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प्रथम परिशिष्ट
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४. ढगण ३. मात्रा भेद, ३१. ।। ध्वज', चिह्न, चिर, चिरालय, तोमर, पत्र, चूतमाला', रस, वास,
पवन, वलय, तुम्बुरु, २. । करताल, पटह', ताल, सुरपति प्रानन्द, तूर्य, निर्वाण, सागर
३. ।।। भाव', रस, ताण्डव और भामिनी के पर्यायवाची शब्द ५. णगण २ मात्रा, भेद २१. 5 नूपुर, रसना, चामर, फणि, मुरधाभरण, कनक, कुण्डल, वक्र, मानस,
वलय, कंकण, हारावली, ताटंक, हार, केयूर २. ।। सुप्रिय, परम' एक लघु के नाम निम्न प्रकार हैं
शर, मेरु, दण्ड, कनक, शब्द, रूप, रस, गन्ध, काहल, पुप्प, शंख, तथा बाण।
१. वृत्तजातिसमुच्चय में । 5 विकलवाची निम्न शब्द और अधिक हैं-- कदलिका, ध्वज
पट, ध्वजपताका, ध्वजाग्र, पताका, वैजयन्ती । वाग्वल्लभ में पटच्छदन अधिक है। - २. वाणीभूषण में चूतमाला के स्थान पर चूडमाला है। वाग्वल्लभ में चूतभवा, स्रक्,
पाम्रमाला है। ३. वृत्तमौक्तिककार ने तूर्य और पटह को । त्रिकलवाची माना है, जब कि वृत्तजाति
समुच्चयकार ने तूर्य अोर पटह को ।।। त्रिकलवाची माना है। ४. प्राकृतपैगल में 'छन्द'। त्रिकलवाची अधिक है। वाग्वल्लभकार ने सखा, अयः, प्रायः
अधिक स्वीकार किये हैं और सूरपति के स्थान पर स्व:पति तथा प्रानन्द के स्थान पर
नन्द पर्याय स्वीकार किये हैं। ५. वृत्तमौक्तिक में भाव और रस ।।। त्रिकलवाची स्वीकृत हैं, और रस । एककल
वाची भी। जब कि वृत्तजातिसमुच्चय में ।। भाव और रस ।। द्विमात्रिक स्वीकृत हैं । वाग्वल्लभ में ।।। में कुलभाविनी भी स्वीकृत है। ६. वृत्तजातिसमुच्चय में 5 द्विमात्रिक में निम्न शब्द भी स्वीकृत हैं-कटक, पद्मराग,
भूषण, मणि, मरकत, मुक्ता, मौक्तिक, रत्न, विभूषण, हारलता। वाणीभूषण में 'मञ्जरी' भी स्वीकृत है । वाग्वल्लभ में अङ्गद, मञ्जीर, कटक भी स्वीकृत हैं। ७. प्राकृतपैगल में सुप्रिय, परम के स्थान पर निजप्रिय, परमप्रिय हैं। ८. लघुवाचक । शब्दों में प्राकृतपैगल में 'लता' और वाणीभूषण एवं वाग्बल्लभ में स्पर्श
भी स्वीकृत है।