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वृत्त मौक्तिक
इस संस्करण में मूल ग्रन्थ के पश्चात् दो टीकायें और ८ परिशिष्ट दिये हैं जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है।
(१) वृत्तमौक्तिक - वार्त्तिक- दुष्करोद्धार टीका
इस टीका और टीकाकार लक्ष्मीनाथ भट्ट का परिचय प्रारंभ में कवि - वंश - परिचय में दिया जा चुका है, अतः यहाँ पिष्टपेषण अनावश्यक है ।
(२) वृत्त मौक्तिक - दुर्गमबोध - टीका
इस दुर्गमबोधटीका के प्रणेता महोपाध्याय मेघविजय १८ वीं शताब्दी के बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न विशिष्टतम विद्वान हैं । इनका जन्म संवत्, जन्म स्थान और गार्हस्थ्य जीवन का ऐतिहय परिचय प्रद्यावधि प्राप्त है । श्रीवल्लभो - पाध्याय प्रणीत 'विजयदेवमाहात्म्य' पर मेघविजयजी रचित विवरण की सं. १७०६ की लिखित हस्तलिखित' प्रति प्राप्त होने से यह निश्चित है कि विवरण की रचना १७०६ के पूर्व ही हो चुकी थी । अतः यह अनुमान सहजभाव से लगाया जा सकता है कि इस रचना के समय इनकी अवस्था कम से कम २०-२५ वर्ष की अवश्य होगी ! अतः १६८५ और १६६० के मध्य इनका जन्म- समय माना जा सकता है ।
मेघविजयजी श्वेताम्बर जैन परम्परा में तपागच्छीय अकबर - प्रतिबोधक जगद्गुरु हीरविजयसूरि की शिष्य परम्परा में कृपाविजयजी के शिष्य हैं । विजयसिंहसूरि के पट्टधर विजयप्रभसूरि ने इनको उपाध्यायपद प्रदान किया
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मेघविजयजी - गुम्फित साहित्य को देखने पर यह साधिकार कहा जा सकता है कि ये एकदेशीय विद्वान् न होकर सार्वदेशीय विद्वान् थे । काव्य - साहित्य, पादपूर्ति, व्याकरण, छन्द, अनेकार्थ, न्यायशास्त्र, दर्शनशास्त्र, ज्योतिष, सामुद्रिक और अध्यात्मशास्त्र आदि प्रत्येक विषय के ये प्रगाढ़ पण्डित थे और इन्होंने प्रत्येक विषय पर साधिकार वर्चस्वपूर्ण लेखिनी चलाई है । इनका साहित्य सर्जना काल वि. सं. १७०६ से १७६० तक का तो निश्चित ही है । वर्तमान समय में प्राप्त इनकी रचित साहित्य - सामग्री की सूची निम्न है
१ - विजयदेवमाहात्म्य प्रान्तपुष्पिका
२ - युक्तिप्रबोध प्रशस्ति
३ - देवानन्द महाकाव्य प्रशस्ति