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३. डगण
५ भेद
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( गुरुयुग्म ) ' कर्ण, सुरतलता गुरुयुगल, कर्णसमान, रसिक, रसलग्न, सुमतिलम्बित, मनोहर े, लहलहित
२.
15 ( गुर्वन्त) करतल, कर४, पाणि, कमल, हस्त, प्रहरण, भुजदण्ड, बाहु, रत्न, व्रज्ञ, गजाभरण, भुजाभरण
( गुरुमध्य) पयोधर, भूपति, नायक, गजपति, नरेन्द्र, कुच वाचक शब्द, गोपाल, रज्जु, पवन
१.
४. मात्रा,
३.
वृत्तमौक्तिक
। ऽ।
४.
5 ।। ( श्रादिगुरु ) वसुचरण, दहन, पितामह, तात, पद-पर्याय, गण्ड, बलभद्र, जङ्घायुगल, रति ७
।।।। ( सर्वलघु) विप्र, द्विज, जाति, शिखर, पंचशर, बाण, द्विजवर
५.
तथा गज, रथ, तुरंगम और पदाति ये सब चतुष्कल के वाचक हैं ।
१. चतुर्मात्रिक SS के और ।। ।। के पर्याय वारणीभूषण में प्राप्त नहीं है ।
२. मनोहर के स्थान पर प्राकृतपैंगल में 'मनहरण' है ।
३ प्राकृतपैंगल में 55 चतुर्मात्रिक में सुवर्णं अधिक है ।
४. 'करपल्लव' को भी ।। चतुर्मात्रिक, वृत्तजातिसमुच्चयकार ने माना है । वाग्वल्लभकार ने अलंकृति भी स्वीकार किया है ।
५. वृत्तजातिसमुच्चय में पयोधर के वाची 'स्तन, स्तनभार' भी स्वीकृत हैं; जब कि स्तनादि का प्रयोग वृत्तमौक्तिककार ने कुचवाची शब्दों में किया है । वाग्वल्लभ में पयोधृत्, पयोद, जलद, जलधर, वारिद भी स्वीकृत हैं ।
६. भूपति के पर्यायों में वृत्तजातिसमुच्चय में नराधिप, पार्थिव, भूमिनाथ, राजन् और सामन्त भी स्वीकृत हैं । प्राकृतपैंगल में नरपति, उद्गतनायक अधिक है। वाणीभूषरण में मनुजपति अधिक है । प्रा० पं० और वाणीभूषण में अश्वपति और चक्रवर्ती अधिक है; जब कि प्रा. पैं, वृत्तजातिसमुच्चय और वाणीभूषण द्वारा समर्थित वसुधाधिप अधिक है । वाग्वल्लभ में मनुजपति, चक्राधीश, तुरगपति और वर्ष अधिक हैं । ७. प्राकृतपैंगल में चतुर्मात्रिक 5 ।। में नूपुर भी स्वीकृत है; जब कि प्राकृतपैंगल, वृत्तमौक्तिकादि में द्विमात्रिक 5 में स्वीकृत एवं प्रयुक्त हैं। वाग्वल्लभ में दहन, बलभद्र, जङ्घायुगल और रति शब्द हैं एवं पिता, हलायुध और पावक अधिक हैं ।
८. वृत्तजातिसमुच्चय में चतुष्कलवाची गजादि के निम्नपर्याय स्वीकृत हैं — करि, कुञ्जर, गज, मातंग, वारण, वारणेन्द्र, हस्तिन्, तुरंग, हरि, योध, स्यन्दन । जब कि वृत्तमौक्तिककार ने गजातिरिक्त कुञ्जर पर्यायों को । ऽ ऽ पंचमात्रिक स्वीकार किया है ।