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वृत्तमौक्तिक
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कृतफणिपतिहारं त्रिभुवनसारं
दक्षमखक्षयसंक्षुब्धं रमणीलुब्ध । गलराजितगरलं गङ्गाविमलं
कैलाशाचलधामकगं प्रणमामि हरम् ।। यह पूर्ण स्तोत्र अद्यावधि अप्राप्त है ।
७. नन्दनन्दनाष्टक-यह स्तोत्र भी अद्यावधि अप्राप्त है । इसका केवल एक पद्य चर्चरी छन्द के प्रत्युदाहरण-रूप में प्राप्त है:"यथा वा, अस्मत्तातचरणानां श्रीनन्दनन्दनाष्टके-१ मन्दहासविराजितं मुनिवृन्दवन्द्यपदाम्बुजं,
सुन्दराधरमन्दराचलधारि चारुलसद्भुजम् । गोपिकाकुचयुग्मकुंकुमपङ्करूषितवक्षसं ,
नन्दनन्दनमाश्रये मम किं करिष्यति भास्करिः । ८. सुन्दरीध्यानाष्टकम्-यह अष्टकस्तोत्र भी अप्राप्त है। इसका भी केवल एक पद्य चर्चरो छन्द के प्रत्युदाहरण-रूप में प्राप्त है:"यथा वा, तेषामेव श्रीसुन्दरीध्यानाष्टके'--
कल्पपादपनाटिकावृतदिव्यसौधमहार्णवे ,
___ रत्नसङघकृतान्तरीपसुनीपराजिविराजिते । चिन्तितार्थविधानदक्षसुरत्नमन्दिरमध्यगां ,
मुक्तिपादपवल्लरीमिह सुन्दरीमहमाश्रये ।। ___६. देवीस्तुतिः-यह देवीस्तोत्र भी अद्यावधि अप्राप्त है। इसका केवल एक पद्य प्रस्तुत ग्रन्थ में 'हीरं छन्द' के प्रत्युदाहरण-रूप में प्राप्त है:
पाहि. जननि ! शम्भुरमणि ! शुम्भदलनपण्डिते !
___ तारतरलरत्नखचितहारवलयमण्डिते ! भालरुचिरचन्द्रशकलशोभि सकलनन्दिते !
देहि सततभक्तिमतुलमुक्तिमखिलवन्दिते ! १०. खड्गवर्णन-इसका एक पद्य स्रग्धराछन्द के प्रत्युदाहरण-रूप में प्रस्तुत ग्रन्थ में प्राप्त है। संभवतः कविरचित यह स्फुट पद्य हो, या हो सकता
१, २. वृत्तमौक्तिक पु. १४४ ३. वृत्तमौक्तिक पृ. ४३