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प्रस्तार छन्द- नाम
संख्या
२.
३.
४.
५.
७.
८.
२.
३.
४.
व्रीडा
समृद्धिः
सुमतिः
€
१०.
१२.
१३.
१४. ऋजु
१५.
अनृजु
६.
८.
सोमप्रिया
सुमुखी
मृगवधूः
मुग्धम्
वारि
कारु
तावुर
पञ्चम परिशिष्ट
सन्दर्भ-गन्थों में प्राप्त वर्णिक - वृत्त
नाली
प्रीतिः
घनपंक्तिः
सती
कल लि
लक्षण
य ग
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चतुरक्षर छन्द
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पञ्चाक्षर छन्द
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सन्दर्भ-ग्रन्थ-सङ्क ेताङ्क
१०, ६; क्रीडा - १७;
वृद्धि: - १६
१०; पुण्य - ११; नन्द:- १७; चद्धिः १६
१०, १६; भ्रमरी - ११ ; दोला- १७ ; रामा-१७,
१०; धरा- १७; तारा- १६.
१०, १६; ललिता - ११; बला - १७.
७, १०, १५; कुसुमिता - २२;
१७; गोपाल - १७;
१७;
१७;
१७;
१७;
१७:
सती - १७; मधु - १६; तरणिजा - १७. वल्ली - १६.
कर्तृ - १७;
वीरु - १७;
कृष्ण - १५;
जपा-१६.
निशि - १७;
सद्म - १६. कदली- १६
त्रपु - १६.
जतु - १६.
१७;
१०, १६; सूरिणी - १७.
१०; प्रगुणं - १७; चतुवंशा- १७;
सुदती - १६.
१०, १; शिखर - ११; कण्ठी- १७.
१७;
* जिन छन्दों का वृत्तमौक्तिक में समावेश नहीं हुआ है और जो अन्य सन्दर्भ-ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं वे श्रवशिष्ट छन्द प्रस्तार क्रम से इस परिशिष्ट में दिए गए हैं। प्रारम्भ में प्रस्तारानुक्रम से उस छन्द की प्रस्तारसंख्या दो है, तत्पश्चात् छन्द का नाम और उसके लक्षण दिए हैं। तदनन्तर सन्दर्भ ग्रन्थ का संकेत और छन्द का नाम-भेद एवं सन्दर्भ-ग्रन्थ का संकेतांक दिया है । सन्दर्भ-ग्रन्थ-सूची और संकेतांक पृष्ठ ४१४ के अनुसार है ।