निमग्न ] ओ० १६. जी० ३:५६६ णिच्चालोय [नित्यालोक] जी० ३।१०७७ णिमिसिय / निमिषित ] जी० ३।११८ णिञ्चुज्जोय [नित्योदयात ] जी० ३।१०७७ हिम्मच्छ निर्मत्स्य ] जी० ३१९६५ णिच्छिड्डु | निश्छिद्र ] रा० ७५५,७७२ जिम्मल [निर्मल ] ओ० १६,४७,१८३,१८४,१९४. णिच्छिपण निच्छिन्न ] ओ० १६५।२१ ___ जी० ३।२६१,२६६,२६६,३०० णिज्जरण [निर्जरण] ओ० ४६ णिम्मा नेमा] रा० १६,१३० णिज्जरा निर्जरा] ओ० ७१,१६६,१७० णिम्माय [निर्मात] ओ०६३ इणिज्जा [निर्-- या] ---णिज्जंतु, ओ०६२. णियइपम्वय [नियतिपर्वत] जी० ३।२६२ णिज्जाहिस्सामि. ओ० ५५ पणियंस नि+बस् --णियंसेइ. जी. ३१४५१ णिज्जाणमग निर्याणमार्ग ! ओ०७२. रा० ५६ । णियंसण निकान] ओ० ४६ णिज्जामय [निर्याभक ] ओ० ४६ णियंसेत्ता | निवस्त्र] जी० ३।४५१ णिज्जास नियसि | जी० ३१५८६ णियग निजक] ओ० ७०,१५०. रा० १३,७५१, णिज्जत्त नियुक्त] ओ० ४८,४६,६४. रा० १७३, ८०२,८११ जियत्य दे०] रा० ६६,७० णिज्जह [नि!ह ] जी० ३६५६४ णियम [नियम] ओ० ३२. जी० ११५८,५६,७८, णिज्जोय | नियाग | रा० ५४,६६,७० ६१,६६.१३३,१३६; ३३१०४,११०७ णिठुर | निष्] ओ० ४० णियमसा [नियमसात् ] ओ० १९५:१० णिडाल ललाट ओ० १६. रा० १३३. णियय नियत] रा० २००. जी० ३१५६,३५० जी० ३३५६३,११२२ णियया [नियता] जी० ३१६६६ णिडालपट्टिया ललाटपट्टिका] रा ० २५४. णियलबद्धग [निगडबद्धग] ओ०६० जी० ३१४१५ णियाणमया [निदानमृतक) ओ ६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003569
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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