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भूमिका
उन-उन ग्रन्थों के अंक लगा दिये हैं । ग्रन्थ-विस्तार भय से यहां पर ग्रन्थों के नाम न देकर उनके अंक दिये हैं ।
क. (२) गाथादि छन्द-भेदों के लक्षण एवं नामभेद - इसमें गाथा, स्कन्धक, दोहा, रोला, रसिका, काव्य और षट्पद नामक छन्दों के प्रस्तार - संख्या -क्रम से लक्षण, छन्द-नाम और नामभेद दिये हैं । इन छन्दों के प्रस्तारभेद कुछ ही ग्रन्थों में प्राप्त हैं, समग्र ग्रन्थों में नहीं हैं, इसलिये अंकों का प्रयोग न करके ग्रन्थनामशीर्षक से ही दिये हैं ।
ख. वर्णिक छन्दों के लक्षण एवं नामभेद - इसमें वर्णिक - सम, प्रकीर्णक, दण्डक, अर्द्धसम, विषम और वैतालीय छन्दों के वृत्तमौक्तिक के अनुसार छन्दनाम और लक्षण दिये हैं । लक्षण मगणादिगणों के संक्षिप्त रूप 'म. य. र. स. त. ज. भ. न. ल.ग.' रूप में दिये हैं । पश्चात् सन्दर्भ-ग्रन्थों के अंक, नामभेद और अंक दिये हैं । यह प्रणालिका 'क. १. मात्रिक छन्दों के लक्षण एवं नामभेद' के अनुसार ही है ।
केवल २६५ वर्णिक सम छन्दों में से ६१ छन्द ही ऐसे हैं जिनके कि नामभेद प्राप्त नहीं है । एक ही छन्द के एक से लेकर आठ तक नामभेद प्राप्त होते हैं । नामभेदों की तुलना से यह स्पष्ट है कि इसका प्रयोग कितना व्यापक था ! ऐसा प्रतीत होता है कि नाम- निर्वाचन के लिये छन्दः शास्त्रियों के सम्मुख कोई निश्चित परिपाटी नहीं थी, वे स्वेच्छा से छन्दों का नाम निर्वाचन कर सकते थे, अन्यथा इतने नामभेद प्राप्त नहीं होते !
ग. छन्दों के लक्षण एवं प्रस्तार संख्या -- इसमें वृत्त मौक्तिक में प्रयुक्त एकाक्षर से षड्विंशाक्षर तक के सम वर्णिक छन्दों के क्रमशः नाम देकर 'S, ।' गुरुलघुरूप में लक्षण दिये हैं पश्चात् उसकी प्रस्तारसंख्या दिखाई है कि यह भेद प्रस्तारसंख्या की दृष्टि से कौन सा है । मैंने यथासाध्य समग्र छन्दों की प्रस्तारसंख्या देने का प्रयत्न किया है, फिर भी कतिपय छन्द ऐसे हैं जिनकी प्रस्तारसंख्या प्राप्त नहीं हुई है । तज्ज्ञों से निवेदन है कि इसकी पूर्ति करने का वे प्रयत्न करें |
प्रकीर्णक, दण्डक, असम और विषम छन्दों के नाम और लक्षण 'S, ' प्रणालिका से ही दिये हैं । पञ्चम परिशिष्ट
इस परिशिष्ट में जिन छन्दों का वृत्तमौक्तिक में उल्लेख नहीं है और जो सन्दर्भ-ग्रन्थ-सूची के २१ ग्रन्थों में प्रयुक्त हैं उन छन्दों को भी छन्दःशास्त्रविषयक