________________
वणिक छन्दों के लक्षण एवं नाम-भेद
[ ४४३
क्रमांक छन्द-नाम
लक्षण
१६१. वंशपत्रपतितम् [भ.र.न.भ.न.ल.ग.]
सन्दर्भ-ग्रन्थ-सङ्केताङ्क १, २, ३, ४, ६, १०, १३, १५, १७, १८, १९, २२; वंशपत्रपतिता-१, २०; वंशदलम्-१, ११; वंशतलं-५; वंशपत्रललितम्-५; वंशपत्रम्-१७. १, १७; नर्कुट-८; नर्कुटकम्-४, ७, ११, १३, १५, १८, १६ ; अवितथम्-२. १०, १४. १, २, १०, १३, १४, १५, १७, १६. १,५,१०, १५, १७ में 'म.भ.न.य.म.ल.ग.'
१६२. नईटकम्
(न ज.भ.ज.ज.ल.ग.]
कोकिकलम् [न.ज.भ.ज.ज.ल.ग.] १९३. हारिणी [म.भ.न.म.य.ल.ग.]
लक्षण है।
१६४. भाराकान्ता [म.भ.न.र.स.ल.ग.] १, ५, १०, १५, १७, १६५. मतंगवाहिनी (र.ज.र.ज.र.ल.ग.) १६६. पद्मकम् [न.स.म.त.त.ग.ग.] १, १०, पद्मम्-५ १६७. दशमुखहरम् [न.न.न.न नाल ल.] १, प्रचलनयनम्-१७.
अष्टादशाक्षर छन्द . १९८. लीलाचन्द्रः म.म.म.म.म.म.] १, ६. १६९. मजीरा म.म.भ.म.स.म.) १, ६, १२, १६, १७. २००. चर्चरी [र.स.ज.ज.भ.र. १, ६, १२, १६, १७; विबुधप्रिया-२, १४;
उज्ज्वलम्- १०; मालिकोत्तरमालिका११, १६; मत्तकोकिलम्-१७; कूपरं-१७; चञ्चरी १७, रूपगोस्वामी कृत मुकुन्दमुक्तावली में 'रंगिणी' और गोवद्ध नोद्धरण में
'मुग्धसौरभम्' नाम दिए हैं। २०१. क्रीडाचन्द्रः [य.य.य.य.य.य.] १, १२. १७; क्रीडाचक्रम्-१६; वार
वाणा-१७, क्रीडगा-१७; चन्द्रिका-१७. २०२. कुसुमितलता [म.त.न.य.य.य] १, २, ५, १०, १३, १५,२२, चित्रलेखा
३, चन्द्रलेखा-७; कुसुमलतावेल्लिता-१७;
१८; कुसुमितलतावेल्लिता-१६, २० २०३. नन्दनम् [न ज.भ.ज.र.र.]] १, १५, १७. २०४. नाराचः [न.न.र.र.र.र.] १, १५, १७; नाराचकम्-२; मजुला
१, महामालिका-१७; तारका-६; वरदा
१६% निशा-१६. २०५. चित्रलेखा [म भ.न.य.य.य.] १, ५, १०, १४, १५, १७; चन्द्रलेखा
१७; महाराणा कुम्भकर्ण रचित पाठघरललक्षण 'नई टकम्' का है परन्तु यतिभेद के कारण अपर नाम 'कोकिलकम्' दिया है।