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भूमिका
धवला नामभेद दिये हैं। शार्दूलविक्रीडित के दो, चन्द्र, धवल, शम्भु और मेघविस्फूर्जिता के एक-एक प्रत्युदाहरण भी दिये हैं।
२० अक्षर-योगानन्द, गीतिका, गण्डका, शोभा, सुवदना, प्लवङ्ग भंगमंगल, शशाङ्कचलित, भद्रक, और अनवधिगुणगणं नामक छन्दों के लक्षण सहित उदाहरण हैं । गण्डका का चित्रवृत्तं एवं वृत्तं नामभेद दिया है। गीतिका के दो, गण्डका और सुवदना के प्रत्युदाहरण भी दिये हैं।
२१ अक्षर-ब्रह्मानन्द, स्रग्धरा, मञ्जरी, नरेन्द्र, सरसी, रुचिरा और निरुपमतिलक नामक छन्दों के लक्षण सहित उदाहरण हैं। सरसी का सुरतरु
और सिद्धकं नामान्तर दिया है । स्रग्धरा और मञ्जरी के दो-दो, नरेन्द्र और सरसी के एक-एक प्रत्युदाहरण भी दिये हैं।
२२ अक्षर-विद्यानन्द, हंसी, मदिरा, मन्द्रक, शिखर, अच्युत, मदालस, और तरुवर नामक छन्दों के लक्षण सहित उदाहरण हैं। हंसी का एक और मदालस के दो प्रत्युदाहरण भी दिये हैं ।
२३ अक्षर-दिव्यानन्द, सुन्दरिका, यतिभेद से पद्मावतिका, अद्रितनया, मालती, मल्लिका, मत्ताक्रीडं और कनकवलय नामक छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण हैं । अद्रितनया का अश्वललितं नामान्तर दिया है। अद्रितनया और अश्वललितं के प्रत्युदाहरण भी दिये हैं। ___ २४ अक्षर-रामानन्द, दुर्मिलका, किरीट, तन्वी, माधवी और तरलनयन नामक छन्दों के लक्षण सहित उदाहरण हैं । दुर्मिलका और तन्वी के प्रत्युदाहरण भी दिये हैं।
२५ अक्षर-कामानन्द, क्रौंचपद, मल्ली और मणिगणनामक छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण हैं । क्रौंचपदा का प्रत्युदाहरण भी दिया है।
२६ अक्षर-गोविन्दानन्द, भुजङ्गविजृ भित, अपवाह, मागधी और कमलदल नामक छन्दों के लक्षण सहित उदाहरण दिये हैं । तथा भुजंगविज भित और अपवाह के प्रत्युदाहरण भी दिये हैं ।
उपसंहार में कवि कहता है कि इस प्रकरण में लक्ष्य-लक्षण-संयुक्त २६५ छन्दों का निरूपण किया है और प्रत्युदाहरण के रूप में प्राचीन कवियों के क्वचित् उदाहरण भी लिये हैं। अन्त में लक्ष्मीनाथभट्ट रचित पिंगलप्रदीप के अनुसार समस्त वृत्तों की प्रस्तारपिंड-संख्या १३,४२,१७,७२६ बतलाई है ।